Parivaar Mai Chudai हमारा छोटा सा परिवार - Page 17 - SexBaba
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Parivaar Mai Chudai हमारा छोटा सा परिवार

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१५५ 
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" मैंने अकबर भाईजान को मौका दिया खाने के बाद अपने कमरे में जाने का और थोड़े नशे में होने का। मैंने रज्जो भाभी 

का लेहंगा और ब्लाउज़ और सर के ऊपर रेशमी गुलुबन्द से अपना मुँह ढक लिया। मैंने ब्लाउज़ के तीन बटन खोल लये 

जिससे मेरी भारी चूचियां बाहर झांक रहीं थीं। मेरी उम्मीद थी कि भाईजान का ख्याल मेरे उरोजों पर ज़्यादा और मेरे चेहरे 

पर कम पड़ेगा। मेरा ख्याल ठीक निकला। नशे में भाईजान भूल गए थे कि भाभी अपने अब्बू के घर गयीं हुईं थी। मेरा बदन 

काफी गुदाज़ था ठीक भाभी जैसे। भाईजान ने मुझे मेरे हाथ से पकड़ कर अपनी गोद में खींच लिया। बिना एक लम्हा 

बर्बाद किये भाईजान ने मेरे ब्लाउज़ के पल्ले खींच कर एक झटके में सारे बटन तोड़ दिए। फिर मेरे फड़कते उयरोजोन को 

मसलते हुए हंसे 'जानेमन आज शर्मा क्यों रही हो'। मैं सिसक उठी जैसे ही भाईजान के मज़बूत हाथों ने मेरे दोनों चूचियों

को बेदर्दी से मसला। “

“भाईजान भी मस्त सांड की तरह बेचैन थे। कुछ ही लम्हों के चूमने और मेरे उरोजों को मसलने के बाद ना जाने कब उन्होंने 

मेरा लहँगा ऊपर उठा कर मेरी चूत में अपना लन्ड ठूसना शुरू कर दिया। उफ़ क्या बताऊँ लड़कियों तुम्हारे फुफजाँ का 

लन्ड काफी मोटा मुस्टंड था पर बजाईजान का मूसल मुझे दुगना लंबा मोटा लग रहा था। मेरे सुबकने की परवाह किये 

बिना भाईजान ने हचक हचक कर मुझे चोदने लगे। मैं कुछ देर के बाद ही सिसकने लगी और मेरे झड़ने की कड़ी बढ़ 

गयी। ना जाने कितनी देर मेरी चूत कूटने के बाद भाईजान ने मेरी चूत अपने गरम उपजाऊ वीर्य से सींच दी। पर भाईजान 

इतने मस्त थे कि उनका लन्ड बिलकुल भी ढीला नहीं हुआ। भाईजान ने मुझे पेट के बल पलट दिया और मेरे चूतड़ चौड़ा 

कर अपने लन्ड का सूपड़ा मेरी कुंवारी गांड में फ़साने लगे। मेरी तो सांस ही रुक गयी। तुम्हारे फूफा जान ने मेरी गांड 

अकेले छोड़ दी थी तब तक। पर भैया को क्या पता कि वो अपनी बीवी रज्जो की खूब चुदी गांड को नहीं अपनी छोटी बहन 

की कुंवारी गांड की तौबा बुलवाने वाले थे। मैं खूब चीखी चिल्लाई दर्द से और मेरी आँखें रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी 

पर भाईजान की सांड जैसे चुदाई से मेरी निगौड़ी गांड में मस्ती फ़ैल गयी। भी खूब सिसक सिसक कर अपनी गांड मरवाई। 

कमरे की धीमी बिजली में भाईजान ने मुझे पहचाने बिना घंटे भर मेरी गांड कूटी और जब भाईजान मेरी गांड में वीर्य की 

बारिश कर रहे थे तो मैं मस्ती की ज़्यादती से बेहोश से हो गयी। “

जब मैं पूरे होश में आयी तो भाईजान मुझे अपनी बाँहों में भरकर बिस्तर पे लेते थे। 'शब्बो मुझे बता तो दिया होता कि 

मैं तुम्हारी रज्जो भाभी को नहीं अपनी नन्ही बहन को चोद रहा था ?'मैं भाईजान से लिपट गयी ,'भाईजान भाभी ने मुझसे

वायदा लिया आपकी पूरी देखभाल करने के लिए तैयार थी। ऐसी चुदाई के लिए तो मैं बिना वायदे के भी तैयार हो 

जाती। भाईजान अब आप जब तक भाभी नहीं वापस आ जातीं भूल जाइये कि मैं आपकी छोटी बहन हूँ। मुझे आप रज्जो 

भाभी समझ लीजिये तब तक। '

मैं बेचैन थी भाईजान के साथ मस्त चुदाई जारी रखने के लिए। 

भाईजान बोले ,' शब्बो मैं भूल तो नहीं सकता कि तुम मेरी नन्ही बहन हो पर हाँ जब तक रज्जो या मुज्जफर वापस नहीं 

आते तब तक मैं तुम्हे रज्जो की तरह चोदने के लिए तैयार हूँ पर उसके बाद हम रुक जायेंगें। वायदा शब्बो?' मैंने भाईजान 

के साथ वायदा कर लिया। फिर जो मेरी चुदाई की सारी रात भाईजान ने मेरी तो मस्ती से हालात ख़राब हो गयी। भाईजान 

ने मेरी चूत और गांड मार मार कर मुझे इतनी बार झाड़ दिया कि मैं होशोहवास खो गयी। फिर उसके बाद भाईजान दिन में 

भी काम से घर आ जाते और मुझे किसी बहाने अपने कमरे में बुलवा कर चोदते। मैं अगले डेढ़ महीने खूब चुदी भाईजान 

से। अल्लाह ने भी मुझे अपने भाई और भाभी का ख्याल रखने का इनाम दिया। मैं जब रज्जो भाभी वापस आयीं डेढ़ महीने 

बाद में आदिल से पेट से थी। पर उसके बाद भाईजान और मेरा हमबिस्तर होना बिलकुल रुक गया। "
 
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शब्बो बुआ की कहानी सुनते सुनते नूसी आपा और मैं इतनी गरम हो गयीं थी कि हम दोनों बिना आगाह हुए बुआ की 

चूचियां चूस मसल रहे थे। 

लेकिन मुझे अचानक बुआ की कहानी की सबसे ज़ोरदार बात समझ आ गयी। 

"शब्बो बुआ इसका मतलब है कि आदिल भैया अकबर चाचू के भांजे और दमाद नहीं बेटे भी हैं। " मैं असली बात उगल 

दी। 

नूसी आपा की आँखें चमक उठीं। 

"अरे जो भी समझो। तुम्हारे फूफा जान महीने भर से बाहर थे और तीन सालों से मेरी कोख सूखी थी। भाईजान के साथ 

एक हफ्ते के बाद ही मेरा आने वाला महीना नहीं आया।" बुआ ने थोड़ा शरमाते हुए कहा , "नूसी बेटा तुम्हे इस बात से 

