hotaks444
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5 बज चुके थे. कंचन घाटी में झरने के निकट उसी पत्थर पर बैठी हुई थी जिस पर रोज़ बैठकर रवि का इंतेज़ार किया करती थी. रोज़ इसी समय वो रवि के साथ होती थी. उसके बाहों में बाहें डाल कर वादी की सुंदरता में खो जाती थी. एक दूसरे की धड़कनो को सुनते हुए प्रेम की बाते करती थी. उसे रवि का बोलना इतना भाता था कि उसका मन चाहता, रवि यूँही बोलता रहे और वो खामोशी से उसकी बातें सुनती रहे. पर आज वैसा कुच्छ भी ना था. आज ना तो उसे रवि की वो मीठी बातें सुनने को मिल रही थी और ना ही उसके तन-बदन को महका देने वाला रवि का साथ. आज वो अकेली थी. नितांत अकेली.
कंचन को ये शंका पहले से थी कि रवि आज नही आएगा. किंतु फिर भी वो खुद को यहाँ आने से नही रोक पाई. उसे इस घाटी से, इस वातावरण से बेहद मोह हो गया था. दोपहर से ही उसका मन यहाँ आने के लिए व्याकुल हो उठा था. 4 बजने तक वो यहाँ आ पहुँची थी. और पिच्छले एक घंटे से टुकूर-टुकूर उस रास्ते की ओर देखे जा रही थी जिस ओर से रवि के आने की उम्मीदे थी. किंतु जब भी उसकी नज़र रास्ते की ओर जाती, खाली और सुनसान पथ को देख कर निराशा से अपना सर झुका लेती. जैसे जैसे वक़्त गुज़रता जा रहा था उसके मन की पीड़ा बढ़ती जा रही थी.
कुच्छ देर और गुज़र गयी. रवि अब भी नही आया. रवि को ना आता देख उसका मन गहरी पीड़ा से भर गया. उसकी आँखों की कोरों पर आँसू की बूंदे छलक आई.
"लगता है अब साहेब नही आएँगे. वो मुझसे सदा के लिए रूठ गये. अब मुझे सारी उमर ऐसे ही इंतेज़ार करना होगा." कंचन मन ही मन बोली. उसकी आँखें फिर से पानी बरसाने लगी. - "क्यों होता है ऐसा? क्यों जो चीज़ हमें सबसे अच्छी लगती है वो हमें नही मिलती? कितना अच्छा होता साहेब और मेरी शादी हो जाती. मैं दुल्हन बनकर उनके घर जाती. उनके साथ हँसी खुशी ज़िंदगी बिताती. पर सब गड़-बॅड हो गया. सारी ग़लती पीताजी की है. वे ना तो साहेब के पीताजी की हत्या करते ना माजी और साहेब मुझसे रूठते. अब मैं कभी हवेली नही जाउन्गि. तभी उन्हे पता चलेगा, अपने जब दूर होते हैं तो कैसा लगता है."
कंचन की आँख से बहते आँसू तेज़ हो गये. और उसकी रुलाई फुट पड़ी.
कुच्छ देर बाद जब उसकी रुलाई रुकी, उसने गर्दन उठा कर अपनी प्यासी नज़रों को रास्ते पर डाला. अगले ही पल उसकी आँखें आश्चर्य से भर गयी. उसे रवि आता हुआ दिखाई दिया.
रवि को आता देख उसका दिल खुशी से झूम उठा. उसे लगा जैसे उसे पूरा संसार मिल गया. इस बार उसकी आँखें खुशी से डब-डबा गयी.
कंचन खुशी से रवि की और लपकना ही चाहती थी तभी उसके दिल ने कहा - "रुक जा कंचन...! तुम्हे इतना खुश होने की ज़रूरत नही है. कहीं ऐसा ना हो साहेब तुम्हारी खुशी से नाराज़ हो जायें. साहेब को इस वक़्त पिता की मृत्यु का दुख है. तुम्हारा यूँ खुश होना कहीं उनके दिल से तुम्हारी मोहब्बत को ना निकाल दे. पहले उनकी बातें सुन ले. पहले ये जान ले वो क्यों आए हैं. क्या पता वो तुम्हे खरी-खोटी सुना कर तुमसे नाता तोड़ने आए हों."
कंचन रुकी.
उसके चेहरे पर आई चमक क्षण में गायब हो गयी. उदासी फिर से उसके चेहरे का आवरण बन गयी.
रवि नज़दीक आया.
