Incest Kahani परिवार(दि फैमिली) - Page 38 - SexBaba
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Incest Kahani परिवार(दि फैमिली)

"डालिंग क्या हुआ तुम्हें अपनी बेटी के साथ कुछ मजा मिला या नही" रेखा ने अंदर दाखिल होते ही अपने पति को टोकते हुए कहा।
"डालिंग मत पूछो मुझे कितना मजा आया मगर कंचन बेटी बुहत शर्मा रही है" मुकेश ने अपनी पत्नी के पास आते ही उसे अपनी गोद में बिठाते हुए कहा ।

"आआह्ह्ह क्यों जी जवान बेटी को गोद में बिठाकर सुकून नहीं मिला जो मुझे यहाँ बिठा दिया" रेखा ने अपने पति का लंड अपने चूतडों में लगते ही सिसकते हुए बोली।
"मजा तो बुहत आया मगर तुम जानती हो की यह तब तक मुझे ऐसे ही तँग करता रहेगा जब तक इसका पानी न निकल जाए" मुकेश ने अपने हाथ से अपनी पत्नी की चुचियों को पकडते हुए कहा ।

"च तो क्यों छोड़ा अपनी बेटी को अपने इस लंड को डाल देते अपनी बेटी की चूत में" रेखा ने जानबूझकर अपने पति को जोश दिलाते हुए कहा।
"डालिंग तुम यह क्या कह रही हो। मैं तो खुद यही चाहता हूँ मगर कंचन के साथ में कोई ज़बर्दस्ती नहीं करना चाहता" मुकेश ने रेखा की बात का जवाब देते हुए कहा।
"आप यहीं बैठो मैं अभी कंचन को बुलाकर लाती हुँ" रेखा ने मुकेश के हाथों को पकडकर वहां से उठते हुए कहा ।

"सुनो ऐसे ठीक नहीं है वह खुद ही कुछ दिनों में मान जाएगी" मुकेश ने अपनी पत्नी को रोकते हुए कहा।
"आप किसी बात की फिकर मत करो" रेखा ने जाते हुए अपने पति से कहा और अपने कमरे से निकलकर कंचन के कमरे में जाने लगी । कंचन अपने बेड पर लेटी हुयी अपने पिता के बारे में सोच रही थी की अचानक अपनी माँ को अपने कमरे में देखकर वह हैंरान होते हुए उठकर बैठ गयी ।

रेखा अंदर दाखिल होते ही अपनी बेटी के साथ बेड पर बैठ गयी।
माँ आप क्या बात है" कंचन ने अचानक अपनी माँ को देखकर हैंरान होते हुए कहा।
"क्यों बेटी क्या मैं तुझसे बात करने के लिए यहाँ नहीं आ सकती" रेखा ने अपनी बेटी की तरफ देखते हुए कहा।
"हाँ माँ आप क्यों नहीं आ सकती" कंचन ने अपनी माँ के टोकने से शरमाते हुए कहा।
"अरे मेरी बेटी तुम्हारी यही अदा तो तुम्हें बहुत ज़्यादा सूंदर करती है की तुम जल्दी शरमा जाती हो" रेखा ने अपने हाथों से कंचन के सर को पकड़कर ऊपर करते हुए कहा ।
 
"बेटी तुम्हें पता है की तुम्हारे पिता ने तुझे अपनी गोद में क्यों बिठाया था?" रेखा ने अपनी बेटी की आँखों में देखते हुए कहा।
"जी नही" कंचन अपने माँ के सवाल से परेशान होते हुए बोली।
"मैं बताती हूँ तुझे अपने पिता ने अपनी गोद में क्यों बिठाया था क्योंकी उन्हें अपनी बेटी का जिस्म अच्छा लगने लगा था और वह तेरे जिस्म का पूरा मजा लेना चाहते थे" रेखा ने कंचन का जवाब सुनकर हँसते हुए कहा ।

रेखा की बाते सुनते हुए कंचन का चेहरा शर्म से लाल हो चुका था मगर वह कर भी क्या सकती थी।
"बेटी क्या तुम्हें भी अपने पिता के साथ मज़ा लेना है?" रेखा ने इस बार सीधा सवाल करते हुए कहा।
"माँ आप क्या कह रही हो" कंचन ने अपनी माँ की बात सुनकर चौकते हुए कहा ।

