Mastram Kahani यकीन करना मुश्किल है - Page 2 - SexBaba
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Mastram Kahani यकीन करना मुश्किल है

ये बात अम्मा ने बड़ी तल्खी से कही थी और खलू को ये थोड़ी नागवार गुज़री थी लेकिन वो फिर चुप ही हो गये.
बाबा: "तो आप चाहते हैं कि हम अपनी बच्ची को फिर वहीं जहन्नुम मे धकेल दें ताकि वो फिर वही अज़ाब

झेले, दुनिया का क्या है वो तो बातें बनाने के लिए ही होती है, हम अपनी बच्ची को दोबारा क्या वही फेंक

आयें, ना जाने कितनी तकलीफो से गुज़री है बेचारी"
ये कहते कहते बाबा ने अपने सीना पकड़ किया और वो चारपाई से ज़मीन मे धदाम से गिर पड़े. अम्मा की

चीख निकल पड़ी कि हाए जल्दी से कोई डॉक्टर को ले आओ. बाबा को शायद दिल का दौरा पड़ा था. पास के मोहल्ले

से मेरे छोटा भाई डॉक्टर को ले आया.


डॉक्टर ने काफ़ी देर तक जाँच की, ये डॉक्टर हमारा फॅमिली डॉक्टर था बाकी के मोहल्ले वॉलो की तरहा. ये एक एमबीबीएस

था जो हार्ट स्पेशलिस्ट था. शहेर के अपने क्लिनिक से हफ्ते मे दो बार यहाँ आया करता था. कमाई इतनी नही होती थी

लेकिन इस डॉक्टर को लोगो की दुआ लेने का बड़ा शौक था.
डॉक्टर ने कहा "इनको मैं पहली बार भी कह चुका था कि टेन्षन मत लो, लेकिन ये मानते ही नही, ये इनका दूसरा

और आख़िरी दौरा था इसके बाद आख़िरी होगा, आप लोग इनका ध्यान रखा कीजिए और इनको टेन्षन की बात से दूर

रखें और चेक अप के लिए इनको मेरे क्लिनिक मे ले आए"
ना जाने कैसे मेरी किस्मत मे फिर काले काले बदल छा गये थे. मैने बहुत सोचा और कुछ दिनो बाद बाबा

से कहने लगी कि मैं शौकत के निकाह मे फिरसे जाना चाहती हूँ. बाबा मेरी तरफ देखते रहे लेकिन कुछ बोले

नही.अम्मा ने मुझे आँखो से इशारा किया कि मैं इस बात को ना छेड़ू लेकिन मैने ठान लिया था कि मैं एक बार

फिर क़ुरबान हो जाउन्गि और अपने घर के लोगो को और दुखी नही रखूँगी. मैने दोबारा बाबा से कहा "बाबा, इंसान

को एक मौका और मिलना चाहिए, शौकर बुरा इंसान नही है लेकिन उससे बड़ी ग़लती हो गयी, अब तो मैने सुना है

कि वो शराब छोड़ चुका है, वो शर्मिंदा है और हमेशा मेरी याद मे रोता ही रहता है, मुझे लगता है कि

मुझे और आपको उसको मौका देना ही चाहिए आप जाकर कुछ करें और ज़्यादा टेन्षन ना ले, आप और मैं सब

ऊपरवाले के बंदे है और उसके दिए हुए से भाग नही सकते"
पता नही मैं वो सब बातें कहे जा रही थी जो मेरे दिल मे ना थी, ये ऐसा ही था कि कोई बकरी का बच्चा अपनी

मा से कह रहा हो कि उसको कसाई के पास भेज दे ताकि उसकी मा की जान बच जाए. मैं सोच रही थी कि किस्मत

को मैं पूरी आज़ादी दे दूं मुझे बर्बाद करने के लिए.

मेरे बाबा पर ये बात किसी दवाई की तरहा असर कर गई और कुछ ही दिनो मे वो चलने फिरने लगे. मेरी मा

जानती थी कि मैं घरवालो की खातिर एक क़ुर्बानी देने जा रही हूँ,क्यूंकी हमारे समाज मे सिर्फ़ लड़की ही क़ुर्बानी देती

है. लड़को से ये उम्मीद नही होती.
खाला फिर अपना काला साया लेकर हमारे घर आई और मुझे समझाने लगी कि मुझे पहले शौकत के छोटे भाई

इनायत से ब्याह होगा और फिर मैं उससे अलग कर दी जाउन्गि यहाँ तक कि मैं फिर शौकत से निकाह के काबिल हो

जाउ. मेरी समझ मे सॉफ सॉफ नही आया लेकिन मैने कोई सवाल करना मुनासिब ना समझा.
मेरी उलझन को देख कर मेरी खाला ज़ाद बहेन मुझे कोने मे ले गयी और मुझसे कहने लगी कि "पहले तुम्हे

इनायत से ब्याह दिया जाएगा, वो तुम्हारे साथ जिस्मानी ताल्लुक कायम करेगा और फिर तुम्हे निकाह से अलग कर देगा

और फिर तुम अपनी इद्दत ख़तम करने के बाद शौकत से ब्याह दी जाओगी"
मैं सोचने लगी कि ये कितनी बड़ी सज़ा है उस इंसान के लिए जो ग़लती से अपनी बीवी को गुस्से मे छोड़ दे और वापिस

पाने के लिए उसे इतना ज़लील होना पड़े. मुझे लगा कि इससे बड़ी क्या सज़ा हो सकती है शौकत के लिए.

खैर वो दिन भी किसी बिन बुलाए मेहमान की तरहा आ गया जब बिना शोर शराबे के मुझे इनायत की दुल्हन बना

दिया गया. मेरे सास ससुर ने एक पास के शहेर मे मेरे और इनायत के रहने का इंतेज़ाम कर दिया था. ये सब

इसलिए कि शौकत के सामने मैं किसी और की बीवी बन कर ना रहू.
 
शाम को ही मैं अपना सामान लिए ट्रेन मे बैठ चुकी थी. इनायत मेरे बगल मे था. इनायत शौकत से थोड़ा

लंबा था लेकिन थोड़ा पतला था. ये ज़्यादा हसीन था और हमेशा अपने फ़ोन से ही चिपका रहता था. जिसकी वजह

से इसको मेरी सास से हमेशा डाँट खानी पड़ती. मुझसे ये ज़्यादा मुखातिब न हो सका था क्यूंकी मैं कम

बोलना ही पसंद करती थी.
मैं एक नये घर मे जा पहुँची थी, घर पर फ़ोन कर के बता दिया था कि मैं यहाँ आ गयी हूँ. इनायत

मेरे लिए होटल से खाना ले आया. मैने थोड़ा ही खाया और मैं थक हार कर सो गयी. ये एक अपार्टमेंट था .

दो बेडरूम थे और एक हॉल और एक ड्रॉयिंग रूम था. इसमे दो बाथरूम और टाय्लेट थे. एक बाल्कनी थी जो बिल्डिंग के

पिछले हिस्से मे थी. बाल्कनी से दूसरी बिल्डिंग्स नज़र आती थी और साथ मे नीचे का पार्क नज़र आता था. ये

अपार्टमेंट मेरे आने से पहले ही सज़ा दिया गया था. घर मे पर्दे, कालीन,रेफ्रिजरेटर और किचिन मे बर्तन

सब चीज़े थी. मुझे बाद मे मालूम पड़ा कि ये घर शौकत ने लिया था और वो मुझे यहाँ लाना चाहता

था कि इससे पहले ही मेरी किस्मत फूट गयी.
इनायत दूसरे बेडरूम मे सोता था. इस बिल्डिंग मे सिर्फ़ 4 फ्लॅट ही थे और ये फ्लॅट फर्स्ट फ्लोर पर था. सामने वाले फ्लॅट

मे हमेशा लॉक ही रहता था. ये शहेर के बाहर ही लगा हुआ था. यहा से शहेर सुरू होता था. कुछ दिन इसी

तरहा खामोशी से बीत रहे थे. हम नये मिया बीवी सिर्फ़ उतनी ही बात करते थे जितनी कि ज़रूरत हो. इनायत सुबह ही

कहीं चला जाता और दोपहर को घर मे वापिस आ जाता. घर की ज़रूरत की चीज़े वो ला देता और फिर अगले दिन

वही शेड्यूल रहता.
मैं दिन भर टीवी देखती या शाम को बाल्कनी मे बैठ कर चिड़ियो और बच्चो को पार्क मे देखती. ये वक़्त घर के

वक़्त से थोड़ा अच्छा था. यहा मैं खुद मे आकर कहीं गुम हो गयी थी.
अब मुझे यहाँ आए लगभग 2 हफ्ते गुज़र चुके थे. एक शाम को मेरी खाला ज़ाद बहेन का फ़ोन आया.

