non veg kahani आखिर वो दिन आ ही गया - Page 2 - SexBaba
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non veg kahani आखिर वो दिन आ ही गया

आप सब जानते हैं अब हमारी जिंदगी बेहद हसीन थी। हम यानी मेरी दीदी राधा, मेरी छोटी बहन कामिनी और मैं प्रेम। जिंदगी का शायद हसीन तरीन वक्त गुजार रहे थे। उस दिन मैंने अपनी दोनों बहनों की चूतें चूसी, उनका रस पिया। उन दोनों ने मेरा लंड चूसा और आख़िर में मैंने और कामिनी ने एक दूसरे का पेशाब पिया।

अब हम तीनों इसी तरह दिन-ओ-रात गुज़ारते। दीदी रात में कामिनी को सामने बिठाकर मुझसे मजे लेतीं और मेरी मनी चूसकर सो जातीं और जाहिर है मेरी उमर इतनी ज्यादा ना थी की मैं अपनी दोनों बहनों की गर्मी दूर कर पाता।

फिर सुबह उठकर मैं नदी पर कामिनी के साथ वक्त गुज़ारता और उसके वजूद में सुलगती आग को उसकी चूत का रस पीकर बुझाता और हम दोनों हँसते मुश्कुराते नहा कर नदी से वापिस आ जाते। यूँ ही शब-ओ-रोज गुजरने लगे।

यह सर्दियों के दिन थे, मुझे याद है। यानी डिसेंबर था शायद और साल था 1945। इस हिसाब से यहाँ आए हमें 8 साल होने को थे। काफी अरसा हो गया था हमें यहाँ आए। मेरा जिस्म अब मजबूत होता जा रहा था। और फिर अब यह चूत चूसना और लंड चुसवाना यानी जिस्म की जिन्सी ज़रूरतें भी बहुत खूबी से पूरी हो रहीं थीं।

और फिर उम्दा और अच्छी खुराक, खुली और सेहतबख़्श फ़िज़ा और फिर तन आसानी। कोई खास काम काज तो था नहीं सारा दिन बस फ़ुर्सत ही फ़ुर्सत। इन्हीं चीजों ने मुझको अपनी उमर से बड़ा बना दिया था शायद और मैं जो **** साल का होने को था अपनी उमर से कई गुना बड़ा 20 साल का लगता था। और मेरी दीदी राधा अब 23 साल की हो रही थी। और उसी हिसाबसे भरपूर जवान और उमंगों भरी थी। मेरी छोटी बहन कामिनी की उमर *** की होने वाली थी लेकिन अब उसका जिस्म तेज़ी से खूबसूरत होने लगा था। पिछले 8 या 9 महीनों से हम जो खेल खेल रहे थे यानी एक दूसरे की चूत और लंड चूसने का वो अपना रंग दिखा रहा था। मेरी दीदी राधा का जिस्म भरपूर और बहुत हसीन था, गान्ड भारी बिल्कुल गोल और टाइट थी। और चलते सेमय बेहद मधुर तरीके से हिलती थी।

मम्मे गोल और टाइट, उनके निप्पल जो पहले बिल्कुल गुलाबी थे अब मेरे मुस्तकिल चूसने से वो थोड़े ब्राउनिश हो गये थे। और मम्मों का झुकाव बहुत ही खूबसूरत था। इतने हसीन मम्मों के नीचे पतली कमर जो चलते हुये बल खा जाती थी। हल्का सांवला रंग जिसको धूप ने झुलसा कर बेहद हसीन बना दिया था। और खोबसूरत रानों के बीच वो हसीन तरीन, नरम गरम जगह जिस पर मरता था मैं, जहाँ से मुँह को सुकून मिलता था, जिसको प्यार से चूमता था चुसता था मैं। हाँ… मेरी दीदी की चूत जो मेरे चूसने की वजह से अब कुछ बाहर निकल आई थी। जिसके लबों के दरमिया से अब चूत का अन्द्रुनी हिस्सा झाकने लगा था। एक मुकम्मल और जवान चूत, भरपूर, मस्ती भरी रसभरी बेहद खूबसूरत।
 
मेरी दीदी की चूत जो मेरे चूसने की वजह से अब कुछ बाहर निकल आई थी। जिसके लबों के दरमिया से अब चूत का अन्द्रुनी हिस्सा झाकने लगा था। एक मुकम्मल और जवान चूत, भरपूर, मस्ती भरी रसभरी बेहद खूबसूरत।
और दूसरी तरफ मेरी छोटी बहन कामिनी, जो अपनी उमर की बेहतरीन साल में थी। यानी ** साल, उसके खूबसूरत मम्मे जो अब काफी उभर चुके थे मेरे चूसने और सहलाने से और उनकी नोकें गुलाबी और ऊपर को उठी हुई थी। उसकी कमर बेहद पतली और नाजुक थी। जिस्म की लचक तो इतनी की डर लगे कहीं टूट ही ना जाए। गान्ड गोल और बाहर निकलती हुई, और फिर इंतिहा नाजुक चूत। जब खुलती थी तो अंदर का मंजर, ताव लाना मुश्किल हो जाए। जब रस छोड़ती थी तो उस रस का मुकाब्बला ढूँढना नामुमकिन हो जाए। मुझको बहुत पसंद था अपनी बहनों की चूत चूसना।

शायद इसलिए की उस वक्त मुझको अपनी खुशियों की तकमील का सिर्फ़ यही एक रास्ता पता था। यानी चूत चूसना और लंड चुसवाना। और फिर जिंदगी में मजीद कुछ तब्दीली हुई। उस रात बेहद सर्दी थी। हम तीनों एक दूसरे के जिस्म में घुसे सोने की कोशिस कर रहे थे। झोंपड़े के एक कोने में आग जल रही थी। हमने अपने ऊपर घास-फूस डाल रखा था। लेकिन फिर भी हमारे जिस्म बुरी तरह काँप रहे थे।

आख़िर दीदी उठ बैठी, बोलीं-“तुम दोनों को सर्दी लग रही है ना…”

हम दोनों ने असबात में जवाब दिए।

दीदी ने कुछ सोचा। फिर बोलीं-“आओ आज हम एक नये तरीके से एक खेल खेलते हैं…”

हम दोनों दिलचस्पी से उठकर बैठ गये।

वो बोलीं-“आज तक हम लोग अलग अलग एक दूसरे को चुसते रहे, आज हम तीनों एक साथ एक दूसरे को प्यार करेंगे और सब एक दूसरे की मनी छुड़वाएूँगे…”

वाकई अच्छा खयाल था यह तो।

दीदी बोलीं-“प्रेम मैं नीचे लेटती हूँ। तुम इस तरह मेरे ऊपर लेट जाओ की तुम्हारा लंड मेरे मुँह पर हो…” यह कहकर दीदी लेट गईं और टांगों को खोल दिया। मैं उनके ऊपर लेट गया अब मेरा मुँह दीदी की खुली हुई चूत पर था। और मेरी नाक में उनकी चूत की खुशगवार महक घुस्सी जा रही थी और मैं बेताब था उसको मुँह में लेने के लिए।

दीदी फिर बोलीं-“अब कामिनी तुम्हारी टांगों में बैठकर अपनी चूत मेरी चूत से मिला लो…” कामिनी आगे आई और दीदी की खुली हुई टांगों के बीच अपनी टांगें खोल कर बैठ गई और आगे की तरफ खिसकने लगी। यहाँ तक की उसकी चूत दीदी की चूत से बिल्कुल मिल गई। अब मैं जलती हुई आग की हल्की सी रोशनी में दो जवान और हसीन चूतों को देख रहा था। दोनों थोड़ी थोड़ी खुली हुई थीं, दोनों बेताब थीं चूसने के लिए। दोनों में अंदर आग थी, दोनों में मधुर रस भरा था और वो दोनों मेरे सामने थीं।

अब दीदी बोलीं-“प्रेम तुम मेरी और कामिनी की चूत चूसो और कामिनी के मम्मे भी साथ ही चुसते रहना मैं तुम्हारा लंड चुसती हूँ…”

मैंने बेताबी से दीदी की चूत पर अपने होंठ रख दिए। बहुत गरम थी और नमकीन। कुछ देर चूसा फिर कामिनी की चूत से मुँह लगा दिया। आह… क्या समा था… क्या हसीन वक्त था… आज भी उस वक्त के लिए मैं अपनी पूरी जिंदगी देने को तैयार हूँ। काश वो वक्त लौट आए। काश…

कुछ देर यूँ ही चलिा रहा उन दोनों की सांसें तेज हो चुकीं थीं। और दीदी मेरा लंड मुँह में लिए उसे चाट रहीं थीं, चूस रहीं थीं, उसको मुँह में घुमा रहीं थीं, बहुत मजे में था मैं। अब कामिनी झुकी थोड़ा सा और अपने मम्मे मेरे होंठों से लगा दिए और मैं उसके जवान मम्मों के अनौखे स्वाद में खो सा गया। मैं उसके निप्पल चुसता रहा। फिर उसने खींचकर मेरे मुँह से निप्पल निकाला और मेरा मुँह दीदी की चूत पर रख दिया। दीदी की चूत रस छोड़ने लगी थी, मैं उसको चूसने लगा।

अचानक मुझे एक खयाल आया। मैंने कामिनी से कहा-“कामिनी तुम भी चूसो दीदी की चूत। देखो मनी छोड़ रही है यह पीकर देखो कितनी मजे की होती है…”

वो हिचकिचाई फिर अगले ही लम्हे उसके नरम लब दीदी की चूत पर थे। दीदी एक लम्हे को चौंकी गर्दन उठाकर अपनी चूत पर झुकी कामिनी को देखा और फिर मुश्कुरा कर आँख बंद कर, मेरा लंड मुँह में घुसा लिया। जैसे इस सारी दुनियाँ में इस लंड के सिवा उन्हें कुछ अजीज ही ना हो। मैं गर्दन उठाए कुछ देर कामिनी को दीदी की चूत चुसते देखता रहा। फिर खुद भी दीदी की रानों पर झुक कर प्यार करने लगा और चाटने लगा। और दीदी की चूत पर मुँह मारने लगा।

कुछ देर बाद कामिनी अपना मुँह मेरे होंठों से टकरा देती थी। और मैं जबान से उसके लबों को चाटने लगता जो दीदी की चूत के रस से नमकीन हो रहे होते थे। इसी तरह अचानक दीदी की चूत एक दम फैलने लगी। मैं समझ गया अब दीदी की मनी निकलने का टाइम आ गया था। मैंने कामिनी का मुँह दीदी की चूत से चिपका दिया और उसके कान में बोला-दीदी मनी छोड़ने वालीं हैं उसको चूसो खूब जोर से। उधर दीदी मेरा पूरा लंड अपने मुँह में लिए अब निहायत ही तेज़ी से अंदर बाहर कर रहीं थीं, उसको होंठों से दबा रहीं थीं। बस वो छूटने को थीं।

और फिर दीदी ने अपना रस छोड़ा, कामिनी को एक झटका सा लगा क्योंकी मेरे कहने की वजह से उसने अपनी पूरी साँस खींचकर दीदी की चूत को प्रेसर लाक किया हुआ था। दीदी की मनी चूत से निकलते ही गोली की तरह कामिनी की हलक तक पहुँची होगी। कामिनी ने पूरी मनी चाटकर जब अपने लब दीदी की चूत से खींचकर अलग किए तो उसके होंठों से दीदी की मनी अब तक टपक रही थी। दीदी शांत हो चुकी थी।

अब वह उठी, मुझको ऊपर से उठाया और बोली-“वाह मेरी बहन ने तो आज काम कर दिखाया…”

