Incest Kahani परिवार(दि फैमिली) - Page 39 - SexBaba
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Incest Kahani परिवार(दि फैमिली)

कंचन ने उल्टा होकर अपनी दोनों टांगों को फ़ैला दिया और अपनी चूत को अपने पिता के होंठो के क़रीब रखते हुए सीधे लेट गई।
"आह्ह्ह्ह बेटी इतनी अच्छी गंध कहाँ से आ रही है। ओहहहह बेटी कहीं यह तुम्हारी चूत तो नही" मुकेश ने ख़ुशी से चिल्लाते हुए कहा । कंचन ने अपने पिता को कोई जवाब दिए बगैर उनके लंड को अपने हाथ में पकडकर चूमने लगी और अपनी चूत को पीछे धकलते हुए अपने पिता के मुँह पर दबाने लगी ।

कंचन के ऐसा करने से उसकी चूत सीधा मुकेश के होंठो पर दबने लगी । मुकेश भी समझ गया की यह उसकी बेटी की चूत है इसीलिए वह कंचन की चूत को अपने होंठो से चूमने लगा, मुकेश ने थोडी देर तक अपनी बेटी की चूत को चूमने के बाद अपनी जीभ निकालकर उसकी छूट पर फिराते हुए उसके छेद में फिराने लगा ।

कंचन अपने पिता की जीभ को अपनी चूत पर महसूस करते ही ज़ोर से सिसकते हुए अपनी चूत को उनकी जीभ पर दबाने लगी और मज़े से अपने पिता के लंड को अपने मूह में डालकर चूसने लगी । अपना लंड अपनी बेटी के गरम मुँह में जाते ही मुकेश की भी हालत खराब होने लगी और वह अपनी जीभ को कडा करके तेज़ी के साथ अपनी बेटी की चूत में अंदर बाहर करते हुए चाटने लगा ।

कंचन की हालत भी अब बुहत खराब हो चुकी थी। उसे अपने पूरे जिस्म में अजीब किस्म की सिहरन होने लगी थी और उसका जिस्म बुहत ज़ोर के झटके खा रहा था। कंचन उत्तेजना में आकर अपने पिता के लंड को बुहत ज़ोर से चूसने लगी, इधर मुकेश भी अपनी बेटी की चूत को बुहत तेज़ी के साथ अपनी जीभ से चोदने लगा ।

कंचन का जिस्म अचानक ज़ोर से काम्पने लगा और उसकी चूत से पानी की नदिया बहने लगी । कंचन ने झरते हुए मज़े से अपनी आँखें बंद कर ली और मज़े में आकर अपने पिता के लंड को पूरा अपने मुँह में लेकर ज़ोर से चूसने लगी, मुकेश अपनी बेटी की चूत का पानी चाटते हुए खुद भी अपना कण्ट्रोल खो बैठा और उसके लंड से भी वीर्य की बारिश होने लगी ।

मुकेष का पूरा जिस्म झरते हुए ज़ोर से कांप रहा था ।कंचन अचानक अपने पिता के लंड से गरम वीर्य को अपने मुँह में महसूस करके जितना हो सकता था चाटने लगी और बाकी का वीर्य उसके होंठो से निकलकर नीचे गिरने लगा, थोडी ही देर में दोनों बाप बेटी निढाल होकर अपने मुँह को एक दुसरे से अलग करके ज़ोर से हांफ रहे थे ।
 
ओहहहह बेटी तुम बुहत अच्छी हो" थोड़ी देर यो ही पड़े रहने के बाद मुकेश ने कंचन से कहा।
"पिताजी कैसा लगा अपनी बेटी का जूस?" कंचन ने भी अब सीधा होकर अपने पिता की तरफ देखते हुए कहा।
"बेटी बुहत टेस्टी था मगर अब तो मेरी आँखों से पट्टी हटाओ मुझे अपनी बेटी का गोरा और चिकना जिस्म देखना है" मुकेश ने अपनी बेटी से मिन्नत करते हुए कहा।

"पिता जी इतनी भी जल्दी क्या है" कंचन ने नीचे होकर अपने पिता के सिकूड़े हुए लंड को अपनी मुठी में भरते हुए कहा।
"बेटी मैं कोई जवान लड़का तो नहीं हूँ इसीलिए अब मेरा लंड इतनी जल्दी नहीं उठेगा। इसीलिए कह रहा था की मेरी आँखों से पट्टी खोल दो हो सकता है तुम्हारा खूबसूररत जिस्म देखकर मेरा लंड जल्दी उठ जाए" मुकेश ने अपनी बेटी से कहा ।

