hotaks444
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समीर और सोफीया उनसे बात चीत करना भी आदम ने कम कर दिया क्यूंकी समीर और सोफीया के माँ-बेटे के अटूट जोड़े को देख आदम किलस जाता था....धीरे धीरे वो भी ये सोचने लगा क्या यार? भला माँ के साथ शादी छि ये सब ग़लत है ये सब गुनाह है मैं बहेक गया था....यही सब कहते हुए आदम निशा पे पूरा ध्यान देने लगा वो फिर उसी साँचे में ढलता चला गया जिस साँचे में वो आजसे करीब पहले था...जिसने वासना के लिए पहले चंपा फिर आकाक्षा फिर अपने ही घर की औरतें भाभी मौसी किसी को ना बक्शा वो अब अपनी शहवत अपनी बीवी से पूरी करने लगा..
उस रात थका हरा आदम अपने बिस्तर पे बैठते हुए जुते उतारने लगा....माँ किचन में थी और पिता जी टी.वी देख रहे थे...तो वो कमरे में आके जूते उतारके अपने कपड़े सब उतारके बाथरूम जाने लगा....तो इतने में निशा कमरे में आई उसने मुस्कुरा के प्यार से आदम को देखा फिर उसके बॅग जो बिस्तर पे रखा था उसे एक साइड रखा...
निशा : क्या आदम इतना कोई लेट आता है?
आदम : क्यूँ? आज मन कर रहा है क्या? उफ्फ (अपने टाई को निकालते हुए)
निशा : देखो आदम तुम मुझे आजकल वक़्त नही दे पा रहे हो हर वक़्त बस काम काम
आदम : हाहहा अरे बाबा मैं अकेला कमाने वाला क्या और करूँ कहो तो ज़रा?
निशा : तुमने वादा किया था कि मुझे मार्केट ले चलोगे मुझे वो नया ब्रांड जो आया ना लिपस्टिक का वो वाला खरीदना है
आदम : उफ्फ हो निशा सॅंपल्स में आ जाएँगे अभी जाने की क्या ज़रूरत है? और वैसे भी जिस ब्रांड की तुम बात कर रही हो वो बहुत कॉस्ट्ली है तुम एक काम करो ना पैसे लेके जाओ माँ के साथ थोड़ा!
निशा : प्ल्ज़्ज़ आदम तुम चलो ना काकी के साथ कैसे? तुम जाओगे मैं जाउन्गी कितना अच्छा लगेगा प्ल्ज़्ज़ ना चलो ना अभी
आदम : तुमने वक़्त देखा है? यार मैं एक तो थका हारा घर लौटा हूँ तुम चाइ पानी ना पूछके मुझे कह रही हो जाने के लिए वो भी फिरसे मार्केट इस वक़्त
निशा : तो क्या हो गया? मेरे सहेलियो के पति तो घुमाने उन्हें कोलकाता तक ले जाते है तुम तो टाइम भी नही निकालते बस चिड जाते हो कौन सा हीरा माँग रही हूँ तुमसे?
आदम थक चुका था निशा किसी मथानी (एक चीज़ को मथने वाली ज़िद्दी) की तरह एक बार अगर बक बक करना शुरू कर देती थी तो बस...एक तो आदम ने उसे दुबारा सेक्स के लिए उकसाया भी नही था उससे अपनी ज़रूरत पूरी भी नही की थी ढंग से...और उसका नखरा किसी नखरेबाज़ लड़कियो जैसा था....आदम ने कहा तो ठीक है चलो जो लेना है ले लेना
तो निशा ने उसे चेहरे को चूम लिया...उसने कहा ठीक है आज छोड़ो कल तुम पक्का शाम को जल्दी आना....और सुनो पापा कह रहे थे मेरे पापा कि हम कहीं हनिमून पे क्यूँ नही घूमने जाते?.......
.आदम क्या कहता कि एक तो उसने बड़ी मुस्किल से फ्लॅट के लिए लोन लिया जिसके लिए उस दिन रात पागलो की तराहा खट्टना पड़ रहा है पर यहाँ निशा को तो जैसे उसके घर की कोई भी चीज़ ना मालूम हो वैसा जता रही थी...उसने निशा को बैठके तफ़सील से समझाया लेकिन वो हूँ हूँ में भी ऐसे जवाब दे रही थी जैसे उसे ये सब सुनके कोई समझ ही ना आई हो...
