Mastaram Kahani कत्ल की पहेली - Page 3 - SexBaba
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Mastaram Kahani कत्ल की पहेली

“ऐसे ही कह रहे हो ।” - फौजिया बोली - “फैमिलियर होने की बुनियाद बनाने कि लिये । लेकिन मुझे कोई एतराज नहीं ।”
“मुझे राज माथुर कहते हैं ।”
“मुझे याद है । सतीश ने बताया था ।”
“तुम फौजिया हो ।”
“शहजादी शीबा कहो” - डॉली बोली - “जिसको बड़ी शिद्दत से बादशाह सोलोमन की तलाश है ।”
“डॉली डार्लिंग ।” - फौजिया मीठे स्वर में बोली ।
“यस, माई लव ।” - डॉली बोली ।
“अप युअर्स ।”
डॉली के चेहरे पर क्रोध के भाव आये ।
“पिछले साल मैं अपनी फर्म के काम से दिल्ली गया था । वहां हमारा कल्यान्ट मुझे ड्रिंक डिनर के लिये एक ऐसे बड़े होटल में ले गया था जो कि कैब्रे के लिये मशहूर था । वहां जो मेन डांसर थी, मिस फौजिया, उसकी शक्ल हूबहू आपसे मिलती थी ।”
“क्या बात करते हो ।” - डॉली जलकर बोली - “ऐसी शक्ल कहीं दूसरी हो सकती है ।”
“तो... तो...”
तभी लाउन्ज में ताली की आवाज गूंजी ।
मुकेशा ने सिर उठाया तो पाया कि सतीश बाल्कनी से नीचे उतर आया था और अब वो अपने मेहमानों से सम्बोधित था ।
“मेरी बुलबुलो ।” - वो उच्च स्वर में बोला - “जरा इधर मेरी तरफ तवज्जो दो क्योंकि मेरे पास तुम्हारे लिये एक बहुत खास खबर है ।”
“क्या खास खबर है ?” - युवतियां लगभग सम्वेत् स्वर में बोलीं ।
“मैं अभी जारी करता हूं लेकिन पहले एक और खबर । कैनेडा से मारिया ने फैक्स भेजा है और अफसोस जताया कि वो इस बार भी नहीं आ सकती ।”
“बहाना वही पुराना होगा” - ज्योति नाक चढाकर बोली - “कि वो ‘एक्सपैक्ट’ कर रही है ।”
“हां ।”
“ये उसका चौथा बच्चा होगा या पांचवा ?”
“चौथा ।”
“कैनेडा बड़ी उपजाऊ जगह मालूम होती है । चार साल में चार बच्चे ।”
“लेकिन उसने लिखा है कि अब वो आखिरी है । लिहाजा अगले साल वो मेरी पार्टी में जरूर आयेगी । माई हनी पॉट्स, उसने तुम्हें अपना प्यार भेजा है ।”
“सारा ही भेज दिया होगा” - शशिबाला बोली - “पीछे हसबैंड के लिये कुछ भी नहीं छोड़ा होगा । तभी तो उसे गारन्टी है कि अब पांचवा बच्चा नहीं होगा ।”
जोर का अट्टहास हुआ ।
“अब खास खबर तो जारी करो ।” - आलोका बोली ।
“हां । जरूर ।” - सतीश बोला - “खबर सच में ही बहुत खास है, और बहुत फड़कती हुई भी, जो कि तुम सबको भी फड़का देगी ।”
“हम तैयार बैठी हैं फड़कने के लिये ।” - फौजिया बोली - “खबर तो बोलो ।”
“स्वीटहार्टस” - तब सतीश बड़े नाटकीय अन्दाज से बोला - “अपनी पायल आ रही है ।”
लाउन्ज में सन्नाटा छा गया । खबर इतनी अप्रत्याशित थी कि एक बारगी किसी बुलबुल के मुंह से बोल नहीं फूटा था । सात साल बाद पायल आ रही थी । अब जब कि हर कोई उसकी आमद की आखिरी उम्मीद भी छोड़ चुका था तो वो आ रही थी ।
फिर जैसे एकाएक सन्नाटा हुआ था, वैसे ही एकाएक हाल में खलबली मच गयी और पायल की आमद के बारे में सतीश पर सवालों की बौछार होने लगी ।
“मेरी बुलबुलो” - सतीश उच्च स्वर में बोला - “तुम सबका कल का ब्रेकफास्ट सुपर बुलबुल पायल पाटिल के साथ होगा ।”
हर्षनाद हुआ ।
 
तभी राज ने अपने पहलू में हरकत महसूस की । उसने उधर सिर उठाकर देखा तो पाया कि डॉली कि आंखें बन्द थीं, उसके चेहरे की रंगत उड़ी हुई थी और उसका शरीर एकाएक धनुष की तरह तन गया था ।
क्या माजरा था ? - राज ने मन-ही-मन सोचा - ये लड़की ‘खास खबर’ से खौफजदा थी या पायल से इसे इतनी नफरत थी कि इसे उसकी आमद गवारा नहीं थी ?
एकाएक डॉली एक झटके से उसके पहलू से उठी और लम्बे डग भरती हुई बार की तरफ बढ चली । वहां पहुंचकर उसने विस्की की एक बोतल उठाई और उससे एक गिलास तीन चौथाई भर लिया । बाकी की खाली की जगह को उसने बर्फ से भरा और गिलास को अपनो होंठों से लगाया । फिर कुछ सोचकर बिना चुस्की मारे ही उसने गिलास को वापिस काउन्टर पर रख दिया । फिर वो लम्बे डग भरती हुई अर्धवृताकार सीढियों की ओर बढी और ऊपर कहीं जाकर निगाहों से ओझल हो गयी ।
किसी की उसकी तरफ तवज्जो नहीं थी ।
फिर लाउन्ज में धीरे-धीरे वातावरण शान्त होने लगा । बुलबुलें खास खबर के जलाल से उबरने लगीं ।
“अब ये तो बताओ” - शशिबाला बोली - “तुम्हें खास खबर की खबर कैसे है ? कैसे मालूम है कि रानी मक्खी आ रही है ?”
“उसने खुद खबर की है ।” - सतीश बोला - “आज दोपहर को उसने खुद मुझे पायर के पब्लिक टेलीफोन से फोन किया था ।”
“यानी कि” - फौजिया बोली - “वो आइलैंड पर पहुंच भी चुकी है ?”
