non veg kahani दोस्त की शादीशुदा बहन - SexBaba
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non veg kahani दोस्त की शादीशुदा बहन

hotaks444

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दोस्त की शादीशुदा बहन



पात्र (किरदार) परिचय
01. रामू- मैं खुद, कहानी का हीरो
02. दमऊ- रामू का दोस्त,
03. अमृता- घर का नाम रानी, दमऊ की बहन,
04. झरना- अमृता की ननद
05. चम्पा06. मंजरी

बस में अमृता (रानी) की चुदाई मेरी नौकरी का रेक्रूटमेंट का एग्जाम नागपुर में होना निश्चित होते ही मैंने रेलवे में रिजर्वेशन के लिए देखा तो पीक सीजन होने के कारण कोई भी ट्रेन में जगह नहीं मिली। थक हारकर मैंने अपने एक दोस्त दमऊ को फोन किया की यार मुझे आज किसी भी हालत में नागपुर जाना है।
दमऊ उछलते हुए बोला- साले तू पहले नहीं बोल सकता था, मैं खुद कितना परेशान हो रहा था।
मैंने पूछा- क्यों क्या हुआ?
दमऊ ने कहा- अबे कुछ नहीं तू मेरे घर पर आ जा, मिल बैठकर बातें करते हैं।
मैंने कहा- अबे मिल बैठकर बातें करते हैं। अबे साले मुझे आज हर हालत में नागपुर जाना है। कल सुबह मेरा वहाँ पे इंटरव्यू है।
दमऊ ने कहा- पहले तू यहाँ पर आ तो सही। मैंने तेरा प्राब्लम साल्व कर दिया है।
मैं भागा-भागा उसके घर पहुँचा तो उसकी माँ ने दरवाजा खोला। मैंने उनसे नमस्ते किया और अंदर आ गया। दमऊ अंदर जैसे मेरी ही राह देख रहा था। उसने कहा- “यारा तूने मेरी प्राब्लम साल्व कर दी, नागपुर जाने का नाम लेकर..."
मैंने कहा- क्या मतलब?
इतने में दमऊ की माँ अंदर आकर बोली- “अरे बेटा तुझे क्या बताऊँ? कल ही तेरी दीदी (दोस्त की बहन अमृता जिसे मैं भी दीदी ही कहता हूँ) के पति को कुछ दिनों के लिए देल्ही जाना है। अलमारी की चाभियां तो तेरी दीदी यहाँ ले आई है, उनको कुछ जरूरी कागजात ले जाना है।
मैंने कहा- कोई बात नहीं। दीदी को आए सात-आठ दिन ही तो हुए हैं। अलमारी की चाबियां मैं दे दूंगा जीजाजी को।
दमऊ ने कहा- “मैंने कल ही बस की टिकेट करवा ली है, एयर-कंडीशन बस की स्लीपर कोच में एस-1 और एस2 हैं। आराम से सोकर जाना। तुम्हारा भी काम हो जाएगा और मेरा भी। कल सुबह आफिस में हेडआफिस से बिग बास आ रहे हैं तो आफिस अटेंड करना भी हो जाएगा...”
मैंने कहा- चल यार तूने तो मेरी प्राब्लम ही साल्व कर दिया। मैं तो परेशान हो गया था। ना ट्रेन में जगह मिल रही थी, ना किसी बस में ही जगह मिल रही थी। चलो सुबह नागपुर में दीदी को उनके घर पर छोड़ते हुए होटेल चले जाऊँगा।
 
