hotaks444
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सुबह जब आँख खुली तो मैं और इनायत मिलकर शौकत से बात करने के तरीके को तलाश करना चाहते थे.
बहुत सोचा लेकिन कुछ समझ मे नही आया, जो इनायत को अच्छा लगता वो मुझे पसंद ना होता और जो मुझे सही लगता वो इनायत के गले के नीचे नही उतरता. आख़िरकार हम एक प्लान पर पहुँच
गये जिससे लाठी भी ना टूटे और साँप भी मर जाये. मेरा ये ख़याल इनायत को पसंद आया कि मैं शौकत से कह दूं कि मैं उसके पास जाने से इस लिए मना कर रही हूँ क्यूंकी मुझे अब
उसमे इंटेरेस्ट नही रहा और अगर मैं उससे शादी भी कर लूँ तब जो मुझे नही बल्कि मेरे जिस्म को ही पा सकेगा. अगर शौकत फिर भी इसरार करे तो मैं उसके सामने एक शर्त रखना चाहती थी जिससे
वो चाह कर भी कभी क़ुबूल ना करता. मैं ये कहना चाहती थी कि वो मुझे अपनी बर्दाश्त की ताक़त का सुबूत दे. इसके लिए इनायत ने ये तरीका निकाला था कि वो मुझे और इनायत को सेक्स करते हुए देखे
और खामोशी से और कुछ भी ना कहे. अगर वो मेरी ज़िंदगी मे कोई बंदिशें ना लगाए तो मैं उसके बारे में यक़ीनन सोच सकती थी, ये सब मैं और इनायत ये सोच कर कहना चाहते थे कि शौकत
कभी इन सब के लिए राज़ी नहीं होगा और खुद ही हमारे रास्ते से हट जाएगा. मैं शौकत को ये सब इस तरहा बताना चाहती थी कि उसको लगे की इनायत इन सब चीज़ो से अंजान है वरना खेल बिगड़ सकता
था और मैं शौकत से भी ये वादा लेना चाहती थी कि शौकत ये किसी से भी ना कहे वरना मैं उसके पास कभी नहीं आने वाली. फिर एक अनजान नंबर से फोन आ रहा था. क्यूंकी मेरे पास भी
मेरा एक पर्सनल फोन नंबर था इसलिए मैने ही वो फोन रिसीव किया. मैं थोड़ा चौंक सी गयी कि क्या कहूँ, कुछ देरी तक तो मैं कुछ बोल ही ना सकी, ये फोन शौकत का था ,उस वक़्त मुझे
इनायत के हौसले की ज़रूरत थी लेकिन वो उस वक़्त नहा रहा था. इसलिए मैने ही अपनी आवाज़ को सख़्त किया और मज़बूती से बोल पड़ी
मैं:"हां बोलो, क्या कहना चाहते हो"
शौकत:"मैं ये सुन रहा हूँ कि तुम मेरे पास वापस नही आना चाहती हो"
मैं:"आपने सही सुना है"
शौकत:"ऐसा क्यूँ कर रही हो तुम मेरे साथ, उस खबीस ने तुम्हे बरगला तो नही दिया कहीं"
मैं:"वो मेरे शौहर हैं, मुझे ये बर्दाश्त नही कि कोई इनके लिए ऐसे लफ्ज़ इस्तेमाल करे"
शौकत:"क्या तुम्हे ये बर्दास्त होगा कि तुम्हारे इस नये शौहर के मा बाप तकलीफ़ मे रहें, क्या तुम ये भूल गयी कि तुम्हारा निकाह उसके साथ बस एक समझौता था ताकि तुम मेरे पास लौट आओ"
मैं:"मैं सब जानती हूँ शौकत, पर तुम अब ज़िद ना करो,मेरे जज़्बातो से और ना खेलो"
शौकत:"वाह, ये तो मुझे कहना चाहिए था"
मैं:"ये खेल तुमने ही शुरू किया था"
अचानक शौकत की तरफ से थोड़ी खामोशी आ गयी, लेकिन कुछ देर बाद वो फिर बोला लेकिन अब उसका लहज़ा बदला हुआ था.
