Mastaram Kahani कत्ल की पहेली - Page 4 - SexBaba
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Mastaram Kahani कत्ल की पहेली

“और नहीं तो क्या ?”
“यू सन आफ बिच !” - एकाएक वो एक झटके के उठकर बैठ गयी - “गैट आउट आफ माई रूम ।”
“युअर रूम !” - वो भौचक्का-सा बोला - “ये तुम्हारा कमरा है ?”
“अब तुम कहोगे ‘मैं कौन हूं । मैं कहां हूं । मेरा नाम क्या है । राजकुमार फागुन बनकर दिखओगे । याददाश्त चली गयी होने का बहाना करोगे । मैं सब जानती हूं ।”
उसने घबराकर चारों तरफ निगाह दौड़ाई तो पाया कि वो वाकेई उसका कमरा नहीं था ।
“सारी !” - वो हकलाता-सा बोला - “गलती हो गयी ।”
“सम्भाल नहीं सकते तो कम पिया करो । नशा उतर जाये तो खबर करना ।”
“खबर ! वो किसलिये ।”
“क्या पता” - एकाएक वो मुस्कराई - “गलती न हुई हो !”
वो सरपट वहां से भागा और अपने कमरे में जाकर पलंग पर ढेर हो गया ।
उसके होश ठिकाने आये तो वो डॉली के बारे में सोचने लगा ।
किस फिराक में थी वो लड़की !
***
खिड़की से छनकर आती धूप जब राज के चेहरे से टकराने लगी तो वो नींद से जागा । उसने आंखें मिचमिचाकर अपनी कलाई घड़ी पर निगाह डाली तो पाया कि नौ बज चुके थे । वो जल्दी से बिस्तर में से निकला और बाथरूम में दाखिल हो गया ।
लगभग आधे घण्टे बाद पायल पाटिल उर्फ मिसेज नाडकर्णी के रूबरू होने के लिये तैयार होकर जब वो नीचे पहुंचा तो उसने स्विमिंग पूल के किनारे लगी एक टेबल के गिर्द बाकी लोगों को मौजूद पाया ।
उसकी निगाह पैन होती, डॉली और फौजिया पर तनिक ठिठकती, तमाम सूरतों पर फिरी ।
अपेक्षित सूरत वहां नहीं थी ।
“गुड मार्निंग, ऐवरीबाडी ।” - फिर वो टेबल के करीब पहुंचकर मुस्कराता हुआ बोला ।
सबने उसके अभिवादन का जवाब दिया ।
“आओ” - सतीश बोला - “इधर आकर बैठो ।”
उसके पहलू में दो कुर्सियां खाली थीं जिनमें से एक पर वो जा बैठा ।
“पायल कहां है ?” - वो उत्सुक भाव से बोला ।
“पायल आलिया अभी ख्वाबगाह में ही है ।” - फौजिया व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोली ।
“लेकिन” - शशिबाला बोली - “यकीनन ख्वाब नहीं देख रही होगी । वो बड़े यत्न से अपनी यहां ड्रामेटिक ऐन्ट्री की तैयारी कर रही होगी ।”
“उसकी हमेशा की आदत है ।” - फौजिया बोली ।
“ब्रांडो डार्लिंग्र” - शशिबाला बोली - “आज ऐग परांठा तो कमाल का बना है ।”
“सच कह रही हो ?” - सतीश सन्दिग्ध भाव से बोला ।
“लो ! ये भी कोई झूठ बोलने की बात है ।”
“फिर तो शुक्रिया ! शुक्रिया । शुक्रिया ।”
“इतना ढेर शुक्रिया किसयलिये ?”
“क्योंकि ये ऐग परांठा मैंने बनाया है ।” - सतीश खुशी से दमकता हुआ बोला - “आज ब्रेकफास्ट मैंने तैयार किया है ।”
“तुमने, सतीश !”
“आफकोर्स सर्वेन्ट्स की मदद से । लेकिन कुक मैं था ।”
“क्यों ? कुक कहां चली गयी ?”
“कहीं चली नहीं गयी, यहां पहुंच नहीं सकी । वो क्या है कि सुबह वसुन्धरा को उसे गाड़ी पर उसके घर से लेकर आना था लेकिन आज मेरा दिल न माना वसुन्धरा को जगाने को । पायल को पायर से लिवा लाने के चक्कर में बेचारी रात को कितनी देर से तो सोई होगी ।”
“रात को” - आलोका बोली - “कितने बजे लौटी थी वो पायल को लेकर ।”
“पता नहीं । मैं तो सो गया था ।”
“तीन बजे के करीब ।” - राज बोला - “तब मेरी वसुन्धरा से बात हुई थी । तब वो बस लौटी ही थी पायल को ले के ।”
“फिर तो खूब सो ली वो ।” - आलोका बोली - “हमें जा के जगाना चाहिये उसे ।”
 
“अरे, मैंने बोला न वो सो नहीं रही है ।” - फौजिया बोली - “वो अपने कमरे में बैठी सज रही है । वो हमें तपा रही है । यहां जब हवा से उड़-उड़कर हमारे बाल बिगड़कर हमारी आंखों में पड़ रहे होंगे और हमारा मेकअप बर्बाद हो रहा होगा तो वो ताजे गुलाब-सी खिली, खुशबू के झोंके की तरह लहराती यहां कदम रखेगी और हम सबकी पालिश उतार देगी ।”
“दस बजने वाले हैं ।” - सतीश घड़ी देखता हुआ बोला - “और वो कहती थी कि दोपहर को उसने चले भी जाना है । यही हाल रहा तो वो हमसे अभी ठीक से हल्लो भी नहीं कह पायेगी कि उसका जाने का वक्त हो जायेगा ।”
“मैं ले के आती हूं उसे ।” - आलोका उठती हुई बोली ।
“हां । जरूर ।” - आयशा बोली - “बस ले आना उसे । भले ही उसके जिस्म पर अभी नाइटी ही हो ।”
“भले ही” - आलोका दृढ स्वर से बोली - “उसके जिस्म पर नाइटी भी न हो ।”
“बिल्कुल ठीक । हम क्या पागल हैं जो यहां बैठे इन्तजार कर रहे है कि वो प्रकट भये और हमें दर्शन दे !”
“यही तो । मैं बस गयी और आयी ।”
वो घूमी और लम्बे डग भरती इमारत के भीतर की ओर बढ चली ।
राज अपलक उसे जाता देखता रहा ।
खूबसूरती में वो बाकियों से उन्नीस कही जा सकती थी लेकिन उसकी उस कमी को पूरा करने के लिये उसमें बला की ताजगी और जीवन्तता थी ।
बगल में बैठी डॉली ने उसे कोहनी मारी । उसने उसकी तरफ देखा तो उसने दूर जाती आलोका की तरफ निगाह से इशारा करके इनकार में सिर हिलाया और फिर निगाहें झुकाकर हामी भरी ।
राज ने इशारे से ही उसे समझया कि वो उसका मन्तव्य समझ गया था । वो उसे कह रही थी कि देखना था तो वो आलोका को नहीं, उसे देखे।
“सतीश, तुम कहते हो पायल जरा नहीं बदली ।” - आयशा अरमानभरे स्वर से बोली - “लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है ? सात साल में किसी में जरा भी तब्दीली न आये, ऐसा कैसे हो सकता है ?”
“तुम ऐसा अपनी वजह से सोच रही हो ।” - फौजिया बोली ।
“अच्छा-अच्छा ।” - आयशा भुनभुनाई - “मेरी वजह से ही सही ।”
“माई हनी चाइल्ड” - सतीश बोला - “आज की तारीख में तुम पहले से कहीं ज्यादा दिलकश हो । तुम सिर्फ मूलधन ही नहीं, ब्याज भी हो । मूलधन में ब्याज जमा हो जाये तो मूलधन की कीमत बढती है, घटती नहीं है । हनी, आई लव यू दि वे यू आर ।”
“हौसलाअफजाई का शुक्रिया ।” - आयशा उत्साहहीन स्वर में बोली ।
“आज की तारीख में वो देखने में कैसी है, ये अभी सामने आ जायेगा ।” - शशिबाला बोली - “लेकिन वो सुनने में कैसी है ये मुझे पहले ही मालूम है ।”
“कैसी है ?” - डॉली बोली ।
“वैसी ही जैसी वो हमेशा थी । कोई फर्क नहीं । कतई कोई फर्क नही । “
“मैंने भी तो ये ही कहा था ।” - सतीश बोला ।
“ठीक कहा था ।”
“तू उससे मिली थी ?” - ज्योति बोली ।
“मिली नहीं थी, लेकिन बात हुई थी ।” - शशिबाला बोला - “रात तीन बजे के बाद किसी वक्त मेरी नींद खुली थी । तब मेरे से ये सस्पेंस बर्दाश्त नहीं हुआ था कि पायल मेरे इतने करीब मौजूद थी । तब मैं उससे मिलने चल गयी थी ।”
“उसके कमरे में ?”
