Hindi Sex Stories By raj sharma - Page 9 - SexBaba
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Hindi Sex Stories By raj sharma

अब मैने अपनी कमर को सख़्त किया और लंड को ताक़त के साथ 
अंदर धकेला.. लंड 2इंच घुसा वो दर्द से बिलबिला उठी.. तड़पने लगी मैने उसका मुँह नही छ्चोड़ा.. लेकिन मैने महसूस किया उसकी चूत के अंदर कुछ मेरे लंड को अंदर जाने से रोक रहा है.. शायद इतनी बड़ी उमर होने के कारण चूत का परदा मोटा हो गया था.. मैने लंड को थोड़ा बाहर खींचा.. और पूरी ताक़त से झटका मारा.. चूत के पर्दे को ककड़ी की तरफ फाड़ कर मेरा लंड 5 इंच अंदर हो गया.. और उसकी चूत ने खून की उल्टी कर दी..वो तदपि और फिर बेहोश जैसी हो गयी.. मैं डर गया.. मैं उसे चूमने लगा.. करीब 5 मिनट. ऐसे ही रहने के बाद वो होश मे आई.. आँखों मे पानी और चेहरे पर दर्द.. थोड़ी देर मे जब दर्द कम हुआ मैने हल्के हल्के धक्के लगाने शुरू किए.. उसे मज़ा आने लगा.. 
मैने पूछा अब दर्द कम हुआ? उसने कहा.. हां.. और अब मैने लंड को बाहर खींचा और करारा झटका देते हुए पूरे लंड को जड़ तक उसकी चूत मे पेल दिया वो फिर चिल्लाई..ऊओ. .मार गाइिईईई. .लेकिन मेरे धक्के चालू थे.. 
और फिर 4-5 मिनट मे उसने भी चूतड़ उछालते हुए धक्के शुरू किए.. अब उसकी 
चूत से पानी निकलने लगा था.. और लंड को भी अंदर बाहर होने मे सहूलियत 
हो रही थी. मैं उसे अब ज़ोर से चोदने लगा.. वो भी कह रही थी..और ज़ोर से.. 
फाड़ दो.. मुझे मा बना दो.. मैने अब उससे पूछा अगर तुम कुँवारी थी तो 
फिर वो लड़का किसका है जिसे तुमने हॉस्टिल मे रखा है.. उसने कहा वो उसकी बड़ी 
बेहन का लड़का है.. जिसकी एक आक्सिडेंट मे मौत हो गयी.. और उसके पति ने 
दूसरी शादी कर ली, इसलिए 1 साल के बच्चे को उसने गोद ले लिया था. अब वो 
अपने बच्चे की मा बनना चाहती है.. राज.. मेरे पेट मे बच्चा दे दो.. 
आहह.. क्या मस्त मज़बूत लंड है..और फिर वो मुझसे चिपकने लगी..आआहह. 
.मेरा निकलने वाला है..मुझे कस के पकड़ लिया और वो झाड़ गयी.. मुझे मेरे 
कंधे पर से कुछ गरम बहता हुआ महसूस हुआ.. मैने हाथ से देखा वो खून था.. दरअसल जब उसकी सील टूटी तब उसने नाख़ून से मेरे पीठ पर घाव बना दिया था..और वही से खून निकल रहा था, ये देख कर मुझे और जोश आ 
गया.. मैने मेरे धक्को की रफ़्तार बढ़ा दी उसकी चूत को इस तरह की चुदाई उम्मीद नही थी.. और चूत एकदम लाल हो गयी.. 
मैने उसकी कमर और चूतड़ को दोनो हाथो से पकड़ा और चूत मे लंड डाले हुए ही मैने सीधा लेट गया और उसे अपने उपर खींच लिया.. अब मैने उससे कहा.. 
अपनी गांद उपर नीचे करो उसका इस तरह उछलने से उसकी मस्त चूंचियाँ मेरे मुँह के सामने उछाल रही थी.मैने दोनो हाथो से चूंचियाँ पकड़ी, मसली और निपल को मुँह मे ले कर चूसने लग.. वो लगातार झाड़ रही थी.. मेरी गोतिया भी गीली हो गयी उसका चूत के पानी से.. थोड़ी देर मे वो थक कर मेरे सीने पर लेट गयी.. मैने बिना चूत से लंड निकाले फिर उसे नीचे लिया और खींचते 
हुए बेड के किनारे लाया.. वहाँ उसकी चूत के नीचे तकिया लगाया और मैं खुद 
नीचे खड़ा हो गया.. उसका पैर मेरे कंधे पर रखे और. इस बार मेरे धक्के 
बहुत ही तूफ़ानी थे.. वो चिल्ला रही थी . क्या मस्त लंड है.. मेरी चूत की 
किस्मत खुल गयी..मारो.. और ज़ोर से..ऊवू.. मैं गयीईईई. . वो फिर झाड़ 
गयी.. अब मेरा भी झड़ने का टाइम हो गया था.. मैने पूछा.. मैं झड़ने वाला 
हूँ.. कहाँ निकालू.. उसने कहा मेरी चूत मे भर दो.. मुझे मा बना दो 
राज्ज्जज्ज्ज्ज्ज तुम्हारे मज़बूत लंड से मुझे गर्भवती कर दो मैने 5-6 जबरदस्त 
धक्के मारे और लंड को उसके बच्चे दानी के मुँह पर रख कर लंड से 
फ़ौवारा चला दिया.. क्या जबरदस्त पिचकारी थी.. उसने अपने पैर मेरी कमर पर 
जाकड़ दिए और मुझसे चिपक गयी.. मेरे लंड की गरम पिचकारी से वो भी झाड़ 
गयी थी.. हम कुछ देर ऐसे ही पड़े रहे फिर मैं उठा और अपने लंड को बाहर 
खींचा.. वो खून और दोनो के जूस से लथपथ हो रहा था.. और उसकी 
चूत..वो तो मुँह खोले सब माल बाहर निकाल रही थी..उसका शेप ओ जैसा हो गया था. मैने कहा बाथरूम मे चलते है.. उसने उठने की कोशिश की फिर आअहह.. .उउईई करते हुए लेट गयी.. उसका पैर कांप रह थे.. मैने 
सहारा देकर उसे उठाया.. तब तक शाम के 5.30 हो गये थे.. हम बाथरूम मे 
फ्रेश हुए.. उसकी नंगी जवानी को देख कर मेरा लंड फिर तय्यार होने लगा.. 
उसने साबुन से मेरे लंड को सॉफ किया.. उसका हाथ लगते ही वो फिर गुर्राने लगा.. 
हम बाथरूम से लौटे और नंगे ही बेड पर लेट गये.. मैने उसे रात के 9 बजे 
तक और 2 बार चोदा ..अलग अलग पोज़ मे एक बार तो उसे उसकी किचन टेबल पर 
बैठा के मेरे लंड पर झूला झूलाया.. उसका बाद से मैं उसे चोदने ठीक 4.30 
पर उसका घर जाता था और मैने उसे 2 बार प्रेग्नेंट किया लेकिन उसको पति के 
डर से अबॉर्षन करवाना पड़ा.. तीसरी बार उसने किसी तरह अपने पति से 
चुदवाया.. और मेरे बच्चे को जनम दिया जो कि आज 8 साल का है. उसने मुझे कहा था कि ये तुम्हारी गुरु दक्षिणा है अपने गुरु के लिए
 