कंचन आशा भरी दृष्टि से रवि को देखने लगी.
रवि पास आकर खड़ा हो गया और कंचन के चेहरे पर अपनी निगाह डाली.
कंचन का चेहरा मुरझाया हुआ था किंतु दिल में खुशियों के हज़ारों फूल खिल उठे थे. वो रवि के मूह से बोल सुनने के लिए ऐसी व्याकुल थी मानो आज रवि उसके जीवन और मृत्यु का फ़ैसला सुनाने वाला हो. दिल ऐसे धड़क रहा था जैसे मीलों भाग कर आई हो.
"कंचन ! क्या नाराज़ हो मुझसे?" रवि ने मूह खोला.
कंचन मासूमियत से अपनी गर्दन ना में हिलाई.
"तो फिर इतनी दूर क्यों खड़ी हो? क्या आज मेरे गले नही लगोगी?"
रवि के कहने की देरी थी और उसकी आँखों की कोरों पर जमे आँसू छलक पड़े. खुशी से कुच्छ कहने के लिए उसके होंठ फड़फडाए पर शब्द बाहर ना आ सके.
वो तेज़ी से आगे बढ़ी और रवि की बाहों में समा गयी. रवि की छाती से लगते ही उसके अंदर की अंतर-पीड़ा आँसू का रूप लेकर बाहर आने लगे.
रवि उसे रोता देख बेचैन हो उठा.
"क्या हुआ कंचन? क्यों रो रही हो? क्या इसलिए कि मैं तुम्हे बिना कुच्छ कहे हवेली से बाहर आ गया?" रवि उसके चेहरे को अपने हाथों में लेकर बोला.
"साहेब आप मुझसे नाराज़ तो नही हो?" उसने गीली आँखों से रवि को देखा.
"नाराज़..? मैं भला तुमसे क्यों नाराज़ रहूँगा? तुमने किया ही क्या है?" रवि उसके आँसू पोछ्ता हुआ बोला.
"साहेब, जब आप और माजी हवेली से निकल गये तो मैं बहुत घबरा गयी थी. शाम तक मैं रोती रही थी फिर चिंटू को लेकर मैं भी हवेली छोड़ कर निकल गयी." कंचन ने सुबक्ते हुए अपने हवेली से निकलने से लेकर स्टेशन पहुँचने तक. फिर वहाँ पर बिरजू की मौत और उसके बाद घर आने तक की सारी बातें विस्तार से रवि को बता दिया.
रवि के आश्चर्य की सीमा ना रही. उसे कंचन पर बेहद प्यार आया. उसके खातिर कंचन कितनी बड़ी मुशिबत में फँसने वाली थी. उसने मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद कहा और कंचन के माथे को चूमकर उसे छाती से भीच लिया.
कंचन किसी नन्ही बच्ची की तरह उसकी बाहों में सिमट-ती चली गयी.
कुच्छ देर एक दूसरे से लिपटे रहने के बाद रवि कंचन को लेकर खाई के करीब बड़े पत्थर पर जा बैठा.
"कंचन वादा करो अब ऐसी नादानी नही करोगी." रवि पत्थर पर बैठने के बाद कंचन से बोला - "कभी मेरी खातिर बिना सोचे समझे, बिना अपने बाबा और बुआ से पुच्छे कोई काम नही करोगी. मैं तुम्हे छोड़कर कहीं नही जाउन्गा. अगर कहीं गया भी तो तुरंत लौट आउन्गा. मेरे आने तक मेरी राह देखोगी."
कंचन सब-कुच्छ समझने के बाद किसी बच्चे की तरह 'हां' में अपना सर हिलाई.
रवि उसके भोलेपन पर मुस्कुराया.
"तुम्हे ऐसा क्यों लगा मैं तुम्हे छोड़कर चला जाउन्गा?" रवि ने पुछा.
"साहेब मैं समझी थी मेरे पिता की ग़लती की वजह से आप मुझे छोड़ दोगे. आप मुझे फिर कभी नही मिलोगे ये सोचकर मैं बहुत रोई हूँ. साहेब मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ. मुझे छोड़ कर मत जाना. नही तो मैं मर.....!" उसके शब्द पूरे होते उससे पहले रवि ने उसके मूह पर अपना हाथ धर दिया.
