desiaks
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“क्या आप लेडीज के सामने बड़े समार्ट बनकर दिखा रहे हैं । लाकअप में बन्द होंगे तो आपकी स्मार्टनैस देखने वाला वहां कोई नहीं होगा । अब जल्दी फैसला कीजिये कि आप एक कत्ल की पुलिस इंक्वायरी से यहीं दो-चार होंगे या मैं आपको चौकी तक घसीटता हुआ ले के चलूं ?”
“विकी !” - ज्योति चेतावनीभरे स्वर में बोली - “फार गॉड सेक, बिहेव ।”
“ओके !” - निगम बोला - “ओके । आई एम विद यू, बॉस ।”
“दैट्स बैटर ।” - सोलंकी बोला - “नाओ पे अटेंशन टु वाट आई से ।”
“यस, सर ।”
“यहां रीयूनियन पार्टी में शामिल लोगों का कहना है कि इनमें से किसी ने भी पिछले सात साल से पायल पाटिल को नहीं देखा था - सिवाय आपकी बीवी के जो कि कल बहुत सुबह-सवेरे तब पायल से मिली थी जबकि वो चोरों की तरह चुपचाप यहां से खिसक रही थी । मेरा आपसे सवाल ये है कि क्या आप पिछले सात सालों में कभी पायल से मिले थे ?”
नहीं ।”
“वाकिफ तो आप थे न उससे ?”
“हां, वाकिफ तो था । जिन दिनों सतीश की बुलबुलों ने फारेन गारमैंट्स के फैशन शोज के जरिये सारे हिन्दोस्तान में धूम मचाई हुई थी, उन दिनों ज्योति ने ही मुझे उससे इन्ट्रोड्यूस कराया था ।”
“वो इन्ट्रोडक्शन दोस्ती में या गहरी दोस्ती में तब्दील हो पायी ?”
“नहीं ।”
“क्यों ?”
“कोतवाल साहब” - उसने अपनी बीवी की ओर संकेत किया - “की वजह से ।”
“यानी कि ये वजह न होतीं तो आप तो काफी आगे बढ गये होते ।”
“ये भी कोई कहने की बात है ! तब मैं पायल के साथ ही क्यों, बाकी बुलबुलों के साथ भी काफी आगे बढ गया होता । ज्योति ने आखिर मुझे सबसे इन्ट्रोड्यूस कराया था ।”
ज्योति के माथे पर बल पड़े, फिर वो जबरन मुस्कराती हुई बोली - “मजाक कर रहे हैं ।”
“सात साल पहले की उस पार्टी में, जिसमें कि दुर्घटनावश नाडकर्णी अपनी जान खो बैठा था, अपनी बीवी के साथ आप भी शामिल थे ?”
“हां । लेकिन तब अभी ज्योति मेरी बीवी नहीं बनी थी । हमारी शादी उस पार्टी के बाद सर्दियों में हुई थी ।”
“उस पार्टी में आप पायल से मिले थे ?”
“हां । जाहिर है ।”
“और वो पायल से आपकी आखिरी मुलाकात थी ? तब से आज तक आपने पायल की सूरत नहीं देखी ? राइट ?”
“राइट ।” - निगम बोला, फिर एकाएक वो एक अबोध बालक की तरह मुस्कराया । एक उस मुस्कराहट से ही उसकी सारी शख्सियत में ऐसी इंकलाबी तब्दीली आयी कि राज भी उससे प्रभावित हुए बिना न रह सका । शायद अपनी ऐसी ही खूबियों से पिछले सात साल से वो अपनी बीवी को मन्त्रमुग्ध किये था - “अब आप अगर इजाजत दें तो मैं बाहर जाकर टयोटा-टयोटा खेल आऊं ?”
जवाब में सोलंकी ने उसकी तरफ से मुंह फेर लिया और रोशन बालपाण्डे की तरफ आकर्षित हुआ ।
“मिस्टर बालपाण्डे, आप बताइये, आप वाकिफ थे पायल से ?”