ज़ोर का झटका धीरे से

मैं जब कॉलेज मे पढ़ती थी, तो हमारा सात लड़कियों का ग्रूप था. लेकिन उन सब मे पल्लवी मेरी खास सहेली थी. वो एक छ्होटे गाओं से आई थी. इस शहर मे पेयिंग गेस्ट बन के रहती थी. ऊम्र के हिसाब से हमको भी रोमॅन्स और सेक्स की बातें अच्च्ची लगती थी. हम लड़कों को देखते थे थे और उनके बारे मे बात किया करते थे. दिन मस्ती से गुज़र रहे थे. लेकिन हमेशा समय एक सा नही रहता.

जब हमारा कॉलेज का पहला साल पूरा हो रहा था, तो पल्लवी के पिताजी का अचानक देहांत हो गया. वैसे भी वो लोग ग़रीब थे. अब तो कॉलेज की पढ़ाई करना तो दूर रहा, घर चलना मुश्किल हो गया. उसके छ्होटे भाई बहन भी थे. मैं भी सहेली होने के नाते चिंतित थी, पर उसे पैसों की मदद करनेकी स्थिति हमारी ही नही थी. मुझे लगा, हमारा साथ च्छुत जाएगा. वो पढ़ नही पाएगी. लेकिन भाग्या को कुछ और मंज़ूर था. उसकी परिस्थिति से वाकिफ़ किसी दलाल ने उसे संपर्क किया और वो कॉल गर्ल बन गयी. उसकी मा को पता था. पर वो भी क्या करती ?

वो दिन मे कॉलेज अटेंड करती और रात को अपना काम करती. फिर तो वो अपने तरह तरह के अनुभव हमे सुनती थी. शुरू मे उसके दिल मे ग़लत काम का डंख रहता था, पर बाद मे वो सब निकल गया. उल्टा उसे मज़ा आने लगा. वो इतने रोचक ढंग से अपने अनुभव मुझे सुनती की मुझे भी उसकी तरह कॉल गर्ल बनने का जी कर जाता था. पर मैं ऐसा ना कर पाई. मुझे लगता था मैं जीवन की उन खुशियों को मिस कर रही हूँ, जिसे पल्लवी पा रही है. इसी तरह हमने पढ़ाई पूरी कर दी. सब बिखर गये. पल्लवी मुंबई चली गयी. वहाँ ज़्यादा स्कोप था उसके लिए.

मेरी मँगनी हो गयी. वो दूसरे गाओं से थे. तो मँगनी के बाद मुलाकात कम हुई. हां, हम लव लेटर और मैल से संपर्क मे थे.

शादी तय हो जाती है तो लड़कियों को सहेलियाँ ज़्यादा याद आती है. मुझे भी पल्लवी याद आई. अब कॉलेज को ही एक अरसा हो गया था. मैने मुंबई आने का फ़ैसला किया और पिताजी से रज़ा ले कर निकल पड़ी.

लंबे समय के बाद मैं आज उसे मिल रही थी. दोनो ने बहोट बाते की. दिनभर हम बात करते थे. रात होते वो अपने धंधे पर चली जाती थी. उसके चार एजेंट थे, जो उसके लिए बुकिंग किया करते थे. अब तो वो अलग अपना फ्लॅट ले कर रहती थी.

एक शाम हम बातें कर रहे थे की एक फोन आया. फोन पर बात कर के वो चिंतित हो गयी.

मैने पुचछा ; “क्या हुआ ? कोई समस्या ?”

उसके चेहरे पर उलज़ान नज़र आई. फिर उसने कहा ; “हां, समस्या तो है. लेकिन तू कुछ नही कर सकती.”

मैने कहा ; “फिर भी, बता तो सही.”

वो बोली ; “मेरा आज रात का होटेल गौरव का बुकिंग था. उसका 5000 नक्की हुआ है. लेकिन अभी जो फोन आया, वो दूसरे एजेंट का था. वो फुल नाइट, तीन आदमी का ऑफर लाया है.”

मैने कहा ; “तू अगर तीन आदमी पूरी रात नही सह सकती तो ना कर दे उसे. इस मे क्या उलज़ान है ?”

वो मुझ पर बिगड़ी ; “अर्रे तू कुछ समज़ाती नही है. पैसे मिलते हो तो मैं तीन क्या पाँच को भी ज़ेल लूँ. और यहाँ तो 25000 मिल रहे है.”

अब मुझे उलझन हुई, मैने कहा ; “तो स्वीकार कर ले.”

वो मूह नाचते मेरी नकल करते बोली ; “वा वा, स्वीकार कर ले, अच्च्ची सलाह दी. फिर वहाँ गौरव मे कौन जाएगी ? तू ?”

अब मैं बात समझी. इनके धंधे मे हां करनेके बाद ना नही कर सकते. नही तो वो एजेंट साथ छ्चोड़ देगा. पल्लवी को यह 25000 चाहिए थे, लेकिन 5000 वाला काम ले कर फाँसी थी.

पर उसके आखरी सवाल - “फिर वहाँ गौरव मे कौन जाएगी ? तू ?” – से मैं चौंकी ? उसने तो गुस्से मे ही कह दिया था. मगर मुझे कॉलेज के वो दिन याद आ गये जब उसके रोचक अनुभव सुन के मेरा भी कॉल गर्ल बनाने का जी करता था. आज मौका पाते ही वो पुरानी इच्च्छा प्रबल हो उठी, और मैने कह दिया ; “ हां, मैं जौंगी वहाँ, बस?”

वो आश्चर्या से मेरी और देखती ही रह गयी. उसकी नज़र मे सवाल था. बिना कुछ कहे वो मेरी और प्रश्ना भारी निगाह से देखती रही. मैं क्या जवाब दूं ? खुद मैं भी हैरान थी. वो पुरानी इच्च्छा का बीज इस तरह बड़ा हो के मेरे सामने आएगा, मैने कभी सोचा भी ना था. लेकिन वो भी मेरी अंतरंग सहेली थी. मेरी राग राग से वाकिफ़ थी. मेरे चेहरे पर बदलते रंगो को देख कर बोली ; “ ठीक है, पर बाद मे पचहताएगी तो नही ?” मैने नकार मे सिर हिलाया.

