hotaks444
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बिरजू भी चुप चाप वहीं खामोश खड़ा था. वो तो चाह कर भी कुछ नहीं बोल पा रहा था. आज कृष्णा की आँखों में भी आँसू थे पस्चाताप के. आब उसे लगने लगा था की उसने आज कितनी बड़ी भूल की हैं मगर आब शायद बहुत देर हो चुकी थी. थोड़ी देर में राहुल भी आ जाता हैं. साथ में ख़ान और एक हवलदार भी था.
राहुल अंदर आता हैं और अंदर का नज़ारा देखकर वो भी थितक जाता हैं. अंदर राधिका आभी भी फर्श पर बैठी हुई रो रही थी और कृष्णा और बिरजू चुप चाप वही खड़े थे. राहुल राधिका के नज़दीक जाकर उसे अपने मज़बूत हाथों से उसे सहारा देकर उठाता हैं और फिर उसके आँसू पोछता हैं.
राहुल- क्या बात हैं जान. आज तुम्हारे इन आँखों में आँसू. सब ठीक तो हैं ना. और तुम ऐसे क्यों रो रही हो.
राधिका- सब ख़तम हो गया राहुल. सब कुछ बर्बाद हो गया. और इतना कहकर राधिका राहुल के सीने से लिपटकर ज़ोर ज़ोर से रोने लगती हैं.
राहुल- क्या हुवा बताओ तो सही. मेरा दिल बैठा जा रहा हैं. मैं तुम्हारे इन आँखों में आँसू नहीं देख सकता.
राधिका अपने आँसू पोछते हुए- तुम जानना चाहते थे ना पार्वती के कातीलो के बारे में. वो देखो तुम्हारे सामने मौजूद हैं और राधिका अपने हाथों से अपने भैया और बापू की ओर इशारा करती हैं. राहुल के भी होश उड़ जाते हैं राधिका के मूह से ये सब सुनकर.
राधिका- और ये देखो सबूत फिर वो बॅग राहुल को थमा देती हैं जिसमें हथियार और नक़ाब थे और साथ में पैसे भी. राहुल एक एक कर सारे समान को देखने लगता हैं.
राहुल- ऐसा कैसे हो सकता हैं. भैया आप ऐसा कैसे कर सकते हैं. मुझे तो बिल्कुल भी विश्वास नहीं होता. फिर राधिका जो भी बात हुई थी सारी बातें वो राहुल को बता देती हैं.
राहुल- ये सब आप लोगों ने अच्छा नही किया. इतना भी नहीं सोचा की आपके ये सब करने के बाद राधिका का क्या होगा.
राहुल- तो ये सब बिहारी की चाल थी. साला बहुत बड़ा हरामी चीज़ हैं. लेकिन वो कब तक बचेगा मुझसे. मैं उसे नहीं छोड़ूँगा. ख़ान सबसे पहले उस आदमी का पता लगाओ जिसने कृष्णा और बिरजू काका को पैसे दिए थे. अगर वो आदमी मिल गया तो बिहारी कल जैल के सलखो के पीछे होगा. उसका हमारे हाथ लगना बहुत ज़रूरी हैं. फिर मज़बूरन राहुल कृष्णा और बिरजू के हाथों में हथकड़ी लगा देता हैं.
राहुल- मुझे अपना फ़र्ज़ तो निभाना पड़ेगा ना राधिका. चाहे इस राह में मेरा अपना ही क्यों ना आयें.
राधिका- मैं तुम्हें नहीं रोकूंगी राहुल. तुम अपना फ़र्ज़ पूरा करो. ये सज़ा के ही हक़दार हैं.
