Mastaram Kahani कत्ल की पहेली - Page 6 - SexBaba
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Mastaram Kahani कत्ल की पहेली

“थैंक्यू । कौन था वो आदमी जो कल तुम्हारी गाड़ी भाड़े पर लिया ?”
“नाम तो मेरे को मालूम नहीं ।”
“नाम जाने बिना गाड़ी उसके हवाले कर दी ?”
“बट वन थाउजेंड डाउन पेमेंट लेकर ! वो मेरे को अपना ड्राइविंग लाइसेंस दिखाया, मैं नाम भी पढा, पण... भूल गया ।”
“वो गाड़ी ले के भाग जाता तो ?”
“हीं हीं हीं । आइलैंड पर किधर ले के भागेगा ? मैं उधर पायर पर सबको फिट करके रखा, अपुन की गाड़ी को स्टीमर पर तभी चढाने का है जब मैं साथ हो । क्या !”
“वो इधर का आदमी था या कोई बाहर से आया था ?”
“बाहर से आया था । होटल में ठहरा था ।”
“कौन-से होटल में ठहरा था ।”
“नाम बोला था वो पण...”
“भूल गया ?”
“हां । - पण वो इधर ईस्टएण्ड के ही किसी होटल में था ।”
***
ईस्टएण्ड में हर फेनी के अड्डे और बीयर बार के ऊपर ‘होटल’ लिखा हुआ था अलबत्ता वहां तीन-चार होटल ढंग के भी थे जहां उन्होंने हुलिया बताकर अपने आदमी की पूछताछ शुरु की ।
तीसरे होटल के रिसैप्शन क्लर्क से माकूल जवाब मिला । राज ने अभी उसका हुलिया बयान करना शुरु ही किया था कि वो सहमति में गरदन हिलाने लगा था ।
“वो साहब इधर आया था ।” - वो बोला ।
“गुड ।” - राज बोला - “कौन था वो ? नाम क्या नाम था उसका ?”
“आप क्यों पूछता है ? उधर सतीश एस्टेट में हुए मर्डर की वजह से ?”
“उसकी खबर यहां तक पहुंच भी गयी ?”
“कब की ? बॉस, इधर तो किसी को जुकाम हुए का खबर नहीं छुपता । मर्डर का खबर कैस छुपेगा !”
“ओह !”
“मैं पुलिस को पहले ही सब बोल दिया है । उसका भी और दूसरे आदमी का भी ।”
“दूसरा आदमी ? दूसरा आदमी कौन ?”
“जो उसका माफिक ही लास्ट ईवनिंग इधर पहुंचा था । दोनों किसी पायल पाटिल को पूछता था ।”
“क्या पूछते थे वो पायल पाटिल की बाबत ?”
“यही कि क्या वो इधर होटल में स्टे करता था ।”
“वो... वो दोनों आदमी एक-दूसरे के साथ थे ? इकट्ठे यहां आये थे ?”
“नहीं । जिस आदमी का हुलिया आप बोलता है, वो पहले आया था । नौ बजे । या थोड़ा बाद में । वो पूछा कि क्या पायल पाटिल इधर होटल में स्टे करता था ! मैं नक्को बोला तो वो इधर से चला गया । फिर ग्यारह बजे दूसरा आदमी आया । वो भी पायल पाटिल को पूछा और चला गया ।”
“दोनों में से किसी ने नाम नहीं बताया था अपना ?”
“नो । वो दोनों खाली पायल पाटिल को पूछा और चला गया ।”
“दूसरा आदमी देखने में कैसा था ?”
“पहले का माफिक ही था ।”
“उसका हुलिया बयान कर सकते हो ?”
“हुलिया ?”
“आई मीन कैन यू डिस्क्राइब हिम ? कद कैसा था ? रंग कैसा था ? हेयर स्टाइल कैसा था ? दाढ़ी या मूंछ या दोनों रखता था या नहीं ? चश्मा लगाता था या नहीं ? पोशाक क्या पहने था, वगैरह ?”
उसने जो टूटा-फूटा-सा हुलिया बयान किया वो बहुत नाकाफी था ।
“तुम उसे दोबारा देखोगे तो पहचान लोगे ?” - डॉली ने पूछा ।
“आई होप सो ।”
“पहले वाले को भी ?”
“यस ।”
“अगर उन दोनों में से कोई तुम्हें फिर दिखाई दिया तो क्या तुम सतीश साहब के यहां हमें खबर कर दोगे ?”
“मैं पुलिस को खबर करेगा ।”
“पुलिस को भी करना लेकिन हमें भी...”
“मैं खाली पुलिस को खबर करेगा । पुलिस मेरे को ऐसा बोला कि...”
“ठीक है, ऐसी ही करना ।” - राज पटाक्षेप के ढंग से बीच में बोल पड़ा - “नाम क्या है तुम्हारा ?”
“जार्जियो ।”
“और होटल का ?”
“डायमंड । बाहर चालीस फुट का बोर्ड टंगा है ।”
“थैंक्यू, जार्जियो ।”
वे होटल से बाहर निकले और फिर भीड़ में जा मिले ।
“दो जने !” - वो बोला - “दोनों पायल की तलाश में । कुछ ज्यादा ही पापुलर थी ये पायल नाम की तुम्हारी फैलो बुलबुल ।”
“पता नहीं क्या चक्कर है !” - डॉली बड़बड़ाई ।
“वो दूसरे के हुलिये से तुम्हारे जेहन में कोई घण्टी खड़की हो ?”
“न ।”
“कोई फायदा नहीं हुआ यहां आने का ।”
“अभी तो यहां आये हैं । उस पहले वाले की तलाश तुम अभी बन्द थोड़े ही कर दोगे ?”
“अब क्या फायदा उसके पीछे खराब होने का ! अब तो उसे पुलिस भी तलाश कर रही है । वो पुलिस को नहीं मिल रहा तो क्या हमें मिलेगा ?”
“तो क्या इरादा है ? वापिस चलें ?”
“हां । जीप किधर खड़ी की थी ?”
“ध्यान नहीं ।”
“उधर चलते हैं ।”
अन्दाजन वो एक तरफ बढे ।
 
रास्ते में एक छोटा-सा पार्क था जिसके करीब वो ठिठके । वहां बेतहाशा भीड़ थी । भीड़ की वजह वहां पार्क के बीच में बना बैण्ड स्टैण्ड था जिस पर बैंड बज रहा था और जिसकी धुन पर नौजवान जोड़े नाच रहे थे । वहां बजते गोवानी संगीत ने वहां बढिया समां बांधा हुआ था ।
तभी ड्रम बजाते युवक के पीछे, बैंड स्टैण्ड से नीचे राज को एक परिचित चेहरा दिखाई दिया । राज के नेत्र फैले, उसने डॉली की बांह दबोची और उत्तेजित स्वर में बोला - “डॉली ! वो रहा हमारा आदमी ।”
“कहां ?” - डॉली हकबकाई-सी बोली ।
“बैंड स्टैंड की परली तरफ । वो ड्रमर के पीछे वहां...”
तभी वो चेहरा वहां से गायब हो गया ।
तत्काल भीड़ में से रास्ता बनाता, लोगों को धक्के देता, लोगों के धक्के खाता, राज उसके पीछे लपका ।
उस घड़ी डॉली की उसे इतनी भी सुध नहीं थी कि वो पीछे ही ठिठकी खड़ी रह गयी थी या उसके पीछे आ रही थी ।
आगे भीड़ में अपनी पहचानी सूरत उसे एक बार फिर दिखाई दी और फिर एक छलावे की तरह फिर उसकी दृष्टि से ओझल हो गयी ।
लोगों की गालियां-कोसने झेलता वो भीड़ को धकियाता भीड़ से पार पार्क की परली तरफ पहुंच गया । वो आदमी वहां कहीं नहीं था । पराजित-सा वो वापिस लौटा ।
डॉली को जहां वो छोड़कर गया था, वो वहां नहीं थी ।
अब उसके सामने एक नया काम मुंह बाये खड़ा था । उस भीड़ भरे माहौल में से उसने डॉली को तलाश करना था ।
वो बाजार में अन्दाजन उधर बढा जिधर कि जीप हो सकती थी और जिधर डॉली गयी हो सकती थी ।
वो बाजार के इकलौते सिनेमा के पहलू से गुजरते वक्त ठिठका ।
सिनेमा की मारकी में उसे डॉली खड़ी दिखाई दी । उस घड़ी उसकी राज की तरफ पीठ थी लेकिन फिर भी उसने उसे साफ पहचाना ! वो अपने दोनों हाथ सामने पोस्टरों से अटी दीवार पर टिकाये थी और...
