Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत - Page 15 - SexBaba
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Maa Sex Kahani माँ को पाने की हसरत

मैने उसकी एक चुचि को अपने हाथो में लेके मसला....तो माँ काँप उठी मैने महसूस किया उसका कलेजा आगे पीछे हो रहा था उफ्फ लगता है मेरे छूने से ही उसकी दिल की धड़कन इतनी तेज़ हो गयी थी ...मैने उसके चेहरे को अपनी ओर किया और अपनी जीन्स की बेल्ट निकाली उसके हाथ बँधे थे तो मैने उसे कुतिया की मुद्रा में झुका डाला...

माँ : मुहब्बत वासना से नही प्यार से होता है आहह ससस्स

आदम : जानेमन ये तो खुमारी है मेरी अब देखती जाओ (मैने मन ही मन माँ को इशारा कर रहा था कि मेरे उसके चूतड़ पे कस कर थप्पड़ मारने से दर्द तो नही हुआ तो उसने एकदम से ना में अपना सर झटका)

मैने उसके उभरे हुए चुतड़ों पे दो तीन कस कर थप्पड़ मारे और उसे हाथो में लेके भीचा....हाथो में लेके मसलते ही उसके दोनो नितंबो को मैने थोड़ा आहिस्ते पर कस कर पिंच किया...माँ चीख उठी...."आहह दर्द होता है"........


."दर्द होता है हाहहाहा मेरी जान अभी तो तुझे दर्द सहना बाकी है"....मैने और कस कर उसकी नितंबो को पिंच किया तो माँ के चूतड़ पे लाल लाल निशान से आ गये...मुझे अच्छा नही लगा तो मैने नितंबो को सहलाते हुए उस पर दो-तीन थप्पड़ और जड़ दिए फिर उसकी गान्ड की फांको को फैलाए उसके निचले गुलाबी चूत के सिरे से देखते हुए उसकी गान्ड के सिकुडे खुलते छेद को घूरा...

माँ को अहसास नही था कि अब मेरा अगला वार क्या होगा?...मैने अपना चेहरा उसके नितंबो के ठीक बीच लाया फिर उसके छेद पे अपना मुँह लगाया इस बीच मेरे हाथ उसकी चूत के हिस्से को भी अंगुल कर रहे थे...और मेरी ज़बान उसके छेद को चाट रहे थे....स्लूर्र्रप्प एम्म्म स्लूर्रप्प्प म्म....माँ इस अहसास से किसी खाँसी की तरह हिल गयी तो उसके चूतड़ भी हिल गये...मैने कस कर उसके नितंबो को हाथो से फैलाया और छेद पे ज़ुबान लगाए रखा...माँ हल्की हल्की आह भर रही थी...

मैं उसके गुदा द्वार को ज़ुबान से जैसे छेड़ रहा था....उसके बाद जब मैने अपना चेहरा उसके छेद से अलग किया तो उसके गान्ड पे ढेर सारा थूक लगा हुआ था...मैने इस बीच अपनी दो उंगली उसमें घुसा दी तो माँ का बदन काँप उठा मैने एक हाथ से माँ की पीठ को जकड़ा और उसके छेद में उंगली करता रहा....उस बीच मैने एक दो बार ज़ुबान फिर छेद पे लगाते हुए उसे खोला...माँ को अपनी गान्ड में उंगली का मज़ा लग रहा था....वो अब खुद गान्ड ढीली छोड़ मेरी उंगलियो को अपनी गहराई तक ले जाने की प्रक्रिया कर रही थी..

इस बीच मैने उसके दोनो छेदों को चाटना शुरू किया उंगली करना छोड़ दिया...जब सूजी चूत को चूसने और फांको में जीब फेरी तो माँ का बदन सिहर उठा...वो ओह्ह्ह्ह की आवाज़ निकाले फिर खामोश हो गयी...मैने फिर उसकी चूत में सीधे तीन उंगलिया डालने की कोशिश की इस बार जब काम ना बना तो पास रखा ल्यूब ही हाथो में लगाया और चूत के अंदर उंगलिया पेल दी...

इससे माँ की चूत में 4 उंगली आराम से सरक उठी अब तो उसकी चूत एकदम गीली और बार बार चुदने से खुल ही चुकी थी...वो कुतिया की मुद्रा में अपनी चूत में हो रही उंगलियो के अंदर बाहर होने से काँप उठी थी...उईईई...मैने कस कर उंगली गहराई तक डालनी चाही जिस बीच माँ सिसक उठी...इससे माँ का पूरा बदन काँप उठा....मैने फिर हाथ बाहर निकाला और उन उंगलियो को चाटा जिसपे कुछ सफेद पदार्थ लगा हुआ था...उफ्फ वो सफेद सफेद माँ की चूत से निकला रस उसे मैं माँ को दिखा कर एक एक उंगली चुस्स रहा था जैसे कितना स्वादिष्ट उसका स्वाद हो....माँ शरम से आँखे नीचे कर लेती है

मैं उठा और अपनी लेदर बेल्ट निकाली...माँ ने किरदार को भंग करते हुए कह दिया कि ज़ोर ज़ोर से नही प्ल्ज़्ज़...मैने सिर्फ़ उसे हाथ दिखाया...फिर हल्के हल्के उसकी चुतड़ों पे बेल्ट मारने लगा.

."अफ अहः आहह हाहह आहह सस्स आह आहह नहिी आहह आहह आहह".....माँ के चुतड़ों पे बेल्ट के लगते ही माँ सिसक उठती उसकी चीख निकल जाती उसे शायद हल्का हल्का दर्द हो रहा होगा लेकिन मैं इतना ज़ोर ज़ोर से उसे मार तो नही रहा था शायद वो जानबूझ के हर बार बेल्ट के चूतड़ को छूटे ही दर्द से सिसक उठ रही थी...

चुतड़ों पे लगातार बेल्ट मारने के बाद मैने फिर उन्हें हाथो में लिए दबोचा फिर माँ को उठाया वाक़ई दोनो चूतड़ लाल लाल हो गये थे.."चलो अंजुम अब थोड़ा नहा लिया जाए".......इतना कहते हुए मैने नल चलाया तो शवर का ठंडा तेज़ पानी माँ के नंगे शरीर पे गिरने लगा....मैने माँ को कस कर जकड़ा हुआ था मैने उसका मास्क हल्का उसके होंठो से उपर तक उठा लिया था...माँ का पूरा बदन भीगें जा रहा था...मैं उसे गीला करता रहा...और वो गीली होती रही...

जब वो पूरी गीली हो गयी तो मैने वैसे ही रेज़र उठाया और पास पड़ी मेरी शेविंग क्रीम उठाई और उसके आर्म्पाइट्स और चुतड़ों के बीचो बीच कस कस कर मल दिया....

"नहिी मैने सॉफ किए हुए है प्ल्ज़्ज़".........

"मुझे निश्चिंत करना है डार्लिंग ......

माँ कुछ समझ ना सकी एक तो वैसे ही ठंडे पानी से ठिठुर रही थी और अब मैं उसकी दोनो बगलो को उठाए उसकी बगलो पे मेरी दाढ़ी बनाने वाले शेविंग क्रीम पे रेज़र चला रहा था...."सस्स ससस्स आह"....माँ को हल्की हल्की जलन हो रही थी...

मैने आहिस्ते आहिस्ते दोनो बगलो को एक एक कर सॉफ कर दिया फिर चिकनी चूत पे शेविंग क्रीम का झाग और बनाते हुए मुंहाने के भीतर तक रेज़र हल्का सा चला दिया फिर चूतड़ के पीछे नितंबो के निचले हिस्से पे भी रेज़र चलाया...माँ जलन से सिहर उठती फिर मैने उसे घोड़ी बनाए वैसे ही झुकाए रखा फिर उसके चुतड़ों को धोया फिर आगे उसे खड़ा किए उसकी चूत को फिर उसकी बगलो पे भर के मग पानी का डाला और उसके तीनो जगह को चिकना कर दिया...माँ को फिर मैने बाहों में उठाया घर में ले आया और सीधे बिस्तर पे ही पटका..

मैने उसके दोनो टांगे फैलाई...और उसकी चिकनी चूत पे एक बार ज़ुबान लगाई..."उफ्फ बस करो ना मैं से नही पाउन्गी"........मेरा पूरा मुँह माँ की चूत पे उस वक़्त जुड़ा हुआ था मैं उसे मुस्कुराए उसकी चूत चुसते हुए सुन रहा था...मैं उठा और उसकी चूत पे हाथ रगड़ते हुए अपना मूसल जैसा लंड बाहर निकाला

फिर उसके भीतर में ही कुछ ही सेकेंड में मेरा लंड फ़च से उसकी गीली चूत की दीवारो को फाड़ता हुआ अंदर अपनी जगह बनता चला गया....माँ का इस बीच पूरा बदन मैने दोनो हाथो से जकड़ा हुआ था इसलिए उसके हिलने की कोई गुंज़ाइश नही थी....

जब उसकी बच्चेदानी को छूती मेरा लंड का अहसास हुआ...तो मैने जड़ तक लंड घुसाए रखा उसकी चूत के भीतर....वो मुझे खुद ही धकेलने लगी कि उससे सवर नही हो पाएगा....मैने बस वैसे ही ठिठका रहा और फिर झट से ताबड़तोड़ धक्के अंदर बाहर करने शुरू किए.

."नहिी नहिी आहह ससस्स"....माँ इस बीच दाँतों पे दाँत रखते हुए अपने दर्द को झेलने लगी

क्यूंकी मैने इससे पहले उसकी ऐसी भीषण चुदाई नही की थी...मेरा लंड फ़च फ़च निकालती उसकी चूत की आवाज़ो के साथ अंदर बाहर किसी ड्रिल मशीन की तरह हो रहा था और उसकी छातिया उसके हिलने से आपस में एकदुसरे से टकरा रही थी जब मैने उनपे हाथ रखके उन्हें थामा तो उनके निपल्स काफ़ी सख़्त और कठोर हो चुके थे...

अंजुम : नहिी प्लस्स रुक्क जाआअ आहह आहह उघह
 
माँ के शरीर में ऐंठन को महसूस करते ही मैने कस्स कस कर उसे चोदना शुरू कर दिया अब रफ़्तार इतनी तेज़ थी कि मालूम ना चलता कि लंड अंदर जा रहा है कि बाहर मैं मशीन की तरह चूत के अंदर बाहर अपने लंड को कर रहा था मुझे लगा कि कही मेरा ही ना निकल जाए इसलिए झट से अपने लिंग को बाहर निकाल खीचा...

