Incest Kahani परिवार(दि फैमिली) - Page 41 - SexBaba
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Incest Kahani परिवार(दि फैमिली)

"दीदी चलो पहले मैं ही बताती हूँ मगर फिर आपको भी सब सच बताना होगा" शीला ने कंचन की बात सुनते हुए कहा और अपने साथ बस में होने वाली हर बात को डिटेल में कंचन को बता दिया।

"शीला दीदी तुम्हें ज़रा भी शर्म नहीं आई। बस में यह सब करते हुये" कंचन ने शीला की पूरी बात सुनने के बाद हैंरान होते हुए कहा ।


"कंचन दीदी जो भी मेरे साथ हुआ मैंने तुम्हें सच बता दिया । अब जल्दी से तुम भी सच सच बताओ" शीला ने उत्तेजना में कंचन की तरफ देखते हुए कहा।

"शीला दीदी मुझे पता है आप ऐसे नहीं मानेंगी मगर तुम्हें मुझसे एक वादा करना होगा की यह बात तुम किसी और को नहीं बताओगी" कंचन ने शीला की बात सुनकर अपने सर को झुकाते हुए कहा ।


"ठीक है दीदी मैं वादा करती हूँ अब जल्दी से बताओ" शीला ने उत्तेजना में बोलते हुए कहा । कंचन ने शीला को अपने और उसके पिता के साथ हुए सेक्स के बारे में सब कुछ बता दिया की कैसे उसने अपने पिता के साथ सेक्स करके मज़ा लूटा।

"कंचन दीदी मुझे अपने कानों पर यकीन नहीं हो रहा है" कंचन की बात सुनकर शीला ने उत्तेजना में आकर कंचन को अपनी बाहों में भरते हुए कहा ।


"शीला दीदी मैं यह सब कर चुकी हूँ मगर फिर भी मुझे अपने आप पर यकीन नहीं हो रहा है की मैं यह सब की तो आपको कैसे यकीन होगा" कंचन ने शीला को उत्तेजित देखकर कहा और वह दोनों आपस में बैठकर बाते करने लगीं ।


विजय जैसे ही कमरे में दाखिल हुआ उसने देखा नरेश बेड पर लेटा हुआ है वह नरेश से बात किये बिना बाथरूम में घुस गया और फ्रेश होकर बाहर निकल आया।

"साले रास्ते में भी मेरी बहन को नहीं छोड़ा क्या?" नरेश ने विजय की तरफ देखते हुए कहा।

"क्यों बे मूह क्यों लटका हुआ है दीदी ने कुछ करने नहीं दिया क्या?" विजय ने नरेश की बात सुनकर मुस्कराते हुए कहा ।
 
"साले तुम्हें कुछ पता भी है यहाँ क्या हो रहा है" नरेश ने विजय की तरफ देखते हुए कहा।

"क्या हुआ है?" विजय ने नरेश के पास बैठते हुए कहा। नरेश ने विजय को रेखा की सुनाई हुई सारी बात बता दी।

"नरेश तुम क्या कह रहे हो । मुझे अपने कानों पर यकीन नहीं हो रहा है" नरेश की बात सुनकर विजय ने हैंरान होते हुए कहा ।


"साले मुझे भी मामी ने यह सब बताया है मुझे भी तुम्हारी तरह शॉक लगा था जब मामी ने मुझे यह सब बताय था" नरेश ने विजय की बात सुनकर कहा।

"नरेश मगर पिता जी तो बुहत शरीफ दीखते हैं वह ऐसा कैसे कर सकते है" विजय ने नरेश की बात सुनकर कहा।

"हाँ साले मैं भी पहले ऐसे ही समझता था की मामा बुहत शरीफ हैं मगर वह भी तुम्हारा बाप है तो तुमसे तो दो कदम आगे ही होगा साले वह मेरी माँ को भी चोद चूका है" नरेश ने गुस्से से विजय की तरफ देखते हुए कहा ।


"साले तो गुस्सा क्यों होते हो तुमने भी तो उसकी पत्नी और बेटी की ले ली है" विजय ने नरेश की बात सुनकर हँसते हुए कहा।

