hotaks444
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खूनी हवेली की वासना पार्ट --53
गतान्क से आगे........................
वो चाइ को स्टोव से उतार कर कप में डाल ही रहा था के फोन बज उठा. नंबर ठाकुर के वकील का था .
"हां वकील साहब" ख़ान ने फोन उठाते हुए कहा "कैसे याद किया?"
"सर आपकी तरफ से कोई जवाब ही नही आया तो मैने सोचा के मैं फोन करके पुच्छ लूँ" दूसरी तरफ से आवाज़ आई
"मेरी तरफ से कोई जवाब? किस बात का?"
"सर आपको एक फॅक्स भेजा था मैने पिच्छले हफ्ते"
"वकील साहब मेरी फॅक्स मशीन तो पता नही कब्से बंद पड़ी है. वैसे कहिए, मैं फोन पर ही बता देता हूँ" ख़ान ने कहा
"सर वो तेज ठाकुर के मरने के बाद मेरे पास मैल में उनकी वसीयत आई"
"तेज की वसीयत?"
"जी हां. और गेस कीजिए के अपने हिस्से की जायदाद वो किसको छ्चोड़ गये हैं?"
"किसे?" ख़ान ने हैरत से पुछा
"जायदेव सिंग ठाकुर को"
"जै को?" ख़ान हैरत में बोला
"जी हां" वकील ने कहा "मुझे थोड़ा अजीब लगा. पहला तो ये के वो जै को वसीयत छ्चोड़ गये, दूसरा उनके मरने के बाद मुझे वसीयत मिली, वो मौत जिसको एक आक्सिडेंट मना जा रहा था"
"यू आर राइट" ख़ान बोला "अजीब तो है"
"पर फिर मैने सोचा के जै ठाकुर अब रिहा हो गये हैं तो मैने बड़े ठाकुर और तेज, दोनो की वसीयत खोल दूं. आपने मना किया हुआ था ना, इसलिए सोचा के आपसे पुच्छ लूँ पहले"
"कब भेजा था आपने मुझे वो फॅक्स?" ख़ान ने कहा
"जिस दिन तेज ठाकुर की लाश मिली थी उससे 2-3 दिन बाद"
"ओके लेट मी हॅव ए लुक अट दा फॅक्स आंड कॉल यू बॅक" ख़ान ने कहा और अपनी फॅक्स मशीन ऑन की.
मशीन में पेपर नही था. उसने पेपर डाला.
फ़ौरन 4-5 पेज का फॅक्स आना शुरू हो गया.
पहला ठाकुर के वकील का फॅक्स था, तेज की वसीयत की एक कॉपी.
और फिर दूसरा फॅक्स आना शुरू हुआ. फॅक्स शर्मा की तरफ से था, तारीख उसी दिन की थी जब वो मरा था.
फॅक्सस को देखते देखते ख़ान का दिमाग़ घूमना लगा. लगा के चक्कर खाकर वो वहीं ज़मीन पर गिर पड़ेगा.
तस्वीर एक बार फिर टूटकर एक नये तरीके से जुड़ रही थी. इस बार तस्वीर किसी और की थी.
ख़ान ने अपनी फाइल से ठाकुर की पोस्ट मॉर्टेम रिपोर्ट की कॉपी और जै के फोन रेकॉर्ड्स की एक कॉपी निकाली.
जै के फोन पर उस रात मर्डर होने से ठीक पहले एक मोबाइल से कॉल गयी थी. नंबर रूपाली के नाम पर रिजिस्टर्ड था.
ठाकुर साहब की मौत लिंग पंक्चर से हुई. एक राइट आर्म के नीचे एक स्क्रू ड्राइवर 2 बार वार किया गया था. पहला वार एक मामूली सा ज़ख़्म था पर दूसरा वार जान लेवा साबित हुआ.
व्हील चेर पर बैठी एक कमज़ोर औरत एक हत्ते कत्ते आदमी पर 2 बार वार कैसे कर सकती है? और ऐसा वार कैसे कर सकती है के वार जान लेवा साबित हो?
"ऑफ कोर्स तुम बताओगे मुझे सबकी कमज़ोरी, तुम हवेली में रह चुके हो, तुम जानते हो सब" उसको जै से कही अपनी बात याद आई.