कृष्णा हाथ जोड़ कर राधिका के पास आता हैं- राधिका आखरी बार मुझे हंस कर विदा कर दे. मुझे अब किसी से कोई शिकायत नहीं हैं. तू जैसे रहना खुस रहना बस उपर वाले से यही दुवा करूँगा. और कृष्णा और उसके बापू फिर घर से बाहर निकल कर पोलीस की जीप में बैठ जाते हैं. और ख़ान उन्हें लेकर पोलीस थाने की ओर चल पड़ता हैं. बस कमरे में राधिका के सिसकने की आवाज़ें आ रही थी. आज वो बिल्कुल तन्हा हो गयी थी. हर रोज़ उसे अपने भाई के लौटने का इंतेज़ार रहता था मगर शायद अब ये इंतेज़ार आब यहीं ख़तम हो गया था. वो जानती थी कि उसके भैया और बापू कम से कम 10 साल के बाद ही जैल से छूटेंगे. राहुल फिर राधिका को अपने सीने से लगा लेता हैं और ना जाने राधिका कितनी देर तक राहुल के सीने से लिपटकर रोती रहती हैं.
राहुल- एक काम करो राधिका तुम मेरे साथ मेरे घर पर चलो. शायद तुम्हारा यहाँ मन नहीं लगेगा. और इस वक़्त तुम बिल्कुल अकेली हो. वहीं तुम रहना और वहाँ पर रामू काका तो हैं ही वो तुम्हारी देखभाल करेंगे.
राधिका- नहीं राहुल मैं ठीक हूँ. और बस 10 दिन की तो बात हैं. फिर हमारी शादी हो जाएगी तो मैं वैसे भी तुम्हारे साथ ही रहूंगी. और अगर मैं अभी तुम्हारे साथ रहूंगी तो ये दुनियावाले ना जाने क्या क्या कहेंगे.
राहुल- मुझे कोई फरक नहीं पड़ता. तुम बस मेरे साथ चलो. मैं तुम्हें ऐसे अकेला नहीं छोड़ सकता.
राधिका- मुझपर अगर कोई कीचड़ उछालेगा तो मैं बर्दास्त कर लूँगी मगर कोई तुमपर उंगली उठाएगा मैं ये नहीं से पाउन्गि. मुझे इस वक़्त अकेला रहना चाहती हूँ. प्लीज़ मुझे कुछ दिन अकेला छोड़ दो. राहुल भी कुछ कह नहीं पता और उसके माथे को चूम लेता हैं.
राहुल- ठीक हैं राधिका जैसी तुम्हारी मर्ज़ी मगर अपना ख्याल रखना तुम्हारी खुशी में ही मेरी खुशी हैं. मैं बराबर तुमसे मिलने आता रहूँगा. और इतना बोलकर राहुल भी पोलीस स्टेशन चला जाता हैं.
राधिका इस वक़्त चुप चाप अपने बिस्तेर पर पड़ी हुई थी. ऐसे ही बहुत देर तक वो इन्ही सब बातें को सोचती हैं फिर वो उठकर अपने भैया के कमरे में जाकर शराब की बॉटल लेकर आती हैं फिर पीने लगती हैं. ना जाने कितनी देर तक वो पीती रहती हैं और वहीं बिस्तेर पर सो जाती हैं. आब तो लगता था कि राधिका के गम का सहारा भी अब शराब मात्र थी. वो अपना गम भूलने के लिए शराब पी रही थी. दिन बा दिन उसके गम बढ़ते ही जा रहे थे.
ऐसे ही वक़्त बीतता जाता हैं. राधिका सुबेह शाम नशे ही हालत में बेसूध रहती थी. उसे तो किसी भी चीज़ का होश नहीं रहता था. जब ये बात निशा को पता लगती हैं तो उसे भी बड़ा झटका लगता हैं. वो भी राधिका को बहुत समझाती है मगर राधिका उसकी एक बात नहीं सुनती. शायद अब राधिका भी पूरी तरह से टूट चुकी थी. और अब उसे कहीं से कोई उमीद नज़र नहीं आ रही थी.
दो दिन बाद..........................
