desiaks
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फिर बहुत हैरात से देखते हुए, नेहा तकरीबन चिल्लाते हुए बोली- “अरे बाप रे... मैंने आज तक इतना मोटा वाला कभी नहीं देखी है, इतना बड़ा, इतना लंबा और मोटा। यह क्या है यह मेरे अंदर नहीं जा सकता है। ना बाबा ना.." और नेहा प्रवींद्र की ओर देखते हुए उसको इशारे से शीक का लण्ड दिखाती है।, जो मोटा और लंबा था, कुछ हद से ज्यादा ही बड़ा था।
नेहा के जिश्म में एक सिरहन सी हुई और उसने लण्ड को दिलचस्पी से देखा, फिर अपने हथेली में लिया और उसके ऊपरी हिस्से पर अपनी उंगलियों को फेरते हुए पूछा- “यह ऐसा क्यों है ऊपर, दूसरे लोगों की तरह क्यों नहीं है?" ये सवाल नेहा ने शीक से किया। फिर प्रवींद्र को सवालिया नजरों से देखा, शीक के लण्ड को उससे दिखाते हुए।
शीक ने जवाब दिया- “मेरी जान, यह ऊपर का हिस्सा इसलिए ऐसा है क्योंकी इसका छिलका क सरकमसाइज्ड है..."
नेहा नहीं समझ रही थी तब शीक ने नेहा से रूपचंद की अंडरवेर उतारने को कहा, तब वो उसको समझा पाएगा। जब रूपचंद का लण्ड सामने आया जो एवरेज साइज का था। तब शीक ने रूपचंद से अपने लण्ड को थामने को कहा ताकी उसके लण्ड की आगे की चमड़ी दिखाई दे। तब नेहा को शीक ने समझाया कि जो आगे की चमड़ी रूपचंद के लण्ड के ऊपरी हिस्से पर है वो आके की चमड़ी उसके लण्ड से हटायी गया है इसीलिए उसका लण्ड वैसा है।
तब नेहा ने पूछा- वैसा क्यों है?
शीक ने बताया की वो हाइजेनिक है और उसका धार्मिक संस्कार भी।
नेहा शीक के लण्ड से मजा ले रही थी, उसको जैसे एक खिलोना मिल गया हो उस वक्त। तब तक रूपचंद ने अपने लण्ड को नेहा के मुँह के पास किया और बिना झिझक के नेहा ने उसे अपने मुँह में ले लिए, उसी समय वो शीक का लण्ड हाथ में लिए हुई थी। नेहा बिस्तर पर घुटनों के बल पर आई और दोनों मर्दो को अपने सामने किया और एक-एक हाथ में एक-एक लण्ड को थामा फिर एक-एक करके बारी-बारी दोनों लण्ड को चूसने लगी। शीक का लण्ड मुँह में लेते वक्त उसको अपने मुँह को और खोलना पड़ता था। वो शीक के चेहरे में देखती तो कभी रूपचंद के चेहरे में फिर प्रवींद्र को देखती चूसते वक्त।
प्रवींद्र को बड़ा मजा आ रहा था देखते हए कि किस अदा से नेहा दोनों लण्डों को आराम से संभाल रही थी, जैसे उसके लिए एक मामूली बात हो। नेहा शिकायत कर रही थी शीक से कि उसका मुँह दुख रहा था उसको चूसने से क्योंकी उसका बहुत ज्यादा बड़ा है, मुँह को बहुत ज्यादा बड़ा खोलना पड़ रहा था। शीक एक शैतानी मुश्कुराहट के साथ नेहा के सर को पकड़कर अपने लण्ड को और भी ज्यादा ठूससने की कोशिश करता जा रहा था नेहा के मुँह में, मगर नेहा नहीं ले पा रही थी। फिर भी नेहा ने दोनों मर्दो को बारी-बारी चूसा और दोनों खुश थे।
नेहा ने एक-दो बार प्रवींद्र को भी इशारे से बुलाया उसको भी चूसने के लिए।
मगर प्रवींद्र ने कहा कि वो बस देखेगा वहीं बैठकर और नेहा को जारी रखने को कहा। उस वक्त नेहा को देखते हए प्रवींद्र भी अपने लण्ड को हाथ में थामे हए था। लण्ड को मूठ मारने की तरह हथेली से रगड़े जा रहा था, अपनी जवान भाभी को दो गैर मर्दो के लण्ड चूसते हुए देखकर।
शीक एक हाथ से नेहा की गाण्ड सहला रहा था जिस वक़्त वो उसको चूस रही थी, जो नेहा को अच्छा लग रहा था। रूपचंद की उंगलियां नेहा की चूत से भीग रही थीं और वो अपने दूसरे हाथ से उसकी चूचियों को मसल रहा था।
नेहा के जिश्म में एक सिरहन सी हुई और उसने लण्ड को दिलचस्पी से देखा, फिर अपने हथेली में लिया और उसके ऊपरी हिस्से पर अपनी उंगलियों को फेरते हुए पूछा- “यह ऐसा क्यों है ऊपर, दूसरे लोगों की तरह क्यों नहीं है?" ये सवाल नेहा ने शीक से किया। फिर प्रवींद्र को सवालिया नजरों से देखा, शीक के लण्ड को उससे दिखाते हुए।
शीक ने जवाब दिया- “मेरी जान, यह ऊपर का हिस्सा इसलिए ऐसा है क्योंकी इसका छिलका क सरकमसाइज्ड है..."