इससे माँ तड़प उठी और उसकी चूत ने एक पानी का जैसे फवारा छोड़ दिया इस बीच माँ खुद ही अपने दाने को हाथो से रगड़ने लगी...."आहह आआआआअहह".......माँ दहेक उठी और उसकी चूत ने बेतहाशा पानी छोड़ दिया...जो उसकी जांघों चूत और फर्श को गीला करते चला गया उसके बाद वो शिथिल पड़ गयी और उसकी टांगे काँप उठी..जैसे उसमें जान ना हो...

वो वैसे ही पश्त पड़े हाफने लगी....मैने उसकी चूत को मुट्ठी में लिए दबाए रखा और फिर उसे दो तीन बार कस कर मसला...तो माँ मेरे सीने पे पाँव रखके मुझे जैसे धकेलने लगी कि बस बहुत हो गया अब और सहने की उसकी शक्ति नही...पर मैं रुका नही चूत को दबाए मुट्ठी में...मैं उसे तडपाता रहा जब वो फिर ऐंठी तब मैने उसकी चूत पर से हाथ हटाया माँ फिर पश्त पड़ गयी..

मैं उसकी चूत से बहते सफेद पानी में अपना मुँह लगाके उसे चाटने लगता हूँ जब उस नमकीन स्वाद को चख लेता हूँ तो चूत को हाथो से ही सॉफ किए उठ खड़ा होता हूँ इस बीच मैं माँ को दोनो हाथो के सहारे उठाता हूँ फिर उसके मास्क के छेद से ही उसके होंठो को चूसने लगता हूँ माँ को मेरे मुँह में अपनी चूत के रस का स्वाद लगता है पर उस वक़्त वो मदहोश होती है हम दोनो एकदुसरे को स्मूच कर रहे थे...मेरी ज़ुबान माँ के मुँह में होती है जिसे वो चुस्के फिर मेरे दोनो होंठो को चुस्ती है...फिर मैं उसके चेहरे से खुद के चेहरे को अलग करता हूँ

फिर अपने वज्र जैसे खड़े लंड को उसके मुँह में दाखिल करा देता हूँ...उसे थोड़ा समय लगा मेरे मोटे लंड को चूसने में लेकिन मैं उसके सर को पकड़े जैसे मैने अपने लंड को उसके हलक तक डाल रहा था जिससे वो परेशन होके छटपटाने लगी...उसकी आँखे आँखे बड़ी बड़ी सी हो गई..

आदम : दिस ईज़ कॉल्ड डीपतरट बेबी

इतना कहते हुए मैने लंड उसके मुँह से बाहर निकाला तो उसने साँस भरी...फिर खुद ही मुझे देखते हुए मेरे लंड को मुँह में लेके चूसा..."ऐसे नही जान ज़ोर से कस कर".......माँ एकदम कस कस के गुस्से में ही जैसे मेरे लंड को चूसने लगी इतनी ज़ोर ज़ोर से जल्दी में कि मेरा लंड जैसे उसके दाँतों से घिसने लगा मैं खुद ऐंठ गया उसे रोकना चाहा पर वो साथ साथ मेरे अंडकोष को भी जैसे मसल रही थी...

माँ मेरे लंड को बराबर चुसते हुए अपने मुँह से अलग करती है..."अब थुको"....माँ अपने होंठो पे लगे थूक को पोंछते हुए मेरे थूक से सने लंड पे और अपना थूक डालती है और उसे चिकना करती है फिर बेतरतीब ढंग से आगे पीछे मसल्ति है..."उफ़फ्फ़ आहह एसस्स येस्स लाइक दट वे ओह्ह येअह्ह्ह".......माँ मुझे सिसकते हुए देख लंड को और ज़ोर ज़ोर से चूसने लगती है इस बीच उसकी ज़ुबान मेरे सुपाडे के इर्द गिर्द चल रही होती है जिस अहसास से मैं काँप उठता हूँ....कि अब निकला कि तब?...माँ मेरे लंड को अपने मुँह से बाहर उगल देती है जिससे माँ के मुँह का लार गिर रहा होता है..

मैं माँ को बिस्तर पे सीधा ही सही पर अपनी तरफ उल्टा लेटा देता हूँ और अपने भारी भारी चूतड़ उसके चेहरे के नज़दीक लाता हूँ वो हंसते हुए मेरे चुतड़ों को धकेलने लगती है पर मैं नही मानता...."कर ना".......

"नही हो पाएगा छी".......

"मैने भी तो तेरे साथ किया".........

"पर तेरी बात जुदा है ना".....

."चल फिर चूम ही ले"........

"ठीक है"....माँ हंसते हुए मेरे दोनो चूतड़ पे अपने दाँत गढ़ाती है तो मैं आहह भरके हंसता हूँ

माँ फिर दोनो चुतड़ों पे एक एक चुंबन देते हुए मेरे...मेरे छेद में एक उंगली डाल देती है जिस अहसास से मैं रोमांचित हो उठता हूँ उफ्फ कभी किसी औरत ने मेरे वहाँ अपनी उंगली नही प्रवेश की थी..वो कस कर डालती है तो मुझे दर्द होता है....तो मैं उसे ठहरने को कहता हूँ फिर उंगली करने को बोलता हूँ ऐसा करते हुए वो आराम से मेरे छेद से उंगली अंदर बाहर करने लगती है फिर मेरे छेद पे डालते हुए वहाँ हल्का सा अपनी नाक रगड़ती है...फिर मेरे चुतड़ों को भीचने लगती है....

कुछ देर में ही मैं माँ को उसी पोस्चर में अपने बाज़ुओ में जकड़ते हुए उठा लेता हूँ अब स्टॅंडिंग 69 पोज़िशन जैसा कुछ माहौल था....माँ के हाथ तो बँधे हुए थे इसलिए मैं उसे वैसे ही उल्टा लटकाए रखता हूँ वो अपना मास्क खींच कर उतार देती है फिर मेरे अंडकोष पे अपनी ज़ुबान फेरते हुए उन दोनो को बारी बारी से चाट्ती है फिर उन्हें सूंघते हुए उन्हें चूस भी लेती है

मैं इस बीच माँ का चूत जो मेरे मुँह के एकदम सामने प्रस्तुत था उस पर अपनी नाक रगड़ते हुए उस पर ठूकते हुए उसे चाटने लगता हूँ "वाहह क्या छूट है माँ की?"......मैं बड़बड़ाता हुआ माँ की छूट को चाटते चुसते कहता हूँ तो माँ काँप उठती है...वो फिर हँसके मेरे लंड को भी हाथो में लेने की कोशिश करती है पर मेरे ज़्यादा हिलने से उसके चेहरे मेरे लंड पे घिस रहा होता है....

जब मैं उसे उठाए थक जाता हूँ तो उसे वापिस बिस्तर पे गिरा देता हूँ..इस बार माँ के कलाईयों से रस्सिया उतार फैंकता हूँ फिर उसकी लाल कलाईयों के निशानो पे चूमता हुआ उसके बगल में लेट जाता हूँ

"तुझे दर्द नही दे पाउन्गा मैं माँ कभी नही"........माँ इस बात को सुनती और मेरी आँखो में आँसू देख भावुक हो उठती है

"तो बेटा कर दे अपनी हसरत पूरी मैं खुद इजाज़त देती हूँ"...कहते हुए वो मुझसे लिपट जाती है अपनी टांगे खोल देती है एक टाँग मेरे जाँघ पे लपेट लेती है फिर नीचे से मैं चूत के मुंहाने में लंड को घिसते हुए घुसाने की जगह बना लेता हूँ

माँ मुझसे से लिपट जाती है...और उसके बाल मेरे चेहरे पे बिखर जाते है...उसके बाद चुदाई फिर शुरू हो जाती है...और माँ हिच हिच के मुझसे चुदने लगती है मैं नीचे से कुल्हो में ताक़त भरे उसकी चुदाई करने लग जाता हूँ...माँ इस बीच मेरी पीठ पे नाख़ून गाढ़ने लगती है मुझे खुद से लिपटा लेती है...

मैं उसकी गर्दन गाल गले चेहरे होंठ नाक माथा...जहाँ भी मन कर रहा था चुंबन लेते जा रहा था...माँ मुझसे लिपटे काम आलिंगन में जकड़ी मेरी दोनो जांघों पे अपनी टाँग फेरते हुए मुझे अपने कलेजे से लगा लेती है.."आहह आहह बेटा"......

."आहह मेरी अंजूमम्म मैन्न्न मॅर जौउू अगर तूऊ ना मिले तेरे लिए ही तो मैं हर दम दीवाना सा रहा हूँ तेरी जगह कोई नहिी ले सकता"........

"उफ़फ्फ़ उहह एम्म्म मैं भी तेरी बिना नही जी सकती जब तक साँसें है बॅस तूऊ उफ़फ्फ़".......माँ हन्फते हुए अपनी चूत के दर्द को बर्दाश्त किए मेरे से एक दम लिपट जाती है मैं उसकी टांगे हाथो से जकड़े धक्के तेज़ कर देता हूँ

और कुछ ही पल में अपना लंड बाहर निकाले उसके पेट पे अपने वीर्य की बूँदें छोड़ने लगता हूँ...माँ को अपने पेट पे बेटे के गरम वीर्य का अहसास होता है उसके बाद मैं खुद ही माँ से लिपट जाता हूँ मेरा वीर्य उसके पूरे बदन पे कयि जगह लग जाता है..हम दोनो कुछ देर तक वैसे ही हान्फ्ते रहे

आदम : और मेरी जान कैसा लगा?

अंजुम : उफ़फ्फ़ बहुत मज़ा आया अफ जान निकाल दी मेरी तूने

आदम : लेकिन माँ मुहब्बत प्यार से होती है आहिस्ते से ये सब तो दीवानगी है

अंजुम : मुझे तेरी ये दीवानगी भी क़बूल है
 
हम कुछ देर तक एकदुसरे से चिपके रहे उसके बाद माँ फिर मेरी शादी के बारे में मज़ाक करने लगी तो मैने कहा कि बस माँ इस बारे में कोई बात चीत नही मैं कोई शादी वादी नही करने वाला...माँ जानती थी मेरी किसी भी पराई औरतो से कोई मुहब्बत नही हो सकती थी अगर होती भी तो मुझे मालूम था कि वो ज़रूरत तक होती और ऐसा हुआ भी....