“हां । लेकिन उसे ईस्ट एण्ड पर कोई इन्तहाई जरूरी काम था जिसकी वजह से वो फौरन यहां नहीं आ सकती थी । कहती थी वो अपने उस काम से आधी रात से पहले फारिग नहीं होने वाली थी ।”
“उसे यहां आइलैंड पर काम था ।” - आलोका हैरानी से बोली - “यानी कि उसे तुम्हारी पार्टी का दावतनाम यहां नहीं लाया था ?”
“वो भी लाया था लेकिन उसे कोई और भी निहायत जरूरी काम यहां था ।”
“दैट्स ऐग्जैक्टली लाइक अवर गुड ओल्ड पायल पाटिल ।” - ज्योति तनिक तल्खी से बोली - “हमेशा एक पंथ दो काज की फिराक में रहने की उसकी आदत लगता है आज भी नहीं बदली ।”
“उसकी कोई भी आदत नहीं बदली ।” - सतीश बोला - “वही बात करने का तुनकमिजाज अन्दाज । वही घण्टी-सी बजाती खनकती आवाज । वही मेरी बला से एण्ड हैल विद एवरीबाडी वाला रवैया । सब कुछ वही । कहती थी सात साल में उसकी सूरत-शक्ल तक में कोई तब्दीली नहीं आयी ।”
“लक्की बिच !” - आयशा ईर्ष्यापूर्ण स्वर में होंठों में बुदबुदाई ।
“पायल कहती थी” - सतीश बोला - “कि वो अपने जरूरी काम से आधी रात के बात किसी वक्त फारिग होगी लेकिन रात दो बजे वो निश्चित रूप से पायर के बुकिंग आफिस के सामने मौजूद होगी जहां से कि मेरी हाउसकीपर वसुन्धरा उसे लिवा लायेगी ।”
“फिर तो” - ज्योति बोली - “रात ढाई बजे से पहले तो वो क्या यहां पहुचंगी ?”
“तभी तो बोला कि तुम लोगों से उसकी मुलाकात कल सुबह ब्रेकफास्ट पर ही हो पायेगी ।”
“जब आ ही रही है” - आयशा लापरवाही से बोली - “तो मुलाकात की जल्दी क्या है । भले ही वो ब्रेकफास्ट की जगह लंच पर हो या डिनर पर हो ।”
“वो कहती है वो यहां रुक नहीं सकती, दोपहर तक उसने वापिस लौट जाना है ।”
“कमाल है !” - शशिबाला बोली - “इतनी बिजी कैसे हो गयी हमारी पायल, जो घण्टों में अप्वायन्टमैंट देने लगी ।”
“घन्टों में कहां” - ज्योति बोली - “मिनटों में ।”
“यानी कि वो बुलबुलों की अपनी पुरानी टोली से मिलने नहीं” - फौजिया बोली - “हमें अपने दर्शनों से कृतार्थ करने आ रही है ।”
“अवर ओन क्वीन विक्टोरिया ।” - आलोका बोली ।
“वो हमारे साथ ऐसे पेश नहीं आ सकती ।” - सतीश बोला - “जरूर सच में ही उसकी कोई प्राब्लम होगी जिसकी बाबत कल ब्रेकफास्ट पर हम उससे पूछेंगे ।”
“यानी कि” - आयाशा बोली - “रात को जागकर उसका कोई इन्तजार नहीं करेगा ?”
“वो किसलिये ?” - सतीश बोला ।
“उसकी आरती उतारने के लिये ।”
“ख्याल बुरा नहीं ।” - ज्योति बोली - “अब क्योंकि सुझाव तुम्हारा है इसलिये तुम्हीं आरती लेकर तैयार रहना रात ढाई बजे ।”
“उहूं ।” - आयशा ने उपेक्षा से मुंह बिचकाया ।
“कोई और वालंटियर बुलबुल” - सतीश उपहासपूर्ण स्वर में बोला - “जो इस सर्विस के लिये खुद को आफर करना चाहती हो ?”
किसी ने जवाब न दिया ।
“नैवर माइन्ड ।” - सतीश हंसता हुआ बोला - “मेरी नाजुक बदन बुलबुलें कितनी आरामतलब हैं, मैं क्या जानता नहीं ! बहरहाल स्वागत की तमाम औपचारिकतायें अपनी वसुन्धरा बखूबी निभा लेगी ।”
सब ने चैन की सांस ली ।
“अब मैं अपने स्पैशल गैस्ट मिस्टर राज माथुर की बाबत भी आपका सस्पेंस दूर कर देना चाहता हूं ।”
“उसमें क्या सस्पेंस है, सतीश !” - ज्योति बोली - “तुमने बताया तो था कि मिस्टर माथुर वकील हैं ।”
“हां । लेकिन ये नहीं बताया था कि वो यहां क्यों आये हैं ? माई स्वीट हार्ट्स, तुम लोगों की जानकारी के लिये मिस्टर माथुर सालीसिटर्स की उस फर्म के प्रतिनिधि हैं जो कि दिवगंत श्याम नाडकर्णी की एस्टेट के ट्रस्टी हैं ।”
“तो ?”
“तो ये कि इन पर पायल को ढाई करोड़ रुपये की ट्रस्ट की रकम सौंपने की जिम्मेदारी है ।”
फौजिया के मुंह से सीटी निकल गयी, फिर वो नेत्र फैलाकर बोली - “सात साल में ट्रस्ट की रकम बढ़कर ढाई करोड़ हो गयी है ?”
“हां ।”
“ये रकम” - आलोका हैरानी से बोली - “मिस्टर माथुर साथ लाये हैं ?”
“साथ नहीं लाये” - सतीश बोला - “लेकिन पायल को मिस्टर माथुर वो रकम इनके बम्बई में स्थित आफिस में आकर कलैक्ट करने की पेशकश करेंगे ।”
तभी जैसे जादू के जोर से एकाएक तेज हवायें चलने लगीं और बरसात होने लगी ।
 
सतीश उछलकर खड़ा हुआ । वो लपककर एक दीवार के करीब पहुंचा जहां उसने बिजली का एक स्विच आन किया । तत्काल स्विमिंग पूल के लाउन्ज की छत से ढंके आधे हिस्से के और आगे के आकाश के नीचे खुले हिस्से के बीच में पारदर्शक शीशे की एक दीवार सरक आयी । अब पानी की तेज बौछार भीतर लाउन्ज के कीमती फर्नीचर पर आकर पड़ने की जगह शीशे की दीवार से टकरा रही थी ।
बादलों ने गम्भीर गर्जन किया ।
“अच्छा है” - आयशा बोली - “कि पायल अभी ही यहां नहीं है ।”
सबने सहमति में सिर हिलाया ।
“क्यों ?” - राज उत्सुक भावा से करीब बैठी फौजिया से बोला - “क्यों अच्छा है ?”
