hotaks444
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रानो एक हाथ से अपने वक्ष मसलती दूसरे हाथ से अपने भगांकुर को रगड़ने लगी।
और इस तरह जल्दी ही चरमोत्कर्ष पर पहुंच गई, शरीर एक बार ज़ोर से कांपा और फिर झटके लेने लगा।
शीला तब तक उंगली चलाती रही जब तक वह शांत न पड़ गई।
तभी उसके फोन पर सोनू की मिस्ड आ गई।
‘तुम ही जाओ दी, मुझमें हिलने की भी हिम्मत नहीं, मुझे पूछे तो कह देना कि मैं आज आकृति के पास ही सो गई हूँ।’ रानो बेहद शिथिल स्वर में बोली।
‘और यहां की सफाई?’
‘थोड़ी देर में मैं कर दूंगी। तुम जाओ।’
अपनी नाइटी दुरुस्त करती शीला उठ कर कमरे से बाहर निकल आई।
सोनू के चक्कर में बाहर अंधेरा ही रखा जाता था, उसी अंधेरे में जा कर शीला ने चुपके से सोनू को अंदर ले लिया।
उसे देख कर वह चौंका था और अपेक्षित रूप से रानो के बारे में पूछा था तो रानो का बताया जवाब उसे दे के शीला ख़ामोशी से अपने कमरे में ले आई थी।
वह पहले से काफी गर्म थी और अब सम्भोग के लिये एक मर्द भी उपलब्ध था, उसकी ख्वाहिशें बेलगाम हो उठीं।
आज उसने खुद से पहल की।
जो भी उसके दिमाग में था, जो जो वह सोचती आई थी मगर अपनी स्त्री सुलभ लज्जा और झिझक के कारण करने में असमर्थ रही थी, आज उसने वह सब किया।
उसने जिस खुलेपन और आक्रामक अन्दाज़ में वासना के इस खेल को पूरा किया, उसने सोनू को भी चकित कर दिया जो उसके इशारों पर अलग अलग आसनों से बस उसे भोगता रहा।
आज रोकने के लिये रानो भी नहीं थी। उसने जी भर के दो घंटे में तीन बार पूर्ण सम्भोग करने के बाद ही सोनू को मुक्त किया और उसके जाने के बाद सुकून की गहरी नींद सो गई।
अगली सुबह उसके लिये तो नार्मल ही थी मगर रानो दर्द से बेहाल थी और उसकी योनि भी बुरी तरह सूज गई थी— जिसके लिये उसे बाकायदा दवा भी लेनी पड़ी थी।
बहरहाल, यह सिलसिला चल निकला… लगभग हर रोज़ ही रात को एक निश्चित वक़्त पे सोनू आने लगा और उसके साथ सम्भोग का अवसर शीला को ही मिलता था।
रानो ने जैसे खुद पर सब्र की बंदिशें लगा ली थीं उन दिनों… उसने जैसे खुद को चाचा के लिये ही सुरक्षित कर लिया था।
चाचा ने अगले बार जब पुकार लगाई तो उसकी योनि सही हालात में आ चुकी थी और इस बार उसे कम तकलीफ और हल्की सूजन का ही सामना करना पड़ा था जो दो दिन में ठीक हो गई थी।
और फिर उसकी योनि चाचा के स्थूलकाय लिंग की आदी हो गई थी जिससे उसे न सिर्फ कष्ट से छुटकारा मिल गया था बल्कि मज़े में भी वृद्धि हो गई थी।
हालांकि ऐसा नहीं था कि शीला को आत्मग्लानि न होती हो… वह जिस रास्ते पर चल पड़ी थी वहां उसे शरीर का सुख तो हासिल था मगर ये ग्लानि किसी भी पल में उसका पीछा न छोड़ती थी।
सोनू के साथ जितने पल होती थी, दिमाग पर वासना हावी रहती थी मगर उसके जाते ही वो अपराधबोध से घिर जाती और इसी तरह चाचा के पास उन पलों में जाने भी उसे अपने ग़लत होने का अहसास होता था।