माँ मेरे ज़ोर से उसे डाटने से सेहेम उठी फिर मुझे पुचकार्ते हुए मनाने लगी...मैं भी क्या कहता अब जब बाहें फैलाए एक खूबसूरत औरत तुम्हें अपने नंगे बदन से लिपटाना चाह रही हो और तुम रेस्पॉन्स ना दो तो तुम नमर्द के ही श्रेणी में आओगे लेकिन मैं तो माँ का दीवाना था उसका मर्द था मैं मैं माँ से लिपटके सो गया....

हम सोए पड़े रहते अगर ज्योति भाभी ने दरवाजे पे दस्तक देते हुए हमे आवाज़ ना लगाई होती.....मन ही मन सोचा "राजीव दा तो लगता है मुझसे पहले पास आउट हो गये इसलिए ज्योति भाभी इतनी जल्दी फारिग होके नीचे आई ये भी कम नही इन्हें भी माँ से कोई ना कोई काम पड़ जाता है ...अपने मन में हंसता मुस्कुराता खुश होता माँ के हड़बड़ाते हुए मैं ढीला पाजामा पहन लेता हूँ और माँ वो तो किसी चोर की तरह फुरती से गुसलखाने अपनी साड़ी लिए नंगी ही अवस्था में भाग उठती है हड़बड़ा हम दोनो ही गये थे

दरवाजे के खुलते ही...ज्योति भाभी ने मुझे खुले बदन पाया...मैं जैसे तैसे अपनी उखड़ी साँसों पे काबू पाए एक पाजामा झट से डाल लिया था...पर अंदर कुछ ना पहनने की वजह से मेरा लंड अकडा हुआ था जो अब भी वीर्य की बूँदें हल्की हल्की निकाल रहा था..ज्योति भाभी की नज़र मेरे पसीने से तरबतर बदन और पाजामे में मेरे खड़े लंड के उभार पे पड़ी....तो मारे शरम से उन्होने मेरे चेहरे की तरफ अपनी नज़रें की...और मुस्कुराइ

ज्योति : क्या कर रहे थे तुम आदम? इतने पसीने पसीने क्यूँ हो?

आदम : उम्म्म जी वो दरअसल अभी अभी ऑफीस से आया ना तो कपड़े चेंज कर रहा था

ज्योति भाभी शादी शुदा थी भला वो मेरी हालत को लगभग जान ही सकती थी..लेकिन उन्होने इतना गौर नही किया...मैने देखा कि उनके हाथ में एक कटोरी थी जो कि खाली थी....

आदम : अच्छा ज्योति भाभी कुछ चाहिए था?

ज्योति : हां ओह देखो भूल गयी मैं भी ना...असल में तुम्हारे राजीव दा कयि दिन से राशन लाए नही जिस वजह से दिक्कतें हो रही है वो थोड़ा नमक चाहिए था एकदम ख़तम हो गया है तुम भी सोचते होगे कि मैं बार बार आ जाती हूँ

आदम : अर्रे नही भाभी ऐसा नही है अभी दे देता हूँ दीजिए (मैने हाथ से कटोरी लेते हुए आगे बढ़ा)

ज्योति भाभी वहीं खड़ी रही तो मैं उन्हें अंदर आने को कहते हुए रसोईघर की तरफ जाने लगा.....ज्योति भाभी की नज़र बिस्तर के खराब चादर ना पड़ गयी हो..यही सोच सोचके नमक कटोरी में डाले जा रहा था....फिर बाहर आया...तो पाया जिस बिस्तर पे माँ और मैने कुछ पल पहले चुदाइ की थी उसी सिलवट पड़े बिस्तर पे वो बैठी हुई थी...वो तो अच्छा हुआ कि किनारे पे बैठी हुई थी वरना उन्हें पीछे की चादर पे लगा वीर्य दिख जाता :ऊप्स:

आदम : य..ये लीजिए भाभी

ज्योति : हाँ हां दो थॅंक यू सो मच आदम

आदम : अच्छा भैया कहाँ है? सो गये क्या ?

ज्योति : जबसे आए है तबसे बिस्तर पे ही तो पसरे हुए है

आदम : हां हां आप उन्हें उठने नही देती होगी ना

ज्योति : हट पगोल कुछ भी हां बदमांश

ज्योति भाभी मेरे हाथ से नमक की कटोरी लिए जाने लगी उन्होने जाते वक़्त पूछा भी माँ कहाँ है? क्यूंकी कमरे में घुसने के वक़्त भी वो यही इधर उधर झाँक रही थी सोचते हुए....मैने कहा असल में माँ की साड़ी पे खाना बनाते वक़्त दाल कपड़े पे लग गया था तो वही उतारने बाथरूम गयी है..

ज्योति : अच्छा पर शाम को तो तेरी माँ कही थी कि उन्होने खाना जल्दी बना लिया मैं आई भी थी कहाँ गंदी हुई थी साड़ी?

आदम : उम्म्म हो सकता है ध्यान ना दिया हो साड़ी के एक साइड लग गया था माँ भी थोड़ी केर्लेस वुमन है ना हाहाहा बाद में ख्याल करती है? (मेरी गान्ड फॅट गयी कि कही उन्हें कोई शक़ ना हो जाए)

ज्योति भाभी मुस्कुराइ फिर बोली चलो तुम गेट लगा लो मैं जा रही हूँ...मैने उन्हें गेट तक छोड़ा फिर झट से दरवाजा लगाया...गनीमत थी कि माँ बाथरूम में घुसने के साथ नल चला दी थी...मैं जब वहाँ पहुचा तो माँ ने पर्दे से सर निकालते हुए कहा कि क्यूँ आई थी?...

.मैने कहा कि वो नमक लेना था उन्हें....माँ फिर कुछ नही बोली नहाने लग गयी उसके नहाने के बाद मैने भी नहा लिया...फिर हमने साथ डिन्नर किया और एकदुसरे से चिपक कर सो गये....माँ ने वो दर्जी की सीलि मास्क को फ़ैक् दिया...बोली कि ये सब की दरकार नही फालतू चीज़ें घर में अच्छी नही लगती...कोई देखेगा तो क्या सोचेगा? मैं भी क्या कहता इसलिए कोई आपत्ति नही की...वरना बार बार वो मास्क देखके माँ की ब्द्स्म वाली चुदाई का ही ख्याल आता
 
अगले दिन ऑफीस में काम काज से निपटा रहा था...तो इतने में मोबाइल फोन बज उठा...मैं दफ़्तर से बाहर निकला फिर फोन रिसीव किया..."हेलो?".....अननोन नंबर देखके ही मैं चौंक उठता था..इसलिए मैने थोड़े कड़े स्वर में कहा...उधर से आवाज़ आई किसी औरत की...उन्होने जैसे ही बिंगाली में अपना परिचय दिया...तो मैं खुश हुआ क्यूंकी कॉल मेरी बुआ का था बड़ी बुआ का....वहीं तबस्सुम दीदी की माँ और मोरतुज़ा काका की बीवी

आदम : हां काकी बोलिए

बुआ : अर्रे बेटा कैसा है तू? काम कैसा चल रहा है माँ कैसी है ? आजकल तो बस एकदम किनारे हो गया है तू..

आदम : हाहाहा ऐसा नही है काकी मैं बहुत याद करता हूँ आप लोगो को असल में माँ को अकेले भेजता नही हूँ ना आप तो जानती है कि बाहर का माहौल और उपर से मुझे एकदम वक़्त नही मिलता हाथ में

बुआ : ओह्ह्ह अर्रे बेटा तुम्हारी तबस्सुम दीदी आई है अपने पति के साथ...तुम माँ को लेके आओ तबस्सुम दीदी तुमसे मिलने की बड़ी ज़िद्द कर रही है

आदम : अच्छा अच्छा जी बिल्कुल काकी

इतना कहते हुए कुछ देर बात किए काकी ने फोन कट किया...तो मैने सोचा उफ्फ तबस्सुम दीदी अब तक तो वो काफ़ी निखर गयी होगी....मुझे फिर अपने और तबस्सुम दीदी के बीच हुए वो मीठे मीठे वाक़या नज़र में घूमने लगे जैसे....तबस्सुम दीदी आज बच्चेदार हो गयी थी...उनके दो बेटे हुए थे और तबस्सुम दीदी के साथ लुत्फ़ उठाने के बाद ही तो मैं शहर लौट आया वो कोलकाता चली गयी थी अपने पति के साथ...फिर तो उसके बाद भेंट ही नाही हुई थी...सच में माँ को यहाँ लाने के बाद मैं अपनी किस औरत से मिला था?

मैं तबस्सुम दीदी से मिलने के लिए एग्ज़ाइटेड था इसलिए दुकान से ही कुछ बच्चों के लिए चीज़ें खरीद ली...जैसे खिलोने वग़ैरा...जब मोरतुज़ा काका के घर पहुचा तो वहाँ बुआ ने मेरा स्वागत किया...गनीमत थी कि काका मुझे मिले नही वो काम के पर्पस में आउट ऑफ टाउन थे आने ही वाले थे पर सुना कि शहर और हाइवे के बीच हेवी जाम में अटके हुए थे...

तबस्सुम दीदी ने मुझे देखते ही मुझे गले लगाया उफ्फ उनकी छातिया तो मेरी शर्ट में ही जैसे दब गयी....काफ़ी मोटी मोटी छातिया हो गयी थी...खूब निखर गयी थी मोटी भी हो गयी थी और चूतड़ एकदम उठे हुए थे....जीजा जी मुझसे मिले और हम दोनो ने हाथ मिलाया फिर वो मुझसे बातें करने लगे...इस बीच मेरी नज़र पास झूले में उन दो नवजात शिशु पे पड़ी....मैने उन्हें आगे बढ़के एक एक कर गोद में उठाया

वाहह कितने खूबसूरत थे?....हम तीनो बैठके बातें करने लगे इस बीच तबस्सुम दीदी दूसरे वाले बच्चे को अपने साथ ले गयी...हम मर्दो से परदा किया..जान ही सकते है क्यूँ? तो उनका दूसरा बच्चा भी रोने लगा...जीजा ने एकदम से बात काटते हुए आवाज़ दी तबस्सुम दीदी को पर वो उठने की उस हालत में नही थी....