ठिठका हुआ राज अब थमककर खड़ा हो गया ।
...उसकी बांहो के घेरे में से उस आदमी का सिर झांक रहा था । जिसे कि वो इतनी देर से तलाश कर रहा था ।
उसका मन प्रशंसा से भर उठा । डॉली ने न केवल उसे उससे पहले तलाश कर लिया था बल्कि वो यूं उसे अपने और दीवार के बीच गिरफ्तार किये हुए थी कि वो भाग नहीं सकता था ।
वो लपकर उनके करीब पहुंचा ।
“शाबाश, डॉली ।” - वो उत्साह से बोला - “तुमने तो कमाल ही कर दिया जो इसे...”
डॉली दीवार पर से एक हाथ हटाकर उसकी तरफ घूमी और फिर बोली - “हनी, मीट माई ओल्ड फ्रेंड...”
“युअर ओल्ड फ्रेंड !” - राज भौंचक्का-सा बोला ।
“...धर्मेंद्र अधिकारी ।”
“हल्लो !” - वो आदमी बोला ।
“लेकिन” - राज आवेशपूर्ण स्वर में बोला - “ये तो वही आदमी है जो कल रात अपने आपको रोजमेरी का ब्वाय फ्रेंड बता रहा था ।”
डॉली ने अचकचाकर उसकी तरफ देखा ।
“एक्सक्यूज मी, डार्लिंग” - अधिकारी बोला फिर एकाएक एक छलांग मारकर डॉली से परे हटा और जाकर बाजार की भीड़ में विलीन हो गया ।
राज उसके पीछे भागने लगा तो डॉली ने उसे बांह पकड़कर वापिस घसीट लिया ।
“कोई फायदा नहीं होगा ।” - वो बोली - “इतनी भीड़ में वो हमारे हाथ नहीं आने वाला ।”
“पहले तुम्हारे हाथ कैसे आ गया था ?”
“मुझे क्या पता था कि ये वो आदमी था !”
“मैंने इतनी बारीकी से उसका हुलिया बयान किया था ।”
“मुझे नहीं सूझा था कि वो... लेकिन अधिकारी कैसे हो सकता है वो आदमी ? तुम्हें पक्का है कि कल रात तुमने इसे ही देखा था ?”
“मैं क्या अन्धा हूं ?”
“ओह हनी, तुम तो नाराज हो रहे हो ।”
“तुम्हें कैसे मिल गया ये ?”
“बस, यूं ही राह चलते । अभी कोई बातचीत शुरु हो ही नहीं पायी थी कि तुम आ गये । फिर... फिर वो ये जा वो जा ।”
“उसका यूं भाग खड़ा होना ही ये साबित नहीं करता कि वो वही आदमी था ?”
“उसके यूं भाग खड़ा होने की कोई और वजह हो सकती है । कई और वजह हो सकती हैं ।”
“मसलन क्या ?”
“छोड़ो । फिर मिलेगा तो उसी से पूछेंगे ।”
“है कौन वो ? और तुम कैसे जानती हो उसे ? कब से जानती हो ?”
“सालों से जानती हूं । एजेन्ट है वो ?”
“इंश्योरेंस का ?”
“नहीं ।”
“प्रापर्टी ?”
“ओह, नो । अधिकारी फिल्म एजेन्ट है । बहुत बड़े-बड़े स्टार्स का सैक्रेट्री रह चुका है । अपनी शशिबाला को भी स्टार बनाने वाला वो ही है । दस साल पहले जिन दिनों, कर्टसी सतीश, हमारे फैशन शो हुआ करते थे, उन दिनों ये हमारे इर्द-गिर्द बहुत मंडराता था । सतीश की आठ की आठ बुलबुलों की फिल्मों में एन्ट्री कराना चाहता था । लेकिन तब हममें से किसी ने भी उसकी प्रपोजल को गम्भीरता से नहीं लिया था । आई मीन सिवाय शशिबाला के जो कि इसकी मेहरबानी से फिल्म स्टार बन गयी थी ।”
“ये अभी भी शशिबाला का सैक्रेट्री है ?”
“मालूम नहीं ।”
“यहां आइलैंड पर क्या कर रहा है ?”
“पता नहीं । पूछने की नौबत ही कहां आयी !”
“इसको सामने पाकर भी तुम्हें नहीं सूझा कि मैं इस आदमी का हुलिया बयान कर रहा था ?”
“नहीं सूझा न, यार । मैं इसे यहां एक्सपैक्ट जो नहीं कर रही थी । ऊपर से मुद्दत बाद तो दिखाई दिया था आज ।”
“ये कोई भी था, कल सतीश की एस्टेट के गिर्द क्यों मंडारा रहा था ? इसने ये झूठ क्यों बोला कि ये रोजमेरी का ब्वाय फ्रेंड था ओर उसी को घर लिवा ले जाने की खातिर वहां मौजूद था ?”
“क्या पता ?”
“साफ क्यों न बोला कि कौन था ? और ये कि ये सतीश की तमाम बुलबुलों से वाकिफ था । खासतौर से शशिबाला से ?”
“क्या पता ?”
“शशिबाला को इसकी आइलैंड पर मौजूदगी की खबर होगी ?”
“क्या पता ?”
“अरे” - राज झल्लाया - “क्या पता’ के अलावा क्या कोई जवाब नहीं है तुम्हारे पास ?”
“सारी, डार्लिंग ।”
“जीप का पता लगा ?”
“हां । उधर खड़ी है ।”
“आओ वापिस चलें । यहां टक्करें मारना अब बेकार है । जिस आदमी की हम यहां तलाश में आये थे, वो तो तुम्हारा बरसों पुराना वाकिफकार निकल आया ।”
“मुझे लगता है तुम्हें ही कोई धोखा हुआ है अधिकारी को पहचानने में । वो कल रात वाला आदमी नहीं हो सकता ।”
“ओह, कम ओन ।”
डॉली फिर न बोली ।
***
 
फिगारो आइलैंड की पुलिस चौकी पायर से ईस्टएण्ड को जोड़ने वाली सड़क पर स्थित थी । राज ने आती बार एक एकमंजिली लाल खपरैलों वाली इमारत पर ‘पुलिस पोस्ट, फिगारो आइलैंड’ का बोर्ड लगा देखा था । जीप उधर से गुजरी तो राज एकाएक बोला - “रोको ।”
डॉली ने तत्काल ब्रेक लगाई ।
“क्या हुआ ?” - वो सकपकाई-सी बोली ।
“मैं एक मिनट चौकी में जाना चाहता हूं ।”
“क्यों ?”
“वो होटल का रिसैप्शन क्लर्क बोलता था कि जो दो आदमी पायल को पूछने आये थे, उनकी बाबत उसने पुलिस को भी बताया था । हो सकता है पुलिस ने उसकी तलाश के मामले में कोई तरक्की की हो ।”
“लेकिन...”
“यूं कम-से-कम ये तो पता लग जायेगा कि उन दो में से एक तुम्हारा वो फिल्म एजेन्ट-कम-सैक्रेट्री धर्मेन्द्र अधिकारी था या नहीं । तुम जीप में ही बैठो, मैं बस गया और आया ।”
प्रतिवाद में डॉली के कुछ बोल पाने से पहले ही वो जीप में से बाहर कूदा और लपककर चौकी की इमारत में दाखिल हो गया ।
भीतर लम्बे बरामदे में एक कमरे पर उसे सब-इंस्पेक्टर जोजेफ फिगुएरा ने नाम की नेम प्लेट लगी दिखाई दी । भीतर से बातों की धीमी-धीमी आवाजें आ रही थीं । वो एक क्षण हिचकिचाया और फिर दरवाजे पर पड़ी चिक हटाकर भीतर दाखिल हो गया ।
भीतर दो व्यक्ति मौजूद थे जो उसे देखते ही खामोश हो गये । भीतर एक सब-इंस्पेक्टर फिगुएरा ही था, उसके सामने बैठे व्यक्ति की वर्दी पर तीन सितारे दिखाई दे रहे थे जो कि उसके इंस्पेक्टर होने की चुगली कर रहे थे ।
फिगुएरा ने अप्रसन्न भाव से कमरे में यूं घुस आये व्यक्ति की तरफ देखा, उसने राज को पहचाना तो तत्काल उसके चेहरे से अप्रसन्नता के भाव उड़ गये ।
“मिस्टर माथुर !” - वो बोला - “वैलकम ।”
“थैंक्यू ।” - राज इंस्पेक्टर के पहलू में एक कुर्सी पर बैठ गया ।
“ये इंस्पेक्टर सोलंकी हैं !” - फिगुएरा बोला - “पणजी के उस थाने से आये हैं जिसके अन्डर हमारी ये चौकी है । मर्डर केस की आदन्दा तफ्तीश ये ही करेंगे । अब मेरा दर्जा इनके सहायक का है ।”
राज ने इंस्पेक्टर सोलंकी का अभिवादन किया ।
“मैंने आपकी बाबत सुना है ।” - सोलंकी बोला - “आपकी बाबत भी और आपकी यहां आमद की वजह की बाबत भी ।”
“कैसे आये ?” - फिगुएरा बोला ।
“यूं ही ईस्टएण्ड तक आया था” - राज बोला - “सोचा आपसे मिलता चलूं । सोचा शायद पायल की कोई खोज-खबर लगी हो आपको ।”
“अभी तो नहीं लगी ।”
“इतनी छोटी-सी जगह पर...”