"क्यों बेटी सीधा तो पूछ रही हुँ" रेखा ने फिर से मुस्कराते हुए कहा।
"माँ मगर यह सब ठीक नहीं है" कंचन ने अपनी नज़रों को फिर से झुकाते हुए कहा।
"अरे बेटी सही गलत की फिकर तुम मत करो बस बताओ की क्या तुम्हारा दिल भी अपने पिता के साथ कुछ करने को कहता है" रेखा ने कंचन को घूरते हुए कहा ।

"माँ अपने पिता के साथ मैं यह सब नहीं कर सकती" कंचन ने वैसे ही अपना कन्धा नीचे किये हुए कहा।कंचन अपनी माँ से नज़रें नहीं मिला पा रही थी।
"क्यों बेटी भैया के साथ करते वक्त तुम्हें यह ख़याल नहीं आया" रेखा ने इस बार सीधे कंचन को टोकते हुए कहा ।

माँ आपको कैसे पता चला" अपनी माँ की बात सुनकर कंचन ने हैंरान होते हुए कहा।
"बेटी वह सब छोडो और तुम्हें घबड़ाने की कोई ज़रुरत नहीं है क्योंकी तेरे दोनों भाइयों ने मुझे भी नहीं छोड़ा है" रेखा ने फिर से मुस्कराते हुए कहा।
"माँ मगर पिता के साथ यह सब करते हुए मुझे डर लग रहा है" कंचन ने अपनी माँ की बात को सुनकर कहा ।

"बेटी इस में डरने की क्या बात है तेरे पिता तो तुझसे बुहत प्यार करते हैं" रेखा ने अपनी बेटी के सर को पकडकर फिर से उसकी आँखों में झाँकते हुए कहा।
"मगर माँ" कंचन ने सिर्फ इतना कहा।
"अगर मगर छोड़ो और आओ मेरे साथ । तेरे पिता अपने कमरे में तुम्हारा इंतज़ार कर रहे है" रेखा ने कंचन के गाल पर एक किस देते हुए कहा ।
 
"माँ इस वक्त" अपनी माँ की बात सुनकर कंचन ने फिर से परेसान होते हुए कहा।
"हाँ इस वक्त वह बेचारे कब से तड़प रहे है" रेखा ने कंचन की बात सुनकर उसकी तरफ देखते हुए कहा।
"माँ अभी नहीं रात को मैं आ जाऊँगी" कंचन ने अपनी माँ की बात सुनकर कहा।
"अब नखरे मत कर तुम्हारे भैया भी नहीं है इस वक्त वह शीला के साथ बाजार गया हुआ है" रेखा ने इस बार थोडा गुस्सा करते हुए बोली।

कंचन अपनी माँ का गुस्सा देखकर डर गयी और चुपचाप उसके पीछे जाने लगी । नरेश अपने कमरे में बैठे बैठे बोर हो रहा था तो उसने सोचा क्यों न वह जाकर कंचन से बातें करे इसीलिए वह अपने कमरे से निकलकर बाहर आ गया। नरेश ने बाहर निकलते ही देखा की कंचन अपनी माँ के साथ उसके कमरे में जा रही है ।

नरेश पहले तो मायूस होकर वापस जाने लगा मगर फिर उसके दिमाग में एक आईडिया आया की क्यों न वह जाकर देखे की आखिर क्या चक्कर है इसीलिए वह कंचन और उसकी माँ के कमरे में जाने के बाद आगे बढ़ता हुआ रेखा के कमरे की तरफ जाने लगा ।
 
कंचन का दिल अपनी माँ के साथ जाते हुए बुहत ज़ोर से धडक रहा था । कंचन का यह सोचकर ही हाल बुरा हो रहा था की अगले पल क्या होने वाला है यह सोचते हुए कंचन का पूरा जिस्म तप कर गरम हो चूका था। कंचन अपनी माँ के साथ चलते हुए उसके कमरे तक पुहंच गयी रेखा ने दरवाज़ा खोला और अपनी बेटी के साथ अंदर चलि गयी ।

