desiaks
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“और नहीं तो क्या ?”
“यू सन आफ बिच !” - एकाएक वो एक झटके के उठकर बैठ गयी - “गैट आउट आफ माई रूम ।”
“युअर रूम !” - वो भौचक्का-सा बोला - “ये तुम्हारा कमरा है ?”
“अब तुम कहोगे ‘मैं कौन हूं । मैं कहां हूं । मेरा नाम क्या है । राजकुमार फागुन बनकर दिखओगे । याददाश्त चली गयी होने का बहाना करोगे । मैं सब जानती हूं ।”
उसने घबराकर चारों तरफ निगाह दौड़ाई तो पाया कि वो वाकेई उसका कमरा नहीं था ।
“सारी !” - वो हकलाता-सा बोला - “गलती हो गयी ।”
“सम्भाल नहीं सकते तो कम पिया करो । नशा उतर जाये तो खबर करना ।”
“खबर ! वो किसलिये ।”
“क्या पता” - एकाएक वो मुस्कराई - “गलती न हुई हो !”
वो सरपट वहां से भागा और अपने कमरे में जाकर पलंग पर ढेर हो गया ।
उसके होश ठिकाने आये तो वो डॉली के बारे में सोचने लगा ।
किस फिराक में थी वो लड़की !
***
खिड़की से छनकर आती धूप जब राज के चेहरे से टकराने लगी तो वो नींद से जागा । उसने आंखें मिचमिचाकर अपनी कलाई घड़ी पर निगाह डाली तो पाया कि नौ बज चुके थे । वो जल्दी से बिस्तर में से निकला और बाथरूम में दाखिल हो गया ।
लगभग आधे घण्टे बाद पायल पाटिल उर्फ मिसेज नाडकर्णी के रूबरू होने के लिये तैयार होकर जब वो नीचे पहुंचा तो उसने स्विमिंग पूल के किनारे लगी एक टेबल के गिर्द बाकी लोगों को मौजूद पाया ।
उसकी निगाह पैन होती, डॉली और फौजिया पर तनिक ठिठकती, तमाम सूरतों पर फिरी ।
अपेक्षित सूरत वहां नहीं थी ।
“गुड मार्निंग, ऐवरीबाडी ।” - फिर वो टेबल के करीब पहुंचकर मुस्कराता हुआ बोला ।
सबने उसके अभिवादन का जवाब दिया ।
“आओ” - सतीश बोला - “इधर आकर बैठो ।”
उसके पहलू में दो कुर्सियां खाली थीं जिनमें से एक पर वो जा बैठा ।
“पायल कहां है ?” - वो उत्सुक भाव से बोला ।
“पायल आलिया अभी ख्वाबगाह में ही है ।” - फौजिया व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोली ।
“लेकिन” - शशिबाला बोली - “यकीनन ख्वाब नहीं देख रही होगी । वो बड़े यत्न से अपनी यहां ड्रामेटिक ऐन्ट्री की तैयारी कर रही होगी ।”
“उसकी हमेशा की आदत है ।” - फौजिया बोली ।
“ब्रांडो डार्लिंग्र” - शशिबाला बोली - “आज ऐग परांठा तो कमाल का बना है ।”
“सच कह रही हो ?” - सतीश सन्दिग्ध भाव से बोला ।
“लो ! ये भी कोई झूठ बोलने की बात है ।”
“फिर तो शुक्रिया ! शुक्रिया । शुक्रिया ।”
“इतना ढेर शुक्रिया किसयलिये ?”
“क्योंकि ये ऐग परांठा मैंने बनाया है ।” - सतीश खुशी से दमकता हुआ बोला - “आज ब्रेकफास्ट मैंने तैयार किया है ।”
“तुमने, सतीश !”
“आफकोर्स सर्वेन्ट्स की मदद से । लेकिन कुक मैं था ।”
“क्यों ? कुक कहां चली गयी ?”
“कहीं चली नहीं गयी, यहां पहुंच नहीं सकी । वो क्या है कि सुबह वसुन्धरा को उसे गाड़ी पर उसके घर से लेकर आना था लेकिन आज मेरा दिल न माना वसुन्धरा को जगाने को । पायल को पायर से लिवा लाने के चक्कर में बेचारी रात को कितनी देर से तो सोई होगी ।”
“रात को” - आलोका बोली - “कितने बजे लौटी थी वो पायल को लेकर ।”
“पता नहीं । मैं तो सो गया था ।”
“तीन बजे के करीब ।” - राज बोला - “तब मेरी वसुन्धरा से बात हुई थी । तब वो बस लौटी ही थी पायल को ले के ।”
“फिर तो खूब सो ली वो ।” - आलोका बोली - “हमें जा के जगाना चाहिये उसे ।”
“यू सन आफ बिच !” - एकाएक वो एक झटके के उठकर बैठ गयी - “गैट आउट आफ माई रूम ।”
“युअर रूम !” - वो भौचक्का-सा बोला - “ये तुम्हारा कमरा है ?”