“और कहां ?”
“सोते से तो जगाया नहीं होगा उसे ।” - डॉली बोली - “वर्ना वो जरूर तेरा गला घोंट देती ।”
“मालूम है । मैं भूली नहीं हूं कि कोई उसे सोते से जगाता था तो वो उसका खून करने पर आमादा हो जाती थी । लेकिन इत्तफाक से वो अभी सोई नहीं थी । मेरे उसके कमरे के दरवाजे पर दस्तक देते ही उसने फौरन जवाब दिया था ।”
“लेकिन दरवाजा नहीं खोला होगा ।” - आयशा बोली - “रात के वक्त पलंग से उठकर दरवाजे तक आना तो उसे पहाड़ की चोटी चढने जैसा शिद्दत का काम लगता था ।”
“हां । बहरहाल बन्द दरवाजे के आर-पार से ही बीते जमाने की तरह थोड़ी गाली-गुफ्तार हुई, थोड़ी हंसी-ठठ्ठा हुआ और फिर मैं उसे गुडनाइट बोलकर अपने कमरे में लौट आयी ।”
“बाई दि वे” - ज्योति बोली - “उसे पता होगा कि तू अपनी तमाम फिल्मों में उसके मैनेरिज्म की नकल करती है ?”
“तुझे पता है ?” - शशिबाला बोली ।
“हां ।”
“यानी कि तू मेरी हर फिल्म देखती है ?”
“हां, जब कभी भी मेरा अपने आप को सजा देने का, सताने का दिल करता है तो मैं तेरी फिल्म देखने चली जाती हूं ।”
“अकेले ही जाती होगी । तेरे हसबैंड कौशल को तो तेरे साथ कहीं जाना गवारा होता नहीं होगा ।”
ज्योति के मुंह से बोल न फूटा ।
“ज्योति डार्लिंग” - डॉली बोली - “अब तेरी बारी है ।”
ज्योति खामोश रही ।
“बुरा मान गयी मेरी बन्नो ।” - शशिबाला हंसती हई बोली ।
“नहीं-नहीं । बुरा मानने की क्या बात है !” - ज्योति निगाहों से उस पर भाले-बर्छियां बरसाती हुई बोली - “तू जो मर्जी कह ।”
“तू तो जानती है कि मैं तो मरती हूं तेरे पर । लेकिन फिर भी कैसा इत्तफाक है कि हम यहां एक मिनट भी इकट्टे नहीं गुजर पाये ! मैं तेरे से ये तक न पूछ सकी कि तू अभी भी कुमारी कन्या है न ?”
“ममी, कुमारी कन्या क्या होती है ?” - डॉली बोली ।
“कुमारी कन्या वो होती है, बिटिया रानी, जो कौशल निगम से विवाहित हो ।”
ज्योति के चेहरे पर ऐसे भाव आये जैसे वो रोने लगी हो ।
“गर्ल्स ! गर्ल्स !” - तत्काल सतीश ने दखल दिया - “बिहेव । माहौल न बिगाड़ो । प्लीज । आई बैग आफ यू ।”
तत्काल खामोशी छायी ।
“गर्ल्स” - सतीश फिर बोला - “अब बोलो क्या कल तुम में से किसी और ने भी पायल के यहां पहुंचने के बाद उससे मिलने की कोशिश की थी ?”
राज ने डॉली की तरफ देखा ।
तत्काल डॉली परे देखना लगी ।
“मैंने की थी ।” - फौजिया बोली - “शशिबाला की तरह रहा मेरे से भी रहा नहीं गया था । कोई फर्क है तो ये कि ये कहती है कि ये तीन बजे के करीब सोते से जागी थी जब कि मैं सोई ही नहीं थी ।”
“क्या नतीजा निकला तुम्हारी मुलाकात की कोशिश का ?” - आयशा उत्सुक भाव से बोली - “शशिबाला जैसा ही या उससे बेहतर ?”
 
“उससे बेहतर । मैं जब उसके दरवाजे पर पहुंची थी तो वो भीतर वसुन्धरा को किसी बात पर डांट रही थी । वसुन्धरा कुछ कहने की कोशिश करती थी तो वो उसे बीच में ही टोक देती थी और फिर उस पर बरसने लगती थी । मैं तो चुपचाप लौट आयी वापिस ।”
“अच्छा किया ! वर्ना वो तुझे भी फिट कर देती ।”
“वही तो ।”
“ऐग्जेक्टली ऐज आई सैड ।” - सतीश - “हमारी पायल आज भी पहले ही जैसी गुस्सैल और तुनकमिजाज है ।”
“अजीब बात है” - राज बोला - “कि वो हाउसकीपर पर बरस रही थी ।”
“अजीब क्या है इसमें ?”
“जनाब, हाउसकीपर तो उसकी इतनी तारीफ कर रही थी । उसे निहायत मिलनसार, निहायत खुशमिजाज बता रही थी । जो लड़की उस के साथ पायर से यहां के रास्ते में इतना अच्छा पेश आयी थी, उसके यहां आते ही ऐसे तेवर क्योंकर बदल गये थे कि वो हाउसकीपर पर बरसने लगी थी ? ऐसा बरसने लगी थी कि उसे अपनी सफाई का कोई मौका नहीं दे रही थी ?”
“दैट इज अवर पायल वर हण्ड्रड पर्सेंट । माई डियर यंग मैन, मौसम जैसा मिजाज सिर्फ हमारी पायल ने ही पाया है । अभी लू के थपेड़े तो अभी ठण्डी हवायें । अभी चमकीली धूप तो अभी गर्ज के साथ छींटे । अभी...”
तभी वातावरण एक चींख की तीखी आवाज से गूंजा ।
सब सन्नाटे में आ गये ।
“ये तो” - फिर सतीश दहशतनाक लहजे से बोला - “आलोका की आवाज है ।”
“ऊपर से आयी है ।” - राज बोला ।
तत्काल सब उठकर ऊपर को भागे ।
चीख की आवाज फिर गूंजी ।
आलोका उन्हें पायल के कमरे के खुले दरवाजे की चौखट से लगी खड़ी मिली । उसके चेहरे पर दहशत के भाव थे और वो चौखट के साथ लगी-लगी जड़ हो गयी मालूम होती थी ।
सतीश, जो सबसे आगे था, सस्पेंसभरे स्वर में बोला - “आलोका ! क्या हुआ, हनी ?”
आलोका के मुंह से बोल न फूटा । उसने अपनी एक कांपती हुई उंगली कमरे के भीतर की ओर उठा दी ।
राज लपककर अपने मेजबान के पहलू में पहुंचा और उसने कांपती उंगली द्वारा इंगित दिशा का अपनी निगाहों से अनुसरण किया ।
कमरे के कालीन बिछे फर्शे पर हाउसकीपर वसुन्धरा की लाश पड़ी थी । उसकी छाती में गोली का सुराख दिखाई दे रहा था जिसके इर्द-गिर्द और नीचे कालीन पर लाश के पहलू में बहकर जम चुका खून दिखाई दे रहा था । उसकी पथराई हुई आंखें छत पर कहीं टिकी हुई थीं ।
वो निश्चित रूप से मर चुकी थी ।
Chapter 2
नकुल बिहारी माथुर नजदीकी ताजमहल होटल में लंच पर जाने के लिये उठने ही वाले थे कि वो टेलीफोन काल आ गयी थी ।
“सर, मैं राज माथुर बोल रहा हूं । फिगारो आइलैंड से ।”
“अर्जेन्ट काल क्यों बुक कराई ?”
खुदा की मार पड़े बूढे पर - राज दांत पीसता मन-ही-मन बोला - अर्जेन्ट काल की फीस पर कलप रहा था, ये नहीं पूछ रहा था कि काल उसने की क्यों थी !
