Mastaram Kahani कत्ल की पहेली - Page 9 - SexBaba
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Mastaram Kahani कत्ल की पहेली

फिर इस बात से आश्वस्त होकर कि उसकी कार को कोई क्षति नहीं पहुंची थी वो सामने देखने लगा ।
राज ने घूमकर पीछे देखा । उस घड़ी पायर पर कई लोग मौजूद थे । उनमें से एक लड़की एकाएक जोर-जोर से उनकी तरफ हाथ हिलाने लगी । राज ने अपने दायें-बायें घूमकर देखा तो पाया कि जवाब में बजड़े पर से कोई हाथ नहीं हिला रहा था । लिहाजा वो हाथ हिलाने लगा ।
“कोई दोस्त है तुम्हारा पायर पर ।” - डॉली फुसफुसाती-सी बोली ।
“नहीं ।” - राज ने भी वैसे ही स्वर में जवाब दिया ।
“तो हाथ क्यों हिला रहे हो ?”
“यूं ही । मुझे लगा कि कोई मेरी तरफ हाथ हिला रहा था, सो मैंने भी हिला दिया ।”
“खामखाह !”
“हां ।”
“अजीब आदमी हो ।”
“हां । तभी तो तुम्हारे साथ हूं ।”
“पछता रहे हो ?”
“जरा भी नहीं । मेरा तो कयामत के दिन तक तुम्हारा साथ छोड़ने का इरादा नहीं ।”
“सच कह रहे हो ?”
“नहीं ।”
“मेरा भी यहां ख्याल था ।”
“हां ।”
“पहला ही जवाब ठीक था ।”
“पहला जवाब जुबान से निकला था । दूसरा दिल से ।”
“ऐसी लच्छेदार बातें हर किसी से करते हो ?”
“नहीं । हर किसी से नहीं । सिर्फ एक्स फैशन माडल्स और करेंट पॉप सिंगर्स से ।”
वो हंसी ।
“धीरे । तुम्हारी खनकती हंसी की आवाज उसने सुनी तो वो पशोपेश में पड़ जायेगा कि आखिर आवाज आयी तो कहां से आयी !”
उसने होंठ भींच लिये ।
“वैसे उसने झांका तक नहीं था तुम्हारी तरफ ।”
“झांक सकता तो था ।”
बजड़ा चलने लगा ।
“हम कहां जा रहे हैं ?” - राज बोला ।
“उन दो में से एक आइलैंड पर जा रहे हैं जिनका मैंने अभी जिक्र किया था लेकिन कौन-से पर, ये पहुंचने पर ही पता चलेगा ।”
“क्यों ?”
“अरे, मैं सिर उठाकर बाहर झांकूंगी तो कुछ जांनूंगी न !”
“ओह !”
तभी एक व्यक्ति उनके करीब पहुंचा ।
“तीस रुपया ।” - वो बोला ।
“तीस रुपया !” - राज ने मूर्खों की तरह दोहराया ।
“फेयर । किराया ।”
“ओह ! किराया ।”
“बीस रुपया कार का । दस रुपया दो पैसेंजर्स का ।”
राज ने उसे तीस रुपये सौंपे ।
“थैंक्यू ।” - वो बोला और उसने उन्हें तीन टिकटें थमा दीं ।
“हम कहां जा रहे हैं ?” - राज ने पूछा ।
“आपको नहीं मालूम ?”
“नहीं । हम टूरिस्ट हैं ।”
“टिकट पर लिखा है ।”
वो आगे बढ गया ।
राज ने एक टिकट पर निगाह डालीं । उस पर लिखा था फिगारो - ओल्ड रॉक - फिगारो ।
“ओल्ड रॉक ।” - वो बोला - “दो में से एक आइलैंड का नाम ओल्ड रॉक है ?”
“हां ।” - डॉली बोली ।
“हम वहीं जा रहे हैं ।”
“वो बहुत करीब है । पांच मिनट में पहुंच जायेंगे ।”
“तुम्हें याद आया उस आदमी का नाम ?”
“नहीं ।”
“या कुछ और ?”
“नहीं ।”
“बस इतना हो याद आया कि ये आदमी कभी पायल पर मरता था ?”
“हां ।”
तभी उस आदमी की बीवी ने एक केला छीलकर उसकी तरफ बढाया । आदमी ने बहुत गुस्से से आंखें तरेरकर उसकी तरफ देखा । तत्काल बीवी केला खुद खाने लगी ।
“केलों से नफरत मालूम होती है उसे ।” - राज बोला - “इससे कुछ याद आया हो ?”
“तुम मेरा मजाक उड़ाने की कोशिश कर रहे हो ?”
“नो । नैवर । कई बार आदमी की शिनाख्त उसकी किसी छोटी-मोटी आदत से या खास पसन्द-नापसन्द से भी हो जाती है, इसीलिये जिक्र किया ।”
वो खामोश रही ।
बजड़ा ओल्ड रॉक आइलैंड के पायर पर यूं जाकर लगा कि राज को पहले अपनी गाड़ी उतारनी पड़ी ।
“हम तो आगे हो गये ।” - राज बोला - “उसका पीछा कैसे करेंगे ?”
“कोई टाइम पास वाला काम करो ।” - डॉली बोली - “नीचे उतरकर टायरों की हवा वगैरह चैक करने लगो या बोनट उठाकर कुछ देखने लगी ।”
राज ने वैसा ही किया ।
फियेट बजड़े से उतरकर पायर पर पहुंची और फिर एकाएक यूं वहां से भागी जैसे तोप से गोला छूटा हो ।
राज भी लपककर जीप में सवार हुआ । उसने तत्काल जीप फियेट की पीछे दौड़ाई ।
“बीवी को घर पहुंचाने की जल्दी मालूम होती है इसे ।” - डॉली बोली ।
“हां । सोच रहा होगा जितनी जल्दी घर पहुंचेगी, उतनी ही जल्दी पीछा छूटेगा । केले और बीवी बराबर नापसन्द मालूम होते हैं इसे ।”
डॉली हंसी ।
फियेट मेन रोड छोड़कर एक साइड रोड पर मुड़ी ।
राज ने जीप उस सड़क पर मोड़ी तो पाया कि उस पर जगह-जगह पर खड्डे थे और उसकी हालत आगे-आगे और भी खराब थी ।
 
“कहां ले जा रहा है ये हमें ?” - राज झुंझलाया-सा बोला ।
“मालूम पड़ जायेगा ।” - डॉली बड़े इत्मीनान से बोली ।
आगे सड़क ने एक मोड़ काटा । फियेट निगाहों से ओझल हो गयी ।
राज उस मोड़ पर पहुंचा तो उसने पाया कि घने पेड़ों में से गुजरती सड़क आगे एकदम सीधी था लेकिन उस पर फियेट कहीं दिखाई नहीं दे रही थी ।
“कहां गया ?” - राज वे मुंह से निकला ।
“आगे सड़क पर ही कहीं होगा । तेज चलाओ ।”
“नहीं हो सकता । इतनी जल्दी वो इतनी लम्बी सड़क को क्रास नहीं कर सकता ।”
“तो कहां गया ?”
“वो कहीं मुड़ गया है !”
“मोड़ तो कहीं दिखाई नहीं दे रहा ।”
“होगा जरूर । तुम बायें देखती चलना, मैं दायें निगाह रख रहा हूं ।”
“ठीक है ।”
जीप आगे बढती रही ।
“इधर एक कच्ची सड़क है ।” - एकाएक डॉली बोली ।
राज ने तत्काल जीप को ब्रेक लगाई ।
जिस कच्ची सड़क की तरफ डॉली का इशारा था, वो बहुत तंग थी और पेड़ों की डालियां उस पर यूं झुकी हुई थीं कि लगता ही नहीं था कि वो कोई रास्ता था ।”
“अभी बने टायरों के निशान यहां साफ दिखाई दे रहे हैं ।” - राज बोला - “जरूर वो इधर ही गया है ।”
“हमें इस सड़क पर उसके पीछे जाना चाहिये ?”
“ये भी कोई पूछने की बात है !”
“क्या पता ये किसी की प्राइवेट रोड हो ।”
“इस पर ऐसा कोई नोटिस तो लगा नहीं हुआ ।”
“फिर भी...”
“क्या फिर भी ? अरे, जब यहां तक धक्के खा लिये तो क्या अब यूं ही वापिस चले जायेंगे ?”
“वो तो ठीक है लेकिन...”
“डॉली, डॉली ! अभी तक तुम्हारी उस आदमी में इतनी दिलचस्पी थी कि मुझे हर जगह उसके पीछे दौड़ाया । अब एकाएक वो इम्पोर्टेन्ट नहीं रहा ?”
“वो बात नहीं ।”
“तो क्या बात है ? कोई भी बात हो, हम आगे चलेंगे ।”
उसने जीप उस सड़क पर आगे बढाई ।
जीप अभी दो मिनट ही चली थी कि वो सड़क एकाएक एक बहुत बड़े मैदान पर जाकर खत्म हो गयी । उस मैदान में पांच छ: काटेज दिखाई दे रहे थे जिसके आगे कई कारें खड़ी थीं ।
क्रीम कलर की फियेट उनमें नहीं थी ।
“देखा !” - डॉली बोली - “वो फियेट यहां नहीं है । हम गलत रास्ते पर आ गये । अब वापिस चलो ।”
“पार्किंग काटेजों के पिछवाड़े में भी होगी । आओ, देखते हैं ।”
राज जीप से उतरा । डॉली ने भी झिझकते हुए जीप से बाहर कदम रखा । पैदल चलते हुए उन्होंने मैदान पार किया और काटेजों के पृष्ठ भाग में पहुंचे ।
उधर समुद्र था जिसके किनारे अलाव जल रहा था और जहां कई लोग जमा थे । अलाव के करीब एक स्टाल-सा बना हुआ था जहां झींगा मछली तली जा रही थी । एक और स्टाल पर बार बना हुआ था ।
“पार्टी चल रही है ।” - राज बोला ।
“हमें रंग में भंग नहीं डालना चाहिये ।” - डॉली नर्वस भाव से बोली ।
“चलके उस आदमी को तलाश करते हैं ।”
“उसकी फियेट तो यहां कहीं है नहीं ।”
“कुछ काटेजों में गैरेज भी हैं । शायद वो किसी गैरेज में बन्द हो ।”
“लेकिन पार्टी में शामिल उन लोगों के बीच हम अजनबी...”
