Maa ki Chudai माँ का दुलारा - Page 2 - SexBaba
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Maa ki Chudai माँ का दुलारा

माँ का दुलारा पार्ट--7 

गतान्क से आगे...............

"कर क्या करना है, तू मानेगा थोड़े, पर देख हाँ, तूने प्रामिस किया है" मोम की पैंटी निकालकर मैं उसकी चूत की पूजा मे लग गया. मोम बिलकुल गरमाई हुई थी, पाँच मिनिट मे ढेर हो गयी. मेरा सिर पकड़कर अपनी चूत पर दबाते हुए बोली "मैं मर गयी अनिल बेटे, बहुत अच्छा लग रहा है, तेरी जीभ तो जादू कर देती है मुझपर" मैंने मोम की जांघों से सिर उठाकर पूछा

"माँ, सच बताओ, सुबहा से तुम्हे चुदासि लगी है ना?"

"हाँ बेटे, तूने तो जादू कर दिया है मुझ पर, तेरी इस जवानी से दूर नही रहा जाता मुझसे, पर क्या करूँ, तेरी तबीयत का भी देखना है" मोम अपनी जांघों मे मुझे क़ैद करते हुए बोली.

"माँ, तुम मज़ा लो, मैं बस तुम्हारी बुर का रस चुसूँगा. मैंने सुना है औरते चाहे जितनी बार झाड़. सकती हैं, तो मेरे कारण तुम क्यों प्यासी रहो, ठीक नही है ये" मैंने फिर मोम की चूत मे जीभ डालते हुए कहा. मोम भी अब मूड मे आ गयी थी. उसने अपनी साड़ी नीचे की और मुझे उसके अंदर छुपा लिया. फिर मेरा सिर पकड़कर अपनी बुर पर कस कर दबाया और जांघों मे मेरे सिर को कैंची जैसा पकड़कर टांगे हिला हिला कर मेरे मुँहा पर हस्तमैथुन करने लगी.

जब मैं आधे घंटे बाद उठा तो मन भर कर मोम की बुर का पानी पी चुका था. मोम एकदमा तृपता हो गयी थी, सोफे मे पीछे लुढ़क गयी थी. मुझे खींच कर पास बिठाते हुए मुझे आलिंगन मे लेकर बोली

"अनिल, तूने मुझे जो सुख दिया है, उसकी मैं कभी कल्पना भी नही कर सकती थी." मेरे तन्नाए लंड को पैंट के उपर से टटोल कर वह बोली "अरे, यहा बेचारा तडप रहा है. बेटे, अभी चोदेगा मुझे? तेरी यहा प्यास मुझसे देखी नही जाती"

"नही माँ, रात को आरामा से बुझावँगा" मैंने कहा. मोम बहुत खुश थी

"आज रात जैसे चाहेगा मैं वैसे तुझे खुश करूँगी मेरे लाल" मेरे दिमाग़ मे एक ही बात घुम रही थी. मोम की गोद मे सिर छपाकर मैंने कहा

"माँ, आज ..."

"बोल ना रुक क्यों गया?"

"माँ, आज ...." उसके नितंबों पर हाथ रखकर मैंने कहा "आज पीछे से करने दो ना प्लीज़"

"अरे कल तो किया था पीछे से मुझे घोड़ी बनाकर" मोम ने कहा.

"हाँ माँ, वैसे ही पर तुम्हारी चूत मे नहीं, यहाँ पर.." मैंने उसके नितंबों के बीच उंगली जमा कर कहा.

"बदमाश, सीधे कहा ना मेरी गांद मारना चाहता है. क्या लड़का है! अभी बित्ते भर का है, अभी अभी जवान हुआ है, दो दिन हुए अपनी मोम को चोद कर और अब चला है उसकी गांद मारने. मैं नही मारने दूँगी जा, मुझे दुखेगा" मोम आज कितने कामुक मूड मे थी यहा उसके इन शब्दों के प्रयोग से सॉफ था. उसने मना ज़रूर किया था पर उसके लहजे मे डाँट नहीं, एक खिलाड़ीपन की भावना थी. याने शायद मान जाए, मैंने यह समझ लिया.

मोम को मनाने मे घंटा लग गया. वह खाना बना रही थी तब भी मैं उससे लिपट कर बार बार उससे इसी बात की मिन्नत कर रहा था. वह बस मंद मंद मुस्करा रही थी. उसे मेरे मनाने मे बहुत मज़ा आ रहा था. आख़िर तक उसने हाँ नही बोला पर जिस तरह से वह मेरी ओर देख रही थी, मैं समझ गया की मैंने बाजी मार ली है.

रात को बेडरूम मे मोम के आने के पहले मैं कपड़े निकाल कर तैयार हो गया. पलंग पर नंगा पड़ा मोम का इंतजार करता रहा. वेसलिन की शीशी मैंने पहले ही पलंग के पास के टेबल पर रख दी थी.

जब घर के सब लाइट बुझा कर मोम आई तो एकदम नंगी थी. बाथरुम मे ही कपड़े उतार कर आई थी. पूरा नग्न चलते हुए मैंने उसे पहली बार देखा था. उसके गुदाज स्तन चलते समाया डोल रहे थे. वह दरवाजा लगाने को मूडी तो मैं उसके नितंबों को देखता रह गया. उनके भी ठीक से पूरे दर्शन मुझे आज ही हुए थे. एकदमा मोटे भारी भरकम थोड़े लटके नितंब थे उसके, गोरे गोरे, मैदे के दो विशाल गोलों के समान. आज मुझे उनमे जन्नत मिलने वाली थी.

मैं पूरा गरमा हो चुका था, मोम पर कब चॅढू ऐसा मुझे हो गया था. मोम आक़र मेरे पास बैठी. उसने नई स्लीपर पहनी हुई थीं. मेरा खड़ा लंड देखकर बोली

"एकदमा तैयार लगता है मेरा बेटा मेरी सेवा करने के लिए. चल, तू लेटा रहा, मैं तुझे चोदति हू" मैं घबराकर बोला

"माँ, ऐसा जुल्म ना करो, तुमने वायदा किया है कि आज मुझसे गांद मरवाओगि."

"मैंने कब ऐसा कहा" मोम मुझे चिढ़ाते हुए बोली. उसने झुक कर अपने पैरों मे की चप्पले निकाल लीं. फिर मेरे लंड को उनके दो नरम नरम पाटों मे रखकर बेलने लगी. मैं पागल सा हो गया. लगता था कि अभी झाड़. जवँगा. मेरी मोम खुद मुझे अपनी चप्पालों से रिझा रही थी.

"ममी, मई झाड़. जाउम्गा! प्लीज़ मत करो, आज एक ही बार झड़ना है मुझे, मुझे अपनी गांद मारने दो ना" मैं गिड-गिदाने लगा. मोम दुष्टता से बोली 
 
"अच्छा है झाड़. जाएगा. कम से कम मेरी गांद तो बच जाएगी. मैं नही मराती बाबा" मेरी हालत खराब थी. झाड़. ना जाउ इसलिए मैं पलंग से उठ कर भागा और दूर खड़ा हो गया. किसी तरह सनसनाते लंड पर काबू किया. मोम मेरा हाल देखकर पासीज गयी. पलंग पर लेटते हुए बोली "मैं मज़ाक कर रही थी मेरे लाल, देख रही थी कि चप्पालों का तुझ पर क्या असर होता है, तू सच मे इनका शौकीन है. आ कर ले तुझे जो करना है. तेरा यह मूसल मेरी फाड़. देगा शायद पर तेरी खुशी के लिए मैं यह दर्द भी सह लूँगी." मैंने मोम के पास जाकर उसकी बुर का चुंबन लेते हुए कहा.

"नही माँ, मैं कम से कम दर्द होने दूँगा तुझे. बहुत प्यार से लूँगा तेरी. अब पलट कर लेट जाओ" मोम पेट के बल लेट गयी.