अब उन्होंने हमें फिर हिदायत दीं। अबकी दफा मैं नीचे लेटा फिर दीदी ने कामिनी को अपनी चूत खोलकर उकड़ू मेरे मुँह पर बैठ जाने को कहा, वो अपनी चूत मेरे मुँह पर रखकर बैठ गई। मैंने अपने हाथ उसकी कमर में डालकर उसकी चूत अपने मुँह पर लाक की और उसका सारा रस पीने लगा। वो उकड़ू बैठे बैठे हल्के हल्के अपनी चूत को मेरे मुँह पर रगड़ने लगी। लगता था इस तरीके से चुसवा कर उसको वाकई बहुत लुफ्त मिल रहा था। बैठने की वजह से क्योंकी उसकी चूत खुल गई थी और मेरे चूसने की वजह से उसकी चूत ऊपर उभरी हुई गुठली सी मेरे मुँह में लटकी थी और पूरा गुलाबी घिलाफ की सूरत मेरे मुँह में मेरे हर साँस के साथ मेरे मुँह में आ जाता।

और साँस छोड़ने के साथ वापस सिमट कर उसकी चूत में वापिस चला जाता। वो बहुत मजे में थी और मैं भी उसकी चूत का बेहतरीन मजा लूट रहा था और उसकी चूत से टपकने वाले रस का एक एक क़तरा मेरे हलक में गिरता और मैं फौरन ही उसे हलक से नीचे उतार लेता। अब दीदी ने एक नई फिराक की। वो पहले तो बैठी मेरा लंड चुसती रहीं। फिर मेरी टांगों के बीच में बैठकर मेरे मुँह पर बैठी कामिनी के मम्मे चूसने लगीं और दीदी भी चूंकी उकड़ू ही बैठी थीं तो उसकी चूत मेरे लंड से रगड ने लगी। एक अजीब नशा, एक अजीब सुरूर मेरे रगों में उतरने लगा।

वो अपनी खुली हुई चूत जो अभी तक गीली थी और टांगें खोलकर उकड़ू बैठने की वजह से पूरी तरह खुली हुई थी, यानी चूत के दोनों लब तो उन दोनों गुलाबी लबों ने मेरे लंड पर एक गुलाबी रेशमी घलाफ सा चढ़ाहा दिया और दीदी उन लबों को मेरे लंड पर आहिस्ता आहिस्ता फेरने लगीं। और कामिनी के मम्मे चुसती रहीं। उनको भी बेहद मजा आ रहा था। शायद मेरा लंड उनकी चूत को रगड़ कर उनको एक अनोखा ही मजा दे रहा था। यानी जो हाल मेरा था वोही उनका था। और मेरी तो एक आग भड़क उठी थी, मैंने उसी के जोर-ए-असर आकर कामिनी की चूत को इस बुरी तरह चूसा की उसकी सिसकियाँ पूरे झोंपड़े में गूंज उठीं। और उसकी चूत तेज़ी से पानी छोड़ने लगी, जिसको मैं मुँह भर भर कर पीने लगा। और फिर उसने दीदी को अपने सीने में भींच लिया।
 
दीदी ने भी उसकी हसीन निपल्स को होंठों में दबा लिया और उधर नीचे मैं अपना काम कर रहा था। और फिर कामिनी की गरम गरम मनी से मेरा मुँह भरना शुरू हुआ और क्योंकी वो मेरे ऊपर थी और बैठी हुई थी इसलिए बहुत ही भरपूर तरीके से उसकी मनी सीधे मेरे हलक में गिरने लगी। और वो एकदम ढीली पड़ गई। मैंने उसकी चूत से मनी का आख़िरी क़तरा भी खींच लिया अपने मुँह में।

वो निढाल सी मेरे बराबर ही गिर गई। लेकिन अब दीदी अपनी चूत मेरे लंड पर रगड़ कर बहुत ही गरम हो चुकी थी। और वो मेरी टांगों पर लेटी हसरत भरी निगाहों से मेरे लंड को देख रही थी, उसे सहला रही थी। उसको चूस रही थी। मैं एकदम दीदी के मुँह में झरना शुरू हो गया और मेरी मनी दीदी ने चूस चूसकर साफ कर दी। मैं अब ढीला पड़ा था लेकिन दीदी अभी और कुछ करने के मूड में थीं। उनका बदन दोबारा अकड़ने लगा था, मम्मे तन चुके थे। वो मेरे ढीले पड़े लंड को मुँह में लिए पड़ीं थीं, और एक हाथ से कामिनी की चूत सहला रही थीं। यह देखकर मेरा लंड दोबारा खड़ा होने लगा। मैं अपने हाथों से कामिनी के मम्मे सहलाने लगा फिर अपना मुँह उनपर रखकर उसकी निप्पल चूसने लगा। उसकी निप्पल अभी तक दीदी के थूक से लिथरे हुये थे। मैं उन्हें चूसने लगा।

आख़िरकार, मेरे मुसलसल चूसने पर वो खड़े होने लगे। वो उठी और दीदी से लिपट गई। अब मेरे सामने मेरी दोनों बहनें लिपटी एक दूसरे को चूम रहीं थीं। एक दूसरे के होंठों को चूसा उन्होंने, फिर मम्मे चूसने लगीं कामिनी दीदी के मम्मे चूस रही थी और दीदी उसकी चूत को उंगली से सहला रही थी। फिर दीदी कामिनी के कमसिन मम्मों को मुँह में दबाए चुसती रही और फिर अपना मुँह नीचे करके कामिनी की गीली चूत पर अपने लब रख दिए। यह सब देखकर मेरा लंड झटके खा रहा था।

मैं अपना लंड अपने हाथ से सहला रहा था अब वो दोनों एक दूसरे पर लेटी एक दूसरे की चूत चूस रहीं थीं। और फिर मेरी दोनों बहनें मेरे सामने ही फारिग हुई और एक दूसरे के मुँह में अपनी मनी छोड़ दी। कामिनी तो बहुत थक सी गई। और एक तरफ पड़ गई। लेकिन दीदी को मेरा ख्याल था। उन्होंने मेरा पानी बहाता लंड मुँह में लिया और चूसने लगीं और मैंने अपनी मनी दीदी के मुँह में उड़ेल दी। दीदी का मुँह जिसमें से पहले ही कामिनी की मनी रिस रही थी अब मेरी मनी से भर गया और मैं ना जाने किस जहाँ में खो गया। फिर मुझे कोई होश नहीं था, ना सर्दी का एहसास बाकी रह गया था। मैं नहीं जानता कब सुबह हुई, कब दिन निकला। मैं तो जब दिन चढ़े उठा तो बिस्तर पर अकेला ही पड़ा था। बाहर निकला तो कोई नहीं था। नदी की तरफ चल पड़ा वहीं पर दीदी और कामिनी मिलीं, वो नहा रहीं थीं। कामिनी नहाकर निकली और अपनी पैंटी पहनने लगी वो कामिनी के पीरियड शुरू हो गये थे। वो और दीदी नहाकर चले गये। मैंने भी नाहया और वापिस झोंपड़े की तरफ चल पड़ा। वहाँ दोनों बहनें बैठी खाना बना रहीं थीं।


मुझको देखकर दीदी बोलीं-“क्यों क्या हुआ प्रेम इतनी जल्दी नहाकर भी आ गये…”

मैं बोला-“हाँ दीदी…”

दीदी बोलीं-“मजा आया तुमको रात को उसके बाद सर्दी तो नहीं लगी…”

मैंने कहा-“नहीं दीदी…”

दीदी बोलीं-“रात में तुम तो सो गये मुझको और कामिनी को पेशाब आया। बाहर सर्दी थी हमने वहीं किया और पता है मैंने कल कामिनी का पेशाब चखा और कामिनी ने मेरा… तुम सो रहे थे…”

मैं बोला-“दीदी कामिनी का पेशाब अच्छा है ना…”

दीदी बोलीं-“हाँ… भाई… लेकिन तूने मेरा पेशाब अभी नहीं चखा है। आज चखकर देखो कैसा है…”

मैं बोला-“कब दीदी…”

वो बोलीं-“अभी भी मैंने इसीलिए नहाते वक्त पेशाब नहीं किया और अब तो कामिनी के पीरियड शुरू हो चुके हैं तुम उसकी चूत नहीं चूस सकते…” फिर दीदी ने कहा पहले खाना खा लो फिर नदी पर चलेंगे।

हम खाना खाने लगे। खाना खाकर मैं और दीदी नदी पर गये। नदी पर पहुँच कर दीदी ने कहा-“प्रेम तुम उकड़ू बैठ जाओ, मैं पेशाब करती हूँ जब आख़िरी पेशाब आने लगे तो तुम चूत पर मुँह लगा देना…”

मैं उकड़ू बैठा और दीदी खड़े होकर टांगें खोलकर पेशाब करने लगीं। मैं देखता रहा फिर दीदी ने गर्दन से इशारा किया। पेशाब अब रुक रुक कर बाहर आ रहा था। मैंने जल्दी से चूत से मुँह लगा दिया और पेशाब पीने लगा। दीदी का पेशाब बहुत महक मार रहा था। थोड़ा सा ही पी सका मैं, वो बहुत तेज था।

मैं बोला-“दीदी तुम्हारा पेशाब तो बहुत तेज है लेकिन मजे का है…”

दीदी बोली-“अच्छा चल तू पेशाब कर…”

मैं पेशाब करने बैठा तो दीदी ने मेरा लंड हाथ में ले लिया और उसमें से पेशाब बाहर आते देखने लगीं और फिर एकदम उसको मुँह में लेकर पीने लगीं। और दोस्तों मेरे पेशाब का एक एक क़तरा तक चूस गई मेरी दीदी वो बोली-“बहुत मजेदार है तेरा पेशाब तो प्रेम…”

उसके मुँह से अब तक मेरा पेशाब बह रहा था। फिर वो मेरा लंड मुँह में लेकर चूसने लगी। मैं उसके ऊपर लेट गया और उसकी चूत चाटने लगा। उसपर अभी अभी किए पेशाब के कतरे अभी भी थे। पहले वो मैंने चूसे और फिर चूत को चूसने लगा और कुछ ही देर बाद एक बार फिर हम बहन भाई अपनी अपनी मनी निकाल चुके थे और घने दरख़्त की छांव में पड़े हांफ रहे थे।

कुछ देर बाद हम वापिस चल पड़े।

***** *****

बस दोस्तों आज की दास्तान यन्हीं पर ख़तम करते हैं। आज पुरानी यादें फिर से मुझे सता रहीं हैं। मैं बेचैन हुआ जा रहा हूँ। अब चलता हूँ दोस्तों। वक्त का काम गुजरना है, यह वक्त की फितरत है। और फितरत कभी नहीं बदलती। जैसे आग की फितरत जलना है, वैसे ही इंसानी फितरत में जैसे पेट की भूख को खाने से मिटाया जाता है इसी तरह जिन्सी की भूख को औरत का जिस्म चाहिए। और फितरत अपना रास्ता खुद तलाशती है। दोस्तों आप जानिए। अगर आप कभी फितरत का रास्ता रोकने की कोशिस करेंगे तो ऐसे ऐसे खोफनाक अंजाम और रिजल्ट आपको मिलेंगे। हो सकता है आप में से कुछ लोग मेरी इस बात की मुखालीफत करें।