"हँस साले हँस मगर मैं आज मामी की गांड ऐसे मारूँगा के साले तुम भी सारी ज़िंदगी याद रखोगे" नरेश ने विजय को हँसता हुआ देखकर कहा।

"साले मार लेना मुझे कुछ फर्क नहीं पडता" विजय ने नरेश को देखते हुए कहा ।


"तुम बताओ साले रास्ते में क्या किया तुमने दीदी के साथ" नरेश ने कुछ देर बाद शांत होते हुए कहा।

"कुछ ख़ास नहीं यार" विजय ने नरेश की बात सुनकर कहा और उसने बस वाली सारी बात नरेश को बता दिया।

"साले बुहत कमीने हो। तुम ने मेरी दीदी से किसी अन्जान मरद के लंड को सहलवाया" नरेश ने विजय की बात को सुनकर कहा।

"साले वह भी बुहत गरम हो गई थी तो मैंने उसे शांत करवा दिया" विजय ने हँसते हुए कहा और दोनों आपस में बैठकर बाते करने लगे ।


ऐसे ही दिन बीत गया और रात का खाना खाने के बाद सब लोग सोने की तैयारी करने लगे । मनीषा अपने कमरे में करवटें लेते हुए सब लोगों के सोने का इंतज़ार कर रही थी क्योंकी उसका दर्द अब ख़तम हो चुका था और आज उसकी चूत में भी बुहत खुजली हो रही थी इसीलिए उसने आज फिरसे अपने पिता के साथ सोकर अपनी प्यास बुझाने का प्लान किया था ।
 
"साले मेरा लंड दोपहर से मुझे तंग कर रहा है। तेरी माँ कब आएगी और मेरे लंड की प्यास ख़तम होगी" नरेश ने विजय की तरफ देखकर अपने लंड को सहलाते हुए कहा।

"जा बे जब तक माँ आये तुम एक बार शीला दीदी को जाकर चोद ले। साली वह भी दोपहर से गरम है" विजय ने नरेश को सलाह देते हुए कहा।

"साले अगर शीला को चुदता देखकर तेरी बहन गरम हो गई तो फिर उसे कौन शांत करेंगा" नरेश ने विजय की तरफ देखते हुए कहा ।


"तु उसे इधर भेज दो तब तक मैं उससे बातें करता हुँ।" विजय ने नरेश को सलाह देते हुए कहा।

"हाँ यह ठीक है" नरेश ने खुश होते हुए कहा और वहां से निकलकर अपनी बहन के कमरे में आ गया।

"भइया तुम अकेले क्या बात है" शीला ने अचानक नरेश को कमरे में देखकर हैरान होते हुए कहा ।


"कंचन दीदी वह विजय भैया आपको बुला रहे है" नरेश ने कंचन को देखते हुए कहा । कंचन ने उस वक्त एक नाईट ड्रेस पहन रखी थी । नरेश की बात सुनकर वह वहां से निकलकर विजय के कमरे में चलि गई, कंचन के जाते ही नरेश ने दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया और अपने कपड़ों को अपने जिस्म से अलग करने लगा ।


"क्या बात है भैया आज मेरी याद की आ गई" नरेश को कपडे उतारता देखकर शीला ने कहा।

"बाते बाद में कर लेंगे पहले काम ख़तम कर लुँ" नरेश ने पूरी तरह नंगा होने के बाद कहा और शीला के क़रीब जाकर उसको अपनी बाहों में भरकर चूमने लाग, नरेश ने अपनी बहन के होंठो को चूमते हुए उसके नाईट ड्रेस को खोल दिया और उसे शीला के जिस्म से अलग कर दिया ।


नाईट ड्रेस के हटते ही शीला का गोरा जिस्म सिर्फ ब्रा और पेंटी में नरेश के सामने चमकने लगा । नरेश का लंड शीला के जिस्म को देखकर उत्तेजना के मारे झटके खाने लगा, शीला भी दोपहर से अपने जिस्म की आग से जल रही थी वह अपने सामने अपने जवान भाई का कड़क लंड देखकर अपने आपको रोक न सकी और अपने भाई के लंड को अपने हाथ में लेकर सहलाने लगी ।
 