“सर, आर्डिनरी काल लग नहीं रही थी ।”
“तो इन्जतार करना था काल लगने का । ऐसी क्या तबाही आ गयी है जो...”
“सर, तबाही तो नहीं आयी लेकिन...वो क्यों है कि यहां...यहां एक कत्ल हो गया है ।”
“कत्ल ! कत्ल हो गया है बोला तुमने ?”
“यस, सर ।”
“किसका कत्ल हो गया ? जरा ऊंचा बोलो और साफ बोला ।”
“सर, यहां मिस्टर सतीश के दौलतखाने पर उनकी हाउसकीपर वसुन्धरा पटवर्धन का कत्ल हो गया है । किसी ने उसे शूट कर दिया है ।”
“हाउसकीपर का...हाउसकीपर का कत्ल हुआ है ?”
“यस, सर ।”
“हमारी क्लायन्ट तो सलामत है न ?”
तौबा !
“सलामत ही होगी सर ।”
“होगी क्या मतलब ?”
“सर, वो गायब है ।”
“गायब है ? यानी कि हमें मिली खबर गलत थी । मिसेज नाडकर्णी आइलैंड पर नहीं पहुंची थी ।”
“सर, मिसेज नाडकर्णी, आई मीन पायल, आइलैंड पर तो पहुंची थी, मिस्टर सतीश के मैंशन पर भी पहुंची थी लेकिन अब वो गायब है । आई मीन यहां पहुंचने के बाद के किसी वक्त से गायब है ।”
“कहां गायब है ?”
लानती ! जिसके बारे में मालूम हो कि वो कहां गायब थी, उसे गायब कैसे कहा जा सकता था !
“सर, पता नहीं ।”
“तो फिर क्या फायदा हुआ फोन करने का, अर्जेन्ट फोन काल पर कर्म का पैसा खराब करने का !”
“सर, वो क्या है कि...”
“फर्स्ट काम डाउन । एण्ड कन्ट्रोल युअरसैल्फ । अब जो कहना है साफ-साफ कहो, एक ही बार में कहो और इस बात को ध्यान में रखकर कहो, कि तुम अर्जेन्ट ट्रंककाल पर बात कर रहे हो । पैसा पेड़ों पर नहीं उगता ।”
“यस, सर । सर वो क्या है कि रात को दो बजे हाउसकीपर वसुन्धरा पूर्वनिर्धारित प्रोग्राम के मुताबिक पायल को पायर पर रिसीव करने गयी थी जहां से कि वो कोई तीन बजे के करीब पायल के साथ वापिस लौटी थी । पायल क्योंकि बहुत थकी हुई थी इसलिये वो यहां आते ही सो गयी थी । आज सुबह दस बजे तक भी जब वो ब्रेकफास्ट पर न पहुंची तो उसकी पड़ताल को गयी थी । सर, उसके कमरे में हाउसकीपर वसुन्धरा की लाश पड़ी पायी गयी थी और वो खुद वहां से गायब थी । सर, यहां आम धारणा ये है कि पायल ने ही वसुन्धरा का कत्ल किया है और फिर फरार हो गयी है ।”
“आम धारणा है ! किसकी आम धारणा है ?”
“सबकी, सर । पुलिस की भी ।”
“बट दैट इज रिडीक्यूलस ! मिसेज नाडकर्णी कातिल कैसे हो सकती है ?”
“सर, पुलिस कहती है कि...”
“क्या पुलिस को मालूम नहीं कि मिसेज नाडकर्णी हमारी क्लायन्ट है । आनन्द आनन्द आनन्द एण्ड एसोसियेट्स की क्लायन्ट है ?”
 
“सर, यहां की पुलिस ने हमारी फर्म का कभी नाम तक नहीं सुना ।”
“ऐसा कैसे हो सकता है ! हम कोई छोटी-मोटी फर्म हैं ? कलकत्ता और दिल्ली में हमारी ब्रांचें हैं । फारेन तक के केस आते हैं हमारे पास । इतने बड़े और रसूख वाले क्लायन्ट हैं हमारे । हम...”
“सर, हम अर्जेन्ट ट्रंककाल पर बात कर रहे हैं ।”
“यू और टैलिंग मी ? जो बात मुझे तुम्हारे से पहले मालूम है वो तुम मुझे बता रहे हो ?”
“बता नहीं रहा, सर, याद दिला रहा हूं ।”
“ओके ओके । अब आगे बढो । कब हुआ कत्ल ?”
“रात को ही । पायल के आने के बाद किसी वक्त ।”
“उस वक्त हाउसकीपर... वाट वाज हर नेम ?”
“वसुन्धरा । वसुन्धरा पटवर्धन ।”
“उस वक्त वो क्या कर रही थी मिसेज नाडकर्णी के कमरे में ?”
“मालूम नहीं, सर । लेकिन पुलिस का कहना है कि पायल ने ही किसी काम के लिये उसे अपने कमरे में तलब किया होगा और जब वो वहां पहुंची होगी तो उसने उसे शूट कर दिया होगा ।”
“क्यों ? क्यों शूट कर दिया होगा ? मिसेज नाडकर्णी की कोई अदावत थी, कोई रंजिश थी हाउसकीपर से ?”
“कैसे होगी, सर । वो दोनों तो एक-दूसरे को पहले जानती तक नहीं थीं । पायल के पूरे सात साल बाद वहां कदम पड़े बताये जाते थे और हाउसकीपर को मिस्टर सतीश की मुलाजमत में अभी सिर्फ तीन महीने हुए थे ।”
“सो देयर यू आर । ये बात अपने आप में सुबूत है कि हमारी क्लायन्ट उस... उस हाउसकीपर की कातिल नहीं हो सकती ।”
“सर, वो गायब है । हाउसकीपर की लाश को पीछे अपने कमरे के फर्श पर पड़ी छोड़कर वो गायब है । सर, कत्ल पायल के कमरे में हुआ । ऐसे हालात में उसका मौकायवारदात से गायब हो जाना अपनी कहानी खुद कह रहा है ।”
“वो कहीं इधर-उधर गयी होगी, लौट आयेगी ।”
“सर, पुलिस ने बहुत जगह पूछताछ की है । पुलिस ने यहां के फैरी पायर पर से पूछताछ की है, हेलीपैड से दरयाफ्त किया है, वो कहीं नहीं देखी गयी । क्योंकि आइलैंड से रुख्सत होने के ये ही दो ठिकाने हैं, हैलीकाप्टर और स्टीमर ही दो जरिये हैं इसलिये पुलिस का ख्याल है कि वो अभी भी आइलैंड पर ही कहीं छुपी हुई है ।”
“छुपी हुई है ?”
“यस, सर ।”
“जैसे क्रिमिनल्स छुपते हैं ? फ्यूजिटिव छुपते हैं ?”
“यस, सर ।”
“ओह बौश एण्ड नानसेंस । आनन्द आनन्द आनन्द एण्ड एसोसियेट्स का क्लायन्ट और क्रिमिनल ! भगोड़ा ! वो क्या...”
“सर, आई बैग टु रिमाइन्ड अगेन दैट...”
“जरूरत नहीं रिमान्ड कराने की । मुझे याद है कि हम ट्रंककाल पर, अर्जेंट ट्रंककाल पर बात कर रहे हैं । ट्रंककाल कॉस्टस मनी । अर्जेंट ट्रंककाल कॉस्ट्स मोर मनी एण्ड लाइटनिंग ट्रंककाल...”
“सर, सर ।”
“माथुर, मैं तुम्हें और काम सौंप रहा हूं । नोट करो ।”
“यस सर ।”
“नम्बर एक, मिसेज नाडकर्णी को आइलैंड पर तलाश करो । नम्बर दो, पुलिस को ये यकीन दिलाओ कि उनका मिसेज नाडकर्णी पर खूनी होने का शक करना नादानी है । हमारी क्लायन्ट खूनी नहीं हो सकती ।”
“आई नो, सर ।”
“नम्बर तीन, सोमवार सुबह साढे दस बजे मिसेज नाडकर्णी को साथ लेकर यहां आफिस में पहुंचो ताकि उसके विरसे का निपटारा किया जा सके और बतौर ट्रस्टी हम अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो सकें ।”
“यस, सर । पायल न मिली तो मैं आइलैंड साथ लेता आऊंगा जिसे हम अपने दफ्तर में खंगाल कर उसमें से अपनी क्लायन्ट बरामद कर लेंगे । जैसे बजरंगबली सुमेरु पर्वत उठा लाये थे तो उस पर से संजीवनी बूटी बरामद कर ली गयी थी । ईजी ।”
“वाट ! वाट डिड यू से ?”