नरेश भी अब रेखा के कमरे की तरफ बढने लगा वह भी जानना चाहता था की आखिर क्या चक्कर है । मुकेश अपनी बीवी के साथ कंचन को देखकर चौंक गया । वह पहले से बुहत गरम था अचानक अपनी बेटी को देखकर उसका लंड ज़ोर के झटके खाने लगा।
"ये रही तुम्हारी लाड़ली बेटी जिसके लिए तुम मरे जा रहे थे" रेखा ने कंचन को बाज़ू से पकड़कर मुकेश के सामने खडा करते हुए कहा । कंचन चुपचाप अपना सर झुकाये हुए वही खड़ी थी ।

नरेश अब रेखा के कमरे तक पुहंच चूका था मगर वह बिना वजह के अंदर नहीं जाना चाहता था इसीलिए वह बाहर खडे हुए ही अंदर देखने के लिए कोई जगह ढूँढ़ने लगा।
"रेखा तुम बाहर जाओ मुझे अपनी बेटी से अकेले में कुछ बात करनी है" मुकेश ने अपनी पत्नी की तरफ देखते हुए कहा।
"वाह जी मुझसे कैसी शरम । मैं नहीं जाने वाली यहाँ से" रेखा ने गुस्से से अपने पति की तरफ देखते हुए कहा।

"रेखा बात को समझो और ज़िद मत करो" मुकेश ने प्यार से अपनी पत्नी को समझाते हुए कहा । रेखा ने इस बार अपने पति को कोई जवाब नहीं दिया वह सिर्फ गुस्से से अपना मूह ख़राब किये हुए खड़ी रही।
"माँ आप जाओ पिता जी मुझसे अकेले में बात करना चाहते हैं शायद वह आपके सामने वह बात करने में डर रहे हैं या वह यह सोच रहे हैं की मैं आपके सामने उनकी बातों का खुलकर जवाब नहीं दे पाऊँगी" इस बार कंचन ने अपनी माँ से कहा क्योंकी वह खुद चाहती थी की जब उसका पिता उसके साथ कुछ करे तो वह बिलकुल अकेली हो ।

"साली तुम भी अपनी बाप की चमची निकली तुम्हें तो मैं देख लूंग़ी" रेखा अपनी बेटी की बात सुनकर गुस्से से उसकी तरफ देखकर बड़बड़ाते हुए बोली और वहां से बाहर निकल गयी,नरेश जो अभी तक अंदर देखने के लिए कोई जगह ढूंढ रहा था वह अचानक अपनी मामी को बाहर निकलता देखकर चोंक गया और वापस जाने के लिए मुड़ने लगा ।
 
"नरेश तुम यहाँ क्या कर रहे हो" रेखा ने बाहर निकलते ही अपने सामने नरेश को देखकर उसे पुकारते हुए कहा।
"वो मामी मैं शीला दीदी को ढूंढ रहा था" नरेश ने बोखलाहट में झूठ बोलते हुए कहा।
"नरेश तुम झूठ क्यों बोल रहे हो वह तो बाजार गयी है जो तुम्हें भी पता है" रेखा ने गुस्से से नरेश को देखते हुए कहा ।

"मामी मैं कंचन के कमरे में जा रहा था की आप उसके साथ बाहर निकलीं और उसे अपने कमरे में ले जाने लगीं मैं भी बस आपके पीछे यहीं आ गया" नरेश ने रेखा को सब सच बताते हुए कहा।
"च तो भांजे तुम अब जासूसी भी करने लगे हो" रेखा ने गुस्से में नरेश को देखते हुए कहा।
"मामी आप गुस्से में तो बुहत ज़्यादा सूंदर लगती हो" नरेश ने रेखा के क़रीब आते हुए कहा।
"चल हट अब झूठमूठ की तारीफ करके बात को मत बदल" रेखा ने नरेश के कान को पकडते हुए कहा।

"उईई मामी छोड़ो दर्द हो रहा है" रेखा के हाथों अपने कान को ज़ोर से पकडने पर नरेश ने चिल्लाते हुए कहा। रेखा नरेश को वैसे ही कान से पकडे हुए घसीटते हुए उसके कमरे की तरफ ले जाने लगी।


मुकेश ने अपनी बीवी के जाते ही बेड से उठते हुए जाकर दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया और वापस अपनी बेटी के पास आकर उसके हाथ को पकड़कर उसे अपने बेड की तरफ ले जाने लगा ।

