Incest Stories in hindi रिश्तों मे कहानियाँ - Page 5 - SexBaba
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Incest Stories in hindi रिश्तों मे कहानियाँ

मैं, मेरे जेठ और जेठानी--1
मैं शहनाज़ हूँ। एक २६ साल की शादीशुदा औरत। गोरा रंग, खूबसूरत नाक-नक्श और जिस्म ऐसा कि कोई एक बार देख ले तो पाने के लिये तड़प उठे। मेरा फिगर ३६-२८-३८ है। मेरा निकाह जावेद से दो साल पहले हुआ था। जावेद एक बिज़नेसमैन है और निहायत ही हेंडसम और काफी अच्छी फितरत वाला आदमी है। वो मुझे बहुत मोहब्बत करता है। 



कुछ दिनों पहले मेरे जेठ और जेठानी हमारे पास आये थे। जावेद ज्यादा से ज्यादा समय घर में ही रहने की कोशिश करते थे। बहुत मज़ा आ रहा था। खूब हंसी मजाक चलता। देर रात तक नाच-गाने और पीने-पिलाने का प्रोग्राम चलता रहता था। फिरोज़ भाईजान और नसरीन भाभी काफी खुशमिजाज़ थे। उनके निकाह को पांच साल हो गये थे मगर अभी तक कोई औलाद नहीं हुई थी। ये एक छोटी सी कमी जरूर थी उनकी ज़िंदगी में मगर फिर भी वे खुश ही दीखते थे। एक दिन दोपहर को खाने के साथ हम सब वाइन पी रहे थे। मैंने कुछ ज्यादा ही पी ली। मुझे बेडरूम में जा कर लेटना पड़ा। बाकी तीनों ड्राइंग रूम में गपशप कर रहे थे। शाम तक यही सब चलना था इसलिये मैंने अपने कमरे में आकर फटाफट अपने सारे कपड़े उतारे और एक हल्का सा फ्रंट ओपन गाऊन डाल कर बिस्तर पर गिर पड़ी। पता नहीं नशे में चूर मैं कब तक सोती रही। अचानक कमरे में रोशनी होने से नींद खुली। मैंने अलसाते हुए आँखें खोल कर देखा तो बिस्तर पर मेरे पास जेठ जी बैठे मेरे खुले बालों पर मोहब्बत से हाथ फ़िरा रहे थे। मैं हड़बड़ा कर उठने लगी तो उन्होंने उठने नहीं दिया।



“लेटी रहो, शहनाज़” उन्होंने माथे पर अपनी हथेली रखते हुए कहा, “अब कैसा लग रहा है?”



“अब काफी अच्छा लग रहा है।” तभी मुझे एहसास हुआ कि मेरा गाऊन सामने से कमर तक खुला हुआ है और मेरी गोरी-चिकनी जांघें जेठ जी के सामने नुमाया है। कमर पर लगे बेल्ट की वजह से मैं पूरी नंगी होने से बच गयी थी। मैं शरम से एक दम पानी-पानी हो गयी। मैंने झट अपने गाऊन को सही किया और उठने लगी। जेठजी ने अपनी बाँहों का सहारा दिया। मैं उनकी बाँहों का सहारा ले कर उठ कर बैठी लेकिन सिर जोर का चकराया और मैंने सिर को अपने दोनों हाथों से थाम लिया। जेठ जी ने मुझे अपनी बाँहों में भर लिया। मैंने अपने चेहरे को उनके सीने पर रख कर आँखें बंद कर लीं। कुछ देर तक मैं यूँ ही उनके सीने में अपने चेहरे को छिपाये उनके जिस्म से निकलने वाली खुश्बू अपने जिस्म में समाती रही। कुछ देर बाद उन्होंने मुझे अपनी बाँहों में संभाल कर मुझे बिस्तर के सिरहाने से टिका कर बिठाया। मेरा गाऊन वापस अस्त-व्यस्त हो रहा था। जाँघों तक टांगें नंगी हो गयी थी। 



मुझे याद आया कि मेरी जेठानी नसरीन और जावेद नहीं दिख रहे थे। मैंने सोचा कि दोनों शायद हमेशा कि तरह किसी चुहलबाजी में लगे होंगे या वो भी मेरी तरह नशे में चूर कहीं सो रहे होंगे। फिरोज़ भाईजान ने मुझे बिठा कर सिरहाने के पास से ट्रे उठा कर मुझे एक कप कॉफी दी।



“ये... ये आपने बनायी है?” मैं चौंक गयी क्योंकि मैंने कभी जेठ जी को किचन में घुसते नहीं देखा था।



“हाँ! अच्छी नहीं बनी है?” फिरोज़ भाई जान ने मुस्कुराते हुए मुझसे पूछा।



“नहीं नहीं! बहुत अच्छी बनी है” मैंने जल्दी से एक घूँट भर कर कहा, “लेकिन भाभीजान और वो कहाँ हैं?”



"वो दोनों कोई फ़िल्म देखने गये हैं... छः से नौ.... नसरीन जिद कर रही थी तो जावेद उसे ले गया है।”



“लेकिन आप? आप नहीं गये?” मैंने हैरानी से पूछा।



“तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं लग रही थी। अगर मैं भी चला जाता तो तुम्हारी देखभाल कौन करता?” उन्होंने कहा। 



मुझे बाथरूम जाना था। मैं उनका हाथ थाम कर बिस्तर से उतरी। जैसे ही उनका सहारा छोड़ कर बाथरूम तक जाने के लिये दो कदम आगे बढ़ी तो अचानक सर बड़ी जोर से घूमा और मैं लड़खड़ा कर गिरने लगी। इससे पहले कि मैं जमीन पर गिर पड़ती, फिरोज़ भाईजान लपक कर आये और मुझे अपनी बाँहों में थाम लिया। मुझे अपने जिस्म का अब कोई ध्यान नहीं रहा। उन्होंने मुझे अपनी बाँहों में फूल की तरह उठाया और बाथरूम तक ले गये। मैंने गिरने से बचने के लिये अपनी बाँहों का हार उनकी गर्दन पर पहना दिया। उन्होंने मुझे बाथरूम के भीतर ले जाकर उतारा।



“मैं बाहर ही खड़ा हूँ। तुम्हे बाहर आना हो तो मुझे बुला लेना। संभल कर उठना-बैठना,” फिरोज़ भाईजान मुझे हिदायतें देते हुए बाथरूम के बाहर निकल गये और बाथरूम के दरवाजे को बंद कर दिया। मैंने पेशाब कर के लड़खड़ाते हुए अपने कपड़ों को सही किया जिससे वो फिर खुल कर मेरे जिस्म को बेपर्दा ना कर दें। मैं अब खुद को कोस रही थी कि किसलिये मैंने अपने अंदरूनी कपड़े उतारे। मैं जैसे ही बाहर निकली तो वो बाहर दरवाजे पर खड़े मिल गये। वो मुझे देख कर लपकते हुए आगे बढ़े और मुझे अपनी बाँहों में भर कर वापस बिस्तर पर ले आये।



मुझे सिरहाने पर टिका कर उन्होंने मेरे कपड़ों को अपने हाथों से सही कर दिया। मेरा चेहरा तो शरम से लाल हो रहा था। उन्होंने साईड टेबल से एक एस्प्रीन निकाल कर मुझे दी। फिर वापस मेरे कप में कुछ कॉफी भर कर मुझे दी और बोले, “लो इससे तुम्हारा हेंगओवर ठीक हो जायेगा।” मैंने कॉफी के साथ दवाई ले ली।



“भाईजान, एक बात अब भी मुझे खटक रही है। वो दोनों आप को साथ क्यों नहीं ले गये…। आप कुछ छिपा रहे हैं... बताइये ना…।”



“कुछ नहीं शहनाज़, मैं तुम्हारे कारण रुक गया।”



“नहीं! कुछ और बात भी है जो आप मेरे से छुपा रहे हैं,” मैंने कहा।



मेरे बहुत जिद करने पर वो धीरे धीरे खुलने लगे, “तुम्हे जावेद ने कुछ नहीं बताया?”



“क्या?” मैंने पूछा।



“शायद तुम्हे बुरा लगे। मैं तुम्हारा दिल नहीं दुखाना चाहता।”



“मुझे कुछ नहीं होगा! आप कहिये तो.... क्या आप कहना चाहते हैं कि जावेद और नसरीन भाभीजान के बीच ...,” मैंने जानबूझ कर अपने वाक्य को अधूरा छोड़ दिया।



वो भोंचक्के से कुछ देर तक मेरी आँखों में झाँकते रहे, “तुम कुछ जानती हो?”



“मुझे थोड़ा शक तो था पर यकीन नहीं।”



“तुम..... तुमने कुछ कहा नहीं? तुम ने विरोध नहीं किया?” फिरोज़ ने पूछा। 



“विरोध तो आप भी कर सकते थे। आप तो उनसे बड़े हैं फिर भी आप ने उन को नही रोका,” मैंने उलटा उनसे ही सवाल किया।



“मैं दोनों को बेहद चाहता हूँ और ...”



“और क्या?”



“और..... ये हमारे लिये जरूरी था,” कहते हुए उन्होंने अपना चेहरा नीचे झुका लिया। 



मैं उनका मतलब समझ गई थी। मैं उस प्यारे इंसान की परेशानी देख अपने को रोक नहीं पायी। मैंने उनके चेहरे को अपनी हाथों में ले कर उठाया। मैंने देखा कि उनकी आँखों के कोनों पर दो आँसू चमक रहे हैं। मैं ये देख कर तड़प उठी। मैंने अपनी अँगुलियों से उनको पोंछ कर उनके चेहरे को अपने सीने पर खींच लिया। वो किसी बच्चे की तरह मेरी छातियों से अपना चेहरा सटाये हुए थे।



“डॉक्टर ने कोई और रास्ता नहीं बताया?” मैंने उनके बालों में अपनी अँगुलियाँ फ़िराते हुए पूछा।



“और कोई रास्ता नहीं था। और नसरीन को किसी अनजान आदमी से बच्चा हासिल करने से ज्यादा मुनासिब ये लगा, ... और मुझे भी यही ठीक लगा!” वो बोले।



मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि यह ठीक हो रहा है कि गलत। एक तरफ मुझे दुःख था कि मेरा शौहर एक पराई औरत के साथ हमबिस्तर हो रहा था पर मैं यह भी समझ रही थी कि वो यह अपने लुत्फ़ के लिये नहीं कर रहा था। वो यह अपने भाई और भाभी की मदद के लिये कर रहा था। ... लेकिन क्या यह मदद कोई और नहीं कर सकता था? ... शायद मैं खुदगर्जी से सोच रही हूं! नसरीन भाभी और फिरोज़ भाईजान किसी अनजान मर्द की औलाद नहीं चाहते। ... इस में गलत क्या है? भाईजान को पता है कि उनकी बीवी जावेद के साथ ... उन्हें कुछ अफ़सोस भले ही हो पर ऐतराज़ नहीं है। मुझे भी ऐसे ही सोचना चाहिए ... हालांकि यह आसान नहीं है। 



जावेद और नसरीन भाभी रात के दस बजे तक चहकते हुए वापस लौटे। होटल से खाना पैक करवा कर ही लौटे थे। मेरी हालत देख कर जावेद और नसरीन भाभी घबरा गये। बगल में ही एक डॉक्टर रहता था उसे बुला कर मेरी जाँच करवायी। डॉक्टर ने देख कर कहा कि डी-हाइड्रेशन हो गया है और जूस वगैरह पीने को कह कर चले गये।



अगले दिन सुबह मेरी तबियत एकदम सलामत हो गयी। अगले दिन जावेद का जन्मदिन था। शाम को बाहर खाने का प्रोग्राम था। एक बड़े होटल में टेबल पहले से ही बुक कर रखी थी। वहां पहले हम सब ने शैम्पेन पी और फिर खाना खाया। जावेद ने वापस लौट कर घर में ही एक फ़िल्म देखने का प्रोग्राम बनाया था। घर पहुँच कर हम चारों हमारे बेडरूम में इकट्ठे हुए। वहां सब मिल कर शार्डोने पीने लगे। मुझे सबने मना किया कि पिछले दिन मेरी तबियत वाइन पीने से ही खराब हुई थी पर मैं कहाँ मानने वाली थी। मैंने भी ज़िद करके उनके साथ और ड्रिंक्स लीं। फिर जावेद ने म्यूज़िक चलाया और नसरीन भाभी को अपने साथ डांस करने की दावत दी। नसरीन भाभी को जावेद की बाँहों में नाचते देख कर मुझे जाने कैसा लगा। मैंने भाईजान की तरफ देखा। उनका चेहरा भी कुछ मेरे जैसा ही दिख रहा था। उनको तसल्ली देने के लिये मैंने उनको मेरे साथ डांस करने के लिये इशारा किया। कुछ देर तक दोनों भाई एक दूसरे की बीवियों के साथ डाँस करते रहे। मुझे जेठ जी की बाँहों में आ कर अजीब सी फीलिंग हो रही थी। यह पहला मौका था कि मैं अपने शौहर के बजाय किसी और मर्द की बाहों में थी।
 
मैं, मेरे जेठ और जेठानी--2

कुछ देर बाद जावेद ने कमरे की ट्यूबलाईट ऑफ कर दी और सिर्फ एक नाईट लैंप जला दिया। हम चारों बिस्तर पर बैठ गये। जावेद ने डी-वी-डी ऑन कर के फ़िल्म चला दी। हम चारों बिस्तर के सिरहाने पर पीठ लगा कर बैठ गये। एक किनारे पर जावेद बैठा था और दूसरे किनारे पर फिरोज़ भाईजान थे। बीच में हम दोनों औरतें थीं। यह एक ब्लू फिल्म थी। मैं पहली बार किसी गैर मर्द और औरत के साथ ऐसी फिल्म देख रही थी। मुझे शर्म तो आ रही थी पर वाइन के असर से शर्म हावी नहीं हुई थी।



दोनों भाइयों ने नशे की मस्ती में अपनी-अपनी बीवियों को अपनी बाँहों में समेट रखा था। फिल्म जैसे-जैसे आगे बढ़ती गयी, कमरे का माहौल गरम होता गया। दोनों मर्द बिना किसी शरम के अपनी अपनी बीवियों के जिस्म को मसलने लगे। जावेद मेरे मम्मों को मसल रहा थे और फिरोज़ भाई भाभी के। जावेद ने मुझे उठा कर अपनी टाँगों के बीच बिठा लिया। मेरी पीठ उनके सीने से सटी हुई थी। वो अपने दोनों हाथ मेरे गाऊन के अंदर डाल कर अब मेरे मम्मों को मसल रहे थे। मैंने देखा फिरोज भाईजान के हाथ भी नसरीन भाभी के गाऊन के अंदर थे। कुछ देर बाद हम दोनों के गाऊन कमर तक उठ गये थे और नंगी जाँघें सबके सामने थीं। जावेद अपने एक हाथ को नीचे से मेरे गाऊन में घुसा कर मेरी चूत को सहलाने लगे। मैं अपनी पीठ पर उनके लंड के कड़ेपन को महसूस कर रही थी।



फिरोज़ भाई ने भाभी के गाऊन को सीने से ऊपर उठा दिया था और वे एक मम्मे को चूस रहे थे। ये देख कर जावेद ने भी मेरे एक मम्मे को गाऊन के बाहर निकालने की कोशिश की। मैंने विरोध किया तो उन्होंने मेरे गाऊन को ही मेरे जिस्म से अलग कर दिया। अब मैं सबके सामने बिल्कुल नंगी थी। मैं शरम के मारे अपने हाथों से अपने मम्मों को छिपाने लगी। 



“क्या कर रहे हो? फिरोज़ भाईजान बगल में हैं.... तुमने उनके सामने मुझे नंगी कर दिया! क्या सोचेंगे जेठ जी?” मैंने फुसफुसाते हुए जावेद के कानों में कहा।



“सोचेंगे क्या? उन्होंने भी तो भाभी को लगभग नंगी कर दिया है। देखो तो ...” 