“मैंने तो कुछ भी नहीं कहा, सर ।”
“लेकिन मैंने सुना कि...”
“लाइन में कोई खराबी हो गयी मालूम हो रही है, सर । क्रॉस टॉक हो रही है । बीच-बीच में मुझे भी कुछ अजीब-सा सुनायी दे रहा था ।”
“ओह, क्रॉस टॉक !”
“मैंने आदेश नोट कर लिये हैं, सर । मैं सब पर अमल करूंगा, सर ।”
“गुडलक, माई ब्वाय ।”
“थैक्यू, सर ।”
उसने रिसीवर हुक पर टांगा और इमारत से बाहर निकला ।
वो इमारत करीबी पोस्ट आफिस की थी जहां कि चुपचाप पहुंचकर उसने अपने बॉस को फोन किया था और अपनी हालत ‘नमाज बख्शवाने गये, रोजे गले पड़ गये’ जैसी कर ली थी ।
पैदल चलता हुआ वो सतीश की एस्टेट में वापिस लौटा ।
पोर्टिको में ही उसे एक हवलदार मिल गया जिसने उसे खबर दी कि सब-इंस्पेक्टर जोजेफ फिगुएरा उससे फिर बात करना चाहता था और वो इस बात से खफा हो रहा था कि राज माथुर इस काम के लिये तुरन्त उपलब्ध नहीं था ।
वो भीतर दाखिल हुआ ।
उसने सबको लाउन्ज में मौजूद पाया । सब-इंस्पेक्टर फिगुएरा कोई चालीस साल का व्यक्ति था जिसके चेहरे पर उस घड़ी बड़े कठोर भाव थे । वो एक टेबल के करीब खड़ा था और उस पर फैली कोई दर्जन भर तस्वीरों का मुआयना कर रहा था ।
 
उन लोगों से परे सम्मान को प्रतिमूर्ति बने, किसी आदेश की प्रतीक्षा करते हाथ बांधे चार नौकर खड़े थे ।
राज करीब पहुंचा तो उसने पाया कि उन तमाम तस्वीरों में एक ही सूरत चित्रित थी । तमाम की तमाम तस्वीरें एक ही नौजवान लड़की की थीं जो कि हर तस्वीर में एक ही पोशाक पहने थी । कोई भी तस्वीर पोज्ड नहीं थी । सब सहज स्वाभाविक ढंग से, खेल खेल में खींची गयी मालूम होती थी और शायद इसीलिये ज्यादा दिलकश ज्यादा जीवन्त मालूम होती थीं ।
“किसकी तस्वीरें हैं ?” - राज ने अपने मेजबान को हौले से टहोकते हुए पूछा ।
“पायल की ।” - सतीश गम्भीरता से बोला । वो इस बात से बहुत आन्दोलित था कि उसकी एस्टेट में कत्ल जैसी वारदात हो गयी थी ।
“कम हेयर, प्लीज ।” - सब-इंस्पेक्टर बोला ।
राज मेज के करीब पहुंचा ।
“तुमने कहा कि ये तुम्हारी क्लायन्ट थी ।” - सब-इंस्पेक्टर बोला - “तुम्हारी फर्म में ये मिसेज श्याम नाडकर्णी के नाम से जानी जाती थी !”
“हां ।” - राज बोला ।
“फिर भी तुम इसे नहीं पहचानते ?”
“नहीं पहचानता । मैं इससे कभी नहीं मिला । मैंने इसे कभी नहीं देखा ।”
“ये कभी तुम लोगों के आफिस में भी तो आयी होगी ?”
“न कभी नहीं । कम-से-कम फर्म में मेरी एम्पलायमेंट के दौरान तो नहीं ।”
“शायद कभी आयी हो लेकिन तुम्हें ध्यान न रहा हो ?”
“जनाब, ऐसी परीचेहरा सूरत एक बार देख लेने के बाद क्या कभी कोई भूल सकता है ? मरते दम तक नहीं भूल सकता ।”
“हूं । अपनी इसी खूबी की वजह से ये बहुत जल्द पकड़ी जायेगी ।” - सब-इंस्पेक्टर एक क्षण खामोश रहा और फिर सतीश की तरफ घूमा - “आप कहते हैं कि ये तमाम तस्वीरें एक ही दिन खींची गयी थीं ।”
“हां ।” - सतीश पुरानी यादों में डूबता-उतराता बोला - “सात साल पहले आज ही जैसे एक दिन । जब कि पायल आखिरी बार मेरी रीयूनियन पार्टी में आयी थी ।
“तस्वीरें खींची क्यों गयी थीं ?”
“कोई खास वजह नहीं थी । बस तफरीहन खींची गयी थीं ?”
सब-इंस्पेक्टर की भवें उठीं ।
“मेरा मतलब है ये भी तफरीह के लिये आर्गेनाइज किया गया एक पार्टी गेम था । मैंने अपने तब के तमाम मेंहमानों को कैमरे, फ्लैश लाइट्स, टैलीलैंसिज, फिल्में वगैरह मुहैया करायी थीं और हर किसी को हर किसी की तस्वीर खींचने के लिये इनवाइट किया था । वो एक तरह से खेल-खेल में एक कांटेस्ट था जिसमें सबसे बढिया तस्वीर, सबसे घटिया तस्वीर, सबसे मजाकिया तस्वीर, सबसे ज्यादा शर्मिंदा करने वाली तस्वीर और सबसे बढिया एक्शन शाट पर मैंने बड़े आकर्षक इनामों की घोषणा की थी ।”
“मेरे को याद है ।” - आयशा बोली - “बहुत एन्जाय किया था हमने उस प्रतियोगिता को । कैसी-कैसी तस्वीरें खींची थी हम लोगों ने एक-दूसरे की ! ज्योति, याद है बीच पर तुम्हारे बिकनी स्विम सूट की अंगिया का स्ट्रेप टूट गया था, तुम एक पेड़ के पीछे छुपकर उसे उतार कर दुरुस्त करने की कोशिश कर रही थीं कि डॉली ने तुम्हारी तस्वीर खींच ली थी और तुम्हें खबर ही नहीं लगी थी । तुम्हारे ये उस तस्वीर में...”
“ओह, शटअप !” - ज्योति भुनभुनाई - “ये कोई वक्त है ऐसी बातें करने का !”
“ऐनी वे ।” - डॉली बोली - “इट वाज ए ग्रेट आइडिया - दैट पिक्चर कान्टैस्ट ।”
“यानी कि” - सब-इंस्पेक्टर बोला - “ये तस्वीरें सात साल पुरानी है ?”
“हां ।” - सतीश बोला ।
“कोई ताजा तस्वीर नहीं है आपके पास पायल की ?”
“न ।”
“किसी और के पास हो ?”
तमाम बुलबुलों के सिर इनकार में हिले ।
“सात साल बहुत लम्बा वक्फा होता है । सात साल में बहुत तबदीली आ जाती हैं इन्सान के बच्चे में । कई बार तो इतनी ज्यादा कि वो पहचान में नहीं आ पाता ।”
“जरूरी तो नहीं ।” - राज बोला ।
“हां, जरूरी तो नहीं । बाज लोग तो जरा नहीं बदलते । बीस-बीस साल गुजर जाने के बाद भी वो वैसे के वैसे ही लगते हैं । पायल के बारे में क्या कहते हैं आप लोग ?”