"ओहहहह पिताजी आप बस देखते जाओ यह कैसे थोड़ी देर में उछलता है" कंचन ने अपने पिता से कहा और नीचे झुकते हुए अपने पिता के गीले लंड को अपनी जीभ से चाटने लगी।
"आजहहह बेटी तुम तो जान ही लेकर रहोगी" कंचन की जीभ को अपने लंड पर महसूस करते ही मुकेश ने ज़ोर से सिसकते हुए कहा ।

कंचन अपने पिता के टांगों के बीच लेटकर उनके लंड पर अपनी जीभ फिरा रही थी । कंचन अपनी जीभ को अपने पिता के पूरे लंड पर फिराने के बाद नीचे होते हुए उसकी दो बड़ी बड़ी गोटयों पर फिराने लगी।
"आहहह बेटी" कंचन के ऐसा करने से मुकेश को अपने पूरे जिस्म में मज़े का एक नया अहसास होने लगा और उसके लंड में फिर से जान आने लगी ।

कंचन ने जैसे ही देखा की उसके पिता का लंड फिर से उठ रहा है तो उसने अपने एक हाथ से मुकेश की गोटीयों को सहलाते हुए अपनी जीभ को उसके चारों तरफ चाटने लगी । मुकेष का लंड अब पूरी तरह तनकर झटके खा रहा था और उसके मूह से ज़ोर की सिस्कियाँ निकल रही थी ।

कंचन ने अब थोडा ऊपर होते हुए अपना मूह खोल दिया और अपने पिता के लंड के सुपाडे को अपने रसीले होंठों के बीच लेकर चूसने लगी।
"ओहहह बेटी और कितना तडपाओगी इसे अपनी चूत में ले लो" मुकेश ने बुहत ज़ोर से सिसकते हुए कहा।
कंचन ने अपने पिता की बात सुनकर उनके लंड को अपने मुँह से निकाला और अपनी दोनों टाँगों को फ़ैलाकर अपनी चूत को अपने पिता के लंड पर टीका दिया ।
 
मुकेश ने जैसे ही अपने लंड पर अपनी बेटी की चूत को महसूस किया उसने नीचे से अपने चूतडों को एक धक्का मार दिया मगर कंचन ने अपने हाथ से मुकेश के लंड को पकड लिया। जिस वजह से वह कंचन की चूत में नही घुस पाया । कंचन ने अपने पिता के लंड को अपने हाथ में पकडकर अपनी चूत के छेद पर घीसने लगी, ऐसा करते हुए कंचन के मुँह से ज़ोर की सिस्कियाँ निकल रही थी और उसकी चूत से ढ़ेर सारा पानी निकल रहा था ।

मुकेश की हालत भी बुहत ख़राब हो चुकी थी । वह बुहत ज़ोर से सिसकते हुए झटपटा रहा था । कंचन खुद भी बुहत ज्यादा गरम हो चुकी थी । इसीलिए उसने अपने हाथ को अपने पिता के लंड से हटा दिया और अपने पूरे वजन के साथ अपने पिता के लंड पर बैठने लगी, कंचन के ऐसा करने से मुकेश का लंड उसकी बेटी की चूत में अपनी जगह बनाता हुआ आधे से ज्यादा कंचन की चूत में घुस गया ।

"ओहहहह बेटी आअह्ह्ह कितनी गरम और टाइट चूत है तुम्हारी मुझे तो ऐसा लग रहा जैसे मेरा लंड किसी आग की भट्टी में चला गया है" अपना आधे से ज्यादा लंड अपनी बेटी की चूत में घुसते ही मुकेश ने ज़ोर से चिल्लाते हुए कहा।
"हाहहह पिता जी आपका लंड भी इतनी उम्र के बावजूद बुहत टाइट है" कंचन ने अपने चूतड़ो को थोडा ऊपर करके फिर से ज़ोर लगाकर अपने पिता के लंड पर बैठते हुए बोली।