इधर उधर की बात करने के बाद वो मुझसे पूछ पड़ी कि क्या हुआ है अभी तक. मैने उसकी बात को काटना

चाहा, मुझे इस बात पर कुछ नही कहना था इसलिए मैं अंजान ही बनती रही कि अचानक मेरी बहेन बिफर पड़ी

और लगभग झल्ला के पूंछ बैठी "मैं पूंछ रही हूँ कि उसने तेरी बुर मे अपना हथियार पेला कि नही?" उसके

इस अचानक सवाल और उसके अंदाज़ के लिए मैं तैयार ना थी इसलिए मैने भी झल्ला कर फोन काट दिया.
रात को मैं बहुत अपसेट थी. इनायत भी कुछ परेशान लग रहा था. उसने कुछ खाया नही और इस तरहा हमारे

बीच कुछ बातें हुई.
मैं: इनायत तुमने कुछ खाया क्यूँ नही, क्या बात है.
इनायत: वो भाभी,,,,
मैं: मैं तुम्हारी बीवी हूँ अब समझे
इनायत: "सॉरी मैं भूल गया था"
मैं" क्या फ़र्क पड़ता है तुम्हारे भाई भी भूल गये थे"
इनायत: "मैं भी वो सब भूलना चाहता हूँ, मैं भी इन सब के लिए तैयार ना था लेकिन अम्मी की बीमारी ने

मुझे ये करने के लिए मजबूर कर दिया"
मैं : "क्यूँ क्या हुआ उनको?"
इनायत: "ज़रा ज़रा सी बात पर बेहोश होकर गिर पड़ती हैं"
मैं: "एक इंसान ने ना जाने कितनो को बीमार कर दिया"
इनायत: "वो खुद भी तो बेकार से हो गये हैं, खैर आप जानती हैं कि हम यहाँ किस लिए आए हैं, हम को अपना

मकसद पूरा करना चाहिए"
मैं:"मैं जानती हूँ कि मुझे तुम्हारे सामने नंगा होना है ताकि तुम मुझे भोग सको"
ये बात मेरे मूह से निकल तो गयी फिर मुझे एहसास हुआ कि मैने क्या कह दिया है. मेरी बात से इनायत कुछ

झल्ला सा गया लेकिन फिर ठंडा होकर बोला
इनायत: "अगर आप उनसे अभी भी नफ़रत करती हैं तो इस शादी के लिए राज़ी क्यूँ हुई?"
मैं: "उसी वजह से जिस वजह से तुम हुए, मेरे बाबा को हार्ट अटॅक आ चुका है और डॉक्टर ने ,,,,,ह्म्‍म्म" और

ये कहकर मैं रोने लगी. इनायत ने फिर कोई सवाल ना किया और मुझे अपने कंधों का सहारा दिया बस इतना कहा

उसने कि आप भी खाना खा लो फिर कल हम चिड़िया घर घूमने जायेंगे.

मैं थोड़ा देर से उठी, नहा धो कर नाश्ता बनाया और इनायत को आवाज़ दी, वो तैय्यार बैठा था. उसके चेहरे

पर मुस्कान थी.
नाश्ता कर के हम चिड़िया घर घूमने निकल पड़े.ये भी अजब इत्तेफ़ाक़ था कि वो लोग जिनको किस्मत ने तमाशा

बना दिया था आज परिंदो और हैवानो का तमाशा देखने आए थे. आज सुबह से ही बादल छाए हुए थे,

धूप ना नामो निशान ना था. मौसम बड़ा अच्छा मालूम पड़ता था.
आज छुट्टी का दिन नही था इसलिए कुछ कम लोग ही नज़र आते थे. चिड़िया घर मे एक छोटी सी ट्रेन थी जो जगह जगह

जाकर रुकती थी और फिर चल पड़ती. ये मेरे पहले मौका था जब मैं शादी के बाद घूम रही थी. अच्छा लग

रहा था.
काफ़ी वक़्त बीत गया था, हम ने चिड़ियाघर मे ही खाना खाया. इनायत बीच बीच मे अपने बचपन की कुछ

मीठी बातें बताता जिसपर मुझे हसी आ जाती.
उसका शक़सियत मुझे हमेशा अच्छी लगती. वो बड़ा समझदार सा इंसान था.
अब हम वापिस जाना चाहते थे कि अचानक बूँदा बाँदी शुरू हो गयी और तेज़ हवा चलने लगी. हम एक पेड़

के नीचे आकर खड़े हो गये. इनायत ने आज मुझे कई बार छुआ था, उसका हाथ मेरे कंधो पर या मेरी

कमर पर ही रहा. मुझे भी बुरा नही लगा, कुछ भी हो आख़िर वो मेरा शौहर ही था.
हम यहाँ कुछ मिनिट ही रुके थे कि अचानक ज़ोरदार ज़मझम बारिश शुरू हो गयी. मैने आज एक साड़ी पहनी

थी जो एक दम ट्रंपारेंट थी. अब मैं और इनायत भीगने लगे थे. इनायत ने बाहर खड़े एक ऑटो रिक्क्षा को

आवाज़ दी, हम रिक्शा मे बैठ कर घर की तरफ निकल पड़े. लेकिन बारिश इतना तेज़ थी कि मैं पूरी तरहा भीग

सी गयी थी. मेरा ब्लाउस सफेद रंग का था जो थोड़ा बारीक था लेकिन बारिश मे भीगने की वजह से बिल्कुल आर पार

दिख रहा था. आज मैं फँस गयी थी क्यूंकी आज ब्रा भी नही पहेना था मैने.
 
इनायत की नज़रें अब मेरे सीने पर जा टिकी थी और मैं अपने दोनो हाथो से उनसे छिपा रही थी. जैसी ही घर पर

पहुँचे मैं भाग कर बिल्डिंग मे घुस गयी.
दरवाज़ा खोला और अपने बेडरूम मे भाग कर पहुँची, सोच रही थी कि जल्दी से कपड़े चेंज कर लूँ ताकि

सर्दी ना लगे और मैं चाइ बना का इनायत को भी दे दूं. मैने जल्दी से अपना ब्लाउस उतारा और पेटिकोट भी

उतार दिया. अब मैं बिल्कुल नंगी थी, ठंडी हवा मेरे जिस्म मे कपकपि पैदा कर रही थी. इतने मे पीछे से

इनायत की आवाज़ आई कि "आरा . पैसे हैं क्या ?" जब मुझे अपनी ग़लती का एहसास हुआ तब तक मैं उसके सामने

बिल्कुल नंगी खड़ी थी, मुझे ख़याल आया तो मैने अपने दोनो हाथो से अपने सीना को छिपा लिया लेकिन ऐसा करने

से मेरी नीचे की नंगी जगह नुमाया हो गयी, फिर मैने अपने नीचे हाथ बढ़ाया तो सीना नज़र आने

लगा. मुझे ऐसी हालत मे देखकर इनायत भी हवास खो बैठा था कि उसने मेरी तरफ चादर फेक दी जिससे मैने

खुद को ढका तब जाकर मेरे होश ठिकाने आए और मुझे उसके सवाल का ख्याल आया वो मुझसे खुल्ला

पैसे माँगने आया था, शायद ऑटो वाले को देने थे. मैने अब दरवाज़ा बंद किया.
लौटकर जब इनायत आया तो मैं चाइ बना रही थी. मैने कुछ पकोडे ताल लिए थे और अब मैं बाल्कनी मे एक कुर्सी

बार बैठी कुद्रत का हसीन नज़ारा देख रही थी. इनायत मेरे पीछे ही बैठा था अचानक ज़ोर से बिजली काड्की और

मैं अपने ख़यालों से झटके से बाहर आई लेकिन मैं इतना चौक गयी थी कि मैं कुर्सी से लुढ़क सी गयी थी.

इनायत मे मुझे रोकना चाहा लेकिन वो खुद नीचे जा गिरा और मैं उसकी गोद मे जा गिरी, मुझे कुछ सख़्त

चीज़ के एहसास अपने चूतडो पर हुआ. जब मुझे अंदाज़ा हुआ तो मैं शरमा सी गयी. इनायत ने अपनी बाँहे

मेरी कमर मे डाल दी थीं. मैं उठना चाहती थी लेकिन इनायत ने मुझे रोक लिया. अब वो मुझे धीरे धीरे

सहला रहा था. उसके गरम हाथ मेरी कमर मे गुदगुदी सी कर रहे थे. मैने इनायत से अलग होकर उतना

चाहा तो मैं उसपर ही गिर पड़ी. अब उसने मेरी पीठ पकड़ कर मेरे होंठो पर होंठ रख दिए.मैं अब अजब

हालत मे थी, लेकिन अब खुद को अलग नही कर पा रही थी.

