hotaks444
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अरुणा : मुझे बहुत डर लग रहा है मुझे यकीन नही होता कि मुखिया रामसिंघ इस हद तक गुज़र जाने वाला था....अगर तू सही वक़्त पे ना आता तो शायद तुझे मेरी लाश ही घर लौटते हुए मिलती
अर्जुन : माँ भगवांन के लिए ऐसी अपशब्द बातें ना कहो अभी हम ज़्यादा देर इस घने जंगल में रात भी ना गुज़ार सकते जैसे जैसे रात ढलेगी हमारे दिल का डर और बढ़ता जाएगा क्यूंकी अंधेरा छाता जाएगा और गावंवाले किसी ना किसी तरह यहाँ पहुच भी सकते है और हमारे भाग जाने से उनका सीधा शक़ हंपे होगा ऐसे ही वो लोग पिछड़ी सोच के है तुझपे गंदे गंदे इल्ज़ाम लगाके बेज़्ज़त करेंगे और मुझे तो शायद जान से ही मार दे क्यूंकी यहाँ खून का बदला खून से चुकता होता है
अरुणा : नही मेरे होते हुए तुझे कुछ नही होगा तू छोढ़ जो पीछे छूट गया...हम आज़ाद है और गाओं से कयि मील दूर निकल ही आए है बस
किसी तरह ये ये जंगल पार करके कही सुरक्षित किसी राज्य पहुच जाए बस
अर्जुन : पर हम कब तक ऐसे भागेंगे माँ? मेरे हाथो से पाप हुआ है मैने इन्ही हाथो से मुखिया रामसिंघ का खून कर डाला है मुझे नही मालूम था अगर सही वक़्त पे उसकी बेटी तपोती ने मुझे बचाया ना होता...मुझे तो बस उसका प्यार वासना और ज़िद्द ही लगी थी लेकिन आज उसकी मौत ने जैसे मुझे अंदर तक झींझोड़ दिया है
अरुणा : तू खुद पे काबू पा बेटा ऐसे कमज़ोर पड़ेगा तो हम यहाँ से भाग ना पाएँगे मुझे तपोती की मुहब्बत पे कोई शक़ नही उसने तुझसे
सच्चा प्यार किया और उसके लिए अपनी जान भी दे डाली....अब तक तो गावंवालो को बाप-बेटी दोनो की लाश हमारे घर से मिल गयी होगी
अर्जुन : ह्म और साथ में उसके प्यादो की भी जो मेरे घर पे ही पहरा दे रहे थे मैने दूर से ही उन दोनो को देख लिया था इसलिए अंधेरे का
फ़ायदा उठाए मैने चुपके से उनपे हमला करके उन दोनो की गर्दन मरोड़ के तोड़ दी थी मुझे नही लगता उनमें से कोई ज़िंदा भी बचा होगा
अरुणा : हां बेटा पर अब हम यहाँ से कैसे निकलेंगे ये सोच? हमे किसी तरह इस रात में ही इस जगह को पार कर जाना है
अर्जुन ने जहाँ तक निगाह दौड़ाई सिर्फ़ और सिर्फ़ वीयावान जंगल ही था....नहर के उस पार भी उचे उचे पहाड़ थे और उचे उचे पेड़ मज़ूद थे....चाँद पर जैसे बादलो की परत जमा सी हुई थी इसलिए नीम अंधेरा था पूरी फ़िज़ायो में...उसने एक बार नहेर के बहते पानी को गौर
किया...जिसका शोर उसे काफ़ी देर से सुनाई दे रहा था....उसने माँ के करीब आके अपना इरादा बताया
अर्जुन : माँ ये नहर सीधी घाटी को पार करती हुई नदी में जा रही है....अगर हम इस नहर के संग संग तैरते हुए नदी पार कर जाए तो दूसरे
राज्य पहुच जाएँगे
अरुणा : अरे बेटा पर हम इतनी रात गये कैसे नहेर को तैर करके रास्ता पूरा करेंगे?
