Parivaar Mai Chudai हमारा छोटा सा परिवार - Page 14 - SexBaba
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Parivaar Mai Chudai हमारा छोटा सा परिवार

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१२५ 
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कुछ देर साँसों पर कुछ काबू पाने के बाद अकबर चाचू ने मेरे एक तरफ मुड़े मुंह को कस कर पकड़ कर मेरे गाल को चूसने लगे। उनके होंठों ने 

मेरी फड़कती नासिका को चूम चाट कर अपने प्यार का इज़हार सा किया। 

बड़ी देर बाद चाचू ने अपना भारी भरकम बदन मेरे ऊपर से उठाया। उनका विकराल लंड ढीला शिथिल होने के बाद भी मेरी गांड के दरवाज़े को 

चौड़ा रहा था। 

उनका मोटा सुपाड़ा जैसे ही मेरी मलाशय के द्वार की तंग मांसल संकोचक पेशी से बहार निकला मेरी बुरी तरह पैशाचिक अंदाज़ में चुदी गांड 

बिलबिला उठी। न चाहते हुए भी मेरी हलकी सी चीख निकल गयी। 

" चाचू आज तो आपने मेरी गांड की तौबा बुला दी। " मैंने चाचू को मुहब्बत भरा उलहना मारा। 

"नेहा बेटी सालों की प्यास है। थोड़ी वहशियत तो मर्द में आ ही जाती है। पर हमें पूरा भरोसा है की हमारी नेहा बेटी हमें माफ़ कर देगी। " चाचू 

ने मेरा मुंह मोड़ कर मेरे मुस्कराते होंठों को चूम कर कहा। 

अकबर चाचू जैसे आपने हमें चोदा है उस चुदाई के बाद सात खून भी माफ़ हैं। यह तो मेरी खुशनसीबी है की आप जैसे मर्द चाचू से चुदने का 

सौभाग्य मिला ," मैंने खुल कर मर्दाने चाचू की भीषण चुदाई की सराहना की। 

अकबर चाचू ने मेरी पीठ चूमते हुए मेरे गुदाज़ नितिम्बों पर पहुँच गए। उन्होंने दोनों चुत्तडों को मसल कर फैला दिया और मेरी ताज़ी ताज़ी चुदी 

गांड के छिद्र के ऊपर अपने होंठो को चिपका दिया। चाचू ने मेरी भयंकर गांड-चुदाई से उपजे रस को चूसना शुरू कर दिया। मैं कुनमुना उठी। 

चाचू ने न केवल मेरे गान के इर्द-गिर्द चूमा चाटा बल्कि अपनी जीभ को मेरी अभी भी ढीली सी खुली गांड में खुसा कर उसके स्वाद को पूरा 

चाहत से सटक लिया। 

अब चाचू अपनी पीठ पैर लेते थे मैं उनके विशाल बालों से भरे भारी शरीर पर चढ़ गयी। मैंने उनके मुस्कुराते मुंह को चूमा और फिर उनके मर्दाने 

घने बालों से ढके सीने को चूमते हुए उनके दोनों चुचूकों को भी चूसा। 

फिर उनके बड़ी तोंद के ऊपर चुम्बन भरते हुए उनकी गहरी नाभि को जीभ से कुरेदते हुए उनके शिथिल पर विकराल मोटे लंड के ऊपर पहुँच गयी। 

चाचू का लंड उनके मलाई जाइए वीर्य और मेरी गांड से उपजे रस से लिसा हुआ था। मुझे उनके लंड पर बहुत प्यार और ग़रूर आ रहा था। मैंने 

हौले हौले उनका सारा लंड चाट कर साफ़ कर दिया। उनके लंड के ऊपर से मिला जुला स्वाद ने मुझे उत्तेजित सा कर दिया। अपने थूक से लिसे 

चाचू के लंड को मैंने प्यार से सहलाते हुए कहा , " अच्छे से आराम करो थोड़ी देर मेरे प्यारे मूसल अभी तुम्हें बहुत मेहनत करनी है। "

चाचू को मेरी बचकानी बात से बहुत हंसी आयी। 

" अभी तो नेहा बेटी अब इस मूसल को बहुत ज़ोरों से पेशाब आया है, " चाचू ने हँसते हुए कहा। 

" चाचू पेशाब तो मुझे भी लगा है। कसके चुदाई के बाद न जाने क्यों पेशाब की इच्छा होने लगती है ," मैंने चाचू के ऊपर चढ़ कर उनको चूमते 

हुए कहा । 

चाचू ने मुझे बाँहों में उठा कर शयनघर से लगे स्नानघर में चल पड़े। 

" मैं नेहा बेटी आपसे कुछ मांगू तो इंकार तो नहीं करोगी? "चाचू ने मेरी नाक की नोक को चूमते हुए पूछा। 

"आप मांग कर तो देंखे चाचू," मैंने भी चाचू की मर्दानी नासिका को चूम लिया। 

"मुझे आज रात आपके साथ पहली चुदाई की ख़ुशी में आपके सुनहरे शरबत के शराब पीनी है ," चाचू ने मुझे कई बार चूमा। 

मैं बिलकुल भी नहीं झिझकी। बड़े मामा ने मुझे इस क्रिया से बहुत वाकिफ करा दिया था , " चाचू मुझे तो बहुत अच्छा लगेगा पर आपको भी 

मुझे अपना सुनहरी शरबत देना होगा। "

चाचू की आँखों की चमक को देख कर मुझे उनके जुबानी जवाब की ज़रुरत की ज़रुरत नहीं थी। 

स्नानघर में पेरी बारी पहले थे। मैंने चाचू के खुले मुंह के ऊपर अपनी अच्छे से चुदी चूत को सटा अपने सुनहरी शरबत की धार खोल दी। चाचू ने 

खूब दिल खोल कर बार बार मुंह भर कर मेरा खारा सुनहरा शरबत पिया। मैंने अपनी मूत्रधार धीमी नहीं की और उनको सुनहरा स्नान भी करवा 

दिया। 

जब मेरी चूत से एक और बून्द भी नहीं निकल पाई तो मैंने चाचू की तरफ देख कर उनको अपने वायदे का तकाज़ा दिया। 

मैंने नीचे बैठ कर चाचू के मोटे लंड को अपने मखुले मुंह में भर लिया। चाचू ने बड़ी दक्षता से अपनी धार खोल दी। जब मेरा मुंह अच्छे से भर 

गया तो चाचू ने अपने धार को रोक लिया। मैं चाचू का सुनहरा खारा तीखा शरबत सटक गयी। और फिर से अपना मुंह भरने का इन्तिज़ार करने 

लगी। चाचू ने कई बार मेरा मुंह भर दिया। फिर उन्होंने भी मुझे अपने गरम सुनहरे मूत्र से नहला दिया। 

मैंने उनके मूत्र की आखिरी बूँदें लेने के लिए उनके लंड के मोटे सुपाड़े को अपने मुंह में भर लिया। 

चाचू का लंड मेरे चूसने और उनके मूत्र-पान की उत्तेजना से लोहे के खम्बे की तरह सख्त होने लगा। 

चाचू ने मुझे गुड़िया की तरह हवा में उठा लिया। मैंने उनकी इच्छा को समझ कर अपनी गोल गुदाज़ जांघें उनकी चौड़ी कमर के ऊपर फैला दीं। 

चाचू ने मेरी चूत के फैले कोमल तंग द्वार को अपने दानवीय लंड के सेब जैसे मोटे सुपाड़े के ऊपर टिका कर एक गहरी सी सांस ली। 

फिर अचानक उन्होंने, मेरे सारा वज़न, जो उनके हाथों पर टिका हुआ था, अपने हाथो को नीचे गिरा कर गुरुत्वाकर्षण के ऊपर छोड़ दिया। 

उनका मोटा लम्बा खम्बे जैसा लंड मेरी चूत ने गरम सलाख की तरह धंसता चला गया। 

स्नानघर में में मेरी दर्द से भरी चीख गूँज उठी , " चाआआ चूऊऊऊऊ ऊ ऊ ऊ ऊ.......... उउउन्न्न्न्न्न्न्न्न। "

मैंने चाचू की मोटी गर्दन को अपनी बाँहों का हार पहना दिया और अपने चीखते मुंह को उनके सीने में छुपा दिया। 

चाचू ने एक ही धक्के में अपना एक तिहाई लंड मेरी कमसिन चूत में धूंस दिया था। बाकि का लंड उनके दुसरे धक्के से मेरी बिलखती पर भूखी 

चूत में समा गया। 

चाचू ने खड़े खड़े स्नानघर में मेरी चूत की दनादन चुदाई प्रारम्भ कर दी। मेरी शुरू के दर्द की चीखें शीघ्र सिस्कारियों में बदल गयीं। चाचू ने अपने 

बलशालिबाहों की ताकत से मुझे अपने लंड के ऊपर गुड़िया की तरह ऊपर उठा कर सिरह नीचे गिरने देते और मेरी चूत उनके लंड के ऊपर निहार 

हो चली। 

मैं सिसक सिसक कर चुदने लगी। 

" आअह्हह्हह राआअम्म्म्म्म्म्म चचोओओओओओओओओ उउउन्न्न्न्न्न्न चोदिये ये ऐ ऐ ऐ ऐ उउउन्न्न्न्न्न ," मैं कामोन्माद के ज्वर से एक बार फिर से 

उबाल पडी। 

चाचू ने लुझे तीन चार बार झाड़ कर बिस्तर के ऊपर पटक दिया। जब तक मैं संभल पति उन्होंने मुझे निरीह हिरणी की तरह अपने भारी भरकम 

शरीर के नीचे दबा कर अपना लंड फिर से मेरी चूत में ठूंस दिया। चाचू ने फिर से मेरी चूत की प्यार भरी निर्मम चुदाई शुरू कर दी। 

मैं वासना के मीठे दर्द सिसकती और ज़ोर से चोदने की गुहार करती। मर्दाने लंड की चुदाई से कोई भी लड़की का दिमाग पागल हो जाता मेरी 