“हां ।” - वो सावधान स्वर में बोला ।
“बाकी लड़कियों से भी ?”
“हां । बाकी लड़कियों से भी ।”
“कहां मिले थे ?”
“खण्डाला में । वहां हमारी फैमिली लॉज है जो उन दिनों खाली पड़ी थी । लड़कियां पूना में शो के लिये इकट्ठी हुई थीं । मैंने सबको ओवरनाइट पार्टी के लिये खण्डाला अपनी लॉज पर इनवाइट किया था ।”
“आपने इनवाइट किया था ! मालदार आदमी हैं आप ?”
“हमारा कपड़े का सौ साल पुराना बिजनेस है ।” - वो गर्व से बोला - “पूना, अहमदाबाद और सूरत में मिलें हैं ।”
“तभी तो आप अपनी कम-उम्री में भी हिल स्टेशन पर ग्रैंड पार्टियां देना अफोर्ड कर सकते थे ।”
“मिस्टर सतीश जितनी ग्रैंड नहीं ।” - उसने तारीफी निगाहों से खामोश बैठे सतीश की तरफ देखा - “ही इज पास्टमास्टर ऑन सच थिंग्स । इनसे बढिया पार्टी तो कोई तेल के कुओं का मालिक अरबी सुलतान ही दे सकता है ।”
“ऐसी कोई बात नहीं ।” - सतीश बड़े शिष्ट भाव से मुस्कराता हुआ बोला ।
“बात तो ऐसी ही है लेकिन ये आपका बड़प्पन है कि आप कह रहे हैं कि ऐसी कोई बात नहीं ।”
“क्या पार्टी थी वो भी !” - शशिबाला स्वप्निल स्वर में बोली ।
“तब हम” - ज्योति बोली - “सब ताजी-ताजी बालिग हुई थीं और ग्लैमर की चकाचौंध से हमारा वास्ता बस पड़ा ही था, इसलिये भी वो पार्टी यादगार थी ।”
“नौजवानी भी” - फौजिया आह-सी भरकर बोली - “क्या दिलफरेब चीज होती है ! एक बार चली जाये तो लौटकर नहीं आती ।”
“काश !” - डॉली बोली - “हम सब फिर षोडषी बालायें बन सकें ।”
“सत्तरह तक भी चलेगा ।” - आलोका बोली ।
“लैट्स कम टु दि प्वायन्ट ।” - सोलंकी वार्तालाप का सूत्र फिर अपने हाथ में लेता हुआ बोला - “मिस्टर बालपाण्डे, क्योंकि सतीश की बुलबुलें कहलाने वाली लड़कियों में से ही एक से आपने शादी की थी इसलिये बाद में भी आपका बाकी लड़कियों से सम्पर्क बना रहा होगा ?”
“हां ।”
“पायल से भी ?”
“हां । वो क्या है कि तब तक अभी मेरा आलोका में कोई स्पेशल इन्टरेस्ट नहीं बना था ।”
“क्योंकि” - आलोका व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोली - “मैंने तुम्हें जरा देर से देखा था, पायल ने तुम्हें पहले देख लिया था ।”
“वो बात नहीं । बहरहाल ये हकीकत है कि पूना वाले शो के बाद जब शो बम्बई मूव कर गया था तो वहां मेरी पायल से चन्द मुलाकातें हुई थीं लेकिन उसने मेरे में कोई खास दिलचस्पी नहीं ली थी । फिर तभी बड़ा खलीफा श्याम नाडकर्णी बीच में आ टपका था और फिर मेरे जैसे कॉलेज के नातजुर्बेकार छोकरे के लिये उसकी जिन्दगी में कोई जगह नहीं रही थी ।”
“आप मिस्टर सतीश की उस पार्टी में शामिल थे, जिसमें कि नाडकर्णी की मौत हुई थी ?”
“नहीं ।”
“तो फिर आलोका आपको दोबारा कब मिली थी ?”