फिर तो उसने मुझे सारी सलाह दी. समय होते उसने एजेंट से कन्फर्मेशन भिजवा दिया की हू समय से पहुँच रही है. मुझे पल्लवी बनकर ही जाना था. ग्राहक नया था, तो वो उसे पहचानता नही था. पल्लवी मुझे होटेल पर छ्चोड़ गयी.

मैं लिफ्ट से रूम पर पहुँची. गाभहारते हुए लॉबी पसार की. रूम खोजा और डोर बेल बजाने जा रही थी की देखा की दरवाज़ा खुला है. मैं हल्के से अंदर दाखिल हुई और दरवाज़ा बाँध कर लिया. अंदर गयी, तो कोई नज़र नही आया… फिर ख़याल आया, बातरूम से आवाज़ आ रहा है, कोई नहा रहा है. मैं सोफा पर बैठी, इंतेज़ार करने के लिए. समय पसार करने के लिए कोई मॅगज़ीन धहोँढने के लिए नज़र दौड़ाई तो सेंटर टेबल पर पड़ी चित्ति पर ध्यान गया, लिखा था , “पल्लवी, ई गॉट कन्फर्मेशन फ्रॉम एजेंट तट योउ अरे रीचिंग इन टाइम. अनड्रेस युवरसेल्फ आंड जाय्न मे इन बात. “ मैं स्तब्ध हो गयी. मैं पल्लवी की जगह आ तो गयी, लेकिन वास्तविकता अब मेरे सामने थी. ये जनाब तो अंदर मेरा इंतेज़ार कर रहे है. मैने हिम्मत बटोरी, और अपने सारे कपड़े निकल दिए. पूरी नंगी हो कर धीरे से मैं ने बाथरूम का दरवाज़ा खोला.

वो नहा रहा था. शवर बाँध था, पर वो उसके नीचे खड़ा था. उसकी पीठ मेरी और थी. पूरे बदन पर साबुन लगा चक्का था. मूह पर भी साबुन था. वो मुझे देख नही पा रहा था. मैने राहत की साँस ली. मैं नज़दीक गयी और उसको पिच्चे से ही लिपट गयी. मेरे बूब्स उसकी पीठ पर टच हुए. दोनो को मानो करेंट लगा. मैने अपने हाथ उसकी च्चती पर फिराए, और उसकी पीठ पर अपने गाल घिसने लगी. (किस करने जैसी तो बिना साबुन की कोई जगह ही नही बची थी) उसने भी अपने हाथ पिच्चे फैलाए और मेरी जाँघो पर फिरने लगा. कोई कुछ बोल नही रहा था. मान-वुमन मॅजिक अपना कम कर रहा था. च्चती पार्स मैने हाथ नीचे सरकए. इन सारे वक्त मेरे बूब्स तो उसकी पीठ पर ही चिपके हुए थे. मेरे हाथ नीचे सरकते उसके कॉक तक पहुँच गये. मैं पहली बार, किसी मर्द के इस भाग को छ्छू रही थी. कॉक कड़क होने लगा. मैं उसे सहलाती रही, दबाती रही. वो “श, श” करने लगा. मैं अब तक जो पीठ पर बूब्स चिपका के गाल घिस रही थी, धीरे से नीचे की और सर्की. मैं बूब्स उसकी पीठ पर घिसते हुए नीचे जा रही थी. उसके हिप्स को अपने बूब्स से दबाती हुई मैं और नीचे उतार गयी. उसके हिप्स पर गाल घिसे. फिर मैं वहाँ से आयेज की और आई और उसका लंड मूह मे लिया. उसके हाथ मेरे सिर पर आ गये थे. मैं ने उसे पानी से साफ करके चूसना और चारों औरसे किस करना शुरू किया. साथ मे मैं उसके बॉल्स से भी खेल रही थी. दोनो के बादन मे आग लग चुकी थी. जब जी भरा तो मैं उपर उठी. अपने बूब्स उसके आयेज के बदन पर घिसती हुई मैं उपर उठी. मैने उसके होठ पर किस करना चाहा. पर वहाँ भी साबुन था. तो मैने शवर चालू किया. फुल फोर्स मे पानी बहना शुरू हुआ. मूह साफ हो गया, उसने आँखे खोली और हम दोनो चौंके……….दोनो के मूह से एक साथ एक ही शब्द निकला, “ तुम ???????? ” वो मेरा मंगेतर था !!!!!!!!!!!!!

दोनो के चेहरे पर एक साथ तरह तरह के भाव ज़लाक रहे थे ; शॉक, डिसबिलीफ, अंगेर, रिपेंटेन्स…..आंड वॉट नोट ?
 
एक हसीन ग़लती--1

दोस्तो मैं निशा अपनी कहानी आप को बताने जा रही हू दोस्तो मुझे आशा है कि आपको मेरी कहानी मेरी मजबूरी पसंद आएगी . मेरी शादी मनीष के साथ 2 साल पहले हुई थी . और मैं मनीष के साथ बहुत खुशी से अपना जीवन गुज़ार रही थी

एक दिन मनीष के गाँव से मेरी सासू का फोन आया कि मनीष के चचेरे भाई विकास की शादी है . मैं और मनीष शादी से 8 दिन पहले ही गाँव आ गये . शादी से एक दिन पहले की बात है पूरा घर रिश्तेदारो से भरा पड़ा था . मुझे बहुत तेज पेशाब लगा था लेकिन कोई भी बाथरूम खाली नही था . मैने छत पर जाकर पेशाब करने की सोची . जब मैं छत पर गई तो वान्हा मुझे स्टोर रूम दिखाई दिया . मैने एक डिब्बा लिया और उसे लेकर स्टोर रूम मे आ गई . स्टोर रूम के दरवाजे मे कुण्डी नही थी मैने उसे ऐसे ही भिड़ा दिया और डब्बे को नीचे रख कर उसमे पेशाब करने लगी . मुझे पेशाब करते हुए ये अहसास तक नही हुआ कि कोई दरवाजे को खोल कर अंदर आ चुका है और मुझे पेशाब करते हुए देख रहा है . अचानक मेरी नज़र उस पर पड़ी तो मैं हड़बड़ा कर उठी . मैं पेशाब अभी पूरी तरह नही कर पाई थी . जिसकी वजह से मेरे पेट मे दर्द हो रहा था .

