hotaks444
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वो बोलीं-“मुझे याद है हाईस्कूल में हम सारी दोस्तों का पसंदीदा काम कुत्ते और कुतिया की चुदाई देखना होता था, अगर हममें से कोई एक भी यह मंजर देखता तो अगले दिन स्कूल में सारे दोस्तों से खूब नमक मिर्च लगाकर बयान करता…”
वो बात आगे बढ़ाते बोलीं-“पता है जब कुत्ता अपनी मनी कुतिया की चूत में छोड़ देता है और कुतिया जब ठंडी हो जाती है तब वो कुत्ते के लंड को छोड़ती है। और कुत्ता वहाँ से दुम दबाकर भाग जाता है, फिर पता है। कुतिया, अपनी चूत चाट्ती है। पता है वो ऐसा क्यों करती है…”
“वो इसलिए ऐसा करती है की अपनी फटी हुई चूत से दर्द को ख़तम कर सके, और तुम लोग जान लो थूक एक कुदरती दवा है। जब मेरी चूत तुमने खोली थी तो मैं भी कामिनी से खूब चुसवाती थी और मुझे बड़ा सुकून मिलता था। तो यही मैं भी अपनी छोटी बहन की चूत चाट चाटकर उसका दर्द कम कर रही हूँ, तुम भी ऐसा कर सकते हो, लेकिन सिर्फ़ चूत चूसना, बस अंदर उंगली भी नहीं जानी चाहिए…”
मैं बोला-“लेकिन दीदी मेरे लंड की हालात खराब नहीं होगी क्या…” मैंने अपने लंड की तरफ इशारा किया जहाँ से चंद चमकती हुई बूँदें, मुँह से बाहर निकले किसी के मुँह या गरम चूत में जाने को बेताब नजर आती थीं।
दीदी बोलीं-“अरे मेरे प्यारे भाई। मैं हूँ ना…” यह कहकर वो करीब आईं, मेरी टांगें खोलकर बीच में बैठ गईं और मेरा लंड उनके गुलाबी होंठों में से होता उनके हलक की सैर करने लगा और वो उसे तेज़ी से चूसने लगीं, और कुछ ही लम्हों बाद दीदी के बाल मजबूती से जकड़े मैं उनके हलक में अपनी मनी निकाल रहा था।
मैं ठंडा हो चुका था। कामिनी ठंडी हो चुकी थी। दीदी को फिलहाल ठंडा नहीं किया जा सकता था। उनके पीरियड की वजह से।
तो दोस्तों, वक्त की रस्सी को थोड़ा सा खींचते हैं, क्योंकी वाकियात की रफ़्तार से आप यकीनन बोर हो गये होंगे। तो अब दीदी की डेट्स ख़तम हो चुकी हैं, कामिनी की चूत की सूजन ख़तम हो चुकी है, और आज रात हमारा प्रोग्राम चुदाई का है। रात का हम तीनों को इंतजार है, रात आई, हमने खाना खाया, थोड़ी शराब पी, और फिर अंदर आ गये।
फिर दीदी ने शुरुआत की, कामिनी का जिस्म चूमना शुरू कर दिया। उनकी देखा देखी मैं भी कामिनी के नोकीले ऊपर को उठे हसीन मम्मे चूसने लगा। दीदी उसकी चूत के मजे लूट रहीं थीं। और कामिनी की तो, उसकी तो बस आवाजें गूंज रहीं थीं, पूरे झोंपड़े में, क्योंकी हम इस जजीरे पर तन्हा थे, इसलिए हमारी मस्ती में भरी आवाजें बहुत बुलंद हुआ करती थीं, शायद इस तरह हम अपनी तन्हाई को कम करने की एक हल्की सी कोशिस किया करते थे। तो इस वक्त भी यकीनन कामिनी की ज़ज्बात से भरी आवाजें हवाओं के दोर पर बहुत दूर तक जा रही होंगी।
