hotaks444
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- Nov 15, 2016
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१२५
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कुछ देर साँसों पर कुछ काबू पाने के बाद अकबर चाचू ने मेरे एक तरफ मुड़े मुंह को कस कर पकड़ कर मेरे गाल को चूसने लगे। उनके होंठों ने
मेरी फड़कती नासिका को चूम चाट कर अपने प्यार का इज़हार सा किया।
बड़ी देर बाद चाचू ने अपना भारी भरकम बदन मेरे ऊपर से उठाया। उनका विकराल लंड ढीला शिथिल होने के बाद भी मेरी गांड के दरवाज़े को
चौड़ा रहा था।
उनका मोटा सुपाड़ा जैसे ही मेरी मलाशय के द्वार की तंग मांसल संकोचक पेशी से बहार निकला मेरी बुरी तरह पैशाचिक अंदाज़ में चुदी गांड
बिलबिला उठी। न चाहते हुए भी मेरी हलकी सी चीख निकल गयी।
" चाचू आज तो आपने मेरी गांड की तौबा बुला दी। " मैंने चाचू को मुहब्बत भरा उलहना मारा।
"नेहा बेटी सालों की प्यास है। थोड़ी वहशियत तो मर्द में आ ही जाती है। पर हमें पूरा भरोसा है की हमारी नेहा बेटी हमें माफ़ कर देगी। " चाचू
ने मेरा मुंह मोड़ कर मेरे मुस्कराते होंठों को चूम कर कहा।
अकबर चाचू जैसे आपने हमें चोदा है उस चुदाई के बाद सात खून भी माफ़ हैं। यह तो मेरी खुशनसीबी है की आप जैसे मर्द चाचू से चुदने का
सौभाग्य मिला ," मैंने खुल कर मर्दाने चाचू की भीषण चुदाई की सराहना की।
अकबर चाचू ने मेरी पीठ चूमते हुए मेरे गुदाज़ नितिम्बों पर पहुँच गए। उन्होंने दोनों चुत्तडों को मसल कर फैला दिया और मेरी ताज़ी ताज़ी चुदी
गांड के छिद्र के ऊपर अपने होंठो को चिपका दिया। चाचू ने मेरी भयंकर गांड-चुदाई से उपजे रस को चूसना शुरू कर दिया। मैं कुनमुना उठी।
चाचू ने न केवल मेरे गान के इर्द-गिर्द चूमा चाटा बल्कि अपनी जीभ को मेरी अभी भी ढीली सी खुली गांड में खुसा कर उसके स्वाद को पूरा
चाहत से सटक लिया।
अब चाचू अपनी पीठ पैर लेते थे मैं उनके विशाल बालों से भरे भारी शरीर पर चढ़ गयी। मैंने उनके मुस्कुराते मुंह को चूमा और फिर उनके मर्दाने
घने बालों से ढके सीने को चूमते हुए उनके दोनों चुचूकों को भी चूसा।
फिर उनके बड़ी तोंद के ऊपर चुम्बन भरते हुए उनकी गहरी नाभि को जीभ से कुरेदते हुए उनके शिथिल पर विकराल मोटे लंड के ऊपर पहुँच गयी।
चाचू का लंड उनके मलाई जाइए वीर्य और मेरी गांड से उपजे रस से लिसा हुआ था। मुझे उनके लंड पर बहुत प्यार और ग़रूर आ रहा था। मैंने
हौले हौले उनका सारा लंड चाट कर साफ़ कर दिया। उनके लंड के ऊपर से मिला जुला स्वाद ने मुझे उत्तेजित सा कर दिया। अपने थूक से लिसे
चाचू के लंड को मैंने प्यार से सहलाते हुए कहा , " अच्छे से आराम करो थोड़ी देर मेरे प्यारे मूसल अभी तुम्हें बहुत मेहनत करनी है। "
चाचू को मेरी बचकानी बात से बहुत हंसी आयी।
" अभी तो नेहा बेटी अब इस मूसल को बहुत ज़ोरों से पेशाब आया है, " चाचू ने हँसते हुए कहा।