राधिका करीब 10 बजे अपने घर से कॉलेज के लिए निकलती हैं. आज उसके एग्ज़ॅम्स का टाइम टेबल मिलने वाला था. वो इसलिए घर से तैयार होकर निकली थी. मन तो उसे नहीं था मगर वो फिर भी कॉलेज जाती हैं. आज फिर वो उसी रास्ते से होकर जा रही थी जहाँ पर पार्वती का कतल हुआ था. जब वो उस जगह पहुचती हैं तब उसको उस दिन वाला सारी घटना उसके आँखों के सामने घूमने लगते हैं. फिर से उसकी आँखें नम हो जाती हैं मगर वो वहाँ रुकती नहीं और आगे बढ़ जाती हैं.
थोड़ा दूर जाने पर वो मुड़कर फिर से उसी जगह को देखने लगती हैं फिर वो आगे चलने लगती हैं. राधिका अभी कुछ 10 कदम ही चली थी कि उसके पीछे से एक स्कॉर्पियो कार तेज़ी से आती है. जब वो स्कॉर्पियो उसके नज़दीक आती हैं तभी उसके सामने आकर रुक जाती हैं. राधिका इसी पहले की कुछ समझती दो बदमाश स्कॉर्पियो में से तेज़ी से उतरते हैं और राधिका को उठाकर गाड़ी में डाल देते हैं. पहला बदमाश उसकी आँखों पर काली पट्टी बाँध देता हैं और दूसरा उसकी हाथों को पीछे करके उसे रस्सी से बाँध देता हैं. फिर एक कपड़ा उसके मूह में डाल कर उसके मूह को भी बंद कर देते हैं. और फिर तेज़ी से वो गाड़ी वहाँ से रवाना हो जाती हैं.
राधिका को कुछ समझ में नहीं आ रहा था की ये लोग कौन हैं और उसे उठाकर ज़बरदस्ती कहाँ ले जा रहे हैं. करीब 45 मिनिट बाद वो गाड़ी एक सुनसान घर के सामने रुकती हैं. फिर वो दोनो राधिका को गाड़ी से निकाल कर उसे वही सामने वाले घर में ले जाते हैं. राधिका के चेहरे पर डर सॉफ दिखाई दे रहा था. पता नहीं कौन हैं ये लोग और उसे ऐसे क्यों उठाकर लाए हैं. मगर राधिका के सारे सवालों का जवाब जल्दी ही उसे पता चलने वाला था.
थोड़ी देर के बाद वो राधिका को लेजा कर एक बड़े से हाल में बैठा देते हैं. और फिर दोनो उस कमरे को बंद करके वहाँ से बाहर निकल जाते हैं. करीब 10 मिनिट बाद फिर से उस कमरे का दरवाजा खुलता हैं और साथ में दो तीन कदमों की आहट भी सुनाई देती हैं. जैसे जैसे वो आहट की आवाज़ तेज़्ज़ होती जाती है वैसे वैसे राधिका के दिल में डर और चेहरे पर पसीने सॉफ दिखाई देने लगते हैं.
फिर पहला शख्स उसके पीछे आता हैं और उसके हाथों का रस्सी खोलता हैं. और फिर उसके आँखों पर लगा पट्टी भी हटा देता हैं. फिर वो उसके मूह पर रखा कपड़ा भी अलग कर देता हैं. जब राधिका अपनी आँख खोलती हैं और जब उसकी नज़र उस शख्स पर पड़ती हैं तो वो नफ़रत से उसे देखने लगती हैं. वो शख्स और कोई नहीं बल्कि बिहारी था.
राधिका- बिहारी मैं जानती थी कि तुम बहुत नीच हो. मगर तुम मुझे पाने के लिए ऐसी गिरी हुई हरकत भी करोगे ये मैने कभी सपने में भी नहीं सोचा था. शरम आती हैं मुझे तुम पर.