हम यूँ ही कामिनी के जिस्म को चूमते, काटते रहे। फिर मैंने दीदी के मम्मों पर मुँह मारना शुरू किया, दीदी मेरा शौक देखकर बिस्तर पर जाकर लेट गईं। हम दोनों दीदी को चिपक गये, मैं चूत का रस अपने मुँह में समेटने लगा। और कामिनी अपनी चूत खड़े खड़े दीदी से चुसवाने लगी, और दीदी के मम्मों से भी खेल रही थी, कुछ देर चूत चूसने के बाद मैं दीदी के ऊपर आ गया और उनकी भूखी चूत में अपना लंड दाखिल कर दिया, और दीदी की साँस खारिज हुई। उनको बहुत सुकून का एहसास हुआ था, शायद उनको उनकी मनपसंद चीज काफी अरसे बाद मिली थी, और फिर दीदी जिस दीवानगी से चुदवाने लगीं, मेरे तो पशीने ही छूट गये, साथ ही कामिनी की चूत भी मुसीवत में आ गई। दीदी ने उसे अपने होंठों में दबा रखा था, हम दोनों दीदी की गर्मी कम करते रहे, मैं चोदता रहा, मम्मे दबाता रहा, कामिनी चूत मुँह में दिए बालों पर हाथ फेरती रही। फिर कहीं जाकर दीदी की चूत ठंडी हुई, लेकिन तब तक उनकी चूत मेरी गरम मनी से लबालब भरी हुई थी।
वो निढाल हो चुकी थीं, लेकिन कामिनी को बहुत गरम कर दिया था, कामिनी मेरा लंड चूसने लगी, जो पहले ही मेरी और दीदी की मनी से भरा हुआ था। उसने चाटकर उससे साफ कर दिया, फिर बोली-“भाई, चूत खोलो अब मेरी…”
उसके लहजे में एक मासूम सी इल्तिजा थी, ज़ज्बात की फरवानी थी, जिस्म की तलब उसकी लरजती आवाज से ही जाहिर थी। लेकिन दीदी उठ बैठी-“नहीं प्रेम आज तुम कामिनी की गान्ड चोदो…”
मैं और कामिनी चौंक पड़े।
दीदी बोलीं-“मैं कामिनी के नीचे लेटती हूँ, कामिनी घोड़ी बनेगी, मैं नीचे से इसकी चूत चाटूंगी और तुम ऊपर से इसकी गान्ड का सुराख खोल दो…”
मैं बोला-“दीदी वो तो बहुत नन्हा सा और तंग है…”
दीदी बोलीं-“तो मेरे भाई, उसी को तो खुला और कुशादा करना है तुम्हें…”
बहस के कुछ देर बाद हम तीनों उसी पोज़ीशन में आ गये, जैसा दीदी ने हमें बताया था, दीदी और कामिनी तो एक दूसरे की चूत चूसने लगे। और मैं अपनी घोड़ी बनी बहन के पीछे खड़ा अपना लंड सहला रहा था, समझ में नहीं आ रहा था की शुरुआत कहाँ से करं। दीदी ने मेरी मुश्किल हल की, मुझे करीब बुलाकर मेरे लंड का टोपा कामिनी की बंद गान्ड पर रखा।
और बोलीं-“खोल दो इसे…” यह कहकर फिर चूत की रस भरी दुनियाँ में गुम हो गईं, मैंने अपना लंड कामिनी की गान्ड के सुराख पर रखा हुआ था, और एक हाथ से गान्ड खोली हुई थी। मैं अपना पूरा जोर लगा रहा था, लेकिन लंड बार बार मुड़ जाता था। दीदी ने एक दो बार चूत से मुँह हटाकर मेरा लंड चूसकर तर कर दिया था, आख़िर टोपा अंदर चला गया।