आदम इतना कहते हुए उसे स्मझाके बाथरूम में गया...जब वो वापिस लौटा तो उसकी माँ चाइ और शाम के लिए कुछ खाने को लाई थी...."ये ले तेरे पिताजी को भी दिया तू भी खा अरे निशा वो दाल चढ़ि हुई है तुम छोड़के आ गयी".........
."ओह सॉरी काकी मैं देखके आती हूँ"........इतना कहते हुए उसके जाते ही मुस्कुरा के अंजुम बेटे के पास बैठी उसके कंधे सहलाने लगी
अंजुम : क्या हुआ तू इतना चुप चुप क्यूँ है?
आदम : कुछ नही अगर कहूँगा तो तुझे यही लगेगा कि मैं शिकायत कर रहा हूँ
अंजुम : क्या बात है? बोल तो सही
आदम ने बताया कि दिन पे दिन जैसे उसने निशा से पहेल करना शुरू किया है उससे इश्क़ फरमाना शुरू किया उसे अपनाना शुरू किया वो तो जैसे उसके गले पड़ रही है छोटे बच्चो की तरह ज़िद्द पकड़ लेती है अगर ना कोई चीज़ पूरी करूँ तो उसे मथने लगती है मेरे सर पे..माँ ये सुनके बोली ये तो ग़लत है...लेकिन छोटी मोटी ज़िद पूरी करने से कोई ग़लत नही पर उसे समझना चाहिए एक तो हमारा ये फ्लॅट किश्तो में है और फिर उपर से तुझपे कितना काम का प्रेशर है...तू फिकर मत कर मैं बात करती हूँ
आदम : इससे पहले तुमने ही किया उससे बात कुछ दिन ठीक रही क्यूंकी मुँह फुलाए रही और फिर से अपना रंग दिखाने लगी
अंजुम : एक लिपसिट्क ही तो कहा है उसने तुझे दिला दे मेरे पीछे तो तूने पागलो की तरह !
आदम : माँ तेरी बात जुदा है तू एक समझदार औरत है मैने जब जब कोई महेंगी चेज़ लाई तो तूने बिना कहे उसे पहले इनकार किया कि इतना खर्चा क्यूँ कर रहा हूँ? या फिर बचाऊ पैसा पर ये कल की आई छोकरी और इतना नखरा
अंजुम : आदम बेटा अभी बच्पना है उसमें देख इतना काम करती है मेरा मैं उसे समझा दूँगी जब देखो बस तेरे इन्तिजार में किचन में बोलती रहती है फिर तू आता है तो देख खाने पे भी ध्यान नही उसका हाहाहा (अंजुम अकेले हँसी थी क्यूंकी आदम के चेहरे पे कोई भाव नही आए)
उस रात थका हरा आदम अपने बिस्तर पे बैठते हुए जुते उतारने लगा....माँ किचन में थी और पिता जी टी.वी देख रहे थे...तो वो कमरे में आके जूते उतारके अपने कपड़े सब उतारके बाथरूम जाने लगा....तो इतने में निशा कमरे में आई उसने मुस्कुरा के प्यार से आदम को देखा फिर उसके बॅग जो बिस्तर पे रखा था उसे एक साइड रखा...
निशा : क्या आदम इतना कोई लेट आता है?
आदम : क्यूँ? आज मन कर रहा है क्या? उफ्फ (अपने टाई को निकालते हुए)
निशा : देखो आदम तुम मुझे आजकल वक़्त नही दे पा रहे हो हर वक़्त बस काम काम
आदम : हाहहा अरे बाबा मैं अकेला कमाने वाला क्या और करूँ कहो तो ज़रा?
निशा : तुमने वादा किया था कि मुझे मार्केट ले चलोगे मुझे वो नया ब्रांड जो आया ना लिपस्टिक का वो वाला खरीदना है
आदम : उफ्फ हो निशा सॅंपल्स में आ जाएँगे अभी जाने की क्या ज़रूरत है? और वैसे भी जिस ब्रांड की तुम बात कर रही हो वो बहुत कॉस्ट्ली है तुम एक काम करो ना पैसे लेके जाओ माँ के साथ थोड़ा!
निशा : प्ल्ज़्ज़ आदम तुम चलो ना काकी के साथ कैसे? तुम जाओगे मैं जाउन्गी कितना अच्छा लगेगा प्ल्ज़्ज़ ना चलो ना अभी
आदम : तुमने वक़्त देखा है? यार मैं एक तो थका हारा घर लौटा हूँ तुम चाइ पानी ना पूछके मुझे कह रही हो जाने के लिए वो भी फिरसे मार्केट इस वक़्त
निशा : तो क्या हो गया? मेरे सहेलियो के पति तो घुमाने उन्हें कोलकाता तक ले जाते है तुम तो टाइम भी नही निकालते बस चिड जाते हो कौन सा हीरा माँग रही हूँ तुमसे?
