Parivaar Mai Chudai हमारा छोटा सा परिवार - Page 18 - SexBaba
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Parivaar Mai Chudai हमारा छोटा सा परिवार

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१६५ 
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हम सब जब चुदाई के थकन से थोड़ा उभरे तो मुझे याद आया ,"अच्छा तो अब हम तीन शादियों के लिए तैयार हो जातें हैं। "
मैंने फिर शानू की ओर देखा और अपनी गिनती बदली , "तीन नहीं चार। "
"चलो नेहा तुम ही लगाओ किसका नंबर पहला है ," शब्बो बुआ और नूसी आपा मेरी गयीं थीं। 
"बुआ जान आप अपने बड़े भाई का लंड थामिये ।चाचू आप अपनी बहन की चूचिया थामिये," अकबर चाचू और शब्बो बुआ ने बिना ना-नुकर किये जो कहा वैसा ही किया। 
"बुआ चलिए अब मेरे साथ दोहराइये - मैं अपने भाई का ख्याल छोटी बहन और बीवी की तरह रखूंगी। और उन्हें कभी भी बिना चुदाई के सोने नहीं दूँगी," मैंने बात आगे बढ़ायी , " और अब नूसी के साथ मिल कर इस घर में बच्चों की रौनक फ़ैल दूंगीं। "
बुआ ने इसे दोहराया। उनके हाथ अपने भाई के सख्त महा लंड को सहला रहे थे। 
"चाचू आप कहिये , "शब्बो को मैं अपनी छोटी बहन और बीवी की तरह प्यार करूँगा। इनकी चूत को कभी बिना चोदे रात नहीं बिताने दूंगा। मैं शब्बो के पेट में जितने हो सकते हैं उतने बच्चे डालने की पूरो पूरी कोशिश करूंगा। "
अकबर चाचू ना केवल दोहराया उन्होंने अपनी बहन को प्यार से चूमा भी। 
नूसी आपा ने एक और बात जोड़ दी ," बुआ अब आप अब्बू के कमरे अपनी जायज़ जगह ले लीजिये। यदि अम्मी जन्नत से बोल यही कहतीं।" हम सबने इस बात का पूरा समर्थन किया। 
दूसीर शादी बुआ और आदिल भैया के बीच। उन दोनों ने भी माँ और बेटे के साथ साथ हमबिस्तर शौहर और बीवी की तरह खूब चुदाई करने का और बच्चे पैदा करने का इकरार किया। 
तीसरी शादी अकबर चाचू और नूसी की थी. नूसी आपा अब्बू का लंड सहलाते हुए वही वायदा दोहराया। 
चौथी शादी के शानू तैयार थी। उसने अपने नन्हे हाथों से अपने अब्बू और भैया के लंड सहलाते हुए कहा ,"मैं अपने अब्बू और भैया की भूख का पूरा ख्याल रखूंगी। अब से मेरी चूत और गांड दोनों भैया और अब्बू के लिए दिन रात खुली रहेंगीं। "
आखिर में मैंने बुआ का नकली लंड बाँध कर अपनी और शानू की शादी भी कर दी। आखिर में मेरी गिनती दुबारा गलत हो गयी। 
उस बाकि रात के सुहागरात के लिए आदिल भैया ने अपनी अम्मी को अपनी नै नवेली बीवी की तरह बाँहों में उठा कर उन्हें अपने कमरे की ओर चल दिए। अकबर चाचू बड़ी बेटी को अपनी वधु की तरह प्यार से उठाया और अपने कमरे की तरफ चल पड़े। मैंने अपनी बीवी उर्फ़ शानू को पकड़ा और अपने में कमरे में खींच के ले गयी। 
उस रात तीनो कमरों में भीषण प्यार भरी चुदाई हुई। मैंने शानू की चूत और गांड मार मार कर उसे आखिर में आलम में ले जा कर ही सोई । 

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अगले दिनों में खूब चुदाई हुई। शब्बो बुआ ने अपने बेटे और भाई के साथ इकठ्ठे चूत और गांड मरवाई। 
नूसी आपा ने भी ना नहीं किया। लेकिन दोनों महालण्डों को एक साथ लेने में उनका पसीना निकल गया। 
आखिरकर में मेरी वापस जाने का दिन भी आ गया। उसके पहली रात में तीनो 'लड़कियों' शौहरों की दोनों लंडो को मेरे लिए छोड़ दिया। अकबर चाचू और आदिल भयइया ने उस रात मेरी चूत और गांड की की बुरी रौंदा। सुबह तक न केवल उन्होंने मेरे दोनों छेदों को बेदर्दी से रौंदा पर इकठ्ठे भी। मैं अगली सुबह टांगें चौड़ा कर चल रही थी। 
हफ्ते बाद फ़ोन पे बात करते हुए शानू ने मुझे बताया की उस के बाद घर में दिन में तो सा जो हाथ पड़ता उसके साथ जोड़ा चुदाई करते पर रात में मैंने देखा की नूसी आपा और शब्बो बुआ अदला बदली से एक एक रात अपने 'नए 'शौहर ' के साथ बारी बारी से बितातीं। उस समय तो नहीं पता था पर कुछ महीनो बाद नूसी आपा और शब्बो बुआ दोनों पेट से होंगीं।
 
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१६६ 067
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घर वापस आने में अपना ही आनंद है। नाना, दादा और दादीजी ने दिल भर कर चूमा जैसे मैं एक हफ्ता नहीं बाद मिल रही थी। दोनों मामा भी प्रेम दिखने से नहीं थके। 
घर वापस आने पर थोड़ी देर तक तो मम्मी और बुआ ने खूब प्यारा चूमा फिर सुशी बुआ ने टांग खींचनी शुरू कर दी, "क्या हुआ नेहा बिटिया। क्या अकबर भैया ने काफी काम करवाया ? इतनी चाल तो मेरी कभी भी ख़राब नहीं हुई। मुझे लगता है आदिल बेटे ने ज़रूर टेनिस के खेल खेल में ज़ोर के शॉट मार दिए होंगे? "
मैं शर्मा कर लाल हो गयी ,"बुआ आप भी ना क्या क्या बोल जाती हैं। आपने ही तो ज़रूरी काम की लिस्ट थमाई थी। टेनिस केहेलने का तो टाइम ही नहीं मिला। "
मैं अपनी बुद्धूपने पर और भी शर्मा गयी। मम्मीमन्ड मंद मुस्करा रहीं थीं। 
"चल तू आज मेरे साथ सोना। मुझे सब सुनना है की अकबर, शब्बो, नूसी आदिल, शानू कैसे हैं ," सुशी बुआ मुझसे आखें मटकाते हुए बोलीं। 
"भाई मुझे गोल्फ के बाद थकन हो रही है ,"दादीजी बोलीं पर उनकी आँखें प्यार से अपने बेटे को निहार रहीं थीं। 
"मम्मी चलिए मैं आपकी मालिश कर दूंगा ," पापाजी प्यार से बोले और अपनी मम्मी कके साथ अपने सुइट की ओर अग्रसर हो गए। 
अब मुझे सुशी बुआ की कहानी याद आयी। पापाजी और दादी जी के इकठ्ठे प्यार करने के ख्याल से ही माओं रोमांचित हो गयी। माँ बेटे के अनुचित अगम्यगमनी प्यार सबसे वर्जित होता है और इसी लिए उतना ही मीठा और आनंददायी होता है।
दादा जी ने नानाजी जी से कहा, "रूद्र चल यार कुछ गेम हो जाएँ चैस के ? सुनी सुबह से हराने का एलान कर रही है को। "दादा जी ने प्यार से अपनी बहु को निहारा। 
"सुनी बेटा हम दोनों थोड़े बूढ़े सही पर दोनों मिल गए तो जीतना मुश्किल है तुम्हारा ," नानाजी रूपवती बेटी की और देख कर मुस्कराते हुए कहा। 
"पापाजी कोशिश तो ज़रूर करूंगी। और यहाँ कौन बूढ़ा है। बूढ़े होंगे आपके और बाबूजी के दुश्मन। और फिर कुछ हार तो जीतने से भी मधुर होतीं हैं। " मम्मी ने अपने पिताजी और ससुर जी का हाथ थाम लिए उनके कमरे की ओर जाते हुए।
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"चल अब नेहा मेरे साथ विस्तार से बता सारे हफ्ते की दास्तान ," सुशी बुआ ने मुझे उठाते हुए कहा , "और सुनिए जी आप और जेठजी जल्दी से आइये। आपको नहीं सुन्नी हमारी नेहा के अद्भुद कारनामे ?"