" चाचू पेशाब तो मुझे भी लगा है। कसके चुदाई के बाद न जाने क्यों पेशाब की इच्छा होने लगती है ," मैंने चाचू के ऊपर चढ़ कर उनको चूमते
हुए कहा ।
चाचू ने मुझे बाँहों में उठा कर शयनघर से लगे स्नानघर में चल पड़े।
" मैं नेहा बेटी आपसे कुछ मांगू तो इंकार तो नहीं करोगी? "चाचू ने मेरी नाक की नोक को चूमते हुए पूछा।
"आप मांग कर तो देंखे चाचू," मैंने भी चाचू की मर्दानी नासिका को चूम लिया।
"मुझे आज रात आपके साथ पहली चुदाई की ख़ुशी में आपके सुनहरे शरबत के शराब पीनी है ," चाचू ने मुझे कई बार चूमा।
मैं बिलकुल भी नहीं झिझकी। बड़े मामा ने मुझे इस क्रिया से बहुत वाकिफ करा दिया था , " चाचू मुझे तो बहुत अच्छा लगेगा पर आपको भी
मुझे अपना सुनहरी शरबत देना होगा। "
चाचू की आँखों की चमक को देख कर मुझे उनके जुबानी जवाब की ज़रुरत की ज़रुरत नहीं थी।
स्नानघर में पेरी बारी पहले थे। मैंने चाचू के खुले मुंह के ऊपर अपनी अच्छे से चुदी चूत को सटा अपने सुनहरी शरबत की धार खोल दी। चाचू ने
खूब दिल खोल कर बार बार मुंह भर कर मेरा खारा सुनहरा शरबत पिया। मैंने अपनी मूत्रधार धीमी नहीं की और उनको सुनहरा स्नान भी करवा
दिया।
जब मेरी चूत से एक और बून्द भी नहीं निकल पाई तो मैंने चाचू की तरफ देख कर उनको अपने वायदे का तकाज़ा दिया।
मैंने नीचे बैठ कर चाचू के मोटे लंड को अपने मखुले मुंह में भर लिया। चाचू ने बड़ी दक्षता से अपनी धार खोल दी। जब मेरा मुंह अच्छे से भर
गया तो चाचू ने अपने धार को रोक लिया। मैं चाचू का सुनहरा खारा तीखा शरबत सटक गयी। और फिर से अपना मुंह भरने का इन्तिज़ार करने
लगी। चाचू ने कई बार मेरा मुंह भर दिया। फिर उन्होंने भी मुझे अपने गरम सुनहरे मूत्र से नहला दिया।
मैंने उनके मूत्र की आखिरी बूँदें लेने के लिए उनके लंड के मोटे सुपाड़े को अपने मुंह में भर लिया।
चाचू का लंड मेरे चूसने और उनके मूत्र-पान की उत्तेजना से लोहे के खम्बे की तरह सख्त होने लगा।
चाचू ने मुझे गुड़िया की तरह हवा में उठा लिया। मैंने उनकी इच्छा को समझ कर अपनी गोल गुदाज़ जांघें उनकी चौड़ी कमर के ऊपर फैला दीं।
चाचू ने मेरी चूत के फैले कोमल तंग द्वार को अपने दानवीय लंड के सेब जैसे मोटे सुपाड़े के ऊपर टिका कर एक गहरी सी सांस ली।
फिर अचानक उन्होंने, मेरे सारा वज़न, जो उनके हाथों पर टिका हुआ था, अपने हाथो को नीचे गिरा कर गुरुत्वाकर्षण के ऊपर छोड़ दिया।
उनका मोटा लम्बा खम्बे जैसा लंड मेरी चूत ने गरम सलाख की तरह धंसता चला गया।
स्नानघर में में मेरी दर्द से भरी चीख गूँज उठी , " चाआआ चूऊऊऊऊ ऊ ऊ ऊ ऊ.......... उउउन्न्न्न्न्न्न्न्न। "
मैंने चाचू की मोटी गर्दन को अपनी बाँहों का हार पहना दिया और अपने चीखते मुंह को उनके सीने में छुपा दिया।
चाचू ने एक ही धक्के में अपना एक तिहाई लंड मेरी कमसिन चूत में धूंस दिया था। बाकि का लंड उनके दुसरे धक्के से मेरी बिलखती पर भूखी
