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- Dec 5, 2013
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शीतल को घर छोड़े हुए 7 महीने हो गये थे। राज के लिए तो जैसे आज ही वो घर छोड़ कर गयी थी। राज को खुद से ज़्यादा गौरी की फ़िक्र थी अभी कुछ दिन पहले अचानक गौरी की तबीयत बहुत ज़्यादा खराब हो गयी थी। डॉक्टर ने बताया कि उसके दिल में छेद है। ज़रूरत पड़ने पर ओपरेशन भी करना पड़ सकता है। उसे देखभाल की बहुत ज़्यादा ज़रूरत थी। ऐसे में राज के लिए शीतल का ना होना और भी दुख दे रहा था। उसके दिल में आता –“क्या शीतल, गौरी के लिए भी घर वापस नही आएगी पर शीतल को गौरी के बारे में पता कैसे चलेगा?”राज ज़्यादातर समय घर पर ही रहता ताकि गौरी का ध्यान अच्छे रख सके अच्छे से अच्छे डॉक्टर तो थे पर उस मासूम की माँ उसके साथ नही थी। कई बार गौरी राज से पूछती थी-“पापा,मेरी मम्मी कहाँ है?सबकी मम्मी होती हैं पर मेरी क्यों नही है?”
राज के पास उसके इस मासूमियत भरे सवाल का कोई जवाब नही होता। इतने दिनों में गौरी शीतल को भूल गयी थी पर दूसरों की मम्मी को देखकर वो ज़िद करने लगती थी।
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11.
रात के 8 बज रहे थे, राज गौरी को सुलाने के बाद टी.वी. देख रहा था। तभी फोन की बेल बजी।
“हैलो,”राज ने फोन रिसीव करते हुए बोला।
“हैलो,”दूसरी ओर से शीतल की आवाज़ आई।
“शीतल………तुम,” राज ने चौंकाते हुए कहा।
“मुझे कुछ पैसों की ज़रूरत है।”
“तुम हो कहाँ?”
“आगरा में।”
“वापस आ जाओ।”
‘मैं ज़्यादा बात नही कर सकती। पैसे कब तक दे दोगे।”
“कल………। हम मिलेंगे कहाँ?”
“रेलवे स्टेशन के पास।”
“मैं अपनी कार से रहूँगा।”
“तो क्या हुआ?”शीतल ने कहा और फोन रख दिया।
राज ने फिर फोन किया पर किसी ने रिसीव नही किया।
अगले दिन राज गौरी को अपने घर छोड़ कर आगरा चला गया। रेलवे स्टेशन के पास बताई जगह पर शीतल पहले से ही खड़ी थी। हरे-लाल रंग का सूट पहना हुआ था उसने। बहुत साधारण सी लग रही थी,पहले जैसी सुंदरता नही दिख रही थी। हल्की-हल्की ठंडक थी फिर भी शीतल ने कोई गर्म कपड़े नही पहने।
“कैसे हो?” शीतल ने राज के कार से बाहर निकलते ही पूछा।
“अच्छा हूँ और तुम?”
“मैं भी………………। मेरी नन्ह-सी जान कैसी है?”
“वो भी अच्छी है………। तुम्हे बहुत याद करती है,” राज ने कहा।
कुछ देर दोनों शांत रहे शायद वो आपस में बात करने के लिए शब्द ढूँढ रहे थे।
“अपने घर नही ले चलोगी।”
“क्यों नही?” शीतल ने थोड़ा हिचकिचाते हुए कहा।
दोनों कार से चल दिए। राज कार चला रहा था और शीतल उसके बगल में बैठी थी। राज ने अपना एक हाथ शीतल के हाथ पर रख दिया,शीतल ने देखा और फिर नज़रें हटा लीं।
“तुम कुछ बोल क्यों नही रही हो?” राज ने पूछा।
शीतल ने राज की ओर देखा फिर गहरी सांस भारती हुई बोली-“घर पहुँच कर बात करते हैं।”
“तुम्हारे बच्चे का क्या हुआ?” राज ने पूछा।
“गिर गया।”
“गिर…………। कैसे?”
“सीढ़ियों से फिसल गयी थी,पैर में भी चोट तभी लगी थी,” शीतल ने कहा।
राज का ध्यान उसके पैर की ओर गया,पट्टी बँधी थी और हल्की सूजन भी थी। तब तक घर आ गया।
“तुम बैठो यहाँ बैठो,मैं तुम्हारे लिए चाय बनाती हूँ,” शीतल ने ज़मीन पर एक चादर बिछाते हुए कहा।
“तुम ऐसी जगह रहती हो,” राज ने घर की हालत देखते हुए कहा।
“क्यों क्या हुआ है?”