इनायत अब मेरे होंटो को चूसने लगा तो मैं भी उसका साथ देने लगी. उसके जिस्म की गर्मी पाकर अच्छा लग रहा

था. इतने मे इनायत ने मुझे उठने को कहा , मैं समझ ना सकी कि क्या हो गया है,इनायत उठा और उसने मुझे

अपनी बाहों मे उठा लिया. मैं कहने लगी कि इनायत मुझे नीचे उतारो लेकिन वो कहाँ सुनने वाला था. उसने

मुझे बिस्तर पर लिटा दिया अब वह मेरे उपर आकर मेरे होंटो को दोबारा चूसने लगा. अब उसके हाथ मेरे

सीने को सहला रहे थे. मैने सिर्फ़ मॅक्सी पहनी थी.इस वजह से मेरे सीने से ब्रा आज़ाद थी. जैसी ही उसके हाथो

ने मेरे सीने को छुआ मैं काँप गयी लेकिन मुझे बड़ा अच्छा लग रहा था.इनायत के हाथ कमाल कर रहे

थे.उसने मेरी मॅक्सी के सारे बटन खोल दिए थे और अब उसके हाथ मेरे नंगे सीने को सहला रहे थे, मेरे

मूह से आआआआआआहह,सीईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई, ओह की आवाज़ आ रही थी. इनायत ने मेरी मॅक्सी

के उपर से ही मेरी टाँगो के दरमिया हाथ लेजाना चाहा तो मैने अपने एक हाथ से उसे रोकना चाहा लेकिन

मेरे हाथ को उसने अलग कर दिया. अब एक बार दोबारा उसने मुझे उठने को कहा तो मैं अंदाज़ा नही लगा पाई

कि वो चाहता क्या है लेकिन मैं बिना सवाल किए खड़ी हो गयी. वो नीचे झुका और मुझे हाथ उपर करने को

कहा. मैने हाथ उपर ही किए थे कि मुझे अंदाज़ा हो गया कि वो क्या करना चाहता है.लेकिन देर हो चुकी थी और

वो एक झटके मे मेरी मॅक्सी मेरी जिस्म से उतार चुका था. जैसी ही उसने उपर से नीचे मेरे जिस्म को देख उसकी

आँखो मे नशा का झलक उठा. मैने अपने आप को अपने दोनो हाथो से ढकना चाहा लेकिन वो मेरे हाथ

पकड़ चुका था.
"आरा , क्या चीज़ हो तुम, तुम्हारी चूचिया तो कमाल हैं" ये कहते ही उसने मुझे फिर बिस्तर पर लिटा दिया. वो

मेरी राइट तरफ था और उसने मेरे लेफ्ट चूची को अपने मूह मे लिया और अपने लेफ्ट हॅंड से मेरी राइट साइड की चुची

को हाथ से दबाने लगा. मेरे मूह से फिर आआआआआहह,उूुुउउइईईईईईई माआआआ की आवाज़ ही निकल

सकी. अब उसकी रफ़्तार तेज़ हो रही थी, मैं भी अपने हाथ से उसका सर अपने सीने पर दबा रही थी. मेरे जिस्म से

कोई फव्वारा आज़ाद होना चाहता था. वो फुव्वारा मेरी टाँगो के दरमियाँ से बाहर निकल रहा था. मेरे जिस्म के

अकड़न सी पैदा हुई थी और मैं ढीली पड़ने लगी थी लेकिन इनायत अब मेरे सीने से अलग ही हुआ था कि उसने उठा

कर अपने सारे कपड़े उतार फेंके. अब वो भी मैदान मे नंगा खूद पड़ा. उसका हथियार देख कर तो मेरे

होश उड़ गये. मैने सोचा ना था कि किसी आदमी का इतना बड़ा भी ही सकता है, ये लघ्भग 7 इंच का मोटा सा

मूसल रहा होगा. उसने मेरे चुतडो के नीचे तकिया रखा ही था कि मैं बोल उठी "नहीं इनायत ऐसा ना करो,

तुम्हारा तो सांड़ की तरहा मोटा है, तुम्हारे भाई का इतना बड़ा नही है, मुझे डर लगता है,प्लीज़ कॉंडम तो

पहेन लो".
 
मुझे अपनी बेवकूफी का एहसास हुआ तो मैं शर्मिंदा सी हो गयी.इनायत उठा और वापस आया तो उसने कॉंडम

पहना हुआ था लेकिन उसका प्लान तो कुछ और ही था. उसने अपने होंठ मेरी बुर पर सटा दिए. जैसे ही मुझे उसके

होंटो ने छुआ ही था कि मैने उसे रोक लिया. "इनायत ऐसा ना करो ये गंदी जगह है" इसके जवाब मे इनायत ने कहा

कि "प्यार मे सब चलता है" और ये कहकर वो फिर मेरी चूत को चाटने लगा. मैं मज़े की इंतेहा पर पहुँच

चुकी थी, किसी ने मेरे साथ पहली बार ये किया था. मैं अब इनायत के सर को अपने दोनो पैरो से जाकड़ चुकी थी और

इसमे डूबी जा रही थी. इनायत मेरी चूत के हर कोने को चाट रहा था. मुझे लगा कि मेरी चूत से कोई सैलाब

आने वाले है और मेरी जिस्म मे अजीब सी झूर झूरी सी हुई और मैं बेशखता ही आवाज़ें निकाले जा रही थी

उफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफहह इनायत आआआआआआआहूऊऊऊः बस करो

सीईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई
फिर एक दम से मैने अपने जिस्म को ढीला छोड़ दिया. मैं अब इनायत के सर को सहला रही थी. वो उठा और उसने

अपने होंठ फिर से मेरे होंठो पर रखने चाहे तो मैने कहा "चीईईई इनायत गंदे हो तुम" लेकिन वो माना

नही और ज़बरदस्ती उसने अपने होंठ मेरे उपर चिपका दिए और फिर वो चूसने लगा.
मुझे पहले तो बड़ी घिन आई लेकिन फिर मुझे अपनी चूत का स्वाद बड़ा अच्छा लगने लगा. ये नमकीन सा था.

अब इनायत फिर नीचे आया और मेरी टाँगो को उठाने लगा जिससे मेरी चूत उभर कर उसके सामने आई मैं

फिर हिचक रही थी लेकिन वो बोल उठा "घबराओ मत मेरी जान धीरे से करूँगा"
उसने जैसे ही अपने लंड की टोपी मेरी चूत मे दाखिल की मुझे शौकत की याद आ गयी. लेकिन फिर मैने अपना

ध्यान इनायत की तरफ दिया. वो धीरे धीरे आगे पीछे हो रहा था, मुझे अब मज़ा आने लगा था, मैं

उसकी पीठ को सहला रही थी. अब उसने एक झटके मे अपना पूरा का पूरा लॉडा मेरी चूत मे धकेल दिया मैं

चीख उठी लेकिन उसने पहले से ही मेरे मूह पर अपना हाथ रख दिया था. अब वो पूरी तेज़ी से मुझे चोद

रहा रहा था. मैं भी अपने चूतड़ उचका उचका कर उसका साथ से रही थी. आआआआआआःह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह

उूुुुुुुुुुुुुुउउफफफफफफफफफफफफफ्फ़, इनायत और ज़ोर से और ज़ोर से.
यकायक वो भी छूट गया और निढाल होकर मेरे उपर गिर गया. हम इसी तरहा लेटे रहे और सो गये जब आँख

खुली को रात ले 9 बज रहे थे. मैने खुद को इनायत से अलग किया और किचन मे खाना बनाने के लिए. आज बहुत

दिनो बाद ऐसा लग रहा था कि मैं ज़िंदा हूँ और खुश भी हो सकती हूँ. इनायत ने मुझे फिर से एक औरत

बना दिया था. मैने इनायत को जगाया लेकिन मैं उससे आँखें नही मिला पा रही थी. हम ने साथ खाना खाया

और फिर मैं बर्तन धोने के लिए किचिन मे आ गयी. कुछ देर बाद मैने पीछे मूड कर

देखा तो इनायत को अपने पीछे नंगा खड़ा देखा, शर्म से मेरा चेहरा लाल हो गया था. इनायत ने मेरी मॅक्सी

को मेरे चुतडो से उपर उठाया और मेरी कमर को थोड़ा पीछे खींचा जिससे मेरे चुतड फैल गये. मैं

कहने वाली थी कि अभी नही लेकिन इससे पहली कि मेरी आवाज़ मे हलक से बाहर आती, इनायत का लंबा तना हुआ

हथियार मेरी चूत मे घुस चुका था. ये थोड़ा अजीब लग रहा था लेकिन बड़ा अच्छा मालूम हो रहा था. मैने

भी अपनी आँखें बंद कर ली और मज़ा लेने लगी, अब वो लगातार झटके दिए जा रहा था और मैं अपने समंदर