“मिस्टर पुलिस आफिसर ।” - सतीश बोला - “इस मामले में दावे के साथ हम में से कोई कुछ नहीं कह सकता । पिछले सात साल में हममें से किसी को भी पायल से मुलाकात नहीं हुई है । हममें से किसी ने भी सात साल पहले की उस रीयूनियन पार्टी के बाद से पायल को नहीं देखा ।”
“किसी ने तो देखा होगा ।” - सब-इंस्पेक्टर जिदभरे स्वर में बोला ।
“वसुन्धरा ने देखा था । लेकिन उसने उसे अब देखा था तो पहले कभी नहीं देखा था इसलिये कोई कम्पैरीजन मुमकिन नहीं ।”
“हो भी तो” - राज बोला - “वो अब अपना बयान तो नहीं दे सकती ।”
सब-इंस्पेक्टर ने बड़ी संजीदगी से सहमति में सिर हिलाया और फिर बोला - “कभी आप सब लोग इकट्ठे काम करते थे, कभी आप लोगों का एक ग्रुप था जिसमें से सबसे नहीं तो कुछ से तो उसकी जरूर ही गहरी छनती होगी । किसी से तो उसने पिछले सात सालों में कोई सम्पर्क बनाये रखने की कोशिश की होगी । ऐसा कैसा हो सकता है कि आप लोगों की कुलीग- आप लोगों की जोड़ीदार एक लड़की - एक नहीं, दो नहीं, पूरे सात सालों के लिये आप लोगों के लिये न होने जैसे हो गयी । उसका इस दुनिया में होना न होना आप लोगों के लिये एक बराबर हो गया ।”
“आप उलटी बात कह रहे हैं ।” - फौजिया बोली - “यूं कहिये कि हमारा होना या न होना उसके लिये एक बराबर हो गया ।”
“जैसे मर्जी कह लीजिये लेकिन ऐसा हुआ तो क्योंकर हुआ ?”
“होने की वजह है तो सही एक ।” - शशिबाला धीरे-से बोली ।
 
“क्या ?” - सब-इंस्पेक्टर आशापूर्ण स्वर में बोला ।
“अब मैं क्या बताऊं । आयशा, तू बता ।”
“हां ।” - सतीश ने भी समर्थन किया - “आयशा को बताने दो ।”
राज ने महसूस किया कि जो बात प्रत्यक्षतः शशिबाला और सतीश के जेहन में थी, उससे आयशा ही नहीं, बाकी लड़कियां भी नावाकिफ नहीं थीं लेकिन हर कोई उस बात के जिक्र का जिम्मा अपने सिर लेने से कतराती मालूम हो रही थी इसीलिये हर किसी ने सतीश की बात का पुरजोर समर्थन किया ।
आयशा ने सहमति में सिर हिलाया, एक गहरी सांस ली और फिर कठिन स्वर में बोली - “मिस्टर सतीश की सात साल पहले की वो रीयूनियन पार्टी, जिसमें पायल ने आखिरी बार हमारे साथ शिरकत की थी और जिसकी कि ये चन्द तस्वीरें हैं यहां नहीं हुई थी, वो पणजी से कोई चालीस किलोमीटर दूर डोना पाला बीच के एक उजाड़ हिस्से में बने एक पुर्तगाली महल में हुई थी जिसे कि कोई डेढ सौ साल पहले, जबकि गोवा पुर्तगाल के अधिकार में था, तत्कालीन पुर्तगाली गर्वनर का आवास बताया जाता था । तब पायल की श्याम नाडकर्णी से शादी हुए अभी तीन महीने ही हुए थे इसलिये सात साल पहले की उस रीयूनियन पार्टी में वो अपने पति को साथ लेकर आयी थी । दोनों आपस में इतने खुश थे और अपनी खुशियों में इतनी जल्दी उन्होंने हमें भी शरीक कर लिया था कि एक तरह से उस बार की पार्टी उनके सम्मान में दी गयी पार्टी बन कर रह गयी थी । बहुत अच्छा माहौल रहा था, बहुत एन्जाय किया था, हम सबने, सब कुछ बहुत ही बढिया चला था, सिवाय इसके कि श्याम नाडकर्णी ने बोतल के जरा ज्यादा ही हवाले होना शुरु कर दिया था ।”
“ड्रिंकिंग चौबीस घण्टे का मेला बन गया था तब उसका ।” - शशिबाला बोली - “लंच, ब्रेकफास्ट, डिनर सब विस्की की जुगलबन्दी से ही चलता था ।”
“इसलिये” - आयशा बोली - “उस शाम को भी वो पूरी तरह से टुन्न था जब कि वो.. वो वारदात हुई ।”
“क्या वारदात हुई ?” - सब-इंस्पेक्टर बोला ।
आयशा ने बेचैनी से पहलू बदला और फिर बोली - “उस शाम को वो बहुत पी चुका था और अभी और पी रहा था । जश्न का माहौल था इसलिये किसी ने उसे रोका भी नहीं । काफी देर रात तक उस रोज जाम चले थे । फिर महफिल बर्खास्त होने लगी तो पाया गया कि नाडकर्णी हम लोगों के बीच में नहीं था । तब यही सोचा गया था कि इधर-उधर कहीं होगा, आ जायेगा । लेकिन काफी रात गये तक भी जब वो न लोटा तो पायल का कलेजा मुंह को आने लगा । हम सबने पायल के साथ उसे आसपास तलाश करने की कोशिश की तो वो मिला नहीं । हमने यही सोचा कि नशे में वो बीच पर कहीं निकल गया था और फिर बीच पर ही कहीं उंघ गया था । पायल का फिक्र से बुरा हाल था । हम सबने उसे यही तसल्ली दी कि उसका पति जहां भी था, ठीक था, नशा टूटेगा तो शर्मिन्दा होता अपने आप लौट आयेगा लेकिन वो न लौटा । असल में क्या हुआ था, उसकी खबर तो हमें अगले दिन लगी ।”
“आगे बढिये ।” - आयशा को खामोश होती पाकर सब-इंस्पेक्टर उतावले स्वर में बोला ।
“महल से दो किलोमीटर दूर समुद्र तट पर एक पहाड़ी थी जिसकी चोटी एक बाल्कनी की तरह ऐन समुद्र पर झुकी हुई थी और जिसका ख्याल इत्तफाक से ही हमें आ गया था । असब में वो उस पहाड़ी पर से समुद्र में जा गिरा था और... और...”
आयशा ने बड़े विवादपूर्ण भाव से गरदन हिलायी ।
“ओह !”
“साफ पता लग रहा था कि वो चोटी पर कहां से नीचे गिरा था । गिरने से पहले चोटी के दहाने पर उगी झाड़ियों की कुछ टहनियां उसके हाथ में आ गयी थी लेकिन वो टहनियां इतनी मजबूत न निकलीं कि उसके जिस्म का भार सम्भाल पातीं । नतीजतन टहनियां टूट गयीं और वो नीचे समुद्र में जाकर गिरा । उस रोज समुद्र उफान पर था जो कि लाश को पता नहीं कहां से कहां बहाकर ले गया ।”
“यानी कि लाश बरामद नहीं हुई थी ?”
“न । पुलिस ने, कोस्टल गार्डस ने, मिस्टर सतीश के एंगेज किये दक्ष मछुआरों ने दूर-दूर तक समुद्र को खंगाला था लेकिन लाश बरामद नहीं हुई थी ।”
“आई सी ।”
“सच पूछो तो” - शशिबाला दबे स्वर में बोली - “पायल के पति की जान समुद्र ने नहीं, शराब ने ली थी । वो समुद्र में नहीं, शराब में डूब के मरा था ।”
“उस वारदात का” - सतीश बोला - “पायल के दिल पर बहुत बुरा असर हुआ था । वो जल्दी ही बम्बई वापिस लौट गयी थी और बड़ी तनहा जिदगी गुजारने लगी थी । कोई तीन या चार महीने ही कहते हैं कि वो बम्बई में कफ परेड की एक आलीशान इमारत मे स्थित अपने पति के फ्लैट में रही थी, फिर एक दिन उसने तमाम नौकरों-चाकरों को डिसमिस कर दिया था और खुद भी वहां से कूच कर गयी थी ।”
“कहां ?”
“क्या पता कहां । मैं हर साल उसे रीयूनियन पार्टी के निमंत्रण की टेलीग्राम भेजता था लेकिन उसके जवाब में न कभी वो आयी, न कभी उसका कोई सन्देशा आया । सिवाय इस बार के । कल दोपहर को जब उसका फोन आया था और उसने कहा था कि वो आइलैंड पर पहुंची हुई थी तो यकीन जानो, मैं खुशी से उछल पड़ा था । आखिर साल साल बाद, पूरे सात साल बाद मेरी एक खोई हुई बुलबुल ने मेरे से सम्पर्क किया था । मिस्टर पुलिस आफिसर, मेरी उतावला होने की उम्र नहीं लेकिन मैं बयान नहीं कर सकता कि मैं किस कदर उतावला हो रहा था पायल को देखने को, उससे मिलने को, उसकी अपने गरीबखाने पर मौजूदगी महसूस करने को ।”
 
“सात साल !” - सब-इंस्पेक्टर ने दोहराया, फिर वो राज से सम्बोधित हुआ - “इस वक्फे का तुम्हारी यहां मौजूदगी से रिश्ता है ।”
“जो कि मैं बयान कर चुका हूं ।” - राज बोला - “अब मिस्टर श्याम नाडकर्णी को कानूनी तौर पर मृत करार दिया जा सकता है और उसकी बेवा को उसकी वो सम्पति सौंपी जा सकती है जिसके कि हम ट्रस्टी हैं ।”
“आप लोगों ने पायल को पहले कभी तलाश करने की कोशिश नहीं की थी ?”