वो कोई और नही मुकेश था . दोस्तो मुकेश एक 48-50 साल का आदमी था जो मनीष का दूर के रिश्ते से अंकल लगता था . जब मैं गाँव आई थी तब मैने उसे पहली बार देखा था . जब मेरी सासू ने उसके पैर छूने के लिए कहा तब मैं उसके पैर छूने के लिए झुकी तो उसने मुझे उठाया और कहा अरे नही बहू तुम्हारी जगह यहाँ नही है . वो मुझे बड़े अश्लील ढंग से घूर रहा था उसकी नज़र मेरी छाती पर गढ़ी हुई थी . उस समय मुझे बहुत गुस्सा आया था लेकिन शरम के मारे चुप रह गई थी . तब से वो मुझे जहाँ भी देखता उसकी नज़र हमेशा मेरी छाती पर ही होती . मुझे उसकी आँखो मे हमेशा वासना ही नज़र आती थी . आज शायद उसे लगा कि मैं छत परअकेली हूँ और वो मौके का फ़ायदा उठाने के लिए मेरे सामने खड़ा वो मुझे बड़ी बेशरामी से घूर रहा था . उसके होंठो पर कुटिल मुस्कान फैली हुई थी . अब वो मेरी चुचियो को एक टक घूर रहा था .

मुझे बहुत गुस्सा आया और मैने उसे गुस्से से कहा तुम्हे शरम नही आती . तुम यहाँ क्या कर रहे हो . क्या तुम्हे अपनी उमर का ख्याल नही है . मुकेश बड़ी बेशर्मी से बोला जानेमन मैं तो तुम्हारी चूत देखने के लिए यहाँ आया था . क्या कातिल जवानी है तुम्हारी कसम से एक बार अगर तुम मुझे अपनी दे दोगि तो मैं धन्य हो जाउन्गा .

मुझे उसकी बात पर बहुत गुस्सा आया और मैने उसके गाल पर एक ज़ोर दार थप्पड़ रसीद कर दिया . और कहा आइन्दा मेरे पास भी फटके तो मुझसे बुरा कोई नही होगा .

एक पल को तो मुकेश की आँखो के आगे सितारे घूम गये. फिर कुछ संभाल कर वो बोला, “जितनी ज़ोर से तूने ये तमाचा मारा है ना, उतनी ही ज़ोर से तेरी गांद ना मारी तो मेरा नाम मुकेश नही.”

मैं उसे कुछ बोलने ही वाली थी कि मुझे स्टोर के बाहर कुछ लोगो की आवाज़ सुनाई दी. मेरी तो साँस ही अटक गयी. हे भगवान अब क्या होगा. लोगो ने मुझे इस सुवर के साथ देख लिया तो मेरी जिंदगी बर्बाद हो जाएगी. ना जाने लोग क्या क्या समझेंगे.

“लगता है कुछ लोग टहलने के लिए उपर आ गये हैं.” मुकेश ने कहा.

“श्ह्ह चुप रहो तुम कोई सुन लेगा.” मैने धीरे से कहा.

“कितना अच्छा मोका दिया है भगवान ने हमें. हमें इस मोके को गँवाना नही चाहिए.” मुकेश ने धीरे से कहा.

“क्या मतलब है तुम्हारा.”

“देखो ना स्टोर रूम में हम अकेले हैं. दरवाजा बंद है. कुछ भी हो सकता है.” मुकेश ने नशीली आवाज़ में कहा. उसकी बातों में हवस सॉफ दीखाई दे रही थी.

“तुम्हे बिल्कुल शरम नही आती मेरे साथ ऐसी बेहूदा बाते करते हुवे. क्या तुम्हे नही पता कि मैं शरीफ घर की बहू हूँ. ऐसी बाते शोभा नही देती तुम्हे.”

“नाटक मत कर मुझे सब पता है तेरे बारे में.” मुकेश ने कहा.

“तुम्हे कुछ नही पता. चुपचाप खड़े रहो नही तो लोग सुन लेंगे.” मैने आँखे दिखाते हुवे कहा.

“तो सुन लेने दो मेरा क्या जाता है. जो बिगड़ेगा तेरा ही बिगड़ेगा.”

उसकी बात में दम था. मुझे समझ नही आ रहा था कि क्या करूँ. उपर से मैं अभी थोड़ा ही पेसाब कर पाई थी और प्रेशर फिर से बढ़ने लगा था. अब तो और भी मुसीबत हो गयी थी. ना मैं बाहर जा सकती थी ना ही अंदर रह सकती थी. मगर मेरा प्रेशर बढ़ता ही जा रहा था. आख़िर मुझे बोलना ही पड़ा, “तुम थोड़ा घुमोगे.”

“क्यों घूमू मैं.”

“घूम जाओ प्लीज़ मेरा पेट फटा जा रहा है.”

“पेट फटा जा रहा है पर क्यों, ज़्यादा खा लिया था क्या.”

“बाते मत बनाओ, एक तो एन वक्त पर आ कर मुझे टोक दिया अब बाते बना रहे हो, थोड़ा घूम जाओगे तो क्या बिगड़ जाएगा तुम्हारा.”

“मेरे सामने कर लेगी मूत तो तेरा क्या बिगड़ जाएगा. वैसे भी तेरी गांद मैं देख ही चुका हूँ. कर ले ज़्यादा शर्मा मत.”
 
मैं शरम से पानी पानी हो गयी. “नरक में जाओगे तुम, तुम्हे शरम नही आती.” मैने नज़रे झुका कर कहा.

“मुझे तो नही आती पर तुम बहुत शर्मा रही हो.”

“घूम जाओ ना प्लीज़” मैने मक्खन लगाते हुवे कहा क्योंकि मेरा पेट फटा जा रहा था.

“ ठीक है मैं घूम जाता हूँ. कर ले आराम से.” वो घूम कर खड़ा हो गया.

“पीछे मत मुड़ना.” मैने डब्बे को सरकाते हुवे कहा. मैने आराम से तस्सली से किया पेसाब मगर मेरी नज़रे उसी पर टिकी थी. जब मेरे पेसाब की आहट बंद हो गयी तो वो तुरंत घूम गया. मैने बड़ी जल्दी की साडी नीचे करने की मगर फिर भी उसने मेरी गुलाबी योनि देख ही ली.”

“हाई राम क्या फांके हैं तेरी चूत की, खाने का मन कर रहा है.” उसने बेशर्मी से आँख मारते हुवे कहा.

मैं तो शरम से पानी पानी हो गयी. मुझसे कुछ भी बोले नही बन रहा था. मेरी लाख कोशिसो के बावजूद उसने मेरी योनि देख ही ली थी और अब ऐसी बाते कर रहा था. साथ ही साथ वो बेशर्मी से अपनी पॅंट में तने हुवे तंबू को सहला रहा था. मेरा तो शरम से चेहरा लाल हो गया था. अगर बाहर लोग ना होते तो तुरंत वहाँ से चली जाती मैं.

“एक बार एक अँग्रेजन की ली थी मैने. उसकी चूत की फांके भी बिल्कुल तेरी चूत जैसी थी. बिल्कुल गोरी चित्ति. एक भी बॉल नही था उसकी चूत पर.”