बिहारी- आभी पता चल जाएगा कि मैने तुझे ऐसे यहाँ पर क्यों बुलाया हैं. याद हैं मैने तुझे कहा था कि अभी तो मैने तुझे आधी पिक्चर दिखाई हैं आधी बाद में दिखाउन्गा. अब तुझे वो आधी पिक्चर दिखाने का वक़्त आ गया हैं........
राहुल अंदर आता हैं और अंदर का नज़ारा देखकर वो भी थितक जाता हैं. अंदर राधिका आभी भी फर्श पर बैठी हुई रो रही थी और कृष्णा और बिरजू चुप चाप वही खड़े थे. राहुल राधिका के नज़दीक जाकर उसे अपने मज़बूत हाथों से उसे सहारा देकर उठाता हैं और फिर उसके आँसू पोछता हैं.
राहुल- क्या बात हैं जान. आज तुम्हारे इन आँखों में आँसू. सब ठीक तो हैं ना. और तुम ऐसे क्यों रो रही हो.
राधिका- सब ख़तम हो गया राहुल. सब कुछ बर्बाद हो गया. और इतना कहकर राधिका राहुल के सीने से लिपटकर ज़ोर ज़ोर से रोने लगती हैं.
राहुल- क्या हुवा बताओ तो सही. मेरा दिल बैठा जा रहा हैं. मैं तुम्हारे इन आँखों में आँसू नहीं देख सकता.
राधिका अपने आँसू पोछते हुए- तुम जानना चाहते थे ना पार्वती के कातीलो के बारे में. वो देखो तुम्हारे सामने मौजूद हैं और राधिका अपने हाथों से अपने भैया और बापू की ओर इशारा करती हैं. राहुल के भी होश उड़ जाते हैं राधिका के मूह से ये सब सुनकर.
राधिका- और ये देखो सबूत फिर वो बॅग राहुल को थमा देती हैं जिसमें हथियार और नक़ाब थे और साथ में पैसे भी. राहुल एक एक कर सारे समान को देखने लगता हैं.
राहुल- ऐसा कैसे हो सकता हैं. भैया आप ऐसा कैसे कर सकते हैं. मुझे तो बिल्कुल भी विश्वास नहीं होता. फिर राधिका जो भी बात हुई थी सारी बातें वो राहुल को बता देती हैं.
राहुल- ये सब आप लोगों ने अच्छा नही किया. इतना भी नहीं सोचा की आपके ये सब करने के बाद राधिका का क्या होगा.
राहुल- तो ये सब बिहारी की चाल थी. साला बहुत बड़ा हरामी चीज़ हैं. लेकिन वो कब तक बचेगा मुझसे. मैं उसे नहीं छोड़ूँगा. ख़ान सबसे पहले उस आदमी का पता लगाओ जिसने कृष्णा और बिरजू काका को पैसे दिए थे. अगर वो आदमी मिल गया तो बिहारी कल जैल के सलखो के पीछे होगा. उसका हमारे हाथ लगना बहुत ज़रूरी हैं. फिर मज़बूरन राहुल कृष्णा और बिरजू के हाथों में हथकड़ी लगा देता हैं.
राहुल- मुझे अपना फ़र्ज़ तो निभाना पड़ेगा ना राधिका. चाहे इस राह में मेरा अपना ही क्यों ना आयें.
राधिका- मैं तुम्हें नहीं रोकूंगी राहुल. तुम अपना फ़र्ज़ पूरा करो. ये सज़ा के ही हक़दार हैं.