बड़े मां और छोटे मामा लपक कर खड़े हो गए। बड़े मामा ने मुझे बाँहों में उठा लिया ," भाई वाकई नेहा बिटिया , तुम्हारी चल तो वाकई दर्दीली से दिख रही है। "
"बड़े मामू , आदिल भैया और अकबर चाचू के मूसल साड़ी रात सहने पड़े तो किसी भी लड़की की चाल दर्दीली हो जाएगी," मैंने बड़े मां के कटाक्ष का जवाब बेहरमी से दे तो दिया पर जैसे ही छोटे मामा के ऊपर नाज़ा पड़ी तो शर्म से लाल हो गयी। 
"अरे शर्मा क्यों रही है। कमरे में पहुँचते ही अपने छोट मामा से भी दोस्ती कर लेना।," सुशी बुआ ने मेरा और भी मज़ाक बनाया। 
कमरे में बुआ हम सबको लाल मदिर के गिलास बनाये और एलान किया ,"चलिए आप दोनों अपनी भांजी के कपडे उतरिये। उसका किस्सा कपडे पहन कर नहीं ," शर्माती तो रही पर बड़े मामा और छोट मामा ने मेरा कुरता उतार दिया। मैंने ब्रा नहीं पहनी थी। बड़े मामा ने सलवार का नाड़ा खोल कर सलवार ही नहीं मेरा जांघिया भी उतर फेंका। 
"चल अब इन्तिज़ार किस बात का है। अपने छोटे मामा के कपडे उतार नेहा। जब तक मैं अपने प्यारे जेठजी का ख्याल करतीं हुँ। " सुशी बुआ ने बड़े मामा को वस्त्रहीन करने में बहुत देर नहीं लगायी। 
मैंने भी शर्म का आँचल छोड़ कर छोटे मामा का कुरता पजामा उतार दिया। छोटे मामा ने बड़े मामा की तरह पाजामे के नीचे कच्चा नहीं पहना था। उनका दानवीय लंड हाथी की सूंड की तरह उनकी विशाल बालों से भरी जांघों के बीच लहरा रहा था। 
"अरे नेहा क्या नाटक कर रही है। अब तक तेरे छोटे मामू का लंड तेरे मुंह में क्यों नहीं है। जल्दी से तैयार कर अपने छोटे मामू का लंड। मुझे अकबर भैया के घर में हुए तेरे कारनामों की कहानी सुननी है ," सुशी बुआ ने मुस्करा कर तना मारा और अगले क्षण उनका मुँह बड़े मामा के मोटे लंड से भर गया। 
मैंने भी थोड़ा सा , बस थोड़ा सा ही, शरमाते हुए छोटे मामू का भारी भरकम लंड के सेब जैसे मोटे सुपाड़े को मुश्किल से अपने मुंह में ले लिया। मुश्किल से जगह बची थी मेरे मुँह में अपनी जीभ को उनके सुपाड़ी को सहलाने के लिए। मैं अपने नन्हे हाथों से उनके मुस्टंड होते लंड के खम्बे को सहलाते हुए अपने छोटे मामू की लंड को अपनी आफत बुलवाने के लिए तैयार करने लगी। बड़े मामू और छोटे मामू के लंड कुछ ही क्षणों में प्रचंड हो चले थे। उनके भीमकाय पुरुषत्व विज्ञप्ति के हथियार अपनी छोटी बहु और नन्ही भांजी की निर्मम पर अगम्यागमनी वासनामयी चुदाई के लिए न केवल तैयार थे पर हिंसक ठर्राहट से चुनौती से दे रहे थे। 
 
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१६८ 
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"चलो मेरे स्वामी अब अपनी नन्ही भांजी को घुड़ सवारी के लिए तैयार कर लो मैं अपने जेठ जी और आपके बड़े भैया के घोड़े पे चढ़ती हूँ। नेहा जब तू अच्छी और पूरी तरह अपने छोटे मामू के घोड़े पर चढ़ जाये तो शुरू कर अपनी कहानी । मेरी चूत कब से गीली है तेरी कहानी सुनने के लिए ," सुशी बुआ ने बड़े मामू को दीवान पर बिठा कर अपनी कमर उनके सीने की तरफ कर अपनी घने रेशमी रति रस से भीगी झांटों से ढकी चूत को बड़े मामू , अपने जेठ जी के महाकाय लंड के ऊपर टिका कर धीरे धीरे नीचे दबाने लगीं। इतने वर्षों से भीमकाय लंड अपनी चूत और गांड में लेने के बाद भी सुशी बुआ की चूत चरमरा उठी बड़े मामू की हर इंच के साथ। सुशी बुआ ने अपने निचला होंठ दांतों से दबा कर अपनी चूत में एक एक इंच कर बड़े मामू के लंड को पूरा निगल लिया। 
जब उनकी रेशमी झांटे बड़े मामू की खुरदुरी झांटों से संगम करने लगी तो सुशी बुआ का मुँह फिर से चल पड़ा ," सुनिए जी, पहली बार जा रहा आपका लंड अपनी नन्ही भांजी की चूत में। कोई हिचक मत कीजियेगा। नेहा की चूत कुलबुला न उठे तो मैं आपको नहीं दूँगी अपनी चूत एक हफ्ते तक , सिर्फ अपने जेठजी की सेवा करूंगी तब तक। "
सुशी बुआ ने मुश्किल से लिया था बड़े मामू का लंड पर अब इतरा रहीं थी और मेरी चूत की आफत बुलाने के लिए अपने पति, मेरे छोटे मामू, को चुनौती दे रहीं थीं। 
मुझे पता था की पुरुष का गर्व अपनी भ्याता के चुनौती से उग्र हो जायेगा। छोटे मामू ने मुझे घुमा कर मेरी गोल कमर को पकड़ कर हवा में उठा लिया। फिर मुझे खिलोने की तरह उछाल कर अपने हाथो से मेरी जांघों को पकड़ मुझे अपने लंड के ऊपर टिका लिया। कुछ कोशिशों के बाद और मेरे हाथों की अगुवाई से उनके लंड का सेब जैसा मोटा सुपाड़ा मेरी नहीं चूत के द्वार पर टिक गया। छोटे मामू ने अपने भारी चूतड़ों की एक लचक से अपना सुपाड़ा मेरी चूत में ठूंस दिया। मैं सिसक उठी और आगे आने वाले मीठे पर जानलेवा दर्द की तैयारी के लिए अपने होंठ को दांतों से दबा लिया। पर साड़ी तैयारियां निरर्थक हो गयीं जब छोटे मामू ने अपने हाथो को ढीला छोड़ दिया। मेरा अपना वज़न ही मेरी आफत का औज़ार बन गया। मेरी चूत छोटे मामू के लंड के ऊपर रोलर-कोस्टर की तरह भीषण रफ़्तार से नीचे फिसल पड़ी। 
मेरी चीख मेरे हलक से उबल कर कमरे को न भरती तो क्या करती ? " नहीईई ाआँह्ह्ह मा आ मू उउउ। "
पर जब तक में संभल पाती छोटे मामू की कर्कश घुंघराली झांटे मेरी रेशमी झांटो से उलझ गयीं थीं।
" हाय जी ,मैंने इतनी भी बेदर्दी दिखाने के लिए भी तो नहीं उकसाया था आपको ," वैसे तो सुशी बुआ मुझ पर तरस खा रहीं थी शब्दों से पर उनकी चमकीली भूरी आँखें ख़ुशी से उज्जवल हो गयीं थीं।

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१६९
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मामू भी मुझे गोद में ले कर दीवान पे बैठ गए अपने बड़े भैया के पास। अब सुशी बुआ और मैं दोनों भाइयों, बुआ अपने जेठजी और मैं अपने छोटे मामू , के महाकाय लंडो को अपनी चूतों में ले कर स्थिर होने लगीं। बड़े मामू और छोटे मामू के हाथों के आनंद के लिए चार चार गुदाज़, उरोज़ों का विकल्प था। सुशी बुआ की चूँचियाँ मेरी चूँचियों से कहीं ज़्यादा विशाल थीं और सुहागन परिपक्व स्त्रीत्व के सौंदर्य से भरी हुईं थीं। मेरी चूँचियों अभी भी कुंवारे - लड़कपन और अल्पव्यस्क अपरिपक्व तरुणा की तरह थीं। 
मैंने बड़ी सी सांस भर कर अकबर चाचू के घर में अपने हफ्ते भर की कारनामों की दास्तान शुरू कर दी। छोटे मामू के हाथों ने एक क्षण के लिए भी मेरे उरोजों को अकेला नहीं छोड़ा। जैसे जैसे कहानी के कामुक प्रसंग आते मेरी चूचियों की सहमत आ जाती। छोटे मामू का लंड मेरी तंग नन्ही चूत में मचलने थिरकने लगता। सुशी बुआ का भी हाल मुझसे अच्छा नहीं था। पर सुशी बुआ मुझे रोक कर उन कथांशों का और भी विस्तार भरा विवरण बताने के लिए डाँट देतीं । 
जब तक मैंने शादी की रात का पूरा विवरण दिया तो दोनों पुरुषों के लंड की थरथराहट महसूस करने वाली थी। 
जब मैं आखिरी रात पर आयी, जिस दिन और रात शब्बो बुआ , नूसी आपा और शन्नो ने आदिल भैया और अकबर चाचू सिर्फ मुझे चोदने के लिए छोड़ दिया था उसका विवरण सुन कर सुशी बुआ सिसकने लगीं। छोटे मामू ने मेरी छोचियों को और भी बेदर्दी से मसलते हुए मेरे चूचुकों को रेडियो की घुंडियों की तरह मरोड़ने मसलने लगे। 
मैं सिसक सिसक कर अच्छी भांजी की तरह कहानी को बिना रुके सुनती रही। आखिर कर मैं आदिल भैया और अकबर चाचू की इकट्ठे मेरी चूत और गांड की चुदाई की प्रसंग पर आ गयी।
अब मैं भी सुशी बुआ की तरह मामू के लंड के ऊपर अपनी चूत मसलने लगी। जैसे ही मेरी कहानी में आदिल भैया और अकबर चाचू के लंडों ने मेरी चूत और गांड में गरम वीर्य की बारिश की तो बुआ और मैं भी भरभरा कर झड़ गयीं।
"अब नहीं रुका जाता , जेठजी अब चोद दीजिये अपनी बहू को। आप भी फाड़ दीजिये अपनी भांजी की चूत। आज रात आप दोनों मिल कर इसकी चूत और गांड की धज्जियाँ दीजियेगा ,"सुशी बुआ ने सिसक कर गुहार मारी। 
"छोटे मामू मुझे भी चुदना है अब," मैं भी मचल कर सिसकी। 
छोटे मामू ने मुझे पलट कर पेट के ऊपर दीवान पर लिटा पट्ट दिया। उनका भरी भरकम शरीर मेरे ऊपर विरजमान था। छोटे मामू का लंड उस मुद्रा में मेरी चूत को और भी दर्द कर रहा था। 
बड़े मामू ने सुशी बुआ को निहुरा कर घोड़े बना दिया और फिर शुरू हुआ भीषण चुदाई का प्रारम्भ सुशी बुआ के शयनकक्ष में।
मेरी चूत बिलबिला उठी जैसे ही छोटे मामू ने चुदाई की रफ़्तार बड़ाई। मेरे पट लेते हुए शरीर के ऊपर उनके भरी शक्तिशाली बदन का पूरा वज़न मेरे ऊपर था। मेरी नन्ही चूत और भी तंग हो गयी थी। मामू अपने हाथ मेरे सीने के नीचे खिसका कर मेरे पसीने से उरोजों को अपने विशाल हाथों में जकड़ कर मसलने लगे। उनका लंड मेरी चूत में दनादन अंदर बाहर आ जा रहा था। उनके लंड की भयंकर धक्कों से मेरी चूत चरमरा उठी। उधर बड़े मामू शुरुआत से ही सुशी बुआ की चूत की भीषण चुदाई कर रहे थे।
हम दोनों की चूतों से महाकाय लौंड़ों की चुदाई की गर्मी से पचक पचक की अश्लील आवाज़ें उबलने लगीं। 
सुशी बुआ वासना के ज़्वर से जल उठीं ," रवि भैया आ.... आ ... आ ..... आ.........हाय आप मेरी चूत फाड़ कर ही मानोगे। "
मेरी हालत भी ख़राब थी। मेरी तरुण चुदाई का अनुभव सुशी बुआ के परिपक्व तज़ुर्बे के सामने बचपन के समान था। 
मैं सिर्फ बिलबिलाती सिसकती रही और छोटे मामू ने घंटे भर रौंदी मेरी चूत निर्मम लंड के धक्कों से। मैं न जाने कितनी बार झड़ गयी थी। 
मैं छोटे मामू की मर्दानी चुदाई की थकन से शिथिल हो चली थी।
बड़े मामू ने अपना रतिरस से लिसा लंड सुशी बुआ की चूत में से निकाल कर दीवान पर चित्त कर दिया भीषण धक्के से और उनके विशाल गदराये नितम्बों को चौड़ा कर अपने महालँड के सुपाड़ी को बुआ की गांड के ऊपर टिका दिया। फिर जो बड़े ममौ ने किया उसे देख कर मेरी आँखें फट गयीं। बड़े मामू ने अपने पूरे वज़न को ढीला छोड़ दिया और उनका लंड एक भीषण जानलेवा धक्के से सुशी बुआ की कसी गांड में समा गया। 
सुशी बुआ की चीख कमरे में गूँज उठी, " नहींईई ई उननननन मर गयी माँ मैं तो।" बिलबिला उठी दर्द से सुशी बुआ। 
बड़ी मामू ने अपनी बहु की हृदय हिला देने वाली गुहार को अनदेखा कर अपने लंड को बाहर निकाला और फिर उसी बेदर्दी से बुआ की गांड में ठूंस दिया। बुआ अपने जेठ के भारी भरकम शरीर के नीचे दबीं सिर्फ बिलबिलाने और चीखने और अपनी गांड को अपने जेठ के हवाले करने के अल्वा कोई और चारा नहीं था। 
छोटे मामू ने भी मौका देखा और मेरे कान में फुसफुसाए ,"नेहा बेटी अब तेरी गांड का नंबर है ?"