मैं जानता हूँ दुनियाँ में ऐसी बहुत सी शख्सियत ऐसी गुजरी हैं जिन पर यह तारीफ़ लागू नहीं होतीं। जिनकी शख्सियत और किरदार के आगे फितरत भी अपने घुटने टेक देती है। लेकिन मैं आम लोगों की आम इंसानों की बात कर रहा हूँ। आप जानिए। आम इंसान ही फितरत की जंजीरों में बँधा हुआ है। आप अगर इस फितरत को किसी तरह कैद करने की, इसको बदलने की कोशिस करें तो हो भी सकता है की कुछ कामयाब हो जायं लेकिन जब भी इसको कोई भी कमजोर रखना नजर आया यह फितरत पूरी ताक़त से जाग उठेगी। मैं इसकी मिसाल यूँ देता हूँ की अगर आप सोचते हैं की आप सारी उमर औरत से और अगर आप औरत हैं तो मर्द से दूर रहेंगे। सेक्स के करीब भी नहीं फटकेंगे। तो क्या होगा…

आप नहीं कर सकते इसका मैं दावा करता हूँ। आप की फितरत आप की सोच पर आपके इरादों पर हावी हो जाएगी। और फिर आप वोही करेंगे जो आप का शरीर कहेगा आप शरीर की ख्वाहिशो के फकत एक गुलाम बन जाएँगे। हाँ एक ज़रिया है, जो की नफस कुशी (शरीर की इक्षाओ को मारना ) कहलाता है। इसमें आपके पास मजहब की ताक़त होती है जैसे की ईसाईयों में चर्च में नन्स होतीं हैं जो हमेशा कंवारी रहती हैं। हिंदुओं में दासियाँ होतीं हैं जो अपना जीवन भगवान के चरणों में रह कर गुज़ारती हैं। तो फिर आप अपने नफस को अपनी जबलत को अपनी फितरत को शिकस्त दे सकते हैं।


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मैं और मेरी बहनें जो कुछ कर रहे थे वो शायद मजहबी, मशरती और इख्लकी तौर पर सही ना था लेकिन जहाँ हम थे वहाँ कुछ ना था सिवाए तीन इंसानों के और वह तीनों आम इन्सान थे। फितरत के गुलाम । और हम जो कर रहे थे वह आम फितरत थी इंसान की। हम अपने जिस्मों की प्यास एक दूसरे से बुझा रहे थे। और इसी तरह वक्त चलता चला गया। हम बहन भाई एक दूसरे के जिस्मों से खेलते रहे। अपनी खुराक का बेहद खयाल रखते। एक दूसरे को खूब खूब मजा देते। हमारा प्यार बढ़ता जा रहा था किसी को अगर मामूली सी चोट या जख़्म लग जाता तो हम सब यूँ महसूस करते जैसे वह तकलीफ हमारे वजूद में हो। मैं अपनी दोनों बहनों के मम्मे चुसता। उनकी निपल्स के रेशमी मसरों को मुँह में लिए रहता। उनकी नरम गरम चूतों का पानी चुसता। और उनकी मनी निकलवाता।

और वह दोनों मेरे लंड को चुसती अपने सीने पर रगड़ती, और खूब मजा करतीं। दिन यूँ ही गुज़रते गये। और मेरी बहनें दिन-बा-दिन निखरती चली गईं। मुझे याद है सही तरह तो नहीं। आप जानिए अब इस उमर में याददाश्त भी कुछ ज्यादा काबिल-ए-भरोसा नहीं रह पाती लेकिन मैं याद करने की कोशिस करता हूँ। यह शायद 1947 का आख़िर या 1948 का शुरू था। सर्दियाँ जोरों पर थी, हमें यहाँ आए हुये तकरीबन 10 साल हो चुके थे। अब तो हम दुनियाँ को भूल चुके थे। खास तौर पर कामिनी तो कुछ जानती ही ना थी की असली दुनियाँ क्या होती है। उसके लिए तो यह जज़ीरा ही उसकी दुनियाँ थी जहाँ वह अपने भाई से प्यार करती और बड़ी बहन से लिपट कर अपनी जिस्म की आग बुझाती।

अब मैं तकरीबन 19 साल का हो चुका हूँ एक भरपूर जवान, की अपनी दोनों बहनों की चूत पर अपने होंठों को लगाकर अपने मजबूत बाजुओं से जब मैं उनकी गान्ड को जकड़ता था तो वह मनी छोड़ते वक्त कितना ही तड़पती रहे लेकिन अपनी चूत मेरे मुँह से हटा नहीं पातीं थीं। उनके मम्मे जब मेरे बड़े बड़े हाथों में दबते तो मैं उनको निचोड़ कर लाल गुलाबी कर डालता था। जब उनको अपनी बाहों में जकड़ लेता तो वो अपने आपको छुड़ा नहीं पातीं थीं।
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मेरी बहन राधा-25 साल की हो चुकी थी या होने वाली थी उसके मम्मे बिल्कुल गोल, निप्पल्स डार्क ब्राउन, कमर पतली और रंग साँवलाया हुआ, गान्ड बाहर को निकली हुई और गोल, रानों के बीच से झाँकती खूबसूरत चूत, बीलशुब्बा बहुत हसीन थी। कोमल किनारे चूत के। और जब इन नरम लबों को खोलें तो… अंदर से गरम गुलाबी रेशम का घिलाफ जिसको बस मुँह में रखें और चूसें जहाँ से बेहद मजेदार रस निकलता था। जिसको चूसना शायद हर मर्द की आरजू हो।

मेरी बहन कामिनी-जिसको मैंने ही चूसकर जवान कर दिया था अब वह ** साल की हो चुकी थी। उसके मम्मे मेरे हाथों से मसल मसल कर काफी उभर आए थे और जब वह भागती थी तो बहुत हसीन तरीके से हिलते थे। और उनका अजीब हुश्न यह था के वह ऊपर की जानिब उठे हुये थे। उनकी निप्पल गुलाबी थीं। और मेरे चूसने की वजह से काफी बाहर को निकली हुई। गान्ड ज्यादा बड़ी ना थी लेकिन बहुत ही चंचल है। कमर बेहद पतली और नाजुक, और चूत… उस चूत का क्या कहना। बस मेरे लिए दुनियाँ का खजाना था। वहाँ मैं जब उसपर मुँह लगा देता तो बस फिर तीन बाज दफा 4 बार उसकी मनी छुड़वा कर ही दम लेता और वह निढाल हो जाती थी। बहुत ही खूबसूरत और कमसिन चूत थी मेरी बहन कामिनी की। तो अब मैं बाकिया वाकियात की तरफ आता हूँ अपनी दास्तान के।

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मैं कह चुका हूँ की सर्दियाँ अपने जोरों पर थीं।

हम बहन भाई या तो सारा दिन आग जलाए बैठे रहते। या एक दूसरे के जिस्मों से सर्दी कम करते। एक दिन हम लोग बैठे थे। दिन का सूरज अपनी अब-ओटाब से चमक रहा था। 30

दीदी बोलीं-“कहो अब खेल से दिल भर गया है क्या…”

मैं बोला-“नहीं दीदी बहुत मजा आता है हमें तो… हम सब इतने प्यार से मजा करते हैं…”

दीदी बोलीं-“प्रेम तुम्हारा दिल नहीं चाहता की तुम कुछ और करो। अपने लंड से…”

मैंने हैरत से कहा-“क्या दीदी…”

दीदी मुश्कुराते हुये-“तुम दोनों को याद है जब मैंने तुम दोनों को चूत और लंड के बारे में कुछ सालों पहले बताया था। तो यह कहकर आगे नहीं बताया था की तुम अभी छोटे हो…”

मैंने चौंक कर कहा-“हाँ… दीदी शायद आपने कहा था…”

दीदी बोलीं-“प्रेम अब वक्त आ गया है की मैं फितरत के हसीन राज तुम दोनों पर खोल दूं…”

हम दोनों उठकर दीदी के पास आ बैठे। और हम खामोश हो गये। हमारे लिए कुछ नई राहें खोलने वालीं थीं हमारी दीदी। और हमें उनके हर खेल में एक नया लुफ्त आता था। इन बिसात की चंद और नई दुनियाँ से लुफ्तअंदोज होने का मोका मिलता था। शुरूर की चंद और मंज़िल िय कर लेते थे। तो हम यानी मैं और कामिनी भी बेताब थे आगे जानने के लिए।

दीदी हमसे कहने लगी-“प्रेम और कामिनी। हमें यहाँ आए दस साल से ज्यादा होने वाले हैं। नहीं मालूम हम कभी वापिस अपनी दुनियाँ में पहुँच पाएँगे या नहीं। इसलिए क्यों ना हम अपनी दुनियाँ यहीं बना लें। अब किसी का इंतजार फुजूल है। आज से प्रेम हम तुम्हारी बहनें नहीं…”

मैं हैरत से दंग हो गया।

दीदी बोलीं-“प्रेम आज से हम तुम्हारी बीवियाँ हैं और तुम जानो बीवी का क्या करते हैं… बीवी को चोदते हैं, उससे बच्चा पैदा करते हैं, और अपनी नेश्ल आगे बढ़ाते हैं…”

मैंने हैरत से दोहराया-“चोदते हैं, बच्चा पैदा करते हैं…”

दीदी बोलीं-“हाँ… प्रेम… लड़की से सिर्फ़ इतना ही नहीं करते जो तुम कई सालों से हम दोनों के साथ करते चले आए हो। यानी उसकी सिर्फ़ चूत चूसने और चाटने के लिए नहीं होती। उसके मम्मे चूसने के लिए नहीं होते। लंड सिर्फ़ चूसने के लिए नहीं होता मनी सिर्फ़ पीने के लिए नहीं होती…”

मैं और कामिनी हैरान थे। यानी हम इतने सालों से जो कुछ करते आए थे वह कुछ भी नहीं था।

दीदी बोलीं-“प्रेम तुम दोनों ठीक सोच रहे थे हमने तो अब तक कुछ भी नहीं किया। पर अब मैं तुम दोनों को एक एक राज बता दूँगी…”

दीदी फिर बोलीं-“प्रेम यह जो तुम मेरी और कामिनी की चूत देख रहे हो। इधर आओ…” दीदी ने मुझे अपनी टांगें खोलते हुये पास बुलाया।

मैं दीदी की खुली हुई टांगों के बीच जाकर बैठ गया।

दीदी ने टांगें खोलीं और उंगलियों से अपनी चूत खोलते हुये बोली-“प्रेम यह चूत है जैसी की मेरी और कामिनी की। हम दोनों की चूत में थोड़ा बहुत फ़र्क है जाहिर है उसकी चूत अभी बहुत कमसिन है। मेरी चूत उभरी हुई है और बड़ी है। यह सुराख देखकर तुमको क्या खयाल आता है…”

मैं चुप रहा।

दीदी बोलीं-“इसी चूत को तुम इतने अरसे से चुसते आए और इसी सुराख से निकलती मनी और पेशाब तुम पीते आए हो। अब तुम अपने लंड को देखो जो हम दोनों अपने मुँह में लेकर चुसती हैं…”

मैंने अपने लंड को हाथ से पकड़ लिया जो लम्हा-बा-लम्हा तनता जा रहा था।


दीदी बोलीं-“प्रेम सोचो अगर यह लंड अगर हमारे मुँह के सुराख के बजाए हमारी चूत के सुराख में हो तो तुम्हें कितना मजा आए…”

मैं यह सुनकर हैरान रह गया।

“दीदी इतना बड़ा लंड इतने से सुराख में जाएगा कैसे…” कामिनी ने हैरत से पूछा।

दीदी बोलीं-“नहीं कामिनी अभी यह सुराख छोटा है लेकिन जैसे जैसे इसमें लंड जाता रहेगा यह खुलता जाएगा। और इस खुलने में यह और भी मजा देगा…”

फिर बोलीं-“हाँ… जब यह पहली बार खुलेगी तो थोड़ी तकलीफ होगी। थोड़ा खून भी निकलेगा। लेकिन फिर बस यह एक बार ही होगा…”