“पचास से ऊपर लोगों का जमघट है सामने । इतनी भीड़ में किसी का ध्यान तक नहीं जायेगा हमारी तरफ । आओ ।”
“तु... तुम जाओ, मैं यहीं रुकती हूं ।”
“मर्जी तुम्हारी ।”
उसे पीछे खड़ा छोड़कर वो आगे बढा । उधर रास्ता ढलुवां था इसलिये उसे बहुत सावधानी से कदम रखने पड़ रहे थे ।
वो उन लोगों के करीब पहुंचा तो उसने पाया कि किसी ने भी उसकी तरफ तवज्जो नहीं दी थी । सब खाने-पीने में और छोटे-छोटे ग्रुपों में बंटे गप्पें मारने में मशगूल थे ।
वो उनके बीच में फिरने लगा ।
फियेट वाला उसे कहीं दिखाई न दिया ।
वो वापिस घूमा ।
तभी एक विशालकाय स्त्री उसके सामने आ खड़ी हुई !
“सीनोर !” - वो पुर्तगाली लहजे में बोली - “यू आर गोइंग ?”
“वो... वो” - राज हकलाया - “वो क्या है कि...”
“बिना खाये ? बिना पिये ?”
“वो... वो...”
“कम हैव ए ड्रिंक फर्स्ट ।”
वो उसे बांह पकड़कर बार पर ले गयी ।
“वाट इज युअर प्लेजर ?” - वो बोली ।
“आई... आई विल हैव ए बीयर ।”
तत्काल बीयर का एक उफनता मग उसके हाथ में था ।
“फार यूअर हैल्थ, मैडम ।” - वो बोला ।
वो बड़ी आत्मीयता से मुस्कराई और बोली - “हम पहले मिस्टर मार्को की पार्टी में मिले थे । राइट ?”
“राइट, मैडम ।”
“मैंने तुम्हें फौरन पहचान लिया था ।”
“मैंने भी आपको ।”
“वेयर इज युअर वाइफ ? युअर मोस्ट चार्मिंग वाइफ ।”
“वो... वो वहीं आ सकी ।”
“क्यों ?”
“उसका प्रोजेक्ट चल रहा है ।”
“प्रोजेक्ट ?”
“मुझे बाप बनाने का ।”
“ओह !” - वो जोर से हंसी - “उम्मीद से है ?”
“यकीन से है ।”
“यकीन से ?”
“कि वो प्रेगनेंट है ।”
“ओह !” - उसने फिर मुक्त कंठ से अट्टाहास किया - “वैल, एन्जाय युअरसैल्फ । आई विल गो लुक लोबस्टर मसाला ।”
 
उसने राज का कन्धा थपथपाया और वहां से विदा हो गयी । तभी राज की निगाह उस औरत पर पड़ी जो कि ईस्टएण्ड के डिपार्टमेंट स्टोर के सामने से फियेट में सवार हुई थी । उस औरत की पहचानना आसान था क्योंकि उसको उसने कार पर सवार होते समय अच्छी तरह से देखा था । उसके देखते-देखते वो एक पुरुष के करीब जाकर खड़ी हुई । पुरुष क्लीन शेव्ड था, आंखों पर चश्मा लगाये था और उसके बाल लम्बे थे । फिर भी औरत की वजह से ही राज को आश्वासान था कि वो वही फियेट वाला था जिसके पीछे लगे वो वहां पहुंचे थे ।
बीयर का मग थामे वो टहलता-सा उनकी तरफ बढा ।
“हल्लो ।” - वो उनके करीब पहुंचकर बोला ।
“हल्लो ।” - पुरुष बोला ।
“नाइस वैदर ।”
“यस ।”
“नाइस पार्टी ।”
“आई एम ग्लैड दैट यू लाइक इट ।”
“आई एम राज माथुर ।”
“विक्रम पठारे । ये मेरी मिसेज हैं ।”
तीनों में फिर से ‘हल्लो-हल्लो’ हुआ ।
“आप इधर ही रहते हैं ?”
“नहीं । लिस्बन में रहते हैं । आजकल के सीजन में डेढ-दो महीने के लिये इधर आते हैं ।”
“यू लाइक इट हेयर ?”
“यस । इन प्रेजेंट सीजन । नाट आलवेज ।”
“आई सी ।”
“मिसेज को ज्यादा पसन्द है इधर का रहन-सहन । लेकिन प्राब्लम है इधर । शापिंग के लिये फिगारो या पणजी जाना पड़ता है ।”
“आज भी गये ।” - महिला बोली - “वन वीक का सामान लाये ।”
अब राज को यकीन हो गया कि वही शख्स फियेट का ड्राइवर था ।
“वो लड़की !” - एकाएक पठारे बोला - “वो तो... नहीं, नहीं है । ...मेरे ख्याल से है । हां, वो ही है ।”
“कौन लड़की ?” - उसकी बीवी बोली ।
“वो उधर, ऊपर, जो काटेज के बाजू में अकेली खड़ी है ।”
“कौन है वो ?”
“डॉली । टर्नर । पॉप सिंगर । मैं ठीक पहचाना ।”
“सालों बाद देखा, सर” - राज बोला - “फिर भी ठीक पहचाना ।”
“सालों बाद देखा !” - वो बोला - “भई, मैं तो उसे कभी भी नहीं देखा ।”
“फैशन शोज में देखा होगा ।”
“मैंने आज तक कभी कोई फैशन शो नहीं देखा ।”
“वो स्पेशल फैशन शो होता था जो प्रोफेशनल माडल्स नहीं करती थीं, सतीश की बुलबुलों के नाम से जानी जाने वाली लड़कियां करती थीं ।”
“सतीश की बुलबुलें ! अजीब नाम है । मैं तो कभी नहीं सुना ।”
“फेमस नाम है, सर ।”
“होगा । मैं तो कभी नहीं सुना ।”
“फिर तो जरूर डॉली का गाना सुना होगा आपने कभी बम्बई में ।”
“नहीं सुना । मैं अपनी लाइफ में कभी बम्बई ही नहीं गया ।”
“कमाल है ? फिर आप डॉली टर्नर को कैसे जानते हैं ? कैसे पहचानते हैं ?”
“फिगारो आइलैंड पर हुए मर्डर की वजह से आजकल रोज तो उसकी फोटो में छपती है । इसकी, फिल्म स्टरा शशिबाला की, कैब्रे स्टार फौजिया खान की... सबकी ।”
“ओह ! तो आपने अखबार में छपी तस्वीर की वजह से डॉली को पहचाना ?”
“हां । लेकिन ये यहां क्या कर रही है ?”
उसी क्षण डॉली वापिस घूमी और काटेजों के बीच से होती हुई उनकी निगाहों से ओझल हो गयी ।
“और मिस्टर... क्या नाम बताया था तुमने अपना ?”
“माथुर । राज माथुर ।”
“अब मुझे तुम्हारी भी शक्ल पहचानी हुई लग रही है । मैं तुम्हारी भी फोटो...”
“एक्सक्यूज मी ।” - राज जल्दी से बोला - “मैं अभी हाजिर हुआ ।”
उसने बीयर का मग एक नजदीकी मेज पर रखा और काटेजों की तरफ लपका । वो उनके सामने के मैदान में पहुंचा ।
सतीश की जिप्सी उसे पेड़ों के झुरमुट में दाखिल होती दिखाई दी ।
उसकी ड्राइविंग सीट पर डॉली थी और जैसी रफ्तार से वो उसे चला रही थी, उससे लगता था कि उसे वहां से कूच की कुछ ज्यादा ही जल्दी थी ।
किससे दूर भाग रही थी वो ?
जरूर उससे, न कि उस विक्रम पठारे से ।
वो शख्स डॉली को नहीं जानता था, वो सतीश की किसी भी बुलबुल को नहीं जानता था । अभी कुछ क्षण पहले उसने जिन्दगी में पहली बार सतीश की कोई बुलबुल - डॉली टर्नर - साक्षात देखी थी । वो शख्स नौ-दस साल पहले पायल पर मरता नहीं हो सकता था । डॉली ने उसे फर्जी कहानी सुनाई थी क्योंकि किसी का पीछा नहीं कर रहे थे, कोई उनका पीछा कर रहा था जिससे कि डॉली बचना चाहती थी । जीप में दोहरे होकर और हाथों में चेहरा छुपाकर वो विक्रम पठारे की नहीं, किसी और की ही निगाहों में आने से बचना चाहती थी । और इस काम को अंजाम देने के लिये वो इतनी मरी जा रही थी कि उसने खामखाह उसे एक अनजाने, नामालूम आदमी के पीछे उस दूसरे आइलैंड तक दौड़ा दिया था ।
क्या लड़की थी !
क्या फसादी लड़की थी !