मैंने अपनी गर्दन घूमा कर देखा तो पाया कि जावेद सही कह रहा था। फिरोज़ भाईजान ने भाभी के गाऊन को छातियों से भी ऊपर उठा रखा था। वो भाभी की चूचियों को मसले और चूसे जा रहे थे। वो एक निप्पल को अपनी जीभ से सहलाते हुए दूसरे को अपनी मुठ्ठी में भर कर मसल रहे थे। नसरीन भाभी ने भी फिरोज़ भाई का पायजामा खोल कर उनके लंड को अपने हाथों से सहलाना शुरू कर दिया। 



इधर जावेद मेरी टाँगों को फैला कर अपने होंठ मेरी चूत के ऊपर फ़ेरने लगा। उसने ऊपर बढ़ते हुए मेरे दोनों निप्पल को कुछ देर चूसा और फिर मेरे होंठों को चूमने लगा। नसरीन भाभी के हाथ में फिरोज भाई के लंड को देख कर जावेद ने मेरे हाथों को अपने लंड पर रख कर सहलाने का इशारा किया। मैंने भी नसरीन भाभी की देखा-देखी जावेद के पायजामे को खोल कर उनके लंड को बाहर निकाल लिया और उसे सहलाने लगी। फिरोज़ भाई की निगाहें अपने जिस्म पर देख कर मैं शर्मा रही थी। मुझे लगा कि मेरे नंगे जिस्म को देख कर उनका लंड झटके खा रहा था। अब हम चारों एक दूसरे की जोड़ी को निहार रहे थे। पता नहीं टीवी स्क्रीन पर क्या चल रहा था। सामने लाईव ब्लू फ़िल्म इतनी गरम थी कि टीवी पर देखने की किसे फ़ुर्सत थी। 



दोनों जोड़े अपने शौहर/बीवी के साथ सैक्स के खेल में लगे थे मगर दूसरे जोड़े की मौजूदगी सब का रोमांच बढ़ा रही थी। फिरोज़ ने बेड पर लेटते हुए नसरीन भाभी को अपनी टाँगों के बीच खींच लिया और उनके सिर को पकड़ कर अपने लंड पर झुकाया। नसरीन भाभी ने उनके लंड पर झुकते हुए हमारी तरफ़ देखा। उनकी नजरें मेरी नजरों से मिली तो उन्होंने मुझे प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा। शायद अकेले मुंह में लंड लेने में वे हिचक रही थी। मैं भी जावेद के लंड पर झुकी तो भाभी ने फिरोज़ भाई का लंड अपने मुंह में ले लिया। मैं भी जावेद के लंड को अपने मुँह में ले कर चूसने लगी। इस दौरान हम चारों बिल्कुल नंगे हो चुके थे।



“जावेद, लाईट बंद कर दो.... मुझे शर्म आ रही है,” मैंने जावेद को फुसफुसाते हुए कहा।



“इसमें शर्म की क्या बात है? सब अपने ही लोग तो हैं,” कह कर उन्होंने फिरोज़ भाई और नसरीन भाभी की ओर इशारा किया। मैंने उनकी ओर देखा तो दोनों लंड चूसने-चुसवाने में लिप्त थे। नसरीन भाभी बड़ी एकाग्रता से लंड चूस रही थीं। नाईट लैंप की रोशनी में उनका नंगा जिस्म बहुत मनमोहक लग रहा था।



जावेद ने मुझे अपने ऊपर खींच लिया। वो ज्यादा लंबा फोर-प्ले पसंद नहीं करते थे। थोड़े से फोर-प्ले के बाद वो चूत के अंदर लंड घुसा कर अपनी सारी ताकत चोदने में लगा देते थे। उन्होंने मुझे चूत में लंड लेने के लिये इशारा किया। मैं उनकी कमर के पास घुटनों के बल बैठ गई। उनके लंड को हाथ से अपनी चूत के द्वार पर एडजस्ट करके मैं अपने जिस्म को धीरे-धीरे नीचे लाने लगी। उनका लंड आहिस्ता-आहिस्ता मेरी चूत के अंदर घुस गया। मैंने पास में दूसरे जोड़े की ओर देखा। नसरीन भाभी भी फिरोज भाई की सवारी कर रही थीं। 



जावेद मेरे मम्मों को अपने हाथों में भर कर दबाने लगे। फिरोज़ भाई भी प्यार से भाभीजान के मम्मों पर हाथ फ़ेर रहे थे। अब हम दोनों औरतें अपने-अपने हसबैंड के लंड की सवारी कर रही थीं। ऊपर नीचे होने से दोनों की चूचियाँ उछल रही थीं। जावेद के हाथों की मालिश अपने मम्मों पर पा कर मेरे धक्के मारने की रफ़्तार बढ़ गयी। मैं चुदाई की मस्ती में “आऽऽह.. ऊहऽऽऽ..” करते फुदक रही थी। नसरीन भाभी का हाल भी मेरे से अलग नहीं था। दोनों भाई आराम से लेटे हुए हमारी मेहनत का मज़ा ले रहे थे।



नसरीन भाभी को ज्यादा देर यह गवारा नहीं हुआ। उन्होंने मुझ से कहा, “अब सारा काम हमें ही करना होगा या ये आलसी भाई भी कुछ करेंगे?”



यह सुन कर फिरोज़ भाई की गैरत जागी और उन्होंने भाभीजान को नीचे उतार कर कोहनी और घुटनों के बल झुका दिया। ये देख कर जावेद ने भी मुझे उलटा कर के उसी पोज़िशन में कर दिया। सामने आईना लगा हुआ था। हम दोनों जेठानी देवरानी पास-पास घोड़ी बनी हुई थीं। दोनों भाइयों ने अपने लंड हमारी चूत में घुसा कर एक रिदम में हमें पीछे से ठोकना शुरू कर दिया। पीछे से धक्के बड़े ज़ोरदार लगते हैं। धक्कों के साथ हमारे मम्मे एक साथ आगे पीछे हिल रहे थे। हम दोनों एक दूसरे को नज़दीक देख कर और ज्यादा उत्तेजित हो रहीं थीं। 



कुछ देर के बाद फिरोज भाई ने अचानक भाभीजान से पूछा, “नसरीन, तुम्हारा फर्टाइल पीरियड (गर्भाधान के लिये बिलकुल उपयुक्त समय) कब शुरू होगा?”



भाभीजान, “आपने अच्छा याद दिलाया। आज ही शुरू हुआ है।”



फिरोज अपने धक्के रोक कर बोले, “फिर तो हमें ये मौका गंवाना नहीं चाहिए! क्यों, जावेद?”



जावेद ने भी चुदाई रोक दी थी। वो थोडा अचरज से बोला, “लेकिन ...”



नसरीन भाभी ने भी कुछ बोलने की कोशिश की पर उनकी बात काटते हुए फिरोज भाई बोले, “तुम दोनों को फ़िक्र करने की की जरूरत नहीं है। मैंने शहनाज़ को सब बता दिया है। उसे ये जान कर थोडा दुःख तो हुआ पर अब वो भी रज़ामंद है।” 



मैं सोच रही थी कि मैंने भाईजान को रजामंदी तो नहीं दी थी। हां, मैंने इस तजबीज का विरोध भी नहीं किया था और इसी को शायद फिरोज भाई मेरी रजामंदी समझ रहे थे। फिर मैंने सोचा कि कहीं फर्टाइल पीरियड के कारण ही तो ये दोनों यहाँ नहीं आये हैं? मुझे याद आया कि पिछले महीने और उस से पिछले महीने जावेद लगभग इन्ही तारीखों को फिरोज भाई के घर गये थे! लेकिन अब क्या हो सकता था सिवाय इस के कि मैं अपने शौहर को नसरीन भाभी को चोदते देखूं। मेरा दिल कर रहा था कि मैं उठ कर कमरे से बाहर चली जाऊं। मुझे पता नहीं था कि फिरोज भाई बाहर जायेंगे या वहीँ रहेंगे।



तभी फैसला हो गया। फिरोज भाई पीछे हठ कर बोले, “जावेद, आ जाओ।” 



उनकी जगह जावेद ने ले ली और फिरोज भाई नसरीन भाभी और मेरे बीच लेट गये। जावेद ने अपना ‘काम’ शुरू कर दिया। मैं सोच रही थी कि मैं बाहर जाऊं या नहीं लेकिन फिर मुझे लगा कि अगर फिरोज भाई अपने सामने अपनी बीवी को चुदते देख सकते हैं तो मुझ में भी ये हिम्मत होनी चाहिए। मैं फिरोज भाई की बगल में बैठ कर जावेद और नसरीन भाभी की चुदाई देखने लगी। जावेद पूरी तन्मयता से नसरीन भाभी को चोद रहा था और भाभीजान भी लुत्फ़अन्दोज़ नज़र आ रही थीं। फिरोज भाई हसरत भरी निगाहों से भाभीजान को चुदते देख रहे थे ... और उनका लंड बेचैनी से छत की तरफ देख रहा था। बेचैन मैं भी थी क्योंकि मुझ से चुदाई के बीच लंड छिन गया था और अब उसी लंड को नसरीन भाभी की चूत की खिदमत करते देख मैं और भी उत्तेजित हो गई थी। 

कुछ देर बाद फिरोज भाई का ध्यान अपने बेचैन लंड की ओर गया और वे उसे अपनी मुट्ठी में ले कर मसलने लगे। यकीनन वे नसरीन भाभी को चोदने के ख्वाहिशमंद थे पर मजबूरी में कुछ कर नहीं पा रहे थे। तभी भाभीजान की नज़र उन पर पड़ी और वे बोलीं, “ये क्या कर रहे हैं आप? बेचारी शहनाज़ बेकरार है और आप उसकी जरूरत पूरी करने की बजाय अपने हाथ का इस्तेमाल कर रहे हैं!” 



यह सुन कर मैं चौंक पड़ी। यह सच था कि फिरोज भाई के ताक़तवर और सुडौल लंड को देख कर मेरे मन में एक बार लालच आया था पर मैंने अपने लालच पर काबू पा लिया था। मैंने कहा, “ये क्या कह रहीं है आप, भाभीजान!” 



“मैं वही कह रही हूं जो मुझे कहना चाहिये” भाभीजान बोलीं, “बल्कि यह तो मुझे पहले सोचना चाहिए था। जब तुम और जावेद हमारी जिंदगी में खुशी लाने के लिये इतना कुछ कर रहे हो तो मेरा भी फ़र्ज़ बनता है कि मैं तुम्हारी जरूरतों का ध्यान रखूँ।”



“इसकी कोई जरूरत नहीं है, भाभीजान” मैंने दिल पर पत्थर रखते हुए कहा, “अगर जावेद के कारण आपके परिवार में खुशियाँ आती हैं तो मुझे भी तो अच्छा लगेगा।”



“नसरीन भाभी ठीक कह रही हैं, शहनाज़” जावेद मेरी तरफ देखते हुए बोला, “हम यह काम मज़े के लिये नहीं कर रहे हैं पर मज़ा तो आ ही रहा है न! भाभीजान और मैं चाहते हैं कि तुम भी इस मज़े से वंचित नहीं रहो? और फिरोज भाई को भी इसमें कोई ऐतराज़ नहीं होना चाहिए, क्यों भाईजान?”



फिरोज भाई कुछ जवाब देते उस से पहले मैंने कहा, “भाईजान को तकलीफ देने की क्या जरूरत है?” तुरंत मेरे दिमाग में आया कि यह क्या बोल दिया मैंने! एक मर्द को किसी औरत को चोदने में भला कभी तकलीफ होती है - फिर वो औरत भले ही उसके भाई की बीवी हो! अभी जावेद ने कहा ही है न कि उसे नसरीन भाभी को चोदने में मज़ा आ रहा है। दरअसल मैं बड़ी दुविधा में थी। नसरीन भाभी और जावेद की चुदाई देख कर मैं भी चुदने के लिये मचल रही थी। फिरोज भाई का बलिष्ठ लंड भी मुझे ललचा रहा था पर अपने जेठजी से चुदने में मैं हिचक रही थी। 



तभी फिरोज भाई जावेद और भाभीजान से मुखातिब हो कर बोले, “तुम दोनों शहनाज़ की जिस्मानी जरूरत को समझ रहे हो यह अच्छी बात है पर यह भी तो सोचो कि मेरा छोटा सा लंड उसकी जरूरत को पूरा कर पायेगा क्या?”



मेरे मुंह से तुरंत निकला, “यह क्या कह रहे हैं आप? आपके लं..” 



हाय अल्ला, ... यह क्या कह गई मैं? मैं कहने वाली थी कि आपके लंड को छोटा कौन कह सकता है! अच्छा हुआ मैंने आखिरी शब्द को पूरा नहीं किया। पर भाईजान ने हम सब के सामने यह शब्द बोल दिया! बहरहाल इस एक शब्द से पूरा माहौल बदल गया था।



जावेद ने हँसते हुए कहा, “रुक क्यों गई? तुम भाईजान के लंड के बारे में कुछ कह रही थी ना!” 



अब नसरीन भाभी भी कहाँ पीछे रहने वाली थीं। उन्होंने कहा, “भई, अब शहनाज़ को वो पसंद नहीं है तो नहीं है!”



मैंने शर्मा कर अपना चेहरा फिरोज भाई के सीने में छुपा लिया। वे मेरे बालों पर हाथ फेरते हुए बोले, “नसरीन, अगर तुम्हे ये पसंद होता तो तुम क्या करतीं?” 



भाभी बोली, “मैं तो इसे मुंह में ले कर प्यार करती।” 



अब जावेद के बोलने की बारी थी, “भाभीजान, अगर शहनाज़ को ये पसंद है तो वो भाईजान के ऊपर आ जायेगी। 



अब हिचकने का वक्त नहीं था। थोड़ी मदद जावेद और भाईजान ने भी की। दोनों ने मेरी एक-एक बांह पकड़ी और मुझे पोजीशन में आने के लिये उकसाया। मैंने भी शर्म छोड़ कर पोजीशन ले ली – फिरोज भाई के लंड पर। और एक बार फिर शुरू हो गई जेठानी और देवरानी की चुदाई। फर्क यह था कि इस बार देवरानी जेठ से चुद रही थी और जेठानी देवर से! 