मे डूबी जा रही थी. कुछ देर बाद उसने मुझे पलटा और मेरे होंटो को बेतहाशा चूमने लगा मैं भी

उसका साथ दिए जा रही थी. अब उसने मेरी मॅक्सी को थोड़ा और उपर किया और मुझे किचेन के काउंटर पर बिठा दिया

और मेरी टाँगो के बीच आकर उसने मेरी टाँगें अपने कंधों पर रख ली और फिर वो मेरी चूत मे दाखिल

हो गया. ये एक अजीब सी पोज़िशन थी मेरे लिए और मैं फिर भी नशे की हालत मे थी, इसलिए बस मुझे अपनी मस्ती

का ही ख़याल था.
इसी तरहा कुछ वक़्त बाद वो भी झाड़ गया. हम एक दूसरे को चूम कर अलग हुए और फिर सो गये. मेरी आँख

खुली तो देखा की सुबह के 10 बजे थे. मैं फ्रेश हुई और इनायत के लिए नाश्ता बनाया और उसे जगाया. इनायत

आज कहीं नही गया और फिर उसके प्यार करने का सिलसिला सुरू हो गया.
उसने मुझे घोड़ी बना कर, चेर पर बिठा कर नये नये तरीक़ो से प्यार किया. अब वो मेरे चुतड के सुराख

को भी चाटने लगा था. वो जो कुछ भी करता मुझे सब अच्छा लगता. अब वो बाहर से कुछ सीडीज़ लेकर आता और

मैं उसके साथ ना मानने के बावजूद वो सब देखने लगी. मुझे हैरानी हुई कि ऐसी भी फिल्म्स होती हैं. अब मेरे

कपड़े पहेनना का अंदाज़ भी बदल गया था, अब मैं जीन्स टी शर्ट्स पहनने लगी थी. इनायत ने मुझे भी अपनी

तरहा बना दिया था. अब मैं पहले की तरहा खोमोश नही बल्कि खुश मिजाज़ बन गयी थी. मुझमे सेक्स से मुतल्लिक

जो सबसे बड़ा बदलाव आया था वो ये था कि मैं अब इनायत के लंड को चूसने लगी थी. मुझे अब सेक्स के बारे

मे बात करना अच्छा लगता था. मैं इनायत से शौकत के सेक्स प्रिफरेन्सस को भी डिसकस करने लगी थी. मुझे

अब दोनो भाइयो को कंपेर करना अच्छा लगने लगा था. मैं अब खुल कर इनायत से अपनी फॅंटेसी डिसकस करती.

वो भी अपनी फॅंटेसी को मुझसे डिसकस करता. उसने मुझे ये भी बताया कि शादी से पहले वो कई लड़कियो को चख

चुका था. उसने मुझे बताया कि वो अपने से बड़ी औरतो की तरफ अट्रॅक्ट होता रहा है.
 
इनायत के साथ मैं एक अलग ही इंसान बन गयी थी. अब मुझे जिंदगी मे मज़ा आने लगा था. इनायत के साथ दिन रात घूमना फिरना, हसी मज़ाक और ना जाने क्या क्या. इनायत शौहर कम लेकिन एक दोस्त

ज़्यादा लगता था. उसके साथ मुझे आए हुए लगभग 2 महीने होने को आए थे. लेकिन जब से मैने अपने जिस्म को उसके हवाले किया था तब से लेकर आज तक का वक़्त जैसे पंख लगा कर उड़ चुका था.
इनायत ने मुझसे बड़ा कॉन्फिडेन्स भर दिया था. अब मैं अकेले ब्यूटी पार्लर जा सकती थी, अकेले ही बाज़ार से समान खरीद सकती थी, किसी से बात करने के लिए मुझे अब हिचक नही होती थी. मुझ मे जो

खुद ऐत्माद की कमी थी वो भी अब धीरे धीरे ख़तम सी हो चुकी थी.मेरे कपड़े पहेन्ने का ढंग भी बदल गया था और जो सबसे ज़्यादा बदला था वो मेरे सेक्स के लिए नज़रिया. अब ये रात तो

अंधेरे मे शरमाने की चीज़ नहीं रहा था बल्कि दिन के उजाले में भी मज़ा करने का नया तार्रेका बना चुका था. इनायत ने मुझे बताया था कि जिस तारह शौहर को इस चीज़ की ज़रूरत पेश आती है

ठीक उसी तरहा बीवी की भी ख्वाइश और मर्ज़ी ज़रूरी है. अब कोई वक़र नहीं था सेक्स का,सब मन किया मूड बन गया. शौकत ने मेरे जिस्म के हर हिस्से को प्यार किया था. लेकिन इन सब चीज़ो से ज़्यादा

ज़रूरी चीज़ ये थी कि उसने मुझे एक हौसले मंद इंसान बनाया था. उसी ने मुझे आगे पढ़ने या अपने कदमो पर खड़े होने के लिए उकसाया था. वो हर वक़्त इस बात का ध्यान रखता की मेरी मर्ज़ी

और मूड कैसा है. मुझे ब्यूटी पार्लर वाला आइडिया अच्छा लगा जिसके लिए मुझे देल्ही मे ट्रैनिंग के लिया जाना था. एक एक लंबा कोर्स नहीं था और खर्चा भी अफोर्डबल था. वैसे भी हमारे यहाँ

सिर्फ़ एक ही ब्यूटी पार्लर था जो हमेशा भरा रहता था. अब हमारा कस्बा बड़ा होता जा रहा था. इसमे अब नये कॉलेजस, नये हॉस्पिटल्स,नयी सड़क जो हाइवे को जोड़ती थी और नयी दुकानो की भरमार

थी. कस्बे का डेवेलपमेंट इन कुछ सालो मे बहुत हुआ था. ये एक छोटे से शहेर की सकल ले चुका था. अब हर दूसरी चीज़ के लिए नज़दीकी शहेर नही जाना पड़ता था.
खैर, एक दिन जैसे हमारी इन खुशियो को किसी की नज़र लग गयी. इनायत काफ़ी परेशान दिख रहा था. वो मुझसे पुराने दिनो की तरहा सिर्फ़ उतनी ही बात कर रहा था जितनी ज़रूरत थी. मैने उससे पूछना चाहा

तो वो टाल गया. शाम को ही मेरी खाला ज़ाद बहेन रीना का फोन आया.
रीना: "अस्सलाम क्या हाल हैं मेडम के"
मैं:"वालेकुम सलाम हाल तो बढ़िया हैं, तुम सूनाओ क्या चल रहा है "
रीना: "अर्रे वाह मेरी दुखी बहना अब लगता है खुश है, क्यूँ"
मैं: "क्यूँ, खुश रहने के लिए मौसम का इंतेज़ार करना पड़ता है क्या?"
रीना: "नहीं, ऐसा तो नहीं है, खैर वो सब जाने दो ये बताओ की कहाँ पहुँची तुम्हारी कहानी?"
मैं:"कैसी कहानी"
रीना: "बनो मत, बताओ यार क्या हुआ, कुछ हुआ की नही, या अभी भी पहले आप, पहले आप पर गाड़ी रुकी हुई है?हाआााआ......"
मैं:"रीना ये कोई मज़ाक नही है, समझी तुम"
रीना: "सॉरी बाबा लेकिन क्या करूँ तुम कभी फोन नही करती हो, कुछ बताती भी नही हो"
मैं: "तो सुनो मैं अब बहुत खुश हूँ और मेरा शौकत के पास जाने का कोई इरादा नहीं है, समझी की नही"
 
मेरी ये बात सुन कर तो जैसे रीना के होश ही उड़ गये, कुछ देर तक वो कुछ बोली नहीं लेकिन फिर जैसे उसमे कोई भूत आ गया हो, वो कड़क अंदाज़ मे बोली
रीना: "पागल लड़की, तुम्हारा दिमाग़ खराब है क्या, खून ख़राबा कर्वाओ गी क्या, उस पिक्निक पार्टी इनायत के साथ रहकर पग्ला तो नयी गयी हो क्या"
मैं: "पागल मैं नही हूँ, पागल तो वो लोग हैं जो हम औरतो हो मज़ाक समझते हैं, कभी इस हाथ मे तो कभी उस हाथ मे"
रीना: "अर्रे मेडम, इसके लिए आप खुद राज़ी हुई थी, आप जिनके साथ आप अपने सपना सज़ा रही है वो इनायत साहब का पास्ट शायद आपको पता नहीं है. ज़िंदगी कोई पिक्निक पार्टी नही है जो इतनी हल्की हो"
मैं: "मुझे लेक्चर मत दो, हां मैं राज़ी थी, तो क्या करती अपने बाप और मा के दिल का मरीज बना के रहती, इनायत कोई छोटा बच्चा नही है और ना ही मैं कोई दूध पीती बच्ची हूँ"
रीना: "आप बिल्कुल के छोटी सी बच्ची हैं जो सिर्फ़ लॉलीपोप के ज़रिए बेहलाई जा सकती हैं, इनायत साहब करते क्या हैं, क्या इनकम है साहब की, आपके सपने के महल का खर्चा कौन उठाए गा?"
मैं: "वो अपने और मेरे खर्चे के लिए काफ़ी हैं, हम मिल कर कमाए गे, मैं एक ब्यूटी पार्लर चलाना चाहती हूँ और वो अभी बच्चो को ट्यूशन पढ़ा रहे हैं बाद मे वो अपनी खुद की एक