मैं तो और भी शरम से लाल हो गयी. अंजाने में मेरे मूह से निकल गया, “अंग्रेज कहाँ मिली तुम्हे.”

“गाँव में आई थी वो अपने पति के साथ. उसका पति कोई क्या कहते हैं रिचर्च कर रहा था.”

“रेचर्च नही रिसर्च.”

“हां हां कुछ ऐसा ही. मैं अनपढ़ गँवार क्या जानू ये सब. जो भी हो बहुत मज़ा दिया था उसकी गुलाबी चूत ने. तेरी चूत ने उसकी याद दिला दी आज.”

मुझे यकीन नही हो रहा था कि कोई अँग्रेज़ लड़की इस सुवर के चक्कर में आ सकती है. खैर मुझे कोई मतलब नही था इन बातों से.

“यार मुझे भी पेसाब आया हुआ है. मैं क्या करूँ अब.”

“थोड़ी देर रुक जाओ. लोग जाते ही होंगे.”

“मुझे नही लगता कि कोई हिलेगा यहाँ से अभी. मेरा भी पेट फटा जा रहा है. मैं करने जा रहा हूँ इस डब्बे में.” कहते हुवे उसने अपनी ज़िप खोल ली. कही मुझे उसका औजार ना दिख जाए इसलिए मैं तुरंत घूम गयी. उसने आराम से बैठ कर डब्बे में पेसाब किया.

“अब हमारे पेसाब मिल गये आपस में. काश के तेरी चूत से मेरा लंड भी मिल जाए ऐसे ही हिहिहीही.”

मैं तो हैरान रह गयी उसकी बात पर. वो मूत कर खड़ा हो गया. मैं भी वापिस घूम गयी. मुझे लग रहा था कि कही वो अपना लिंग बाहर ही निकाले ना खड़ा हो. मगर सूकर है वो अंदर था. मगर उसने अंदर से ही तंबू बना रखा था उसकी पॅंट में. उसे देख कर यही लगता था कि पॅंट के पीछे कोई भारी भरकम चीज़ है.

“कहो तो निकाल लूँ बाहर.” उसने बेशर्मी से तंबू को सहलाते हुवे कहा.

मैने तुरंत शरम से अपनी नज़रे घुमा ली.

“लगता है तू देखना चाहती हैं मेरे लौदे को मगर कहने से शर्मा रही है. ले निकाल रहा हूँ तेरे लिए मैं इसे.” और उसने अपनी ज़िप खोलनी शुरू कर दी.

“नही नही ऐसा कुछ नही है. मैं तो ऐसे ही बस.”

“ऐसे ही बस क्या? बोलो नही तो निकाल लूँगा.”

“हैरान थी इतने बड़े तंबू को देख कर.” मुझे बोलना ही पड़ा.
 
“लंड बड़ा हो तो ऐसा ही तंबू बनता है हिहिहीही.” और उसने एक झटके में अपने लिंग को मेरी आँखो के सामने झूला दिया. फिर मैने जो देखा मेरी तो आँखे फटी की फटी रह गयी. मैने सपने में भी इतने बड़े और मोटे लिंग की कल्पना नही की थी. अभी तक मुझे पीनू का ही बड़ा लगता था. मगर अब मेरे सामने पीनू के लिंग से भी बड़ा और मोटा लिंग झूल रहा था. वो बिल्कुल विसालकाय राक्षस की तरह मेरे सामने ताना था जैसे की मुझे खा जाएगा. उसका सूपड़ा कुछ ज़्यादा ही मोटा था. पीनू के सूपदे से भी मोटा. लिंग के बसे के नीचे उसके आँड लटक रहे थे जो कि बालों से घिरे थे.

दोस्तो आप सोच रहे होंगे कि ये पीनू कौन है तो मैं आपको बता दूं कि एक बार मनीष का चचेरा भाई पीनू शहर मे एग्ज़ॅम देने आया था तो वो हमारे ही यहाँ ही रुका था . पीनू बड़ा हरामी था उसने मुझे अपने जाल मे फाँस लिया था . और मेरी चुदाई भी कर दी थी . दोस्तो वो कहानी फिर कभी . अब आते है असली कहानी की तरफ...

“देखा रह गयी ना दंग. जो भी देखता है दंग रह जाता है. वो अँग्रेज़ भी दंग रह गयी थी देख कर हिहिहीही बिल्कुल तेरी तरह.”

और मैं सकपका गयी और खुद को कोसने लगी कि क्यों मैं उसके उस को यू देख रही थी. मैने उसके लिंग से नज़रे हटा ली.

“तू तो बुरा मान गयी. देख ना जी भर के ये तेरे लिए ही तो खड़ा है.”

मैने उसकी तरफ देखना सही नही समझा क्योंकि मुझे कुछ कुछ हो रहा था. मैं अभी भी हैरान थी कि आख़िर किसी का इतना बड़ा कैसे हो सकता है. मैने बचपन में एक बार एक गधे को देखा था जो कि एक गधि पर चढ़ने की कोशिस कर रहा था. उसका मोटा और लंबा लिंग आज फिर मेरी नज़रो में दौड़ गया. यू मुकेश भी उस गधे से कम नज़र नही आ रहा था.

“हाई राम ये मेरे अंदर घुसा तो मेरी तो जान निकल जाएगी.” मैने सोचा मगर फिर मुझे लगा च्ीी मुझे ऐसी गंदी बाते नही सोचनी चाहिए.

“दीखा ना अपनी चूत की फांके. देख मैं भी तो तुझे दीखा रहा हूँ.”

“मैं तुम्हारी तरह बेशरम नही हो सकती हूँ. और मैने तो तुम्हे नही कहा दीखाने को. वापिस अंदर कर लो इसे.” मगर ये बोलते हुवे भी मेरी नज़रे बार बार उसके विशालकाय लिंग पर जा रही थी बार बार.

“खुद तो बार बार देख रही है मेरे लॉड को और मुझे कुछ भी नही दीखाना चाहती. ठीक है मैं जा रहा हूँ बाहर.” उसने लिंग को वापिस पॅंट में डाला और चलने लगा.

“रूको कहाँ जा रहे हो. अपनी नही तो मेरी तो चिंता करो. मेरा घर बर्बाद हो जाएगा.” मैं गिड़गिडाई.

“मुझे क्या मिल रहा है यहाँ खड़े हो कर कुछ भी तो नही. तुम तो मज़े से मेरे लंड के नज़ारे ले रही हो पर मुझे क्या मिल रहा है.”

“देखो मुझे कोई नज़ारा लेने का शॉंक नही है. तुम चुपचाप खड़े रहो बस.”

“नही मुझे तुम्हे नंगा देखना है, नही तो मैं जा रहा हूँ.”