वो फिर बोलीं-“दुनियाँ का हर मर्द हर औरत के साथ यही करता है। वह उसकी चूत में अपना लंड डालता है और फिर उसकी चूत में अपनी मनी भर देता है। जिस तरह मैं और कामिनी तुम्हारी मनी पिया करते थे प्रेम। बिल्कुल वैसे ही हमारी चूतें यह मनी पीकर उसे चूसकर हमारी बच्चेदानी में पहुँचा देंगी। वहाँ यह हमारी चूत की मनी से मिलेगी और फिर बच्चा पैदा होगा…”

मैंने हैरत से पूछा-“और दीदी गान्ड का सुराख। क्या वहाँ से भी बच्चा पैदा होता है…”

दीदी हँसते हुये बोलीं-“अरे नहीं… हाँ चाहो तो तुम हम दोनों की गान्ड के सुराख में भी डाल सकते हो। लेकिन पहले तुम हमारी चूतों के मजे चख लो। फिर गान्ड के सुराख खोलना। क्योंकी गान्ड का सुराख खुलते हुये बहुत ज्यादा तकलीफ होती है…”
 
मैं बोला-“और दीदी बच्चा हो गया तो फिर हम क्या करेंगे…”

दीदी बोलीं-“प्रेम हर औरत की तरह हमारी भी ख्वाहिश है की हमारा भी एक बच्चा हो। जिससे हम खेलें, उससे प्यार करें। लेकिन प्रेम अब यह मुमकिन नहीं। यहाँ तुम्हारे सिवा कोई मर्द नहीं जो हमसे बच्चा पैदा कर सके…”

मैंने कामिनी की तरफ देखा, फिर दीदी से बोला-“दीदी कामिनी भी बच्चा पैदा करेगी…”

दीदी बोलीं-“अभी नहीं… पहले मैं फिर कामिनी। ताकि कामिनी हर चीज को देखकर उससे सीख सके…”

मैं बोला-“अच्छा दीदी हम यह कब करेंगे। यानी आप की चूत में लंड कब डालूंगा मैं…”

दीदी बोलीं-“आज रात को तुम मेरी चूत पहली बार खोलोगे। मैं तुम्हें हर बात सीखा दूँगी। हाँ उससे पहले हम दोनों कामिनी को फारिग करवा कर उसकी मनी चूसकर बिठा देंगे ताकि हमारी हालात देखकर वह बेचैन ना हो जाए…”

मैं बोला-“क्यों दीदी हमारी हालात क्या हो जाएगी?”

दीदी बोलीं-“प्रेम सोचो जब तुम्हारा लंड पहली बार मेरे मुँह में गया था तो तुम्हारी क्या हालात हुई थी। और अब तो वह अपनी असल जगह जाएगा तो तुम कितना लुफ्त उठाओगे खुद ही सोच लो…”

और यह हक़ीकत थी। मैं आने वाले लम्हात के बारे में सोचने लगा। हम दोनों मुख्तलिफ सवालात करने लगे दीदी से।
दीदी ने कहा-“अब जब तुम मेरी चुदाई करोगे यानी चूत में लंड डालोगे तब सारे जवाब तुम दोनों को खुद ही मिल जायेंगे…”

फिर हम खाना बनाने लगे ताकि रात में बाहर बैठकर खाना ना तैयार करना पड़े। बाहर बड़ी सर्दी हो जाती थी। इसलिए अभी से तैयार कर लिया था की रात को सिर्फ़ खाना हो हमें। आख़िर रात आ ही गई। मेरी बहन राधा का अरमानों भरी रात। जो हर लड़की की जिंदगी में एक बार ज़रूर आती है। आज मेरी बहन की जिंदगी में वोही रात थी। वोही रात जब कोई लड़की पहली दफा अपनी टांगों के बीच का खजाना किसी मर्द के लिए खोलती है। वोही रात जब उसका जिस्म किसी मर्द के गरम आगोश में सिसकता है, तड़पता है। आज मेरी बहन की जिंदगी में भी वोही रात थी। लेकिन कितनी जुदा, कितनी अलग।

हमने रात का खाना खाया। वोही भुनी हुई मछली, चंद जंगली फ्रूट, उबली हुई एक झाड़ी जिसका जायका बिल्कुल मेथी की तरह था। यह था हमारा खाना। जो आप जानिए बेहद सेहत बख़्श था। फिर दीदी जहाज के सामान के बचे हुये संदूक से एक शराब की बोतल निकाल लाईं-“आज प्रेम तुम भी मेरे साथ पीओगे। हम दोनों शराब पीन के बाद शुरू करेंगे। क्योंकी तुम जानो… शराब से तुम मेरी चूत में काफी देर में अपनी मनी छोड़ोगे…”

“लेकिन दीदी देर से क्यों छोड़ूं मैं…”

दीदी बोलीं-“तुम जितनी देर में अपनी मनी मेरी चूत में छोड़ागे, मैं और तुम उतना ही मजा करेंगे और अगर तुमने फौरन ही छोड़ दी तो मेरी मनी छूटी ही ना होगी और तुम फारिग होकर लेटे होगे…” दीदी ने बोतल खोली और मैं और दीदी उसको घूंट घूंट पीने लगे।

दीदी कभी कभी पीती थीं। या जब हम बहुत बीमार हो जाते थे तो हमको दर्द कम करने की दवा के तौर पर कभी पिला देतीं थीं। अब भी हमारे पास काफी सारी बाटल्स बाकी थीं। मैंने तो चंद घूंट ही पिये होंगे की मेरा सिर चकराने लगा। दीदी ने भी दो घूंट और भर कर बोतल का कैप मजबूती से बंद कर दिया और बिस्तर पर जाकर लेट गईं। और टांगें खोलकर मुझे आकर अपनी टांगों के बीच में बैठने को कहा।

कामिनी भी उठकर दीदी की चूत के पास बैठ चुकी थी। और उसकी नजरें भी दीदी की खुली हुई चूत के अन्द्रुनी गुलाबी सुराख पर थीं।

दीदी मुझसे बोलीं-“प्रेम आओ पहले कामिनी की मनी निकलवा दें ताकि इसकी हालात ना खराब हो। और यह मनी क़तरा क़तरा बहाती हमें देखकर तड़पती रहे। यह कहते हुये दीदी ने कामिनी की रानों के बीच हाथ डालकर उसे खोला और अपना मुँह कामिनी की चूत से चिपका दिया।

कामिनी ने मेरा लंड पकड़ा और अपने मुँह में भर कर चूसने लगी। इससे मुझे पता चला की वह काफी देर से मेरा लंड चूसना चाह रही थी।

कुछ देर बाद दीदी उठीं और उन्होंने मेरा लंड खींचकर कामिनी के मुँह से निकाला और बोलीं-“अब बस प्रेम तुम कामिनी की चूत चूसकर उसकी मनी चूसो जब तक मैं अपनी चूत कामिनी से चुसवाती हूँ, इससे यह गीली भी हो जाएगी और तुम्हें डालने में आसानी होगी। वरना तेल वगैरह तो है नहीं हमारे पास कोकनट ओयल से और भी जाम हो जायेगी चूत…”

मैं कामिनी की रानें खोलकर उसकी गरम गरम चूत चूसने लगा जो पहले ही दीदी के थूक से गीली हो रही थी। दीदी कामिनी के मुँह पर बैठी अंदर तक उससे चुसवा रहीं थीं। और फिर कामिनी की मनी से मेरा मुँह भरने लगा। हम उतर आए कामिनी पर से। अब दीदी फिर बिस्तर पर लेट चुकी थीं और उनकी टांगें खुलीं थीं। जिनसे अब भी कामिनी का थूक टपक रहा था। मैं दीदी की टांगों के दरम्यान बैठ गया। मेरा लंड दीदी की खुली चूत से चंद इंच के फासले पर था और हल्के हल्के झटके मार रहा था।

दीदी बोलीं-“देखो प्रेम यह मेरा मुँह नहीं है। यह चूत है जो पहली बार खुलेगी। मेरी चीखों की परवाह नहीं करना। लेकिन जिस तरह मेरे मुँह में दीवानों की तरह झटके मारते हो मनी छोड़ते वक्त चूत में आहिस्ता आहिस्ता करना। फिकर ना करो यह कुछ ही दिनों की बात है फिर जैसा चाहे करना। मैं नहीं रोकूंगी तुम्हें। मेरी चूत से खून निकलते देखकर घबराना नहीं… यह होता है। और इससे कोई नुकसान नहीं होता। अच्छा अब तैयार हो जाओ…”

मैंने अपना लंड हाथ से सीधा किया और उसका ऊपरी सिरा, यानी उसकी टोपी दीदी की चूत पर रख दी। आहह… आप जानिए दोस्तों। एक अजीब सी लहर मेरे जिस्म में दौड़ती चली गई। क्या गर्मी थी वहाँ। ऐसा लगता था की बाहर के सर्द मौसम का चूत के अन्द्रुनी मौसम पर कोई फ़र्क नहीं पड़ा था। सिर्फ़ टोपी ही उस नरम हल्की सी भीगी लेकिन बहुत गरम चूत पर रखने से मेरा हाल बुरा होने लगा था। अभी तो आगे बहुत मंज़िलें तय करनी थीं।
 
मैंने आहिस्तगी से लंड को अंदर घुसाना शुरू किया ही था दीदी बोलीं-“प्रेम अपना पूरा बोझ ना डालो सिर्फ़ लंड को आगे की तरफ डालो। वो खुद अंदर घुसता चला जाएगा।

मैंने अपनी कमर और कुल्हों को सख़्त रखा और लंड को आगे की तरफ बढ़ाने लगा। मैं हैरान था… मेरे लंड की लंबाइ दीदी की चूत की गहराइयों में खोती जा रही थीं। लंड आहिस्ता आहिस्ता गायब हो रहा था, उस रेशमी गुलाबी चूत में।

बाजी का जिस्म ऐंठा हुआ था। उन्होंने अपना हाथ कामिनी के हाथों में दिया हुआ था। लेकिन आँख से आूँसू मुस्तकिल बह रहे थे। मुझको भी यही एहसास हो रहा था। मेरा लंड एक बहुत ही तंग लेकिन गरम सुराख में रेंगता हुआ आगे बढ़ रहा था। मेरा लंड आधा दीदी की चूत में जा चुका था।

अचानक दीदी की दर्द में डूबी आवाज आई-“आहह… प्रेम बस करो… आज एहसास हुआ बहुत ही लंबा है तुम्हारा लंड तो। ऐसा लगता है मर जाउन्गि। ख़तम होने का नाम ही नहीं ले रहा।

मैं बोला-“दीदी अभी तो आधा गया है…”

दीदी बोलीं-“हाई… अभी आधा गया है और मेरा दर्द से बुरा हाल है। तुम ऐसा केरो प्रेम जितना जा चुका है बस उतना ही डालकर आगे पीछे करो जब इतना सुराख खुल जाए तो फिर आगे बढ़ाना…”

मैंने सिर हिलाते हुये अपना लंड वापिस खींच लिया। वो दीदी की चूत की दीवारों से रगड़ खाता हुआ वापिस आ गया।

दीदी की एक जबरदस्त चीख निकल गई। मैंने देखा लंड पर काफी नमी लगी हुई थी। अब मैंने दोबारा डाला। दीदी की चूत अब काफी गीली हो चुकी थी, इसलिए जरा आराम से चला गया। मैं आहिस्ता आहिस्ता आगे पीछे करने लगा। लेकिन शायद दीदी यह भूल गईं थीं की यूँ आगे पीछे करने से मेरा क्या हाल होगा। यकीन जानिए दोस्तों मैं तो गोया हवा में उड़ने लगा।