अर्जुन : तैरके नही नाव से
अरुणा : कैसे?
अर्जुन : नाना जी जब ज़िंदा थे तो वो हमेशा मुझे नाव बनाने की विधि बताया करते थे हम उसी तरह नाव को बना इस नहेर से होते हुए सीधा घाटी से दूर निकल कर जा सकते है इससे किसी का ध्यान हंपे भी नही पड़ेगा और हम सीधा इंसानो की आबादी से दूर हो जाएँगे उसके बाद नदी पार करते ही हमे कोई दिशा मिल सकती है यही बचने का विकल्प है
अरुणा को तो समझ नही आ रहा था कि वो क्या करें? उसे तैरना तक नही आता था...उसने बेटे की रज़ामंदी पे हां तो कर दी थी लेकिन इसमें जोखिम बड़ा था...एक तो वो लोग सड़क पे कितना चल सकते थे रात भी जैसे जल्दी जल्दी ढलती जा रही थी....अब तक गावंवालो की
कोई भी टोली उन्हें ढूँढते हुए नाही पहुचि थी...इसका मतलब सॉफ था कि वो लोग उन्हें तलाशने निकले होंगे पर रात ज़्यादा देखते हुए वापिस हो लिए होंगे उन्हें लगा होगा कि हम जंगलों में है जिनमें उनका आना नामुमकिन ही था क्यूंकी जंगलों में कयि ज़हरीले जंगली साँप मज़ूद थे....
अर्जुन के पास भागते वक़्त खेत से लाया फसल की बोरी काटने वाला औज़ार था...उसने 1 हाथ लंबे छुरा को निकाला उन बाँस की डांदियो को काट काट इकहट्टा करने लगा....माँ चुप चुपके उसके कारनामो को देख रही थी....अर्जुन ने सारी बाँस की लड़किया बहुत सी इकहट्टी की
और उन दो को जोड़ते हुए उनके सिरे को नुकीला किया फिर उसने जैसे बाँस की गोल गोल लकड़ियो को बाँधने के लिए पेड़ की शाखाए
काट काटके लाई उस पूरी रात उसे बहुत मेहनत करने जैसा काम था...
अर्जुन : माँ भगवांन के लिए ऐसी अपशब्द बातें ना कहो अभी हम ज़्यादा देर इस घने जंगल में रात भी ना गुज़ार सकते जैसे जैसे रात ढलेगी हमारे दिल का डर और बढ़ता जाएगा क्यूंकी अंधेरा छाता जाएगा और गावंवाले किसी ना किसी तरह यहाँ पहुच भी सकते है और हमारे भाग जाने से उनका सीधा शक़ हंपे होगा ऐसे ही वो लोग पिछड़ी सोच के है तुझपे गंदे गंदे इल्ज़ाम लगाके बेज़्ज़त करेंगे और मुझे तो शायद जान से ही मार दे क्यूंकी यहाँ खून का बदला खून से चुकता होता है
अरुणा : नही मेरे होते हुए तुझे कुछ नही होगा तू छोढ़ जो पीछे छूट गया...हम आज़ाद है और गाओं से कयि मील दूर निकल ही आए है बस
किसी तरह ये ये जंगल पार करके कही सुरक्षित किसी राज्य पहुच जाए बस
अर्जुन : पर हम कब तक ऐसे भागेंगे माँ? मेरे हाथो से पाप हुआ है मैने इन्ही हाथो से मुखिया रामसिंघ का खून कर डाला है मुझे नही मालूम था अगर सही वक़्त पे उसकी बेटी तपोती ने मुझे बचाया ना होता...मुझे तो बस उसका प्यार वासना और ज़िद्द ही लगी थी लेकिन आज उसकी मौत ने जैसे मुझे अंदर तक झींझोड़ दिया है
अरुणा : तू खुद पे काबू पा बेटा ऐसे कमज़ोर पड़ेगा तो हम यहाँ से भाग ना पाएँगे मुझे तपोती की मुहब्बत पे कोई शक़ नही उसने तुझसे