इतने में दीदी ने कमरे में प्रवेश किया और कहा- “होटेल में क्यों भैया? क्या मैं आपकी कुछ नहीं लगती हूँ क्या? होटेल में रहने की कोई जरूरत नहीं है। दो दिन लगे की तीन दिन लगे, तुम मेरे यहाँ ही रुकोगे और खाना पीना भी मेरे यहाँ ही होगा..."
मैंने कहा- “सारी दीदी। अच्छा ठीक है... आपके यहां ही रहूँगा और खाना पीना भी करूंगा। ठीक है ना?”
दीदी ने कहा- हाँ... ठीक है।
मैंने दमऊ से पूछा- अरे बस कितने बजे है?
दमऊ ने कहा- रात को ठीक दस बजे जलेबी चौक से छूटेगी। तू वहीं पे पहुँच जाना। मैं दीदी को लेकर वहां छोड़ दूंगा।
मैं रात के दस बजे वहाँ पहुँचा तो बस खड़ी थी। मैंने दमऊ को फोन किया तो वो बोला की बस एक मिनट में पहँचने ही वाले हैं। वो दोनों आए, हमने अपना लगेज बस के पीछे लगेज बाक्स में रखवा दिया। बस में जैसे ही चढ़े बस चल पड़ी। मैंने देखा की बस खचाखच भरी हुई है।
मैंने कंडक्टर से पूछा- भाई ये एस-1 और एस-2 कहाँ पे है?
कंडक्टर ऊपर स्लीपर दिखाते हुए कहा की साहब ये सीट है।
मैं चौंक गया- “एस-1 और एस-2 एक ही स्लीपर के दो नंबर थे। सीट चौड़ी जरूर थी पर.....” मैंने कंडक्टर से कहा- “भैया... ये तो एक ही सीट है...”
कंडक्टर ने कहा- “भैया... ये दो बाइ दो स्लीपर कोच है यानी एक स्लीपर पे दो जने सोने का..”
मैंने गुस्से में दमऊ को फोन लगाना चाहा तो दीदी ने मना कर दिया और कहा- “भैया जाने दीजीए ना। रात-रात की ही तो बात है चलिए अड्जस्ट कर लेंगे...”
पहले मैंने दीदी को ऊपर चढ़ने के लिए कहा। वह ऊपर चढ़ने लगी तो उनकी गोरी-गोरी जांघों के बीच में से उनकी गुलाबी रंग की पैंटी नजर आने लगी। मैं ना चाहते हुए भी घूर-घूर के पैंटी को देखने लगा। दीदी के चढ़ने के बाद मैं भी ऊपर आ गया। वैसे स्लीपर ज्यादा चौड़ा तो नहीं पर बढ़िया आरामदायक था। दीदी खिड़की की तरफ लेटी और मैं अंदर की तरफ। सर्दियों के दिन थे, मैंने कंबल ले रखा था।
दीदी ने कहा- “भैया... मेरी कंबल तो पीछे लगेज बाक्स में सामान के साथ रह गई..”
मैंने कहा- “कोई बात नहीं दीदी आप ले लो। मैं ऐसे ही...”
दीदी ने बात काटते हुए कहा- “ऐसे ही क्यों? हम दोनों ही इश्तेमाल करेंगे...”
हम दोनों ने एक ही कंबल को ओढ़ लिया। ज्यादा जगह ना होने के कारण हम दोनों के बदन आपस में सटे हुए थे। अभी तक हम दोनों ही पीठ के बल लेटे हुए थे। अभी तक मेरे मन में कोई गंदा खयाल नहीं आया था। आगे रास्ता कुछ ज्यादा ही खराब था। बस हिचकोले खा रही थी।
दीदी डर के मारे मुझसे चिपकी जा रही थी। दीदी ने करवट बदला और एकाएक बस ने भी जोर से हिचकोला खाया तो दीदी मुझसे पूरी तरह चिपक गई।
अमृता- “भैया, मुझे डर लग रहा है...” अब उनका एक पैर मेरे ऊपर था और हाथ मेरे सीने के ऊपर।
 
मुझे अब कुछ-कुछ होने लगा था। लण्डदेव खड़े होने लगे थे। मैंने नैतिकता की दुहाई देते हुए लण्डराज को बहुत समझाने की कोशिश की, पर साले ने मेरी एक ना सुनी और फनफना करके खड़ा होने लगा।
करीब आधे घंटे बाद में दीदी ने कहा- “भैया मेरी कमर दुख रही है, मैं सीधे लेटना चाहती हूँ..”
मैंने कहा- ठीक है दीदी, आप सीधे लेट जाओ।
दीदी ने कहा- “अरे पगले मुझे डर लग रहा है की कहीं गिर ना जाऊँ। मैं सीधे लेट रही हूँ, तुम एक काम करो... अभी मैं जैसे तुम्हारे ऊपर एक पैर रखी हूँ वैसे ही एक पैर तुम मेरे दोनों पैरों के नीचे रखो और दूसरा पैरों के ऊपर...”
मैंने कहा- दीदी, क्या ये सही रहेगा?
दीदी ने कहा- अरे पगले... बचपन में तुम दमऊ और मैं ऐसे ही चिपक के कितनी ही बार सोए हैं। भूल गया क्या ?
मैं- “पर दीदी- यहां किसी ने देख लिया तो?"
दीदी- “देख लिया... तो क्या? अरे पगले बस में एक तो अंधेरा है, दूसरा पर्दा लगा हुआ है। तीसरा हम दोनों ने कंबल ओढ़ रखा है। चौथा मुझे डर लग रहा है की कहीं गिर ना जाऊँ, पाँचवा... ... चल छोड़ ना मैं जैसे बोलती हूँ। वैसे ही कर...”
मैंने दीदी के कहे अनुसार एक पैर को नीचे रखा। दीदी ने दोनों पैरों को उनके ऊपर और उनके ऊपर मैंने अपना दूसरा पाँव रख दिया। यानी उनके दोनों पाँव मेरे दोनों पैरों के बीच में फँसे हुए थे। इस पोजीशन के लिए मुझे उनकी तरफ करवट बदलना पड़ा था। अब मेरे हाथ को पकड़कर दीदी ने अपनी बाहों के ऊपर रख दिया। दीदी थोड़ी ही देर में मुझसे इधर-उधर की बातें करते हुए सो गई। पर मेरी आँखों से नींद कोसों दूर भाग चुकी थी। मेरे लण्डराज फनफना चुके थे। मैं क्या करूँ कुछ समझ नहीं पा रहा था। उनके पैर की गर्मी दोनों तरफ से मेरे दोनों पैरों से होते हुए सारे बदन में घुसकर मेरे लण्ड को खड़ा कर रही थी। मैंने बहुत कोशिश की अपने दिल-एनादान को समझने की पर दिल तो आखिर दिल है जी। इस पे जोर किसी का चला है जो मेरा चलता।