कुछ देर तक इसी तरह चोदने के बाद फिरोज भाई ने मुझे अपने ऊपर से उठा कर बिस्तर पर चित लिटाया। मेरी दोनों टाँगें उठा कर वे उनके बीच बैठ गये। अपने लंड को मेरी चूत पर रख कर उन्होंने एक तगड़ा धक्का लगाया और लंड मेरी चूत की गहराइयों में उतर गया। जावेद ने भी नसरीन भाभी को अपने नीचे लिया और अपना लंड उनकी चूत में प्रविष्ट कर दिया। अब दोनों भाई हमें मिशनरी स्टाईल में चोदने लगे। इस तरह चुदाई करते हुए हमारे जिस्म एक दूसरे से टकरा कर और अधिक उत्तेजना का संचार कर रहे थे। मैं नसरीन भाभी की बगल में लेटी हुई उनको जावेद से चुदते देख रही थी पर अब मुझे कोई ईर्ष्या नहीं हो रही थी। होती भी कैसे? मैं भी तो उनके शौहर के जानदार लंड का पूरा मज़ा ले रही थी। नसरीन भाभी ने मेरा हाथ अपने हाथ में लिया और हम दोनों एक दूसरे की तरफ प्यार से देखने लगीं। 



उधर दोनों भाई बिलकुल बदहवास लग रहे थे। उनकी आँखें बंद थीं और वे ‘आह’ ‘ओह’ करते हुए अंधाधुन्ध धक्के मार रहे थे। नसरीन भाभी अब झड़ने वाली थी। वे उत्तेजना से सिसक रही थीं, “हाँ..! हाँऽऽ..! और जोर से...! उई माँ...! निकाल दो, जावेद! मैं झड रही हूं...!” उनकी कमर बुरी तरह उचक रही थी। कुछ पल के लिये उनका शरीर अकडा और फिर वो बेजान सी हो कर बिस्तर पर गिर पड़ीं। जावेद का जिस्म अभी भी अकडा हुआ था और फिर वो भी निढाल हो कर भाभी पर पसर गया। 



इधर हम दोनों भी तेज़ी से अपनी मंजिल की ओर बढ़ रहे थे। भाईजान के धक्के अब धुआंधार हो चले थे और मैं भी उछल-उछल कर उनके धक्कों का जवाब दे रही थी। ताबड़तोड़ धक्कों के बीच फिरोज भाई बोले, “बस शहनाज़..., मैं अब झड़ने वाला हूं! आह..! आह..!” 



“आ जाइये, भाईजान!” मैंने हाँफते हुए किसी तरह जवाब दिया, “निकाल दीजिए...! मैं भी तैयार हूं!”



और इसी के साथ उनके लंड से वीर्य की गर्म धार मेरी चूत के अंदर बहने लगी। मैंने भी अपने रस का द्वार खोल दिया। ... हम दोनों अब एक दूसरे की बांहों में लेटे हुए गहरी सांसें ले रहे थे। ... जब फिरोज भाई मेरे ऊपर से उतरे तो भाभी ने प्यार से मेरा हाथ पकड़ कर पूछा, “तुम खुश तो हो, शहनाज़?” जवाब में मैंने उनकी ओर पलट कर उन्हें अपनी बांहों में भींच लिया। पीछे से फिरोज भाई मुझ से चिपक गये ... और जावेद नसरीन भाभी से।

समाप्त
 
दीदी क्या मेरी गर्लफ्रेड बनोगी ?


बात उन दिनो की है जब बारहवी की परीक्षा की तैयारी कर रहा था। मेरे घर में मेरे माता-पिता के अलावा मेरी बीस साल की बहन थी। मेरी बहन का नाम पिंकी है। नाम के अनुसार है कलर बिल्कुल पिंक है और होट तो कमल की पंखुडी के जैसे गहरे गुलाबी रंग के थे।
पिंकी बी. ए. में पढ रही थी। मेरी लम्बाई 5 फुट 8 इंच है और पिंकी की लम्बाई 5 फुट 5 इंच है। पिंकी की पतली कमर, लम्बे पैर, काली ऑखे, काले बाल कुल मिलाकर एक कमाल की लडकी है। उस समय मै बहुत शरीफ बच्चा हुआ करता था। मध्यमवर्गिय परिवार का एक पढने में होशियार लडका। एक दिन स्कूल में मेंरा एक दोस्त एक अश्लील किताब लेकर आया जिसमे नंगे लडके व लडकियों के फोटो थे। फोटो को देखते ही लन्ड ने सलामी दी पहली बार कुछ अजीब सा महसूस हो रहा था बडा अच्छा सा लग रहा था। मैने अपने दोस्त से वो किताब ले ली और घर ले आया। हमारे घर मे तीन कमरे है। एक में मेरे मम्मी पापा सोते है, दूसरा उसके बराबर में मेरी बहन पिंकी का और पिंकी के कमरे के सामने मेरा कमरा है। मेरा और पिंकी का कमरा ज्यादा बडा नही है बस मेरा बेड और बराबर मे टेबल पर मेरी किताबे रखी हुई थी। मम्मी पापा के कमरे के सामने एक कॉमन टायलेट और उसके बराबर में बाथरूम था। मेरे पहनने के कपडे मेरी बहन के कमरे मे रहते थे। तो मै अपने दोस्त से किताब घर लेकर आ गया और किताब बैग से निकालकर अपनी किताबो मे छुपा दी क्योकि पिंकी मेरे बैग की तलाशी लेती रहती है। खाना खाकर मै टयुशन चला गया। टयुशन से वापस आकर दिन काटना भारी हो गया। खैर रात हुई सबने खाना खाया थोडी बहुत बाते की और मम्मी पापा सोने के लिए चले गये। मै सोने से पहले दो घंटे पढता था। पर आज मन पढने में कहा था मन तो कही और ही था। मै अपने कमरे को लॉक नही करता था क्योकि रोजाना पिंकी या मम्मी रोज सुबह मुझे उठाने आती थी। पर आज तो बात और थी मैने धीरे से दरवाजा लॉक किया और किताबो के बीच में से अप्सराओ की किताब निकाली, किताब के पन्ने पलटते जाते और मेरी धडकन बढती जाती। लिंग इतना कठोर हो गया शायद ही पहले कभी हुआ हो। मै एक हाथ लन्ड पर फिराने लगा बडा मजा आया। किताब मे माधुरी, एश्वर्या और कई हिरोइनो की नंगी तस्वीरे थे। उस समय मुझे फोटो एडिटिंग का नही पता था इसलिए ज्यादा मजा आ रहा था ऐसा लग रहा था की हिरोइनो को नंगा देखने वाला में पहला शाख्स हूं। मै कई घटो तक किताब को देखता रहा, हर एंगल से मैने किताब को कई बार देखा। यह मेरी जिंदगी की पहली घटना थी जब में सेक्स से रू ब रू हुआ।

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02-22-2014, 03:49 PM
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RE: दीदी क्या मेरी गर्लफ्रेड बनोगी ?
फिर मेरे ऐसे कई ऐसे दोस्त बने जिन्होने मेरे सेक्स ज्ञान को बढाया और कई चुदाई की कहानी वाली किताब मुझे दी। कुल मिलाकर उस समय इतने मे ही मजा आ जाता था और ज्यादा का लोभ नही था। पर एक दिन मेरा एक दोस्त जिसका नाम दीपक था उसने मुझे बुलाया और अपने साथ एक पार्क मे ले गया। वहा एक लडकी उसका इन्तजार कर रही थी। दीपक उस लडकी को लेकर एक झाड के पिछे चला गया और मुझे इधर उधर नजर रखने के लिए वही छोड दिया। ऐसा लग रहा था कि वे दोनो कुछ मजेदार कर रहे है पर क्या कर रहे है ये पता नही था।
दीपक मुझे अक्सर पढने के लिए किताबे देता रहता था। मै भी उसके कहने पर कई बार उसके साथ पार्क मे गया जहां मै उस जोडे की दुनिया की जालिम नजरो से रक्षा करता था। एक दिन मैने सोचा चलो देखा जाये आखिर ये क्या करते है, उनके झाडी के पीछे जाने के बाद मै दूसरी तरफ से चुपके से देखने लगा तो देखा तो आखे खुली की खुली रह गयी, दीपक भी शायद मेरी तरह चुतिया था वो उसे लडकी की चुची चुस रहा था और एक हाथ से अपनी मुठ मार रहा था। खैर मेरे लिये ये भी दुनिया का आठवा अजूबा था क्योकि मैने पहली बार किसी लडकी के स्तन देखे थे गोल-गोल छोटे आम जैसे। देखते ही मुह मे पानी आ गया। उधर दीपक का हाथ अपने लिंग पर तेजी से चल रहा था। मेरी ऑखे फटी हुई थी सॉसे उखड रही थी, मै तुरंत वहा से वापस आ गया, थोडी देर में वे दोनो भी आ गये और हम वापस आ गये। मैने उसी रात अपने लिंग को मसलकर देखा तो मुझे भी मजा आया पर मैरी ज्यादा आगे बढने की हिम्मत नही हुई।
एक दिन रात को अचानक मेरी आखॅ खुली, बहुत जोर से पेशाब लगी थी मै भागकर टायलेट गया और एक लम्बी धार मारी और वापस बाहर आ गया और अपने कमरे की ओर चलने ही वाला था की मम्मी पापा के कमरे से कुछ अजीब सी आवाज सुनाई दी, मै ना चाहते हुए भी वही रुक गया चारो ओर देखा कोई नही था। मम्मी पापा के कमरे के दरवाजे से कान लगाकर सुना तो आवाज अधिक साफ सुनाई देने लगी, ऐसा लग रहा था जैसे कोई भाग रहा हो और मम्मी को चोट लग गयी हो। मम्मी कपकपी सी आवाज में चिल्ला रही थी- उह हाय हाय आह। मैने सोचा शायद मम्मी की तबीयत खराब है। मै दरवाजा खटखटाने ही वाला था कि मम्मी की आवाज आयी- हाय मेरे राजा और तेज करो ना। मेरा दिमाग घूम गया आखिर माजरा क्या है। मुझे कुछ समझ नही आ रहा था फिर मैने कि-होल से ऑख लगाकर देखा तो आखो के आगे अंधेरा छा गया, रोज सूबह पूजा करने वाली मेंरी मम्मी नंगी पैर उठाकर लेटी हुई है और मेरे पापा नंगे होकर उनके पैरो के बीच तेजी से हील रहे है। मै तो जैसे अलग ही दुनिया देख रहा था। मै तो पलक झपकाना ही भूल गया, मेरा हाथ मेरे पजामे मे चला गया, लगभग पाच मिनट बाद पापा ने रफतार बढा दी और फिर मम्मी के ऊपर लुढक गये, मै समझ गया कि शो खत्म हो गया। और फिर जैसे ही उठकर पिछे मुडा तो पिंकी अपने कमरे के दरवाजे पर खडी मुझे घुर रही थी। 

मेरी पूरी फट गयी थी थोडी देर के लिए तो मे सॉस लेना ही भूल गया, मै ये भी भूल गया कि मेरा हाथ अब भी मेरे पजामे मे है।ऐसा लग रहा था की आज तो मेरी मौत पक्की है
चुपी को टोडते हुए पिंकी बोली- क्या कर रहा था यहा खडे होकर ?
अब थोडा होश आया तो मैने अपने हाथ को अपने पजामे से बाहर निकाला।
मेरी हालत ऐसी थी की काटो तो खून नही, मै चुप चाप जमीन में नजर गाडे खडा था।
सांप सुघ गया - पिंकी ने दॉत भिचते हुए कहा।
मुझे तो जैसे सचमुच मे ही साप सूघ गया था।
पिंकी - चल जाकर सो जा तेरी खबर तो सुबह को लूगी।
और दरवाजा बन्द करके अन्दर चली गयी। थोडी देर पहले जो मजा आ रहा था सारा काफूर हो गया। मै धीरे से अपने कमरे मे जाकर लेट गया, सुबह की घबराहट मे पता नही रला कि कब मेरी ऑख लग गयी। सुबह 7 बजे मम्मी ने उठाया- आज स्कूल नही जाना क्या ? हमेशा लेट उठता है।
मै ऑखे मसलता हुआ खडा हो गया, तभी दिमाग मे रात वाली बात याद आयी लेकिन मम्मी का मूड ठिक था इसका मतलब था कि पिंकी ने मम्मी को कुछ नही बताया था। फिर मेरे मन मे डर था कि पता नही अब क्या होगा कही पिंकी अब तो नही बता देगी। मै कमरे से बाहर आया तो देखा की पिंकी किचन मे काम कर रही थी, मै उसकी नजरो से बचता हुआ जल्दी जल्दी उसके कमरे मे जाकर अपनी स्कूल की ड्रेस लेकर बाथरुम मे चला गया और तैयार होकर वापस आया। जब मै नाश्ता करने के लिए नाश्ते की टेबल पर पहुचा तो पिंकी वहा पहले से ही बैठी थी सब शान्त था ऐसा लग रहा था कि यह तूफान से पहले की शान्ति है। मै नाश्ते के लिए बैठकर नाश्ता करने लगा पिंकी तिरछी नजर से मुझे ही घूर रही थी। मै जल्दी से नाश्ता करके उठा बिना पिंकी को देखे स्कूल के लिए चला गया। नाश्ता करने लगा पिंकी तिरछी नजर से मुझे ही घूर रही थी। मै जल्दी से नाश्ता करके उठा बिना पिंकी को देखे स्कूल के लिए चला गया।

पूरे दिन स्कूल में चिन्ता होती रही कि घर जाकर क्या होगा। मै स्कूल से घर वापस आया तो पिंकी भी अपने कॉलेज से वापस आ चुकी थी। मै अपने कपडे लेने के लिए उसके कमरे में गया तो वो अपने बेड पर बैठी पढ रही थी। मै नजरे नीची करके अपने कपडे लेने लगा।
पिंकी- सुन, यहा आ!
मै चुप चाप जाकर उसके पास आकर खडा हो गया। मेरी हालत खराब हो रही थी
पिंकी- रात क्या कर रहा था वहा ? कब से कर रहा ये सब ?
मै - दीदी गलती हो गयी मुझे नही पता था कि क्या हो रहा है प्लीज दीदी मम्मी से मत बताना।
पिंकी- क्या हो रहा था
मै दबी आवाज में बोला- पता नही, प्लीज मम्मी से मत बताना।
पिकीं - क्यो ना बताऊ मम्मी को, तू रोज ऐसा करेगा
मै फिल्मो की तरह उसके आगे हाथ जोडकर खडा हो गया दीदी प्लीज आगे से ऐसा बिल्कूल नही होगा।
मेरी ऑखो से ऑसू निकलने लगे। शायद उसे मेरी हालत पर दया आ गयी।
मेरी हालत को देखकर पिंकी बोली- लास्ट वार्निंग है अगर आगे से ऐसा कभी देखा ना तो समझ लेना, चल जा यहा से।
मै- थैंक यू दीदी।
मै तुरंत वहॉ से निकल दिया और पिछे मुडकर भी नही देखा। मै मन ही मन मे पिंकी को धन्यवाद भी दे रहा था और गाली भी दे रहा था। अच्छा है जो जान बची। साली ऐसे बन रही थी जैसे मैने उसे चोद दिया हो। मन मे ये ख्याल आते ही मेरे दिमाग मे शैतान जागने लगा। मैने कभी गौर से ये भी नही देखा था कि मेरी बहन कैसे कपडे पहन रही है। लेकिन तभी उसका घुरता हुआ चेहरा याद आया और दिमाग का शैतान भी छू मन्तर हो गया।
दो-तीन महिने लग गये सब पहले की तरह होने में। इस बीच मै अक्सर चुदाई की किताबे पढता रहता था। एक दिन एक किताब हाथ उसको पढकर बहुत मजा आया। टयूशन जाने से पहले अपनी किताबो के बीच मे दबाकर जल्दी से टयूशन भाग गया, सोचा आगे की आकर पढूंगा। जब वापस आया तो ध्यान ही नही रहा।
 