चुदाई तो चाचू के भीमकाय लंड से हो रही थी। 

चाचू का लंड फचक फचक की आवाज़ें पैदा करता हुआ पिस्टन की तरह मेरी चूत में अंदर बाहिर आ जा रहा था। मेरी रस-निष्पति निरंतर हो 

रही थी। चाचू ने न जाने कितनी देर तक मेरी चूत का लतमर्दन किया। मैं तो अनगिनत चरम-आनंद के प्रभाव से अनर्गल बकने लगी थी। जब 

चाचू ने मेरी फड़कती चूत को अपने गरम जननक्षम वीर्य से नहलाया तो मेरी जान ही निकल गयी। 

हम दोनों एक दुसरे से लिपटे कुछ देर तक ज़ोर ज़ोर से साँसें भरते रहे। 
 
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१२६ 
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जब मुझे कुछ काम-आनंद के अतिरेक से कुछ होश आया तो मैं अकबर चाचू के ऊपर लेती थी और उनका थोड़ा सा शिथिल लंड अभी भी मेरी 

चूत में फंसा हुआ था। । हम दोनों के कद में इतना फर्क था कि मैं उनके सीने तक ही पहुँच पाई। उनकी तोंद के ऊपर लेटने से मेरे चूतड़ उठे 

हुए थे और चाचू उनकों हौले हौले सहला रहे थे। मैंने अपने हांथों से चाचू के सीने के घुंघराले बालों को अपनी उँगलियों से कंघी सी करते हुए 

मुस्करा कर पूछा , " चाचू सच बताइयेगा हमारी चूत मारने में उतना ही मज़ा आया जितना सुशी बुआ की चूत में आता है। "

अकबर चाचू ने मेरी नितिम्बों को मसलते हुए मुझे प्यार से डांटा , " नेहा सुशी तो हमारी भाभिजान हैं। उनकी चूत पर तो हमें पूरा हक़ है देवर 

होने की वजह से। पर तुम तो हमारी सुंदर बेटी हो। तुम्हारे प्यार और चूत पर हमें कोई भी हक़ नहीं है। तुमने तो हमें खुद ही अपनी चूत को दे 

कर जन्नत का नज़ारा करवा दिया। बहुत ही खुशनसीब बाप और चाचाओं को अपनी बेटी या भतीजी की चूत का प्यार नसीब होता है। "

मैंने चाचू के मर्दाने चुचूक को सहलाते हुए कहा ," चाचू अब से आप मुझे कहीं भी और कभी भी बुला सकते हैं ठीक सुशी बुआ की तरह। 

सुशी बुआ को आपके अकेलेपन की बहुत फ़िक्र लगी रहती है। "

मैं धीरे धीरे अपने कमसिन दिमाग़ की तरतीब के तार प्यार भरे जाल में पिरोने लगी। 

"नेहा बेटी अल्लाह के सामने किस का बस चलता है। उसे जो मंज़ूर हो वो ही इंसान को मंज़ूर हो जाता है। तुम्हारी चाची का प्यार हमारी 

किस्मत में सिर्फ इतने सालों के ही लिए लिखा था। " चाचू ने प्यार से मेरे गलों को सहला कर अपने हाथों को फिर से मेरे फड़कते चुत्तड़ों पर 

टिका दिया। 

" चाचू भगवान की जो इच्छा हो वो ठीक है। पर हमें तो जैसे अब है उसी में आपका ख्याल रखने का सोच-विषर करना है ना ! "

मैंने दादी की तरह चाचू को समझाया। 

"तो फिर तुम यहीं स्कूल में दाखिला ले लो फिर हमारी नेहा बेटी हमारे घर की रौनक बन जाएगी रोज़ रोज़। "चाचू ने हँसते हुए कहा। 

" चाचू हम मज़ाक नहीं कर रहे। अच्छा बताइये कि नसीम आपा को आपके अकेलेपन की फ़िक्र नहीं है क्या ? 

" हमें पूरा आगाह है अपनी बड़ी बेटी के प्यार का और उसकी फ़िक्र का नेहा बिटिया। पर वो भी क्या कर सकती है अल्लाह की मर्ज़ी के 

सामने। बस अब शानू बड़ी हो जाये और उसे भी आदिल जैसा अच्छा शौहर मिल जाये तो हमें लगेगा कि रज्जो की रूह को सुकून मिल जायेगा। 

" चाचू का प्यार अथाह था। 

"चाचू हम एक बात बोलें आप बुरा तो नहीं मानेंगें ?," चाचू ने मुस्कुरा कर मेरे नासमझ डर का मज़ाक सा उड़ाया। 

" चाचू जब हम चले जाएंगें तो नसीम आपा तो हैं ना। अब तो उनकी शादी भी हो गयी है। आपको शायद नहीं पता कि जो सुशी बुआ ने हमें 

काम सौंपा था वो ख्याल नसीम आपा के दिमाग़ में कई सालों से दौड़ रहा है। " मैंने सांस रोक ली। चाचू के अगले लफ्ज़ मेरी योजना को 

सफल या विफल कर देंगे। 

चाचू कुछ देर तक चुप रहे पर उनके हाथों की पकड़ मेरे चूतड़ों पर सख्त हो गयी , " नेहा क्या नसीम बेटी ने आपसे कुछ बोला है क्या ?"

" चाचू अभी नसीम आपा तो सीधे सीधे बात नहीं हुई है पर उन्होंने शानू से कई बार इस का ज़िक्र किया है। शानू ने मुझे बताया कि उन्हें 

आपसे इसका ज़िक्र करने में शर्म और डर लगता है। " मुझे अब लगने लगा कि अकबर चाचू के दिल में भी यह ख्याल शायद खुद ही आ चूका 

था। 

आता कैसे नहीं नसीम आपा का शबाब सुंदरता तो भगवान का वरदान सामान है। उनका गदराया भरा भरा शरीर को कोई भी बिना सराहे नहीं 

रह सकता। 

" नेहा अब जब हम दोनों खुल कर सच बोल रहें है तो मैं भी बता दूँ कि नसीम जब दस ग्यारह साल की भी नहीं थी तभी से उसके बदन का 

बढ़ाव तेरह चौदह साल की लड़की की तरह का था। जब हम और रज्जो अपनी बेटी की खूबसूरती की बात करते थकते नहीं थे। कई बार रज्जो 

ने हमें चिढ़ाया की ऐसी बातों के बाद की चुदाई में हम बहुत वहशीपन दिखाते थे। "

चाचू ने एक गहरी सांस ले कर बात आगे बढ़ायी , "एक दो साल बाद नसीम का बदन पूरा भर गया। हमें भी उसकी जन्नती खूबसूरती का पूरा 

अहसास होने लगा। माँ की आखें बहुत तेज़ होतीं हैं। रज्जो ने एक रात हमें बिलकुल पकड़ लिया। 

उसने कहा , 'अक्कू आप सच बतायें आपको हमारी बेटी की गुदाज़ खूबसूरती से मरदाना असर होने लगा हैं ना ? '

हमने रज्जो और किसी से भी कभी झूठ नहीं बोला है। हमने मान लिया , 'रज्जो हम क्या करें हमें अपनी बेटी के हुस्न से बाप का फख्र और मर्द 

के ख्याल दोनों दिमाग़ पर तारी हो जातें हैं। ' 

रज्जो ने हमें प्यार से चूम कर कहा, ' इस में शर्म की क्या बात है। अरे हमारे बाग़ का फल है उसके मिठास का पता हमें नहीं होगा तो किसको 

होगा?' 

'रज्जो तुम्हें बुरा नहीं लगा कि एक बाप अपनी बेटी की खूबसूरती ने असर से मर्दों के हजैसे सोचने लगता है ?'

'अक्कू बुरा तो तब लगता जब आप और नसीम में इतना प्यार नहीं होता। नसीम अब तेरह साल की हो चली है और मुझसे मर्दों और औरतों 

के मेलजोल की बातें पूछने लगी है। जानतें हैं उसने कल क्या कहा ? उसने कहा की - 'अम्मी आप कितने खुसनसीब है की आपका निकाह 

अब्बु जैसे मर्द के साथ हुआ है। मैं तो खुदा से माँगूगीं की मुझे अब्बु तो नहीं मिल सकते पर अब्बु जैसा शौहर मिले। अम्मी क्या बताऊँ अब्बु 

को ले कर कई बार मेरे दिल और दिमाग में कितने ख़राब ख्याल आतें हैं।'

अक्कू मैंने अपनी बेटी को पूरा भरोसा दे दिया कि बेटी और अब्बु के बीच जब बहुत प्यार होता है तो कोई भी ख्याल गन्दा नहीं होता । देखिये 

अक्कू एक दो साल और बड़ा होने दीजिये हमें पूरा भरोसा है आपकी बिटिया खुद आपसे मर्दाने मेलजोल की ख्वाहिश करेगी। बस आप 

पीछे नहीं हटना नहीं तो उसका दिल टूट जायेगा। ‘”

अकबर चाचू ने विस्तार से अपने और रज्जी चाची के बीच में हुए निजी बातचीत का खुला ब्यौरा दिया। 

"हाय चाचू आग तो दोंनो तरफ लगी है तो फिर देर किस बात की ? " मेरी चूत में चाचू का लंड अब डरावनी रफ़्तार से सख्त होने लगा था। 

" नेहा बेटी रज्जो होती तो नसीम और मैं पांच साल से नज़दीक आ गए होते। पर उस रात के कुछ महीनो के बाद ही रज्जो को अल्लाह की 

मर्ज़ी ने जानत की और रवाना कर दिया। अब हमारे और नसीम के बीच में बहुत झिझक, शर्म की दीवार बुलंद हो गयी है। और उसके ऊपर से 