आदम थक चुका था निशा किसी मथानी (एक चीज़ को मथने वाली ज़िद्दी) की तरह एक बार अगर बक बक करना शुरू कर देती थी तो बस...एक तो आदम ने उसे दुबारा सेक्स के लिए उकसाया भी नही था उससे अपनी ज़रूरत पूरी भी नही की थी ढंग से...और उसका नखरा किसी नखरेबाज़ लड़कियो जैसा था....आदम ने कहा तो ठीक है चलो जो लेना है ले लेना
तो निशा ने उसे चेहरे को चूम लिया...उसने कहा ठीक है आज छोड़ो कल तुम पक्का शाम को जल्दी आना....और सुनो पापा कह रहे थे मेरे पापा कि हम कहीं हनिमून पे क्यूँ नही घूमने जाते?.......
.आदम क्या कहता कि एक तो उसने बड़ी मुस्किल से फ्लॅट के लिए लोन लिया जिसके लिए उस दिन रात पागलो की तराहा खट्टना पड़ रहा है पर यहाँ निशा को तो जैसे उसके घर की कोई भी चीज़ ना मालूम हो वैसा जता रही थी...उसने निशा को बैठके तफ़सील से समझाया लेकिन वो हूँ हूँ में भी ऐसे जवाब दे रही थी जैसे उसे ये सब सुनके कोई समझ ही ना आई हो...
आदम इतना कहते हुए उसे स्मझाके बाथरूम में गया...जब वो वापिस लौटा तो उसकी माँ चाइ और शाम के लिए कुछ खाने को लाई थी...."ये ले तेरे पिताजी को भी दिया तू भी खा अरे निशा वो दाल चढ़ि हुई है तुम छोड़के आ गयी".........
."ओह सॉरी काकी मैं देखके आती हूँ"........इतना कहते हुए उसके जाते ही मुस्कुरा के अंजुम बेटे के पास बैठी उसके कंधे सहलाने लगी
अंजुम : क्या हुआ तू इतना चुप चुप क्यूँ है?
आदम : कुछ नही अगर कहूँगा तो तुझे यही लगेगा कि मैं शिकायत कर रहा हूँ
अंजुम : क्या बात है? बोल तो सही
आदम ने बताया कि दिन पे दिन जैसे उसने निशा से पहेल करना शुरू किया है उससे इश्क़ फरमाना शुरू किया उसे अपनाना शुरू किया वो तो जैसे उसके गले पड़ रही है छोटे बच्चो की तरह ज़िद्द पकड़ लेती है अगर ना कोई चीज़ पूरी करूँ तो उसे मथने लगती है मेरे सर पे..माँ ये सुनके बोली ये तो ग़लत है...लेकिन छोटी मोटी ज़िद पूरी करने से कोई ग़लत नही पर उसे समझना चाहिए एक तो हमारा ये फ्लॅट किश्तो में है और फिर उपर से तुझपे कितना काम का प्रेशर है...तू फिकर मत कर मैं बात करती हूँ
आदम : इससे पहले तुमने ही किया उससे बात कुछ दिन ठीक रही क्यूंकी मुँह फुलाए रही और फिर से अपना रंग दिखाने लगी
अंजुम : एक लिपसिट्क ही तो कहा है उसने तुझे दिला दे मेरे पीछे तो तूने पागलो की तरह !
आदम : माँ तेरी बात जुदा है तू एक समझदार औरत है मैने जब जब कोई महेंगी चेज़ लाई तो तूने बिना कहे उसे पहले इनकार किया कि इतना खर्चा क्यूँ कर रहा हूँ? या फिर बचाऊ पैसा पर ये कल की आई छोकरी और इतना नखरा
अंजुम : आदम बेटा अभी बच्पना है उसमें देख इतना काम करती है मेरा मैं उसे समझा दूँगी जब देखो बस तेरे इन्तिजार में किचन में बोलती रहती है फिर तू आता है तो देख खाने पे भी ध्यान नही उसका हाहाहा (अंजुम अकेले हँसी थी क्यूंकी आदम के चेहरे पे कोई भाव नही आए)