"ले मार" उसके फूले विशाल नितंबों को हाथों से सहलाकार मैं बोला

"पहले इन्हे प्यार तो कर लेने दो माँ, कब से तरस रहा हू इनके लिए" और मैं मोम के नितंबों पर भूखे की तरह टूट पड़ा. अगले पाँच मिनिट मेरे लिए ऐसे थे जैसे भूखे के आगे दावत रख दी गयी हो. मैंने मोम के नितंब चाते, उन्हे खूब चूमा, हल्के हल्के दाँत से काटा और फिर उन्हे अलग करके देखने लगा. बीच का भूरा सकरा छेद मुझे आमंत्रित कर रहा था. मैंने उसे चूमना शुरू कर दिया. जीभ बाहर निकालकर उसे लगाई. मोम बिचक गयी.

"अरे क्या कर रहा है? पागल तो नही है, कहाँ मुँहा लगा रहा है." मैंने मोम का गुदा चूमते हुए कहा

"तुम नही समझोगी माँ, मेरे लिए यहा जन्नत का दरवाजा है" मोम भी अब गरमा गयी थी. नीचे से खुद ही अपनी उंगली से अपनी चूत को रगड़. रही थी.

"अनिल जल्दी कर ना, फिर मैं करती हू मुझे जो करना है"

"माँ, चलो घोड़ी बन जाओ कल जैसी, पर पलंग के छ्होर पर" मेरी बात मान कर मोम घोड़ी बन गयी. पीछे से अब उसकी चूत और गांद का छेद दोनों दिख रहे थे. चूत मे से पानी बह रहा था. पहले मैंने उसके नितंब पकड़.आकर उसकी बुर को चाटना शुरू कर दिया. जब वह और गरम हो गयी और अपने कूल्हे हिलाने लगी तब मैंने वेसलिन की शीशी उठाकर अपने लंड मे खूब सा वेसलिन चुपद. लिया. फिर उंगली पर थोड़ा लेकर मों के गुदा मे उंगली डाल दी. क्या कसा था मोम का छेद!

"उई मों , धीरे से रे" मोम बोली. मैं हँसने लगा

"माँ, अभी तो एक उंगली डाली है, फिर दो डालूँगा और फिर लंड दूँगा अंदर. तू सच मे टाइत है, कुँवारी कन्या जैसी"

"चल बाते ना बना, जल्दी कर" मोम ने परेशान होकर कहा. मैंने एक उंगली अंदर बाहर करके ठीक से अंदर तक वेसलिन चुपद. दिया. फिर दो उंगली मे लेकर वैसा ही किया. इस बार मोम को ज़्यादा दर्द हुआ पर वह बस सिसक कर फिर चुप हो गयी. इस बार मैंने खूब देर मोम की गांद मे दो उंगलियाँ की कि उसे आदत हो जाए.

आख़िर उंगलियाँ निकालकर मैं उसके पीछे खड़ा हो गया. उसके नितंब एक हाथ से पकड़कर दूसरे से सुपाड़ा उसके गुदा पर जमाया

"तैयार हो जा माँ, मैं अंदर आ रहा हम तेरे पीछे के दरवाजे से." मैंने लंड अंदर पेलना शुरू किया. मों ने गांद सिकोडी हुई थी इसलिए अंदर नही जा रहा था. "माँ, ज़रा ढीला छोड़ो ना, रिलैक्स करो"

"ठीक है अनिल, पर तेरी दो उंगली अंदर जाती है तो दर्द होता है, तेरा ये मूसल जाएगा तो क्या होगा" मोम ने चिंतित स्वर मे पूछा.

"मूसल कहाँ है माँ, बिलकुल छोटा है, लोगों के तो कितने बड़े होते हैं, दस दस इंच के" मैने मन ही मन खुश होते हुए कहा. मुझे हमेशा लगता था कि मेरा लंड और थोड़ा बड़ा होता तो मज़ा आता. पर मोम को मेरा लंड बड़ा लगता था यह सुनकर बहुत अच्छा लगा.

मों ने एक साँस ली और अपना गुदा थोड़ा ढीला किया. मैंने तुरंत सुपाड़ा मोम की गांद के छल्ले के अंदर कर दिया. मोम का शरीर कड़ा हो गया और उसके मुँहा से एक हल्की चीख निकल गयी. मैंने लंड पेलना बंद कर दिया. मोम को पूछा

"माँ, बहुत दुख रहा है क्या? निकाल लूँ बाहर"

"नही बेटे, अभी मैं ठीक हो जवँगी. बस एक मिनिट रुक जा" कुछ देर बाद मैंने महसूस किया कि मों के गुदा का छल्ला थोड़ा ढीला हो गया है. उसका शरीर जो तन सा गया था, थोड़ा रिलैक्स हो गया. मैंने फिर लंड पेलना शुरू किया. मोम बीच मे सीत्कार उठती "अनिल, बहुत दुखाता है रे" तब मैं रुक जाता. पर मोम ने मुझे यह नही कहा कि बेटे निकाल लो, मैं नही मरा सकती.

क्या आनंद था, क्या सुख था, मोम की मुलायामा गांद मे जैसे मेरा लंड अंदर धँसाता गया, मुझे ऐसे लगाने लगा कि घच्च से एक बार पेल दूं और ज़ोर से चोद डालूं. पर मैंने खुद पर पूरा नियंत्रणा रखा, आख़िर मेरी प्यारी मोम थी, कोई चुदैल रंडी नहीं. और मोम ने मेरी खुशी के लिए इस दर्द को भी हँसते हँसते स्वीकार कर लिया था तो मेरा भी फ़र्ज़ था कि मैं उसे तकलीफ़ ना होने दूं.

आख़िर मेरा लंड जड़. तक मोम के नितंबों के बीच समा गया और मेरा पेट उनसे सॅट गया. मैं एक मिनिट बस खड़ा रहा. अपने हाथों से मोम की पीठ और नितंब प्यार से सहलाता रहा. आख़िर मोम बोली

क्रमशः.................
 
माँ का दुलारा पार्ट--8 

गतान्क से आगे...............

"अब ठीक है राजा. अब दर्द कम है. मुझे लग रहा था जैसे मेरी फट ही जाएगी."

"माँ, अब गांद मारूं?" मैंने उत्सुकता से पूछा.

"मार बेटे पर धीरे धीरे, आज पहली बार है, तू चोदते समाया जैसे धक्के लगाता है, वो मैं सहा नही पाउन्गि." मैंने मोम के कूल्हे पकड़कर धीरे धीरे उसकी गांद मारना शुरू कर दिया. मज़ा आ गया. उसकी मखमली म्यान मुझे ऐसे पकड़े थी जैसे किसीने मुठ्ठी मे मेरे लंड को पकड़. लिया हो. वेसेलीन के कारण लंड फिसल भी बहुत अच्छा रहा था. धीरे धीरे मेरी लय बँध गयी. आँखे बंद करके मैं इस स्वर्गिक सुख का आनंद लेने लगा पर ज़्यादा देर नहीं! तिलमिला के झाड़. गया. झदाने के बाद मोम बोली

"अच्छा लगा अनिल? मज़ा आया जैसा तू सोचता था?"

"माँ, तुमने तो मुझे अपना गुलामा बना लिया. बहुत मज़ा आया मामी, थैंक्स" हाफते हुए मैं बोला. जब झड़ना बंद हुआ तो मैं लंड बाहर निकालने लगा.

"अरे रहने दे ना, क्यों निकालता है, इतनी मुश्किल से डाला है, आ मेरे उपर लेट जा" कहकर मोम ओन्धे मुँहा बिस्तर पर लेट गयी. मैं भी उसके साथ सरकता हुआ उसके उपर लेट गया. मेरा झाड़ा लंड अब भी मोम की गांद मे फँसा था.

मैं मोम के बाल और गर्दन चूमता हुआ उसके मम्मे दबाने लगा. मोम के गुदाज शरीर पर लेटने का मज़ा ही अलग था.