"खबरदार ! जो फिर कभी तुमने ऐसी बात की. जितना तुम मुझसे प्रेम करती हो, मैं भी तुमसे उतना ही प्रेम करता हूँ." रवि ने प्यार से डांटा. फिर उदास लहजे में बोला. - "ठाकुर साहब ने जो किया वो ग़लत था. और इसके लिए मैं उन्हे कभी क्षमा नही करूँगा. पर इसमे तुम्हारा क्या दोष? तुम तो निष्कलंक हो, तुम्हारा मन तो गंगा की तरह पवित्र है. संसार में तुमसे अच्छी, तुमसे प्यारी, तुमसे सुंदर और तुमसे पवित्र विचार वाली लड़की दूसरी ना होगी. तुम इतनी अच्छी हो कंचन कि अगर मैने भूले से भी तुम्हे कोई कष्ट दिया तो ईश्वर मुझसे नाराज़ हो जाएगा. इसलिए अपने मन से ये बात निकाल दो कि मैं तुम्हे कभी छोड़ कर जाउन्गा या तुम्हे कोई कष्ट दूँगा. तुम मेरी ज़रूरत हो कंचन. चाहें दुनिया इधर की उधर हो जाए. पर मैं तुम्हारा साथ नही छोड़ूँगा. जिसको जो करना हो करे."
कंचन का जी ठंडा हो गया. रवि के दिल में अपने लिए अथाह प्यार देखकर वो पूरी तरह से आश्वस्त हो गयी कि रवि अब उसे छोड़कर नही जाएगा. अब एक ही चिंता थी. किसी तरह माजी के दिल का मैल भी निकल जाए. वो भी उन्हे माफ़ कर दें और उसे स्वीकार कर लें."
"क्या सोचने लगी हो? क्या अब भी तुम्हे मेरी बातों पर यकीन नही है?" रवि ने कंचन को खोया देखा तो पुछा.
"नही साहेब, मैं तो माजी के बारे में सोच रही थी. क्या माजी भी मुझे माफ़ कर देंगी?"
"मा के दिल में अभी गुस्सा है. उनका गुस्सा जाने में थोड़ा वक़्त लगेगा. पर चिंता ना करो. सब ठीक हो जाएगा. मैं बहुत जल्द तुम्हारे घर बारात लेकर आउन्गा और तुम्हे दुल्हन बनाकर ले जाउन्गा."
कंचन अपनी बारात और दुल्हन बन-ने की बात सुनकर शरमा गयी. वो मुस्कुराती हुई उन आने वाले पलों में खोती चली गयी.
कंचन को अपने ख्यालो में खोता देख रवि शरारत से बोला - "कहाँ खो गयी? क्या अभी से रात्रि मिलन के सपने देखने लगी?"
"धत्त...!" कंचन लज़ती हुई बोली और उसकी बाहों में सिमट गयी.
कंचन को ये शंका पहले से थी कि रवि आज नही आएगा. किंतु फिर भी वो खुद को यहाँ आने से नही रोक पाई. उसे इस घाटी से, इस वातावरण से बेहद मोह हो गया था. दोपहर से ही उसका मन यहाँ आने के लिए व्याकुल हो उठा था. 4 बजने तक वो यहाँ आ पहुँची थी. और पिच्छले एक घंटे से टुकूर-टुकूर उस रास्ते की ओर देखे जा रही थी जिस ओर से रवि के आने की उम्मीदे थी. किंतु जब भी उसकी नज़र रास्ते की ओर जाती, खाली और सुनसान पथ को देख कर निराशा से अपना सर झुका लेती. जैसे जैसे वक़्त गुज़रता जा रहा था उसके मन की पीड़ा बढ़ती जा रही थी.
कुच्छ देर और गुज़र गयी. रवि अब भी नही आया. रवि को ना आता देख उसका मन गहरी पीड़ा से भर गया. उसकी आँखों की कोरों पर आँसू की बूंदे छलक आई.
"लगता है अब साहेब नही आएँगे. वो मुझसे सदा के लिए रूठ गये. अब मुझे सारी उमर ऐसे ही इंतेज़ार करना होगा." कंचन मन ही मन बोली. उसकी आँखें फिर से पानी बरसाने लगी. - "क्यों होता है ऐसा? क्यों जो चीज़ हमें सबसे अच्छी लगती है वो हमें नही मिलती? कितना अच्छा होता साहेब और मेरी शादी हो जाती. मैं दुल्हन बनकर उनके घर जाती. उनके साथ हँसी खुशी ज़िंदगी बिताती. पर सब गड़-बॅड हो गया. सारी ग़लती पीताजी की है. वे ना तो साहेब के पीताजी की हत्या करते ना माजी और साहेब मुझसे रूठते. अब मैं कभी हवेली नही जाउन्गि. तभी उन्हे पता चलेगा, अपने जब दूर होते हैं तो कैसा लगता है."