मेरा बस नहीं चल रहा था की मैं अपने पूरे वजूद के साथ दीदी की चूत में घुस जाऊँ। मैंने सोचा जो होगा देखा जाएगा। और एक जबरदस्त झटके से मेरा लंड दीदी की चूत की सारी रुकावटों को तोड़ता हुआ उन गहराइयों में गुम हो गया और मैं तो पागल ही हो गया। मेरा लंड, मोटा और लंबा लंड, जो कभी कामिनी और दीदी अपने मुँह में पूरा ना ले सकी थीं।

आज दीदी की चूत में पूरा गायब हो चुका था। और दीदी की तो चीखें आसामान फाड़ रही थीं। और वो बहुत ही नंगी नंगी गालियाँ मुझे दे रही थीं। उनकी आँखों से आूँसू बह रहे थे। कामिनी अलग सहमी हुई बैठी थी। और मैं अपना लंड अंदर घुसाए मजे से दीदी के मम्मे चूसने में लगा हुआ था। दीदी की आवाजों में कमी आने लगी। वो आहिस्ता आहिस्ता मध्यम पड़ने लगीं। और मुझे भी कुछ कमी का एहसास हुआ। मैंने एक झटके से लंड को चूत से वापिस खींचा।

और दोस्तों दीदी की चूत से खून तेज़ी से बहने लगा। मेरे लंड पर भी काफी खून लगा था। दीदी की चीखें अब फिर मेरे कान फाड़े दे रहीं थीं। वो ना जाने क्या क्या बके जा रहीं थीं। रो रही थीं। लेकिन ना तो मुझे हटाया और ना टांगें बंद की। मैंने फिर अपना लंड उसी खून बहाती चूत में डाल दिया।

मैं झटके मार रहा था। मेरा बस नहीं चल रहा था। मुझे अपने लंड पर गुस्सा आ रहा था की यह इतना छोटा क्यों पड़ गया। अभी तो आगे जाना था आगे और भी गहराइयां थीं। लेकिन मेरा लंड बस इतनी ही गहराई में जा सकता था। और आप जानिए यह गहराइयां भी कमोबेश 9 इंच तक थीं।

दीदी की आवाज रुक चुकी थी। वो बे-सुध पड़ी थीं। हाँ मेरे झटके मारने से उनका जिस्म हिल रहा था वरना उनके जिस्म में कोई तहरीक (हरकत ) ना थी। और फिर मेरा फौवारा छूटा और मेरी मनी उन गहराइयों में बहती ना जाने कहाँ गई। और मैं हारे हुये खिलाड़ी की तरह दीदी के मम्मों पर गिर कर सांसें लेने लगा। और ना जाने कब सो गया।

आँख खुली तो दीदी मुझे जगा रही थी-“उठो प्रेम… जागो… मेरे ऊपर से उठो…”

मैं हड़बड़ाकर उठ बैठा। ऐसा करने से मेरा लंड जो दीदी की चूत में ही सिकुडा पड़ा था। और मनी के जमने की वजह से चूत की अन्द्रुनी दीवारों से चिपक सा गया था, खिंचता हुआ दीदी की चूत से बाहर निकला। दीदी की चीख निकल गई।

कामिनी भी जो सो चुकी थी उठ बेठी। कामिनी ने पूछा-“दीदी बहुत तकलीफ हुई क्या… मैं तो नहीं लूंगी कभी अपनी चूत में भाई का लंड…”

दीदी मुश्कुराते हुये-“अरे कामिनी तुझे क्या मालूम कितना मजा आया है मुझे…”

कामिनी बोली-“और यह क्या है दीदी…” उसका इशारा दीदी की चूत से बहे हुये जमे हुये खून की तरफ था।

“अरे यह तो बस एक बार निकलता है। अभी देखो प्रेम फिर मुझे चोदेगा…”

कामिनी बोली-“दीदी अब आप फिर चीखेंगी…”

दीदी बोलीं-“नहीं… अब नहीं, अब मैं एक नये तरीके से अपनी चूत खुलवाऊूँगी…” यह कहकर दीदी घोड़ी बन गईं…” फिर दीदी ने अपना पेट आगे झुकाते हुये गान्ड को बाहर की तरफ निकाला। ऐसा करने से उनकी चूत एकदम ऊपर की तरफ हो गई।

वो बोलीं-“प्रेम चल अब लंड डाल… हाँ अभी गान्ड के सुराख में ना डालना दोबारा चूत में ही डाल…”

मैं खड़ा हो गया। मेरा लंड तो पहले ही खड़ा हो चुका था। और मैंने अपनी घोड़ी बनी दीदी की चूत में अपना लंड डाल दिया बहुत तकलीफ हुई उन्हें लेकिन अब मैं आराम आराम से झटके दे रहा था। फिर भी हर झटके से वो अपनी गान्ड भींच लेतीं थीं। जिससे चूत और लंड को जकड़ लेती। इससे पता चलता था की लंड के उनकी चूत में चलने से उन्हें तकलीफ हो रही है।

खैर, कुछ ही देर बाद मेरी मनी दीदी की चूत में भर चुकी थी और मैं सो गया। मुझे होश आया तो सूरज आधा सफर तय कर चुका था। मैं उठकर बाहर आया तो कामिनी और दीदी बैठी कुछ बातें कर रहीं थीं। दीदी बेहद खुश थीं। उनके चेहरे पर कोई खास बात थी। गुलाबी हो रही थीं वो।

मैं आकर बैठ गया। बोला-“दीदी अपनी चूत दिखाओ। बहुत दर्द है ना…”

दीदी ने टांगें खोल दीं-“ऊऊफफ़्… ये क्या हाल हो गया…” मैं बोला-“दीदी यह चूत इतनी सूजी हुई क्यों है।

दीदी बोलीं-“अरे अभी कुछ देर में सही हो जाएगी। अभी मैं गरम पानी से धो लूंगी ना। अभी कामिनी मुझे नहला देगी। लेकिन उससे पहले प्रेम तू मुझे एक बार फिर घोड़ी बनाकर चोद ना…”

मैं बोला-“फिर दीदी… आपको और तकलीफ तो नहीं होगी…”

दीदी बोलीं-“होगी… लेकिन इस तकलीफ का इलाज यही है की जल्दी जल्दी चुदाई की जाए वरना रात को अगर किया तो बहुत ही दर्द करेगी…”

मैं खड़ा हो गया। दीदी ने बैठे बैठे ही मेरा लंड अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगीं। फिर मुँह से निकाल कर अपने हसीन और नरम सीने के बीच की माँग में फँसा लिया और मैं आगे पीछे करने लगा। लेकिन वो मजा कहाँ जो चूत में था।

मैं बोला-“दीदी घोड़ी बनो ना…”
 
मैं आकर बैठ गया। बोला-“दीदी अपनी चूत दिखाओ। बहुत दर्द है ना…”

दीदी ने टांगें खोल दीं-“ऊऊफफ़्… ये क्या हाल हो गया…” मैं बोला-“दीदी यह चूत इतनी सूजी हुई क्यों है।

दीदी बोलीं-“अरे अभी कुछ देर में सही हो जाएगी। अभी मैं गरम पानी से धो लूंगी ना। अभी कामिनी मुझे नहला देगी। लेकिन उससे पहले प्रेम तू मुझे एक बार फिर घोड़ी बनाकर चोद ना…”

मैं बोला-“फिर दीदी… आपको और तकलीफ तो नहीं होगी…”

दीदी बोलीं-“होगी… लेकिन इस तकलीफ का इलाज यही है की जल्दी जल्दी चुदाई की जाए वरना रात को अगर किया तो बहुत ही दर्द करेगी…”

मैं खड़ा हो गया। दीदी ने बैठे बैठे ही मेरा लंड अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगीं। फिर मुँह से निकाल कर अपने हसीन और नरम सीने के बीच की माँग में फँसा लिया और मैं आगे पीछे करने लगा। लेकिन वो मजा कहाँ जो चूत में था।

मैं बोला-“दीदी घोड़ी बनो ना…”

अब आगे...........................



दीदी घोड़ी बन गई और मैंने उस सूजी हुई चूत में अपना लंड डाल दिया। दीदी चीखने लगी।

कामिनी आकर दीदी के मम्मे सहलाने लगी। उनकी गान्ड पर हाथ फेरने लगी। मुझसे बोली-“दीदी ने ही कहा था ऐसा करने को?”

फिर दीदी और कामिनी एक दूसरे के होंठ चूसने लगीं। और फिर कामिनी दीदी के मुँह के सामने उकड़ू बैठ गई और अपनी चूत चुसवाने लगी दीदी से। दीदी की भी अब चीखें रुक चुकीं थीं और मैं झटके मार रहा था। मैं और कामिनी एक साथ ही अपनी मनी छोड़कर फारिग हुये। दीदी कब फारिग होतीं थीं यह पता ही नहीं चलता था। अब तो जब मैं अपना लंड उनकी चूत से निकालता तो मेरी ही मनी बहती थी वहाँ से। दीदी उठकर लंगड़ाते हुये कामिनी का सहारा लिए सामने बैठ गई। और कामिनी उन्हें थोड़ी देर पहले गरम किए पानी से नहलाने लगी।

मैं एक तरफ बैठा खाना खा रहा था। मेरा लंड दर्द कर रहा था। मैंने कामिनी से कहा कामिनी मैं भी नहाऊंगा। मेरा पानी भी गरम कर दे। और कामिनी ने एक लकड़ी की बनी बाल्टी जो हमें जजीरे पर जहाज की बहुत सी टूटी फूटी चीजों के साथ मिली थी उसको पानी से भरकर आग पर काफी ऊपर लटका दिया। पानी गरम होने के बाद मैं नहाने बैठ गया। दीदी और कामिनी अंदर झोंपड़े में ना जाने क्या बातें कर रहे थे।

***** *****
दोस्तों, अब आगे क्या कहूं… इस वक्त भी इतने सालों बाद भी मैं आपको अपनी दास्तान सुनाते हुये उस हल्के गरम पानी की हरारत अपने जिस्म पर महसूस कर रहा हूँ। ऐसा महसूस हो रहा है की बस अब मैं उठकर अपने उसी झोंपड़े में चला जाऊं जिसे अरसा हुआ मैं एक दूर दराज जजीरे पर छोड़ आया हूँ,

दोस्तों इस वक्त जब मैं आपको यह वाकियात सुना रहा हूँ। ना वो जजीरा है, ना वो झोंपड़ा, ना राधा दीदी दुनियाँ में हैं, ना ही कामिनी, बस मैं ही बाकी हूँ। ना जाने क्यों, किस चीज का इंतजार है मुझे, बस दोस्तों अब मैं जाता हूँ अपनी दुनियाँ में जहाँ मेरी बहनें नहाने के बाद मेरा इंतजार कर रहीं हैं। बाकी दास्तान बाद में । बस मैं कह चुका, क्या सुहाने दिन थे दोस्तों, क्या हसीन मौसम था, क्या ही समा था। अब सब याद आता है तो एक टूटे हुये ख्वाब की तरह लगता है।
***** *****