इस से पहले मैं कुछ बोल पाती छोटे मामू के लंड ने मेरी चूत में एक नया रतिनिष्पत्ति का तूफ़ान फैला दिया। जब तक मैं झड़ने की मीठी पीड़ा से निकल पाती छोटे मामू ने मेरे गोल गोल चूतड़ों को फैला कर मेरी चूत के रस से लिसे लंड को मेरी गांड के ऊपर दबाने लगे। भगवान् की दया से उन्होंने अपने बड़े भैया की तरह मेरी गांड में अपना वृहत लंड नहीं ठूंसा। पर धीरे धीरे इंच इंच करके दबाते रहे। मैं सिसकी और होंठ दबा कर दर्द को पीने लगी। छोटे मामू का लंड जड़ तक तक मेरी गांड में समा गया,तब तक मेरी साँसे अफरा तफरी में थीं। छोटे मामू ने मेरे सीने के नीचे हाथ डाल कर मेरे पसीने से गीले उरोज़ों को अपने फावड़े जैसे हाथों में जकड़ लिया। 
मैं अब छोटे मामू के लंड की हर नस को अपनी गांड में महसूस करने लगी थी। छोटे मामू ने धीरे धीरे एक एक इंच करके अपने लंड का मोटा लम्बा तना मेरी गांड से बाहर निकाल लिया सिर्फ उनका बड़े सेब जैसा सुपाड़ा ही रह गया थे मेरी गांड के छल्ले के भीतर। मैं मन ही मन छोटे मामू को धन्यवाद दे रही थी, अपनी भांजी की प्यार और आराम से गांड मरने के लिए। फिर छोटे मामू ने जैसे मेरे विचारों को पढ़ लिया। ठीक अपने बड़े भैया जैसे पूरे वज़न से मेरी गांड लंड ठूंस दिया। मुझे लगा जैसे कोई गरम लौहे का खम्बा घुस गया हो मेरी गांड में। मेरी चीख निकली तो निकली पर मेरी आँखें बहने लगीं। दोनों मामा बेददृ से चोदने लगे सुशी बुआ और मेरी गाँडों को। बड़े मामू अपनी बिलबिलाती बहु की गांड का मंथन निर्मम धक्कों से कर रहे थे। छोटे मामू भी अपने बड़े भैया के पदचिन्हों के ऊपर चलते हुए अपनी छोटी बहन की षोडसी बेटी की गांड का मर्दन उसी बेदर्दी से कर रहे थे। 
दस पंद्रह मिनटों में बुआ और मैं चीखने बिलबिलाने की जगह सिसकने लगीं। कमरे में हम दोनों की गांड की मोहक सुगंध फ़ैल गयी। दोनों मामाओं के लंड बुआ और मेरी गांड के मक्खन को मथ रहे थे। हम दोनों की गांड के मक्खन चिकने हो गए उनके लंड तेज़ी से हम दोनों की गांड मरने सक्षम थे। दोनों बहियों में होड़ सी लग गयी की कौन बुआ और मेरी ऊंची सिसकारियां निकलवा सका था। बुआ और मैं तो लगातार झड़ रहीं थीं। घंटे भर बाद दोनों हलकी सी गुर्राहट मारी और हम दोनों की गांड भर दी अपने गाड़े गर्म वीर्य से।
 
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१७० 
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जब हम दोनों को होश सा आया तो बड़े मामू सुशी बुआ के गोरे नितम्बों को चाट कर साफ़ कर रहे थे। छोटे मामू ने भी में मेरे चूतड़ों को अपने थूक से चमका दिया थे और अब मेरी सूजी लाल गांड के ढीले छल्ले के अंदर अपनी जीभ को डाल कर मेरी गांड के मथे मक्खन को तलाश रहे थे। 
सुशी बुआ ने अपने पति, मेरे छोटे मामू से कहा ,"अरे सुनिए तो। मुझे तो चखा दो मेरे प्यारी भांजी की गांड के रस को। "
छोटे मामू ने मेरी गांड के रस से लिसे लंड को सौंप दिया अपनी अर्धांगिनी के मुँह के ऊपर और मुझे मिल गया सुशी बुआ के मीठी गांड के मक्खन से लिसे बड़े मामू का लंड। हम दोनों तो स्वर्ग में थी। सुशी बुआ की गांड के रस ने मेरी लार टपका दी। हम दोनों ने दिल लगा कर दोनों लंडों को चूम चाट कर चमका दिया। 
लेकिन हम दोनों के प्यार ने दोनों लंडों को लौहे के तने जैसा तन्ना दिया ,दोनों मामा तैयार थे अपने फौलादी अमानवीय आकार के लंड हांथो में लिए। 
"छोटू चल अब जैसा अंजनी और सुन्नी के साथ किया था, कब तेरी भाभी अपने मायके गयी थी, वो पोजीशन बना दे इस बार," सुशी बुआ की आँखें चकने लगीं। मैं भी वासना की बिजली से मचल उठी। मेरी मम्मी और भाभी को मेरे दोनों मामाओं ने किसी ख़ास अंदाज़ में चोदा थे। 
छोटे मामू दिवान पे लेट गए और सुशी बुआ की विशाल गांड के चूतड़ उनके मुँह के ऊपर थे। बड़े मामू ने मेरी चूत को अपने छोटे भाई से लंड के ऊपर टिका दिया। जैसे तैसे मैंने छोटे मामू का पूरा लंड ले लिया अपनी चूत में। फिर मेरी तौबा बुलवाई बड़े मामू ने। मेरी गांड में उनका लंड मुश्किल से घुस पा रहा था। जैसे ही उनका सुपाड़ा अंदर घुस तो समझिये किला फतह हो गया। बड़े मामू ने मेरे गदराये चूतड़ों को कस के जकड़ कर पांच छह धक्कों में अपना लंड पुअर का पुअर जड़ तक ठूंस दिया मेरी नन्ही षोडसी गांड में। बड़े मामू ने मेरा मुँह दबा दिया थे बुआ की फैली गांड के ऊपर। मेरी चीखें ज़रूए बुआ की गांड के ऊपर गुदगुदी दे रहीं होंगी। 
फिर दौड़ने मामाओं ने पांच दस मिनटों में ले से बाँध ली मेरी दोहरी चुदाई की। अब आया वो मौका जिसको मैं हमेशा याद रखुंगीं। बड़े मामू ने मेरे हाथ को सुशी बुआ की घने झांटों से ढकी छूट के ऊपर टिका दिया बाकि काम मेरी कल्पना ने कर दिया। 
मैंने अपनी गांड और चूत की एक साथ दर्दीली चुदाई के दर्द को बुआ की चूत के साथ बांटने ने निश्चय कर लिया। हाथ की नोक बना कर मैंने सुशी बुआ की चूत चोदने लगी। धीरे धीरे उनकी सिसकियाँ निकलने लगीं। मैंने मौका देख कर कलाई तक ठूंस दिया अपना हाथ सुशी बुआ की चूत में। सुशी बुआ दर्द से बिबिला उठीं ,"मार देगी नेहा अपनी बुआ को। धीरे धीरे चोद तेरी माँ की तरह इस चूत में से तेरे तरह की रंडी भांजी नहीं निकली है अभी तक। "
छोटे मामू के मज़बूत फावड़े जैसे हाथों में बुआ को हिलने डुलने नहीं दिया। मैंने बुआ के कुंवारे गर्भाशय की ग्रीवा को महसूस किया। मैंने एक एक कर अपनी उँगलियों से बुआ के गर्भाशय के ग्रीवा उर्फ़ र्सर्विक्स के द्वार को खोलने लगी। जैसे ही मुझे लगा की मेरी पाँचों उँगलियों की नोक उनके गर्भाशय के नन्हे द्वार में फंस गयीं है। मैंने बेदर्दी से अपना हाथ पाँचों उँगलियों के पोरों तक ठूंस दिया। बुआ की चीख गूँज उठी कमरे में। दर्द से बिलबिलाती बुआ ने गुहार लगायी, "मर गयी बेटी धीरे धीरे मार अपनी बुआ की चूत मुट्ठी से। "
मैंने बुआ की गुहार को अनदेखा कर अपनी उंगलयों को घुमा घुमा कर बुआ के गर्भाशय के द्वार को चौड़ाने लगी।जब मुझे लगा की बुआ की चीखें सिसकारियों में बदल गयीं हैं। तभी मैंने पूरे ज़ोर से ठूंस दिया अपना पूरा हाथ बुआ के गर्भाशय में। बुआ तपड़ उठी दर्द से जैसे किसी ने उन्हें बिजली के जीवित तार से छु दिया हो। 
मेरा हाथ और कलाई अब बुआ की चूत में थे। मैंने धीरे धीरे बस के गर्भाशय की चुदाई शुरू कर दी। मेरे निर्मम मुट्ठ-चुदाई से बुआ की कोमल चूत और गर्भाशय के दीवारों से खून निकल गया था। पर अब अचानक बुआ कल्पने लगीं वासना के ज्वर से , "चोद दे अपनी बुआ की चूत नेहा बेटी। फाड़ दाल अपनी बुआ के बंजर गर्भ को। हाय मैं झड़ने लगीं हूँ। और जोर से नेहा आ आ आ आ आ। "
कमरे में अब भीषण चुदाई का माहौल बन गया। मैं अब पागलों की तरह निर्मम धक्कों से बुआ की चूत और गर्भाशय को कोहनी तक हाथ ठूंस कर चोद रही थी। मेरे दोनों मामा भी उतनी ही बेदर्दी से मेरी चूत और गांड चोद रहे थे। पता नहीं कब तक चला इस चुदाई सिलसिला। डेढ़ घंटे बाद बुआ और मैं बेहोशी के आलम में दोनों मामाओं के गरम वीर्य को सटक रहीं थीं। 
बुआ की चूत में से टपकते खून की बूंदो को चाट कर साफ़ कर दिया मैंने। 
फिर बुआ ने सुनहरी शर्बत माँगा अपने पति और जेठ से। दोनों ने बारी बारी से अपना सुनहरी गर्म शर्बत आधा आधा बाँटा हम दोनों के बीच में। हमारी संतुष्टि के बाद बुआ और मैंने भी दोनों मामाओं को अपन्ना सुनहरी शर्बत ईमानदारी से आधा आधा बाँट कर पिलाया। उस रात कितनी ही मुद्राओं में चोदा बड़े और छोटे मामू ने मुझे और बुआ को। सुबह जब मैं उठी तो बहुत देर हो गयी थी। 
 
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१७१ 
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नाश्ते की मेज़ पर नानाजी और बुआ थीं। बाकी सब अपने प्रोग्राम और योनाओं के मुताबिक कहीं न कहीं चले गए थे। 
मैं दौड़ कर नानाजी की गोद में बैठ गयी। उन्होंने अखबार बंद कर के मुझे अपनी मज़बूत बाँहों में भींच लिया। बुआ ने मुझे नाश्ता परोसा और फिर चिढ़ाया , "देख मेरे ससुरजी कितने बेचैन थे तुझे देखे बिना। रोज़ पूछते थे कि कब वापस आएगी नेहा अकबर भैया के घर से ?अब आराम से सुनाना अपने नानू को पूरे का पूरा किस्सा। "
मैं शर्म से लाल हो गयी और अपने मुँह ननु की घने बालों से ढके सीने में छुपा लिया। 