कंचन की आँख से बहते आँसू तेज़ हो गये. और उसकी रुलाई फुट पड़ी.
कुच्छ देर बाद जब उसकी रुलाई रुकी, उसने गर्दन उठा कर अपनी प्यासी नज़रों को रास्ते पर डाला. अगले ही पल उसकी आँखें आश्चर्य से भर गयी. उसे रवि आता हुआ दिखाई दिया.
रवि को आता देख उसका दिल खुशी से झूम उठा. उसे लगा जैसे उसे पूरा संसार मिल गया. इस बार उसकी आँखें खुशी से डब-डबा गयी.
कंचन खुशी से रवि की और लपकना ही चाहती थी तभी उसके दिल ने कहा - "रुक जा कंचन...! तुम्हे इतना खुश होने की ज़रूरत नही है. कहीं ऐसा ना हो साहेब तुम्हारी खुशी से नाराज़ हो जायें. साहेब को इस वक़्त पिता की मृत्यु का दुख है. तुम्हारा यूँ खुश होना कहीं उनके दिल से तुम्हारी मोहब्बत को ना निकाल दे. पहले उनकी बातें सुन ले. पहले ये जान ले वो क्यों आए हैं. क्या पता वो तुम्हे खरी-खोटी सुना कर तुमसे नाता तोड़ने आए हों."
कंचन रुकी.
उसके चेहरे पर आई चमक क्षण में गायब हो गयी. उदासी फिर से उसके चेहरे का आवरण बन गयी.
रवि नज़दीक आया.
कंचन आशा भरी दृष्टि से रवि को देखने लगी.
रवि पास आकर खड़ा हो गया और कंचन के चेहरे पर अपनी निगाह डाली.
कंचन का चेहरा मुरझाया हुआ था किंतु दिल में खुशियों के हज़ारों फूल खिल उठे थे. वो रवि के मूह से बोल सुनने के लिए ऐसी व्याकुल थी मानो आज रवि उसके जीवन और मृत्यु का फ़ैसला सुनाने वाला हो. दिल ऐसे धड़क रहा था जैसे मीलों भाग कर आई हो.
"कंचन ! क्या नाराज़ हो मुझसे?" रवि ने मूह खोला.
कंचन मासूमियत से अपनी गर्दन ना में हिलाई.
"तो फिर इतनी दूर क्यों खड़ी हो? क्या आज मेरे गले नही लगोगी?"
रवि के कहने की देरी थी और उसकी आँखों की कोरों पर जमे आँसू छलक पड़े. खुशी से कुच्छ कहने के लिए उसके होंठ फड़फडाए पर शब्द बाहर ना आ सके.
वो तेज़ी से आगे बढ़ी और रवि की बाहों में समा गयी. रवि की छाती से लगते ही उसके अंदर की अंतर-पीड़ा आँसू का रूप लेकर बाहर आने लगे.
रवि उसे रोता देख बेचैन हो उठा.
"क्या हुआ कंचन? क्यों रो रही हो? क्या इसलिए कि मैं तुम्हे बिना कुच्छ कहे हवेली से बाहर आ गया?" रवि उसके चेहरे को अपने हाथों में लेकर बोला.
"साहेब आप मुझसे नाराज़ तो नही हो?" उसने गीली आँखों से रवि को देखा.
"नाराज़..? मैं भला तुमसे क्यों नाराज़ रहूँगा? तुमने किया ही क्या है?" रवि उसके आँसू पोछ्ता हुआ बोला.
"साहेब, जब आप और माजी हवेली से निकल गये तो मैं बहुत घबरा गयी थी. शाम तक मैं रोती रही थी फिर चिंटू को लेकर मैं भी हवेली छोड़ कर निकल गयी." कंचन ने सुबक्ते हुए अपने हवेली से निकलने से लेकर स्टेशन पहुँचने तक. फिर वहाँ पर बिरजू की मौत और उसके बाद घर आने तक की सारी बातें विस्तार से रवि को बता दिया.
रवि के आश्चर्य की सीमा ना रही. उसे कंचन पर बेहद प्यार आया. उसके खातिर कंचन कितनी बड़ी मुशिबत में फँसने वाली थी. उसने मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद कहा और कंचन के माथे को चूमकर उसे छाती से भीच लिया.