हमारी बेटी हमारे बेटे जैसे भतीजे आदिल की दुल्हन बन चुकी है। हम अब इस ख्याल को दबा देतें हैं इस डर से कि हमारी मर्दाने प्यार भरी 

नज़रों की सोच आदिल न समझ जाये। " अकबर चाचू के दिल में दबे मर्दाने प्यार को ऊपर लेन का सही वक़्त आ गया था। 

" चाचू, जीजू ने तो सुबह सुबह ही कहा था की आप तो उनके अब्बु जैसे हैं। और यदि नसीम आपा राज़ी हों तो वो खुद उनकों आपका ख्याल 

रखने के लिए उकसायेंगे। आदिल भैया तो ठीक आपकी तरह ही सोच रहें हैं। " मैंने प्यार से चाचू की बालों भरे सीने को चूम कर कहा। 

"नेहा हमारा दिमाग़ तो काम नहीं कर रहा। तुम जो कहो वो हम करेंगें। " यह सुन कर तो किला फतह होने के बिगुल बजने शुरू हो गए मेरे मन 

में। 

"अच्छा तो सुनिये चाचू मैं नसीम आपा पहले बढ़ावा दूँगी इस बिनाह पे कि आप उनकी तमन्ना कई सालों से पहले से ही करते रहें हैं। अब 

वो भी आपके करीब चाहतीं हैं। बस शर्म और डर का सवाल है। मैं उनको मन लूँगी की जब वो आपके कमरे में आयेंगीं तो आप उन्हें मेरे नाम 

से पुकारेँगेँ। इस से उनके अंदर जो भी शर्म है या डर है उसके ऊपर मेरे नाम का पर्दा ढक जायेगा। एक बार आप दोनों के बीच में चुदाई हो 

जाएगी तो उसके बाद कैसी शर्म और किसका डर ?" 

मैंने कौटुम्भिक सम्भोग में विशेषज्ञ की तरह सर हिलाते हुए कहा। अकबर चाचू का महा मूसल लंड अब तनतना कर मेरी चूत चौड़ा रहा था। 

" नेहा बिटिया अब तो हमने अपने आपको तुम्हारे हाथों में सौप दिया है। आप जो कहोगे वो हम करने के लिए तैयार हैं ," अकबर चाचू ने मेरे 

दोनों चुत्तड़ों को मसलते हुए प्यार से कहा। 

" चाचू अभी बता देतीं हूँ शानू का दिल अपने अब्बु ऊपर बहुत ज़ोर से आ गया है। अब तो उसकी सील जीजू के तोड़ कर उसे आपके लिए 

तैयार भी कर दिया है। " मैंने चाचू के मर्दाने चुचूकों को होले होले चुभलाते हुए चूसने लगी। 

" नेहा बेटी पहले नसीम के प्यार का इज़हार हो जाने दो। हमें अब आपकी और शुशी भाभी की बातें समझ आ गयीं हैं। अब से हम इस हजार 

ने फिर से प्यार की खिलखिलाहट भरने की पूरी कोशिश करेंगें " चाचू ने हलके से अपनी तर्जनी को मेरी सूखी गाड़ के छेड़ पर पहले रगड़ा फिर 

धीरे से ऊके अंदर ठूंसने लगे। 

मैं चिहक उठी , " हाय चाचू तो मेरी सूखी गांड को क्यों फाड़ने की कोशिश कर रहें हैं ? "

" नेहा पहले तो आपकी चूत की बारी है। उसके बाद आपकी गांड का नंबर लगायेंगें। " चाचू ने मुझे खिलोने की तरह उठा कर मेरी चूत को 

अपने घोड़े जैसे महालण्ड के ऊपर टिका दिया। उनका लंड बिना किसी मदद के मानों प्राकर्तिक सूझ-बूझ दिखाते हुए मेरी चूत के दरवाज़े से 

भिड़ गया। एक बार चूत के कोमल पट्टे लंड के सुपाड़े को अंदर ले लें तो लंड को और क्या चाहिए। अब चूत की शामत है। और इस शामत में 

मिली है सम्भोग की मस्ती। 

चाचू ने पहले मेरी चूत मुझे अपने ऊपर लिटा कर मारी। जब मैं तीन चार झड़ गयी तो मुझे जादुई चाट पर लिटा कर घंटे भर रौंदा। देर रात 

तक चाचू ने मेरी चूत और गांड को रगड़ रगड़ कर चोदा और मेरी सिस्कारियां एक बार शुरू हुईं तो रुकने का नाम ही नहीं लिया। जब तरस खा 

कर चाचू ने मेरे शिथिल निस्तेज शरीर को सोने के लिए छोड़ा तो मैं लगभग बेहोशी के आलम में जा चुकी थी। 
 
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१२७ 
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सुबह जब मैं उठी तो कगभग बारह बज रहे थे। चाचू का कोई भी चिन्ह नहीं था शयनघर में। चाचू तैयार हो कर ऑफिस चले गए थे। 

जब मैं उठी तो पूरा शरीर टूट रहा था। चाचू ने कस कर रगड़ कर चोदा था अपने घोड़े जैसे महालण्ड से मुझे लगभग सारी रात। शरीर नहीं टूटेगा तो और 

क्या होगा। 

शरीर में ऐसा लगा कि कईं नयी मांस-पेशियां जिनका मुझे पहले हल्का सा आभास भी नहीं था। मैं टांगें चौड़ा कर चल रही थी। गांड में ज़्यादा जलन हो 

रही थी। मैंने रसोई में जा कर चॉकलेट मिल्क-शेक बना शुरू किया ही था की शानू के पैरों की रगड़ की आवाज़ सुन कर मैं पीछे मुड़ी। शानू बड़ी मुश्किल 

से टाँगे फैला कर चल पा रही थी। 

मुझे न चाहते हुए भी हंसी आ गयी , " लगता है जीजू ने खूब रगड़ रगड़ कर कोडा है तुझे सारी रात। "

" हाँ कुछ भी ना कह नेहा। जीजू ने सारी रात नहीं सोने दिया। सुबह सुबह ही मैं सो पाई। जीजू ने जाने कितने आसनों में चोदा है मुझे। कभी लिटा कर, 

कभी घोड़ी बना कर , कभी खड़ा करके दीवार से लगा कर। फिर पट्ट लिटा कर पीछे से चोदा तो मेरी तो जान ही निकल गयी। मुझे उनका गधे जैसा लंड 

और भी बड़ा और मोटा लग रहा था। " बेचारी शानू अभी किशोरावस्था का एक साल ही पूरा किया था और दुसरे साल में थी । मुझ से पूरे दो साल से भी 

छोटी थी। 

" नेहा तू बता। अब्बु ने कैसी चुदाई की तेरी ?" शानू की आँखों में एक नयी चमक थी अपने अब्बु के साथ मेरी चुदाई के ख्याल से। 

"अरे शानू रानी, तेरे अब्बु ने मेरी भी हालत ख़राब कर दी। रात भर रगड़ा है मुझे उन्होंने। न जाने कितनी बार मेरे गांड और चूत की कुटाई की चाचू ने। मैं दो 

तीन बार तो थक कर बेहोश सी हो। फिर भी चाचू रुकने वाले थोड़े ही थे। चोदते रहे मुझे लगातार बिना थके। " मैंने शानू को अपनी रति-क्रिया की छोटी 

सा विवरण दिया। 

" नेहा अब्बु का लंड जीजू के लंड के मुकाबले कैसा है ? बड़ा है या नहीं ?" शानू को अपने अब्बु के लंड के बारे में जानने की बड़ी जिज्ञासा थी। 

"शानू, चाचू का लंड जीजू के लंड थोड़ा ही सही पर बीस ही होगा उन्नीस नहीं। लेकिन जब मर्दों के लंड घोड़े गधे जितने बड़े हों तो एक आध इंच का 

फर्क तो दीखता ही नहीं है। " मैंने शानू को बाँहों में भर कर उसके नींबुओं को मसल दिया। 

"हाय रब्बा , क्यों मसल रही है नेहा। जीजू ने इन्हें रात भर वहशियों की मसला नोंचा है। दर्द के मरे मेरी छाती फट पड़ी थी। " शानू ने सिसक कर कहा। 

हम दोनों ने दो बड़े गिलास चॉकलेट मिल्क-शेक पी कर थोड़ी से ऊर्जा बड़ाई। 

" शानू, चाचू नसीम आपा के लिए बेताब हैं। नसीम आपा कब वापस आ रहीं हैं।" मैंने वापस शानू की चूचियों को मसला शुरू कर दिया। 

" दो एक घंटे में आतीं ही होंगी आपा ," शानू अपनी आँखें फैला के फुसफुसाई , " नेहा , आपा को नहीं बता पर रात में जीजू ने मुझसे एक बहुत गन्दी 

बात करने को कहा। "

" ऐसा क्या गन्दा काम करने को बोला जीजू ने तुझे ? " मैंने शानू की शमीज़ उतार कर फर्श पर फैंक दी। जैसे मुझे लगा था शानू ने कोई कच्छी नहीं 

पहनी थी। 

"तू भी तो उतार अपनी शमीज़ ," शानू ने भी मेरा इकलौता वस्त्र उतार फेंका। 

"अब बोल न कुतिया मेरी जान निकली जा रही जानने के लिये ," मैंने शानू के सूजे चुचूकों को बेदर्दी से मड़ोड़ दिया। 

शानू की चीख निकल गयी , "साली, जान तो तू मेरी निकल रही है। " फिर फुसफुसा कर बच्चों के तरह बोली , " जीजू ने जब मुझे तीन चार बार चोद 

लिया था तो मुझे बहुत ज़ोर से मूत लगने लगा था। जीजू बड़े प्यार से मुझे उठा कर बाथरूम में तो ले गए फिर उन्होंने हाय रब्बा कैसे कहूँ ?" लाल हो 

गयी। " यदि नसीम आपा को पता चल गया तो वो मुझे जान से मार डालेंगीं। 

" अरे कुतिया बता तो पहले। जो नसीम आपा करेंगी वो बाद में सोचना, " मैंने शानू के चूचियों को मुट्ठी में भींच कर मसल दिया। 