भले अब चाचा के लिंग का इस्तेमाल रानो करती थी मगर उन क्षणों में उसके साथ वह भी तो होती थी।
बस जैसे तैसे करते महीना भर यूँही गुज़र गया।
और फिर एक दिन…
उस रात भी हस्बे मामूल सोनू उसके साथ ही था। रानो भी साथ ही थी, हालांकि अब अक्सर वह सहवास के वक़्त उनके पास से हट जाती थी कि एकांत में शीला उन्मुक्त हो सके।
मगर उस रात साथ ही थी जब किसी ने दरवाज़ा पीटा था…
उस वक़्त शीला और सोनू के शरीर पर कोई कपड़ा नहीं था और दोनों एक आसन में संभोगरत थे जब इस अनपेक्षित व्यधान ने दोनों की भंगिमाओं को ठहरा दिया।
‘मैं देखती हूँ।’ रानो उठती हुई बोली।
वह अंधेरे के बावजूद अभ्यस्त नेत्रों से देखती बाहर निकल गई और वे दिमाग में चलते विचारों और शंकाओं के झंझावात के चलते उसी अवस्था में बाहर की आवाज़ें सुनने लगे।
‘कौन हो सकता है?’ सोनू ने प्रश्न सूचक निगाहों से उसे देखा।
‘मुझे खुद ताज्जुब है इस वक़्त कौन हो सकता है… शायद किसी ने गलती से दरवाज़ा खटखटाया है।’
दूर-दूर तक किसी के भी इस वक़्त उनके यहाँ आने की कोई सम्भावना नहीं थी इसलिए शीला ने त्वरित प्रतिक्रिया दिखाने की ज़रूरत नहीं समझी थी और उसे लग रहा था किसी से गलती हुई है।
पर एकदम से दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई और साथ ही रानो की घुटी-घुटी सी आवाज़ और ऐसा लगा जैसे कोई अंदर घुसा हो।
कोई अप्रत्याशित खतरा भांपते ही शीला ने सोनू को खुद से अलग किया और अंधेरे में कपड़े ढूंढने की कोशिश कर ही रही थी कि आगंतुक कमरे तक पहुंच गया।
‘लाइट जला मादरचोद।’ गुर्राती हुई आवाज़ कमरे में गूंजी।
फिर शायद रानो ने ही कमरे की लाइट जलाई थी और दरवाज़े पर रानो के बाल पकड़े चंदू किसी शैतान की तरह खड़ा था।
उसके दाएं-बाएं दो चमचे भी साथ ही खड़े थे।
और जिस घड़ी रोशनी हुई— सोनू अधलेटा सा समझने की कोशिश में उलझन ग्रस्त था कि यह हो क्या रहा था और शीला चौपाये की तरह झुकी अपने कपड़े ढूंढने के प्रयास में थी।
रोशनी होते ही वह एकदम सिमट कर बैठ गई।
‘ओहो… तो यहाँ यह रंडापा हो रहा है। हरामज़ादी… जब कहे थे कि कोई जुगाड़ न बना हो तो हमें बताना तो हमें नहीं बताया और यह लौंडे को बुला लिया।
तुझे क्या लगता है कि छोटे लौंडे से चुदवायेगी तभी मज़ा आएगा। हमारे कांटे हैं क्या? और तू बे लौंड़ू… साले दुनिया के सामने इन्हें दीदी बोलता है और रात में चोदने आता है।
अबे यह तो तरसी नदीदी थी लौड़े की— तुझे भी चूत नसीब नहीं थी कि इन बड़ी उम्र की चूतों पर फांद पड़ा। रोज़ रात को तुझे इस गली की परिक्रमा करते देखते थे पर दिमाग में ही नहीं आया कि यहाँ मुंह काला करने आता है।
परसों से पता चला कि इस घर में चरण कमल पड़ते हैं तो जुगाड़ में हम भी लग गये।’
चंदू के शब्दों से जितना ज़लील महसूस कर सकती थी… उसने किया और सोनू की हालत तो ऐसी हो रही थी जैसे रो ही देगा।