नरेश का पूरा जिस्म अपनी बहन का नरम हाथ अपने लंड पर पडते ही कांप उठा और वह अपनी बहन के होंठो को चूमते हुए उसकी ब्रा को उतारने लगा। ब्रा के उतरते ही नरेश ने अपनी बहन को अपनी गोद में उठाते हुए बेड पर जाकर लिटा दिया और खुद उसकी टांगों के बीच आकर अपनी बहन की गोरी गोरी चुचियों से खेलने लगा ।


नरेश का नंगा लंड सीधा शीला की पेंटी पे टक्कर मार रहा था। जिस वजह से उत्तेजिन के मारे शीला के मूह से ज़ोर की सिसकियाँ निकल रही थी और उसकी चूत से बुह ज़्यादा पानी निकल रहा था।

"आहहह भैया कुछ करो न क्यों तडपा रहे हो" शीला ने उत्तेजना में आकर अपने भाई को बालों से पकडकर अपनी चुचियों पर दबाते हुए कहा ।


नरेश अपनी बहन की बात सुनकर उसकी चुचियों को छोडकर नीचे होने लगा । नरेश ने अपने मूह को शीला की पेंटी तक लाकर रोक दिया और अपनी दीदी की गीली पेंटी को अपने नाक से तेज़ साँसें लेते हुए सूँघने लगा, नरेश कुछ देर तक अपनी बहन की पेंटी को सूँघने के बाद अपना मुँह उसके ऊपर रख दिया ।


"आहहह भैया" नरेश का मुँह अपनी पेंटी के ऊपर से ही अपनी चूत पर लगने से शीला ने सिसकते हुए कहा। नरेश ने कुछ देर तक अपनी बहन की पेंटी को चूमने के बाद उसकी पेंटी में हाथ डालकर उसे अपनी बहन के जिस्म से अलग कर दिया। पेंटी के हटते ही शीला की रस टपकाती चूत नरेश के सामने आ गयी ।


नरेश ने अपनी बहन की गीली चूत को एक बार देखा और नीचे झुककर अपने होंठो को अपनी बहन की चूत के पतले होंठो पर रख दिया।

"आहहह भैया ओह्ह" नरेश के होंठ अपनी चूत पर पडते ही शीला के मुँह से ज़ोर की सिसकी निकल गयी और वह अपने हाथ से अपने भाई के बालों को सहलाते हुए अपनी चूत पर दबाने लगी ।


नरेश कुछ देर तक अपनी बहन की चूत को अपनी जीभ से चाटने के बाद सीधा होते हुए अपना फनफनाता हुआ लंड अपनी बहन की चूत पर घीसने लगा।

"आह्ह्ह्ह ओह भैया डाल दो ना" शीला ने अपने भाई के लंड को अपनी चूत पर महसूस करते ही ज़ोर से सिसकते हुए कहा और अपने चूतडों को उठाकर अपने भाई के लंड पर दबाने लगी ।
 
नरेश ने अपना लंड शीला की चूत पर रखा और एक ज़ोरदार झटके के साथ अपना पूरा लंड उसकी चूत में पेल दिया।

"उईई भैया ओह्ह्ह्ह" एक ही धक्के में अपने भाई का पूरा लंड अपनी चूत में घूसने से शीला के मुँह से ज़ोर की चीख़ निकल गयी । नरेश ने अब अपने लंड को शीला की चूत में अंदर बाहर करना शुरू कर दिया था ।


शीला भी अब मज़े से अपनी टांगों को नरेश की कमर में डालकर उसके लंड को अपनी चूत में अंदर बाहर होता हुआ महसूस कर रही थी । नरेश जैसे ही अपने लंड को शीला की चूत से बाहर खींचकर वापस धक्का मारता तो वह अपने चूतडों को भी उछालकर नरेश के लंड पर दबा देती जिस वजह से पूरे कमरे में धप धप की आवाज़ें गूँजने लगी ।


यह खेल दोनों भाई बहन के बाच 30 मिनट तक चलते रहा उन 30 मिनटों में नरेश ने अपनी बहन को हर तरीके से चोदा। इस बीच शीला भी दो बार झडी एक बार बीच में और दूसरी बार अपने भाई का गरम वीर्य अपनी चूत में गिरने से । वह दोनों निढाल होकर बेड पर पड़े हुए थे दोनों के जिस्म पसीने से भरे हुए थे ।


