Incest Stories in hindi रिश्तों मे कहानियाँ - Page 4 - SexBaba
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Incest Stories in hindi रिश्तों मे कहानियाँ

// अपनी भांजी सोनिया की मस्त चुदाई \\
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मैं अपने भाई बहनों में सबसे बड़ा हूँ। उस समय मेरी भांजी सोनिया जिसकी उम्र उस वक्त करीब 18 साल होगी, उसका कद करीब 5 फुट 4 इंच है, रंग गोरा गोरा है, वो बचपन से रात को वो ज्यादातर मेरे साथ ही खेलते खेलते चिपक कर सो जाती थी, उस वक्त तो मुझे कुछ खास महसूस नहीं होता था। लेकिन जब उसके बूब्स करीब संतरे के आकार के हो गए तो रात को जब वो चिपक के सोती तो मेरी हालत ख़राब हो जाती।

हालाँकि तब तक मैं कई लड़कियों को चोद चुका था, तथा कइयों की तो सील भी मैंने ही तोड़ी थी, क्योकि हमारा बिजनेस ही ऐसा था, हमारा रेडीमेड कपड़े बनाने का कारखाना है और हमारे यहाँ मशीनो पर सिर्फ़ लड़कियाँ ही काम करती हैं, हम ज्यादातर कुंवारी लड़कियों को ही काम पर रखते हैं, क्योकि एक तो कम पगार पर मिल जाती थी तथा दूसरे शादी होने पर अपने आप साल दो साल में काम छोड़ कर चली जाती थी। ज्यादातर हमारे यहाँ 19-20 साल की लड़कियाँ काम करती थी।

खैर ये कहानिया मैं आपको बाद मैं लिखूंगा, तो मैं बता रहा था कि रात को जब मेरी भतीजी सोनिया मुझे चिपक के सोती तो उसके बूब्स मेरे सीने में दब जाते थे, उसे इस बारे में पता था या नहीं लेकिन इस हरकत से मेरा 8” लंबा हथियार खड़ा हो जाता और मुझे डर रहता कि कहीं उसका हाथ या पैर मेरे लंड को छू न जाए।

एक रात को जब उसे नींद आ चुकी तो मैंने धीरे से अपना हाथ उसके एक बूब्स पर रख दिया उसके बूब्स कमाल के सख्त थे। मुझसे रहा नहीं गया और मैंने धीरे धीरे उसके बूब्स को दबाना शुरू कर दिय। थोड़ी देर बाद मैंने उसकी नाईट शर्ट के बटन खोल दिए और शमीज के ऊपर से उसके बूब्स को काफी देर तक दबाता रहा, उसने कोई हरकत नहीं की। इससे आगे बढ़ने की मेरी हिम्मत नहीं हुई आख़िर मैंने मूठ मार कर अपने को शांत किया और सो गया।

दूसरे दिन रात को फ़िर में उसके सोने का इंतजार करने लगा कि अचानक उसने मेरा हाथ पकड़ कर अपने बूब्स पर रख लिया और नींद में होने का नाटक किए हुए सोती रही। मुझे समझ में आ गया कि कल रात को उसे सब कुछ मालूम हो चुका था, फ़िर क्या था मैंने उसके नाईट शर्ट के बटन खोल दिए और देख कर हैरान रह गया कि आज उसने अन्दर शमीज ही नहीं पहनी थी। मेरे हाथ सीधे उसके अनछुए बूब्स पर थे, उसके छोटे छोटे पिंक कलर के निप्पल देख कर मेरे तो होश उड़ गए। उस रात मैंने उसके बूब्स को खूब मसला और मुँह में लेकर चूसा भी लेकिन वो सोती रही।

मैंने धीरे से उसके पजामे के ऊपर से उसकी चूत पर हाथ रखा तो मुझे लगा जैसे फूली हुई गद्दी पर हाथ रखा हो, मैंने धीरे से उसके पजामे के अन्दर हाथ डालने की कोशिश की तो वो दूसरी तरफ़ करवट बदल कर ओढ़ कर सो गई, आख़िर उस दिन भी मैंने मूठ मार कर अपने को शांत किया और सो गया।

अगले दिन से उसका व्यव्हार मेरे साथ कुछ बदल सा गया और वो बार-बार मामा- मामा कहकर मेरे साथ चिपकने लगी, मैं समझ गया कि अब इसको चोदने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा लेकिन मौका हाथ नहीं लग रहा था क्योंकि उसी कमरे में मेरे पिताजी भी सोते थे, इसलिए केवल बूब्स दबाकर तथा चूत ऊपर से दबाकर ही संतोष करना पड़ता था, अब तक हम खुल गए थे लेकिन हर बार वो इससे आगे बढ़ने के लिए मना कर देती।

आख़िर एक दिन मुझे मौका मिल ही गया, दीदी और जीजाजी शादी में मुंबई गए थे, पिताजी कारखाने में चले गए, घर पर सिर्फ़ मैं और सोनिया ही थे। सुबह 10 बजे का वक्त होगा, पिताजी के जाने के बाद जब वो नहाने जा रही थी तो मैंने उसे पकड़ लिया और चूमने लगा। तो वो बोली ---- मामा मुझे छोड़ो ! मुझे नहाना है!

मैंने कहा---- चलो आज साथ नहाते हैं,

तो वो शरमा गई, क्योंकि आज तक हमने रात में ही सब कुछ किया था। मैं उसके साथ बाथरूम में घुस गया और उसके कपड़े उतारने लगा। वो न ना करती रही लेकिन मैंने उसकी पेंटी छोड़ कर सब कपड़े उतार दिए और अपने भी अंडरवियर छोड़कर सब कपड़े उतार दिए।

वो शरमा रही थी लेकिन मैंने उसकी एक चूची एक हाथ में तथा दूसरी मुँह में लेकर चूसना शुरू कर दिया। धीरे धीरे उसे भी मजा आने लगा। मैंने जैसे ही उसकी पेंटी को हाथ लगाया उसने कहा ---- मामा ये सब नहीं !

लेकिन मैं जानता था कि आज मौका है, जो करना है आज ही कर लेना है !

मैंने कहा---- कुछ नहीं होगा और जबरन उसकी पेंटी में हाथ डाल दिया। उसकी चूत पर नरम नरम रोयें जैसे छोटे छोटे बाल आना शुरू ही हुए थे, मैंने देखा उसकी चूत पूरी तरह गीली हो रही थी। मैंने उसकी पेंटी उतार दी तो उसने अपनी आँखे बंद करली। मैंने घुटनों के बल बैठ कर उसकी चूत को देखा और अपनी जीभ से उसे चाटने लगा वो सिसकारियाँ भरने लगी और मेरे सर को जोर से अपनी चूत पर दबा लिया।

मैंने उसे कहा---- चलो अन्दर बेडरूम में चलते हैं। वो कुछ नहीं बोली। मैंने उसे उठाया और अन्दर कमरे में बिस्तर पर ले आया। उसने आँखे बंद कर रखी थी, मैंने अपना अंडरवियर उतारा और उसकी बगल में लेट गया। धीरे धीरे उसकी चूत सहलाते हुए मैंने उसका एक हाथ पकड़कर अपने लंड पर रख दिया, उसने उसे पकड़ लिया लेकिन कुछ कर नहीं रही थी। मैंने उसे लंड मुंह में लेने के लिए कहा तो उसने मना कर दिया। मैंने भी ज्यादा जोर नहीं दिया।

मैंने फ़िर उसकी चूत चाटते हुए एक अंगुली उसकी चूत में डाल दी। उउफ्फ !! उसकी माखन जैसी छूट में मेरी उंगली फिसल कर अंदर चली गयी, उसने धीरे से उफ़ किया लेकिन कुछ बोली नहीं, मैं उसकी चूत में उंगली करता रहा, धीरे धीरे उसे भी मजा आने लगा।

फ़िर मैंने उठ कर अपने लंड पर थोड़ा तेल लगाया और उसके पैरों को चौड़ा करके बीच में बैठ गया। वो आँखे बंद करके पड़ी रही। मैंने अपने लंड का टोपा उसकी चूत के मुँह पर रखा और थोड़ा सा जोर लगाया ही था कि वो बोली- हाए मामा, दर्द हो रहा है, जबकि लंड तो अभी पूरा बाहर ही था।

खैर, मैंने थोडी देर उसके बूब्स दबाये और फ़िर थोड़ा जोर लगाया वो फ़िर बोलने लगी कि दर्द होता है। उसकी चूत इतनी टाईट थी कि लंड का टोपा भी अन्दर नही घुस रहा था, मैं उसके ऊपर लेट गया और उसे बातों में लगाया और धीरे धीरे अपने लंड का टोपा उसकी चूत पर रगड़ने लगा तथा उसे कहा कि वो जोर से मुझे बाँहों में भर ले। जैसे ही उसने मुझे बाँहों में लिया, मैंने पूरी ताकत से शोट मारा उसके मुँह से चीख निकल गई ।

एक झटके में मेरा आधा लंड उसकी चूत में घुस चुका था, वो नीचे छटपटाने लगी लेकिन मैंने उसे जकड़ रखा था, वो रोने लगी और कहने लगी मामा आप बहुत गंदे हो, आगे से मैं आपके पास कभी नहीं आउंगी।

मैंने अपना लंड और आगे नहीं दबाया और उतने ही लंड से उसको चोदता रहा। धीरे धीरे उसे भी अच्छा लगने लगा, उसकी बाहें फ़िर मेरी पीठ पर कस गई, जैसे ही उसने अपनी पकड़ टाईट की, मैंने एक जोरदार शोट पूरा लंड बाहर निकाल कर लगा दिया। उसके मुँह से हिचकी सी निकली और वो फ़िर रोने लगी लेकिन अब मैं रुकने वाला नहीं था। मैं उसको पूरी ताकत से चोदे जा रहा था। करीब 10 मिनट बाद उसने मुझे फ़िर बाँहों में भर लिया और अपनी टांगे और चौड़ी कर ली।

अचानक उसकी चूत मेरे लंड को भींचने लगी और वो मुझसे बुरी तरह से चिपक गई। मैं भी आने वाला था, मैंने झटके से अपना लंड बाहर निकाला और उसके पेट पर अपना सारा माल उड़ेल दिया। मेरा लंड बुरी तरह दर्द कर रहा था तथा खून से लाल हो रहा था। 5 मिनट तक हम वैसे ही बेड पर पड़े रहे। जब उठने लगे तो सोनिया उठ नहीं पा रही थी।

जब हमने बेड की तरफ़ देखा तो हमारे होश उड़ गए पूरी बेडशीट लाल हो चुकी थी, यह देख सोनिया घबरा गई और फ़िर रोने लगी, मैंने उसे समझाया और चद्दर बदली, मैंने उसकी चूत पर नहाने के बाद रुई लगाई उससे चला नहीं जा रहा था, मैंने उसे पेनकिलर गोली दी, शाम तक काफी आराम हो गया, उसके बाद 4 दिन तक उसने मुझे हाथ भी नहीं लगाने दिया, लेकिन पांचवे दिन के बाद हमारा खेल फ़िर शुरू हो गया जो करीब 7 साल तक उसकी शादी तक चला।

दोस्तो, कैसे लगी ये कहानी आपको ,
 
मम्मी को बुरी तरह से चोदा


उस समय मैं और मम्मी उस घर में अकेले ही रह गये थे। बड़ा घर था। पापा की असामयिक मृत्यु के कारण मम्मी को उनकी जगह रेल्वे में नौकरी मिल गई थी। मम्मी की आवाज सुरीली थी सो उन्हें मुख्य स्टेशन पर अनांउन्सर का काम मिल गया था।

यूँ तो अधिकतर सभी कुछ रेकोर्डेड होता था पर कुछ सूचनायें उन्हें बोल कर भी देनी होती थी। मम्मी की उमर अभी कोई अड़तीस वर्ष की थी। अपने आप को उन्होंने बहुत संवार कर रखा था। उनका दुबला पतला बदन साड़ी में खूब जंचता था। रेलवे वाले अभी भी उन पर लाईन मारा करते थे। शायद मम्मी को उसमें मजा भी आता था।

मैं भी मम्मी की तरह सुन्दर हूँ... गोरी हूँ, तीखे नयन नक्श वाली। कॉलेज में मेरे कई आशिक थे, पर मैंने कभी भी आँख उठा कर उन्हें नहीं देखा था। हाँ, वैसे मैंने एक आशिक संदीप पाल रखा था। वो मेरा सारा कार्य कर देता था। घर के काम... बाहर के काम... कॉलेज के काम और कभी कभार मम्मी के काम भी कर दिया करता था। वैसे मैं उसे भैया कहकर बुलाती थी... पर मम्मी को पता था कि यह तो सिर्फ़ दिखावे के लिये है।

फिर एक बार मम्मी की अनुपस्थिति में उसने मुझे जबरदस्ती चोद भी दिया था। मेरा कुंवारापन नष्ट कर दिया था।... बस उसके बाद से ही मेरी उससे अनबन हो गई थी। मैंने उससे दोस्ती तोड़ दी थी। यूं तो उसने मुझे मनाने की बहुत कोशिश थी पर उसके लिये बस मन में एक ग्लानि... एक नफ़रत सी भर गई थी। उस समय मैं कॉलेज में नई नई आई ही थी।

घर तो अधिकतर खाली ही पड़ा रहता था। मम्मी की कभी कभी रात की ड्यूटी भी लग जाती थी... वैसे तो उन्हें दिन को ही ड्यूटी करनी पड़ती थी पर इमरजेन्सी में तो जाना ही पड़ता था। मम्मी यह जान कर अब परेशान रहने लगी थी कि मुझे रात को अकेली जान कर कोई चोद ना दे... या चोरी ना हो जाये। हम दोनों ने तय किया कि किसी छात्र को एक कमरा किराये पर दे दिया जाये तो कुछ सुरक्षा मिल सकती है। हम किसी पतिवार को नहीं देना चाहते थे क्योंकि फिर वो घर पर कब्जा करने की कोशिश करने लगते थे। यहाँ तो यह आम सी बात थी। हमें जल्दी ही एक मासूम सा लड़का... पढ़ने में होशियार... मेरे ही कॉलेज का एक लड़का मिल गया।

मम्मी ने जब मुझे बताया तो मुझे भला क्या आपत्ति हो सकती थी। वो मेरा सीनियर भी था। राजेन्द्र फिलिप्स था उसका नाम, जिसे हम रवि कह कर बुलाते थे।

कुछ ही दिनों में उसकी और मेरी अच्छी मित्रता भी हो गई थी। हम दोनों आपस में खूब बतियाते थे। मम्मी तो बहुत ही खुश थी। हम सभी साथ साथ टीवी भी देखते थे। भोजन भी अधिकतर वो हमारे साथ ही करता था। फिर वो एक दिन पेईंग गेस्ट भी बन गया। पांच छ: माह गुजर चुके थे। उसका कमरा मेरे कमरे से लगा हुआ था दोनों के बीच में खिड़की थी जो बन्द रहती थी। कांच टूटे फ़ूटे होने के कारण मैंने एक परदा लगा रखा था। वो अपने कमरे में रात को अक्सर अपने कम्प्यूटर पर व्यस्त रहता था। मुझे रवि से इतने दिनों में एक लगाव सा हो गया था। मैं अब उस पर नजर रखने लगी थी कि वो क्या क्या करता है?

जवान वो था... जवान मैं भी थी, विपरीत सेक्स का आकर्षण भी था। यह कहानी आप अन्तर्वासना.कॉम पर पढ़ रहे हैं।

एक बार खिड़की के छेद से... हालांकि बहुत मुश्किल से दिखता था... पर कुछ तो दिख ही जाता था... मैंने कुछ ऐसा देख लिया कि मेरे दिल में खलबली मच गई। मेरा दिल धड़क उठा था। आज उसके कम्प्यूटर की जगह उसने बदली दी थी, एकदम सामने आ गया था वो। वो रात को ब्ल्यू फ़िल्म देखा करता था। आज उसकी पोल भी खुल गई थी। मुझे भी उसकी लगाई हुई अब तो ब्ल्यू फ़िल्म साफ़ साफ़ दिख रही थी। मुझे अब स्टूल लगा कर नहीं झांकना पड़ रहा था। वो कान में इयरफ़ोन लगा कर फ़िल्म देख रहा था। फिर चूंकि उसकी पीठ मेरी तरफ़ थी इसलिये पता नहीं चला कि वो अपने लण्ड के साथ क्या कर रहा था पर मैं जानती थी कि साहबजादे तो मुठ्ठ मारने की तैयारी कर रहे थे।

वो जब चुदाई देख कर उबलने लग गया तो उसने अपनी पैंट उतार दी और फिर कुर्सी सरका कर नीचे बैठ गया। उसका लम्बा मोटा लण्ड तन कर बम्बू जैसा खड़ा हुआ था। उसने अपने लण्ड की चमड़ी को ऊपर खींच कर सुपारा बाहर निकाल लिया।

इह्ह्ह्ह... चमकदार लाल सुपारा... मेरा मन डोल सा गया।

उसका लण्ड अन्जाने में मुझे अपनी चूत में घुसता जान पड़ा। पर उसकी सिसकी ने ध्यान फिर खींच लिया। उसने अपना हाथ अपने सख्त लण्ड पर जमा लिया। मेरा हृदय घायल सा हो गया... एक ठण्डी आह सी निकल गई। उफ़्फ़ ! क्या बताऊँ मैं... मैं तो बस मजबूर सी खड़ी उसका मुठ्ठ मारना देखती रही और सिसकारियाँ भरती रही। उसका उधर वीर्य छलका, मेरी चूत ने भी अपना कामरस छोड़ दिया। मैंने अपनी चूत दबा ली। मेरी पेंटी गीली हो चुकी थी। मैंने जल्दी से परदा खींच दिया और अपनी चड्डी बदलने लगी।

उस रात को मुझे नींद भी नहीं आई, बस करवटें बदलती रही... और आहें भरते रही... रात को फिर मैंने एक बार पलंग से नीचे उतर कर मुठ्ठ मार ली। पानी निकालकर मुझे कुछ राहत सी मिली और मुझे नींद भी आ गई।

मेरी नजरें अब रवि में कुछ ओर ही देख रही थी, उसके जिस्म को टटोल रही थी। मेरी नजरें अब रवि में सेक्स ढूंढने लगी थी। मेरी जवानी अब बल खाने लगी थी, लण्ड खाने को जी चाहने लगा था। मेरी यह सोच चूत पर असर डाल रही थी, वो बात बात पर गीली हो जाती थी।

कॉलेज में भी मेरा मन नहीं लगता था, घर में भी गुमसुम सी रहने लगी। कैसे रवि से प्रणय निवेदन किया जाये... बाबा रे ! मर जाऊँगी मैं तो... भला क्या कहूँगी उसे...

"क्या हुआ बेटी... कोई परेशानी है क्या?"

"हाँ... नहीं तो... वो कॉलेज में कल टेस्ट है...!"

"तो तैयारी नहीं है...?"

"नहीं मां... सर दुख रहा है... कैसे पढूँगी?"

"आज तो सो जा... यह सर दर्द की गोली खा लेना... कल की कल देखना।"

"अच्छा मां..."

मैंने गोली को देखा... मुझे एक झटका सा लगा... वो तो नींद गोली थी। मम्मी ने कई बार यह गोली मुझे दी थी... पर क्यों?

मेटासिन काफ़ी थी... पर मुझे सर दर्द तो था नहीं, सो मैंने उसे रख लिया।

"जरूर खा लेना और ठीक से सो जाना... सर दर्द दूर हो जायेगा..."

मुझे आश्चर्य हुआ, मैंने कमरे में जाकर ठीक से देखा... वो नींद की गोली ही थी। मैंने उस गोली को एक तरफ़ रख दिया और आँखें बन्द करके लेट गई। दिल में रवि का लण्ड मेरे शरीर में गुदगुदी मचा रहा था। पता नहीं कितनी देर हो गई। रात को मम्मी मेरे कमरे में आई और मुझे ठीक से सुला दिया और चादर ओढ़ा कर लाईट बन्द करके कमरे बन्द करके चली गई। मैंने धीरे से चादर हटा दी और उछल कर खिड़की पर आ गई।

रवि अपनी लुंगी पहने शायद शराब पी रहा था। उसका यह रूप भी मेरे सामने आने लगा था। अपना लण्ड मसलते हुये वो धीरे धीरे शराब पी रहा था। मुझे लगा कि अब वो मुठ्ठ मारेगा।

"उसे नींद की गोली दे दी है... गहरी नींद में सो गई है वो !"

मुझे उसके कमरे से मम्मी की आवाज आई। वो अभी तो मुझे नजर नहीं आ रही थी।

"आण्टी ! बस मेरी एक बात मान जाईये... कमला को एक बार चुदवा दीजिये !"

मेरा दिल धक से रह गया। कमला यानि कि मुझे... ईईईई ईईई... मजा आ गया... ये साला तो मुझे चोदने की बात कर रहा है। मेरी तो खुशी से बांछें खिल गई। अब साले को देखना... कहाँ जायेगा बच कर बच्चू?

तभी मम्मी सामने आ गई। वो बस एक ऊपर तक तौलिया लपेटे हुई थी। शायद स्नान करके ऊपर से बस यूं ही तौलिया लपेट लिया था।

"अरे ! मम्मी ऐसी दशा में..?"

"कमला को चोदना है तो खुद कोशिश करो... मुझे कैसे पटाया था याद है ना? उसे भी पटा लो..."

"उईईईईई... राम... मैं तो यारां ! पटी पटाई हूँ... एक बार कोशिश तो कर मेरे राजा... !!!"

मेरा दिल बल्लियों उछलने लगा था- अरे हराम जादे मुझसे कहा क्यों नहीं? इसमें मम्मी क्या कर लेगी।

तभी मेरी धड़कन तेज हो गई। रवि ने मम्मी के तौलिया के नीचे से मम्मी की गाण्ड को दबा दिया। मम्मी ने अपनी टांग कुर्सी पर रख दी... ओह्ह्ह तो जनाब ने मम्मी की गाण्ड में अंगुली ही घुसेड़ दी है।

वो अपनी अंगुली गाण्ड में घुमाने लगा... मम्मी भी अपनी गाण्ड घुमा घुमा कर आनन्द लेने लगी। तभी मम्मी का तौलिया उनके शरीर से खिसक कर नीचे फ़र्श पर आ गिरा।

मम्मी का तराशा हुआ जिस्म... गोरा बदन... ट्यूब लाईट में जैसे चांदी की तरह चमक उठा। उनकी ताजी चूत की फ़ांकें... सच में किसी धारदार हथियार से कम नहीं थी। कैसी सुन्दर सी दरार थी। चिकनी शेव की हुई चूत। उफ़्फ़्फ़ ! मम्मी... आप भी ना... अभी किसी घातक बम से कम नहीं हो।

मम्मी उससे घूम घूम कर बातें कर रही थी। कभी तो वो मेरी नजरों के सामने आ जाती और कभी आँखों से ओझल हो जाती थी।

तभी रवि ने मम्मी का हाथ पकड़ कर अपने सामने सामने खींच लिया और उनके सुडौल चूतड़ों को दबाने लगा।

उफ़्फ़ ! मम्मी ने गजब कर दिया... उन्होंने रवि की लुंगी झटके उतार दी...

"क्यूं राजा ! मेरे सामने शर्म आ रही है क्या? अपने लण्ड को क्यूं छुपा रखा है?"

रवि ने मुस्करा कर मम्मी के दुद्दू अपने मुख में समा लिये और पुच्च पुच्च करके चूसने लगा। मम्मी धीरे से नीचे बैठ गई और उसका लण्ड सहलाने लगी। मुझे बहुत ही शरम आने लगी... मम्मी यह क्या करने लगी है... अरे... रे...रे ना ना मम्मी... ये नहीं करो... उफ़्फ़ मम्मी भी क्या करती है... उसका लण्ड अपने मुख में लेकर उसे चूसने लगी। मैंने तो एक बार अपनी आँखें ही बन्द कर ली। रवि कभी तो मम्मी के गाल चूमता और कभी उनके बालों को सहलाता।

"जोर से चूसो आण्टी... उफ़्फ़ बहुत मजा आ रहा है... और कस कर जरा..."