“वो यहां होती” - फौजिया हंसती हुई बोली - “तों अभी किसी सोफे के नीचे घुस गयी होती या दौड़कर किसी क्लोजेट या बाथरूम में घुस गयी होती । बादलों की गर्ज से और बिजली की कड़क से वो बहुत खौफ खाती है ।”
“हां ।” - शशिबाला बोली - “हम सब हमेशा उसके उस खौफ की वजह से उसकी खिल्ली उड़ाया करते थे ।”
“मिस्टर माथुर” - आलोका बोली - “वैसे पायल बहुत हौसलामन्द लड़की है जो किसी भी और बात का खौफ नहीं खाती । लेकिन वो कहती है कि बादल बिजली का गर्जना-कड़कना बचपन से ही उसके होश उड़ाता चला आ रहा था ।”
“हर किसी को किसी न किसी बात की दहशत होती है ।” - राज दार्शनिकता-भरे अन्दाज से बोला - “कोई अन्धेरे से डरता है तो कोई पानी से । कोई लिफ्ट से डरता है तो कोई हवाई जहाज के सफर से । कई लोग ऊंचाई से ऐसा घबराते हैं कि स्टूल पर भी खड़े हो जायें तो उन्हें चक्कर आने लगते हैं । कइयों को खून की शक्ल देखना बर्दाश्त नहीं होता । अपना हो या किसी और का एक बूंद भी टपकती देख लें तो उनके होश फाख्ता हो जाते हैं ।”
“यू आर राइट देयर ।” - ज्योति सहमति में सिर हिलाती हुई बोली ।
“पायल नहीं खौफ खाती ऐसी बातों का ।” - आलोका बोली - “मुझे अच्छी तरह से याद है कि जब हम शो के लिये पटना गये थे तो बाथरूम में फिसल गयी थी और धड़ाम से एक गिलास पर जाकर गिरी थी, गिलास उसके भार से नीचे टूट गया था और एक बड़ा-सा कांच का टुकड़ा उसकी दायीं जांघ में घुस गया था । इतना खून बहा था कि तौबा भली लेकिन मिस्टर माथुर, यकीन जानिये, तब पायल ने उफ तक नहीं की थी । डाक्टर ने आकर जब उसके जख्म को सिया था तो तब भी वो हंस रही थी और डाक्टर को साथ हंसा रही थी, कह रही थी डाक्टर साहब, टांके ही लगाने हैं एम्ब्रायड्री नहीं करनीं । बाद में डाक्टर ने खुद उसके जब्त और दिलेरी की तारीफ की थी ।”
“आई सी ।” - राज प्रभावित स्वर में बोला ।
“और याद है ।” - शशिबाला बोली - “जब वो भोपाल में किसी की गलती से थियेटर के चूहों, छिपकलियों, काकरोचों से भरे अन्धेरे गोदाम में बन्द हो गयी थी...”
“डॉली के साथ ।” - आलोका बोली ।
“हां । बाई दि वे, डॉली कहां गयी ?”
“पड़ी होगी कहीं टुन्न हो के ।” - ज्योति उपेक्षापूर्ण स्वर में बोली ।
“बहुत पीती है ।” - आयशा हमदर्दी-भरे स्वर में बोली - “क्यों पीती है इतनी ?”
“भई रिलैक्स कर रही है ।” - आलोका बोली - “मौज मार रही है । पार्टी में ये सब न करे तो और क्या करे ! बोर होकर नींद की गोली खाये और सो जाये ?”
“वो तो मैं नहीं कहती लेकिन... पहले ऐसी नहीं थी वो ।”
“एन्जाय कर रही है ।”
“मुझे तो नहीं लगता कि एन्जाय कर रही है । वो तो महज एक काम कर रही है ड्रिंक करने का । विस्की को बस उंडेल रही है हलक में ।”
एकाएक बिजली कड़की । साथ में इस बार बादल यूं गर्जे कि सबने इमारत की दीवारें हिलती महसूस की । साथ ही एक तीखी चीख वातावरण में गूंजी । चीख ऐसी हौलनाक थी कि एक बार तो उसने जैसे सब का खून जमा दिया । बादलों की गर्ज और बिजली की कड़क धीमी पड़ जाने के बाद भी चीख की गूंज अभी वातावरण में मौजूद थी ।
फिर सबसे पहले राज सकते की हालत से उबरा और उधर भागा जिधर से चीख की आवाज आयी थी ।
एक-दूसरे की देखा-देखी बाकी सब लोग भी उसके पीछे लपके ।
चीख का सम्भावित साधन इमारत के बाहर पोर्टिको में था जहां कि उस घड़ी नीम अन्धेरा था । तभी बिजली फिर कड़की तो उसकी क्षणिक चकाचौंध में जमीन पर से उठने को उपक्रम करती हुई हाउसकीपर वसुन्धरा दिखाई दी ।
“वसुन्धरा !” - सतीश आन्दोलित स्वर में बोला - “ठीक तो ही न ?”
उसने जवाब न दिया । लड़खड़ाती-सी वो पूर्ववत उठने की उपक्रम करती रही ।
 
राज और सतीश ने आगे बढकर उसे दायें-बायें से थामा और उसे उसके पैरों पर खड़ा किया । उसके होश उड़े हुए थे । उसकी सांस धौंकनी की तरह चल रही थी और दांत बज रहे थे । रह-रहकर उसके सारे शरीर में सिहरन दौड़ जाती थी ।
“क्या हुआ ?” - सतीश व्यग्र भाव से बोला - “क्या हुआ, वसुन्धरा ?”
“प... पत नहीं ।” - वो बड़ी कठिनाई से बोल पायी - “किसी ने मुझे जोर से पीछे से धक्का दिया था ।”
“क्या !”
“कोई मेरे पीछे था । झाड़ियों में से निकला था । उसकी आहट सुनकर मैं घूमी ही थी कि उसने जोर से मुझे धक्का दिया था और मैं धड़ाम से जमीन पर जा गिरी थी ।”
“था कौन वो ?”
“पता नहीं ।”
“कोई आदमी था या औरत ?”
“पता नहीं । मैं देख न सकी ।”
“गया किधर ?”
“उधर गार्डन की तरफ । मुझे उधर से ही उसके भागते कदमों की आवाज आयी थी ।”
“कमाल है ! कौन होगा ?”
“शायद कोई चोर ।” - राज बोला - “जो इत्तफाक से पोर्टिको से आगे न पहुंच पाया ।”
“लेकिन... लेकिन... वसुन्धरा, तुम पोर्टिको में क्या कर रही थीं ?”