***
 
पैदल चलता राज ओल्ड रॉक आइलैंज के पायर पर पहुंचा ।
उसने न वहां डॉली दिखाई दी और न सतीश की जिप्सी ।
जिस बजड़े पर वो वहां पहुंच थे, वो इस घड़ी चलने को तत्पर पायर पर लगा दिखाई दे रहा था ।
राज लपककर उसपर सवार हो गया ।
पहले वाला ही टिकट कन्डक्टर उसके पास पहुंचा ।
राज ने उसे पांच रुपये देकर टिकट ली और बोला - “मैं यहां एक लड़की के साथ जिप्सी पर आया था । याद है ?”
उसने सहमति में सिर हिलाया ।
“तब से फिगारो के कितने चक्कर लगा चुके हो ?”
“दो ।”
“किसी चक्कर में वो लड़की या वो जिप्सी देखी ?”
“पिछले चक्कर में देखी । बहुत जल्दी में थी ।”
“कैसे जाना ?”
“बहुत तेज रफ्तार से जीप चलाती पायर पर पहुंची थी । हमारा ट्रेलर इधर से मूव किया था तो वो स्लो स्पीड की शिकायत कर रही थी ।”
“ओह !”
“आप पीछू कैसे रह गया ?”
“बस, ऐसे ही ।” - वो खिसियाया-सा हंसा - “कुछ कन्फ्यूजन हो गया ।”
फिर वार्तालाप के पटाक्षेप के संकेत के तौर पर उसने कन्डक्टर की ओर से मुंह फेर लिया । कन्डक्टर भी तत्काल परे हट गया ।
बजड़ा परले किनारे पर-लगा तो सबसे पहले राज ने उस पर से खुश्की पर कदम रखा ।
अब उसके सामने अहमतरीन सवाल था ।
क्या वो पुलिस के पास जाकर सारा वाकया बयान करे ? या पहले वो डॉली की उस हरकत की कोई वजह जानने की कोशिश करे ?
पायर से उसने सतीश की एस्टेट पर फोन किया । फोन का जवाब खुद सतीश ने दिया । पूछने पर मालूम हुआ कि डॉली वहां नहीं पहुंची थी । तभी फोन बूथ की खिड़की में से उसे सड़क के पार की पार्किंग में से एक जिप्सी निकलती दिखाई दी जो कि तत्काल एक ट्रक की ओट में आ गयी जिसकी वजह से वो उसके ड्राइवर पर निगाह न डाल सका । जब तक ट्रक सामने से हटा, जिप्सी उसकी ओट में से गायब हो चुकी थी ।
क्या वो सतीश की जिप्सी थी ? क्या उसे डॉली चला रही थी ?
अगर जिप्सी सतीश की थी तो और कौन चला रहा होगा ?
वो बूथ से बाहर निकला ।
उसने अनुभव किया कि जिस पार्किंग में से जिप्सी निकली थी, उसके ऐन पीछे एक बार था ।
वो कुछ क्षण सोचता रहा, फिर उसने सड़क पार की और बार में दाखिल हुआ । बार में उस घड़ी कोई खास भीड़ नहीं थी । वो सीधा बारमैन के पास पहुंचा ।
“मैं अपनी एक फ्रेंड को तलाश कर रहा हूं । वो सफेद स्कर्ट जैकेट पहने थी । भूरे बालों वाली बहुत खूबसूरत लड़की । यहां तो नहीं आयी थी ?”
“आयी थी” - बारमैन बोला - “अभी गयी है ।”
यानी कि जिस जिप्सी की उसे झलक मिली थी, उसमें डॉली ही सवार थी ।
“थैक्यू ।” - वो बोला और लौटने को मुड़ा ।
“बॉस, जल्दी ढूंढ लो उसे ।”
वो फिर बार मैन की तरफ घूमा, उसके माथे पर बल पड़े ।
“क्यों ?” - उसने पूछा ।
“विस्की के तीन लार्ज पैग पांच मिनट में पी गयी । जिप्सी पर आयी थी । पहुंचने में दिक्कत होगी ।”
“ओह !”
“शाम को सड़कों पर भीड़ भी ज्यादा होती है ।”
“आई अन्डरस्टैण्ड ।”
वो बार से बाहर निकला ।
अब उसे डॉली पता नहीं क्यों मदद और रहम के काबिल लगने लगी । अगर वो उसे मिल जाती तो सबसे पहले तो वो उसे ये ही समझाता कि उसके लिये अगला, सही कदम कौन-सा था ।
सही कदम ये ही था कि वो फरार हो जाने का इरादा छोड़ दे और पुलिस के सामने सब कुछ सच-सच उगल दे ।
यानी कि अभी उसे पुलिस का रुख नहीं करना चाहिये था । अभी उसे आइलैंड पर डॉली को तलाश करने की कोशिश करनी चाहिये थी । आखिर वो फौरन फरार होने की कोशिश नहीं कर सकती थी, वो आइलैंड से पणजी जाने की कोशिश में पकड़ी जा सकती थी ।
 
लेकिन जैसे खुद से डाज देकर वो खिसकी थी, उससे लगता था कि जरूर उसकी निगाह में फिगारो आइलैंड से खिसककर मेनलैंड पर पहुंच जाने का कोई तरीका था । ऐसा न होता तो वो उसे पीछे ओल्ड रॉक आइलैंड पर फंसा छोड़कर न भागी होती ।
क्या तरीका था वो ?
कहां तलाश करे वो उसे ?
कहां से शुरु करे वो अपनी तलाश !
उसे मारकस रोमानो की कार याद आयी ।
राइट - उसका सिर स्वयमेव ही सहमति में हिलने लगा - पहले चुपचाप उसी को काबू में किया जाये ।
उसने ईस्टएण्ड की तरफ कदम बढाया ।
तभी एक पुलिस जीप वहां पहुंची और ब्रेकों की चरचराहट के साथ ऐन उसके सामने आकर रुकी ।
राज ने हड़बड़ाकर सिर उठाया तो पाया कि उसमें सब-इंस्पेक्टर फिगुएरा और इंस्पेक्टर सोलंकी सवार थे । दोनों छलांग मारकर जीप से उतरे और यूं उसके सामने आ खड़े हुए कि राज सहमकर एक कदम पीछे हट गया ।
“तुम” - फिगुएरा कड़ककर बोला - “आधे घन्टे में कमेटी के दफ्तर वापिस लौटने वाले थे ।”
“वो” - राज हकलाया - “वो क्या है कि... कि...”
“डॉली कहां है ?”
“पता नहीं ।”
“क्यों पता नहीं ?”
“जनाब वो... वो...”
“मुजरिम की मदद करने का, उसकी फरार होने में मदद करने का नतीजा जानते हो ?”
“जानता हूं लेकिन... लेकिन मेरी ऐसी मंशा नहीं थी ।”
“ओह ! यानी कि ये मानते हो कि वो फरार हो गयी है ?”
“वो... वो क्या है कि...”
“उसकी हिमायत में कुछ कहना बेकार होगा, मिस्टर माथुर ।” - सोलंकी अपेक्षाकृत नम्र स्वर में बोला - “एक कत्ल के अपराधी की वकालत करनी भी है तो ये उसके लिये न कोई मुनासिब जगह है और न वक्त ।”
“क - कत्ल की अपराधी ?”
“फरार कोई ऐसे ही नहीं हो जाता ।”
“अब जो जानते हो” - फिगुएरा बोला - “सच-सच साफ-साफ फौरन बोलो । इसी में तुम्हारी भलाई है । वर्ना...”
राज ने आदेश का पालन किया । उसने सच-सच सब कुछ कह सुनाया । उसने डॉली से सम्बन्धित वो बातें भी न छुपाई जिन्हें सिर्फ वो जानता था और जिसकी कोई सफाई वो डॉली से हासिल नहीं कर सका था । नतीजतन उसके टैक्सी पकड़कर सतीश के यहां लौटने से पहले डॉली टर्नर की आइलैंड पर चौतरफा तलाश शुरु हो चुकी थी ।
एक फरार अपराधी की तलाश ।
***
 
लाउन्ज में सब लोग मौजूद थे और उनकी अतिउत्तेजित आवाजों से साफ पता चल रहा था कि डॉली से सम्बन्धित वो नयी और सनसनीखेज खबर वहां पहले ही पहुंच चुकी थी । लगता था कि वहां उसे गुनहगार मान भी लिया गया था और सजा सुना भी दी गयी थी । यानी कि उसकी फैलो बुलबुलें, उनके सगे वाले और उनका मेजबान उसे डबल मर्डर का अपराधी घोषित कर भी चुका था । और अब उस घोषणा को मोहरबन्द सतीश की उम्दा स्काच विस्की के साथ किया जा रहा था ।
सबने बड़े मातमी अन्दाज से राज का स्वागत किया ।
फिर सतीश ने खुद बनाकर उसे जाम पेश किया । सबने खामोशी से अपने गिलास वाले हाथ ऊंचे कर चियर्स बोला ।
राज की निगाह पैन होती हुई सबकी सूरतों पर फिरने लगी । रोशन बालपाण्डे पर वो क्षण भर को टिकी तो वो तत्काल परे देखने लगा और बेचैनी से पहलू बदलने लगा ।
फिर बुलबुलें चहचहाने लगीं ।
“टू बैड ।” - ज्योति बोली ।
“नेवर एस्पेक्टिड ऑफ डॉली ।” - आलोका बोली ।
“छुपी रुस्तम निकली ।” - फौजिया बोली ।
“मैंने कभी” - शशिबाला बोली - “सपने में नहीं सोचा था कि वो...”