ये सुन कर मेरी तो शरम के मारे जान निकल गयी और उस पर गुस्सा भी आया.

“ये क्या कह रहे हो. बाहर इतने लोग घूम रहे हैं और तुम्हे ये सब सूझ रहा है.”

“चिंता मत करो वैसे भी हम इस आल्मिरा के पीछे हैं. अंदर कोई झाँकेगा भी तो बाहर से झाँक कर ही चला जाएगा, क्योंकि उसे लगेगा कि केवल स्टोर रूम है.”

“हां पर मैं ये नही कर सकती, और क्यों करूँ मैं ये सब?”

“ना करो मैं जा रहा हूँ.”
 
अब मैं मुसीबत में फँस गयी. ना ना करते बन रहा था ना हां करते. वो धीरे धीरे दरवाजे तक पहुँच गया. मैने धीरे से आवाज़ लगाई रूको. वो तुरंत मूड कर आ गया.

“क्या फ़ैसला किया तुमने?”

“ठीक है तुम देख लो जो देखना है मेरा. पर इसमे कपड़े उतारने की क्या ज़रूरत है.”

“ज़रूरत है, बिना कपड़े उतारे औरत खूबसूरत नही लगती हिहीही.”

मैं तो शरम से मर गयी.

“अब जल्दी करो नही तो मैं शरम से मर जाउन्गा.

“क्या तुमने अँग्रेज़ को भी ऐसे ही फँसाया था. मैने उसे बातों में लगाने की कॉसिश की.

“पहले अपना ब्लाउस उतारो फिर बताता हूँ.”

“उतार दूँगी पर वादा करो तुम छुओोगे नही.”

“ठीक है वादा करता हूँ.”

मैं सहमी से खड़ी रही उसके सामने.

“सोच क्या रही है जल्दी कर.” वो बोला और अपनी ज़िप खोलने लगा. उसने फिर से अपने लंबे और मोटे लिंग को बाहर निकाल लिया.

क्रमशः................
 
एक हसीन ग़लती--2

गतान्क से आगे.........

मैने काँपते हाथो से अपने ब्लाउस के हुक खोले और धीरे धीरे उसे सरकाने लगी. उसकी आँखे मेरी छाती से ही चिपकी थी. मैं तो शरम से मरी जा रही थी. मैने धीरे धीरे ब्लाउस उतार दिया. मेरे दूध जैसे उभार उसकी आँखो के सामने थे. मैने ब्रा नही पहनी थी ब्लाउस के नीचे क्योंकि ब्लाउस ऑलरेडी ब्रा का काम कर रहा था. उसकी तो आँखे चमक उठी मेरे उभार देख कर. उत्तेजित तो मैं भी थी थोड़ा थोड़ा और ये उत्तेजना मेरे तने हुवे उभारों से सॉफ झालक रही थी. वो भी इसे भाँप गया और बोला.

“तू भी गरम हो रही है मेरी तरह. देख कैसे तनी हुई हैं तेरी चुचियाँ.” वो अपने लिंग के सूपदे को सहलाने लगा. उसका सूपड़ा उसके प्रेकुं के कारण चमक उठा था. मैं तो शरम से मरी जा रही थी.

“चलो अब ये साडी भी उतारो.”

“देखो बाहर लोग हैं, साडी उतारनी ज़रूरी है क्या.”

“हां ज़रूरी है मेरी जान तुम नही समझोगी. उतारो जल्दी नही तो मैं चला.”

मेरी दुखती रग अब उसके हाथ में थी. मरती क्या ना करती मुझे साडी उतारनी पड़ी. मेरे हाथ काँप रहे थे. अब मैने साडी उतार कर एक तरफ रख दी. अब मैं सिर्फ़ पेटिकोट में थी.

“चल ये भी उतार अब.”

मैं सहम उठी. पूरी नंगी होने का डर सता रहा था मुझे. उसके साथ स्टोर में नंगा होना ख़तरे से खाली नही था. मैने उसे बात में उलझाने की कोशिस की.

“तुम्हारा ये मुझे घोड़े की याद दिलाता है.” मैने कहा.

“मैने एक बार घोड़ी की भी मार रखी है हिहिहीही.”

“क्या बोल रहे हो झूठ?” मैं तो हैरान ही रह गयी.

“हां तब तक कोई औरत नही मिली थी. बड़ी मुस्किल से घुसने दिया था साली ने.”

“उसने लात नही मारी तुम्हे?” मैने उत्सुकता में पूछा.

“नही उसकी चूत में उंगली कर कर के मैने उसे गरम कर दिया था और उसे मुझे चुपचाप देनी ही पड़ी.”

“उसी के साथ शादी कर लेनी चाहिए थी तुम्हे सिर्फ़ वो ही ले सकती है इतना बड़ा.” मेरे मूह से अचानक निकल गया.

“क्यों तू नही ले सकती क्या?”

मैं तो शरम से पानी पानी हो गयी.

“चल उतार अब ये पेटिकोट भी और पॅंटी भी.”

अब समझ में नही आ रहा था कि उसे किस बात में उल्झाउ. “उतारती है कि नही या मैं जाउ.” वो बोला.
 
मैं काँप उठी. अब कोई चारा नही था. मैं आधी नंगी थी ऐसे में वो बाहर निकला और कोई अंदर आ गया तो मैं बर्बाद हो जाउन्गि. मैने पेटिकोट का नारा खोला और धीरे से उसे नीचे गिरा दिया. वो मेरे पैरों में गिर गया. मैने पैर उस से निकाल लिए और पेटिकोट उठा कर एक तरफ रख दिया. अब मैं सिर्फ़ पॅंटी में उसके सामने खड़ी थी. मैं घबरा रही थी, शर्मा भी रही थी पर ना जाने क्यों एग्ज़ाइटेड भी थी. ये एग्ज़ाइट्मेंट मेरी गीली पॅंटी से सॉफ नज़र आ रही थी. मुकेश ने अपने सूपदे पर थूक लगाया और उसे रगड़ना सुरू कर दिया.

“हाई क्या जवानी है तेरी. अब ये पॅंटी भी उतार दे तो मज़ा आ जाएगा.”

“अब ये तो रहने दो मेरे बदन पर मुझे शरम आ रही है.” मैने कहा

“नही मेरी जान ये तो उतारनी ही पड़ेगी तुम्हे वरना मुझे मज़ा नही आएगा.”

मैने काँपते हाथों से पॅंटी को एक धीरे धीरे नीचे सरकाया. जब मेरी योनि का उपरी हिस्सा उसकी नज़रो की सामने आया तो वो अपने लिंग को ज़ोर ज़ोर से हिलाने लगा. मैने धीरे धीरे पॅंटी नीचे सरका दी घुटनो तक.