मेरी बहन राधा, मेरी दीवानी हो गई थी , उसका बस नहीं चलता था, की वो मुझे अपने बदन से जुदा ही ना होने दे, उसके चेहरे पर एक बेनाम सा सुकून था, एक अंजानी ख्वाहिशों की तकमील का मुकम्मल फसाना था। बहुत खुश थी वह, दिन में दो दफा तो ज़रूर हम यह चुदाई का खेल खेलते, बहुत मजा आता था, और मैं… मैं अपनी तो क्या कहूं। लगता था जैसे दुनियाँ की सारी खुशियाँ मिल गईं हों, हर चीज पा ली हो, मेरी मंज़िल सिर्फ़ यही हो। जैसे मैं आज तक जिंदा ही इसीलिए था। मैं बाज दफा अपनी गुजरी हुई जिंदगी को कोसता की आख़िर मैंने बहुत पहले ही यह लज़्जतें हाँसिल क्यों नहीं कर लीं। मैं तो आसमान पर पहुँच हुआ था, और दीदी तो हर वक्त चुदाई के लिए तैयार… मुझे याद है की हमें उन दिनों सिर्फ़ एक दूसरे के सिवा कुछ ना सूझता था, और मुझे यह कहते हुये अब बड़ा अफसोस हो रहा है की उन दिनों हम अपनी बहन कामिनी को बिल्कुल ही भूल गये थे, वो दूर किसी पत्फथर पर बैठी हमें एक दूसरे के साथ मगन देखा करती थी उसके दिल की क्या हालात थी हम दोनों ही बेखबर थे।

मुझे नहीं याद है की जिस दिन मैंने पहली बार दीदी को चोदा तो उसके बाद कामिनी की चूत चूसी या दीदी ने ही उसकी मनी निकलवाई हो। वो तो बस खामोशी से फितरत के कवानीन से वाकफियत हाँसिल कर रही थी। फितरत का सिखाया हुआ सबक याद कर रही थी। अभी पाया नहीं था उसने इस सबक को, लेकिन उस सबक को अपनी तमाम तर ख़ासूसियात के साथ देख रही थी, और फिर एक दिन जब मैं सुबह उठा तो दीदी को पैंटी पहने पाया, और इसका मतलब मैं अच्छी तरह जानता था। अब दीदी की चूत इस्तेमाल नहीं हो सकतीं थी, उनके पीरियड शुरू हो चुके थे। उस दिन जब हम नहाने गये तो दरख़्त के नीचे लेटे हुये थे। दीदी हस्ब-ए-मामूल मेरा लंड चूम रहीं थीं, उससे खेल रहीं थीं, सामने ही नदी में कामिनी का हसीन बदन बिजलियाँ चमका रहा था, पानी में आग लगा रहा था। मैं उसके गोरे बदन को पानी से निकलते और गायब होते देख रहा था। बहुत हसीन नजारा था।

अचानक दीदी बोलीं-“प्रेम लगता है मैं अभी तक पेट से नहीं हुई…”

मैंने चौंक कर पूछा-“क्यों दीदी?”

दीदी बोलीं-“अगर मैं हमला हो जाती तो मेरे पीरियड थोड़ी होते…”

मैं सिर हिलाकर रह गया।

कामिनी अब नहा कर आ चुकी थी और हमारे साथ ही बैठी थी। दीदी ने भी, मेरे लंड से खेलना बंद कर दिया था। लेकिन वो खड़ा हुआ था, भूखा था शायद।

कामिनी मेरे लंड को देखते बोली-“भाई… दीदी ने मनी नहीं निकाली तुम्हारी। देखो अभी तक खड़ा है…”

मैं बोला-“नहीं कामिनी, अभी नहीं निकली है मेरी मनी…”

और दोस्तों अब मेरी मनी ना जाने क्या हुआ था, बहुत टाइम लेती थी निकलने में, यहाँ तक की मैं दीदी की चुदाई के वक्त दीदी की चूत को तीन या चार बार दीदी की मनी से भरता महसूस करता लेकिन मेरी मनी बहुत ही देर में निकलती, और आप जानिए मर्द औरत की मनी छूटते बहुत ही आराम से महसूस कर सकता है। लंड चूत में बहुत ही फ्री हो जाता है और फिर फच… फच… की आवाजें आती हैं, कुछ देर बाद मनी खुश्क हो जाती है तो फिर औरत दोबारा साथ देती है।

दीदी दोबारा बोलीं-“अब इन पीरियड के बाद प्रेम तुम मुझको हमला ज़रूर कर देना…”

मैं बोला-“दीदी मैं कैसे करं आप बताएं। आपने जिस तरह सिखाया है, मैं तो उसी तरह आप की चूत चोदता हूँ…”

दीदी बोलीं-“हाँ… बस यूँ ही करते रहो, पीरियड के बाद चुदाई में प्रेग्नेन्सी के चान्सेस बहुत बढ़ जाते हैं…”

अचानक मुझे एक ख्ययल आया। मैंने दीदी से पूछा-“दीदी आपको यह सारी बातें कैसे पता चल गईं…”

दीदी मुस्कुरई-“प्रेम तुम और कामिनी मेरी सामने ही पैदा हुये हो, यानी जब तुम दोनों माँ के पेट में थे, जब मैं ही हुआ करती थी माँ के साथ। बहुत सी बातें तो मुझे उसी दौरान पता चलीं। फिर कामिनी की पेदाइश के वक्त तो मैं माँ के साथ कमरे में ही थी, जहाँ कामिनी पैदा हुई थी…” बाकी बातें मुझे माँ ने खुद ही यहाँ आने से कुछ साल पहले बताईं थीं, क्योंकी उनके ख्याल में मेरा यह जानना ज़रूरी था। क्योंकी मेरी शादी होने वाली थी।

मैं बोला-“दीदी, माँ ने तुम्हें यह चुदाई के और मनी चूसने के तरीके बताए थे…”

दीदी बोलीं-“नहीं पगले, यह तो मैंने एक मैगजीन में देखें हैं, आओ मैं तुम दोनों को दिखाती हूँ…”

दीदी हमें उसी संदूक की तरफ लिए जा रहीं थीं, जो हमें जहाज के सामान से मिला था। और जो दीदी के कब्ज़े में ही रहता था, दीदी ने उसे खोला और उसमें से अंदर हाथ डालकर एक मोटा सा मैगजीन निकाला-“यह देखो यह मुझे इसी सामान से मिला था। इतने साल मैंने छुपाकर रखा। तुम दोनों छोटे थे और यहाँ से निकलने की कुछ उम्मीद थी, लेकिन अब तुम दोनों हर बात जान चुके हो…”

उस मैगजीन में बहुत सी तस्वीरें थीं, ब्लैक & वाइट थीं। उसमें मर्द और औरत के ताल्लुक़ात को तस्वीरों की शकल में दिखाया गया था, और कई जगह दो औरतें एक मर्द के साथ और कहीं एक से ज्यादा मर्द दो औरतों के साथ चुदाई करते नजर आए। और कहीं कहीं औरत की गान्ड के सुराख में लंड डालते हुये दिखाया गया, औरत का दर्द से बुरा हाल था।

मैंने मैगजीन देखते पूछा-“दीदी इसमें दो औरतों को एक ही मर्द चोद रहा है, मैं आपको और कामिनी को एक साथ चोद सकता हूँ क्या?”

दीदी बोलीं-“नहीं प्रेम… यह मॉडल्स हैं। देखो नीचे क्या हिदायत लिखी हैं, इसमें चुदाई एक ही औरत की हो रही है दूसरी सिर्फ़ उन दोनों को मनी छोड़वाने में मदद कर रही है…”

“लेकिन दीदी इस तरह मैं आप दोनों के साथ कर तो सकता हूँ ना…”

दीदी बोलीं-“क्यों नहीं, हम करेंगे ऐसे ही…” फिर वो बोलीं-“अच्छा प्रेम अब तुम दोनों जाओ। आज मैं तो जा रही हूँ लेटने मेरा सिर दर्द कर रहा है कुछ देर सो जाउन्गि। तुम दोनों घूम आओ जंगल की तरफ, हाँ उस हिस्से की तरफ नहीं जाना जहाँ हम नहीं गये कभी…”

मैं और कामिनी हाथ पकड़ कर आगे बढ़ गये, और मैंने चिल्ला कर दीदी से कहा-“अरे दीदी… बच्चे नहीं हैं हम अब…”
और दीदी हँसते हुये झोंपड़े की तरफ बढ़ गईं। मैं और कामिनी बढ़ते गये एक दूसरे का हाथ थामे, नदी से आगे निकल गये। कामिनी का बदन धूप में दमक रहा था। हम दोनों बातें करते हुये जा रहे थे। वो मुझको बता रही थी, की उसने पिछले दिनों एक बहुत ही खूबसूरत चिड़िया (बर्ड) पकड़ी है, बहुत ही प्यारी आवाज है।

लेकिन मैं तो अपनी हसीन बहन के जलवों में खोया हुआ था, उसके लचकते जिस्म की मस्त और कमसिन जवानी की तड़प में गुम हुआ जा रहा था। क्या उठान थी उसके कमसिन बदन की, क्या कटाव थे, क्या लचक थी, कमर जैसे लचक लचक जाती थी, बेहद पतली और मजबूत कमर। इस कमर को पकड़ कर कामिनी की चूत में लंड डालते कितना मजा मिलेगा। मैं सोचने लगा, मेरी सोच अब एक मर्द की सोच थी, जो तमाम राज और औरत के जिस्म के सारे नशे-ओ-फराज जानता था। अब मैं 6 साल का बच्चा ना था। 20 साल का होने को था, और वो भी सत्त्रहवे (17) साल में दाखिल हो चुकी थी।

क्या नशा होगा इस की चूत में, मेरी नजर उसकी बल खाती कमर से फिसलती हुई उसकी रानों के दरम्यान दबी हुई कयामत की तरफ गई, जो भरी भरी गदराई हुई रानों से इस वक्त रगड़ खा रही थी, क्या गजब की पतली लकीर थी दोनों रानों के बीच। दोनों फैले हिस्से एक लम्हे को बाहर आये और अगले ही लम्हे छुप जाते, जैसे चंद बदलियों में कहीं खो गया हो, बहुत ही कमसिन और खूबसूरत चूत थी मेरी बहन की और उतनी ही नरम-ओ-नाजुक, अब तक मैं इस चूत को चुसता ही रहा था। लेकिन अब मैं अलग ही नज़रिए से सोच रहा था, अब तक मेरे लबों ने उसकी कंवारी चूत का पानी चूसा था, उसकी गरम मनी मेरे ही होंठों ने पहली बार चूसी थी, लेकिन वो चूत, उसकी गुलाबी रंगत। उसके कोमल लब, अंदर की हयात बख्श गर्मी, और महकती मनी अभी कंवारी थी, वो अभी कमसिन लड़की ही थी, अभी गुलाब नही बनी थी। वो तो अभी एक कली थी, जो बस खिलने को ही थी, और जब ये कली खिलेगी तो दुनियाँ महक जाएगी मेरी, कितना ही हसीन खयाल था चलते चलते ही मेरा लंड खड़ा हो गया और रानों के बीच लटकता हुआ टकराने लगा।

उससे देखकर कामिनी बोली-“क्या हुआ प्रेम दीदी की चूत याद आ रही है…”

इस वक्त हम काफी दूर आ चुके थे जंगल में। मैंने कामिनी का हाथ पकड़ कर उससे झटके से सीने से लगाते हुये कहा-“नहीं कामिनी मुझे तो बस तेरी चूत चाहिए…”

वो बोली-“मेरी चूत, तुम्हें तो दीदी की चूत पसंद है ना भाई…”

मैंने कहा-“यह तुझसे किसने कहा…”
 
वो बोली-“किसी ने नहीं… लेकिन तुम अब हर वक्त दीदी की चूत में ही डालते रहते हो…”

मैं बोला-“नहीं कामिनी सच कह रहा हूँ, तेरी चूत जितनी खूबसूरत और खुशबूदर है दीदी की थोड़ी है…” यह कहकर मैं घुटनों के बल बैठा और अपनी छोटी बहन की बंद चूत में जबान घुसाने लगा, उसने टांगें थोड़ी सी खोल दीं, अब जबान अंदर लपलपा रही थी।