"मैने देखा है चंदू और बिंदिया को सर. जो चीज़ मैने अपनी आँखों से बार बार देखी, वो ग़लत कैसे हो सकती है?" जै की बात याद आ रही थी.
"ठकुराइन का नाजायज़ रिश्ता हो गया था किसी से" भूषण की बात याद आ रही थी "थोड़े टाइम बाद ही जै को भी निकाल दिया हवेली से अचानक और ठकुराइन को सीधी से धक्का दे दिया"
शर्मा का फॅक्स उसकी निगाहों के सामने रखा हुआ था. सर पकड़े ख़ान को समझ नही आ रहा था के क्या करे. थोड़ी देर बाद वो उठा, अपनी सर्विस रेवोल्वेर निकाली और जीप में बैठ कर गाओं से थोड़ा बाहर बने एक फार्म हाउस की तरफ चल पड़ा. वो फार्म हाउस तेज का था जो उसने सिर्फ़ अपनी अययाशी के लिए रखा हुआ था.
कुच्छ ही देर बाद वो फार्म हाउस के गेट पर था. बाहर जै की गाड़ी खड़ी थी और उसके साथ एक और कार पार्क्ड थी जिसके वहाँ होने की ख़ान उम्मीद कर भी रहा था.
"ख़ान" गेट जै ने खोला "तेरी जीप आती देख ली थी मैने"
सारी इज़्ज़त, ख़ान साहब, सर, आप , सब ख़तम. सीधा तू तदाक.
"कैसे आना हुआ?" उसने गेट खोला तो ख़ान अंदर चला आया.
"भाई रिहा हुए हो तुम, मैने सोचा के सेलेब्रेट कर रहे होंगे. इसलिए सेलेब्रेशन्स में शामिल होने चला आया" ख़ान ने कहा
"हां हां आ ना यार" जै बोला "तेरी ही वजह से तो जैल से निकला हूँ मैं. तू चिंता ना कर, बहुत पैसा मिलने वाला है तुझे, आख़िर जायदेव सिंग ठाकुर की जान बचाई है तूने. पिएगा कुच्छ?"
"नही शराब नही पीता मैं" ख़ान ने कहा "नाइस फार्महाउस"
"हाँ" जाई बोला "बहुत पसंद था मुझे और अब तेज भाय्या ये मेरे ही नाम कर गये"
उसकी बात सुनकर ख़ान मुस्कुराता हुए थोड़ा आगे को झुका.
"तेज की वसीयत अब तक खुली ही नही है. तुझे कैसे पता के ये फार्म हाउस तेज तेरे नाम कर गया था?"
जै ने चौंक कर ख़ान की तरफ देखा. थोड़ी देर के लिए दोनो की नज़रें मिली और अजीब सी खामोशी च्छा गयी.
"सब समझ आ गये तुझे, है ना?" जै ने सवाल किया.
ख़ान ने हां में गर्दन हिलाई.
"अब छ्चोड़ यार" जै ने कहा "मुझे छुड़वा कर तेरा भी फायडा ही हुआ है. सब तेरे लिए अच्छा बोल रहे हैं, फेमस हो गया है तू, अब पैसे भी दूँगा मैं तुझे. तेरा मेरा दोनो का फायडा हुआ है यार"
"बात तो सही कह रहा है तू जै" ख़ान उठकर खड़ा हुआ और कमरे में टहलने लगा, जैसे कमरे में रखी चीज़ों को देख रहा हो
"अच्छा एक बात बता" जै बैठा बैठा विस्की के घूँट लेता हुआ बोला "समझ कैसे आया तुझे?"
"कुच्छ चीज़ें थी जो पहले मैं अनदेखा कर गया. बाद में समझ आ गयी" ख़ान ने जवाब दिया
"जैसे के?"