कंचन किसी नन्ही बच्ची की तरह उसकी बाहों में सिमट-ती चली गयी.
कुच्छ देर एक दूसरे से लिपटे रहने के बाद रवि कंचन को लेकर खाई के करीब बड़े पत्थर पर जा बैठा.
"कंचन वादा करो अब ऐसी नादानी नही करोगी." रवि पत्थर पर बैठने के बाद कंचन से बोला - "कभी मेरी खातिर बिना सोचे समझे, बिना अपने बाबा और बुआ से पुच्छे कोई काम नही करोगी. मैं तुम्हे छोड़कर कहीं नही जाउन्गा. अगर कहीं गया भी तो तुरंत लौट आउन्गा. मेरे आने तक मेरी राह देखोगी."
कंचन सब-कुच्छ समझने के बाद किसी बच्चे की तरह 'हां' में अपना सर हिलाई.
रवि उसके भोलेपन पर मुस्कुराया.
"तुम्हे ऐसा क्यों लगा मैं तुम्हे छोड़कर चला जाउन्गा?" रवि ने पुछा.
"साहेब मैं समझी थी मेरे पिता की ग़लती की वजह से आप मुझे छोड़ दोगे. आप मुझे फिर कभी नही मिलोगे ये सोचकर मैं बहुत रोई हूँ. साहेब मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ. मुझे छोड़ कर मत जाना. नही तो मैं मर.....!" उसके शब्द पूरे होते उससे पहले रवि ने उसके मूह पर अपना हाथ धर दिया.
"खबरदार ! जो फिर कभी तुमने ऐसी बात की. जितना तुम मुझसे प्रेम करती हो, मैं भी तुमसे उतना ही प्रेम करता हूँ." रवि ने प्यार से डांटा. फिर उदास लहजे में बोला. - "ठाकुर साहब ने जो किया वो ग़लत था. और इसके लिए मैं उन्हे कभी क्षमा नही करूँगा. पर इसमे तुम्हारा क्या दोष? तुम तो निष्कलंक हो, तुम्हारा मन तो गंगा की तरह पवित्र है. संसार में तुमसे अच्छी, तुमसे प्यारी, तुमसे सुंदर और तुमसे पवित्र विचार वाली लड़की दूसरी ना होगी. तुम इतनी अच्छी हो कंचन कि अगर मैने भूले से भी तुम्हे कोई कष्ट दिया तो ईश्वर मुझसे नाराज़ हो जाएगा. इसलिए अपने मन से ये बात निकाल दो कि मैं तुम्हे कभी छोड़ कर जाउन्गा या तुम्हे कोई कष्ट दूँगा. तुम मेरी ज़रूरत हो कंचन. चाहें दुनिया इधर की उधर हो जाए. पर मैं तुम्हारा साथ नही छोड़ूँगा. जिसको जो करना हो करे."
कंचन का जी ठंडा हो गया. रवि के दिल में अपने लिए अथाह प्यार देखकर वो पूरी तरह से आश्वस्त हो गयी कि रवि अब उसे छोड़कर नही जाएगा. अब एक ही चिंता थी. किसी तरह माजी के दिल का मैल भी निकल जाए. वो भी उन्हे माफ़ कर दें और उसे स्वीकार कर लें."
"क्या सोचने लगी हो? क्या अब भी तुम्हे मेरी बातों पर यकीन नही है?" रवि ने कंचन को खोया देखा तो पुछा.
"नही साहेब, मैं तो माजी के बारे में सोच रही थी. क्या माजी भी मुझे माफ़ कर देंगी?"
"मा के दिल में अभी गुस्सा है. उनका गुस्सा जाने में थोड़ा वक़्त लगेगा. पर चिंता ना करो. सब ठीक हो जाएगा. मैं बहुत जल्द तुम्हारे घर बारात लेकर आउन्गा और तुम्हे दुल्हन बनाकर ले जाउन्गा."
कंचन अपनी बारात और दुल्हन बन-ने की बात सुनकर शरमा गयी. वो मुस्कुराती हुई उन आने वाले पलों में खोती चली गयी.
कंचन को अपने ख्यालो में खोता देख रवि शरारत से बोला - "कहाँ खो गयी? क्या अभी से रात्रि मिलन के सपने देखने लगी?"
"धत्त...!" कंचन लज़ती हुई बोली और उसकी बाहों में सिमट गयी.