"मोम मेरा फिर खड़ा हो जाएगा" मैंने उसे चेतावनी दी. "फिर निकालने मे मुश्किल होगी, सुपाड़ा फँसेगा अंदर"

"मैंने कब निकालने को कहा बेटे ऐसे में" मोम ने सिर घुमाकर मुझे चुम्मा देते हुए कहा. मैंने बड़ी आशा से पूछा

"याने माँ, मैं फिर से ..."

"हाँ. एक बार और मार ले मेरी. तुझे इतना अच्छा लगता है, अभी जल्दी मे ठीक से कर भी नही पाया मेरे लाल. अभी मुझे भी ठीक लग रहा है, दर्द नही है" मैं खुशी से मोम के बाल और पीठ चूमने लगा. उसके निपल कड़े थे, वह मस्ती मे थी. खुद ही अपनी एक हाथ अपनी जांघों के बीच चला रही थी. मेरा लंड अब फिर सिर उठाने लगा था और धीरे धीरे मोम के चुतदो की गहराई मे उतार रहा था.

"मोम अब इस बार घंटे भर तक तेरी मारूँगा" मेरी इस बात पर मोम बोली

"मार, दो घंटे मार, पर फिर मेरी बारी है, तुझसे पूरा हिसाब लूँगी" उसके स्वर मे गजब की खुमारी थी.

"तुम कुछ भी करवा लो माँ, मैं तैयार हू" कहकर मैंने मोम की गांद मारना शुरू कर दी. उसके स्तन पकड़े हुए उन्हे दबाते हुए, मोम की पीठ चूमते हुए, बीच मे उसके मुँह को अपनी ओर मोड़. कर उसके चुममे लेते हुए मैंने मज़े ले ले कर मोम की गांद मारी. अब वह मेरे लंड की आदि हो गयी थी इसलिए मस्त लंड फिसल रहा था. हाँ मोम बीच बीच मे मुझे तड़पाने को अपनी गांद सिकोड. लेती तो मेरी स्पीड कुछ कम हो जाती. मैं अब भी पूरे धक्के नही लगा रहा था, आज पहली बार मोम को इतनी तकलीफ़ देना ठीक नही था. हाँ मन ही मन सोच रहा था कि अगली बार से मोम की गांद ऐसे हचक हचक के चोदुन्गा की वह भी क्या याद करेगी. पूरा लंड बाहर निकाल निकाल कर अंदर तक पेलुँगा.

इस बार मुझे पूरा मज़ा मिला, मन भर कर मोम की मखमली नली को मैंने चोदा. मोम गरम होकर अपनी चूत मे खुद उंगली कर रही थी

"अनिल राजा, कितना पानी बह रहा है देख, जब तेरा हो जाएगा तो तुझे पिलावँगी. घंटे भर चुसववँगी तुझसे, बहुत नोचा है तूने मुझे आज" मोम की इस बात पर मैंने उत्तेजित होकर फिर सात आठ धक्के लगाए और झाड़. गया. मोम के उपर से उतर कर मैं बाजू मे हुआ. मोम की गांद का छेद अब खुल सा गया था, अंदर की गुलाबी नली दिख रही थी. मोम तुरंत पलट कर उठ बैठी और मुझे नीचे सुला कर मेरी छाती के दोनों ओर घुटने जमा कर तैयार हो गयी.

"दो तकिये ले ले और नीचे सरक" उसने आदेश दिया. फिर आगे सरक कर अपनी बुर मेरे मुँह पर रखकर बैठ गयी. उसकी बुर से ढेर सारा पानी बह रहा था. मैंने चुपचाप उसे चाटना शुरू कर दिया. मोम मेरा सिर पकड़कर अपनी बुर पर दबाते हुए मुझपर चढ़. बैठी और अपनी जांघों मे मेरे सिर को जकाड़कर हचक हचक कर मेरा मुँह चोदने लगी.

मोम ने उस रात सच मे घंटे भर मुझसे बुर चुसवाई. उसकी वासना शांत ही नही होती थी. जब मेरे मुँहा को चोदते हुए थक गयी तो बिस्तर पर अपनी बगल पर लेट गयी और मेरा सिर अपनी जांघों मे भर कर धक्के मारने लगी. मेरे सिर को वह ऐसे कस कर अपनी जांघों मे पकड़े थी जैसे उसे कुचल देना चाहती हो. मुझे कुछ दुख भी पर उन मदमाती जांघों मे गिरफ्तारी का मज़ा उस दर्द से ज़्यादा था. जब हम सोए तो बिलकुल निढाल हो गये थे. मोम ने सोने के पहले मुझे कहा

"रोज ज़िद मत करना अनिल बेटे, हफ्ते मे एक बार ठीक है तेरा यह गांद मारना, उससे ज़्यादा नही मारने दूँगी" मैं असल मे रोज मारने के ख्वाब देख रहा था पर जब उसने कहा कि काफ़ी दुखाता है तो मैं चुप रहा. मेरे लिए यही बहुत था किवाह बीच बीच मे गांद मरवाने को तैयार थी.

अगले दिन से मोम का ऑफीस शुरू हो गया. दो दिन की धुआँधार चुदाइ के बाद मेरा और मोम का संभोग अब एक अधिक संयम रूप मे चलने लगा. मोम जल्दी वापस आने की कोशिश करती थी पर अक्सर लेट हो जाती थी. थक भी जाती थी इसलिए रोज मैं उसे बस एक बार चोदता. अगर एकाध दिन्वह जल्दी वापस आती तोवह कुछ देर सो लेती थी और फिर रात को उसकी वासना ऐसी निखरती कि उसे शांत करने को मुझे अपना पूरा ज़ोर लगाना पड़ता था. अब मैने दोपहर के अपने खेल भी बंद कर दिए थे. मेरा सारा जोश अब मोम के लिए मैं बचा कर रखता था. मोम के घर आते ही पहला काम मैं यह करता कि जब तकवह कपड़े बदलती, मैं उसकी कांखे चाट लेता. उसे चूम कर उसके गाल और माथे पर आए पसीने को सॉफ कर देता.

रविवार को हमारी रति पूरे ज़ोर मे चलती. हफ्ते भर का संयम उस दिन हम ताक पर रख देते. हम साथ साथ नहाते और तभी से शुरू हो जाते. दोपहर को भी रति पूरे निखार मे होती. एक बार वायदे के अनुसार रविवार रात मोम मुझे अपनी गांद मारने देती. उस मौके की मैं हफ्ते भर राह देखता था. रविवार शाम को हम घूमने जाते थे, शॉपिंग करते थे. मोम ने एक दिन कुछ और ब्रा और पॅंटी भी खरीदी. मुझेवह साथ ले गयी और मेरी पसंद की ली. मुझे थोड़ी शरम लग रही थी, वाहा की सेल्स गर्ल के साथ तरह तरह की ब्रा देखने मे बड़ा अटपटा लग रहा था. दुकान मे बस औरते ही थी. पर मोम ने कोई परवाह नही की, मुझे दिखाकर मेरी पसंद पूछकर दो ब्रा और पॅंटी ली. मैं बाहर आकर बोला तो हँसने लगी.

"यहा कौन हमे पहचानता है!" मोम मे जो बदलाव आया था उसकी मैं पहले कभी कल्पना भी नही कर सकता था. अपने जवान किशोर बेटे के साथ संभोग ने उसकी वासना को निखार दिया था. इतने सालों की भुख्वह मानो एक दिन मे बुझा लेना चाहती थी. मुझपर तो अब्वह इतना प्यार करती कि हद नही. एक मोम की तरह मेरे खाने पीने कपड़ों और सेहत का ख़याल करती, सुबह जल्दी उठाकर खाना बना कर जाती कि मुझे बाहर ना खाना पड़े. फिर प्रेयसी के रूप मे मुझसे इतना अभिसार करती जैसी कोई नववधू भी अपने पति के साथ नही करती होगी.
 