नानाजी और बुआ हंस पड़े , "बहु और मत छेड़ो हमारी नन्ही नातिन (धेवती) को। वैसे तेरा क्या प्लान है सुशी बेटी। "
सुशी बुआ इठला कर बोलीं ,"नन्ही नहीं है आपकी प्यारी धेवती बाबूजी। आपके दोनों बेटे अपनी बहन को ले गए है दिन भर खरीदारी करने को। आखिर खास दिन है आज आप चारों के लिए। पारो आज बहुत थकी थी तो मैंने उसे आराम करने को कह दिया है। इसीसलिए मैं अपने पापा की मालिश करने जाने वालीं हूँ।अक्कू भैया (यानि मेरे पापा ) मम्मी के साथ झील पर गए हुए है। "
पारो हमारे घर की मालिश की ज़िम्मेदार थी। पारो दीदी पांच फुट दो इंच की गठीली सुंदर स्त्री थी। उसकी शादी रिश्तेदारों के धोके से एक कुटिल व्यक्ति से हो गयी। जब उनके ऊपर होते अत्याचार के बारे में मामाओं को पता चला तो उन्होंने न सिर्फ उनके निकम्मे पति को सबक सिखाया पर उन्हें घर ले आये। अब पारो और उनके विधुर पिताजी प्रेम से पारो की बेटी पाल रहे थे । उसके पिता रामचंद उर्फ़ जग रामू काका हमारे घर के मुख्य बावर्ची थे। 
नानाजी ने मुस्कुरा कर मुझे पूछा ,"नेहा बेटी तेरा क्या प्लान है ?"
मैं कल रात की भयंकर चुदाई से थकी हुई थी पर ना जाने क्यों मुझे अब बुआ और नानाजी के अनकहे विचार साफ़ दिखने लगे। 
"नानू, यदि बुआ दादू की मालिश करेंगी तो मैं आपकी मालिश करूंगी आज।" मैंने नानू के होंठो को चूमा प्यार से। 
"याद है जब तू बोर कर देती थी नानू और दादू को "डंडी कहाँ छुपाई " खिलवा कर ? आज क्यों नहीं खेलती वो खेल पर नए तरीके से ? क्या मैंने गलत कहा बाबू जी?" सुशी बुआ अब पूरे प्रवाह में थीं। 
"बहु जैसा नेहा कहेगी उसके नानू और दादू वैसे ही खेलने को तैयार हैं ,"मुझे नानू के शब्दों में और कुछ ही सुनाई दिया और मैं रोमांचित हो गयी उन अनकहे शब्दों के विचारों से। 
सुशी बुआ ने हमारे घर की खासियत मालिश के तेल का सोने का डोंगा मुझे थमा दिया। मालिश का तेल गोले और सरसों के तेल के अलावा, ताज़े मक्ख़न का ख़ास मिश्रण था। 
सुशी बुआ वैसा ही सोने का दूसरा डोंगा लेकर अपनी विशाल गांड हिलती दादू के कमरे की ओर चल दीं। 
"नानू चलिए मैं भी आपकी मालिश करती हूँ ,"नानू ने मुझे बाहों में उठा लिया। जैसा घर का माहौल था। मैंने सिर्फ पापा की टी शर्ट पहनी थी। मुझे उसी समय याद आया कि नीचे मैंने पैंटी नहीं पहनी थी। पर नानू की बाहों में झूलते मुझे कोई शर्म नहीं आयी। शायद अब मुझे अपने घर मके सदस्यों के बीच अथाह प्रेम की कुंजी मिलने वाली थी। 
नानू ने मुझे कमरे में लेजा कर फर्श पर नीचे खड़ा कर दिया ,"नानू चलिए बिस्तर में। कपड़े उतारिये आज नेहा मालिश्ये की मालिश से आप सब मालिशें भूल जायेंगें। " मैंने छाती बाहर निकलते हुए नाटकीय अंदाज़ में कहा। 
नानू हँसते हुए शीघ्र अपना कुरता और पजामा निकाल कर बॉक्सर शॉर्ट्स में खड़े थे। उस उम्र में भी नानू का पहलवानों जैसा बालों से भरा शरीर ने मुझे पहली बार नानू को एक पुरुष की तरह देखने के लिए विवश कर दिया। मेरे विचारों में अकबर चाचू के पारिवारिक प्रेम की यांदें ताज़ा हो गयीं। नानू पेट के बल लेट गए थे बिस्तर पे। 
"नानू कहीं पूरे कपड़े बिना उतारे कोई अच्छी मालिश हो सकती है ?"मैंने नानू के बॉक्सर को पकड़ कर नीचे खींच कर उतर दिया, नानू ने अपने भारी भरकम बालों से भरे कूल्हों को उठा कर पेरी मदद की। 
नानू का विशाल शरीर अब मेरी आँखों के सामने था। विशाल पेड़ के तनो जैसे जाँघे , चौड़ी कमर और बहुत चौड़ा सीना , बहु बलशाली भुजाएं। मुझे अपनी चूत में जानी पहचानी कुलबुलाहट होती महसूस होने लगी। 
"नेहा बेटी पारो अपने कपड़े तेल से ख़राब होने से बचाने के लिए सब उतार कर मालिश करती है ,"यदि नानू की आवाज़ में नटखटपन था तो मुझे अपने कानो में सांय-सांय जैसी आवाज़ों में नहीं समझा पड़ा। 
मैंने बिना एक क्षण सोचे अपनी लम्बी टी शर्त उतर दी। मैंने खूब तेल लगा कर ज़ोर से मालिश की नानू के कमर कन्धों, जांघों की। फिर मैं घोड़े की तरह उनकी जाँघों के ऊपर स्वर हो कर उनके विशाल चूतड़ों की मालिश करने लगी। नानू की साँसे बहुत मधुर मधुर लग रहीं थी मुझे। मैंने उनके चूतड़ों को फैला कर उनकी घने बालों से ढकी गांड के ऊपर मालिश का तेल गिरा कर अपनी ऊँगली से चूतड़ों की दरार की मालिश के बहाने उनकी गांड की छेद को सहलाने लगी। मेरी चूत में रस की बाढ़ आ गयी। 
मैंने सूखे गले से निकली आवाज़ में कहा ,"नानू अब पलट जाइये। आपके सामने की मालिश का नंबर है अब। "
नानू बिना कुछ बोले अपनी पीठ पर पलट गए। इन्होने कई सालों के बाद अपनी प्यारी षोडसी धेवती के विकसित होते नग्न शरीर को पुरुष की निगाहों से सराहा और मैं अपने नेत्र नानू के विशाल अजगर से नहीं हटा पायी। बड़े मामू जैसा विशाल मोटा मूसल झूल रहा था नानू की वृहत जाँघों के बीच में। 
मैंने हम दोनों का ध्यान हटाने के लिए ऐसे व्यवहार किया जैसे मैं हर रोज़ नग्न हो कर उनकी मालिश करती थी। नानू आँखें मूँद ली शायद आगे आने वाले मालिश के आनंद के लिए। 
मैंने उनकी विशाल सीने की तेल लगा लगा कर ज़ोर से मालिश की। 
फिर उनके काफी बाहर निकले पेट की मालिश। मेरी आँखें नानू के अजगर जैसे महा लंड से हट ही नहीं पा रहीं थीं। मैंने दिल मज़बूत करके अपना ध्यान नानू की जाँघों पर लगाया। मैंने उनके पैर की हर ऊँगली की मालिश करते हुए फिर से उनकी जाँघों को तेल से मसलते हुए उनकी जांघों के बीच दुबारा पहुँच गयी और मरी चीख निकलते निकलते रह गयी। 
नानू का लंड अब खम्बे जैसा तन्ना कर्व थरथरा रह था। मेरा गला सूख गया। मेरी साँसें भारी हो गयीं। अब मेरी आँखें नानू के लंड से हटने में पूर्णरूप से अशक्षम थीं। नानू का लंड ने मानो मुझे सम्मोहित (हिप्नोटाइज़) कर दिया था। 
"नानू अब मैं आपके ख्माबे की मालिश करने लगीं हूँ। पारो भी तो करती होगी इसकी मालिश," मेरा हलक सूख चूका था रोमांच से। मेरी आवाज़ मेढकों जैसे टर्र-टर्र की तरह भारी थी। 
"बेटा पारो कोई हिस्सा नहीं छोड़ती ,"नानू की आखें बंद थी और उनके होंठों पर मंद मंद मुस्कान खेल रही थी। 
मैंने खूब सारा तेल लगा कर कंपते हाथों से नानू के महालँड को पकड़ लिया। परे दोनों हाथों की उँगलियाँ नानू के लंड की परिधि को घेरने में पूरी तरह असफल थीं। नानू का लंड अपने बेटों जैसा लम्बा मोटा था। आखिर सेब पेड़ से ज़्यादा दूर तो नहीं टपकेगा। 
मैंने मन लगा कर तेल से चिकेन नानू के लंड को खूब ज़ोर से सहला सहला कर उसकी मालिश की। अब मुहसे रुका नहीं जा रहा था। मैं कुछ बोलना ही चाह रही थी कि नानू ने प्यार से कहा ,"नेहा बेटा पारो से मत कहना पर इतनी अच्छी मालिश तो मुझे हमेशा याद रहेगी। अब तू तक गयी होगी यदि तेरा मन करे तो हम "डंडी कहाँ छुपाई" खेल सकते है।"
मैं अब नानू के तेल से लिसे चकते महा लंड को अपने नहीं हाथों से सहला रही थी मुझे पता नहीं कहाँ से साहस आ गया , "नानू आप बुआ वाले नये खेल की बात कर रहें हैं या बचपन वाले खेल की। "
"नेहा बेटा अब तो तू बड़ी हो गयी है शायद बचपन वाले खेल से जल्दी ऊब जाएगी," नानू ने अचानक आँखें खोल दीं। मैं शर्म गयी पर मेरे हाथ नहीं हिले नानू के लंड के ऊपर से। 
"नानू मैं छुपाऊं डंडी को ?"मैंने थरथरती आवाज़ में पूछा।
"हाँ बेटा जहाँ मर्ज़ी हो छुपा लो डंडी को फिर मैं कोशिश करूंगा ढूँढ़ने की ,"नानू अब मुस्कुरा कर मुझे बेचैन कर रहे थे। 
उस खेल में एक खिलाड़ी डंडी को चुप देता था एक खांचे में और फिर दुसरे को अंदाज़ लगाना होता था की किस खांचे में थी डंडी। यदि सही अंदाज़ लग जाता तो दुसरे को उस खांचे के नंबर मिलते अन्यथा छुपाने वाले को नंबर मिल जाते।
मैंने अब सम्मोहित कन्या की तरह एक तक नानू के एक आँख वाले अजगर को स्थिर कर अपनी नन्ही चूत के द्वार को उनके बड़े सेब जैसे सुपाड़ी के ऊपर टिका दिया।
 
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१७२/१७३ 
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नानू ने मेरी कमर पकड़ ली अपने मज़बूत हांथो से। मैं भूल गया बुआ के मालिश वाले तेल की करामत। जैसे मैंने अपने हाथों को नानू के लंड से उठाया मेरी चूत बिजली के रफ्तार से उनके तेल से लिसे महालँड के ऊपर फिसल गयी। मैं चीखते हुए नानू की छाती के ऊपर गिर गयी। 
नानू ने मेरे कान में फुसफुसाया, "नेहा बेटा , हमें पता है आपने डंडी कहाँ छुपाई है."