राज को गुस्सा चढने लगा ।
“तभी तो कहते हैं” - अधिकारी बोला - “कि भोली-भाली सूरत वाले होते हैं जल्लाद भी ।”
“खूनी रवायात” - कौशल निगम ने अपना ज्ञान बघारा - “कइयों के खून में होती हैं ।”
“ही मींस होमीसिडल टेन्डेसीज ।” - सतीश बोला ।
केवल बालपाण्डे खामोश रहा, लेकिन राज को अपनी तरफ देखता पाकर उसने वो कमी ‘च च च’ कहकर और बड़े अवसादपूर्ण भाव से गर्दन हिला के पूरी की ।
“लगता है” - राज शुष्क स्वर में बोला - “डॉली की बाबत कोई शक, कोई अन्देशा आप लोगों को पहले से था ।”
कई भवें उठीं ।
“आप सब लोग मुझे तमाशा बनता देखते रहे । किसी ने मुझे डॉली की बाबत खबरदार न किया । न उसे छुपी रुस्तम समझने वालों ने, न उसकी खूनी रवायात पहचानने वालों ने और न उसे जल्लाद कहने वालों ने । वो आप लोगों में से एक थी । सिर्फ मैं ही यहां आपकी महफिल में एक बाहरी आदमी था । और किसी का नहीं तो कम-से-कम मेजबान का तो फर्ज बनता था कि वो मुझे डॉली का बाबत वार्न करता !”
“माई डियर यंग मैन” - सतीश बोला - “हमें अभी थोड़ी देर से पहले नहीं मालूम था कि डॉली...”
“आपको जरूर मालूम था । आप सबको जरूर मालूम था । वर्ना आप लोगों ने डॉली की यहां से वक्ती गैर-हाजिरी की बिना पर ही उसे मुजरिम करार न दे दिया होता । डॉली गायब है और पुलिस को उसकी तलाश है, सिर्फ इतने से ही आपने उसे कातिल न समझ लिया होता । मेरा आपसे सवाल ये है कि डॉली की बाबत कूदकर किसी स्कैण्डलस नतीजे पर पहुंच जाना क्या उसके साथ इंसाफ है ? क्या पुलिस की और पुराने दोस्तों और मोहसिनों की सोच एक होनी चाहिये ? क्या आप में से किसी ने भी एक क्षण के लिये भी ये सोचा कि डॉली के गायब होने के पीछे वजह ये भी हो सकती है कि हाउसकीपर वसुन्धरा, पायल और आयशा की तरह उसका भी कत्ल हो चुका हो ?”
कई सिसकारियां एक साथ सुनायी दीं ।
“मिस्टर माथुर” - ज्योति बोली - “जब ये एक स्थापित तथ्य है कि कातिल हम में से हो कोई था तो हम ने किसी को तो गुनहगार मानना ही था ।”
“इसलिये आपने डॉली को गुनहगार माना ?”
“हां ।”
“इसलिये नहीं क्योंकि अपने बचाव में कुछ कहने के लिये वो यहां मौजूद नहीं थी !”
“नहीं । तुम पायल के उस ब्रेसलेट को भूल रहे हो जो कि पुलिस ने उसके सामान में से बरामद किया था ।”
“उसकी सफाई वो दे चुकी है । वो कह चुकी है कि ब्रेसलेट किसी ने उसके सामान में प्लांट किया था ।”
“किसी को यकीन आया था उसकी इस बात पर ? खुद आपको यकीन है ?”
“यकीन तो.. वो कहती थी कि उसके पास ब्रेसलेट की अपने पास मौजदूगी का कोई माकूल जवाब था ।”
“यही न कि वो प्लांट किया गया था ?”
“नहीं । उसके अलावा ।”
“क्या ? क्या जवाब था वो ?”
“मुझे नहीं बताया उसने । उस बाबत वो सिर्फ पुलिस से बात करना चाहती थी ।”
“और ऐसी कोई” - विकी एकाएक यूं बोला जैसे उसे तभी सूझा हो कि उसे अपनी बीवी की हिमायत में बोलना चाहिये था - “नौबत आने से पहले ही वो भाग खड़ी हुई । खुद आपको भी डाज देकर फरार हो गयी । जबकि आप उसके इतने हमदर्द हैं, तरफदार हैं ।”
राज ने अपलक उसकी तरफ देखा । विकी मुस्कराया लेकिन राज को उसकी निगाहों से एक लोमड़ी जैसे चालाकी झांकती दिखाई दी ।
“आपको कैसे मालूम है ?” - वो बोला ।
“क्या ?” - विकी बोला - “क्या कैसे मालूम है ?”
“कि मैं डॉली का हमदर्द हूं, तरफदार हूं ?”
“भई, साफ दिखाई देता है ।”
“अच्छा ! साफ दिखाई देता है आपको ?”
“और क्या मैं अन्धा हूं ?”
“आप बताइये ।”
“मिस्टर माथुर !”
“तो आप लोगों की राय ये है कि डॉली ने वो ब्रेसलेट पायल से तब हासिल किया जबकि वो यहां थी ।”
“हां ।” - विकी पूरी ढिठाई के साथ बोला - “मैंने अपनी बीवी से तमाम वाकयात सुने हैं । मेरी खुद की भी राय यही है ।”
“आपकी राय आपको बहुत-बहुत मुबारक हो लेकिन डॉली ने ऐसा क्यों किया ?”
“होगी कोई वजह । मुझे क्या पता !”
“अन्दाजा ही बताइये अपना । समझदार आदमी मालूम होते हैं आप । हैं न आप समझदार ? या सिर्फ थोबड़ा ही हसीन पाया है ।”
“मिस्टर माथुर !” - इस बार ज्योति ने गुस्सा जताया - “प्लीज माइन्ड युअर लैंग्वेज ।”
“सॉरी, मैडम । मैंने तो महज इनके आकर्षक व्यक्तित्व की तारीफ की थी ।”
“तारीफ सभ्य भाषा में भी हो सकती है ।”
“सॉरी अगेन । तो बताइये क्यों चुराया डॉली ने वो ब्रेसलेट । क्या वो नहीं जानती थी कि उस पर किसी दूसरे का नाम गुदा हुआ था जिसकी वजह से वो उसे पहन नहीं सकती थी ? पहनती तो बेवकूफ लगती !”
“तुम भूल रहे हो कि वो एक कीमती ब्रेसलेट था ।”
“ओह ! तो लालच ने चोर बनाया डॉली को ?”
“हो सकता है ।”
“यानी कि यही इकलौता जेवर था पायल के पास ?”
“वो... वो... क्या है कि...”
“आप तो मिली थीं पायल से । आप बताइये क्या वो जिस्म पर कोई जेवर नहीं पहने थी ? कोई चूड़ियां ! कोई कंगन ! कोई अंगूठियां । कोई गले का जेवर ! कोई कानों का जेवर ।”
 
“वो सब कुछ पहने होगी ।” - विकी फिर अपनी बीवी की हिमायत में वार्तालाप में कूदा - “लेकिन डॉली का दांव सिर्फ एक ही जेवर चुराने में चला होगा । अभी उसने ब्रसेलेट ही कब्जाया होगा कि उसे मौकायवारदात से खिसक जाना पड़ा होगा ।”
“आप तो आई विटनेस की तरह जवाब दे रहे हैं ।”
“इट स्टैण्ड्स टु रीजन । बच्चा भी समझ सकता है कि...”
“यहां जो बच्चा मौजूद हो, वो बरायमेहरबानी खड़ा हो जाये ताकि मैं उससे पूछ सकूं कि वो क्या समझ सकता है !”
कोई कुछ न बोला ।
“आप आई विटनेस नहीं थे, मिस्टर निगम । हो भी नहीं सकते थे । आप उस बात का जवाब क्यों नहीं ट्राई करते जिसके कि आई विटनेस आप थे ?”
“कौन-सी बात ?” - निगम बोला ।
“आपकी कार में आपकी हमसफर कौन थी ?”
“माथुर, माइंड युअर ओन बिजनेस ।”
“यानी कि आप नहीं बतायेंगे !”
“मैंने बोला न कि अपने काम से काम रखो ।”
“ठीक है । आप न बताइये, मैं बताता हूं ।”
कौशल सकपकाया । उसने घूरकर राज की ओर देखा ।
“वो फौजिया थी ।” - राज बोला ।
सब चौंके । सबसे ज्यादा फौजिया चौंकी ।
“फौजिया !” - ज्योति के मुंह से निकला - “विकी के साथ !”
“पूरा रास्ता ।” - मकेश बोला - “धूप में घण्टों कार भी चलाई इसने जिसका सुबूत इसकी झुलसी हुई दायीं बांह है जिसे ये, जबसे आयी है, छुपा के रखे हुए है ।”
फौजिया के चेहरे का रंग उड़ा ।
राज ने चैन की सांस ली । उसका तुक्का चल गया था । जो काम डॉली नहीं कर सकी थी, वो अब सहज ही हो गया था ।
“मैडम !” - वो फौजिया से बोला - “जब मामला डबल मर्डर का हो, बल्कि ट्रिपल मर्डर का हो तो किसी पति की अपनी पत्नी से छोटी-मोटी, वक्ती बेवफाई कोई अहम मुद्दा नहीं होता ।”
“इसमें बेवफाई कहां से आ घुसी ?” - फौजिया भड़ककर बोली - “मैंने यहां पहुचना था, मुझे आल दि वे लिफ्ट मिल रही थी, मैंने लिफ्ट ले ली तो क्या आफत आ गयी ?”
“विकी कहां मिला तुझे ?” - ज्योति उसे घूरती हुई बोली - “आगरे में ?”