सौतेले बाप के संग

मेरा नाम डौली है, मैं पंजाब से अमृतसर की एक बेहद कमसिन हसीना हूँ, मैं भरे हुए यौवन की पिटारी हूँ जिसको हर मर्द अपने नीचे लिटाना चाहता है, पांच फ़ुट पांच इंच लंबी, जलेबी जैसा बदन, किसी को भी अपनी ओर खींचने वाला वक्ष, पतली सी कमर, मस्त गद्देदार गांड, गुलाबी होंठ, गोरा रंग !
अपने से बड़ी लड़कियों के साथ मेरा याराना है। मैंने इसी साल बारहवीं क्लास की है और नर्सिंग के तीन साल के कोर्स में मैंने दाखला लिया है। मेरी माँ की शादी सोलहवें साल में हो गई थी और बीस साल तक पहुंचते दो लड़कियो की माँ बन गई, सुन्दर औरत है, पांच बच्चे जन चुकी है लेकिन अभी भी कसा हुआ जिस्म है।
मेरी माँ के कई गैर मर्दों के साथ रिश्ते थे जिससे मेरा बाप माँ के साथ झगड़ा करता। पापा ने काफी जायदाद माँ के नाम से खरीदी थी। आखिर दोनों में तलाक हो गया, तीन बच्चे पापा ने रखे और हम दो माँ के साथ रहने लगीं।
माँ को जवान लड़कों का चस्का था, लड़कों हमारे पीछे बुलवा कर चुदवाती जिसका असर हम पर होने लगा। माँ के नक्शे कदम पर बड़ी बहन ने पैर रख दिए, मेरा भी एक लड़के के साथ चक्कर चल पड़ा और एक दिन मैं घर में अकेली थी। माँ दिल्ली किसी काम से गई हुईं थी। इसलिए दीदी ने उस रात अपने किसी बॉय-फ्रेंड के साथ चली गई क्यूंकि उनकी फ़ोन पर बात हो रही थी मैंने दूसरी तरफ से फ़ोन उठाया हुआ था। मैं और मेरा प्रेमी पम्मा भी चोरी छिपे सिनेमा और पार्कों में मिलते और बात चूमा चाटी तक ही रह जाती थी। ज्यादा से ज्यादा सिनेमा में में उसके लौड़े को सहलाती उसकी मुठ मारती, चूसती थी।
उस रात मैंने पम्मा को बुलवा लिया, करीब रात के दस बजे पम्मा आया ,मेरे कमरे में जाते ही हम एक दूसरे से लिपट गए। उससे ज्यादा मैं लिपट रही थी। उसने मेरा एक एक कपड़ा उतार दिया, मैंने उसका !आखिर में मैंने नीचे झुकते हुए उसके लौड़े को मुँह में ले लिया। उसने खूब मेरी चुचियाँ दबाई और चुचूक चूसे, ६९ में आकर चूत चाटी।
उसने अपना लौड़ा जब मेरी टांगों के बीच में बैठ चूत पर रखा- हाय डालो न राजा !
उसने कहा- ज़रा मुँह में लेकर गीला कर दे !
उसने फिर से रखा !
अब डालो भी !
उसने झटका दिया और मेरी चीख निकल गई- छोड़ो ऽऽ ! निकालोऽऽ !
उसने मुझ पर पहले से शिकंजा कसा था, उसने बिना कुछ कहे पूरा लौड़ा डाल दिया।
हाय मर गई ईईईईइ माँ ! फट गई !
कुछ पल बाद मैं खुद चुदवाने के लिए गांड उठा कर करवाने लगी। उसने अब पकड़ ढीली की।
हाय राजा मारते रहो !
करीब पन्दरह मिनट के बाद दोनों झड़ गए। उस रात मेरी सील टूटी, पूरी रात चुदवाती रही, मैं कली से फूल बन चुकी थी।
जब तक माँ नहीं आई हर रात वो मुझे चोद देता। एक रात उसने अपने एक दोस्त को साथ बुलाया और मिलकर मेरी चूत मारी।
जिस दिन माँ वापस आई, उसके साथ एक हट्टा कट्टा जवान लड़का था। माँ की मांग में सिंदूर था और नया मंगल सूत्र !
माँ ने हम दोनों बहनों को बुलाया और बताया कि माँ ने दूसरी शादी कर ली है।
उसकी उम्र पैन्तीस-छत्तीस साल के करीब होगी, माँ चवालीस साल !
दोनों रात होते कमरे में घुस जाते, फिर चुदाई समरोह चलता !
एक दिन मैंने दिन में ही माँ के कमरे का पर्दा सरका दिया। रात हुई, मैंने अन्दर देखा- माँ बिलकुल नंगी थी अकेली बिस्तर पर लेटी चूत मसल रही थी, अपने हाथ से अपना मम्मा दबा रही थी। माँ ने ऊँगली के इशारे से मेरे सौतेले बाप को पास बुलाया, नीचे की ओर चूत पर दबाव दिया और चूत चटवाने लगी। मेरी चूत गीली होने लगी। मैं अपनी चूत में ऊँगली करते हुए सब देख रही थी।
माँ उसका मोटा लौड़ा मुँह में डाल कुतिया की तरह चाट रहीं थी- हाय मेरे राजा ! तेरे लौड़े को देखकर मैंने तुझे खसम बना लिया है।
वो सीधा लेट गया, माँ ने थूक लगाया और उस पर बैठ गई।
मैं वहां से आई और कमरे में जाकर अपनी चूत में ऊँगली करने लगी।
कुछ दिनों में मेरा सौतेला बाप मेरे जवानी पे ध्यान देने लगा लेकिन मैं उससे ज्यादा बात नहीं करती थी। जब वो सामने आता, मेरे आँखों में उसके लौड़े की तस्वीर घूमने लगती। रात को माँ को सिर्फ अपनी चुदाई से वास्ता था। यह नहीं सोचा कि दो जवान बेटियों पर क्या असर होगा। दीदी तो इस आजादी से खुश थी।
माँ का बहुत बड़े स्केल की बूटीक है, मेरे सौतेले बाप को पैसे देकर वर्कशॉप खोली और नई कार खरीद कर दी। हमें पैसे देते वक्त चिल्लाती- इतने पैसे का क्या करती हो ?
मैंने माँ को सबक सिखाने की सोची।
सौतेला बाप खाना खाने दोपहर घर आ जाता। मैं उसके साथ घुलमिल सी गई, पहले से ज्यादा बात करती ! वो भंवरे की तरह मेरी जवानी का रस चूसने के लिए बेताब था।
एक दोपहर अपने कमरे के ए.सी की तार निकाल दी और उनके आने से पहले उनके कमरे का ए.सी चालू कर वहां लेट गई। मैंने एक जालीदार और पारदर्शी गाऊन, गुलाबी और काली कच्छी-ब्रा डाल उलटी तकिये से लिपट सोने का नाटक करने लगी।
आज तक मैं उसके सामने ऐसे नहीं आई थी। जब वो आये, मुझे मेरे कमरे में ना पाकर मायूस से होकर अपने ही कमरे में आये। मैंने थोड़ी से आंख खोल रखी थी, मुझे देख वो खुश हो गया, बाहर गया, सारे लॉक लगा वापस आया। दूसरे बेड पर बैठे हुए उसने अपना हाथ मेरी रेशम जैसे पोली-पोली गांड पर फेरा। मैं गर्म होने लगी, वहां से हाथ पेट तक गया, उसका मरदाना हाथ अपना पूरा रंग दिखा रहा था।
उसने मेरा गाऊन खिसका दिया। मैंने पलट कर उसको अपने ऊपर गिरा लिया। वो पहले से ही सिर्फ कच्छे में था, आगे से फटने हो आया हुआ था।
उसने मुझे नंगी कर दिया, बोला- रानी ! क्या जवानी है तेरी ! तुम दोनों बहनें साली रंडियाँ हो ! तेरी माँ ने जब परिवार की तस्वीर दिखाई थी, उसे देख मैंने उससे शादी कर ली।
मैंने जिस दिन से आपका लौड़ा देखा है, चुदवाने को तैयार थी !
हम दोनों एक दूसरे को पागलों जैसे चूमने लगे, तूफ़ान आ चुका था।
ओह मेरी जान !
मैंने उसका लौड़ा मुँह में ले लिया और कुतिया की तर जुबान निकल निकाल चाटने लगी। वो भी मेरा साथ देने लगा, वो भी अपनी जुबान जब मेरे दाने पर फेरता तो मैं उछल उठती- अह अह करने लगती !
बहुत ज़बरदस्त मर्द खिलाड़ी था ! एक एक ढंग था उसके तरकश में लड़की चोदने के लिए !
साली कितनों से चुदी है?
काफी चुदी हूँ ! लेकिन मुझे अब तड़पाओ मत और मेरी चूत मारो !
आह मसल दे मुझे ! कमीने रगड़ दे ! मेरे जिस्म को पेल डाल अब बहन के लौड़े !
छिनाल, कुतिया, गली की रंडी ! तेरी माँ चोद दूंगा !
आज तेरी हूँ मैं तेरी ! जो आये करो !
आह !
उसने मेरे बालों को पकड़ मेरे मुँह में लौड़ा घुसा कर उसे निकलने नहीं दे रहा था। मैं खांसने लगी, मैंने टांगें खोल ली और वो बीच में आया, मैंने हाथ से पकड़ चूत पे टिकाया, उसने जोर से झटका मारा और उसका आधा लौड़ा घुस गया। थोड़ी सी दर्द हुई लेकिन मैंने चिल्लाने का काफी नाटक किया। सांस खींच चूत कसी, उसके दूसरे झटके में पूरा लौड़ा उतर चुका था।
और आह फक मी ! चोद और चोद साले, दिखा दे दम !
ले कुत्ती कहीं की !
दस मिनट ऐसे चोदने के बाद बोला- कुतिया की तरह झुक जा !
वो मेरे पीछे आया, उसने लौड़े पर थूक लगाया और पेल दिया।
हाय मेरे राजा ! मेरे सांई !
उसने रफ्तार पकड़ ली। हाय, उसने मेरा बदन खड़का दिया। नीचे से मेरे कसे हुए बड़े बड़े मम्मों को इस तरह मसल रहा था जैसे कोई गाय का दूध निकाल रहा हो। मैं झड़ गई लेकिन वो अभी भी मस्ती से चूत मार रहा था।मैंने कहा- मेरा काम तमाम हो गया !
तो उसने बिना कुछ कहे लौड़े खींचा, मेरी गांड पर रख झटका मारा। मैं तैयार नहीं थी उसके इस वार के लिए !
दर्द से कराह उठी मैं !
वो नहीं माना और पूरा लौड़ा घुसा के ही दम लिया और तेजी से मारने लगा। जैसे मुझे कुछ राहत मिली, मैं अपनी चूत के दाने को चुटकी से मसलने लगी। पांच मिनट बाद उसने अपना पूरा माल मेरी गांड के अन्दर छोड़ दिया और बाहर निकाल मेरे होंठों से रगड़ दिया। मैंने जुबान निकाल सब कुछ साफ़ कर दिया।
शाम तक उसने मुझे दो बार चोदा। रोज़ दोपहर में मुझे चोदता।
मुझे सोने का सेट, पायल का जोड़ा, खुला खर्चा देता।
एक दिन उसने बताया कि वो दोस्तों के साथ घूमने शिमला जा रहा है। मेरे कहने पर उसने मुझे साथ लेकर जाने का फैसला किया। मैंने कॉलेज टूर का प्रोग्राम बताया। उसने अपनी वर्कशॉप के लिए दिल्ली से कुछ सामान !
उसके साथ उसके तीन दोस्त थे, मैं अकेली !
 
माँ बनने का सुख




मेरा नाम अर्पिता है, मैं 25 साल की एक सुंदर औरत हूँ। मैं गुड़गाँव, हरियाणा में रहती हूँ। मेरे पति एक प्राइवेट कंपनी में उच्च पद पर हैं, उनका नाम अमन है। हमारी शादी को चार साल हो गए हैं पर हमें एक भी बच्चा नहीं था और इस बात पर हमेशा लड़ाई होती रहती कि मैं कभी माँ नहीं बन सकती।

यह आज से चार महीने पहले की बात है, एक दिन मेरी सहेली हमारे घर मे आई और उसने एक आदमी से मिलने को कंहा।

उस आदमी का नाम संजीव था। जब हम पति-पत्नी उससे मिले तो उन्होंने हमारे घर में एक विधि बताई और कहा- मैं तुम्हारे घर आऊंगा शनिवार के दिन और वहाँ पर हवन करूँगा और साथ ही साथ तुम्हें कुछ दवाई भी दूंगा।

उन्होंने मुझसे यह भी कहा- तुम दोनों के अलावा घर पर कोई अन्य नहीं होना चाहिए।

जब हम घर आये तो मेरे पति ने कहा- ऐसा करने से बच्चा नहीं हो सकता !

मैंने कहा- पर ऐसा करने से हो भी जाये तो क्या दिक्कत है।

जब वो शनिवार को आये तब उन्होंने हमारे घर में हवन किया और एक दवाई भी दी।

उस दवाई को खाने के बाद कुछ देर मे सेक्स करने का मन करने लगा और संजीव ने मेरे पति को सेक्स करने के लिए कह दिया और मेरे पति मुझे लेकर हमारे बेडरूम में चले गए। कमरे में जाने के बाद हम दोनों एक दूसरे को चूमने लगे और एक दूसरे के कपड़े उतारने लगे और साथ ही साथ चूम रहे थे।

मेरे पति मेरी चूचियों को ब्रा के उपर से ही दबाने लगे और कुछ देर बाद मेरी ब्रा भी उतार दी। फिर वो मेरे स्तनों को चूसने लगे। वो बार-बार उन्हें काट भी रहे थे।

मैं मना कर रही थी पर वो सुनने को तैयार ही नहीं थे।

फिर मेरे पेटिकोट को भी उतार दिया और मेरे टाँगों को चूमने लगे।

फिर मेरी पेंटी को उतारने लगे तो मैंने कहा- जल्दी करो, अब रुका नहीं जा रहा !

वो नहीं माने और कहा- धीरे-धीरे करने में मजा आता है।

उन्होंने अपनी एक उंगली मेरी योनि में डाल दी।

मैं जोर से चीख पड़ी- उंगली बाहर निकालो और लंड चूत में डाल दो !

तो मेरे पति कहने लगे- अब आ जा, मेरे लंड पर बैठ जा !