कोई एतराज़ तो नहीं पैदा हो गया। "

नूसी आपा ने बुआ के होंठो को कस कर चूमा और बोलीं," शब्बो खाला तभी तो मैं और आदिल बिलकुल भाई बहन की

तरह जुड़े हैं बचपन से। और खाला जान नेहा आज इसी प्यार भरे घराने को खुल्लमखुल्ला इकट्ठे करने का इरादा बना कर 

आयी है। "

"नेहा नूसी तुम्हारी तदबीर बाद में सुनूँगी। तुम दोनों को अपने भाईजान से चुदने और हमल से होने की कहानी सुनाते 

सुनाते मैं बहुत गरम हो चली हूँ। चलो रंडियो पहले अपनी खाला को ठंडी करो फिर बताना अपनी तदबीर ," शब्बो 

बुआ ने नूसी आपा और मुझे हुक्म दिया।

नूसी आपा ने शब्बो बुआ की दोनों हिमालय जैसे विशाल भारी ढलके उरोजों के ऊपर हमला बोल दिया और मैंने झट से 

अपना मूंह शब्बो बुआ की स्थूल गदरायी जांघों के बीच में घने घुंगराले झांटों से ढके यौनिद्धार के ऊपर दबा दिया। 

"अरे नूसी बेटा यह तुम्हारी नाज़ुक चूचियां नहीं हैं। यह तुम्हारी खाला की चूचियां हैं कस कर मसलो और ज़ोर से काटो 

मेरे चुचुकों को, "शब्बो बुआ ने सिसकते हुए नूसी आपा को धमकाया और फिर अपना आक्रमण मेरी ओर मोड़ा , "नेहा

बिटिया ऐसे हलके हलके चाटेगी मेरी चूत तो कैसे अपनी बुआ को झाड़ेगी। चलो जैम कर चुसो काटो मेरे दाने को। और 

ज़ोर से उँगलियाँ करो मेरी चूत और गांड में। झाड़ो मुझे लड़कियों , झाड़ो अपनी शब्बो खाला जान को। "

हम दोनों जैम कर लग गए शब्बो बुआ को झाडने में। नूसी आपा ने अपने दांतों से कमल से शब्बो बुआ की चीखे 

निकलवा दीं। मैंने अपनी दो उँगलियाँ बुआ की चूत में और दो उनकी मखमली गांड में ठूंस कर कसके उनके दाने को चूसने 

काटने लगी। पांच मिनटों में शब्बो बुआ भरभरा के झड़ गयीं। 

पर हम दोनों नहीं रुके और शब्बो बुआ की चूत और चूचियों का समलैंगिक मर्दन करते रहे। आधे घंटे में शब्बो बुआ छह 

बार झाड़ गयीं और वासना की उत्तेजना के अतिरेक से बिलबिला उठीं। 

"उङनङ अरे अब छोड़ो मुझे। मार डाला तुम दोनों ने। कहाँ से सीखा ऐसा जादू ,"शब्बो बुआ निढाल हो चली थीं। 

हम दोनों ने उनसे लिपट कर उन्हें दिल खोल कर चूमा। 

जब शब्बो बुआ कुछ ठीक हुई तो बिस्तर से उठ कर अपने बिस्तर की पास मेज की दराज़ से एक विशाल मोटा कृत्रिम

लिंग निकाल के ले आयीं। बिलकुल काले रंग का स्ट्राप-ऑन डिलडो था वो, लगभग अकबर चाचू और आदिल के लन्ड 

जितना लंबा मोटा पर उसके दूसरी ओर छह इंच का दानों से भरा लन्ड पहनने वाली लड़की की चूत में जाने के लिए जिसे 

दोनों को मज़ा आये। 

" चलो नेहा पहन ले इसे और छोड़ मेरी नूसी को मेरे सामने। मैं भी तो देखूं कैसे चौड़ गयी होगी इसकी चूत भाईजान के

लन्ड के ऊपर," शब्बो बुआ ने हमें निर्देश दिया ," चलो नूसी बेटी अपनी चूत अपनी बुआ के मुँह के ऊपर ले आओ। "

मैंने छह इंच मोटा दानों से भरा डिलडो का हिस्सा जब अपनी गीली चूत में ठूंसा तो मैं सिसक उठी। लेकिन आगे का दुगुना 

लंबा पर उतना ही मोटा डिलडो को नूसी आपा की चूत में ठूसने के लिए मैं बेचैन हो गयी। 

मैंने इंच इंच करके पूरा डिलडो सिसकती नूसी आपा की चूत में ठूंस दिया। शब्बो बुआ नूसी आपा के दाने को चूसने 

लगीं। मैंने लंबे धक्कों से नूसी आपा की चूत मारने लगी। नूसी आपा की चूत से मीठा रस टपकने लगा शब्बो बुआ के मुँह 

के ऊपर जिसे वो प्यार से चाट गयी। 
 
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नूसी आपा जब दो बार जड़ गयी तो शब्बो बुआ ने अपना मुँह उनके भगनासे से हटा कर मुझे दूसरा निर्देश दिया ,"नेहा अब नूसी की गांड मारो मुझे अपनी भांजी और बहू की मीठी चूत चुसनी है। "
नूसी आपा बस अब सिसकने के अलावा कुछ भी बोलने में असक्षम थी। मैंने नूसी आपा के रतिरस से लिसे मोठे लंबे डिल्डो को नूसी आपा के गुलाबी छेद से के ऊपर टिक कर एक ज़ोर का धक्का मारा , ठीक जैसे अकबर चाचू और आदिल भैया इस्तेमाल करते थे हमारी गांड की बर्बादी करने के लिए। नूसी आपा की चीख उबली तो सही पर शब्बो बूआ ने उनके भगनासे को चूसा तो उनकी चीख सिसकी में बदल गयी। मैंने पांच धक्को में सारा डिल्डो नूसी आपा की गांड में ठूंस दिया। मेरी चूत में घुसा छह इंच दूसरा मोटा हिस्सा मेरी चूत को मस्ताने लगा। 

मैंने नूसी आपा की गांड हचक हचक कर मारनी शुरू कर दी। जल्दी ही मेरा पूरा डिल्डो नूसी आपा की गांड के सुगन्धित रस से लिस गया था। नूसी आपा सुबक सिसक कर लगातार झड़ रही थी। मैं भी उनके साथ बर्बर झाड़ जाती थी। यह शब्बो बुआ का दो-मुंहा डिल्डो बड़े कमाल का था। 

"नेहा और ज़ोर से मारो मेरी भांजी की गांड। नूसी की गांड की महक से मैं तो पागल सी हो रही हूँ। खूब ज़ोर से मठ दो मेरी नूसी की गांड के हलवे को ,"शब्बो बुआ ने अब दो उँगलियाँ नूसी आपा की चूत की गहराइयों में डुबाई हुईं थीं और उनके दांत, होंठ और जीभ नूसी आपा के भग-शिश्न ( क्लिटोरिस ) को ज़ोर से चूस, काट और चुभला रहे थे। 
नूसी आपा और मैं अब लगातारर झाड़ रहीं थीं। मुझे थोड़ा थकता देख कर शब्बो बुआ ने धमकी दी , "नेहा बेटी रुकना नहीं। ज़ोर से मारती रहो अपनी नूसी आपा की गांड को। तुम रुकी तो मैं खुद अपने पूरे हाथ से तुम्हारी गांड मार दूँगी। "