“नहीं । दिल्ली में । जहां कि मैं चण्डीगढ से बस पर सवार होकर पहुंची थी । मैं तो गोवा के कन्सेंशनल प्लेन टिकट की फिराक में तुम्हारी ट्रैवल एजेन्सी में आयी थी कि सड़क पर ही मुझे विकी मिल गया था । इसने मुझे बताया था कि ये आगरा से एक टयोटा पिक करके आगे गोवा जाने वाला था तो मैं इसके साथ जाने को तैयार हो गयी । आखिर मेरा पांच हजार रुपये का प्लेन फेयर बचता था । इतनी-सी तो बात है ।”
“ये इतनी-सी बात हो सकती है ।” - राज बोला - “लेकिन अगले रोज जबकि कौशल भी यहां पहुंच गया तो आधी रात को, चोरों की तरह इसके साथ इसकी टयोटा में सवार होकर फिर से निकल पड़ने को मैडम ज्योति निगम अगर ‘इतनी-सी बात’ मानें तो मैं कहूंगा कि ये बहुत दरियादिल हैं । ईर्ष्या की भावना तो इन्हें छू तक नहीं गयी ।”
“यू बिच !” - ज्योति दांत पीसती बोली ।
फौजिया घबराकर परे देखने लगी ।
“बुरा हो उस हवलदार का” - राज अब स्थिति का आनन्द लेता हुआ बोला - “जो अपने स्कूटर पर आधी रात को इनके पीछे लग लिया और इनकी मिडनाइट पिकनिक बर्बाद कर दी ।”
“यू लाउजी बिच !” - ज्योति बोली ।
फौजिया ने उससे निगाह ने मिलाई ।
“और तुम !” - ज्योति अपने पति की तरफ घूमी - “तुम...”
“इसकी बातों पर न जाओ, डार्लिंग ।” - निगम जल्दी से बोला - “ये खुराफाती आदमी खामखाह तुम्हें भड़का रहा है ।”
“खामखाह ! खामखाह बोला तुमने ?”
“हां । और माथुर” - वो राज की तरफ घूमा - “दूसरों पर इलजाम लगाने से तुम्हारी गर्लफ्रेंड का कोई भला नहीं होने वाला ।”
“मेरी गर्लफ्रेंड !” - राज की भवें उठीं ।
“या जो कुछ भी तुम उसे समझते हो ।”
“तुम भी जो कुछ मर्जी समझो । आई डोंट माइन्ड । बहरहाल डॉली के कातिल होने का यकीन तुम्हें हैं, मुझे नहीं । इस लिहाज से इस केस की तुम्हारी जानकारी मेरी जानकारी से ज्यादा होनी चाहिये । अब तुम उस अपनी बेहतर जानकारी को कुरेदकर ये बताओ कि डॉली के पास कत्ल का उद्देश्य क्या था ? क्यों किये उसने कत्ल ? क्यों किया उसने कोई भी कत्ल ?”
“होगी कोई वजह ?”
“इस बार ‘मुझे क्या पता’ नहीं कहा ?”
वो खामोश रहा ।
राज ने बारी-बारी सब पर निगाह डाली ।
कत्ल के उद्देश्य की बाबत किसी की जुबान न खुली ।
“हकीकत ये है, लेडीज एण्ड जन्टलमैन” - राज बोला - “कि डॉली के पास कत्ल का कोई उद्देश्य नहीं । जबकि जनाबेहाजरीन में से कइयों के पास कत्ल का मजबूत उद्देश्य है ।”
 
विरोध में कई स्वर गूंजे ।
“मसलन” - राज आगे बढा - “पायल की वापिसी से शशिकला के फिल्म कैरियर को, उसके भविष्य को खतरा था । मसलन पायल की वापिसी से ज्योति और आलोका के विवाहित जीवन को खतरा था । मसलन...”
“माथुर ।” - बालपाण्डे भड़ककर बोला - “मेरे या मेरी बीवी के बारे में कोई बकवास करने की जरूरत नहीं । मैं पुलिस को यकीन दिला युका हूं कि मेरे और पायल के बीच कुछ नहीं था ।”
“क्या अपनी बीवी को भी यकीन दिला चुके हो ?”
वो सकपकाया ।
“जाहिर है कि नहीं ।” - राज बोला ।
“मैंने ऐसी कोशिश नहीं की ।”
“अब कर लो ।”
“कोई जरूरत नहीं । शी अन्डरस्टैण्ड्स ।”
“ऐसी कोई अन्डरस्टैडिंग तुम्हारी बीवी की सूरत से झलक तो नहीं रही ।”
“वो तुम्हारी सिरदर्द नहीं । मैं जानूं या मेरी बीवी जाने, तुम्हें क्या !”
“अभी तो मैं ही मैं जानूं दिखाई दे रहा है । बीवी जाने तो जानें न ! अभी तो तुमने अपनी बीवी के सामने बस इतना कहा है कि तीन साल पहले पायल एक बार तुम्हें सूरत में मिली थी । उस एक बार के बाद कितनी बार और कितनी जगह तुम पायल से मिले इस बाबत भी तो कुछ अपनी जुबानी उचरो । जो कुछ इंस्पेक्टर सोलंकी के कान में तुम फूंक मार के दोहरा चुके हो, उसे अब सबके सामने - “खासतौर से अपनी बीवी के सामने - दोहराने में क्या हर्ज है ।”
“क्या हर्ज है ?” - सतीश बोला ।
आलोका ने आशापूर्ण भाव से अपने पति की ओर देखा ।
बाकी सबकी तकाजा करती निगाहें भी बालपाण्डे पर टिकीं ।
“ठीक है ।” - बालपाण्डे बोला - “बताता हूं । लेकिन इस वजह से नहीं क्योंकि मैं इस सिरफिरे छोकरे की बकवास से डर गया हूं बल्कि इस वजह से कि शायद डॉली का कोई भला हो जाये । माथुर, तुम अन्दाजन कुछ भी बकते रहो लेकिन हकीकत ये ही है कि मैं पायल से सिर्फ एक ही बार - और वो भी इत्तफाकन - सूरत में मिला था । और वो मुलाकात ऐसी थी कि उसने पायल के लिये कोई ख्वाहिश भड़काना तो दूर, जो थोड़ी बहुत ख्वाहिश मेरे मन में उसके लिये थी, उसे भी ठण्डा कर दिया था ।”
“क्यों ?” - राज बोला ।
“बताता हूं क्यों । लेकिन ये बात पहले ही जान लो, कान खोलकर सुन लो कि उसका पायल के कत्ल से कोई रिश्ता नहीं । इंस्पेक्टर सोलंकी इस बात को कबूल कर भी चुका है ।”
“जरूर कर चुका होगा लेकिन जरूरी नहीं कि जो बात पुलिस ने बेमानी समझी वो यहां मौजूद लोगों को भी बेमानी लगे ।”
“ये ठीक कह रहा है ।” - विकी बोला ।
“अरे बोला तो बताता हूं” - बालपण्डे तनिक झल्लाकर बोला - “लेकिन इससे डॉली का कोई भला नहीं होने वाला । अलबत्ता इससे तुम लोगों की निगाहों में पायल का इमेज जरूर बिगड़ेगा । इसी वजह से इस बात को मैं खुलेआम नहीं कहना चाहता था । लेकिन पायल की रूह मुझे माफ करे, अब तुम लोगों की जिद पर कहता हूं ।
“हम सुन रहे हैं ।” - सतीश बोला ।
“जैसा कि मैंने कहा था, पायल मुझे सूरत में मिली थी लेकिन किसी सिनेमा लाबी में नहीं । और न ही मेरी उससे कोई बात हुई थी । हकीकत ये हैं कि वो मुझे एक कॉफी हाउस में मिली थी जिसमें कि ढंके-छुपे ढंग से बार भी चलता था । मैं वहां फोन करने की नीयत से गया था जब कि मुझे वहां पायल बैठी दिखाई दी थी । साहबान, यकीन जानिये, मैंने बहुत ही मुश्किल से उसे पहचाना था ।”
“जरूर मुश्किल से पहचाना होगा ।” - राज बोला - “तुम पहले कह तो चुके हो कि वो खंडहर-सी लग रही थी, उजड़ी-सी लग रही थी, वगैरह ।”
“जैसी मैंने उसे पहले बयान किया था वो उससे कहीं ज्यादा खराब लग रही थी । मैंने उसका लिहाज किया था जो मैंने उसका हुलिया गहराई में बयान नहीं किया था, हकीकत ये है कि वो तो... बस बेड़ागर्क लग रही थी । उसकी पोशाक, उसका हुलिया, उसके बाल, उसका मेकअप, हर चीज चीप थी उस घड़ी उसकी पर्सनैलिटी की । पर्सनैलिटी का तो जिक्र ही बेकार है । पर्सनैलिटी नाम की कोई चीज तो बाकी ही नहीं थी उसमें । ढलती हुई फिगर, उजड़े चमन जैसी सूरत, किसी को बोलो तो कोई यकीन न करे कि कभी वो लड़की हुस्न की मलिका थी, करोड़ों दिलों की धड़कन थी । मैं कहता हूं उस घड़ी मैं उससे उसकी बाबत सवाल करता तो शर्म के मारे वो ही ये झूठ बोल देती कि वो पायल नहीं थी ।”
“वो होगी ही नहीं पायल ।” - ज्योति बोली - “इतने बुरे हाल में वो हरगिज नहीं पहुंच सकती थी । मैं ये बात अथारिटी से कह सकती हूं क्योंकि मैंने उसे यहीं, इस मैंशन में, गुलाब की तरह तरोताजा देखा था । पहले से कहीं... कहीं ज्यादा हसीन और दिलकश देखा था ।”
“वो पायल नहीं होगी ।” - शशिबाला बोली ।
“थी वो पायल । यही मानने से कहानी आगे बढेगी ।” - राज बोला - “वर्ना सारी कथा ही बेमानी है ।”
“ये ठीक कह रहा है ।” - सतीश बोला - “प्लीज गो आन, मिस्टर बालपाण्डे ।”
“वो पायल थी ।” - बालपाण्डे बोला - “उसकी बाबत जो रहा-सहा शक मेरे जेहन में था वो अगले रोज दूर हो गया था जबकि मैं फिर उस कॉफी हाउस में गया था और मैंने फिर उसको वहां जमी बैठी देखा था । मैं उसके परे, उससे छुपकर बैठ गया था और बहुत देर तक मैंने उसे वाच किया था । तब मुझे पूरा यकीन हो गया था कि वो पायल थी । उसका हुलिया जरूर उजड़ गया था, पर्सनैलिटी जरूर बर्बाद हो गयी थी लेकिन हावभाव वही थे, बातचीत का अन्दाज वहीं था और खासतौर से उसकी मुक्तकण्ठ से हंसने की अदा वही थी । उसकी खनकती हंसी की मेरे दिलोदिमाग पर ऐसी छाप है कि वो ताजिन्दगी नहीं मिट सकती । साहबान, वो यकीनन पायल थी ।”
“ऐसा पतन !” - सतीश के मुंह से कराह-सी निकली - “सतीश की बुलबुल का ऐसा सर्वनाश ।”
“बात वाकई नहीं की थी तुमने उससे ?” - विकी बोला ।
“नहीं की थी ।”
“यकीन नहीं आता । तुमने उसको उस हालत में देखा और तुम्हारी ये जानने की उत्सुकता न हुई कि वो उस बुरे हाल में कैसे पहुंच गयी थी ! हज्म नहीं होती ये बात ।”
“मेरी जुर्रत नहीं हो रही थी उसके पास फटकने की । ये तो एक तरह से उसकी पोल खोलना होता, उसे उसकी उस वक्त की हालत से शर्मिन्दा करना होता ।”
 
“उसे तुम्हारी, अपने किसी पुराने परिचित की, मदद की जरूरत हो सकती थी ।”
“ये बात आयी थी मेरे जेहन में लेकिन इससे पहले कि उस बाबत कोई कदम उठाने कि हिम्मत मैं अपने आप में जुटा पाता, वो उठ के चल दी थी ।”
“उठके चल दी थी ?” - राज बोला ।
“एक आदमी के साथ । एक ऐसे आदमी के साथ जिसे पायल ने - आई रिपीट, पायल ने - पटाया था ।”
“क्यों ? पट नहीं रहा था वो ?”