“मैं भी हमेशा इसे छोटी-सी जगह कहकर ही पुकारता था लेकिन अब पता चला कि जगह आखिरकार इतनी छोटी नहीं है । हमें दो और आदमियों की भी तलाश है जो कि हमें पता चला है कि कल रात ईस्ट एण्ड में पायल की बाबत पूछताछ करते फिर रहे थे ।”
“जनाब, उनमें से एक आदमी कल रात मिस्टर सतीश की एस्टेट के गिर्द मंडरा रहा था और उसका नाम धर्मेन्द्र अधिकारी हो सकता है ।”
दोनों पुलिस अधिकारी सकपकाये, फिर वो भौचक्के से राज का मुंह देखने लगे ।
“क्या किस्सा है ?” - फिर सोलंकी उसे घूरता हुआ बोला ।
राज ने संक्षेप में उसे सारी बात कह सुनायी ।
“ओह !” - फिगुएरा व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला - “तो आप जासूसी करने निकले थे ?”
“नहीं ।” - राज बड़े इत्मीनान से बोला - “टाइम पास करने निकला था । जासूसी तो आप लोगों का काम है जिसे आप बखूबी अंजाम दे रहे हैं । नतीजा भले ही कोई नहीं निकल रहा लेकिन अपना काम तो आप कर ही रहे हैं ।”
फिगुएरा के चेहरे पर क्रोध के भाव आये लेकिन प्रत्यक्षत: वो अपने सीनियर की वहां मौजूदगी की वजह से खामोश रहा ।
“ये आदमी” - सोलंकी बोला - “ये धर्मेन्द्र अधिकारी नाम का आदमी, कातिल हो सकता है ।”
“और आपका ये कथित कातिल अभी दस मिनट पहले तक ईस्टएण्ड के मेन बाजार में था । और अगर पायल इसी के खौफ से मिस्टर सतीश की एस्टेट से भागी है तो उसकी भलाई इसी में है कि वो आइलैंड से पहले ही कूच कर चुकी हो ।”
“ऐसा कैसे हो सकता है !” - फिगुएरा बोला - “हमने उधर पायर पर हैलीपैड पर बोल के रखा है कि अगर वो वहां पहुंचे तो उसे पुलिस के आने तक रोक के रखा जाये ।”
“आप बच्चे बहला रहे हैं । आइलैंड से कूच करने का जरिया स्टीमर और हैलीकाप्टर ही नहीं है । यहां दर्जनों की तादाद में सतीश जैसे रईस लोग बसे हुए हैं । सबके पास नहीं तो काफी सारों के पास अपनी प्राइवेट मोटर बोट होंगी । आप उन तमाम मोटर बोट्स की मूवमेंट्स को मानीटर कर सकते हैं ?”
“रात को नहीं कर सकते ।” - फिगुएरा सोलंकी से निगाहें चुराता कठिन स्वर में बोला ।
“जनाब, आप लोगों का केस में दखल होने से पहले ही पायल ऐसी किसी मोटरबोट पर सवार होकर मेन लैंड पर पहुंच चुकी हो सकती है ।”
“ही इज राइट देयर ।” - सोलंकी गम्भीरता से बोला - “अगर धर्मेन्द्र अधिकारी नाम का ये आदमी कातिल है और पायल आइलैंड पर नहीं है तो वो सेफ है ।”
“और वो दूसरा आदमी ?” - राज बोला ।
“उसकी अभी हमें कोई खोज-खबर नहीं लगी” - फिगुएरा बोला - “लेकिन तलाश जारी है ।”
“और शायद जारी रहेगी ।”
“जाहिर है ।”
“कयामत के दिन तक ।”
“मिस्टर माथुर !”
सोलंकी ने हाथ उठाकर फिगुएरा को शान्त रहने को कहा और फिर राज से सम्बोधित हुआ - “आप बरायमेहरबानी, मुझे अपनी क्लायन्ट के बारे में कुछ बताइये ।”
“क्या जानना चाहते हैं आप ?”
“आज की तारीख में वो ढाई करोड़ रुपये की रकम की वारिस है । राइट ?”
“राइट ।”
“खुदा न खास्ता, रात मिस्टर सतीश के यहां हाउसकीपर की जगह उसी का कत्ल हुआ होता तो इतना पैसा कहां जाता ? कौन होता इतनी बड़ी रकम का क्लेमेंट ?”
“कह नहीं सकता । अगर पायल ने आगे अपनी वसीयत की हुई है तो जाहिर है कि वो शख्स जो कि वसीयत में पायल का वारिस करार दिया गया है ।”
“वसीयत न हो तो ?”
“तो जो कोई भी उसका सबसे नजदीकी रिश्तेदार हो । मां-बाप में में कोई, कोई भाई, कोई बहन...”
“आपके आफिस में पायल की ऐसी किसी वसीयत का रिकार्ड हो सकता है ?”
“हो तो सकता है । लेकिन नहीं भी हो सकता । वो सात साल से गायब थी, अगर उसने उस दौरान अपनी वसीयत की होगी तो हमें उसकी खबर भला क्योंकर होगी ! अलबत्ता अगर पहले की होगी, जब के वो मिसेज श्याम नाडकर्णी थी तो...”
“आप मालूम तो कीजिये अपने आफिस से ।”
“ठीक है । मैं करूंगा ।”
“और ये भी मालूम कीजिये कि क्या आपके आफिस को उसके किसी नजदीकी रिश्तेदार की वाकफियत है ।”
“ओके ।”
“कल आप हमें अपना जवाब दीजियेगा ।”
“जरूर ।”
“अब जरा इस धर्मेन्द्र अधिकारी पर फिर लौटिये । तो वो फिल्मी आदमी है ? एजेन्ट है ?”
“हां ।”
“और वो सतीश की बुलबुलों के नाम से जाने जानी वाली तमाम लड़कियों से वाकिफ है । तब से वाकिफ है जब कि उसके फैशन शोज ने सारे हिन्दोस्तान में धूम मचाई हुई थी ?
 
“हां ।”
“और आप कहते हैं कि अभी जब वो आपको सिनेमा के करीब मिला था तो जब वो मिस डॉली टर्नर के साथ घुट-घुट के बातें कर रहा था ?”
“हां ।”
“और वो कहती है कि वो वो आदमी नहीं हो सकता था जिसके कि आप पीछे भागे थे या जो होटल से पायल की बाबत पूछताछ कर रहा था जो आपको मिस्टर सतीश की एस्टेट के बाहर इस बहाने के साथ मिला था कि वो कुक का इन्तजार कर रहा था ?”
“हां ।”
“वो लड़की झूठ बोलती हो सकती है । वो जानबूझकर आपको ये पट्टी पढाने की कोशिश कर रही हो सकती है कि धर्मेन्द्र अधिकारी वो आदमी नहीं था जिसकी कि आपको तलाश थी ।”
“क्यों ?” - राज हैरानी से बोला ।
“वो शख्स उस लड़की का पुराना, बहुत पुराना, वाकिफ था । आपकी उससे मुश्किल से चौबीस घण्टे की वाकफियत है । ऐसे में वो आपकी तरफदारी करती या उसकी ?”
“तरफदारी ! कैसी तरफदारी ?”
“डॉली ने उसे बताया हो सकता है कि आप जान चुके थे कि उसका कुक रोजमेरी से कुछ लेना-देना नहीं था, आप जान चुके थे कि उसने झूठ बोला था कि वो रोजमेरी का ब्वाय फ्रेंड था और उसी की इन्तजार में कल मिस्टर सतीश की एस्टेट के करीब मौजूद था । आगे आप ये भी जान चुके थे कि वो ईस्टएण्ड पर पायल की तलाश में उसके बारे में पूछताछ करता फिर रहा था ।”
“डॉली ने ऐसा किया होगा ?”
“न सिर्फ ये, उसने उसकी आपके हाथों में पड़ने से बेचने में भी मदद पहुंचाई हो सकती है ।”
“जब... जब वो भागा था तो डॉली ने मुझे उसके पीछे भागने से तो रोका था । उसने मुझे ये... ये तो कहा था कि वो इतनी भीड़ में मेरे हाथ नहीं आने वाला था ।”
“सो, देअर यू आर ।”
“लेकिन इसका... इसका मतलब क्या हुआ ?”
“आप बताइये ।”
“मेरी निगाह में तो कोई मतलब न हुआ । सिवाय इसके कि उसने अपने चौबीस घण्टे के वाकिफ के मुकाबले में अपने पुराने वाकिफकार के लिये ज्यादा जिम्मेदारी दिखाई । सिर्फ इतने से ये मतलब तो नहीं निकाला जा सकता था कि डॉली उसके किसी गुनाह में शरीक थी, अगर वो कातिल था तो डॉली कातिल की मददगार थी !”