कंचन कमरे से निकलकर अपने भाई के कमरे में आ गयी विजय अपनी बहन को देखकर उठते हुए बेड पर बैठ गया।

"भइया आपने मुझे बुलाया?" कंचन ने खडे हुए ही विजय से पूछा।

"हाँ दीदी आओ बैठो वह साले नरेश को आग लगी हुयी थी इसीलिए उसने आपको यहाँ भेज दिया" विजय ने कंचन को देखते हुए कहा ।


विजय की बात सुनकर कंचन विजय के साथ बेड पर जाकर बैठ गई।

"दीदी क्या बात है आज बुहत भाव खा रही हो । कहीं पिताजी के साथ ज्यादा मज़ा तो नहीं आ गया तुम्हें" कंचन के बैठते ही विजय ने उसे टोकते हुए कहा।

"भइया आपसे किसने कहा?" कंचन ने हैंरान होते हुए विजय से पुछा। वह जिस बात से डर रही थी वही हुआ । विजय को उसके बारे में पता लग चूका था ।


"दीदी मुझसे भला कोई बात चुप सकती है" विजय ने कंचन को देखते हुए कहा।

"भइया वह माँ ने कहा" कंचन ने शर्म से अपना कन्धा झुकाकर सिर्फ इतना कहा।

"अरे शर्माओ मत मुझे कोई ऐतेराज़ नहीं है" विजय ने कंचन को शरमाता हुआ देखकर कहा ।
 
अचानक दरवाज़ा खुला और रेखा अंदर दाखिल हो गई कंचन अपनी माँ को देखकर बेड से उठकर खड़ी हो गई।

"अरे वाह यहाँ तो बहन भाई का प्यार चल रहा है" रेखा ने अंदर दाखिल होते ही कंचन को घूरते हुए कहा।

"आप कहो तो यहाँ पर माँ बेटे का प्यार शुरू कर दूं" विजय ने बेड से उठकर अपनी माँ को पीछे से अपनी बाहों में भरते हुए कहा ।


"छोड़ो नालायक मुझे। कुछ तो शर्म करो" रेखा ने अचानक अपने बेटे की इस हरकत से परेशान होकर उसे अपने आप से दूर धकेलते हुए कहा।

"क्यों माँ क्या हुआ अपनी बेटी के सामने शर्म आ रही है" विजय ने अपनी माँ से दूर होते ही हँसकर कहा।

"हँस ले बेटे तेरी हंसी को अभी बंद करती हूँ" रेखा ने विजय को हँसता हुए देखकर गुस्से से कहा ।


"क्यों माँ क्या बात है" विजय ने अपनी माँ की बात सुनकर परेशान होते हुए कहा।

"अरे बेटे तुम परेशान क्यों होते हो। वह तुम्हारे पिता आज मुझे तुमसे चुदता हुआ देखना चाहते हैं और कंचन को तेरे सामने चोदना चाहते है" रेखा ने विजय के पास जाकर हँसते हुए कहा ।


"क्या?" कंचन और विजय के मुँह से हैंरानी के मारे एक साथ निकला।

"क्यों बेटे क्या हुआ?" रेखा ने वैसे ही मुस्कराते हुए कहा।

"माँ पिता जी के सामने । कहीं आप मज़ाक तो नहीं कर रही है?" विजय ने हैंरानी से अपनी माँ की तरफ देखते हुए कहा।

"बेटे तुम्हें यह मज़ाक लग रहा है?" रेखा ने विजय की बात सुनकर उसकी तरफ देखते हुए कहा ।


"मगर माँ हम यह नहीं कर सकते" इस बार कंचन ने बोलते हुए कहा।

"नही दीदी हम करेंगे जैसे पिताजी कहेंगे वैसे ही" अचानक विजय ने बीच में बोलते हुए कहा।

"बुहत खूब यह हुई न मरदों वाली बात" रेखा ने खुश होते हुए कहा । कंचन को कुछ समझ में नहीं आ रहा था की क्या हो रहा है । इसीलिए वह चुपचाप खड़ी थी ।