मैं शब्बो बुआ के निर्देश का पालन करने लगी। 
घंटे भर की गांड चुदाई और चूत चुसाई के प्रभाव से और बार बार झड़ने की उत्तेजना के अतिरेक से थकीं नूसी आपा चीख मार कर बिलकुल निढाल हो कर बिस्तर पे लुढ़क गयीं। मेरा नूसी आपा की गांड के रस से लिसा डिल्डो फचक की आवाज़ से उनकी गांड से बाहर निकल गया। 

शब्बो बुआ ने धीमे से कहा ,"देखा नेहा बेटी , चुदाई की मस्ती जब इतनी पुख्ता हो जाती है तभी औरत को गाफिल होने की मस्ती मिल पाती है। "
शब्बो बुआ ने प्यार से मेरा सारा डिल्डो चूस चूस कर साफ़ कर दिया। उन्होंने चटखारे लेते हुए कहा ,"मेरी नूसी बेटी की गांड का रस देखा कितना मीठा है। "
मैं भी मुस्कुराई और लपक कर अपने खुले मुँह से उनके मुँह को तलाशने लगी नूसी आपा की गांड के स्वाद के लिए। 
जब नूसी आपा को होश आया तब हमने रात की तदबीर का खुलासा तय किया।
फिर हम तीनो नहाने के लिए ग़ुसलख़ाने में चली गयीं। शब्बो बुआ की ख्वाहिशें अभी भी अधूरी थीं। पहले हमने अपना सुनहरी शरबत ईमानदारी से आधा आधा बाकी दोनों के बीच में बांटा। फिर शब्बो बुआ ने अपनी दिली ख्वाहिश ज़ाहिर की तो मैं और नूसी आपा उतनी नहीं चौंकी और शरमाईं जितना शब्बो बुआ सोच रहीं थीं। चाहे कोई इसे कितना भी विकृत क्रिया कहे पर जब प्यार हो और प्यार के बुखार से जो मन चाहे वो करने की पूरी स्वन्त्रता है पुरुषों और स्त्रियों को। 
"खाला कल रात मैंने और अब्बू ने भी ऐसा ही किया था। मुझे तो बहुत अच्छा लगा और खूब मज़ा आया।," नूसी आपा ने खिलखिला कर कहा। 
और फिर हम तीनो ने शब्बो बुआ की दिल की ख्वाहिश भी पूरी कर दी नहाने से पहले।खूब मन लगा कर शब्बो बुआ का मुँह कई बार भर दिया और शब्बो बुआ ने आनंद और ख़ुशी के साथ लालचीपन से हमारे तोहफे को पूरा चूस मसल एके निगल लिया। 
 
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वापस घर आके हम दोनों ने पहले शानू को सब कुछ बताया। शानू आदिल भैया के जन्म पिता का रहस्य सुन कर ख़ुशी से समा नहीं पा रही थी। फिर हमने शाम की योजना का इंतिज़ाम कर लिया। खूब सारी शराब, वाइन और खाना, आखिर यदि दो मर्द महनत करेंगे तीन चार लड़कियों को चोदने की तो उनके लिए पुष्ट आहार का ध्यान तो रखना ही पड़ेगा। 
तब तक जीजू या आदिल भैया भी आ गए और उन्हें भी उनके जन्म की असलियत पता चली तो उन्हें ख़ुशी हुई और उन्होंने नूसी और शानू को अपनी बाँहों से भर लिया। 
जैसे ही आदिल भैया, नूसी आपा और शानू अपने और भी गहरे रिश्तों की ख़ुशी से थोड़ा शांत हुए तो उनको 'नेहा' की गहरी चाल के बारे में साफगोई से बताया गया। उन्होंने नाटक में अपना हिस्सा अच्छे से समझ लिया। 
अब बस अकबर चाचू को प्यार से अपने जाल में फ़साना बाकी था। लेकिन अब सबको कामयाबी का पूरा भरोसा था। 
आदिल भैया एक बार हम तीनो को चोदना चाहते थे पर नूसी ने याद दिलाया कि उनकी अम्मी की दिली ख्वाहिश का तो उन्होंने तुरंत अपनी ताकत शाम के लिए बचाने के लिए तैयार हो गए। 
फिर हम तीनो ने शाम के कपडे निकाल लिए। मकसद था कि चाचू को हमारे चूचियों और चूत की पहुँच आसान होनी चाहिये। बिना कच्छी के लहँगा और बिना ब्रा के चोली से बढ़िया क्या हो सकता था। 
अब अकबर चाचू के आने का इन्तिज़ार था। हमें शब्बो बुआ को फोन करके एक बार फिरसे शाम के नाटक का ब्यौरा अच्छे से एक दुसरे समझ लिया। मैंने अपने आई-फोन पे टेक्स्ट तैयार रख लिया सिर्फ बटन दबाने की ज़रुरत थी । 
नूसी आपा ने बावर्चियों से अच्छे अच्छे पकवान बनवा लिए थे। अकबर चाचू के पसंदीदा नर्गिद कबाब भी शामिल थे उनमे। नूसी आपा ने लाल और सफ़ेद मदिरा की कई बेहतरीन ख़ास सालों की बोतलें बाहर निकाल लीं। फिर नूसी आपा ने छह-सात ख़ास शैम्पेन की बोतलों को ठंडा होने रख दिया। नूसी आपा और शानू के दिल की धड़कने दूर तक सुनाई दे रहीं थीं। मैं भी अपने नाटक की सफलता के लिए बेचैन होने लगी। आखिर इस के बाद अकबर चाचू का परिवार हमेशा के लिए एक दूसरी राह पे चल पड़ेगा। वो रास्ता जो समाज के हिसाब से वर्जित, अनुचित और गैर कानूनी था। पर प्यार, पारिवारिक वफ़ादारी और आदमियत की स्वन्त्रता के दृष्टिकोण से समाजिक वर्जना यदि सामाजिक निगाहों से छुपी रहे तो चाहे आप उसे छल-कपट कहें पर प्यार की फतह तो हो जाएगी। 
अकबर चाचू के घर में घुसने से ठीक पहले ही नूसी आपा और शन्नो कमरे में चली गयीं। मैंने अकबर चाचू को प्यार से चूम के उनका स्वागत किया. फिर उनके हाथ पकड़ के उन्हें उनके कमरे में ले गयी। मैंने प्यार से उनके बाहर के कपड़े उतारे। अकबर चाचू ने कई बार मेरी चूचियां दबाई। मैंने अपनी चूचियां और भी उनके हाथों में दबा दीं। मैंने अकबर चाचू के घर के कपड़े निकाल दिए। बिना कच्छे के लुंगी और कुरता। चाचू वैसे रोज़ाना पठानी पजामा या साधारण पजामा और कुरता पहनते थे। पर आज तो लन्ड और चूत जितनी आसानी से बाहर निकल सकते उतना अच्छा था। 
जब अकबर चाचू और मैं नीचे पहुंचे तब तक हर मदिरा और शैम्पेन बाहर थी। सफ़ेद मदिरा और शैम्पेन बर्फ की बाल्टी या डोलची में थीं। स्टार्टर्स और एपेटाइज़र्स इतने स्वादिष्ट लग रहे थे की मेरी भी लार टपकने लगी। नूसी आपा ने शायद उस सिद्धान्त का पालन किया था कि यदि मर्द का पेट भरा हो और खुश हो तो पेट के नीचे वाला भी खुश रहेगा।
 