“जी नहीं । कोई वजह ही नहीं थी । पहले हमने उससे क्या लेना-देना था ? हमारा असल काम तो सात साल का वक्फा खत्म होने पह शुरु होता था । वो वक्फा खत्म होते ही हम ने पायल की तलाश के लिये कुछ कदम उठाये, जिनमें से एक के नतीजे के तौर पर मैं यहां पहुंचा हूं । तलाश न कामयाब होती तो हम और कदम उठाते, और कदम उठाते ।”
“फिर भी न कामयाब होती तो ?”
“तो” - राज कन्धे उचकाता हुआ बोला - “विधवा की किस्मत ।”
“एक तरह से देखा जाये तो तलाश तो आपकी अभी भी नाकाम ही है ।”
“इतनी नाकाम नहीं है । अब हमें मालूम है कि वो इसी आइलैंड पर कहीं है और आप अगर काबिल पुलिस अधिकारी हैं तो उसे तलाश कर ही लेंगे ।”
“तुम्हें मेरी काबलियत पर शक है ?” - सब इंस्पेक्टर उसे घूरता हुआ बोला ।
“जरा भी नहीं । इसीलिये तो कहा कि मेरी तलाश इतनी नाकाम नहीं । हमारा मिशन अभी फेल नहीं हो गया ।”
“हूं ।” - वो कुछ क्षण खामोश रहा और फिर सतीश से सम्बोधित हुआ - “तो पायल ने कल दोपहर को आपको फोन किया था !”
“हां । पायर पर से ।”
“यानी कि आइलैंड पर पहुंचते ही ?”
“जाहिर है ।”
“फिर भी आपके यहां वो रात के तीन बजे आकर लगी ?”
“उसे ईस्टएण्ड पर कोई निहायत जरूरी काम था ।”
“क्या काम था ?”
“ये तो बताया नहीं था उसने ?”
“चौदह घण्टे का जरूरी काम था ?”
“अब मैं क्या कहूं ?”
“ईस्टएण्ड कोई बहुत बड़ा इलाका नहीं । हम मालूम कर लेंगे कि उसे वहां क्या काम था, कहां काम था, किस के साथ काम था और क्यों कर उसे पहले से मालूम था कि उस काम से वो रात दो बजे से पहले फारिग नहीं होने वाली थी ।”
“असल में” - राज बोला - “वो उसके भी बाद फारिग हुई थी । वसुन्धरा कहती थी कि वो निर्धारित समय के काफी बाद पायर पर पहुंची थी ।”
“आई सी ।”
“मुमकिन है” - सतीश ने राय जाहिर की - “उस वक्फे में वो वापिस पणजी का भी एक चक्कर लगा आयी हो ।”
“सब मालूम पड़ जायेगा । सब सामने आ जायेगा । फिलहाल आप मुझे पायल में और अपनी मकतूला हाउसकीपर में कोई कनैक्शन समझाइये ।”
“मुझे तो नहीं दिखाई देता कोई कनैक्शन । मुझे तो ये भी उम्मीद नहीं कि वसुन्धरा ने पहले कभी पायल का नाम भी सुना हो ।”
“शादी से पहले का या बाद का ? मिस पायल पाटिल या मिसेज पायल नाडकर्णी ?”
“कोई भी ।”
“वो कब से आपके यहां मुलाजिम थी ?”
“यही कोई तीन महीने से ।”
“आपने रखा था उसे ?”
“नहीं, मैंने नहीं । मैं तो यहां होता नहीं । मैं तो अमूमन बाहर रहता हूं । मेरी गैरहाजिरी में मेरे केयरटेकर ने मुझे रोम में फोन करके बताया था कि हाउसकीपर नौकरी छोड़ गयी थी । मैंने उसे कहा कि वो खुद ही किसी दूसरी हाउसकीपर का इन्तजाम कर ले । उसने कर लिया ।”
“यानी कि वसुन्धरा बतौर आपकी हाउसकीपर आपके केयरटेकर की खोज थी ?”
“हां ।”
“उसने कहां से खोजी ? क्या अखबार में इश्तिहार दिया ?”
“मुझे नहीं मालूम ।”
“है कहां वो ?”
“आजकल छुट्टी पर है । बेलगाम गया है । हफ्ते में लौटकर आयेगा ।”
“आप यहां कब लौटे ?”
“एक महीना पहले ।”
“यानी कि अपनी हाउसकीपर से आपकी वाकफियत महज एक महीने की थी ?”
“हां । लेकिन वो मुझे फौरन पसन्द आ गयी थी । वो जरा गैरमिलनसार थी, मोटी थी, शक्ल सूरत में खस्ताहाल थी लेकिन बहुत जिम्मेदार थी, बहुत कार्यकुशल थी और बहुत ही सिंसियर थी । एक महीने में ही मैं उसका इतना आदी बन गया था, उस पर इतना निर्भर करने लगा था कि उसके बगैर मैं अपनी कल्पना नहीं कर पाता था । मुझे उसकी मौत का हमेशा अफसोस रहेगा और अगर सच में ही पायल ने उसका कत्ल किया है तो - तो खुदा गारत करे कम्बख्त को ।”
 
“मूल रूप से वो कहां की रहने वाली थी ?”
“मालूम नहीं । केयरटेकर को मालूम होगा ।”
“उसने” - आयशा बोली - “मुझे बताया कि वो शोलापुर की रहने वाली थी ।”
“उसके परिवार के बारे में आपको काई जानकारी है या वो भी आपका केयरटेकर ही आयेगा तो बतायेगा ?”
“परिवार नहीं है उसका । मेरा मतलब है मां-बाप, अंकल-आंटी, भाई-बहन जैसा कोई नजदीकी रिश्तेदार नहीं था उसका ।”
“अनाथ थी ?”
“ऐसा ही था कुछ । शुरु से नहीं तो बाद में सब मर खप गये होंगे ।”
“पहले क्या करती थी ?”
“बम्बई और पूना में कई जगह सेल्सगर्ल की नौकरी कर चुकी थी । हाउसकीपर की ये उसकी पहली नौकरी थी ।”
“अपनी पिछली नौकरियों के बारे में कभी कुछ बताया हो उसने आप को ?”
“नहीं । सच पूछो तो मैंने इस बाबत उससे कभी कुछ नहीं पूछा था । अपनी संकोची प्रवृत्त‍ि की वजह से वो बातचीत से कतराती थी इसलिये मैं भी उसे कुरेदने की कोशिश नहीं करता था ।”
“बहरहाल आपकी हाउसकीपर के और पायल के समाजी रुतबे में तो बहुत फर्क हुआ ?”
“बिल्कुल हुआ । वसुन्धरा तो, ये कह लीजिये कि, सर्वेन्ट क्लास थी जब कि, कर्टसी लेट श्याम नाडकर्णी, कम-से-कम पिछले सात साल से तो पायल का समाजी रुतबा बड़ा था । वो एक पैसे और रसूख वाले आदमी की बीवी थी... बेवा थी ।”
“यानी कि दोनों में कुछ कामन नहीं था ?”
“जाहिर है ।”
“तो फिर कत्ल का उद्देश्य क्या हुआ ? क्यों पायल ने उसका कत्ल....”