“अच्छा ! नहीं निकाला जा सकता ?”
राज कुछ क्षण सोचता रहा, फिर दृढ स्वर में बोला - “नहीं । नहीं निकला जा सकता ।”
“लड़की की ऐसी हिमायत आप उस पर लट्टू होकर तो नहीं कर रहे हैं ?”
राज से जवाब देते न बना ।
“कल शाम से आप उसकी सोहबत में हैं । उसके व्यवहार में तब से आप ने ऐसी कोई बात नहीं देखी, या महसूस की, जो कि खटकने वाली हो ?”
राज और भी खामोश हो गया और सोचने लगा कि क्या वो उस पुलिस इंस्पेक्टर को बताये कि कल शाम पायल के आगमन की बाबत सुनकर डॉली के छक्के छूट गये थे, उसने तत्काल ड्रिंक्स से हाथ खींच लिया था और रात को पायल के सतीश के यहां पहुंच जाने के बाद वो चोरों की तरह अपने कमरे से बाहर निकली थी और उसमें एकाएक आमना-सामना हो जाने पर उसने टुन्न होने का बहाना किया था !
उसकी आंखों के सामने डॉली की हसीन सूरत घूम गयी थी ।
उसने फिलहाल खामोश रहने का ही फैसला किया ।
“नहीं” ¬ एकाएक वो उठता हुआ बोला ¬ “मैंने उसके व्यवहार में खटकने वाली कोई बात नोट नहीं की थी ।”
“पक्की बात ?”
“जी हां । मैं...मैं चलता हूं ।”
भारी कदमों से राज वहां से बाहर निकला ।

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Chapter 3
उस शाम की सतीश की डिनर पार्टी हर लिहाज से फीकी गयी । दो नये मेहमानों की शिरकत के बावजूद पार्टी में कोई जुनून, कोई उमंग कोई जोश-खरोश न पैदा हो सका । रह-रहकर हर किसी के जेहन में हाउसकीपर वसुन्धरा की सूरत उभरने लगती थी जिसकी लाश अभी भी एस्टेट पर मौजूद थी । नतीजतन अभी दस ही बजे थे कि मेहमान पार्टी से बेजार दिखाई देने लगे और जमहाइयां लेने लगे । फिर हर आठ दस मिनट बाद एक दो ‘एक्सक्यूज मी’ की घोषणा होने लगी और फिर ग्यारह बजे तक तो पार्टी का पक्का ही समापन हो गया । साढे ग्यारह तक एक भी बैडरूम नहीं था जिसमें कि रोशनी दिखाई देती ।
तब राज अपने बिस्तर से निकला और दबे पांव दरवाजे पर पहुंचा । दरवाजे को धीरे-से खोलकर उसने बाहर गलियारे में झांका तो उसने उसे अपेक्षानुसार अन्धेरा और सुनसान पाया । वो वापिस अपने पलंग के करीब पहुंचा । उसने पलंग पर दो तकियों को लम्बा लिटाया और उन्हें एक कम्बल से ढक दिया । फिर वो कमरे से बाहर निकला और दबे पांव लाउन्ज की विपरीत दिशा में बढा । उसे दिन में ही, जबकि वो केयरटेकर के छोकरे रोमियो से टकराया था, इस बात की खबर हो गयी थी कि सीढियां उधर भी थीं जो कि पिछवाड़े में किचन के पहलू की ड्योढी में जाकर खत्म होती थीं ।
निर्विघ्न वो नीचे पहुंच गया ।
पिछवाड़े के रास्ते से उसने आगे बीच पर कदम रखा ।
तभी प्रेत की तरह चलती हुई डॉली उसके पहलू में पहुंच गयी ।
राज ने सहमति में सिर हिलाया । दोनों आगे बढे । कुएं की जगह उनका लक्ष्य उससे काफी परे एक छोटा-सा टीला था जिस पर ऊंची झाड़ियां उगी थीं ।
निर्विघ्न वे उन झाड़ियों तक पहुंच गये और उनकी ओट लेकर रेत पर बैठ गये ।
वहां से कुआं कोई पचास गज दूर था और उनकी निगाहों और कुएं के रास्ते में कोई व्यवधान नहीं था ।
दूर इमारत अन्धकार के गर्त में डूबी हुई थी और उसका बस आकार ही बमुश्किल भांपा जा सकता था ।
“वो आयेगा ?” ¬ डॉली सस्पेंसभरे स्वर में बोली ।
“देखते हैं ।” ¬ राज बोला ।
“कब तक देखते हैं ? सुबह होने तक ?”
“नहीं । जब तक उम्मीद न खत्म हो जाये या तुम बोर न हो जाओ । जो भी काम पहले हो जाये ।”
“जो हम कर रहे हैं, उसे करने की हमें जरूरत क्या थी ?”
“बड़ी देर में सूझा ये सवाल । तो अब लौट चलें ?”
“नहीं । अब आ ही गये है तो... और... जानते हो ?”
“क्या ?”
“मुझे बड़ा अच्छा लग रहा है । आई एम फीलिंग वैरी रोमांटिक, वैरी एडवेन्चर्स ।”
“फिर क्या बात है ?”
“वो जरूर आयेगा ।”
“कैसे जाना ?”
“मेरे दरवाजे पर पहुंचा था । मुझे आवाज देकर पूछ रहा था ‘सो गयीं डॉली डार्लिंग’ । डार्लिंग जवाब देती तो कबाड़ा हो जाता ।”
“मेरे दरवाजे पर भी कोई आया था लेकिन उसने मुझे आवाज नहीं दी थी...”
“वही होगा ।”
“...बस हौले-से दरवाजा खोलकर भीतर झांक कर चला गया था ।”
“मुझे ठण्ड लग रही है ।”
“आजकल के मौसम में ऐसा ही होता है । दिन में मौसम सुहावना होता है लेकिन रात को काफी ठण्ड हो जाती है ।”
“ईडियट !”
“क... क्या ?”
“मैंने तुम्हें वैदर रिपोर्ट जारी करने के लिये कहा था ?”
“क्या ? ...ओह ! ओह !”
राज ने तनिक झिझकते हुए उसे अपनी एक बांह से घेरे लेकर अंक में समेट लिया ।
“अभी ठीक है ।” ¬ वो मादक स्वर में बोली ।
“लेकिन अब मुझे गर्मी लग रही है ।”
वो हंसी ।
“मुझे तो नींद आ रही है ।” ¬ कुछ क्षण बाद वो बोली ।
“सच पूछो तो मुझे भी ।” ¬ राज बोला ।
“सो जायें ?”
“पागल हुई हो ! यहां हम सोने के लिये आये हैं !”
“ये भी ठीक है लेकिन अगर...”
“देखो !”
डॉली हड़बड़ाकर सीधी हुई और उसने उस दिशा में देखा जिधर राज ने उंगली उठाई थी ।
इमारत की ओट से निकलकर एक साया बड़ी सावधानी से उधर बढ रहा था ।
राज ने अपनी कलाई पर बंधी रेडियम डायल वाली घड़ी पर निगाह डाली : साढे बारह बजे थे ।
“सतीश !” ¬ वो बोला ।
“नहीं ।” ¬ डॉली फुसफुसाई ¬ “कद-काठ वैसा है लेकिन वो नहीं है ।”
“वो कोई लबादा सा लपेटे मालूम होता है । दिखाई तो कुछ दे नहीं रहा ।”
“मैंने चाल पहचानी है जोकि सतीश की नहीं है । वो छोटे-छोटे कदम उठाता है और फुदकता-सा चलता है । ये तो... ये तो, कोई बुलबुल है ।”
“कैसे जाना ?”
“चाल से ही जाना । ये फैशन माडल की ट्रेंड चाल है । फैशन शोज में कैट वाक की चाल की आदत हो जाये तो आदत छूटती नहीं । ये शर्तिया कोई बुलबुल है । चाल के अलावा कद भी इस बात की चुगली कर रहा है ।”
“यानी कि सतीश ने अपना काम किसी बुलबुल को सौंप दिया ?”
“हो सकता है । सतीश की बुलबुलें उसके लिये जान दे सकती हैं, उसका कोई काम करके तो वो निहाल ही हो जायेंगी । दौड़ के करेंगी ।”
“भले ही काम गैर-कानूनी हो ?”
“भले ही काम किसी को गोली मार देने का हो ।”
“खुशकिस्मत है पट्ठा ।”
“बस, पट्ठा ही नहीं है । बाकी बातें अलबत्ता ठीक हैं । पट्ठा होता तो आठ रानियों का राजा होता ।”
“साया कुएं की तरफ ही बढ रहा है ।”
“देख रही हूं ।”
“कौन होगा ? मैं सस्पेंस से मरा जा रहा हूं ।”
“दौड़ के जाकर थाम लो, लबादा नोच फेंको, सूरत सामने आ जायेगी ।”
 
“ओह, नो ।”
“क्यों ?”