वह जैसे का तैसा उठ कर खड़ा हो गया था।
चंदू की दहशत ही ऐसी थी और सोनू तो उसके सामने बच्चा ही था।
रानो को चंदू ने एक झटके से आगे धकेला कि वह भी उनके पास बिस्तर पे आ टिकी। उसके बोलने से वह उस भभूके की महक को महसूस कर सकते थे जो बता रहे थे कि वह शराब के नशे में है।
उसके साथ जो दो चमचे थे उन्हें भी वह जानते ही थे, एक तो भुट्टू था और दूसरा बाबर… दोनों ही मोहल्ले के थे और चंदू के जैसे ही बिगड़े हुए लफंगे थे।
‘जा बे… इसके बाप और महतारी को बुला ला और तू जा के जो मोहल्ले की जो तोपें हैं उन सब को बुला के ला! जो न आने को कहे उसके खोपड़े पे घोड़ा रख के लाना। आज इन ब्लू फिल्म के हीरो हीरोइन की बारात निकालते हैं।’
‘नहीं नहीं…’ सोनू कांप कर चंदू के पैरों में पड़ गया, ‘भाई नहीं… ऐसा मत करो। जूते से मार लो आप। जो पास पल्ले पैसे हों वो ले लो पर ऐसा मत करो।’
‘तेरे पास क्या है बे गांड मारें तेरी। क्यों गुठली, तू बोल, बुलायें सबको और निकालें जनाज़ा तुम लोगों की इज़्ज़त का।’
शीला कुछ बोल तो न सकी… बस सूखे होंठों पर जीभ फिरा कर रह गई।
इस हालत में उसकी धड़कनें अनियंत्रित हो चली थीं और जिस्म पसीने से नहा गया था।
‘ऐसा मत करो दादा।’ उसकी जगह रानो ज़रूर गिड़गिड़ाई।
‘क्यों न करें। साली दुनिया हमें ही गलत बोलती है, ज़रा दुनिया को तो पता चले कि मोहल्ले में गलत कौन कौन कर रहा है।’
‘हमारी इज़्ज़त ख़राब करके आपको क्या मिलेगा दादा?’
‘सुकून… कई बार फरियाद की तुम लोगों से, हमें भी मौका दे दो— क्या हम नहीं समझते कि इतनी उम्र तक जब चूत को लौड़ा न मिले तो कैसी आग लगती है। इसीलिये कहते थे कि हमसे काम चला लो।
तो हमें बड़े गुरूर से ठुकरा देती थी और यह गुठली… यह तो बाकायदा आगबबूला हो जाती थी जैसे सती सावित्री हो और यहाँ… किया वही काम। ऊ का कहते हैं बे… हमारा ईगो हर्ट हुआ है। समझी।’
‘मम… माफ़ कर दो।’
‘तू ही बोल रही है। गुठली तो कुछ नहीं बोल रही।’
‘मम… मुझे माफ़ कर… दो।’ बड़ी मुश्किल से शीला बोल पाई।
‘एक शर्त पे।’
‘कक… कैसी शर्त?’
‘सुन बे लोड़ू— कल शाम तक कहीं से भी दो हज़ार रूपये पहुंचायेगा! समझा? और तुम दोनों— जैसे इसे एंटरटेन कर रही थी अभी इसके जाने के बाद हमें करोगी।
या दोनों लोग सीधे-सीधे हाँ बोलो या बुलाने दो हमें मोहल्ले के चौधरियों को।’
‘हह… हाँ-हाँ… मैं कल कहीं से भी आपको पैसे दे दूंगा भाई, आप मुझे जाने दो।’ सोनू गिड़गिड़ाया।
‘और तुम क्या बोलती हो?’
दोनों बहनों ने एक दूसरे को देखा।
ज़ाहिर है कि विकल्प नहीं था और न करने की स्थिति में वह नहीं थीं। उसकी बात से तो ज़ाहिर था कि वह कुछ भी कर सकता था।
बिना कोई लफ्ज़ अदा किये दोनों ने सहमति से सर हिला दिया।
‘शाबाश— चल बे कपड़े पहन… भुट्टू, छोड़ के आ इसे और दरवाज़ा ठीक से बंद कर लियो।
और तू सुन, अब से इधर आने की ज़रूरत नहीं, इनकी देखभाल हम कर लेंगे। समझा?’