अब रास्ता मिल गया था, और फिर मेरे बेपनाह दबाव पर लंड अंदर अंधेरी गहराइयों में जाने लगा, और कामिनी जैसे उसकी गर्दन पर छुरी फिर रही हो, ऐसे तड़पने लगी। लेकिन दीदी ने उसकी गान्ड के गिर्द हाथ डालकर उसको लाक कर दिया था, और चूत से मुँह चिपकाए हुये थी। कामिनी निकलकर भागने की कोशिस कर रही थी, लेकिन हम दोनों इसके लिए तैयार नहीं थे। वो चीख रही थी, हम दोनों को बुरा भल्ला कह रही थी, लेकिन मैं सुन नहीं रहा था, और ना मेरा लंड सुन रहा था। वो तो खून की बूँदें अपने पीछे छोड़ता नामालूम मंज़िलें तय कर रहा था।
और फिर डालने को कुछ ना रहा, पूरा लंड जड़ तक कामिनी की गान्ड में था, और वो, उसकी आँख बाहर उबली हुई थीं, चीख चीखकर आवाज बैठ गई थी, अब सिर्फ़ बेमानी सी आवाजें आ रहीं थीं। वो रो रही थी, उसका जिस्म झटके ले रहा था, शदीदी तरीन तकलीफ के बाइस, वो बेहोश हो गई। उसका सिर ढलक गया। मैंने लंड वापिस खींचा, और यकीन जानिए, क्या ही चीख की आवाज थी। जो लोग अपनी बीवियों की गान्ड का सुराख खोलने की कोशिस कर चुके हैं और कामयाब हो चुके हैं, वो इस वक्त की तकलीफ को बहुत बेहतर जानते हैं। या वो औरतें जिनकी गान्ड का सुराख किसी लंड से खुल चुका है, वो भी इस बात से आगाही रखती होंगी।
कामिनी की बेहोशी टूट गई थी। इतनी शदीद तरीन तकलीफ का अमल था यह। मेरे लंड के बाहर निकलते ही खून बहने लगा। यह खून अंदर से ही बहा था। जैसे की चूत खुलने पर अंदर से आया था। यह खून तो गान्ड के सुराख की सिकुड़न से उनमें पड़ी दरजों से बह रहा था, और मैं उसी खून अलोदा सुराख में झटके देने लगा और कुछ ही देर बाद मेरी मनी खून में मिलती हुई दीदी के चेहरे पर गिरने लगी।
वो बात आगे बढ़ाते बोलीं-“पता है जब कुत्ता अपनी मनी कुतिया की चूत में छोड़ देता है और कुतिया जब ठंडी हो जाती है तब वो कुत्ते के लंड को छोड़ती है। और कुत्ता वहाँ से दुम दबाकर भाग जाता है, फिर पता है। कुतिया, अपनी चूत चाट्ती है। पता है वो ऐसा क्यों करती है…”
“वो इसलिए ऐसा करती है की अपनी फटी हुई चूत से दर्द को ख़तम कर सके, और तुम लोग जान लो थूक एक कुदरती दवा है। जब मेरी चूत तुमने खोली थी तो मैं भी कामिनी से खूब चुसवाती थी और मुझे बड़ा सुकून मिलता था। तो यही मैं भी अपनी छोटी बहन की चूत चाट चाटकर उसका दर्द कम कर रही हूँ, तुम भी ऐसा कर सकते हो, लेकिन सिर्फ़ चूत चूसना, बस अंदर उंगली भी नहीं जानी चाहिए…”
मैं बोला-“लेकिन दीदी मेरे लंड की हालात खराब नहीं होगी क्या…” मैंने अपने लंड की तरफ इशारा किया जहाँ से चंद चमकती हुई बूँदें, मुँह से बाहर निकले किसी के मुँह या गरम चूत में जाने को बेताब नजर आती थीं।
दीदी बोलीं-“अरे मेरे प्यारे भाई। मैं हूँ ना…” यह कहकर वो करीब आईं, मेरी टांगें खोलकर बीच में बैठ गईं और मेरा लंड उनके गुलाबी होंठों में से होता उनके हलक की सैर करने लगा और वो उसे तेज़ी से चूसने लगीं, और कुछ ही लम्हों बाद दीदी के बाल मजबूती से जकड़े मैं उनके हलक में अपनी मनी निकाल रहा था।