"अर्रे तबस्सुम्म देखो रोशन रो रहा है इसे भी दूध पिला दो".......हालात को देखते हुए जीजा जी बच्चे को लिए अंदर चले गये फिर वो वापिस बाहर लौटे

जीजा : और बताओ कैसे हो?

आदम : ठीक हूँ सर आप बताइए

जीजा : हाहाहा बस हम भी अच्छा ही चल रहे है मैं तो बेहद खुश हूँ मेरी तो जैसे आस ही छूट गयी थी लेकिन तबस्सुम के प्रेग्नेंट होने से घर में जैसे रौनक आ गयी और तुम कब कर रहे हो शादी?

आदम : हाहाहा फिलहाल तो नही और ना शायद करूँ?

जीजा : अर्रे कर लो कब तक यू जवानी जाया करोगे?

मैं जानता था जीजा साला काफ़ी ठरकी था...इसलिए मैने भी डबल मीनिंग लहज़े में मुस्कुराते हुए कहा कि जब किसी की मिल जाएगी तो पर्मनेंट्ली उसी से ही कर लेंगे .......जीजा ने मेरे हाथ पे हाथ मारते हुए टहाका लगाया.....जीजा इतना खुश था और इतना अहंकार कर रहा था जैसे वहीं अपनी औलादो का बाप हो...साले को क्या खबर? पी पीके तो खुद ही सेक्षुयल ड्राइव अपनी खराब कर ली ......और उसकी बीवी की कोख को तो उसके अपने भाई ने ही हरा किया अगर वो 7 दिन वो ना आई होती तो आज ये खुशिया ये माहौल होता ही नही

जीजा से बोरियत हुई बात करने में पर बात करना पड़ा....तो बुआ आके बैठ गयी तो मुझे कंपनी मिली हमने थोड़ा रेफ्रेशमेंट लिया तो इतने में तबस्सुम दीदी दोनो बच्चों को सुलाते हुए हमारे साथ आके गॅप करने लगी...इतने में पेशाब करने का इशारा किए जीजा बाथरूम चले गये तो बुआ भी झूठे बर्तनो को लिए अंदर किचन में चली गयी बोली बातें करो तुम लोग

तबस्सुम दीदी काफ़ी सजी धजी लग रही थी...तो मैने उनसे ही बात करना शुरू किया...वो बीच बीच में मुझसे शरमा भी रही थी शरमाये भी क्यूँ ना उसे मुझे देखके वहीं बीती बात याद आ रही होगी वो दिन याद आ रहे होंगे जब उसने मेरे साथ बिस्तर गरम किया था....

आदम : और ठीक हो ना ?

तबस्सुम : बहुत ही ठीक हो गये है हम नही तुम्हारे जीजा जी अब देखो कैसे लट्तू की तरह हमारे पीछे नाचते है

आदम : ह्म अच्छा दीदी अब तो तक़लीफ़ नही देते ना किसी भी तरह की

तबस्सुम : नहिी तुम्हारे से मिलने के बाद मैने उनके साथ यहाँ भी किया था (मेरे पास चेहरा लाए धीरे लहज़े से बोलते हुए कही)

आदम : ह्म चलो अच्छा है अब आप खुश तो रहोगी

तबस्सुम : तुम बताओ वापसी कब हुई दिल्ली से?

आदम : बस हो गया करीब 1 साल होने को है

तबस्सुम : ह्म ठीक ही किया जो माँ को साथ ले आए और बाबा वहीं है

आदम : नही वो नोएडा शिफ्ट हो गये (मैं तो पिता की बात करना ही नही चाहता था इस बीच वो अपनी साड़ी ठीक करने लगी)

तो मैने पाया कि उन्होने लाल रंग की ब्लाउस पहनी थी और उनके साथ निपल्स दिख रहे थे....ब्लाउस थोड़े गीले थे समझ आया कि उनसे दूध निकल रहा था...उफ्फ मेरी तो देखके ही हालत खराब हो गयी काश माँ के भी ऐसे दूध निकलते तो सेक्स करने में दुगना मज़ा आता पर माँ नयी नयी माँ थोड़ी बनी थी

तबस्सुम दीदी ने नोटीस कर लिया कि मेरी निगाह उनके छातियो पे गुज़री तो वो हल्का शरमाई और मुस्कुराइ....कही कि अब नही आदम वरना तुम्हारे जीजा जी को शक़ हो जाएगा...मैने कहा हाए दीदी आप इतनी निखर ही गयी हो किसी भी गैर मर्द का दिल आपके प्रति फिसल जाए ....तो तबस्सुम दीदी मुस्कुराइ....इस बीच बुआ ने आवाज़ देते हुए कहा कि माँ नही आई? मैने कहा आ जाती पर मैं सीधे ऑफीस से यहाँ आ गया फिर कभी ले आउन्गा...इस बीच तबस्सुम दीदी ने शरारत भरे लहज़े में कहा कि अब अकेले नही माँ के साथ ही आना समझे

आदम : हां हां बिल्कुल (सच पूछो तो मेरा मन भी अब माँ से अलग किसी पराई औरतों पे नही हो पा रहा था और वैसे भी तबस्सुम दीदी को चोदना अब ना मुमकिन के ही बराबर था घर पे सब प्रस्तुत रहते हर वक़्त मेरे घर में तो चान्स नही हो पाता माँ का डर अलग)

तबस्सुम : अब कर लो ना शादी इतने जवान हो गये हो

आदम : मर्द ज़िम्मेदारियो से मर्द बनता है शादी से नही

तबस्सुम : वो तो ऑलरेडी बन ही चुके हो तुम ज़िम्मेदारियो से भी और किसी और चीज़ से भी

आदम : हां वो तो है अभी भी बिस्तर पे आपकी आहों की आवाज़ सुनाई देती है (तबस्सुम दीदी एकदम झेंप सी होके मुझे घूर्रने लगी)

मैं हंस पड़ा :लोटपोट....तबस्सुम दीदी ने मुझे धीरे धीरे लहज़े में ही बताया कि यहाँ से जाने के बाद वो अपने पति से भी एक आध बार दिखावे के लिए चुदि थी...जिससे उन्हें ये लगे कि उनकी खोख सुनी से हरी उनके पति की वजह से हो गयी है....सुधिया काकी ने क्या पैतरा आज़माने को दिया था उन्हें? एक तरफ उनका उजड़ता सुहाग और दूसरी तरफ मेरी ज़रूरत दोनो के ही मक़सद पूरे हो गये एकदुसरे से मिलते ही ....फिर तबस्सुम दीदी मेरी प्रशंसा करने लगी मेरी तारीफ किए ही जा रही थी कि अगर मैं ना होता तो उनका सुहाग....उन्होने उन बच्चों की तरफ निगाह डाली फिर मेरी ओर....दिल ही दिल में कहा जैसे तुम ही तो इनके बाप हो....और ये सच ही तो था
 
एक तरफ रूपाली भाभी मेरे बीज से माँ बनी और दूसरी तरफ तबस्सुम दीदी अपनी राज़ी खुशी से अपने घर को उजाड़ने से बचाने के लिए अपने पति का रिश्ता तोड़ देने के डर से ही तो मुझसे हमबिस्तर हुई थी वो...पर रूपाली भाभी को तो भूल से गर्भ ठहरा था ....तबस्सुम दीदी ने कहा कि खाना ख़ाके जाओ....और वहीं हुआ मुझे जीजा जी और उनके साथ ही रात का भोजन करना पड़ा बुआ ने खाना भी पॅक किए दिया कहा कि माँ को भी खिलाना इस बीच माँ के मेरे देर हो जाने से एक आध बार कॉल्स भी आए...एक तो माँ उपर से मेरी घरवाली उसे तो मेरी फिकर होनी ही थी मैने उसे कहा कि मैं तबस्सुम दीदी के यहाँ आया हूँ तुमसे आके बात करूँगा तो वो फिर निश्चिंत हुई....

एक बार फिर रोशन और राहुल को अपनी गोद में लिए खिलाया वाक़ई चेहरा मुझसे ना मिलता जुलता हो पर एक खिचाव सा था उनके प्रति मेरा...तबस्सुम दीदी की गोद में बच्चा देते हुए मैं वहाँ विदा हुआ और घर लौटा..माँ ने खाना तक नही खाया था...इसलिए बुआ की दी सब्ज़ी और तरकारी उनके सामने खोल दी...माँ ने कहा तू कुछ खा ले मैने कहा ख़ाके आया हूँ पर फिर भी माँ का दिल रखने के लिए मैने उनके साथ थोड़ा सा रात्रि भोजन और कर लिया....फिर हम वापिस बिस्तर पे आके लेटे कुछ देर माँ मुझसे बतियाती रही तबस्सुम दीदी के बारे में उनके ससुराल के बारे में पूछने लगी मैने बताया सब हँसी खुशी में चल रहे है...तबस्सुम दीदी ने दो बेटों को जो जनम दिया वो दिखने में निहायती हसीन है (तारीफ मेरे खुद के बच्चो की मैं कर रहा था जिससे माँ अंजान थी)

पूरी रात तबस्सुम दीदी और खुद की चुदाई के वाक़यो को सोचते हुए ही मुझे नींद आई....अगले दिन जब मेरी नींद खुली तो माँ ने ही मुझे जगाया वरना ऑफीस के लिए लेट हो जाता.....इस बीच माँ और मैने मुंबई जाने के लिए तय्यारी भी पुरज़ोर कर ली थी...इसलिए माँ ने तारीख पास आते आते सारी पॅकिंग कर ली थी....मैने माँ से कहा चल इस बीच कुछ महँगा गिफ्ट समीर भाई और उसकी होने वाली बीवी के लिए खरीद लेते है....तो माँ ने मेरे गाल खीचे...."अर्रे तेरी सोफीया आंटी है वो रे बाबा "...........

."हाहाहा आंटी थी पर अब भाभी जो बनने जा रही है"......

."हाए रे ये लड़के क्या से क्या बना देंगे अपनी माँ को .....माँ शरमाते हुए हंस पड़ी...मेरी भी हँसी छूट गयी..

हम शहर के बड़े महँगे दुकान गये पहले तो सेलेक्षन में ही साला काफ़ी टाइम पास हुआ उसके बाद ही मैने एक महँगी तस्वीर खरीदी जो माँ को भी जची साथ ही साथ में माँ ने एक बहुत ही महेंगी काम की हुई साड़ी सोफीया आंटी के लिए खरीदी....दो-तीन तोफो को निक़ाह के लिए खरीदने के बाद हमने उन्हें अच्छे से पॅक करवा लिया...