कंचन के ऐसा करने से उसके पिता का पूरा लंड उसकी चूत में घुस गया । कंचन अपने पिता का पूरा लंड अपनी चूत में घूसने के बाद बुहत ज़ोर से मुकेश के लंड पर उचलने लगी, अपने पिता के लंड पर उछलते हुए कंचन के मूह से बुहत ज़ोर की सिस्कियाँ निकल रही थी।।

"ओहहह बेटी ऐसे ही बुहत मजा आ रहा है आज तुमने मुझे वह मजा दिया है जिसकी मैं कल्पना भी नहीं कर सकता था" मुकेश ने अपने लंड को अपनी बेटी की टाइट गरम चूत में अंदर बाहर होता महसूस करके ज़ोर से सिसकते हुए कहा।
"आह्ह्ह्ह पिताजी । मुझे भी यह पता नहीं था की अपने पिता से चुदवते हुए मुझे इतना ज्यादा मजा आएगा वरना मैं सब से पहले आपसे ही चुदवाती" कंचन ने भी अपने पिता के लंड पर ज़ोर से उछलते हुए हाँफते हुए कहा।
"ओहहहह मेरी प्यारी बेटी मुझे नहीं पता था की तुम मुझसे इतना प्यार करती हो बेटी। अब तो मेरी बाँहों को खोल दो" मुकेश ने सिसकते हुए अपनी बेटी से कहा
 
"आहहह पिताजी मैं आपकी बाँहों को एक शर्त पर खोलूँगी आप अपनी आँखों की पट्टी नहीं खोलोगे" कंचन ने नीचे झुकते हुए अपने पिता से कहा । कंचन के झुकने से उसकी दोनों चुचियां उसके पिता के मुँह के पास हो गयी।
"ठीक है बेटी जैसे तुम कहोगी मैं वैसे ही करुंगा" मुकेश ने कहा और अपनी बेटी की एक चूचि को अपनी जीभ से चाटने लगा ।

कंचन ने अपने पिता की बात सुनकर उसके दोनों बाज़ुओं से कपड़े को खोल दिया और खुद ऊपर उठने लगी । मुकेश ने अपने हाथों के खुलते ही अपनी बेटी को कमर से पकडकर नीचे झुका दिया और उसकी एक चूचि को अपने मुँह में लेकर चूसते हुए अपने चूतडों को बुहत ज़ोर से उछालते हुए अपना लंड अपनी बेटी की चूत में अंदर बाहर करने लगा ।

"आहहह पिताजी ऐसे ही और तेज़ ओहहहह बुहत मजा आ रहा है" अपने पिता के लंड को अपनी चूत में तूफ़ानी रफ़्तार से अंदर बाहर होता देखकर कंचन ने ज़ोर से सिसकते हुए कहा । कंचन को इतना ज़्यादा मजा आ रहा था की वह अपने दोनों हाथों से अपने पिता के सर को पकडकर सहलाते हुए अपनी चुचियों को उसके मुँह में दबाने लगी ।

"आआह्ह्ह बेटी अब बुहत हो चुका मैं अब ज्यादा बर्दाशत नहीं कर सकता" मुकेश ने इतना कहा और अपने हाथों को कंचन की कमर से अलग करते हुए अपनी ऑखों की पट्टी को खोल दिया।
"नही पिताजी" कंचन अचानक अपने पिता की इस हरकत से घबरा गयी और सीधा होते हुए अपने हाथों से अपनी चुचियों को ढकने लगी।
"ओहहह मेरी प्यारी बेटी अब क्यों इतना शर्मा रही हो। मैं तो कब से अपनी बेटी का मख़मली बदन देखना चाहता था" मुकेश ने अपनी बेटी के हाथों को उसकी चुचियों से अलग करते हुए कहा ।

"पिताजी आपने यह ठीक नहीं किया" कंचन ने शरम से अपनी ऑंखों को बंद करते हुए कहा।
"ओहहहह बेटी तुम क्या जानो इतनी देर से में अपनी प्यारी बेटी के इतने सूंदर जिस्म को न देखकर कितना तडप रहा था" मुकेश ने अपनी बेटी को नीचे झुकाते हुए कहा । मुकेश ने अपनी बेटी के नीचे होते ही उसके होंठो को अपने होंठो पर रखकर चूमते हुए नीचे से अपने चूतड़ो को उछालते हुए कंचन की चूत में अपना लंड अंदर बाहर करने लगा ।
 