मेरे हाथ बेकाबू होकर उसकी बाहों से फिसलकर उसके छाती को कब सहलाने लगे, मुझे मालूम ही नहीं पड़ा। मेरा बदन कामायनी में जल रहा था। और इसे जल्दी से अगर काबू नहीं किया गया तो ये आग कभी भी हम दोनों को जला सकती थी। पर मैं क्या करूं कुछ समझता उससे पहले ही ठंड के कारण वो मुझसे लिपटती ही जा रही थी। इससे मेरे बदन की आग बुझने के बजाय और भड़क रही थी।
मेरा हाथ उसकी चूचियों को सहलाते-सहलाते कब उसे दबाने भी लगे, मुझे पता ही नहीं चला। उसकी और मेरी दोनों की ही सांसें गहरी और गहरी हो चली थी। बस का सफर आगे नेशनल हाइवे के ऊपर था। सड़क शानदार, बस शानदार, ए.सी. स्लीपर और बगल में लड़की भी शानदार, मेरा लण्ड था दमदार, तो वो भी थी मलाईदार।
अमृता भी नींद में मुझसे लिपटती ही जा रही थी और बड़बड़ा रही थी- “बस ऐसे ही जानू, मेरे प्रियतम। बहुत तड़पाया है तुमने और ना तड़पाओ मेरे सैयां..”
 
मैं मन में- “सैयां? अरे, ये तो सपने में लगता है कि अपना पति समझकर मुझसे लिपट रही है। क्या करूं? चोद दिया जाए या छोड़ दिया जाए?”
इधर वो भी सोई हुई नहीं थी। बहुत दिनों से चुदाई नहीं होने से आज पहली बार जब जवान बदन से उसका जवान बदन सटा तो वो भी अंदर तक गरमा चुकी थी। उसे भी ये समझ में नहीं आ रहा था की कैसे पहल की जाए, जिससे उसकी प्यास भी बुझ जाए और उसकी बदनामी भी ना हो?
एक दिन वो अपने कमरे की खिड़की से बाहर झाँक रही थी की सामने गली में ही मैं खड़े-खड़े पेशाब कर रहा था। मेरा लण्ड देखकर वो अंदर तक गनगना गई। हे राम जी... इतना बड़ा भी लण्ड कहीं होता है? मेरे पति का तो उसका आधा भी नहीं होगा। हाँ उसके खुद के भाई का लण्ड भी इस कमीने से तो छोटा ही था। कैसे करके इस लण्ड को अपनी चूत के अंदर ले वो इस जुगाड़ में ही रहती थी, और भगवान ने आज उसकी सुन ली।
आज इस शानदार मौके को वो हाथ से जाने नहीं दे सकती। अगर उसने पहल नहीं की तो ये साला बस को नागपुर पहुँचा देगा, पर उसकी फुद्दी को अपने लण्ड का पानी नहीं पिलाएगा। लगता है कि उसे ही कुछ करना होगा। और तभी उसकी आँखें चमकने लगी। साले को लगता है गर्मी चढ़ गई। हाथ उसकी चूचियों को सहला रहे थे। वो भी नींद का बहाना करके बड़बड़ाने लगी और उसका हौसला अफजाई करने लगी। नींद में होने का शानदार नाटक करते हुए उसके हाथ कब घोड़े जैसे लण्ड को सहलाने लगे वो खुद भी नहीं समझ सकी।
मुझे लगा की रानी नींद में है और उसे इस मौके का फायदा जरूर से उठना चाहिए। मैं उसके ब्लाउज़ के बटन खोलते हुए चूचियों को सहलाने लगा। ब्लाउज़ के नीचे उसने ब्रा पहनी हुई थी जिसके हुक को वो बस में चढ़ते ही खोल चुकी थी। अब तो मेरा मन पूरी तरह बेकाबू हो चुका था और मैं रानी की चूचियों को जोर-जोर से दबाने लगा। रानी के मुँह से सिसकियां निकलनी चालू हो गई तो मुझे होश आया और डर के मारे मैं रुक गया और हाथ को पीछे खींच लिया।
रानी करवट बदलकर मुझसे बुरी तरह चिपक गई और बोलने लगी- “मेरे सैयां, आज मेरी प्यास बुझा दो। बहुत दिनों के बाद मिले हैं मेरे राजा...”