मैं उनकी गोदी में बैठ गई पर उससे वो नहीं माने, मुझे बिस्तर पर लिटाया और अपने लंड को मेरी चूत में घुसा दिया और जोर-जोर से मुझे चोदने लगे।

तीस मिनट तक चोदने के बाद जब हम बाहर आये तो संजीव अब भी मंत्र पढ़ रहे थे।

उन्होंने वो दवाई हमें दस दिन लेने को कहा। उन्होंने उस समय कोई फीस नहीं ली।

जब एक महीना हुआ और हमने चेक करवाया तो पता चला कि मुझे गर्भ ठहर गया था।

आज भी हम उनको धन्यवाद करते हैं और उनको बुलाते रहते हैं।
 
मौसेरी बहन की चुदाई





मेरा नाम चरण है. मै एक छोटे से बस्ती का रहने वाला था. मेरे पिता प्राइमरी स्कूल के मास्टर थे. मेरी उम्र 15 वर्ष की थी जब मै और मेरे माता पिता अपने ननिहाल गया हुआ था. वहां मेरे मामा की शादी थी. वहां पर सभी सगे संबंधी जुटे थे. हम लोग शादी के पंद्रह दिन पहले ही पहुँच गए थे. मेरे पिता जी हम लोग को पहुंचा कर वापस अपनी ड्यूटी पर चले गए. और शादी से एक-दो दिन पहले आने की बात बोल गए. वहां पर दिल्ली से मेरे मौसा भी अपने बाल बच्चों के साथ आये थे. मेरी एक ही मौसी थी. उनको एक बेटा और एक बेटी थी. बेटा का नाम वीरू था और उसकी उम्र लगभग सोलह साल की थी. जबकी मौसी की बेटी का नाम नीरू था और उसकी उम्र लगभग पंद्रह साल की थी. हम तीनो में बहुत दोस्ती थी. मेरे मौसा भी अपने परिवार को पहुंचा कर वापस अपने घर चले गए. उनका ट्रांसपोर्ट का बिजनस था. पहले वो भी साधारण स्तर के थे लेकिन ट्रांसपोर्ट के बिजनस में कम समय में ही काफी दौलत कम ली थी उन्होंने. उनका परिवार काफी आधुनिक विचारधारा का हो गया था. हम लोग लगभग सात या आठ वर्षों के बाद एक दुसरे से मिले थे.

मै , वीरू और नीरू देर रात तक गप्पें हांकते थे. नीरू पर जवानी छाती जा रही थी. उसके चूची समय से पहले ही विकसित हो चुके थे. मै और वीरू अक्सर खेतों में जा कर सेक्स की बातें करते थे. वीरू ने मुझे सिगरेट पीने सिखाया. वीरू काफी सारी ब्लू फिल्मे देख चूका था. और मै अभी तक इन सब से वंचित ही था. इसलिए वो सेक्स ज्ञान के मामले में गुरु था.

एक दिन जब हम दोनों खेतों की तरफ सिगरेट का सुट्टा मारने निकलने वाले थे तभी नीरू ने पीछे से आवाज लगाई - कहाँ जा रहे हो तुम दोनों?



मैंने कहा - बस यूँ ही, खेतो की तरफ, ठंडी ठंडी हवा खाने.

नीरू - मै भी चलूंगी.

मै कुछ सोचने लगा मगर वीरू ने कहा - चल

अब वो भी हमारे साथ खेतों की तरफ चल दी. मै सोचने लगा ये कहाँ जा रही है हमारे साथ? अब तो हम दोनों भाइयों के बिछ सेक्स की बातें भी ना हो सकेंगी ना ही सिगरेट पी पाएंगे. लेकिन जब हम एक सुनसान जगह पार आये और एक तालाब के किनारे एक पेड़ के नीचे बैठ गए तो वीरू ने अपनी जेब से सिगरेट निकाली और एक मुझे दी. मै नीरू के सामने सिगरेट नहीं पीना चाहता था क्यों की मुझे डर था कि नीरू घर में सब को बता देगी. लेकिन वीरू ने कहा - बिंदास हो के पी यार. ये कुछ नही कहेगी.

लेकिन नीरू बोली - अच्छा...तो छुप छुप के सिगरेट पीते हो ? चलो घर में सब को बताउंगी.

मै तो डर गया. बोला - नहीं, नीरू ऎसी बात नहीं है. बस यूँ ही देख रहा था कि कैसा लगता है. मैंने आज तक अपने घर में कभी नहीं पी है. यहाँ आ कर ही वीरू ने मुझे सिगरेट पीना सिखलाया है.

नीरू ने जोर का ठहाका लगाया. बोली - बुद्धू , इतना बड़ा हो गया और सिगरेट पीने में शर्माता है. अरे वीरू कितना शर्मिला है ये.

वीरू ने मुस्कुरा कर एक और सिगरेट निकाला और नीरू को देते हुए कहा - अभी बच्चा है ये.

मै चौंक गया. नीरू सिगरेट पीती है?

नीरू ने सिगरेट को मुह से लगाया और जला कर एक गहरी कश ले कर ढेर सारा धुंआ ऊपर की तरफ निकालते हुए कहा - आह !! मन तरस रहा था सिगरेट पीने के लिए.

तब तक वीरू ने भी सिगरेट जला ली थी. वीरू ने कहा - अरे यार चरण, शहर में लडकियां भी किसी से कम नहीं. सिगरेट पीने में भी नहीं. वहां दिल्ली में हम दोनों रोज़ 2 - 3 सिगरेट एक साथ पीते हैं. एकदम बिंदास है नीरू. चल अब शर्माना छोड़. और सिगरेट पी.

मैंने भी सिगरेट सुलगाया और आराम से पीने लगा. हम तीनो एक साथ धुंआ उड़ाने लगे.

नीरू - अब मै भी रोज आउंगी तुम दोनों के साथ सिगरेट पीने.

वीरू - हाँ, चली आना.

सिगरेट पी कर हम तीनों वापस घर चले आये. अगले दिन भी हम तीनो वहीँ पर गए और सिगरेट पी. अभी भी मामा की शादी में 12 दिन बचे थे.

अगले दिन सुबह सुबह मामा वीरू को ले कर शादी का ड्रेस लेने शहर चले गए. दिन भर की मार्केटिंग के बाद देर रात को लौटने का प्रोग्राम था. दोपहर में लगभग सभी सो रहे थे. मै और नीरू एक कमरे में बैठ कर गप्पें हांक रहे थे.

अचानक नीरू बोली - चल ना खेत पर, सुट्टा मारते हैं. देह अकड़ रहा है.

मैंने कहा - लेकिन मेरे पास सिगरेट नहीं है.

नीरू - मेरे पास है न. तू चिंता क्यों करता है?

अब मेरा भी मन हो गया सुट्टा मारने का. हम दोनों ने नानी को कहा - नीरू और मै बाज़ार जा रहे हैं. नीरू को कुछ सामान लेना है.

कह कर हम दोनों फिर अपने पुराने अड्डे पर आ गए. दोपहर के डेढ़ बज रहे थे. दूर दूर तक कोई आदमी नही दिख रहा था. हम दोनों बरगद के विशाल पेड़ के पीछे छिप कर बैठ गए और नीरू ने सिगरेट निकाली. हम दोनों ने सिगरेट पीना शुरू किया.

नीरू ने एक टीशर्ट और स्कर्ट पहन रखा था. स्कर्ट उसकी घुटने से भी ऊपर था. जिस से उसकी गोरी गोरी टांगें झलक रही थी. आज वह कुछ ज्यादा ही अल्हड सी कर रही थी. उसने अपना एक हाथ मेरे कंधे पर रखा और मेरे से सट कर सिगरेट पीने लगी. धीरे धीरे मुझे अहसास हुआ कि वो अपनी चूची मेरे सीने पर दबा रही है. पहले तो मै कुछ संभल कर बैठने की कोशिश करने लगा मगर वो लगातार मेरे सीने की तरफ झुकती जा रही थी.

अचानक उसने कहा - देख, तू मुझे अपनी सिगरेट पिला. मै तुझे अपनी सिगरेट पिलाती हूँ. देखना कितना मज़ा आयेगा.

मैंने कहा - ठीक है.

उसने मुझे अपना सिगरेट मेरे होठों पर लगा दिया. उसके सिगरेट के ऊपर उसके थूक का गीलापन था. लेकिन मैंने उसे अपने होठों से लगाया और कश लिया. फिर मैंने अपना सिगरेट उसके होठों पर लगाया और उसे कश लेने को कहा. उसने भी जोरदार कश लगाया. मेरा मन थोडा बढ़ गया. इस बार मैंने उसके होठों पर सिगरेट ही नहीं रखा बल्कि अपने उँगलियों से उसकी होठों को सहलाने भी लगा. उसे बुरा नहीं माना. मैं उसके होठों को छूने लगा. वो चुचाप मेरे कंधे पर रखे हुए हाथ से मेरे गालों को छूने लगी. हम दोनों चुपचाप एक दुसरे के होंठ और गाल सहला रहे थे. धीरे धीरे मेरा लंड खड़ा हो रहा था. सिगरेट ख़तम हो चुका था. मैंने एक हाथ से उसके चूची को हलके से दबाया. वो हलके के मुस्कुराने लगी. मैंने उसकी चूची को और थोड़ी जोर से दबाया वो कुछ नही बोली. अब मै आराम से उसकी दोनों चुचियों को दबाने लगा. धीरे धीरे मैंने अपने होठ उसके होठ पर ले गया. और उसे किस किया. उसने भी मेरे होठों को अपने होठो से लगाया और हम दोनों एक दुसरे के होठों को दस मिनट तक चूसते रहे. इस बीच मेरा हाथ उसकी चुचियों पर से हटा नहीं.

अच्छी तरह उसके होठ चूसने के बाद मैंने उसे छोड़ा. उसके चुचियों पर से हाथ हटाया. उसके चूची के ऊपर के कपडे पर सिलवटें पड़ गयी थी. उसने अपने कपडे ठीक किये.

मैंने कहा - नीरू अब हमें चलना चाहिए .

नीरू - रुक न, थोड़ी देर के बाद एक और पियेंगे, तब चलना.

मैंने कहा - ठीक है.

नीरू ने कहा - मुझे पिशाब लगी है.

मैंने कहा - कर ले बगल की झाड़ी में.

नीरू - मुझे झाडी में डर लगता है. तू भी चल.

मैंने कहा - मेरे सामने करेगी क्या ?

नीरू - नहीं. लेकिन तू मेरी बगल में रहना. पीछे से कोई सांप- बिच्छु आ गया तो?

मैंने - ठीक है. चल.

मै उसे ले कर निचे की तरफ झाडी के पीछे चला गया.

बोला - कर ले यहाँ.

वो बोली - ठीक है. लेकिन तू मेरे पीछे देखते रहना. कोई सांप- बिच्छू ना आ जाये.

कह कर मेरे तरफ पीठ कर के उसने अपने स्कर्ट के अन्दर हाथ डाला और अपनी पेंटी को घुटनों के नीचे सरका ली. और स्कर्ट को ऊपर कर के पिशाब करने बैठ गयी. पीछे से उसकी गोरी गोरी गांड दिख रही थी. और उसकी पिशाब उसके चूत से होते हुए उसके गांड की दरार में से हो कर नीचे कर गिर रहे थे. उसकी पिशाब की आवाज़ काफी जोर जोर से आ रही थी. थोड़ी देर में उसकी पिशाब समाप्त हो गयी. वो खड़ी हो गयी. उसने अपनी पेंटी को ऊपर किया. और बोली - चलो अब.

मैंने कहा - तू जा के बैठ. मै भी पिशाब कर के आता हूँ.

वो बोली - तो कर ले न अभी.

मैंने कहा - तू जायेगी तब तो.

वो बोली - अरे, जब मै लड़की होकर तेरे सामने मूत सकती हूँ तो क्या तू लड़का हो के मेरे सामने नहीं मूत सकता?

मै बोला- ठीक है.

मै हल्का सा मुड़ा और अपनी पैंट खोल कर कमर से नीचे कर दिया. फिर मैंने अपना अंडरवियर को ऊपर से नीचे कर अपने लंड को निकाला. नीरू के गांड को देख कर ये खड़ा हो गया था. मैंने अपने लंड के मुंह पर से चमड़ी को नीचे किया और जोर से पिशाब करना शरू किया. मेरा पिशाब लगभग तीन मीटर की दुरी पर गिर रहा था. नीरू आँखे फाड़ मेरे लंड और पिशाब के धार को देख रही थी. वो अचानक मेरे सामने आ गयी और बोली - बाप रे बाप. तेरी पिशाब इतनी दूर गिर रही है.

मैंने अपने लंड को पकड़ कर हिलाते हुए कहा - देखती नहीं कितना बड़ा है मेरा लंड. ये लंड नहीं फायर ब्रिगेड का पम्प है. जिधर जिधर घुमाऊंगा उधर उधर बारिश कर दूंगा.

नीरू हँसते हुए बोली - मै घुमाऊं तेरे पम्प को?

मैंने कहा - घुमा.

नीरू ने मेरे लंड को पकड़ लिया और उसे दायें बाएं घुमाने लगी. मेरे पिशाब जहाँ तहां गिर रहा था. उसे बड़ी मस्ती आ रही थी. लेकिन मेरा लंड एकदम कड़क हो गया था..मेरा पिशाब ख़तम हो गया. लेकिन नीरू ने मेरे लंड को नहीं छोड़ा. वो मेरे लंड को सहलाने लगी.

बोली - तेरा लंड कितना बड़ा है. कभी किसी को चोदा है तुने?

मैंने - नहीं, कभी मौका नहीं मिला.

मैंने कहा - तू भी अपनी चूत दिखा न नीरू.

नीरू ने अपनी पेंटी को नीचे सरका दिया और स्कर्ट ऊपर कर के अपना चूत का दर्शन कराने लगी. घने घने बालों वाली चूत एक दम मस्त थी. मैंने लपक कर उसकी चूत में हाथ लगाया और सहलाते हुए कहा - हाय, क्या मस्त चूत है तेरी. मुठ मार दूँ तेरी?

नीरू - मार दे.

मै उसके चूत में उंगली डाल कर उसकी मुठ मारने लगा. वो आँखे बंद कर सिसकारी भरने लगी.

मैंने कहा - पहले किसी से चुदवायी हो या नहीं?

नीरू - हाँ, कई बार.

मैंने कहा - अरे वाह. तू तो एकदम एक्सपर्ट है.

अचानक उसने मेरी पेंट और अंडरवियर खोल दिया. और अपनी पेंटी को पूरी तरह से खोल कर जमीन पर लेट गयी.

बोली - चरण , मेरे चूत में अपना लंड डाल कर मुझे चोद लो. आज तू भी एक्सपर्ट बन जा. .

मेरी भी गरमी का कोई ठिकाना नहीं था. मैंने अपना लंबा लंड उसके चूत के डाला और अन्दर की तरफ धकेला. पहले तो कुछ दिक्कत सी लगी. लेकिन मैंने जोर लगाया और पूरा लंड उसके चूत में डाल दिया. अचानक उसकी चीख निकल गयी. लेकिन मैंने उसकी चीख की परवाह नही की और उसकी चुदाई चालू कर दी. वो भी मेरे लंड से अपनी चूत की चुदाई के मज़े लेने लगी. थोड़ी देर में उसके चूत ने माल निकाल दिया. मेरे लंड ने भी उसके चूत में ही माल निकाल दिया. हम दोनों अब ठन्डे हो गए थे.