कंचन का उत्तेजना के मारे बुरा हाल था उसकी चूत से इतना ज्यादा पानी निकल रहा था की उसकी पूरी पेंटी गीली हो चुकी थी । मुकेश ने अपनी बेटी को अपने बेड पर ले जाकर बिठा दिया और खुद भी उसके साथ बेड पर बैठ गया।
"बेटी तुम्हारी माँ ने क्या कहा तुम्हें?" मुकेश ने बेड पर बैठते ही अपनी बेटी की तरफ देखते हुए कहा । कंचन ने अपने पिता की बात की बात सुनकर अपना कन्धा नीचे कर दिया और कुछ बोली नहीं क्योंकी उसे बुहत ज्यादा शर्म आ रही थी ।

"बताओ न बेटी इसीलिए तो मैंने तुम्हारी माँ को यहाँ से बाहर भेज दिया" मुकेश ने अपने हाथों से अपनी बेटी के सर को पकडकर ऊपर करते हुए कहा।
"पिता जी हमें बुहत शर्म आ रही है । आपने ही तो उसे भेजा था" कंचन ने अपने पिता को देखते हुए कहा।
"च उसे छोड़ो बस यह बताओ की क्या तुम भी मेरी तरह यह सब करना चाहती हो" मुकेश ने कंचन के हाथ को पकडकर चूमते हुए कहा ।
 
"पिता जी मुझे कुछ नहीं पता मगर आपको देखकर मुझे भी कुछ होने लगता है" कंचन ने अपना कन्धा फिर से नीचे करते हुए कहा।
"ओहहहह बेटी इसका मतलब तुम्हारा दिल भी अपने पिता के साथ सब करने को करता है" मुकेश ने कंचन की बात सुनकर खुश होते हुए कहा और अपनी बेटी का हाथ पकडकर अपनी पेण्ट के ऊपर सीधा अपने खडे लंड पर रख दिया ।

कंचन का पूरा जिस्म अपना हाथ अपने पिता की पेण्ट पर पडते ही सिहर उठा क्योंकी मुकेश का लंड पूरी तरह से तना हुआ था जो कंचन को अपना हाथ वहां पर रखते ही महसूस हुआ।
"पिताजी एक बात कहूँ?" कंचन ने मुकेश की तरफ देखते हुए कहा।
"हाँ बेटी बताओ क्या बात है" मुकेश ने खुश होते हुए कहा।
"पिताजी मुझे इतनी शर्म आ रही है की मैं आपका साथ नहीं दे पाऊँगी अगर आप अपनी आँखें बंद करके मेरे साथ यह सब करें तो मुझे शर्म नहीं आएगी और मैं आपका साथ भी दूँगी" कंचन ने अपना कन्धा नीचे करते हुए कहा ।

"ठीक है बेटी मैं अपनी आँखें अभी बंद कर देता हूँ मगर फिर सब कुछ तुम्हें ही करना होगा" मुकेश ने अपनी बेटी की तरफ देखते हुए कहा।
"ठीक है पिता जी मगर ऐसे नहीं एक मिनट" कंचन ने बेड से उठकर अलमारी से अपनी माँ का एक दुप्पटा उठा लिया और अपने पिता के पास आते हुए उसे उनकी आँखों पे कस के बाँध दिया ।

"अरे बेटी तुमने तो सच में मुझे अँधा बना दिया" मुकेश ने अपनी आँखों पर पट्टी बाँधने के बाद कहा।
"पिताजी अभी तो आपकी बाहों को भी बाँधना है" कंचन ने अपनी साड़ी को अपने जिस्म से अलग करते हुए कहा।
"बेटी यह ठीक नहीं है फिर तो मैं तुम्हें छु भी नहीं सकता" मुकेश ने कंचन की बात सुनकर परेशान होते हुए कहा ।

"पिताजी आप चिंता मत करें मैं आप को किसी शिकायत का मौका नहीं दूंगी" कंचन ने अपने पिता से कहा और उनके शर्ट को उनके जिस्म से अलग करते हुए उनको सीधा बेड पर ले जाते हुए उसके दोनों बाजु को ऊपर करके बाँध दिया । कंचन ने अपने पिता को बाँधने के बाद बेड से उतरते हुए अपने पूरे कपड़ों को अपने जिस्म से अलग कर दिया और बिलकुल नंगी हो गई ।
 