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नूसी आपा का हुस्न खुले गले की पीली चोली और नीले लहंगे में कहर धा रहा था। मैं भी कम नहीं थी पर बाप ने बेटी के हुस्न के दस्तरखान से एक बार पेट भर लिया था और अब उनकी भूख फिर से जाग गयी। और वो ही तो मेरी योजना का मज़बूत हिस्सा था। आदिल भैया और अकबर चाचू को खास मेहमानों की तरह बैठाया गया। फिर उनके हाथों में शैम्पेन के गिलास थमाने के बाद शानू ने अपने भैया उर्फ़ जीजू का दामन थाम लिया। मैं और नूसी आपा अकबर चाचू के दोनों ओर बैठ गयीं। नूसी आपा ने शैम्पेन का गिलास अपने हाथों में थाम लिया और अपने अब्बू को घूँट घूँट पिला रहीं थीं। मैंने और नूसी आपा अकबर चाचू की बाहें अपने कंधो के ऊपर दाल कर उनके सीने चिपक गए। 
"आदिल बेटा क्या बात है आज तो तुम्हारी हमारी बहुत खैरतदारी हो रही है। " अकबर चाचू ने अपनी बाहें हमारे उरोज़ों के ऊपर तक आ रहीं थीं। उनके बड़े फावड़े जैसे हाथ नूसी आपा और मेरे स्तनों के ऊपर ढके थे। 
"मामूजान सोचिये मत जोप् यार मिल रहा है उसका दिल भर कर मज़ा लीजिये ,"आदिल भैया ने बिलकुल ठीक संवाद मारा। 
"अब्बू अब आपकी बेटी सिर्फ बेटी ही नहीं है। अब आपका ख्याल किसी घर की औरत को तो एक मर्द की तरह रखना पड़ेगा। नेहा थोड़े ही यहाँ रहेगी ज़िन्दगी भर ," नूसी आपा ने भी अपना संवाद सही सही कह डाला। 
" ठीक तो है चाचू , अब आपका ख्याल नूसी आपा नहीं रखेंगीं तो कौन रखेगी ?"मैंने अपना हाथ अकबर चाचू की लूंगी की तह के अंदर सरका दिया। 
"मैं भी तो हूँ। मैं भी जीजू और अब्बू का ख्याल रखूंगी। " शानू चहकी। उसने अपना असली डायलॉग बोल कर अपने दिल की बात कह दी। लेकिन उसका असर उसके असली डायलॉग से भी ज़्यादा हुआ। 
"मेरी नन्ही बेटी कैसी बड़ी हो गयी है ,"अकबर चाचू ने प्यार से कहा। 
मेरा हाथ चाचू से सोये अजगर से ऊपर पहुंच तो पहले से पहुंच नूसी आपा के हाथ से टकरा गया। यह तो बिलकुल ठीक संयोग था। 
उधर शानू से अपने अब्बू के प्यार भरी तारीफ़ से फूल कर जीजू की लुंगी के भीतर अपना हाथ डाल दिया। 
शैम्पेन के दो ग्लासों के बाद दोनों मर्द थोड़े और खुल गए। शानू के हाथों के कमाल ने आदिल भैया के लन्ड तो ठरका दिया। जीजू ने बिना सोचे पर योजना के अनुसार शानू की चोली के बटन खोल दिए। नन्ही शानू के उगते उरोज़ बाहर निकल आये। जीजू के विशाल हाथ ने शानू का एक उरोज़ अपनी हथेली में भर लिया। जैसे ही जीजू ने शानू का स्तन मसला शानू सिसक उठी। 
उधर मेरा और नूसी आपा के हाथ अकबर चाचू के हलके से सख्त होते लन्ड के ऊपर थे। हालाँकि अकबर चाचू का लन्ड अभी पूरा सख्त होने से कोसो दूर था फिर भी हम दोनों की मुट्ठियाँ उनके लन्ड की मोटाई का सिर्फ आधा घेरा ही नाप पा रहीं थीं। 
अकबर चाचू ने प्यार से अपनी बेटी के अल्पव्यस्क हुस्न को खुले खुल्लम देखा। उनकी आँखों ने आदिल जीजू के हांथो को शानू की चूचियों को मसलते देख उनके लंड कई बार फड़क उठा। 
नूसी आपा और मैंने खुद ही दुसरे हाथ से अपनी चोली के बटन खोल दिए। हमारे मोटे उरोज़ जग-ज़ाहिर हो गए। 
अकबर चाचू ने अपनी नन्ही बेटी को अपने जीजू के साथ मस्ती करते देख कर उनका लन्ड हिलकारे मारने लगा। उनके हाथ स्वतः उनकी बेटी और मेरे स्तनों के ऊपर कस गए। अब शुरू हो गया नेहा की योजना का खेल। 
 