“स्टेशन वैगन की खिड़कियां खुली रह गयी थीं । बारिश आती देखकर मैं उन्हें बंद करने आयी थी ।”
“ओह !”
“मिस्टर सतीश” - राज बोला - “हमें इन्हें भीतर ले के चलना चाहिये ।”
“हां । हां । जरूर । अभी । और मैं फ्लड लाइट्स भी चालू करवाता हूं ।”
फिर वो वसुन्धरा को सम्भाले उसे भीतर को ले चला ।
तत्काल उसकी बुलबुलें उसके पीछे हो लीं ।
राज विचारपूर्ण मुद्रा बनाये पीछे अकेला खड़ा रहा ।
फिर कुछ सोचकर वो उद्यान की तरफ बढा ।
उसने उद्यान में फूलों से लदी झाड़ियों से गुजरती राहदारी में अभी कदम ही रखा था कि उसे अपने पीछे कदमों की आहट सुनायी दी । उसने सशंक भाव से घूमकर पीछे देखा तो उसे डॉली दिखाई दी ।
“तुम कहां थीं ?” - वो बोला ।
“हल्लो !” - वो मुस्कराती हुई बोली - “कबूतर !”
“बारिश हो रही है । भीतर जाओ ।”
“मुझे बारिश में भीगना पसन्द है ।”
“लेकिन...”
“वैसे भी अब बारिश रुकने के आसार लग रहे हैं ।”
“फिर तो जरूर ही भीतर जाओ । भीगने में जो कसर रह गयी हो, उसे शावर बाथ के नीचे खड़ी होकर पूरी कर लेना ।”
“यहां मेरी मौजूदगी से तुम्हें एतराज है ?”
“एतराज तो नहीं है लेकिन...”
“ये गार्डन भूल-भुलैया जैसा है । भटक गये तो कहीं के कहीं निकल जाओगे इस खराब मौसम में । तुम्हारे साथ इस घड़ी कोई” - उसने बड़ी शान से अंगूठे से अपनी छाती को टहोका - “गाइड होना चाहिये ।”
“गाइड तुम ?”
“हां, मैं ।”
“तुम्हें भूल-भुलैया के रास्ते कैसे आते हैं ?”
“सतीश ने बताये ।”
“जरूर कभी तुम उसकी फेवरेट बुलबुल रही होगी ।”
“यही समझ लो ।”
तभी इमारत की बाहरी दीवारों पर लगी तीखी फ्लड लाइट्स जल उठीं और सारा वातावरण प्रकाश में नहा गया ।
“तुम हो किस फिराक में ?” - डॉली बोली ।
“जिस आदमी ने - या औरत ने - हाउसकीपर पर हमला किया था, हो सकता है वो अभी भी गार्डन में ही कहीं छुपा बैठा हो ।”
“तो ?”
“तो क्या ?”
“कहीं तुम ये तो नहीं समझ रहे हो कि तुम उसे अकेले ही काबू में कर लोगे ?”
“मैं इस काबिल नहीं दिखाई देता तुम्हें ?”
“काबिल तो तुम मुझे बहुत दिखाई देते हो । इस काबिल भी और... उस काबिल भी ।”
“उस काबिल भी ! क्या मतलब ?”
“जिसके पीछे तुम पड़े हो, वो हथियारबन्द हो सकता है, ये तो सूझा नहीं होगा ?”
“सूझा तो सच में ही नहीं था । फिर तो तुम्हें जरूर ही वापिस इमारत की सुरक्षा में चले जाना चाहिये
 
“मुझे नहीं, तुम्हें । मेरे ख्याल से बुलबुलों को उसके हथियार से” - वो होंठ दबाकर हंसी” - वो होंठ दबाकर हंसी - “कोई खतरा नहीं । उन्हें वो सिर्फ धक्का देता है । बिना हथियार के । तुम्हारे पर वो - ईडियट - अपना हथियार आजमा सकता है।”
“लेकिन...”
“तुम लेकिन लेकिन बहुत करते हो । गाड़ी छूट जाती है लेकिन-लेकिन में ।” - डॉली ने उसका हाथ थमा लिया - “आओ चलो ।”
वो उसे फिर से ऊंची झाड़ियों के बीच से गुजरते रास्तों पर ले चली । उन रास्तों के हर मोड़ पर जमीन के लैवल पर लाइट लगी हुई थी और उन पर तीखी फ्लड लाइट भी खूब प्रतिबिम्बित हो रही थी जिसकी वजह से दिन की रोशनी जैसी सहूलियत से ही वो आगे बढते रहे ।
“गार्डन के भीतर” - डॉली ने बताया - “तुम देख ही रहे हो कि इसका भूल-भूलैया नाम सार्थक करने के लिये कई रास्ते हैं लेकिन इसमें दाखिल होने का और बाहर निकलने का वो एक ही रास्ता है जिस पर से कि अभी हम यहां आये हैं और जिसके आगे हाउसकीपर गिरी पड़ी थी ।”
“आई सी ।”
“तुम्हारे ख्याल से होगा कौन वो जिसने कि हाउसकीपर को धक्का दिया था ?”
“मेरे ख्याल से तो कोई पीपिंग टॉम ही होगा ।” - राज सोचता हआ बोला ।
“कौन-सा टॉम !”
“पीपिंग टॉम । ताक-झांक करने वाला । दर्शन प्यासा । नयनसुख रसिया । सतीश के शाही मिजाज से, उसकी शाही पार्टियों से और उसके शाही मेहमानों से यहां क्या कोई बेखबर होगा । सतीश की सारी बुलबुलें आकर उतरती तो पायर पर ही हैं । इतनी परियों को यहां पहुंचती देखकर - खासतौर से शशिबाला को देखकर जो कि फिल्म स्टार है - कोई आपा खो बैठा होगा और रात के अन्धेरे में ताक-झांक करने यहां चला आया होगा...”
“ओह माई गॉड ! मुझे खबर होगी तो मैं जरा मेकअप वगैरह ही सुधार लेती और कोई ज्यादा बढिया पोशाक पहन लेती । वैसे ऐसे भी तो बुरी तो नहीं लग रही मैं ?”
“हाउसकीपर उसे देखकर शोर मचा सकती थी” - राज अपनी ही धुन में कहता रहा - “इसलिये उसे देकर वो भाग खड़ा हुआ होगा ।”
“मिस्टर” - डॉली ने उसकी पसलियों में कोहनी चुभोई - “मैंने तुमसे एक सवाल पूछा था ।”
“सवाल ? क्या ?”
“कैसी लग रही हूं मैं ?”