अरे बेटी मुझे बांधकर कहाँ चली गयी तुम?" मुकेश ने चिल्लाते हुए कहा । कंचन अपने पिता के पास जाते हुए उनकी पेण्ट को खोलने लगी और पेण्ट को अपने बाप के जिस्म से अलग करते हुए दूर फेंक दिया, कंचन का जिस्म यह देखकर और ज्यादा गरम होने लगा की उसके पिता का लंड पेण्ट के हटते ही उनके अंडरवियर में बड़ा तम्बू बनकर झटके खा रहा था ।

कंचन कुछ देर तक अपने पिता के लंड को ऐसे ही अंडरवियर के अंदर झटके खाते हुए देखती रही और फिर वह थोडा ऊपर होते हुए अपने पिता के सीने के बालों पर अपना नरम हाथ फिराने लगी।
"आजहहहहह बेटी कितना तडपाओगी आओ न अपने पिता के सीने से लग जाओ" मुकेश ने अपनी बेटी का नरम हाथ अपने सीने पर महसूस होते ही ज़ोर से सिसकते हुए बोला।

कंचन का भी उत्तेजना के मारे बुरा हाल था वह कुछ देर तक अपने हाथों को अपने पिता के सीने पर फिराने के बाद अपने होंठो को उनके सीने पर रख दिया और पागलो की तरह अपने पिता के पूरे सीने को चूमने लगी
"आहहहहह बेटी ओह्ह्ह्हह्ह्" मुकेश अपनी बेटी के होंठो से अपने सीने को चूमने से सिर्फ ज़ोर से सिसक रहा था ।

कंचन अब अपनी दोनों टांगों को फ़ैलाकर अपने पिता के ऊपर आ गयी और अपनी बड़ी बड़ी चुचियों को अपने पिता के सीने पर रगडने लगी । कंचन ऐसा करते हुए बुहत ज़ोर से सिसक रही थी और अपने चूतडों को बुहत ज़ोर से अपने पिता के लंड पर उनके अंडरवियर के ऊपर से रगड रही थी ।

"ओहहहह बेटी क्यों खुद भी ऐसे तडप रही हो और मुझे भी तडपा रही हो। मेरी बाहों को खोल दो फिर देखो मैं तुम्हें कितना प्यार देता हूँ" मुकेश ने सिसकते हुए अपनी बेटी से कहा।
"आह्ह्ह्ह पिताजी चुप करो और अपनी बेटी की चुचियों का रस चखो" कंचन ने थोडा ऊपर होकर अपनी एक चूचि को अपने पिता के होंठो पर रखते हुए कहा ।

मुकेश अपने बेटी की चूचि को अपने होंठो पर महसूस करते ही अपना मूह खोलकर कंचन की चूचि को जितना हो सकता था अपने मुँह में भर लिया और उसे बुहत ज़ोर से चूसने लगा।
"आह्ह्ह्ह पिता आज अपनी बेटी की चूचि के रस को पूरी चूस लो ओह्ह्ह्हह और बताओ की आपकी बेटी की चुचियों में ज्यादा टेस्ट है या माँ की चुचियों में" कंचन ने अपनी चूचि को अपने पिता के मुँह में जाते ही उत्तेजना के मारे ज़ोर से सिसकते हुए बोली।
 
मुकेश अपनी बेटी की बातों को सुनकर पागल हो रहा था और उत्तेजना के मारे बुहत ज़ोर से से कंचन की चूचि को चूसते हुए निप्पल को अपने दांतों से भी हल्का काट रहा था।
"उईई पिता जी क्या अपनी बेटी की चुचियों को खा जाने का इरादा है क्या?" कंचन ने अपनी चुचियों पर अपने पिता के दांतों के लगते ही ज़ोर से चिल्लाते हुए अपनी चूचि को उनके मुँह से निकालते हुए बोली।