मुकेश अपनी बेटी को बुहत तेज़ी के साथ चोदते हुए उसके दोनों होठो को अपने मुँह में बारी बारी भरकर चाट रहा था । अचानक कंचन ने गरम होते हुए अपनी जीभ को अपने पिता के मुँह में डाल दिया, मुकेश अपनी बेटी की जीभ को अपने मुँह में महसूस करते ही पागल हो गया और उसने अपनी बेटी को कमर से पकडकर सीधा करते हुए खुद उसके ऊपर आकर जोश में पेलने लगा।


मुकेश अब अपनी बेटी की जीभ चाटते हुए अपने लंड को बुहत तेज़ी के साथ उसकी टाइट चूत में अंदर बाहर करने लगा । कंचन का तो मज़े के मारे बुरा हाल था। वह मज़े से हवा में उड़ रही थी उसकी साँसें अब फूलने लगी थी, कंचन ने अचानक अपनी जीभ को अपने पिता के मूह से निकल लिया और अपने मुँह को मुकेश के मूह से अलग करते हुए ज़ोर से हाँफने लगी ।

मुकेश अब अपनी बेटी के टांगों के बीच सीधा होकर बैठ गया और कंचन की टांगों को उठाकर उसके पेट पर रखते हुए उसे पेलने लगा।
"ओहहहहह बेटी क्या प्यारी और सूंदर और टाइट चूत है तुम्हारी" मुकेश ने अपनी बेटी की चूत को पहली बार देखते ही जोश में आकर उसकी चूत में ज़ोर के धक्के मारते हुए कहा ।

"आहहह पिताजी आपका तो ज्यादा टाइट और मोटा होता जा रहा है ओह्ह्ह्हह ऐसे ही ज़ोर से। मैं झरने वाली हूँ" कंचन ने ज़ोर से चिल्लाते हुए अपने चूतडों को ऊपर उछालते हुए बोली । वह अपने पिता के लंड को अपनी चूत में ज्यादा टाइट और मोटा होता हुआ महसूस कर रही थी । जिस वजह से उसका सारा जिस्म अब अकडने लगा था और वह झरने के बिलकुल क़रीब पुहंच चुकी थी ।

"आहहहहह बेटी यह तुम्हारे जिस्म का ही कमाल है जो इसे देखकर मेरा यह बूढा लंड भी आज जवान होकर तुम्हें चोद रहा है" मुकेश ने अपनी बेटी की बात सुनकर उसको टांगों से पकडते हुए बुहत ज़ोर के साथ उसकी बुर में अपना लंड अंदर बाहर करते हुए कहा ।

"आह्ह्ह्ह पिता जी ओहहहह में आ रही हूँ" अचानक कंचन का पूरा जिस्म काँपने लगा और उसकी चूत झटके खाते हुए अपना पानी छोड लगी । कंचन की चूत झडते हुए अपने पिता के लंड पर ज़ोर से सिकूड़ गयी जिस वजह से मुकेश भी झडने के क़रीब पुहंच गया।
 
कंचन अपनी आँखें बंद किये हुए मज़े से अपने चूतडों को उठा उठा कर अपने पिता के लंड को अपनी चूत में लेते हुए झडने का मज़ा ले रही थी।
"ओहहहहह बेटी मैं भी आने वाला हूँ कहाँ पर झडुँ" मुकेश ने भी ज़ोर से सिसकते हुए अपनी बेटी से कहा।
"पिताजी मेरी चूत में आज भर दो । अपनी बेटी की चूत को अपने वीर्य से ताकी इसकी आग कम हो सके" कंचन ने अपने पिता की बात का जवाब देते हुए कहा ।

"आह्ह्ह्ह बेटी लो अपने पिता के वीर्य को अपनी चूत में महसूस करो" मुकेश अपनी बेटी की बात सुनकर तेज़ी से उसकी चूत में अपना लंड अंदर बाहर करते हुए ज़ोर से हाँफते हुए झडने लगा।
"ओहहहह पिताजी बुहत गरम वीर्य है आपका आहः" कंचन भी अपने पिता का गरम वीर्य अपनी चूत में गिरते ही ज़ोर से सिसकने लगी ।