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१६० 

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शानू भूल गयी कि कमरे में उसके अब्बू भी हैं। जब वासना की आग नन्ही कच्ची कली के भीतर जल उठे तो उसके दिलो-दिमाग पर चुदाई का भूत तरी हो जाता है। शानू ने अपने जीजू के लंड को बाहर निकल लिया। आदिल जीजू ने शानो की चोली उतार दूर फेंक दी। शानू ने जल्दी से अपना मुँह जीजू के लेंस के टोपे से लगा दिया। 
अकबर चाचू का लंड अब बेसब्री से तन्तनाने लगा। अपनी मुश्किल से किशोरवश्था के पहले वर्ष में पहुंची बेटी को अपने मौसेरे भाई और जीजू का लंड चूसते देख कर उनकी मर्दानी वासना का अजगर पूरा फनफना उठा। 
चाचू ने मेरी चोली उतार कर चूचियों को मसलने चूसने लगे। नसी आपा कर अपने अब्बू की लुंगी की गिरह खोल कर उनकी लुंगी फैला दी। अब चाचू का लंड और झांगे जग जाहिर थीं।
नसी आपा ने नूसी आपा ने अपने अब्बू का गरम गीले मुंह में ले कर उनके पेशाब के छेद को अपनी जीभ की नोक से चुभलाने लगीं। मैंने अकबर चाचू के चेहरे को सहलाते हुए उनके मुँह को अपनी फड़कती चूचियों के ऊपर दबा दिया। चाचू के मर्दाने तरीके से ज़ोर से चूसने और मसलने से मेरी चूचियां कराह उठीं थीं पर दर्द में वासना की चाभी भी थी। 
मैंने जोए से सिसकारी मारी , "है चाचू ज़ोर से मसल दीजिये मेरी चूची , और ज़ोर से चूसिये इन्हें। मैं तो ऐसे ही झड़ जाऊंगी ,"मैंने सिअकरते कहा। 
मेरी बुलंद वासना की गुहार ने बाकी बचीं दीवारों को भी गिरा दिया। आदिल जीजू ने शानू का लहंगा उतार फेंका और उसे चौड़े दिवान पर चित लेता कर उन्स्की चूत के ऊपर धावा बोल दिया। जीजू ने शानू की चूत चूसने की शुरुआत की तो मैंने भी अकबर चाचू के साथ बात आगे बड़ा दी। 
मैंने भी अपना लेहंगा उतार फेंका। नूसी आपा ने अपने अब्बू का कुरता उतार दिया। चाचू ने अपनी बड़ी बेटी को नंगा करने में न झिझक दिखाई न देर लगायी। 
शानू ने सिसकते हुए कहा , "भैया हाय नहीं जीजू आप भी तो कपड़े उतार दीजिये। "
आदिल जीजू को अब तक यह खुद से कर देना चाहिए था। आदिल जीजू ने शानू के खुली चुत को दिल लगा जकर चूसा चाटा , उसकी घुंडी को न केवल जीभ से तरसाया पर जालिम अंदाज़ में दांतों से भी हलके हलके काटा। 
शानू चीख मार कर झड़ गयी। अकबर चाचू ने मुझे छोड़ कर नूसी आप के ऊपर हमला बोल दिया। उन्होंने अपनी बड़ी बेटी की टाँगे चौड़ा कर उसकी घनी घुंघराली झांटों से ढकी चूत को चूसना शुरू कर दिया। मैंने चाचू के मर्दाने विशाल बालों चूतड़ों को चूमते काटते हुए उनकी गान का छल्ला ढूँढ लिया। मेरी जीभ उनके गांड के छेड़ को चुभलाने लगी। 
यही मौका था और मैंने पास में पड़े आई फ़ोन में डाले पैगाम को भेज दिया। शब्बो बुआ सिर्फ बीस फुट दूर थीं। 
" अरे भाई इस महफ़िल में सिर्फ हमें ही नहीं शामिल किया गया। क्या बुआ ने कोई गुस्ताखी कर दी है ," बुआ ने थोड़ा ज़ोर से बोल कर हम सब को चौकाने का प्रयास किया। 
बेचारे चाचू थे जिन्हे इस तरतीब का कोई भी इल्म नहीं था। वो लपक कर अपनी छोटी बहन के पास गए और उन्हें गले से लगा लिया , "माफ़ करना शब्बो। मैं बच्चों के ख्याल में इतना डूब गया कि भूल गया कि तुम वापस आ गयी होंगीं। "
बेचारे चाचू को यह अहसास भी नहीं था कि वो पूरे नंगे थे, "भैया, यदि आप वायदा करें कि मुझे ऐसे ही मिला करेंगें तो मैं हमेशा तैयार हूँ कि इस स्वागत के लिए। "
चाचू को अहसास हुआ तो वो कपडे की ओर जाने लगे पर बुआ ने उनका हाथ पकड़ लिया , "हाय रब्बा। मेरा आना इतना बुरा लगा कि आप इस महफ़िल की ख़ुशी से बच्चों को रोक देगें। "
"शब्बो, तुम तो मेरी प्यारी बहन हो। मैं तो फिक्रमंद हूँ कि आप क्या सोचोगी मेरे बारे में। बच्चे चाहें क्या करें क्या न करें पर मुझे तो थोड़ा संयम बरतना चाहिए था। "
 
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अब बुआ से नहीं रहा गया , "संयम बरतें मेरे भाई के दुश्मन। यदि मेरे भाई के घर की औरतें और बच्चे उनका और उनकी ख़ुशी का ख्याल नहीं रखेंगें तो काउ रखेगा। "
"तुम खुश हो इस ," अकबर चाचू ने अपनी बहन को चूम लिया। 
"खुश , मैं बेइंतिहा खुश हूँ। मैं तो अपने को कोस रहीं हूँ की अब तक मेरी अक्ल क्या चारा चरने गयी थी कि मुझे हम सबको इकट्ठे करने का ख्याल नहीं आया ,"शब्बो बुआ का प्यार अब पूरे निखार पे था।
हम सब एक दुसरे के साथ चपक गए. सारे परिवार का महा-आलिंगन था यह। नूसी आपा ने सबको मदिरा, शैम्पेन के गिलास थमा दिए, "चलिए अब जल्दी से खाना खा लेते हैं फिर सारी रात है एक दुसरे को प्यार करने के लिए। "
नूसी आपा ने किसी के दिमाग , खास तौर से चाचू के दिमाग , में यदि कोई झिझक बाकि हो तो उसको नाकाबिल कर दिया। 
खाने पर हम सब खुल आकर अपने दिल की बातें करने लगे। 
"भैया , सुना की शानू ने अपने जीजू से अपनी सील खुलवा ली है ,"बुआ ने खुल्लम-खुल्ला वार्तालाप ठीक दिशा में मोड़ दिया। 
"बुआ मैंने देर तो लगायी पर अब पीछे नहीं हटने वाली। अब जब जीजू का मन हो मैं तैयार हूँ उनकी ख़ुशी के लिए ,"शानू खुल कर बोली, "और बुआ नूसी आपा ने भी अपने ज़िंदगी की हसरत भी पूरी कर ली। अब्बू ने आखिर आपा के साथ नाता बना है। नहीं अब्बू अब आप हमेशा नूसी आपा के साथ हमबिस्तर होते रहेंगें ?'
शानू अब रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। 
" उन्ह उन्ह। .. ठीक है बेटा। एक बार अपनी जन्नत की परी जैसी सुंदर बेटी के साथ हमबिस्तर होने के बाद कौन बाप रुक पायेगा।"
सब लोग खाना भी खा रहे थे और मदिरापान करते हुए पारिवारिक सम्भोग के पुराने पन्ने भी पलट रहे थे। 
"नूसी बेटा तू तो नसीब वाली है। अब्बू के दोनों प्यार, यानि बाप और मर्द , किसी कसी नसीब वाली बेटी ही को मिलते हैं ," शब्बो बुआ ने नूसी आपा की बालाएं उतार लीं। 
"बुआ मैं भी तो नसीब वाली बेटी हूँ। मुझे भी तो अब्बू दोनों तरह का प्यार करेंगें। नहीं अब्बू ?"शानू ने तीर छोड़ा। 
"बेटी शानू तू जब कहेगी उसी दिन अब्बू तुझे भी हनबिस्तर बना लेंगें," शब्बो बुआ ने कोई कसर नहीं छोड़ी। 
अब हम सब गरम हो चले थे। 
"अब्बू आप भी तो एक बार बुआ के साथ हमबिस्तर हुए थे ?" नूसी ने अपने अब्बू के लंड को सहलाते हुए कहा। 
"नूसी वो महीन मेरी ज़िंदगी का बहुत हसीं महीना था ,"अब्बू ने प्यार से अपनी बहन को देखते हुए कहा। 
"भैया , उस हसीन महीने का मीठा इनाम मेरी ज़िंदगी का सबसे हसीं तोहफा है आपकी तरफ से," बुआ ने गीली आँखों से जज़्बाती आवाज़ में कहा। 
"शब्बो, मैं समझा नहीं,"चाचू ने मीठी आवाज़ में अपनी बहन से पूछा। 
"भैया , उस महीने में अप्पने अपनी बहन की खाली कोख भर थी। आदिल ही तो उस महीने का तोहफा है आपका ,"बुआ ने चाचू को रहस्य बता दिया।
अकबर चाचू ने आदिल भैया की ओर घमंड से देखा , "शब्बो, आदिल तो हमेशा से मेरे बेटे की तरह था। मेरा सब कुछ इन तीनो बच्चों का है। पर मैं शुक्रगुज़ार हूँ की आदिल मेरे बेटे की तरह नहीं मेरा बेटा ही है। मेरी बहन यह तो तुम्हे तोहफा है मेरे लिए। इस के लिए तो मैं तुम्हारे पैरो को हमेशा चुमता रहूंगा। "
चाचू और आदिल दोनों बाओ बेटे की तरह गले मिलने लगे। 
हम सब की आँखें थोड़ी गीली हो गयीं। 
बुआ ने माहौल ठीक करने के लिया अपना स्वाभाविक व्यवहार का सहारा लिया ,"भैया , आपका बेटा तो अब आपका ही है। लेकिन यहाँ चार चार चूतें हैं दो महालंडो के लिए। कौन बटवारा करेगा ?"
[size=large]नूसी आपा ने भी माहौल संभाला ,"बुआ आदिल का दिल मचल रहा है आपके लिए। इस रात आप का हक़ पहला है अपने बेटे के लण्ड के ऊपर। मेरे प्यारे अब्बू का लंड आज रात पहले पहल छोटी रंडी बहन की चूत फाड़ कर उसकी गांड की सील तोड़ेगा। "[/size]
 