“यही बात थी । बहुत मुश्किल से पटा था वो ?”
“किस काम के लिये ?”
“अब ये भी मेरे से ही कहलवाओगे ?”
“हे भगवान !” - शशिबाला के नेत्र फट पड़े - “इतना गिर चुकी थी वो !”
“शी वाज सालिसिटिंग !” - सतीश भी वैसे ही हौलनाक स्वर में बोला ।
“यस । और वो कॉफी हाउस उसका ठीया मालूम होता था ।”
“तौबा !” - फौजिया कानों पर हाथ रखती हुई बोली - “तौबा ।”
“मैं चुपचाप उन दोनों के पीछे गया ।” - बालपाण्डे बोला - “करीब ही एक घटिया सा होटल था जिसमें उन दोनों के दाखिल होने से पहले मैंने सड़क पर उस आदमी को पायल को रुपये देते देखा था ।”
“तौबा !”
“मुझे खुद अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था । लेकिन जो कुछ मुझे दिखाई दे रहा था, उसे मैं कैसे झुठला सकता था ।”
“फिर ?” - सतीश बोला - फिर ?”
“फिर मैं वापिस उस कॉपी हाउस में लौटा । वहां मैंने एक वेटर से उसकी बाबत सवालात किये तो इस बात की तसदीक हो गयी कि जो मैंने उसे समझा था, वो ऐन वही थी । वेटर ने उसे ‘बेचारी, मजबूर लड़की’ बताया जिसके पास अपना जिस्म बेचकर पेट भरने के अलावा कोई चारा नहीं था ।”
“क्यों चारा नहीं था ?” - राज ने प्रतिवाद किया - “उसने अच्छे दिन देखे थे, उसकी अच्छी वाकफियत थीं, वो किसी के पास मदद मांगने आ सकती थी । वो तुम लोगों में से किसी के पास आ सकती थी । वो आती तो क्या तुम लोग उसकी कोई मदद न करते ? क्या उसकी फैलो बुलबुलें भी उसकी दुश्वारी की दास्तान सुनकर न पसीजतीं ? ऐसा क्योंकर हुआ कि वो तुममें से किसी के पास न आयी ?”
“आई थी ।” - फौजिया एकाएक बोली - “मेरे पास आयी थी ।”
सबकी निगाहें उसकी तरफ उठीं ।
“क्यों आयी थी ?” - राज ने पूछा - “माली इमदाद के लिये ?”
“हां । ऐन इसीलिये ।”
“तुमने की कोई मदद उसकी ?”
“हां । मैंने उसे दस हजार रुपये दिये थे । इत्तफाक से इतने ही रुपयों की गुंजायश थी तब मेरे पास । मेरे पास और पैसा होता तो मैं जरूर उसे और पैसा देती ।”
“ये कब की बात है ?”
“नौ जून की । मुझे आज तक तारीख याद है । इसलिये याद है क्योंकि वो ईद का दिन था । तब मुझे लगा था कि मदद मांगने मेरे पास आने के लिये उसने जानबूझ कर वो दिन चुना था । जरूर उसने सोचा होगा कि ऐसे मुबारक दिन मैं उसकी मदद करने से इनकार नहीं करूंगी ।”
“ओह ! तो पिछली जून को जब तुम्हारी पायल से मुलाकात हुई थी तो वो...”
“पिछली जून को नहीं, भई, सन 1988 की जून को ।”
“तब तो ये” - सतीश बोला - “श्याम नाडकर्णी की मौत के कुछ ही महीने बाद की बात हुई ?”
“हां ।” - फौजिया बोली - “सिर्फ दो महीने बाद की ।”
“अपने धनवान पति की मौत के सिर्फ दो महीने बाद उसकी माली हालत ऐसी थी कि वो तुम से दस हजार रुपये उधार पहुंच गयी थी ।”
“दस हजार नहीं, दो लाख । वो मेरे से दो लाख रुपये मांग रही थी । दो लाख रुपये उधार मांगने आयी थी वो ।”
“उसे दो लाख रुपये की जरूरत थी ?”
“बहुत सख्त जरूरत थी । रो रही थी उस रकम के लिये । इसी बात से तो पिघलकर मैंने उसे दस हजार रुपये दिये । ज्यादा होते तो ज्यादा भी दे देती उस घड़ी । लेकिन मेरे पास थे ही इतने ।”
“दस हजार तो दो लाख की रकम का बहुत छोटा हिस्सा हुआ ।” - राज बोला - “तब हो सकता है मदद के लिये जैसे वो तुम्हारे पास आयी थी, वैसे वो किसी और के पास भी गयी हो । किसी बुलबुल के पास या बुलबुलों के” - उसने सतीश की तरफ देखा - “कद्रदान, मेहरबान सरपरस्त के पास ?”
सबने सतीश की तरफ देखा ?
“गर्मियों में” - सतीश विचलित भाव से बोला - “या मानसून में मैं यहां नहीं होता ।”
“न होने की” - राज बोला - “कोई कसम तो नहीं खायी हुई होगी आपने ।”
“नहीं । कसम नहीं खायी हूई । सच पूछो तो सन अट्ठासी में मैं एक हफ्ते के लिये यहां आया था ।”
“और उसी एक हफ्ते में पायल आप के पास पहुंची थी ?”
“हां । मई एण्ड में ।”
“डैडियो” - ज्योति बोली - “आज तक न बताया ? जिक्र तक न लाये जुबान पर ।”
“मैं पायल की छवि खराब नहीं करना चाहता था । मैं इस बात का जिक्र जुबान पर नहीं लाना चाहता था कि पायल मेरे पास पैसे मांगने आयी ।”
“पैसे मांगे थे उसने आप से ?” - राज बोला ।
“हां । और आयी किसलिये थी ?”
“आपने दिये थे ?”
“नहीं ।”
सब चौंके और हैरानी से सतीश की तरफ देखने लगे ।
“नहीं ?” - ज्योति बोली - “यकीन नहीं आता । तुमने पायल की मदद न की ! महान सतीश से पायल को इनकार सुनना पड़ा ! यानी कि तुम ने उस से फौजिया जितनी भी हमदर्दी न दिखाई ! मेरे जितनी भी हमदर्दी न दिखाई !”
“वो” - राज तत्काल बोला - “आप के पास भी आयी थी ?”
“हां । मई एण्ड में ही । जरूर सतीश से नाउम्मीद होने का बाद ही आयी होगी ।”
“आपने मदद की थी उसकी ?”
“हां । पच्चीस हजार रुपये दिये थे । फौजिया की तरह मेरे पास भी ज्यादा की गुंजायश नहीं थी । होती तो ज्यादा भी जरूर देती ।”
“यानी कि मांग उसकी बड़ी थी ?”
“हां । दो लाख की ।”
“उसने आप को बताया था कि उसे एकमुश्त इतने पैसे की जरूरत क्यों थी ?”
“नहीं ।”
“मिस्टर सतीश, आपको भी नहीं बताया था ?”