अब मम्मी जोर जोर से पुच्च की आवाजें निकालने लग गई थी। रवि की तड़प साफ़ नजर आने लगी थी। फिर मम्मी ने दूसरा गजब कर डाला। मम्मी उसकी कुर्सी के सामने खड़ी हो गई। अपनी एक टांग उसके दायें और एक टांग रवि के बायें ओर डाल दी। उसका सख्त लण्ड सीधा खड़ा हुआ था। दोनों प्यार से एक दूसरे को निहार रहे थे। मम्मी उसके तने हुये लण्ड पर बैठने ही वाली थी... मेरे दिल से एक आह निकल पड़ी। मम्मी प्लीज ये मत करो... प्लीज नहीं ना...

पर मम्मी तो बेशर्मी से उसके लण्ड पर बैठ गई।

मम्मी घुस जायेगा ना... ओह्हो समझती ही नहीं है !!!

पर मैं उसके लण्ड को कीले तरह घुसते देखती ही रह गई... कैसा चीरता हुआ मम्मी की चूत में घुसता ही जा रहा था।

फिर मम्मी के मुख से एक आनन्द भरी चीख निकल गई।

उफ़्फ़्फ़ ! कहा था ना घुस जायेगा। पर ये क्या? मम्मी तो रवि से जोर से अपनी चूत का पूरा जोर लगा कर उससे लिपट गई और और अपनी चूत में लण्ड घुसा कर ऊपर नीचे हिलने लगी।

अह्ह्ह ! वो चुद रही थी... सामने से रवि मम्मी की गोल गोल कठोर चूचियाँ मसल मसल कर दबा रहा था। उसका लण्ड बाहर आता हुआ और फिर सररर करके अन्दर घुसता हुआ मेरे दिल को भी चीरने लगा था। मेरी चूत का पानी निकल कर मेरी टांगों पर बहने लगा था।
मम्मी तो रवि से जोर से अपनी चूत का पूरा जोर लगा कर उससे लिपट गई और और अपनी चूत में लण्ड घुसा कर ऊपर नीचे हिलने लगी।

अह्ह्ह ! वो चुद रही थी... सामने से रवि मम्मी की गोल गोल कठोर चूचियाँ मसल मसल कर दबा रहा था। उसका लण्ड बाहर आता हुआ और फिर सररर करके अन्दर घुसता हुआ मेरे दिल को भी चीरने लगा था। मेरी चूत का पानी निकल कर मेरी टांगों पर बहने लगा था।

मम्मी को चुदने में बिलकुल शरम नहीं आ रही थी... शायद अपनी जवानी में उन्होंने कईयों से लण्ड खाये होंगे... अरे भई ! एक तो मैं भी खा चुकी थी ना ! और अब मुझे रवि से भी चुदने की लग रही थी।

तभी मम्मी उठी और मेज पर अपनी कोहनियाँ टिका कर खड़ी हो गई। उनके सुडौल चूतड़ उभर कर इतराने लगे थे। पहले तो मैं समझी ही नहीं थी... पर देखा तो लगा छी: छी: मम्मी कितनी गन्दी है।

रवि ने मम्मी की गाण्ड खोल कर खूब चाटी मम्मी मस्ती से सिसकारियाँ लेने लगी थी। तब रवि का सुपाड़ा मम्मी की गाण्ड से चिपक गया।

जाने मम्मी क्या कर रही हैं? अब क्या गाण्ड में लण्ड घुसवायेंगी...

अरे हाँ... वो यही तो कर रही है...

रवि का कड़का कड़क लण्ड ने मम्मी की गाण्ड का छल्ला चीर दिया और अन्दर घुस गया। मैं तो देख कर ही हिल गई। मम्मी का तो जाने क्या हाल हुआ होगा... इतने छोटे से छल्ले में लण्ड कैसे घुसा होगा... मैंने तो अपनी आँखें ही बन्द कर ली। जरूर मम्मी की तो बैण्ड बज बज गई होगी।

पर जब मैंने फिर से देखा तो मेरी आँखें फ़टी रह गई। रवि का लण्ड मम्मी की गाण्ड में फ़काफ़क चल रहा था। मम्मी खुशी के मारे आहें भर रही थी... जाने क्या जादू है?

मम्मी ने तो आज शरम की सारी हदें तोड़ दी... कैसे बेहरम हो कर चुदा रही थी। मेरा तो बुरा हाल होने लगा था। चूत बुरी तरह से लण्ड खाने को लपलपा रही थी... मेरा तन बदन आग होने लगा था... क्या करती। बरबस ही मेरे कदम कहीं ओर खिंचने लगे।

मैं वासना की आग में जलने लगी थी। भला बुरा अब कुछ नहीं था। जब मम्मी ही इतनी बेशरम है तो मुझे फिर मुझे किससे लज्जा करनी थी। मैं मम्मी के कमरे में आ गई और फिर रवि वाले कमरे की ओर देखा। एक बार मैंने अपने सीने को दबाया एक सिसकारी भरी और रवि के दरवाजे की ओर चल पड़ी।

दरवाजा खुला था, मैंने दरवाजा खोल दिया। मेरी नजरों के बिलकुल सामने मम्मी अपना सर नीचे किये हुये, अपनी आँखें बन्द किये हुये बहुत तन्मयता के साथ अपनी गाण्ड मरवा रही थी... जोर जोर से आहें भर रही थी।

रवि ने मुझे एक बार देखा और सकपका गया। फिर उसने मेरी हालत देखी तो सब समझ गया।

मैंने वासना में भरी हुई चूत को दबा कर जैसे ही सिसकी भरी... मम्मी की तन्द्रा जैसे टूट गई। किसी आशंका से भर कर उन्होंने अपना सर घुमाया। वो मुझे देख कर जैसे सकते में आ गई। लण्ड गाण्ड में फ़ंसा हुआ... रवि तो अब भी अपना लण्ड चला रहा था।

"रवि ... बस कर..." मम्मी की कांपती हुई आवाज आई।

"सॉरी सॉरी मम्मी... प्लीज बुरा मत मानना..." मैंने जल्दी से स्थिति सम्हालने की कोशिश की।

मम्मी का सर शरम से झुक गया। मुझे मम्मी का इस तरह से करना दिल को छू गया। शरम के मारे वो सर नहीं उठा पा रही थी। मेरा दिल भी दया से भर आया... मैंने जल्दी से मम्मी का सर अपने सीने से लगा लिया।

"रवि प्लीज करते रहो... मेरी मां को इतना सुख दो कि वो स्वर्ग में पहुँच जाये... प्लीज करो ना..."

मम्मी शायद आत्मग्लानि से भर उठी... उन्होंने रवि को अलग कर दिया। और सर झुका कर अपने कमरे में जाने लगी। मैंने रवि को पीछे आने का इशारा किया... मम्मी नंगी ही बिस्तर पर धम से गिर सी पड़ी।

मैं भी मम्मी को बहलाने लगी- मम्मी... सुनो ना... प्लीज मेरी एक बात तो सुन लो...

उन्होंने धीरे से सर उठाया- ...मेरी बच्ची मुझे माफ़ कर देना... मुझसे रहा नहीं गया था... सालों गुजर गये... उफ़्फ़्फ़ मेरी बच्ची तू नहीं जानती... मेरा क्या हाल हो रहा था...

"मम्मी... बुरा ना मानिये... मेरा भी हाल आप जैसा ही है... प्लीज मुझे भी एक बार चुदने की इजाजत दे दीजिये। जवानी है... जोर की आग लग जाती है ना।"

मम्मी ने मेरी तरफ़ अविश्वास से देखा... मैंने भी सर हिला कर उन्हें विश्वास दिलाया।

"मेरा मन रखने के लिये ऐसा कह रही है ना?"

"मम्मी... तुम भी ना... प्लीज... रवि से कहो न, बस एक बार मुझे भी आपकी तरह से..." मैं कहते कहते शरमा गई।

मम्मी मुस्कराने लगी, फिर उन्होने रवि की तरफ़ देखा। उसने धीरे से लण्ड मेरे मुख की तरफ़ बढ़ा दिया।

"नहीं, छी: छी: यह नहीं करना है..." उसका लाल सुर्ख सुपारा देख कर मैं एकाएक शरमा गई।

मम्मी ने मुरझाई हुई सी हंसी से कहा- ...बेटी... कोशिश तो कर... शुरूआत तो यही है...

मैंने रवि को देखा... रवि ने जैसे मेरा आत्म विश्वास जगाया। मेरे बालों पर हाथ घुमाया और लण्ड को मेरे मुख में डाल दिया। मुझे चूसना नहीं आता था। पर कैसे करके उसे चूसना शुरू कर दिया। तब तक मम्मी भी सामान्य हो चुकी थी... अपने आपको संयत कर चुकी थी। उन्होंने बिस्तर की चादर अपने ऊपर डाल ली थी।

मैंने उसका लण्ड काफ़ी देर तक चूसा... इतना कि मेरे गाल के पपोटे दुखने से लगे थे। फिर मम्मी ने बताया कि लण्ड के सुपारे को ऐसे चूसा कर... जीभ को चिपका चिपका कर रिंग को रगड़ा कर... और...

मैंने अपनी मम्मी को चूम लिया। उनके दुद्दू को भी मैंने सहलाया।

"मम्मी... लण्ड लेने से दर्द तो नहीं होगा ना... रवि बता ना...?"

"रवि ... मेरी बेटी के सामने आज मैं नंगी हो गई हूँ... बेपर्दा हो गई हूँ... अब तो हम दोनों को सामने ही तू चोद सकता है... क्यों हैं ना बेटी... मैं तो बाथरूम में मुठ्ठ मार लूंगी... तुम दोनों चुदाई कर लो।"

रवि ने जल्दी से मम्मी को दबोच लिया- ...मुठ्ठ मारें आपके दुश्मन... मेरे रहते हुये आप पूरी चुद कर ही जायेंगी।

कह कर रवि ने मम्मी को उठा कर बिस्तर पर लेटा दिया और वो ममी पर चढ बैठा।

"यह बात हुई ना रवि भैया... अब मेरी मां को चोद दे... जरा मस्ती से ना..."

मम्मी की दोनों टांगें चुदने के लिये स्वत: ही उठने लगी। रवि उसके बीच में समा गया... तब मम्मी के मुख से एक प्यारी सी चीख निकल पड़ी। मैंने मम्मी के बोबे दबा दिये... उन्हें चूमने लगी... जीभ से जीभ टकरा दी... रवि अब शॉट पर शॉट मार रहा था। मम्मी ने मेरे स्तन भी भींच लिये थे। तभी रवि भी मेरे गाण्ड गोलों को बारी बारी करके मसलने लगा था। मेरी धड़कनें तेज हो गई थी। रवि का मेरे शरीर पर हाथ डालना मुझे आनन्दित करने लगा था।

मां उछल उछल कर चुदवा रही थी। मम्मी को खुशी में लिप्त देख कर मुझे भी बहुत अच्छा लग रहा था।

"चोद ... चोद मेरे जानू... जोर से दे लौड़ा... हाय रे..."

"मम्मी... लौड़ा नहीं... लण्ड दे... लण्ड..."

"उफ़्फ़... मेरी जान... जरा मस्ती से पेल दे मेरी चूत को... पेल दे रे... उह्ह्ह्ह"

मम्मी के मुख से अश्लील बाते सुन कर मेरा मन भी गुदगुदा गया। तभी मम्मी झड़ने लगी- उह्ह्ह्ह... मैं तो गई मेरे राजा... चोद दिया मुझे तो... हा: हा... उस्स्स्स... मर गई मैं तो राम...

मम्मी जोर जोर से सांसें भर रही थी। तभी मैं चीख उठी।

रवि ने मम्मी को छोड़ कर अपना लण्ड मेरी चूत में घुसा दिया था।

"मम्मी... रवि को देखो तो... उसने लण्ड मेरी चूत में घुसा दिया..."

मम्मी तो अभी भी जैसे होश में नहीं थी-...चुद गई रे... उह्ह्ह...

मम्मी ने अपनी आँखें बन्द कर ली और सांसों को नियन्त्रित करने लगी।

फिर रवि के नीचे मैं दब चुकी थी। नीचे ही कारपेट पर मुझ पर वो चढ़ बैठा और मुझे चोदने लगा। मैंने असीम सुख का अनुभव करते हुये अपनी आँखें मूंद ली... अब किसी से शरमाने की आवश्यकता तो नहीं थी ना... मां तो अभी चुद कर आराम कर रही थी... बेटी तो चुद ही रही थी... मैंने आनन्द से भर कर अपनी आंखे मूंद ली और असीम सुख भोगने लगी।
दोस्तो, कैसे लगी मेरी कहानी,
 
दो- दो बेटों ने चोद डाला


हाय फ्रेंड्स मेरा नाम सीमा है हम घर में 4 लोग है में मेरा पति ओर 2 बच्चे है मेरी उम्र 35 साल है मेरी फिगर 38-32-38 है मुझे सेक्स का बहुत शौक है रोज में अपने पति से सेक्स के लिये कहती हूँ लेकिन वो कभी कभी ही करते है और सिर्फ़ वो सिर्फ़ चूत में लंड डाल कर चोदते थे इसमे मेरे पति 5 मिनिट में ही झड़ जाते थे जिससे में सटिस्फाइड नही होती थी ओर में मायूस हो जाती थी ओर उंगली से अपने आप को संतुष्ट करके सो जाती थी.


ये रोज का काम बन गया था मेरे दिमाग़ में एक ख्याल आया जैसे की मैने आपको बताया है मेरे दो बेटे है बड़ा वाला राजू 20 साल का ओर छोटा टिंकू 18 साल का मैने उनको मुर्गा बनाने की सोची मैने छुट्टी वाले दिन अपने बड़े बेटे को सुबह नहलाने का ठान लिया था मैने सुबह उठकर 10 बजे उसे उठाया ओर नहाने को कहा ओर बोला तो बहुत काला हो गया है तुझे आज में नहलाऊँगी तो वो मना करने लगा में ज़बरदस्ती उसके साथे बाथरूम में चली गयी उस टाइम मैने एक पतला सा गाउन पहना था मैने उसको कपड़े उतारने को कहा थोड़ी आना कानी के बाद उसने मेरी बात मान ली.


मैने उस पर पानी डाल के उसके साबुन लगाना शुरू किया ओर उसके अंडरवेयर के पास हाथ लगाने लगी मैने उससे बोला चल अब अंडरवेयर भी उतार ओर ज़बरदस्ती उसका अंडरवेयर उतरवा दिया मैने उसका लंड देखा वो बेठा हुआ था 4 इंच का लग रहा था फिर मैने उस पर हाथ फेरना शुरू किया उसने कहा मम्मी गुदगुदी होती है मत करो थोड़ी देर में उसका लंड खड़ा हो गया में देख कर दंग थी की उसका लंड 6 इंच लंबा ओर 2 इंच मोटा था में उस पर हाथ फेर रही थी ओर वो मुझे मना कर रहा था तभी 5 मिनिट के बाद उसने बोला मम्मी मेरा पेशाब निकलने वाला है ओर उसका स्पर्म निकल गया ओर वो थोड़ा घबरा गया ओर कहने लगा.


मम्मी मेरा पेशाब निकल गया लेकिन वो तो बहुत गाड़ा है तभी मुझे पता चला इसे सेक्स के बारे में कुछ नही पता तभी मैने उससे कहा इससे पहले कभी ऐसा नही हुआ तो उसने मना कर दिया ओर कहने लगा मम्मी आपने मेरी लूली को पकड़ा हुआ था मुझे बहुत मज़ा आ रहा था की तभी पेशाब निकल गया तभी मैने उससे कहा अब तो तू बड़ा हो गया है ओर उसको नहला कर अपना गाउन उतारने लगी तब मैने उसको बाहर भेज दिया फिर में भी नहा कर बाहर आई ओर अपने काम में लग गयी दोपहर को 2 बजे वो मेरे पास आया ओर मेरे पास लेट गया तभी मेरे दिमाग़ ने कहा अब इसको शिक्षा दी जाये

तभी मैने उसको कहा तेरी कोई गर्लफ्रेंड है तो उसने मना कर दिया तभी मैने उससे फिर कहा अब तू बड़ा हो गया है कोई गर्लफ्रेंड बना लो तो उसने मुझे कहा क्या मम्मी उससे क्या होगा तभी मैने उसको कहा की तू उसके साथ घूमने जाना ओर ऐश करना ओर फिर उसके पापा आ गये ओर उन्होने कहा मुझे अभी मुंबई जाना है 6 दिन के लिये ओर वो चले गये.


अगले दिन मैने उसे फिर नहलाया ओर फिर उसका स्पर्म निकल गया तभी मैने उसको कहा क्या बेटे तू ये रोज रोज क्या करता है तो वो बोला मम्मी आप जब भी हाथ लगाते हो तो ये बड़ा हो जाता है ओर पेशाब कर देता है तभी मैने उसको बताया बेटा ये स्पर्म है ओर ये निकलना अच्छा होता है तो उसने पूछा क्या तभी मैने फिर देखा उसका लंड तंबू जैसा खड़ा था मैने उससे कहा बेटे जब लड़का बड़ा हो जाता है तो यही होता है ओर उसे बताना शुरू किया की तू इसको आगे पीछे किया कर जिससे तुझे मज़ा आयेगा ओर मैने उसकी मूठ मारनी शुरू कर दी 10 मिनिट के बाद वो फिर संतुष्ट हो गया तभी मैने उससे पूछा मज़ा आया तो उसने कहा बहुत आया ओर

मैने उसे ये भी समझाया की ये चीज़ किसी को मत बताना ओर जब भी उसको यह करना हो तो वो बाथरूम में ही करे ओर उसके बाद नेक्स्ट दिन वो फिर मेरे पास आया ओर कहने लगा मम्मी मैने आज भी किया ओर मुझे बहुत मज़ा आया.


तभी शाम के टाइम जब में उसके रूम में गयी तभी मैने देखा वो मूठ मार रहा था तभी मैने उसे टोक दिया ओर उससे कहा इसे ज़्यादा मत करो सेहत पर असर पड़ता है ओर उसे अपने कमरे में अन्दर ले गई ओर उसको बताना शुरू किया मैने उसको ज़ब कुछ बताया की ये किस काम आता है ओर इसके रस को ऐसे वेस्ट नही करते इन सब बातो से वो बहुत एग्ज़ाइटेड हो गया ओर बूब्स देखने की ज़िद करने लगा तभी मैने उससे गुस्सा किया ओर कहा माँ बेटा ये नही करते ऐसे ही 2-3 दिन निकल गये ओर में अपने छोटे बेटे को तैयार करने लगी.


फिर उसे भी ज़ब कुछ सीखाने लगी ओर उसके साथ ही नंगी हो कर नहा लेती ऐसे ही एक दिन मेरा बड़ा बेटा ओर छोटा बेटा बात कर रहे थे तभी मैने उनकी बाते सुनी उन्होने मूठ मारने की बात की लेकिन एक दूसरे को ये नही बताया की ये सब किसने सीखाया है मेरा बड़ा बेटा बहुत ज़्यादा एग्ज़ाइटेड रहता था ओर जब भी में नहाने जाती या कपड़े चेंज करती वो मुझे चुपचुप के देखता रहता में उसकी यह सब चीज़े नोट कर रही थी ओर बीच बीच में वो मुझे बताता भी रहता मम्मी मैने मूठ मारी थी ओर एक दिन जब वो मूठ मार रहा तो मैने देखा

उसके हाथ में एक किताब थी जिसमे नंगी फोटो थी मैने उसे देखा तो उसने वो छुपा दी और मेरे ज़ोर से बोलने पर उसने वो किताब दे दी ओर में वो ले कर चली गयी अगली दोपहर को वो मेरे कमरे में आया ओर बोला वो किताब प्लीज दे दो तो मैने उसको बोला क्या करेगा तो उसने साफ साफ़ कह दिया आप तो अपने बूब्स दिखाती नही हो तो उसमे ही देखूँगा.


तभी मैने उसे समझाया की इतनी मूठ नही मारते तभी वो बिना कुछ बोले ही चला गया तभी मुझे वो मेरे लायक तैयार लगा ओर शाम को हमारे घर पर में ओर राजू ही थे मेरे पति ओर टिंकू अपनी बुआ के घर गये थे तभी मैने राजू को थोड़ी जानकारी दी और उसको थोड़ा प्यार करके बोली मेरा बेटा नाराज़ है तो वो कुछ नही बोला तभी मैने उसका हाथ अपने बूब्स पर रख दिया वो बिल्कुल पागलो की तरह मुझे देखने लगा

तभी मैने उससे कहा जैसा में कहूँगी वैसा ही कर ना तो वो मान गया मैने अपनी कमीज़ ओर ब्रा उतार दी जिससे मेरे बूब्स कबूतर की तरह आज़ाद हो गये ओर राजू का हाथ उन पर रख दिया ओर उसको दबाने की पर्मिशन दे दी ओर उसे चूसने को भी कहा मुझे अब मज़ा आ रहा था ओर राजू मेरे एक बूब्स को सक कर रहा था ओर दूसरे को दबा रहा था ओर मेरा एक हाथ उसके लंड पर पहुँच गया था ओर दूसरे से में अपनी चूत रग़ड रही थी.


तभी राजू ने कहा मम्मी आप क्या कर रहे हो तभी मैने उसको कहा की आज में तुझे सब सीखा दूँगी ओर मैने उसको कपड़े उतारने को कहा ओर उसको पूरा नंगा कर दिया ओर अपनी भी पेंटी उतार दी ओर उसको 69 की पोज़िशन में लेटने को कहा तो वो कहने लगा ये क्या होता है तभी मैने उसे 69 की पोजिशन में अपने उपर लिया ओर उसको अपनी चूत चाटने को कहा तो वो चाटने लगा ओर उंगली भी करने लगा ओर में उसका लंड चूस रही थी तभी में गर्म हो गयी ओर उसको अपने उपर लेकर कहा अब तू जाकर तेल की बोतल ले आ ओर जो में कहती रही वो करता रहा.


फिर मैने उसके लंड पर तेल लगाया तो वो पूछने लगा ये क्या लगा रहे हो तो मैने उसको बताया की जब पहली बार कोई लड़का किसी औरत की चूत में लंड डालता है तो उसकी थोड़ी टोपी की खाल खीच जाती है जिससे दर्द होता है पर तेल लगाने से लंड बिल्कुल स्मूद जाता है ओर उसका लंड चूत पर लगवा के उसे धक्का देने को कहा पर राजू नया खिलाड़ी था जिससे की धक्का देते ही उसका लंड फिसल कर नीचे चला गया तभी मैने उसका लंड पकड़ कर चूत पर रखा ओर धक्का देने को कहा राजू ने एक बार में ही आधा लंड अंदर डाला ओर मेरी चीख निकल गयी क्योकी उसका लंड मोटा था तभी उसने कहा क्या हुआ मम्मी तभी मैने उसको इशारा करते हुये एक ओर धक्का मारने को कहा जिससे उसका 6 इंच लंबा लंड मेरी चूत में घुस गया ओर उसने मुझे धक्के देने शुरू कर दिये.