"आओ दोनों मेरे साथ" रेखा ने विजय और कंचन को देखते हुए कहा।

"माँ मगर नरेश हमें यहाँ न देखकर क्या सोचेगा वह तो आपका बेसबरी से इंतज़ार कर रहा था" विजय ने अपनी माँ को देखते हुए कहा।

"तुम उसकी फिकर मत करो उसे बाद में समझ लेंगे" रेखा ने विजय की बात का जवाब देते हुए कहा और वहां से बाहर जाने लगी । विजय भी कंचन का हाथ पकडकर अपनी माँ के साथ उसके कमरे की तरफ बढ़ने लगा ।
 
विजय अपनी बहन के साथ अपनी माँ के पीछे उसके कमरे में पुहंच चूका था । रेखा ने सभी के अंदर दाखिल होने के बाद दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया और खुद कंचन को पकड़कर अपने पति के पास ले जाने लगी।

"डालिंग तुम बच्चों को ले आई। अरे बेटे तुम इतनी दूर क्यों खड़े हो इधर आकर हमारे साथ बैठो" मुकेश ने विजय को दूर खड़ा देखकर कहा ।


"तुम अपनी बेटी को संभालो बुहत शर्मा रही है अपने बेटे को मैं खुद संभाल लूंग़ी" रेखा ने कंचन को अपने पति के पास बेड पर बिठाते हुए कहा।

"हाँ मैं अपनी प्यारी बच्ची को अपने साथ बिठाता हूँ और हम दोनों पहले माँ बेटे का प्यार देंखेंगे ताकी हमारी बेटी की सारी झिझक और शर्म ख़तम हो सके" मुकेश ने बेड से उठकर अपनी बेटी का हाथ पकडते हुए कहा और उसके साथ सामने पड़े सोफ़े पर जाकर बैठ गया ।


"क्यों बेटे आज इतना क्यों शर्मा रहे हो आओ मेरे पास और अपने पिता के सामने मेरे सारे बदन की आग बुझा दो" मुकेश के उठते ही रेखा ने अपनी नाईट ड्रेस को उतार दिया और बेड पर बैठते हुए अपने बेटे की तरफ देखते हुए कहा । रेखा के बदन पर सिर्फ ब्रा और पेंटी थी जिस में उसकी बड़ी बड़ी गोरी चुचियों आधी से ज्यादा ब्रा के बाहर नंगी नज़र आ रही थी और उसकी छोटी सी पेंटी रेखा के बड़े मांसल चूतडों के बीच में ही फंसकर रह गयी थी। जिस वजह से उसके मोटे मोटे चूतड़ बिलकुल नंगे ही नज़र आ रहे थे ।


विजय अपनी माँ की बात सुनकर बेड की तरफ बढ़ने लगा । विजय का लंड अपनी माँ की गोरी चिकनी टांगों और भरे हुए भूरे जिस्म को नंगा देखकर पेण्ट में ही झटके खा रहा था, विजय जैसे ही बेड के क़रीब पुहंचा रेखा बेड से उठकर उससे लिपट गयी और अपने बेटे के सर को पकड़कर उसके पूरे चेहरे को जगह जगह चूमने लगी ।


विजय अपनी माँ के इस रूप को देखकर ज्यादा गरम हो गया और अपनी माँ के नंगे चूतडों में हाथ डालकर उसके बदन को अपने बदन से सटा दिया । विजय अपनी माँ के नंगे चूतडों को ज़ोर से मसलते हुए उसकी चूत को अपनी पेण्ट पर दबाने लगा, रेखा भी अपने बेटे को गले लगाकर मज़े से उसके सीने से अपनी चुचियों को दबाते हुए उसके काँधे को चूमने लगी ।
 
मुकेश अपनी पत्नी और बेटे को इस हालत में देखकर गरम होने लगा और उसने कंचन को कमर से पकड़कर अपनी गोद पर बिठा दिया । कंचन पहले तो अपने पिता से छूटने की कोशिश करने लगी पर जब उसने देखा की उसके पिता उसे नहीं छोड़ने वाले तो वह चुप होकर अपने पिता की गोद में बैठ गयी और अपनी माँ और भाई की तरफ देखने लगी ।