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१६२ 
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अब तो सब कुछ खुल्लम खुल्ला हो चला। आदिल भैया ने प्यार से अपनी अम्मी को बाँहों में उठा लिया। 
"हाय मेरे बेटे , आपकी अम्मी हलकी फुलकी नहीं है , चोट न लग जाये बेटा। "बुआ ने प्यार से आदिल को चूमा। 
"अम्मी, आपके बेटे की बाहें अपनी अम्मी को उठाने के लिए कभी भी कमज़ोर नहीं पड़ेंगीं ,"आदिल ने अपनी अम्मी की नाक को चूमते हुए कहा। 
चाचू ने शानू को बाँहों में उठाते हुए कहा , "शानू तुम्हे जो आपा ने कहा है वो सब करना है अब्बू के साथ ?"
"अब्बू एक बार नहीं हज़ारों बार।आज ही नहीं हमेशा हमेशा करना है आपके साथ, "शानू ने अपने अब्बू के गले पे अपनी नन्ही बाँहों का हार डाल दिया। 
हम सब पारिवारिक कक्ष में चल पड़े। आदिल ने बुआ को घोड़ी बना कर उनकी गांड और चूत चुसनी शुरू कर दी। 
"अब्बू, इस रंडी की चूत तो पूरी गरम है अब आप अपने लंड डाल दीजिये ,"नूसी आपा ने शानू की छोटी छोटी उगती चूचियां मसलते हुए कहा। 
अकबर चाचू ने अपनी छोटी बेटी को घोड़ी बना कर चोदने के लिए तैयार कर लिया। जैसे ही चाचू ने अपना लंड बढ़ाया शानू की चूत की ऒर मुझे एक ख्याल आ गया। 
मैंने लपक कर पास पड़े लहंगे से शानू की चूत सोख कर सूखा दिया , "चाचू, यदि शानू की चूत कसमसा न उठे , उसकी चीखें न निकलें और आपके लण्ड के ऊपर उसकी चूत से लाल रस न दिखे तो उसे यह रात कैसे मीठी यादें बनाएगी ?"
"अब्बू, वाकई। शानू कुंवारी तो नहीं है चूत से पर आप उसे आज भी कुंवारेपन की पहली चुदाई का अहसास दिला सकते है। कौन बेटी नहीं यद् करेगी अपने अब्बू के साथ पहली दर्दीली मीठी चुदाई को ? "नूसी आपा ने भी अपने अब्बू को भड़काया। 
उधर आदिल ने धीरे धीरे अपना लण्ड एक एक इंच कर अपनी अम्मी की चूत में घुसना शुरू कर दिया। 
"हाय आदिल बेटे, मैं तो जन्नत में चली गयी अपने बेटे के लंड को अपनी चूत में ले कर। मेरा बेटा एक बार फिर अपनी अम्मी के अंदर है ,"शब्बो बुआ अनुचित अगम्यगमनी वासना से जल रहीं थीं। 
"अम्मी, मेरा लंड पहली बार की आपकी चूत की गरमी को कभी भूलेगा।"आदिल ने अपनी अम्मी के भारी भारी मुलायम विशाल उरोजों को बेदर्दी से मसलते हुए कहा। 
"बेटा मसल दो अपनी अम्मी की चूचियों को। आज तो अपनी अम्मी की चूत की धज्जियाँ उदा दो। रुला दो अपनी अम्मी को चुदाई से। बीटा दस साल से तुम्हे देखते हुए दिल की भूख छुपा कर राखी है हमने,"बुआ वासना में जलती हुई बुड़बुड़ायीं 
आदिल भैया ने बेदर्दी से बुआ की चीचियों को मसलते हुए एक विधवंसिक धक्के में पूरा लंड उनकी चूत में दाल दिया। बुआ की चीख निकल गयी। 
"बेटा और दर्द करो अम्मी को। तुम्हारी अम्मी की चूत अनछुई है बीस साल से। तुम्हारे अब्बू की चुदाई और तुम्हारे मेरे पेट में आने के बाद तुम्हारा पहला लंड है मेरे बेटे ," बुआ की दिल के हालत सुन कर आदिल का प्यार परवान हो चला।
उन्होंने अपनी अम्मी की चूत की चुदाई भीषण अंदाज़ में शुरू कर दी। पांच मिनट नहीं बुआ झड़ने लगीं। आदिल भैया मुझे नहीं लगता था की घंटों से पहले रुकेंगें अपनी अम्मी की चूत चोदने से। 
इधर चाचू ने अपना तनतनता हुस घोड़े जैसा लंड शानू की नन्ही सुखी चूत ले टिका कर उसे नन्ही बकरी की तारक जकड़ कर भयानक जान लेवा धक्का लगाया। नूसी आपा ने शानू के कंधे पीछे दबा दिए। शानू की दर्द भरी चीख उबाल उठी। 
उसकी आँखों आंसूं भर गए। छोटी छोटी चूचियों को हुए बेदर्दी से मसलते दूसरा चूत फाड़ने वाला धक्का लगाया और उनका पूरा महालँड नन्ही शानू की चूत में ठुँस गया था। शानू बिबिला कर रो रही थी। पर अपने अब्बू से चुदाई के लिए तो वो और भी दर्द बर्दाश्त कर लेती।
चाचू ने बिना शानू को आराम करने का मौका दिए अपना लंड टोपे तक बाहर निकल लिया। उनके लंड पर लाल खून की गाढ़ी परत चढ़ गयी थी। चाचू के लंड के किसी कुंवारी की चूत फटने जितना खून तो नहीं निकला था शानू की चूत से पर बहुत कम भी नहीं था। 
शानू अब बिना रुके हिचकी मार मार थी। उसकी आँखे इतनी बाह रही थीं की बेचारी के सुड़कने के बावजूद भी उसके आंसू उसकी सूंड नासिका में से बह चले। 
"अब्बू देखिये तो आप अपनी नन्ही बेटी के हुस्न को, "नूसी आपा ने शानू का रोता हुआ आंसुओ और उसकी बहती नासिका के रस से मलिन मुँह को अपने अब्बू को दिखाया। 
वाकई का मलिन चेहरा अपने अब्बू के महालँड की चुदाई के दर्द और भी सूंड लग रहा था। 
"अब्बू, आपको कसम है हमारी, बिना रुके शानू की चूत मारें। इसकी चीखें नहीं रुकनी चाहियें ,"नूसी आपा ने अकबर चाचू को उकसाया। 
चाचू ने बिना रुके शानू की चूत को बेदर्दी से कूटना शुरू किया तो अगले आधे घंटे तक बेचारी सुबक सुबक कर रोती रही। उसकी आँखे और सुंदर नासिका जमुना की तरह बहतीं रहीं। 
नूसी आपा ने पहले तो अपने हाथ से उसके आंसू और बहती नासिका के रस को उसके मुँह पर रगड़ दिया पर जब आधे घंटे की चुदाई के बाद उसका दर्द कम हुआ और वो सिसकारियां मारने लगी तो नूसी आपा ने अपनी जीभ से अपनी नहीं बहन का मुँह चाट चाट कर साफ़ कर दिया। उन्होंने शानू के नथुनों में अपनी जीभ हुआ उन्हें भी अपनी लार से भर दिया। 
"अब्बू मुझे झाड़ दीजिये हाय रब्बा मेरी चूत मारिये अब्बू ,..... ूण ंन्न ......... ाआनंनं ाआँह्ह्ह ," शानू अब लगातार झाड़ रही थी और उसकी चूत उसके रतिरस से लबालब भर चली थी।
चाचू का लंड अब रेलगाड़ी के इंजन के पिस्टन जैसे पूरी रफ़्तार और ताकत से शानू की चूत 
चोद रहा था। उनका लंड उसकी चूत में फचक फचक की अश्लील आवाज़ें निकलते हुए बिजली की गति से अंदर बाहर आ जा रहा था। 
घंटे भर की चुदाई के बाद शानू न जाने कितनी बार झड़ गयी थी। उसके अब्बू ने भी अपना लंड अपनी नन्ही अल्पव्यस्क बेटी की कमसिन चूत में खोल दिया। उनका उर्वर वीर्य की बारिश के कच्चे गर्भाशय को नहला दिया। 
 