में भी अपनी गांड नीचे से हिला कर उसका साथ दे रही थी उसके धक्के इतने जोरदार थे की में बहुत जल्दी झड़ गयी थी ओर 10 मिनिट के बाद मैं उसको ओर तेज बोलते बोलते ही झड़ गयी मगर वो मुझे चोदे जा रहा था ओर 30 मिनिट के बाद उसने मुझे कहा की मम्मी में झड़ने वाला हूँ ओर वो झड़ता हुआ मेरे उपर ही लेट गया उसने मेरी चूत में ही अपना स्पर्म छोड़ दिया तब तक में 2 बार झड़ चुकी थी 10 मिनिट के बाद जब हम अलग हुये तो राजू ने मुझे किस देते हुये कहा मम्मी आपने मुझे मज़ा दिला दिया ओर वो मेरे साइड में लेट गया 10 मिनिट के बाद जब मैने उसके लंड को देखा तो वो फिर खड़ा हुआ था तभी मैने उसको कहा ये फिर केसे खड़ा कर लिया

तभी उसने हँसते हुये कहा मम्मी इसको आपकी चूत बहुत पसंद आई है ओर वो फिर मेरे उपर आ गया उस रात हमने 5 बार चुदाई की ओर हम सो गये. अगले दिन हम सुबह 11 बजे उठे तो मुझसे उठा नही जा रहा था राजू की चुदाई से मेरी चूत बहुत दर्द हो रही थी में हिम्मत करके उठी ओर राजू को उठा कर नहाने चली गयी तभी पीछे पीछे राजू भी बाथरूम में आ गया ओर मेरी चूत को हाथ लगाने लगा मैने उसे चुदाई करने से मना कर दिया ओर

उसको अपनी चूत दिखाई तो वो समझ गया अब ये सिलसिला रोज चलता रहा लेकिन 4 महीने बाद राजू को हॉस्टल जाना पड़ गया ओर में फिर टिंकू को पटाने की सोचने लगी ओर कामयाब भी हो गयी टिंकू ने भी मुझे चोदा मगर 6 महीने में ही राजू हॉस्टल से आ गया ओर तभी राजू फिर से शुरू हो गया. तभी मैने अल्टरनेट डेट बना दी की जिससे मुझे मेरे दोनो बे
टे चोद सके फिर मेरे दिमाग़ में दोनो से एक साथ चुदने का मन हुआ ओर मैने दोनो को एक साथ करके अपनी चुदाई करवाई ओर दोस्तो कैसी लगी मेरी कहानी.
 
दोस्त की माँ


एक दिन की बात है, मैं अपने दोस्त के घर गया हुआ था, वो घर पर नहीं था, यह बात मुझे नहीं पता थी। मैं गया तो उसके घर का दरवाजा खुला हुआ था, तो मैं ऐसे ही उसके घर में घुस गया, मेरा समय अपने घर कम और उसके घर में ज्यादा बीतता था तो उसके घर आना जाना रहता था।

तो हुआ यों कि मैं उसके घर में घुस गया और सीधे उसके कमरे में जाने लगा तो उसके बगल वाले कमरे से मुझे छन छन की आवाज़ आ रही थी जैसे कोई पायल या फिर कोई चूड़ी खनका रहा हो।मैं वापिस पीछे को आया और खिड़की के पास रुक गया और सुनने लगा, मुझे अंदर की आवाज़ ठीक से सुनाई तो नहीं दे रही थी पर इतना दिमाग था कि पहचान सकूँ कि यह किस किस्म की आवाज़ है।

थोड़ा ध्यान दिया आवाज़ की तरफ तो मेरा लंड एकदम से तन गया, अंदर से पेला-पेली की आवाज़ आ रही थी। मैंने बहुत कोशिश की अंदर झांकने की कि कौन है, क्योंकि इससे पहले भी मेरा दोस्त अपने घर में लड़की लाकर खा चुका था, अगर मेरा दोस्त होता तो मुझे भी मौका मिल जाता पर असल में है कौन, वो देखना था मुझे।

मैंने बहुत कोशिश की और अंत में कामयाबी मिली तो देखा कि मेरे दोस्त के मॉम-डैड थे, मुझे थोड़ा अजीब लगा पर यह सब चलता रहता है। मैंने देखा कि अंकल आंटी की टांगों को उठा कर अपने कंधे पर रख कर उनकी ठुकाई कर रहे थे।

मैं कुछ देर वहीं खड़ा रहा और देखता रहा, दस मिनट की चुदाई देख ली, मैंने उसके बाद जो हुआ तब मेरी फट गई।

हुआ ये कि हवा काएक तेज झोंका आया और खिड़की का अंदर का पर्दा उड़ गया और आंटी ने मुझे देख लिया कि मैं देख रहा हूँ, पर मुझे झटका तब लगा जब आंटी ने मुझे देख कर भी अनदेखा किया और अंकल से चुदवाती रही।

अब मुझे लगा कि मेरा वहाँ खड़े रहना खतरे से खाली नहीं है और मैं वहाँ से नौ दो गयारह हो लिया।

अगले दिन मैं फिर से उनके घर गया, पर मुझे बहुत शर्म सी आ रही थी। इस बार मैंने उनके घर की घंटी बजाई और फिर अंदर गया जब मेरे दोस्त ने दरवाजा खोला।

मैं अंदर गया तो उसने मुझसे पूछा- आज क्या हुआ तुझे, आज तूने घंटी बजाई? तू ठीक तो है ना? आज तुझे घंटी बजाने की क्या जरुरत पड़ गई। तब उसकी माँ वहीं बगल से निकल कर गई और मुझे तिरछी नजर से देखा।

मैं क्या बोलता उसे, मैंने बोला- अरे घंटी बजानी चहिये, इसे तमीज़ कहते हैं।

वो बोला- आज तुझे पक्का कुछ हुआ है, चल कोई बात नहीं आ चल कमरे में।

मैं उसके साथ बैठ गया और उसके कंप्यूटर में गेम खेलने लगा, कुछ देर के बाद वो बोला- तू खेल, मैं नहा कर आता हूँ !

और फिर वो नहाने चला गया।

मैं खेलता रहा तब तक उसकी मॉम भी उसी कमरे में आ गई और मुझे पानी दिया पीने को।

मैंने पानी लिया और पीकर गिलास वहीं बाजू में रख दिया। आंटी अब भी वहीं खड़ी थी और जब गिलास उठाने के लिए झुकी तो अपनी चुन्नी गिरा दी और मुझे अपने चुच्चों के दर्शन करा दिए।

मेरी फिर से सूख गई कि यह हो क्या रहा है आजकल।

अब आंटी मुझे देखने लगी और पूछने लगी- क्या देख रहे हो?

मैं क्या जवाब देता, मैं बोला- कुछ नहीं ! गलती से दिख गया।

फिर आंटी बोली- आज गलती से दिख गया और कल जो देखा वो भी क्या गलती थी?

मैंने उन्हें सोरी बोला और फिर आँखें नीची करके चुप बैठा रहा।

वो बोली- कोई बात नहीं पर अगली बार से ऐसा मत करना, अच्छी बात नहीं होती यह सब।

कुछ देर के बाद आंटी फिर से कमरे में आई और मुझे बोली- कल जो देखा और आज जो देखा किसी को बताना मत।

मैंने कहा- जी मैं ये सब बातें नहीं करता किसी से !

फिर आंटी चली गयी। मैं फिर थोड़ी देर के बाद अपने घर चला गया आंटी को बोल कर। घर जाकर मुझे याद आया कि मैं उनके घर में अपना घड़ी भूल गया।

शाम को मैं फिर उनके घर गया और आंटी से दोस्त के लिए पूछा तो वो बोली- वो दोपहर से कहीं गया हुआ है।

मैंने कहा- ठीक है।

फिर मैंने आंटी को बोला कि मैं अपनी घड़ी उसके कमरे में भूल गया हूँ।

आंटी बोली- रुको, मैं लाकर देती हूँ।

आंटी फिर आई और बोली- तुम ही देख लो, मुझे नहीं मिल रही है।

मैं फिर उसके कमरे में गया, देखा कि मेरी घड़ी तो वहीं सामने रखी हुई है, मैंने घड़ी ली और आंटी के कमरे में यह बोलने के लिए गया कि मैंने घड़ी ले ली है, मैं जा रहा हूँ।

पर जब में उनके कमरे में गया तो मेरी आँखें फटी की फटी रह गई। मैंने देखा कि आंटी ब्लाउज और पेटीकोट में खड़ी है और मेरी तरफ ही देख रही हैं जैसे उन्हें मेरा ही इंतज़ार था कि मैं आऊंगा और उन्हें इस हाल में देखूंगा।

मैंने उन्हें देख कर बोला- आंटी, यह क्या? अभी तो आप साड़ी में थी और यह अचानक?

आंटी बोली- तुम्हारे लिए उतार दी।

मैं बोला- आंटी, मैं आपका मतलब नहीं समझा।

वो बोली- इतने भोले मत बनो, आओ मेरे पास आओ, और कल तुमने क्या क्या सीखा मुझे बताओ।

मैं आंटी की तरफ बढ़ा और आंटी से चिपक गया। फिर आंटी ने भी मुझे कस कर गले लगा लिया और मुझे चूमने लगी।

मैंने भी मौके को गंवाया नहीं और उनके होठों को चूसने लग गया।

मैं पहली बार किसी आंटी को चूम रहा था और मुझे आंटी को चूमने में काफी मज़ा आ रहा था। उनके होंठ एकदम किसी जवान लड़की की तरह थे, एकदम वही मज़ा मिल रहा था मुझे।

अब आंटी ने मुझे बिस्तर पे बिठा दिया और मेरे सामने घुटने के बल बैठ गई और मेरी पैंट की ज़िप खोलने लगी। मैं खड़ा हुआ और जल्दी से ज़िप खोल कर उनके सामने मैंने अपना लंड लटका दिया।

आँटी बोली- काफी अच्छा है तुम्हारा लंड !

और फिर उसे पकड़ कर दबाने लग गई। उनके दबाने से तो मेरे अंग अंग में करंट सा दौड़ पड़ा, अब कुछ देर के बाद उन्होंने मेरे लंड को मुँह में ले लिया और उसे कस कस कर चूसने लगी।

वो एकदम उनकी तरह चूस रही थी जैसे ब्लू फिल्म में चूसते हैं, एकदम सर को आगे पीछे कर कर के चूस रही थी।

मैं बिस्तर पर लेट गया और वो मेरा लंड चूसती रही, कुछ देर के चूसने के बाद उन्होंने मेरी पैंट और फिर शर्ट दोनों उतार दी और मेरे पूरे जिस्म को चूमने लगी, फिर एक हाथ से मेरे लंड को दबाए जा रही थी।

कुछ देर के बाद मैंने उन्हें लेटा दिया और उनके चुचों को ब्लाउज़ के ऊपर से ही काटने लगा। थोड़ी देर काटने के बाद उन्होंने खुद अपनी ब्लाउज़ उतार दी और फिर मुझे चूसने को कहा।

मैं उनके एक चुच्चे को चूसता तो दूसरे को मसलता रहता। दस मिनट तक मैं उनकी चूचियों को गर्म करता रहा और वो दस मिनट तक सिसकारियाँ भरती रही।

मैं अब उठा और उनके पेटीकोट के अंदर सर डाल दिया और उनकी पेंटी के ऊपर से ही उनकी चूत को हल्के हल्के काटने लग गया। उनकी पेंटी पूरी गीली हो चुकी थी और उसमें से महक आ रही थी जैसे चूत में से आती है।

मैं उनकी पेटीकोट के अंदर ही पगला गया और उनकी पेंटी की बगल में से उनकी चूत में उंगली करने लगा।

पाँच मिनट के बाद मैंने अपना सर बाहर निकाला और उनकी पेटीकोट के साथ साथ उनकी पेंटी भी उतार दी। अब आंटी मेरे सामने पूरी नंगी थी, उनकी चूत पर काफी बाल थे, पर मुझे उससे कुछ फर्क नहीं पड़ा।

मैं दोबारा उनके चुचों पर टूट पड़ा और उन्हें कस कस कर चूसने लगा। वो अब सिसकारियों पे सिसकारियाँ भरने लगी- ओह ह्मम्म क्या मज़ा आ रहा है और जोर से चूसो इसे, खा जा इसे ऊह ओऊ हम्म्म येह्ह्ह्ह किये जा रही थी।

मैं उन्हें चूमते चूमते उनकी चूत की तरफ आ गया, और फिर उनके चूत के बालों को एक तरफ किया और उनकी चूत में जीभ रगड़ने लग गया। उन्होंने मेरे सर पर हाथ रखा और मुझे अपनी चूत पर कस के दबा लिया, मैं उनकी चूत को और कस के रगड़ने लगा, मैं बीच बीच में उनकी चूत की पंखुड़ियों को अपने होठों से काटने लगा और उनकी चूत की छेद को में अपने जीभ से धकेल भी देता बीच बीच में।

जितने बार उनकी छेद में जीभ से धक्का देता उतनी बार वो सिकुड़ जाती और उफ्फ्फ्फ्फ़ आह करने लग जाती।

अब वो बोली- और कब तक से चूसेगा, जल्दी से अपना प्यारा लंड डाल दे, मैं और नहीं रुक सकती, जल्दी कर।

मैं उठा और उनकी चूत पर लंड सटा दिया और धक्का दिया, पहले जब लंड घुसा तब वो हल्का सा चीखी और फिर शांत हो गई। मैंने धक्का देना शुरु कर दिया और कुछ 8-10 धक्कों के बाद वो भी अपना गांड उठा उठा कर मुझे अपनी चूत देने लगी। उन्होंने मुझे कस के पकड़ लिया, उनकी उंगलियों के नाख़ून मुझे चुभने लगे। मैं फिर भी उन्हें कस कस के धक्का देता गया और वो अपना गांड उठा उठा कर अपनी चूत देने लगी और मेरा लंड जल्दी जल्दी लेने लगी। वो अब तक दो बार झड़ चुकी थी।

मैंने उन्हें अब घोड़ी बनने के लिए बोला तो वो बोली- गांड नहीं दूंगी चूत मार ले।

मैंने कहा- गांड नहीं मारनी, चूत ही मारूंगा मगर पीछे से।

वो बोली- ठीक है।

और फिर घोड़ी बन गई, मैंने पीछे से उनकी चूत में लंड घुसा दिया, मैं अब लंड धीरे धीरे अन्दर बाहर कर रहा था।

मैं फिर एकदम से रुक गया और एक ही झटके में मैंने लंड चूत से हटा के गांड में दे दिया और उनकी गांड फट गई।

वो एकदम से बुरी तरह चीख उठी और मुझे गालियाँ देने लगी, बोली- कुत्ते, तुझे मना किया था न गांड में नहीं तो फिर क्यों दिया?

मैंने उनकी बात नहीं सुनी और गांड मारता रहा, करीब दस मिनट बाद वो खुद अब अपनी गांड पीछे की तरफ धकेलने लगी, मैं आगे की तरफ शोट मारता और वो पीछे की तरफ !

हम दोनों पूरा मज़ा ले रहे थे, इसमे भी वो एक बार झड़ गई और फिर कुछ देर के बाद मैं भी उनकी गांड में झड़ गया।

जब मैंने लंड निकाला तो कुछ पलों के बाद उनकी गांड से मेरा मुठ निकलने लग गया, उन्होंने अपनी गांड में उंगली फेरी और मेरे मुठ को उंगलियो से लेकर चाट गई।

मैंने फिर उनके मुँह में अपना लंड दे दिया और साफ़ करने को बोला।

उन्होंने मेरे लंड को एकदम साफ़ कर दिया और हम दोनों एक दूसरे के ऊपर नंगे लेट कर चूमते रहे।

फिर मैंने उन्हें कहा- अब मैं चलता हूँ फिर कभी और करेंगे।

मैं उठा और कपड़े पहन लिए और वो भी अपनी साड़ी पहनने लगी, और फिर हम पाँच मिनट में ठीक ठाक हो गए।

मैंने आंटी से पूछा- अंकल, तो कल मस्त मजा दे रहे थे फिर मेरी जरुरत क्यों पड़ी?

आंटी बोली- उनका तरीका मस्त है पर जल्दी झड़ जाते हैं, और सिर्फ हफ़्ते में एक बार ही पेलते हैं। मुझसे नहीं रहा जाता, एक तो जल्दी भी झड़ जाते हैं और एक हफ्ता बैठ कर मुठ जमा करते हैं।

मैं उनको कुछ पल तक देखता रहा और फिर एक चुम्मी देके चला गया। इसके बाद तो मैंने आंटी को काफी बार पेल चुका हूँ।


दोस्तो कैसी लगी मेरी कहानी.
 
// कोई तो बचा लो मुझे मेरे देवर के घोड़े जैसे मोटे लंड से //


मैं सामाजिक कार्य में बहुत रुचि लेती हूँ, सभी लोग मेरी तारीफ़ भी करते हैं। मेरे पति भी मुझसे बहुत खुश रहते हैं, मुझे प्यार भी बहुत करते हैं। चुदाई में तो कभी भी कमी नहीं रखते हैं। पर हाँ उनका लण्ड दूसरों की अपेक्षा छोटा है यानि राहुल, रोशन, गोवर्धन, गोविन्द के लण्ड से तो छोटा ही है। पर रात को वो मेरी चूत से ले कर गाण्ड तक चोद देते हैं, मुझे भी बहुत आनन्द आता है उनकी इस प्यार भरी चुदाई से।

पर कमबख्त यह रवि क्या करूँ इसका? मेरा दिल हिला कर रख देता है। जी हाँ, यह रवि मेरे पति का छोटा भाई है, यानि मेरा देवर … जालिम बहुत बहुत कंटीला है… उसे देख कर मेरा मन डोल जाता है। मेरे पति लगभग आठ बजे ड्यूटी पर चले जाते हैं और फिर छः बजे शाम तक लौटते है। इस बीच मैं उसके बहुत चक्कर लगा लेती हूँ, पर कभी ऐसा कोई मौका ही नहीं आया कि रवि पर डोरे डाल सकूँ। ना जाने क्यूँ लगता था कि वो जानबूझ कर नखरे कर रहा है।

आज सवेरे मेरा दिल तो बस काबू से बाहर हो गया। रवि बेडमिन्टन खेल कर सुबह आठ बजे आ गया था और आते ही वो बाथरूम में चला गया। उसकी अण्डरवीयर शायद ठीक नहीं थी सो उसने उतार कर पेशाब किया और सिर्फ़ अपनी सफ़ेद निकर को ढीली करके बिस्तर पर लेट गया। मुझे उसका मोटा सा लण्ड का उभार साफ़ नजर आ रहा था। मेरा दिल मचलने लगा था।

“रवि को नाश्ता करा देना, मैं जा रहा हूँ ! आज मैंने दिल्ली जाना है, दोपहर को घर आ जाऊँगा।” मेरे पति ने मुझे आवाज लगाई और अपनी कार स्टार्ट कर दी।

मैंने देखा कि रवि की अंडरवीयर वाशिंग मशीन में पड़ी हुई थी, उसके कमरे में झांक कर देखा तो वो शायद सो गया था। उसे नाश्ता के लिये कहने के लिये मैं कमरे में आ गई। वो तो दूसरी तरफ़ मुख करके खर्राटे भर रहा था। उसकी सफ़ेद निकर ढीली सी नीचे खिसकी हुई थी, और उसके चूतड़ों के ऊपर की दरार नजर आ रही थी। मैंने ज्योंही उसके पांव को हिलाया तो मेरा दिल धक से रह गया। उसकी निकर की चैन पूरी खुल गई और उसका मोटा, लंबा सा गोरा लण्ड बिस्तर से चिपका हुआ था, उसका लाल सुपाड़ा ठीक से तो नही, पर बिस्तर के बीच दबा हुआ थोड़ा सा नजर आ रहा था।

मेरे स्पर्श करने पर वो सीधा हो गया, पर नींद में ही था वो। उसके सीधे होते ही उसका लण्ड सीधा खड़ा हुआ, बिलकुल नंगा, मदमस्त सा, सुन्दर, गुलाबी सा जैसे मुझे चिढ़ा रहा हो, मुझे मज़ा आ गया। शर्म से मैंने हाथों से अपना चेहरा छुपा लिया और जाने लगी।

कहते हैं ना लालच बुरी बला है … मन किया कि बस एक बार और और उसे देख लूँ…।

मैंने एक बार फिर उसे चुपके से देखा। मेरा मन डोल उठा। मैं मुड़ी और उसके बिस्तर के पास नीचे बैठ गई। रवि के खराटे पहले जैसे ही थे और वो गहरी नींद में था, शायद बहुत थका हुआ था। मैंने साहस बटोरा और उसके लण्ड को अपनी अंगुलियों से पकड़ लिया। वो शायद में सपने में कुछ गड़बड़ ही कर रहा था। मैं उसके लण्ड को सहलाने लगी, मुठ में भर कर भी देखा, फिर मन का लालच और बढ गया।

मैंने तिरछी निगाहों से रवि को देखा और अपना मुख खोल दिया। उसके सुन्दर से सुपाड़े को मुख में धीरे से भर लिया और उसको चूसने लगी। चूसने से उसे बेचैनी सी हुई। मैंने जल्दी से उसका लण्ड मुख से बाहर निकाल लिया और कमरे से बाहर चली आई।

मेरा नियंत्रण अपने आप पर नहीं था, मेरी सांसें उखड़ रही थी। दिल जोर जोर से धड़क रहा था। आँखें बन्द करके और दिल पर हाथ रख कर अपने आप को संयत करने में लगी थी। मैं बार बार दरवाजे की ओट से उसे देख रही थी।

रवि अपने कमरे में नाश्ता कर रहा था … और कह रहा था,”भाभी, जाने कैसे कैसे सपने आते हैं … बस मजा आ जाता है!”

मेरी नजरें झुक सी गई, कहीं वो सोने का बहाना तो नहीं कर रहा था। पर शायद नहीं ! वो स्वयं ही बोल कर शरमा गया था। मैंने हिम्मत करके अपने सीने पर ब्लाऊज का ऊपर का बटन खोल दिया था, ताकि उसे अपना हुस्न दिखा सकूं।

चोरी चोरी वो तिरछी निगाहों से मेरे उभरे हुए स्तनों का आनन्द ले रहा था। उसकी हरकतों से मुझे भी आनन्द आने लगा था। मैंने अपना दिल और कड़ा करके झुक कर अपनी पके आमों गोलाईयाँ और भी लटका दी। इस बीच मेरे दिल की धड़कन बहुत तेज हो गई थी। पसीना भी आने लगा था।

यह कमबख्त जवानी जो करा दे वो भी कम है। मुझे मालूम हो गया था कि मैं उसकी जवानी के रसका आनन्द तो ले सकती हूँ। नाश्ता करके रवि कॉलेज चला गया। मैं दिन का भोजन बनाने के बाद बिस्तर पर लेटी हुई रवि के बारे में ही सोच रही थी। उसका मदमस्त गुलाबी, गोरा लण्ड मेरी आँखों के सामने घूमने लगा। मैंने अपनी चूत दबा ली, फिर बस नहीं चला तो अपना पेटीकोट ऊँचा करके चूत को नंगी कर ली और उसे सहलाने लगी।

जितना सहलाती उतना ही रवि का मोटा लण्ड मेरी चूत में घुसता सा लगता और मेरे मुख से एक सिसकारी सी निकल जाती। मैं अपनी यौवनकलिका को हिला हिला कर अपनी उत्तेजना बढ़ाती चली गई और फिर स्खलित हो गई। दोपहर को दो बजे मेरे पति और रवि दोनों आ चुके थे, फिर मेरे पति दिन की गाड़ी से तीन दिनों के लिये दिल्ली चले गये।

उनके दो-तीन दिन के टूर तो होते ही रहते थे। जब वो नहीं रहते थे तब रवि शाम को खूब शराब पीता था और मस्ती करता था। आज भी शाम को ही वो शराब ले कर आ गया था और सात बजे से ही पीने बैठ गया था। शाम को डिनर के लिये उसने मुझ से पैसे लिये और मुर्गा और तन्दूरी चपाती ले आया था।

मुझे वो बार बार बुला कर पीने के कहता था,”भाभी, भैया तो हैं नहीं, चुपके से एक पेग मार लो !” मस्ती में वो मुझे कहता ही रहा।

“नहीं देवर जी, मैं नहीं पीती हूँ, आप शौक फ़रमायें !”

“अरे कौन देखता है, घर में तो अपन दोनों ही है … ले लो भाभी … और मस्त हो जाओ !”