मुकेश पूरी तरह झडने के बाद अपनी बेटी के ऊपर ही निढाल होकर ढेर हो गया और उसका लंड सिकूड़कर कंचन की चूत से निकल गया । कंचन की चूत से उसके पिता का लंड निकलते ही उसकी चूत से वीर्य निकलकर बेड पर गिरने लगा।
"ओहहहह आई लव यू पापा" कंचन ने अपने पिता को ज़ोर से अपनी बाहों में भर लिया और उनके होंठो को चूसने लगी ।

ओहहहह बेटी आज मुझे जो मजा तुमने दिया है उसका अहसान मैं कभी नहीं भुला सकता" मुकेश ने अपनी बेटी के होंठो को चूमने के बाद उसकी साइड में लेटते हुए कहा और अपनी बेटी की गोरी चुचियों से खेलने लगा।
"आजहहह पिता जी इस में अहसान की क्या बात है । मैं आपकी ही बेटी हूँ और मैं आपकी मेंहनत से ही पैदा हुयी हूँ इसीलिए मुझपर सबसे ज़्यादा हक़ आपका ही है" कंचन ने अपने पिता के बालों में हाथ डालकर उनके मुँह को अपनी चुचियों पर दबाते हुए कहा ।

कंचन के ऐसा करने से मुकेश का मुँह उसकी बेटी की दोनों चुचियों के बीच आ गया । मुकेश भी अपनी बेटी की दोनों चुचियों को अपने दोनों हाथों में थामकर ज़ोर से दबाते हुए उन्हें चूमने और चाटने लाग, दोनों बाप बेटी कुछ देर तक ऐसे ही मस्ती करते रहे और कुछ देर बाद कंचन अपने पिता से अलग होते हुए बाथरूम जाने लगी ।

कंचन बिलकुल नंगी ही वहां से उठकर बाथरूम जा रही थी । कंचन के बाथरूम जाते हुए मुकेश की नज़रें अपनी बेटी के नंगे जिस्म को घूर रही थी।
कंचन के बाथरूम में घूसने के बाद मुकेश भी बेड से उठते हुए अपनी बेटी के पास बाथरूम जाने लगा ।
 
विजय और शीला ने बाजार से सामान खरीद लिया था और वह अब वापस आने के लिए तैयार थे।
"शीला दीदी मैं बुहत थक चूका हूँ यहाँ नज़दीक ही एक बुहत बड़ा पार्क है चलो कुछ देर वहीँ चलकर बैठते है।" विजय ने दूकान से निकलते ही शीला से कहा।
"ठीक है भैया जैसे आपकी मर्जी" शीला ने भी विजय की बात को मानते हुए कहा और दोनों साथ चलते हुए पार्क की तरफ जाने लगे ।

कुछ देर तक चलने के बाद वह पार्क तक पुहंच गए शीला की नज़र जैसे ही पार्क के ऊपर लिखे हुए शब्दों पर गयी वह समझ गयी की विजय उसे यहाँ क्यों लाया है । पार्क के ऊपर लिखा हुआ था "लवर्स पार्क" शीला विजय के साथ पार्क में दाखिल हो गई। वहां पर ज्यादा भीड़ नहीं थी बस कुछ जोड़े दूर दूर बैठे हुए आपस में बातें कर रहे थे, विजय शीला के साथ एक साइड में जाकर बैठ गया और आपस में बातें करने लगे।

"भइया एक बात बताओ यह एक लवर्स पार्क है आपको अपनी बहन को यहाँ लाते हुए ज़रा भी शर्म नहीं आई" शीला ने विजय की तरफ देखते हुए कहा।
"दीदी हम दोनों भी तो लवर्स हैं और लोगों को क्या पता वह तो तुम्हें मेरी लवर ही समझेंगे" विजय ने हँसते हुए कहा ।

"भाइया आप बड़े वो है" शीला ने विजय की बात सुनकर मुस्कराते हुए कहा।
"दीदी वहां देखो" अचानक विजय ने शीला को सामने इशारा करते हुए कहा । शीला ने जैसे ही उस तरफ देखा शर्म से उसका चेहरा लाल हो गया और उसने अपनी नज़रें वहां से हटा लिया क्योंकी सामने एक जोड़ा एक दुसरे को बाहों में भरे हुए फ्रेंच किस कर रहा था ।