राज ने उसके भीगे चेहरे पर निगाह डाली और बोला - “बढिया ।”
“बस ! सिर्फ बढिया ।”
“बहुत बढिया ।”
“अभी तो कुछ भी नहीं” - वो उत्साह से बोली - “कभी मेरी पूरी सज-धज के साथ मुझे देखना, गश खा जाओगे ।”
“अभी भी खस्ता ही है मेरी हालत” - राज एक सरसरी निगाह उसके भीगे जिस्म पर डालता हुआ बोला - “इसीलिये तुम्हारी तरफ निगाह उठाने से परहेज कर रहा हूं ।”
“सच कह रहे हो ?”
“हां ।”
“थैंक्यू ।” - वो एक क्षण ठिठकी और फिर बोली - “तो तुम्हारी फर्म का नाम आनन्द आनन्द आनन्द एण्ड एसोसियेट्स है और वो बम्बई में मेरिन ड्राइव पर स्थित है ?”
“हां ।”
“इतने सारे आनन्द ! बहुत आनन्द होता होगा वहां ?”
वो हंसा ।
“मैं भी उधर फोर्ट में हो रहती हूं । बोरीबन्दर के करीब ।”
“आई सी ।”
“कमाल है ये भी ।”
“क्या ?”
“यही कि हम एक ही शहर के रहने वाले हैं, शहर के एक ही इलाके में पाये जाते हैं, फिर भी कभी मिले नहीं । “
“क्या बड़ी बात है ! लोग एक इमारत में रहते नहीं मिल पाते ।”
“ठीक कहा तुमने ।” - वो आह भरकर बोली ।
तभी सामने चारदीवारी की ऊंची दीवार आ गयी । दोनों उसके सामने ठिठके, फिर राज ने डॉली की तरफ देखा ।
“इसका मतलब ये न समझना” - डॉली कदरन संजीदगी से बोली - “कि हाउसकीपर का हमलावार यहां नहीं हो सकता । इतना बड़ा गार्डन है, वो इस घड़ी इसके किसी और भाग में छूपा बैठा हो सकता है । हम उस भाग में पहुंचेंगे तो वो यहां सरक आयेगा क्योंकि इस भाग को हम खंगाल चुके हैं इसलिये हम यहां तो वापिस क्या लौटेंगे ।”
“हूं ।”
“कहने का मतलब ये है वकील सहब कि सारे गार्डन को एक ही वक्त में कवर करने को दर्जन-भर आदमी चाहियें जब कि हम तो बस दो ही हैं ।”
“पहले क्यों नहीं बोला ?”
“मैं सदके जाऊं । पहले बोलती तो सुनते ! अभी तो अकेले रवाना हो रहे थे !”
“हूं ।”
“मेरे ख्याल से तो हमारी पीठ पीछे वो कब का यहां से खिसक गया होगा ।”
 
“तुम इस गार्डन को भूल-भुलैया बता रही थीं । क्या पता अभी वो भटक ही रहा हो भूल-भुलैया में !”
“रास्तों का ज्ञाता होगा तो नहीं भटक रहा होगा ।”
“लेकिन तुम तो इस ज्ञान को बड़ा दुर्लभ और गोपनीय बता रही थीं ।”
“सतीश बड़ा मेहरबान मेजबान है । उसकी बुलबुलों के लिये उसकी कोई चीज दुर्लभ नहीं ।”
“यानी कि बाकी बुलबुलें भी इस भूल-भुलैया के रास्तों से वाकिफ होंगी !”
“हो सकती हैं ।”
“लेकिन हाउसकीपर की हमलावार कोई बुलबुल कैसे हो सकती है ? सब तो लाउन्ज में थीं उस घटना के वक्त ।” - राज एकाएक एक क्षण ठिठका और फिर बोला - “सिवाय तुम्हारे ।”
“इज्जत अफजाई का शुक्रिया । लेकिन अभी मेरे हवास इतने बेकाबू नहीं हुए कि मैं मेजबान के नौकरों-चाकरों पर झपटने लगूं ।”
“ओह, सारी । तुमने हाउसकीपर की दिल दहला देने वाली चीख सुनी थी ?”
“हां, सुनी थी । कैसे न सुनती ! मेरे ख्याल से तो सारे आइलैंड पर सुनी गई होगी वो चीख ।”
“तब तुम कहां थीं ?”
“अपने कमरे में । मैं चीख की आवाज सुनकर ही वहां से निकली थी ।”
“आई सी । आओ चलें ।”
वो वापिस लौट पड़े ।
“एक सवाल पूछूं ?” - रास्ते में एकाएक राज बोला ।
“मुझे कोई एतराज नहीं ।” - डॉली मधुर स्वर में बोली - “मैं तैयार हूं ।”
“तैयार हो !” - राज सकपकाया - “किस बात के लिये ?”
“उसी बात के लिये जिसकी बाबत तुम सवाल पूछने जा रहे थे ।”
“ओह, कम आन । बी सीरियस ।”
“ओके, माई लार्ड एण्ड मास्टर ।”
“पायल के आगमन की खबर सुनकर तुम्हारे चेहरे का रंग क्यों उड़ गया था ?”
“ऐसी तो कोई बात नहीं थी ।”
“बिल्कुल थी । मैंने खुद नोट किया था । तुम्हारे तो छक्के छूट गये थे । कोई यमराज के आगमन की खबर सुरकर इतना नहीं दहलता होगा जितना कि तुम...”
“बोला न ऐसी कोई बात नहीं थी ।”
“लेकिन मैंने खुद...”
“कोई और बात करो । प्लीज ।”
“और क्या बात करूं ?”
“कुछ भी ।”
“ओके । तुम करती क्या हो ? मेरा मतलब है मिस्टर सतीश की पुनर्मिलन पार्टियां अटेण्ड करने के अलावा ?”
“फरेब करती हूं । धोखा देती हूं दुनिया को और अपने-आप को कि मैं पॉप सांग्स गा सकती हूं ।”
“ओह ! पॉप सिंगर हो तुम ?”
“हां । वैसे पापी सिंगर भी बोलो तो चलेगा ।”
“कहां गाती हो ?”
“जहां चांस लग जाये । किसी कबूतरों के दड़वे में । किसी चूहों के बिल में । किसी सूअरों के बाड़े में । कहीं भी ।”
“बहुत रहस्यमयी बातें करती हो ।”
जवाब में वो कुछ न बोली ।
“और वो फौजिया ! वो कैब्रे डांसर है ?”
“मिस्टर, जिसके साथ हो, उसकी बातें करो ।”
“तुम बातें कहां करती हो ? तुम तो पहेलियां बुझाती हो । कुछ पूछो तो जवाब नहीं देती हो ।”
“मैंने तुम्हारी हर बात का जवाब दिया है ।”
“कहां दिया है ? मसलन, तुमने जवाब दिया कि पायल के आगमन की खबर सुनकर तुम्हारा फ्यूज क्यों उड़ गया था ?”