उसकी बातें मुझे घायल करने लगी, बार-बार के मनुहार से मैं अपने आप को रोक नहीं पाई।

“अच्छा ठीक है, पर देखो, अपने भैया को मत बताना…!” मैंने हिचकते हुए कहा।

“ओये होये, क्या बात है भाभी … मजा आ गया इस बात पर… तुसी फिकर ही ना करो जी … यह देवर भाभी के बीच के बात है…”

मैंने गिलास को मुँह से लगाया तो बहुत कड़वी सी और अजीब सी लगी। मैंने रवि का मन रखने के लिये एक सिप किया और चुपके से नीचे गिरा दी। कुछ ही देर में रवि तो बहकने लगा और अपने मुख से मेरे लिये गाली निकालने लगा, पर मुझे तो वो गालियाँ भी अत्यन्त सेक्सी लग रही थी।

“हिच, मां की लौड़ी, तेरी चूत मारूँ … चिकनी है भाभी … तुम्हारे मुममे तो बहुत मस्त हैं भाभी!” अब उसकी गालियाँ मुझे बहकाने लगी थी।

“ऐ चुप रहो …” मैंने उसे प्यार से सर पर हाथ फ़ेरते हुये कहा।

“यार तेरी चुदी चुदाई चूत दिखा दे ना… साली को चोदना है ! मेरा मोटा लंड तेरी प्यारी चूत में डाल दूँगा” उसने बहकते हुये कहा। आँखों में लाल वासना के डोरे साफ़ नजर आने लगे थे।

“आप सो जाईये अब… बहुत हो गया !”

“अरे मेरी चिकनी भाभी, मेरा लण्ड तो देख, यह देख… तेरे साथ, तुझे नीचे दबा कर सो जाऊँ मेरी जान !”

वो बेशर्म सा होकर, अपनी सुध-बुध खोकर अपना पजामा नीचे सरका कर लण्ड को अपने हाथ में ले कर हिलाने लगा।
मुझे बहुत शरम आने लगी, पर उसकी यह मनमोहन हरकत मेरे दिल में बर्छियाँ चला रही थी। मुझे लगा वो टुन्न हो चुका था। मुझे लगा अच्छा मौका है देवर की जवानी देखने का। दिल कर रहा था कि बस उसका मस्त लौड़ा अपनी चूत में भर लूँ। उसका पाजामा नीचे गिर चुका था। मैंने उसे सहारा दिया तो उसने मुझे जकड़ लिया और मुझे चूमने की कोशिश करने लगा।

उसने अपनी बनियान भी उतार दी, और मस्ती से एक मस्त सांड की तरह झूमने लगा। उसका लंड भी घोड़े के लंड जैसे आगे पीछे झूल रहा था, मुझे पीछे से पकड़ कर अपनी कमर कुत्ते की तरह से हिलाने लगा जैसे कि मुझे वो चोद रहा हो … मैंने उसे बिस्तर पर लेटा दिया। पर उसने मुझे कस कर अपने नीचे दबा लिया और मेरे भरे हुये और उभरे हुये स्तनों को मसलने लगा।

पहले तो मैं नीचे दबी हुई इसका आनन्द उठाने लगी फिर खूब दब चुकी तो देखा कि उसका वीर्य निकल चुका था। मेरा पेटीकोट यहाँ-वहाँ से गीला हो गया था। मैंने उसे अपने ऊपर से उतार दिया और मैं बिस्तर से उतर गई। उसका गोरा लण्ड एक तरफ़ लटक गया था। समय देखा तो लगभग नौ बज रहे थे। मैंने भोजन किया और अपने कमरे में आ कर लेट गई। जो हुआ था अभी उसे सोच-सोच कर आनन्दित हो रही थी, मन बुरी तरह से बहक रहा था।

जोश-जोश में मैंने अपना पेटीकोट ऊपर कर लिया और अपनी चूत दबाने लगी। मैं सोच रही रही थी कि यदि मैं देवर जी से चुदा भी लूँ तो किसी को क्या पता चलेगा ? साला टुन्न हो कर चोद भी देगा तो उसे क्या याद रहेगा। बात घर की घर में रहेगी और जब चाहो तब मजे करो।

शादी से पहले तो मैं स्वतन्त्र थी, और दोस्तों से खूब चुदवाया करती थी। पर शादी के बाद तो पुराने दोस्त बस एक याद बन कर रह गए थे। इसी उधेड़ बुन में मेरी आँख लग गई और मैं सो गई।

अचानक मेरी नींद खुल गई मुझे नीचे कुछ हलचल सी लगी। रवि कमरे में था और उसने मेरा पेटीकोट ऊपर कर दिया था। मेरी नंगी चूत को बड़ी उत्तेजना से वो देख रहा था। उसका चेहरा मेरी चूत की तरफ़ झुक गया। उसका चेहरा वासना के मारे लाल था। मैंने भी धीरे से टांगे चौड़ी कर ली।

तभी एक मीठी सी चूत में टीस उठ गई। रवि की जीभ मेरी चूत की दरार में लपलपाती सी दौड़ गई। मेरी गीली चूत को उसने चाट कर साफ़ कर दिया। मेरी जांघें कांप गई।

उसने नजरें उठा कर मेरी तरफ़ देखा और बोला,”चुदा ले मेरी जान … लण्ड कड़क हो रहा है…!”

अभी शायद वो और पीकर आया था। उसके मुख से शराब का भभका इतनी दूर से भी मेरे नथुनों में घुस गया। उसकी बात सुन कर मेरे शरीर में एक ठण्डी सी लहर दौड़ गई। उसका मुख एक बार फिर से मेरी चूत पर चिपक गया और मेरी चूत में एक वेक्यूम सा हो गया। मुझे लगा यह तो अभी मदहोश है, उसे पता ही नहीं है कि वो क्या कर रहा है। मौका है ! चुदा ही लूँ।

उसने भरपूर मेरी चूत को चूसा, मैं गुदगुदी से निहाल हो गई। बरबस ही मुख से निकल पड़ा,”रवि यूँ मत कर, मैं तो तेरी भाभी हूँ ना…।”

मेरी बेकरारी बढ़ती जा रही थी। मेरी टांगें चुदने के लिये ऊपर होती जा रही थी। तभी उसने अपनी अंगुली मेरी चूत में घुसा दी और मेरे पास आकर मेरे स्तन उघाड़ कर चूसने लगा।

मैं उसे शरम के मारे उसे धकेल रही थी पर चुदना भी चाह रही थी। मेरी दोनों टांगें पूरी उठ चुकी थी। इसी दौरान उसने अपना मोटा लण्ड मेरे मुख में घुसा दिया।

हाय राम ! कब से मैं इसे चूसने के लिये बेकरार थी। मैंने गड़प से उसका लण्ड मुख में ले लिया और आँखें बन्द करके चूसने लगी। उसने भी अपने चूतड़ हिला कर अपने लण्ड को मुख में हिलाया।

उसके लण्ड में बहुत रस जैसा था… मेरे मुख को चिकना किये दे रहा था।

“भाभी, देखो तो आपकी टांगें चुदने के लिये कैसी उठी हुई हैं … अब तो चुदा ही लो भाभी…!”

“देवर जी ना करो ! भाभी को चोदेगा … हाय नहीं, मुझे तो बहुत शरम आयेगी…!”

“पर भाभी, आपकी टांगें तो चुदने के लिये उठी जा रही है” उसने लण्ड को मेरी चूत की तरफ़ झुकाते हुये कहा।

“देवर जी, आप तो बहुत खराब है … ” मैंने तिरछी नजर का एक भरपूर वार किया।

रवि घायल हो कर मेरे ऊपर चढ़ा जा रहा था। अपने आप को मेरे बदन पर सेट कर रहा था। मैंने मस्ती में अपनी आँखें मूंद ली थी। अन्ततः वो मेरी दोनों टांगों के मध्य फ़िट हो गया था। उसका भारी सा लण्ड मेरी चूत पर दबाव डालने लगा था। मेरी चूत ने अपना मुँह खोल लिया और मुँह फ़ाड़ कर लण्ड के सुपाड़े को पकड़ लिया। एक मीठी सी गुदगुदी उठी और लण्ड भीतर समाता चला गया। मेरे मन को एक मीठी सी ठण्डक मिली। इतने दिनों से लण्ड की चाहत में तड़पती रही थी और अब अचानक ही जैसे मन चाही बात बन गई।

उसकी शराब से भरी महक मुझे नहीं भा रही थी पर चुदना तो था ही ना। जाने साधारण अवस्था में वो मुझे चोदता या नहीं, पर नशे में टुन्न उसे भला बुरा कुछ नहीं सूझ रहा था, बस जानवर की तरह उसे चूत नजर आ रही थी, सो लण्ड घुसा घुसा कर उसे चोद रहा था।

मैं भी अपने पूर्ण मन से और तन से उसका साथ देने लगी थी। उसका लण्ड अब पूरा अन्दर तक घुस कर बहुत वासनापूर्ण उत्तेजना दे रहा था। मेरी चूत अपने आप ही ऊपर नीचे चलने लगी थी और आनन्द भोगने में लगी थी। अचानक मेरे सीने में दर्द सा उठा, उसने मेरी चूचियाँ बहुत जोर से दबा दी थी। मेरी यौवन-कलिका लण्ड से घिस घिस कर मेरे तन को सुखमय बना रही थी।

मैं उसे जोर से जकड़ कर उसकी जवानी भोग लेना चहती थी। उसकी कमर मेरी चूत पर जोर जोर से पड़ रही थी। मेरी चूत पिटी जा रही थी। मुझे गुदगुदी ज्रोर से उठने लगी। चूत जैसे लण्ड को पूरा खा जाना चाहती हो … मेरा जिस्म अकड़ने सा लगा। मेरा तन जैसे सारी नसों को खींचने लगा… और मैं एक दम जोर से झड़ गई। मेरी चूत में लहरें सी उठने लगी।

“भोंसड़ी की, तुम्हारी चूत ने तो पानी छोर दिया.. झड़ गई साली … मेरा तो निकला ही नहीं…!” उसकी बात को समझ कर मैंने गाण्ड मराने के उसे धकेल दिया और उल्टी हो कर लेट गई।

“साली छिनाल, गाण्ड मरानी है क्या? वो जैसे गुर्राया।




“भैया जी, बाकी की हसरत मेरी गाण्ड में निकाल दो, मेरी तबियत भी भी हरी हो जायेगी।”

“छीः मैं गाण्ड नहीं मारता … भोसड़ी की आई है बड़ी गाण्ड मराने वाली !”

“गाण्डू है मेरा देवर, भाभी की इतनी सी इच्छा पूरी नहीं कर सकता?”

“मां की लौड़ी, मुझे कह रही है, भेन दी फ़ुद्दी, गाण्ड फ़ट के हाथ में आ जायेगी !”

“ओह्हो, बड़ी डींगे मार रहे हो, और भड़वे, गाण्ड नहीं चोदी जा रही है?”

वो गुर्रा कर और उछल कर मेरी पीठ पर सवार हो गया।

“तेरी मां की चूत … अब तो लण्ड का पानी तो निकाल के रहूँगा…”

उसने अपना लण्ड मेरी गाण्ड में दबा दिया। मैं दर्द से कराह उठी। उसका लण्ड मेरी गाण्ड फ़ाड़ता हुआ आधा अन्दर बैठ गया। उसने फिर जानवरों की तरह मेरे सीने को मसलते हुये दूसरा धक्का मारा। मेरे मुख से चीख सी निकल गई। पर मैं बहुत संतुष्ट थी कि आज मेरी जम कर चुदाई हो रही है। मैंने ईश्वर का धन्यवाद किया कि मेरे मन की मुराद पुरी हो रही थी। थोड़ी दर्द से भरी और थोड़ी से मस्ती भरी !!!

मैंने अपनी गाण्ड के छेद को ढीला छोड़ दिया और लस्त सी बिस्तर पर पसर गई। वो मेरी गाण्ड चोदता रहा और फिर उसने अपना लण्ड बाहर निकाल कर अपना सारा वीर्य मेरे गाण्ड के गोलों पर निकाल दिया। वो कितनी देर तक मुझे नोचता खसोटता रहा, मुझे नहीं मालूम था, मैं तो नींद के आगोश में जा चुकी थी। मेरे मन में संतुष्टि का आलम था। आत्म विभोर सी मैं गहरी नींद में खो गई।

सवेरे मेरी आँख खुली तो रवि नंग धड़ंग मेरे से लिपटा हुआ पड़ा था। मैंने भी सोचा कि ऐसे ही पड़े रहो ताकि उसे याद रहे कि उसने अपनी भाभी को चोदा है। ताकि आगे का रास्ता मेरा सदा के लिये खुल जाये। मैं उसकी बाहों में नंगी ही पड़ी रही। कुछ ही देर में वो भी उठ गया और आश्चर्य से सब कुछ आँखें फ़ाड़ फ़ाड़ कर देखने लगा। वीर्य के निशान और भाभी को नंगा देख कर उसे सब कुछ याद हो आया।

वो जल्दी से उठ गया और अपने आप को ठीक किया। उसने मुझे ध्यान से देखा और मुझ पर झुक गया। मेरे अंग प्रत्यंग को निहारने लगा। उसका लण्ड फिर से खड़ा होने लगा। उसके चेहरे पर फिर से वासना का भाव उभर आया। मैं धीरे से उठी और मैंने अपना चेहरा छिपा लिया। अब मैं शर्माने का अभिनय करने लगी।

“ऐसे मत देखो देवर जी! आपने देखो ये क्या कर दिया ?”

मेरे निर्वस्त्र शरीर के अंगो को वासनामयी दृष्टि से निहारता हुआ बोला,”भाभी, आप इतनी सुन्दर है, यह तो होना ही था !” उसकी नजरें अभी भी मेरी चूत पर ही टिकी हुई थी। मैं कुछ कहती, उसका लण्ड कड़ा होने लगा। सामने यूँ तन कर खड़ा हो गया कि मेरा दिल भी एक बार फिर डोल उठा।

“इसे तो नीचे करो … वर्ना मुझे लग रहा है कि यह तो मेरे जिस्म में फिर से घुस जायेगा।”

मैंने जान कर के उसका लण्ड पकड़ कर नीचे करने लगी। रवि मुस्करा उठा और उसने मुझे फिर से धक्का दे कर बिस्तर पर लेटा दिया। वो उछल कर मेरी पीठ पर सवार हो गया।

“भाभी, पहले गुड-मॉर्निंग तो कर लें !” वो मेरे चूतड़ों के नीचे मेरी टांगों पर बैठ गया। उसका लम्बा लण्ड मेरी चूतड़ो के गोलों पर स्पर्श करने लगा।

“रवि चुप हो जा, बड़ा आया गुड मॉर्निंग करने वाला !”

“इतनी प्यारी और सलोनी गाण्ड का उदघाटन तो करना ही पड़ेगा, भाभी, कर दूँ उदघाटन ?”

मैं शरमा उठी। मेरी गाण्ड चुदने वाली थी, यह सोच कर ही मेरा दिल फिर से खुशी के मारे उछलने लगा था। बस आँखें बंद किये मैं इन्तज़ार कर रही थी कि कब उसका प्यारा लण्ड मेरी गाण्ड का उद्धार कर दे। मेरी चूतड़ की दरार में जैसे खुजली सी मचने लगी।

तभी चूतड़ों के मध्य मुझे नर्म से लण्ड के सुपाड़े का अनुभव हुआ। आह्ह्ह … तो एक बार फिर शुरुआत हो गई है। उसका लण्ड मेरी दोनों चूतड़ों के बीच घुसने लगा। मैंने अपने पांव और खोल दिये और उसका नरम सुपाड़ा मेरी गाण्ड के छेद को छू गया। छेद एक बार तो अन्दर बाहर लप लप हुआ और फिर मैंने उसे ढीला कर दिया।

रावी का जोश देखते ही बनता था। उसने झुक कर मेरे उभार पकड़ कर दबा दिये। मेरी चूचियाँ मसल डाली उस कमबख्त ने …

उधर उसका मोटा लण्ड मेरी गाण्ड को फ़ोड़ता हुआ अन्दर घुसने लगा। मेरी गाण्ड मस्त हो उठी। मेरे मुख से वासनामय सिसकारी फ़ूट पड़ी। उसके मुख से भी एक मोहक सी चीख निकल गई। उसका लण्ड गाण्ड में पूरा उतर गया। उसने अब अपना भार मेरे जिस्म पर डाल दिया और मुझे बुरी तरह लिपट गया।

अब वो नशे में नहीं था। पूरे होशो हवास में मुझे चोद रहा था। उसे चोदने की वास्तविक अनुभूति हो रही थी। अब जो जम कर मेरी गाण्ड चुदाई कर रहा था। मुझे आनन्द के सागर में बहा कर ले जा रहा था। उसने धीरे से मेरे कान में कहा,”भाभी, चूत को चोद दूँ… बहुत जी कर रहा है…!”

रवि तो बस मेरी गाण्ड के पीछे ही पड़ा था … जब उसने भोसड़ा चोदने की बात कही तो “मुझे सीधी तो होने दे… ऐसे कैसे चूत को चोदेगा ?”मैंने वासना भरी आवाज में कहा।

मैं सीधी हो गई और रवि फिर से मेरी टांगों के बीच आ गया और उसने अपने हाथों से मेरी चूत के कपाट खोल दिये। अन्दर रस भरी चूत की गुफ़ा नजर आई, उसने अपना लौड़ा पहले तो हाथ से हिलाया और फिर मेरी गुफ़ा में घुसाता चला गया। बीच में एक दो बार उसने लण्ड बाहर खींचा और फिर पूरा पेन्दे तक उसे फ़िट कर दिया।

मैं खुशी के मारे चीख सी उठी। वो धीरे से मेरे ऊपर लेट गया और मेरे होंठों को उसने अपने होंठों से दबा लिया और रसपान करने लगा। उसके हाथ मेरे सीने को गुदगुदाते और सहलाते रहे। मुझे अब होश कहाँ ! मैंने उसके चूतड़ अपने दोनों हाथों से दबा लिये और खुशी के मारे सिसकने लगी।

मेरी चूत उसके लण्ड के साथ-साथ थाप देने लगी, थप थप की आवाज आने लगी, मेरी चूत पिटने लगी। दोनों की झांटें बीच बीच में कांटों की तरह चुभ कर मजा दुगना कर रही थी। उसकी लण्ड के नीचे गोलियाँ मेरी चूत के नीचे टकरा कर मेरी चूत का मीठापन बढ़ा रही थी।

कैसा सुहाना माहौल था। सुबह सवेरे अगर लौड़ा मिल जाये तो काम देव की आराधना भी हो जाती है, और फिर पूरा दिन मस्ती से गुजरता है।

दिन भर रवि मेरे से चिपका रहा। वो कॉलेज भी नहीं गया, बस कभी मेरी गाण्ड मारता तो कभी मेरी चूत जम के चोद देता था। पति के वापस लौटने तक उसने मुझे चोद-चोद कर रण्डी बना दिया था, मेरी चूत को इण्डिया-गेट बना दिया था, मेरी गाण्ड को समन्दर बना डाला था।
पति के लौटते ही मुझे उसकी चुदाई से कुछ राहत मिली। पर कितनी !!! जैसे ही वो काम पर जाते रवि मुझे चोद देता था।
हाय राम … चुदने की इच्छा तो मेरी ही थी, पर ऐसी नहीं कि वो मेरी चटनी ही बना दे …