“नहीं किया ।” - एकाएक ज्योति तीखे स्वर में बोली - “पायल ने उसका कत्ल नहीं किया ।”
“कौन बोला ?” - सब-इंस्पेक्टर सकपकाया-सा उपस्थित परियों के चेहरों पर निगाह घुमाता हुआ बोला ।
“मैं बोली ।” - ज्योति बोली । वो जोश में उठकर खड़ी हो गयी थी । वो इतनी आन्दोलित दिखाई दे रही थी कि अमूमन रोब और शाइस्तगी दिखाने वाला उसका चेहरा उस घड़ी तमतमाया हुआ था - “मिस्टर सब-इंस्पेक्टर, उद्देश्य ढूंढते ही रह जाओगे । क्योंकि उद्देश्य है ही नहीं । क्योंकि पायल ने हाउसकीपर का कत्ल नहीं किया है । पायल की बाबत ऐसा सोचना भी जहालत और कमअक्ली होगी ।”
“आप” - सब-इंस्पेक्टर उसे घूरता हुआ बोला - “ये सोच-समझ के ऐसा कह रही हैं कि हाउसकीपर वसुन्धरा की लाश अभी भी ऊपर पायल के कमरे में पड़ी है और पायल फरार है ।”
“वो फरार नहीं है ।”
“ओके । वो गायब है ।”
“वो गायब भी नहीं है ।”
“तो क्या हमारे बीच में बैठी हुई है ?”
“वो... वो सिर्फ यहां नहीं है । किसी के किसी एक जगह पर न पाये जाने का मतलब ये नहीं होता कि वो गायब है या... या फरार है । जब वो यहां से गयी थी तब उसे मालूम तक नहीं था कि उसके पीछे यहां क्या हुआ था । उसे नहीं पता था कि यहां कोई कत्ल हो गया था । कसम उठवा लीजिये उसे नहीं पता था । मेरे से बेहतर पायल को कोई नहीं जानता और मैं ये जानती हूं कि वो मुझे धोखा नहीं दे सकती, वो मेरे से झूठ...”
वो ठिठक गयी, वो अपने होंठ काटने लगी ।
“हां हां ।” - सब-इंस्पेक्टर बोला - “कहिये । आगे बढिये ।”
जवाब में ज्योति ने यूं होंठ भींचे और यूं उनके आगे अपनी बंद मुट्ठी लगायी जैसे अपनी जुबान दोबारा न खुलने देने का सामान कर रही हो ।
“मैडम !” - सब-इंस्पेक्टर तीखे स्वर में बोला ।
“यस ।” - ज्योति फंसे कण्ठ से बोली ।
“इधर मेरी तरफ देखिये ।”
उसने बड़ी कठिनाई से सब-इंस्पेक्टर की तरफ सिर उठाया ।
“आप पायल से मिली थीं ।”
“नहीं, नहीं !”
“आप न सिर्फ पायल से मिली थीं, आपने उससे बात भी की थी । कबूल कीजिये ।”
जवाब में वो धम्म से वापिस अपनी कुर्सी पर बैठ गयी । उसने सिर झुका लिया और बार-बार बेचैनी से पहलू बदलने लगी ।
“जवाब दीजिये ।” - सब-इंस्पेक्टर अपने खास पुलसिया अन्दाज से कड़ककर बोला ।
“हां ।” - ज्योति बड़ी मुश्किल से बोल पायी - “मैं मिली थी उससे । हमारे में बातचीत भी हुई थी ।”
“कब ? किस वक्त ?”
“वक्त की मुझे खबर नहीं क्योंकि मैंने घड़ी नहीं देखी थी । लेकिन तब अभी अन्धेरा था और पौ फटने के अभी कोई आसार नहीं दिखाई दे रहे थे । मेरी एकाएक नींद खुल गयी थी और पायल के बारे में सोचती मैं दोबारा सो नहीं सकी थी । मिस्टर सतीश ने पायल से हमारी मुलाकात ब्रेकफास्ट पर कराने की बात कही थी और मैं अपने पुराने तजुर्बे से जानती थी कि यहां ब्रेकफास्ट नौ बजे से पहले नहीं होता था । यानी कि पायल से मुलाकात के लिये मुझे नौ बजने का इन्तजार करना पड़ता जो कि उस घड़ी मेरे से नहीं हो रहा था । आखिर वो मेरी इतनी पुरानी फ्रेंड थी । इतना कुछ हम दोनों में कामन था । हम दोस्त ही नहीं, एक तरह से बहनें थीं...”
“आई अन्डरस्टैण्ड । मतलब ये हुआ कि आप तभी उठकर उसके कमरे में चली गयीं जहां कि आपकी उससे मुलाकात हुई ?”
“नहीं, वहां नहीं । उसके कमरे में नहीं । वो... वो मुझे बाल्कनी में सीढियों के दहाने पर मिली थी । मुझे देखकर उसने होंठों पर उंगली रखकर मुझे खामोश रहने को कहा था और नीचे चलने का इशारा किया था । मैं उसके पीछे-पीछे सीढियां उतरी थी और फिर लाउन्ज पार करके पोर्टिको में पहुंच गयी थी जहां कि मेरी उससे बात हुई थी ।”
“वो क्या वाक पर जा रही थी ?”
“नहीं । वाक वाली ड्रैस नहीं थी उसकी । वो तो यहां से पलायन करने की तैयारी में थी ।”
“वो चुपचाप यहां से खिसक रही थी ?” - सतीश हैरानी से बोला - “बिना किसी से मिले ? बिना अपने बुलबुल सतीश से मिले ? बिना किसी से राम-सलाम भी किये ?”
 
“हां । वो कहती थी कि उसने यहां आकर ही गलती की थी । उसे यहां नहीं आना चाहिये था । वो कहती थी कि वो हम लोगों के और मिस्टर ब्रान्डों के रूबरू होने की ताब अपने आप में नहीं ला पा रही थी । वो बहुत जज्बाती हो उठी थी । कहने लगी थी कि यहां आकर सात साल पुरानी यादें यूं तरोताजा होने लगी थीं जैसे वो वारदात अभी कल की बात थी....”
“कौन-सी वारदात ? उसके पति के साथ सात साल पहले की डोना पाला वाल पार्टी में हुआ हादसा ?”
“हां । जिसमें कि उसके पति की जान गयी थी । कहती थी कि सात साल बाद भी वो उस वारदात को भुला नहीं पायी थी । हर वक्त वो हादसा उसे सताता रहता था । उस वक्त भी वो एकाएक फफककर रोने लगी थी और कहने लगी थी कि अपने मौजूदा मनहूस मूड में यहां रुक कर वो पार्टी का मजा खराब नहीं करना चाहती थी । बार-बार कह रही थी कि उसे यहां नहीं आना चाहिये था । और उस घड़ी वो अपनी उसी गलती को सुधार रही थी कि उसका मेरे से सामना हो गया था ।”
“यानी कि वो आपसे मिलकर खुश नहीं थी ?”
“एक तरीके से खुश थी भी, दूसरे तरीके से खुश नहीं भी थी । खुश थी कि कम-से-कम किसी से तो वो यहां मिलकर जा रही थी, नाखुश इसलिये थी कि उसे अपनी अन्दरूनी हालत मेरे सामने बयान कर देनी पड़ी थी ।”
“आई सी ।”
“फिर उसने मुझे बताया कि उसने टैक्सी स्टैण्ड पर फोन करके एक टैक्सी मंगवाई थी जो कि उसे बाहर पब्लिक रोड पर मिलने वाली थी । मैं उस घड़ी नाइटी में थी, मैंने उसे कहा कि मैं पांच मिनट में कपडे़ बदलकर आती हूं और उसकी पायर पर छोड़ने उसके साथ चलती हूं लेकिन उसने मेरी बात ही न सुनी । पहले ही मुझे पोर्टिको में खड़ी छोड़कर वहां से दौड़ चली ।”
“ये नहीं हो सकता कि उसने फोन करके टैक्सी मंगवाई हो ।”
“क्यों नहीं हो सकता ?”