“वो देखो मालती की झाड़ियों में जुगनू चमक रहे हैं ।”
“बढिया । जुगनू ही देखने तो आया हूं मैं यहां इतनी दूर से । जीवन सफल हो गया ।”
वो हंसी ।
“पॉप सिंगर्स का तो बड़ा नाम होता है । उनके कैसेट्स बनते हैं, कम्पैक्ट डिस्क बनती हैं, रिकार्ड बनते हैं । मैंने तुम्हारा नाम कभी क्यों नहीं सुना ?”
“हाय ! दो-चार जुगनू पकड़ के ला दो न ? बालों में लगाऊंगी । जगमग-जगमग हो जायेगी ।”
“मैं समझ गया ।”
“क्या ? क्या समझ गये ?”
“वही जो तुम जुबानी नहीं कहना चाहतीं ।”
“गुड ।”
“तुम्हारी सब फैलो बुलबुलों ने जिन्दगी में तरक्की की, तुमने नहीं की ऐसी क्यों ?”
“क्योंकि” - वो धीरे-से बोली - “मेरे से कम्प्रोमाइज नहीं हुआ । मैं किसी को अपना गॉडफादर न बना सकी । मैं किसी मालदार बूढे को अपने पर आशिक न करा रुकी । वगैरह-वगैरह । अब आगे बात न हो इस बाबत । प्लीज ।”
“बेहतर ।”
वो इमारत में वापिस लौटे तो सतीश उन्हें लाउन्ज में स्विमिंग पूल के करीब खड़ा मिला ।
“कोई मिला ?” - वो उत्सुक भाव से बोला ।
राज ने इनकार में सिर हिलाया ।
 
“ओह ! नैवर माइन्ड । मैंने पुलिस को फोन कर दिया है । वो लोग बस-पहुंचते ही होंगे । फिर जो करना होगा वो खुद कर लेंगे ।”
“आपकी हाउसकीपर अब कैसी है ?”
“अभी सदमे की हालत में है । मैंने उसे उसके कमरे में भेज दिया है । आराम कर रही है । ठीक हो जायेगी ।”
“गुड !”
“दोनों भीगकर आये हो । जाकर पहले कपड़े बदल लो । तब तक मैं तुम्हारे लिये ड्रिंक बनाता हूं । ओके ।”
दोनों के सिर सहमति में हिले ।
***

डिनर तक सतीश के दौलतखाने का माहौल न केवल पहले जैसा सहज हो गया बल्कि मौसम भी पूरी तरह से शान्त हो गया । तब तक हाउसकीपर वसुन्धरा अपने शॉक से पूरी तरह से उबर चुकी थी - खुद अपनी देख-रेख में उसने मेहमानों को डिनर सर्व कराया था - जो कि अच्छी बात थी, आखिर उस पर पायर से पायल पाटिल को लिवा लाने की जिम्मेदारी थी ।
तब तक पुलिस वहां आकर जा चुकी थी और उन्होनें भी अपनी तफ्तीश से यही नतीजा निकाला था कि आततायी कोई नयनसुख अभिलाषी ही था ।
“नयनसुख अभिलाषी” - फौजिया ने कहा - “और गामा पहलवान ?”
“वो कैसे ?” - सतीश ने पूछा ।
“अदद तो देखो अपनी हाउसकीपर का ! क्विंटल के ड्रम को धक्का देकर लुढकाना क्या किसी दुबले-पतले मरघिल्ले आदमी के बस का काम था !”
बुलबुलें हंसी ।
“मजाक मत उड़ाओ उसका ।” - सतीश बोला - “बेचारी को थायरायड की गम्भीर शिकायत है । उसी की वजह से मोटापा है । वो कोई” - सतीश ने एक गुप्त निगाह आयशा पर डाली - “खा-खा के नहीं मुटियाई हुई ।”
आयशा तत्काल परे देखने लगी ।
शुक्र था कि फौजिया के उस अप्रिय आक्षेप के वक्त हाउसकीपर करीब नहीं थी ।
डिनर के बाद जब काफी और ब्रान्डी का दौर चलना शुरु हुआ तो राज चुपचाप इमारत से बाहर खिसक आया ! इतना लाजवाब डिनर उसने पहले कभी किया नहीं था इसलिये जोश में उसका खाना-पीना कुछ ज्यादा ही हो गया था जिसकी वजह से अब वो असुविधा का अनुभव कर रहा था और महसूस कर रहा था कि थोड़ा चलने-फिरने से, थोड़ी ठण्डी समुद्री हवा खाने से उसकी हालत उसके काबू में आ सकती थी ।
अर्धवृताकार ड्राइव वे पर चलता हुआ वो बाहर सड़क पर पहुंचा तो ड्राइव वे के दहाने के करीब झाड़ियों के पीछे दो तिहाई छुपी खड़ी एक कार उसे दिखाई दी । वो हाथ से ही कई रंगों में रंगी हुई एक बहुत ही पुरानी, एकदम खटारा फियेट थी । उसके बोनट पर चढा बैठा एक नामालूम उम्र का पिद्दी-सा आदमी सिग्रेट के कश लगा रहा था । वो कार की हालत जैसी नीली जीन और उसके कई रंगों जैसी टी-शर्ट पहने था ।
राज को देखकर वो सकपकाया और फिर बोनट पर से फिसलकर जमीन पर खड़ा हो गया ।
“हल्लो ।” - राज बोला ।
वो जबरन मुस्कराया । उसने बेचैनी से पहलू बदला ।
“इन्तजार है किसी का ?” - राज ने पूछा ।
उसने सहमति में सिर हिलाया ।
“किसका ?”
“कुक का । भीतर अभी डिनर निपटा या नहीं ?”
“अभी नहीं ।”
कुक का नाम रोजमेरी था, खाना पकाने में उसकी दक्षता के सुबूत के तौर पर ही राज उस घड़ी सड़क पर विचर रहा था ।
“बीवी है तुम्हारी ?” - राज ने पूछा ।
“अभी नहीं ।” - वो जबरन मुस्कराता हुआ बोला ।
“बनने वाली है ?”
“हां ।”
“खुशकिस्मत हो । आजकल ऐसी बीवी कहां मिलती है जिसे बढिया खाना पकाना आता हो ! रोज लेने आते हो ?”
“हां ।”
“यहां झाड़ियों में छुप के क्यों खड़े हो ?”