“अब तुम कहोगे ‘मैं कौन हूं । मैं कहां हूं । मेरा नाम क्या है । राजकुमार फागुन बनकर दिखओगे । याददाश्त चली गयी होने का बहाना करोगे । मैं सब जानती हूं ।”
उसने घबराकर चारों तरफ निगाह दौड़ाई तो पाया कि वो वाकेई उसका कमरा नहीं था ।
“सारी !” - वो हकलाता-सा बोला - “गलती हो गयी ।”
“सम्भाल नहीं सकते तो कम पिया करो । नशा उतर जाये तो खबर करना ।”
“खबर ! वो किसलिये ।”
“क्या पता” - एकाएक वो मुस्कराई - “गलती न हुई हो !”
वो सरपट वहां से भागा और अपने कमरे में जाकर पलंग पर ढेर हो गया ।
उसके होश ठिकाने आये तो वो डॉली के बारे में सोचने लगा ।
किस फिराक में थी वो लड़की !
***
खिड़की से छनकर आती धूप जब राज के चेहरे से टकराने लगी तो वो नींद से जागा । उसने आंखें मिचमिचाकर अपनी कलाई घड़ी पर निगाह डाली तो पाया कि नौ बज चुके थे । वो जल्दी से बिस्तर में से निकला और बाथरूम में दाखिल हो गया ।
लगभग आधे घण्टे बाद पायल पाटिल उर्फ मिसेज नाडकर्णी के रूबरू होने के लिये तैयार होकर जब वो नीचे पहुंचा तो उसने स्विमिंग पूल के किनारे लगी एक टेबल के गिर्द बाकी लोगों को मौजूद पाया ।
उसकी निगाह पैन होती, डॉली और फौजिया पर तनिक ठिठकती, तमाम सूरतों पर फिरी ।
अपेक्षित सूरत वहां नहीं थी ।
“गुड मार्निंग, ऐवरीबाडी ।” - फिर वो टेबल के करीब पहुंचकर मुस्कराता हुआ बोला ।
सबने उसके अभिवादन का जवाब दिया ।
“आओ” - सतीश बोला - “इधर आकर बैठो ।”
उसके पहलू में दो कुर्सियां खाली थीं जिनमें से एक पर वो जा बैठा ।
“पायल कहां है ?” - वो उत्सुक भाव से बोला ।
“पायल आलिया अभी ख्वाबगाह में ही है ।” - फौजिया व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोली ।
“लेकिन” - शशिबाला बोली - “यकीनन ख्वाब नहीं देख रही होगी । वो बड़े यत्न से अपनी यहां ड्रामेटिक ऐन्ट्री की तैयारी कर रही होगी ।”
“उसकी हमेशा की आदत है ।” - फौजिया बोली ।
“ब्रांडो डार्लिंग्र” - शशिबाला बोली - “आज ऐग परांठा तो कमाल का बना है ।”
“सच कह रही हो ?” - सतीश सन्दिग्ध भाव से बोला ।
“लो ! ये भी कोई झूठ बोलने की बात है ।”
“फिर तो शुक्रिया ! शुक्रिया । शुक्रिया ।”
“इतना ढेर शुक्रिया किसयलिये ?”
“क्योंकि ये ऐग परांठा मैंने बनाया है ।” - सतीश खुशी से दमकता हुआ बोला - “आज ब्रेकफास्ट मैंने तैयार किया है ।”
“तुमने, सतीश !”
“आफकोर्स सर्वेन्ट्स की मदद से । लेकिन कुक मैं था ।”
“क्यों ? कुक कहां चली गयी ?”
“कहीं चली नहीं गयी, यहां पहुंच नहीं सकी । वो क्या है कि सुबह वसुन्धरा को उसे गाड़ी पर उसके घर से लेकर आना था लेकिन आज मेरा दिल न माना वसुन्धरा को जगाने को । पायल को पायर से लिवा लाने के चक्कर में बेचारी रात को कितनी देर से तो सोई होगी ।”
“रात को” - आलोका बोली - “कितने बजे लौटी थी वो पायल को लेकर ।”
“पता नहीं । मैं तो सो गया था ।”
“तीन बजे के करीब ।” - राज बोला - “तब मेरी वसुन्धरा से बात हुई थी । तब वो बस लौटी ही थी पायल को ले के ।”
“फिर तो खूब सो ली वो ।” - आलोका बोली - “हमें जा के जगाना चाहिये उसे ।”