कोचिंग क्लास खोलना चाहता है"
रीना: "वाह, ख्याली पुलाव अच्छा है, और शौकत क्या करेगा? तुम्हारे लिए वो इतना सह चुका है, क्या वो ये सब होने देगा, पागल ना बनो, ठंडे दिमाग़ से सोचो "
मैं उसे मज़ीद कुछ बात नहीं करना चाहती थी, इसलिए मैं फोन काट दिया. मुहे एहसास नही था कि रीना के साथ हुई बात एक तूफान ले आएगी. अगली सुबह मेरी मा ने फोन कर दिया.
अम्मा: "मेरी बच्ची मैं क्या सुन रही हूँ, ये सब क्या है बेटा?"
मैं: "आप ने जो सुना है वो सही है, क्यूँ मैं फिर उस शराबी के निकाह मे जाउ?"
अम्मा: "लेकिन मेरी बच्ची तुमने ही हो ये फ़ैसला किया था?"
मैं :"हां, लेकिन मैने ये फ़ैसला बदल दिया"
अम्मा: "ऐसा मत करो बेटा, गजब हो जाएगा"
मैं:"कोई गजब नही होगा, मैं खुश हूँ और आप कह रही हैं मैं फिर वही मज़लूमो वाली ज़िंदगी बसर करूँ जिसमे कोई सुकून और चैन ना हो, कोई इज़्ज़त ना हो, बस किसी के सुधरने का झूठा

का यकीन हो, क्या आपने इस परेशान हाल बेटी के उस खौफनाक दिनो को महसूस भी किया है"
अम्मा: "मेरी बच्ची, इस समाज मे हमेशा औरतें से ही क़ुर्बानी की तवक्को की जाती है, तुम क्या कोई इंक़लाब लाना चाहती हो"
मैं:"नही अम्मा, मैं तो बस अपने इस छोटे से संसार मे खुश हूँ और वापस नाउम्मीदि के अंधेरो मे नही भटकना चाहती, आप ज़्यादा इसरार ना करें, क़ानूनी और शार_ईए लहाज़ से मैं बिल्कुल

ठीक हूँ, कोई मुझपर उंगली नही उठा सकता"
अम्मा: "अब मैं क्या कहूँ, मैं फिर एक दफ़ा तेरे बाबा से बात करके तुझे फोन करती हूँ, लेकिन मेरी बच्ची अपने फ़ैसले पर फिर से गौर कर, ठीक है, चल अपना ख़याल रख"
 
शाम को मेरी खाला ने फोन किया लेकिन मैं टस से मस ना हुई. सब लोग मुझे मना कर हार गये. इनायत ने इस मसले पर मुझसे कुछ ना कहा था लेकिन वो भी एक रात मुझसे पूछ बैठा
इनायत:"तुम क्या चाहती हो आरा"
मैं:"मैं जो चाहती हूँ वो तुम अच्छी तरहा जानते हो लेकिन तुम क्या चाहते हो"
इनायत:"मुझे समझ मे नही आ रहा"
मैं" इसमे समझने वाली बात क्या है, मुझे यकीन नही हो रहा कि तुम ऐसा कह रहे हो"
इनायत: "शौकत इस बात को कभी क़ुबूल नही करेगा, मैने उससे वादा किया था, अब मैं ना जाने क्या उससे और घर वालो से क्या कहूँगा"
मैं: "शौकत ने जो मेरे साथ किया वो मुझे क़ुबूल नही था, अब जो तुम इस तरहा की बात कर रहे हो वो मुझे क़ुबूल नही है,तुमने मुझे इतने सपने दिखाए, एक नया इंसान बनाया अब तुम भागना

चाहते हो मुझे इस दो राहे पर खड़े करके, तुमसे वो तुम्हारा भाई ही ठीक था जिससे मैं कोई बड़ी उम्मीद नही करती थी, मेरे बारे मे भी सोचो, अपने बारे मे भी सोचो"
और ये कहकर मैं फूट फूट कर रोने लगी,मुझे रोता देखकर इनायत पसीज गया और उसने मुझे अपनी बाहों मे ले लिया और फिर हम दोनो इसी तरहा काफ़ी टाइम तक खामोश रहे फिर अचानक वो बोला
"आरा, अब मुझे सिर्फ़ हम दोनो का ही सोचना है, शौकत ने तुम्हे अपनी ग़लतियो से खोया,मैने तुम्हे किस्मत से पाया है लेकिन मैं तुम्हे खोना नही चाहता, चाहे वादा मैने जो किया था "
इनायत के बस इतना ही कहने से मुझे बड़ा सुकून मिला.

उधर मे घर मे भी एक कोहराम मचा था, मेरी मा,मेरा बाबा और मेरे भाई मे. मेरी मा मेरे खिलाफ थी लेकिन मेरे बाबा और मेरा भाई मेरे साथ थे. इसका पता मुझे कई महीने बाद चला जब

मुझे रीना ने इसके बारे मे बताया लेकिन इससे बड़ा कोहराम मेरे ससुराल मे था.
मेरी सास जो मुझसे खुश रहा करती थी अचानक ही मेरी दुश्मन बन बैठी थी और मेरे ससुर ने खामोशी अख्तियार करली थी.एक रोज़ मेरी सास और इनायत मे फोन पर बड़ी बहस चल रही थी, ये इतनी

सख़्त और गर्म बहस थी कि इनायत अपनी आवाज़ की इंतेहा पर था, वो गुस्से से काँप रहा था. बात चीत के ख़तम हो जाने के बाद भी वो काफ़ी देर तक काँप रहा था. मैं भी थोड़ा डर सी गयी थी.
मुझे आने वाले ख़तरे का कोई अंदाज़ा ना था, मुझे इस बात का ख़याल ना था कि आगे क्या हो सकता है. सुबह हुई कोई लगातार घंटी बजाए जा रहा था, हम मिया बीवी नाश्ता कर के फारिघ् ही हुए थे.
इनायत ने जाकर दरवाज़ा खोला और मेरी सास अंदर आई, उनके साथ मेरी ननद साना भी थी. मेरे अंदर जैसे अचानक डर ने घर लिया हो, उनको देखती ही मेरा चेहरा सफेद पड़ गया. इनायत भी कुछ

परेशान से हो गये. मैने अंदर ही अंदर ये दुआ की ये तूफान मेरे ख्वाबो के महल को कहीं उड़ा ना ले जाए. मुझमे अब तिनका तिनका जमा करके नया घोसला बनाने की ताक़त नही थी. मैं सोफे पर ही

बैठ गयी.
मेरी सास ने इनायत को बाहर जाने को कहा. इनायत ने उन्हे अनसुना कर दिया लेकिन फिर मेरी सास गरज कर बोली तो वो मेरी तरफ देख कर बोला. "आरा, घबराना नही, मैं तुम्हारे साथ हूँ". फिर वो

बाहर चला गया. मेरी साँसें तेज़ हो चुकी थी. मैं घबराई हुई थी. कुछ देर तक मेरी सास और मेरी ननद मुझे घूर कर देखते रहे और फिर मेरी सास अपना लहज़ा तब्दील कर के बोली.