मैं उसकी साड़ी को साया के साथ ही ऊपर को सरकने लगा और दोनों जांघों को सहलाते हुए हाथ को ऊपर बढ़ाने लगा। जब दोनों जांघों के बीच में मेरा हाथ पहुँचा तो मैं जैसे चौंक गया। अरे साली की चड्डी कहाँ गई? ये तो अंदर से नंगी है। लेकिन बस के ऊपर चढ़ने के समय तो गुलाबी चड्डी मुझे साफ नजर आई थी। इसका मतलब है कि ये भी मुझसे चुदवाने को ब्याकुल है। इतने में ही बस एक ढाबे के पास रुकी और अंदर की लाइट जल गई।
हम दोनों हड़बड़कर एक-दूसरे से अलग हुए। रानी मुझे अजीब सी नजर से देखते हुए ब्लाउज़ के बटन लगाने लगी। सब नीचे उतरकर चाय पानी ले रहे थे। हम भी नीचे उतरकर चाय पीने लगे। मैंने पैसा दिया और रानी के साथ टहलने लगा।
रानी मुझे खा जाने वाली नजरों से देखते हुए बोली- “अपने ऐसा क्यों किया भैया?”
मैं घबरा गया और बोला- “सारी दीदी, मुझसे गलती हो गई मुझसे... मैं..”
दीदी- “मैं-मैं के बच्चे। बस स्टार्ट होते ही शुरू नहीं हो सकते थे? साले बदन में गर्मी लगा दिया और बस को लाकर ढाबे में खड़ा कर दिया?"
मैं चौंकते हुए बोला- “सारी दीदी...”
दीदी- “सारी के बच्चे... लण्ड उखाड़ करके हाथ में दे देंगी अगर फिर से दीदी कहा तो...”
मैं- “फिर मैं आपको क्या कहूँ दीदी? ओहह... सारी...”
दीदी- “दुनियां वालों के सामने तो मैं तेरे दोस्त की बहन हूँ याने की तेरी भी दीदी हूँ। पर आज की रात के लिए तुम मेरे भैया नहीं सैयां हो... समझ गये? चल अब बस के ऊपर बर्थ में चल। पर ठहर मैं थोड़ा बाथरूम जाकर आती हूँ। और हाँ तू भी बाथरूम होकर आ जाना। पेशाब करने के बाद ठीक से धोकर आना...”
 
मेरा मन बल्ले-बल्ले करने लगा। धोकर आना बोल रही है मतलब क्या है? मैं भागकर बाथरूम गया और पेशाब करने के बाद अच्छी तरह से लण्ड को धोया, रुमाल से पोंछा और निकलकर बाहर आया। इतने में ही लेडीस टायलेट से फुद्दी को साड़ी के ऊपर से खुजलाती हुई रानी आती दिखाई दी। हम दोनों ऊपर बर्थ पे आ गये और अच्छी तरह पर्दा लगाकर कंबल के नीचे एक-दूसरे से लिपट गये।
अब हम दोनों के बीच की दीवार टूट चुकी थी। शर्म नाम की चिड़िया उड़ चुकी थी। अब हम दोनों 69 की पोजीशन में आकर एक-दूसरे के अंगों को चूमने सहलाने लगे। उसकी फुद्दी से भीनी-भीनी सी महक आ रही थी, जो मुझे और ज्यादा मदहोश किए जा रही थी। इधर रानी मेरे लण्ड को गप्प... से मुँह में लेकर चपर-चपर चूसने लगी। ऐसा शानदार चूसा की यारों मैं सच कहता हूँ आज तक किसी ने नहीं चूसा। मैं भी उसकी फुद्दी में जीभ घुसेड़ते हुए चाटने लगा, चूसने लगा। रानी का बदन थरथरा उठा। थोड़े ही देर में उसने मेरे मुँह में ही अपना रस छोड़ दिया और शांत हो गई। मेरा लण्ड उसके मुँह में ही था। मैं उसके मुँह को फुद्दी समझकर हुमच-हुमच कर थाप लगाने लगा।
थोड़े ही देर में मेरा माल भी सीधे उसके गले में गिरने लगा। साली महा कंजूस थी। एक बूंद को भी उसने जाया नहीं किया। आखिरी बूंद तक को उसने अपने गले के नीचे ले लिया। अब हम दोनों शांत होकर एक-दूसरे से लिपट गये। करीब दस मिनट बाद मेरा लण्ड फिर से खड़ा होने लगा। तो मैं उसको फुद्दी को फिर से चाटने लगा। थोड़े ही देर में वो भी गरमा चुकी थी और वो मुझे अपने ऊपर खींचने लगी।
मैंने भी उसकी फुद्दी के मुहाने पे लण्ड की टोपी सटाकर एक सलाम करते हुए करारा धक्का लगाया की मेरा लण्ड आधा घुसकर उसकी फुद्दी में अटक गया।
रानी बोली- “मेरे राजा, जरा धीरे-धीरे बजा ना मेरा बाजा। वरना मजे की जगह मुझे मिल जाएगी सजा...”
मैं उसकी चूचियों को थाम लिया और दबाने लगा। जब वो नीचे से अपना चूतड़ उछालने लगी तब जाकर मैंने दूसरा धक्का लगाया। और इस बार के धक्के से मेरा पूरा का पूरा लण्ड उसकी फुद्दी में समा चुका था। मेरा हाथ उसके मुँह के ऊपर था जिसके कारण उसकी चीख नहीं निकल सकी। पर उसकी आँखों से गिरते हुए आँसू उसकी कहानी को बयान कर रहे थे। मैंने उसकी चूचियों को सहलाना जारी रखा।
थोड़ी ही देर के बाद में उसने कहा- “मेरे राजा, धक्का क्यों बंद किया? कोई कुँवारी कली थोड़े ही हैं। माना की तेरे जीजू का लण्ड तुझसे आधा है पर दमऊ का लण्ड भी कोई कम नहीं है...”
मैंने कहा- “दमऊ का लण्ड? तो क्या आप दमऊ से भी??
रानी- “हाँ रे... दमऊ तो मुझे शादी से पहले से ही चोदते आ रहा था। मेरी सील को तो उसने ही तोड़ा है.”
मैं- “साले ने कभी मुझे बताया नहीं..."
 