‘जी भाई।’
‘चल फूट!’
और इस तरह जल्दी ही चरमोत्कर्ष पर पहुंच गई, शरीर एक बार ज़ोर से कांपा और फिर झटके लेने लगा।
शीला तब तक उंगली चलाती रही जब तक वह शांत न पड़ गई।
तभी उसके फोन पर सोनू की मिस्ड आ गई।
‘तुम ही जाओ दी, मुझमें हिलने की भी हिम्मत नहीं, मुझे पूछे तो कह देना कि मैं आज आकृति के पास ही सो गई हूँ।’ रानो बेहद शिथिल स्वर में बोली।
‘और यहां की सफाई?’
‘थोड़ी देर में मैं कर दूंगी। तुम जाओ।’
अपनी नाइटी दुरुस्त करती शीला उठ कर कमरे से बाहर निकल आई।
सोनू के चक्कर में बाहर अंधेरा ही रखा जाता था, उसी अंधेरे में जा कर शीला ने चुपके से सोनू को अंदर ले लिया।
उसे देख कर वह चौंका था और अपेक्षित रूप से रानो के बारे में पूछा था तो रानो का बताया जवाब उसे दे के शीला ख़ामोशी से अपने कमरे में ले आई थी।
वह पहले से काफी गर्म थी और अब सम्भोग के लिये एक मर्द भी उपलब्ध था, उसकी ख्वाहिशें बेलगाम हो उठीं।
आज उसने खुद से पहल की।
जो भी उसके दिमाग में था, जो जो वह सोचती आई थी मगर अपनी स्त्री सुलभ लज्जा और झिझक के कारण करने में असमर्थ रही थी, आज उसने वह सब किया।
उसने जिस खुलेपन और आक्रामक अन्दाज़ में वासना के इस खेल को पूरा किया, उसने सोनू को भी चकित कर दिया जो उसके इशारों पर अलग अलग आसनों से बस उसे भोगता रहा।
आज रोकने के लिये रानो भी नहीं थी। उसने जी भर के दो घंटे में तीन बार पूर्ण सम्भोग करने के बाद ही सोनू को मुक्त किया और उसके जाने के बाद सुकून की गहरी नींद सो गई।
अगली सुबह उसके लिये तो नार्मल ही थी मगर रानो दर्द से बेहाल थी और उसकी योनि भी बुरी तरह सूज गई थी— जिसके लिये उसे बाकायदा दवा भी लेनी पड़ी थी।
बहरहाल, यह सिलसिला चल निकला… लगभग हर रोज़ ही रात को एक निश्चित वक़्त पे सोनू आने लगा और उसके साथ सम्भोग का अवसर शीला को ही मिलता था।
रानो ने जैसे खुद पर सब्र की बंदिशें लगा ली थीं उन दिनों… उसने जैसे खुद को चाचा के लिये ही सुरक्षित कर लिया था।
चाचा ने अगले बार जब पुकार लगाई तो उसकी योनि सही हालात में आ चुकी थी और इस बार उसे कम तकलीफ और हल्की सूजन का ही सामना करना पड़ा था जो दो दिन में ठीक हो गई थी।
और फिर उसकी योनि चाचा के स्थूलकाय लिंग की आदी हो गई थी जिससे उसे न सिर्फ कष्ट से छुटकारा मिल गया था बल्कि मज़े में भी वृद्धि हो गई थी।
हालांकि ऐसा नहीं था कि शीला को आत्मग्लानि न होती हो… वह जिस रास्ते पर चल पड़ी थी वहां उसे शरीर का सुख तो हासिल था मगर ये ग्लानि किसी भी पल में उसका पीछा न छोड़ती थी।
सोनू के साथ जितने पल होती थी, दिमाग पर वासना हावी रहती थी मगर उसके जाते ही वो अपराधबोध से घिर जाती और इसी तरह चाचा के पास उन पलों में जाने भी उसे अपने ग़लत होने का अहसास होता था।
भले अब चाचा के लिंग का इस्तेमाल रानो करती थी मगर उन क्षणों में उसके साथ वह भी तो होती थी।