"पर बेटा ये सब हम फ्लाइट में ले जा सकेंगे? ........

."अर्रे हां माँ सब तो चला जाएगा पर ये तस्वीर इसका कॉच ना टूट जाए मैं एक काम करता हूँ समीर को इत्तिला करके ये उसके घर शिपमेंट करवा देता हूँ पार्सल में भी क्या मालूम टूट जाए? मेरे बहुत जानने वाले है जो डेलिएवेरी आउट ऑफ टाउन करते है संभाल के ले जाएँगे".........माँ को मेरा ये आइडिया अच्छा लगा

मैने समीर को सर्प्राइज़ देने के लिए वो तस्वीर भिजवा दी....साथ में एक वेड्डिंग कार्ड में भी लिख के दिया..."तो बिलव्ड समीर आंड फॉर हर वाइफ सोफीया शादी की ढेरो मुबारक"......ये लिखते हुए मैने वो तस्वीर वाला तोहफा ऑफीस में दिया जिन्होने मेरे रेफरेन्स पे उन्हें मुंबई भेज दिया बोला कुछ दिन में ही पहुच जाएगा....अब चलो देखते है समीर कितना खुश होता है? कही वो ये बुरा ना मान ले कि हम आ नही रहे पर पहले तोहफा ही फॉरमॅलिटी के लिए भेज दिया....


समीर का 4-5 दिन हमारे फ्लाइट छोड़ने से एक दिन पहले कॉल आया वो काफ़ी खुश हुआ उसे पैंटिंग काफ़ी अच्छी लगी उसने कहा कि सोफीया को भी वो पैंटिंग काफ़ी पसंद आई है अब मैं जल्द से जल्द बस निक़ाह में शरीक़ हो जाउ....मैं बस मुस्कुराया और उसे शादी की ढेरो बधाई दी....उसे ये सर्प्राइज़ तो माँ ने बताने से मना किया जो सोफीया आंटी जानती थी कि माँ भी उन माँ-बेटों के निक़ाह में शामिल होने वाली थी मेरे साथ

सोफीया : अर्रे पगले तूने आदम की माँ अपनी अंजुम आंटी का ज़िक्र किया (सोफीया ने अपने बेटे की तरफ हैरत से देखते हुए कहा उसे तो लगा जैसे सोफीया और अंजुम दोनो ही उनके शादी में आके उसके बेटे को सर्प्राइज़ देने वाली थी)

समीर : हाहाहा अब जितना हमसे छुपा लो तुम अपने राज़...उतना ही जानूँगा मैं वो सब तेरी बातें (माँ शरम से लाल हो गयी उसकी चोरी पकड़ी गयी )

समीर : हाहाहा असल में उस दिन मैने टेबल पे दोनो माँ-बेटे यानी कि आदम और अंजुम आंटी को एकदुसरे से छेड़ करते हुए देखा और वो जिस तरीके का छेड़ कर रहे थे उससे मुझे तो सॉफ हो गया कि दोनो के बीच कुछ तो पुआ पक रहा है क्यूंकी एक माँ और बेटे वैसे तो एकदुसरे को छेड़ते नही वो छेड़ तो मिया बीवी के ही बीच होता है ...पर मैं कन्फर्म नही था...और शक़ तो तभी से था जब आदम खुद अपना जॉब बसा बसाया सबकुछ छोड़ होमटाउन से वापिस दिल्ली आया था...उस वक़्त उसके दिल-ओ-दिमाग़ पे लस्ट छाया हुआ था अपनी माँ के प्रति...
 
सोफीया : हाए अल्लाह तुम्हे तो सबकुछ पता चल गया

समीर : ह्म शातिर हूँ मैं मेरी जान मेरा दोस्त जितना भी छुपा रुस्तम रहे उसकी असलियत तो मैं पहचान ही लेता हूँ...हाहाहा दरअसल मैं खुद पहले घबराया कि कही आंटी को हमारे रिश्ते के बारे में मालूम ना चल जाए लेकिन उस दिन एर टिकेट्स निकालते वक़्त न जाने क्यूँ मन हुआ एक बार आदम से बात कर ही लूँ...अब जब टिकेट्स निकाली थी तो वो सॉफ कह देता कि मैं तो माँ को लेके आउन्गा नही...पर वो तो एकदम खुश हो गया आंटी ने मुझे जब इनफॉर्म किया तभी मेरा शक़ यकीन में तब्दील हो गया....कि बेटा एक तरफ मुझसे झूठ बोल रहा है कि माँ को उसकी कुछ नही मालूम फिर एकदम से उसकी माँ ही मुझे कॉल की बड़ा कन्फ्यूज़्ड हो गया था मैं..

तब आयने की तरह सॉफ मुझे मालूम चल पड़ा कि बेटे आदम मियाँ तुम तो हमसे भी बड़े वाले मजनू निकले...गुपचुप दोनो माँ-बेटे होमटाउन शिफ्ट भी हो गये जहाँ जाने से भी आंटी को इतना नफ़रत और देखो किस्मत का खेल सच खुद ही सामने आ गया है

सोफीया : हाहाहा बेटा तू अपने दोस्त को ग़लत मत समझ वो तो बस तुझे सर्प्राइज़!

समीर : अर्रे मेरी जान इसी लिए तो मैने कुछ नही कहा अब तक चुप रहा ताकि आदम खुद मुझे ये राज़ बताए मैं जानता हूँ आंटी को निक़ाह में लाने का मतलब है मुझे सर्प्राइज़ ही देना लेकिन एक बात बताओ तुम्हें आंटी की मज़ूद्गी चाहिए निक़ाह में वो भी आना चाहती है तो इस बीच आदम ने बेवकूफी ना की यह कह कर कि हां अंजुम आंटी तो बिल्कुल आएँगी बोलो बोलो

सच में समीर जितना व्यभाचरी था उतना ही उसकी सोच भी ऐसे रिश्तो को पकड़ लेती थी...समीर को थोड़ा बुरा लगा कि शायद आदम ने उसे गैर ही समझा जो आजतक अपनी माँ और खुद के रिश्ते को छुपाते आया था....लेकिन वो जानता था आदम ऐसा नही है...शायद उस वक़्त जब उनके घर आखरी बार आए थे दिल्ली में तो पहेल कर रहे हो...लेकिन आदम ने सॉफ इनकार किया उसका अपनी माँ के प्रति कोई ऐसा सोच विचार नही...और समीर को भी लगा सोफीया हुई तो क्या? सोफीया जैसी हर माँ तो नही हो सकती

समीर शक़ के घेरे में ही रहता अगर उस रात आदम ने उसे फिर कॉल ना किया होता...वो चुपचाप बियर की चुस्की ले ही रहा था कि इतने में आदम का कॉल आया....समीर ने फिर अंजान बनके पहले आदम को सलाम किया फिर हंस के खुशी लहज़े में बात करने लगा.....

आदम : भाई हमारी माँ हमे सर्प्राइज़ देना चाह रही थी कि तेरे निक़ाह में माँ शामिल होगी तू सोचेगा उस वक़्त अबे ये क्या हो रहा है? हाहहहा

समीर : अबे मैं जानता हूँ साले तू बड़ा छुपा रुस्तम निकाला कोई नही कोई नही

आदम : हाहाहा सॉरी यार मैं उस वक़्त कुछ नही कह पाया जानता है क्यूंकी उस वक़्त माँ और मेरे बीच टालमटोल जैसे रिश्ते चल रहे थे....अब हम इकट्ठे है एक साथ है और तू तो जानता है एक साथ का मतलब

समीर : ह्म पर यार सोफीया ने मुझे बताया कि आंटी को कोई ऐतराज़ नही हमारे निक़ाह से :कन्फ्यूज़2:

आदम : बिल्कुल भी नही बल्कि जबसे उसे व्यभिचारी रिश्तो में ढाला है तबसे वो ऐसी हो गयी है कि अब उन्हें ये रिश्ता पाक दिखता है

समीर : तू भी साला सच बताना झूठ तो नही कह रहा चल माँ को तेरी मालूम चल ही गया हमारे रिश्ते के बारे में तो भी क्या सच में वो तेरे साथ रोज़ रात हमबिस्तर होती है ह्म

आदम समीर के मन की जिग्यासा बखूबी पढ़ सकता था...इसलिए उसने सिर्फ़ मुस्कुराए लहज़े में हल्का सा हंसा...तो समीर खुद पे खुद समझ गया कि आदम सच कह रहा था....फिर दोनो भाई एकदुसरे को अपने रिश्ते की मुबारकबाद देते हुए बात करने लगे....जब आदम ने फोन कट किया तो उसने पाया माँ उसके सामने पीठ किए बैठके झुककर फ्रिड्ज के पॉट से सब्ज़िया निकाल रही थी....माँ की लचकदार कमर बेटे के सामने थी....आदम ने अपने प्यज़ामे में अपने उभार को सहलाया....इस्शह क्या माँ का पिछवाड़ा दिख रहा है पेटिकोट के खिचाव से उफ्फ कितने उभरी हुई नितंब है माँ की....

आदम : माँ (बेटे ने आवाज़ दी तो अंजुम ने गले को आँचल से पोंछते हुए मूड कर बेटे की तरफ देखा)

अंजुम : क्या हुआ?

आदम : लगता है धक्के थोड़े हल्के हल्के मारने पड़ेंगे तेरी कमर और गान्ड दोनो उभर के उठ रही है

अंजुम : हाए अल्लाह कैसी बातें करता है अपनी माँ से तू? (मन ही मन अंजुम शरमा भी रही थी)

अंजुम : इसी लिए तो कहती हूँ तेरा कद्दू मुझे बहुत चुभता है आहिस्ते ही करा कर वरना पेटिकोट मेरा किसी दिन तेरी ही हरकतों की वजह से फॅट जाएगा

आदम : उफ़फ्फ़ माँ ऐसी बात ना कहो मैं तो चाहता हूँ कि इस्पे सिर्फ़ मेरी ही नज़र पड़े

अंजुम : ओह हो आज अपनी माँ को ही लाइन मार रहा है पहले तो नही देखता था ऐसे वैसे भी वक़्त के साथ साथ ढलती उमर में शरीर में चर्बी बढ़ ही जाती है

आदम : अर्रे ये तो मेरी मेहनत का कर्म है माँ जो तुझे मेरा खानपान लग रहा है वरना पिता जी के टाइम में तो तू एकदम सुखी हड्डी थी

अंजुम ने शरमाते हुए बेटे की तरफ देखा....आदम ने चाहा आगे बढ़के माँ के नितंबो को सहलाए पर उसे देरी ही किस बात की थी? पूरा वक़्त था उसके पास दो जने ही तो घर में उपस्थित हुआ करते थे और था ही कौन? जब चाहे गेट लगाओ और शुरू हो जाओ माँ भी तो हर टाइम राज़ी थी चाहे किचन में थामो उसे या किसी भी वक़्त बिस्तर पे लेटके टाँग खोलने का वक़्त वो ज़्यादा नही लेती थी...
 