"क्या हुआ दीदी आपने नज़र क्यों हटा ली?" विजय ने शीला की कमर में अपना हाथ डालकर उसे अपने से चिपकाते हुए कहा।
"विजय भैया छोड़ो मुझे प्लीज़ मुझे शर्म आ रही है" शीला ने विजय के हाथ को अपनी कमर से हटाते हुए कहा।
"दीदी आप भी। यहाँ पर सभी एन्जॉय करने आते हैं और आप देखते हुए भी शर्मा रहीं हैं" विजय ने शीला को समझाते हुए कहा ।
 
विजय की बात सुनने के बाद शीला फिर से उस जोड़े की तरफ देखने लगी वह जोड़ा अब फ्रेंच किस करते हुए अब एक दुसरे के जिस्म पे अपने हाथ फेर रहा था । शीला का जिस्म भी उन्हें देखते हुए गरम हो रहा था। अचानक शीला ने महसूस किया की विजय ने अपना हाथ उसकी साड़ी के अंदर उसके नंगे पेट पर रख दिया है ।

विजय अपने हाथ से शीला के गोरे चिकने बदन को ऊपर से नीचे तक सहला रहा था । विजय की इस हरकत से शीला का पूरा जिस्म तप कर आग हो गया। अचानक विजय का हाथ शीला के पेट से होता हुआ उसकी चुचियों की तरफ बढ़ने लगा।
"नही भैया यहाँ नही" विजय का हाथ जैसे ही शीला के ब्लाउज तक पुहंचा उसने विजय के हाथ को अपने हाथ से पकडते हुए कहा ।

"क्या हुआ दीदी?" विजय ने शीला की साड़ी से हाथ को हटाकर उसका सर अपनी गोद में रखकर सुलाते हुए कहा।
"भइया बुहत देर हो गई है हमें चलना चाहिये" शीला ने विजय की गोद में सोते हुए उसकी आँखों में निहारते हुए कहा।
"दीदी चलते हैं मगर कुछ तो हमारा भी ख़याल करो" विजय ने थोडा नीचे होकर अपने होंठो को शीला के होंठो के क़रीब करते हुए कहा ।

"भइया आप सुधरोगे नहीं मैं बस एक किस ही दूंगी" शीला ने विजय की गरम सासों को महसूस करके खुद भी गरम होते हुए कहा।
"ठीक है दीदी एक ही" विजय ने शीला की बात सुनकर खुश होते हुए कहा । शीला ने अपने हाथ को विजय के बालों में डालकर उसे नीचे झुकाकर उसके होंठो को अपने होंठो से मिला दिया ।

विजय ने भी अपने एक हाथ को शीला के सर के नीचे डालकर उसके होंठो को अपने होठो से ज़ोर से सटा दिया और शीला के दोनों गुलाबी लबों को बारी बारी चूसने लगा । शीला भी गरम होकर विजय के लबों को चूम रही थी, विजय ने अचानक अपने होंठो को शीला के होंठो के बीच डालकर उसकी जीभ को पकड लिया।।
 
विजय शीला की जीभ को अपने में भरकर चूसने और चाटने लगा । शीला की हालत बिगडती ही जा रही थी। वह अपने भाई की हरक़तों से बुहत ज्यादा गरम हो चुकी थी और अब उसकी साँसें भी फूलने लगी थी।
शीला ने अपनी जीभ को विजय के मूह से निकालकर अपने होंठो को विजय के होंठो से अलग कर दिया ।

शीला विजय के होंठो के अलग होते ही बहूत जोर से हाँफने लगी।
"क्यों दीदी इतनी जल्दी थक गई" विजय ने भी अपनी सांसों को ठीक करते हुए शीला से कहा।
"भइया आप बुहत बदमाश हो एक किस के लिए कहकर फिर छोडते ही नही" शीला ने हाँफते हुए विजय से कहा ।

"दीदी मैंने भी एक ही किस तो दी जिसे भी आपने पूरा नहीं किया" विजय ने मुस्कुराते हुए कहा।
"भइया आप भी न चलो अब बुहत हो गया" शीला ने विजय की तरफ देखते हुए कहा और उसकी गोद से अपना सर उठाकर खड़ी हो गई । विजय भी उठकर खड़ा हो गया और शीला के साथ पार्क से निकलकर घर की तरफ जाने लगा ।