चूत में समा गया।
चाचू ने खड़े खड़े स्नानघर में मेरी चूत की दनादन चुदाई प्रारम्भ कर दी। मेरी शुरू के दर्द की चीखें शीघ्र सिस्कारियों में बदल गयीं। चाचू ने अपने
बलशालिबाहों की ताकत से मुझे अपने लंड के ऊपर गुड़िया की तरह ऊपर उठा कर सिरह नीचे गिरने देते और मेरी चूत उनके लंड के ऊपर निहार
हो चली।
मैं सिसक सिसक कर चुदने लगी।
" आअह्हह्हह राआअम्म्म्म्म्म्म चचोओओओओओओओओ उउउन्न्न्न्न्न्न चोदिये ये ऐ ऐ ऐ ऐ उउउन्न्न्न्न्न ," मैं कामोन्माद के ज्वर से एक बार फिर से
उबाल पडी।
चाचू ने लुझे तीन चार बार झाड़ कर बिस्तर के ऊपर पटक दिया। जब तक मैं संभल पति उन्होंने मुझे निरीह हिरणी की तरह अपने भारी भरकम
शरीर के नीचे दबा कर अपना लंड फिर से मेरी चूत में ठूंस दिया। चाचू ने फिर से मेरी चूत की प्यार भरी निर्मम चुदाई शुरू कर दी।
मैं वासना के मीठे दर्द सिसकती और ज़ोर से चोदने की गुहार करती। मर्दाने लंड की चुदाई से कोई भी लड़की का दिमाग पागल हो जाता मेरी
चुदाई तो चाचू के भीमकाय लंड से हो रही थी।
चाचू का लंड फचक फचक की आवाज़ें पैदा करता हुआ पिस्टन की तरह मेरी चूत में अंदर बाहिर आ जा रहा था। मेरी रस-निष्पति निरंतर हो
रही थी। चाचू ने न जाने कितनी देर तक मेरी चूत का लतमर्दन किया। मैं तो अनगिनत चरम-आनंद के प्रभाव से अनर्गल बकने लगी थी। जब
चाचू ने मेरी फड़कती चूत को अपने गरम जननक्षम वीर्य से नहलाया तो मेरी जान ही निकल गयी।
हम दोनों एक दुसरे से लिपटे कुछ देर तक ज़ोर ज़ोर से साँसें भरते रहे।
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कुछ देर साँसों पर कुछ काबू पाने के बाद अकबर चाचू ने मेरे एक तरफ मुड़े मुंह को कस कर पकड़ कर मेरे गाल को चूसने लगे। उनके होंठों ने
मेरी फड़कती नासिका को चूम चाट कर अपने प्यार का इज़हार सा किया।
बड़ी देर बाद चाचू ने अपना भारी भरकम बदन मेरे ऊपर से उठाया। उनका विकराल लंड ढीला शिथिल होने के बाद भी मेरी गांड के दरवाज़े को
चौड़ा रहा था।
उनका मोटा सुपाड़ा जैसे ही मेरी मलाशय के द्वार की तंग मांसल संकोचक पेशी से बहार निकला मेरी बुरी तरह पैशाचिक अंदाज़ में चुदी गांड
बिलबिला उठी। न चाहते हुए भी मेरी हलकी सी चीख निकल गयी।
" चाचू आज तो आपने मेरी गांड की तौबा बुला दी। " मैंने चाचू को मुहब्बत भरा उलहना मारा।
"नेहा बेटी सालों की प्यास है। थोड़ी वहशियत तो मर्द में आ ही जाती है। पर हमें पूरा भरोसा है की हमारी नेहा बेटी हमें माफ़ कर देगी। " चाचू
ने मेरा मुंह मोड़ कर मेरे मुस्कराते होंठों को चूम कर कहा।
अकबर चाचू जैसे आपने हमें चोदा है उस चुदाई के बाद सात खून भी माफ़ हैं। यह तो मेरी खुशनसीबी है की आप जैसे मर्द चाचू से चुदने का
सौभाग्य मिला ," मैंने खुल कर मर्दाने चाचू की भीषण चुदाई की सराहना की।
अकबर चाचू ने मेरी पीठ चूमते हुए मेरे गुदाज़ नितिम्बों पर पहुँच गए। उन्होंने दोनों चुत्तडों को मसल कर फैला दिया और मेरी ताज़ी ताज़ी चुदी