वो एक झुरझुरी सी भरिी हुई बोली-“प्रेम भाई पता है आप कितने दिनों के बाद मेरी चूत चूस रहे हैं…”

मैंने बोला-“अच्छा चल कामिनी अब माफ कर दे और लेट जा, मैं तेरी चूत चुसूंगा अभी…”

वो लेट गई और टांगें खोलकर उंगली से चूत के दोनों लब खोल दिए, और मैं उस चूत की लज़्जत में डूब ही गया। और होश तब आया, जब अचानक गहरी साँसों के साथ कामिनी अपनी मनी से मेरा मुँह भरने लगी। आज कामिनी ने बहुत ही जल्दी अपनी मनी छोड़ दी थी, वो बहुत ही गरम थी आज। मनी छोड़ते ही उसने दोबारा मेरा मुँह चूत से लगाना चाहा, मैंने फिर मुँह लगाया ही था, की अचानक मेरा मुँह भरने लगा। कामिनी का गरम पेशाब उसकी चूत के छोटे से मुँह को चीरता हुआ मेरे मुँह को भिगो रहा था। जवानी की महक से महकता मेरी बहन का नशीला पेशाब वो काफी देर बाद मेरा मुँह भिगोता रहा और मैं सरशार हो गया। और फिर पेशाब के आख़िरी कतरे तक मैंने उस नन्हें से सुराख से चूस लिए। अब फिर उसने मेरा मुँह अपनी चूत से सख्ती से चिपकाना चाहा।

मैंने मुँह हटाया और कहा-“कामिनी चूत चुदवाएगी नहीं…”

वो हैरत से बोली-“अभी भाई, बहुत दर्द होगा अभी तो…”

मैं बोला-“दर्द तो बाद में भी होगा, दीदी को देखा अब कितने मजे से जाता है मेरा लंड… पहली बार कितनी मुश्किल से घुस्सा था…”

वह बोली-“चलो ठीक है प्रेम भाई… अब मेरी चूत अपने लंड से खोलो ना…”

मैं बोला-“कामिनी तू अपनी टांगें खोलकर चूत को उंगलियों से खोल ले, मैं अंदर डालने की कोशिस करूँगा, दर्द हो तो बता देना…”

उसने सिर हिलाया और जो मैंने बताया था वैसे ही किया। और मैंने अपना लंड सहलाया, जो बहुत ही टाइट हो रहा था। कामिनी की चूत में जाने का खयाल ही इतना खूबसूरत था। मैं उकड़ू बैठ गया और कामिनी की चूत के ऊपरी सिरे पर उभरे हल्के गुलाबी रंग के दाने पर अपना लंड हल्के हल्के फेरने लगा। वह बहुत लज़्जत महसूस कर रही थी, फिर आहिस्ता आहिस्ता मैंने अपनी टोपी उसकी नम चूत में आगे पीछे करने लगा। इससे शायद वह बहुत लुफ्त हाँसिल कर रही थी, उसकी गान्ड हिलने लगी और वह उचक उचक कर टोपी को चूमने लगी, क्या खाश मंजर था, जब चूत का अन्द्रुनी गुलाबी हिस्सा मेरे लंड की टोपी को चूम कर पीछे जाता तो उसका मधुर रस का हल्का सा नम धब्बा मेरे लंड की टोपी पर होता, अब मैंने टोपी को थोड़ा सा अंदर धकेला, और कामिनी का जिस्म बेचैन हुआ। उसके मजे में कमी आई थी, उसने अपनी मदहोश आँखों को खोला और चूत की तरफ देखा।

“अरे प्रेम भाई आपने अभी तक अंदर नहीं डाला मैं तो समझी चूत खुल गई मेरी…”

मैं बोला-“नहीं कामिनी अभी तो मेरा लंड तेरी चूत को चूम रहा था…”

वह बोली-“भाई जल्दी से पूरा अंदर गायब करें ना जैसे दीदी के करते हैं…”

मैंने सिर हिलाया। और थोड़ा सा दबा दिया लंड को। वह एक इंच अंदर घुसता चला गया।

कामिनी की घुटी-घुटी आवाज सुनाई दी-“हाय… मैं मर गई…”

यह एक कली की आवाज थी जो गुल्लाब बनने जा रहा था, यह कमसिनी की आवाज थी जिसका हुश्न वोही लोग जानते हैं जो इन माहौल से गुजर चुके हैं। अब मैं अंदर बाहर कर रहा था लंड को और वह बेचनी से सिर को इधर उधर पटक रही थी।

मैंने फिर हिम्मत की और लंड फिसलता हुआ उस तंग सुराख में और अंदर चला गया, कामिनी की हालात गैर होने लगी, लेकिन अब मैं और बर्दाश्त नहीं कर सकता था। मैंने उसके मम्मों पर हाथ रखे, और एक जबरदस्त झटके से मेरा लंड उस रेशमी घेरे को पार कर गया, मेरा लज़्जत के मारे और कामिनी का दर्द के मारे बुरा हाल हो गया, क्या ही चीख थी उसकी। दरख़्तों से चिड़ियाँ डर कर उड़ गईं। भला उन्होंने ऐसी खूबसूरत चीख पहले कब सुनी थी। एक सुरीली चीख, एक लड़की की औरत बनने की चीख। और वह चीखती ही जा रही थी, और मैं सख़्त पड़ा था। कुछ देर बाद उससे थोड़ा सुकून मिला, तो मैंने लंड बाहर खींचा। और फिर एक बार हलचल मच गई, उसकी चीखें रुक ही नहीं रहीं थीं।

और खून से तो पूरी घास तर हो गई, रंगीन हो गई, बेहद खून बह रहा था उसकी चूत से, और वह चूत पर हाथ रखे उसी तरह रो रही थी, चिल्ला रही थी, भाई क्या कर दिया। भाई मेरी चूत फट गई है कुछ करो, दीदी को बुलाओ, मैं मर रही हूँ भाई। मैंने एक लम्हे इंतजार किया और फिर उस खून बहती चूत में अपना लंड दोबारा डाल दिया, वह चीखी लेकिन इस बार उस चीख में वह दर्द ना था, और मैं जबरदस्त झटके देने लगा। वह थोड़ी देर चूत पर हाथ रखे पड़ी रही फिर हटा लिया और सख़्त पड़ी थी। अब हर झटके से उसका जिस्म खिंच जाता, और चेहरे पर तकलीफ के आसार नजर आते, और फिर मेरी मनी छूटी। उस चूत ने पहली बार मनी को चखा, पहली बार गरम गरम मनी चूत की गहराइयों में नदी के पानी की तरह बहती कहीं गायब हो गई, और मैं उसके सीने पर गिरा, उसके हसीन निप्पलस को दबाने और मम्मे चूसने लगा, क्या ही गुलाबी निपल्स थे मेरी बहन के। कुछ देर बाद मेरा लंड सिकुड़ने लगा तो मैंने आहिस्तगी से बाहर खींच लिया, और कामिनी के बराबर ही लेट गया।
 
कामिनी ने करवट बदली और मेरे सीने से बच्चे की तरह लिपट कर रोने लगी-“भाई बहुत दर्द हुआ है मुझे और आप निकाल ही नहीं रहे थे, अंदर डाले ही जा रहे थे…”

कामिनी अगर मैं नहीं डालता तो और दर्द होता अब देखो आराम हो गया ना, चलो अब नदी पर चलें वहाँ तुम अपनी चूत धोओगी ना तो सुकून मिलेगा…”

वह बोली-“नहीं भाई मुझसे तो चला भी नहीं जाएगा, मेरी रानें चूत को छूती हैं तो दर्द होता है…”

मैंने अपनी नाजुक सी हसीन बहन को अपने बाजुओं पर उठाया और नदी की तरफ चल पड़ा। वहाँ जाकर वह पानी में उतर गई और मैं उसकी हसीन चूत देखता रहा, किनारे पर बैठा। मैंने भी अपना खून से भरा लंड धोया, कुछ देर बाद वह अपनी चूत लिए पानी से बाहर आई, वह अजीब तरह गान्ड निकाल कर चल रही थी।

मैं बोला-“चल कामिनी अब घोड़ी बन जा मैं तुझे एक बार और चोदता हूँ तेरा दर्द बिल्कुल ख़तम हो जाएगा…”

वह घबरा गई-“नहीं भैया… अब आज नहीं… मेरी चूत सो गई है। कल चोद लेना…”

मैं बोला-“नहीं कामिनी कल तेरी चूत और सूज जाएगी, आज ही अपने सुराख को और बड़ा करवा ले दर्द कल तक कम हो जाएगा…”

वह कुछ देर बाद बहस करके आख़िर वहीं घास पर घोड़ी बन गई-“भाई अब आहिस्ता चोदना…” वह बोली।

और मैं अपनी हसीन घोड़ी के पीछे आ खड़ा हुआ, उसकी गान्ड का सुराख भी सामने था, ना जाने कब यह सुराख भी खोलूँगा मैं, अभी कितना नाजुक और बंद है, मैं बेइखतियार होकर उसकी गान्ड का सुराख चाटने लगा, उसको भी मजा आया, और वह पालतू ब्रबल्ली की तरह गान्ड हिला हिला कर चटवाने लगी। मैं खड़ा हुआ और उसकी चूत को उंगलियों से खोला, वाकई बहुत तबाही मचाई थी मेरे लंड ने वहाँ। गुलाबी रंग लाली में बदल गया था।

लेकिन दीदी की चूत भी तो ऐसी ही हुई थी। बाद में सब ठीक हो जाता है, यह सोचकर मैं पीछे उकड़ू बैठा और बगैर इंतजार किए पूरा लंड अंदर घुस्सा दिया। वह फिर दर्द से चीखने लगी, अबकी दफा वह तीनन बार अपनी मनी छोड़कर निढाल हो गई थी। मैं अभी तक झटके मार रहा था, और फिर मेरी मनी मेरी बहन की चूत को सराबोर करने लगी और हम दोनों घास के फर्श पर निढाल गिर गये। मेरी खूबसूरत बहन जवान हो गई थी, आज बहुत खूबसूरत दिन था मेरे लिए, और यह मजे मैं अब रोज लूट सकता था। अब उसकी चूत का रास्ता हमेशा के लिए मेरे लंड के लिए खुल चुका था, हम लेटे थे की दीदी हमें तलाश करती आ पहुँची, हमें यूँ पड़ा देखकर वह चौंकीं। और कामिनी की रानें खोलकर उसकी चूत के लब खोल दिए।

और खून के धब्बे देखकर बोली-“यह क्या प्रेम, चोद दिया तुमने कामिनी को…”

मैं मुश्कुराने लगा।

दीदी भी हँस पड़ीं-“शैतान एक दिन भी बगैर चूत के नहीं रह सकता था। बेचारी बच्ची की इतनी नाजुक सी चूत को फाड़ दिया, चीखी नहीं यह…”

“बहुत दर्द हुआ दीदी, भाई ने इतना बड़ा लंड पूरा डाल दिया और मैं तड़पती रही…”

दीदी कामिनी की छोटी सी चूत सहलाने लगीं, और बोलीं-“खबदाफर प्रेम… अगर तुम दो दिन तक कामिनी की चूत के पास अपना लंड लेकर गये, बच्ची है अभी… तुमने तो एक ही दिन में दो दफा उसकी चूत खोल दी, बीमार हो गई तो…”


और वाकई कामिनी को रात में दर्द से बुखार आ गया, मैं शर्मिंदा था अब। मैंने अपनी छोटी बहन की चूत किस बेददी से खोली थी, खैर अब क्या हो सकता था, अब तो खुल चुकी थी, अब तो दुनियाँ की कोई ताक़त उस चूत को पहले जैसा नहीं कर सकतीं थी, दूर से देखने से ही उसकी चूत के लब कुछ फासले पर हटते नजर आ रहे थे।
***** *****