सास :"मुझे मालूम था कि इनायत की ही करतूत होगी ये और वो ही तुम्हे बरगला रहा है"
मेरी ननद साना: "हां भाभी, हम को तो अपने कानो पर यकीन ही नही हुआ जब हम ने ये सुना"
मैं: "ये मेरा फ़ैसला है, मैं कोई बच्ची नही हूँ और ना ही इनायत कोई छोटा बच्चा है"
सास: "ये क्या कह रही हो, होश मे तो हो, हमारे साथ धोखा करना चाहती हो"
मैं:"धोका को आपके बेटे शौकत ने मेरे साथ किया था,और कुछ देर के लिए मैं भी खुद से धोका ही कर रही थी वापस शौकत के पास जाने का सोच कर"
साना: "आपका दिमाग़ ठीक है, या आपको इनायत भाई ने कुछ पीला दिया है जो आप नशे मे बात कर रही हैं"
सास: "देखो आरा, क्यूँ भाई भाई मे लड़ाई करवा कर मेरा बसा हुया घर उजाड़ना चाहती हो, जो ख्वाब तुमने देखा है वो सिर्फ़ आँखो का धोका है, ऐसे ख्वाब आँख खुतले ही टूट जाया करते हैं"
मैं:"जो हक़ीक़त के तूफ़ानो से गुज़रा करते हैं वो फूल, कलियो और गुलज़ारो की बात पर कम ही यकीन किया करते हैं"
सास: "तुम्हे एहसास भी नही है कि तुम्हारी वजह से एक तूफान आएगा जो हमारा सब तबाह कर देगा, कई ज़िंदगिया तुम्हारे फ़ैसले पर टिकी हैं"
मैं: "औरत से ही क़ुर्बानी की तवक्को करने वाले समाज का मैं अब हिस्सा नही बन सकती, मेरी ज़िंदगी का फ़ैसला मैं खुद करूँगी उसके लिए मुझे किसी का सहारा नही चाहिए"
सास: "एक पल के लिए शौकत का भी सोचो, क्या वो ये बर्दास्त कर पाएगा"
मैं:"मैं क्यूँ उनके बारे मे सोचु, जब वो खुद अपने बारे मे नही सोच सकते थे,आप मुझसे ऐसे शख़्श के बारे मे गौर करने को कह रही हैं जो खुद एक बर्बादी के अलावा कुछ नहीं है"
सास: "देखो मुझे कुछ नही सुनना, तुम वही करोगी जो हम कहेंगे, मुझे सिर्फ़ एक मिनिट लगेगा तुम्हे ख्वाबो से जगाने में"
इस बात का मैने कोई जवाब ना दिया. लेकिन मैं खुद हैरान थी कि मुझमे इतनी हिम्मत कहाँ से आई. मेरी सास और ननद मेरी तरफ देखते रहे और बिना कुछ कहे बाहर चले गये.काफ़ी देर तक मैं

यही सोचती रही कि मैं ये क्या कह चुकी हूँ. जब इनायत वापस आया तो उसके चेहरे पर ऐसा अंदाज़ था कि जैसे कुछ हुआ ही नही हो. उसके चेहरे को देख कर मुझे थोड़ी हिम्मत आ गयी.

अगले दिन मेरे बाबा का फोन आया, उस वक़्त इनायत मेरे सामने बैठा टीवी देख रहा था, मैने उसे बताया कि बाबा का फोन है तो उसने कहा कि घबराओ नही, सुकून से बात करो.
मैने फोन उठा लिया
बाबा: "अस्सलाम वालेकुम बेटी, कैसी हो"
मैं:"अच्छी हूँ बाबा आप कैसे हो"
बाबा: "सब ठीक है, तुम सूनाओ क्या हाल हैं. बस तुम तो जानती हो कि तुम्हारी सास कैसी हैं, कल रात को वो यहाँ आई थी, हंगामा करने के लिए, मैने जवाब दे दिया कि हम अपनी बेटी के फ़ैसले की इज़्ज़त

करते हैं, तुम घबराओ नही, सब ठीक हो जाएगा"
मैं:"क्या कहूँ बाबा, वो जानती हैं आपकी तबीयत के बारे मे, फिर भी उनका ऐसा रवैयय्या है, यकीन नही होता"
बाबा: "क्या करें वो भी, दोनो बेटो को चाहती हैं, बस मा की आँखो से देख रही हैं, मैं भी तो एक बाप हूँ कैसे अपनी बेटी को दोबारा वहीं धकेल दूं जहाँ से वो उभर कर आई है"
मैं:"बाबा मैं आपको परेशान नही करना चाहती थी"
बाबा:"मैं इतना भी कमज़ोर नही हूँ कि ज़रा सी बात पर परेशान हो जाउ, बस उस कम्बख़्त शौकत के बारे मे थोड़ा बेचैनी है"
मैं:"क्यूँ क्या हुआ बाबा, अब वो क्या चाहता है"
बाबा:"वही तुम्हे वापस पाना चाहता है, लेकिन मैने कह दिया जब वो थोड़ी देर पहले आया था कि वो तुम्हे अब भूल जाए"
मैं:"बाबा आप परेशान ना हो, मैं खुद उससे बात करूँगी"
बाबा:"तुम उससे बात नही करना, मैं नही चाहता कि वो कोई मुश्किल खड़ी करे"
मैं:"मैं उससे फोन पर ही बात करूँगी, आप परेशान ना हो, मैं कोई मुसीबत नही खड़ी करूँगी, ठीक है आप अपना ख्याल रखें"
ये कह कर मैने फोन काट दिया.
 
मेरी ये बात सुनके की मैं शौकत से बात करना चाह रही हूँ. इनायत के चेहरे का रंग फीका सा पड़ गया. बाबा का फोन आने से पहले वो सुकून मे दिख रहा था लेकिन अब कहीं गुम हो गया

था. हम इस वक़्त ड्रॉयिंग रूम और बेडरूम के बीच के हॉल मे बैठे थे, यहाँ से ही बाल्कनी थी जिसके पास कुर्सी पर मैं बैठी थी और मेरी ही पास सोफे पर इनायत था. मैने उसके उड़े हुए रंग

को देखा तो मुझे उसे छेड़ने की सूझी तो मैने उसके उस वक़्त के अंदाज़ की नकल करना चाही जब उसकी अम्मी और बहेन के सामने उसने मुझे कहा था कि "घबराना मत मैं तुम्हारे साथ हूँ"
मुझे ऐसा करके देख कर वो थोड़ा झेंप सा गया लेकिन फिर थोड़ा फ़िकरमंद होकर बोला
इनायत: "तुमने कह तो दिया कि तुम शौकत से बात करोगी लेकिन क्या करोगी तुम "
मैने उसकी तरफ बड़े इस सेक्सी स्टाइल मे अपना गाउन/मॅक्सी को अपनी कमर तक उठा लिया और उसकी तरफ शरारत भरे अंदाज़ मे अपनी चूत की तरफ इशारा करते हुए कहा "मैं शौकत से कहूँगी कि अब तुम इसके

काबिल नही रहे, इसपर अब तुम्हारे भाई का हक़ है, अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हे अपनी इस्तेमाल की हुई पैंटी दे सकती हूँ, यादो के लिए"
और मैं खिल खिला कर हंस पड़ी, मेरी बात से इनायत के चेहरे पर जैसे कोई असर नही पड़ा लेकिन वो मेक्शी मे चूत के दर्शन से थोड़ा एग्ज़ाइटेड ज़रूर हुया था फिर भी वो थोड़ा सम्भल कर बोला

इनायत: "मैं सीरीयस हूँ, कुछ कहो गी या नही "
मैं:"अर्रे कह तो दिया मैने और क्या कहूँ"
इनायत:"क्या कह दिया तुमने?"
मैं:"यही की शौकत से मैं कहूँगी कि मैं अब उसके पास नही जाना चाहती हूँ और अब वो चाहे तो मेरी यादो के सहारे जी सकता है"
इनायत:"तुमको लगता है कि वो मान जाएगा और तुमसे कहेगा कि, ओ.के थॅंक्स फॉर कॉलिंग, सी यू लेटर"
मैं:"नहीं वो एक बार मे नही मानने वाला"
ये कहकर मैने मूड चेंज करने के लिया इनायत के सामने आकर एक झटके से अपना गाउन/मॅक्सी उतार फेंक दी और उसके पैरो के बीचे मे आकर मैने उसके पॅंट की ज़िप खोली और उसके अंडरवेर के

नीचे से उसका थोडा आकड़ा हुआ सा लंड बाहर निकाला और उसको चूसने लगी. धीरे धीरे अब वो सख़्त हो गया,जब वो पूरी तरहा कड़क हुआ तो मैने उठ कर उसकी पॅंट और अंडरवेर उतार दी और उसकी

गोद मे जा बैठी,उसने अपने हाथो से मेरी दोनो टाँगो को अपनी टाँगो के बाहर किया और अपने लंड को मेरी चूत मे अड्जस्ट किया. अब मैं धीरे धीरे उसकी गोद मे उछल उछल कर उसके कड़क