“शुरुआती मुलाकात के तीन साल बाद । बम्बई में । वहीं मैंने इससे शादी की थी और फिर पूना जाकर अपने बिजनेस में सैटल हो गया था ।”
“जैसे इत्तफाक से तीन साल बाद आपकी आलोका से दोबारा मुलाकात हो गयी, वैसी कभी पायल से न हुई ?”
“हुई । एक बार हुई ।”
“कब ? कहां ?”
“कोई तीन साल पहले । आलोका से मेरी शादी के कुछ ही महीने बाद । सूरत में मिली थी वो मुझे जहां कि मैं अपने बिजनेस के सिलसिले में गया था ।”
उस रहस्योद्घाटन से तमाम श्रोताओं में उत्तेजना की लहर दौड़ गई ।
“तो” - सतीश मन्त्रमुग्ध-सा बोला - “आखिरकार किसी को पायल मिली थी ।”
“हां ।” - बालपाण्डे ने दोहराया - “मुझे मिली थी । बोला न ।”
“जरूर ये बात तुमने अपनी बीवी से छुपाकर रखी होगी ?”
“नहीं तो । मैंने तो पूना से लौटते ही इसे बताया था कि सूरत में मुझे पायल मिली थी ।”
“माई हनी चाइल्ड ।” - सतीश सख्त शिकायत-भरे लहजे में आलोका से सम्बोधित हुआ - “तुमने इतनी अहम बात हमसे छुपाकर रखी । हम हर रीयूनियन पार्टी में पायल के बारे में सोचते रहे, बातें करते रहे, फिक्रमन्द होते रहे, इस फानी दुनिया में उसकी सलामती की दुआयें मांगते रहे फिर भी तुमने कभी ये नहीं बताया कि तुम्हारा हसबैंड पायल से मिला था ?”
“ऐसा कैसे हो सकता है ?” - आलोका बोली - “मैंने जरूर बताया होगा ।”
“नहीं बताया, हनी । बताया होता तो ये क्या कोई भूलने वाली बात थी ।” - फिर वो बालपाण्डे की तरफ घूमा और बड़े व्यग्र भाव से बोला - “तो वो तुम्हें सूरत में मिली थी ?”
“हां । वहां वैशाली सिनेमा की लॉबी में इत्तफाक से वो मुझे दिखाई दे गयी थी ।”
“वो वहां क्या कर रही थी ?”
“जाहिर है कि” - डॉली बोली - “सिनेमा देखने जा रही थी ।”
“डॉली !” - ज्योति बोली - “चुप रह । रोशन को अपनी बात कहने दे ।”
“मैं बस जरा-सी देर के लिये उससे मिला था ।” - रोशन बालपाण्डे बोला - “कोई खास बात तो हो नहीं पायी थी । बस, पूरा वक्फा वो तुम लोगों की बाबत ही सवाल करती रही थी ।”
“तुमने उससे कोई सवाल नहीं किया था” - सतीश बोला - “कि इतने सालों से वो कहां गायब थी ?”
“वो जल्दी में थी और...”
“फिल्म देखने की जल्दी में थी ?” - डॉली बोली ।
“और क्या ?” - ज्योति उत्सुक भाव से बोली ।
“सच बात ये है कि वो मेरे से मिलकर कोई खास राजी नहीं हुई थी । मुझे तो ये तक महसूस हुआ था कि मुझे देखकर उसने लॉबी की भीड़ में गुम हो जाने की कोशिश की थी । वो तो मैं ही जोश में लपककर उसके सामने जा खड़ा हुआ था । मेरे किसी भी सवाल का जवाब उसने अगले रोज लंच पर मिलने का वादा करके टाल दिया था । हमने ‘ओयसिस’ में लंच अप्वायन्टमेंट फिक्स की थी लेकिन अगले रोज वो वहां पहुंची ही नहीं थी ।”
“धोखा दे गयी ?”
