hotaks444
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जब आपको किसी से प्यार होता है, सच्चा वाला, तो उसके लिए आप कुछ भी करने को तत्पर रहते है। अपनी ख़ुशी क्या जान तक दाँव पर लगा सकते है…
कुछ ऐसा ही सच्चा प्यार है देवा और नीलम के बीच, दो जिस्म एक जान से है दोनों…
इतनी बड़ी बात जानकार भी नीलम के दिल में देवा के लिए प्यार कम नहीं हुआ।
हाँ दर्द बेशक हुआ, दर्द न हो तो वो प्यार से ज्यादा “अँधा प्यार” कहलाता है जिसमे इंसान किसी चीज की कदर नहीं करता।
अपने प्यार को पाने के लिए किसी भी हद तक गिर जाता है,
पर नीलम का प्यार इतना मतलबी नहीं था।
उसे भी अपनी होने वाली सास की तकलीफ को समझा था और उसका साथ देने का फैसला करती है जिससे देवा के दिल में नीलम के लिए अब ईज्जत और ज्यादा बढ़ गयी थी।
बेशक़ नीलम और देवा एक दूसरे के लिए ही बने थे…
बारिश की बूंदो के बीच भिगती एक चूलबुल सी बलखाती सी एक लड़की जिसकी मुस्कान पे देवा मरता है…।
जब तक नीलम देवा की दृष्टि से बाहर नहीं हो गयी वो बस एक टक उसे देखता ही रहा…
रत्ना:“जनाब अब क्या यहीं रहने का ईरादा है?”
रत्ना की आवाज सुनकर देवा पीछे मुडा।
देवा: “माँ आप कब आयी?”
रत्ना: “अभी आयी हूँ…आ जाओ चाय ठण्डी हो जायेगी वरना…मजनू”
देवा अपना सर खुजला के घर के भीतर चला जाता है और अपनी माँ के साथ बैठे चाय पीने लगता है।
रत्ना: “तो कल दोपहर का खाना नहीं बनाऊ न?”
देवा: चौंक जाता है… माँ आपने सुन लिया था”
रत्ना:“तुम दोनों को खुश देखकर मेरे मन से बोझ उतर गया है…तुम दोनों बस खुश रहना”
देवा:“हाँ माँ…और आपको खुश रखने का काम मेरा है…”
और देवा मुस्कुराने लगता है और रत्ना भी उसे देख कर मुस्कुराने लगती है और देवा अपनी चाय रखकर उसकी तरफ आगे बढ़ता है और उसके रसीले होठो पर अपने होंठ रख देता है।
रत्ना भी देवा का साथ देते हुए अपने होठो से देवा के होंठ चुसती है और उसकी गरदन पकड़ लेती है।
बाहर बारिश बंद हो चुकी थी और मौसम में काफी ठण्डक भी आ गयी थी।
पर देवा और रत्ना को तो अब गर्मी लगने लगी थी।
जीससे दोनों एक दूसरे के कपडे उतारना शुरू कर देते है…
रत्ना: “रुको पहले घर का दरवाजा बंद कर आऊँ”
और रत्ना उठ कर दरवाजा बंद कर आती है।
देवा उसे अपनी बांहो में उठाकर कमरे में ले आता है…
जब आपको किसी से प्यार होता है, सच्चा वाला, तो उसके लिए आप कुछ भी करने को तत्पर रहते है। अपनी ख़ुशी क्या जान तक दाँव पर लगा सकते है…
कुछ ऐसा ही सच्चा प्यार है देवा और नीलम के बीच, दो जिस्म एक जान से है दोनों…
इतनी बड़ी बात जानकार भी नीलम के दिल में देवा के लिए प्यार कम नहीं हुआ।
हाँ दर्द बेशक हुआ, दर्द न हो तो वो प्यार से ज्यादा “अँधा प्यार” कहलाता है जिसमे इंसान किसी चीज की कदर नहीं करता।
अपने प्यार को पाने के लिए किसी भी हद तक गिर जाता है,
पर नीलम का प्यार इतना मतलबी नहीं था।
उसे भी अपनी होने वाली सास की तकलीफ को समझा था और उसका साथ देने का फैसला करती है जिससे देवा के दिल में नीलम के लिए अब ईज्जत और ज्यादा बढ़ गयी थी।
बेशक़ नीलम और देवा एक दूसरे के लिए ही बने थे…
बारिश की बूंदो के बीच भिगती एक चूलबुल सी बलखाती सी एक लड़की जिसकी मुस्कान पे देवा मरता है…।
जब तक नीलम देवा की दृष्टि से बाहर नहीं हो गयी वो बस एक टक उसे देखता ही रहा…
रत्ना:“जनाब अब क्या यहीं रहने का ईरादा है?”
रत्ना की आवाज सुनकर देवा पीछे मुडा।
देवा: “माँ आप कब आयी?”
रत्ना: “अभी आयी हूँ…आ जाओ चाय ठण्डी हो जायेगी वरना…मजनू”
देवा अपना सर खुजला के घर के भीतर चला जाता है और अपनी माँ के साथ बैठे चाय पीने लगता है।
रत्ना: “तो कल दोपहर का खाना नहीं बनाऊ न?”
देवा: चौंक जाता है… माँ आपने सुन लिया था”
रत्ना:“तुम दोनों को खुश देखकर मेरे मन से बोझ उतर गया है…तुम दोनों बस खुश रहना”
देवा:“हाँ माँ…और आपको खुश रखने का काम मेरा है…”
और देवा मुस्कुराने लगता है और रत्ना भी उसे देख कर मुस्कुराने लगती है और देवा अपनी चाय रखकर उसकी तरफ आगे बढ़ता है और उसके रसीले होठो पर अपने होंठ रख देता है।
रत्ना भी देवा का साथ देते हुए अपने होठो से देवा के होंठ चुसती है और उसकी गरदन पकड़ लेती है।
बाहर बारिश बंद हो चुकी थी और मौसम में काफी ठण्डक भी आ गयी थी।
पर देवा और रत्ना को तो अब गर्मी लगने लगी थी।
जीससे दोनों एक दूसरे के कपडे उतारना शुरू कर देते है…
रत्ना: “रुको पहले घर का दरवाजा बंद कर आऊँ”
और रत्ना उठ कर दरवाजा बंद कर आती है।
देवा उसे अपनी बांहो में उठाकर कमरे में ले आता है…