मैं अब वासना से पागल हो चुकी थी ,"नानू मैंने डंडी नहीं खम्बा छुपा लिया है आपकी धेवती की चूत में। अब आप पानी धेवती की चूत का उद्धार कर दीजिये। "मैं बिलबिलाते हुए बोली। 
नानू ने मुझे कमर से पकड़ कर गुड़िया की तरह ऊपर नीचे करने लगे।तेल की माया से उनका महालँड मेरी चूत में जानलेवा ताकत से अंदर बाहर आ जा रहा था। 
मेरी चूत रस से तो भरी हुई थी और मैं इतनी देर से गर्म थी कि मैं पांच धक्कों के बा भरभरा कर झड़ गयी ,"नानू आह झाड़ गयी मैं नानू ऊ ऊऊऊ ऊंणंन्न," मेरी चूत में से अब अश्लील फचक फचक की आवाज़ें फूट पड़ीं। आधे घंटे तक नानू ने मुझे अपने ऊपर बैठ आकर चोदने के बाद निहुरा दिया बिस्तर पे और फिर तीन भीषण धक्कों में अपना पूरा लंड थोक दिया मेरी नन्ही चूत में। 
अब मेरी चूचियां नानू के खेलने के लिए लटक रहीं थीं। नानू ने मेरी चूत का मर्दन किया प्यार भरी निर्ममता से। मैं झड़ते झड़ते थकने लगी। 
नानू ने मुझे पीठ के ऊपर पटक कर पूरे अपने वज़न से दबा कर फिर से मेरी चूत में ठूंस दिया अपने महा विकराल लंड। 
मुझे छह बार और झाड़ कर नानू ने मेरे अल्पविकसित गर्भाशय को नहला दिया अपने गरम जननक्षम गड़े वीर्य से। उनके लंड से फूटती बौछार एक दो गुहारें नहीं थी पर मानसून जैसे सैलाब की बारिश थी। 
नानू ने मुझे प्यार से चूम कर मदहोश कर दिया। मैंने शर्मा कर अपना लाल मुँह नानू के सीने में छुपा लिया, "नानू आप जीत गए इस बार। आपका खम्बा आपकी नातिन की चूत में ही छुपा था। "
"नेहा बेटा , हम दोनों ही जीत गए है और अगली कई बार ,"नानू ने मेरे थिरकते होंठो को चूसते हुए कहा। 
"नानू अब कहाँ और छुपायेंगे अपने खम्बे को ?" मैंने अपनी सहमत खुद बुलवाने का इंतिज़ाम कर लिया था। 
"नेहा बेटा अभी एक और मीठी, घरी रेशमी सुरंग है हमरो नातिन के पास। इस बार खम्बा वहीँ छुपेगा ," नानू ने मुस्कुरा कर मुख्य फिर निहुरा दिया और घोड़ी बना दिया। 
नानू ने तेल से मेरी गांड भर दी और फिर खूब तेल लगाया अपने महा लंड के ऊपर, "नेहा बेटा फ़िक्र मत करना। धीरे धीरे डालेंगे तेरी गांड में। "
मैं बिलख उठी ,"नानू धीरे धीरे क्यों ? अपनी नातिन की गांड पहली बार मार रहें है आप। चीखें न निकलें तो आपकी नातिन को कैसे याद रहेगी पहली बार। "
फिर नानू ने जो किया उस से मेरी जान निकल गयी। नानू ने तेल मुझपे दया दिखने के लिए नहीं लगाया था पर उन्होंने मेरी गांड में अपना लंड भयंकर आसानी से ठूंसने के लिए लगाया था। मेरी चीख एक बार निकली तो मानो सौ बार निकली। नानू का सुपाड़ा मुश्किल से अंदर घुस था कि नानू ने अपने बलशाली शरीर की ताकत से अपना चिकना तेल लिसा विक्राल लंड तीन भीषण धक्को से जड़ तक मेरी गांड में ठूंस दिया। 
मेरी आँखे भर गयीं दर्दीले आंसुओं से, नानू ने बिना मुझे सांस भरने का मौका दिए मेरी गांड भीषण तेज़ी और तख्त से मारनी शुरू की तो न धीमे हुए और न रुके एक क्षण को भी। मेरी चीखें सिसकियों में बदल गयीं। मेरी गांड की महक से कमरा भर गया। नानू का लंड रेलगाड़ी के इंजन ले पिस्टन की तरह मेरी गांड का मर्दन कर रहा था। 
डेढ़ घंटे तक नानू ने बिना थके मारी मेरी गांड। मैं तो झड़ते झड़ते निहाल हो गयी। नानू ने अपनी नातिन की गांड उद्धार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मैं थक के चूर चूर हो गयी नांउं ने मुझे धक्के से पट्ट , मुँह के बल , बस्तर पे लिटा कर मेरी गांड को अपने गरम वीर्य से भरने लगे। मेरी गहरी गहरी साँसे मेरे कानों में गूँज रहीं थीं।
नानू ने मुझे बाहों में समेत कर होश में आने दिया। मैंने आज्ञाकारी नातिन की तरह नानू के अपनी गांड के रस से लिसे लंड को चाट चाट आकर बिलकुल थूक से चमका दिया। नानू ने भी मेरी गांड पे भयंकर चुदाई के मंथन से फैले गांड के रस को चूम चाट कर साफ़ किया। 
फिर नानू मुझे नहलाने ले गए स्नानग्रह में।
मुझे ज़ोर से पेशाब आ रहा था पर नानू ने मुझे रोक दिया और मैंने शरमाते हुए नानू का खुला मुँह भर दिया अपने छलछलाते सुनहरी शर्बत से। नानू ने प्रेम से उसे मकरंद की तरह सटक लिया ,पर पहले खूब मुँह में घुमा घुमा कर मुझे ज़ोर से पेशाब आ रहा था पर नानू ने मुझे रोक दिया और मैंने शरमाते हुए नानू का खुला मुँह भर दिया अपने छलछलाते सुनहरी शर्बत से। नानू ने प्रेम से उसे मकरंद की तरह सटक लिया ,पर पहले खूब मुँह में घुमा घुमा कर मेरे शर्बत को चखने के बाद ही सटका उसे। 
अब मेरी बारी थी नानू के अमृत को चखने की। नानू ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी। मेरी तरह उनकी वस्ति भी भरी हुई थी और मुझे मन भर कर उनका अमृत स्वरुप सुनहरी शर्बत मिला पीने को।
मेरी गांड में ना केवल पिछले दिन का हलवा भरा हुआ था, उसके ऊपर कल रात की भयंकर चुदाई में दोनों मामाओं ने गांड भी दिल खोल कर मारिन थी। उसके ऊपर नानू ने गिलास भर वीर्य से लबालब भर दिया था। नानू मेरी हालत देख कर मुस्कुराये और मुझे सिंहासन पर बिठा कर मेरी टांगें अपने कन्धों पर दाल दीं। अब उन्हें मेरे विसर्जन का पूरा नज़ारा उनकी आँखों के सामने था। मैं पहले तो बहुत शर्मायी पर नानू के कहने से और मेरी खुद को रोकने की असफलता से मैंने अपनी गुदा को ढीला खोल दिया जैसे प्रकृति ने निश्चित किया था उसका प्रयोग। नानू ने उस मोहक दृश्य को सराहा जब तक मेरा विसर्जन पूरा खत्म नहीं हो गया। नानू की बारी थी अब पर उन्होंने मुझे खुद साफ़ नहीं करने दिया पर मुझे घुमा कर मेरे चूतड़ों की दरार को चाट चाट कर साफ़ ही नहीं किया बल्कि गुदाद्वार में जीभ घुसाकर अंदर तक साफ़ किया। 
अब मैंने नानू के विसर्जन का मनमोहक दृश्य अपने मस्तिष्क में भर लिया। मैं भी तो नानू की नातिन थी। मैंने भी उनके विशाल चूतड़ों को फैला कर बिलकुल साफ़ कर दिया उनकी दरार को और गुदाद्वार को। 
फिर नानू और मैंने उनके दांतों के ब्रशसुबह की सफाई की। नहाते समय नानू ने साबुन लगते लगते मुझे फिर से गरम कर दिया। इस बार नानू ने मुझे शॉवर की दीवार से लगा कर निहुराया और फिर बिना तरस खाये मेरी चूत में ठूंस दिया अपना विक्राल लंड तीन धक्कों में। पहले तो मैं चीखी हमेशा की तरह फिर सिसकारियां मरते हुए झड़ गयी। नानू ने आधा घंटा चोदा मुझे मैं ततड़प उठी अनेकों बार झाड़ कर। आखिरकार नानू ने एक बार फिर से मेरे किशोर गर्भाशय को अपने वीर्य से नहला दिया। 
हम दोनों को खूब भूख लगी थी। मैंने नानू की गोल्फ टी शर्ट पहन ली। मैं नानू की गोद में बैठी थी। खाने पर मैंने नानू से पूछा,"नानू आज क्या ख़ास दिन है मम्मी, आपके और मामाओं के लिए ?"