मोम ने मेरी हर कमज़ोरी अच्छी तरह से भाँप ली थी और वह बड़ी चालाकी से उनका उपयोग करने लगी थी. मुझे उत्तेजित करती और अपना काम निकाल लेती. उदाहरण एक रात वह ज़रा ज़्यादा ही गरमा गयी थी. मैंने उसके चूत चॅटी और फिर दो बार उसे कस कर चोदा. फिर भी उसका मन नही भरा था.

मैं पलंग पर लास्ट पड़ा था. लंड फिर से खड़ा होने का कोई चांस नही था. मोम मेरे पास लेटकर मुझे चूमते हुए, मेरे मुँह मे अपनी चुचि देते हुए उसे हाथ से मसलकर अपनी भरसक कोशिश कर रही थी. मैंने भी कहा

"ममी सॉरी, अब मुझसे नही होगा" वह हँस कर बोली

"ठीक है, ना सही. चल एक खेल खेलते है. तेरा चप्पल वाला खेल नही देखा बहुत दिन से. आज ज़रा करके बता" मेरी इच्छा नुसार्वह हमेशा अपनी सैंडल या रबर की स्लिपर पहने रहती, चुदाइ के समय भी. उसने अपनी एक स्लीपर उतारी और मेरा सिर अपनी गोद मे लेकर पलंग के छोर से टिक कर बैठ गयी. अपना दूसरा पैर बढ़ा कर उसने मेरे मुरझाए लंड को अपने पैर के तलवे और चप्पल के बीच पकड़ लिया. फिर धीरे धीरे उसे रगड़ने लगी. मोम के कोमल तलवे और चप्पल के मुलायम रबर की फाइलिंग, मुझे बहुत अच्छा लग रहा था. फिर उसने कहा

"मूह खोल ना अनिल"

"क्यों मोम ?" मैने कहा. अपने हाथ की स्लीपर मेरे होंठों पर हौले हौले रगड़ते हुएवह बोली

"चाट ना मेरी चप्पल. आज बहुत देर पहनी है. तुझे मज़ा आएगा" मैने उसकी आँखों मे देखा.वह मज़ाक नही कर रही थी. मोम की आँखे कामना की खुमारी से भरी थी. मैने जीभ निकालकर उसे चाटना शुरू कर दिया. बहुत उत्तेजना हुई. मोम अब खुद मेरी फेटिश को बढ़ावा दे रही थी. उसने भी खिलखिलाते हुए मुझे सताना शुरू कर दिया. कुछ देर चाटने देती, फिर अचानक उसे मुहासे दूर कर देती. कभी चप्पल का छोर मेरे मूह मे डाल देती और कहती

"ज़रा चूस कर देख ना, मोम का भक्त है ना तू, मोम के चरणों का पुजारी! ले आज करके बता अपनी पूजा ठीक से" दस मिनिट मे मेरा लंड खड़ा हो गया. ऐसा तन्नाया जैसे झाड़ा ही ना हो. मैं अब अपनी कमर हिला हिला कर मोम के तलवे को चोदने की कोशिश कर रहा था. उसने तब तक यहा खिलवाड़. जारी रखा जब तक मेरा कस कर खड़ा नही हो गया. फिर तुरंत मुझे पलंग पर लिटा कर मुझपर चढ़. गयी और मुझे चोदने लगी. अपनी चप्पले उतार कर उसने मेरे मुँह पर रख दीं.

"ले बेटे, तेरे खिलौने. तू इनसे खेल, मैं अपने खिलौने से खेलती हू" मैंने मोम की चप्पले गालों से सटा ली और उन्हे बेतहाशा चाटने और चूसने लगा जैसा पहले मूठ मारते समय करता था. बस वह मेरी ओर देखकर हँसती जाती और मुझे चोदति जाती. उसकी उछलती छातियों और मुँहा पर पड़ी चप्पालों ने मुझपर ऐसा जादू किया कि मैं झदाने को आ गया.

मोम ने तुरंत चोदना बंद कर दिया. चप्पले भी मुझसे छीन ली. तब तक बैठी रही जब तक मेरा ज़ोर कम नही हो गया. फिर मुझे चोदने लगी. उस रात उसने पंद्रहा बीस मिनिट मुझे तड़पा तड़पा कर चोदा. जब खुद पूरी तृपता हो गयी तब मुझे झड़ाया. मैं इतना थक गया था कि बेहोश सा हो गया, लॅंड और गोटियाँ भी दुख रहे थे. मोम ने बत्ती बुझाकर मुझे बाँहों मे लिया और चुम कर सॉरी बोली

"अब सो जा बेटे, क्या करू, आज तू इतना नमकीन लग रहा था कि मेरा मन ही नही भर रहा था. पर सच बता, मेरी चप्पालों को चाटने मे मज़ा आया ना?" मोम की पसंद के दो काम थे. एक मुझसे बुर चुसवाना और मुझे उपर से चोदना. मुझे भिवह उसपर चढ़कर चोदने देती थी पर मुझे नीचे सुलाकर चोदना उसे ज़्यादा अच्छा लगता था. डॉमिनेंट पार्ट्नर बनाने का कोई मौका वा नही छोड़ती थी. उसके पीरियड के दिनों मे ज़रूर परेशानी होती थी. मेरा भी उपवास हो जाता था, दोनों तरह का, चोदने भी नही मिलता था और मोम की बुर का रस भी बंद हो जाता था. मोम से मैने कहा तो बोलती कि अच्छा है, तीन चार दिन तुझे भी आराम मिलना ज़रूरी है. और इससे तू ज़रा संयम रखना भी सीख जाएगा, तेरी सेहत के लिए भी अच्छा है. उसके स्तनों से खेलना मुझे बहुत अच्छा लगता. कई बार मैं उन्हे चुसते हुए कहता

"मोम दूध पीला ना बचपन जैसा" तो कहती

"अब इनमे दूध कैसे आएगा बेटे, तुझे रुकना पड़ेगा अपनी शादी होने तक, अपनी दुल्हनिया का दूध पीना" मैं कहता

क्रमशः.................
 
माँ का दुलारा पार्ट--9 

गतान्क से आगे...............

"मैं शादी वादी नही करूँगा. मेरे पास तुम जो हो" मोम कहती

"तो मैं बुद्दी हो जाउन्गि तो क्या करेगा?" मैं कहता

"तुम और खूबसूरत लगोगी, फिर तुझमे ज़्यादा दम भी नही रहेगा. तब मैं ज़बरदस्ती तुझे पटक पटक कर चोदा करूँगा" वाह हँसने लगती. एक बार मैंने मोम से कहा

"माँ, मुझसे शादी कर लो" उसने मेरी ओर देखा तो मैं बोला "सच कहा रहा हू. चार साल बाद मैं इंजीनियर हो जाउम्गा, हम दूसरे शहर जाकर रहेंगे मिया बीवी बनकर. फिर तुम गर्भवती होना और मुझे दूध पिलाना"

आधी हँसी और आधी सिरियसनेस मे कही मेरी बात तो उसने नही मानी, हाँ एक रविवार के दिन हमने झूठ मूठ की शादी की. बहुत मज़ा आया. मैंने फिर कहा कि माँ, मुझसे शादी कर लो तो मोम बोली ठीक है. हम जब घूमने गये तो मोम ने एक मंगलसूत्रा खरीद लिया, मेरी पसंद का, काले मनियों वाला क्योंकि मैं जानता था कि उसके गोरे गले और छाती पर वह बहुत सुंदर लगेगा. वापस आते समय हमने दो हार ले लिए. मोम ने सिंदूर की एक डिब्बी ले ली. मैंने बेड को सजाने के लिए ढेर से फूल ले लिए. वही एक पिक्चर की दुकान मे कामदेव और रति के न्रुत्य का एक रंगीन फोटो था. मोम ने उसे भी खरीद लिया. मैंने पूछा तो थोड़ी शरारत से बोली कि भगवान के आगे शादी करना है तो इनसे अच्छे कौन भगवान हो सकते है हमारे लिए.