रानी- “सही कहा तूने... साला.. आज मेरी चुदाई करके तू उसका जीजा तो बन ही गया है ना... देख दोस्त चाहे जितना भी करीबी हो कोई भाई ये नहीं बता सकता है की उसने अपनी सगी बहन की चुदाई की है...”
मैं- “हाँ... वो बात तो है। पर बड़ा छुपा रुस्तम निकला ये साला दमऊ..” ये कहते हुए मैंने धक्के की गति को तेज कर दिया और नीचे से रानी ने भी अपना चूतड़ उछालना जारी रखा। बस में ये मेरी पहली चुदाई थी, जिसका हम दोनों भरपूर लुफ्त उठा रहे थे।
दोनों पशीने-पशीने हो चुके थे पर कोई भी हार मानने वाला नहीं था। रानी के नाखून मेरी पीठ पे गड़ रहे थे। जिससे मैं दोगुने जोश में धक्का लगा रहा था, और आखीर में उसकी चूत के रस का मिलन मेरे लण्ड के रस से हो ही गया।
तेरी चूत के रस का और मेरे लण्ड के रस का बोल रानी बोल संगम होगा की नहीं?

अरे बाबा होगा, होगा, होगा, और ये हो ही गया मिलन।
हम दोनों हाँफते हुए एक-दूसरे से लिपट गये। बस अपनी मंजिल की ओर दौड़ रही थी तो हम दोनों भी जवानी के इस खेल में दूसरा राउंड खलने की तैयारी में जुट गये थे। जल्दी ही दूसरा राउंड भी समाप्त होने लगा। इस तरह उस रात बस में मैंने रानी की तीन बार चुदाई की।
रानी मुझसे लिपटते हुए बोल रही थी- “बस भैया बस... अब और बर्दस्त नहीं हो रहा है। कल मुझे तेरे जीजू से भी चुदवाना है... कल ही वो देल्ही जाएंगे तो कल दिन में ही चढ़ बैठेगे...”
मैं- “अच्छा इतना प्यार करते हैं तुझसे?”
रानी- “हाँ रे.. पर थोड़े शक्की किश्म के इंसान हैं। उनके सामने भूल से भी, गलती से भी कोई ऐसी वैसी हरकत नहीं कर देना, जिससे उनको कोई शक हो। समझ गया ना? वरना ये मजा की बहुत बड़ी सजा मिल जाएगी दोनों को..." और हम दोनों ही एक-दूसरे से लिपटकर सो गये।
नींद खुली तो नागपुर शहर के अंदर गाड़ी आ चुकी थी। हम दोनों उतर गये और सामान आटो में लोड करके घर तरफ चल पड़े।
जीजू ने दरवाजा खोला- हे मेरी रानी, रात कैसे गुजरी?
रानी- “बहुत ही मस्त, ये रामू भैया मेरे साथ ही आए हैं...”
मैंने उन्हें नमस्ते की। हम भीतर आ गये। मैं अपना सामान रखकर बाथरूम में गया। जैसे ही बाथरूम के अंदर गया, बाहर से खिलखिलाने की आवाजें आने लगी। मैंने बाथरूम के किवाड़ की झिरी से देखा कि जीजू ने दीदी को अपने सीने से लिपटा रखा है। जीजू दीदी के गालों पर पप्पियों की बरसात कर रहे थे। दीदी भी उनसे लिपटी जा रही थी।
जीजू ने उनकी चूचियों को दबाते हुए कहा- “और रास्ते में कोई तकलीफ तो नहीं हुई ना?”
रानी- “नहीं जी, बिल्कुल भी तकलीफ नहीं हुई। रामू मेरे साथ था ना। बड़ा ही अच्छा लड़का है...”
जीजाजी- “तुम्हारा भाई दमऊ बोल रहा था की ये रामू का लण्ड जो है एकदम पतला और छोटा है। बचपन में वो दोनों जब मूठ मरते थे तो एक मिनट में ही ये रामू खल्लास हो जाता था। पता नहीं ये अपनी बीवी को कैसे खुश रख पाएगा?”