सच्चा प्यार किया और उसके लिए अपनी जान भी दे डाली....अब तक तो गावंवालो को बाप-बेटी दोनो की लाश हमारे घर से मिल गयी होगी
अर्जुन : ह्म और साथ में उसके प्यादो की भी जो मेरे घर पे ही पहरा दे रहे थे मैने दूर से ही उन दोनो को देख लिया था इसलिए अंधेरे का
फ़ायदा उठाए मैने चुपके से उनपे हमला करके उन दोनो की गर्दन मरोड़ के तोड़ दी थी मुझे नही लगता उनमें से कोई ज़िंदा भी बचा होगा
अरुणा : हां बेटा पर अब हम यहाँ से कैसे निकलेंगे ये सोच? हमे किसी तरह इस रात में ही इस जगह को पार कर जाना है
अर्जुन ने जहाँ तक निगाह दौड़ाई सिर्फ़ और सिर्फ़ वीयावान जंगल ही था....नहर के उस पार भी उचे उचे पहाड़ थे और उचे उचे पेड़ मज़ूद थे....चाँद पर जैसे बादलो की परत जमा सी हुई थी इसलिए नीम अंधेरा था पूरी फ़िज़ायो में...उसने एक बार नहेर के बहते पानी को गौर
किया...जिसका शोर उसे काफ़ी देर से सुनाई दे रहा था....उसने माँ के करीब आके अपना इरादा बताया
अर्जुन : माँ ये नहर सीधी घाटी को पार करती हुई नदी में जा रही है....अगर हम इस नहर के संग संग तैरते हुए नदी पार कर जाए तो दूसरे
राज्य पहुच जाएँगे
अरुणा : अरे बेटा पर हम इतनी रात गये कैसे नहेर को तैर करके रास्ता पूरा करेंगे?
अर्जुन : तैरके नही नाव से
अरुणा : कैसे?
अर्जुन : नाना जी जब ज़िंदा थे तो वो हमेशा मुझे नाव बनाने की विधि बताया करते थे हम उसी तरह नाव को बना इस नहेर से होते हुए सीधा घाटी से दूर निकल कर जा सकते है इससे किसी का ध्यान हंपे भी नही पड़ेगा और हम सीधा इंसानो की आबादी से दूर हो जाएँगे उसके बाद नदी पार करते ही हमे कोई दिशा मिल सकती है यही बचने का विकल्प है
अरुणा को तो समझ नही आ रहा था कि वो क्या करें? उसे तैरना तक नही आता था...उसने बेटे की रज़ामंदी पे हां तो कर दी थी लेकिन इसमें जोखिम बड़ा था...एक तो वो लोग सड़क पे कितना चल सकते थे रात भी जैसे जल्दी जल्दी ढलती जा रही थी....अब तक गावंवालो की
कोई भी टोली उन्हें ढूँढते हुए नाही पहुचि थी...इसका मतलब सॉफ था कि वो लोग उन्हें तलाशने निकले होंगे पर रात ज़्यादा देखते हुए वापिस हो लिए होंगे उन्हें लगा होगा कि हम जंगलों में है जिनमें उनका आना नामुमकिन ही था क्यूंकी जंगलों में कयि ज़हरीले जंगली साँप मज़ूद थे....
अर्जुन के पास भागते वक़्त खेत से लाया फसल की बोरी काटने वाला औज़ार था...उसने 1 हाथ लंबे छुरा को निकाला उन बाँस की डांदियो को काट काट इकहट्टा करने लगा....माँ चुप चुपके उसके कारनामो को देख रही थी....अर्जुन ने सारी बाँस की लड़किया बहुत सी इकहट्टी की
और उन दो को जोड़ते हुए उनके सिरे को नुकीला किया फिर उसने जैसे बाँस की गोल गोल लकड़ियो को बाँधने के लिए पेड़ की शाखाए
काट काटके लाई उस पूरी रात उसे बहुत मेहनत करने जैसा काम था...