बस जैसे तैसे करते महीना भर यूँही गुज़र गया।
और फिर एक दिन…
उस रात भी हस्बे मामूल सोनू उसके साथ ही था। रानो भी साथ ही थी, हालांकि अब अक्सर वह सहवास के वक़्त उनके पास से हट जाती थी कि एकांत में शीला उन्मुक्त हो सके।
मगर उस रात साथ ही थी जब किसी ने दरवाज़ा पीटा था…
उस वक़्त शीला और सोनू के शरीर पर कोई कपड़ा नहीं था और दोनों एक आसन में संभोगरत थे जब इस अनपेक्षित व्यधान ने दोनों की भंगिमाओं को ठहरा दिया।
‘मैं देखती हूँ।’ रानो उठती हुई बोली।
वह अंधेरे के बावजूद अभ्यस्त नेत्रों से देखती बाहर निकल गई और वे दिमाग में चलते विचारों और शंकाओं के झंझावात के चलते उसी अवस्था में बाहर की आवाज़ें सुनने लगे।
‘कौन हो सकता है?’ सोनू ने प्रश्न सूचक निगाहों से उसे देखा।
‘मुझे खुद ताज्जुब है इस वक़्त कौन हो सकता है… शायद किसी ने गलती से दरवाज़ा खटखटाया है।’
दूर-दूर तक किसी के भी इस वक़्त उनके यहाँ आने की कोई सम्भावना नहीं थी इसलिए शीला ने त्वरित प्रतिक्रिया दिखाने की ज़रूरत नहीं समझी थी और उसे लग रहा था किसी से गलती हुई है।
पर एकदम से दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई और साथ ही रानो की घुटी-घुटी सी आवाज़ और ऐसा लगा जैसे कोई अंदर घुसा हो।
कोई अप्रत्याशित खतरा भांपते ही शीला ने सोनू को खुद से अलग किया और अंधेरे में कपड़े ढूंढने की कोशिश कर ही रही थी कि आगंतुक कमरे तक पहुंच गया।
‘लाइट जला मादरचोद।’ गुर्राती हुई आवाज़ कमरे में गूंजी।
फिर शायद रानो ने ही कमरे की लाइट जलाई थी और दरवाज़े पर रानो के बाल पकड़े चंदू किसी शैतान की तरह खड़ा था।
उसके दाएं-बाएं दो चमचे भी साथ ही खड़े थे।
और जिस घड़ी रोशनी हुई— सोनू अधलेटा सा समझने की कोशिश में उलझन ग्रस्त था कि यह हो क्या रहा था और शीला चौपाये की तरह झुकी अपने कपड़े ढूंढने के प्रयास में थी।
रोशनी होते ही वह एकदम सिमट कर बैठ गई।
‘ओहो… तो यहाँ यह रंडापा हो रहा है। हरामज़ादी… जब कहे थे कि कोई जुगाड़ न बना हो तो हमें बताना तो हमें नहीं बताया और यह लौंडे को बुला लिया।
तुझे क्या लगता है कि छोटे लौंडे से चुदवायेगी तभी मज़ा आएगा। हमारे कांटे हैं क्या? और तू बे लौंड़ू… साले दुनिया के सामने इन्हें दीदी बोलता है और रात में चोदने आता है।
अबे यह तो तरसी नदीदी थी लौड़े की— तुझे भी चूत नसीब नहीं थी कि इन बड़ी उम्र की चूतों पर फांद पड़ा। रोज़ रात को तुझे इस गली की परिक्रमा करते देखते थे पर दिमाग में ही नहीं आया कि यहाँ मुंह काला करने आता है।
परसों से पता चला कि इस घर में चरण कमल पड़ते हैं तो जुगाड़ में हम भी लग गये।’
चंदू के शब्दों से जितना ज़लील महसूस कर सकती थी… उसने किया और सोनू की हालत तो ऐसी हो रही थी जैसे रो ही देगा।
वह जैसे का तैसा उठ कर खड़ा हो गया था।