"आआह्ह्ह बेटी क्यों निकाला सच में तुम्हारी चुचियों का रस तुम्हारी माँ से कहीं ज्यादा अच्छा है" मुकेश ने अपनी बेटी की चूचि अपने मुँह से निकालते ही ज़ोर से चिल्लाते हुए कहा।
"ओहहहह पिताजी लो अब मेरी दूसरी चूचि का रस चखो" कंचन ने अब अपनी दूसरी चूचि को अपने पिता के होंठो पर रखते हुए कहा ।

मुकेश अपनी बेटी की दूसरी चूचि को भी वैसे ही चूसने लगा जैसे उसकी पहली चूचि को चूसा था और कंचन भी मज़े से अपने हाथों से अपने पिता के बालों को सहलाने लगी । कुछ ही देर बाद कंचन ने अपनी चूचि को फिर से अपने पिता के मुँह से निकाल लिया और बुहत ज़ोर से हाँफने लगी।
"आआह्ह्ह्ह बेटी क्या हुआ?" मुकेश ने अचानक अपने मुँह से कंचन की चूचि के निकलने से सिसकते हुए कहा।

कंचन ने इस बार अपने तपते होंठो को अपने पिता के होंठो पर रख दिया और बुहत ज़ोर से हाँफते हुए अपने पिता के होंठो को चूमने लगी । ऐसा करते हुए कंचन की चुचियां सीधे उसके पिता के सीने में दब गयी थी। मुकेश ने जैसे ही महसूस किया की उसकी बेटी उसके होंठो को चूम रही है तो उसने अपना मुँह खोलकर कंचन के दोनों पतले रसीले होंठो को अपने मुँह में भर लिया और उन्हें बुहत ज़ोर से चूसने लगा ।


कंचन को अपने पिता के साथ किस्सिंग करते हुए अपने पूरे जिस्म में मज़े का एक नया अहसास हो रहा था । मुकेश ने अचानक अपने बेटी के होंठो को खोलते हुए उसकी जीभ को पकडकर अपने मूह में भर लिया और अपनी बेटी की शहद से ज्यादा मीठी जीभ को ज़ोर से चूसने लगा । मुकेश की इस हरकत से कंचन का पूरा जिस्म कम्पने लगा और वह उत्तेजना में आकर अपने पिता की जीभ को पकडकर चाटने लगी, दोनों बाप बेटी कुछ देर तक ऐसे ही एक दूसरी के होंठो और जीभ से खेलने के बाद हाँफते हुए एक दुसरे से अलग हो गये ।
 
कंचन और मुकेश दोनों की साँसें एक दुसरे से अलग होते ही बुहत ज़ोर से चलने लगी । वो दोनों बुरी तरह से हांफ रहे थे।
"पिताजी कैसा लगा आपको अपनी बेटी के होंठो और जीभ का स्वाद?" कंचन ने कुछ देर तक हाँफने के बाद अपने पिता से पूछा।
"बेटी अब में क्या बताऊँ शहद से भी ज्यादा मीठी तो तुम्हारी जीभ थी" मुकेश ने अपनी बेटी को जवाब देते हुए कहा ।

"पिताजी अभी तो शुरुआत है" कंचन ने इतना कहा और अपनी ऊँगली को अपने पिता के मुँह पर रख दिया । मुकेश अपनी बेटी की ऊँगली को अपने होंठो पर महसूस करते ही अपना मूह खोल दिया और कंचन की ऊँगली को अपने मूह में लेकर चूसने लगा।
"पिताजी एक मिनट मैं अपनी ऊँगली पर कोई टेस्टी चीज़ लगाती हुँ" कंचन ने अपनी ऊँगली को अपने पिता के मुँह से निकलकर अपनी चूत को थोडा ऊपर करते हुए उसमें डाल दिया और उसे पूरी तरह से अपनी चूत के पानी से गीला करते हुए बाहर निकाल दिया !