“वाह क्या नज़ारा है. यही है जन्नत. नही नही ये चूत तो उस अँग्रेजन की चूत से भी प्यारी है. इसकी फांके बिल्कुल जुड़ी हुई हैं आपस में जैसे की कुँवारी चूत की होती है. पीनू भी खोल नही पाया इन फांको को. और इन्हे देख कर लगता है कि मनीष का छ्होटा सा लंड है. है ना सच कह रहा हूँ ना मैं.”

“तो हर किसी का इतना बड़ा होता है क्या. मनीष का जितना भी है मैं खुस हूँ उसके साथ.”

“खुस तो रहेगीं ही तू क्योंकि पत्नी है तू उसकी मगर तेरी चूत वो मज़ा नही ले पाएगी जिसकी की ये हकदार है. यार मैं लूँगा तेरी अब.”

मैं तो शरम से लाल हो गयी. बात ही कुछ ऐसी की थी उसने. मेरे पूरे शरीर में बीजली सी दौड़ गयी थी.

“देखो ऐसी बाते मत करो. मुझे कुछ कुछ होता है. और तुमने वादा किया था कि छुओोगे नही मुझे.”

“तेरी जैसी हसिनाओं को चोदने के लिए झुटे वादे करने पड़ते हैं वरना मेरे जैसे को तेरे जैसी भोसड़ी कहाँ मिलेगी.” वो बोला और आगे बढ़ कर मेरे से लिपट गया.

“आहह क्या कर रहे हो तुम छ्चोड़ो नही तो मैं चिल्लाउन्गि.”

“चील्लाओ ज़ोर से चील्लओ पर देख लो तुम्हारा ही बिगड़ेगा जो भी बिगड़ेगा हिहिहीही.” उसने बोला और मेरी योनि की फांको को मसल्ने लगा. ना चाहते हुवे भी मेरे शरीर में बिजली की एक लहर सी दौड़ गयी.

उसकी मोटी मोटी उंगलियाँ मेरी योनि की फांको को कभी रगड़ रही थी और कभी फैला रही थी. मैं तो मदहोश होती जा रही थी.

“क्यों कर रहे हो तुम मेरे साथ ऐसा आआहह छ्चोड़ो मुझे.” मैने नितंबो को झटका देते हुवे कहा. दरअसल मेरी योनि मचल उठी थी उसकी उंगलियों की चुअन के कारण और अब मैं खुद ही हिल हिल कर उसके हाथो को और ज़्यादा फील करना चाह रही थी अपनी योनि पर.

अचानक उसने मेरी योनि में उंगली डाल दी. “आआहह नही प्लीज़ आहह.”

वो मेरे आगे घुटनो के बल बैठ गया. उसकी उंगली धँसी हुई थी मेरी योनि में और मैं अपने नितंबो को आगे पीछे हिला रही थी. चाहती तो हट सकती थी पीछे मगर नही मैं हट ही नही पा रही थी. मैने उसकी तरफ देखा तो वो मेरी तरफ मुस्कुरा रहा था.

“अब ये चूत मेरी है, मुझे इसे मारने से कोई नही रोक सकता.” उसने अपने एक हाथ से अपने मोटे लिंग को सहलाते हुवे कहा. मैने शरम से आँखे बंद कर ली.

अचानक वो रुक गया और मैने सवालिया नज़रो से उसकी तरफ देखा. उसकी नज़रे कुछ ढूंड रही थी. तभी उसकी नज़र एक बोरी पर गयी. उसने वो उठा ली और फर्स पर बिछा दी.

“कुतिया की तरह मर्वओगि या सीधे लेट कर.” वो बेशर्मी से बोला.

मैं शरम से लाल हो गयी. “देखो कोई आ गया तो मुसीबत हो जाएगी.”

“कोई नही आएगा. वैसे भी हम इस आल्मिरा और संदूक के पीछे हैं.” उसने कहा और मेरे उभारों को मूह में ले लिया. मैं कराह उठी और उसके सर को थाम लिया दोनो हाथो से. ऐसा लग रहा था मैं तुरंत झाड़ जाउन्गि. पर मैं खुद को थामे रही.
 
अचानक वो हट गया और बोला, “कैसे दोगि बोलो ना.”

“जैसे तुम चाहो,” मैने बोल कर चेहरा ढक लिया हाथों में.

अचानक उसके हाथ फीसलते हुवे मेरे नितंबो तक जा पहुँचे.

“अरे वाह ये तो बड़े मुलायम हैं. ज़रा घूमना तो.”

मैं शर्मा गयी. उसने मुझे अपने आगे घुमा दिया और वो घुटनो के बल बैठ गया और मेरे नितंबो की दोनो गोलाईयों को सहलाने लगा.

“ओह यार क्या गांद है तेरी. ऐसी गांद आज तक नही देखी मैने.”

मैं शरम से लाल हो गयी.

उसने मेरे नितंबों को फैलाया और अपनी नाक को उनकी दरार में फँसा दिया.

“उम्म्म क्या खुसबु है. बिल्कुल सॉफ रखती हो तुम गांद अपनी. यार मेरा मूड बदल गया है. मैं तेरी गांद मारूँगा अब.” उसने मेरी गांद के छेद पर उंगली घूमाते हुवे कहा.

मैं तो घबरा गयी. मैने अभी तक पीनू के लिंग से हुए दर्द को भूली भी नही थी और ये वही करने की बात कर रहा है.. और तो और इसका लिंग पीनू से मोटा और लंबा है..

“मैने अभी किसी को भी नही दी है ये, प्लीज़ आगे से ही कर लो.” मैने उस से झूठ बोलते हुए कहा

“फिर तो और भी मज़ा आएगा. कुँवारी गांद का मज़ा ही कुछ और होता है.” वो बोला और मेरी गांद में उंगली डाल दी.

“आआहह नही…..दर्द हो रहा है.” मैं धीरे से बोली.

“चलो तुम लेट जाओ पेट के बल, मैं तुम्हारे उपर लेट कर आराम से गांद मारूँगा.”

“नही नही मुझसे नही होगा ये, प्लीज़ आगे से कर लो ना. जब उंगली से ही दर्द हो रहा है तो तुम्हारा ये तो मेरी फाड़ ही देगा.” मैं गिड़गिडाई.

“नही फटेगी तुम्हारी. मैं खूब थूक लगा कर करूँगा. चिंता मत करो लेट जाओ.”

उसने मुझे बोरी पर पेट के बल लेटा दिया. मेरा मूह फर्स पर पड़ी मिट्टी पर आ टिका क्योंकि बोरी छ्होटी थी और मैं सिर्फ़ आधी ही बोरी पर थी. मैने तुरंत मूह सॉफ किया.