"जैसे के तेरी बातें" ख़ान ने कहना शुरू किया "ये इन्वेस्टिगेशन तो मैं कभी खुद कर ही नही रहा था. तू करवा रहा था मुझसे इन्वेस्टिगेशन. सारे क्लूस तू दे रहा था, मैं तो बस तेरी लेड को फॉलो कर रहा था"
"हां ये तो है" जै मुस्कुराता हुआ बोला
"तूने कहा के तूने चंदर और बिंदिया को हवेली में बार बार साथ देखा, पर कैसे? तुझे तो हवेली में उनके आने से पहले ही निकाल दिया गया था और फिर कभी अंदर घुसने ही नही दिया गया"
"येस" जै ज़ोर से बोला
"तुझे हवेली से इसलिए निकाला गया क्यूंकी अपनी चाची, यानी के ठकुराइन के साथ नाजायज़ रिश्ता था तेरा जो कि ठाकुर को पता चल गया. उसी वजह से ठकुराइन को सीढ़ियों से धक्का दिया गया और तुझे हवेली से निकाल दिया गया"
"ये भी सही" जै दूसरा पेग बनाते हुए बोला
"उस शाम मुझे फोन रूपाली ने किया था?" ख़ान ने जै से सवाल किया तो उसने इनकार में गर्दन हिला दी.
"बाहर आ जाओ किरण" ख़ान ज़ोर से बोला "छुपने का कोई फायडा नही. मैने तुम्हारी गाड़ी बाहर खड़ी देख ली थी"
बाथरूम का दरवाज़ा खुला और सहमी सी किरण बाहर निकली. उसने चोर नज़रों से ख़ान की तरफ देखा और फिर नज़र घुमा ली.
"मीट माइ वाइफ" जै उसके करीब जाते हुए बोला "किरण सिंग ठाकुर"
"ऑफ कोर्स" ख़ान भी ज़ोर से बोला "ये तेरी बीवी है. तुम दोनो का तलाक़ कभी हुआ ही नही, वो तो एक झूठी कहानी सुना रही थी मुझे"
"आइ आम सॉरी ख़ान" किरण ऐसे बोली जैसे गले से शब्द ना निकल रहे हों
"अर्रे कोई बात नही" बीच में जै बोल पड़ा "हम ख़ान से माफी सूखी सूखी नही मानेंगे. इनाम देकर माँगेंगे. है ना ख़ान?"
क्रमशः........................................
गतान्क से आगे........................
वो चाइ को स्टोव से उतार कर कप में डाल ही रहा था के फोन बज उठा. नंबर ठाकुर के वकील का था .
"हां वकील साहब" ख़ान ने फोन उठाते हुए कहा "कैसे याद किया?"
"सर आपकी तरफ से कोई जवाब ही नही आया तो मैने सोचा के मैं फोन करके पुच्छ लूँ" दूसरी तरफ से आवाज़ आई
"मेरी तरफ से कोई जवाब? किस बात का?"
"सर आपको एक फॅक्स भेजा था मैने पिच्छले हफ्ते"
"वकील साहब मेरी फॅक्स मशीन तो पता नही कब्से बंद पड़ी है. वैसे कहिए, मैं फोन पर ही बता देता हूँ" ख़ान ने कहा
"सर वो तेज ठाकुर के मरने के बाद मेरे पास मैल में उनकी वसीयत आई"
"तेज की वसीयत?"
"जी हां. और गेस कीजिए के अपने हिस्से की जायदाद वो किसको छ्चोड़ गये हैं?"
"किसे?" ख़ान ने हैरत से पुछा
"जायदेव सिंग ठाकुर को"
"जै को?" ख़ान हैरत में बोला
"जी हां" वकील ने कहा "मुझे थोड़ा अजीब लगा. पहला तो ये के वो जै को वसीयत छ्चोड़ गये, दूसरा उनके मरने के बाद मुझे वसीयत मिली, वो मौत जिसको एक आक्सिडेंट मना जा रहा था"
"यू आर राइट" ख़ान बोला "अजीब तो है"
"पर फिर मैने सोचा के जै ठाकुर अब रिहा हो गये हैं तो मैने बड़े ठाकुर और तेज, दोनो की वसीयत खोल दूं. आपने मना किया हुआ था ना, इसलिए सोचा के आपसे पुच्छ लूँ पहले"
"कब भेजा था आपने मुझे वो फॅक्स?" ख़ान ने कहा
"जिस दिन तेज ठाकुर की लाश मिली थी उससे 2-3 दिन बाद"
"ओके लेट मी हॅव ए लुक अट दा फॅक्स आंड कॉल यू बॅक" ख़ान ने कहा और अपनी फॅक्स मशीन ऑन की.