आप बतायेंगे पाठकगण, कि मैं उससे पीछा कैसे छुड़ाऊँ ? ना… ना… चुदना तो मुझे उसी से है … पर इतना नहीं…. ।

~~~ समाप्त ~~~

दोस्तो, कैसे लगी ये कहानी आपको ,

कहानी पड़ने के बाद अपना विचार ज़रुरू दीजिएगा ...
 
(जीजाजी ने दिया जवानी का सुख .. मेरी चुदाई करके ...)


मेरी शादी को आज लगभग 15 साल हो गए। मेरी शादी के बाद अपनी पत्नी के अलावा मेरा सबसे पहला सैक्सपिरियन्स मेरी साली रजनी के साथ था। मेरी पत्नी घर में सबसे बड़ी है। उसके बाद उसकी दो साल छोटी बहन तथा लगभग चार साल छोटा भाई है। घर में सब रजनी को प्यार के नाम से "रेनू" कहते हैं।

मेरी पत्नी को पहला बेटा हुआ। जब मैं अपनी पत्नी को अपनी ससुराल से लेने गया तो मेरी साली जो बी.ए. में पढ रही थी, की गर्मियों की छुट्टियाँ चल रही थी और लगभग एक महीने की छुट्टियाँ बाकी थी। मेरी पत्नी ने घरवालों से जिद्द करके, छोटे बच्चे की वजह से रेनू को भी साथ ले लिया। हम सब गुड़गाँव वापस आ गये। मेरी पत्नी और रेनू सारा दिन छोटे बच्चे की देखभाल में लगी रहती। मैंने 10 दिन की छुट्टियाँ ले ली। दिन में मैं और रेनू जब भी खाली होते तो लूडो या कैरम खेलते।

शाम को हम सब पार्क में जाते और अकसर रात का खाना बाहर खाते। मैं रेनू से पूछता कि खाने में क्या लेना है। फिर रेनू की ही पसंदीदा खाना आर्डर करता। हम सब जब भी मार्केट जाते तो मैं रेनू को जरूर से कुछ ना कुछ दिलवाता। रेनू मना करती मगर मैं जबरदस्ती उसे कभी गौगल, कभी पर्स वगैरा कुछ ना कुछ जरुर दिलवाता। चार दिनों में ही रेनू और मैं एक दूसरे से बहुत खुल गये थे। रात को जब मेरी पत्नी छोटे बच्चे को दूध पिलाते-पिलाते सो जाती तो मैं और रेनू देर रात तक बाते करते।

खैर......

एक दिन मेरी पत्नी दोपहर में बच्चे को दूध पिलाते-पिलाते सो गई और रेनू नहाने के लिये चली गई। मैं गैरेज में गाड़ी साफ करने लगा। बाथरुम की छोटी सी खिड़की गैरेज में खुलती थी। खिड़की कुछ उँचाई पर थी। इसलिये आसानी से कुछ देख नहीं सकते थे। मैं जब गाड़ी के टायर पर चढ़ कर गाड़ी की छत साफ कर रहा था तभी मेरी नजर बाथरुम की खिड़की पर पड़ी। बाथरुम में रेनू बिलकुल नंगी शावर के नीचे नहा रही थी। उसका जवान नंगा जिस्म शावर में मेरी तरफ पीठ किये था। उसके नंगे और गोरे बदन पर शावर से पानी की बूंदें गिरकर चमक रही थी।

उसके चूतड़ों की गोलाईयां और गहराइयाँ मेरे नजरों के सामने थी। उस समय मेरे बदन में सनसनी फ़ैल रही थी। फिर वो पलटी और उसने अपना बदन अब मेरे सामने कर दिया। अब मुझे उसके बड़े-बड़े स्तनों पर पानी की बूँदें चमक रही थी, छोटे-छोटे भूरे चुचूक मुझे और उत्तेजित कर रहे थे। उसकी चूत के घने बाल पानी की वजह से चिपके हुऐ थे और लटक रहे थे। शावर का ठंडा- ठंडा पानी उसके शरीर पर पड़ कर बह रहा था। वो कभी अपनी चुंचियाँ मलती, तो कभी अपनी चूत साफ़ करती। मैं उसे देख-देख कर और उत्तेजित होने लगा था।

जब वो नहा चुकी तो अपना बदन तौलिये से पौंछने लगी। वो तौलिये से अपनी चुंचियाँ मल-मल कर पौंछने लगी। उसकी चुंचियाँ कड़ी होने लगी थी। फिर वो तौलिये से अपनी चूत साफ़ करने लगी। उसकी चूत के काले घने बाल तौलिये से पोंछते ही घुँघराले हो गये और उनमें एक चमक नजर आने लगी। उसने अपना बदन तौलिये से पोछ कर कपड़े पहनने शुरू किए। सबसे पहले उसने अपने वक्ष को सफेद ब्रा में कैद किया। फिर अपनी चूत को गुलाबी कच्छी से ढका। फिर उसने सफेद मगर रंगबिरंगा लोअर पहना। फिर वो जैसे ही अपना टॉप पहनने लगी तभी उसकी नजर खिड़की की तरफ पड़ी और उसने मुझे देख लिया। मैं फौरन नीचे हो गया।

वो बाथरूम से बाहर आई और तौलिया सुखाने के बहाने गैराज में आई और अनजान बनते हुए बोली,"अरे... जीजू, आप अभी तक गाड़ी ही साफ कर रहे हैं?"

उसकी नजरें मेरी हाफ पैंट के ऊपर थी। जहां मेरा लण्ड हाफ पैंट के ऊपर से उफनता हुआ दिख रहा था और एक टैंट सा बना रहा था।

मैंने कहा,"बस गाड़ी साफ हो गई। चलो चलें।"

गाड़ी साफ करने का कपड़ा अपनी हाफ पैंट के ऊपर से उफनते हुऐ लण्ड के आगे कर लिया। हम दोनों अन्दर आ गये। मैं आते ही टॉयलेट में घुस गया और अपने उफनते हुए लण्ड को मुठ मार कर शांत किया।

उस दिन से मेरा रोजाना का नियम बन गया, रेनू को खिड़की से झाक कर बाथरुम में नहाते देखने का। जब भी रेनू बाथरुम में नहाने जाती मैं गैराज में किसी ना किसी बहाने चला जाता। रेनू को पता होता था कि मैं उसे छुप-छुप कर देख रहा हूँ। मगर अब वो ओर दिखा-दिखा कर देर तक नहाती। चोरी से खिड़की की तरफ देख कर मुझे अपने को देखते हुए देखती। अब वो जिस समय बाथरूम में नहाने घुसती तो जोर से चिल्ला कर कहती,"दीदी, मैं नहाने जा रही हूँ।"

फिर जब मैं बाथरूम की खिड़की के छेद में से झांक कर देखने लगता तो वो बाथरूम में अपने कपड़े उतारने लगती। अगर मुझे किसी वजह से गैरेज में आने में देर हो जाती तो वो बाथरुम ऐसे ही टाईम पास करती रहती। जब वो गैरेज के गेट खुलने की आवाज सुन लेती तभी वो बाथरुम में अपने कपड़े उतारना शुरु करती। मुझे अपनी ओर आकर्षित करने के लिए वो अनजान बनते हुए सबसे पहले अपना टॉप उतारती। फिर खिड़की की तरफ मुँह करके अपनी ब्रा उतारती। ब्रा उतरते ही जब उसके स्तन उछल कर बाहर आ जाते तो वो उन स्तनों को धीरे-धीरे से सहलाती और अपने चुचुकों को मसलती।

फिर अपनी पीठ करते हुए अपना लोअर उतार देती। फिर खिड़की की तरफ पलट कर अपनी पेंटी भी उतार देती। फिर अपनी चूत को रगड़ती और चूत के बालों में हाथ फिराती और फिर उन बालों को पकड़ कर ऊपर खींचती। फिर पलट कर अपने चूतड़ों की गोलाईयां और गहराइयाँ मेरी नजरों के सामने करती। ऐसा मुझे लगा। खैर......

उसके ऐसा करने से मेरे बदन में सनसनी फ़ैल जाती और मेरा लण्ड तन कर खडा होकर हाफ पैंट के अन्दर उफन जाता और एक टैंट सा बना देता। फिर जब वो शावर खोल कर पानी अपने बदन पर डालने लगती तो मैं हाफ पैंट के अन्दर से अपना लण्ड बाहर निकाल लेता और रेनू को नहाते देखते हुऐ अपने उफनते हुए लण्ड को मुठ मार कर शांत किया करता। फिर जब वो शांत हो जाता और रेनू अपना बदन तौलिये से पोंछ कर कपड़े पहनने शुरू करती तो मैं खिड़की से अलग़ हो जाता।

कई दिनों तक ऐसा ही चलता रहा। मेरी छुट्टियाँ खत्म होने वाली थी। बस दो छुट्टियाँ बची थी।

एक दिन मेरी पत्नी पड़ोस की अपनी सहेली के साथ बच्चे के लिये कुछ कपड़े लेने मार्केट चली गई। जाते-जाते वो मुझ से कहने लगी कि आप यहीं रहो। मैं अपनी फ्रैंड के साथ जा रही हूँ। रेनू सो रही है। रात को छोटे ने काफी परेशान किया। वो बेचारी सारी रात छोटे को खिलाती रही। उसे सोने दो। जब वो उठ जाये तो उसे खाना गर्म करके दे देना।

जब वो चली गई तो मैंने चुपके से देखा कि रेनू स्कर्ट और टी-शर्ट पहन कर सो रही है। मैं बाथरूम में नहाने चला गया। फिर नहा के आकर मैंने फिर रेनू की तरफ देखा तो मैं हैरान रह गया। रेनू सो रही थी। मगर उसकी टी-शर्ट अन्दर ब्रा तक अपर उठी हुई थी और उसकी सफेद ब्रा दिख रही थी। उसकी स्कर्ट उसकी जांघों के उपर तक उठी हुई थी और उसकी जांघों के बीच में उसकी लाल पैंटी दिख रही थी। उसकी लाल पैंटी के उपर उसकी फूली हुई चूत का उभार भी नजर आ रहा था।

मैंने उसे आवाज लगाई- रेनू ! रेनू ! ताकि वो अगर उठे या करवट ले तो उसकी स्कर्ट ठीक हो जाये। मगर वो ना तो उठी ना ही उसने करवट ली। मैं कुछ देर तक उसे निहारता रहा। उसका गोरा-गोरा पेट, चिकनी-चकनी टांगें, भरी-भरी जांघे और जांघों के बीच में उसकी लाल पैंटी के ऊपर उसकी फूली हुई चूत मुझे अपनी तरफ खींच रही थी।

मैं कमरे से बाहर आकर सौफे पे बैठ गया। मेरा दिलो-दिमाग रेनू की ही तरफ था। मन उसको देखने और छूने को कर रहा था। मैं फिर से उठ कर कमरे की तरफ गया। मैंने फिर रेनू की तरफ देखा। रेनू सो रही थी। मैं दरवाज़े पर खडा उसे कुछ देर तक निहारता रहा। उसकी भरी-भरी चिकनी जांघे और जांघों के बीच में उसकी लाल पैंटी के उपर उसकी फूली हुई चूत मुझे बहुत उत्तेजित कर रहे थे।

मैं कमरे के अन्दर जा कर रेनू के पास बैठ गया। मैंने हल्के से उसे आवाज लगाई- रेनू-रेनू......

मगर वो ना तो उठी ना ही उसने करवट ली। मैं फिर कुछ देर तक उसे निहारता रहा। फिर मैंने अपना हाथ उसकी चिकनी जांघ पर रख दिया। कुछ देर बाद मैं उसकी भरी-भरी मासंल जांघ पर हाथ फिराने लगा। फिर मैंने अपना हाथ उसकी लाल पैंटी के ऊपर उसकी फूली हुई चूत पर रख दिया। उसकी फूली हुई चूत मेरी हथेली के गड्डे में सैट हो गई। फिर मैं अपनी हथेली से उसकी फूली हुई को चूत हल्के-हलके से दबाने लगा। रेनू उसी तरह से सो रही थी या सोने का नाटक कर रही थी।

खैर......॥

मेरी हिम्मत बढ़ती जा रही थी। मैं उसकी पैन्टी के अन्दर हाथ डालने की कोशिश करने लगा। मगर उसकी स्कर्ट की वजह से पैन्टी के अन्दर हाथ घुस नहीं पा रहा था। मैंने सावधानी से उसकी स्कर्ट का हुक और साईड चेन खोल दी। फिर मैं उसकी पैन्टी के अन्दर से हाथ डाल कर उसकी चूत के बालों पर हाथ फिराने लगा। रेनू उसी तरह से सो रही थी या सोने का नाटक कर रही थी और मेरी हिम्मत लगातार बढ़ती जा रही थी।

फिर मैं रेनू की चूत के बालों में हाथ फिराते-फिराते अपनी उँगली रेनू की चूत के फाँक के ऊपर फेरने लगा। फिर उंगलियों से रेनू की चूत के फाँक को खोलने और बन्द करने लगा। कुछ देर बाद मैंने अपनी एक उँगली रेनू की चूत के फाँक के अन्दर घुसा कर रेनू की चूत के जी पॉयंट को हल्के-हल्के रगड़ने लगा।

उसकी पैन्टी की वजह से मुझे अपनी उँगली रेनू की चूत के अन्दर डालने और रेनू की चूत के जी-पॉयंट को रगड़ने में दिक्कत हो रही थी। इसलिये मैंने उसकी पैन्टी को धीरे-धीरे से नीचे खींच कर उसके घुटनों पर कर दी। फिर मैंने अपनी एक उँगली रेनू की चूत के अन्दर घुसा उसकी चूत को हल्के-हल्के रगड़ने लगा। कुछ देर बाद मैंने उसकी पैन्टी भी उसकी टांगों से जुदा कर दी और सावधानी से उसकी दोनों टांगों को अलग कर दिया। अब मैं उसकी बगल में लेट कर उसकी चूत के घने बालों पर हाथ फिराने लगा।

फिर मैंने अपना हाथ उसकी चूत पर रख दिया और ऊपर से ही रगड़ने लगा। फिर मैं रेनू की चूत की फांक पर हाथ फिराने लगा। फिर हाथ फिराते-फिराते मैंने अपनी उँगलियाँ रेनू की चूत के अन्दर डाल दी। फिर उंगलियों को रेनू की चूत के फाँको में डाल कर रगडने लगा और उसकी चूत के जी-पॉयंट को अपनी उंगलियों से दबाने और हल्के-हल्के रगड़ने लगा। लगभग 5-7 मिनट बाद रेनू की चूत से कुछ बहुत चिकना सा निकलने लगा।

अचानक रेनू के मुँह से सिसकियाँ निकलने लगी और उसने अपनी आँखें खोल दी और अनजान बनते हुए बोली, "अरे... जीजू कब आए .. और ये क्या कर रहे हैं?"

मैंने कहा "बस अभी ही आया हूँ... और सोचा कि आज रेनू को कुछ मजा कराया जाये। सच बताओ, क्या मजा नहीं आ रहा हैं? मुझे पता है तुम जाग रही थी और मजे ले रही थी। वरना तुम्हारे नीचे से चिकना-चिकना सा नहीं निकलता।"

रेनू मुस्कुराईं और बोली,"नहीं, सच मैं तो सो रही थी। मुझे नहीं पता आप क्या कर रहे थे। और आपने मेरी चड्डी क्यो उतार रखी है।"

उसका झूठ पकड़ में आ रहा था। मैं बोला,"प्लीज़ ! रेनू मजाक मत करो। प्लीज़ ! मेरा साथ दो। हम दोनों मिलकर खूब मजा करेंगे।"

रेनू फिर मुस्कुराईं और बोली,"क्या आपका साथ दूँ और क्या दोनों मिलकर मजा करेंगे। बताईये ना। और मेरी चड्डी क्यो उतार रखी है। आप क्या मजा कर रहे थे। और मेरी चड्डी के अन्दर क्या मजा ढूंढ रहे थे।"

मैंने कहा,"बताऊँ कि मैं तुम्हारी चड्डी के अन्दर क्या मजा ढूंढ रहा था।" कह कर मैंने उसे अपने सीने से चिपका लिया और फिर मैंने अपने जलते हुऐ होंठ रेनू के होंठों पर रख दिए।

फिर मैं उसके नरम-नरम होंठों को अपने होंठों में भर कर चूसने लगा। रेनू ने भी मुझे अपनी बाँहो में कस लिया। फिर मैं रेनू को किस करते-करते अपने हाथ को नीचे ले जाकर उसकी टी-शर्ट के उपर से उसके स्तनों को दबाने लगा। फिर कुछ देर बाद मैं उसकी टी-शर्ट के गले के अन्दर से हाथ डाल कर उसके सख्त हो चुके वक्ष को दबाने लगा।

फिर मैं उसकी टी-शर्ट को उतारने लगा तो रेनू बोली,"जीजू, क्या करते हो। दीदी आने वाली होंगी।"

मैंने कहा,"चिंता मत करो। वो मार्केट गई और दो-तीन घंटे तक नहीं आँएगी।"

यह कह कर मैं फिर उसकी टी-शर्ट को उतारने लगा। अब रेनू ने कोई विरोध नहीं किया। मैंने उसकी टी-शर्ट उतार कर बैड पर फैंक दी। रेनू के बड़े-बड़े और गोरे-गोरे स्तन सफेद ब्रा में फँसे हुए थे। मैं उसकी ब्रा के ऊपर से उसके स्तनों को दबाने लगा। रेनू ने अपनी आंखे बंद कर ली।

कुछ देर बाद मैं उसकी ब्रा के हुक खोल कर उसकी नंगी पीठ पर हाथ फिराने लगा। फिर कुछ देर मैंने उसकी ब्रा भी उसके तन से जुदा कर दी और दोनों कबूतरों को आज़ाद कर दिया और उन्हें पकड़ कर मसलने लगा। मैं उसके गोरे-गोरे सख्त स्तनों को दबाने लगा और साथ-साथ उसके भूरे चुचूकों को हल्के-हल्के मसलने लगा। फिर मैं उसके नरम-नरम गोरे-गोरे स्तनों को अपने होंठों में भर कर चूसने लगा। रेनू के मुँह से सिसकियाँ निकलने लगी। फिर मैंने उसकी खुली पड़ी स्कर्ट को भी उतार कर फैंक दिया। रेनू का नंगा, गोरा और चिकना बदन मेरे सामने था।

फिर मैंने रेनू से अलग हो कर अपने सारे कपड़े उतार दिये और पूरी नंगा होकर रेनू से लिपट गया और मैंने रेनू को अपने साथ सटा कर लिटा लिया। मेरा लण्ड तन कर रेनू की चिकनी टांगों से टकरा रहा था। मैं रेनू की चिकनी टांगों पर हाथ फिराने लगा। उसकी पाव रोटी की तरह उभरी हुई उसकी चूत पर हाथ फेरने लगा। फिर कुछ देर तक उसकी चूत पर हाथ फेरने के बाद मैं अपनी हथेली से उसकी चूत को दबाने लगा।

वो बहुत गरम हो चुकी और जोर-जोर से सिस्कारियां ले रही थी और मेरे बालों पर हाथ फेर रही थी और अपने होंठ चूस रही थी। मैंने उसे धीरे से बिस्तर पर सीधा लिटा दिया और उसकी बगल में लेट कर मैं रेनू की चूत के कट पर हाथ फिराने लगा। फिर हाथ फिराते-फिराते मैंने अपनी उँगलियाँ रेनू की चूत के अन्दर डाल दी। फिर उंगलियों से रेनू की चूत के फाँको को खोलने और बन्द करने लगा। फिर मैं रेनू की चूत के जी पॉयंट को रगड़ने लगा। रेनू के मुँह से सिसकियाँ निकलने लगी। रेनू ने मस्त होकर अपनी आंखें बंद कर ली। कुछ देर बाद रेनू की चूत से कुछ चिकना-चिकना सा निकलने लगा था।

मेरा लण्ड रेनू की जांघों से रगड़ खा रहा था। मैंने रेनू का हाथ पकड़ कर अपने लण्ड पर रख दिया। रेनू ने बिना झिझके मेरा लण्ड अपने हाथ में थाम लिया। वो मेरे लण्ड को अपने हाथ में दबाने लगी। मेरा लण्ड तन कर और भी सख्त हो गया था। रेनू मेरे लण्ड को मुठ्ठी में भर कर आगे-पीछे करने लगी। फिर वो मेरा लण्ड पकड़ कर जोर-जोर से हिलाने लगी।

अब मैं रेनू की चूत मारने को बेताब हो रहा था। मैं रेनू के ऊपर आकर लेट गया। रेनू का नंगा जिस्म मेरे नंगे जिस्म के नीचे दब गया। मेरा लण्ड रेनू की जांघों के बीच में रगड़ खा रहा था।

मैं उसके उपर लेट कर उसके चुचूक को चूसने लगा। वो बस सिस्करियां ले रही थी। फिर मैं एक हाथ नीचे ले जा कर उसकी चूत पर रख कर रगड़ने लगा और फिर एक उंगली उसकी चूत में डाल दी। वो मछली की तरह छटपटाने लगी और अपने हाथों से मेरा लण्ड को टटोलने लगी। मेरा लण्ड पूरे जोश में आ गया था और पूरा तरह खड़ा हो कर लोहे जैसा सख्त हो गया था।

रेनू मेरे कान के पास फुसफसा कर बोली,"ओह जीजू। प्लीज़ ! कुछ करो ना। मेरे तन-बदन में आग सी लग रही हैं।"

ये सुन कर अब मैंने उसकी टांगें थोड़ी ओर चौड़ी की और उसके ऊपर चढ़ गया।

फिर अपने लण्ड का सुपाड़ा उसकी चूत पर रख कर रगड़ने लगा। फिर मैंने अपने लण्ड का सुपाड़ा उसकी चूत पर टिका कर एक जोरदार धक्का मारा जिससे लण्ड का सुपाड़ा रेनू की कुंवारी चूत के हुआ अन्दर चला गया। लण्ड के अन्दर जाते ही रेनू के मुँह से चीख निकल गई और वो अपने हाथ पाँव बैड पर पटकने लगी और मुझे अपने ऊपर से धकेलने की कोशिश करने लगी। लेकिन मैंने उसे कस कर पकड़ा था।

वो मेरे सामने गिड़गिड़ाने लगी, "प्लीज़ जीजू, मुझे छोड़ दीजिए, मैं मर जाऊंगी, बहुत दर्द हो रहा है।

मैंने कहा "रेनू तुम ही तो कह रही थी कि जीजू, प्लीज़ ! कुछ करो ना। मेरे तन-बदन में आग सी लग रही हैं। मैंने इसलिये ही तो तुम्हारे अन्दर डाला है। रेनू तुम चिन्ता मत करो, पहली बार में ऐसा होता है, एक बार पूरा अन्दर जाने के बाद तुम्हें मज़ा ही मज़ा आएगा। पहली बार तुम्हारी दीदी को भी ऐसा ही दर्द हुआ था और अब मैं और तुम्हारी दीदी रोज ये करते हैं और तुम्हारी दीदी अब खूब एनजाय करती है।"

फ़िर मैंने एक और धक्का लगा कर उसकी चूत में अपना आधा लण्ड घुसा दिया। रेनू तड़पने लगी। मैं उसके ऊपर लेट कर उसके उरोज़ों को दबाने लगा और उसके होठों को अपने होठों से रगड़ने लगा। इससे रेनू की तकलीफ़ कुछ कम हुई। अब मैंने एक जोरदार धक्के से अपना पूरा का पूरा लण्ड उसकी चूत के अन्दर कर दिया। मेरा 8" लम्बा और 3" मोटा लण्ड उसके कौमार्य को चीरता हुआ उसकी कुँवारी चूत में समा गया।

इस पर वो चिल्लाने लगी "आहह्ह, मर गई। ओह प्लीज़ जीजू इसे बाहर निकालिये, मैं मर जाउंगी।" उसकी चूत से खून टपकने लगा था।

मैं रुक गया और रेनू से बोला "प्लीज़ ! रेनू, मेरी जान, अब और दर्द नहीं होगा।"

रेनू का यह पहला सैक्सपिरियन्स था। इसलिऐ मैं वही रुक गया और उसे प्यार से सहलाने लगा और उसके माथे को और आँखो को चूमने लगा । उसकी आंख से आंसू निकल आये थे और वो सिस्कारियां भरने लगी थी। यह देख कर मैंने रेनू को अपनी बाँहो में भर लिया।

फिर मैंने अपने जलते हुऐ होंठ रेनू के होंठों पर रख दिए और मैं उसके नरम-नरम होंठों को अपने होंठों में भर कर चूसने लगा, ताकि वो अपना सारा दर्द भूल जाये। कुछ देर बाद उसका दर्द भी कम हो गया और उसने मुझे अपनी बाँहों में से कस लिया। मैंने भी रेनू को अपनी बाँहों में भर लिया। मेरा पूरा लण्ड रेनू की चूत के अन्दर जड़ तक समाया हुआ था। फिर मैं अपने होंठों से उसके नरम-नरम होंठों को चूसने लगा। कुछ देर तक हम दोनो ऐसे ही एक-दूसरे से चिपके रहे और एक-दूसरे के होंठों को चूसते रहे।

फिर मैं अपने लण्ड को उसकी चूत में धीरे-धीरे अन्दर बाहर करने लगा। रेनू ने कोई विरोध नहीं किया। अब शायद उसका दर्द भी खत्म होने लगा था और वो जोश में आ रही थी और अपनी कमर को भी हिलाने लगी थी। उसकी चूत में से थोडा सा खून बाहर आ रहा था जो इस बात का सबूत था कि उसकी चूत अभी तक कुंवारी थी और आज ही मैंने उसकी सील तोड़ी है।

उसकी चूत बहुत टाइट थी और मेरा लण्ड बहुत मोटा था और काफ़ी लंबा भी, इसलिए मुझे रेनू को चोदने में बहुत मजा आ रहा था। मैं अपने लण्ड को धीरे-धीरे से रेनू की चूत के अन्दर-बाहर कर रहा था। फिर कुछ देर बाद रेनू ने अपनी टांगें उपर की तरफ मोड़ ली और मेरी कमर के दोनों तरफ लपेट ली।

मैं अपने लण्ड को लगातार धीरे-धीरे रेनू की चूत के अन्दर-बाहर कर रहा था। धीरे-धीरे मेरी रफ़्तार बढ़ने लगी। अब मेरा लण्ड रेनू की चूत में तेजी से अन्दर-बाहर हो रहा था। मैं रेनू की चूत में अपने लण्ड के तेज-तेज धक्के मारने लगा था।

थोड़ी देर में रेनू भी नीचे से अपनी कमर उचका कर मेरे धक्कों का ज़वाब देने लगी और मज़े में बोलने लगी " सी ... सी... और जोररर से जीजुजुजु......... येसस्स्स्स्सअरररऽऽ बहुत मज़ा आ रहा है और अन्दर डालो और जीजू और अन्दर येस्स्स्स्सऽऽ जोर से करो। प्लीज़ ! जीजू तेज-तेज करो ना। आज मुझे बहुत मज़ा आ रहा है।"

रेनू को सचमुच में मजा आने लगा था। वो जोर जोर से अपने कूल्हे हिला रही थी और मैं तेज़-तेज़ धक्के मार रहा था। वो मेरे हर धक्के का स्वागत कर रही थी। उसने मेरे कूल्हों को अपने हाथों में थाम लिया। जब मैं लण्ड उसकी चूत के अन्दर घुसाता तो वो अपने कूल्हे पीछे खींच लेती। जब मैं लण्ड उसकी चूत में से बाहर खींचता तो वो अपनी जांघें उपर उठा देती।

मैं तेज-तेज धक्के मार कर रेनू को चोदने लगा। फिर मैं बैड पर हाथ रख कर रेनू के ऊपर झुक कर तेजी से उसकी चूत मारने लगा। अब मेरा लण्ड रेनू की चिकनी चूत में आसानी और तेजी से आ-जा रहा था। रेनू भी अब चुदाई का भरपूर मजा ले रही थी। वो मदहोश हो रही थी।

मैंने रुक कर रेनू से कहा, "रेनू अच्छा लग रहा है ?"

रेनू बोली, "हाँ जीजू बहुत अच्छा लग रहा है। प्लीज़ ! रुको मत। तेज-तेज करते रहो। हाँ प्लीज़ ! तेज-तेज करो। मैं अन्दर से डिस्चार्ज होने वाली हूँ। प्लीज़ ! चलो करो। अब रुको मत। तेज-तेज करते रहो।"

रेनू के मुहँ से ये सुन कर मैंने फिर से रेनू को चोदने शुरु कर दिया और अपनी रफ्तार को और बढ़ा दिया। मैंने रेनू के बड़े-बड़े हिप्स को अपने हाथों से जकड़ लिया और छोटे-छोटे मगर तेज-तेज शॉट मार कर रेनू को चोदने लगा। रेनू के मुँह से मस्ती में "ओह्ह्ह्ह्ह् होहोहोह सिस्स्स्स्स्स्स ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह हाहाह्ह्हआआआआ हा-हा करो-करो ऽअआह हाहअआ प्लीज़ ! जीजू तेज-तेज करो।"

करीब 15 मिनट की चुदाई के बाद वो झड़ने वाली थी तभी हम दोनों एक साथ अकड़ गये और एक साथ जोर-जोर से धक्के मारने लगे। फिर अचानक रेनू ने मुझे कस कर अपनी बाँहो में भर लिया और बोली "जीजू मेरा काम होने वाला है। प्लीज़ ! जोर-जोर से करो येस-येस अररर् और जोर से य...य...यस यससस मैं हो गईईईईईईई...! इसके साथ ही रेनू की चूत ने अपना पानी छोड़ दिया। उसने एक जोर से आह भरी और फिर वो ढीली पड़ गई।

मैं समझ गया कि रेनू डिस्चार्ज हो गई है। लेकिन मेरा काम अभी नहीं हुआ था इसलिए मैं जोर-जोर से अपने लण्ड से रेनू की चूत को पेलने लगा। मैं भी डिस्चार्ज होने वाला था, इसलिये मैं तेज-तेज धक्के मारने लगा। रेनू रोने सी लगी और मेरे लण्ड को अपनी चूत में से बाहर निकालने के लिए बोलने लगी। लेकिन मैंने उसकी बातों को अनसुना कर धक्के लगाना जारी रखा।
 
cont......................

करीब 2-3 मिनट तक रेनू को तेज-तेज चोदने के बाद जब मैं डिस्चार्ज होने लगा तो मैंने अपना लण्ड रेनू की चूत से बाहर खींच लिया और उसकी चूत के झांटों उपर डिस्चार्ज हो गया और उसके ऊपर गिर गया। फिर मैं उसके उपर लेट कर अपनी तेज-तेज चलती हुई सांसों को नार्मल होने का इन्तज़ार करता रहा। फिर मैं रेनू की बगल में लेट गया। रेनू भी मेरे साथ लेटी हुई अपनी सांसों को काबू में आने का इंतजार कर रही थी।

रेनू की चूत के काले घने घुंघराले बालों में मेरे वीर्य की सफेद बून्दे चमक रही थी। मैंने अपने अन्डरवियर से रेनू की चूत के ऊपर पड़े अपने वीर्य को साफ कर दिया। कुछ देर तक ऐसे ही पड़े रहने के थोड़ी देर बाद हम दोनों उठे और अपने कपड़े पहनने लगे। बैड की चादर पर रेनू की चूत से निकला हल्का सा खून पडा था। रेनू ने तुरन्त डस्टिग़ वाला कपड़ा लेकर गीला करके चादर से खून साफ कर दिया और पंखा चला दिया ताकि चादर जल्दी से सूख जाए। 

मैंने रेनू से पूछा कि कैसा लगा तो वो बोली "जीजू ! शुरु-शुरू में तो मुझे बहुत दर्द हुआ लेकिन बाद में बहुत मजा आया। इतना मज़ा तो मुझे कभी किसी चीज़ में नहीं आया। सचमुच आज से मैं आपकी दीवानी बन गई हूँ। अब आप जब चाहें ये सब कर सकते हैं। मुझे कोई एतराज नहीं होगा।"

ये सुन कर मैंने खीच कर उसे अपने सीने से चिपका लिया। फिर मैंने अपने जलते हुऐ होंठ रेनू के होंठों पर रख दिए। फिर मैं उसके नरम-नरम होंठों को अपने होंठों में भर कर चूसने लगा। रेनू भी मुझ से लिपट गई और उसने भी मुझे अपनी बाँहो में कस लिया। फिर मैं रेनू को किस करते-करते उस के बालों में हाथ फिराने लगा। फिर मैं उसके गालों पर हाथ फिराने लगा।

फिर मैं अपने हाथ को नीचे ले जाकर उसकी टी-शर्ट के उपर से उसके स्तनों को दबाने लगा और रेनू से बोला "एक बार फिर हो जाए। तुम्हें कोई एतराज नहीं।"

वो एकदम छटक कर अलग हो गई और बोली,"क्या करते हो जीजू। बड़े गन्दे हो आप। इतना सब कुछ हो गया। फिर भी चैन नहीं पड़ा है। अब सब्र रखो। दीदी आने वाली होंगी।"

मैंने रेनू से कहा "अभी तो तुम कह रही थी कि मैं आपकी दीवानी बन गई हूँ। अब आप जब चाहें ये सब कर सकते हैं। मुझे कोई एतराज नहीं होगा और अब तुम मना कर रही हो।"

रेनू बोली "जीजू। मैंने कहा है और एक बार फिर कह रही हूँ कि सचमुच मैं आपकी दीवानी बन गई हूँ और अब आप जब चाहें ये सब मेरे साथ कर सकते हैं। मुझे कोई एतराज नहीं होगा। लेकिन आज अब और नहीं। आपने इतना ज्यादा किया है ना कि मेरे नीचे दर्द हो रहा, शायद कट भी लग गया है। नीचे चीस सी मच रही है। इसलिये आज नहीं। अब कल करेंगे। कल तक मेरे नीचे का मामला भी ठीक हो जाएगा। अब मैं नहाने जा रही हूँ। गर्म-गर्म पानी से नहाऊगी और गर्म पानी से नीचे की थोड़ी सिकाई करुँगी तो कुछ ठीक हो जाऊँगी। वरना मेरी चाल देख कर दीदी को शक हो जाऐगा। अब कल तक के लिये सब्र रखिये। वैसे भी दीदी भी आने वाली होंगी।"

इतना कह कर उसने हाथ हिला कर शरारत से बाय किया और फिर वो तेजी से बाथरुम की ओर जाने लगी। मैं खड़ा-खड़ा उसे जाते हुए देखता रहा। उस दिन मैं बहुत खुश था क्योंकि रेनू को जम कर चोदने की मेरे मन की इच्छा पूरी हो गई थी।

इसके बाद मौका मिलने पर लगभग दो साल में हमने कुल 9 बार अपने घर में, 3 बार रेनू के घर में और एक ही रात में 3 बार होटल के कमरे में रेनू के साथ खुलकर सैक्स किया। हर बार सैक्स करने का अन्दाज और मजा अलग ही था। अगर समय मिला तो अपने यहां सोफे पर और एक रात को अपनी पत्नी को नींद की गोली देकर स्टोर में रेनू के साथ सैक्सपिरियस के बारे में भी जरुर बताऊँगा।

फिर एक बार शाम को रेनू के ही घर में छत पर रेनू के साथ सैक्सपिरियस के बारे में भी जरुर बताऊँगा। और एक पूरी रात रेनू के साथ होटल के कमरे में तीन बार सैक्स करना तो मैं भूल ही नहीं सकता। वो किस्सा भी अगर समय मिला तो जरुर बताऊँगा। खैर...

दो साल बाद रेनू की शादी हो गई और आज वो दो बच्चों की माँ हैं। रेनू और उसके परिवार से हर साल दो या तीन बार मुलाकात जरुर होती है। फोन पर तो अकसर बात होती रहती है। लेकिन हम भूल कर भी अपने पुराने सैक्सपिरियंस के बारे में बात नहीं करते हैं। रेनू की शादी के बाद हमने मौका मिलने पर भी कभी सैक्स नहीं किया और शायद यही वजह है कि हमारे दिल में एक दूसरे के लिये प्यार आज भी है।