मैं ठंडा हो चुका था। कामिनी ठंडी हो चुकी थी। दीदी को फिलहाल ठंडा नहीं किया जा सकता था। उनके पीरियड की वजह से।
तो दोस्तों, वक्त की रस्सी को थोड़ा सा खींचते हैं, क्योंकी वाकियात की रफ़्तार से आप यकीनन बोर हो गये होंगे। तो अब दीदी की डेट्स ख़तम हो चुकी हैं, कामिनी की चूत की सूजन ख़तम हो चुकी है, और आज रात हमारा प्रोग्राम चुदाई का है। रात का हम तीनों को इंतजार है, रात आई, हमने खाना खाया, थोड़ी शराब पी, और फिर अंदर आ गये।
फिर दीदी ने शुरुआत की, कामिनी का जिस्म चूमना शुरू कर दिया। उनकी देखा देखी मैं भी कामिनी के नोकीले ऊपर को उठे हसीन मम्मे चूसने लगा। दीदी उसकी चूत के मजे लूट रहीं थीं। और कामिनी की तो, उसकी तो बस आवाजें गूंज रहीं थीं, पूरे झोंपड़े में, क्योंकी हम इस जजीरे पर तन्हा थे, इसलिए हमारी मस्ती में भरी आवाजें बहुत बुलंद हुआ करती थीं, शायद इस तरह हम अपनी तन्हाई को कम करने की एक हल्की सी कोशिस किया करते थे। तो इस वक्त भी यकीनन कामिनी की ज़ज्बात से भरी आवाजें हवाओं के दोर पर बहुत दूर तक जा रही होंगी।
हम यूँ ही कामिनी के जिस्म को चूमते, काटते रहे। फिर मैंने दीदी के मम्मों पर मुँह मारना शुरू किया, दीदी मेरा शौक देखकर बिस्तर पर जाकर लेट गईं। हम दोनों दीदी को चिपक गये, मैं चूत का रस अपने मुँह में समेटने लगा। और कामिनी अपनी चूत खड़े खड़े दीदी से चुसवाने लगी, और दीदी के मम्मों से भी खेल रही थी, कुछ देर चूत चूसने के बाद मैं दीदी के ऊपर आ गया और उनकी भूखी चूत में अपना लंड दाखिल कर दिया, और दीदी की साँस खारिज हुई। उनको बहुत सुकून का एहसास हुआ था, शायद उनको उनकी मनपसंद चीज काफी अरसे बाद मिली थी, और फिर दीदी जिस दीवानगी से चुदवाने लगीं, मेरे तो पशीने ही छूट गये, साथ ही कामिनी की चूत भी मुसीवत में आ गई। दीदी ने उसे अपने होंठों में दबा रखा था, हम दोनों दीदी की गर्मी कम करते रहे, मैं चोदता रहा, मम्मे दबाता रहा, कामिनी चूत मुँह में दिए बालों पर हाथ फेरती रही। फिर कहीं जाकर दीदी की चूत ठंडी हुई, लेकिन तब तक उनकी चूत मेरी गरम मनी से लबालब भरी हुई थी।
वो निढाल हो चुकी थीं, लेकिन कामिनी को बहुत गरम कर दिया था, कामिनी मेरा लंड चूसने लगी, जो पहले ही मेरी और दीदी की मनी से भरा हुआ था। उसने चाटकर उससे साफ कर दिया, फिर बोली-“भाई, चूत खोलो अब मेरी…”
उसके लहजे में एक मासूम सी इल्तिजा थी, ज़ज्बात की फरवानी थी, जिस्म की तलब उसकी लरजती आवाज से ही जाहिर थी। लेकिन दीदी उठ बैठी-“नहीं प्रेम आज तुम कामिनी की गान्ड चोदो…”
मैं और कामिनी चौंक पड़े।