“साया हथियारबन्द हो सकता है । मुझे गोली मार सकता है ।”
“मरने से डरते हो ?”
“हां ।”
“सयाने आदमी हो । तरक्की करोगे ।”
“वो कुएं के करीब पहुंच गया ।”
“लबादे में से कुछ निकाल रहा है ।”
“क्या ?”
“पता नहीं । लेकिन आकार में कोई खासी बड़ी चीज मालूम होती है ।”
“फेंक दी । कुएं में फेंक दी ।”
साया वापिस घूमा और जिस रास्ते आया था, उसी रास्ते लौट चला ।
“कौन है ?” ¬ राज बोला ¬ “क्या फेंका कुएं में ? बाई गॉड, मेरे से सस्पेंश बर्दाश्त नहीं हो रहा ।”
“मेरे से भी ।”
“इसके निगाह से ओझल होते ही मैं जाकर कुएं में उतरूंगा और...”
“पागल हुए हो ! आधी रात को उस अन्धे कुएं में उतरोगे । वहां सांप हो सकते हैं ।”
“सांप !” ¬ राज के शरीर ने प्रत्यक्ष जोर की झुरझुरी ली ।
“और क्या पाताल लोक की परियां ?”
“यानी कि दिन में...”
“नहीं, दिन में भी नहीं । सांपों का खतरा तो तब भी बरकरार होगा, ऊपर से किसी ने देख लिया तो क्या जवाब दोगे ? क्यों उतर रहे ते तो उस कुएं में ?”
“तो ? तो ?”
“ये हमारे करने का काम नहीं ।”
“तो किसके करने का काम है ?”
“पुलिस के । हमें फौरन पुलिस को खबर करनी चाहिये ।”
“फौरन ?”
“या नहीं करनी चाहिये । हमने ये बात पुलिस को बाद में बताई, बात उन्हें इम्पोर्टेन्ट लगी तो पहला सवाल यही होगा कि हम फौरन पुलिस के पास क्यों न पहुंचे !”
“ओह !”
“मेरी राय मानो तो समझदारी खामोश रहने में ही है । हम एक बात स्थापित करना चाहते थे जो कि स्थापित हो गयी है । सतीश दिन में कुआं-कुआं इसीलिये भज रहा था क्योंकि कुएं का वो अपने लिये कोई इस्तेमाल सोचे हुए था । और उस इस्तेमाल को उसने अंजाम दे लिया है ।”
“वो...वो साया सतीश तो नहीं था ।”
“सतीश का कोई एजेन्ट था । उसकी कोई बुलबुल थी ।”
“मेरा दिल गवाही नहीं देता कि किसी नाजायज काम में सतीश ने अपनी किसी बुलबुल को अपना राजदार बनाया होगा ।”
“और क्या किसी नौकर चाकर पर एतबार करता ? खुद तो वो आया नहीं ।”
“क्या पता आया हो ! क्या पता वो साया सतीश ही हो ।”
“नामुमकिन । मैं अपनी किसी फैलो बुलबुल की चाल न पहचानूं, ये नहीं हो सकता ।”
“यानी कि तुम्हारी गारंन्टी है कि वो साया ज्योति, शशिबाला, फौजिया, आलोका और आयशा में से कोई था ?”
“हां ।”
“उसने चोरों की तरह यहां आकर सतीश का दिया कोई सामान सामने उस कुएं में फेंका ?”
“हां ।”
“ऐसा क्या सामान हो सकता हो है जिसकी अपने मैंशन से बरामदी सतीश अफोर्ड नहीं कर सकता ?”
“मालूम पड़ जायेगा । वो सामान कुएं में से कहीं गायब नहीं हो सकता । हम अभी पुलिस के पास चलते हैं । वो सामान बरामद कर लेंगे तो पता चल जायेगा कि...”
“हम नहीं ।”
“हम नहीं, क्या मतलब ?”
“पुलिस के पास तुम्हारे जाने की जरूरत नहीं ।”
“ओह, नो ।”
“ओह, यस । पुलिस वाले तुम्हें भी सस्पैक्ट मानते हैं । खामखाह उनकी निगाहों में आने का क्या फायदा ! खामखाह पंगा लेने का क्या फायदा !”
“ओह !” ¬ वो एक क्षण ठिठकी और बोली ¬ “तुम उन्हें ये भी बताओगे कि सतीश की कुएं की बाबत कहीं बातें शक पैदा करने वाली लगी थीं इसीलिये रात को तुम उसी के इन्तजार में यहां छुपे बैठे थे ?”
“हरगिज भी नहीं । मैं तो ये कहूंगा कि मैंने इत्तफाक से अपने बैडरूम की खिड़की से बाहर झांका था तो काला लबादा ओढे एक साये को कुएं की ओर बढते देखा था जिसने कि मेरी आंखों के सामने कुएं में कुछ फेंका था ।”
“हां, ये ठीक रहेगा ।”
“आओ, चलें अब ।”
दोनों एक-दूसरे के बगलगीर हुए वापिस मैंशन की ओर बढे ।
वो मैंशन के करीब पहुंचे ।
“अब तुम” ¬ राज बोला ¬ “चुपचाप अपने कमरे में जाओ और मैं...”
“टयोटा !” ¬ डॉली के मुंह से निकला ।
“सफेद टयोटा ! कौशल निगम की कार ! जिस पर कि वो यहां पहुंचा था !”
“क्या हुआ उसे ?”
“जब हम यहां से निकले थे तो वहां सामने खड़ी थी । अब नहीं है ।”
“तो क्या हुआ ? गैरेज में होगी ।”
“ओह !”
“तुम चलो अब । मैं चौकी हो के आता हूं ।”
डॉली सहमति में सिर हिलाती इमारत में दाखिल हो गयी ।
राज गैरेज में पहुंचा ।
सफेद टयोटा वहां नहीं थी ।
***
दोनों पुलिस अधिकारियों ने बड़े गौर से राज की बात सुनी ।
“आप इतनी रात गये तक जाग रहे थे ?” - फिर सब-इंस्पेक्टर फिगुएरा बोला ।
“जाहिर है ।”
“आपने ये जानने की कोशिश न की कि वो शख्स कौन था ?”
“जनाब, मैंने बोला न कि वो काला लबादा ओढे था ।”
“लेकिन लौटकर तो इमारत में ही आया होगा ।”
“वो इमारत के करीब तक आया था, उसके बाद वो किधर गया था, मुझे नहीं मालूम । मेरा मतलब है कि मेरी खिड़की की ऐसी पोजीशन नहीं थी कि मैं उसे इमारत में दाखिल होता देख पाता ।”
“आपको मालूम करने की कोशिश करनी चाहिये थी कि मेजबान या मेहमानों में से कौन उस घड़ी इमारत से गैर-हाजिर था ।”
 
राज खामोश रहा । वो उन लोगों को नहीं बता सकता था कि वो ऐसी स्थिति में नहीं था कि वो इमारत में पहले पहुंचकर लबादे वाले के वहां आगमन को चैक कर पाता ।
“जनाब” - प्रत्यक्षतः वो बोला - “जहां अभी पिछली ही रात एक खून होकर हटा हो, वहां आधी रात को ऐसे किसी शख्स से पंगा लेना अपनी मौत को दावत देना होता ।”
“ही इज राइट ।” - इंस्पेक्टर सोलंकी बोला ।
“मैने इस घटना को महत्वपूर्ण जानकर आप लोगों को फौरन इसकी खबर दी है । अब मुझे लग रहा है कि मैंने गलती की इतनी रात गये यहां दौड़े आकर ।”
“नहीं, नहीं । ऐसी कोई बात नहीं । यू डिड दि राइटैस्ट थिंग । वुई आर थैंकफुल टु यू ।”
“वैसे उस साये कि बाबत मेरा एक अन्दाजा है जो आप किसी खातिर में लाएं तो मैं जाहिर करूं ?”
“बोलिये ।”
“वो साया कोई लड़की थी । लड़की क्या, सतीश की कोई बुलबुल थी ।”
“आपको कैसे...”
“मेरे से इस बाबत और सवाल करना बेकार है । मैने पहले ही कहा है कि ये मेरा अन्दाजा है जो कि गलत भी हो सकता है ।”
“हूं ।”
“अब आप क्या करेंगे ?”
सोलंकी ने फिगुएरा की तरफ देखा ।
“अभी क्या करेंगे ?” - फिगुएरा बोला - “जो करेंगे, सुबह, करेंगे ।”
“सुबह करेंगे ?”
“हमारे पास स्टाफ की कमी है । और फिर उस अन्धे कुएं में कौन रात को उतरने को तैयार होगा ।”
“कुएं की निगरानी ही...”