“कुछ नही,” राज ने कहा और एक किनारे दीवारा का सहारा लेकर बैठ गया।
“तुम्हारा बिजनेस कैसा चल रहा है?” शीतल ने चाय पकड़ाते हुए पूछा।
“बहुत अच्छा…………………अब मैं पार्ट्नरशिप में नही हूँ,” राज ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा।
“मैंने तुम्हे पैसों के लिए फोन किया था,मुझे 2000 रुपयों की ज़रूरत है।”
“क्यों?ऐसी क्या ज़रूरत पड़ गयी जो मुझ से……………।”
“जहाँ काम करती हूँ,वहाँ मुझसे कुछ समान टूट गया है बस उसी लिए………………। मैं तुमसे कहती ना पर मेरी तबीयत नही ठीक है और मैं ज़्यादा काम नही कर सकती हूँ इसलिए कहा। वो मुझे कोई ग़लती होने पर बहुत बुरा-भला कहती हैं कई बार तो तुम्हारे बारे में भी कहने लगती जो मुझे अच्छा नही लगता है।”
“वहाँ काम क्यों नही छोड़ देती?”
“काम कम रहता है और पैसा भी ठीक मिल जाता है………फिर इतनी जल्दी कहीं और काम भी तो नही मिल जाएगा।”
“तुम्हे ये सब करने की ज़रूरत ही क्या है?पढ़ी-लिखी हो किसी भी जगह रिसेप्सनिस्ट…की जॉब मिल जाएगी तुम्हें,तुम कर भी चुकी हो फिर क्यों इस तरह से अपनी जिंदगी जी रही हो?”राज ने कहा।
“शायद मेरी जिंदगी में यही सब लिखा है।”
“पागलों जैसी बात क्यों कर रही हो……………। तुम्हें खुद पता है की तुम अकेले भी अपनी जिंदगी को बेहतर ढंग से जी सकती हो।”
शीतल कुछ नही कह सकी,वो अपनी नज़रें राज से चुराने की कोशिश करने लगी।
“इधर आकर बैठो,” राज ने अपने बगल में बैठने का इशारा करते हुए कहा।
शीतल राज के बगल में पर उससे कुछ दूर हटकर,दीवार के सहारे बैठ गयी। राज हल्का-सा मुस्कुरा दिया।
“क्या हुआ?तुम हँसे क्यों?”
“कुछ नही।”
“फिर क्यों हँसे?”
“तुम्हारी हरकत पर।”
“क्या किया मैंने?”
“कुछ नही…………। कभी मुझसे सटकर बैठने की कोशिश करती रहती थी और आज मुझसे दूर बैठने की।”
शीतल राज से सटकर बैठ गयी। दोनों ने एक-दूसरे को एक पल के लिए देखा और फिर मुस्कुरा दिए। शीतल ने अपना सिर राज एक कंधे पर रख दिया। राज उसके बालों में अपना हाथ फेरने लगा। अपनी उंगलियों में उसके बालों की लटों को लपेटने की कोशिश करता।
“अब भी तुम्हारा दिल पहले की तरह बाहर घूमने का करता है।”
“नही।”
“क्यों?पहले मुझसे बाहर चलने के लिए कितना ज़िद करती थी। अब क्या हुआ?”
“अब ज़िद करने के लिए तुम नही हो…………………………। तुम मुझसे अब भी प्यार करते हो या कोई और पसंद आ गयी है?”
राज के पास उसके इस मासूमियत भरे सवाल का कोई जवाब नही होता। इतने दिनों में गौरी शीतल को भूल गयी थी पर दूसरों की मम्मी को देखकर वो ज़िद करने लगती थी।
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रात के 8 बज रहे थे, राज गौरी को सुलाने के बाद टी.वी. देख रहा था। तभी फोन की बेल बजी।
“हैलो,”राज ने फोन रिसीव करते हुए बोला।
“हैलो,”दूसरी ओर से शीतल की आवाज़ आई।
“शीतल………तुम,” राज ने चौंकाते हुए कहा।
“मुझे कुछ पैसों की ज़रूरत है।”
“तुम हो कहाँ?”
“आगरा में।”
“वापस आ जाओ।”
‘मैं ज़्यादा बात नही कर सकती। पैसे कब तक दे दोगे।”
“कल………। हम मिलेंगे कहाँ?”
“रेलवे स्टेशन के पास।”
“मैं अपनी कार से रहूँगा।”
“तो क्या हुआ?”शीतल ने कहा और फोन रख दिया।
राज ने फिर फोन किया पर किसी ने रिसीव नही किया।
अगले दिन राज गौरी को अपने घर छोड़ कर आगरा चला गया। रेलवे स्टेशन के पास बताई जगह पर शीतल पहले से ही खड़ी थी। हरे-लाल रंग का सूट पहना हुआ था उसने। बहुत साधारण सी लग रही थी,पहले जैसी सुंदरता नही दिख रही थी। हल्की-हल्की ठंडक थी फिर भी शीतल ने कोई गर्म कपड़े नही पहने।
“कैसे हो?” शीतल ने राज के कार से बाहर निकलते ही पूछा।
“अच्छा हूँ और तुम?”
“मैं भी………………। मेरी नन्ह-सी जान कैसी है?”