"बेटी तुम्हारी ऊँगली तो वैसे ही टेस्टी थीं" मुकेश ने अपनी बेटी से कहा।
"पिताजी लो अब इसे चखो" कंचन ने अपनी ऊँगली को फिर से अपने पिता के होंठो पर रखते हुए कहा।
"आहहह बेटी तुम्हारी ऊँगली से तो बुहत अच्छी सुगंध आ रही है क्या लगाई हो इसमें?" मुकेश ने अपनी बेटी की ऊँगली से आती हुयी ख़ुश्बू को सूँघते हुए अपनी साँसों को ज़ोर से पीछे की तरफ खींचते हुए कहा और अपना मूह खोलकर अपनी बेटी की ऊँगली को अपने मुँह में भरकर चाटने लगा ।

मुकेश को इस बार अपनी बेटी की ऊँगली का स्वाद इतना अच्छा लगा की वह उसकी ऊँगली को बुहत देर तक अपने मुँह में भरकर चाटता रहा।
"पिताजी कैसा था स्वाद?" कंचन ने अपनी ऊँगली को अपने पिता के मुँह से निकालते हुए कहा।
"ओहहहह बेटी तुमने तो मुझे पागल बना दिया है मगर बेटी सच बता यह किस चीज़ का स्वाद था" मुकेश ने अपने मूह से अपनी बेटी की ऊँगली के निकालते ही बुहत ज़ोर से सिसकते हुए कहा ।
 
"पिताजी क्या आपको पता नहीं चला की वह किस चीज़ का स्वाद था?" कंचन ने नीचे होते हुए अपने पिता के लंड पर अंडरवियर के ऊपर से ही अपने हाथों को फेरते हुए बोली।
"ओहहहह बेटी मुझे तो लगा की वह तुम्हारी बुर(चूत) का लज़ीज पानी था क्योंकी तुम्हारी ऊँगली बुहत ज्यादा नमकीन थी" मुकेश ने सिसकते हुए कहा ।

"वाह पिता जी आपने तो सच में पहचान लिया" कंचन ने अपने पिता के अंडरवियर को उनकी टांगों से अलग करते हुए कहा।
"बेटी में इतना भी बुधू नहीं की अपनी बेटी के चूत का इतना लज़ीज स्वाद भी न पहचान सकुं" मुकेश ने अपनी बेटी की बात सुनकर खुश होते हुए कहा ।

कंचन ने जैसे ही अपने पिता के अंडरवियर को उसकी टांगों से अलग किया उसके पिता का लंड पूरी तरह तना हुआ नंगा होकर उसकी आँखों के सामने लहराने लगा।
"पिताजी आपका लंड तो बुहत ज़ोर से झटके खा रहा है" कंचन ने अपने पिता के लंड को गौर से देखते हुए कहा और अपना एक हाथ बढाकर अपना पिता के लंड को अपनी मुठी में पकड लिया ।

"ओहहहहह बेटी यह पगला तो तुम्हारी चूत की सैर करने के ख़याल से ही कब से नाच रहा है" मुकेश ने ज़ोर से सिसकते हुए कहा।
"आह्ह्ह्ह पिताजी आपका तो बुहत गरम है" कंचन ने अपने पिता के लंड पर अपना हाथ आगे पीछे करते हुए कहा।
"ओहहहहह बेटी इसे ज़ोर से सहलाओ" मुकेश ने अपनी बेटी के नरम हाथों को अपने लंड पर महसूस करते ही ज़ोर से सिसकते हुए कहा ।

कंचन अब बुहत तेज़ी के साथ अपने पिता के लंड को अपनी मुठी में भरकर आगे पीछे करने लगी । मुकेश के मुँह से बुहत ज़ोर की सिस्कियाँ निकल रही थी । अचानक कंचन ने थोडा नीचे झुककर अपने पिता के लंड को चूम लिया।
"आह्ह्ह्ह बेटी" कंचन के ऐसा करने से मुकेश के मूह से ज़ोर की सिसकी निकल गयी और उसके लंड के छेद से प्रिकम की कुछ बूँदे निकलने लगी ।

"पिताजी आपका पानी भी कुछ कम टेस्टी नही" कंचन ने अपनी जीभ निकालकर अपने पिता के प्रीकम को चाटने के बाद बोली।
"ओहहहहह बेटी तो अपने पिता के लंड को अपने मुँह में लेकर प्यार करो ना" मुकेश ने ज़ोर से सिसकते हुए कहा।
"हाँ पिताजी लेकिन सिर्फ मैं नहीं आप भी मुझसे प्यार करेंगे" कंचन ने कहा और वह उधर से उठते हुए अपने पिता के मुँह के पास आ गयी ।
 
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