घर आकर मैंने बेदरुम को फूलों से सजाया, बिस्तर पर फूल बिखरा लिए. फिर कुरता पाजामा पहन कर तैयार हुआ. मोम ने अपनी एक सिल्क की साड़ी निकाली. खूब बनथन कर तैयार हुई. गहने पहने. जुड़े मे मोगरे की वेणी लगाई. उसे खूब हँसी आ रही थी, सारा एक मजेदार खेल था.

फिर कामदेव और रति के उस पिक्चर के आगे हमा दोनों ने एक दूसरे को माला पहनाई. मैंने मोम को मंगलसूत्र बाँधा. फिर उसकी माँग मे सिंदूर भरा. वह मुस्काराकर मेरी ओर देख रही थी. मैंने झुक कर मोम के पाँव छुए और फिर लेटकर उसके पाँव चूमने लगा. वह हँस कर बोली

"ये क्या कर रहा है, तू अब मेरा पातिदेव हुआ ना? तो मुझे तेरे पाँव छूने चाहिए" मैंने कानों को हाथ लगाकर कहा

"क्यों मुझे पाप लगाती हो माँ? मैं तो वो जोरू का गुलामा वाला पति हू तुम्हारा" फिर हमने "किसिंग दा ब्राइड" वाला किस किया. मोम बोली

"मालुम है आज के दिन पति पत्नी को उठा कर बेडरूमा मे ले जाता है" मैंने तुरंत उसे बाहों मे उठा लिया. काफ़ी भारी थी, मुझसे सम्हल नही रही थी. मोम भी घबरा कर बोली

"अरे धीरे, उतार दे मुझे, गिरा देगा" पर मैं उसे उठा कर किसी तरह ले गया. मोम ने मेरे गले मे बाँहे डाल दीं. उसे अंत तक लग रहा था कि मैं उसे पटक दूँगा पर किसी तरह मैं उसे पलंग तक ले ही गया. मोम पलंग पर लेटटी हुई मुझे बोली

"आइए प्राणनाथ, आपकी प्रियतमा आपके लिए तैयार है" और फिर मुँहा दबा कर हँसने लगी. उस रात हमने संभोग करते हुए ऐसी ही भाषा का प्रयोग किया. मोम नववधू की ऐकटिंग करती और मैं दूल्हे की. यहा बात अलग है कि बार बार मुझे और मोम को हँसी आ जाती. उस रात मैंने मोम को बहुत प्यार से चोदा. उसके नग्न गोरे स्तनों के बीच झूलता काला मनियों वाला मगलसूत्र बहुत सुंदर लग रहा था. ख़ास कर जब मोम ने मुझपर चढ़. कर मुझे चोदा तो उसकी उछलती डोलाती छातियों के बीच हिलता मंगलसूत्र मेरी मस्ती को बढ़ा रहा था.

मेरा एडमिशन इंजीनियरिंग मे हो गया. उसके बाद मोम ने मुझपर थोड़ा अंकुश लगा दिया. पढ़ाई करना भी ज़रूरी था. रोज वह देखती की मैंने पढ़ाई की या नहीं. नही तो वह मुझे अपने पास नही सोने देती थी. इसलिए मैंने भी पढ़ाई का नुकसान नही होने दिया. मोम बेचारी रात को थॅकी होने के बावजूद एक बजे तक जागती जब तक मेरी पढ़ाई पूरी नही हो जाती. फिर मुझे चोदने देती थी.

जब मिडसेमिस्टर मे मैं पास हुआ तो मोम की जान मे जान आई.

"ऐसे ही पढ़ाई किया कर बेटे, तू जो कहेगा तुझे मैं वह दूँगी"

"हाँ माँ, बस मुझसे सच्ची की शादी कर ले, मुझसे गर्भवती हो और मुझे अपना दूध पीला, मुझे और कुछ नही चाहिए" मैं हमेशा उस से कहता.

बीच बीच मे हमा एक दूसरे के शरीरों को भोगने के नये नये तरीके ढूंढते रहते. एक रविवार को मैं जब सो कर उठा तो मोम किचन मे खाना बना रही थी. मैं मुँह धो कर उसके पास गया और पीछे से उसे बाँहों मे भर लिया. मेरी फरमाइश के अनुसार मोम अब घर मे गाउन के बजाय बस एक सादी और एक स्लिवल्स ब्लाउz पहनती थी, और कुछ नहीं. इससे मुझे उसके मम्मे चूसने या चूत चाटने मे बहुत आसानी होती थी. अब भी मोम ने बस एक पतली साड़ी और ब्लओज़ पहना था. खाना बनाने से उसको पसीना आ रहा था.

मैंने उसके कंधों और गर्दन का चुंबन लिया. पसीने के खारे स्वाद से मेरा लंड कस कर खड़ा हो गया. उसे मोम के चूतड़ के बीच की खाई मे सटाकर रगड़ता हुआ मैं मोम के गाल और माथा चूमने लगा जहाँ उसे पसीना छलक आया था. वह झूठ मूठ मुझे डाँतति हुई

"अरे परेशान मत कर, नही तो आज खाने को नही मिलेगा" मुझे दूर करने की कोशिश कर रही थी पर उसमे कोई दम नही था. उसे भी मेरा यहा चिपटना अच्छा लग रहा था. मैंने उसके हाथ पकड़कर उपर कर दिए और झुक कर उसके बगले चाटने लगा.

"अरे क्या कर रहा है, छोड़." वह बोली पर मैं चाटता रहा. उसने परेशान होकर गैस बंद कर दिया और हाथ उठाकर खड़ी हो गयी.

"ले कर क्या करना है, तू मानेगा थोड़े" मोम के स्तन दबाते हुए मैंने उसकी कांखे छाती, उसके अमृत से पसीने का स्वाद लिया. मेरा लंड फनफना रहा था. मोम के भी निपल कड़े होकर उभर आए थे. वह भी मस्ती मे आ गयी थी. मेरा लंड अब उसके मांसल नितंबों के बीच फँसा था. मुझसे नही रहा गया. मैं उसके पीछे नीचे बैठ गया और उसकी साड़ी उपर करके उसकी गांद चूसने लगा. मोम के चूतड़. फैला कर उनके बीच के उस मुलायम टाइत छेद मे अपनी जीभ डालकर अंदर बाहर करने लगा. बीच मे उसमे नाक डालकर सूंघने लगता. मोम बस कहती रही

"अरे ये क्या शैतानी है, अभी रात नही हुई है, और मैंने नहाया भी नही है बेटे, चल छोड़." पर मैंने उसकी नही मानी. आख़िर मेरी वासना अनावर हो गयी
 
"माँ, प्लीज़ मुझे तुम्हारी गांद मारने दो ना" मोम मना कर रही थी पर फिर मेरे लंड की सख्ती से मेरी हालत का अंदाज़ा लगाकर मान गयी

"आज बहुत मस्त है तू, अच्छा चल मार ले, पर अगर अभी मारी तो रात को नही मारने दूँगी. अब चल बेडरूम में"

"नही माँ, यही मारूँगा, खड़े खड़े, किचन के प्लेटफार्म से तुझे सटाकर, खाना बनाते हुए" मोम निरुत्तर हो गयी. उसे समझ मे नही आया कि क्या कहे. मैंने उठाकर रोटी मे लगाने के लिए रखा घी उंगली पर लिया और उसकी गांद मे और अपने लौदे पर चुपद. लिया. फिर मोम के चूतड़. फैला कर उसे अंदर पेल दिया. आज मेरा लोहे के रोड जैसा खड़ा था इसलिए सत्त से आधा अंदर चला गया. अब तक मरा मरा कर मोम की गांद भी कुछ खुल गयी थी और उसे आदत होने से वह भी बिना गांद सिकोडे मेरा अंदर ले लेती थी.