“यही समझ लो । तब मुझे लगा था कि असल में उसकी मेरे से दोबारा मिलने की कोई मर्जी थी ही नहीं । उसने महज मेरे से पीछा छुड़ाने के लिये उस अप्वायन्टमैंट के लिये हामी भर दी थी ।”
“विकी !” - ज्योति चेतावनीभरे स्वर में बोली - “फार गॉड सेक, बिहेव ।”
“ओके !” - निगम बोला - “ओके । आई एम विद यू, बॉस ।”
“दैट्स बैटर ।” - सोलंकी बोला - “नाओ पे अटेंशन टु वाट आई से ।”
“यस, सर ।”
“यहां रीयूनियन पार्टी में शामिल लोगों का कहना है कि इनमें से किसी ने भी पिछले सात साल से पायल पाटिल को नहीं देखा था - सिवाय आपकी बीवी के जो कि कल बहुत सुबह-सवेरे तब पायल से मिली थी जबकि वो चोरों की तरह चुपचाप यहां से खिसक रही थी । मेरा आपसे सवाल ये है कि क्या आप पिछले सात सालों में कभी पायल से मिले थे ?”
नहीं ।”
“वाकिफ तो आप थे न उससे ?”
“हां, वाकिफ तो था । जिन दिनों सतीश की बुलबुलों ने फारेन गारमैंट्स के फैशन शोज के जरिये सारे हिन्दोस्तान में धूम मचाई हुई थी, उन दिनों ज्योति ने ही मुझे उससे इन्ट्रोड्यूस कराया था ।”
“वो इन्ट्रोडक्शन दोस्ती में या गहरी दोस्ती में तब्दील हो पायी ?”
“नहीं ।”
“क्यों ?”
“कोतवाल साहब” - उसने अपनी बीवी की ओर संकेत किया - “की वजह से ।”
“यानी कि ये वजह न होतीं तो आप तो काफी आगे बढ गये होते ।”
“ये भी कोई कहने की बात है ! तब मैं पायल के साथ ही क्यों, बाकी बुलबुलों के साथ भी काफी आगे बढ गया होता । ज्योति ने आखिर मुझे सबसे इन्ट्रोड्यूस कराया था ।”
ज्योति के माथे पर बल पड़े, फिर वो जबरन मुस्कराती हुई बोली - “मजाक कर रहे हैं ।”
“सात साल पहले की उस पार्टी में, जिसमें कि दुर्घटनावश नाडकर्णी अपनी जान खो बैठा था, अपनी बीवी के साथ आप भी शामिल थे ?”
“हां । लेकिन तब अभी ज्योति मेरी बीवी नहीं बनी थी । हमारी शादी उस पार्टी के बाद सर्दियों में हुई थी ।”
“उस पार्टी में आप पायल से मिले थे ?”
“हां । जाहिर है ।”
“और वो पायल से आपकी आखिरी मुलाकात थी ? तब से आज तक आपने पायल की सूरत नहीं देखी ? राइट ?”
“राइट ।” - निगम बोला, फिर एकाएक वो एक अबोध बालक की तरह मुस्कराया । एक उस मुस्कराहट से ही उसकी सारी शख्सियत में ऐसी इंकलाबी तब्दीली आयी कि राज भी उससे प्रभावित हुए बिना न रह सका । शायद अपनी ऐसी ही खूबियों से पिछले सात साल से वो अपनी बीवी को मन्त्रमुग्ध किये था - “अब आप अगर इजाजत दें तो मैं बाहर जाकर टयोटा-टयोटा खेल आऊं ?”
जवाब में सोलंकी ने उसकी तरफ से मुंह फेर लिया और रोशन बालपाण्डे की तरफ आकर्षित हुआ ।
“मिस्टर बालपाण्डे, आप बताइये, आप वाकिफ थे पायल से ?”
“हां ।” - वो सावधान स्वर में बोला ।
“बाकी लड़कियों से भी ?”
“हां । बाकी लड़कियों से भी ।”
“कहां मिले थे ?”