हम दोनों ने कपडे पहने और झाड़ियों में से निकल कर पेड़ के नीचे चले गए. वहां हम दोनों ने सिगरेट का सुट्टा मारा. लेकिन मेरा लंड फिर से खड़ा हो गया था.

मैंने कहा - नीरू , चल न एक बार फिर से करते हैं. इस बार मज़े ले ले कर करेंगे.

नीरू - चलो.

हम दोनों फिर से एक विशाल झाड़ियों के बीच चले गए. उस झाड़ियों के बीच मैंने कुछ झाड उखाड़े और हम दोनों के लेटने लायक जमीन को खाली कर के पूरी तरह नंगे हो गए. फिर हम दोनों ने एक दुसरे के अंगो को जी भर के चूमा चूसा. उसने मेरे लंड को चूसा. मैंने उसके चूत को चूसा. मैंने उसके दोनों चूची को जी भर में मसला .

फिर आधे घंटे के चूमने चूसने के बाद मैंने उसकी चुदाई चालू की. बीस मिनट तक उसकी दमदार चुदाई के बाद मेरा माल निकला. फिर थोड़ी देर सुस्ताने के बाद हम दोनों ने कपडे पहने और वापस घर चले आये.

अगले दिन वीरू, नीरू और मै उसी अड्डे पर आये. आज मन में बड़ी उदासी थी. सोच रहा था कि आज अगर वीरू साथ ना होता तो आज भी मज़े करता. नीरू भी यही सोच रही थी.

वीरू ने कहा - क्या बात है आज तुम दोनों बड़े खामोश लग रहे हो?

मैंने कहा - नहीं तो. ऐसी कोई बात नहीं है.

वीरू - कल भी तुम दोनों यहाँ आये थे?

नीरू - हाँ. कल भी यहाँ आये थे हम दोनों.

वीरू - तब तो बड़ी मस्ती की होगी तुम दोनों ने? इसलिए आज सोच रहे होगे कि वीरू ना ही आता तो अच्छा था...क्यों सच कहा ना मैंने?

मैंने अकचका कर कहा - नहीं वीरू, ऎसी कोई बात नहीं. हम दोनों कल यहाँ आये जरुर थे. लेकिन सिर्फ सिगरेट पी कर जल्दी से घर वापस चले गए.

लेकिन नीरू ने कहा - हाँ वीरू, तुम सच कह रहे हो. कल मैंने इस से चुदवा लिया था.

मेरा तो मुंह खुला का खुला रहा गया. अब तो वीरू हम सब की बात सब को बता देगा. मेरे तो आखों से आंसूं निकल आये. मैंने लगभग रोते हुए कहा - वीरू भैया माफ़ कर दो मुझे. कल पता नहीं क्या हो गया था. अब ऎसी गलती कभी नही होगी.

वीरू - अरे पागल चुप हो जा. इसने मुझसे पहले ही पूछ लिया था. मैंने इसे परमिशन दे दिया था. अरे यही दिन तो हैं मस्ती करने के. फिर ये जवानी लौट कर थोड़े ही ना आने वाली है? जा जा कर फिर से कर ले जो कल किया था. मै यहाँ हूँ. जा जा कर लुट मेरी बहन की जवानी.

मुझे काटो तो खून नहीं वाली स्थति थी. लेकिन मै खुशी के मारे पागल हो गया. नीरू ने मेरा हाथ थामा और मुझे पकड़ कर वहीँ झाड़ियों के पीछे ले गयी. पुरे एक घंटे तक हम दोनों ने चुदाई कार्यक्रम किया. नीरू भी पस्त हो कर नंगी ही लेटी हुई थी. मैंने कपडे पहने. और नीरू को भी तैयार होने को कहा .उसने भी अपने कपडे पहने और हम दोनों वापस पेड़ के नीचे आ गए.

वीरू - क्यों , हो गयी मस्ती?

हम दोनों ने कहा - हाँ. अब घर चल.

रात को एक बजे मेरी नींद खुल गयी. कमरे में घुप्प अँधेरा था. नीरू को चोदने का मन कर रहा था. मै, नीरू और वीरू एक ही कमरे में सो रहे थे. मैंने कुछ आवाजें सुनी. ध्यान से सूना तो नीरू की कराहने की आवाज थी. थोडा और ध्यान से सुना तो किसी मर्द के गर्म गर्म सासें की आवाजें भी थी. मैंने अपने पास सोये वीरू को टटोला तो वो वहां नही था. मै तुरंत ही समझ गया. वो अपनी बहन की चुदाई कर रहा है. मेरा मन बाग़ बाग़ हो गया. मैंने अँधेरे में अपने लंड को निकाला और मसलने लगा.

तभी दोनों की हलकी हलकी चीख सुनाई पड़ी. समझ में आ गया कि वीरू झड चूका है. थोड़ी देर में वो मेरे बिस्तर पर आ कर लेट गया.

मैंने धीरे से बोला - यार, मेरा लंड फिर से चूत खोज रहा है. वो भी नीरू की. क्या करूँ?

वीरू ने कहा - जा मार ले. मुझसे क्या पूछता है?

मै उठ कर नीरू के बिस्तर पर गया. उसे धीरे से जगाया. वो उठी.

बोली - कौन है.?

मैंने धीरे से कहा - मै हूँ चरण.

नीरू - अरे चरण... आ जा ...तेरी ही बारे में सोच रही थी.

मैंने उसकी चूची दबाते हुए कहा - क्यों अभी अभी तो वीरू ने तेरी ली ना?

नीरू - अरे , उसे तो पिछले डेढ़ साल से ले रही हूँ. तेरी तो बात ही कुछ और है.

मैंने - तो आ ना. फिर से दो राउंड हो जाये?

नीरू - हाँ ...आ जा मेरी जान. लेकिन मेरी ये चौकी काफी छोटी है. इस पर खेल ठीक से होगा नहीं. एक काम करो. वीरू को थोड़ी देर के लिए इस चौकी पर भेजो. हम दोनों उस कि चौकी पर चलते हैं.

मैंने कहा - ठीक है.

हम दोनों वीरू के चौकी के पास गए. नीरू ने धीरे से वीरू से कहा - वीरू, थोड़ी देर के लिए मेरी वाली चौकी पर चले जाओ ना. मुझे चरण के साथ थोड़ी मस्ती करनी है.

वीरू - ठीक है बाबा. लेकिन देख, ज्यादा शोर शराबा मत करना. जो करना है आराम से करना.

फिर वो उठ कर छोटी वाली चौकी पर चला गया. और मैंने और नीरू ने उस घुप्प अँधेरे में दो घंटे तक मस्ती की.

फिर अगले दिन झाडी में मैंने और वीरू ने मिल कर नीरू की चुदाई की.

फिर ऐसा कार्यक्रम तब तक चलता रहा जब तक मामा की शादी के बाद हम सभी अपने अपने घर नहीं चले गए. फिर मै बाद में बहाना बना बना कर दिल्ली भी जाता था और नीरू के साथ खूब मस्ती किया.
 
मेरा सपना और – भाभी की तन्हाई



बात उस समय की है जब मैं नॉएडा में बी.टेक कर रहा था। मैं बिल्कुल नया था इस शहर में और मैंने होस्टल लिया हुआ था। वहीं पर दोस्तों से कन्याओं की काम-प्रवृति के बारे में पूरी जानकारी मिली ! सारे दोस्त होस्टल को सेक्स शिक्षा केंद्र नाम से संबोधित करते थे! वहीं से मैं भी एक सुन्दर सी कन्या के सपने देखने लगा ! इसी बीच मैंने होस्टल छोड़ दिया और नॉएडा में ही एक कमरा सेक्टर 49 में ले लिया ! मैं दूसरी मंजिल पर अकेला रहता था ! नीचे एक परिवार रहता था, भाभी जी उम्र 29 साल और फिगर क्या मस्त था ! देखते ही लार टपक जाये और उनका पति और 5 साल का एक बेटा था ! उनके पति एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी में आई टी मैनेजर थे और अक्सर विदेश जाया करते थे !

पहले दिन भाभी को छत देखा जब वो कपड़े सुखाने आई थी। क्या मस्त, लाजवाब सेक्सी लग रही थी, उनको देखते ही मेरा लंड फ़ुफ़कारे छोड़ने लगा और मैं पहले दिन से ही भाभी को चोदने के सपने देखने लगा !

भाभी की चूचियाँ इतनी सेक्सी थी कि देखते ही लंड में पानी आ जाता था। मैं उनको हमेशा ताड़ता रहता था और उनकी प्यारी प्यारी गोल गोल चूचियाँ निहारता रहता था और अपने लंड को समझाता था कि बेटा धैर्य रख, एक दिन जरुर मिलेगी भाभी की चूत चोदने को !

मैं भाभी से बात करने का बहाना ढूंढ रहा था पर कुछ नहीं समझ आ रहा था कि मैं क्या करूँ !! फिर मैं उनको बेटे को एक दिन चोकलेट दिलाने के बहाने बाहर ले गया और धीरे धीरे मैं उससे काफी घुलमिल गया और रोज अपने कमरे में उसे ले आता था फिर भाभी बेटे के बहाने ऊपर आती थी और उससे लेकर चली जाती !

अब मैं भाभी से बातें करने लगा था और नीचे भी अक्सर क्रिकेट देखने के बहाने चला जाता था जब भी मैं उनके घर में टी.वी देखने जाता वो चाय जरूर पिलाती थी!

एक दिन चाय पीते पीते मैंने भाभी से पूछा- भाभी, भैया अक्सर बाहर रहते हैं तो आपका मन कैसे लगता है इतने बड़े घर में?

भाभी बोली- बस मैं और मेरा बेटा और मेरी तन्हाई !

मुझे लगा कि भाभी तो आसानी से पट सकती है बस थोड़ा सा पहल करने की जरुरत है ! अब तो मैं चुदाई के सपने दिन रात देखने लगा था !

एक दिन भाभी ने मुझे नीचे बुलाया और बोली-मुझे कुछ शॉपिंग करनी है, क्या तुम मेरे साथ चल सकते हो, क्योंकि मेरे बेटा तुमसे हिला हुआ है तो तुम उसे संभाल लोगे !

मैंने मन में कहा- भाभी संभल तो मैं तुम्हें भी लूँगा।

मैंने जल्दी से हाँ कर दी और शॉपिंग करने पास में ही एक मॉल में चले गये ! भाभी ने वहाँ पर दो पैंटी, चार ब्रा और कुछ मेकअप के सामान लिए। मैं सब देख रहा था, इतने में मेरे दिमाग में शरारत आई और मैंने भाभी से पूछा- भाभी ये आपकी ब्रा कितने नम्बर की है?

वो बोली- तुमसे क्या मतलब ? तुम्हें क्या करनी है?

मैं बोला- मुझे लगता है कि ये आपको छोटी पड़ेंगी !

भाभी तपाक से बोली- नहीं ! मेरा साइज़ 34 है और ये ब्रा भी 34 नंबर की ही हैं !

मैं मुस्कुराया और भाभी शरमा गई !

फिर हमने कुछ चाट खाई और काफी सारी मस्ती की। अब तो भाभी मेरे से मजाक भी करने लगी थी, जब भी किसी जोड़े को देखती तो कुछ न कुछ मज़ाक कर देती। मैं भी पीछे हटने वाला नहीं था, तुरंत एक चुलबुला सा जवाब दे देता और भाभी खिल-खिला कर हंस पड़ती !

इसी बीच माल में ही उनकी एक सहेली मिल गई, वो वहीं पर एक स्टोर में जॉब कर रही थी। भाभी ने उसको घर आने को न्योता दे दिया और उसका मोबाइल नंबर भी ले लिया।

उसने भाभी से पूछा- भैया कहाँ हैं और ये आपके साथ कौन हैं?

भाभी बोली- वो 15 दिनों के लिए सिंगापुर गये हैं और ये है मेरे घर में ऊपर किराये पर रहता है !

अब तो मेरे मन में एक नहीं दो-दो चूतें मारने के ख्याल आने लगे थे, मेरा लंड मॉल में ही खड़ा हो गया था !

शाम के करीब सात बज चुके थे, मैंने भाभी से बोला- भाभी, अब चलो न ! बहुत तेज़ भूख लगी है और काफी थक भी गया हूँ मैं !

फिर हमने ऑटो किया और घर आ गये।

घर में जाते ही मैं भाभी के बेड पर जाकर लेट गया और बोला- भाभी, आज तो आपने पूरी तरह ही थका दिया !

भाभी बड़े प्यार से बोली- आज तुम खाना यहीं खाना और नीचे ही सो जाना !

इतना सुनते ही मैं ख्वाबों में खो गया और आज रात की चुदाई के सपने देखने लगा !

रात के करीब दस बज चुके थे, हम सबने खाना खा लिया था, उनका बेटा पापा के लिए रो रहा था। भाभी उसे समझाने की कोशिश कर रही थी पर वो मान नहीं रहा था।

फिर मैं उसे बाहर ले गया और चॉकलेट दिलाई और वापस आते आते वो सोने लगा।

मैं घर आकर भाभी से बोला- यह सो गया है !

तो भाभी बोली- इसे धीरे मेरे बगल में लिटा दो !

जैसे ही मैं उसे उनकी बगल में लिटा रहा था तो मेरा हाथ उनके एक चूची से छू गया और भाभी कुछ सकपका गई पर कुछ नहीं बोली। उसके बाद मैं भी उन्हीं के कमरे में टीवी देखने लगा और बातें भी करने लगा !

रात के साढ़े ग्यारह बज चुके थे, अब भाभी को नींद आ रही थी पर मैं उनसे पहले सोने का नाटक कर रहा था ! थोड़ी देर बाद भाभी को लगा कि मैं सो गया हूँ तो उन्होंने टीवी बंद कर दिया, रोशनी भी बंद कर दी और बिस्तर पर आकर लेट गई !

करीब आधे घंटे के बाद मैं बाथरूम जाने के बहाने उठा और बिना रोशनी किए बाहर चला गया और अँधेरे में ही वापस आ गया। फिर मैं बेड पर अँधेरे में ही चढ़ने की कोशिश कर रहा था कि तभी मेरा एक हाथ भाभी की चूची पर जा लगा पर उनकी कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। फिर मैं धीरे से जाकर उनके बगल में लेट गया और एक हाथ उनकी पहाड़ जैसे चूची पर रख दिया और दबाने लगा !

शायद भाभी जाग रही थी पर बिल्कुल भी मना नहीं किया तो मेरा हौंसला और बढ़ गया और मैंने अपना हाथ उनके ब्रा के अन्दर डाल दिया और कस के दबाने लगा।

इतने में भाभी बोली- क्या कर रहे हो?

मुझे कुछ समझ नहीं आया और मैं कुछ नहीं बोला और चूचियों को मसलता रहा।

इसके बाद भाभी को मज़ा आने लगा था और वो खुद ही मेरे से चिपकने लगी ! फिर मैंने अपना दूसरा हाथ उनकी चूत पर रख दिया और उंगली करने लगा भाभी को और मज़ा आने लगा और वो उफ़ उफ़ उफ़ ……….की आवाज करने लगी !