दीदी बोलीं-“मैं कामिनी के नीचे लेटती हूँ, कामिनी घोड़ी बनेगी, मैं नीचे से इसकी चूत चाटूंगी और तुम ऊपर से इसकी गान्ड का सुराख खोल दो…”
मैं बोला-“दीदी वो तो बहुत नन्हा सा और तंग है…”
दीदी बोलीं-“तो मेरे भाई, उसी को तो खुला और कुशादा करना है तुम्हें…”
बहस के कुछ देर बाद हम तीनों उसी पोज़ीशन में आ गये, जैसा दीदी ने हमें बताया था, दीदी और कामिनी तो एक दूसरे की चूत चूसने लगे। और मैं अपनी घोड़ी बनी बहन के पीछे खड़ा अपना लंड सहला रहा था, समझ में नहीं आ रहा था की शुरुआत कहाँ से करं। दीदी ने मेरी मुश्किल हल की, मुझे करीब बुलाकर मेरे लंड का टोपा कामिनी की बंद गान्ड पर रखा।
और बोलीं-“खोल दो इसे…” यह कहकर फिर चूत की रस भरी दुनियाँ में गुम हो गईं, मैंने अपना लंड कामिनी की गान्ड के सुराख पर रखा हुआ था, और एक हाथ से गान्ड खोली हुई थी। मैं अपना पूरा जोर लगा रहा था, लेकिन लंड बार बार मुड़ जाता था। दीदी ने एक दो बार चूत से मुँह हटाकर मेरा लंड चूसकर तर कर दिया था, आख़िर टोपा अंदर चला गया।
अब रास्ता मिल गया था, और फिर मेरे बेपनाह दबाव पर लंड अंदर अंधेरी गहराइयों में जाने लगा, और कामिनी जैसे उसकी गर्दन पर छुरी फिर रही हो, ऐसे तड़पने लगी। लेकिन दीदी ने उसकी गान्ड के गिर्द हाथ डालकर उसको लाक कर दिया था, और चूत से मुँह चिपकाए हुये थी। कामिनी निकलकर भागने की कोशिस कर रही थी, लेकिन हम दोनों इसके लिए तैयार नहीं थे। वो चीख रही थी, हम दोनों को बुरा भल्ला कह रही थी, लेकिन मैं सुन नहीं रहा था, और ना मेरा लंड सुन रहा था। वो तो खून की बूँदें अपने पीछे छोड़ता नामालूम मंज़िलें तय कर रहा था।
और फिर डालने को कुछ ना रहा, पूरा लंड जड़ तक कामिनी की गान्ड में था, और वो, उसकी आँख बाहर उबली हुई थीं, चीख चीखकर आवाज बैठ गई थी, अब सिर्फ़ बेमानी सी आवाजें आ रहीं थीं। वो रो रही थी, उसका जिस्म झटके ले रहा था, शदीदी तरीन तकलीफ के बाइस, वो बेहोश हो गई। उसका सिर ढलक गया। मैंने लंड वापिस खींचा, और यकीन जानिए, क्या ही चीख की आवाज थी। जो लोग अपनी बीवियों की गान्ड का सुराख खोलने की कोशिस कर चुके हैं और कामयाब हो चुके हैं, वो इस वक्त की तकलीफ को बहुत बेहतर जानते हैं। या वो औरतें जिनकी गान्ड का सुराख किसी लंड से खुल चुका है, वो भी इस बात से आगाही रखती होंगी।
कामिनी की बेहोशी टूट गई थी। इतनी शदीद तरीन तकलीफ का अमल था यह। मेरे लंड के बाहर निकलते ही खून बहने लगा। यह खून अंदर से ही बहा था। जैसे की चूत खुलने पर अंदर से आया था। यह खून तो गान्ड के सुराख की सिकुड़न से उनमें पड़ी दरजों से बह रहा था, और मैं उसी खून अलोदा सुराख में झटके देने लगा और कुछ ही देर बाद मेरी मनी खून में मिलती हुई दीदी के चेहरे पर गिरने लगी।