आदम ने बताया कि समीर को सब मालूम चल गया तो उसे थोड़ा गुस्सा आया आदम पे...कि तू सर्प्राइज़ सर्प्राइज़ नही रख सका...तो आदम ने कहा कि वो तो मुझसे भी शातिर है हमारे रिश्ते को टटोल ना ले इसलिए उसका पता चलना वाजिब ही था.....माँ ने कुछ नही कहा बस माँ को रह रहके शरम आ रही थी....हो भी क्यूँ ना? देसी औरत थी शर्मो लिहाज का परदा रखना चाहती थी...किसी को मालूम ना चले ईवन अपनो तक को नही कि हम कैसे रिश्ते में बँधे है....अब समीर को मालूम चलना मतलब सोफीया आंटी को भी पता लगना था फिर उनके पास जाके वो उन्हें छेड़ती यही सब माँ ने मुझे कहा...मैने कहा कोई फिकर की बात नही है दोनो अपने ही घर के लोग है....तो माँ कुछ ना बोली खाना बनाने चली गयी...

हमारा शेड्यूल भी काफ़ी बिगड़ गया था...माँ और मैं रात गये बिस्तर पे देरी से सोते थे क्यूंकी ज़्यादातर वक़्त हमारी गंदी आदतों में ही गुज़रता था...खाना से फारिग होते है 10 बजे साडे दस बजे...माँ बिस्तर पे लेट जाती थी...फिर मैं टीवी में कोई मस्त ब्लुफिल्म लगा लेता था...और उसके बाआड़ हम अपना बिस्तर गरम करने लग जाते थे...गनीमत थी कि माँ और मेरे इतने दिनो के हमबिस्तर के दौरान माँ की भीषण चुदाई के बाद भी उन्हें गर्भ नही ठहरा था...क्यूंकी मैं काफ़ी सावधानियाँ बरतता था...सुबह 9 10 बजे आँख खुलती झटपट जैसे तैसे हालत में नाश्ता किए ऑफीस के लिए भागना पड़ता था...पूरे टाइम ऑफीस में उबासी लेते हुए काम करता था....और यही चिड मची रहती कि कब घर को निकलूंगा?

उस दिन माँ को सब्ज़ी मार्केट लेकर गया था...अब तो माँ बेफिक्री से सब्ज़िया ख़रीदती थी उसे अब किसी का डर नही था....मैने माँ से कहा कि चलो तबस्सुम दीदी से भी मिल लो वरना सोचेंगी कि हम घमंड कर रहे है....माँ ने कहा बच्चो को कुछ पैसे भी तो हाथ में पकड़ाना होगा ये तो घर की रसम है...मैने कहा कोई बात नही आप चलो तो....हम तबस्सुम दीदी से एक बार फिर मिले मोरतुज़ा काका भी वहाँ थे...मेरे स्टेटस की तारीफ किए जा रहे थे कि जितना तुमने उन्नति यहाँ रहके हासिल की उतना तुम्हारे पिता ने कभी ऐसा मोक़ां नही पाया...माँ को तो मुझपे गर्व हो रहा था....फिर तबस्सुम दीदी और उनके और मेरे बच्चों से मिलके माँ काफ़ी खुश हुई...जीजा जी भी माँ से आदर प्रणाम करके उनसे मिलके काफ़ी खुश हुए वो बार बार माँ की खूबसूरती की तारीफ कर रहे थे जो मुझे अच्छा नही लग रहा था....पर गनीमत थी कि वो माँ को काकी की ही नज़र से देख रहे थे सबसे विदा लेने के बाद हम वापिस घर को लौटे...माँ बेहद खुश थी...हमारे कोई 1 दिन बाद ही सुना कि तबस्सुम दीदी जीजा जी के साथ कोलकाता वापिस अपनी ससुराल निकल गयी सुनके अच्छा लगा कि गृहस्थी दीदी की पूरी अच्छी गुज़र रही थी और अच्छे से बस भी चुकी थी....

तारीख एकदम पास आ चुकी थी परसो की फ्लाइट थी तो हमने रात की ट्रेन कोलकाता जाने वाली का दो टिकेट लिया था....होमटाउन से कोलकाता जाने में कोई 8 घंटे ट्रेन में लगते है... अगले दिन.हम भीढ़ भाढ़ भरे कोलकाता शहर पहुचे...रेलवे स्टेशन से निकलने के बाद मैने माँ से कहा कि यहाँ से सीधा एरपोर्ट की तरफ निकलेंगे पहले कुछ खा पी ले....खाना वाना ख़ाके फारिग हुए एरपोर्ट जल्दी ही हम पहुच गये...माँ बेहद खुश थी ये उनका पहला सफ़र था...मैने माँ को अच्छी अच्छे सूट्स और साड़ी दिलाई थी साथ में निक़ाह में पहनने के लिए माँ के काफ़ी ज़िद्द देने पे एक शेरवानी खरीद ली थी....

एरपोर्ट में घुसने के एंट्रेन्स से दाखिल होने के बाद मैने माँ का बोरडिंग पास अपने पास ही रखा...फिर हम प्लेन में दाखिल हुए माँ और मेरा बोरडिंग पास दिखाए फिर उसके बाद हमारी फ्लाइट कुल मुक़रर वक़्त पे ही उड़ पड़ी...

उफ्फ टेक ऑफ के वक़्त माँ ने मेरे हाथो को कस कर पकड़ा हुआ था...उनकी तो जैसे जान अटक गयी थी....प्लेन अब 40,000 फ्ट उचाई पे उड़ रहा था पीछे छोड़ता चला गया वेस्ट बेंगल को...वाक़ई मैने कभी सोचा नही था कि समीर ने इतने बढ़िया एकॉनमी सीट्स का इंतेज़ाम किया था...एर होस्टेस्स के रेफ्रेशमेंट देने के बाद माँ से मैने कहा कि बस 2-3 घंटे में हम पहुच जाएँगे तब तक खिड़की से बाहर का जायेज़ा ले

माँ तो बस किसी छोटे बच्चों की तरह बाहर के नज़ारे को देख रही थी बीच बीच में मुझे उंगली दिखाते बोल रही थी देख कितना सुहाना सा व्यू लग रहा है...मैं भी काफ़ी उत्सुकता से देख रहा था...हमारी पहली फ्लाइट जो था ये तो एक ख्वाब ही था मेरे लिए....जब 2 घंटे बाद हमारी नींद टूटी तो हम लॅंडिंग कर चुके थे....मुंबई एरपोर्ट हमारी फ्लाइट पहुच चुकी थी...

कुछ देर बाद अनाउन्स्मेंट के होते ही हम बाहर निकले....माँ को ये सफ़र बेहद बढ़िया लगा....हम एकदुसरे के हाथ पकड़े एरपोर्ट से फिर बाहर निकले....टॅक्सी हाइयर की और समीर के यहाँ पहुचे इस बीच समीर ने दो-तीन बार कॉल किया मैने बताया कि मैं पहुच चुका तो उसने आने की इच्छा ज़ाहिर की मैने कहा कि हमने तेरे घर के लिए टॅक्सी भी ले ली....समीर ने फिर जानके फोन कट कर दिया...

वाक़ई समीर के बताए पाते के उस फ्लॅट के चौथे माले पे हम पहुचे लिफ्ट से...फ्लॅट काफ़ी आलीशान थी....आसपास के लोग भी काफ़ी मॉडर्न रहने वाले थे....वाक़ई समीर शौहरत मंद था....हमने दरवाजे की घंटी बजाई...दरवाजा खुलते ही समीर और आंटी ने हमारा स्वागत किया....समीर तो मेरे गले लग गया फिर माँ से सलाम किया....

समीर माँ को देखके शरमा रहा था....तो माँ ने उसके गाल खीचे.."बस बहुत शरमा लिया मैं जानती हूँ तू सब जानता है हां क्यूँ सोफीया? तुम बेटे को झूठ नही बोल सकती थी ........

."अर्रे ये इससके आगे कोई बहाना चल सकता है भला".............सोफीया आंटी और माँ भी हंसते हुए मज़ाक किए अपने बेटे की एकदुसरे के गले मिली...

फिर सोफीया आंटी ने मेरे चेहरे पे हाथ रखके मुझे गले लगाते हुए मेरा हाल चाल पूछा..."बेटा तू कैसा है?".......

."आंटी मैं बहुत अच्छा हूँ और आज आप बेहद हसीन और खूबसूरत लग रही है"..........सोफीया आंटी और माँ दोनो ही हंस पड़े....समीर भी मुस्कुराया

फिर हम अंदर आए झट से समीर ने हमारे लिए शरबत दिया और कहा कि अब कुछ दिन रुकना होगा आप दोनो को इसलिए वन वे टिकेट कटवाया था ..

.मैने कहा यार नौकरी का सवाल है....

समीर झल्लाया और कहा नही अभी आया और फिर जाने की बात कह रहा है .....नही ना आंटी कहीं जाएगी और ना तुझे कही जाने दूँगा? अर्रे यार इतने महीनो बाद मिले हो और अभी कैसे?

माँ : अर्रे समीर बेटा आदम नौकरी करता है ना थोड़े दिन की छुट्टी लेके ही आया है इसलिए कह रहा है ऐसा और अब तो मुंबई फिक्स हो ही गया हम सबका अब तो आना जाना होते ही रहेगा

समीर : हां आंटी ये तो है चलो आप लोग आप लोगो की भेजी जो तस्वीर थी वो दिखाए....