~~~ समाप्त ~~~

दोस्तो, कैसे लगी ये कहानी आपको ,
 
कमली मौसी

कमली मौसी अभी 38 की थी. उसने प्यार में धोका खाने के बाद शादी नही की थी. उसके प्रेमी राजेश ने उससे अपने प्यार के जाल में फसाने के बाद कमली को दो साल तक जी भर तक चोदा था. गाँड तो उसने कमली की खूब मारी थी. तब वो 22 साल की थी. तभी उससे पता चला था की राजेश मॅरीड है और उसकी एक बची भी है. उसकी में बदली हो जाने के बाद कभी नही दिखा था. कमली ने बचा ना हो, इसका पूरा ध्यान रखा था बस यही सावधानी उसे बदनामी से बचा गयी. पर इन दो सालों में उससे चुदाई का अच्छा अनुभव हो गया था.

कमली कितनी ही अदाओं से चुदवाना सीख गयी थी. मर्दों से बिना चुदाई कराई उनको झारवा देने की कला भी वो बखूबी सीख गाही थी.चूड़ने में बहुत से आसान उसने सीख लिए थे. पर ऐसा नही था की धोका खाने से उससे लड़को या मर्द जाती से विरक्ति हो गयी थी. कुछ दीनो तक वो विचलित ज़रुरू रही थी पर जल्दी ही उसने फिर से छुड़वाने का प्रोग्राम कंटिन्यू कर दिया था.

इन दीनो हू अपने बड़ी बेहन के घर पर रह रही थी. उसकी बेहन गीता उस से से 10 साल बड़ी थी. उसका लड़का रवि भी था जिससे घर में सभी मुन्ना कह कर पुकारते थे. और अभी उसने कालेज कॉलेज में दाखिला ले लिया था. वो भी भरपूर जवानी के दरवाजे पर था. कुछ कुछ शर्मीला सवभाव का था. घर में जवान औरत के नाम पर बस उसकी कमली मौसी ही थी. मौसी को च्छूप च्छूप कर कपड़े बदलते हुए देखता था और कभी नहाते हुए एक नज़र भर कर देख लेता था, फिर अपने सपने में लाकर उसके नाम की मूठ मारा करता था. उसका मान करता था की अपनी कमली मौसी को खूब छोड़े और जब उसका पानी निकल जाता तो हू नॉर्मल हो जाता था.

कमली बहुत महीनो से किसी मर्द के साथ सोई नही थी. कमली बहुत महीनो से किसी मर्द के साड सोई नही थी सो उसमे काम-भावना बहुत बलवती होती जेया रही थी. वो रात को तो एक बार रवि के नाम की मस्तेरबाटिंग ज़रुरू कर ही लिया करती थी. पर आपसी शरम के कारण वो दोनो खुल नही पाते थे. रवि अपनी कमली मौसी के इरादे बहुत कुछ समझ चक्का था पर इसी तरह कमली भी रवि की नज़रे पहचानने लगी लगी थी. पर बिल्ली के गले में घंटी कौन बँधे. कौन आरंभ करे, कैसे करे, किस में इतनी हिम्मत थी. फिर… मौसी का रिश्ता था.. जीवन भर की शरमंदीगई उतनी पड़ती.

पर होनी को तो होना ही था, तो बात अपने आप ही बनते चली गयी थी.

एक दिन रवि के नाना जी का फ़ोन आया की उनके पैर की हड्डी टूट गयी है और हू बहुत तकलीफ़ में हैं सो उन्होने ने जल्द से जल्द कमली को बुलाया था. रवि ने नेट पर से रिज़र्वेशन देखा तो पाया की वेटिंग की लिस्ट बहुत लंबी थी और 100 से ज़्यादा लंबी थी. फिर उसने मजबूरन बस सर्विस का सहर लिया और एक रात का सफ़र था सो स्लीपर में कोशिश की तो जगह मिल गाही. रवि ने दो अलग अलग स्लीपर बुक करवा दिया. उसने कमली मौसी को बता दिया क दोनो के स्लीपर अलग अलग हैं. कमली को गुस्सा तो बहुत आया , सोचा कितना मूरख है रवि भी.. सला डबल स्लीपर ले लेता तो क्या बिगर जाता.शायद बात ही बन जाती... ।

रात के दस बजे की बस थी. दोनो रोटी खार कर टू सीटर से बस स्टेशन पहुँच गये. ठीक समय पर बस चलने को थी. तभी एक लड़की और एक लड़का बस में चाड गये. दोनो लड़के-लड़की के पीछे बस में चाड गये. उसके पीछे पीछे बस के कंडक्टर भी चाड गये और बस को चलने का इशारा किया.

सामने की डबल स्लीपर खाली था, शायद उसके पर्सेंजर नही आए थे. उसने वो स्लीपर उन दोनो लड़का लड़की को दे दिया पर लड़की ने माना कर दिया क हू किसी अंजन लड़के के साथ स्लीपर नही लेगी.

तभी कंडक्टर ने कमली से कहा== बेहन जी, साथ वाला लड़का आपका बेटा है ना?

कमली : जी हू मेरा बेटा ही है, क्यों क्या हुआ?

कंडक्टर: आप दोनो उस दौ डबल स्लीपर पर आ जायें, तो में इन दोनो को आपका सिंगल सिंगल स्लीपर दे सकता हूँ.

कमली : ठीक है, चलो उस से पर हम आ जाते हैं… हे रवि, ठीक है ना.

में: जी, जैसा आपको ठीक लगे.
वे दोनो आगे वेल डबल स्लीपर में आ गये. हू दोनो सिंगल स्लीप्र उन दोनो को दे दिया गया. रवि तो मौसी को एक ही डबल स्लीपर में साथ पाकर रोमांचित हो गया था.

फिट आंड फाइन सरीर की मालकिन और पतली कमर वाली, चौरी गाँड वाली कमली मौसी सलवार कुर्ते में बहुत अच्छी और भली लग रही थी.

कमली भी मन ही मन में रवि के साथ सोने में रोमांच का अनुभव करने लगी थी. बस चली दी थी और मैं ऑफीस के सामने आकर खरी हो गयी. लेते लेते डॉन वन एक शुवर की तरफ देखा तो कमली मुस्करत दी और रवि भी शर्मा सा गया. वो कुछ नर्वस हो गया था.
कमली : मुन्ना(रवि) टुमरे पास गोली है ना सर दर्द वाली.. अच्छा रहने दे… तुम ही मेरा सर दबा देना.

मैं: जी मौसी

तभी बस चल पड़ी.

कमली : रवि, हू कला शीशा खींच कर बंद कर दे

मैने केबिन का शीशा बंद कर दिया.

कमली : रवि, परदा भी खींच दे, कितनी रोशनी आ रही है.

मैने परदा भी बंद कर दिया.'

कमली : चल अब थोरा सा सर दबा दे…बहुत दर्द कर रहा है. ये कहकर मौसी दूसरी तरफ करवट बदल कर सो गई.

मैं सरक कर लगगभगमौसी की पीठ से सत गया. उसने अपना हाथ बड़ा कर सर पर रख दिया और हौले हौले सर को सहलाने और दबाने लगा. मेरे सरीर में गर्मी सामने लगी थी.. अब मेरा हाथ धीरे धीरे से कमली मासी के बलों को सहलाने लगा था. फिर अंजाने में उसके गालों को भी सहलाने लगे. कमली को भी मर्द-संसर्ग से उत्तेजना सी होने लगी. उसने अपना श्रीर रवि के श्रीर से चिपका सा लिया. रवि को कमली मौसी के गोल गोल चूटर उसके कुल्हों से स्पर्श करने लगे.

कौन किससे समझता भला??... और रवि का लंड, वो तो ना चाहते हुए भी सख़्त होने लगा था. मुन्ना से रहा नही गया तो उसने भी तोरा सा हिल कर अपने आप को उसकी गाँड पर फिट कर लिया. उसका सख़्त लॅंड कमली मौसी की गाँड से घर्षण कर आग पैदा करने लगा. कमली को उसके कड़क लंड की चुभन लगने लगी थी. वो बिना हीले इss आनंद को एक सपने की तरह भोग रही थी. कमली ने धीरे से अपना सर घुमा कर रवि को देखा.

रवि ने भी अपनी आँखें उसकी आखें से मिला दी. दोनो की नज़रै प्यार से नहा गयी. रवि का चेहरा कमली के चेहरे के निकट आता जा रहा था. दोनो की आखें बंद होने लगी थी. फिर धीरे से होंठ से होंठ का स्पर्श हो गया.

पर तभी एक मामूली झटके से बस रुक गयी. दोनो के होंठ ज़ोर से भींच से गये. फ्री वो दोनो अलग हो गये. रवि का लंड अभी भी कमली की गाँड में उसके पाजामे सहित उसकी गाँड के च्छेद से चिपका हुया था. यदि कमली का पाजामा बीच में नही होता तो इश्स बस के झटके से लंड गाँड के च्छेद के भीतर घुस चुका होता.

कमली धीरे से हंस पड़ी... रवि भी शर्मा गया. वो धीरे से कमली से अलग हो गया.

“बस क्यों रुक गयी.... कमली ने पूछा.
“पता नही”
झाँक कर बाहर देखा तो चार पाँच आदमी गाड़ी के पीछे कुछ कर रहे थे.

रवि उठा और बोला- मौसी अभी आया...

कह कर वो केबिन से बाहर उतर गया। फिर आकर बोला 'टायर बदल रहे हैं ... दस-पन्द्रह मिनट तो लगेंगे।'

'मुझे तो सू सू आ रही है।'

'आ जाओ मौसी ...'

कमली केबिन से नीचे उतर आई और बस से बाहर आ गई। बाहर बरसात जैसा मौसम हो रहा था। ठण्डी हवा चल रही थी।

'चल ना मेरे साथ ...' रवि कमली के साथ साथ अंधेरे में आगे बढ़ गया। वहाँ कमली ने अपना कुर्ता ऊपर किया और पायजामा नीचे सरका कर पेशाब करने को बैठ गई। रवि के तो दिल के तार झनझना से गये। गोल सुन्दर चूतड़ मस्त दरार ... रवि का दिल चीर गई।
कमली ने अन्दर चड्डी नहीं पहन रखी थी। उसने पेशाब करने बाद अपना पायजामा ऊपर खींच लिया।

'तू भी पेशाब कर ले...'

रवि र वि ने भी अपनी पैंट की जिप खोली और लण्ड बाहर निकाल लिया। उसके लण्ड में अभी भी सख्ती थी सो उसे पेशाब निकल नहीं रहा था। पर कुछ क्षण बाद उसने पेशाब कर लिया। कमली वहीं खड़ी हुई थोड़े से प्रकाश में ही उसका लण्ड देखती रही। पर जब पेशाब करके रवि ने अपना लण्ड हिला कर पेशाब की बून्दें झटकाई तो कमली का दिल मचल उठा।

दोनों फिर से बस में आ गये और अपने स्लीपर में चढ़ गये। कमली ने गहरी आँखों से उसे देखा और लेटे हुये ही उसने कहा- मुन्ना, कितना मजा आया था ना?

रवि शरमा गया। उसने अपने नजरें नीची कर ली।

कमली ने अपनी आँखें मटका कर कहा- ये देखो, मुझे यहाँ लग गई थी।

कमली ने र वि का हाथ अपने होंठो पर छुआ कर कहा, फिर अपना चेहरा उसके निकट ले आई- यहां एक बार ... बस एक बार ... छू लो..

कमली की सांसें तेज होने लगी थी। रवि का दिल भी तेज गति से धड़कने लगा था- मौसी ... आप ... कुछ कहेंगी तो नहीं?

'ओह मुन्ना ... चलो करो ना ...'

रवि की शरमा-शरमी को दरकिनार करते हुये कमली ने अपने होंठ उसने उसके होंठों से चिपका दिये। तभी बस का एक मामूली झटका लगा। उसके होंठों पर उसके दांतों से फिर लग गई।

बस चल दी थी। 'उई मां ... ये बस भी ना ...'

पर तब तक रवि ने कमली के दोनों कबूतरों को अपने हथेलियों में थाम लिया था। फिर रवि जैसा अपने सपने में मुठ मारते हुये सोचता करता था... उसकी छातियों को उसने उसी तरह सहलाते हुये मसलना आरम्भ कर दिया। रवि का लण्ड बहुत ही सख्त हो गया था। तभी कमली ने भी अपना आपा खोते हुये अपना हाथ नीचे ले जाते हुये उसके लण्ड को पैंट के ऊपर से ही पकड़ लिया।

'ओह, मौसी ... मुझे पर तो जैसे पागलपन सवार हो रहा है।'

'मुन्ना, अपनी पैंट तो उतार दे ... तुम्हारा लण्ड... उफ़्फ़ तौबा ... मेरे हाथ में दे दे।'

'मौसी, खुद ही उतार कर ले लो ना ...।'

कमली ने रवि की पैंट को खोला और चड्डी के भीतर हाथ घुसा दिया। फिर रवि का कड़क लण्ड उसके मजबूत हाथों में था। रवि तड़प सा उठा। कमली उसके मुख में अपनी जीभ घुसाते हुये उसके मुँह को गुदगुदाने लगी। रवि भी उसकी चूचियों को घुमा घुमा कर दबाने लगा।

कमली की चूत में आग भड़कने लगी। वो जोर जोर से रवि का कड़कता लण्ड तोड़ने मरोड़ने लगी।
'मुन्ना, पैंट उतार ... जल्दी कर।'

मुन्ना ने अपनी पैंट और फिर चड्डी उतारते हुये समय नहीं लगाया। कमली ने भी अपना पायजामा उतार दिया।

'उफ़्फ़, जल्दी कर ... अपना मुँह नीचे कर ले ... हाय रे ... जल्दी कर ना'

रवि जल्दी से नीचे घूम गया। कमली ने उसे करवट पर लेटा कर उसका सधा हुआ कड़ा लण्ड अपने मुख के हवाले कर लिया।

'मुन्ना, तू भी मेरी चूत को चूस ले ... हाय मम्मी ... जल्दी कर ना'

रवि को तो जैसे मन मांगी मुराद मिल गई। वो तो बस सपने में ही ये सब किया करता था। कमली ने अपनी टांग उठाई और अपनी चूत खोल दी।


रवि ने उसकी खुशबूदार चूत की दरार में अपना मुख टिका दिया और उसे अपने स्टाइल से उसका रस चूसने लगा। उसने अपने सपनों में, अपने विचारों में जिस तरह से वो चूत को चूसना चाह रहा था उसने वैसा ही किया। उसके दाने को चूस चूस कर उसने कमली को बेहाल कर दिया। अपनी दो दो अंगुलियाँ उसकी चूत में डाल कर उसमें खूब घर्षण किया। कमली ने तो अपने ख्यालों में भी इतना आनन्द नहीं उठाया होगा। तभी कमली तड़प उठी और उसने अपनी चूत जोर से भींच ली, उसका काम-रस ... उसके यौवन का पानी चूत से उबल पड़ा। वो झर झर झड़ने लगी।

एक क्षण को तो वो अपने आप को झड़ने के सुख में भिगोती रही, फिर कमली ने भी रवि को अपनी कुशलता का परिचय दे दिया। उसके लण्ड के रिंग को सख्ती से चूसते हुये, उसके डण्डे पर मुठ मारते हुये उसने रवि को भी धराशई कर दिया। उसके लण्ड से वीर्य की धार तेजी से कमली के मुख में समाती चली गई। कमली ने सारा वीर्य जोर जोर से चूस चूस कर पूरा निगल लिया और फिर उसे बिल्कुल साफ़ करके उसे छोड़ दिया।

झड़ने के बाद दोनों फिर से सीधे हो कर लेट गये।

' रवि कर ली अपने मन की ... मजा आया?'

'मौसी, मेरा तो पूरा दम निकाल दिया आपने ... सच में बहुत मजा आया।'

कुछ देर तो वो दोनों बतियाते रहे, फिर बस एक जगह रुक गई। समय देखा तो रात के ठीक बारह बज रहे थे।

'बस यहां आधे घण्टे रुकेगी, चाय, पानी पेशाब नाश्ता खाना ... के लिये आ जाओ।'

बाहर होटल वाला अपनी बुलंद आवाज में पुकार रहा था।

'चलो, क्या पियोगे ठण्डा, चाय ... दूध कुछ?'

'हां मौसी, चलो। पहले चाय पियेंगे ... फिर दूध भी ... आप पिलायेंगी?'

'चाय होटल में और दूध बस में ...! चलें?' कमली ने रवि को तिरछी नजर से देखते हुये कहा।

रवि कुछ समझा, कुछ नहीं समझा ... दोनों बस से उतर पड़े।

दोनों ने एक बार फिर पेशाब किया, फिर चाय और पकोड़े खाये।


बस की रवानगी का समय हो गया था। रवि बार अपने हाथ की अंगुली कमली की गाण्ड में घुसा देता। कमली बार बार उसकी अंगुली को हटा देती। उसके बार बार करने से वो बोल उठी- अरे भई, मत कर ना ... कोई देख लेगा !

'मजा आता है मौसी ... बड़ी नरम है ...'

'दुनिया को तमाशा दिखाओगे...? लोग मुझ पर हंसेंगे !'

कमली ने रवि का हाथ थामा और दोनों ही समय से पूर्व ही बस के केबिन में घुस गये। कमली ने बड़े ध्यान से केबिन के शीशे बन्द कर दिये थे। परदे भी ठीक से लगा दिये थे। फिर उसने अपना पायजामा उतार कर एक तरफ़ रख दिया। रवि ने भी उसके देखा देखी अपनी पैन्ट उतार कर कमली के पायजामे के साथ ही रख दी। दोनों एक दूसरे को देख कर अपना मतलब पूरा करने के लिये मुस्करा रहे थे।

बस रवाना हो चुकी थी।

'मुन्ना दूध पियोगे...?'