“मैं नहीं, मेरी कार छुप के क्यों खड़ी है ।”
“क्या मतलब ?”
“उसकी हिदायत है कि मेरी ये खटारा कार सतीश साहब की एस्टेट के आसपास न दिखाई दे ।”
“ओह !”
 
“कहती है इसमें बैठकर वो कार्नीवाल की झांकी लगती है । बस वापिसी में ही बैठती है क्योंकि वापिसी उसकी हमेशा काफी रात गये होती है । आती बार या पैदल आती है या अर्जेंसी हो तो यहां से कोई उसे कार पर लिवाने आ जाता है ।”
“भई” - राज हंसा - “वैसे कार है तो तुम्हारी झांकी ही ।”
“चलती बढिया है । वफादार बहुत है । कभी रास्ते में धोखा नहीं देती ।”
“क्या कहने ! ऐसी क्वालीफिकेशन वाली तो आजकल बीवी नहीं मिलती ।”
वो हंसा ।
राज ने क्षण-भर को हंसी में उसका साथ दिया और फिर वो आगे समुद्र तट की तरफ बढ चला । उधर सतीश का प्राइवेट बीच था जहां कि किसी गैर-शख्स की आमद पर पाबन्दी थी ।
वो खुश था कि पायल पाटिल उसी रोज वहां नहीं आ टपकी थी और यूं उसे सतीश की शाही मेहमाननवाजी का लुत्फ उठाने का मौका मिल गया था ।
भले ही अभी भी न आये कम्बख्त !
आधे घण्टे की वाक के बाद जब वो वापिस लौट तो उसने पाया कि सतीश और उसकी बुलबुलें तब भी अभी जश्न के मूड में थीं और ब्रान्डी चुसक रही थीं । राज ने उन्हें बारी-बारी घोषणा करते पाया कि वो सब की सब पायल को रिसीव करने पायर पर जायेंगी लेकिन एक बजे के करीब जबकि जश्न का माहौल ठण्डा पड़ने लगा तो उनका वो जोश भी ठण्डा पड़ने लगा ।
वसुन्धरा समझदार थी जो कि उसने ‘बुलबुलों’ की घोषणाओं को गम्भीरता से नहीं लिया थी और वो अपने निर्धारित प्रोग्राम का ही अनुसरण करने के लिये कटिबद्ध रही थी ।
एक बजे उन सबने उस शाम का आखिरी जाम टकराया तो तब तक सतीश की हालत ऐसी हो चुकी थी कि उस जाम को होंठों से लगाते ही वो कीमती गिलास उसके हाथ से फिसलकर टूट गया था, वो अचेत होकर एक सोफे पर लुढककर तत्काल खर्राटे भरने लगा था और फिर उसकी बुलबुलें उसे उठाकर उसके बैडरूम में पहुंचने गयी थीं ।
“लक्की डाग !” - अपने लिए निर्धारित कमरे की ओर बढता राज ईर्ष्यापूर्ण भाव से बुदबुदाया ।
फिर सारे दिन का थका-हरा वो बिस्तर के हवाले हो गया ।
***.........................................
 
एकाएक राज की नींद खुली । उसे ऐसा लगा जैसे उसके कमरे के प्रवेशद्वार पर दस्त्क पड़ी हो । वो उठकर बैठ गया और आंखों से नींद झटकता कान लगाकर सुनने लगा ।
दस्तक दोबारा न पड़ी लेकिन बाहर गलियारें में निश्चय ही कोई था । उसनें अपनी रेडियम डायल वाली कलाई घड़ी पर निगाह डाली तो पाया तीन बजे थे । वो उठकर दरवाजे पर पहुंचा, दरवाजा खोलकर उसने बाहर झांका । गलियारे में घुप्प अंधेरा था लेकिन वहां निश्चय ही कोई था । कोई गलियारे में चल रहा था और उसकी पदचाप रात के सन्नाटे में उसे सुनायी दे रही थी ।
“कौन है ?” - वो सावधान स्वर में बोला ।
“मिस्टर माथुर ?” - उसे हाउसकीपर की फटे बांस जैसी खरखराती आवाज सुनाई दी ।
“यस ।”
“आई एम सारी, मिस्टर माथुर, कि मैंने आपको डिस्टर्ब किया । अन्धेरे में अनजाने में आपके दरवाजे से मेरा कन्धा भिड़ गया था ।”
क्विंटल की औरत का कन्धा था - राज ने मन-ही-मन सोचा - कोई मजाक था ।
“इट्स आल राइट ।” - प्रत्यक्षत: वो बोला - “नो प्रॉब्लम । पायल को ले आईं आप ?”
“जी हां ।” - वो तनिक उत्साह से बोली - “मैं लेट हो गयी थी वहां पहुंचने में । पूरे तीस मिनट लेट पहुंची थी लेकिन पायल मेरे से भी लेट वहां पहुंची थी । अच्छा हुआ मेरी लाज रह गयी ।”
“आप लेट क्योंकर हो गयी ?”
“रास्ते में पंचर हो गया था । मेरा ईश्वर जानता है कि मैंने इतनी बड़ी गाड़ी का पहिया अकेले बदला । पूरा आधा घण्टा लगा इस काम में मुझे ।”
“ओह ! कैसे पेश आयी पायल आपसे ?”
“बहुत अच्छे तरीके से । लेट आने के लिये सौ बार सारी बोला, जबकि मैं खुद लेट थी । मैं बोली भी । वो बोली फिर भी उससे तो मैं पहले ही पहुंची थी । बहुत अच्छा लगा मेरे को ।”
“बढिया छाप छोड़ी मालूम होती है पायल ने आप पर !”
“बहुत ही अच्छी लड़की है । इतनी खूबसूरत ! इतनी मिलनसार ! इतनी खुशमिजाज ! वो जानती थी कि मैं महज हाउसकीपर हूं और मालिक के हुक्म की गुलाम हूं फिर भी उसने दस बार मेरा शुक्रिया अदा किया कि मैंने इतनी रात गये उसे पायर पर लेने आने की जहमत गवारा की ।”
“अब कहां है वो ?”
“अपने कमरे में । अभी छोड़कर आयी हूं । बहुत थकी हुई थी बेचारी । सो गयी होगी ।”
“सो गयी होगी ! आपने उसे बताया नहीं कि खास उससे मिलने की खातिर ही मैं यहां आया बैठा था ?”
“नहीं । मैं क्यों बताती !”
“लेकिन आपको मालूम तो था मैं...”
“ओह मिस्टर माथुर, ये कोई टाइम है किसी से कोई बात करने का ! जो बात करनी हो, सुबह कर लीजियेगा । कुछ ही घण्टों की तो बात है । नहीं ?”