विजय कुछ देर तक अपनी माँ के मोटे चूतड़ों को मसलने के बाद अपना हाथ वहां से हटाकर अपनी माँ के बालों में डाल दिया और उसके सर को पकड़कर अपने होंठो को अपनी माँ के गुलाबी होंठो पर रख दिया । रेखा अपने बेटे के होंठो को अपने होंठो पर महसूस करते ही मज़े के मारे पागल हो गई और वह अपने बेटे के होंठो को बुहत ज़ोर से चूसने लगी, रेखा और विजय कुछ देर तक ऐसे ही एक दुसरे के होंठो को बुहत ज़ोर से चूसते रहे और कुछ देर बाद वह दोनों अपनी साँसें अटकने की वजह से एक दुसरे के होंठो से जुदा होकर हाँफने लगे ।


रेखा ने कुछ देर तक तेज़ साँसें लेने के बाद अपने हाथ से विजय की शर्ट को उसके जिस्म से अलग कर दिया और खुद अपने होंठो से विजय के पूरे सीने को चूमने लगी । रेखा ने अपने बेटे को सीने को चूमते हुए अपनी जीभ निकल ली और अपने बेटे के सीने पर फिराते हुए नीचे जाने लगी, विजय का मज़े के मारे बुरा हाल था। वह अपनी आँखें बंद किये हुए ज़ोर से सिसक रहा था।


रेखा अपनी जीभ को नीचे ले जाते हुए अपने बेटे की पेण्ट तक आ गयी और अपने हाथ से विजय के लंड को पेण्ट के ऊपर से ही सहलाने लगी । रेखा ने कुछ देर तक अपने बेटे के लंड को पेण्ट के ऊपर से ही सहलाने के बाद अपने हाथ से विजय की पेण्ट को खोलकर उसके जिस्म से अलग कर दिया, पेण्ट के हटते ही अंडरवियर में इतना मोटा और लम्बा उभार देखकर मुकेश की आँखें फटी की फटी रह गयी ।


मुकेश ने खवाब में भी नहीं सोचा था की उसके बेटे का लंड इतना बड़ा होगा। विजय के लंड को देखते ही मुकेश का लंड भी उसकी पेण्ट में झटके खाने लगा ।मुकेश ने अपने बेटे और बीबी को देखते हुए अपने हाथों से कंचन की नाइटी को आगे से खोल दिया और अपने दोनों हाथों से अपनी बेटी की दोनों बड़ी बड़ी चुचियों को उसकी ब्रा के ऊपर से ही पकडकर सहलाने लगा ।
 
कंचन भी अपनी माँ और भाई को देखकर गरम हो गई थी । इसीलिए उसने भी अपने पिता से कोई विरोध नहीं किया और चुप चाप अपनी चुचियों को अपने बाप के हाथों से मसलवाने लगी । रेखा ने अपने बेटे की पेण्ट को उतारने के बाद सीधा होते हुए अपने बेटे को हाथ से पकड़कर बेड पर सीधा लिटा दिया, रेखा अपने बेटे को बेड पर लिटाने के बाद खुद भी बेड पर चढते हुए विजय की टांगों के पास बैठ गई ।


रेखा ने एक नज़र अपने बेटे के झटके खाते हुए लंड को उसके अंडरवियर के ऊपर से देखा और नीचे झुककर उसे अपने हाथ में लेकर सहलाने लगी । रेखा ने अपने बेटे के लंड को अपने हाथ से सहलाते हुए अपनी जीभ निकाली और अंडरवियर के ऊपर से ही अपने बेटे के लंड पर अपनी जीभ फिराने लगी।

"आजहहह माँ" विजय ने ज़ोर से सिसकते हुए अपना हाथ रेखा के बालो में डाल दिया ।



रेखा ने अपने बेटे के लंड को अंडरवियर के ऊपर से ही जीभ से चाटते हुए अपना मुँह खोला और विजय के लंड का सुपाडा अपने मुँह में भर लिया । रेखा अपने बेटे के लंड के सुपाडे को अंडरवियर के ऊपर से ही अपने मुँह में लेकर अपने दांतों से हल्का हल्का सा काटने लगी।