मेरे लेटते ही मुकेश मेरे उपर लेट गया. मैं तो दबी जा रही थी उसके बजन के नीचे. कहाँ मैं 45 किलो की कहाँ वो 90 किलो का. उसका मोटा लिंग मेरे नितंबो की दरार के उपर था और अंदर आने की कोशिस कर रहा था. मैं तो डर के मारे सहमी पड़ी थी. उपर से मुझे बाहर घूम रहे लोगो का भी डर था. रुकना चाहती थी मैं पर बात अब आगे निकल चुकी थी. ना मैं खुद को रोक सकती थी ना ही इस सुवर को. पता नही कैसा होगा अनल सेक्स. मुझे पता था कि दर्द बहुत होता है इसमे और मुकेश तो गधा था पूरा पता नही मेरे मासूम नितंबो का क्या होगा आज.

मुकेश ने मेरे नितंबो को फैलाया और और मेरे छेद पर थूक दिया दूर से. उसने तीन बार थुका मेरे छेद पर ताकि वो अच्छे से चिकना हो जाए.

“तू मेरे घर पे होती तो सरसो का तेल लगा देता तेरी गांद पर मगर यहाँ तेल कहाँ से मिलेगा. पर तू चिंता ना कर थूक से बात बन जाएगी.”

“ज़्यादा दर्द तो नही होगा ना.”

“तू चिंता मत कर थोड़ा तो होगा ही पर तू हिम्मत ना हारना.”

“आराम से डालना तुम, मुझे डर लग रहा है.” मैने धीरे से कहा.

“ऐसा कर तू दोनो हाथो से अपनी गांद जितना फैला सकती है फैला ले लंड को जाने में आसानी होगी.”

मैने दोनो हाथो से अपने दोनो नितंबों को थाम लिया और उन्हे नीचे की तरफ खींच कर उन्हे फैला दिया. अब मेरे नितंबो के बीच का गुलाबी होल उसके सामने था. उसना थोड़ा सा थूक अपने लिंग के मोटे सूपदे पर भी लगाया और फिर उसे मेरे मासूम गुलाब छेद पर टिका दिया.

“मैं एक झटका मारूँगा पहले ज़ोर से.”

“ज़ोर से क्यों आराम से करो ना.”

“तू नही समझेगी, गांद में आराम से कभी नही जाता लंड, पहला झटका ज़ोर का ही मारना पड़ता है.” वो बोला और खुद को आगे की ओर झटका दिया.

“उउऊयईीईईई मा मर गयी निकालो निकालो.” मैं दर्द से बिफर पड़ी. बेचैनी में मेरे हाथ भी मेरे नितंबो से हट गये. “निकालो इसे बाहर प्लीज़ मैं मर जाउन्गि आहह नूओ.”

“बस थोड़ी देर बस एक मिनिट सब ठीक हो जाएगा.” उसने मेरी गर्दन को चूमते हुवे कहा. वो मेरे उपर पड़ा था . वो भी पेट के बल मेरे उपर ही लेटा हुआ था. आधा लिंग अंदर धंसा हुआ था उसका मेरे नितंबो में और मैं दर्द से बहाल हो रही थी.

क्रमशः................
 
एक हसीन ग़लती--3

गतान्क से आगे.........

अभी दर्द पूरा गया भी नही था कि उसने मेरे नितंबो को खुद ही दोनो हाथो से फैला कर ज़ोर से झटका मारा मेरी तो जान ही निकल गयी. मैने अपना हाथ मूह में दबा लिया कही मैं चिल्ला ना पडू.

“हटो मुझे नही करना अनल सेक्स. ये बहुत बेकार है. जान निकल गयी मेरी.” मैं गुस्से में बोली.

मगर वो नही माना. उसने तो झटके मारने शुरू कर दिए. मैं बेबस सी पड़ी रही. वो अब मज़े से मेरी मार रहा था. उसके बोझ के नीचे मैं मरी जा रही थी.

“आआहह नो आआहह.” मैं सिसकिया लेने लगी.

“धीरे धीरे जानेमन कोई सुन लेगा.”

मुझे अब जन्नत का स्वाद आने लगा था. उसका मोटा लिंग बहुत तेज रफ़्तार से मेरे नितंब के छेद से अंदर बाहर हो रहा था. मुझे यकीन ही नही हो रहा था कि मेरे छ्होटे से छेद में उसका इतना मोटा औजार घुस्स गया था. अजीब करिश्मा था ये भी. हम दोनो पसीने से लटपथ हो गये थे.

“आहह बस रुक जाओ अब आआहह.” मैं झड़ने वाली थी.

“नही आज तेरी बहुत अच्छे से गांद मारूँगा साली हिहिहीही.” और उसने रफ़्तार और बढ़ा दी. मैं झाड़ गयी उसी वक्त. मगर जालिम नही रुका. वो मारे जा रहा था मेरी मासूम गांद को बड़ी बेरहमी से.

वो बीच बीच में मेरी पीठ को भी चूम रहा था.

“तुमने निशा को देखा क्या रमन?”

“अरे ये तो मनीष की आवाज़ है रूको.” मैने कहा.

“तो रहने दो मैं अब नही रुकने वाला.”

“नही तो भैया, क्या हुआ?” रमन ने कहा.

“पता नही कहाँ चली गयी ये अचानक. मम्मी बुला रही है उसे. अपना फोन भी नही उठा रही.”

मैने तुरंत अपना मोबाइल देखा जो कि पास ही पड़ा था मेरे. उसमे 20 मिस्ड कॉल थी. क्योंकि मोबाइल साइलेंट पे था इसलिए मुझे पता नही चला था कि मनीष कॉल कर रहा है.

“हटो मुझे जाना होगा.” मैने मुकेश को धीरे से कहा.

“अभी तो मज़ा आने लगा है. मैं अब नही रुक सकता. पूरी गांद मार कर ही रुकुंगा.” वो ज़ोर से धक्का मारते हुवे बोला.

“देखो मनीष मुझे ढूंड रहा है, कुछ तो शरम करो और कितनी देर से तो कर रहे हो जी नही भरा तुम्हारा.”

“ऐसी गांद मिलेगी मारने को तो किसका जी भरेगा. इसे तो मैं दीन रात मारता रहूं हाई क्या मस्त गांद है उफ़फ्फ़.” उसने रफ़्तार बढ़ाते हुवे कहा. मैं रुक ना पाई और फिर से झाड़ गयी.

बाहर मनीष की आवाज़ आ रही थी और अंदर ये सुवर मेरे उपर पड़ा मेरी गांद मार रहा था. अजीब से सिचुयेशन थी ये. कुछ देर बाद मनीष की आवाज़ आनी बंद हो गयी और मैने राहत की साँस ली और फिर से पूरी तरह मुकेश के धक्को में खो गयी.

मगर कुछ देर बाद दरवाजा खुला. मेरे तो पैरो के नीचे से ज़मीन ही खिसक गयी.
 
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