दीदी ने आश्चर्य से कहा- “क्या बात करते हैं आप जी? रामू का लण्ड छोटा है? दमऊ ने सपना देखा होगा। रामू का लण्ड कोई साधारण लण्ड नहीं है। उसका लण्ड आपसे भी बड़ा और तगड़ा है। लगता है किसी गधे का ही उखाड़ कर लगा लिया हो। और रही बात एक मिनट में ही झड़ने की तो ये भी झूठ है। एक बार लण्ड चूत के अंदर घुसता है तो बिना लड़की को तीन बार झड़ाए, लण्ड अपना पानी ही नहीं निकालता। रात भर उसने जो मेरी चुदाई की है चूत का पोर-पोर अभी तक दर्द कर रहा है.......” और दीदी जोश में बोलती बोलती रुक गई। उसकी बात गले में ही दब गई। हाय जोश-जोश में उसके मुँह से ये क्या निकल गया? उसकी आँखों के आगे अंधेरा छा गया। उसने घबराकर अपने पति की ओर देखा।
कमरे में सन्नाटा छा गया।
 
इधर बाथरूम में मुझे भी पशीना आ रहा था। मैं भी घबरा रहा था। जोश में दीदी ने ये क्या बक दिया? साली खुद तो मरेगी साथ में मुझको भी मरवाएगी। मैं फ्रेश होने के बाद बाथरूम से निकला। निकलते ही सामने दोनों बैठे हुए थे। दीदी अपने सिर को झुका रखी थी।
मैंने चुपचाप कपड़ा पहना।
जीजू ने गले को खंखारते हुए कहा- “तो साले साहब... क्या गुल खिला दिया तुमने मेरी बीवी के साथ? तुम्हें शर्म नहीं आई?”
मैं तुरंत उनके पैरों में गिर गया- “मुझे माफ कर दीजिए जीजाजी... मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई...”
जीजाजी- “अरे, तुम्हें सोचना तो चाहिए था साले साहब... अरे, ऐसे कोई चोदता है क्या चलती हुई बस में... वो भी अपनी दीदी जैसी लड़की को। वो भी इतना बड़े, मोटे और तगड़े लण्ड से? देखो, देखो अपनी दीदी की बुर को... कैसे फूलकर डबल-रोटी बन गई है...”
मैंने आँख उठाकर दीदी की ओर देखा। दीदी की साड़ी साया सहित कमर तक उठी हुई थी।
जीजाजी उनकी बुर दिखाते हुए बोल रहे थे- “देखो-देखो साले साहब... अपनी दीदी की बुर को ध्यान से देखो। कैसे सूजन आ गई है। सोचो... मैं अब मेरे पतले से इंडे से कैसे खुश कर पाऊँगा तेरी दीदी को? तूने तो एक ही रात में इसे चूत से भोंसड़ा बना दिया है रे...”
मैंने जीजू की ओर देखा। वो हँस रहे थे। देखा तो दीदी भी गर्दन नीचे झुकाए मुश्कुरा रही थी।
अब मुझे कुछ शांति मिली। मैंने हिम्मत जुटाकर कहा- “अरे जीजाजी.. चूत की बनावट ऐसी होती है की छोटे से छोटा, पतले से पतला लण्ड भी चूत को उतना ही मजा दे सकता है जितना की मोटा और लंबा लण्ड देता है। बस अच्छे तरीके से चोदना आना चाहिए...”
जीजाजी- “अच्छा जी... अच्छे तरीके से कैसे चोदते हैं? जरा हमें भी करके दिखाईये ना?”
दीदी बोली- “अरे, नहीं नहीं आपके सामने मैं कैसे? मैं नहीं चुदवाने वाली। वो भी दिन में कतई नहीं। और मेरी फुददी भी तो रात भर की चुदाई से फूल गई है। आखिर मैं भी इंसान हूँ कोई मशीन नहीं जो रात दिन चुदवाती रहूं...”