'पिलाया ही नहीं, मैं तो बस सोचता ही रह गया...!'

कमली ने अपना कुरता ऊपर करके पूरा उतार दिया।

'अरे मौसी, कोई आ गया तो...?'

'तो उसे भी दूध पिला दूँगी... ले आ जा... दूध पी ले... !' कमली हंसते हुये बोली।

'अरे मौसी ! आपने तो मुझे मार ही डाला ... ये वाला दूध पिलाओगी ... मेरी मौसी की जय हो...!'

रवि ने मौसी की चूचियों को हिलाया और उसके निप्पल को अपने मुख में ले लिया। कमली ने उसे बड़े प्यार से अपनी बाहों में समेट लिया और प्यार से उसे अपने चूचकों को बारी बारी उसके मुख में डालती जा रही थी और उसके चूसने पर बार बार आहें भरती जा रही थी।

'मुन्ना, गाण्ड मलाई खायेगा?' कमली ने अपनी गाण्ड मरवाने के लिये रवि से कहा।

"गाण्ड मलाई? वो क्या होता है...?'

'उफ़्फ़, मुन्ना कितना भोला है रे तू ... लण्ड को गाण्ड में घुसेड़ कर फिर अपने लण्ड से मलाई निकालने को गाण्ड मलाई कहते हैं।' कमली का दिल मचल रहा था कुछ कुछ करवाने को।

'मौसी, गाण्ड चुदाओगी ...?' रवि सब समझ गया था।

'धत्त, कैसे बोलता है रे ... वैसे इसमें मजा बहुत आता है ... चोदेगा मेरी गाण्ड?" कमली खुश हो उठी।

"हाय मौसी, तुस्सी द ग्रेट... मजा आ जायेगा...!' रवि किलकारी मारता हुआ चहक उठा।

'तो फिर चिपक जा मेरी गाण्ड से... पहले की तरह ... देख सुपारा खोल कर छेद पर चिपकाना !' कमली ने शरारत से वासना भरी आवाज में कहा।

कमली ने एक करवट ली और अपनी गाण्ड उभार कर लेट गई। रवि ने अपना लण्ड हाथ में लिया और उसका सुपारा खोल दिया। फिर आराम से उसकी गाण्ड से चिपक गया। कमली ने अपनी गाण्ड खोल दी और अपनी गाण्ड को ढीली कर दी- मुन्ना, थूक लगा कर चोदना...

रवि ने थूक लगा कर उसके छेद में लगा दिया और अपना सुपाड़ा उसकी गाण्ड पर चिपका दिया और कस कर कमली की पीठ से चिपक गया।

'यह बात हुई ना, बिल्कुल ठीक से फ़िट हुआ है ... अब लगा जोर !'

रवि के जवान लण्ड ने थोड़ा सा ही जोर लगा कर छेद में प्रवेश कर लिया। रवि को एक तेज मीठी सी गुदगुदी हुई। कमली का चंचल मन भी शान्त होता जा रहा था। अब लौड़ा उसकी गाण्ड में था, संतुष्टि भरी आवाज में बोली- चल मुन्ना ... अब चोद दे ... चला अपनी गाड़ी... उईईई ... क्या मस्त सरका है भीतर !'

रवि का लण्ड उसके भीतरी गुहा को सहलाता हुआ, गुदगुदी मचाता हुआ चीरता हुआ अन्दर बैठता चला गया। रवि धीरे धीरे अन्दर बाहर करता हुआ लण्ड को पूरा घुसाने की जुगत में लग गया। कमली की गाण्ड मीठी मीठी गुदगुदी से कसक उठी। रवि कमली की गाण्ड चोदने लगा था। अब उसकी रफ़्तार बढ़ रही थी। कमली की चूत में भी खुजली असहनीय तेज होने लगी थी। वो तो बस अपनी गाण्ड हिला हिला कर चुदवाने में लगी थी। उसे बहुत मजा आ रहा था। पर चूत तो मारे खुजली के पिघली जा रही थी।

कुछ देर गाण्ड चुदाई के बाद कमली ने अपना पोज बदला और सीधी हो गई। 'मुन्ना, मेरे ऊपर चढ़ जा रे ... अब चूत ... आह्ह ... पेल दे रे !'

रवि धीरे से कमली पर सवार हो गया। पर बस में ऊपर जगह कम ही थी, फिर भी धक्के मारने की जगह तो काफ़ी ही थी।

"मौसी, टांगें और खोलो ... मुझे सेट होने दो !'

'उफ़्फ़, मुन्ना ... लण्ड तो घुसा दे रे ... मेरी तो उह्ह्... आग लगी हुई है !'

कमली की टांगे चौड़ाते ही रवि ने अपना लण्ड उसकी चूत में अड़ा दिया।

'उस्स्स ... ये बात हुई ना ... आह्ह्ह मर गई राम जी ... और अन्दर घुसेड़ जानू ... चोद दे मरी चूत को !'

दोनों जैसे आग की लपटों से घिरे हुए थे, जिस्म झुलस रहा था। लण्ड के चूत में घुसते ही कमली तो निहाल हो उठी। लण्ड पाकर कमली की चूत धन्य हो उठी थी।

रवि वासना की आग में तड़प रहा था- मौसी... साली... की मां चोद कर रख दूँ ... तेरी तो ... भेन की फ़ुद्दी ... साली हरामजादी ...

'मुन्ना ... छोड़ना नहीं ... चूत का भोसड़ा बना दे यार ... जोर से चोद साले हरामी...'

रवि उसकी चूचियों को घुमा घुमा कर जैसे निचोड़ रहा था। मुख से मुख भिड़ा कर थूक से उसका सारा चेहरा गीला कर दिया था। कमली की चूत पिटी जा रही थी। कमली के मन की सारी गाण्ठें ढीली होती जा रही थी। वो मस्ती से स्वर्ग में विचर रही थी।

तभी कमली का शरीर कसने लगा ... उसकी नसें जैसे तन सी गई ... आँखें बन्द होने लगी ... होंठ थरथरा उठे ... उसकी मांसपेशियाँ में तनाव सा आया और वो एक हल्की चीख के साथ झड़ने लगी। उसने रवि को जोर से भींच लिया।

तभी रवि ने भी जोर लगाया और अपना वीर्य कमली की चूत में उगलने लगा। रवि बार बार चूत पर जोर लगा कर वीर्य निकाल कर कमली की चूत में भरता रहा। कमली मदहोश सी गहरी सांसें लेती हुई सभी कुछ आत्मसात करती रही।

कुछ ही देर में वे दोनों निढाल हो कर दूसरी तरफ़ लुढ़क गये। कमली चूंकि अनुभव वाली युवती थी, उसने तुरन्त रवि को पैन्ट पहनाई, कपड़े ठीक किये, फिर उसे नींद के आगोश में जाने दिया।

फिर उसने स्वयं भी अपने कपड़े ठीक किये और एक करवट लेकर सो गई।

जब सवेरे नींद खुली तो रवि उसके बदन को सहला रहा था।

''मुन्ना, बस अब नहीं... घर आने वाला है ... मौके मिलेंगे तो खूब मस्ती करेंगे।'

सात बजे बस पहुँच गई थी। उन्होंने टू सीटर किया और घर पहुँच गये।

रवि के नाना जी के पाँव का फ़्रेक्चर मामूली ही था पर उन्हें उठने की सख्त मनाही थी। बस इसी बात का फ़ायदा दोनों ने खूब उठाया। रवि मौसी को कभी तो रसोई में ही चोद देता या कभी नाना जी पास के कमरे में ही खड़ी खड़ी ही चोद देता था।

जब भी रवि को मौका मिलता अपनी कमली मौसी की गाँड और चूत का बजा बजा देता .. इस प्रकार दोनो ने काई दीनो तक नाना के घर पर मस्ती की

दोस्तो, कैसे लगी ये कहानी आपको ,
 
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कमली चाची को अपने लंबे मोटे लंड का स्वाद चखाया
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आज मैं भी अपना एक ख़ुद का अनुभव लिख रहा हूँ, यह जो मैं कहानी सुनाने जा रहा हूँ वो मेरी चाची और मेरी है। पहले मैं अपने और कमली चाची के बारे में बताना चाहूँगा, मेरा नाम रवि हैं. पंजाब का रहने वाला पंजाबी मुंडा हूँ, अभी उच्च अध्ययन कर रहा हूँ। कॉलेज में मैं बहुत सी लड़कियों को चोद चुका हूँ। मेरी उम्र 26 साल है, कद 5 फीट 9 इंच है, अच्छा खासा व्यक्तित्व है, मेरा लंड 7.5 इंच लम्बा है और बहुत मोटा है। ऊँचाई 5 फीट 5 इंच, वक्ष का आकार 38DD लगभग, 38-29-38. रंग गेहुँआ, लम्बे घने बाल, गांड तक आते हैं, जब वह मटक मटक कर चलती है सबकी पागल कर देती है।

अच्छा, अब मैं कहानी पर आता हूँ। हमारे घर में कुल दस लोग रहते हैं, गर्मी के वजह से मैं, मेरे चाचा, मेरी कमली चाची और एक दूसरी चाची की बेटी छत पर सोते थे, बाकी सब लोग नीचे सोते थे। एक रात मैंने कमली चाची की सिसकारियों की आवाज़ सुनी, मैं जाग गया। कमली चाची सिसकारियाँ भर रही थी। मैं समझ गया कि चाचा कमली चाची को चोद रहे हैं। मैं हल्के से अपने मुँह के ऊपर से चादर उठा कर देखने लगा।

चाचा कमली चाची की चूत चाट रहे थे, चाची पूरी नंगी थी ! उनके वो रेशमी बाल जो मुझे हमेशा पागल कर देते हैं, वो खुले हुए थे। कमली चाची बुरी तरह सिसकार रही थी। मैं तो वैसे ही गर्म हुए जा रहा था। फिर शायद चाचा ने कमली चाची की चूत में काटा तो चाची चिल्ला दी !

जल्दी से चाचा ने अपना हाथ उनके मुँह पर रख दिया और बोले-चिल्ला क्यों रही हो? बच्चे जाग जाएँगे !

कमली चाची बोली- ऐसे करोगे तो चिल्लाऊँगी ही !

तो चाचा बोले- अच्छा, आराम से करता हूँ !

और फिर कम ली चाची की चूत चाटने लगे।

कमली चाची फिर से सिसकारियाँ भरने लगी- आआह्ह्ह्ह्ह् य्य्य्याआ ! क्या कर रहे हो ! फाड़ दोगे क्या ! मैं कही भागी नहीं जा रही हूँ ! हाआअ आआआह्ह्ह्ह !

फिर चाचा ऊपर आ गए और चाची को बोले- ले अब मुँह खोल … और चूस इसे !

चाचा का लण्ड कमली चाची के मुँह में था और वो उसे मज़े से चूस रही थी, आवाज़ निकल रही थी- पिपिच्चच पिच्च्च्चक पिच्च्च्चच्च्च्क !

फिर कमली चाची बोली- आज तुम्हारा निकल रहा है !

तो चाचा बोले- पी जा उसे !

कमली चाची ने सारा का सारा मुठ पी लिया ! फिर कमली चाची ऊपर आई और कमली चाचा के ऊपर लेट कर उनके होटों को कस के चूसने लगी ! कम से कम दस मिनट तक चूमा चाटी का कार्यक्रम चला।

इधर मेरे लण्ड की बुरी हालत हो रही थी। अगर मैं हिलता तो उन्हें पता लग जाता कि मैं जगा हुआ हूँ। मैं शांति से देखने लगा, तो देखा कि कमली चाची फिर से नीचे आ गई और चाचा धीरे से अपना लण्ड कमली चाची की चूत में घुसा रहे थे ! देखते देखते चाचा का लंड गायब हो गया। फिर चाचा ने झटके लगाना शुरू किये, नीचे से कमली चाची चूतड़ उठा-उठा कर साथ दे रही थी !

फिर से कमली चाची की आवाज़े निकलना शुरू हो गई- धीईरे……. धीईर्र……!

बीस मिनट की जम के चुदाई के बाद चाचा शांत पड़ गए, मैं समझ गया की चाचा झड़ गए ! फिर कुछ देर बाद चाचा कमली चाची के ऊपर से हटे और दोनों ने कपड़े पहने और सो गए ! पर मैं तो रात भर सोचता रहा कमली चाची के बारे में !

मैंने भी ठानी कि एक बार तो कमली चाची की चूत जरुर मारूँगा ! अब तो रोज़ मैं कमली चाची का कार्यक्रम देखता ! मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूँ !

एक दिन कमली चाची के कमरे में गया तो वह कोई नहीं था, बाथरूम से पानी गिरने की आवाज़ आ रही थी, चाची नहा रही है ! मैंने सोचा कि क्यों न चाची को नहाते देखूँ ! मैं बगल वाले संडास में नल पर पैर रख कर देखने लगा !

क्या नज़ारा था ! कमली चाची के वो लम्बे खुले बाल ! बड़े बड़े भारी चूचों पर बहता पानी ! वो अपनी झांटों को साफ़ कर रही थी ! एकदम से मेरा पैर फिसल गया और मैं गिर गया !

कमली चाची चिल्लाई- कौन है?

जब तक वह बाहर आकर देखती, मैं धीरे से वहाँ से भाग लिया ! उन्होंने शायद मुझे पहचान लिया था, चाची का मेरी तरफ बात करने का ढंग कुछ बदल गया था ! पर मुझे तो हर रोज़ रात को मुफ्त का प्रोग्राम देखने को मिलता था !

मेरे एक और चाचा थे वो दिल्ली में रहते थे ! अचानक वे बीमार पड़ गए ! तो चाचा और मेरे पिता जी को जाना पड़ा दिल्ली ! एक दो दिन बाद पिताजी तो आ गए पर चाचा को वहीं एक महीने रुकना पड़ेगा ! क्योकि दिल्ली वाले चाचा जी अकेले रहते थे !

यह सुनते ही जैसे कमली चाची की तो जान ही निकल गई ! अब छत पर सिर्फ मैं और चाची सोते थे ! कुछ दिन तो कुछ नहीं हुआ ! पर कमली चाची की चुदास बढ़ती जा रही थी ! बिना चुदाई के वह रात में सो नहीं पाती थी, हमेशा करवट बदलती दिखती थी, कई बार तो मैंने देखा कि कमली चाची अपनी चूत रगड़ रही हैं। फिर मैंने बड़ी हिम्मत की कि कुछ भी हो जाए, अब तो कमली चाची को चोदना है।

अगले दिन फिर से कमली चाची आई और अपने बिस्तर पर सोने लगी। मैं सोने का नाटक कर रहा था पर उनकी तरफ ही देख रहा था। मैंने देखा की चाची करवटें बदल रही थी और अपनी चूत को सहला रही थी। फिर जो हुआ मैं देख कर घबरा गया !

कमली चाची का हाथ अंदर-बाहर के जैसे हिल रहा था ! मैं समझ गया कि कमली चाची के हाथ में कुछ है! रात के अँधेरे की वजह से दिख नहीं पाया कि क्या था ! फिर चाची की सिसकारियाँ शुरू हो गई और थोड़ी देर में वह शांत होकर सो गई ! मैं उस दिन भी कुछ नहीं कर पाया, फिर थोड़ी देर में मैं भी सो गया।

अगली रात को मैं तैयार था जो हो जाए आज तो बोल के रहूँगा ! मैंने जल्दी से छत पर जाकर अपना बिस्तर लगा दिया और सोने का नाटक करने लगा। करीब 11 बजे कमली चाची आई और अपने बिस्तर पर सोने लगी। मैं जाग रहा था पर सोने का नाटक कर रहा था। फिर थोड़ी देर में कमली चाची का वही रगड़ना चालू हुआ और फिर हाथ अंदर बाहर हिलना !

मैं हिम्मत करके धीरे से बोला- चाची, क्या मैं कुछ मदद कर सकता हूँ?

चाची घबरा गई, जल्दी से अपनी साड़ी ठीक करने लगी और मेरी तरफ देख कर बोली- रवि, क्या तुम जाग रहे हो?

तो मैं बोला- नहीं, नींद में बड़बड़ा रहा हूँ !
तो चाची समझ गई कि मैं क्या चाहता हूँ !

आज कमली चाची से भी न रहा जा रहा था तो उन्होंने पूछ लिया- रवि, उस दिन तुमने ही मुझे नहाते देखा था न ?

मैंने धीरे से हाँ बोला !

तो चाची मेरे पास आई और बोली- चल आज मैं तेरे साथ सोऊँगी तेरे बिस्तर पर !

फिर चाची मेरे से सट कर लेट गई और बोली- बेटा, तेरे चाचा नहीं है तो मुझे नींद नहीं आ रही है, क्या करूँ ?

मैं बोला- चाचा नहीं है तो क्या हुआ, मैं तो हूँ।

तो बोली- तू क्या कर सकता है?

मैं बोला- चाचा कर सकते हैं, मैं भी कर सकता हूँ, आजमा कर तो देखो ! चाचा को छोड़ कर मेरे साथ सोने को तरसोगी !

चाची जोश में आकर मेरे अंडरवीयर के ऊपर से ही मेरा लंड पकड़ लिया और बोली- र वि, लगता है काफी तगड़ा है तेरा लण्ड तो !

मैंने कहा- अभी तो बाहर से देखा है ! अंदर लो तो मज़ा आएगा !

तो बोली- अच्छा जी !

फिर धीरे से अपना हाथ मेरे अंडरवीयर के अंदर डाल कर लण्ड को सहलाने लगी ! फिर मैंने भी उनके शरीर को छूना शुरू कर दिया, धीरे धीरे मैं उनके मम्मे को दबाने लगा। फिर मैं चाची के ब्लाउज़ के हुक खोलने लगा, वह मेरे बड़े लंबे लण्ड के साथ खेलने में मस्त थी।

मैंने उनके मम्मे को नंगा कर दिया और उससे खेलने लगा। एक हाथ उनके मम्मे पर और दूसरा हाथ उनकी साड़ी के अंदर डालने की कोशिश करने लगा।

मैं उनकी चूत रगड़ रहा था और एक मम्मे को मुँह में ले लिया और कस कर चूस रहा था। इतने में चाची की सिसकारियाँ शुरू हो गई ! चाची अब बहुत गर्म हो चुकी थी। मैंने धीरे से चाची के सारे कपड़े उतार दिए और चाची ने मेरे सारे कपडे उतार दिए, हम दोनों पूरे नंगे थे।

जैसे ही चाची ने मेरा लंड देखा तो बोली- हाए रवि, कितना बड़ा है तेरा लंड और मोटा भी ! मैं तो आज मर जाऊँगी !!!

मैंने धीरे से पूछा- क्या मैं आपकी चूत चाट सकता हूँ?

तो वो बोली- तेरी ही है, जो मन में आए, कर !

मैंने धीरे से चाची की चुत को छुआ तो देखा कि वो पहले से गीली है। मैंने धीरे से अपनी जीभ उनकी चूत पर लगाई, उन्हें तो जैसे करंट लग गया हो !

मैं उनकी चूत का स्वाद लेने लगा ! फिर मैंने धीरे से उनके दाने को छेड़ दिया ! वह कसमसा गई, बोली- हाए रवि , जान लोगे क्या ! और तेज तेज सिसकारियाँ लेने लगी, उनकी सिसकारियों से मैं पागल हुए जा रहा था ! मैं अपनी जीभ उनकी चूत के अंदर बाहर करने लगा, उनकी सिसकारियाँ और तेज होती गई! फिर मैंने पूछा कि चाची क्या तुम मुझसे चुदवाओगी?

तो वो बोली- अभी जब तक तेरे चाचा नहीं आते तब तक चोदो, बाद में तुम मुझे कही बाहर ले जाकर चोद सकते हो !
मैं फिर से चाची की चूत चाटने लगा और 2 मिनट के बाद चाची झड़ गई ! फिर बोली- ला ! मुझे तेरा लंड चूसना है !

मैंने अपना लण्ड चाची के मुँह के पास रखा, चाची उसे चूसने लगी। मैं तो जैसे जन्नत में था !

चाची को बहुत अच्छे से चूसना आता था, चाची कस कस कर मेरे लंड को चूस रही थी। मैं उनके मम्मों को कस कस कर दबा रहा था। बीच बीच में उनके चुचूक भी नोच रहा था जिससे चाची को दर्द हो रहा था और वो मेरे लंड की काटने के जैसा करती !! मुझे बहुत मज़ा आ रहा था !

15 मिनट चूसने के बाद मैं झड़ने वाला था तो मैं चाची से बोला- हाए कमला , मेरा निकलने वाला है !

तो चाची बोली- मेरे मुंह में ही निकाल दे !

मैंने चाची के मुँह में अपना पूरा वीर्या छोड़ दिया ! चाची ने मस्त होकर पूरा लण्ड साफ कर दिया ! मेरा लण्ड थोड़ा ढीला हो गया तो वो उसे चूसती रही जिससे फिर कुछ देर में वह खड़ा हो गया। हम दोनों बहुत गर्म हो चुके थे ! अब न मुझसे सबर हो रहा था न ही कमला चाची से, दोनों पागल हो चुके थे।

मैंने चाची को नीचे लिटाया और खुद उनके ऊपर आ गया, अपने लंड को उनकी चूत में सटाया और हल्का से झटका मारा तो मेरा आधा लंड अंदर गया और चाची चिल्ला उठी- आआईईईईऐऐअ मर गाईईईई आआआअ ! मैं कुछ देर के लिए रुका फिर अपना पूरा लंड उनकी चूत में घुसा दिया, उन्हें बहुत दर्द हो रहा था !

मैं कुछ देर के लिए वैसे ही रुका रहा, मेरा लंड चाची की चूत में और मैं चाची के ऊपर उनके मम्मों को चूस रहा था। थोड़ी देर बाद चाची अपने चूतड़ हिलाने लगी तो मैं समझ गया कि चाची को अब दर्द नहीं हो रहा है, मैंने धीरे धीरे झटके लगाने शुरू कर दिए, चाची को भी अच्छा लग रहा था ! उनकी सिसकारियों ने मुझे पागल कर दिया ! मैं जम के चोद रहा था उनको !

करीबन 25-30 मिनट तक चोदने के बाद मैं झड़ने वाला था, उतने में चाची दो बार झड़ चुकी थी। मैंने चाची को बताया तो बोली- अन्दर ही झाड़ दो !

मेरी गति तेज़ होती गई, फिर मैं और चाची साथ में झड गए। मैं कुछ देर चाची के ऊपर लेटा रहा ! ढीला लंड चाची की चूत में ही था और मैं चाची को खूब चूम रहा था, साथ में उनके मम्मे दबा रहा था। फिर थोड़ी देर बाद मैं उठा और हम दोनों ने कपड़े पहने और फिर दोनों बिस्तर जोड़ कर सो गए।

फिर तो हर रात को हम यही करते ! करीबन दो हफ्ते हमने खूब चुदाई की ! फिर चाचा के आने की खबर मिली तो आखरी रात को मैंने चाची को तीन बार चोदा। फिर चाचा आ गए। उस रात चाचा ने जब चाची को चोदा तो चाची की सिसकारियाँ नहीं निकल रही थी और चाचा के लंड को आराम से सह रही थी ! मैं भी वहीं लेटे लेटे देख रहा था। क्योंकि मेरे मोटे लंड के आगे चाचा का लंड बहुत छोटा था. फिर तो हमें जब मौका मिलता, हम शुरू हो जाते ! कई बार तो मैंने चाची को होटल में ले जाकर चोदा !