रेखा ने नरेश के कमरे में दाखिल होते ही उसके कान को छोडकर दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया।
"मामी मुझे यह समझ में नहीं आया की आज अचानक मामा को कंचन की याद कैसे आ गयी । वैसे तो उन्होंने कभी कंचन से अकेले में बात नहीं की है?" नरेश ने अपने कमरे में आते ही रेखा से सवाल करते हुए कहा।
"अरे भांजे क्यों खवामखाह अपना सर खपा रहे हो छोड़ो उस बात को" रेखा ने नरेश की बात को टालते हुए कहा ।

"मामी मुझे बताओ न क्या चक्कर है आप ऐसे क्यों टाल रही हो" नरेश ने रेखा से मिन्नत करते हुए कहा।
"भान्जे तुम ऐसे नहीं मानोगे तो सुनो तुम्हारे मामा अपनी बेटी के हुस्न के दीवाने हो गये हैं । पहले तो वह मुझे भी सही ढंग से चोद नहीं पाते थे मगर तेरी माँ ने उनपे जाने क्या 'जादू कर दिया की अब वह मुझे और तेरी माँ के साथ अपनी बेटी की कमसीन जवानी के पीछे पड़ गए हैं" रेखा ने नरेश के क़रीब जाते हुए कहा।

"मामी आप क्या कह रही है" नरेश ने रेखा की बात सुनकर गरम होकर उसे अपनी गोद पर बिठाते हुए कहा।
"भान्जे सच ही कह रही हूँ हो सकता हो वह इस वक्त भी अपनी बेटी को चोद रहे हो" रेखा ने नरेश की गोद पर बैठने के बाद कहा।
"मामी मगर कंचन दीदी कैसे राज़ी हुयी?" नरेश ने अपने हाथों को साड़ी के ऊपर से ही अपनी मामी की बड़ी बड़ी चुचियों पर रखते हुए कहा ।
 
"हाहहह भान्जे जब उसने अपने भाइयों से चुदवा लिया तो अपने पिता से उसे क्या ऐतराज़ हो सकता है । वैसे मैंने ही उसे राज़ी किया था उसके पिता के साथ सोने के लिये" रेखा ने सिसकते हुए कहा।
"साली तुम बुहत कमीनी चीज़ हो" नरेश ने गुस्से में अपनी मामी की चुचियों को ज़ोर से मसलते हुए कहा।

"उईई भान्जे आराम से तुम क्यों जल रहे हो तुम भी तो अपनी मामी को चोद चुके हो" रेखा ने मुस्कराते हुए कहा और नरेश की गोद से उठकर बाहर जाने लगी।


"मामी कहाँ जा रही हो" नरेश ने रेखा को अचानक जाता हुआ देखकर हैंरान होते हुए कहा ।

"तुम आराम करो अगर मैं यहाँ रुकी तो तुम फिर से शुरू हो जाओगे। मैं पहले से बुहत थकी हुई हुँ" रेखा ने जाते हुए नरेश से कहा और कमरे से निकल गयी । रेखा अब मनीषा के कमरे में चलि गयी और उससे बाते करने लगी ।

रेखा के जाने के बाद नरेश भी बेड पर लेटकर आराम करने लगा। मगर उसे बार बार यह ख़याल आ रहा था की इस वक्त कंचन और उसके मामा जाने क्या कर रहे होंगे ।



मुकेश अपनी बेटी के बाथरूम जाने के बाद खुद भी उसके पीछे बाथरूम में घुस गया, कंचन बाथरूम में नीचे बैठकर पेशाब कर रही थी ।

"पिताजी आप यहाँ कुछ तो शर्म कीजिये" कंचन ने अचानक अपने पिता को नंगा ही बाथरूम में दाखिल होता देखकर गुस्से से कहा।
"अरे बेटी अब तुमसे क्या शरम। मैं तो बस अपनी बेटी के साथ नहाना चाहता हूँ" मुकेश ने बाथरूम में अंदर आकर शावर को ऑन करते हुए कहा ।

"पिताजी मुझे शर्म आ रही है। मैं आपके साथ नहीं नहा पाऊँगी। मैं जा रही हूँ" कंचन ने पेशाब करने के बाद अपने पिता से कहा और उठकर वहां से जाने लगी।
"बेटी क्यों इतना शर्मा रही हो बस कुछ ही देर की तो बात है" मुकेश ने अपनी बेटी को कलाई से पकडकर अपने साथ शावर के नीचे खडा करते हुए कहा ।
 
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