लंड का मज़ा ले रही थी. इनायत शायद कुछ इस बात को ज़्यादा डिसकस करना चाहता था.
इनायत:"मैं तो ये सोच रहा था कि मैं और तुम किसी अंजान जगह चल पड़ते हैं और कभी वापस ना आए"
इनायत मेरे उछलने और वापद उसके लंड पर आने की वजह से थोड़ा सा हाँफ रहा था जैसे कोई आदमी ट्रेडमिल पर चलते हुए बात करता है.
मैं:"तुम और मैं क्यूँ न अपने अज़ीज़ रिश्तेदारो से दूर कहीं चले जायें और
और किस जुर्म में चले जायें, कुसूर हमारा नही है, किसी के कोई ग़लत कदम से हम डर डर कर तो नही जी सकते"
इनायत को मेरी ये बात पसंद आई और वो थोड़ा मुस्कुराया और फिर बोला
इनायत:"सब्बास मेरी जान, तुम तो बड़ी कॉन्फिडेंट हो गयी हो,अच्छा लगा ये बात सुनकर"
मैं:"और नही तो क्या, साला इसके लंड से उसके लंड और फिर उसके लंड से इसके लंड पर झूलो, मैं कोई बदरिया हूँ जो अलग अलग पेड़ का केला खाती फिरू ज़िंदगी भर"
ये बात सुनकर वो खिल खिला हर हंस पड़ा, मुझे भी अपनी बात पर हँसी आ गयी.इतनी देर से उछाल रही थी कि मेरी चूत मे झूर झूरी सी होने लगी और मैं उसके लंड को गहराई मे लेजाकार चारो तरफ

हिलाने लगी और फिर निढाल होकर उससे चिपक गयी,इनायत के लंड मे अभी भी वही सख्ती थी, शायद वो चुदाई के इस खेल मे नही बल्कि कहीं बातो मे उलझा हुआ था.मैने उसका मूड ठीक करने के लिए
उठकर अपनी चूत को उसके मूह पर सटा दिया और चाटने का इशारा किया, वो धीरे धीरे हर कोने को चाट रहा था, उसके मूह पर मेरी चूत का सफेद गाढ़ा पानी लगा हुआ था, फिर मैं उसके

होंटो को चूसना सुरू कर दिया और उसमे मेरे बूब्स को दबाना शुरू कर दिया, अपनी ही चूत की मलाई मुझे अब बड़ी अच्छी लगती थी. लेकिन अब मुझे फिर से थोड़ी मस्ती आने लगी थी तो मैं पास पड़ी

कुर्सी को पकड़ कर घोड़ी बन गयी और उसको अपनी तरफ आने का इशारा किया, वो सोफे से उठ कर मेरी करीब आया और मेरे चुतडो को पीछे से थोड़ा सा हटा कर अपने केले को मेरी सुरंग के अंदर

धकेल दिया. मुझे ख़याल आया कि बाल्कनी का दरवाज़ा खुला है और बाहर थोड़ा अंधेरा हो चुका है और ठंडी ठंडी हवा आ रही है लेकिन मैने इसकी कोई परवाह ना की, इनायत ने अब धीरे धीरे

झटके लगाना सुरू कर दिया था. मेरे मूह से अब सीईईईईईईईईईईई अहह उफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफ्फ़ की आवाज़ सॉफ दूर जाती सुनाई देती थी.मैने इनायत को थोड़ा सा छेड़ने की कोशिश की
मैं:"साला तुम्हारा लंड मेरी चूत मे इस तरहा फिट होता है जैसे किसी ग्लब्स मे हाथ फिट होता है, अगर मुझे तुम्हारा लंड ना मिलता तो मैं सोचती कि सेक्स के खेल मे कोई मज़ा ही नही है"
इनायत:"अच्छा"
मैं:"थोड़ा तेज़ तेज़ करो ना,धीरे धीरे मे मज़ा नही आता"
इनायत:"अच्छा"
मैं:"तुम्हे पता है तुम्हारे लंड के बिना अब मैं रह नही सकती"
इनायत:"हुउँ"
मैं:"तुम्हारे पीछे से करने मे ज़्यादा मज़ा आता है"
इनायत:"हां क्यूँ"
मैं:"मैने अंदाज़ा लगाया है कि तुम मेरी गांद के दीवाने हो"
इनायत:"वो तो मैं तब से हूँ जब तुम्हे पहली बार देखा था"
मैं:"ऐसा क्या है मेरी गान्ड मे, ये बड़े बड़े चुतड"
इनयत:"तुम्हारी रंगत किसी अँग्रेज़ औरत की तरहा सफेद है और तुम्हारे चूतड़ इतने सफेद और नर्म और बड़े बड़े है कि इनको देख कर कोई भी पागल हो जाए"
मैं:"अच्छा, तो जनाब दूसरे की बीवी की गान्ड पे नज़र रखते थे पहले से ही, अच्छा तुम्हारे खानदान मे तो सभी औरतो की गान्ड बड़ी बड़ी और गोरी गोरी है, तुमने अपनी मा और बहेन की नही देखी

क्या "
इनायत:"क्या बकती हो, कौन ध्यान देता है ऐसी बातो पर"
मैं:"तो जनाब अपनी मा बहेन तो सभी मर्दो को प्यारी होती है लेकिन किसी और बेटी या बहू पर तुम मर्द ध्यान देने से बाज़ नही आते"
इनायत:"क्या कह रही हो"
इनायत अब शायद झड़ने ही वाले था, मैं भी दोबारा शबाब पे थी, थोड़े ही देर मे उसने अपना लावा सुरंग मे छोड़ दिया और अब वो सोफे पर जाकर बैठ गया और आँखे बंद करके सुसताने लगा.
 
मैं:"तुम्हे पता है तुम्हारी बहेन की चूचिया और गान्ड मुझसे भी ज़्यादा बड़ी हैं"
इनायत ने मुझे घूर कर देखा जैसे उसे ये सब पसंद नही आ रहा था. मैं कुछ देर तक उसके पास बैठी रही और उसको हांफता देखती रही फिर पेशाब करने चली गयी.अपनी चूत को सॉफ किया और
किचन मे जाकर पानी पिया और इनायत के लिए भी लेकर आई. मैं बिना कॉंडम के इनायत के साथ सेक्स का मज़ा ले रही थी इसलिए मुझे हरदम पिल्स पर निर्भर रहना पड़ता था. लेकिन कुछ पाने के लिए कुछ

खोना तो पड़ता है.मैने पानी लाकर इनायत को दिया तो उसका लंड खड़ा हुआ देखा, मुझे लगा शायद अब वो अपनी बहेन के बारे मे सोच रहा था. मैने उसको छेड़ना मुनासिब नही समझा लेकिन अपने

हाथ से उसके लंड को सहलाना शुरू कर दिया वो कुछ बोलना चाहता था फिर वो रुक सा गया, शायद थोड़ा हिचकिचा रहा था.
मैं:" कुछ बोलना चाहते थे क्या, खामोश क्यूँ हो गये, तुमसे मैने अपनी सारी फॅंटसीस शेअर की हैं, तुम भी बिना हिचक मुझसे सब बोल सकते हो"
इनायत:"कुछ नही, सोच रहा था कि तुमने साना को कब नंगा देखा, क्या उसे शर्म नही आती तुम्हारे सामने ऐसा करने मे"
मैं:"अर्रे मैं उसकी भाभी ही नही उसकी सहेली भी थी और उसके और मेरे बीच मे काफ़ी अच्छा रिश्ता था इसलिए कई बार उसकी निजी कामो मे मदद की है"
इनायत:"निजी काम?"
मैं:"जैसे उसकी पीठ मलना,उसके टाँगो और बगल के बाल सॉफ करना वगेरा वगेरा"
इनयत:"तुम औरतो को ज़रा भी शरम नही आती किसी के सामने कपड़े उतारने मे"
मैं:"उसके पास भी वही है जो मेरे पास है और हम कोई लेज़्बीयन नही हैं जो हम सेक्स के बारे मे सोचे समझे"
मैने झूट मूठ का गुस्सा दिखया

इनायत:"अर्रे बाबा नाराज़ क्यूँ होती हो"
मैं:"नाराज़ क्यूँ ना हूँ, तुम्ही बताओ एक जवान लड़की जिसकी शादी नही हुई है वो ये सब किससे जाकर पूछे?"
इनायत:"ठीक है बाबा ठीक है"
मैं:"तुम्हारी मा की भी मैने पीठ सॉफ की है, उनके तो साना से भी बड़े बूब्स हैं"
इनायत:"मुझे यकीन नहीं होता तुम्हारी बात पर, अब तुम कहोगी कि तुमने उनका भी सब देखा है"
मैं:"नहीं वो अक्सर अपनी टाँगो पर टवल डाल लेती हैं इसलिए मैने कुछ नही देखा लेकिन मुझे सक है कि वो बाथरूम मे उंगली करती हैं"
इनायत:"क्या बोल रही हो"
मैं:"हां मैने अक्सर कराहने की आवाज़ सुनी है कई बार जब वो बाथरूम मे जाती हैं"
इनायत:"तुम्हे कोई ग़लतफहमी होगी"
मैं:"तो उनकी पैंटी भी क्या झूट बोलती है"
इनायत:"क्या मतलब"
मैं:"हाँ मैने उनकी पैंटी गीली देखी है"
इनायत:"तुम जाने क्या बके जा रही हो"
मैं:"तुम लोगो को हम औरतो की फीलिंग का कोई ध्यान नही होता"
इनायत:"इसमे फीलिंग वाली क्या बात हो गयी"
मैं:"तुमने कभी सोचा है अपनी बहन की शादी के बारे में"
इनायत:"उसने ही तो कहा है कि वो अभी शादी नही करना चाहती"
मैं:"तो तुमने मान लिया, उसकी भी कोई ज़रूरत है,कब तक वो उल्टे सीधे नॉवेल और फिल्म्स देखकर उंगली करती रहेगी"
इनायत:"क्या कह रही हो"
मैं:"मैने एक बार उसे एक पॉर्न फिल्म देखते हुए पकड़ा था, वो एकदम सक पका गयी थी लेकिन मैने उससे कहा कि घबराए ना और टेन्षन ना ले"
इनायत:"तो मैं क्या करूँ"
मैं:"अर्रे भाई उसकी पिंक चूत के लिए कोई ज़िम्मेदार लड़का तलाश करो"
इनायत:"ठीक है मैं सोचूँगा"
मैं:"जानते हो मैने उससे सब शेअर किया है अपनी हर बात अपनी हर रात किसी दोस्त की तरहा, कई बार मैने उससे देखा है कि वो बात करते करते अपनी सलवार मे हाथ डाल लेती है उंगली करने के लिए,