मशीन में पेपर नही था. उसने पेपर डाला.
फ़ौरन 4-5 पेज का फॅक्स आना शुरू हो गया.
पहला ठाकुर के वकील का फॅक्स था, तेज की वसीयत की एक कॉपी.
और फिर दूसरा फॅक्स आना शुरू हुआ. फॅक्स शर्मा की तरफ से था, तारीख उसी दिन की थी जब वो मरा था.
फॅक्सस को देखते देखते ख़ान का दिमाग़ घूमना लगा. लगा के चक्कर खाकर वो वहीं ज़मीन पर गिर पड़ेगा.
तस्वीर एक बार फिर टूटकर एक नये तरीके से जुड़ रही थी. इस बार तस्वीर किसी और की थी.
ख़ान ने अपनी फाइल से ठाकुर की पोस्ट मॉर्टेम रिपोर्ट की कॉपी और जै के फोन रेकॉर्ड्स की एक कॉपी निकाली.
जै के फोन पर उस रात मर्डर होने से ठीक पहले एक मोबाइल से कॉल गयी थी. नंबर रूपाली के नाम पर रिजिस्टर्ड था.
ठाकुर साहब की मौत लिंग पंक्चर से हुई. एक राइट आर्म के नीचे एक स्क्रू ड्राइवर 2 बार वार किया गया था. पहला वार एक मामूली सा ज़ख़्म था पर दूसरा वार जान लेवा साबित हुआ.
व्हील चेर पर बैठी एक कमज़ोर औरत एक हत्ते कत्ते आदमी पर 2 बार वार कैसे कर सकती है? और ऐसा वार कैसे कर सकती है के वार जान लेवा साबित हो?
"ऑफ कोर्स तुम बताओगे मुझे सबकी कमज़ोरी, तुम हवेली में रह चुके हो, तुम जानते हो सब" उसको जै से कही अपनी बात याद आई.
"मैने देखा है चंदू और बिंदिया को सर. जो चीज़ मैने अपनी आँखों से बार बार देखी, वो ग़लत कैसे हो सकती है?" जै की बात याद आ रही थी.
"ठकुराइन का नाजायज़ रिश्ता हो गया था किसी से" भूषण की बात याद आ रही थी "थोड़े टाइम बाद ही जै को भी निकाल दिया हवेली से अचानक और ठकुराइन को सीधी से धक्का दे दिया"
शर्मा का फॅक्स उसकी निगाहों के सामने रखा हुआ था. सर पकड़े ख़ान को समझ नही आ रहा था के क्या करे. थोड़ी देर बाद वो उठा, अपनी सर्विस रेवोल्वेर निकाली और जीप में बैठ कर गाओं से थोड़ा बाहर बने एक फार्म हाउस की तरफ चल पड़ा. वो फार्म हाउस तेज का था जो उसने सिर्फ़ अपनी अययाशी के लिए रखा हुआ था.
कुच्छ ही देर बाद वो फार्म हाउस के गेट पर था. बाहर जै की गाड़ी खड़ी थी और उसके साथ एक और कार पार्क्ड थी जिसके वहाँ होने की ख़ान उम्मीद कर भी रहा था.
"ख़ान" गेट जै ने खोला "तेरी जीप आती देख ली थी मैने"
सारी इज़्ज़त, ख़ान साहब, सर, आप , सब ख़तम. सीधा तू तदाक.
"कैसे आना हुआ?" उसने गेट खोला तो ख़ान अंदर चला आया.
"भाई रिहा हुए हो तुम, मैने सोचा के सेलेब्रेट कर रहे होंगे. इसलिए सेलेब्रेशन्स में शामिल होने चला आया" ख़ान ने कहा
"हां हां आ ना यार" जै बोला "तेरी ही वजह से तो जैल से निकला हूँ मैं. तू चिंता ना कर, बहुत पैसा मिलने वाला है तुझे, आख़िर जायदेव सिंग ठाकुर की जान बचाई है तूने. पिएगा कुच्छ?"
