hotaks444
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और आज वह दिन आ गया था। आज वह पापा से खूब चूदना चाहती थी।
निशा ने अपने गांड को पापा के लंड से दबाये रखा। वही आशा यह सब देखकर मुस्कुरा रही थी।
आशा: सशा चल हम ऊपर चलती है…।शायद दीदी को पापा के साथ कुछ टाइम स्पेंड करना होगा।
सशा: अच्छा?
निशा: हाँ…बहुत दिनों बाद मिली हूँ न पापा से…
सशा: चलो ठीक है फिर…वैसे भी मेरे होमवर्क का टाइम हो गया है…
आशा: होम वर्क का तो इस घर में सबका टाइम हो गया है , हे हे।
निशा आशा की यह बात समझ नहीं पायी, और उसे दाल में काला नज़र आने लगी।
आशा और सशा के जाते ही, निशा पापा के गोद में , टांगे इर्द-गिर्द फैला कर बैठ गयी। अब उसकी भट्टी जैसी गरम चूत सीधे लंड को छु रही थी।
जगदीश राय का लंड , कल रात की चुदाई के बावजूद , दर्द होते हुए खड़ा हो गया।
निशा: पापा…ओह…मुझसे अब रहा नहीं जा रहा…प्लीज चोद दो मुझे…।
जगदीश राय: यहाँ…अभी…
निशा: हाँ…देखो न चूत कितनी गरम है और पानी छोड रही है…बस अपना लंड बाहर निकालो …मैं बैठ जाती हु…।चलो धोती खोल दो…चलो।
जगदीश राय: अरे नहीं नहीं…।सशा देख लेगी तो क्या सोचेगी…
निशा ने नोट किया की जगदीश राय ने आशा का नाम नहीं लिया।
जगदीश राय: दोपहर को इत्मिनान से करते है…
निशा(रूठते हुए): आप बहोत गंदे हो…बेटी इतनी दिनों बाद आयी है…चूत के लिए लंड माँग रही…और आप भाव खा रहे हो…
जगदीश राय: अरे नहीं प्यारी…कहो तो आज दोपहर पूरा टाइम लंड इस चूत से बहार निकलेगा ही नहि। बस…वादा रहा।।
जगदीश राय ने जोश में कह तो दिया था, पर अभी भी उसके टट्टो में दर्द था। आशा ने उसे बुरी तरह जो निचोड दिया था, कल रात।
निशा: हम्म…ठीक है फिर तो…पर आप चाट तो सकते है न…।।
जगदीश राय: हम्म…हाँ…क्यो नहीं…चाटना सेफ होगा…मेरे ख्याल से…
यह सुनते हि, किसी चुदासी रांड की तरह, निशा ने तुरंत अपना स्कर्ट ऊपर उछाल लिया और बिना-पेंटी की चूत जगदीश राय को प्रस्तुत किया।
निशा: यह लीजिये…।थोड़ा चेयर पर निचे सरक जाइये पापा…।हाँ ऐसे…यह लो… गरम रसीली चूत आपके मुह में…ओह्ह्ह…।वाउ…।मा…।इतने दिनों बाद…ह…क्या मज़्ज़ा …।।हाँ पापा…ऐसे ही…।हाँ चूत खोलकर…डालिये जीभ अंदर…।।हाँ ऐसेही…।।और तेज़…और…और…और…और ।।और…और।।ओह्ह्ह म्मा…मैं झड रही हु पापा……ओह …।।यह आ ओह आ…ओह…।पापा…ओह……ओह…।।हाँ चाटिये…।सारा पानी…।यह माँ…।।यह…।।पापा
जब निशा को होश आया तो उसने देखा तो हँस पड़ी… उसके पापा नज़र नहीं आ रहे थे। जगदीश राय को पूरे उसके स्कर्ट ने ढक रखा था।
निशा (बेशर्मी से): ओह पापा…।बहुत अच्छा लगा…क्या चाटा आपने…आपको कैसे लगा …अब मैं दोपहर तक का इंतज़ार कर सकती हु…।
निशा ने अपने गांड को पापा के लंड से दबाये रखा। वही आशा यह सब देखकर मुस्कुरा रही थी।
आशा: सशा चल हम ऊपर चलती है…।शायद दीदी को पापा के साथ कुछ टाइम स्पेंड करना होगा।
सशा: अच्छा?