शौकत:"मैं जानता हूँ, और उसी की तो मैं कीमत चुका रहा हूँ, अब जब तुम मेरे पास वापस आओगी तो किसी और के जिस्म को छूकर, मेरे लिए क्या ये सज़ा कम नही है"
मैं:"तुम्हारे लिए सिर्फ़ ये एक सज़ा है, मुझसे और मेरे घर वालो से पूछो कि हम ने बिना किसी जुर्म के इतनी बड़ी सज़ा भूगती है, तुम्हारा क्या है, तुम मर्द हो, दिल चाहा तो सॉरी कहा, दिल चला तो
फेंक दिया, कोई तुमसे नही पूछता होगा कि किस लिए तुमने मुझे अलग किया, लेकिन सब मुझे ही कुसूरवार ठह_राते रहे. मैने हर दिन तुमसे शदीद नफ़रत ही की है,और हर पल मेरी नफ़रत बढ़ती ही
गयी है"
शौकत:"तो फिर ये वापसी के लिए हां क्यूँ कही"
मैं:"ये उन बूढ़े मजबूर मा बाप की खराब होती तबीयत की मजबूरी की वजह से हुआ था, मैं क़ुरबान होने के लिए तैय्यार थी ताकि वो लोग चैन से जी सके"
शौकत:"तो अब फ़ैसला बदल क्यूँ दिया"
मैं:"मुझे महसूस हुआ कि मैं भी इंसान हूँ,क्यूँ मैं खुद को किसी और के जुर्म की सज़ा दूं, क्यूँ ना मैं भी आज़ाद हवा मे फैली खुसबू को महसूस करूँ, क्यूँ मैं किसी के सुधरने के
इंतेज़ार मे अपनी ज़िंदगी नर्क बना लूँ, तुम पर कौन यकीन करना चाहेगा, क्या पता शराब के तूफान मे मेरी बची कुची उम्मीदें फिर से तबाह हो जायें."
शौकत:"मैं बदल चुका हूँ,मैने अब शराब छोड़ दी है"
मैं:"मैने अब क़ुर्बानी की राह छोड़ दी है"
शौकत:"मेरे पास लौट आओ"
मैं:"किसी ने आज तक कबरिस्तान उजाड़ कर अपना घर नहीं बसाया"
शौकत:"क्या मतलब"
मैं:"मैं अगर तुम्हारे पास लौट भी आऊ तो तुम्हे सिर्फ़ मेरा जिस्म मिल पाएगा"
शौकत:"मुझे यकीन है कि मेरी मोहब्बत से तुम्हारे सारे ज़ख़्म भर जायेंगे"
मैं:"तुम पर मुझे भरोसा नही रहा,ना जाने कब तुम्हारी बर्दाश्त ख़तम हो जाए"
शौकत:"मैने बर्दाश्त का एक नया इम्तेहान तब पास किया था जब तुमको इनायत की बीवी बनते देखा था"
मैं:"तो तुम जानते होगे कि अब हम मिया बीवी हैं और हमारे बीच मे अच्छे जिस्मानी ताल्लुक़ात भी हैं"
शौकत:"क्या कहना चाहती हो तुम सॉफ सॉफ कहो"
मैं:"तुमसे ये बर्दास्त होगा कि मैं किसी और के जिस्म की प्यास बुझा रही हूँ"
शौकत:"मजबूरी है"
मैं:"अच्छा, क्या तुम देख सकते हो मुझे किसी और की बाहो मे नगा लिपटे हुए"
शौकत:"बस करो तुम"
मैं:"इस ख़याल से ही तुम्हारा खून उफान मारता है, कल जब मैं तुम्हारी बीवी बन जाउन्गि तो फिर इनायत को मेरे साथ देखकर क्या तुम्हारा यही रविय्या रहेगा"
शौकत:"मैं तुम्हे दूर लेकर चला जाउन्गा"
मैं:"तब तुम्हारे बूढ़े मा बाप का क्या होगा"
शौकत: "मैं डोर से भी उनका ख़याल रख सकता हूँ"
मैं:"शौकत मियाँ, तुम अभी भी बच्चो की तरहा ही ज़िद कर रहे हो, उस बच्चे की तरहा जिससे उसकी कॅंडी किसी ने छीन ली हो, तुम कभी भी अपने ऊपर काबू नही कर सकते हो"
शौकत:"तुम मुझ पर एक बार फिर यकीन करके तो देखो"
मैं:"कोई सुबूत तो दो यकीन करने का"
शौकत:"तुम्हे क्या सुबूत चाहिए"
मैं:"मुझे इनायत के साथ सेक्स करते हुए देख सकते हो, बोलो, अगर हां तो मैं तुमपर यकीन के बारे मे सोच सकती हूँ"
शौअकत:"आरा, अपनी हद मे रहो"
ये बात शौकत के गुस्से को उफान पर ले आई और उसने फोन काट दिया.
इनायत सब सुन रहा था क्यूंकी मैने फोन स्पीकर पर डाला था, फोन कॉल एंड होते हुए ही इनायत मुझसे लिपट गया और मुझसे काफ़ी देर तक इसी तरहा लिपटा रहा. हम को ऐसा लग रहा था कि हम जंग
जीत चुके हैं, ये नहीं मालूम था कि ये तो जंग का आगाज़ था.