"उईई माँ क्या कर रही हो" विजय अपने लंड पर अपनी माँ के दांतों को महसूस करते ही उछलते हुए बोला ।


रेखा ने अपने बेटे के लंड को अपने मुँह से निकाला और अपनी दोनों टांगों को फ़ैलाकर उसके लंड के ऊपर बैठ गई । रेखा अपने बेटे के लंड पर बैठकर उसके लंड को अपनी चूत पर पेंटी के ऊपर से ही घीसने लगी। रेखा बुहत गरम हो चुकी थी इसीलिए उसकी चूत से बुहत ज्यादा पानी निकल रहा था और रेखा के मुँह से उत्तेजना के मारे बुहत ज़ोर की सिस्कियाँ निकल रही थी।


विजय की हालत भी बुहत खराब हो चुकी थी इसीलिए उसने अपनी माँ को कमर से पकडकर नीचे झुका दिया और उसकी बड़ी बड़ी चुचियों के उभारों को अपने होंठो से चूमने लगा । विजय ने अपनी माँ की चुचियों को चूमते हुए उसकी ब्रा को पीछे से खोल दिया और उसे अपनी माँ के जिस्म से अलग करते हुए बेड पर फ़ेंक दिया ।
 
आहहह बेटे क्या कर रहे हो?" रेखा ने सिसकते हुए कहा।

"ओहहह माँ क्या गंध है आपके चूत की" विजय ने अपने मूह को अपनी माँ की चूत से हटाते हुए कहा और अपने हाथों को अपनी माँ की पेंटी में डालकर उसे उसके जिस्म से अलग कर दिया, पेंटी के हटते ही रेखा की गोरी रस टपकाती फूली हुई चूत विजय की ऑंखों के सामने आ गयी ।


कंचन और मुकेश कुछ देर तक एक दुसरे के होंठो से खेलने के बाद शांत होकर विजय और रेखा की तरफ देख रहे थे । मुकेश ने अचानक कंचन को अपने ऊपर से उठाते हुए उसे अपने साथ बेड की तरफ ले जाने लगा, मुकेश अपनी बेटी कंचन के साथ बेड के दुसरे कोने में जा बैठा और नज़दीक से अपनी पत्नी और बेटे को देखने लगा ।


विजय ने अपनी माँ की दोनों टांगों को पकड़कर पूरी तरह से खोल दिया और खुद उसकी फूली हुयी चूत को गौर से देखते हुए अपने अंडरवियर को उतारने लगा।

"कंचन दीदी इधर आओ और अपनी माँ की चूत को चाट कर मेरे लिए तैयार करो" विजय ने अपना अंडरवियर उतारने के बाद अपनी बहन को कलाई से पकडकर अपने पास खींचते हुए कहा ।



नहीं भैया मुझे छोड़ो। मैं यह सब नहीं कर सकती" कंचन ने अचानक अपने भाई की इस हरकत से झटपटाते हुए कहा । मुकेश का लंड भी अपने बेटे की इस हरकत से उत्तेजना में आकर झटके खाने लगा।

"बेटी क्यों शरमा रही वह तेरी माँ ही तो है" मुकेश ने भी उत्तेजना में डूबकर अपने लंड को अंडरवियर के ऊपर से सहलाते हुए कंचन से कहा ।


"नही मैं यह नहीं करूंग़ी" कंचन ने इन्कार करते हुए कहा।

"साली तुम बुहत नखरे करने लगी हो लो अब चाट" विजय ने गुस्से में आकर अपनी बहन को बालों से पकड़कर अपनी माँ की चूत पर झुकाते हुए कहा। विजय के ऐसा करने से कंचन के होंठ सीधा उसकी माँ की चूत पर जा टकराए, कंचन ने अपना मुँह वहां से हटाने की बुहत कोशिश की मगर विजय ने उसे बुहत ज़ोर से अपनी माँ की चूत पर दबा रखा था जिस वजह से उसका मुँह वहां से हटने की बताये रेखा की चूत पर ही रगडने लगा ।
 
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