“हां ।”
“मैं शर्मिंदा हूं कि मैंने आपकी नींद में बाधा डाली ।”
“नैवर माइन्ड । गलियारे में अन्धेरा क्यों है ?”
“रात को यहां की बत्ती जलाने पर, मिस्टर ब्रांडो कहते हैं कि, मेहमानों को असुविधा होती है । आप कहें तो जला देती हूं ।”
“नहीं, जरूरत नहीं । थैंक्यू । एण्ड गुड नाइट ।”
“गुड नाइट, सर ।”
राज ने दरवाजा बन्द किया और वापिस पलंग पर पहुंच गया लेकिन अब नींद उसकी आंखों से उड़ चुकी थी । उसने करीब पड़ी शीशे की सुराही में से एक गिलास पानी पिया और सोचने लगा । पायल पाटिल उर्फ मिसेज श्याम नाडकर्णी को ये गुड न्यूज देने के बाद कि वो अब ढाई करोड़ रुपये की विपुल धनराशि की मालकिन थी, उसका काम खत्म था । कितना अच्छा होता कि कल खड़े पैर उस काम में कोई घुंडी पैदा हो जाती और उसे बड़े आनन्द साहब का ये हुक्म हो जाता कि वो अभी वहीं ठहरे ।
छ: - अब सात - स्वर्ग की अप्सराओं के साथ ।
उसका दिमाग बड़े रंगीन सपनों में डूबने-उतराने लगा ।
गलियारे में एकाएक फिर आहट हुई ।
उसके कान खड़े हो गए ।
इस बार आहट किसी के उसके दरवाजे से टकराने से नहीं हुई थी । इस बार आहट ऐसी थी जैसे कोई दीवार टटोलता दबे पांव गलियारे में चल रहा था ।
कौन था ? कोई चोर ? नहीं, अभी तो वसुन्धरा वहां से गुजरकर गयी थी, इतनी जल्दी कोई चोर कहां से आ टपकेगा ?
तो फिर कौन ?
देखना चाहिये ।
 
वो पलंग पर से उठा और दरवाजे पर पहुंचा । उसने दरवाजे की आधा खोलकर बाहर झांका । बाहर पूर्ववत अन्धेरा था । वो कान लगाकर आहट लेने लगा ।
कोई आहट न मिली लेकिन फिर भी उसे बड़ी शिद्दत के साथ ये अहसास हुआ कि गलियारे में कोई था जो उससे परे जा रहा था ।
“कौन है ?” - हिम्मत करके वो दबे स्वर में बोला ।
“लता ।” - वैसी ही दबी आवाज आयी ।
“लता कौन ?”
“मंगेशकर ।”
“कौन ?”
“मदर टैरेसा ।”
“कौन हो, भाई ।”
“मदाम बावेरी ।”
इस बार कदमों की आहट उसे स्पष्ट सुनायी दी । किेसी के पांव गलियारे से निकलकर पहले बाल्कनी पर और फिर नीचे को उतरती अर्धवृत्ताकार सीढियों पर पड़े ।
दरवाजे की ओट छोड़कर उसने गलियारे में कदम रखा और आगे बढा ।
नीचे लाउन्ज में से उसे रोशनी का आभास मिला ।
वो नीचे पहुंचा ।
बार पर डॉली मौजूद थी । उसके एक हाथ में विस्की की बोतल थी और दूसरे में एक गिलास था ।
वो करीब पहूंचा ।
“वैलकम !” - डॉली तनिक झूमती हुई बोली ।
“जल्दी जाग गयीं !” - वो बोला ।
“आओ, मेरे साथ एक जाम पियो और मर जाओ ।”
“ऊपर अन्धेरे में चोरों की तरह क्यों चल रही थीं ? कहीं ठोकर खा जातीं तो जरूर गरदन तुड़ा बैठी होती ।”
वो हंसी ।
“वापिस अपने कमरे में जाओ और सो जाओ । ये कोई टाइम है ड्रिंक का ?”
“क्या खराबी है इस टाइम में । माई डियर एडवोकेट साहब, शराब पीने के दो ही बेहतरीन टाइम होती हैं । एक अभी और एक ठहर के । नाओ एण्ड लेटर । ये ‘अभी’ है । दिस इज नाओ ।”
“तुम अपने आप से ज्यादती कर रही हो । तुम...”
“ओह, शटअप ।”
“डॉली, तुम...”
“मिस्टर लॉमैन, या तो मेरे साथ शराब में शिरकत करो या दफा हो जाओ ।”
“ठीक है ।” - वो असहाय भाव से कन्धे उचकाता हआ बोला - “मैं दफा ही होता हूं ।”
“और सुनो ।”
“बोलो ।”
“ब्रांडो के जागने से पहले यहां से मेरी लाश उठवाने का इन्तजाम कर देना ।”
“जान देने के आसान तरीके भी हैं ।”
“अच्छा ! मसलन बताओ कोई ।”
“सामने स्वीमिंग पूल है । डूब मरो । पूल का पानी कम पड़ता हो तो करीब ही समुद्र भी है ।”
“मैं सोचूंगी इस बाबत । नाओ गैट अलांग ।”
भारी कदमों से वो वापिस लौटा । सीढियां तय करके वो बाल्कनी में पहुंचा और अन्धेरा गलियारा पर करके अपने कमरे में वापिस लौटा । वो अपने पलंग के करीब पहुंचा तो उसने पाया कि वो खाली नहीं था । कोई वहां पहले ही पसरा पड़ा था ।
हड़बड़ाकर उसने बत्ती जलाई ।
पलंग पर उसे फौजिया खान पसरी पड़ी दिखाई दी । उसके सुनहरे बाल तकिये पर उसके चांद जैसे चेहरे के गिर्द बिखरे हुए थे । उसकी आंखें बन्द थीं और गुलाब की पंखड़ियों जैसे होंठ यूं आधे खुले हुए थे कि कामातुर लग रहे थे । उसका उन्नत वक्ष उसकी सांसों के साथ बड़े तौबाशिकन अन्दाज से उठ-गिर रहा था ।
राज ने थूक निगली और बड़े नर्वस भाव से हौले से खांसा ।
फौजिया की पलकें फड़फड़ाती हुई खुलीं ।
“नहीं मांगता ।” - राज अप्रसन्न भाव से बोला ।
“क... क्या !” - फौजिया के मुंह से निकला ।
“ये कोई वक्त है !”
“किस बात का ?”
“उसी बात का जिसके लिये तुम मेरे बिस्तर पर मौजूद हो । “
“तुम्हारे बिस्तर पर ?”
 
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