"ओहा ओहा ज़रा धीरे राजा, दुखता है ना, ऐसा वहशी जैसा क्या कर रहा है आज" मोम ने दर्द से सिसककर कहा. पर मुझपर आज एक अलग नशा सा चढ़. गया था. उसकी सिसकारी की परवाह ना करके एक और धक्के के साथ मैंने लंड पूरा अंदर उतार दिया और फिर उसके ब्लओज़ के अंदर हाथ डालकर उसकी चुचियाँ मसलता हुआ कस के उसकी गांद मारने लगा. आसन अच्छा था क्योंकि किचन प्लैटफार्म ठीक मोम के पेट पर होने से उसका सपोर्ट अच्छा मिल रहा था. मेरे हर धक्के से उसका पेट ग्रेनाइट पर दब जाता और उसके मुँहा से आह निकल आती.

मैं आज मोम का स्तनमर्दन बड़ी बेरहमी से कर रहा था. नही तो उसके उन प्यारे उरजों का मैं बहुत ध्यान रखता था. पर आज इस तरह उसे दबोच कर उसकी गांद मारने मे मुझे अजीब सुख मिल रहा था, बलात्कार जैसा वर्ज्य सुख. मोम को भी दर्द हो रहा था क्योंकि वह सिसक रही थी

"उई माँ, मर जाउम्गि बेटे, ज़रा धीरे, उ& उ& ओह ओह अरे कितनी ज़ोर से मसल रहा है मेरी छाती!" कहती कराह रही थी. अंत मे मैंने इतने ज़ोर से धक्के लगाए कि मोम के मुँहा से एक हल्की सी चीख निकल पड़ी. जब मैं झाड़ा तब मेरा नशा उतरा. लंड बाहर निकालकर मैंने मोम से माफी माँगी.

"मोम, बुरा मत मानो प्लीज़, मुझसे आज रहा नही गया. अब ऐसा नही करूँगा"

"अरे पर आज तुझे हुआ क्या? इतने दिन हो गये मुझे चोदते हुए, गांद भी मार चुका है दर्जनों बार, फिर भी ऐसा कर रहा था जैसे पहली बार औरत को देखा हो" मोम ने कपड़े ठीक करते हुए कहा. वह टटोल कर अपने गुदा को देख रही थी, लग रहा था कि काफ़ी दुखा होगा.

"मेरी ये छातियाँ देख, कैसी मसल दी है तूने, लाल हो गयी हैं" मोम ने मुझे उलाहना देते हुए कहा. मैं क्या कहता. असल मे मोम का पसीना, उसकी वह पीछे से दिखती मादक काया, पतली साड़ी के अंदर से झलकते मोटे चूतड़., कुछ समा ही ऐसा बँध गया था. मोम ने मेरी इस हरकत पर और कुछ नही कहा. हाँ दिन भर मुझे पास नही आने दिया. मैं सोच रहा था कि गया कॅयामा से. पर उस रात वह बहुत गरम थी. खुद ही मुझे खाना खाने के बाद पकड़कर बेडरूम मे ले गयी. दो तीन घंटे की तरह तरह की रति क्रीड.आओं के के बाद वह शांत हुई. मोम से मैंने फिर सुबह के बारे मे पूछा तो बोली

"अब जाने दे, कभी कभी चल जाता है! मुझे दुखा तो बहुत पर सच बतओं मेरे राजा, तेरी उस वहशी जैसी हरकत से मुझे मज़ा भी आया. मैं सोच रही थी कि आख़िर ऐसा क्या है मुझमे जो मेरा लाल इतना मतवाला हो जाता है मुझे देख कर! पर हमेशा नही करना ऐसे! मुझे बहुत तकलीफ़ होती है."

मोम ने मदर्स डे के दिन मुझे बहुत मीठा बनाया. यहा पहला मदर्स डे था जो हम साथ बिता रहे थे. मैंने मोम से सुबह पूछा कि क्या उपहार दूं तो बोली

"मेरा सबसे बड़ा उपहार तो है मेरे पास बेटे, तू, इतना जवान खूबसूरत नौजवान, मोम की हर इच्छा और कामना पूरी करने वाला" मैंने फिर पूछा तो बोली.

"ठीक है, तू आज मुझे खुद को दे दे, पूरी तरह, मुझे मनमानी करने के लिए तेरे साथ. मैं शामा को जल्दी आ जाउम्गि. बाहर से ही खाना ले आउम्गि. मैं जो कहूँगी वह करना फिर"

मैं दिन भर कालेज मे सोच रहा था कि मोम क्या करेगी. उसकी आँखों मे झलक आई कामुकता से मैंने अंदाज़ा लगा लिया था कि आज रात को स्पेशल फरमाइश होगी. मैं भी आखरी पीरियड बंक करके जल्दी भाग आया. नहा धो कर मोम का इंतजार करने लगा. मोम वापस आई तो हाथ मे एक दो पैकेट थे.

हमने खाना खाया. फिर मोम ने मुझे कहा कि बेडरूम मे मेरा इंतजार करो. मैं नंगा होकर अपना लंड सहलाता हुआ मोम की राह देखने लगा.

क्रमशः.................
 
माँ का दुलारा पार्ट--10

गतान्क से आगे...............

मोम बेडरूम मे आई तो मैं देखता रह गया. उसने अपने बदन पर बस एक काली बिकिनी पहन रखी थी. एकदम तंग और छोटी जैसी स्वी सूट की माडल पहनती हैं. ब्रा के स्ट्रैप नूडाल स्ट्रैप थे, एकदमा पतले, डॉरो जैसे. कप भी ज़रा ज़रा से थे, बस उसके निपालों को धक रहे थे, उसके बाकी गुदाज स्तन खुले हुए थे. नीचे पैंटी भी एकदमा तंग थी. उसके आगे का भाग बस रीबन जैसा था, मोम की बुर की लकीर को भर धक रहा था. मोम अपने काले सैंडल पहने थी.

मैंने अपने लंड को पकड़कर कहा.

"ममी, ये तो मेरे लिए उपहार हो गया, तुम्हारे लिए नहीं" मोम शैतानी से बोली

"अभी रुक तो, कुछ देर मे देख कैसे अपना उपहार वसूल करती हू, अब चुपचाप लेट जा सीधा, बहुत आदत है तेरी अपने लंड से खेलने की, आज उसीकि खबर लेती हू, ये सब आज ही खरीदा है मैंने"

मोम ने शाम को लाए पैकेट मे से लाल मखमल की छः इंच चौड़ी वेलकरो लगी पत्तियाँ निकालीं. फिर मुझे बाँधने लगी. एक पट्टी मेरे टखानों के चारों ओर लपेट कर कस दीं. फिर दूसरी मेरी जांघों के चारों ओर कसी. एक पट्टी उसने मेरी कमर और हाथों को मिलाकर बाँधी और एक छाती के चारों ओर बाँहों समेत बाँधी.

मैं अब हिल दुल भी नही सकता था. मुश्के बँधा एक गुड्डे की तरह असहाय पड़ा था. बस मेरा लंड मस्त खड़ा था और हिल रहा था. मोम ने उठा कर मुझे ऐसी नज़रों से देखा की खा जाएगी.

"अब लग रहा है किसी उपहार की तरह लाल रीबानों से बँधा हुआ. छोटी बच्चियाँ छोटे गुड्ड़ों से खेलती हैं. मेरे लिए तू बड़ा गुड्डा है खेलने के लिए. अब इस उपहार को मैं कैसे इस्तेमाल करूँ यह मेरी इच्छा पर है, है ना अनिल बेटे?"

मैं कामना से काँप रहा था. आज मैं पूरा मोम के चंगुल मे था. एक खुशी और मीठे डर की लहर मेरे दिल मे दौड़. गयी. मैं समझ गया की मोम आज मुझे बहुत तड़पाएगी.

