hotaks444
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उसी वक़्त सशा , सीडिया उतर कमरे में चली आयी।
जगदीश राय , उसे मन ही मन कोसते , मूलियों पे अपना टूटा हुआ ध्यान देने लगा।
सशा: आशा , देख तो बाहर , यह लोग दही कला (दही हंडी) लगा रहे है। बहुत मजा आयेगा शाम को।
आशा: हाँ।पापा…हम सब देखेगे। और पानी फेकेंगे उन पर…
जगदीश राय: हाँ…ठीक है।।।
शाम हो गयी थी। पूरा दोपहर , जगदीश राय का हाल बुरा था। निशा की याद और आशा की पूँछ ने उसके लंड पूरा टाइम खड़ा रखा था।
जगदीश राय , अपने कमरे मैं , लंड हाथ में लिए , हिलाना शुरू किया। पर मुठ निकल नहीं रही थी। जो लंड चूत की आदि हो जाये उससे हाथ से मजा आना मुमकिन नहीं था, यह बात जगदीश राय भी जानता था।
अचानक से दरवाज़ा खुल गया। जगदीश राय , हाथ में 9 इंच लंड पकडे, चौंक कर देखता रहा।
आशा: पापा…चलिए…।दहीकला स्टार्ट हुआ…चलिये
आशा की नज़र, तभी पापा के खड़े 9 इंच लंड पर पडी जो शाम के उजाले पर चमक रहा था।
इसके पहले जगदीश राय कुछ बोले, आशा बोल दी।
आशा: उफ़ पापा…अच्छा…आप जल्दी से यह निपटाकर…।आईए…ज्यादा देर मत लगाना…मैं और सशा निचे है…।ठीक है…
और आशा से दरवाज़ा बंद कर चल दिया।
जगदीश राय हक्का बक्का रह गया।
जगदीश राय (मन में): यह क्या हो गया अभी।।कही मेरा सपना तो नहीं था…आशा आयी…और मेरे लंड… को मुझे मुठ मारते देख…बोलकर चल दी…मानो यह उसके लिए नई बात न हो…।
जगदीश राय यह सोचकर और गरम हो गया। और ज़ोर ज़ोर से हिलाने लगा। पर मुठ कगार पर आकर मुठ रुक जाता। १५ मिनट तक जगदीश राय हिलाता रहा पर स्खलित न हो पाया।
अचानक फिर से दरवाज़ा खुल गया। इस बार जगदीश राय चौंका नाहि, क्यूंकि वह आँखें बंद, गहरी सोच के साथ्, मुठ मार रहा था।
पर आशा के आवाज़ ने उसकी आँखें खोल दी।
आशा:यह लो…आप अभी भी…इसी पर है…और मैं समझी थी…आप तैयार हो चुके होंगे…।
जगदीश राय : ओह बेटी…
आशा (और पास आकर): क्या बात है…मूठ नहीं निकल रहा पापा…।
आशा के ऐसे सीधे सवाल की, जगदीश राय को उम्मीद नहीं थी
जगदीश राय: नहीं बेटी…निकल नहीं रहा।
आशा: लाओ…मैं कोशिश करती हूँ।
और आशा ने तुरंत जगदीश राय के हाथ पर मार दिया और लंड को थाम लिया। आशा के हाथ इतने छोटे थे की लंड पूरी तरह समां नहीं पा रही थी।
जगदीश राय : बेटी तुम ।तुमसे नही…ओह्ह…।आहः
आशा: दही कला ख़तम होने से पहले आपको झाड दूँगी…वादा…
और आशा तेज़ी से पापा के विशाल लंड को हिलने लगी।
जगदीश राय , उसे मन ही मन कोसते , मूलियों पे अपना टूटा हुआ ध्यान देने लगा।
सशा: आशा , देख तो बाहर , यह लोग दही कला (दही हंडी) लगा रहे है। बहुत मजा आयेगा शाम को।
आशा: हाँ।पापा…हम सब देखेगे। और पानी फेकेंगे उन पर…
जगदीश राय: हाँ…ठीक है।।।
शाम हो गयी थी। पूरा दोपहर , जगदीश राय का हाल बुरा था। निशा की याद और आशा की पूँछ ने उसके लंड पूरा टाइम खड़ा रखा था।
जगदीश राय , अपने कमरे मैं , लंड हाथ में लिए , हिलाना शुरू किया। पर मुठ निकल नहीं रही थी। जो लंड चूत की आदि हो जाये उससे हाथ से मजा आना मुमकिन नहीं था, यह बात जगदीश राय भी जानता था।
अचानक से दरवाज़ा खुल गया। जगदीश राय , हाथ में 9 इंच लंड पकडे, चौंक कर देखता रहा।
आशा: पापा…चलिए…।दहीकला स्टार्ट हुआ…चलिये
आशा की नज़र, तभी पापा के खड़े 9 इंच लंड पर पडी जो शाम के उजाले पर चमक रहा था।
इसके पहले जगदीश राय कुछ बोले, आशा बोल दी।
आशा: उफ़ पापा…अच्छा…आप जल्दी से यह निपटाकर…।आईए…ज्यादा देर मत लगाना…मैं और सशा निचे है…।ठीक है…
और आशा से दरवाज़ा बंद कर चल दिया।
जगदीश राय हक्का बक्का रह गया।
जगदीश राय (मन में): यह क्या हो गया अभी।।कही मेरा सपना तो नहीं था…आशा आयी…और मेरे लंड… को मुझे मुठ मारते देख…बोलकर चल दी…मानो यह उसके लिए नई बात न हो…।
जगदीश राय यह सोचकर और गरम हो गया। और ज़ोर ज़ोर से हिलाने लगा। पर मुठ कगार पर आकर मुठ रुक जाता। १५ मिनट तक जगदीश राय हिलाता रहा पर स्खलित न हो पाया।
अचानक फिर से दरवाज़ा खुल गया। इस बार जगदीश राय चौंका नाहि, क्यूंकि वह आँखें बंद, गहरी सोच के साथ्, मुठ मार रहा था।
पर आशा के आवाज़ ने उसकी आँखें खोल दी।
आशा:यह लो…आप अभी भी…इसी पर है…और मैं समझी थी…आप तैयार हो चुके होंगे…।
जगदीश राय : ओह बेटी…
आशा (और पास आकर): क्या बात है…मूठ नहीं निकल रहा पापा…।
आशा के ऐसे सीधे सवाल की, जगदीश राय को उम्मीद नहीं थी
जगदीश राय: नहीं बेटी…निकल नहीं रहा।
आशा: लाओ…मैं कोशिश करती हूँ।
और आशा ने तुरंत जगदीश राय के हाथ पर मार दिया और लंड को थाम लिया। आशा के हाथ इतने छोटे थे की लंड पूरी तरह समां नहीं पा रही थी।
जगदीश राय : बेटी तुम ।तुमसे नही…ओह्ह…।आहः
आशा: दही कला ख़तम होने से पहले आपको झाड दूँगी…वादा…
और आशा तेज़ी से पापा के विशाल लंड को हिलने लगी।