“वो भी अच्छी है………। तुम्हे बहुत याद करती है,” राज ने कहा।
कुछ देर दोनों शांत रहे शायद वो आपस में बात करने के लिए शब्द ढूँढ रहे थे।
“अपने घर नही ले चलोगी।”
“क्यों नही?” शीतल ने थोड़ा हिचकिचाते हुए कहा।
दोनों कार से चल दिए। राज कार चला रहा था और शीतल उसके बगल में बैठी थी। राज ने अपना एक हाथ शीतल के हाथ पर रख दिया,शीतल ने देखा और फिर नज़रें हटा लीं।
“तुम कुछ बोल क्यों नही रही हो?” राज ने पूछा।
शीतल ने राज की ओर देखा फिर गहरी सांस भारती हुई बोली-“घर पहुँच कर बात करते हैं।”
“तुम्हारे बच्चे का क्या हुआ?” राज ने पूछा।
“गिर गया।”
“गिर…………। कैसे?”
“सीढ़ियों से फिसल गयी थी,पैर में भी चोट तभी लगी थी,” शीतल ने कहा।
राज का ध्यान उसके पैर की ओर गया,पट्टी बँधी थी और हल्की सूजन भी थी। तब तक घर आ गया।
“तुम बैठो यहाँ बैठो,मैं तुम्हारे लिए चाय बनाती हूँ,” शीतल ने ज़मीन पर एक चादर बिछाते हुए कहा।
“तुम ऐसी जगह रहती हो,” राज ने घर की हालत देखते हुए कहा।
“क्यों क्या हुआ है?”
“कुछ नही,” राज ने कहा और एक किनारे दीवारा का सहारा लेकर बैठ गया।
“तुम्हारा बिजनेस कैसा चल रहा है?” शीतल ने चाय पकड़ाते हुए पूछा।
“बहुत अच्छा…………………अब मैं पार्ट्नरशिप में नही हूँ,” राज ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा।
“मैंने तुम्हे पैसों के लिए फोन किया था,मुझे 2000 रुपयों की ज़रूरत है।”
“क्यों?ऐसी क्या ज़रूरत पड़ गयी जो मुझ से……………।”
“जहाँ काम करती हूँ,वहाँ मुझसे कुछ समान टूट गया है बस उसी लिए………………। मैं तुमसे कहती ना पर मेरी तबीयत नही ठीक है और मैं ज़्यादा काम नही कर सकती हूँ इसलिए कहा। वो मुझे कोई ग़लती होने पर बहुत बुरा-भला कहती हैं कई बार तो तुम्हारे बारे में भी कहने लगती जो मुझे अच्छा नही लगता है।”
“वहाँ काम क्यों नही छोड़ देती?”
“काम कम रहता है और पैसा भी ठीक मिल जाता है………फिर इतनी जल्दी कहीं और काम भी तो नही मिल जाएगा।”
“तुम्हे ये सब करने की ज़रूरत ही क्या है?पढ़ी-लिखी हो किसी भी जगह रिसेप्सनिस्ट…की जॉब मिल जाएगी तुम्हें,तुम कर भी चुकी हो फिर क्यों इस तरह से अपनी जिंदगी जी रही हो?”राज ने कहा।
“शायद मेरी जिंदगी में यही सब लिखा है।”
“पागलों जैसी बात क्यों कर रही हो……………। तुम्हें खुद पता है की तुम अकेले भी अपनी जिंदगी को बेहतर ढंग से जी सकती हो।”
शीतल कुछ नही कह सकी,वो अपनी नज़रें राज से चुराने की कोशिश करने लगी।
“इधर आकर बैठो,” राज ने अपने बगल में बैठने का इशारा करते हुए कहा।
शीतल राज के बगल में पर उससे कुछ दूर हटकर,दीवार के सहारे बैठ गयी। राज हल्का-सा मुस्कुरा दिया।
“क्या हुआ?तुम हँसे क्यों?”
“कुछ नही।”
“फिर क्यों हँसे?”
“तुम्हारी हरकत पर।”
“क्या किया मैंने?”
“कुछ नही…………। कभी मुझसे सटकर बैठने की कोशिश करती रहती थी और आज मुझसे दूर बैठने की।”
शीतल राज से सटकर बैठ गयी। दोनों ने एक-दूसरे को एक पल के लिए देखा और फिर मुस्कुरा दिए। शीतल ने अपना सिर राज एक कंधे पर रख दिया। राज उसके बालों में अपना हाथ फेरने लगा। अपनी उंगलियों में उसके बालों की लटों को लपेटने की कोशिश करता।
“अब भी तुम्हारा दिल पहले की तरह बाहर घूमने का करता है।”
“नही।”
“क्यों?पहले मुझसे बाहर चलने के लिए कितना ज़िद करती थी। अब क्या हुआ?”
“अब ज़िद करने के लिए तुम नही हो…………………………। तुम मुझसे अब भी प्यार करते हो या कोई और पसंद आ गयी है?”