भाभी ने भी मेरा लंड पैंट के अंदर से पकड़ लिया और लंड रॉकेट की तरह उड़ने को तैयार था ! फिर धीरे से मैंने भाभी के ब्रा का हुक खोल दिया और दोनों चूचियां कंडोम की गुब्बारे की तरह हवा में आजाद हो चुकी थी ! मैंने चूचियों को चूसना शुरू कर दिया।

भाभी पूरी तरह से गर्म हो चुकी थी और उनकी सांसें तेज थी, बोल रही थी- और तेज डार्लिंग और तेज़ ! और जोर जोर से मेरे लंड को चूस रही थी !

भाभी के जिस्म को देखकर लग रहा था कि भाभी को कई दिनों से लंड नसीब नहीं हुआ है।

मेरा सात इंच का लम्बा लंड अन्दर लेने के लिए भाभी तड़प रही थी और बेड पर नागिन की तरह कमर और चूत हिला रही थी !

मैं उनकी चूचियों को सहला रहा था जिससे उनकी साँसें और तेज हो रही थी ! अब हम दोनों नंगे हो चुके और दूसरे से लिपट रहे थे। भाभी की चूत बिलकुल साफ़ और नए गद्दे की तरह उभार ले रही थी !

अब मेरा सपना पूरा हो रहा था !

मैंने भाभी की एक टांग अपने कंधे पर रखी और धीरे से लंड को अन्दर घुसाने की कोशिश की पर चूत थोड़ी कसी थी इसलिए आसानी से नहीं घुस रहा था। मैंने सोचा थोड़ी वैसलीन लगा लूँ, फिर सोचा-

नहीं ! कुछ भी हो, आज बिना वैसलीन के ही चोदूँगा !

मैंने ज्यादा जोर लगाया और लंड तीन इंच अन्दर जा घुसा।

भाभी चीख उठी, बोली- निकालो बाहर ! मैं मर जाउंगी !

फिर मैंने तीन मिनट तक अपने को रोके रखा और चूचियों और होंठों से खेलता रहा। भाभी को और ज्यादा मज़ा आ रहा था। धीरे धीरे नीचे का दर्द भी कम हो गया, फिर मैंने दूसरा जोर का धक्का मारा और लंड पूरी तरह प्लग के जैसे फिट हो गया। अब मैं धीरे धीरे लंडदेव को आगे-पीछे कर रहा था, भाभी भी मेरा पूरा साथ दे रही थी, अपनी कमर ऊपर-नीचे कर रही थी और कह रही थी- तेजी से
 

हरामी चाचू



यह एक पाकिस्तानी चुदाई की कहानी है, एक बेरहमी से चुदाई की है।

मेरा नाम साना है और अब मैं कराची में रहती हूँ।

मेरी उम्र 18 साल है.. मेरा रंग बिल्कुल दूध की तरह गोरा है..

मेरा कद 5’4″ का है, मेरे जिस्म का कटाव 32-28-33 है..

मैं बहुत प्यारी और सेक्सी हूँ.. यह मैं नहीं.. लोग कहते हैं।

मेरे जिस्म का आगे का हिस्सा या यूँ कहूँ कि मेरे स्तन बहुत ही उठे और उभरे हुए हैं.. मेरी सहेलियाँ भी मुझे यही कहती हैं।

अब मैं अपनी कहानी सुनाती हूँ..

मेरे अब्बू के चचेरे भाई का हमारे घर बहुत आना-जाना था।

वे मुझे प्यार से हीरा कहते थे.. दरअसल उनकी देखा देखी कई लोग मुझसे हीरा ही कहने लगे थे।

वो पहले ऐसे नहीं थे.. वो बचपन में मुझे बेटी की तरह उठाते थे और एक चाचा के लिहाज़ से मुझे बहुत प्यार करते थे।

वो रिश्ते में मेरे चाचा थे लेकिन मैं उन्हें हसन भाई कहती थी।

उन्होंने कभी मेरे बारे में ऐसा नहीं सोचा था और ना ही मैंने कभी उनको इस नजरिए से देखा था।

आहिस्ता-आहिस्ता जब मैं बड़ी होने लगी.. तो खूबसूरत भी होने लगी।

लेकिन उन्हें इस बात की परवाह नहीं थी।

मैं अपनी सहेलियों को मैसेज करने के लिए अपनी अम्मी के मोबाइल इस्तेमाल करती थी।

मुझे मेरे एक कज़िन वलीद से मुहब्बत हो गई थी और उसे मुझसे मुहब्बत हो गई थी.. मैं उसे भी मैसेज करती थी।

एक दिन जब मैं घर से बाहर धूप में बैठी अपने ब्वॉय-फ्रेंड वलीद को मैसेज कर रही थी।

हसन भाई अचानक आ गए तो मैंने जल्दी से मोबाइल नीचे कर लिया और सीधी बैठ गई।

कहा जाता है कि समझदार के लिए इशारा ही काफ़ी होता है।

हसन भाई समझ गए और उनके दिल में यह ख्याल भी आ ही गया कि मैं अब बड़ी हो गई हूँ।
वो अब मुझे दूसरी नज़रों से देखने लगे।
वो अब मुझसे ज्यादा बातें करने लगे और मुझे अपनी गर्ल-फ्रेंड्स के बारे में बताने लगे।

मैं भी बड़े शौक़ से ये सब सुनती थी।

फिर उन्होंने मुझे एक दिन कहा- हीरा.. अब हम बेस्ट-फ्रेंड हैं और अब हम एक-दूसरे से कुछ नहीं छुपाएंगे।

मैं मान गई…
मैं चूंकि उस वक़्त गाँव में रहती थी.. उस वक़्त मैं स्कूल में पढ़ती थी।
तो मैंने एक दिन उनसे पूछा- हसन भाई.. आप नेट इस्तेमाल करते हैं.. मेरी स्कूल की सहेलियाँ तो इस्तेमाल करती हैं.. और याहू पर चैट करती हैं।

उन्होंने कहा- हाँ करता हूँ.. लेकिन हीरा क्या पता.. तुम्हारी फ्रेंड्स वहाँ चैट ही करती हैं.. या कुछ और देखती हैं.. आई मीन कि एक्ट्रेस की फोटोज वगैरह..

मुझे समझ नहीं आया कि वो क्या कहना चाहते हैं।

मैंने कहा- हाँ तो.. देखती हैं तो क्या हुआ… इसमें बुरा क्या है?

उन्होंने कहा- बेवक़ूफ़.. वो वाले नॉर्मल फोटो नहीं.. बल्कि नंगे फोटोज..

यह सुनते ही मेरे पूरे जिस्म में करेंट दौड़ गया और हैरान रह गई- क्या कह रहे हैं आप हसन भाई.. पागल तो नहीं हो गए हैं?

उन्होंने कहा- कसम से.. इंडियन एक्ट्रेस के नंगे फोटो हैं। तुम किसी को ना बताना ओके.. मैं जब अगली बार आऊँगा तो मोबाइल पर लेकर आऊँगा..

मैंने कहा- झूट मत बोलिए.. प्रियंकी चोपड़ा.. मलिका सेहरावत.. बिपाशा बसु तो लगती हैं ऐसी.. लेकिन ऐश्वर्य.. आयशा टाकिया.. ऐसी नहीं हैं.. वो तो बहुत शरीफ अदाकारा हैं।

उन्होंने जवाब दिया- हीरा तुम वेट करो.. जब मैं अगली बार लाऊँगा.. तो तुम खुद देख लेना।

मैंने कहा- ओके..

मैं वहाँ से चली गई.. अब हसन भाई की नियत खराब होने लग गई।

अगर मैं उन्हें डांटती या अम्मी को बताने की बोलती तो वो फिर ऐसी बातें ना करते.. लेकिन मेरी खामोशी से उन्हें हौसला मिला और सच कहूँ तो मेरा दिल भी नंगे फोटोज को देखने का कर रहा था।

खास तौर पर आयशा टाकिया का.. क्योंकि उसके उठे हुए चूचे मुझे बहुत हैरान करते थे।

वो अपने घर चले गए और जब एक महीने के बाद दुबारा आए.. तो मुझसे मिले और हमने बात भी की।

फिर उन्होंने मुझसे कहा- मैं ‘वो’ ले आया हूँ।

मैंने थोड़ा सख़्त लहजे में कहा- मैं नहीं देखती।

तो वो बोले- प्लीज़ ना.. यार.. तुम मेरी दोस्त नहीं हो..

खैर अगले दिन घर में कोई नहीं था.. सब किसी शादी में गए हुए थे। घर में मेरे अलावा मेरी दादी थीं।

मैं नहा रही थी और दादी सोई हुई थीं क्यूँकि दिन का वक़्त था और गर्मियाँ थीं।

इतने में हसन भाई भी आ गए.. मैं नहा कर निकली तो वो वहाँ ही खड़े थे।

फिर मैं रसोई में गई.. जहाँ पास ही के बरामदे में मेरी दादी सोई हुई थीं।

मैं वहाँ चाय पीने लगी।
हसन भाई उधर आकर बाहर खड़े हो गए और मुझे बाहर आने का इशारा करने लगे।
मैंने इशारा किया कि दादी हैं.. तो उन्होंने इशारा किया कि वो सोई हुई हैं।

फिर थोड़ी देर बाद उनके बार-बार कहने पर मैं बाहर आई और उनका मोबाइल उनसे ले लिया।

जिसमें मैं नंगी फोटोज थीं।

मैंने कहा- हसन भाई.. आप मुझे पिक्स लगा कर दें और दूसरी कमरे में जाएं.. मैं आप के सामने नहीं देखूँगी।

वो मान गए और दूसरे कमरे में चले गए।

मैंने जब पहली नंगी फोटो देखी.. तो मेरे पूरे जिस्म में करेंट दौड़ गया।

वो फोटो ऐश्वर्या राय की फेक फोटो थी.. जिसमें वो बिल्कुल नंगी थी और एक आदमी उसकी गाण्ड में लण्ड देकर उसको चूचियाँ दबा रहा था।

मैं तो हैरान रह गई.. इसी तरह ऐश्वर्या राय, माधुरी, मनीषा, प्रियंका, दीपिका पादुकोणे, रिया सेन, करीना कपूर, करिश्मा कपूर, कटरीना कैफ़, रानी मुखर्जी और मेरी फेवरिट आयशा टकिया की नंगी और कामुक तस्वीरें थीं।

मैंने ये सब देखा तो मुझे हैरानी हुई और मैं गरम भी होने लगी।

फिर मैं उठी.. अपने आप पर क़ाबू किया और बाहर निकल गई।

मैंने हसन भाई को मोबाइल दिया और कहा- तौबा है हसन भाई..

वो हंसे और बोले- मेरे पास तो नंगी वीडियो भी हैं..

मैंने कहा- नहीं.. अब नहीं देखनी..

वो मुस्कुराए और चले गए।

अब वो मुझसे खुलने लग गए… मुझसे गंदी बातें करते.. मेरे हाथ को छूते.. और एक दफ़ा तो मेरे मम्मों को भी छूने लगे।

तो मैंने उनका हाथ रोक लिया.. लेकिन छोटी थी इसलिए किसी को ना कह सकी।

अब वो हर वक़्त मेरे साथ होने का बहाना ढूँढने लगे।

मैंने भी इतना गौर नहीं किया।

फिर कुछ दिनों बाद मेरा ब्वॉय-फ्रेंड वलीद कराची से आया हुआ था।
वो भी मेरा रिश्तेदार था तो मेरे घर आया हुआ था।
हम एक-दूसरे से मुहब्बत भी करते थे.. लेकिन यह बात किसी को पता नहीं थी।

एक दिन मैं और वलीद हमारे घर के एक कमरे में सीट पर दोनों साथ बैठे बातें कर रहे थे।
सारे घर वाले बाहर थे.. और दरवाज़ा थोड़ा सा बंद था।
वलीद ने मेरा हाथ पकड़ा ही था कि अचानक दरवाज़ा खुला और हसन भाई.. मेरे एक और रिश्तेदार अनवार अन्दर आए।
 
उन्हें देखते ही वलीद डर कर उठा और एकदम शीशे के सामने खड़ा हो कर बालों पर कंघी करने लगा।

मैं भी एकदम से उठ कर अपनी बुक्स लेने लगी।

हमने ऐसा ज़ाहिर किया कि हम दोनों के दरमियाँ कुछ नहीं है.. लेकिन हसन भाई और अनवर भाई नादान ना थे.. दोनों की उम्र 26 और 24 थी।

जब कि मेरी और वलीद की उम्र उनकी उम्र से काफी कम थी।

उन दोनों ने हम पर शक किया.. यह हमें यक़ीन हो गया था।

वो दोनों चले गए..

बाद में हसन भाई ने मुझसे कहा- अफ़सोस हीरा.. तुमने मुझसे एक बात छुपाई.. अफ़सोस…

मुझे तो यक़ीन हो गया था कि हसन भाई को मेरे और वलीद के अफेयर का पता चल गया है।

मैंने एकदम अपने आपको ठीक से बात करने के लिए और हसन भाई से जान छुड़ाने के लिए कहा- मुझे पता है हसन भाई कि आप क्या सोच रहे हैं.. ऐसा कुछ नहीं है और अब मैं आपसे बात भी नहीं करती और आपकी-हमारी दोस्ती भी ख़त्म..

यह कह कर मैं चली गई..
हसन भाई की तो जान निकल गई।
वो मुझसे माफी माँगने लगे और कहने लगे- साना मैं तो मज़ाक़ कर रहा था… प्लीज़ ऐसा मत करो..

लेकिन मैं नहीं मानी और सच्ची बात तो यह है कि मुझे हसन भाई की हरकतें अच्छी नहीं लगती थीं तो मैंने कहा- नो.. मीन्स.. नो.. अब मुझे तंग किया.. तो मैं अम्मी को बोलूँगी..

उन्होंने बहुत मिन्नतें कीं.. लेकिन मेरे ना मानने पर वो चले गए।

अब हसन भाई मेरे लिए बेचैन होने लगे और वो मुझसे लव करने लगे.. उन्हें यह तो पता था कि मैं भी किसी से लव करती हूँ तो वो समझे कि उनका काम भी बन जाएगा।

लेकिन यह तो उन की गलतफहमी थी।

फिर एक-दो माह वो नहीं आए और इस दौरान वलीद भी वापस कराची चला गया।

फिर एक दिन हसन भाई आए तो मैंने बिल्कुल सामान्य होकर उन्हें सलाम किया और चली गई।

वो उदास-उदास से लग रहे थे.. मैं जहाँ भी बैठी होती वो मुझे मासूम बच्चों की तरह देखते रहते और मुझसे नज़र ना हटाते।

मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था.. अनवर भाई से मेरी अच्छी बनती थी.. क्योंकि वो मेरे पड़ोसी भी थे और गाँव के माहौल तो ऐसा होता है कि हर कोई एक-दूसरे के घर बिना किसी रोक-टोक के आता-जाता है।

उसी रात को मैं अनवर भाई के पास बैठी हुई बातें कर रही थी.. तो हसन भाई हमसे दूर बैठे मुझे देख रहे थे और उदास भी थे।

मुझसे रहा ना गया तो मैंने अनवर भाई से पूछा- क्या बात है हसन भाई को?