“खण्डाला में । वहां हमारी फैमिली लॉज है जो उन दिनों खाली पड़ी थी । लड़कियां पूना में शो के लिये इकट्ठी हुई थीं । मैंने सबको ओवरनाइट पार्टी के लिये खण्डाला अपनी लॉज पर इनवाइट किया था ।”
“आपने इनवाइट किया था ! मालदार आदमी हैं आप ?”
“हमारा कपड़े का सौ साल पुराना बिजनेस है ।” - वो गर्व से बोला - “पूना, अहमदाबाद और सूरत में मिलें हैं ।”
“तभी तो आप अपनी कम-उम्री में भी हिल स्टेशन पर ग्रैंड पार्टियां देना अफोर्ड कर सकते थे ।”
“मिस्टर सतीश जितनी ग्रैंड नहीं ।” - उसने तारीफी निगाहों से खामोश बैठे सतीश की तरफ देखा - “ही इज पास्टमास्टर ऑन सच थिंग्स । इनसे बढिया पार्टी तो कोई तेल के कुओं का मालिक अरबी सुलतान ही दे सकता है ।”
“ऐसी कोई बात नहीं ।” - सतीश बड़े शिष्ट भाव से मुस्कराता हुआ बोला ।
“बात तो ऐसी ही है लेकिन ये आपका बड़प्पन है कि आप कह रहे हैं कि ऐसी कोई बात नहीं ।”
“क्या पार्टी थी वो भी !” - शशिबाला स्वप्निल स्वर में बोली ।
“तब हम” - ज्योति बोली - “सब ताजी-ताजी बालिग हुई थीं और ग्लैमर की चकाचौंध से हमारा वास्ता बस पड़ा ही था, इसलिये भी वो पार्टी यादगार थी ।”
“नौजवानी भी” - फौजिया आह-सी भरकर बोली - “क्या दिलफरेब चीज होती है ! एक बार चली जाये तो लौटकर नहीं आती ।”
“काश !” - डॉली बोली - “हम सब फिर षोडषी बालायें बन सकें ।”
“सत्तरह तक भी चलेगा ।” - आलोका बोली ।
“लैट्स कम टु दि प्वायन्ट ।” - सोलंकी वार्तालाप का सूत्र फिर अपने हाथ में लेता हुआ बोला - “मिस्टर बालपाण्डे, क्योंकि सतीश की बुलबुलें कहलाने वाली लड़कियों में से ही एक से आपने शादी की थी इसलिये बाद में भी आपका बाकी लड़कियों से सम्पर्क बना रहा होगा ?”
“हां ।”
“पायल से भी ?”
“हां । वो क्या है कि तब तक अभी मेरा आलोका में कोई स्पेशल इन्टरेस्ट नहीं बना था ।”
“क्योंकि” - आलोका व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोली - “मैंने तुम्हें जरा देर से देखा था, पायल ने तुम्हें पहले देख लिया था ।”
“वो बात नहीं । बहरहाल ये हकीकत है कि पूना वाले शो के बाद जब शो बम्बई मूव कर गया था तो वहां मेरी पायल से चन्द मुलाकातें हुई थीं लेकिन उसने मेरे में कोई खास दिलचस्पी नहीं ली थी । फिर तभी बड़ा खलीफा श्याम नाडकर्णी बीच में आ टपका था और फिर मेरे जैसे कॉलेज के नातजुर्बेकार छोकरे के लिये उसकी जिन्दगी में कोई जगह नहीं रही थी ।”
“आप मिस्टर सतीश की उस पार्टी में शामिल थे, जिसमें कि नाडकर्णी की मौत हुई थी ?”
“नहीं ।”
“तो फिर आलोका आपको दोबारा कब मिली थी ?”
“शुरुआती मुलाकात के तीन साल बाद । बम्बई में । वहीं मैंने इससे शादी की थी और फिर पूना जाकर अपने बिजनेस में सैटल हो गया था ।”
“जैसे इत्तफाक से तीन साल बाद आपकी आलोका से दोबारा मुलाकात हो गयी, वैसी कभी पायल से न हुई ?”