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१६३ 
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उधर शब्बो बुआ भी मुँह के ऊपर ढलक गयीं थक कर।
आदिल भैया ने अपनी अम्मी के उर्वर गर्भाशय को अपने बराबर के उर्वर वीर्य से नहला दिया। अब यह तो प्रकृति के ऊपर था की उनका वीर्य और उनकी अम्मी का अंडा जुड़ने के लिए तैयार थे या नहीं। 
आदिल भैया का लंड एक सूत भी ढीला नहीं हुआ था। उन्हिओंने औंधी लेती अपनी अम्मी के तूफानी चूतड़ों को फैला कर उनकी गांड के नन्हे गुलाबी छेद के ऊपर अपना वृहत लंड तक कर अपने पूरे वज़न के साथ बेदर्दी से उनकी गांड में। 
" हाय बेटा अम्मी की गांड फाड़ोगे क्या। .. हाय मार डाला अपनी अम्मी को। " शब्बो बुआ अपनी चूत की चुदाई की थकन से निकल आयीं। यही तो आदिल भैया चाहते थे। 
उन्होंने अपनी अम्मी की गांड उसी निर्माता से मारनी शुरू कर दी। थोड़ी सी देर में ही बुआ की चूत भरभरा कर झाड़ गयी , "हाय खुदा मैं तो मर जाऊंगीं चुदाई से। बेटा फाड़ डालो अपनी अम्मी की निगोड़ी गांड। मेरे बेटे का गांड मेरी गांड नहीं फाड़ेगा तो किसका लंड फाड़ेगा। और ज़ोर से मारो अपनी अम्मी की गांड ,"बुआ ने वासना के ज्वर से ग्रस्त अनर्गल बोलना शुरू किया तो अपने रति-निष्पति की तरह रुकने का नाम ही नहीं लिया। 
"बेटी, मैंने आपको बहुत चोट तो नहीं लगायी? "अकबर चाचू ने शानू को चूमते हुए पूछा। 
"नहीं अब्बू। आपने तो मेरी पहली चुदाई यादगार बना दी। मैं इसे तो वैसे ही नहीं भूलती पर अब इस दर्द की मिठास तो मुझे मरने तक याद रहेगी ,"शानू ने अपनी उम्र से कहीं परिपक्व लड़कियों जैसे कहा। 
"पर अब्बू आप मेरी गांड का कुंवारापन लेते वक़्त कोई कस्र नहीं छोड़िएगा। मुझे खुद खूब दर्द होना चाहिए। खून भी निकले तो और भी नियामत होगी। अब्बू मेरी गांड की चुदाई जैसे नूसी पा की की थी वैसे की कीजियेगा ,"शानू ने के मुँह को प्यार से चूमते हुए गुजारिश की। 
"वायदा रहा मेरी बेटी। तुम्हारी गांड मारने में कोई कसर नहीं छोड़ूंगा। अल्लाह कसम जब तक मैं तुम्हारी गांड चुदाई खतम करूंगा तुम्हारी गांड फैट न जाये तो बताना ,"अकबर चाचू ने अपनी अश्लील और नरिममा की वसना की गरमा तो परवान चढ़ा दिया। 
"अब्बू अब नहीं बर्दाश्त होता। आपके लंड का अहसास चाहिए हमें अपनी गांड में। प्यारे अब्बू अब अपनी छोटी बेटी की गांड का कुंवारापन खत्म कर दीजिये ,"शानू ने अपने अब्बू से फरियाद लगायी। 
अकबर चाचू ने बिना वक़्त बर्बाद किये शानू को दुबारा घोड़ी बना कर अपना लंड उसकी गांड पे लगा दिया। नूसी दोनों तैयार थे शानू को सँभालने के लिए। 
हम दोनों की आँखें फट गयीं देख कर कि अकबर चाचू ने अपने लंड के ऊपर कोई चिकनाई नहीं लगाई। तब तक शानू की चूत लंड के ऊपर सूख गया था। 
शानू की गांड वाकई फटने वाली थी। अब्बू उसकी गांड मरवाने की हर तमन्ना पूरी करने वाले थे।
शानू सिर्फ अपने अब्बू के लंड की अपनी गांड के ऊपर रगड़ से ही सिसकने लगी।
अब्बू ने अपनी नन्ही मुश्किल से किशोरावस्था में प्रविष्ट बेटी को निरुत्साहित नहीं किया। उन्होंने नूसी और मुझे इशारा कर शानू की कमर फावड़े जैसे हाथो से जकड़ कर वो भयानक धक्का लगाया की मेरी गांड अपने आप ज़ोरों से भींच गयी। 
यदि शानू की चूत मरवाते हुए निकली चीख इस बार की चीख से सामने फीकी पड़ गयी। शानू हलक फाड़ कर चिल्लाई। उसका सुंदर चेहरा असहनीय दर्द से निखार उठा। शानू कंपकपाती हुई बिलख उठी। 
नूसी आपा ने एक बार फिर से अपनी नन्ही बहन के कंधे को वापस अपने अब्बू के लंड के ऊपर धकेलने लगीं। 
मैंने ज़ोरों से शानू के दोनों चूचियों को उसी नर्ममता से मसलन मड़ोड़ना शुरू कर दिया। 
अकबर चाकू ने दूसरा और फिर तीसरा धक्का लगाया। कोई भी विश्वास नहीं करेगा कि उन्होंने अपना हाथ भर लम्बा बोतल से भी मोटा लंड अपनी नाबालिग बेटी की कुंवारी गांड में तीन धक्कों में जड़ तक ठूंस दिया। 
शानू की चीख बहुत ऊंचे पहुँच कर सन्नाटे में बदल गयी, इतना दर्द हुआ बेचारी को। 
चाचू ने तब तक अपना लंड बाहर निकाला तो बिना शक़ गाढ़े लाल खून से सना हुआ था। बेचारी शानू शायद अगले महीने तक पखाना करते हुए रोयेगी।
 