“क्या जरूरत है ! कुआं कहीं भागा जा रहा है ?”
“लेकिन भीतर का वो सामान...”
“कहीं नहीं जाता । कुएं में सामान फेंकना आसान है, उसे वहां से वापिस निकालना मुश्किल तो है ही, किसी एक जने के बस का भी नहीं है ।”
“आपका जो हवलदार ग्रीन हाउस पर तैनात है, आप कम-से-कम उसे तो कह सकते हैं कि वो गाहे-बगाहे उधर भी निगाह मारता रहे ।”
“इत्तफाक से वो भी इस घड़ी वहां नहीं है ।”
“वो भी वह नहीं है ?”
“वो सफेद टयोटा के पीछे लगा हुआ है । आधी रात के करीब उसने किसी को सफेद टयोटा को वहां से निकालकर चोरों की तरह वहां से खिसकते देखा था । वो फौरन अपने स्कूटर पर उसके पीछे लग गया था लेकिन अफसोस कि रफ्तार पकड़ने में टयोटा कार का मुकाबला न कर सका ! अभी दस मिनट पहले ईस्टएण्ड से उसका फोन आया था कि टयोटा वाला उसे चकमा देकर उसके हाथ से निकल गया था । वो अभी भी इसी उमीद में इधर-उधर भटक रहा है कि शायद टयोटा उसे कहीं दोबारा दिखाई दे जाये ।”
“था कौन टयोटा में ?”
“उसका मालिका ही होगा, और कौन होगा !”
“कार में एक ही आदमी था ?”
“हां । जो कि कार ड्राइव कर रहा था । लेकिन वो जायेगा कहां ! आखिर तो लौटकर...”
तभी फोन की घण्टी बजी ।
“उसी हवलदार का फोन होगा” - फिगुएरा फोन की ओर हाथ बढाता हुआ बोला - “हल्लो, पुलिस पोस्ट ।”
दूसरी ओर से कोई इतनी ऊंची आवाज में बोला कि वो रिसीवर से निकलकर कमरे में भी सुनाई दी । वो एक बेहद आतंकित स्त्री स्वर था जो कभी चीख में तब्दील हो जाता था तो अभी डूबने लगता था । नतीजतन उसका कोई शब्द कमरे में सुनाई देता था, कोई नहीं सुनाई देता था ।
“आप जरा आराम से बोलिये” - फिगुएरा झुंझलाया-सा माउथपीस में बोला - “मुझे समझ तो आने दीजिये कि आप क्या कह रही हैं ! आप जरा...”
“...पायल जिन्दा नहीं है... पायल पाटिल मर चुकी है... मार डाला... मार डाला उसे... कत्ल कर दिया...”
“आप कौन हैं ? कहां से बोल रही हैं ?”
“मैंने उसको देखा है... मैंने उसे...”
तभी एक जोर की चीख की आवाज फोन में से निकली ।
फिर सन्नाटा ।
“हल्लो ! हल्लो !” - फिगुएरा जोर-जोर से फोन का प्लंजर ठकठकाता बोलने लगा - “हल्लो ! आर यू देअर ! हल्लो ! ...आपरेटर ! आपरेटर... आपरेटर, अभी मैं किसी से बात कर रहा था... लाइन चालू है... लेकिन... कहां से काल थी ? ...पोस्ट आफिस के पी.सी.ओ. से ? ...ओके । थैंक्यू ।”
उसने रिसीवर क्रेडल पर पटका और उछलकर खड़ा हुआ ।
“आइये, सर ।” - वो सोलंकी से बोला ।
दोनों वहां से निकले, बाहर खड़ी मोटरसाइकल पर सवार हुए और यह जा वह जा ।
कई क्षण बाद जाकर कहीं हकबकाये से राज के जिस्म में हरकत आयी और वो भी उठकर बाहर को भागा । आनन-फानन वो जीप पर सवार हुआ और उसने उसे दूर सड़क पर भागी जाती पुलिस की मोटरसाइकल के पीछे दौड़ा दिया । वो जानता था कि पोस्ट आफिस सतीश कि एस्टेट को जाती सड़क पर कहां था ।
मोटरसाइकल और जीप आगे-पीछे पोस्ट आफिस के सामने पहुंची ।
 
पब्लिक काल का बूथ इमारत के बाहरी फाटक के करीब था । फिगुएरा ने अपनी मोटरसाइकल उसके करीब ले जाकर यूं खड़ी की कि उसकी हैडलाइट का रुख सीधे बूथ की तरफ हो गया ।
राज जीप से उतरा और झिझकता-सा बूथ की तरफ बढा । सामने निगाह पड़ते ही उसके मुंह से सिसकारी निकल गयी और नेत्र फैल गये ।
बूथ के फर्श पर क स्त्री शरीर यूं लुढका पड़ा था कि उसका धड़ बूथ के भीतर था और टांगें बाहर सड़क पर फैली हुई थीं । उसका एक कन्धा बूथ की दीवार के साथ सटा हुआ था और उसकी छाती में एक खंजर धंसा दिखाई दे रहा था जिसकी हाथीदांत की मूठ ही जिस्स से बाहर दिखाई दे रही थी और जिसके इर्द-गिर्द से तब भी खून रिस रहा था ।
फिर राज ने हिम्मत करके उसके चेहरे पर निगाह डाली ।
“अरे !” - वो हौलनाक लहजे से बोला - “ये तो आयशा है !”
***
“मिस्टर राज माथुर !”
राज ने ऊंघते-ऊंघते ही ‘बोल रहा हूं’ कहा फिर घड़ी पर निगाह डाली । नौ बज चुके थे ।
“होल्ड कीजिये । आपके लिये बाम्बे से ट्रंककाल है ।”
“यस, होल्डिंग ।” - वो सम्भलकर बैठ गया ।
कुछ क्षण बाद उसके कान में जो नया स्त्री स्वर सुनाई दिया, उसे जो पहचानता था । वो ‘साहब’ की सैक्रेट्री की आवाज थी ।
“मिस्टर माथुर” - वो बोली - “लाइन पर रहिये । बड़े आनन्द साहब बात करेंगे ।”
“ओके ।”
फोन की घण्टी ने ही उसे जगाया था, वो न बजती तो वो जरूर दोपहर बाद तक सोया पड़ा रहा होता ।
“माथुर !” - एकाएक उसके कान में नकुल बिहारी आनन्द का कर्कश स्वर पड़ा ।
“यस, सर ।” - राज तत्पर स्वर में बोला - “गुड मार्निंग, सर ।”
“गुड मार्निंग । लगता है मैंने तुम्हें सोते से जगा दिया है ।”
“कोई बात नहीं, सर ।”
“यानी कि सच में ही सोते से जगा दिया है । क्या दोपहर तक सोते हो ?”
“नहीं, सर । वो क्या है कि मैं कल तकरीबन सारी रात ही जागता रहा था । सवेरा होने को था जब कि सोना नसीब हुआ था इसलिये...”
“तुम वहां रात-रात-भर गौज-मेले में शामिल रहते हो ? मैंने तुम्हे एक जरूरी काम के लिये वहां भेजा है या मौज मारने के लिये ! तफरीह करने के लिये...”
अबे, सुन तो सही मेरे बाप ।
“सर, मैं तफरीहन नहीं जागता रहा था । वो क्या है कि...”
“माथुर, मेरे पास तुम्हारी तफरीहबाजी का तहरीरी सुबूत है ?”
“जी !”
“एक्सप्रेस’ में तुम्हारी फोटो छपी है । एक अधनंगी लड़की के साथ । बल्कि थ्री क्वार्टर नंगी लड़की के साथ । एक जिप्सी में सैर करते । ये तफरीह नहीं तो और क्या है ?”
“लेकिन, सर, वो तो...”
“तस्वीर में घुटनों से आठ इंच ऊंची स्कर्ट पहने थी वो लड़की । ब्लाउज जैसी उसकी शर्ट के तीन - आई थिंक चार - बटन खुले थे । मैंने तो सुना था कि आजकल के मौसम में गोवा में सर्दी होती है ।”
“रात को हो जाती है, सर । दिन में फेयर वैदर रहता है ।”
“पेपर में हमारी फर्म के नाम का जिक्र है । तुम्हारी हरकतों की वजह से...”
“आई एम सॉरी, सर, लेकिन...”
“और फर्म का नाम गलत छपा है । आनन्द एण्ड एसोसियेट्स छपा है जबकि आनन्द आनन्द आनन्द एण्ड एसोसियेट्स छपना चाहिये था ! वन आनन्द हैज बिन ड्राप्ड । दैट्स ए ग्रेव मैटर ।”
“हम अखबार बालों को भूल सुधार के लिए लिखेगे, सर ।”
“यू आर टैलिंग मी ! हम डेफिनिटली लिखेंगे और मांग करेंगे कि...”
