hotaks444
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मेरी चाची रागिनी
ये तब की बात है जब मेने अपने 18 वे साल में कदम रखा था.
मेरे चाचा जो मुझसे सिर्फ़ 8 साल बड़े थे उनकी शादी हो गयी. मेरे
दादा दादी ना रहने पर पिताजी ने ही चाचाजी को पल पोस कर बड़ा
किया था. चाचा ने पिताजी के साथ कारोबार संभाल लिया था. मेरी
चाची रागिनी मुझसे सिर्फ़ 4 साल बड़ी थी.
एक बार छुट्टियों में पिताजी ने माताजी के साथ यात्रा पर जाने का मन
मना लिया. हम लोगो का कपड़े का व्यापार था. जिसकी वजह से चाचा
अक्सर टूर पर जाते रहते थे. मेरी चाची मुझे बहुत पसंद करती
थी अक्सर कहती थी कि एक में ही हूँ जिससे वो बात कर सकती है.
जब पिताजी यात्रा पर चले गये तो चाची मेरा कुछ ज़्यादा ही ध्यान
रखने लगी. वो हर तरह से मेरा ख्याल रखती और मुझे अपनी माताजी
की कमी नही खलने देती थी. मुझे भी उसके साथ रहने बहुत ही
मज़ा आता था. हम अकस्सर खाली समय में हँसी मज़ाक करते, तो
कभी एक दूसरे को जोक्स सुनते तो कभी गेम्स खेलते.
ना जाने क्यों चाची मुझे और अच्छी लगने लगी और मेरे मन में
उनके प्रति काम वासना जाग उठी. में अक्सर उनकी चुचियों को घूरता
रहता. जब वो चलती तो पीछे से मटकते उनके चूतड़ मेरे लंड को
और खड़ा कर देते. उनके पतले गुलाबी होंठ देख कर मन करता उन्हे
अपने होंठों मे जाकड़ चूस लू.
ये वाक़या तब हुआ जब चाचा जी को एक ज़रूरी काम से बाहर जाना पड़ा.
चाचा शादी के बाद पहली बार बाहर जा रहे थे. मा पिताजी भी
नही थे सो उन्होने मुझे समझाते हुए कहा, "राज तुम अपना ज़्यादा
समय घर पर ही बिताना जिससे तुम्हारी चाची को अकेलेपन का अहसास
ना हो. में दो तीन दिन में आ जाउन्गा."
"आप चिंता ना करें चाचा मैं चाची का पूरा ख्याल रखूँगा."
मेने जवाब दिया.
दूसरे दिन चाचा ने ट्रेन पकड़ी और चले गये. जब मैं स्टेशन से
वापस घर पहुँचा तो मेने देखा कि चाची आज बहुत खुस थी.
उसने मुझे अपने पास बुलाया और कहा, "राज आज तुम मेरे साथ मेरे
कमरे में ही सोना. अकेले में मुझे नींद नही आएगी."
में भी चाची की बात सुन कर खुश हो गया. उस रात चाची ने
बहुत ही स्वादिष्ट खाना बनाया और बड़े प्यार से मुझे खिलाया. खाना
खाने के बाद चाची ने मुझे फल दिए खाने को. फल देते समय
चाची ने शरारत से मेरे हाथ को मरोड़ दिया और मुस्कुरा दी. में भी
समझ गया कि ये मुस्कान रोज़ से अलग है.
ये तब की बात है जब मेने अपने 18 वे साल में कदम रखा था.
मेरे चाचा जो मुझसे सिर्फ़ 8 साल बड़े थे उनकी शादी हो गयी. मेरे
दादा दादी ना रहने पर पिताजी ने ही चाचाजी को पल पोस कर बड़ा
किया था. चाचा ने पिताजी के साथ कारोबार संभाल लिया था. मेरी
चाची रागिनी मुझसे सिर्फ़ 4 साल बड़ी थी.
एक बार छुट्टियों में पिताजी ने माताजी के साथ यात्रा पर जाने का मन
मना लिया. हम लोगो का कपड़े का व्यापार था. जिसकी वजह से चाचा
अक्सर टूर पर जाते रहते थे. मेरी चाची मुझे बहुत पसंद करती
थी अक्सर कहती थी कि एक में ही हूँ जिससे वो बात कर सकती है.
जब पिताजी यात्रा पर चले गये तो चाची मेरा कुछ ज़्यादा ही ध्यान
रखने लगी. वो हर तरह से मेरा ख्याल रखती और मुझे अपनी माताजी
की कमी नही खलने देती थी. मुझे भी उसके साथ रहने बहुत ही
मज़ा आता था. हम अकस्सर खाली समय में हँसी मज़ाक करते, तो
कभी एक दूसरे को जोक्स सुनते तो कभी गेम्स खेलते.
ना जाने क्यों चाची मुझे और अच्छी लगने लगी और मेरे मन में
उनके प्रति काम वासना जाग उठी. में अक्सर उनकी चुचियों को घूरता
रहता. जब वो चलती तो पीछे से मटकते उनके चूतड़ मेरे लंड को
और खड़ा कर देते. उनके पतले गुलाबी होंठ देख कर मन करता उन्हे
अपने होंठों मे जाकड़ चूस लू.
ये वाक़या तब हुआ जब चाचा जी को एक ज़रूरी काम से बाहर जाना पड़ा.
चाचा शादी के बाद पहली बार बाहर जा रहे थे. मा पिताजी भी
नही थे सो उन्होने मुझे समझाते हुए कहा, "राज तुम अपना ज़्यादा
समय घर पर ही बिताना जिससे तुम्हारी चाची को अकेलेपन का अहसास
ना हो. में दो तीन दिन में आ जाउन्गा."
"आप चिंता ना करें चाचा मैं चाची का पूरा ख्याल रखूँगा."
मेने जवाब दिया.
दूसरे दिन चाचा ने ट्रेन पकड़ी और चले गये. जब मैं स्टेशन से
वापस घर पहुँचा तो मेने देखा कि चाची आज बहुत खुस थी.
उसने मुझे अपने पास बुलाया और कहा, "राज आज तुम मेरे साथ मेरे
कमरे में ही सोना. अकेले में मुझे नींद नही आएगी."
में भी चाची की बात सुन कर खुश हो गया. उस रात चाची ने
बहुत ही स्वादिष्ट खाना बनाया और बड़े प्यार से मुझे खिलाया. खाना
खाने के बाद चाची ने मुझे फल दिए खाने को. फल देते समय
चाची ने शरारत से मेरे हाथ को मरोड़ दिया और मुस्कुरा दी. में भी
समझ गया कि ये मुस्कान रोज़ से अलग है.