चंदू की दहशत ही ऐसी थी और सोनू तो उसके सामने बच्चा ही था।
रानो को चंदू ने एक झटके से आगे धकेला कि वह भी उनके पास बिस्तर पे आ टिकी। उसके बोलने से वह उस भभूके की महक को महसूस कर सकते थे जो बता रहे थे कि वह शराब के नशे में है।
उसके साथ जो दो चमचे थे उन्हें भी वह जानते ही थे, एक तो भुट्टू था और दूसरा बाबर… दोनों ही मोहल्ले के थे और चंदू के जैसे ही बिगड़े हुए लफंगे थे।
‘जा बे… इसके बाप और महतारी को बुला ला और तू जा के जो मोहल्ले की जो तोपें हैं उन सब को बुला के ला! जो न आने को कहे उसके खोपड़े पे घोड़ा रख के लाना। आज इन ब्लू फिल्म के हीरो हीरोइन की बारात निकालते हैं।’
‘नहीं नहीं…’ सोनू कांप कर चंदू के पैरों में पड़ गया, ‘भाई नहीं… ऐसा मत करो। जूते से मार लो आप। जो पास पल्ले पैसे हों वो ले लो पर ऐसा मत करो।’
‘तेरे पास क्या है बे गांड मारें तेरी। क्यों गुठली, तू बोल, बुलायें सबको और निकालें जनाज़ा तुम लोगों की इज़्ज़त का।’
शीला कुछ बोल तो न सकी… बस सूखे होंठों पर जीभ फिरा कर रह गई।
इस हालत में उसकी धड़कनें अनियंत्रित हो चली थीं और जिस्म पसीने से नहा गया था।
‘ऐसा मत करो दादा।’ उसकी जगह रानो ज़रूर गिड़गिड़ाई।
‘क्यों न करें। साली दुनिया हमें ही गलत बोलती है, ज़रा दुनिया को तो पता चले कि मोहल्ले में गलत कौन कौन कर रहा है।’
‘हमारी इज़्ज़त ख़राब करके आपको क्या मिलेगा दादा?’
‘सुकून… कई बार फरियाद की तुम लोगों से, हमें भी मौका दे दो— क्या हम नहीं समझते कि इतनी उम्र तक जब चूत को लौड़ा न मिले तो कैसी आग लगती है। इसीलिये कहते थे कि हमसे काम चला लो।
तो हमें बड़े गुरूर से ठुकरा देती थी और यह गुठली… यह तो बाकायदा आगबबूला हो जाती थी जैसे सती सावित्री हो और यहाँ… किया वही काम। ऊ का कहते हैं बे… हमारा ईगो हर्ट हुआ है। समझी।’
‘मम… माफ़ कर दो।’
‘तू ही बोल रही है। गुठली तो कुछ नहीं बोल रही।’
‘मम… मुझे माफ़ कर… दो।’ बड़ी मुश्किल से शीला बोल पाई।
‘एक शर्त पे।’
‘कक… कैसी शर्त?’
‘सुन बे लोड़ू— कल शाम तक कहीं से भी दो हज़ार रूपये पहुंचायेगा! समझा? और तुम दोनों— जैसे इसे एंटरटेन कर रही थी अभी इसके जाने के बाद हमें करोगी।
या दोनों लोग सीधे-सीधे हाँ बोलो या बुलाने दो हमें मोहल्ले के चौधरियों को।’
‘हह… हाँ-हाँ… मैं कल कहीं से भी आपको पैसे दे दूंगा भाई, आप मुझे जाने दो।’ सोनू गिड़गिड़ाया।
‘और तुम क्या बोलती हो?’
दोनों बहनों ने एक दूसरे को देखा।
ज़ाहिर है कि विकल्प नहीं था और न करने की स्थिति में वह नहीं थीं। उसकी बात से तो ज़ाहिर था कि वह कुछ भी कर सकता था।
बिना कोई लफ्ज़ अदा किये दोनों ने सहमति से सर हिला दिया।
‘शाबाश— चल बे कपड़े पहन… भुट्टू, छोड़ के आ इसे और दरवाज़ा ठीक से बंद कर लियो।
और तू सुन, अब से इधर आने की ज़रूरत नहीं, इनकी देखभाल हम कर लेंगे। समझा?’
‘जी भाई।’
‘चल फूट!’