"नेहा, जीजू मेरा मूत पीने चाहते थे। मैं शर्म से मर गयी। पर जीजू नहीं माने। मैं बहुत गिड़गिड़ायी जीजू से ऐसा नहीं करने को। "

" अरे तो बता तो सही की तूने आखिर में अपना खारा सुनहरी शर्बत जीजू को पिलाया या नहीं? " मुझे शानू के बचपने पर हंसी भी आ रही थी और प्यार 

भी। 

" आखिर मैं कितना मना करती ? शानू शर्म से लाल हो कर धीरे से बोली। 

"अरे पागल , जब जीजू अपनी साली को बहुत प्यार करतें हैं तभी ही तो उससे उसके सुनहरे शर्बत पीने की गुहार लगतें हैं। तू तो बहुत प्यारी भोली बच्ची 

है। अब बता तूने कितना पिलाया जीजू को। "मैंने शानू की च्चियों को कास कर मसल रही थी। 

" अरे नेहा मैं कौन होती थी नाप-जोख करने वाली। जीजू ने एक बूँद भी नहीं ज़ाया होने दी। सारा का सारा सटक गए," शानू की आवाज़ में अचानक अपने 

जीजू के ऊपर थोड़ा सा फख्र का अहसास होने लगा। 

" और तूने अपने जीजू का शर्बत पिया या नहीं ? "मैंने एक हाथ को खाली कर शानू की सूजी चूत के ऊपर रख कर उसकी चूत को सहलाना शुरू कर 

दिया। 

" यदि जीजू चाहते तो मैं मना थोड़े ही करने। पर तब तक जीजू का लंड तनतना कर खूंटे की तरह खड़ा हो गया। जीजू ने ना आव देखा न ताव और मुझे 

वहीँ गोद में उठा कर मेरी चूत की कुटाई करने लगे। " शानू अपनी चुदाई के ख्याल से दमक उठी। 

" शानू , मैंने भी कल रात चाचू का खारा सुनहरा शर्बत दिल और पेट भर कर पिया। चाचू ने भी मेरा शर्बत आखिरी बूँद तक पी कर मुझे छोड़ा। " मैंने 

अपनी तर्जनी को धीरे से शानू की चूत में सरका दिया। शानू सिसक उठी। 

" हाय रब्बा। अब्बू और तूने और क्या-क्या किया ?" शानू अपने अब्बू के साथ मेरी चुदाई के किस्से सुनना चाहती थी। 
 
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१२८ 
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" अच्छा छोड़ पहले चल नहा धो कर तैयार हो जातें हैं, नसीम आपा के आने से पहले।" मैं शानू को हाथ से पकड़ कर अपने कमरे के 

स्नानगृह में ले चली। 

मैंने और उसने एल दुसरे को खूब सहला सहला कर नहलाया। फौवारे की बौछार के नीचे हम दोनों कमसिन लड़कियां एक दुसरे के शरीर 

से खेलते खेलते वासना ग्रस्त हो गयीं। 

" शानू, तूने तो मुझे पूरा गरम कर दिया। अब चल मेरी आग बुझा। " मैंने शानू के साबुन के झागों से ढकी चिकनी चूचियों को मसलते 

हुए सिसकी मारी। 

"नेहा मेरी चूत भी पानी मार रही है। कुछ कर ना ," शानू भी पीछे नहीं रही और मेरे गदराये उरोज़ों को कास कर मसल रही थी। 

मैं समझ गयी कि मुझे ही पहल करनी पड़ेगी। 

मैंने पानी की बौछार में दोनों के बदन के साबुन को साफ़ करके शानू को धीरे से फर्श पर लिटा दिया। फिर मैंने विपरीत दिशा में मुड़ कर 

अपनी धधकती चूत को उसके खुले मुंह के ऊपर टिका दिया। जब तक शानू कुछ कहती मेरा मुंह उसकी चिकनी चूत के ऊपर चिपक 

गया। 

मेरी जीभ शानू के गुलाबी नन्हे पपोटों के बीच छुपे उसकी कमसिन चूत की गुफा में में दाखिल हो गयी। 

शानू सिसक उठी और उसकी ज़ुबान और होंठ भी मेरी चूत के सेवा में लग गए। मैंने शानू की चूत में एक उंगली डाल उसे चोदते हुए 

उसके भग-शिश्न [क्लाइटोरिस] को चूसने, चुब्लाने लगी। उसके चूत से बहते काम-रस की मीठी सुगंध मेरे नथुनो में भर गयी। मेरी चूत में 

से भी पानी बहने लगा। 

मैं शानू की चूत को उसके भगांकुर को चूस रही थी। शानू भी काम नहीं थी। उसने मेरे भाग-शिश्न को दांतों से हलके से दबा कर मेरी 

गांड में एक उंगली डाल दी थी। दूसरी उंगली मेरी चूत को खोद रही थी। 

स्नानगृह की दीवारें हम दोनों की सिस्कारियों से गूँज उठीं। 

अचानक शानू का बदन ज़ोर से अकड़ उठा और वो कस कर सिसकते हुए बोली , " काट मेरे भग्नासे को नेहा। चोद मेरे चूत। मुझे झाड़ 

दे जल्दी से। "

मैं भी कगार पर थी। मैंने शानू की चूत का तर्जनी मंथन तज़कर दिया और उसके भाग-शिश्न को दांतों से चुभलाते हुए जीभ से झटके देने 

लगी। 

शानू ने मेरे मलाशय का उंगली-चोदन की रफ़्तार बड़ा दी और मेरी चूत में धंसी उंगली से मेरी चूत की अगली दीवार को कुरेदते हुए मेरे 

भग्नासे को कस कर चूसने लगी। 

हम दोनों एक हल्की सी चीख मार कर एक साथ झड़ने लगीं। हम दोनों बड़ी देर तक वैसे हीचिपके लेती रहीं। 

आखिर में मैं शानू के ऊपर से उठी और उसके पास फर्श पर बैठ गयी। मैंने अपनी उँगलियाँ चाट कर उसके रति-रस का स्वाद चटखारे 

लेते हुए कहा, " कैसा लगा मेरी चूत का स्वाद। तेरी चूत का रस तो बहुत मीठा है शानू। "

"तेरी चूत भी बहुत मीठी है। अब तेरी गांड का स्वाद भी चख लूंगीं ," शानू ने मुस्करा कए मेरी गांड में से ताज़ी-ताज़ी निकली उंगली 

को कस कर चूस कर साफ़ कर दिया, " ऊम्म्म्म नेहा तेरी गांड का स्वाद भी बहुत अच्छा है। "

शानू की इस हरकत से मैं गनगना उठी। 

मैंने फुसफुसा कर कहा , "शानू मुझे भी अपना सुनहरी शर्बत पिला ना री। "

इस बार शानू शरमाई नहीं , " ज़रूर नेहा। तू भी मुझे अपना शर्बत पिलाएगी ना ?"

नेकी और बूझ-बूझ ? मैंने पहल की। शानू अब जीजू को पिलाने के तजुर्बे से सीख गयी थी। उसने अपनी धार को काबू में रख कर मेरा 

मुंह कई बार अपने सुनहरी मीठे-खारे शर्बत से भर दिया। मैंने भी चटखारे लेते हुए कितना हो सकता था पी गयी। फिर भी मैं शानू की 

मूत्रधार के स्नान से गीली हो गयी। 

शानू ने बिना झिझक मेरी झरने की सुनहरी धार को खुले मुंह में ले लिया। कई बार मुंह भरा और शानू ने बेहिचक गटक लिया। मैंने भी 

उसे अपने सुनहरे फव्वारे से नहला दिया। 

हम दोनों खिलखिला कर हंस दी और फिर एक दुसरे को बाँहों में भींच कर खुले हँसते मुंह से बहुत गीला ,लार से लिसा चुम्बन देना शुरू 

किया तो रुके ही नहीं। 

आखिर में फिर से नहा कर मैंने थकी-थकी सी शानू को पौंछ कर सुखाया और उसे बाँहों में भर कर बिस्तर पर पलट लिया। हम दोनों 

समलैंगिक सम्भोग के अतिरेक से मीठी थकान से उनींदे हो गए। फिर पता नहीं कब वाकई सो गए। 
 
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१२९ 
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" अरे ये दोनों छिनालें कहाँ छुप गयीं हैं ? मैं पांच मिंटो से घर में हूँ और दोनों का कोई पता नहीं है ?" हम दोनों नसीम आपा की सुरीली 

आवाज़ से जग गए। हम दोनों जब तक संभल या समझ पातीं की दोनों पूरे नगें है तब तक नसीम आपा का नैसर्गिक सौंदर्य हमारी आँखों को 

उज्जवल कर रहा था। 

" आपा आप कब आयीं ? "शानू से शर्मा कर सपने ऊपर चादर खींचने की कोशिश की। 

"अरे ढकने की क्या ज़रुरत है अब। दोनों ने पूरा तमाशा तो पहले ही दिखा दिया है। अब ढकने को रह ही क्या गया है ? "नसीम आपा ने लपक 

कर बिस्तर पे चढ़ गयी और हम दोनों की बीच लेट गयीं। 

"मेरी प्यारी छोटी बहन तुझे कितने दिनों बाद देखा है ," नसीम आपा ने मुझे बाँहों में भर कर मेरे खुले मुस्कराते मुंह को ज़ोर से चूम कर कहा। 

मैं भी नसीम आपा की बाँहों में इत्मीनान से शिथिल हो गयी, " देख तो तेरी चूचियाँ कितनी मोटी और बड़ी हो गयीं है री। किस से मसलवाते हुए 

चुदवा रही है तू ?" नसीम आपा ने मेरी दोनों चूचियों को अपने हांथों में भरते हुए पूछा। 

"आपा आपकी चट्टानों जैसी चूचियों से तो बहुत पीछे हैं मेरी दोनों। जीजू ने खूब मसल मसल कर कितना बड़ा और उन्नत कर दिया है दोनों को 

"मैंने भी नसीम आपा की दोनों महा-चूचियों को सहलाते हुए कहा। 

नसीम आपा मुझे तीन साल बड़ी थीं। उनकों उन्नीसवां लगने वाला था एक महीने में। उनका गदराया बदन पहले से ही पूरा भरा-भरा था पर शादी 

के छह महीनो में तो और भी गदरा गया था। उनके उन्नत उरोज़ कुर्ते से फट कर बहार आने के लिए मचल रहे थे। 

"नसीम आपा अब आपकी बारी है जीजू के हाथों के कमाल को दिखने की ," मैंने पलट कर आपा को अपनी बाँहों में भर लिया ,"चल शानू देख 

क्या रही है। चल आपा को नंगा कर। "

नसीम आपा ने थोड़ा बहुत मुकाबिला किया पर उनका मन भी अपनी छोटी बहनों को नंगा देख कर मचल उठा था, " देखो, चुड़ैलों, खुद नगें हो 

कर लिपट कर बिस्तर में लोट पोट करती हो और ऊपर से अपनी आपा को भी खींचने की कोश्सिश कर रही हो अपने नंगेपन में। ?