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१६४ 
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नूसी आपा ने इस बार बहती आँखों और नासिका के रस को तुरंत चूसना और चेतना शुरू कर दिया। मैं भी उसके नीचे लेट कर उसकी एक चूची चूसने लगी और दूसरी को मसलने मड़ोड़ने लगी। 
"अब्बो,ठीक ऐसे ही। शानू की यह रात उसको ज़िंदगी भर नहीं भूलेगी। अल्लाह कसम उसकी चीखें नहीं बंद होनी चाहिए अब्बू ,"नूसी आपा ने अब्बो को बढ़ावा देते हुए उकसाया। 
और अकबर चाचू ने अपना वायदा किया और उस से भी आगे निकल गए। 
उन्होंने शानू की कुंवारी गांड को उसी बेदर्दी से अगले घंटे तक मारा। शानू की चीखें ,सुबकियां , और हिचकियाँ अगले घंटे तक बंद नहीं हुई। उसकी अब्बू का लंड अब सटासट उसकी गांड में से माथे हलवे की चिकनाई से अंदर बाहर जा रहा था। अकबर चाचू ने शानू की दर्दीली गांड-चुदाई से उसके लिए झड़ना बिलकुल असंभव कर दिया था। शानू घंटे से भी ज़्यादा अपनी गांड चुदाई के दर्द से बिलबिलाने के अलावा कुछ और सोच भी नहीं पायी झड़ना तो कोसों दूर। 
पर आखिर कर वासना की प्रज्जवलत अग्नि, चुदाई का जूनून और अपने अब्बू के साथ नाजायज़ सम्भोग की तमक से शानू दर्द के गड्ढे से भर निकल ही गयी। उसके अब्बू का लंड उसकी गांड के मक्खन से लिसा अब उसे आननद देने लगा। नूसी आपा और मई अब बेदर्दी उसकी छूछोयां मसलने लगे पर अब उसकी वासना फतह का झंडा लहरा था। शानू ने अगले दस मिनटों में तीन ब्रा झड़ने के बाद अपने अब्बू से और भी ज़ोर से गांड मारने की गुहार लगाना श्रुओ कर दिया। अकबर चाचू ने अपनी प्याररी नन्ही बेटी की गांड को एक और घंटा बिना थके और धीरे हुए चोदा।शानू की अविरत रत-निष्पति ने उसके अल्पव्यस्क कच्चे बदन को बिलकुल थका दिया। जब अकबर चाकू ने अपना लंड शानू की गांड में खोला तो वो चीख कर निश्चित हो गयी। अकबर चाचू ने बीस पच्चीस वीर्य की बौछारों के बाद विजय पताका फहराता हुआ लंड निकला तो नूसी उसके ऊपर भूखों की तारक जगपत पड़े। हम दोनों ने अकबर चाचू के शानू की गांड के मंथन के रास और उनके पाने वरीय के माखन को चूसने और चाटने लगे। 
उधर आदिल भैया ने भी अपनी अम्मी की गांड मार मार कर उन्हें इतनी बार झाड़ दिया कि वो भी शानू की तरह बेहोश हो गयीं। कमरे में दो ख़ूबसूरत गाण्डों की भयंकर चुदाई और मंथन की गहरी खुशबू फ़ैली हुई थी। नूसी आपा और मेरी चूतों में आग लगी हुई थी। अब हम दोनों को उस आग को दो मुस्टंड लंड चाहिए थे। 
नूसी ने अपने अब्बू का हुए मैंने आदिल भैया का ताज़ा ताज़ा गांड मंथन के बाद से उपजे माखन से सजे संवरे लंड को मुँह में ले कर चूसने चाटने लगीं। दोनों मर्दों के लंड तूफानी तेज़ी से तनतना रहे थे। 
अब्बू ने नूसी आपा को निहुरा कर उनकी चूत में अपना लंड तीन चूत - फाड़ू धक्कों में जड़ तक ठूंस दिया। नूसी आपा की चीख में आनंद ज़्यादा दर्द कम था। आदिल भैया भी अपने अब्बा से पीछे नहीं थे। उन्होंने भी बेदर्दी से मेरी चूत में अपना लंड ठूंसने में को धक्कों की कंजूसी बरती। पर उसके बाद की चुदाई में कोई कंजूसी नहीं दिखाई दोनों ने। अकबर अब्बू ने अपनी बेटी की भैया ने मेरी चूत को घण्टे भट रोंदने के बाद ही अपने लंड की उपजाऊ क्रीम से हमारी चूतों को सींच दिया। 
 
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