hotaks444
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निशा बिना कुछ कहें १० सेकेंड तक दोनों को घूरकर, बिना कुछ कहे अपने कमरे में चली गयी।
जगदीश राय तुरंत लंड बाहर खीच लिया, लंड अभी भी वीर्य उगल रहा था।
जगदीश राय: हे भगवन…निशा सब देख चुकी है…अब खुश हो गयी…मैंने कहाँ था…निकल जा यहाँ से…
आशा , पहले डरी हुई थी पर अब वह मुस्कुरा दी।
आशा: अच्छा हुआ…दीदी ने…सब देख लिया…अब तो मैं यहाँ पूरी रात गुज़ार सकती हुँ।।क्यूं…?
जगदीश राय (धीमे आवाज में, समझाते हुए) : चुप कर…अपने कमरे में चली जा।।
आशा: अच्छा बाबा जाती हूँ…
और वह , फर्श पर से स्कर्ट उठाकर…गांड मटका के चल दी।
जगदीश राय , मन में, निशा को कल किस मुँह से देखे। इस विचार में टेंशन के साथ सोने की कोशिश करने लगा।
अगले दिन सुबह जगदीश राय, बिना किसी से कुछ कहें , जल्द ऑफिस चला गया। वह निशा को फेस नहीं करना चाहता था।
हालांकी वह जानता था की रात को उसे निशा से मुलाकात करनी पडेगी।
अगले तीन दिन तक घर पर सन्नाटा बना रहा। जो भी बात होती वह बस सशा ही करती। निशा अपने पापा से मुह तक नहीं मिला रही थी।
आशा का बरताव ऐसा था जैसे कुछ हुआ ही न हो। पर निशा और आशा भी नहीं बोल रहे थे।
चौथे दिन, जगदीश राय ने फैसला किया की जो भी हो उसे इस उलझन हो सुलझाना पडेगा, नहीं तो उसका परिवार बिखर भी सकता है।
वह सुबह जाने से पहले आशा से कहा।
जगदीश राय: आशा आज स्कूल से सीधे घर आना…एक्स्ट्रा क्लास में मत बैठना।
आशा: क्यों…।आज क्या है…
जगदीश राय (ग़ुस्से से): जो बोला है वह करो…।और ज़बान को लगाम दो…गॉट इट।
आशा, पापा के इस रूप से थोड़ी डर गयी और हामी में सर हिला दी।
जगदीश राय तुरंत लंड बाहर खीच लिया, लंड अभी भी वीर्य उगल रहा था।
जगदीश राय: हे भगवन…निशा सब देख चुकी है…अब खुश हो गयी…मैंने कहाँ था…निकल जा यहाँ से…
आशा , पहले डरी हुई थी पर अब वह मुस्कुरा दी।
आशा: अच्छा हुआ…दीदी ने…सब देख लिया…अब तो मैं यहाँ पूरी रात गुज़ार सकती हुँ।।क्यूं…?
जगदीश राय (धीमे आवाज में, समझाते हुए) : चुप कर…अपने कमरे में चली जा।।
आशा: अच्छा बाबा जाती हूँ…
और वह , फर्श पर से स्कर्ट उठाकर…गांड मटका के चल दी।
जगदीश राय , मन में, निशा को कल किस मुँह से देखे। इस विचार में टेंशन के साथ सोने की कोशिश करने लगा।
अगले दिन सुबह जगदीश राय, बिना किसी से कुछ कहें , जल्द ऑफिस चला गया। वह निशा को फेस नहीं करना चाहता था।
हालांकी वह जानता था की रात को उसे निशा से मुलाकात करनी पडेगी।
अगले तीन दिन तक घर पर सन्नाटा बना रहा। जो भी बात होती वह बस सशा ही करती। निशा अपने पापा से मुह तक नहीं मिला रही थी।
आशा का बरताव ऐसा था जैसे कुछ हुआ ही न हो। पर निशा और आशा भी नहीं बोल रहे थे।
चौथे दिन, जगदीश राय ने फैसला किया की जो भी हो उसे इस उलझन हो सुलझाना पडेगा, नहीं तो उसका परिवार बिखर भी सकता है।
वह सुबह जाने से पहले आशा से कहा।
जगदीश राय: आशा आज स्कूल से सीधे घर आना…एक्स्ट्रा क्लास में मत बैठना।
आशा: क्यों…।आज क्या है…
जगदीश राय (ग़ुस्से से): जो बोला है वह करो…।और ज़बान को लगाम दो…गॉट इट।
आशा, पापा के इस रूप से थोड़ी डर गयी और हामी में सर हिला दी।