जीजाजी- “अच्छा जी... पहले तो मुझसे रात भर चुदवाती थी और दिन में भी मुँह मार ही लेती थी। उस टाइम क्या तुम मशीन थी?
दीदी- “अरे, आपसे चुदवाना अलग बात है। रामू भैया के लण्ड से चुदवाना मतलब... अरे रामू, अपना लण्ड दिखाओ तो अपने जीजू को...”
मुझे शर्म आ रही थी। दीदी ने मुझे अपने पास बुलाया। उनके पास जाते ही उन्होंने मेरी पैंट की जिप खोल दी। मेरा लण्ड तो लोहे का रोड बना हुआ था। जीजाजी ने देखा तो वो कॉप गये, और बोले- “अरे रानी, तू ठीक कहती थी। ये किसी इंसान का लण्ड नहीं। लगता है साले साहब ने किसी गधे का ही उखाड़ कर लगवा लिया है। अब लगता है कि तेरी चूत अब समुंदर बन चुकी है एक ही रात में..”
इतने में ही एक आवाज आई- “अरे भैया, कहाँ हो तुम? देखो रात की चुदाई से मेरी प्यास अभी बुझी नहीं है। इससे पहले की भाभी आ जायें और हमारा ये खाट-कबड्डी का खेल बंद हो जाए। आ जाओ अपने एक फाइनल राउंड की खाट-कबड्डी खेल ही लें..."
 
जीजा का गला फँस गया। दीदी भी चौंक गई- “अरे झरना तू कब आई? लगता है मेरे मैके जाते ही आ गई थी अपने भैया से खाट-कबड्डी खेलने के लिए..”

कमरे में एक शानदार लड़की ने कदम रखा जिसने सिर्फ एक पारदर्शी नाइटी ही पहनी हुई थी- “ओह्ह... सारी भाभीजी, वो क्या है कि भैया आपकी याद में तड़प रहे थे..."

दीदी- “अच्छा, इसीलिए उनकी तड़प खतम करने के लिए तुम यहाँ पर आ गई... और उधर जीजाजी यानी... तुम्हारे पति महोदय मूठ मारकर अपनी जवानी शांत कर रहे होंगे...”

झरना- “मूठ क्यों मारेंगे वो? बताओ-बताओ मूठ क्यों मारेंगे वो? पूरी की पूरी ब्यवस्था करके आई हूँ उनके लण्ड के लिए.”

दीदी- “अच्छा जी... मैं भी तो सुनू की मेरी लाड़ली ननद ने मेरे नंदोईजी... ओहो सारी सारी मेरा मतलब है। नंदोईजी के लण्ड के लिए क्या ब्यवस्था करके आई है...”

झरना- “भाभीजी, उससे आपको क्या? आपको तो मेरे भैया के लण्ड से ही फुर्सत नहीं मिलती। आप क्या जानो की पतले लण्ड से चुदवा-चुदवाकर मैं थक चुकी थी...”

दीदी- “इतना भी झूठ ना बोलो ननदजी... नंदोई का लण्ड इतना भी पतला नहीं है...”

झरना- “इतना भी पतला नहीं है से क्या मतलब है तुम्हारा भाभी? कहीं तुम उनका लण्ड चख तो नहीं चुकी हो? मुझे साफ-साफ बताओ?”
 
दीदी- “अरे नहीं रे, वो तो एक दिन कमरे में तुम्हें नंगा करके चोद रहे थे ना और तुम ठहरी लण्ड की भूखी दरवाजा बंद करना ही भूल गई थी। सो मैंने इत्तेफाक से देख लिया...”

झरना- “तो ठीक है.. मैं सोची की कहीं तुम मेरे पति के लण्ड से मजा तो नहीं ले रही हो...”

दीदी- “अच्छा जी... मैं उनके लण्ड से मजा भी ना ले सकें और तुम... तुम यहाँ मेरे पति से रोज दिन रात खाटकबड्डी खेल रही थी। उसका क्या?”

झरना- “वो तो मेरे भैया का लण्ड है ही इतना प्यारा की भाभी क्या बताऊँ? बिना चुदे रहा ही नहीं जाता। क्या मस्ताना लण्ड है मेरे भाई का? अभी तक जितने लण्ड से चुदाया है उनमें सबसे प्यारा और सबसे न्यारा है मेरे भाई का लण्ड...” बोलते-बोलते झरना रुक गई। उसकी आँख फटी की फटी रह गई।

उसकी नजर पहली बार मेरे नंगे लण्ड पर गिरी जो उनकी बातें सुनकर फनफना रहा था।

झरना हकलाते हुए बोली- “अरे भाभी-भैया, कौन है ये? ये अपने कमरे में क्या कर रहा है? और क्या है ये? अरे हे भगवान्... क्या लण्ड इतना बड़ा भी होता है?”