नानू ने मुझे चूमा ,"आज रजत सालगिरह (सिल्वर एनिवर्सरी) है हमारे और सुन्नी के संसर्ग की।"
मैं हतप्रभ रह गयी। मम्मी मुझसे भी चार साल छोटी थीं जब उन्होंने पहली बार नानू को अपना कौमार्य सौंपा था। उनके बड़े भाई कहाँ पीछे रहने वाले थे। 
"नेहा बेटा , हमारे सुईठे के साथ एक गलियारा है जिस से शयन कक्ष और स्नानगृह साफ़ साफ़ दिखता है। अगर तेरा दिलम चाहे तो वहां से अपनी मम्मी के कौमार्यभाग की पच्चीसवीं ( २५वीं ) वर्षगांठ का अनुष्ठान देख सकती है। "नानू ने मेरे स्तनों को टी शर्त के ऊपर से मसलते हुए मुझे आमंत्रित किया। मैं अपनी मम्मी इस ख़ास वर्षगांठ का समारोह किसी भी वजह से देखने से नहीं चूक सकती थी। 
नानू को मैंने अकेला छोड़ दिया क्योंकि उन्होंने शयन ग्रह को अपन बेटी के अनुष्ठान के लोए तैयार करना था। 
मैं नानू के खोले नए राज का प्रयोग करने का उत्साह मुश्किल से दबा पा रही थी।
 
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१७४ 
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मैं नानू को उनके सुइट की ओर जाता छोड़ कर सुशी बुआ को चोरी छुपे देखने चल पड़ी। दादू दादी का मेहमान सुइट भी नानू जैसा था। अब मैं छुपे गलियारे में घुस गयी और मुझे तुरंत अपनी शैतानी भरी जस्सोस्सि का इनाम मिल गया। कमरे में दादू बिलकुल नंगे थे। उनका नानू जैसा ऊंचा पहलवानी घने बालों से भरा शरीर उनकी तोंद से और भी बलशाली लग रहा था। 
सुशी बुआ नीचे बैठी अपने पिता के विकराल लंड को चूस रहीं थीं। दादू का शरीर तेल से लिसा हुआ था। वैसे ही सुशी बुआ का शरीर भी। लगता था की दादू ने भी अपनी बेटी की मालिश भी करी थी। 
"सुशी बेटा अब हमें अपनी बेटी की चूत दुबारा चाहिए," दादू ने कहते हुए बुआ को उठा कर बिस्तर पे निहुरा दिया और दानवीय आकार का अपना मोटा अत्यंत लम्बा लंड बिना दया दिखाए अपनी बेटी की चूत में ठूंस दिया। सुशी बुआ चीखीं पर दर्द के बावजूद अपने पापा को उसत्साहित करने लगीं, "पापा और ज़ोर से चोदिये अपनी बेटी की चूत। भर दीजिये अपनी बेटी का गर्भाशय अपने वीर्य से। "
कमरे में बुआ की सिसकारियां और दादू के लंड और बुआ की चूत के संसर्ग से उपजीं फचक फचक की अव्वाज़ें गूंज उठीं। 
दादू ने दिल भर कर अपनी बेटी की चूत मारी। आधे घंटे में बुआ का झड़ झड़ के बुरा हाल हो गया। दादू ने पानी बेटी को गुड़िया की तरह उठा कर चित बिस्तर पे लिटा कर बुआ की गदरायी जांघें हवा में उठा कर चौड़ी फैला दीं। 
अब बुआ की घने घुंगराले गीली झांटों से ढकी खुली छूट का पूरा नज़ारा मेरी आँखों के सामने था। दादू ने बिना देर लगाए अपनी बिलखती सिसकती बेटी की चूत एक बार फिर से भर दी अपने महा लंड से। बुआ सिसक सिसक कर गुहार लगा रहीं थी ,"पापा चोदिये अपनी बेटी को। आह और ज़ोर से उन्। .. उन्। .... मार डाला पापा आपने। झड़ गयी मैं फिर से। "
दादू बेदर्दी से अपनी बेटी की चूचियां मसल रहे थे। ऐसा लगता था कि जैसे दादू बुआ के विशाल भारी चूचियों को उनकी छाती से उखाड़ने का प्रयास कर रहे थे। बुआ की सिसकियाँ उनके पापा की बेदर्दी से और ऊँची हो गयीं। 
दादू ने तीस चालीस मिनटों के बाद हुंकार कर अपनी बेटी की चूत में अपने वीर्य की बारिश कर दी। बुआ हलकी चीख के साथ फिर से झड़ गयीं। मुझे लग रहा था कि यह चुदाई सुबह से चल रही थी और बुआ का थकान बहुत गहरी थी। मेरा अंदाज़ा ठीक निकला दादू ने अपनी इंद्रप्रस्थ की परी जैसी सुंदर बेटी की गदरायी काया को अपनी बाहों में भरकर बिस्तर पे कुछ देर आराम करने के लिए लेट गए।
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मैं चुपचाप वहां से निकल गयी और अपने कमरे में जा आकर दौड़ने के कपड़े पहन कर बाहर निकल पड़ी। अब मैं दादू की टी शर्ट के नीचे सिर्फ ट्रैक -सूट के पैंट पहने थी। मैंने धीरे धीरे अपनी गति बड़ा दी। हालाँकि वसंत के आने की तैयारी में थी पर तब भी हवा में ठंडापन था। पर नुझे शीघ्र ही पसीना आने लगा। पांच किलोमीटर दौड़ कर मैं वापस मुड़ चली घर की ओर। 
अब मैं पसीने से तराबोर थी और पसीने की बूंदे मेरी नाक की नोक के ऊपर मोतियों की तरह रुक कर नीचे गिर पड़तीं। मुझे ज्ञात नहीं था पर दादू की पुरानी टी शर्त इतनी झीनी थी कि मेरे पसीने से भीग कर वह बिलकुल पारदर्शक हो गयी थी। 
मैं हाँफते हाँफते घर के बाहर टेनिस कोर्ट के पास पहुँच कर गोल रास्ते के ऊपर च पड़ी। इसे गोल रास्ता इसलिए कहते थे क्योंकि इस रास्ते पर घर में काम करने वालों के मकान थे। जिससे किसीको यह महसून न हो की उनका घर किसी और के घर से दूर था। 
मुझे एक घर से दर्द से सिसकने की आवाज़ें सुनाई पड़ी। मैं नादानी में उस तरफ मुड़ पड़ी। खुली खिड़की से मुझे तुरंत अपनी गलती का आभास हो गया। यह घर हमारे सुरक्षा-अधिकारी का था। राजमनोहर सिंह, जग राज चाचा, चालीस साल के अत्यंत बलिष्ठ फ़ौज से रिटायर्ड थे। उनकी एक साल छोटी पत्नी रत्ना थीं। मनोहर बहुत चौड़े बलशाली काळा भुजंग पुरुष थे। बहुत लम्बे तो नहीं फिर भी पांच फुट आठ नौ इंच लम्बे दानवीय आकार के मालिक थे ।उनका चेहरा सुंदर तो नहीं पर मर्दाने आकर्षण से परिपूर्ण था। रत्ना चाची पांच फुट की गठीली गहरे रंग के शरीर की मलिका थीं। 
कमरे में रत्ना बिलकुल नग्न थीं और उनके सामने एक और उनके जैसे ही काया की मालकिन पर बहुत युवा लगने वाली कन्या निहुरी हुई थी। राजू चाचा उस कन्या के गदराये चूतड़ों को फैला कर पीछे से उसकी चूत और गांड चाट रहे थे। 
उस कन्या की सिसकियाँ निकल रहीं थीं ,"पापा हाय कितनी याद आती है आपकी कैसे चूसते है प्यार से अपनी बेटी की चूत। "
मैं तुरंत समझ गयी की वह कन्या कोई और नहीं राजू चाचा और रत्ना चाची की लाड़ली सुकन्या थी। सुकन्या, जिसको सब प्यार से सुकि कहते थे , का विवाह एक सम्पन परिवार में करवाया था नानू ने दो साल पहले। सुकि दीदी मुझे समय तीन साल बड़ी थीं। 
"सुकि और पापा का लंड याद नहीं तुझे। कितने वर्षों से तेरी सेवा की है तेरे पापा के लंड ने। अब शादी के बाद क्या दामाद का लंड इतना भा गया है तुझे ,"रत्ना चाची ने प्यार मारा सुकि दीदी के ऊपर। 
"मम्मी तेरे दामाद का लंड बहुत लम्बा तगड़ा है पापा के जैसा पर किसी भी बेटी के लिए उसके पापा के लंड अच्छा भला कौनसा लंड हो सकता है। कैसे भूल जाऊंगीं सात साल पहले की रात जब पापा ने मेरा कौमार्य भंग किया था। उस प्यार भरी रात मुझे अब तक आतें हैं। आह पापा ऐसे ही घुसा दीजिये मेरी गांड जीभ। मम्मी भूरा कहाँ है , बेचारे का ध्यान भी तो रखिये ," सुकि दीदी सिसकते हुए बोलीं। 
भूरा राजू चाचू का वफादार ग्रेट डेन और सेंट बर्नार्ड का मिश्रण था। भूरे के कुदरती प्यारी प्रकृति और वफ़ादारी से वोह सबका चहेता था। 
जैसे ही उसका नाम लिया तो भूरा तुरंत कमरे में तूफ़ान की तरह आ गया। रत्ना चाची ने प्यार से उसे अपनी चूत सूंघने दी। भूरा का लंड बाहर निकल पड़ा। लाल रंग का लम्बा मोटा लंड। थरथरा रहा था आने वाले आनंद के विचार से। भूरे ने अपनी लम्बी जिव्हा से रत्ना चाची के मूंग को छाता और जब उसकी जीभ उनकी नासिका में घुस जाती तो रत्ना चाची खिलखिला कर हंस पड़ती। 
"सुकि बेटी तेरे जाने इन दोनों मर्दों मुझ अकेली जान ही पड़ गयी है। तुझे दोनों कभी भी नहीं भरता ," रत्ना चाची ने कोमल हाथों से भूरे के लंड को सहलाया।