“नहीं बताया था ।” - सतीश उखड़े स्वर में बोला - “यही बात तो मुझे नागवार गुजरी थी जिसकी वजह से मैंने उसकी मदद से इनकार किया था । जब उसे मेरे पर भरोसा नहीं था तो उसे नहीं आना चाहिये था मेरे पास । वो कुछ बताती तो मुझे यकीन आता न कि वो सच में जरूरतमन्द थी ।”
“ओह ! तो आप चाहते थे कि वो हाथ में कटोरा लेकर मंगती की तरह गिड़गिड़ाती, आपके जद्दोजलाल का सदका देती, आपकी सुखसमृद्धि के दुआयें मांगती, आपकी ड्योढी पर नाक रगड़ती आपके हुजूर में पेश करती आप उसकी जरूरत पर गम्भीर विचार करते ।”
“भई, वो कोई उसका स्टण्ट भी हो सकता था ।”
“स्टण्ट ?” - आलोका चिल्लाई - “सतीश । यू फोनी । यू हार्टलैस सन ऑफ आप बिच । तुम्हारी किसी पार्टी में शामिल पायल यहां शैम्पेन से नहाने की ख्वाहिश जाहिर करती तो तुम निसंकोच उसकी ख्वाहिश पूरी कर सकते थे, वो आसमान से तारे तोड़कर लाने को कहती तो तुम उसका इन्तजाम कर सकते थे लेकिन हाथ पसारे मदद मांगने आयी पायल को तुम काला पैसा नहीं दे सकते थे । कैसे... कैसे...”
 
बालपाण्डे ने उसका हाथ दबाया और आंखों से खामोश रहने का इशारा किया ।
“इतना पाखण्ड !” - आलोक फिर भी चुप न हुई - “इतनी तौहीन ! इतनी नाकद्री ! इतना गरूर !”
“अब मैं” - बालपाण्डे बोला - “मुंह में रुमाल ठूंस दूंगा ।”
आलोका खामोश हो गयी लेकिन उसने निगाहों से सतीश पर भाले-बर्छियां बरसाना न छोड़ा ।
अमूमन शान्त रहने वाली आलोका का वो रौद्र रुप प्रत्यक्षतः सब को अचम्भे में डाल रहा था ।
“अब” - एकाएक अधिकारी अपनी कनपटी ठकठकाता हुआ बोला - “मेरी खोपड़ी का भी जाला छंट रहा है । मेरे ज्ञानचक्षु भी खुल रहे हैं । हनी” - वो शशिबाला से सम्बोधित हुआ - “मुझे तुम से गिला है ।”
“किसी बात का ?” - शशिबाला हैरानी से बोली ।
“तुमने मुझे असलियत न बतायी ।”
“कौन-सी असलियत न बतायी ?”
“मैं समझता हूं । ये सन अट्ठासी की जून के तीसरे या चौथे हफ्ते की बात है जबकि मैं पायल से देसाई फिल्म्स कम्बाइन के साथ कान्ट्रैक्ट करने की गुहार कर करके हार चुका था और अपने पांच लाख के बोनस को गुडबाई कह भी चुका था । तब एक रोज एकाएक मेरे पास पायल का फोन आया । फोन पर उसने मुझे ये गुड न्यूज दी कि वो देसाई की आफर पर फिर से विचार करने को तैयार थी । मैं बाग बाग हो गया । पांच लाख रुपये का बोनस फिर मुझे अपनी पहुंच में दिखाई देने लगा । मैंने उससे अगले रोज की लंच अप्वायन्टमैंट फिक्स की ।”
“क्यों ?” - राज बोला - “अगले रोज की क्यों ?”
“भई, कान्ट्रैक्ट भी तो तैयार कराना था जिसमें कि टाइम लगता है ।”
“वो कान्ट्रैक्ट करने को तैयार थी ?” - विकी बोला ।
“हां ।”
“लेकिन जाहिर है कि इसलिये नहीं क्योंकि एकाएक वो दिलीप देसाई की फिल्म की हीरोइन बनने को तड़पने लगी थी बल्कि इसलिये क्यों कि पैसा हासिल करने का वो भी एक जरिया था ?”
“जाहिर है लेकिन पहले मेरी पूरी बात सुनिये आप लोग । वो क्या है कि जिस रोज मेरे पास पायल का फोन आया, उसी शाम को अपनी शशिबाला मेरे पास पहुंची । रिमेम्बर बेबी ?”
शशिबाला ने बड़े अनमने भाव से सहमति में सिर हिलाया ।
“और” - अधिकारी बड़े ड्रामेटिक अन्दाज से बोला - “इसने मेरे से दो लाख रुपये उधार मांगे । तब पांच लाख के बोनस की कमाई क्यों कि मेरी आंखों के सामने तैर रही थी इसलिये मैंने बिना कोई हुज्जत किये बिना कोई सवाल किया इसे दो लाख रुपये दे दिये ।”
“कमाल है ।” - विकी बोला - “हीरोइन ने अपने सैकेट्री से उधार मांगा ।”
“चलता है, भाई, चलता है । इसी को कहते हैं कभी गाड़ी नाव पर, कभी नाव गाड़ी पर ।”
“तुम आगे बढो ।” - राज उतावले स्वर में बोला - “फिर क्या हुआ ?”
“फिर जो हुआ, बहुत दिल बैठा देने वाला हुआ ।”
“क्या हुआ ।”
“अगले रोज पायल लंच अप्वायंटमैंट पर पहुंची ही नहीं । लेकिन वो क्यों न आयी, ये इतने सालों बाद आज मेरी समझ में आया है । पायल को तब दो लाख रुपये की जरूरत थी और उसकी वो जरूरत जरूर तब अपनी हीरोइन ने पूरी कर दी थी । शशि बेबी, अब कबूल करो कि तब तुमने मेरे से दो लाख रुपये उधार पायल को देने के लिये मांगे थे । तुम्हारे जरिये - बल्कि यूं कहो कि एक तरह से मेरे जरिये - पायल की जरूरत पहले ही पूरी हो गयी थी इसलिये वो अगले रोज मेरे से मिलने नहीं आयी थी । शशि बेबी, तुमने मुझे धोखा दिया । तुमने मेरा पांच लाख रुपये का बोनस मरवा दिया...”
“ओह, शटअप !” - शशिबाला भुनभुनाई - “तुम्हारी रकम तो लौटाई मैंने !”
“मेरी रकम लौटाई लेकिन तुम्हारे डबल क्रास की वजह से मेरे पांच लाख रुपये तो मारे गये !”
“मैडम इतनी कैसे पसीज गयीं पायल से” - राज बोला - “कि उसे उधार देने के लिये इन्होंने आगे तुमसे उधार मांगा ।”
“पसीजी नहीं होगी, खौफ खा गयी होगी । धमकी में आ गयी होगी ।”
“धमकी ?”
“पायल की । देसाई का कान्ट्रेक्ट साइन कर लेने की ।”
“क्या मतलब ?”
“पायल पैसे के लिये, फरियाद लेकर इसके पास नहीं गयी होगी । इसलिये नहीं गयी होगी क्योंकि शशिबाला के खिलाफ पायल के हाथ में एक तुरुप का पता था जिसे खेलने से पायल ने कतई कोई गुरेज नहीं किया होगा । पायल ने इसके पास जाकर कहा होगा ‘शशि मेरी जान, या तो मुझे दो लाख रुपये दे या फिर मैं देसाई का कान्ट्रेक्ट साइन करती हूं जिसकी वजह से तू देसाई फिल्म्स कम्बाइन से बाहर होगी क्योंकि तू जानती है कि मेरे इनकार की वजह से तुझे चांस मिला है और मेरा इकरार तेरा चांस खत्म कर देगा’ । शशि बेबी, तुम्हें और खौफजदा रखने के लिये ही उसने मुझे फोन किया और कोई बड़ी बात नहीं कि उसने वो फोन तुम्हारे सामने ही किया हो ताकि तुम्हारे बिल्कुल ही हाथ-पांव फूज जाते । तब अपने आपको बर्बाद होने से बचाने के लिये तुमने मेरे से दो लाख रुपये उधार मांगे जो कि तुमने आगे पायल को दिये और यूं उसने देसाई का कान्ट्रैक्ट साइन करने का ख्याल छोड़ा । मैंने तुम्हे वो रकम उधार देकर एक तरह से अपने ही पांव पर कुल्हाड़ी मार ली । क्या हसीन धोखा दिया मुझे मेरी हसीन हीरोइन ने ? शशि बेबी...”
“डोंट शशि मी ।” - शशिबाला भड़की - “डोंट बेबी मी । शट युअर माउथ ।”
“आप लोग एक मिनट जरा मेरी बात सुनिये ।” - राज बोला - “पायल को आप लोग जानते थे, मैं नहीं जानता था इसलिये मेरा आप से सवाल है कि एक धनवान पति की पत्नी अपने पति की मौत के बाद के दो महीनों में ही इतनी मुफलिस, इतनी पैसे ही मोहताज क्योंकर हो गयी कि वो हर किसी के पास मदद की फरियाद लेकर जाने लगी ? हम श्याम नाडकर्णी के सालीसिटर थे इसलिये हम जानते हैं कि उसकी लाश बरामद न होने के वजह से उसकी तमाम चल और अचल सम्पति ट्रस्ट के हवाले हो जाने के बावजूद लाखों रुपया ऐसा था जिस तक तब पायल की पहुंच थी । पन्दरह लाख रुपये की एक रकम ऐसी थी जो कि नाडकर्णी ने अपनी मौत से तीन दिन पहले बैंक से निकाली थी, जो कि पूरी घर में मौजूद थी और जिस पर अपने पति की मौत के बात ट्रस्ट के अस्तित्व में आने से पहले ही पायल काबिज हो चुकी थी । फिर भी ये क्योंकर हुआ कि और दो महीने बाद मदद की फरियाद के साथ वो आप लोगों के पास चक्कर लगा रही थी ?”