सोफीया : हां अंजुम देखो तो ये देखो (समीर और आंटी हमे अपने बेडरूम ले गये और वहाँ वो दीवार के टॉप मे लगी पैंटिंग दिखाई जो तस्वीर हमने भेजवाई थी)
 
वाक़ई वो तस्वीर काफ़ी खूबसूरत और थोड़ी बोल्ड थी....उसमें एक मटका लिए औरत जा रही थी और उसने सिर्फ़ एक साड़ी पहन रखा था इससे उसका बदन सॉफ नगन दिख रहा था....उसकीए बगल भी दिख रही थी....मैं जानता था दोनो शादी करने वाले है कुछ इस अंदाज़ की तस्वीर ही दोनो को भाएगी और ये तो माँ की भी पसंद थी फिर हमने उन्हें बॅग से निकालके तोहफे दिए जिनमें एक लॅंप था और कुछ घर में टाँगने वाली रिलिजियस तस्वीरें

उन्हें ये सब चीज़ें देखके काफ़ी खुशी हुई.....फिर समीर हमे हमारा कमरा दिखाते हुए बोला कि आप लोग अब आज से यही ठहरना....कमरा काफ़ी खूबसूरत था...और बिस्तर भी गद्देदार यक़ीनन साला हम दोनो को प्राइवसी देना चाह रहा था

माँ और सोफीया आंटी तो बातों में लग गये....फिर माँ ने समीर को समझाया भी कि जो कुछ उन दोनो के बीच होने वाला है इससे रिश्ता एक दूसरे रिश्ते में तब्दील हो जाएगा...ये सोफीया आंटी का ज़िम्मा है उस पर कि वो उसे हरपल खुश रखे मैं भी वहाँ मौज़ूद था इसलिए समीर के कंधे पे हाथ रखके उसे प्रोत्साहन दे रहा था....

समीर ने माँ से वादा किया कि वो अपनी माँ को अपनी बीवी के रूप में पूरी तरीके से अपनाने को राज़ी है और आख़िर तक उसका साथ निभाएगा...सोफीया आंटी इस बीच थोड़ी भावुक हो उठी तो माँ उन्हें समझाने लगी....इस बीच मज़ाकिया माहौल बना जब समीर मेरी टाँग खीचने लगा पर उसने एकदम से माँ और मेरे सामने ही कहा कि उसे मालूम है हमारे रिश्ते के बारे में और वो काफ़ी खुश भी है ये जानके कि वो इस कश्ती में अकेला नही माँ इससे शरमा उठी...और मैं भी

कुल 2 दिन तक हम समीर के यहाँ रहे थे...इस बीच हम लोगो ने साथ में तीनो टाइम का खाना खाया साथ में वक़्त बिताया मरीन ड्राइव में बारिश के सुहाने मौसम में घूमने गये काफ़ी तस्वीरें निकाली उसके बाद 15 तारिक़ को माँ सुबह सुबह ही आंटी को लेके ब्यूटी पार्लर चली गयी....समीर और मैं दोनो ही बेसवरे हो रहे थे....इस बीच हम भी तय्यार हुए तो एकदुसरे की तारीफ करने लगे...मैने कहा दूल्हा तू है इसलिए तारीफ तेरी ज़्यादा होनी चाहिए....समीर हंस पड़ा

घर को सज़ा धज़ा दिया था आदमियो ने...फिर गद्देदार बैठक के लिए क़ाज़ी के लिए लिविंग रूम भी सज़ा दिया....उसके बाद मैने खुद अपने हाथो से समीर का कमरा सजाया था सुहाग रात के लिए .....समीर इस बीच तय्यार होने अपने कमरे में चला गया था...जब वो बाहर निकला तो बहुत ही हॅंडसम लग रहा था...वाक़ई उस क्रीम कलर की शेरवानी में वो काफ़ी जच रहा था दूल्हे का सेहरा भी उसे मैने सर पे पहना दिया...और उसे बिठा दिया...आस पास किसी को मालूम नही था कि इस फ्लॅट में गुपचुप निक़ाह होने जा रहा है...

उसके बाद माँ आंटी को लिए आई.....वाक़ई वो काफ़ी खूबसूरत लग रही थी बोली कि कैसे बच बचके तय्यार करके लाई हूँ सब पूछ ही लेते वो तो बच बच के लिफ्ट से झट से अंदर आए...फिर मैने सोफीया आंटी को देखा उफ्फ कितनी सजी धजी दुल्हन के लाल जोड़े में वाक़ई उनके जैसी कोई हसीन दिख ही नही पाएगी...माँ ने इस बीच खुद को तय्यार कर लिया था इसलिए वो भी काफ़ी खूबसूरत लग रही थी....

फिर सोफीया को बिठाते हुए मैं सीधा सामने का कॅमरा ऑन कर एक जगह रखकर निक़ाह को शंट करने लगा....हम दो ही तो जान थे वहाँ और था ही कौन इस अज़ाब शादी में शारीक़ बीच में क़ाज़ी बैठ गया फिर उसने निक़हनामा शुरू किया...पहले समीर से पूछा गया...माँ उस तरफ दुपट्टे की आड़ में जो उन्होने कर रखी थी..सोफीया के साथ बैठी हुई थी...क़ाज़ी ने समीर और आंटी दोनो से रज़ामंद माँगी तो दोनो ने निक़ाह में क़बूल है कहा उसके बाद दोनो तरफ के लोगो की वालिदा का नाम जानना चाहा तो समीर ने सिर्फ़ पिता का नाम तो आंटी ने उसके नाना का नाम लिया....क़ाज़ी को कुछ मालूम नही था...वो तो सोच रहा था एक अधेड़ उमर की औरत एक यंग लड़के से शादी कर रही है.....उसने मुझसे पर्सनली पूछा भी कि क्या सोफीया आंटी का पहले निक़ाह हुआ था...मैने कहा जी नही ये पहला है बात हमने छुपा ली थी...

निक़ाह पूरा हुआ और समीर ने सोफीया के साथ निक़ाह कर लिया..दोनो की साइन लिए गये और निक़हनामा पूरा करने के बाद क़ाज़ी ने समीर को बधाई दी....वाक़ई ये दृश्य बेहद अज़ीब था मेरे लिए पर सच पूछो तो यही दिन एक मेरा भी होता..अगर माँ ने इनकार ना किया होता....कितने क़िस्से सुने थे मैने ऐसे शादियो के आपस में खूनी रिश्तो में और आज पूरे होते हुए भी देख लिए
 
क़ाज़ी के जाने के बाद हमने दावत का खाना खाया फिर शाम को माँ ने मुझे रोका और दोनो को बोला कि अब वो अपने कमरे में जाए और गुफ्तगू करे मैं तो समझ ही चुका कि शादी से पहले ही कितनी सुहागरात समीर ने सोफीया के साथ मनाई थी ये तो बस एक रसम निभा रहा था

दोनो अंदर चले गये उसके बाद कमरा बंद....माँ ने मुझसे कहा उफ्फ बहुत थकान भरा दिन था चल हम भी थोड़ा आराम कर ले दोनो को अकेला छोड़े....रात को भी मैने उन्हें डिस्टर्ब नही किया...समीर निकला ज़रूर था अपने रूम से और उसने फ़ौरन खाना ऑर्डर कर लिए मैने पूछ आंटी कहाँ है तो बोला सोफीया सो रही है अंदर ....मैं समझ गया ये तो चुदाई की थकान थी

मैने फिर भी चोरी निगाहो से झाकना चाहा तो पाया कि आंटी के बिस्तर पूरे गुलाब के पत्तो से बिखरे हुए थे चादर पूरी बिगड़ चुकी थी और आंटी के बदन पे सिर्फ़ उनकी शादी का जोड़ा वाली साड़ी ही धकि हुई थी वो अंदर से शायद नंगी थी....उफ्फ ये दृश्य देखके ही मेरे तन बदन में आग लग गई....समीर फिर हांफता हुआ बोला कि खाना आ गया है तू ले लेना और कुछ अंदर कमरे में नॉक करके भिजवा देना मैं जा रहा हूँ इतना कह कर वो अंदर चला गया....

खाना आते ही मैने उसे प्लेट में सजाया कमरे पे नॉक किया तो आंटी ने उठके लिया वो मुझे देखके शरमाई तो मैने नज़रें इधर उधर करते हुए शरम से कहा आंटी समीर तंग तो नही कर रहा ना....तो सोफीया आंटी ने मेरे गाल खीचे कहा जा बदमाश यहाँ से चल....मैं वापिस मुस्कुराता दरवाजा लगाते हुए उनके कमरे से अपने रूम में आया....तो माँ ने मुझे मुस्कुरा के पूछा अंदर का क्या माहौल है? मैने कहा वहीं जो हर सुहागरात के बाद होता है

हमने साथ डिन्नर किया और एक राउंड चुदाई की....माँ ने मना किया था कि अभी समीर के यहाँ आए हुए है मत कर...पर मेरा दिल नही माना....मैने माँ के दोनो छेदों में लंड खूब दबा दबके उनकी चुदाई की ऐसा लग रहा था शादी दोस्त की थी और सुहागरात मेरी ...हम भी फारिग हुए एकदुसरे से लिपटे सो गये....आधी रात को पानी लेने जब फ्रिड्ज के पास आया तो पाया कमरे के अंदर से आंटी की आहों की आवाज़ें और चूड़ियो का खनकता शोर सुनाई दे रहा था....ऐसा लग रहा था जैसे समीर अब तक सोफीया से फारिग नही हुआ था मैं मुस्कुराते हुए कमरे में आया क्यूंकी मुझे बड़ी नींद आ रही थी....