बहुत सोचा लेकिन कुछ समझ मे नही आया, जो इनायत को अच्छा लगता वो मुझे पसंद ना होता और जो मुझे सही लगता वो इनायत के गले के नीचे नही उतरता. आख़िरकार हम एक प्लान पर पहुँच
गये जिससे लाठी भी ना टूटे और साँप भी मर जाये. मेरा ये ख़याल इनायत को पसंद आया कि मैं शौकत से कह दूं कि मैं उसके पास जाने से इस लिए मना कर रही हूँ क्यूंकी मुझे अब
उसमे इंटेरेस्ट नही रहा और अगर मैं उससे शादी भी कर लूँ तब जो मुझे नही बल्कि मेरे जिस्म को ही पा सकेगा. अगर शौकत फिर भी इसरार करे तो मैं उसके सामने एक शर्त रखना चाहती थी जिससे
वो चाह कर भी कभी क़ुबूल ना करता. मैं ये कहना चाहती थी कि वो मुझे अपनी बर्दाश्त की ताक़त का सुबूत दे. इसके लिए इनायत ने ये तरीका निकाला था कि वो मुझे और इनायत को सेक्स करते हुए देखे
और खामोशी से और कुछ भी ना कहे. अगर वो मेरी ज़िंदगी मे कोई बंदिशें ना लगाए तो मैं उसके बारे में यक़ीनन सोच सकती थी, ये सब मैं और इनायत ये सोच कर कहना चाहते थे कि शौकत
कभी इन सब के लिए राज़ी नहीं होगा और खुद ही हमारे रास्ते से हट जाएगा. मैं शौकत को ये सब इस तरहा बताना चाहती थी कि उसको लगे की इनायत इन सब चीज़ो से अंजान है वरना खेल बिगड़ सकता
था और मैं शौकत से भी ये वादा लेना चाहती थी कि शौकत ये किसी से भी ना कहे वरना मैं उसके पास कभी नहीं आने वाली. फिर एक अनजान नंबर से फोन आ रहा था. क्यूंकी मेरे पास भी
मेरा एक पर्सनल फोन नंबर था इसलिए मैने ही वो फोन रिसीव किया. मैं थोड़ा चौंक सी गयी कि क्या कहूँ, कुछ देरी तक तो मैं कुछ बोल ही ना सकी, ये फोन शौकत का था ,उस वक़्त मुझे
इनायत के हौसले की ज़रूरत थी लेकिन वो उस वक़्त नहा रहा था. इसलिए मैने ही अपनी आवाज़ को सख़्त किया और मज़बूती से बोल पड़ी
मैं:"हां बोलो, क्या कहना चाहते हो"
शौकत:"मैं ये सुन रहा हूँ कि तुम मेरे पास वापस नही आना चाहती हो"
मैं:"आपने सही सुना है"
शौकत:"ऐसा क्यूँ कर रही हो तुम मेरे साथ, उस खबीस ने तुम्हे बरगला तो नही दिया कहीं"
मैं:"वो मेरे शौहर हैं, मुझे ये बर्दाश्त नही कि कोई इनके लिए ऐसे लफ्ज़ इस्तेमाल करे"
शौकत:"क्या तुम्हे ये बर्दास्त होगा कि तुम्हारे इस नये शौहर के मा बाप तकलीफ़ मे रहें, क्या तुम ये भूल गयी कि तुम्हारा निकाह उसके साथ बस एक समझौता था ताकि तुम मेरे पास लौट आओ"
मैं:"मैं सब जानती हूँ शौकत, पर तुम अब ज़िद ना करो,मेरे जज़्बातो से और ना खेलो"
शौकत:"वाह, ये तो मुझे कहना चाहिए था"
मैं:"ये खेल तुमने ही शुरू किया था"
अचानक शौकत की तरफ से थोड़ी खामोशी आ गयी, लेकिन कुछ देर बाद वो फिर बोला लेकिन अब उसका लहज़ा बदला हुआ था.