पर जल्दी ही उनका कुरता फर्श था। उनकी से उनके विशाल उरोज़ मुश्किल से संभल पा रहे थे। शानू ने उनकी ब्रा उतार फेंकी और मैंने उनकी 

सलवार का नाड़ा खोल कर उसे उतार कर अलग कर दिया। 

जब तक नसीम आपा नाटकीय विरोध करतीं मैंने उनकी सफ़ेद कच्छी भी खींच कर उन्हें सम्पूर्ण नग्न कर दिया। 

नसीम आपा का यौवन भगवान ने समय लगा कर खूब मन लगा कर बहाया होगा। 

पांच फुट पांच इंच लम्बी , पूरे भरे कमनीय सुडौल शरीर की मलिका , देवी सामान सुन्दर गोरा चेहरा, घुंघराले लम्बे काले बाल -यदि नैसर्गिक 

सौंदर्य का कोई नाम देना होता तो मैं उसे " नसीम आपा ' का ख़िताब दे देती। 

नसीम आपा के उरोज़ों को उठान उनकी गोल भरे-बाहरी थोड़े से उभरे उदर के नीचे घने घुंघराले झांटों से भरी ढंकी उनकी योनि और फिर केले के 

तने जैसे गोल मटोल जांघें। क़यामत ढाने वाला सौंदर्य था नसीम आपा का। 

नसीम आपा ने मौका देख कर मुझे और शानू एक एक बाज़ू में दबा कर चिट बिस्तर पर लेट गयीं। 

"अच्छा अब बता किस लंड से चुदवा कर तू इतनी गदरा गयी है मेरी नेहा ," नसीम आपा ने मेरी नाक की नोक को चूमते हुए कहा। 

" आपा नेहा की कुंवारी चूत बड़े मामा ने चोदी है। उसके बाद सुरेश चाचू ने भी इसकी खूब चुदाई की है। " शानू ने जल्दी से मेरे चुदाई-अभियान 

की शुरुआत का ब्यौरा कर दिया। 

"शानू आपा को पहले ये बता कि तेरी कुंवारी चूत को कल किसने चोदा है ?" मैंने झट से नसीम आपा का ध्यान बेचारी शानू की तरफ कर दिया। 

" क्या वाकई नेहा ? शानू तूने आखिर में अक्ल का इस्तेमाल कर ही लिया। सच बता तूने अपने जीजू को अपनी चूत वाकई सौंप दी या नहीं ?" 

नसीम आपा ने चहकते हुए ज़ोर से पूछा। 

"हाँ आपा , कल नेहा ने जीजू को मेरे लिए मना लिया ," शानू ने शरमाते हुए कहा। 

" अरे फिर शर्मा क्यों रही है। आखिर तेरे जीजू ने कितना इंतज़ार किया है तेरे लिए। चल बता खूब चोदा क्या नहीं आदिल ने ?" नसीम आपा ने 

शानू के दोनों नीम्बुओं को मसलते हुए चिढ़ाया। 

"हाय आपा , आदिल भैया ने.... नहीं नहीं मेरा मतलब जीजू ने ना जाने कितनी बार मुझे पहले दिन चोदा। बहुत बेदर्दी से चोदते हैं जीजू ," 

शानू का सुंदर दमकते हुए चेहरे की मुस्कान कुछ और ही कह रही थी। 

" अरे आदिल ने दूसरी साली को क्यों छोड़ दिया ? " नसीम आपा ने मेरी और देखते हुए पूछा। 

"छोड़ा कहाँ आपा। पहले पहल तो मेरी चूत की ही कुटाई हुई। चूत की ही नहीं मेरी गांड का भी भरकस बना दिया जीजू ने, " मैंने नसीम आपा 

के भरी मुलायम उरोज़ों को सहलाते हुए बताया। 

" हाय नेहा तूने गांड भी मरवा ली अपने जीजू से !" नसीम आपा ने मेरी बायीं चूची ज़ोर से मसलते हुए मुझे चूम लिया। 

"हाँ आपा , आपकी इस नालायक छोटी बहन ने ये ही शर्त रखी थी। कि यदि मैं जीजू से गांड मरवा लूंगी तो ये महारानी अपने जीजू को अपनी 

चूत मारने देगी ," अब हाथ फैला कर नसीम आपा के केले के तने जैसे चिकनी गदराई रान को सहलाते हुए कहा। 

" तो रात में तुम दोनों की खूब कुटाई की मेरे आदिल ने?" नसीम आपा ने हल्की सी सिसकारी मारी। मेरे हाथ अब उनके प्रचुर यथेष्ठ नितिम्बों पर 

थे। 

" नहीं जीजू को मुझे अकेले ही सम्भालना पड़ा। तभी तो मेरी हालत बिलकुल इतनी ढेली कर दी जीजू ने ," शानू ने जल्दी से सफाई दी। 

" तो तू फिर कहाँ थी ?" नसीम आपा ने स्वतः ही असली मुद्दा उठा दिया। 

" आपा कल मेरी कुटाई चाचू कर रहे थे ," मैंने बम फोड़ दिया। 

इस बात के धमाके से नसीम आपा की बोलती कुछ देर तक बंद हो गयी। 
 
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१३० 
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कुछ देर बाद ही नसीम आपा बोल पाईं , "हाय रब्बा, नेहा तूने वाकई अब्बू के साथ चुदाई की कल रात ?" 

"नसीम आपा क्या बताऊँ चाचू बेचारे इतने महीनों से भूखे थे की उन्होंने मेरी चूत और गांड की तौबा बुला दी अपने घोड़े जैसे लंड से ठोक 

ठोक कर। " मैंने नसीम आपा की भारी हो चलीं साँसों को नज़रअंदाज़ करते हुए कहा। 

" नेहा मुझे कितना रश्क हो रहा है इस वक्त। मैं थोड़ी सी भी बहादुर होती तेरी तरह तो कब की अब्बू के कमरे में जा चुकी होती। काश मैं 

अपने प्यारे अब्बू के अकेलेपन को अपनी जवानी से दूर कर पाने की हिम्मत जुटा पाती। इस बेटी की जवानी का क्या फायदा जब जिस 

अब्बू ने इसे जनम दिया उसी अब्बू के काम ना आये तो ? " नसीम आपा बहुत भावुक हो गयीं। 

" नसीम आपा ज़रा मेरी बात सुने पहले। मैंने कल चाचू के साथ बहुत खुल कर बात की और........ " और फिर मैंने नसीम आपा को 

पूरा किस्सा सुना दिया। 

नसीम आपा खिलखिला उठीं , "हाय अल्लाह की नेमत है तू नेहा। वाकई अब्बू की मेरे लिए चाहत इतने सालों से दबी हुई थी। मैं जैसे 

तूने मंसूबा बनाया है वैसे ही चलूंगी। " 

अचानक हम तीनों एक दुसरे से लिपट कर रोने लगे। लड़कियों की इस क़ाबलियत का कोई मुकाबिला नहीं कर सकता। जब दुखी हों तो 

रों पड़ें और जब बहुत खुश हो तो भी रों पड़ें। 

जब हम तीनो का दिल कुछ हल्का हुआ तो हम तीनों पागलों की तरह खिलखिला कर हंस पड़ीं। और बड़ी देर तक हंसती रहीं। 

काफी देर बाद नसीन आपा ने कहा ,"नेहा तू मुझे सारी रात का ब्यौरा बिना एक लफ्ज़ काम किये दे दे। मुझे खुल कर बता कि कैसे 

कैसे अब्बू ने तुझे चोदा और क्या क्या कहा। उन्हें क्या ज़्यादा अच्छा लगता है और कैसे तुखसे उन्होंने करवाया। कुछ भी नहीं छुपाना। 

पूरा खुलासा दे दे नेहा। मेरा सब्र अब टूटने वाला है। "

मुझे नसीम आपा के अपने अब्बू के लिए इतना प्यार देख कर रहा नहीं गया। मैंने चाचू और अपने बीच हुए घनघोर लम्बी चुदाई का पूरा 

खुलासा देना शुरू कर दिया। 

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जब तक मैंने पूरी रात की कहानी बहुत खुलासे और सुचित्रित प्रकार से सुनाई तब तक शानू का मुंह अपनी बड़ी बहन की चट्टान जैसी 

उन्नत चूची पर कसा हुआ था। मैंने दूसरे उरोज़ को मसलते हुए अपने दूसरे हाथ को नसीम आपा की धमाके दार जंगों के बीच में छुपे 

ख़ज़ाने की गोह को सहलाने में मशगूल कर दिया। 

कहानी पूरी होते ही नसीम आपा सिसकारी मरते हुए फुसफुसाई, "कैसी नमकहराम बहनों हो दोनों, एक ने मेरे खाविंद अपने जीजू का 

