hotaks444
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आज वो जिस अंदाज़ में फारिग हुई थी ऐसा वो कभी नहीं हुई थी. आज उसे मालूम हुआ कि जिस्म की आग इंसान को कितना मज़बूर और लाचार बना सकती हैं. आज भी पहले की तरह राधिका के आँखों में आँसू थे पछतावे के...... मगर आज राधिका खुद इतनी आगे बढ़ चुकी थी की उसका लौटना ना-मुमकिन था. और शायद उसको ये एहसास हो चुका था कि अब वो राहुल के लायक नहीं............बस ऐसे ही कई सारे ख्याल उसके मन में आते हैं मगर अब पछताने से भी क्या होने वाला था. थोड़ी देर के बाद बिहारी जग्गा और विजय फिर से राधिका के साथ चुदाई का खेल खेलते हैं और ऐसे ही ये सब मिलकर बारी बारी से राधिका की चूत गान्ड की रात भर चुदाई करते हैं. राधिका भी उन सब का पूरा साथ देती हैं और पूरा मज़ा लेती हैं. रात भर चुदाई के दौरान राधिका करीब तीन बार फारिग हुई थी.
करीब सुबेह के 5 बजे वो तीनों उठते हैं और वहाँ से अपने कपड़े पहन कर बाहर निकल जाते हैं. राधिका के जिस्म पर अब भी एक कपड़ा इस वक़्त मौजूद नहीं था. वो बिल्कुल नंगी हालत मे अभी भी वहीं बिस्तेर पर लेटी हुई थी. करीब 1 घंटे के बाद उसके कमरे का दरवाज़ा फिर से खुलता हैं और एक शक्श फिर से कमरे में अंदर दाखिल होता हैं. कदमों की आहट सुनकर राधिका की आँखें खुल जाती हैं और वो उस आने वाले शक्ष को बड़े गौर से देखने लगती हैं. थोड़ी देर के बाद वो सख्श अंदर आकर उसके सामने वहीं उसके पास खड़ा हो जाता हैं और बड़े गौर से राधिका को उपर से नीचे तक देखने लगता हैं. राधिका शरामकर अपनी नज़रें नीची कर लेती हैं मगर अपने जिस्म को छुपाने की कोशिश बिल्कुल नहीं करती. उसके हाथों में एक बड़ा सा शौल (चद्दर) था. राधिका बड़े गौर से उस सख्श को देखने लगती हैं. पता नहीं ये शख़्श आख़िर उससे क्या चाहता हैं ना ही उसने कुछ उससे कहा बस एक टक वो राधिका को बड़े गौर से देख रहा था. पता नहीं ये शख़्श उसके लिए मसीहा बनकर आया था या फिर एक दरिन्दा....ये तो आने वाला वक़्त बता सकता था .
राधिका के मन में अभी भी कई सारे सवाल उठ रहे थे कि आख़िर कौन हैं ये आदमी जो इस तरह आकर उसके सामने खड़ा है और क्या उसका भी यही मकसद हैं कि वो भी उसके जिस्म को भोगेगा.... ऐसे ही कई सारे सवाल राधिका के मन में घूम रहे थे. तभी सोच में डूबी राधिका के कानों में उस सख्श की आवाज़ गूँजती हैं जिसे सुनकर वो ख्यालों की दुनिया से बाहर आती हैं...वो शक्श और कोई नहीं बल्कि बिहारी का बहुत पुराना नौकर शंकर था. उसकी उमर करीब 60 साल के आस पास थी. सिर पर हल्के सफेद बाल और चेहरे पर हल्की सफेद दाढ़ी. वो बिहारी का बहुत ही ख़ास नौकर था..
शंकर- बेटी ऐसे क्या मुझे देख रही हो... मैं कोई तुम्हारा दुश्मन नहीं हूँ. ये लो शॉल और अपने नंगे बदन को इससे ढक लो. फिर शंकर वो शॉल राधिका को थमा देता हैं. राधिका एक टक शंकर को देखने लगती हैं फिर वो शॉल अपने जिस्म पर ओढ़ लेती हैं.
राधिका- कौन हैं आप और इस तरह से मेरे लिए इतनी हमदर्दी किस लिए और मैं तो आपको जानती भी नहीं???
शंकर वहीं राधिका के पास बिस्तेर पर बैठ जाता हैं और अपने हाथों से बड़े ही प्यार से राधिका के सिर पर फिराने लगता हैं- मुझे ग़लत मत समझना बेटी. मेरा नाम शंकर है और मैं बिहारी का पुराना नौकर हूँ. बरसो से यहाँ पर रहकर इस घर की सेवा की हैं. तुम मुझे नहीं जानती मगर मैं तुम्हें बहुत अच्छे से जानता हूँ. तुम्हारा नाम राधिका हैं ना....