तो दोस्तों, आप मेरे साथ मेरे दास्तान के उस हिस्से पर आ गये हैं, जहाँ से मैंने अपनी जिंदगी का बेहतरीन दौर गुजारा, अब आगे के वाकियात मैं आपको बाद में क्यों ना सूनाऊूँ। मैं जरा अपने बीते दिन याद कर लूं और अपने खयालों में वापिस उसी जजीरे पर जा पहुँचू जहाँ मेरे सामने मेरी छोटी बहन कामिनी अपनी चूत पहली बार खुलवा कर साकित पड़ी थी,

तो दोस्तों अब इजाज़त… बस मैं कह चुका। मेरे दोस्तों अब मैं आपको जो वाकियात सुनाऊंगा, हो सकता है वो आपको बहुत अजीब लगें, आपको शरम महसूस हो, तो दोस्तों उसकी वजह यह है की आप यह दास्तान अपने आरामदेह कमरे में बिस्तर में घुस्से पढ़ रहे हैं, आपके इर्दगिर्द एक मुहजीब मश्रा है, आप किसी ना किसी बस्ती, गाँव या शहर में रहते हैं, जहाँ तहज़ीब है, जहाँ रस्म-ओ-ररवाज हैं, जहाँ आपको इंसानी ज़रूरत की हर चीज मुयस्सर है, लेकिन मैं, जिन कमजोर लम्हों की दास्तान आपको सुना रहा हूँ। उन लम्हों में यह चीजें मेरे लिए एक भूली बिसरी कहानी के सिवा कुछ अहमियत नहीं रखती थीं।

और हाँ अब मैं अपनी दास्तान का तासूलसूल जोड़ते हुये अपने दोस्तों को याद दिलाता चलूं, की यह 1949 की शुरू की या 1948 की बात है जो मैंमें बयान कर रहा हूँ, हमें यहाँ आए दसवा साल गुज़रता जा रहा है, और 11 साल होने को हैं, मैं जो 9 साल की उमर में यहाँ आया था। 20 साल का होने को हूँ। मेरी बहन राधा जो 15 साल की थी अब 26 की हो रही है, और मेरी बहन कामिनी जो सिर्फ़ 6 साल की कमसिन उमर में यहाँ आई थी आज 17 साल की भरपूर जवान है, और आज वोही भरपूर जवानी मैंने मसल दी थी।

क्या मस्त रसभरी होती है यह जवानी भी, आज उमर के इस हिस्से में गुजरी जवानी को याद करना भी बेहद हसीन तजुर्बा है, आज जब मैं यह दास्तान आपको सुना रहा हूँ, मैं उमर की कई मंज़िल तय कर चुका हूँ, और ना जाने कब जिंदगी की शाम हो जाए, बस कुछ ही वक्त है मेरे पास, आज इस दुनियाँ बेसबात में ना कामिनी है और ना राधा, दोनों मुझे छोड़कर जा चुके हैं, लेकिन यह दास्तान सुनाते हुये मैं आज भी अपनी दोनों बहनों को अपने बहुत पास, बिल्कुल अपने करीब बैठे महसूस कर सकता हूँ, जैसे वो यहीं हों और दिलचस्पी से मेरी दास्तान को सुनकर मुश्कुरा रही हों । जैसे कह रही हों, देखो हमने कैसा वक्त गुजारा है, आज भी मैं अपनी दोनों बहनों की जिस्म की खुशबू महसूस कर सकता हूँ, उनके कंवारे जिस्मों की खुशबू, जिन को मैंने कुछ साल गुजरे अपने इन्हीं हाथों से आग के सुपुर्द किया था।

आज भी उनके बे-लिबास जिस्म मुझे वापिस उसी पुरीसरार जजीरे के नाम और खूबसूरत फ़िज़ा में वापिस ले जाते हैं, जहाँ मैं होता हूँ, मेरी हसीन और कमसिन बहन कामिनी की शोखियाँ होतीं हैं, या हमें फितरत के हसीन राज सिखलाती दीदी के ज़ज्बात और शरम से लरजती आवाज, आज भी मैं वो मौसम महसूस कर सकता हूँ, वो सर्दी की हसीन रातें अपने जिस्म पर वैसे ही महसूस करता हूँ जब हम तीनों एक दूसरे से लिपटे एक दूसरे की मनी से लिथरे बेसूध सो जाया करते थे। अपनी बहनों की चूत से टपकती उनकी कंवारी मनी की खुशबू आज भी मेरी सांसों में जिंदा है, वो ना रहीं तो क्या हुआ, उनकी यादें तो अभी जिंदा हैं, मैं तो अभी जिंदा हूँ, बातें बहुत हो गईं। आप भी मुझ बूढ़े से तंग आ जाते होंगे, कितनी बातें करता हूँ। लेकिन दोस्तों भला मेरे पास इन यादों के सिवा है ही क्या, तो बातों को फिर किसी वक्त के लिए उठा रखते हैं, आप आगे के वाकियात मुलाहिजा फरमायें।
***** *****
 
आपने मेरी दास्तान का वो हिस्सा तो मुलाहिजा फरमा लिया जब मैंने अपनी कंवारी और कम-उमर बहन कामिनी को कली से फूल बना दिया, मैं बहुत मदहोश था, दीदी की चूत भी बहुत हसीन थी, बहुत तंग थी। बेहद मजा था वहाँ भी, बहुत गर्मी थी वहाँ, लेकिन जो बात कामिनी की चूत में थी उसके सामने दीदी की चूत की आग मंद पड़ने लगी थी।

कामिनी को बुखार आ गया था, चूत खुलने की वजह से। उसकी चूत पर सूजन थी, रात भर वो बुखार में तपती रही। सुबह उसकी तबीयत कुछ संभल गई। चूत की सूजन भी कम होती दिखी, सुबह जब वो अंगड़ाई लेती नींद से बेजार होकर झोंपड़े से बाहर आई, तो मैं और दीदी कुछ दूर बैठे भुने हुये साँप खा रहे थे।
यह यहाँ पानी में रहते थे, जहरीले थे। लेकिन बहुत कम, अगर काट भी लें तो थोड़ा सा नशा हो जाता था, लेकिन अगर इनकी खाल खींचकर और जहर की थैली अलग करके इन का भुना हुआ गोश्त खाया जाए तो यह बेहद लजीज होते थे। अब यह कम ही पकड़े जाते थे, होशियार हो गये थे। जिस दिन यह हाथ लगते, हम बहुत खुशी से इनको खाते थे। आज इत्तिफाक से हमने तीन साँप पकड़ लिए थे। वैसे तो दो साँप ही बहुत थे हमारे लिए लेकिन हमने तीनों ही भून लिए थे, और मजे से खा ही रहे थे। कामिनी हमें देखकर वहीं आने लगी, अजीब बेढंगी चाल चल रही थी वो।

मुझे तो हँसी आ गई उसको देखकर, चूत अभी थोड़ी सूजी हुई थी, तो दोनों रानों के बीच से चूत का मुँह बाहर को निकला महसूस हो रहा था। और क्योंकी वो अपनी रानों को मिलाकर नहीं चल रही थी, तो अजीब गान्ड निकाल कर चलती बेहद अजीब लग रही थी। मैं हँस पड़ा, लेकिन उसने मुँह बनाया और खाने लगी, यह सांप उसकी भी पहली पसंद थे। खाने के बाद, दीदी तो अपनी खून आलूदा चूत लिए नदी की तरफ चली गईं, हमें वहाँ छोड़ गईं, और जाते जाते मुझे याद भी दिला गईं की-“प्रेम कोई चुदाई नहीं आज…”

और मैं सिर हिलाकर खामोश ही बैठा रहा। उनके जाने के बाद मैं कामिनी के पास आ बैठा, उसने रुख मोड़ लिया,
क्या हुआ कामिनी, क्यों नाराज हो?”

“भाई मुझसे बात ना करो, कितना दर्द है तुम भला क्या जानो…”

“कामिनी यह दर्द कभी ना कभी तो होना ही था, अच्छा तू सच बता मजा नहीं आया था क्या तुझको…”

वो कुछ देर खामोश बैठी रही-“भाई, अब तुम क्या करोगे, दीदी के तो पीरियड हैं, और मेरी चूत तो बहुत सूजी हुई है, आज कैसे चुदाई करोगे…” उसके लहजे में बहुत मासूमियत थी।

मैं रोनी शकल बनाकर बोला-“हाँ… कामिनी आज मुझसे कोई प्यार नहीं करेगा। तुझको भी दर्द है। अब पता नहीं कब तेरी यह प्यारी सी चूत मुझे मिलेगी, कब मैं इसे चूसूंगा। कब इसमें अपना लंड डालूंगा…”

वो बोली-“प्रेम भाई, क्या अब भी मुझ दर्द होगा…”

मैं बोला-“अरे नहीं पगली। दीदी को नहीं देखा। अब कैसे आराम से खड़े खड़े ही मेरा पूरा लंड अपनी चूत में ले लेतीं हैं, कुछ दिन बाद तेरी चूत जब सही होगी तो खुल चुकी होगी…”

हम कुछ देर बातें करते रहे, दीदी वापिस आती नजर आईं, वो बोलीं-“तुम दोनों को आज नहाना नहीं है क्या…”

कामिनी बोली-“दीदी मुझे तो सर्दी लग रही है…”

मैं उठा और नदी की तरफ जाते हुये बोला-“दीदी मैं तो जा रहा हूँ नहाने…”

मैं नदी पर आ गया, काफी सर्दी थी। लेकिन नदी पर नहाते हुये, बड़ा मजा आया, मैं नहा कर जब वापिस पहुँचा तो क्या देखता हूँ, दीदी कामिनी की दोनों टांगें खोले बीच में बैठी थीं, कामिनी ऊपर एक पत्थर पर बैठी थी, और दीदी के बाल पकड़े हुये थी, और दीदी उसकी सूजी हुई चूत को जबान से चाट रही थीं। मैं हैरान रह गया, मैं करीब जाकर बैठ गया, और उन दोनों बहनों के मजे से भरी आवाजें सुनता रहा। मेरा लंड बेहद गरम होकर खड़ा हो चुका था।

और कुछ ही देर बाद कामिनी सुकून में आती नजर आई। और दीदी को मैंने घूँट भरते देखकर अंदाजा लगा लिया की कामिनी अभी अपनी मनी छोड़ रही है और दीदी उसे पीने में मगन हैं। जब दीदी ने कामिनी की चूत से मुँह हटाया तो मैं उनके भीगे हुये होंठ और कामिनी की चूत से टपकती एक महीन सी मनी की लकीर देखते ही समझ गया की कामिनी भरपूर तरीके से फारिग हुई है।

मैंने अपनी शरारत से मुश्कुराती दीदी को देखकर कहा-“क्यों दीदी आपने तो मुझे कामिनी की चूत को छूने से मना किया था, और खुद आप उसकी मनी पी रही हैं, चूत चाट रहीं हैं।

दीदी मुश्कुराते हुये बोलीं-“प्रेम, पता है मैं तुम्हें एक राज की बात बताती हूँ आज। तुमने कहीं किसी कुत्ते (डॉग) को कुतिया की चुदाई करते देखा है…”

मैंने नहीं में गर्दन हिला दी।

वो बोलीं-“कुत्ता जब कुतिया को चोदता है तो कुतिया की चूत में एक काँटे जैसे चीज होती है जो कुत्ते के लंड को मजबूती से पकड़ लेती है, कुत्ते का लंड उसमें फँस जाता है…”

मैं बोला-“दीदी आपको यह कैसे पता?”
 
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