लंड पूरी रात खाया दूसरी ने मेरे वालिद मेरे अब्बू का लंड पूरी रात खाया और अब दोनों अपनी बड़ी बहन आपा को अच्छे से चोदने की 

जगह देखो कैसे नाटक कर रहीं है मरी चुचीओ और चूत के साथ ," नसीम आपा के उल्हानों ने मानों हम दोनों का कोई छुपा बटन दबा 

दिया। मैं लपक कर नसीम आपा की टांगों के बीच में डुबकी मारने लगी। शानू ने अब बेहिचक अपनी बड़ी बहन के एक चुचूक ज़ोर चूसते 

हुए दूसरे चुचूक को मड़ोड़ना और मसलना शुरू कर दिया। नसीम आपा ने सिसक कर अपनी नन्ही बहिन का मुंह अपने मुंह के ऊपर 

जकड लिया। 

नसीम आपा और शानू खुले मुंह से बहुत गीले और लार आदान-प्रदान करने वाले चुम्बन में जुड़ गयीं। मैंने नसीम आपा की तूफानी 

जांघें फैला कर उनके गीले मोहक सुंगंधित स्त्री धन के गुफा के पर्दों को अपनी जीभ से खोल कर उनकी नैसर्गिक गोह में घुसा दिया। 

नसीम आपा की दबी दबी सिसकारी ने कमरे में संगीत की लय खोल दी। 

शानू ज़ोरों से अपनी आपा के उरोज़ों का मर्दन कर रही थी। मैं उनकी चूत को अपनी जीभ से चोदते हुए उनके भग-शिश्न को अपने अंगूठे 

से रगड़ रही थी - बेदर्दी से, बहुत ज़ोर से। 

नसीम आपा की सिस्कारियां शानू के मुंह में दबी नहीं रहीं पर कमरे में गूँज उठी। उनका सत्तर किलो का गुदाज़ सुडौल शरीर अब बिस्तर 

से उझलने लगा। 

मैंने शानू से कहा , " शानू, आपा के मुंह पर अपनी चूत दबा कर उनकी चूचियों को मसल। "

शानू मेरा इशारा तुरंत समझ गयी। उसने झट से उठ कर अपने चूतड़ नसीम आपा के मुंह पर टिका दिए। उसकी गांड और चूत अब नसीम 

आपा के मूंग के ऊपर थी। शानू नसीम आपा के ऊपर उल्टी लेट गयी। नसीम आपा ने अपनी छोटी बहिन के चूतड़ कस कर मसलते हुए 

उसकी चूत को अपने मुंह पर दबा ली। 

मैंने नसीम आपा की चूत में दो उँगलियाँ घुसा कर उनके मोटे लम्बे गुलाबी भग-शिश्न को अपने मुंह में काबू कर लिया। नसीम आपा की 

सिसकारी ने मुझे और शानू को बहुत उत्तेजित कर दिया। 

"नेहा, काट ले आपा की चूत। घुसा दे अपना पूरा हाथ उनकी चूत में। चोद आपा की चूत नेहा," शानू वासना के उत्तेजना के असर से 

चिल्लायी।

मैंने भी कोई कसर नहीं छोड़ी। शीघ्र मेरी उँगलियाँ, एक नहीं दो, आपा की गांड में थीं, मेरी दूसरी दो उँगलियाँ उनकी चूत में , और मेरा 

अंगूठा और मुंह उनके तड़पते भग-शिश्न पर। और शानू की सुगन्धित चूत उनके मुंह पर और शानू के हाथ और मुंह उनके फड़कते उरोज़ों 

के ऊपर सितम ढा रहे थे। 

हम दोनों ने दिल लगा कर नसीम आपा को समलैंगिक प्यार से डूबा दिया। 

नसीम आपा कांपते हुए कई बार झड़ गयीं। उन्होंने गाली दे कर, प्यार की दुहाई दे कर हमें रुक जाने की गुहार लगाई पर शानू और मैंने 

उन्हें घंटे भर तक नहीं छोड़ा। आखिर में नसीम आपा अनगिनत बार झड़ कर ना केवल शिथिल हो गयी बल्कि बेहोश सी हो कर गहरी 

गहरी साँसे लेते आँखे बंद कर सो सी गयीं। 

मैंने नसीम आपा की गांड और चूत के रस से लिसी अपनी उँगलियाँ स्वाद लेते हुए शानू के साथ मिल बाँट कर चूस चाट कर साफ़ कर 

दीं। 
 
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१३१ 
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नसीम आपा पीठ पर लेते दोनों हाथों और टांगों को फैलाये गहरी गहरी साँसे ले रहीं थीं। समलैंगिक प्यार की उत्तेजना किसी 

और सम्भोग की उत्तेजना का मुकाबिला कर सकती है। मैंने एक बार फिर से नसीन आपा के गदराये लुभावने शरीर के रस का 

नेत्रपान किया। साढ़े पांच फुट का कद। सत्तर किलो का गुदाज़ बदन। चौड़े गोल कंधे। गोल सुडौल बाहें। केले के तने जैसी 

गोरी गोल भरी-भरी जांघें। भरी-भरी पिंडलीं। सुडोल टखने। नसीम आपा के वज़न का हर किलो हुस्न में इज़ाफ़ा कर रहा था। 

तब मैंने पहली बार गौर किया कि उनकी फ़ैली बाँहों की बगलें रेशमी बालों से ढकीं थीं। शानू और मैं आपा के दोनों तरफ 

उनकी बाँहों में मुंह छुपा कर लेट गयीं। 

" आपा अपने अपनी बगलों में रेशमी जंगल कब से उगने दिया ?" मैंने उनकी फड़कते उरोज को सहलाते हुए पूछा। 

आपा हंस दीं , मंदिर की घंटियों जैसी मधुर संगीत भरी हंसी , " नेहा मैंने गलती से शब्बो बुआ से शर्त लगा ली। तुझे तो

पता है हमारी बुआ की बगलों में उनके घुंघराले रोमों से भरी हैं। उन्होंने मुझे उकसा दिया। और मैंने बुद्धुओं के जैसे गलत 

शर्त लगा ली कि मैं भी अपनी बगलों में उनके घने बगलों जैसे रोएं ऊगा सकती हूँ। पर अब मुझे पता लग रहा है कि पहले तो 

मेरे रोएं सीधे है जब कि बुआ के सूंदर घुंघराले हैं। और मेरी बगले बड़ी मुश्किल से भर रहीं हैं। लगता है मैं बुरी तरह हारने 

वालीं हूँ। "

" आदिल भैया यानि जीजू को मेरी बड़ी बहन की भरी बगलें कैसे लगीं ?" मैंने अपना मुंह आपा की बगल में दबा दिया। 

हमारे लम्बे समलैंगिक सम्भोग और प्यार की गर्मी और मेहनत से हम तीनो के बदन पसीनों की बूंदों से चमक रहे थे। मेरे 

नथुनों में आपा की मोहक सुगंध समां गयी। 

" अरे नेहा बुआ मुझे पक्का वायदा दिया था कि आदिल तो होश गवां देंगें मेरी बगलों को देख कर। और वही हुआ। 

आदिल मुझे चोदते हुए मेरी बगलों को बिना थके चूस चूस कर गिला कर देतें हैं। " नसीम आपा ने मेरे चुचूक को मसलते हुए 

बताया। 

शानू ने भी अपनी बड़ी बहन के दुसरे उरोज को मसलते हुए रोती से आवाज़ में कहा , " मेरी बगलों में रेशा भी नहीं है। "

" मेरी रांड कमसिन नन्ही बहन तेरी तो अभी झाँटें उगना भी नहीं शुरू हुईं है। इन्तिज़ार कर। जब तेरे जीजू तेरी झांटों को 

देखेंगें तो पागल हो जाएंगें। तेरी चूत को चोद - चोद कर फाड़ देंगें। "

शानू ने नसीम आपा के बगलों के रेशों को चूसते हुए बड़ी बहन का ताना बेशर्मी से हँसते हुए सहा ," आपा मेरी चूत फाड़ने 

का तो अब पूरा हक़ है जीजू को। "

मेरे हाथ बहकते हुए आपा के घनी घुंघराली झांटों से ढकी कोमल चूत की फांकों को सहला रहे थे। नसीम आपा सिसक उठी 

, " आह नेहा धीरे ," मैंने उनके उन्नत भाग-शिश्न को मसल दिया था। 

शानू ने मेरा साथ देते हुए आपा के उरोज के ऊपर आक्रमण बोल दिया। शानू ने अपनी बड़ी बहन के चुचूक को कस कर 

चूसना शुरू कर दिया। और शानू अपने नन्हें दोनों हाथों से उनके भरी विशाल स्तन को कस कर मसले भी लगी। 

आपा सिसक उठीं , " हाय तुम दोनों छिनालों को सब्र नहीं है क्या? अभी कुछ लम्हों पहले ही तो मुझे घंटे भर रगड़ा है तुम 

दोनों ने। "

आपा ने शिकायत तो की पर उन्होंने एक हाथ से अपनी छोटी बहन का मुंह अपने फड़कते उरोज के ऊपर और दुसरे से मेरे 

हाथ को अपने चूत के ऊपर दबा दिया। 

मैंने अपनी दो उँगलियाँ आपा की गुलाबी चूत के सुरंग में घुसाते हुए अपने अंगूठे से उनके मोठे सूजे भग-शिश्न [ क्लिटोरिस 

] को लगी। 

आपा की सिसकारी कमरे में गूँज उठी। 

नसीम आपा के होंठ खुल गए। उनके अध-खुले लम्बी-लम्बी भरी साँसें उबलने लगीं। मेरी उत्सुक उँगलियों ने नसीम आपा 

नसीम आपा की रेशमी चिकनी योनि की सुरंग के आगे की दीवार पे छोटा खुरदुरा स्थल ढूंढ लिया और उसे तेज़ी से सहलाने 