कृष्णा हाथ जोड़ कर राधिका के पास आता हैं- राधिका आखरी बार मुझे हंस कर विदा कर दे. मुझे अब किसी से कोई शिकायत नहीं हैं. तू जैसे रहना खुस रहना बस उपर वाले से यही दुवा करूँगा. और कृष्णा और उसके बापू फिर घर से बाहर निकल कर पोलीस की जीप में बैठ जाते हैं. और ख़ान उन्हें लेकर पोलीस थाने की ओर चल पड़ता हैं. बस कमरे में राधिका के सिसकने की आवाज़ें आ रही थी. आज वो बिल्कुल तन्हा हो गयी थी. हर रोज़ उसे अपने भाई के लौटने का इंतेज़ार रहता था मगर शायद अब ये इंतेज़ार आब यहीं ख़तम हो गया था. वो जानती थी कि उसके भैया और बापू कम से कम 10 साल के बाद ही जैल से छूटेंगे. राहुल फिर राधिका को अपने सीने से लगा लेता हैं और ना जाने राधिका कितनी देर तक राहुल के सीने से लिपटकर रोती रहती हैं.
राहुल- एक काम करो राधिका तुम मेरे साथ मेरे घर पर चलो. शायद तुम्हारा यहाँ मन नहीं लगेगा. और इस वक़्त तुम बिल्कुल अकेली हो. वहीं तुम रहना और वहाँ पर रामू काका तो हैं ही वो तुम्हारी देखभाल करेंगे.
राधिका- नहीं राहुल मैं ठीक हूँ. और बस 10 दिन की तो बात हैं. फिर हमारी शादी हो जाएगी तो मैं वैसे भी तुम्हारे साथ ही रहूंगी. और अगर मैं अभी तुम्हारे साथ रहूंगी तो ये दुनियावाले ना जाने क्या क्या कहेंगे.
राहुल- मुझे कोई फरक नहीं पड़ता. तुम बस मेरे साथ चलो. मैं तुम्हें ऐसे अकेला नहीं छोड़ सकता.
राधिका- मुझपर अगर कोई कीचड़ उछालेगा तो मैं बर्दास्त कर लूँगी मगर कोई तुमपर उंगली उठाएगा मैं ये नहीं से पाउन्गि. मुझे इस वक़्त अकेला रहना चाहती हूँ. प्लीज़ मुझे कुछ दिन अकेला छोड़ दो. राहुल भी कुछ कह नहीं पता और उसके माथे को चूम लेता हैं.
राहुल- ठीक हैं राधिका जैसी तुम्हारी मर्ज़ी मगर अपना ख्याल रखना तुम्हारी खुशी में ही मेरी खुशी हैं. मैं बराबर तुमसे मिलने आता रहूँगा. और इतना बोलकर राहुल भी पोलीस स्टेशन चला जाता हैं.
राधिका इस वक़्त चुप चाप अपने बिस्तेर पर पड़ी हुई थी. ऐसे ही बहुत देर तक वो इन्ही सब बातें को सोचती हैं फिर वो उठकर अपने भैया के कमरे में जाकर शराब की बॉटल लेकर आती हैं फिर पीने लगती हैं. ना जाने कितनी देर तक वो पीती रहती हैं और वहीं बिस्तेर पर सो जाती हैं. आब तो लगता था कि राधिका के गम का सहारा भी अब शराब मात्र थी. वो अपना गम भूलने के लिए शराब पी रही थी. दिन बा दिन उसके गम बढ़ते ही जा रहे थे.
ऐसे ही वक़्त बीतता जाता हैं. राधिका सुबेह शाम नशे ही हालत में बेसूध रहती थी. उसे तो किसी भी चीज़ का होश नहीं रहता था. जब ये बात निशा को पता लगती हैं तो उसे भी बड़ा झटका लगता हैं. वो भी राधिका को बहुत समझाती है मगर राधिका उसकी एक बात नहीं सुनती. शायद अब राधिका भी पूरी तरह से टूट चुकी थी. और अब उसे कहीं से कोई उमीद नज़र नहीं आ रही थी.
दो दिन बाद..........................