“क्योंकि इस आइलैंड पर एक ही टैक्सी स्टैण्ड है और उस पर फोन नहीं है । वो टैक्सी स्टैण्ड पायर के बुकिंग आफिस के करीब है और टैक्सी के लिये काल भी बुकिंग आफिस पर आती हैं जिन्हें बुकिंग क्लर्क सुनता है और आगे टैक्सी स्टैण्ड पर मैसेज ट्रांसफर करता है । सात साल बाद जिस लड़की के कदम इस आइलैंड पर पडे़ं हों, उसे इस इन्तजाम की खबर नहीं हो सकती ।”
“मिस्टर पुलिस आफिसर” - ब्रान्डों बोला - “सात साल बाद पायल के कदम मेरी एस्टेट में पडे़ थे, न कि आइलैंड पर । तुम भूल रह हो कि उसने खुद कहा था कि उसको यहां ईस्टएण्ड पर भी किसी से कोई काम था । जरूरी । वक्त खाऊ । लिहाज पिछले सात सालों में पहले कभी एक या एक से ज्यादा बार वो यहां ईस्टएण्ड पर आयी हो सकती है और यूं उसे टैक्सी स्टैण्ड वालों के फोन से ताल्लुक रखते इन्तजाम की वाकफियत हो सकती है ।”
“वो वाकफियत वैसे ही इतनी अहम कहां है ?” - राज बोला - “यहां आटोमैटिक एक्सचेंज तो है नहीं कि जिसमें कि नम्बर डायल करके फोन मिलाया जाता है । यहां तो मैनुअल एक्सचेंज है । मैं अगर फोन उठाकर आपरेटर को बोलूं कि मुझे एक टैक्सी की जरूरत थी तो क्या मुझे वो बताने की जगह कि टैक्सी स्टैण्ड पर टेलीफोन कनैक्शन नहीं था, वो मुझे सहज ही पायर के बुकिंग आफिस की लाइन पर नहीं लगा देगी जहां कि बकौल आपके, टैक्सी के लिये मैसेज रिसीव किये जाते हैं ?”
“सो, देअर ।” - सतीश विजेता के से स्वर में बोला ।
सब इंस्पेक्टर के चेहरे पर अप्रसन्नता के भाव आये लेकिन वो मुंह से कुछ न बोला ।
कुछ क्षण खामोशी रही ।
“आपने” - फिर सब-इंस्पेक्टर इलजाम लगाती आवाज में ज्योति से सम्बोधित हुआ - “ये बात मुझे पहले क्यों नहीं बताई ?”
“माई हनी चाइल्ड ।” - सतीश आहत भाव से बोला - “इस बात पर तो मेरा भी गिला रिकार्ड कर लो । तुमने ये बात हम सबको क्यों न बताई ? और तो और तब भी न बताई जब कि हम ब्रेकफास्ट टेबल पर बैठे पायल के वहां पहुंचने का इन्तजार कर रहे थे और सिर्फ तुम्हें मालूम था कि वो तो कब भी यहां से जा चुकी थी ।”
 
“आई एम सारी, डार्लिंग ।” - ज्योति रुआंसे स्वर में बोली - “लेकिन मैं क्या करती ? पायल ने मेरे से कसम उठवाकर वादा लिया था कि इस बाबत मैं तुम्हें कुछ न बताऊं । वो कहती थी कि अगर तुम्हें पता लग जाता कि वो चोरों की तरह यहां से खिसक रही थी तो तुम उसके पीछे दौड़ पड़ते और उसे जबरन वापिस लिवा लाते ।”
“लेकिन आप तो” - सब-इंस्पेक्टर बोला - “ये जान चुकने के बाद भी कि हाउसकीपर का कत्ल हो गया था, इस बाबत खामोश रहीं ? क्यों खामोश रहीं ? इसलिये खामोश रहीं क्योंकि आप जानती थीं कि कत्ल पायल ने किया था ?”
“नहीं ।” - ज्योति तीव्र विरोधपूर्ण स्वर में बोली ।
“और वो इसीलिये चोरों की तरह यहां से खिसक रही थी क्योंकि उसने कत्ल किया था ?”
“हरगिज नहीं ।”
“आप खामोश रहकर उसे चुपचाप, सुरक्षित यहां से खिसक जाने का मौका दे रही थीं ।”
“मैंने उसे चुपचाप यहां से चले जाने दिया था क्योंकि वो ही ऐसा चाहती थी, क्योंकि अपनी बहन जैसी सहेली की बात रखना मेरा फर्ज था । इसलिये नहीं क्योंकि उसने कत्ल किया था और वो मौकायवारदात से खिसक रही थी ।”
“खिसक तो वो रही थी ।” - सब-इंस्पेक्टर जिदभरे स्वर में बोला ।
“हम लोगों से बचने के लिये, न कि कत्ल की जिम्मेदारी से बचने के लिये । आप खुद कबूल करते हैं कि उसके पास कत्ल का कोई उद्देश्य नहीं था उसके और हाउसकीपर के बीच में कोई दूर-दराज का भी सम्बन्ध मुमकिन नहीं था ।”
“खिसक तो वो रही थी ।” - सब-इंस्पेक्टर ने फिर दोहराया ।
इस बार ज्योति सकपकायी, उसने उलझनपूर्ण भाव से सब-इंस्पेक्टर की तरफ देखा और फिर बोली - “क्या मतलब है आपका ? कोई खास ही मतलब मालूम होता है ।”
“आपने कहा कि जब आप पायल से मिली थीं, उस वक्त अभी भी अन्धेरा था और अभी पौ फटने के भी आसार नहीं दिखाई दे रहे थे । आप बता सकती हैं किे आखिरकार पौ कब फटी थी ?”
“मेरे अपने कमरे में वापिस लौट आने के थोड़ी देर बाद ।”
“बहरहाल कत्ल सवेरा होने से पहले हुआ था और जब आप पोर्टिको में खड़ी पायल से बात कर रही थीं, तब तक कत्ल हो चुका था । ठीक ?”
“आप ऐसा इसलिेये कह रहे हैं क्योंकि आप पायल को कातिल मानकर चल रहे हैं ।”
“थोड़ी देर के लिये आप भी ऐसा ही मानकर चलिये और मुझे ये बताइये कि जब पायल आपको मिली थी, उस वक्त क्या वो भयभीत दिखाई देती थी ?”
“भयभीत ?”
“खौफजदा ! आतंकित !”
“किस बात से ?”
“किसी भी बात से । देखिये मुझे ऐसी कोई वजह दिखाई नहीं देती जिस के तहत पायल ने - या आप में से किसी ने - हाउसकीपर का कत्ल किया हो । न ही हाउसकीपर में और पायल में - या आप लोगों में - कोई आपसी रिश्ता, कोई लिंक दिखाई देता है । लेकिन आप तमाम युवतियों का, जो कि मैंने सुना है कि सतीश की बुलबलों के नाम से जानी जाती हैं और भूतपूर्व बुलबुल पायल से - भले ही वो आप लोगों में शामिल होने के लिये सात साल के लम्बे वक्फे के बाद यहीं आयी थी - बड़ा स्प्ष्ट लिंक स्थापित है । अब इस बात में ये अहम बात जोड़िये कि हाउसकीपर का कत्ल पायल के कमरे में हुआ था । ओके ?”
कोई कुछ न बोला । अलबत्ता सबके चेहरे पर असमंजस के भाव थे ।
“बाई दि वे” - सब-इंस्पेक्टर मेज पर फैली तस्वीरों पर निगाह डालता हुआ बोला - “कद कितना था पायल का ?”
“ऐन मेरे जितना ।” - शशिबाला निसंकोच बोली - “पांच फुच सात इंच ।”
“यानी कि तकरीबन उतना ही जितना कि हाउसकीपर का है । वो मोटी होने के कारण लम्बी कदरन कम लगती है लेकिन पंचनामे के लिए मैंने फीते से उसका कद नापा था जो कि पांच फुट साढे आठ इंच था ।”
“तो ?” - सतीश उलझनपूर्ण स्वर में बोला - “तो क्या हुआ ?”
“आप कहीं ये तो नहीं कहना चाहते” - राज बोला - “कि पायल के धोखे में हाउसकीपर का कत्ल हो गया था ?”
“मैं ऐसी ही किसी सम्भावना पर विचार कर रहा हूं । दोनों की हाइट तकरीबन बराबर थी । अन्धेरा हो तो हाइट के सिवाय और क्या दिखता है ?”
“लेकिन” - सतीश बोला - “पायल के कमरे में वसुन्धरा का क्या काम ?”
“होगा कोई क्राम ।” - सब-इंस्पेक्टर लापरवाही से बोला ।
“होगा तो पायल की मौजूदगी में होगा । कातिल ने एक गवाह की मौजूदगी में कत्ल करने का हौसला कैसे किया होगा ?”
“उस एक नाजुक घड़ी में पायल वहां मौजूद नहीं रही होगी ।”
“वहां मौजूद नहीं रही होगी ? तो कहां चली गयी होगी ?”
 
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