“सर, हम ट्रककाल पर बात कर रहे हैं ।”
“हूं । माथुर, मैं अपनी क्लायन्ट की बाबत तुम्हारी रिपोर्ट का इन्तजार कर रहा था ।”
“सर, मै ट्रंककाल लगाने ही वाला था कि आपकी तरफ से काल आ गयी ।”
“लगाने ही क्यों वाले थे ? पहले क्यों न लगाई ?”
“सर, आफिस टाइम में ही तो लगाता । नौ तो अभी बजे ही हैं । दफ्तर तो अभी खुला ही होगा ।”
“फिक्स्ड टाइम काल बुक कराके रखना था ।”
“सर, उसमें पैसा ज्यादा लगता है ।”
“पैसा ज्यादा लगता है ! हूं । तुम्हें याद भी है या नहीं कि सोमवार सुबह साढे दस बजे तुमने हमारी क्लायन्ट मिसेज श्याम नाडकर्णी उर्फ पायल पाटिल के साथ दफ्तर में पहुंचना है ।”
“सर, वो अब मुमकिन नहीं ।”
“क्यों मुमकिन नहीं ? अभी तक तुम उसे तलाश नहीं कर पाये ?”
“नहीं कर पाया, सर, लेकिन वो क्या है कि...”
“मैं कोई बहाना नहीं सुनना चाहता । तुम अपने काम को एफीशेंसी से अन्जाम नहीं दे सके । हमारी क्यायन्ट को ढूंढने के मामूली काम को तुम अन्जाम नहीं दे सके । मुझे अफसोस होता है ये सोचकर कि तुम आनन्द आनन्द आनन्द एण्ड एसोसियेट्स जैसी नामी फर्म के साथ जुड़े हुए हो । तुम्हारी मां सुनेगी तो...”
बिच्छू लड़ जाये कमीने को ! - राज दांत पीसता मन-ही-मन आज ही बुढऊ की अर्थी को कन्धा देना नसीब हो ।
“माथुर ! तुम सुन रहे हो मैं क्या कह रहा हूं ?”
“सुन रहा हूं, सर । सर, आप मेरी भी तो सुनिये । सर, हमारी क्लायन्ट, पायल मर चुकी है । उसका कत्ल हो गया है ।”
“कत्ल हो गया है ? किसका कत्ल हो गया है ?”
“हमारी क्लायन्ट का । मिसेज नाडकर्णी का । पायल पाटिल का ।”
“लेकिन अभी तो तुम कह रहे थे कि तुम उसे तलाश नहीं कर पाये थे । अगर तलाश नहीं कर पाये तो ये कैसे मालूम है कि उसका कत्ल हो गया है ?”
“सर, वो क्या है कि उसकी लाश बरामद नहीं हुई है ।”
“लाश बरामद नहीं हुई है । फिर भी निर्विवाद रूप से तुमने ये मान लिया है कि उसका कत्ल हो चुका है । कैसे वकील हो तुम ? क्या तरक्की करोगे तुम जिन्दगी में ? मुझे तो लगता है कि तुम आनन्द आनन्द आनन्द एण्ड एसोसियेट्स के ऊंचे नाम को...”
“जहन्नुम रसीद हों सारे आनन्द । कोई न बचे ।”
“क्या कहा ? जरा ऊंचा बोलो । मैं तुम्हें सुन नहीं पा रहा हूं ।”
 
“सर, मैं कह रहा था कि कल रात को एक बजे मिस्टर सतीश की एक गैस्ट मिसेज आयशा चावरिया ने एक पब्लिक टेलीफोन काल से पुलिस चौकी पर फोन करके कहा था कि उसने पायल को देखा था । उसने साफ कहा था कि पायल मर चुकी थी, उसे मार डाला गया था...”
“आई सी । फिर वो तुम्हें या पुलिस को या तुम सबको लाश दिखाने लेकर गयी तो लाश गायब पायी गयी ! यही कहना चाहते हो न !”
“नो, सर, वो क्या है कि...”
“तो फिर ये क्यों कहते हो कि लाश बरामद नहीं हुई ?... ओह ! तुम ये कहना चाहते हो कि उस लड़की ने या औरत ने जो कुछ भी वो है, उस आयशा चावरिया ने तुम लोगों को जो लाश दिखाई, वो हमारी क्लायन्ट की नहीं थी ?”
“सर, आयशा ने हमें ये कोई लाश नहीं दिखाई थी...”
“फिर भी कहते हो कि हमारी क्लायन्ट का कत्ल हो गया है ?”
अबे, खरदिमाग बुढऊ, मुझे भी तो कुछ कहने दे ।
“सर, वो लड़की, आयशा, हमें लाश के पास लिवा ले चलने का मौका नहीं पा सकी थी । ऐसी कोई नौबत आने से पहले ही उसका भी कत्ल हो गया था ।”
“क्या !”
“जिस टेलीफोन बूथ से वो पुलिस को काल कर रही थी, वो उसी में मरी पायी गयी थी । किसी ने उसकी छाती में खंजर भौंक दिया था ।”
“किसने ?”
“थ्री मिनट्स आर अप, सर ।” - बीच में आपरेटर की आवाज आयी ।
“वॉट ! आलरेडी ! युअर वाच इज इनकरैक्ट । मैंने तो अभी बात करना शुरु ही किया है...”
“सर, काल एक्सटेंड करना मांगता है ?
“यस । प्लीज एक्सटेंड ।... माथुर ! आर यू देयर ?”
“यस, सर ।”
“मैं कहां था ?”
“आप पूछ रहे थे कि किसने आयशा चावरिया की छाती में खंजर भौंक दिया था ।”
“हां । किसने किया था ऐसा ?”
“पता नहीं ।”
“मालूम किया होता ।”
“सर, मैं जरूर करता लेकिन मैं क्या करूं कल ही मेरे चिराग का जिन्न कैजुअल लीव लेकर चला गया था ।”
“क्या ! क्या कह रहे हो ? मैं कुछ समझ नहीं पा रहा हूं ।”
“सर, लगता है क्रॉस टॉक फिर शुरु ही गयी है । मैंने तो कुछ भी नहीं कहा ।”
“हूं । उस लड़की का, आयशा का, कत्ल क्यों हो गया ?”
“जाहिर है उसकी जुबान बन्द करने के लिये । जाहिर है इसलिये क्योंकि उसने पायल की लाश देखी थी ।”
“सिर्फ लाश देख ली होने की वजह से...”
“सर, हो सकता है उसने कत्ल होता भी देखा हो । मेरे ख्याल से वो पुलिस चौकी पर फोन करके कातिल की बाबत ही कुछ बताने जा रही थी जबकि कातिल ने उसकी जुबान हमेशा के लिये बन्द करने के लिये उसका कत्ल कर दिया था ।”
“माथुर, मुझे बात को ठीक से समझने दो । अब कितने कत्ल हो गये हैं ? दो या तीन ? तुम कहते हो तीन । एक उस हाउसकीपर का जो कि पायल पाटिल के धोखे में मारी गयी, दूसरा उस... उस आयशा सरवरिया का...”
“चावरिया, सर ।”
“....जो कि कातिल की बाबत पुलिस की खबर देने की कोशिश में मारी गयी । और तुम्हारा रौशन ख्याल ये है कि पायल पाटिल का भी कत्ल हो चुका है ।”
“सर, आयशा चावरिया ने फोन पर साफ ऐसा कहा था ।”
“लेकिन उसकी लाश पता नहीं कहां है ? राइट ?”
“राइट, सर । सर, वो बेचारी, वो आयशा, लाश की बाबत कुछ बता पाती इससे पहले ही तो उसका कत्ल हो गया ।”
“पुलिस क्या कर रही है ? वो क्या लाश की तलाश की बाबत कुछ नहीं कर रहीं !”
“कर रही है, सर । लेकिन यहां स्टाफ की बहुत कमी है । चौकी इंचार्ज सब-इंस्पेक्टर को छोड़कर सिर्फ चार ही आदमी हैं यहां इसलिये...”
“आई अन्डरस्टैण्ड । आई वैल अन्डरस्टैण्ड । हर किसी को काम न करने का बहाना चाहिये इस मुल्क में । पायल की लाश तलाश कर लेगी ?”
“आखिरकार तो कर ही लेगी, सर । लाश कोई छुपने वाली चीज तो नहीं ।”
“कब कर लेगी ? इसी कैलेंडर इयर में कर लेगी ?”
“सर, वो क्या है कि...”
“लाश बरामद होना जरूरी है । नहीं होगी तो जानते हो क्या होगा ?”
“जानता हूं, सर ।”
“नहीं जानते हो फिर जैसे पहले सात साल पायल को श्याम नाडकर्णी का कानूनी वारिस बनने में लगे, अब ऐसा ही सात साल लम्बा इन्तजार पायल को कानूनी तौर पर मृत घोषित करने के लिये करना होगा ।”
“सर, क्या पायल की कोई वसीयत उपलब्ध है ?”