“हुई । एक बार हुई ।”
“कब ? कहां ?”
“कोई तीन साल पहले । आलोका से मेरी शादी के कुछ ही महीने बाद । सूरत में मिली थी वो मुझे जहां कि मैं अपने बिजनेस के सिलसिले में गया था ।”
उस रहस्योद्घाटन से तमाम श्रोताओं में उत्तेजना की लहर दौड़ गई ।
“तो” - सतीश मन्त्रमुग्ध-सा बोला - “आखिरकार किसी को पायल मिली थी ।”
“हां ।” - बालपाण्डे ने दोहराया - “मुझे मिली थी । बोला न ।”
“जरूर ये बात तुमने अपनी बीवी से छुपाकर रखी होगी ?”
“नहीं तो । मैंने तो पूना से लौटते ही इसे बताया था कि सूरत में मुझे पायल मिली थी ।”
“माई हनी चाइल्ड ।” - सतीश सख्त शिकायत-भरे लहजे में आलोका से सम्बोधित हुआ - “तुमने इतनी अहम बात हमसे छुपाकर रखी । हम हर रीयूनियन पार्टी में पायल के बारे में सोचते रहे, बातें करते रहे, फिक्रमन्द होते रहे, इस फानी दुनिया में उसकी सलामती की दुआयें मांगते रहे फिर भी तुमने कभी ये नहीं बताया कि तुम्हारा हसबैंड पायल से मिला था ?”
“ऐसा कैसे हो सकता है ?” - आलोका बोली - “मैंने जरूर बताया होगा ।”
“नहीं बताया, हनी । बताया होता तो ये क्या कोई भूलने वाली बात थी ।” - फिर वो बालपाण्डे की तरफ घूमा और बड़े व्यग्र भाव से बोला - “तो वो तुम्हें सूरत में मिली थी ?”
“हां । वहां वैशाली सिनेमा की लॉबी में इत्तफाक से वो मुझे दिखाई दे गयी थी ।”
“वो वहां क्या कर रही थी ?”
“जाहिर है कि” - डॉली बोली - “सिनेमा देखने जा रही थी ।”
“डॉली !” - ज्योति बोली - “चुप रह । रोशन को अपनी बात कहने दे ।”
“मैं बस जरा-सी देर के लिये उससे मिला था ।” - रोशन बालपाण्डे बोला - “कोई खास बात तो हो नहीं पायी थी । बस, पूरा वक्फा वो तुम लोगों की बाबत ही सवाल करती रही थी ।”
“तुमने उससे कोई सवाल नहीं किया था” - सतीश बोला - “कि इतने सालों से वो कहां गायब थी ?”
“वो जल्दी में थी और...”
“फिल्म देखने की जल्दी में थी ?” - डॉली बोली ।
“और क्या ?” - ज्योति उत्सुक भाव से बोली ।
“सच बात ये है कि वो मेरे से मिलकर कोई खास राजी नहीं हुई थी । मुझे तो ये तक महसूस हुआ था कि मुझे देखकर उसने लॉबी की भीड़ में गुम हो जाने की कोशिश की थी । वो तो मैं ही जोश में लपककर उसके सामने जा खड़ा हुआ था । मेरे किसी भी सवाल का जवाब उसने अगले रोज लंच पर मिलने का वादा करके टाल दिया था । हमने ‘ओयसिस’ में लंच अप्वायन्टमेंट फिक्स की थी लेकिन अगले रोज वो वहां पहुंची ही नहीं थी ।”
“धोखा दे गयी ?”
“यही समझ लो । तब मुझे लगा था कि असल में उसकी मेरे से दोबारा मिलने की कोई मर्जी थी ही नहीं । उसने महज मेरे से पीछा छुड़ाने के लिये उस अप्वायन्टमैंट के लिये हामी भर दी थी ।”