उस रात मोम ने मेरा जो हाल किया वह मैं ही जानता हू. इतना मीठा टारचर था क़ि मैं कई बार रो कर मोम से गिडगीदाया पर आज वह इसी मूड मे थी. मुझे उसने चूमा, अपने बिकिनी मे कसे स्तनों से मेरे लंड को और शरीर को सहलाया, फिर बिकिनी आधी निकालकर मेरे लंड को अपने मम्मों के बीच की खाई मे सटाकर मुझसे अपने स्तन चुदवाये, फिर बिकिनी के कप से निकालकर मेरे मुँह मे अपनी चुचियाँ तूँसकर चुसवाई. अपनी चूत मेरे मुँह के पास लाकर बिकिनी की पट्टी थोड़ी बाजू मे करके चटवाई, मुझपर चढ़. कर मुझे चोदा, बिना मुझे झड़ाए, मेरा लंड चूसा, उससे तरह तरह से खेली, बीच मे ही मुझे एक कामुक डांस करके दिखाया, मेरे मुँह पर बैठकर उसे चोदकर मुझे अपना रस पिलाया, बस झदने नही देती थी.

अंत मे उसने मेरे सामने मेरी छाती पर बैठकर अपनी उंगलियाँ चूत मे डाल कर हस्तमैथुन किया. मुझे पास से उसकी रसीली लाल बुर मे चलती लाल नेल पेंट मे रंगी उसकी उंगलियाँ दिख रही थीं, बहता शहद सा गाढ़ा सफेद पानी दिख रहा था, पर मैं कुछ नही कर सकता था. मोम की आत्मरती मैं पहली बार देख रहा था और वह मुझे पागल कर रही थी. मोम ने झदने के बाद अपनी उंगलियाँ चटाते हुए कहा भी कि

अनिल बेटे, तू पूछता था ना कि इतने दिन मैं कैसी अकेली रही, तो यह देख कैसे मैं खुद को ठंडा करती थी" उस रात मैं बस दो बार झाड़ा पर ऐसा की जान निकल गयी. पहली बार तब जब एक घंटे मुझसे खेलने के बाद उसने मेरे लंड को चूसा. मन लगाकर मेरे गाढ़े वीर्य का मज़ा लिया. मुझे फिर जल्दी उत्तेजित करने को उसने अपनी सैंडालों और चप्पालों का सहारा लिया. अपनी सारी चप्पले ले आई और मेरे नीचे तकिया बना कर रख दिया. अपने सैंडल पहने पाँव वह मेरे मुँहा पर और गाल पर रगड़ने लगी. उनकी मादक सुगंध ने मुझे जल्द ही तैयार कर दिया. जब मैं उससे बार बार चोदने को कहने लगा तो रबर की चप्पल का पँजा मेरे मुँहे मे ठूंस कर मेरी बोलती बंद कर दी.

आख़िर जब उसने मुझे चोद कर आखरी बार झड़ाया तो रात का एक बज गया था. उसके बाद उसने मुझे खोल दिया. मैं बस लास्ट सा पड़ा था. सोते समय मोम ने मुझे पूछा

"कैसा है मेरा खिलौना? पसंद आया मामी का मदर्स डे गिफ्ट बनना?" मैंने मीठी शिकायत की कि मोम तुमने कितना तरसाया आज. मुझे पागल करने मे कोई कसर नही छोड़ी. मोम बोली

"मुझे तो बहुत मज़ा आया. अब तो तुझे ऐसा हमेशा बाँधूंगी. बोल है तैयार? हफ्ते मे एक बार? तू मेरी गांद मारता है ना, बस अब गांद मराने की कीमत ऐसा गुड्डा बनाना मेरा!" मैं बिना कुछ कहे उसके आगोश मे सिमटकर सो गया. ऐसा मीठा अत्याचार मोम रोज करती तो भी मैं उसे सहना करता!

बस इसी तराहा हमारा अच्छा ख़ासा जीवन चल रहा था, एक सुंदर सपने की तरह, एक दूसरे को भोगने के नित नये तरीके खोजते हुए.

क्रमशः,,,,,,,,,,,,,,,,
 
तो लीजिए दोस्तो माँ का दुलारा का पार्ट-2

मेरा और मा का संभोग शुरू होकर एक साल होने को आ गया था. एस.एस.सी की
फाइनल परीक्षा चल रही थी इसलिए चुदाई भी मा ने कम कर दी थी कि मेरी
पढ़ाई मे खलल न पड़े. बस रात को एक बार वह मुझे चोदने देती. मेरे
करियर के बारे मे वह बहुत सावधानी बरतती थी और मैं भी उसकी बात
मान कर पढ़ाई करता था. मा अब मेरी सब कुछ थी, मेरी मा, मेरी प्रेमिका,
मेरी देवी, मेरी मालकिन और मैं उसका पुत्र, गुलाम, पुजारी और प्रेमी था.
मेरी फरमाइश पर आज कल मा ने झान्टो को शेव करना बंद कर दिया था.
मुझे उसकी चिकनी बुर भी अच्छी लगती थी. पर मन होता था कि उसकी घनी
झान्टो मे मूह छुपा कर मा की बुर चूसने का मज़ा भी लेलू. मा ने झान्टे
काटना बंद कर दिया और एक महीने मे उसकी इतनी घनी झाँटे हो गयी जैसी
इंटरनेट पर 'हेरी' साइट मे दिखाते है. मैं तो नहाते समय वो गीली झाँटे मूह
मे लेकर उनसे टपकता पानी चुसता था. मूह मे भरकर चबा डालता था.
ऐसा करने मे मा की बुर का एकाध बाल मूह मे आ जाता था, वह भी मुझे
अच्छा लगता था.
कुछ दिनों से मा थोड़ी परेशान लगती थी. रात को भी अक्सर देर से आती थी.
मैने पूछा तो कुछ बोली नही, बस कह दिया कि काम ज़्यादा हो गया है. मा को
कंपनी के मॅनेजिंग डाइरेक्टर के स्टाफ मे ट्रांसफर कर दिया गया था. उसके
कारण काम का बोझ ज़्यादा हो गया था.

एक दिन मा ज़्यादा ही परेशान लग रही थी. रात को जब मैने उसे चोदा तो रोज की
तरह मस्त होकर नही चुदवा रही थी, बस मुझे खुश करने को आह आह कर
रही थी. उसकी आँखे खोई खोई थी जैसे कुछ और सोच रही हो. मैने झड़ने
के बाद उसे चूम कर कहा "मा, कुछ तो बात है, तुम परेशान हो, मुझे
बताओ मेरी कसम"
मा बोली "अब क्या बताउ बेटे और कैसे बताउ, तू समझ ही गया है तो बताना
पड़ेगा, वैसे बात बड़ी अजीब सी है, मुझे भी समझ मे नही आता क्या करू.
सोच रही हू कि नौकरी छोड़ कर और कोई पकड़ लू"

"क्यों मा, इतनी अच्छी नौकरी है तुम्हारी" मैने पूछा.
"हां पर वो मेरे नये बॉस है ना, मिसटर अशोक माथुर, वो ..." मा चुप हो
गयी. मैं समझ गया. मन मे अजीब सा लगा. मैं कब से सोच रहा था कि शायद
मा को अब एक और पुरुष की ज़रूरत लग रही होगी. क्या मा ने भी इस बारे मे
सोचना शुरू कर दिया था! मा खूबसूरत और सेक्सी थी और ऐसा कुछ होगा
इसका अंदेशा मुझे पहले ही हो गया था. पर मेरे अलावा मा को कोई इस तरह
से देखे यह भी मुझे गवारा नही हो रहा था "क्यों उन्होने कोई हरकत की
क्या मा?"
मा हंस पड़ी "अरे वैसी कोई बात नही है. वे तो काफ़ी सीधे सादे इंसान है.
उनकी बेटी शशिकला भी वही है ऑफीस मे. सारा प्राब्लम उसी की वजह से है"
मैने मा से पूछा तो धीरे धीरे उसने सारी बात बताई. बड़ी अजीब सी पर
मजेदार बात थी. कंपनी के मॅनेजिंग डाइरेक्टर अशोक माथुर करीब सैंतीस
साल के थे. उनकी सौतेली बेटी शशिकला करीब पच्चीस साल की थी और वही
ऑफीस मे मनेजर थी. उसकी शादी नही हुई थी. मा की बॉस वही थी.
"अशोक माथुर की इतनी बड़ी सौतेली बेटी, बाप बेटी की उमर मे सिर्फ़ बारह साल का
अंतर?" मैने अस्चर्य से पूछा. मा ने बताया कि अशोक माथुर ने शशिकला
की मा ललिता से पंद्रह साल पहले प्रेमविवाह किया था. ललिता कंपनी की
मालकिन थी और अशोक माथुर से दस साल बड़ी थी. अशोक माथुर ललिता की
कंपनी मे मॅनेजर थे. उनका अफेर एक दो साल चला और उसके बाद ललिता ने
बिना किसी की परवाह किए उनसे शादी कर ली. उस समय ललिता की तेरह साल की बेटी
थी, शशिकला.
 