राधिका करीब 10 बजे अपने घर से कॉलेज के लिए निकलती हैं. आज उसके एग्ज़ॅम्स का टाइम टेबल मिलने वाला था. वो इसलिए घर से तैयार होकर निकली थी. मन तो उसे नहीं था मगर वो फिर भी कॉलेज जाती हैं. आज फिर वो उसी रास्ते से होकर जा रही थी जहाँ पर पार्वती का कतल हुआ था. जब वो उस जगह पहुचती हैं तब उसको उस दिन वाला सारी घटना उसके आँखों के सामने घूमने लगते हैं. फिर से उसकी आँखें नम हो जाती हैं मगर वो वहाँ रुकती नहीं और आगे बढ़ जाती हैं.
थोड़ा दूर जाने पर वो मुड़कर फिर से उसी जगह को देखने लगती हैं फिर वो आगे चलने लगती हैं. राधिका अभी कुछ 10 कदम ही चली थी कि उसके पीछे से एक स्कॉर्पियो कार तेज़ी से आती है. जब वो स्कॉर्पियो उसके नज़दीक आती हैं तभी उसके सामने आकर रुक जाती हैं. राधिका इसी पहले की कुछ समझती दो बदमाश स्कॉर्पियो में से तेज़ी से उतरते हैं और राधिका को उठाकर गाड़ी में डाल देते हैं. पहला बदमाश उसकी आँखों पर काली पट्टी बाँध देता हैं और दूसरा उसकी हाथों को पीछे करके उसे रस्सी से बाँध देता हैं. फिर एक कपड़ा उसके मूह में डाल कर उसके मूह को भी बंद कर देते हैं. और फिर तेज़ी से वो गाड़ी वहाँ से रवाना हो जाती हैं.
राधिका को कुछ समझ में नहीं आ रहा था की ये लोग कौन हैं और उसे उठाकर ज़बरदस्ती कहाँ ले जा रहे हैं. करीब 45 मिनिट बाद वो गाड़ी एक सुनसान घर के सामने रुकती हैं. फिर वो दोनो राधिका को गाड़ी से निकाल कर उसे वही सामने वाले घर में ले जाते हैं. राधिका के चेहरे पर डर सॉफ दिखाई दे रहा था. पता नहीं कौन हैं ये लोग और उसे ऐसे क्यों उठाकर लाए हैं. मगर राधिका के सारे सवालों का जवाब जल्दी ही उसे पता चलने वाला था.
थोड़ी देर के बाद वो राधिका को लेजा कर एक बड़े से हाल में बैठा देते हैं. और फिर दोनो उस कमरे को बंद करके वहाँ से बाहर निकल जाते हैं. करीब 10 मिनिट बाद फिर से उस कमरे का दरवाजा खुलता हैं और साथ में दो तीन कदमों की आहट भी सुनाई देती हैं. जैसे जैसे वो आहट की आवाज़ तेज़्ज़ होती जाती है वैसे वैसे राधिका के दिल में डर और चेहरे पर पसीने सॉफ दिखाई देने लगते हैं.
फिर पहला शख्स उसके पीछे आता हैं और उसके हाथों का रस्सी खोलता हैं. और फिर उसके आँखों पर लगा पट्टी भी हटा देता हैं. फिर वो उसके मूह पर रखा कपड़ा भी अलग कर देता हैं. जब राधिका अपनी आँख खोलती हैं और जब उसकी नज़र उस शख्स पर पड़ती हैं तो वो नफ़रत से उसे देखने लगती हैं. वो शख्स और कोई नहीं बल्कि बिहारी था.
राधिका- बिहारी मैं जानती थी कि तुम बहुत नीच हो. मगर तुम मुझे पाने के लिए ऐसी गिरी हुई हरकत भी करोगे ये मैने कभी सपने में भी नहीं सोचा था. शरम आती हैं मुझे तुम पर.
बिहारी- आभी पता चल जाएगा कि मैने तुझे ऐसे यहाँ पर क्यों बुलाया हैं. याद हैं मैने तुझे कहा था कि अभी तो मैने तुझे आधी पिक्चर दिखाई हैं आधी बाद में दिखाउन्गा. अब तुझे वो आधी पिक्चर दिखाने का वक़्त आ गया हैं........