“उसके पास पन्दरह लाख रुपये थे ?” - फौजिया मन्त्रमुग्ध स्वर में बोली ।
“ज्यादा भी हो सकते थे । इतने की तो हमारी फर्म को खबर थी ।”
“और अभी देसाई का कान्ट्रैक्ट साइन करके वो और पैसा हासिल कर सकती थी ।”
“मुंह मांगा ।” - अधिकारी बोला - “कान्ट्रेक्ट साइन करने की अगर उसकी ये शर्त होती कि वो एक करोड़ रुपया एडवांस में लेगी तो भी दिलीप देसाई उसे देता ।”
“इसे अतिशयोक्ति भी मान लिया जाये” - विकी बोला - “तो भी ये तो हकीकत है ही कि वो देसाई से कोई मोटी रकम झटक सकती थी ।”
“फिर भी उसने ऐसी कोई कोशिश न की ।” - राज बोला - “पैसे की जरूरतमन्द लड़की ने सहज ही हासिल होता पैसा हासिल करने की कोशिश न की ।”
“पैसा उसे देसाई से ही तो हासिल था । हो सकता है, उसे फिल्मों में काम करने से चिड़ हो । हो सकता है उसे काम ही करने से चिड़ हो । बाज लोग होते हैं ऐसे काहिल और कामचोर कि वो काम के नाम से ही बिदकते हैं ।”
“होते हैं । लेकिन जब काम बिना गति न हो तो बड़े-बड़े को काम करना पड़ता है । यहां पायल के मामले में विरोधाभास ये है कि उसे पैसे की जरूरत थी लेकिन सहज ही हासिल हो सकने वाले पैसे को वो नजरअन्दाज करती रही थी । जैसे वो पैसा कोई उससे छीन लेगा । फिर ऐसा ही उलझे हुए माहौल में वो गायब हो गयी । ऐसी गायब हो गयी कि सात साल किसी को ढूंढे न मिली । किसी से उसने सम्पर्क करने की कोशिश न की । और पैसा उधार मांगने के लिये भी नहीं । उधार लिया हुआ पैसा लौटाने के लिये भी नहीं । उसके बारे में तो ये तक कहना मुहाल था कि सृष्टि में उसका अस्तित्व भी बाकी था या नहीं । सिवाय उस एक मुलाकात के जो तीन साल पहले उसकी रोशन बालपाण्डे से सूरत में हुई थी, और जिसकी कि हमें अब खबर लगी है, वो हुई या न हुई एक जैसी थी । साहबान, इन तमाम बातों का सामूहिक मतलब एक ही हो सकता है । इन तमाम उलझनों का, इस तमाम विसंगतियें का जवाब एक ही हो सकता है ।”
“ब्लैकमेल !” - विकी के मुंह से निकला ।
“हां, ब्लैकमेल । गम्भीर ब्लैकमेल । चमड़ी उधेड़ लेने वाली ब्लैकमेल । पायल के बेवा होने के बाद से ही कोई उसे ब्लैकमेल कर रहा था । उस ब्लैकमेलर की मुंहफट मागें पूरी करते-करते ही दो महीने से पायल पल्ले का पैसा तो खो ही चुकी थी उसे आगे दायें-बायें से उधार भी उठाना पड़ गया था । वो देसाई का सोने की खान जैसा कान्ट्रैक्ट साइन नहीं कर सकती थी, वो कमाई का कोई भी प्रत्यक्ष जरिया कबूल नहीं कर सकती थी क्योंकि वो जानती थी कि जो भी रकम वो यूं पैदा करती, उसका ब्लैकमेलर उससे वो झटक लेता । इन हालात में उसके सामने एक ही रास्ता खुला था जिस पर कि वो आखिरकार चली । वो रास्ता ये था कि वो गायब हो जाती । ऐसा गायब हो जाती कि उसके ब्लैकमेलर को वो ढूंढे न मिलती । यही रास्ता उसने अख्तियार किया और सात साल अख्तियार में रखा । सात साल बाद वो प्रकट हुई । इसलिये प्रकट हुई कि इस वक्फे में वो अपने दिवंगत पति की छोड़ी दौलत की कानूनी वारिस बन चुकी थी । और प्रकट हुए बिना, सामने आये बिना विरसे की ढाई करोड़ रुपये की रकम को क्लेम करना सम्भव नहीं था ।”
सब सन्नाटे में आ गये ।
“तुम्हारा मतलब है” - फिर अधिकारी बोला - “उस ब्लैकमेलर ने पायल का कत्ल किया ? ये तो सोने का अंडा देने वाली मुर्गी हलाल करने जैसी बात हुई । ये तो उसी हाथ को काट खाने वाली बात हुई जो कि आप को सोने का निवाला देता हो । यानी कि जब पायल के पास रुपया लाखों में था, या वो भी नहीं था, तो तब तो ब्लैकमेलर उसके पीछे पड़ा रहा, वो करोड़ों की मालकिन बनने लगी तो ब्लैकमेलर ने उसका कत्ल कर दिया ?”
“अगर” - सतीश बोला - “ब्लैकमेलर वाली कहानी में कोई दम है तो इतना अहमक तो ब्लैकमेलर नहीं हो सकता ।”
“मेरा ख्याल ये है” - राज बोला - “कि पायल को अपने ब्लैकमेलर की शिनाख्त नहीं थी । उसे खबर नहीं थी कि उसे कौन ब्लैकमेल कर रहा था । ऐसा ही चालाक था वो ब्लैकमेलर । लेकिन अब लगता है कि एकाएक वो अपने ब्लैकमेलर को पहचान गयी थी, वो उसका कत्ल करने के इरादे से यहां पहुंची थी लेकिन किन्हीं हालात में बाजी उलटी पड़ गयी थी और जान लेने की जगह वो जान दे बैठी थी । हालात ऐसे बन गये थे कि जान बचाने के लिये ब्लैकमेलर को जान लेनी पड़ी । वो मारता न तो मारा जाता ।”
“दम तो है, भई, तुम्हारी बात में ।” - अधिकारी प्रभावित स्वर में बोला - “ऐसे ही वकील नहीं बन गये हो । बहुत आला दिमाग पाया है तुमने ।”
“लेकिन” - शशिबाला बोली - “ब्लैकमेल की कोई वजह होती है । कोई बुनियाद होती है । चमड़ी उधेड़ गम्भीर ब्लैकमेल की गम्भीर बुनियाद होती है ।”
“बिल्कुल ठीक ।” - राज बोला - “अब सोचिये गम्भीर बुनियाद क्या हो सकती है ?”
“गम्भीर बुनियाद !” - शशिबाला सोचती हुई बोली, फिर एकाएक उसके नेत्र फैले - “ओह, नो ।”
“यस । एकदम सही जवाब सूझा है आप को ।”
“क्या !” - अधिकारी सस्पेंसभरे स्वर में बोला ।
“पायल ने” - राज एक-एक शब्द पर जोर देता हुआ बोला - “अपने पति श्याम नाडकर्णी का कत्ल किया था । और ये बात ब्लैकमेलर को मालूम थी । न‍ सिर्फ मालूम थी, उसके पास पायल की उस करतूत का अकाट्य सुबूत था ।”
“ओह !”
“और वो ब्लैकमेलर आपमें से कोई था । आप में से कोई था जिसने पायल के गायब होने से पहले उसकी पाई-पाई हथिया ली थी । आपमें से कोई था जिसके खौफ से पायल पैसा नहीं कमाना चाहती थी क्योंकि उसकी कमाई भी उससे छिन जाती । आप में से कोई था जिसके जुल्म के साये से पनाह पाने के लिये पायल गायब हुई थी और सात साल...”
“डॉली !” - विकी जोश से बोला - “डॉली ! पायल के पास पैसा खत्म हो गया तो जो उसके जेवर हथियाने लगी ! ऐसे ही जेवरात में से एक जेवर तो ब्रेसलेट था जिसे डॉली ने बेचकर पैसे खरे करने की हिम्मत नहीं की थी क्योंकि उस पर पायल का और उसके हसबैंड का नाम गुदा हुआ था । लेकिन वो कीमती ब्रेसलेट वो फेंक देने को भी तैयार नहीं थी इसलिये उसने उसे अपने जेवरात के डिब्बे में मखमल की लाइनिंग के भीतर छुपाया हुआ था, जहां से कि पुलिस ने उसे बरामद किया था, जिसकी कि अपने पास मौजूदगी का डॉली के पास कोई जवाब नहीं था और जिसकी वजह से अपना खेल खत्म होने पर पहुंचा जानकर उसे भाग खड़ा होना पड़ा था ।”
“ओह !” - बालपाण्डे बोला - “तो वो ब्रेसलेट ब्लैकमेल से हासिल माल था ।”
“डॉली !” - सतीश के मुंह से निकला - “ब्लैकमेलर !”
“और हत्यारी !” - ज्योति बोली ।
“उसने पायल को मार डाला !” - फौजिया बोली ।
“और आयशा को भी ।” - आलोका बोली - “हाउसकीपर को भी ।”
“अब आगे पता नहीं किसी बारी आती !” - शशिबाला बोली - “अच्छा ही हुआ वो फरार हो गयी । हम बच गये । मेरी तो ये सोच के रूह कांपती है कि हम लोग एक खतरनाक कातिल की सोहबत में थे ।”
राज ने नोट किया कि वहां मौजूद लोगों में सिर्फ अधिकारी ही था जिसने डॉली की बाबत कोई राय प्रकट करने की कोशिश नहीं की थी ।
खुद वो तो था ही ।
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