दोस्तो, कैसे लगी ये कहानी आपको ,
 
// ऋतु भाभी और कम्मो की मस्त चूत को कैसे संतुष्ट किया \\

दोस्तो, मेरा नाम रविराम है, दोस्त मुझे रवि के नाम से बुलाते हैं। मेरा लंड 9 इंच लम्बा और 2 इंच मोटा है जिसके अन्दर जाये, उसकी चूत का भोंसड़ा बना कर ही बाहर आये। आज तक मैंने 15 से भी अधिक कुवांरियों की सील तोड़ी है।

यह मेरी जीवन की एक सच्ची घटना है जो मेरी एक दूर की भाभी ऋतु और मेरी एक फिर गर्लफ्रैंड कम्मो के साथ की घटना है। जब मैंने अपनी पढ़ाई के लिए कॉलेज में दाखिला लिया, उस समय मेरी उमर ** साल की थी, मेरे को तब तक चोदने और चुदाने के बारे में थोड़ा ही ज्ञान था, कभी किसी के साथ अच्छे से सेक्स नहीं किया था। मेरी क्लास में वैसे तो बहुत सी लड़कियाँ थी पर मेरे को कोई भी नहीं भाती थी।

मुझे कॉलेज ऑफ़ आर्किटेक्चर में दाखिला मिला था इस लिए पढ़ने का बहुत शौक था और मैं हमेशा ही अपनी पढ़ाई पर बहुत ध्यान देता था, सारे टीचर मेरे से खुश रहते थे, इसी बात के कारण लड़कियाँ धीरे-2 मेरे पास आने लगी और मेरी उनसे अच्छी दोस्ती हो गई।

उनमें से एक लड़की का नाम कम्मो था जो देखने में बहुत सुंदर थी, उसकी उम्र 26 साल, पतली नाजुक कमर, चेहरे पर हमेशा सुकून दिखाई देता था, वो भी मेरे तरह क्लास में अच्छे से काम करती थी। मेरी और कम्मो की अच्छी दोस्ती हो गई पर मैंने उसे कभी भी सेक्स की नजरों से नहीं देखा। जिगरी दोस्त की तरह हम एक दूसरे से खुल कर बात करते और सलाह मशवरा लेते।

एक बार वो जब कैंटीन में बैठी हुई थी, उस दिन वो मिनी स्कर्ट और टी-शर्ट पहन कर आई थी, क्या मस्त लग रही थी। मैं उसके पास गया और उससे बात करने लगा तभी उसकी पेंसिल नीचे हाथ से छूट कर गिर गई जिसे उठाने के लिए जब वो नीचे की तरफ झुकी तो मेरी नजर उसके वक्ष पर चली गई क्योंकि उसने ढीली ढाली सी टी-शर्ट पहनी थी, छोटे-2 संतरे के जैसे थे जिसे देख कर मेरा भारी और लंबा-मोटा लण्ड खड़ा हो गया। मैंने किसी तरह से अपने लण्ड को उससे छुपाने की कोशिश की । पर मेरा इतना मोटा और लंबा लंड भला कहाँ छुपने वाला था । उसने मेरे इस हलचल को देख लिया पर कुछ नहीं बोली। लेकिन तोड़ा सा मुस्करा दी/ उसके बाद मैं उसकी तरफ ज्यादा ध्यान देने लगा।

एक दिन जब वो क्लास में अकेली बैठी थी, मैंने देखा कि उसके साथ कोई नहीं है, मैंने सोचा, अच्छा मौका है बोल दे, नहीं तो फिर कभी नहीं बोले पाएगा।

मैं गया और कुछ सोचे समझे बिना जाकर बोला- कम्मो , मैं तुमसे प्यार करता हूँ, तुमको हमेशा अपने साथ महसूस करता हूँ, मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकता !

यह सुन कर वो खड़ी हुई और मेरे गाल पर एक थप्पड़ मारा।

मैं चौंक गया, यह मैंने क्या कह दिया !?!

उसने बोला- इतने दिन बाद बोला, पहले नहीं बोल सकते थे? मैं भी तुमसे प्यार करती हूँ !

मेरा दिल खुश हो गया। अब मैं उसे अपने कमरे में भी लाने लगा। उसने न जाने कितनी बार मेरे लौड़े को ठीक से देखा और मैंने भी न जाने कितनी बार उसकी चूत देखी और चौड़ा करके भी देखा पर इसके बावजूद हमारे दिल में चुदाई का ख्याल नहीं आया। मुठ मारने में भी उसने कई बार मदद की, मैंने भी उसकी मदद की है, हाथ से कई बार उसकी दाना मसल कर ठंडा किया है।

इस बार मैंने उससे अपने गाँव में छुट्टी बिताने के लिए मना लिया। इम्तिहान ख़त्म होने क बाद हम गाँव पहुँचे, हम दोनों का अच्छा खुश-आमदीद हुआ।

मेरे घर में मेरे पापा , मम्मी और एक छोटा भाई !

मेरा एक चचेरा भाई अनिल है जो मेरे से कई साल बड़ा है फिर भी मेरा पक्का दोस्त है। एक साल पहले उसकी शादी हुई थी ऋतु भाभी से, भाभी मेरी उम्र की हैं।

इस बार गर्मी बहुत ही तेज थी, सब लोग घर पर खाना खाकर दोपहर को सोये हुए थे, एक मैं था क़ि मुझे नींद नहीं आ रही थी, कम्मो का भी यही हाल था, वो बोली- चलो रवि, ऋतु भाभी के घर चलें, भाभी और भैया के साथ ताश खेलेंगे।

हम भाभी के घर गए, भाभी घर का काम कर रही थी और अनिल कहीं दिखाई नहीं दे रहा था, मैंने पूछा- भाईजान कहाँ हैं? सो रहे हैं क्या?

भाभी बोली- क्यों मैं नहीं हूँ क्या? भैया बिना काम काम नहीं चलेगा?

कम्मो - क्यूँ न चलेगा? हमने सोचा चलो भाभी के घर जाकर ताश खेलें !

भाभी उदास हो कर बोली- वो तो रात होने तक नहीं आयेंगे।

मैं- कहाँ गए हैं इतनी धूप में?

ऋतु- मैंने नहीं भेजा, अपने आप गए हैं।

कम्मो - कहाँ गए हैं?

ऋतु- और कहाँ? वो भले उनके खेत भले।

कम्मो - क्या बात है भाभी? उदास क्यूँ हो? झगड़ा हो गया है क्या?

ऋतु- जाने भी दीजिये। यह तो हर रोज की बात है, आप जान कर क्या करेंगी?

कम्मो ने उनके कंधे पर हाथ रखा और पूछा- क्या बात है, बता दो? कम से कम दिल हल्का हो जायेगा, हम से कुछ हो सके तो वो भी करेंगे। बोलो, क्या बात है? मार पीट करते हैं?

मैंने कहा- हाँ भाभी, क्या बात है?

इतना सुन कर भाभी कम्मो के गोद में सर रख कर रो पड़ी। मैंने उनकी पीठ सहला कर सांत्वना दी, मैंने कम्मो से पानी लाने को कहा।

कम्मो उठ कर पानी लेने गई। मैंने ऋतु भाभी के चहरे को अपने हाथों में लिया, इतनी मासूम लग रही थी वो !

कम्मो के आने से पहले मैंने उनके कान में पूछ लिया- भाभी, भाई तुम्हें रोज चोदता है या नहीं?

भाभी शरमा कर बोली- आज बीस दिन हुए !

कम्मो ने सुन लिया, पूछने लगी- किसके 20 दिन हुए?

मैं- तू नहीं समझेगी, छोटी है, बाद में बताऊँगा।

ऋतु भाभी को पानी देकर कम्मो ने अपने उरोजों के नीचे हाथ रख कर ऊपर उठाये और बोली- देखो, मैं छोटी दिखती हूँ भाभी? ऋतु के होंठों पर हंसी आ गई, उन्होंने कहा- नहीं कम्मो , तुम्हारे तो मेरे से बड़े हैं, मैं कह रही थी कि 20 दिन से अनिल ने मेरे से बात नहीं की है।

कम्मो के स्तन वाकई बड़े थे, वो 20 साल की ही थी मैंने सोचा खुला ही बोलने में कोई हर्ज़ नहीं है, मैंने कहा- भाभी का मतलब है कि 20 दिन से भैया ने उसे नहीं चोदा है।

कम्मो अवाक् रह गई, फिर बोली- रवि...?!!

मैं- भाभी, तू शुरू से बता, क्या हुआ?

कम्मो - रवि, तुम सब कैसे पूछते हो?

ऋतु पहले शरमाई फिर बोली- तुम्हारे भैया के अलावा मेरे को आज तक किसी ने छुआ तक नहीं ! तुम्हारे भैया ने पहली बार चो... !! वो किया सुहागरात को। मुझे दर्द हुआ, खून निकला वो सब उन्होंने देखा था।

मैं- अब मारपीट करते हैं?

ऋतु- मारपीट कर लेते तो अच्छा होता ! यह तो सहा नहीं जाता ! सुबह होते ही खेत में चले जाते हैं, दोपहर को नौकर को भेज कर खाना मंगा लेते हैं। रात को आते हैं तो खाना खाकर चुपचाप सो जाते हैं और झट पट वो किया या नहीं किया। करके करवट बदल कर सो जाते हैं। न बात न चीत ! मैं कुछ पूछूं तो ना जवाब। क्या करूँ? अब तो वो करना भी बंद कर दिया है। कभी कभी रात को नहीं आते तो मुझे डर लगता है, उन्हें कुछ हो तो नहीं गया?

इतना कहते हुए वो रो पड़ी और मेरे कंधे के ऊपर सर रख कर रोने लगी। मैं धीरे-2 उनकी पीठ सहलाने लगा, कम्मो की आँख में भी आंसू भर आये।

थोड़ी देर बाद भाभी शांत हो गई, उसका चेहरा उठा कर मैंने आँसू पौंछे। इतनी मासूम लग रही थी, मैंने उनके गाल एक चुम्मा ले लिया। मेरा कारनामा देख कर कम्मो ने दूसरे गाल पर चूम लिया। मैं कुछ सोचूं, इससे पहले मेरे होंठ ऋतु के होंठों से लग गए।

लगता है अनिल ने भाभी को सेक्स करना नहीं सिखाया था, जैसे ही मैंने जीभ से उसके होंठ चाटने चालू किये, वह छटपटाने लगी। लेकिन मैंने उसे छोड़ा नहीं, उसके मुंह में जीभ डाल कर चारों तरफ घुमाई और उसके होंठ चूसे।

कम्मो गौर से देख रही थी।

पाँच मिनट बाद चुम्बन छूटा। हम दोनों के मुँह थूक से गीले हो गए थे, उसका चेहरा लाल हो गया था।

कम्मो बोली- रवि, मुझे कुछ कुछ हो रहा था तुम दोनों को देख कर !

अब ऋतु ने कम्मो का का चेहरा पकड़ लिया और उसके मुँह से मुँह चिपका दिया।

इस वक्त कम्मो की बारी थी, ऋतु ने भी वैसा किया, जैसा मैंने किया था। उन दोनों को देख कर मेरा लंड खड़ा होने लगा। उस चूमाचाटी के दौरान मैंने अपना हाथ ऋतु की छातियों पर रख दिया, मैंने उरोजों को दबाया और मसला भी। उसने मेरा हाथ पकड़ लिया पर हटाया नहीं, वो चुदवाने के लिए तैयार हो रही थी, फिर भी तसल्ली के लिए मैंने पूछा- भाभी, बीस दिन से भूखी हो, आज हो जाये।

कम्मो चुम्बन छोड़ कर बोली- रवि, तू तो भाभी को चो...च.. सम्भोग.. हाय हाय वो करने वाले हो?

मैं- अगर देख न सको तो चली जाना।

ऋतु- ना ना, तुम यहीं रहना !

अब कम्मो ने वो करना चालू किया जो सोचा न था, अचानक वो मेरे ऊपर टूट पड़ी और चूसना चालू कर दिया, पहले तो मेरे को हिचकिचाहट हुई, वो मेरी गर्ल फ्रेंड थी जिसने इस कदर कभी नहीं किया था, अब मैंने मुड़ कर न देखा मैंने कस कर उसे चूम लिया।

कम्मो के होंठ इतने कोमल और रसीले होंगे, मैंने सोचा न था। ऋतु के चूचे छोड़ कर मैंने नहा को पकड़ लिया, जब तक चुम्बन चला मैंने कम्मो के चूचे सहलाये।

जैसे ही चुम्बन छूटा, कम्मो बोली- क्या भाभी के सामने ही करेगा?

चारपाई छोटी थी, ऋतु ने फटाफट जमीन पर बिस्तर बिछाया।

छोटी सी चोली में ऋतु के चूचे छिप नहीं रहे थे, मैंने एक एक कर के चोली के रे बटन खोल दिए, उसने अपनी चोली निकाल दी, ऋतु अब ब्रा में थी।

चोली हटाते ही ऋतु के चूचे मेरे हाथ में कैद हो गए, मैंने धीरे से उसे लिटाया, आगे झुक कर फिर कम्मो भाभी को चूमने लगी, एक हाथ से चूचे से पकड़ा और दूसरा हाथ पेट से नीचे उतार दिया, ऋतु के चूचे मेरे हाथ से बड़े थे समां न सके लेकिन निप्पल छोटे थे उस वक्त सारा सामान कड़ा हो गया था, मैंने एक निप्पल चिमटी की तरह से पकड़ा और दूसरा मुँह में लेकर चूसने लगा।

उस वक्त ऋतु का हाथ धीरे से फिसल कर मेरे लंड पर पहुंचा, मेरे मोटे लंड को हाथ में भर कर दबा दिया, चुम्बन छोड़ कर बोली- देवर जी, कहाँ छुपा कर रखा था? ऐसे खजाने को छुपा कर रखना पाप है, मैं तुम्हें माफ़ नहीं करुँगी।

उसने मेरी पैंट खोला और हाथ डाल कर खड़े लंड को बाहर निकाला, कम्मो ने झट से मेरा लण्ड पकड़ लिया और बोली- बहुत सख्त है लंड आज तो !

अब कम्मो ने भी अपने कपड़े उतार दिए। अब मेरे सामने दो जोड़ी नंगी चूचियाँ थी, मैं क्या करता, चूचियाँ मेरी कमजोरी हैं, भाभी के चूचे कम्मो से बड़े थे और कम्मो के थोड़े छोटे थे। कम्मो के स्तन पूरी तरह गोल गोल और सफ़ेद थे, चूचे के ऊपर बादामी रंग के छोटी निप्पल थी, मैंने उंगली से निप्पल को छुआ।

इस दरमियान भाभी मेरा लंड मुठिया रही थी। उसने अब अपनी सलवार ढीली की और उसको नीचे करके उतार कर बोली- अब चालू हो जाओ !

भाभी ने जांघे चौड़ी करके ऊपर उठा ली। उत्तेजना से सूजी हुई चूत देख कर मेरा लंड और तन गया, मैं बीच में आ गया, लंड को पकड़ कर चूत के चारों तरफ घुमाया, सब गीला और चिकना था क्योंकि चूत बहुत गीली थी। दिक्कत यह थी कि मुझे सही से पता नहीं था कि लंड कहाँ घुसता है, चूत का मुँह कहाँ होता है।

मैंने ऐसे ही धक्के लगाने चालू कर दिए लकड़ी की तरह इधर उधर टकराया, फिसल गया लेकिन चूत का मुँह नहीं मिला।

मुझे लगा कि मैं चोदे बिना ही झड़ने वाला हूँ, आज तक मैं यह समझ नहीं पाया था कि लड़कियों को बिना बताये सेक्स का पता कैसे चल जाता है।

शर्म की मरी भाभी दोनों हाथो से चेहरा छुपा कर लेटी रही, कम्मो ने लंड को पकड़ कर सही ठिकाने में रख दिया और मैंने एक जोरदार धक्का मारा, पूरा लण्ड चूत में अंदर तक उतर गया, कम्मो गौर से लण्ड को चूत में घुसते देख रही थी।

चूत की मखमली दीवारों से लंड चिपक सा गया, लंड ने तीन चार ठुमके लगाये और चूत ने सिकुड़ कर जवाब दिया। मेरी उत्तेजना भी काफी बढ़ गई थी।.

अकेला सुपारा अन्दर रह जाता, मैंने अपना लंबा और मोटा लंड बाहर खींचा और फिर एक झटके से अन्दर घुसा दिया। दो चार ऐसे धक्के मारे तो लंड और तन गया, ऋतु के सर से लेकर पैर तक सारे अंग लंड के आनन्द से किलकारियाँ मारने लगे। मैं दनादन ऋतु को चोद रहा था और वो कूल्हे उछाल कर जवाब दे रही थी।

मैं झड़ने के नजदीक पहुँच गया पर भाभी चुदवाए जा रही थी, झड़ने का नाम नहीं ले रही थी।

कम्मो फिर काम आ गई, उसने भाभी की भोंस पर हाथ रखा, अंगूठे और उंगली से क्लोटोरिस पकड़ कर खींची, मसली और बेरहमी से रगड़ डाली, तुरंत भाभी के नितम्ब डोल पड़े।

अब वो कमर के झटके लगाने लगी, उसकी चूत ने ऐसे लंड चूसा कि मेरा बांध टूट गया, वीर्य की फचाफच पिचकारियाँ मार कर मैं झड़ गया और मेर साथ भाभी भी झड़ गई।

थोड़ी देर तक मैं भाभी के बदन पर पड़ा रहा, फ़िर लंड निकाल कर सफाई कने लगा। पेशाब जोर की लगी थी, झड़ने पर भी लंड झुका नहीं था।

लंड पर ठंडा पानी डाला, धोया पानी में डुबोया तब कहीं जाकर पेशाब निकली।

कमरे में आया और तो देखा तो दंग रह गया दोनों आपस में लिपटी पड़ी थी, कम्मो अपनी टाँगें उठाए पड़ी थी, ऋतु उसके ऊपर थी और मर्द की तरह धक्के मार कर चूत से चूत रगड़ रही थी। वो दोनों अपनी चुदाई में मस्त थी, मेरा आने की उन्हें खबर न हुई।

मैं जाकर सामने बैठ गया ताकि दोनों की चूत आसानी से दिखाई दे।

कम्मो जोर जोर से कूल्हे उछाल रही थी और भाभी को जोर लगाने को कह रही थी लेकिन ऋतु के झटके धीमे पड़ने लगे। मैं जाकर कम्मो के पीछे बैठ गया और अपनी टाँगें चौड़ी की तब लंड कम्मो की चूत तक पहुँच सका। आगे बढ़ कर मैंने भाभी के स्तन थाम लिए। भाभी ने कहा- अच्छा हुआ जो तुम आ गए ! संभालो अपनी गर्लफ्रेंड को !

और वो जाने लगी।

मैंने हाथ पकड़ लिया और कहा- अभी मत जाओ। हम तीनों मिल कर चुदाई करेंगे।

वैसे भी कुँवारी लड़की को चोदने के ख्याल से लंड कुछ टाइट हो गया। मैंने लंड भाभी की चूत में फिर से डाल दिया, वो कुछ कहे, इससे पहले मैंने चार पाँच धक्के मार ही लिए। लंड अब और खड़ा हो गया। मैंने भाभी की चूत से लंड निकाला, मेरा लंड भाभी की चूत के रस से चमक रहा था, एक झटके से कम्मो की चूत का मूह खोला और अपना लंड डाल दिया। मेरा लंबा और मोटा लंड कम्मो की छूट के अंदर जड़ तक जा कर फस गया था, मेरे लंड ने कम्मो की छूट की झिल्ली के टुकड़े कर दिए थे

झिल्ली फटते ही कम्मो चीख उठी लेकिन भाभी ने उसके लबों को अपने मुँह में लेकर दबोच लिया। अब मैंने लंड को चूत में दबाये रखा और खड़ा हो गया। तब कम्मो को पता चला कि उसकी चूत की झिल्ली फट गई है, वो बोली- रवि तुमने यह क्या किया? बहुत दर्द हो रहा है।

भाभी ने कम्मो के नीचे दो तकिये लगाये और कहा- जो होना था, वो हो गया, अब देखना लंड तुम्हारी चूत में कैसे ठीक बैठता है। दर्द की फिकर मत कर, अभी चला जायेगा ! रवि जरा रुको !

लंड को चूत में दबाये रख मैंने कहा- कम्मो तेरी यही इच्छा थी, सच बता?

फिर कम्मो ने अपना चेहरा ढक लिया और सर हिला कर हाँ कहा, उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई। वो देख कर लंड ने ठुमका लगाया और ज्यादा चौड़ा होकर चूत को और भी चौड़ा कर डाला।

'उ इ इ इ !' कर कम्मो फिर से चिल्ला उठी।

मैंने उसके मुंह को चूम कर कहा- यह आखिरी दर्द है। अब कभी नहीं दुखेगा।

लण्ड को दो इंच बाहर निकाला और फिर घुसा कर पूछा- दर्द हुआ?

इस बार उसने न कहा।

"अब नीचे देख, क्या होता है?"

वो देखती रही और मैंने आराम से लंड निकाला, जब सिर्फ़ सुपारा चूत में रह गया, तब रुका।

झिल्ली का खून और चूत के रस से गीला लंड देख कर कम्मो बोली- तेरा इतना बड़ा तो कभी न था? कब बढ़ गया?

"मैंने भी तेरी भोंस इतनी खुली हुई नहीं देखी !"

भाभी- चुदाई के वक्त लंड और चूत का आकार बदल जाता है, वैसे भी तुम्हारे भाई का 6 इंच का है लेकिन जब चोदते हैं तो सात इंच जैसा दीखता है।

मैं- अच्छा ! तैयार रहना ! लण्ड फिर से चूत में जा रहा है, दर्द हो तो बताना !

आसानी से पूरा लंड कम्मो की चूत में घुस गया, जब क्लिटोरिस दब गई तो कम्मो ने कहा- बड़ी गुदगुदी होती है।

मैंने कूल्हे मटका कर क्लिटोरिस को रगडा, कम्मो के नितम्ब भी हिल पड़े, वो बोली- सी सी इ अई ! इह, मुझे कुछ हो रहा है !

अब मुझे तसल्ली हो गई कि अब कम्मो की चूत तैयार है, मैंने धीरे चोदना चालू किया। भाभी झुक कर कम्मो को चूमने लगी। मैंने धीरे धीरे रफ़्तार बढ़ाई। कम्मो भी कूल्हे उछाल कर जवाब दे रही थी।

कम्मो ने अपने पैरों से मेरी कमर को जकड़ लिया, मैं दनादन चोदे जा रहा था। पूरे कमरे में फ़चा...फ़च.... फ़चा...फ़च.... की आवाज़ें गूँज रही थी

दस मिनट तक चुदने के बाद कम्मो अचानक से बोल उठी- ओ ओ ओ इईईइ औ !

वो झटपटाने लगी, मेरे बदन पर कई जगह उसने नाख़ून गड़ा दिए, कमर के झटके ऐसे लगाये कि लंड चूत से बाहर निकल निकल कर वापिस घुस रहा था। लण्ड पर चूत ऐसे सिकुड़ी जैसे किसी ने मुट्ठी से जकड़ लिया हो। मेरा लंड तन कर लोहा हो गया, चूत में आते जाते सुपारा टकरा रहा था जैसे मुट्ठ मारते हैं।

और कम्मो भी सातवें आसमान की सैर कर रही थी। तभी मैं झड़ गया और झटके से छोड़ते हुए लंड ने वीर्य की पिचकारी मारी। एक एक पिचकारी के साथ लण्ड से बिजली का करंट निकल कर सारे बदन में फ़ैल जाता था।

हम दोनों शिथिल हो कर ढल पड़े। थोड़ी देर अब कम्मो के ऊपर गिर कर पड़ा रहा, लग रहा था कि अब मेरे शरीर से जैसे जान ही निकल गई हो ! हम दोनों शांत हो चुके थे।

कम्मो की चूत पावरोटी की तरह फूल गई थी वो खड़ी नहीं हो पा रही थी। मैंने उसे गोदी में उठाया और बाथरूम में ले जाकर एक दूसरे को साफ़ किया और फिर नहा धोकर बाहर आए।

भाभी ने तब तक नाश्ता बना दिया था।
हम तीनों के चेहरे पर अब मुस्कान थी, भाभी भी अब बहुत खुश नजर आ रही थी।

अब तो में भाभी जब भी याद करती, मैं उनके सेवा के लिए चला जाता था ....
अब मेरे पास दो दो हसीनाएे थी…. मेरी जिंदगी मज़े से कट रही थी….।

दोस्तो, कैसे लगी ये कहानी आपको ,
 
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