शौकत:"मैं जानता हूँ, और उसी की तो मैं कीमत चुका रहा हूँ, अब जब तुम मेरे पास वापस आओगी तो किसी और के जिस्म को छूकर, मेरे लिए क्या ये सज़ा कम नही है"
मैं:"तुम्हारे लिए सिर्फ़ ये एक सज़ा है, मुझसे और मेरे घर वालो से पूछो कि हम ने बिना किसी जुर्म के इतनी बड़ी सज़ा भूगती है, तुम्हारा क्या है, तुम मर्द हो, दिल चाहा तो सॉरी कहा, दिल चला तो
फेंक दिया, कोई तुमसे नही पूछता होगा कि किस लिए तुमने मुझे अलग किया, लेकिन सब मुझे ही कुसूरवार ठह_राते रहे. मैने हर दिन तुमसे शदीद नफ़रत ही की है,और हर पल मेरी नफ़रत बढ़ती ही
गयी है"
शौकत:"तो फिर ये वापसी के लिए हां क्यूँ कही"
मैं:"ये उन बूढ़े मजबूर मा बाप की खराब होती तबीयत की मजबूरी की वजह से हुआ था, मैं क़ुरबान होने के लिए तैय्यार थी ताकि वो लोग चैन से जी सके"
शौकत:"तो अब फ़ैसला बदल क्यूँ दिया"
मैं:"मुझे महसूस हुआ कि मैं भी इंसान हूँ,क्यूँ मैं खुद को किसी और के जुर्म की सज़ा दूं, क्यूँ ना मैं भी आज़ाद हवा मे फैली खुसबू को महसूस करूँ, क्यूँ मैं किसी के सुधरने के
इंतेज़ार मे अपनी ज़िंदगी नर्क बना लूँ, तुम पर कौन यकीन करना चाहेगा, क्या पता शराब के तूफान मे मेरी बची कुची उम्मीदें फिर से तबाह हो जायें."
शौकत:"मैं बदल चुका हूँ,मैने अब शराब छोड़ दी है"
मैं:"मैने अब क़ुर्बानी की राह छोड़ दी है"
शौकत:"मेरे पास लौट आओ"
मैं:"किसी ने आज तक कबरिस्तान उजाड़ कर अपना घर नहीं बसाया"
शौकत:"क्या मतलब"
मैं:"मैं अगर तुम्हारे पास लौट भी आऊ तो तुम्हे सिर्फ़ मेरा जिस्म मिल पाएगा"
शौकत:"मुझे यकीन है कि मेरी मोहब्बत से तुम्हारे सारे ज़ख़्म भर जायेंगे"
मैं:"तुम पर मुझे भरोसा नही रहा,ना जाने कब तुम्हारी बर्दाश्त ख़तम हो जाए"
शौकत:"मैने बर्दाश्त का एक नया इम्तेहान तब पास किया था जब तुमको इनायत की बीवी बनते देखा था"
मैं:"तो तुम जानते होगे कि अब हम मिया बीवी हैं और हमारे बीच मे अच्छे जिस्मानी ताल्लुक़ात भी हैं"
शौकत:"क्या कहना चाहती हो तुम सॉफ सॉफ कहो"
मैं:"तुमसे ये बर्दास्त होगा कि मैं किसी और के जिस्म की प्यास बुझा रही हूँ"
शौकत:"मजबूरी है"
मैं:"अच्छा, क्या तुम देख सकते हो मुझे किसी और की बाहो मे नगा लिपटे हुए"
शौकत:"बस करो तुम"
मैं:"इस ख़याल से ही तुम्हारा खून उफान मारता है, कल जब मैं तुम्हारी बीवी बन जाउन्गि तो फिर इनायत को मेरे साथ देखकर क्या तुम्हारा यही रविय्या रहेगा"
शौकत:"मैं तुम्हे दूर लेकर चला जाउन्गा"
मैं:"तब तुम्हारे बूढ़े मा बाप का क्या होगा"
शौकत: "मैं डोर से भी उनका ख़याल रख सकता हूँ"
मैं:"शौकत मियाँ, तुम अभी भी बच्चो की तरहा ही ज़िद कर रहे हो, उस बच्चे की तरहा जिससे उसकी कॅंडी किसी ने छीन ली हो, तुम कभी भी अपने ऊपर काबू नही कर सकते हो"
शौकत:"तुम मुझ पर एक बार फिर यकीन करके तो देखो"
मैं:"कोई सुबूत तो दो यकीन करने का"
शौकत:"तुम्हे क्या सुबूत चाहिए"
मैं:"मुझे इनायत के साथ सेक्स करते हुए देख सकते हो, बोलो, अगर हां तो मैं तुमपर यकीन के बारे मे सोच सकती हूँ"
शौअकत:"आरा, अपनी हद मे रहो"
ये बात शौकत के गुस्से को उफान पर ले आई और उसने फोन काट दिया.
इनायत सब सुन रहा था क्यूंकी मैने फोन स्पीकर पर डाला था, फोन कॉल एंड होते हुए ही इनायत मुझसे लिपट गया और मुझसे काफ़ी देर तक इसी तरहा लिपटा रहा. हम को ऐसा लग रहा था कि हम जंग
जीत चुके हैं, ये नहीं मालूम था कि ये तो जंग का आगाज़ था.