गांड के छिद्र के ऊपर अपने होंठो को चिपका दिया। चाचू ने मेरी भयंकर गांड-चुदाई से उपजे रस को चूसना शुरू कर दिया। मैं कुनमुना उठी।
चाचू ने न केवल मेरे गान के इर्द-गिर्द चूमा चाटा बल्कि अपनी जीभ को मेरी अभी भी ढीली सी खुली गांड में खुसा कर उसके स्वाद को पूरा
चाहत से सटक लिया।
अब चाचू अपनी पीठ पैर लेते थे मैं उनके विशाल बालों से भरे भारी शरीर पर चढ़ गयी। मैंने उनके मुस्कुराते मुंह को चूमा और फिर उनके मर्दाने
घने बालों से ढके सीने को चूमते हुए उनके दोनों चुचूकों को भी चूसा।
फिर उनके बड़ी तोंद के ऊपर चुम्बन भरते हुए उनकी गहरी नाभि को जीभ से कुरेदते हुए उनके शिथिल पर विकराल मोटे लंड के ऊपर पहुँच गयी।
चाचू का लंड उनके मलाई जाइए वीर्य और मेरी गांड से उपजे रस से लिसा हुआ था। मुझे उनके लंड पर बहुत प्यार और ग़रूर आ रहा था। मैंने
हौले हौले उनका सारा लंड चाट कर साफ़ कर दिया। उनके लंड के ऊपर से मिला जुला स्वाद ने मुझे उत्तेजित सा कर दिया। अपने थूक से लिसे
चाचू के लंड को मैंने प्यार से सहलाते हुए कहा , " अच्छे से आराम करो थोड़ी देर मेरे प्यारे मूसल अभी तुम्हें बहुत मेहनत करनी है। "
चाचू को मेरी बचकानी बात से बहुत हंसी आयी।
" अभी तो नेहा बेटी अब इस मूसल को बहुत ज़ोरों से पेशाब आया है, " चाचू ने हँसते हुए कहा।
" चाचू पेशाब तो मुझे भी लगा है। कसके चुदाई के बाद न जाने क्यों पेशाब की इच्छा होने लगती है ," मैंने चाचू के ऊपर चढ़ कर उनको चूमते
हुए कहा ।
चाचू ने मुझे बाँहों में उठा कर शयनघर से लगे स्नानघर में चल पड़े।
" मैं नेहा बेटी आपसे कुछ मांगू तो इंकार तो नहीं करोगी? "चाचू ने मेरी नाक की नोक को चूमते हुए पूछा।
"आप मांग कर तो देंखे चाचू," मैंने भी चाचू की मर्दानी नासिका को चूम लिया।
"मुझे आज रात आपके साथ पहली चुदाई की ख़ुशी में आपके सुनहरे शरबत के शराब पीनी है ," चाचू ने मुझे कई बार चूमा।
मैं बिलकुल भी नहीं झिझकी। बड़े मामा ने मुझे इस क्रिया से बहुत वाकिफ करा दिया था , " चाचू मुझे तो बहुत अच्छा लगेगा पर आपको भी
मुझे अपना सुनहरी शरबत देना होगा। "
चाचू की आँखों की चमक को देख कर मुझे उनके जुबानी जवाब की ज़रुरत की ज़रुरत नहीं थी।
स्नानघर में पेरी बारी पहले थे। मैंने चाचू के खुले मुंह के ऊपर अपनी अच्छे से चुदी चूत को सटा अपने सुनहरी शरबत की धार खोल दी। चाचू ने
खूब दिल खोल कर बार बार मुंह भर कर मेरा खारा सुनहरा शरबत पिया। मैंने अपनी मूत्रधार धीमी नहीं की और उनको सुनहरा स्नान भी करवा
दिया।
जब मेरी चूत से एक और बून्द भी नहीं निकल पाई तो मैंने चाचू की तरफ देख कर उनको अपने वायदे का तकाज़ा दिया।
मैंने नीचे बैठ कर चाचू के मोटे लंड को अपने मखुले मुंह में भर लिया। चाचू ने बड़ी दक्षता से अपनी धार खोल दी। जब मेरा मुंह अच्छे से भर