तो वो बोले- इनकी गर्लफ्रेंड की शादी है और ये उसी बात से परेशान हैं।

मेरा दिल बहुत खफा हुआ और जिस तरह वो मुझे देख रहे थे.. मुझे शक होने लगा कि शायद वो मुझे पसन्द करते हैं।

फिर जब अनवर भाई ने हसन भाई से पूछा तो उसने कहा- यार अनवर, मुझे साना से लव हो गया है और मैं उससे शादी करना चाहता हूँ।

अनवर भाई ने कहा- पागल है क्या.. वो तुझसे छोटी है.. और रिश्ते में भी तेरी बेटी लगती है।

हसन ने कहा- आई नो.. लेकिन अनवर तू बोल ना उससे यार… तेरी उससे बनती है.. वो मान जाएगी।

अनवर ने कहा- सोच ले हसन.. देख कोई मसला बन गया तो बदनामी हो जाएगी और साना ने अपना अम्मी को बोला तो पूरी कुनबे में हंगामा हो जाएगा।

लेकिन हसन ने कहा- तुम बोलो तो.. बाक़ी देखा जाएगा।

फिर हसन भाई अपने घर वापस चले गए।

दो दिन बाद अनवर भाई ने मुझे बुलाया और पहले इधर-उधर की बातें करने लगे और फिर कहा- हीरा.. तुम्हें पता है कि हसन क्यों उस दिन उदास था?

मैंने कहा- नहीं.. आप बताएँ ना.. वे क्यों खफा थे.. उन्हें देख कर तो मेरे दिल भी खफा हो गया था।

तो उन्होंने कहा- अगर तुम प्रॉमिस करो कि किसी को नहीं बताओगी.. तो मैं बता देता हूँ।
मैंने कहा- ओके आई प्रॉमिस..

अनवर भाई ने कहा- साना.. हसन तुमसे बहुत प्यार करता है और वो तुमसे शादी करना चाहता है। वो पागल है तुम्हारे पीछे..

मुझे शक तो था ही लेकिन अब यक़ीन हो गया कि हसन भाई मुझे मुहब्बत करते हैं।

मेरे दिल को थोड़ी खुशी भी हुई लेकिन फिर मैंने एकदम से कहा- ये आप क्या कह रहे हैं? मैंने कभी उन्हें इस नज़र से नहीं देखा और वो मेरे चाचा की तरह हैं.. वो ऐसा नहीं कह सकते।

अनवर ने कहा- तुम उससे बात करके देख लो.. मैं बात करवाता हूँ।

मैंने कहा- ओके… करवाइए।

अनवर ने फिर हसन भाई को कॉल की और उससे कहा- हसन ये लो.. साना बात करेगी।

मैंने मोबाइल लिया और कहा- हैलो हसन भाई.. मैं यह क्या सुन रही हूँ?

हसन ने कहा- क्या हुआ?

मैंने फिर उन्हें सारी बात बता दी तो वो बोले- यार मैंने अनवर को मना किया था कि तुमसे बात ना करे लेकिन उसने पता नहीं क्यों ऐसा किया।
मैंने कहा- वो छोड़िए.. यह बताएँ कि यह सच है कि नहीं?

तो हसन ने कहा- हाँ हीरा.. ये सच है.. प्लीज़ मुझे गलत मत समझो.. मैं तुम्हारे बिना मर जाऊँगा.. आई लव यू साना..

मैंने कहा- प्लीज़ हसन भाई ऐसा मत कहें और उदास मत हों… हम नहीं मिल सकते..

लेकिन वो तो रोने लग गए तो मिन्नतें करने लगे।

तो मुझे भी शक होने लगा कि शायद ये मुझसे सच्चा प्यार करते हैं।

मैंने कहा- प्लीज़ हसन भाई रोईए मत.. जो होगा अच्छा होगा.. आप परेशन मत हों… चलिए आप यहाँ गाँव आइए.. तो बात करते हैं..

वो खुश हो गए और मैं भी थोड़ी खुश हो कर चली गई।

ज़ाहिर है मैं लड़की थी.. मुझसे कहाँ बात पेट में रहती है।

मैंने अपनी सारी सहेलियों और कज़िन को बता दिया कि हसन मुझसे लव करता है।

फिर जब हसन गाँव आए तो मेरी सहेलियों ने मौका मिलने पर हम दोनों को मिलाया और बातें कीं।

मैं फिर भी ना मानी तो मेरी सहेली ने कहा- हसन भाई ये नखरे कर रही है.. मान जाएगी.. मैं इसे मना लूँगी।

अब आहिस्ता-आहिस्ता मैं भी हसन को पसंद करने लगी और जब मैंने सोचा कि हसन भाई को बता दूँ कि आई लव हिम.. तो तो किस्मत ने ऐसा मोड़ लिया कि मैं ना तो हसन भाई की रही और ना वलीद की।

मुझे पता ही नहीं चला और कराची में मेरे अब्बू ने हमारे एक रिश्तेदार के बेटे हिलाल से मेरा रिश्ता तय कर दिया और मेरी मंगनी हो गई।

वलीद, हसन भाई ओर मैं शॉक में चले गए।

खैर.. मैं तो संभल गई और अपने अब्बू की खुशी में खुश हो गई और वलीद को भी समझा दिया।

लेकिन हसन भाई न संभल सके.. वो मुझसे और प्रेम करने लगे।

मैं उन्हें मना भी करने लगी और मैंने उनसे बात भी करनी छोड़ दी।

वो पागल हो गए.. उन्होंने अपनी अम्मी को बोल दिया तो उनकी अम्मी ने मेरी अम्मी को कहा।

मेरी अम्मी ने कहा- अब तो बहुत देर हो चुकी है.. आप लोग पहले कहाँ थे.. अब कुछ नहीं हो सकता।

हसन भाई तो टूट गए… वो मुझसे मिन्नतें करते.. मैंने मना किया और अब मैं अपने मंगेतर हिलाल से बातें करने लगी और उसको पसंद करने लगी।
 
मैं अपने अब्बू की खुशी में खुश हो गई और वलीद को भी समझा दिया।

लेकिन हसन भाई न संभल सके.. वो मुझसे और प्रेम करने लगे।

मैं उन्हें मना भी करने लगी और मैंने उनसे बात भी करनी छोड़ दी।

वो पागल हो गए.. उन्होंने अपनी अम्मी को बोल दिया तो उनकी अम्मी ने मेरी अम्मी को कहा।

मेरी अम्मी ने कहा- अब तो बहुत देर हो चुकी है.. आप लोग पहले कहाँ थे.. अब कुछ नहीं हो सकता।

हसन भाई तो टूट गए… वो मुझसे मिन्नतें करते..

मैंने मना किया और अब मैं अपने मँगेतर हिलाल से बातें करने लगी और उसको पसंद करने लगी।

हालांकि मैंने हिलाल को नहीं देखा था क्योंकि वो कराची में था और मैं एबटाबाद में थी।

हम मोबाइल पर बातें करते.. अब वलीद और हसन भाई मेरे दिमाग से निकल गए।

हसन भाई फिर भी मुझे ना छोड़ते और मैसेज करते।

आहिस्ता-आहिस्ता हसन भाई पूरी की पूरी फैमिली में मेरी वजह से बदनाम हो गए।
सब उन्हें बुरा कहते।

अब वो पागल हो गए और जब वो समझे कि मैं अब उनकी नहीं हो सकती तो वो मुझे बुरा-भला कहने लगे..
और हिलाल को भी गालियाँ निकालते और उससे काला और बदसूरत कहते।

क्योंकि हिलाल वाकयी में काला है और खूबसूरत नहीं है।

वो मुझे पर ताने मारते..

अब तो मुझसे बर्दाश्त नहीं हुआ तो मैंने अम्मी को बोल दिया और अम्मी ने मेरे चाचा को बोल दिया।

सब हसन भाई से नफ़रत करने लगे और हिलाल को भी जब पता चला तो वो भी हसन भाई को कॉल या मैसेज करके गालियाँ देने लगा।

हसन की औकात पूरी फैमिली में मेरी वजह से एक कुत्ते के जैसी हो गई।

उनकी पूरी इज्जत खत्म हो गई। अब वो और अनवर भाई अकेले पड़ गए… इतनी जिल्लत के बाद तो इंसान मर जाता है।

हसन भाई भी मरने को तैयार थे लेकिन बस कुछ दिन के बाद वो समझने लगे और होश में आने लगे।

अब उन्हें मुझसे मुहब्बत नहीं बल्कि नफ़रत हो चुकी थी क्योंकि मेरी वजह से वो बदनाम हो कर रह गए थे।

उन्होंने मुझसे बदला लेने की कसम खा ली।

इसी तरह वक़्त गुज़र गया और मैं जवान हो कर मस्त माल बन चुकी थी.. अब मैं स्कूल के अंतिम दिनों में थी। मैं और भी सेक्सी और हॉट हो गई थी।

उधर हसन भाई अब बदले के लिए तैयार थे।

इस बदले के लिए उन्होंने मेरी बेस्ट-फ्रेंड जो कि कराची में रहती थी और जिससे पता था कि हसन मुझसे मुहब्बत करते हैं.. हसन ने उसी का सहारा लिया और उससे कहा- अब मैं हीरा से नहीं.. तुमसे मुहब्बत करता हूँ।

उसने भी मान लिया और वो हसन से फंस गई।

फिर वो एक-दूसरे के बहुत क़रीब हो गए… इतना कि वो एक-दूसरे की हर बात मानने लग गए।

फिर मेरी वो सहेली जून-जुलाई की छुट्टियों में कराची से एबटाबाद आई.. तो मैं उससे मिल कर बहुत खुश हुई।

हम दोनों सहेलियां साथ घूमने लगीं। मेरी इस सहेली का नाम मदीहा है।

मदीहा भी बहुत खुश थी… मेरी वजह से नहीं बल्कि इसलिए कि उसकी मुलाक़ात हसन भाई से हो गई थी।

मुझे जब उसने बताया कि वो और हसन एक-दूसरे से मुहब्बत करते हैं तो मुझे गुस्सा आया और जलन भी महसूस हुई।

मैंने उससे डांटा और उसे हसन से मिलने के लिए मना किया।

हसन ने उस ज़िल्लत के बाद गाँव आना छोड़ दिया था।

अगर कोई शादी या न्योता हो तो 2-3 घंटे के लिए आकर चला जाता था।

हालांकि गाँव में मेरे दादा का घर यानि उसके मामू का घर.. नानी-नाना का घर.. खालाओं का घर और बहनों का घर भी था।
लेकिन उसने मेरे कारण हुई जिल्लत की वजह से आना छोड़ दिया था।

खैर.. मैं और मदीहा रात को भी साथ सोते.. हमारे घर के साथ मदीहा की भी फूफी का घर था।

मदीहा की फूफी अनवर भाई की भाभी लगती थी और जब भी हसन भाई आते, तो वे अनवर भाई के घर ही सोते और वहीं रहते।

मदीहा भी जब आई तो रात को अनवर भाई के ही घर रहती क्योंकि वो उसकी फूफी का घर था।

अनवर भाई का घर बहुत ही बड़ा था। वो एक तीन मंजिला मकान था और हर मंजिल पर 5-5 कमरे थे।
मदीहा वहाँ रहती तो मुझे भी रात को वहाँ सोना पड़ता।

हम दोनों अलग कमरे में सोते थे।

फिर एक दिन हसन भाई गाँव आए तो मदीहा की खुशी की इंतेहा ना रही.. वो एक-दूसरे को मिले तो सलाम किया।

जब मैं सामने आई तो हसन भाई के चेहरे पर गुस्सा आ गया और वो नफ़रत से मुझे देख कर चले गए।

मैंने सलाम भी किया लेकिन उन्होंने सलाम का जवाब तक ना दिया।

फिर रात को छत पर मदीहा और हसन भाई अकले में मिले तो दोनों एक-दूसरे से गप्पें मारने लगे और चुम्मा-चाटी भी की।
दोनों मोहब्बत में पागल थे.. फिर दोनों छत पर बैठ गए।

मदीहा बैठ गई ओर हसन भाई उसकी गोद में सर रख कर लेट गए और मदीहा उन के बालों में हाथ फेरने लगी।

वो दोनों गप्पें मारने लगे।

फिर हसन भाई ने कहा- मदीहा मैं बहुत उदास हूँ और दिल खफा है.. मुझे तुम्हारी मदद चाहिए।

मदीहा ने कहा- हाँ जान बोलो… कैसी मदद चाहिए.. तुम्हारे लिए मैं कुछ भी कर सकती हूँ.. समझे कुछ भी…

इस पर हसन भाई ने कहा- मदीहा मुझे तुम्हारी बेस्ट-फ्रेंड साना से बदला लेना है.. उसकी वजह से मैं पूरी फैमिली में बदनाम हो गया हूँ.. मुझ पर लोगों ने लानत भेजी.. क्या होता अगर वो बात अपने दिल में रखती.. आज मैं किसी को मुँह दिखाने के काबिल नहीं रहा.. प्लीज़ मुझे मदद करो।

ये कह कर हसन भाई रोने लगे..

मदीहा ने एकदम उन्हें अपने गले से लगा कर चुप करवाया और कहा- प्लीज़ हसन मत रो.. मुझे भी अंदाज़ा है.. साना ने बहुत बुरा किया.. सच कहूँ तो मुझे भी अब वो अच्छी नहीं लगती। बातों-बातों में मुझ पर टोक मारती है और जो तुम्हारे साथ किया.. वो तो उसने बहुत ही बुरा किया। मैं तुम्हारी मदद करूँगी.. चाहे कैसी ही क्यों ना हो।

हसन ने कहा- ओके.. तो बताओ कि तुम एक-दूसरे से कितनी खुली हो?

मदीहा ने कहा- इतनी कि हमने एक-दूसरे के नंगे जिस्म भी देखते हैं.. हमको मौका मिले तो नंगे नहाते भी हैं और रात को अगर साथ सो जाऊँ तो एक-दूसरे के मम्मों को दबाते हैं.. अन्दर-बाहर से..

हसन ने सुना तो एकदम बोला- ओके.. यही तो मैं चाहता हूँ.. मतलब मैं बदला उसके साथ चुदाई करके लूँगा।

फिर उन दोनों ने योजना बनाई और चले गए।

सुबह मदीहा रोज़ की तरह मुझसे मिली और सारा दिन मेरे साथ रही.. रात को उसने मुझसे कहा- हीरा आओ आज हम लोग रात को फूफी के घर (मतलब अनवर भाई के घर) रहेंगे..

मैं मान गई.. हालांकि वहाँ हसन भाई भी थे.. रात को हसन के प्लान के मुताबिक़ जिस कमरे में हम दोनों सोते थे.. वहाँ हमारे आने से 4-5 मिनट पहले हसन भाई उस कमरे में चले गए और जिस बिस्तर पर हम सोते थे.. उसके सामने वाले बिस्तर के नीचे जाकर वो लेट गए।

अनवर भाई को भी ये सब पता था।

खैर.. थोड़ी देर बाद मैं और मदीहा उस कमरे में आए और दरवाज़ा बंद कर के कुण्डी लगा दी और बिस्तर पर चले गए और बातें करने लगे।
 
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