“है तो हमें उसकी खबर नहीं ।”
“उसका वारिस कौन होगा ?”
“हमें नहीं मालूम । हमें न उसकी वसीयत के जरिये उसके किसी वारिस की खबर है और न उसकी किसी रिश्तेदारी के जरीये । पायल की फैमिली की हमें कोई वाकफियत नहीं । ऐसी कोई वाकफियत हमने कभी जरूरी भी नहीं समझी । अब खामखाह केस में पेचीदगी पैदा हो गयी । कितने अफसोस का बात है कि हमारी सूचना के अनुसार पायल वहां पहुंची भी, फिर भी तुम उससे सम्मर्क न साध सके । तुमने उसे कत्ल हो जाने दिया ।”
“सर, मैं भला कैसे...”
“माई डियर ब्याय, आई एम नाट हैपी युअर वर्क । तुम एक सिम्पल काम को अन्जाम न दे सके । तुम्हारी जगह मैं फर्म के एक मामूली क्लर्क को भेज देता तो अच्छा होता...”
“खुद चला आता तो वाह-वाह हो जाती । बाकी दो आनन्दों को भी ले आता तो आनन्द ही आनन्द होता ।”
“क्या ! माथुर मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा ।”
“मेरी में भी नहीं आ रहा, सर । क्रॉस टॉक पर हमारी बातें सुनकर जो कमीना बीच में बोल रहा है, वो साफ नहीं बोल रहा ।”
“मुझे तो कुछ और ही शक हो रहा है ?”
“और क्या, सर ?”
“थ्री मिनट्स अप सर ।” - बीच में आपरेटर की आवाज आयी ।
“यस, थैंक्यू । माथुर, जो मैं कह रहा हूं, जल्दी से सुनो और नोट करो । हमारी क्लायन्ट की लाश का पता लगाओ और रिपोर्ट करो । आइन्दा पेपर में अधनंगी या थ्री क्वार्टर नंगी लड़कियों के साथ तुम्हारी तस्वीर न छपे । फर्म की बाबत पेपर में कुछ छपे तो फर्म का नाम ठीक छपे । आनन्द आनन्द आनन्द एण्ड...”
लाइन कट गयी ।
राज लाउन्ज में पहुंचा । वहां मेजबान और उसके मेहमानों के अलावा सब-इंस्पेक्टर फिगुएरा और पणजी से आया इंस्पेक्टर सोलंकी भी मौजूद था ।
 
राज ने सबका अभिवादन किया जिसका कि किसी ने भी जवाब न दिया । उस घड़ी सब-इंस्पेक्टर फिगुएरा कौशल निगम से मुखातिब था और सबकी तवज्जो उन्हीं दोनों की तरफ थी ।
“मिस्टर निगम” - फिगुएरा कह रहा था - “कल रात यहां जो हवलदार ग्रीन हाउस की निगरानी के लिये तैनात था, उसने आपको देखा था । उसका कहना है कि आप दबे पांव चोरों की तरह यहां से बाहर निकले थे ।”
“उसको वहम हुआ है ।” - निगम बोला - “मुझे ऐसा कुछ करने की क्या जरूरत थी ?”
“आप बताइये ।”
“कोई जरूरत नहीं थी ।”
“आप खामोशी से यहां से बाहर नहीं निकले थे ?”
“इंस्पेक्टर साहब, रात के वक्त जबकि सब लोग सोने की तैयारी में हों या सो चुके हों तो खामोशी से ही बाहर निकला जाता है, न कि भांगड़ा नाचते हुए और गाना गाते हुए ।”
“मजाक न कीजिये । आपके यूं खिसकने की वजह से हमारे आदमी को यहां की ड्यूटी छोड़कर आपके पीछे लगना पड़ा ।”
“उस बात का तो मुझे सख्त अफसोस है । अगर वो शख्स यहीं टिका रहा होता तो उसने यकीनन आयशा को यहां से निकलते देखा होता । मेरी जगह वो उसके पीछे लगा होता तो इस घड़ी आयशा हमारे बीच जिन्दा मौजूद होती । कहिये कि मैं गलत कह रहा हूं ।”
फिगुएरा सकपकाया, उसने सोलंकी की तरफ देखा ।
“आपको मालूम था” - सोलंकी बोला - “कि कल रात आपके पीछे कोई था और वो कोई पुलिस का आदमी था फिर भी आपने उसके साथ लुका-छिपी का खेल खेला और उसे डाज देकर कहीं खिसक गये ।”
“क्यों था वो मेरे पीछे ? मैं क्या कोई मुजरिम हूं । किसी की भैंस चुराई है मैंने ? पुलिस वाला हो या काला चोर, मैं पसन्द नहीं करता कि कोई मेरे पीछे लगे, कोई मेरी निगाहबीनी करे ।”
“इसलिये आप रात अन्धेरी सड़कों पर सौ से ऊपर की रफ्तार से गाड़ी चला रहे थे ।”
“अगर ये सारी चखचख मेरा स्पीडिंग का चालान काटने की खातिर है तो मैं अपना गुनाह कबूल करता हूं और जुर्माना भरने को तैयार हूं ।”
“आपने अपनी विदेशी कार की ताकत का नाजायज फायदा उठाया वर्ना आप हमारे आदमी से पीछा न छुड़ा पाये होते ।”
निगम हंसा ।
“मर्दों वाली कार है ।” - वो बोला - “कोई मर्द होगा तो समझेगा न कि...”
“मिस्टर निगम !”
“विकी !” - ज्योति बोली - “भगवान के लिये संजीदा हो जाओ । ये पुलिस इंक्वायरी है, कोई मजाक नहीं । इनके सिर कातिल को गिरफ्तार करने की गम्भीर जिम्मेदारी है ।”
“तो करें गिरफ्तार कातिल को । निभायें अपनी जिम्मेदारी । मेरे पीछे क्यों पड़े हैं । अपनी नयी कार के शौक में रात को मैं जरा ड्राइव पर निकल गया तो आफत आ गयी ! इसके अलावा और क्या किया है मैंने ?”
“आप बताइये, आपने और क्या किया है ?” - सोलंकी बोला ।
“मैंने और कुछ नहीं किया ।”
“अपनी कार में आप अकेले थे ?”
“हां ।”
“वापिस भी अकेले ही लौटे थे ?”
“हां ।”
“दोनों वक्फों के बीच रास्ते में कोई मिला हो ?”
“न ।”
“हमारे पास पक्की खबर है कि कार में कोई था आपके साथ । पिछली रात पायर के पास आपकी कार में आपके साथ किसी को देखा गया था ।”
“मेरे साथ कोई नहीं था ।”
“आपकी बीवी भी नहीं जो शायद यहीं से आपके साथ गयी हो ? आपकी नई इम्पोर्टेड कार पर ड्राइव के लिये ?”
“नहीं ?”
“आपका भी” - सोलंकी ज्योति की तरफ घूमकर बोली - “ये ही जवाब है ?”
“मैं” - ज्योति बोली - “ड्राइव पर इनके साथ नहीं गयी थी ।”
“रात को ये यहां से बाहर निकले थे, इसकी खबर आपको है ?”
“हां । सवा बारह बजे के करीब जब मैं सोने की तैयारी कर रही थी तो इन्होंने कहा था कि ये जरा टहलने के लिये बीच पर जा रहे थे । ये वापिस कब लौटे, मुझे नहीं पता । आज आपके यहां पहुंचने पर ही मुझे मालूम हुआ कि ये टहलने नहीं” - उसने शिकायतभरी निगाहों से अपने पति की ओर देखा - “ड्राइव पर गये थे । अपनी नयी कार लेकर यहां से निकले थे ।”
“आई सी । मिस्टर निगम; आपकी अभी भी यही जिद है कि न किसी को आप यहां से साथ लेकर गये थे और न किसी को आपने रास्ते में लिफ्ट दी थी ?”
“ये हकीकत है ।” - निगम बोला - “आई स्वियर ।”
“कितना अरसा आप यहां से बाहर रहे थे ?”
“ठीक से अन्दाजा नहीं । शायद एक-डेढ घण्टा ।”
“पायल पाटिल से वाकिफ हैं आप ?”
“क्यों पूछ रहे हैं ?”
“जवाब दीजिये ।”
“मेरे से ही क्यों पूछ रहे है...”
“विकी !” - ज्योति ने फरियाद की - “प्लीज !”
“...और भी तो लोग हैं यहां । उनसे तो कोई सवाल नहीं कर रहे आप ? मैं रात को अपनी गाड़ी लेकर ड्राइव पर क्या निकल गया कि मैं कौशल निगम न हुआ अमरीश पुरी हो गया, शक्ति कपूर हो गया, प्रेम चोपड़ा हो गया...”
“आप हवालात में बन्द होना चाहते हैं ?” - सोलंकी कहर-भरे स्वर में बोला ।
“क... क्या !”
 
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