"पापा माँ शिकायत कर रही या मुझे चिड़ा रही है ," सुकि ने सिसकते हुए कहा , "मम्मी अब मैं पापा के लंड अपनी चूत में लिए बिना नहीं रह सकती। पापा से चुदने के बाद भूरे की बारी है। तब तक तू इसको अपनी रसीली चूत दे दे। "
राजू चाचू ने बिना एक क्षण बर्बाद किये अपने लम्बे मोटे लंड को अपनी बेटी की चूत के ऊपर टिका दिया। उधर रत्ना चाची भी निहुर कर घोड़ी बन गयीं थीं ," आका भूरा बेटा।आ बेटा और भर दे अपनी मम्मी की चूत अपने लंड से। "
भूरा जैसे सारी बातें समझता था। उसने लपक आकर अपनी दोनों आगे की टांगें रत्ना चाची के सीने दोनों ओर बिस्तर पे टिका कर अपने पिछवाड़े को हिला हिला कर अपनी मम्मी की चूत ढूंढ़ने लगा। फिर एक क्षण में कमरे में दो चीखें गूँज उठीं। राजू चाचू का लंड और भूरे का लंड सुकि दीदी और रत्ना चाची की चूत में जड़ तक ठूंस गए। 
भूरे ने शुरू से ही बिजली की तेज़ी से अपनी मम्मी की छूट मारनी शुरू की तो रुकने का नाम ही नहीं लिया। रत्ना चाची की चीखें और सिसकियाँ उबलने लगीं, "हाय मेरे लाल मेरे बेटे मार ऐसे ही अपनी माँ की चूत। "
"पापा धीरे धीरे दर्द होता है आपका मूसल लेने में ,"सुकि दीदी बिलबिलायीं। 
पर न तो राजू चाचू धीमे हुए और न ही भूरा। सुकि दीदी और रत्ना चाची की सिसकियाँ कमरे में संगीत से स्वर छेड़ने लगीं। दोनों निरंतर झड़ रहीं थीं।अहदे घंटे के बाद भूरे ने एक भीषण धक्का लगाया और रत्ना चाची की वास्तविक दर्दभरी चीख उबाल पड़ी, "हाय बेटा अपनी गाँठ मत दाल अपनी माँ के अंदर। " पर तब तक देर हो चुकी थी और भूरे ने अपनी मोती गाँठ रत्न चाची की चूत में ठूंस दी थी। अब चाचीअपने बेटे के साथ बांध चुकी थीं। 
उधर राजू चाचू ने अपनी थकती बेटी को पीठ के ऊपर पलट कर बिस्तर पे फैन दिया और फिर बौराये सांड की तरह उसके ऊपर फिर से चढ़ाई कर दी। चाचू का लंड की हर दस इन्चें अपनी बेटी की चूत का निर्मम प्यारा मर्दन कर रहीं थीं। चाचू का लंड मेरे घर के पुरुर्षों से भले ही कम लम्बा और मोटा था पर उनकी चुदाई की खासियत बिलकुल जानलेवा थी। उनकी बेटी का बार बार झड़ कर बुरा हाल होने लगा था। तीस मिनटों के बाद चाचू ने भरभरा कर अपनी बेटी की चूत को अपने वीर्य से सींच दिया। सुकि दीदी सिसकते अपने पापा के गरम वीर्य की बौछार को सँभालते हुए फिर से झाड़ गयी। राजू चाचू अपनी बेटी के ऊपर हफ्ते हुए निढाल हो गए।
 
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१७५ 
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जब भूरे ने अपना लंड बाहर खींचा रत्ना चाची की तड़पती चूत में से तो उनकी चीख निकल पड़ी। मुझे समझ आया कि क्यों चाची बिलख रहीं थीं। भूरे का लंड के स्तम्भ के तले की गाँठ उसके लंड से दुगुनी या तीन गुना मोटी थी जो किसी भी चूत की धज्जियां उड़ाने में सक्षम थी। 
रत्ना चाची भी अनेकों बार झड़ कर निढाल अपनी बेटी के पास लेट गयीं। तब ही भूरे के आँखें मेरी आँखों से मिल गयी। उंसने ख़ुशी से कूदते हुए खिड़की पे आ कर मेरा मुँह चाटना शुरु कर दिया। मेरी तो शर्म से जान निकल गयी। अंदर रत्ना चाची, सुकि दीदी और राजू चाचू घबरा कर भौंचक्के हो गए। मैंने लड़कों की तरह खिड़की से अंदर कूद गयी और जल्दी जल्दी हड़बड़ा के मांफी मांगने लगी , "चाचू, चाची दीद मैं क्षमाप्रार्थी हूँ आपके प्रेम के संसर्ग को चोरी छिपे देखने के लिए। मुझसे रहा नहीं गया आपका प्यार देख कर। मैं इसको अपने परिवार के रहस्य की तरह सुरक्षित रखूंगी। पैन भी आज सारो सुबह अपने नानू के बिस्तर में थी। "
मेरे नानू के संसर्ग की बात सुन कर तीनों धीरे धीरे तनाव मुक्त होने लगे। 
आखिर सुकि दीदी ने मुझे कई गन्दी बातें सिखायीं थीं बचपने में ,"तो नेहा मेरी बहना तीरे कपड़े कौन उतारेगा। तू कोई मेहमान थोड़े ही है इस घर की। चल दौड़ के आजा मेरे पापा का लंड देख कैसा फड़फड़ा रहा है तुझे देख कर। "
मैंने एक क्षण लगाया नंगी होने में। राजू चाचू ने मेरे पसीने से लतपथ शरीर को ललचायी निगाहों से घूरा। मैं भी चाचू , रत्ना चाची और सुकि दीदी , के पसीने से दमकती काया को देख वासना से जलने लगी। 
चाचू ने मुझे बिस्तर पे फेंक दिया और फिर एक कांख पे लग गए चाचू और दूसरी कांख ले ली रत्ना चाची। मिलजुल कर लेरे पसीने से भीगी काँखें और सीने को चाट चाट कर मुझे लगभग झड़ने के कगार पे ले आये दोनों । उधर सुकि दीदी अब भूरे ले लंड से खेल रहीं थीं। मैंने पहले रत्ना चाची की बालों भरी कांखों को दिल खोल कर चूसा और फिर राजू चाचू की कांखों और सीने को। 
"पापा आप नेहा को चोदिये जब तक मैं भूरे के लंड को तैयार करतीं हूँ ,"सुकि दीदी ने आदेश दिया हम सबको और कौन टाल सकता था उनके आदेश को। 
मैं निहुर गयी रत्ना चाची की घने घुंघराली झांटों से ढकी भूरे के वीर्य से भरी चूत के ऊपर और पीछे से चाचू ने एक झटके में ठूंस दिया अपने लम्बा मोटा मेरी चूत में। चाची ने इस का अंदेशा लगते हुए दबा लिया था मेरा मुँह अपनी चूत के ऊपर। /
"चल नेहा बेटी चट्ट कर्जा मेरे बेटे की गाडी मलाई को मेरी चूत से। तब तक तेरे चाचू फाड़ेंगें तेरी चूत ,"रत्ना चाची ने अपनी टांगें फ़ैल दीं और मेरी जीभ घुस गयी उनकी चूत के अंदर। भूरे की मलाई का स्वाद नानू और मामाओं से बहुत अलग था। भूरे का वीर्य थोड़ा कम गाढ़ा और बहुत गरम और नमकीन था। 
राजू चाचू ने अब दमदार धक्कों से मेरी चूत की सहमत भुलवा दी। अगले आधे घंटे में मैं दस बार झड़ गयी और मैंने रत्ना चाची को भी पांच बार झाड़ दिया था। 
मैं फिर से झड़ने वाली थी की सुकि दीदी ने नए आदेश निकाले ,"पापा अब रुकिए। भूरा तैयार है नेहा के लिए। आप मेरी गांड मारिये। पापा पर आप झड़ना अपनी बेटी की चूत में। इस बार मैं आपसे बिना गर्भित हुए बिना सुसराल वापस नहीं जाऊंगी। "
राजू चाचू ने अपना लंड एक झटके से मेरी चूत से निक्कल लिया। सुकि दीदी ने भूरे को मुझ पर चढ़ा दिया। और फिर उसका लंड पकड़ कर मेरी चूत के ऊपर लगा दिया। भूरे ने एक भयंकर झटके में अपना पूरा लम्बा मोटा लंड मेरी कोमल चूत में ठूंस दिया।
रत्ना चाची ने फिर से मेरा मुँह अपनी चूत में दबा लिया और मेरी चीखें उनकी झांटों को गुदगुदी करने लगीं। मैंने भी चाची के मोटे भगोष्ठों को दांतों से काट कर उनकी चीख निकलवा दी। और फिर मैं किसी भी काम की नहीं रही। भूरे ने जब चोदना शुरू किया तो मैं उसकी भीषणता सी बिलबिला उठी। मेरा सारा शरीर उसकी हर टक्कर से हिल उठता। और मैं भरभरा के झड़ने लगी निरंतर हर तीन चार धक्कों के बाद। ऐसे तेज़ निर्मम चुदाई सिर्फ भूरा ही कर सकता था।
मेरा ध्यान सिर्फ अपनी चूत में बिजली की तेज़ी से चलते पिस्टन के ऊपर केंद्रित था। 
मुझे सुकि दीदी की दर्दभरी चीखें बहुत कम याद हैं। राजू चाचू ने अपनी बेटी की गांड में अपना मूसल तीन झटकों में जड़ तक ठूंस कर बेदर्दी से उसकी गांड का मंथन शुरू कर दिया , भूरे जैसी रफ़्तार से नहीं तो बहुत कम भी नहीं। आधे घंटे में मैं अनगिनत बार झड़ते हुए सिसक उठी। उधर चाची भी झड़ने लगीं थीं वैसे मेरा उनकी चूत का चूसना बहुत अच्छा नहीं था भूरे की अमंनवीय चुदाई की वजह से। 
सुकि दीदी भी भरभरा के झड़ रहीं थीं ,"पापा फिर से झाड़ दिया आपने अपनी बेटी को। पापा लेकिन आप झड़ना अपनी बेटी की चूत। " सुकि दीदी ने याद दिलाया अपने पापा को उन्हें गर्भित करने के वायदे को। 