गया तो चाचू ने अपने धार को रोक लिया। मैं चाचू का सुनहरा खारा तीखा शरबत सटक गयी। और फिर से अपना मुंह भरने का इन्तिज़ार करने
लगी। चाचू ने कई बार मेरा मुंह भर दिया। फिर उन्होंने भी मुझे अपने गरम सुनहरे मूत्र से नहला दिया।
मैंने उनके मूत्र की आखिरी बूँदें लेने के लिए उनके लंड के मोटे सुपाड़े को अपने मुंह में भर लिया।
चाचू का लंड मेरे चूसने और उनके मूत्र-पान की उत्तेजना से लोहे के खम्बे की तरह सख्त होने लगा।
चाचू ने मुझे गुड़िया की तरह हवा में उठा लिया। मैंने उनकी इच्छा को समझ कर अपनी गोल गुदाज़ जांघें उनकी चौड़ी कमर के ऊपर फैला दीं।
चाचू ने मेरी चूत के फैले कोमल तंग द्वार को अपने दानवीय लंड के सेब जैसे मोटे सुपाड़े के ऊपर टिका कर एक गहरी सी सांस ली।
फिर अचानक उन्होंने, मेरे सारा वज़न, जो उनके हाथों पर टिका हुआ था, अपने हाथो को नीचे गिरा कर गुरुत्वाकर्षण के ऊपर छोड़ दिया।
उनका मोटा लम्बा खम्बे जैसा लंड मेरी चूत ने गरम सलाख की तरह धंसता चला गया।
स्नानघर में में मेरी दर्द से भरी चीख गूँज उठी , " चाआआ चूऊऊऊऊ ऊ ऊ ऊ ऊ.......... उउउन्न्न्न्न्न्न्न्न। "
मैंने चाचू की मोटी गर्दन को अपनी बाँहों का हार पहना दिया और अपने चीखते मुंह को उनके सीने में छुपा दिया।
चाचू ने एक ही धक्के में अपना एक तिहाई लंड मेरी कमसिन चूत में धूंस दिया था। बाकि का लंड उनके दुसरे धक्के से मेरी बिलखती पर भूखी
चूत में समा गया।
चाचू ने खड़े खड़े स्नानघर में मेरी चूत की दनादन चुदाई प्रारम्भ कर दी। मेरी शुरू के दर्द की चीखें शीघ्र सिस्कारियों में बदल गयीं। चाचू ने अपने
बलशालिबाहों की ताकत से मुझे अपने लंड के ऊपर गुड़िया की तरह ऊपर उठा कर सिरह नीचे गिरने देते और मेरी चूत उनके लंड के ऊपर निहार
हो चली।
मैं सिसक सिसक कर चुदने लगी।
" आअह्हह्हह राआअम्म्म्म्म्म्म चचोओओओओओओओओ उउउन्न्न्न्न्न्न चोदिये ये ऐ ऐ ऐ ऐ उउउन्न्न्न्न्न ," मैं कामोन्माद के ज्वर से एक बार फिर से
उबाल पडी।
चाचू ने लुझे तीन चार बार झाड़ कर बिस्तर के ऊपर पटक दिया। जब तक मैं संभल पति उन्होंने मुझे निरीह हिरणी की तरह अपने भारी भरकम
शरीर के नीचे दबा कर अपना लंड फिर से मेरी चूत में ठूंस दिया। चाचू ने फिर से मेरी चूत की प्यार भरी निर्मम चुदाई शुरू कर दी।
मैं वासना के मीठे दर्द सिसकती और ज़ोर से चोदने की गुहार करती। मर्दाने लंड की चुदाई से कोई भी लड़की का दिमाग पागल हो जाता मेरी
चुदाई तो चाचू के भीमकाय लंड से हो रही थी।
चाचू का लंड फचक फचक की आवाज़ें पैदा करता हुआ पिस्टन की तरह मेरी चूत में अंदर बाहिर आ जा रहा था। मेरी रस-निष्पति निरंतर हो
रही थी। चाचू ने न जाने कितनी देर तक मेरी चूत का लतमर्दन किया। मैं तो अनगिनत चरम-आनंद के प्रभाव से अनर्गल बकने लगी थी। जब
चाचू ने मेरी फड़कती चूत को अपने गरम जननक्षम वीर्य से नहलाया तो मेरी जान ही निकल गयी।
हम दोनों एक दुसरे से लिपटे कुछ देर तक ज़ोर ज़ोर से साँसें भरते रहे।