दीदी- “अरे झरना, तू घबरा मत। ये मेरा भाई है। पड़ोस में ही रहता है, मेरे भाई का दोस्त है...”

झरना- “आपका भाई है। पर ये अपनी बहन के सामने नंगा क्यों है?”

दीदी- “अच्छा जी... आप अपने सगे भाई के साथ चुदवाओ और हम अपने भाई के दोस्त को नंगा भी ना देखें?”

जीजाजी- “अरे नहीं झरना बहन... ये साली तेरी भाभी, इस मस्ताने गधे लण्ड से रात भर अपनी बुर की कुटाई करवा के आई है...”

झरना- “क्या इस गधे लण्ड से? हाय भाभी आपकी बुर का तो भोसड़ा बन गया होगा। पर मजा बहुत आया होगा ना भाभी? कैसे लगा बताओ ना?”

दीदी- “सच में झरना, बहुत मजा आया। अभी तक बुर की सूजन मिटी नहीं है...”

झरना- “भाभी मैं भी अपनी बुर सुजवाना चाहती हूँ। ओहह... मेरा मतलब है कि इस लण्ड को अपनी बुर में पेलवाना चाहती हूँ। प्लीज भाभी..."

दीदी- “उहूंन... मैं क्यों बोलू? खुद बोल ना...”

झरना- “अरे भैया, क्या नाम है आपका?”

मैं- “जी झरना जी मेरा नाम रामू है...”
 
झरना- “अच्छा रामू भैया... क्या आप मुझे भी अपने लण्ड से चोदना चाहोगे?”
मैं- “बिलकुन बहना...”

झरना- “चलो तो फिर शुरू हो जाओ..”

मैं- “अभी... यहीं पर?”

झरना- “क्यों क्या हुआ? अच्छा मेरे भैया यहां हैं। अरे, तुमने अभी सुना नहीं कि मैं इतने दिन अपने सगे भाई से ही चुदवा रही थी। वो कुछ भी नहीं बोलेंगे। है ना भैया?"

जीजाजी- “हाँ हाँ.. मैं कुछ भी नहीं बोलूंगा। तुम्हारी चुदाई देखकर हमें भी बहुत मजा आएगा...”

मैं- “पर मेरी दीदी?”

दीदी- “अरे, उसी दीदी से शर्मा आ रही है भैया। जिसे तुम रात भर चलती बस में चोद के आए हो। देखो ना झरना, देखो मेरी बुर अभी तक सूज रखी है...” मेरी दीदी अपने साया को ऊपर उठाती हुई बोली।

झरना- “हे भाभी... मैं मर जावां गुड़ खाके। सचमुच भाभी तुम्हारी बुर एकदम सूज गई है। भाभी बोलो ना अपने भैया को मुझे भी अपनी बुर सुजानी है...”

दीदी- “अरे पगली, मैं क्यों मना करूँगी? तू जाने तेरी बुर जाने और जाने मेरे भैया का लण्ड। मुझे तो चुदवाना है अपने सैयां से। बहुत दिनों से चूत में हो रही खुजली आज मिटानी है...”

जीजाजी- “अच्छा जी रात को खुजली नहीं मिटी..."

दीदी- “अजी वो तो इत्तेफाकन मैं चुदवा बैठी। पर असली खुजली तो आप ही मिटाओगे मेरे सैयां। वैसे भी भैया परसों चले जाएंगे और आज की बुकिंग आपकी बहन ने कर ही दी है...”
झरना मेरे पास खिसक के मेरे लण्ड को नजदीक से देखने लगी- “हे भाभी... ये तो सचमुच काफी बड़ा है। मेरी तो फट ही जाएगी...”

दीदी- “फट जाएगी तो ना चुदवा ना मेरे भाई के लण्ड से। फिर चुदवा ले अपने ही भाई के लण्ड से, मैं चुदवा लँगी मेरे भाई के लण्ड से..” ।

झरना- “वाह जी वाह... भाभी तुमने ये खूब कही। पर भाभी, तुम तो जानती ही हो कि मैं कितनी बड़ी चुदक्कड़

दीदी- “हाँ, जानती हूँ मेरी प्यारी ननद कि शादी से पहले तू अपने भैया से अपनी प्यास बुझाती थी। मुझे तो चुदा-चुदाया लण्ड ही मिला था तेरे भैया का। फिर भी झरना, कुछ तो शर्म करो। अपने ही भैया भाभी के सामने तुम कैसे चुदवा सकती हो?”

झरना- “क्यों क्यों? क्यों नहीं चुदवा सकती मैं? आप भी तो रात भर चुदवा के आई हो ना इनसे। फिर मैं क्यों नहीं चुदवा सकती? अच्छा अब समझी... आपका फिर से इन्हीं से चुदवाने का विचार है?”
 
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