लगीं। नसीम आपा के बड़े गुदाज़ चूतड़ बिस्तर से उठ कर चहक गए। 

" हाँ हाय रब्बा ऐसे ही.... नेहा ,,...... उन्न्नन्नन हाँ ज़ोर से ....... उन्न्नन्नन्न ," नसीम आपा सिसकारियों ने हम दोनों को 

और भी उत्साहित कर दिया। 

थोड़ी देर में ही नसीम आपा की हल्की से चीख निकल गयी और उनका गुदाज़ बदन ऐंठ गया। नसीम आपा भरभरा कर झड़ 

रहीं थीं। 

मुझे अचानक बहुत ही उत्तेजक विचार आया। 
 
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१३२ 
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मैंने नसीम आपा को उनकी बायीं तरफ पलट दिया। शानू को मैंने नसीम आपा के अगले भाग को सौंप पिछवाड़ा खुद सम्भाल लिया। 

जब तक नसीम आपा अपने लम्बे चरम - आनंद के आक्रमण से सभलतीं शानू का मुंह उनकी चूत के ऊपर था। मैंने उनके भारी चूतड़ों को फैला दिया। उनके 

नितम्ब किसी मर्द की भी लार टपकाने में सक्षम थे। 

शानू ने अपनी बड़ी बहन के सूजे भग-शिश्न को कस कर चूसते हुए तीन उँगलियाँ उनकी योनि की सुरंग में घुसा कर उनकी चूत का ऊँगली-चोदन दिया। मैंने 

आपा के चौड़े भारी मुलायम नितिम्बों और उनकी गुलाबी संकरी गुदा के सिकुड़े छेद को अपनी आँखों से सहलाया और मेरा सब्र टूट गया। मैंने नसीम आपा 

के चूतड़ों को चूमते हुए कई बार अपने दांतों से काटा। 

" अरे चुड़ैल क्या मुझे जाएगी ? हआांंंंन ......... नेहा आआआ। .... और ज़ोर से काट चुड़ैल हाय। ... शानू तू भी मेरी चूत कट खायेगी क्या ? 

उन्न्नन्नन्नन ......... रब्बा मेरा जिस्म जल रहा है ........ और ज़ोर से आआआआआण्ण्ण्ण्ण्ण्ण ," नसीम आपा वासना की उत्तेजना से कराहीं। 

मैंने अपने जीभ से उनकी गुदा-द्वार को कुरेदना शुरू कर दिया। उनकी आनंद भरी कराहटें कमरे में गूंजने लगीं। शानू और मैं उनकी चूत और गांड और भी ज़ोरों 

से चूसने , चाटने और चोदने लगे। 

मेरी जीभ आखिर कार नसीम आपा के तंग सिकुड़ी गांड के ऊपर हावी हो गयी। मेरी जीभ की नोक उनकी ढीली होती गुदा के छेद के अंदर दाखिल हो गयी। 

नसीम आपा की गांड के सुगन्धित गांड को मैं अपनी जीभ से चोदते हुए उनके गदराए चूतड़ों को मसलने लगी। 

शानू के तीन उँगलियाँ अब तेज़ी से नसीम आपा की चूत चोद रहीं थी। उसने अपनी बड़ी बहन के सूजे मोठे लम्बे भग-शिश्न को एक क्षण के लिए भी अपने मुंह 

से नहीं निकलने दिया। शानू नसीम आपा की चूत के दाने को लगातार ज़ोर से चूस रही थी। 

नसीम आपा सिस्कारते हुए कई बार झड़ चुकीं थीं। 

अचानक उनका बदन फिर से धनुष की तरह तन गया, " हआआआ …….. उन्न्नन्नन्नन ………..हम्म्म्म्म्म्म ……. मर गयी रब्बा मेरे ………उन्न्नन्नन। "

हमें लगा कि नसीम आपा के अगले चरम - आनंद बहुत ही तीव्र और ज़ोरदार होगा और वो ज़रूर थक जाएंगी। 

मैंने उनकी थूक से सनी गांड में एक और फिर उँगलियाँ जोड़ तक बेदर्दी से ठूंस दीं। शानू और मैं नसीम आपा की चूत और गांड बेदर्दी से और तेज़ी से अपनी 

उँगलियों से चोद रहे थे। 

नसीम आपा ने एक घुटी - घुटी चीख मारी। उनका बदन तन गया और उनकी सिसकारियाँ बिलकुल बंद हो गयीं। कुछ देर बाद के मुंह से एक लम्बी सीकरी 

निकली और उनका बदन बिलकुल शिथिल हो कर बिस्तर पर पस्त हो गया। 

शानू और मैंने एक दुसरे को ख़ामोशी से शानदार चुदाई के लिए बधाई दी।

हम दोनों ने नसीम आपा के थके निश्चेत बदन को बाँहों में भर कर उनके दोनों ओर लेट गए। 

शानू ने मेरी नसीम आपा की गांड से ताज़ी-ताज़ी निकली रास से लिसी उँगलियाँ अपने मुंह में भर ली। बदले में मुझे उसकी नसीम आप के चूत - रस से लिसी 

उँगलियों का स्वाद मिल गया। 

नसीम आपा काफी देर बाद होश में आयीं और फिर उनके आनंद भरी थकी मुस्कराहट से दमके चेहरे को देख कर हम दोनों ने उन्हें चूम-चूम कर गीला कर 

दिया। 

" नेहा अब आज रात के बारे में भी सोचो ? " शानू दादी-अम्मा की तरह बोली। 

" आज रात के बारे में क्या सोचना है शानू ? " मैंने शानू को कुरेदा , " आज रात नसीम आपा की चूत और गांड की तौबा बोलने वाली है चाचू के लण्ड से। " 

" अरे उसके लिए तो आपा वैसे ही बेचैन हैं सालों से अब्बू के लण्ड खाने के लिए। मैं तो पूछ रही थी कि आपा क्या पहनेंगीं ?" शानू ने अपना सवाल साफ़ 

किया। 

" अरे वो तो मैंने पहले ही सोच रखा है। अकबर चाचू ने मुझे बताया था और सुशी बुआ ने भी कहा था। चाचू की पसंदीदा पोषल लहंगा और चोली है। नसीम 

आपा बहुत खूबसूरत लगेंगी रज्जो चाची की चोली लहंगे में। " मैंने खुलासा दिया। 

"लगता है तुम दोनों ने मेरे लये कुछ भी नहीं छोड़ा ," नसीम आपा ने प्यार से हम दोनों को चूमा। 

" अरे आपा सबसे ज़िम्मेदारी का काम तो आपके लिए ही छोड़ा है। ज़ोर से चाचू से चुदने का काम," मैंने खिलखिलाते हुए कहा। 

शानू और नसीम आपा भी खिलखिला कर हंस दीं। नसीम आपा की आँखों में प्यार और वासना का मिलाजुला खुमार छा गया। 
 
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१३३ 
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हम तीनों नहाने चल दीं। स्नानघर में भी हम तीनों की चुहल बजी बंद नहीं हुई। नसीम आपा को ज़ोर से पेशाब आया था। शानू और मैंने हंस कर 

कहा " अरे आपा कमोड पर बैठने की क्या ज़रुरत है यहीं शावर में कर लीजिए। "

नसीम आपा ने अपनी नन्ही छोटी बहिन से पूछा , " यह तो बता मुझे कि तूने अपने जीजू का सुनहरा शरबत का स्वाद लिया या नहीं ?"

" आपा अवाद ही नहीं लिया बल्कि पिया है मैंने। आपको तो जीजू रोज़ शर्बत पिलतए होंगे? ," शानू की बात सुन कर नसीम आपा की आँखें चमक 

उठी। 

" तेरे जीजू का शर्बत तो दिल चाहे मिल जाता है। मुझे तो नेहा से रश्क हो रहा है कि उसने हंस सबसे पहले अब्बू का का सुनहरी शर्बत गटक लिया 

," नसीम आपा ने मेरे साबुन के झांगों ढके चूचियों को मसलते हुए ताना मारा। 

" अब आपको मौका है जितना मन उतना पी लेना आज रात ," मैंने नसीम आपा के चूचुकों को मसलते हुआ जवाब दिया। 

" आपा नेहा और मैंने भी एक दुसरे का सुनहरी शर्बत खूब पेट और दिल भर पिया था कल ," शानू ने अपनी बड़ी बहन के गुदाज़ गोल उभरे पेट को 

सहलाते हुए कहा। 

" किसी को अपनी आपा का शर्बत पीना है या उसे बर्बाद कर दूँ फर्श पर मूत के ? " नसीम आपा ने भारी सी आवाज़ में पूछा। 

" नेकी और पूछ पूछ। चल शानू अब आपा का शर्बत घोटने का मौका है ," मैं और शानू नीचे बैठ गए। 

नसीम आपा के हाथों ने अपनी घुंघराले झाटों से ढके योनि की फाकों को चौड़ा कर अपनी गुलाबी चूत को खोल दिया। जल्दी ही सरसराती सुनहरी 

शर्बत की धार हम दोनों के चेहरों के ऊपर बरसात करने लगी। शानू और मैंने दिल लगा कर नसीम आपा के खारे / मीठे शर्बत से नहाने के अलावा 

कई बार मुंह भर कर उनके सुनहरे शर्बत को गटक लिया। 

जब नसीम आपा की बुँदे भी निकालना बंद हो गयीं तभी हम दोनों रुके। 

अब नसीम आपा की बारी थी अपनी छोटी बहनों के शरबत का स्वाद लेने की। थोड़ी देर में शानू और मेरी झरने की आवाज़ निकालती दो धारें 

नसीम आपा को नहलाने लगीं। नसीम आपा नादीदेपन से कई बार अपना मुंह भर हमारा शर्बत गतक लिया। 

फिर हम तीनों खिलखिला कर संतुष्टि भरी हंसी से स्नानघर गूंजते हुए नहाने का कार्यक्रम लगीं। 

नसीम आपा ने मेरे उरोजों को साबुन से झागों से सहलाते हुए पूछा , " नेहा , यह तो बता कि अब्बू से गांड मरवाते हुए यदि मैं उनका लण्ड गन्दा कर 

दूँ तो उन्हें बहुत बुरा लगेगा ?"