निशा: हाँ…बहुत दिनों बाद मिली हूँ न पापा से…
सशा: चलो ठीक है फिर…वैसे भी मेरे होमवर्क का टाइम हो गया है…
आशा: होम वर्क का तो इस घर में सबका टाइम हो गया है , हे हे।
निशा आशा की यह बात समझ नहीं पायी, और उसे दाल में काला नज़र आने लगी।
आशा और सशा के जाते ही, निशा पापा के गोद में , टांगे इर्द-गिर्द फैला कर बैठ गयी। अब उसकी भट्टी जैसी गरम चूत सीधे लंड को छु रही थी।
जगदीश राय का लंड , कल रात की चुदाई के बावजूद , दर्द होते हुए खड़ा हो गया।
निशा: पापा…ओह…मुझसे अब रहा नहीं जा रहा…प्लीज चोद दो मुझे…।
जगदीश राय: यहाँ…अभी…
निशा: हाँ…देखो न चूत कितनी गरम है और पानी छोड रही है…बस अपना लंड बाहर निकालो …मैं बैठ जाती हु…।चलो धोती खोल दो…चलो।
जगदीश राय: अरे नहीं नहीं…।सशा देख लेगी तो क्या सोचेगी…
निशा ने नोट किया की जगदीश राय ने आशा का नाम नहीं लिया।
जगदीश राय: दोपहर को इत्मिनान से करते है…
निशा(रूठते हुए): आप बहोत गंदे हो…बेटी इतनी दिनों बाद आयी है…चूत के लिए लंड माँग रही…और आप भाव खा रहे हो…
जगदीश राय: अरे नहीं प्यारी…कहो तो आज दोपहर पूरा टाइम लंड इस चूत से बहार निकलेगा ही नहि। बस…वादा रहा।।
जगदीश राय ने जोश में कह तो दिया था, पर अभी भी उसके टट्टो में दर्द था। आशा ने उसे बुरी तरह जो निचोड दिया था, कल रात।
निशा: हम्म…ठीक है फिर तो…पर आप चाट तो सकते है न…।।
जगदीश राय: हम्म…हाँ…क्यो नहीं…चाटना सेफ होगा…मेरे ख्याल से…
यह सुनते हि, किसी चुदासी रांड की तरह, निशा ने तुरंत अपना स्कर्ट ऊपर उछाल लिया और बिना-पेंटी की चूत जगदीश राय को प्रस्तुत किया।
निशा: यह लीजिये…।थोड़ा चेयर पर निचे सरक जाइये पापा…।हाँ ऐसे…यह लो… गरम रसीली चूत आपके मुह में…ओह्ह्ह…।वाउ…।मा…।इतने दिनों बाद…ह…क्या मज़्ज़ा …।।हाँ पापा…ऐसे ही…।हाँ चूत खोलकर…डालिये जीभ अंदर…।।हाँ ऐसेही…।।और तेज़…और…और…और…और ।।और…और।।ओह्ह्ह म्मा…मैं झड रही हु पापा……ओह …।।यह आ ओह आ…ओह…।पापा…ओह……ओह…।।हाँ चाटिये…।सारा पानी…।यह माँ…।।यह…।।पापा
जब निशा को होश आया तो उसने देखा तो हँस पड़ी… उसके पापा नज़र नहीं आ रहे थे। जगदीश राय को पूरे उसके स्कर्ट ने ढक रखा था।
निशा (बेशर्मी से): ओह पापा…।बहुत अच्छा लगा…क्या चाटा आपने…आपको कैसे लगा …अब मैं दोपहर तक का इंतज़ार कर सकती हु…।