मैने उससे कह दिया है कि उंगली करने मे कोई बुराई नही, वो भी मुझसे कहती है कि काश मुझे भी कोई प्यार करने वाला शौहर मिले,वो शौकत की और मेरी रातो की डीटेल्स बड़े मज़े से सुनती है"
इनायत:"अर्रे बाबा कह दिया ना कि सोचु गा उसके बारे में"
मैं:"साला तुम मर्द तो सिर्फ़ दूसरो की बीवी और बेटी के बारे मे सोचते हो"
इनायत:"अब क्या हुआ, कोई नया खुलासा करना है क्या"
मैं:"हां खुलासे तो कई हैं लेकिन तुम सुन नही पाओगे"
इनायत:"जैसे?"
मैं:"जैसे तुम्हारी मा के बारे मे , तुम्हारे अब्बा के बारे मे"
इनयत:"अब्बा के बारे मे क्या"
मैं:"जानते हो पहले मैं अपनी पैंटी खुले आम सब कपड़ो के साथ सूखाया करती थी लेकिन फिर बाद मे बंद कर दिया"
इनायत:"हां मुझे मालूम है"
मैं:"साला ,ये भी मालूम है हाहहाआआआआ देखा मैने कहा था ना"
इनायत:"हां आगे बोलो क्या बोल रही थी"
मैं:"एक बार तुम्हारे अब्बा ने मुझे खुले मे अपनी पैंटी सुखाने के लिए रोका था और मुझे ऐसी पतली और छोटी पैंटी पहेनने से मना किया था"
इनायत:"मुझे यकीन नहीं होता"
मैं:"उन्होने लगभग मेरी चूत को अपनी उंगली से छू कर इशारा करते हुए कहा था कि, बहू इससे तुम्हारी शरमगाह ढकति नही होगी"
इनायत:"क्या"
मैं:"हां"
इनायत:"हो सकता है बेखायाली मे कह दिया हो"
मैं:"और बेखायाली मे कई बार बहू के चुतडो से सॅट कर गुज़रे हों और बहू के बड़े बड़े गोरे गोरे बूब्स को भी नज़रे गढ़ा कर देखा हो"
इनायत:"अच्छा बस भी करी अब तुम"
मैं:"अपनी अम्मा के किस्से नही सुनोगे"
इनायत:"कौन्से किस्से"
मैं:"उनको मैने देखा है जब भी मेरे ससुर मेरे बूब्स पर नज़रे गढ़ाए होते हैं तो वो सिर्फ़ एक शरारत भरी निगाह से उन्हे मना कर देती है,लेकिन कभी सख्ती से मना नही करती"
इनायत:"तो क्या सबके सामने ढिंढोरा पीट कर कहें क्या"
मैं:"तुम्हारे अब्बा को अपनी बेटी की भी पॅंटीस देखनी चाहिए और बेटी ही क्यूँ अपनी बीवी के फॅन्सी ब्रा और पैंटी भी देखने चाहिए, तुम्हारी बहेन तो पैंटी पहेन्ति ही नही है, मॅक्सी एक अंदर एक दम नंगी होती है"
इनायत:" तो क्या हुआ ये उनका निजी मामला है"
 
मैं:"हां है तो निजी लेकिन मेरा मामला निजी नही है, तुम्हे पता है तुम्हारी मा तुम्हारे अब्बा के सामने डॅन्स करती हैं वो भी सेक्सी स्टाइल में"
इनायत:"अब बस भी करो ये सब, तुम तो मेरी मा और बहेन के पीछे ही पड़ गयी"
मैं:"ऐसा नही है,मुझे अपनी सास और ननद दोनो का ख़याल है, ख़ास कर अपनी गुलाबी चूत वाली ननद का जिसका जिस्म देखकर तो मेरी भी चूत खुजली करने लगती है"
इनायत:"अच्छा, कमाल है"
मैं:"क्यूँ तुम्हे अच्छी नही लगती साना"
इनायत:"अच्छी लगती है लेकिन वैसी नज़रो से नही"
मैं:"तुम मेरे सामने छुपा रहे हो, मैं क्या तुम्हे ब्लॅक मैल करूँगी"
इनायत अब फिर से जोश मे आ गया था और मुझे उठा कर बेडरूम मे ले गया और मेरी टाँगो को उठा कर सीधा मेरी चूत मे अपना हथियार डाल दिया.
मैं:"जोश मे आ गये लेकिन मेरी बात का जवाब नही दिया"
इनायत:"देखो क्या कहूँ तुमसे, तुम मेरे बारे मे क्या कहोगी"
मैं:"तुम्हे पता है उस मूवी के बारे मे जिसमे रोल प्ले था,मेरी फॅंटेसी है कि मेरा शौहर मुझे किसी और की याद मे चोदे"
इनायत:"रोल प्ले, क्या बात है"
मैं:"अच्छा ज़रा सोचो कि मैं साना हूँ "
इनायत:"मूड ऑफ मत करो"
मैं:"तुम यार अब थोड़े पुराने टाइप के होते जा रहे हो, बिल्कुल शौकत की तरहा, वो सेक्स भी खाना खाने की तरहा जल्दी जल्दी ख़तम करके सोना चाहता है"
इनायत:"ये थोड़ा ज़्यादा नही हो रहा?"
मैं:"अर्रे सिर्फ़ रोल प्ले ही की तो बात है कौनसा असली मे साना की चूत तुम देख पाओगे"
इनायत:"ठीक है फिर मेरी एक शर्त है"
मैं:"क्या"
इनायत:"तुम फिर मेरी जगह अपने भाई आरिफ़ के बारे मे सोचो गी"
मैं:"आरिफ़"
इनायत:"क्यूँ झटका लगा ना"
मैं:"मैने कभी उसको इन नज़रो से इमॅजिन नही किया"
इनायत:"तो मेरा भी यही हाल है"
मैं:"लेकिन तुम्हारा लंड खड़ा हो जाता है साना की बॉडी के बारे मे सुनकर"
इनायत:"तुम ये कैसे कह सकती हो"
मैं:"मैने ये अब्ज़र्व किया है"
इनायत:"अच्छा तो भूल जाओ रोल प्ले"
मैं:"अच्छा ठीक है,तुम आरिफ़ हो और मैं साना, हे मुझे आइडिया आया है क्यूँ ना आरिफ़ और साना की शादी करवा दी जाए?"
इनायत:"जो घर के हालात है तो ऐसा कभी नही होगा"
मैं:"अच्छा आरिफ़ ये सब छोड़ो और अपनी बाजी की चूत मे अपना लंड डालो जल्दी से"
इनायत:"साना, थोड़ा अपने पैरो को फैलाओ, आज जम कर तुम्हारी चूत की धज्जिया उड़ा देता हूँ"

मुझे यकीन नही हुआ, इनायत को सिर्फ़ कुछ ही मिनिट्स लगे अपना पानी निकालने में. मैं भी बड़ी जल्दी ही झाड़ गयी. आरिफ़ के लंड को अपनी चूत मे इमॅजिन करने के बारे में. लेकिन ये सिलसिला यहीं

नही रुका, अब मैं अपने ससुर के बारे मे भी रोल प्ले करने लगी और इनायत अपनी मा के बारे में. हम को इसमे इतना मज़ा आता कि हम अब अपनी बनाई हुई सारी बाउंड्रीस तोड़ रहे थे, मालूम नही

था कि ये रोल प्ले अब असल मे हक़ीक़त की तरफ हमारे अंजान कदम हैं.
 
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