शानू लपक कर बोली , " आपा आप अब्बू से एक ही रात में गांड भी चुदवा लगी ?"

"छोटी रंडी मैंने इसी दिन के लिए तो अपनी गांड कुंवारी बचा रक्खी है। वर्ना तो तेरे जीजू मेरे गांड फाड़ने में एक लम्हा देर नहीं लगाते। " नसीम आपा 

ने शानू को चुप कर दिया , " तो बता ना नेहा अब्बू का लण्ड गंदा होने से बचने के करूँ ?"

मैंने अपनी छोटी सी ज़िंदगी में भयंकर चुदाइयों को याद करके कहा, " नसीम आपा भरोसा रखिये चाचू के ऊपर अपना आपकी गांड से निकला लिसा 

लिप्त गन्दा लण्ड आपसे चुसवाने के ख्याल से ही आपको चोदने का नशा तारी हो जायेगा। नम्रता चाची कह रहीं थीं कि मर्दों को हलवे से भरी गांड 

मारने से गांड-चुदाई का मज़ा दुगना-तिगना हो जाता है। जीजू ने मेरी भरी गांड कितने चाव से मारी थी कल। नहीं शानू ?"

"हाँ आपा जीजू का लण्ड जब नेहा की गांड के रस से लिस गया तो उनके धक्कों में और भी ज़ोर आ गया था," शानू ने मेरा समर्थन किया और फिर 

शरमाते हुए बोली , " जीजू ने अपना नेहा की गांड से निकला लिस फूटा लण्ड मेरे मुंह में ठूंस दिया था। मैंने तो लपक कर उनके लण्ड को चूस चाट 

कर साफ़ कर दिया। "

शानू ने फख्र से आपा को मेरी गांड-चुदाई के रस का स्वाद का खुला ब्यौरा दिया। 

" ठीक है तुम दोनों के ऊपर भरोसा कर रहीं हूँ मैं। लेकिन ख्याल रखना यदि अब्बू को मेरी गांड से निकले लण्ड को देख कर उनका दिल खट्टा हो 

गया तो मैं तुम दोनों की गांड में अपना कोहनी तक हाथ ठूंस कर तुम दोनों की गांड फाड़ दूंगीं ," नसीम आपा ने धमकी दी। 

" उस की नौबत नहीं आएगी आपा। पर यदि मौका मिले तो अपनी गांड में अब्बू का मक्खन बचा कर ले आईयेगा। शानू बेचारी को उस प्रसाद का 

स्वाद तो मिल जायेगा। मेरी अंजू भाभी ने मुझे एक सुबह नरेश भैया से गांड चुदवाने के बाद अपनी गांड का रस मुझे पिलाया था। सच में आपा 

उनकी गांड के रस में नरेश भैया की मलाई का मिश्रण बहुत ही मीठा था। शानू की तो लाटरी निकल जाएगी। " मैंने नसीम आपा के दिल में यदि 

कोई शक बचा हुआ था तो मेरी अंजू भाभी के किस्से से ज़रूर दूर हो गया होगा। 

हम तीनों तैयार हो कर फिल्म देखने और बहार लंच करने के लिए निकल पड़े। शानू और मैं नसीम आपा को मशगूल रखना छह रहे थे। जिस से 

उनका ध्यान अब्बू के साथ पहली रात बिताने के ख्याल से उपजे डर से दूर ही रहे। हम तीनों वाकई तीसरे दर्ज़ की मसाला फिल्म देख और फिर 

पसंदीदा रेस्तौरांत में खाने खाते सब कुछ भूल गए या हमारे दिमाग ने उन ख्यालों को जागरूक दिमाग के पीछे धकेल दिया। जो भी हो नसीम आपा ने 

हमारे साथ मिल कर फिल्म के हर सस्ते दृश्य के ऊपर सीटी मार कर ज़ोर ज़ोर के कटाक्ष मारे। 

हँसते हँसते हम तीनों के पेट में दर्द हो गया 
 
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१३४ 
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शाम होते ही हमने तैयार होना शुरू कर दिया। मैंने और शानू ने रज्जो चाची के सावधानी से बचा कर संजोये कपड़ों में से हल्की सरसों 

के रंग की बसंती चोली और हलके नीले लहंगे को चुना। नसीम आपा के बहुत ना ना करते हुए उनको जबरन मना लिया। चोली के नीचे 

कोई भी ब्रा या शमीज नहीं थी। ना ही लहंगे के नीचे कोइ कच्छी पहनने दी हमने नसीम आपा को। नसीम आपा के बड़े-बड़े भारी उरोज 

चोली को फाड़ते से लग रहे थे। उनकी हर सांस और हर क्रिया से उनके विशाल उरोज मादक मनमोहक अंदाज़ से हिल पड़ते। शानू और 

मैं नसीम आपा के अप्सरा जैसे रूप को देख कर खुद भी उत्तेजित हो गए। नसीम आपा के बदन से चन्दन से साबुन मोहक सुगंध आ रही 

थी। अब्बू और जीजू के ऊपर हमें तरस आने लगा। अब्बू जब अपनी बड़ी बेटी का रूप उसकी अम्मी के वस्त्रों में देखेंगे तो उनकी हर 

झिझक और हिचक एक लम्हे में मिट जाएंगीं। 

शानू को मैंने उसकी बचपने की फूलों वाली फ्रॉक पहनायी बिना कच्छी के। उसकी फ्रॉक जरा सी भी ऊँची उठेगी तो उसके गोल गोल 

चूतड़ों हो जायेंगे। और जब वो थोड़ी सी भी टाँगे चौड़ा कर बैठेगी तो उसकी गोल गोल जांघों के बीच छुपे गुलाबी ख़ज़ाने की गुफा की 

कमसिन द्वार के दरवाज़ों का दर्शन जो भी उसकी तरफ देख रहा होगा उसे बहुत आसानी से हो जायेगा। 

मैंने भी नसीम आपा की पुरानी स्कूल की हलके आसमानी रंग की फ्रॉक पहन ली। मैंने भी कोइ कच्छी पहनने की कोशिश नहीं की। 

आदिल भैया अकबर चाचू से आधा घंटे पहले ही आ गए। उनकी आँखे नसीम आपा के नैसर्गिक सौंदर्य को देख कर खुली की खुली रह 

गयीं। 

" जीजू, आज रात तो नसीम आपा अब्बू की दुल्हन हैं। आपको आज रात तो अपनी सलियों से ही संतुष्टि करनी होगी ," मैंने मटक 

कर आदिल भैया को झंझोड़ा। 

" हाँ जीजू नेहा सही कह रही है ," शानू ने भी मेरी ताल में ताल मिला दी। 

" अरे हम सिर्फ अपनी जोरू के हुस्न से अपनी आँखें ही तो सेक रहे थे। हमें अपनी दोनों सालियों को एक साथ रोंदने का मौका मिले तो 

भला हम क्यों सवाल-जवाब करेंगें ," आदिल भैया वाकई राजनैतिक चातुर्य से भरे थे। 

आदिल भैया ने अपनी बात को साबित करते हुए शानू को दबोच लिया अपने शक्तिशाली भजन में। उनके फावड़े जैसे विशाल हाथों ने 

बेचारी कमसिन शानू के उगते उरोजों को कास क्र मसलते हुए उसके सिसकारी मारते अधखुले मुंह के ऊपर अपने होंठों को दबा दिया। 

" अरे जीजू जरा शानू की फ्रॉक के नीचे की तो जांच-पड़ताल कर लीजिए। पता नहीं इस पुरानी फ्रॉक के अंदर कोइ चींटी या कीड़ा ना 

छुपा हो ?" मैंने आदिल भैया को बढ़ावा दिया। 

आदिल भैया ने तुरंत एक हाथ खली कर शानू के झांगों के बीच में फांस दिया। शानू चिहुंक कर अपने पंजों पर उचक गयी। उसके 

खुले पर जीजू के मुंह में दबे, मुंह से एक लम्बी सिसकारी उबल गयी। जीजू की उँगलियों ने ज़रूर शानू के किशोर ख़ज़ाने की 

पंखुड़ियों के बीच में छुपी सुरंग के दरवाज़े को ढूँढ लिया था। 

शानू ज़ोर से बुदबुदाई , " जीजू इतनी ज़ोर से क्यों दबा रहे हैं। " आदिल भैया का दूसरा हाथ बेदर्दी से शानू के कच्चे उरोज को मसल 

रहा था। 

" अरे रांड कहीं की। किसी बाहर वाले से दबवा रही होती अपनी चूचियाँ तो कुछ नहीं बोलती। पर अपने जीजू से कितनी शिकायत 

कर रही है ?" नसीम आपा ने भी जीजू-साली के मज़े में टांग अड़ा दी, " देख नेहा आज रात इस साली के चुदाई खूब हचक कर 

करवाना इसके जीजा से। चाहो तो इसकी गांड भी खलवा देना आज रात। "

सिसकारी मारती हुई शानू से चुप ना रहा गया , "नहीं आपा गांड तो मैं अब्बू के लिए बचा कर रखूंगीं। जीजू ने मेरी कुंवारी चूत तो 

खोल दी है। जीजू को मैंने नेहा की गांड तो पहले से ही सौंप रखी है। "

यह सुन कर नसीम आपा को आने वाली रात के ख्याल से दिमाग गरम हो गया। उनके पहले से ही लाज की लालिमा से सजे सुंदर चेहरा 

और भी लाल हो गया। 

शुक्र है कि तभी अकबर चाचू हाल में दाखिल हो गए। 
 
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