नेहा नहीं समझ रही थी तब शीक ने नेहा से रूपचंद की अंडरवेर उतारने को कहा, तब वो उसको समझा पाएगा। जब रूपचंद का लण्ड सामने आया जो एवरेज साइज का था। तब शीक ने रूपचंद से अपने लण्ड को थामने को कहा ताकी उसके लण्ड की आगे की चमड़ी दिखाई दे। तब नेहा को शीक ने समझाया कि जो आगे की चमड़ी रूपचंद के लण्ड के ऊपरी हिस्से पर है वो आके की चमड़ी उसके लण्ड से हटायी गया है इसीलिए उसका लण्ड वैसा है।
तब नेहा ने पूछा- वैसा क्यों है?
शीक ने बताया की वो हाइजेनिक है और उसका धार्मिक संस्कार भी।
नेहा शीक के लण्ड से मजा ले रही थी, उसको जैसे एक खिलोना मिल गया हो उस वक्त। तब तक रूपचंद ने अपने लण्ड को नेहा के मुँह के पास किया और बिना झिझक के नेहा ने उसे अपने मुँह में ले लिए, उसी समय वो शीक का लण्ड हाथ में लिए हुई थी। नेहा बिस्तर पर घुटनों के बल पर आई और दोनों मर्दो को अपने सामने किया और एक-एक हाथ में एक-एक लण्ड को थामा फिर एक-एक करके बारी-बारी दोनों लण्ड को चूसने लगी। शीक का लण्ड मुँह में लेते वक्त उसको अपने मुँह को और खोलना पड़ता था। वो शीक के चेहरे में देखती तो कभी रूपचंद के चेहरे में फिर प्रवींद्र को देखती चूसते वक्त।
प्रवींद्र को बड़ा मजा आ रहा था देखते हए कि किस अदा से नेहा दोनों लण्डों को आराम से संभाल रही थी, जैसे उसके लिए एक मामूली बात हो। नेहा शिकायत कर रही थी शीक से कि उसका मुँह दुख रहा था उसको चूसने से क्योंकी उसका बहुत ज्यादा बड़ा है, मुँह को बहुत ज्यादा बड़ा खोलना पड़ रहा था। शीक एक शैतानी मुश्कुराहट के साथ नेहा के सर को पकड़कर अपने लण्ड को और भी ज्यादा ठूससने की कोशिश करता जा रहा था नेहा के मुँह में, मगर नेहा नहीं ले पा रही थी। फिर भी नेहा ने दोनों मर्दो को बारी-बारी चूसा और दोनों खुश थे।
नेहा ने एक-दो बार प्रवींद्र को भी इशारे से बुलाया उसको भी चूसने के लिए।
मगर प्रवींद्र ने कहा कि वो बस देखेगा वहीं बैठकर और नेहा को जारी रखने को कहा। उस वक्त नेहा को देखते हए प्रवींद्र भी अपने लण्ड को हाथ में थामे हए था। लण्ड को मूठ मारने की तरह हथेली से रगड़े जा रहा था, अपनी जवान भाभी को दो गैर मर्दो के लण्ड चूसते हुए देखकर।
शीक एक हाथ से नेहा की गाण्ड सहला रहा था जिस वक़्त वो उसको चूस रही थी, जो नेहा को अच्छा लग रहा था। रूपचंद की उंगलियां नेहा की चूत से भीग रही थीं और वो अपने दूसरे हाथ से उसकी चूचियों को मसल रहा था।