"नही शराब नही पीता मैं" ख़ान ने कहा "नाइस फार्महाउस"
"हाँ" जाई बोला "बहुत पसंद था मुझे और अब तेज भाय्या ये मेरे ही नाम कर गये"
उसकी बात सुनकर ख़ान मुस्कुराता हुए थोड़ा आगे को झुका.
"तेज की वसीयत अब तक खुली ही नही है. तुझे कैसे पता के ये फार्म हाउस तेज तेरे नाम कर गया था?"
जै ने चौंक कर ख़ान की तरफ देखा. थोड़ी देर के लिए दोनो की नज़रें मिली और अजीब सी खामोशी च्छा गयी.
"सब समझ आ गये तुझे, है ना?" जै ने सवाल किया.
ख़ान ने हां में गर्दन हिलाई.
"अब छ्चोड़ यार" जै ने कहा "मुझे छुड़वा कर तेरा भी फायडा ही हुआ है. सब तेरे लिए अच्छा बोल रहे हैं, फेमस हो गया है तू, अब पैसे भी दूँगा मैं तुझे. तेरा मेरा दोनो का फायडा हुआ है यार"
"बात तो सही कह रहा है तू जै" ख़ान उठकर खड़ा हुआ और कमरे में टहलने लगा, जैसे कमरे में रखी चीज़ों को देख रहा हो
"अच्छा एक बात बता" जै बैठा बैठा विस्की के घूँट लेता हुआ बोला "समझ कैसे आया तुझे?"
"कुच्छ चीज़ें थी जो पहले मैं अनदेखा कर गया. बाद में समझ आ गयी" ख़ान ने जवाब दिया
"जैसे के?"
"जैसे के तेरी बातें" ख़ान ने कहना शुरू किया "ये इन्वेस्टिगेशन तो मैं कभी खुद कर ही नही रहा था. तू करवा रहा था मुझसे इन्वेस्टिगेशन. सारे क्लूस तू दे रहा था, मैं तो बस तेरी लेड को फॉलो कर रहा था"
"हां ये तो है" जै मुस्कुराता हुआ बोला
"तूने कहा के तूने चंदर और बिंदिया को हवेली में बार बार साथ देखा, पर कैसे? तुझे तो हवेली में उनके आने से पहले ही निकाल दिया गया था और फिर कभी अंदर घुसने ही नही दिया गया"
"येस" जै ज़ोर से बोला
"तुझे हवेली से इसलिए निकाला गया क्यूंकी अपनी चाची, यानी के ठकुराइन के साथ नाजायज़ रिश्ता था तेरा जो कि ठाकुर को पता चल गया. उसी वजह से ठकुराइन को सीढ़ियों से धक्का दिया गया और तुझे हवेली से निकाल दिया गया"
"ये भी सही" जै दूसरा पेग बनाते हुए बोला
"उस शाम मुझे फोन रूपाली ने किया था?" ख़ान ने जै से सवाल किया तो उसने इनकार में गर्दन हिला दी.
"बाहर आ जाओ किरण" ख़ान ज़ोर से बोला "छुपने का कोई फायडा नही. मैने तुम्हारी गाड़ी बाहर खड़ी देख ली थी"
बाथरूम का दरवाज़ा खुला और सहमी सी किरण बाहर निकली. उसने चोर नज़रों से ख़ान की तरफ देखा और फिर नज़र घुमा ली.
"मीट माइ वाइफ" जै उसके करीब जाते हुए बोला "किरण सिंग ठाकुर"
"ऑफ कोर्स" ख़ान भी ज़ोर से बोला "ये तेरी बीवी है. तुम दोनो का तलाक़ कभी हुआ ही नही, वो तो एक झूठी कहानी सुना रही थी मुझे"
"आइ आम सॉरी ख़ान" किरण ऐसे बोली जैसे गले से शब्द ना निकल रहे हों
"अर्रे कोई बात नही" बीच में जै बोल पड़ा "हम ख़ान से माफी सूखी सूखी नही मानेंगे. इनाम देकर माँगेंगे. है ना ख़ान?"
क्रमशः........................................