राधिका सवाल भरे नज़रे से फिर से शंकर को देखने लगती हैं- क्या मैं पूछ सकती हूँ कि आप को मुझसे इतनी हमदर्दी क्यों हैं. अगर आपको मेरा जिस्म चाहिए तो आप बे-झीजक मुझसे कह सकते हैं. मैं आपको मना नहीं करूँगी जो आपका दिल करे मेरे साथ कर लीजिए. आख़िर अब मुझे क्या फ़र्क पड़ेगा चाहे एक के साथ सोयूँ या...... दस के साथ. अब तो मैं एक रंडी बन ही चुकी हूँ..मेरे माथे पर तो कलंक का टीका लग ही चुका हैं. थोड़ा सा और नीचे गिर जाने से मुझे अब कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा....चिंता मत करो काका आपकी जो इच्छा हो मुझे बता दो मैं उसे ज़रूर पूरा करूँगी....
करीब सुबेह के 5 बजे वो तीनों उठते हैं और वहाँ से अपने कपड़े पहन कर बाहर निकल जाते हैं. राधिका के जिस्म पर अब भी एक कपड़ा इस वक़्त मौजूद नहीं था. वो बिल्कुल नंगी हालत मे अभी भी वहीं बिस्तेर पर लेटी हुई थी. करीब 1 घंटे के बाद उसके कमरे का दरवाज़ा फिर से खुलता हैं और एक शक्श फिर से कमरे में अंदर दाखिल होता हैं. कदमों की आहट सुनकर राधिका की आँखें खुल जाती हैं और वो उस आने वाले शक्ष को बड़े गौर से देखने लगती हैं. थोड़ी देर के बाद वो सख्श अंदर आकर उसके सामने वहीं उसके पास खड़ा हो जाता हैं और बड़े गौर से राधिका को उपर से नीचे तक देखने लगता हैं. राधिका शरामकर अपनी नज़रें नीची कर लेती हैं मगर अपने जिस्म को छुपाने की कोशिश बिल्कुल नहीं करती. उसके हाथों में एक बड़ा सा शौल (चद्दर) था. राधिका बड़े गौर से उस सख्श को देखने लगती हैं. पता नहीं ये शख़्श आख़िर उससे क्या चाहता हैं ना ही उसने कुछ उससे कहा बस एक टक वो राधिका को बड़े गौर से देख रहा था. पता नहीं ये शख़्श उसके लिए मसीहा बनकर आया था या फिर एक दरिन्दा....ये तो आने वाला वक़्त बता सकता था .
राधिका के मन में अभी भी कई सारे सवाल उठ रहे थे कि आख़िर कौन हैं ये आदमी जो इस तरह आकर उसके सामने खड़ा है और क्या उसका भी यही मकसद हैं कि वो भी उसके जिस्म को भोगेगा.... ऐसे ही कई सारे सवाल राधिका के मन में घूम रहे थे. तभी सोच में डूबी राधिका के कानों में उस सख्श की आवाज़ गूँजती हैं जिसे सुनकर वो ख्यालों की दुनिया से बाहर आती हैं...वो शक्श और कोई नहीं बल्कि बिहारी का बहुत पुराना नौकर शंकर था. उसकी उमर करीब 60 साल के आस पास थी. सिर पर हल्के सफेद बाल और चेहरे पर हल्की सफेद दाढ़ी. वो बिहारी का बहुत ही ख़ास नौकर था..
शंकर- बेटी ऐसे क्या मुझे देख रही हो... मैं कोई तुम्हारा दुश्मन नहीं हूँ. ये लो शॉल और अपने नंगे बदन को इससे ढक लो. फिर शंकर वो शॉल राधिका को थमा देता हैं. राधिका एक टक शंकर को देखने लगती हैं फिर वो शॉल अपने जिस्म पर ओढ़ लेती हैं.
राधिका- कौन हैं आप और इस तरह से मेरे लिए इतनी हमदर्दी किस लिए और मैं तो आपको जानती भी नहीं???
शंकर वहीं राधिका के पास बिस्तेर पर बैठ जाता हैं और अपने हाथों से बड़े ही प्यार से राधिका के सिर पर फिराने लगता हैं- मुझे ग़लत मत समझना बेटी. मेरा नाम शंकर है और मैं बिहारी का पुराना नौकर हूँ. बरसो से यहाँ पर रहकर इस घर की सेवा की हैं. तुम मुझे नहीं जानती मगर मैं तुम्हें बहुत अच्छे से जानता हूँ. तुम्हारा नाम राधिका हैं ना....
राधिका सवाल भरे नज़रे से फिर से शंकर को देखने लगती हैं- क्या मैं पूछ सकती हूँ कि आप को मुझसे इतनी हमदर्दी क्यों हैं. अगर आपको मेरा जिस्म चाहिए तो आप बे-झीजक मुझसे कह सकते हैं. मैं आपको मना नहीं करूँगी जो आपका दिल करे मेरे साथ कर लीजिए. आख़िर अब मुझे क्या फ़र्क पड़ेगा चाहे एक के साथ सोयूँ या...... दस के साथ. अब तो मैं एक रंडी बन ही चुकी हूँ..मेरे माथे पर तो कलंक का टीका लग ही चुका हैं. थोड़ा सा और नीचे गिर जाने से मुझे अब कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा....चिंता मत करो काका आपकी जो इच्छा हो मुझे बता दो मैं उसे ज़रूर पूरा करूँगी....