अगले दिन जब नींद खुली तो सोफीया आंटी और समीर दोनो टेबल पे नाश्ता करने आए दोनो ही नहा धोके चेयर पे बैठे थे हमारा स्वागत किया फिर हमने साथ नाश्ता किया....माँ ने सोफीया आंटी से कहा कि अब होनमून का क्या प्लान करोगे? ना जाने क्यूँ समीर फिर झिझका उसने कोई जवाब नही दिया माँ से शायद शरमा रहा था....तो आंटी ने कहा कि समीर मुझे स्विट्ज़र्लॅंड लेके जाना चाह रहा है

मैने कहा बहुत खुंब तो फिर कब जा रहे है आप लोग...तो समीर ने उत्तर दिया बस चले जाएँगे फिलहाल काम काज निपटा लू तो हम हंस पड़े

कोई 5-6 दिन ठहरे थे काफ़ी मज़ा किया काफ़ी घमाई फिराई की...लेकिन इस बीच माँ और मेरे शारीरिक संबंध ना के बराबर ही बने शायद माँ को झिझक हो रही थी....हम एकात मे नही थे वहाँ...पर समीर तो माँ से जुड़ा हुआ था हर पल...मज़ाक मज़ाक में उसने बात तक छेड़ी थी शादी की मेरी...तो मैने साफ इनकार कर दिया कि..अब ऐसा कुछ नही होने वाला माँ और मैने ये फ़ैसला अभीतक नही किया....बाद में माँ ने मुझे बताया कि उन्होने सोफीया आंटी को पर्सनली समझाया था कि हम ऐसा इरादा क्यूँ किए थे? पर उन्हें बुरा ना लगे इसलिए माँ ने बस इतना कहा कि वो तय्यार नही..सोफीया आंटी ने फिर कुछ नही कहा वो जानती थी माँ समझदार है वो अपने आगे के अच्छे बुरे को देखते हुए ही अपना रिश्ता वैसे तय कर चुकी थी अपने बेटे आदम के साथ....

समीर और आंटी से विदा लेकर हम वापिस होमटाउन पहुचे....समीर ने जाते जाते कहा था कि अब हमे आते रहना है...तो माँ और मैने दोनो ने वादा किया था उनसे कि हम ज़रूर हमेशा आएँगे और उन्हें भी हमारे यहाँ आना है...इतना कहते हुए समीर हमे रेलवे स्टेशन इस बार माँ के संग छोड़ने तक आया....हम एकदुसरे के गले मिले थोड़ा भावुक हुए फिर हमारी ट्रेन छूट पड़ी....पीछे आंटी और समीर हाथ दिखाते रह गये और उनके परिवार से दूर होते हम माँ-बेटे एकदुसरे से चिपके दरवाजे पे ही खड़े उन्हें बाइ बाइ कर रहे थे....

होमटाउन पहुचते ही माँ और मैं हम दोनो फिर रोज़ की तरह ज़िंदगी जीने लगे ऑफीस से घर घर से ऑफीस मैं निभाता अपनी ड्यूटी तो माँ को घर का कामकाज संभालना होता या फिर सब्ज़ी मॅंडी जाना यही सब ग्रहणी का काम माँ संभाल रही थी...और फारिग हुए वक़्त में ज्योति भाभी के साथ गपशप करती इस बीच राजीव दा के साथ भी मैं गप्पे मारता ड्यूटी से आने के बाद फिर रात को अपने घर आके माँ के साथ रात का भोजन करता और सो जाता

हमारी यही ज़िंदगी थी यही हमारा आज था और कल भी शायद होने वाला था....माँ-बेटे के सिवाय इस घर में और कोई नही था हालाँकि बीच में माँ से थोड़ा झगड़ा भी हुआ और मन मुटाव भी पर दो प्यार करने वाले एकदुसरे से कितना अलग रह सकते थे? माँ ने शादी के इनकार करने के बाद साफ कह दिया कि वो मुझे किसी जवान लड़की से शादी करवाना चाह रही थी...जो सुशील हो अच्छी हो जो हर माँ अपने बेटे के लिए तलाशती है पर मैने भी कहा कि घर आके वो तुमसे मुझे अलग कर देगी..तो माँ ने कहा कि हर औरत एक जैसी नही होती....सच में माँ की परख और समझ ने ही हमारे रिश्ते को इतना मज़बूत किया था....एक आध रिश्ते भी आए थे मेरे लिए पर माँ ने साफ इनकार कर दिया क्यूंकी उसमें मेरी हां नही थी


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लेकिन जैसे खुशिया आती है वैसे ही दुख जैसे कहानी आगे बढ़ाते है वैसे ही मोड़ आते है....कुछ इस क़दर ऐसा मोड़ इन माँ-बेटे की ज़िंदगियो में आने वाला था जिससे दोनो अंजान थे जिसके आने से घर एक अलग ही तरीक़ो में बदल जाता...क्या था वो वजह जानें अगली कड़ी में.....

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ट्रिंग ट्रिग......पॉकेट में रखा मेरा फोन बज उठा....मैं मेडिकल फर्म जा ही रहा उठके दफ़्तर से कि माँ का कॉल आया...मैने झट से फोन उठाया

आदम : क्या हुआ माँ? हेलो?

ज्योति : अर्रे ये मैं हूँ आदम

आदम : हाँ ज्योति भाभी बोलिए

ज्योति : दरअसल तुम्हारे घर जब आई तो किचन में माँ को मैने तुम्हारी बेहोश आया

आदम : क..कैसे? माँ ठीक तो है ना ?

ज्योति : फिकर करने की कोई बात नही है तुम आराम से घर आओ अभी मैने उन्हें लेटा दिया है वो थोड़ी निढाल पड़ गयी है शायद कमज़ोरी से ऐसा हुआ हो

आदम : ठ..ईक़ है भाभी मैं आने की घर कोशिश करता हूँ

ज्योति : ठीक मैं यही तुम्हारी माँ के पास ही बैठी हूँ

उफ्फ एक तो काम का इतना प्रेशर था और उपर से ये माँ की खबर सुन मेरी तो बेचैनी जैसे बढ़ गयी सच में आँख फड़कना भी कितना अशुभ होता है? मैं जैसे तैसे काम निपटाए हाफ-डे करके घर लौटा....एक तो मैने अनगिनत बीच में छुट्टी कर ली थी और उपर से अब नये फ्लॅट का लोन चुकाना था इसलिए अभी मेरा काम से फारिग होना ना के बराबर ही था..मैं घर पहुचा

ज्योति भाभी माँ के पास पलंग पे लेटी हुई थी और माँ सर पकड़े बातें कर रही थी...मैं माँ के पास आया...और उनके हाथ पाओ को दबाते हुए जैसे उनकी तबियत जानी....ज्योति भाभी ने कहा कि शायद मौसम बदलने से तुम्हारी माँ की तबीयत खराब हुई है

आदम : माँ तू ठीक तो है ना?

माँ : हां बेटा फिकर की बात नही है...

आदम : कैसे फिकर की बात नही है? तू चक्कर ख़ाके गिर गयी अगर भाभी ना होती तो मुझे तो कुछ मालूम ही नही चलता ना

माँ : उफ्फ बस आँखो के सामने अंधेरा छा गया और एकदम से ऐसा लगा जैसे शरीर में जान ना हो उफ्फ खाना भी नही बनाया है और कोई काम काज में हाथ भी नही लगाया अब तक

ज्योति : रहने दो अभी आंटी पहले आप ठीक तो हो जाइए और रही बात खाने की मैं आपको और आदम को अभी दोपहर का खाना लाके देती हूँ हमारे होते हुए आप लोगो को फिकर की कोई बात नही करनी

चलो ये तो अच्छा था की राजीव दा और उनकी पत्नी का सपोर्ट था हमारे संग...पर मैने देरी नही की मुझे बार बार कॉल्स आ रहे थे इसलिए मैने भाभी से कहा कि हो सके तो खाना जल्दी दे दीजिए मुझे जाना पड़ रहा है...भाभी तुरंत अपने घर से गरमा गरम रोटी और तरकारी लाई झोल वाली....हम माँ-बेटे ने भाभी के साथ ही खाना खाया....खाने से फारिग होते ही मुझे मजबूरन जाना पड़ गया माँ भी काफ़ी हद तक ठीक हो चुकी थी...

रात को जब घर लौटा तो माँ बिस्तर पे अब भी सो रही थी...ना जाने कब से नींद के आगोश में थी मैने फिर जाचा कि उसकी तबीयत खराब तो नही....पर माँ की तबीयत मुझे ठीक ही लग रही थी...रात 8 बाज़ चुके थे इस वक़्त माँ खाना वाना सब बनाके फारिग हो जाती थी पर ना आज उसने कंघी की थी और ना ही खाना बनाया था....मैं खुद जब किचन गया तो झूठे बर्तन पाया उफ्फ क्या हो गया मेरी अंजुम को सोचते ही दिल को जैसे दुख सा हुआ अकेले रहना भी यही गम का सबब है कि आप कब तक अपने घर में ध्यान दोगे अगर ज्योति भाभी ना होती तो शायद माँ और मैं भूके ही रह जाते...क्यूंकी माँ को बाहर का खाना एकदम सूट नही होता था...

मैने माँ को जगाया और हमने एक एक कप कॉफी ली...फिर मैने माँ को बाइक पे किसी तरह बिठाया और उसे क्लिनिक लेके गया....वहाँ डॉक्टर ने माँ की ट्रीटमेंट के बाद मुझे बताया कि उनका बी.पी लो हुआ था ये इसलिए कि वो इस कदर काम की थी कि जिस वजह से उन्हें चक्कर आ गये थे मैने माँ को खूब डांटा...पर डॉक्टर ने कहा कि सिर्फ़ बी.पी लो नही है माँ को कमर का दर्द भी है इसलिए इनका अकेले घर का काम काज इनके कंधो पे डालना ठीक नही रहेगा....फिर हमे कुछ दवाइयाँ दी फिर हम घर लौटे...मैने माँ को कामवाली बाई रखने के लिए इन्सिस्ट किया पर वो नही मानी कही कि चोर होती है...तो मैने कहा कि तुझे कंप्लीट रेस्ट की ज़रूरत है तू ये सब घर का काम काज छोड़ और कुछ दिन रेस्ट ले...माँ ने कहा कि ऐसा नही हो सकता? अगर मैं काम काज नही करूँगी तो कौन करेगा? तू तो पूरे दिन ऑफीस में होता है उपर से तुझपे इतनी ज़िम्मेदारिया है ऐसे में मेरा बीमार पड़ना ठीक नही है बेटा

आदम : माँ मैं कुछ नही सुन सकता डॉक्टर ने मना किया है ज़्यादा मेहनत करने को इसलिए आप छोड़ो मैं मेश लगा लेता हूँ (खाने का इंतजामात)

अंजुम : बेटा बहुत खर्चे हो जाएँगे और जितना करेगी नही उतना राशन खर्चा होगा कुछ भी ले जाएगी उठाके

आदम : तो किसे बुलाउ रूपाली भाभी को तो बुला नही सकता वो तो पूरे दिन मेहनत करती है बाहर भी और घर में ताहिरा मौसी वो तो खुद ही बीमार है ऐसे में किसी कामवाली को हाइयर करना ही होगा

अंजुम : देख बेटा मैं ठीक हो जाउन्गी
 
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