दो साल पहले ललिता की एक दुर्घटना मे मृत्यु हो गयी थी, मा की नौकरी
लगने के कुछ दिन पहले. सही मायने मे शशिकला कंपनी की मालकिन थी
पर शशिकला ने मॅनेजिंग डाइरेक्टर बनने से इनकार कर दिया था और अपने
सौतेले डॅडी को वह पद दे दिया था. बाप बेटी मे काफ़ी प्यार था, सौतेले होने
के बावजूद. वैसे असली पावर सब शशिकला के ही हाथ मे थी. उससे पूछे बिना
अशोक माथुर कुछ नही करते थे.

मा ने ये सब बताया पर मुझे अब भी समझ मे नही आ रहा था. मैने फिर
पूछा कि शशिकला का क्या प्राब्लम है? मा ने आख़िर असली बात बताई. वह अब
शरमा भी गयी थी.

"अरे वो लड़की शशिकला मेरे पीछे पड़ी है एक महीने से" मा ने कहा "अब
तक मैं दूसरे डिविषन मे थी इसलिए मेरा उससे लेना देना नही था. पर अब तो
वह मेरी बॉस है. वह पिछले एक महीने से अजीब अजीब हरकते करती है मेरे
साथ."

"याने क्या करती है मा" अब मुझे भी उत्सुकता होने लगी थी. मैं कुछ समझ
भी रहा था और मेरा लंड यह सोच कर ही कुलबुलाने लगा था.

"मुझे लगता है कि वह लेस्बियान है. पहले तो बस मुझे घुरति थी, मेरी
नज़र बचा कर. अब सीधे मेरी ओर टक लगाकर देखती है. मुझे बार बार अपने
कमरे मे बुलाती है काम से. मैं पास खड़ी होती हू तो मेरे बदन को अनजाने
मे छू लेने का नाटक करती है. पिछले हफ्ते तो उसने एक बार बात बात मे मेरे
स्तन को छू लिया था. मैं पीछे हट गयी तो लगता है उसे गुस्सा आ गया. एक दो
दिन रूठी सी रही फिर मुझे जान बुझ कर ज़्यादा काम देने लगी कि मुझे रात को
रुकना पड़े"

मैने कहा "मा, लगता है तुम्हारी सुंदरता का जादू सिर्फ़ मर्दों पर ही नही,
औरतों पर भी होने लगा है. हो ही तुम इतनी सेक्सी. पर इसमे नौकरी छोड़ने
की क्या बात है?"

मा बोली "बेटे, मैने कभी उसे एंकरेज नही किया फिर भी वह मेरे पीछे पड़ी
है. मुझसे मीठा मीठा बोलती है, कभी मुझे अकेले मे दीदी कहती है, नज़र
गढ़ाकर मुझे अकेले मे देखती है जब मैं उसके सामने होती हू, मेरी छाती
और पेट को घुरति रहती है. अपना आकर्षण अब मुझसे छुपाने की भी
कोशिश नही करती. आज बोली कि बहुत काम है, इस शनिवार और रविवार को भी
करना पड़ेगा. फिर साजेस्ट करने लगी कि मैं शनिवार को सुबह उसके घर पर
आ जाउ और रविवार तक वही रहू. मैने पूछा कि अशोक माथुर भी होंगे तो
बोली कि वे महीने भर को अमेरिका जा रहे है. फिर उसने अचानक खेल खेल मे
मेरे गाल को छुआ और फिर अपने मूह को, मानो मुझे फ्लाइयिंग किस कर रही हो.
जब मैं चुपचाप खड़ी रही तो बदमाश ने मेरे गाल को चूम लिया और
हँसते हुए मीटिंग मे चली गयी"

कुछ देर चुप रह कर मा बोली "मुझे उसकी नियत ठीक नही लगती. मुझे
मालूम है कि वह वीकेंड मे क्या काम करना चाहती है, अब नौकरी
छोड़ने के अलावा मैं क्या कर सकती हू, आख़िर कंपनी उसी की है और वो बड़ी
जिद्दी किस्म की लड़की है, एक बार सोच ले तो ठान लेती है. और उसे भी न जाने क्या
पड़ी है कि ऑफीस की बाकी सब सुंदर जवान लड़कियों को छोड़कर मेरे पीछे
पड़ी है, सब एक से एक चालू लड़कियाँ है, उनमे से कई तैयार हो जाएँगी उसके
साथ मज़ा करने को"
 
मा की परेशानी को मैं समझ सकता था. पर मुझे एक अजीब सी गुदगुदी भी
होने लगी थी. मा और एक जवान युवती आपस मे लिपटे है, उन किताबों के
चित्रों जैसे, यह कल्पना ही इतनी मादक थी कि अभी अभी चोदने के बावजूद
मेरा खड़ा हो गया. मा को लिपट कर मैने कहा "मा, नौकरी छोड़ना है तो
छोड़ दो पर एक बात सच बताओ, मेरी कसम, शशिकला दिखने मे कैसी है?"
मा बोली "अच्छी स्मार्ट है, मिस वर्ल्ड भले ना हो पर एकदम अट्रॅक्टिव है. पर
उससे क्या फरक पड़ता है, क्यों पूछ रहा है?" मा का चेहरा अब लाल हो
गया था.


"मा, सच बताओ, तुझे वो अच्छी लगती है क्या, अगर उसने सच मे तेरे साथ
ऐसा किया तो तुझे बुरा लगेगा क्या?" मैने मा के स्तन दबाते हुए पूछा. मा
चुप रही, हा उसकी आँखों मे एक खुमारी सी भर आई थी.


मैं समझ गया. मा को भी वह भा गयी थी. पिछले दो तीन हफ्ते मे मैने
देखा था कि जब हम कभी वे सेक्सी किताबे देखते तो उसका ध्यान लेस्बियन
चित्रों पर ज़्यादा होता था. वैसे आज कल चुदवाने के बजाय अब वह चूत
चुसवाना ज़्यादा पसंद करती थी, आँखे बंद करके सिसकिया भरती रहती,
शायद एक स्त्री से बुर चुसवाने की कल्पना करती हो. शायद मैं क्या कहुगा इस
डर से वह मन की बात नही कह पा रही थी. मैं मा की हालत समझ गया था.
मेरे साथ, अपने सगे जवान बेटे के साथ चुदाई शुरू होने के बाद मा की
वासनाए जो अब तक दबी थी, भड़क उठी थी. मैं चाहता था कि मा मन भर
कर अपनी इच्छाए पूरी कर ले. अगर कोई गैर पुरुष होता तो मैं ज़रूर फिर से
सोचता. वैसे मुझे अब तक यही लग रहा था कि मा का ध्यान अगर बाहर कही
जाएगा तो वो किसी हॅंडसम नौजवान पर. पर यहाँ तो एक जवान सेक्सी और
खानदानी औरत की बात थी. और शायद मा का भी झुकाव था उस तरफ.
 
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