"नेहा बेटी लेले भूरे की गाँठ अपनी नन्ही चूत में। दर्द तो होगा पर बहुत आनंद भी आयेगा ,"चाची ने मेरा मुँह कस के दबा लिया अपनी चूत में। और फिर मैं भीषण दर्द से बिलबिला उठी। भूरे के लंड की गाँठ अचानक बन गयी और उसने उसे जड़ तक मेरी चूत में ठूंस कर मुझे अपने अगली टांगों से जकड़ लिया। उसका मोटा लंड मेरी चूत में थरथरा रहा था। उसका बहुत गरम वीर्य मेरी चूत की कोमल दीवारों को जला रहा था। 
मैं उस दर्द और आनंद के मिश्रण के अतिरेक से अभिभूत हो गयी। मुझे पता नहीं चला कि भूरे का लंड आधे घंटे तक अटका रहा मेरी चूत में और मैं झड़ती रही हर दो तीन मिनटों के बाद। उधर पता नहीं कब चाचू ने थकी मांदी सुकि दीदी की गांड से अपना लंड निकाल कर उनके गर्भाशय को नहला दिया। चाचू ने अपनी बेटी की टांगें ऊपर उठा दीं और फिर लेट गए उसके ऊपर। 
जब हम को थोड़ा होश आया तो सुकि दीदी का दिमाग़ शैतान की तरह चलने लगा। उन्होंने मिल बाँट कर हम तीनो का सुनहरी शर्बत पिलाया अपने पापा को। फिर चाचू और भूरे का सुनहरी शर्बत मिला कर बांटा हम तीनो के बीच में। 
मैं उनके साथ तीन घंटे रही। भूरे ने चाची की गांड मारी और चाचू के ऊपर लेती चाची की चूत में ठुंसा हुआ था चाचू का लंड। पर चाचू झड़े अपनी बेटी की चूत में। 
फिर मेरी बारी थी चाचू के लंड के ऊपर घुड़सवारी की और भूरा तैयार था मेरी गांड की धज्जियाँ उड़ाने के लिए। मैं तो बेहोश सी हो गयी एक घंटे में। चाचू ने एक बार फिर अपनी बेटी की चूत भर दी अपने गाड़े वीर्य से। चाची ने मुझे अपने मुँह के ऊपर बिठा कर मेरी गांड में से फिसलते अपने भूरा बेटे का वीर्य सटक लिया। 
शाम हो चली थी। मैंने दीदी , चाचू, चाची और खासतौर पे भूरे को धन्यवाद दे कर घर की ओर चल पड़ी। जैसा मेरे घर में होने वाला था वैसे ही मुझे पता था कि रात के खाने के बाद चाचू, चाची और उनका बेटा भूरा और बेटी सुकि और मस्ती के लिए फिर से तैयार हो जायेंगें। 
 
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१७६ 
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मैं नहा धो कर तैयार हो गयी। मैंने खाकी निक्कर और टी शर्त पहन ली। मेरा सारा बदन दर्द कर रहा था। सुबह आधा दिन नानू ने रोंदा था। फिर दोपहर भर सुकि दीदी ,रत्ना चाची, राजू चाचू और उनके बेटे ने रगड़ रगड़ कर थका डाला था मुझे। पिच्छली रात से मैं न जाने कितनी बार चुद चुकी थी। 
सुशी बुआ ने मेरी चाल से समझ लिया कि मेरे नए अनुभव के बारे में। मुझे उन्हें विस्तार से बताना पड़ा। सुशी बुआ की आँखें फ़ैल गयीं भूरे की करामाती चुदाई के विवरण सुन कर। 
रात के खाने पर सारे परिवार में चुअल बाज़ी हो रही थी। मैंने देखा कि मम्मी थोड़ी बेचैन लग रहीं थीं। उनकी आँखें बिना संयम रखे बार बार अपने पापा और भाइयों के चेहरों को निहार रहीं थीं। 
"सुन्नी , यदि तुझे नींद आ रही हो तो बाबूजी के कमरे में सो जाना। मैं तो आज देर तक बात करूँगीं अपने भैया, पापा मम्मी के साथ। " सुशी बुआ ने हमेशा की तरह मीठा संदश भेजा। अब मुझे समझ आने लगे यह सब ढके छुपे सांकेतिक इशारे। मम्मी की शर्माहट से मेरा हृदय खिल उठा। शरमाते हुए मेरी अप्सरा जैसी मम्मी और भी सुंदर लगतीं थीं। 
दादू ने टीका लगाया , "निरमु आज हमारी बेटी ने जो मालिश की है उसके लिए तो हमारे पास कोई शब्द ही नहीं है। "
दादी हंस दीं ," बेटी नहीं मालिश करेगी अपने पापा की तो और कौन करेगा ? आज मुझे तो अपने बेटे के साथ बिताये दिन की यादें ध्यान कर अंकु के प्यार अभिभूत हो गयीं हूँ। "
"मम्मी क्या ख़रीदा भैया ने आपके लिए। सुन्नी भाभी देख तो जरा। भैया तेरी सास को मॉल ले जा कर दौलत खर्चते हैं और तू कुछ नहीं शिकायत करती।," मेरी मम्मी भले ही सुशी बुआ जैसी तेज़ तर्रार नहीं थी पर बिलकुल निस्सहाय भी नहीं थी। 
"नन्द जी तेरे भैया जैसा हीरा तो मुझे मिला ही है अम्माजी की कोख से। इस हीरे के लिए तो दुनिया की साड़ी दौलत भी काम है अम्माजी के ऊपर खर्चने के लिए ," मम्मी ने इक्का मार दिया बुआ के बादशाह के ऊपर। मम्मी और बुआ का रिश्ता भी मजे का था। दोनों एक दुसरे की भाभी और ननंद दोनों थीं। 
सब हंस पड़े। फिर सब मीठा खाने के बाद कौनियाक के गिलास ले कर अपने सुइट्स की ओर चल पड़े। मैं अब सब समझती थी और मैंने भी लम्बी थकी जम्भाई ले कर सोने के लिए जाने का नाटक किया। 
शीघ्र ही मैंने पहले दादू के कमरे की ओर चल पड़ी। कमरे में सुशी बुआ, दादू और दादी थीं। बुआ आने अपनी मम्मी की साड़ी उतार दी और कुछ ही क्षणों में दादी बिलकुल नग्न थीं। दादी का परिपक्व प्रौढ़ सौंदर्य देखते ही बनता था। उनके प्रचंड चवालीस ( ४४ ") इंचों के ई ई (डबल ई ) भारी ढलके हुए स्तन , गोल भारी तीन सुंदर तहों से सजी अड़तीस ( ३८ ") इंच की कमर और फिर उनके तूफानी अड़तालीस (४८ ") इंची हाहाकारी विशाल स्थूल नितम्ब। उनके बगलों में घने घुंगराले बाल उनके सौंदर्य में और भी इज़ाफ़ा कर रहे थे। दादी के पांच फुट छह इंच का पिच्चासी किलो ( ८५ किलो ) का गदराया शरीर किसी भी संत का संयम भांग कर सकने में सक्षम था। फिर बुआ ने अपने पापा को आदर से वस्त्र विहीन आकर दिया। 
"सुशी बेटा मेरा अंकु कहाँ है ?" दादी ने बुआ का कुरता उतारते हुए पूछा। 
दादू ने तब तक अपनी बेटी की सलवार का नाड़ा खोल दिया था, "मम्मी आप तो सिर्फ अपने बेटे के प्यार में डूबी रहती हो। अपनी बेटी की तरफ भी तो देख लीजिये कभी कभी। " बुआ की नटखट आवाज़ को दादी भी गंभीरता लिया। 
बुआ ने नहीं पहनी थी सलवार उतारने साफ़ था की उन्होंने पैंटी भी नहीं पहनी थी, "मम्मी शालिये लेट जाइये आपकी बेटी ने कितने दिनों अपनी मम्मी की चूत पिया है। अंकु भाभी को तैयार होने में मदद कर रहा है।"
दादी का गदराया शरीर बिस्तर पर फैला था। बुआ ने अपनी मम्मी की झांटों को फैला कर उनकी गुलाबी चूत को खोल दिया। कितनी प्यारी थी दादी की चूत। दादू ने अपनी बेटी के चूतड़ फैला कर बुआ की चूत और गांड के ऊपर मुँह टिका दिया। 
दादी और बुआ सिसकारी निकल पड़ीं। और तभी पापा दाखिल हुए कमरे में , "अहा सब शुरू हो गए हमारे बिना। "पापा कमीज़ खोलते हुए कहा। 
न जाने क्यों मुझे पापा को देख आकर बुरी तरह शर्म से भर गयी और मैं वहां से दौड़ पड़ी। 
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मम्मी के कमरे में मम्मी आखिर तैयारी में थीं। मम्मी ने शादी वाली साड़ी पहनी थी। उनके सारे शादी के गहने उन पर चमक रहे थे। उनकी नाथ का हीरा उनके चेहरे के हिलने भर से चका-चौंध कर रहा था। मम्मी ने पूजा की थाली तैयार की हुई थी। कस्तूरी , चन्दन , हल्दी और सिंदूर सब थे थाली में। मैं मम्मी की सुंदरता देख कर रोने जैसी हो गयी , न जाने क्यों। ख़ुशी में भी आंसू उबलने लगते हैं। 
मम्मी की काया सुडौलता से भरी गदरायी हुई थीं। साड़ी में भी नहीं समा पा रहे थे मम्मी के लार टपका देने वाले नितम्ब। उनके ब्लाउज़ की बटन झगड़ा सा कर रहे थे उनके उन्नत हिमालय की चोटी जैसे मीठे उरोजों से।मम्मी ने हल्का सा घूँघट खींच लिया अपने माथे के ऊपर। मम्मी ने अपने पापा के सुइट की ओर कदम बड़ा दिए। 
मैं पहले ही पहुँच गयी नानू के सुइट में। 
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कमरे में सजावट देख कर मैं हैरान हो गयी। सारा कमरा फूलों से सजा हुआ था। बिस्तर पर गुलाब की पंखुड़ियां फैली हुईं थीं। बड़े, छोटे मामू सिल्क के जरीदार कुरता, पजामा और अचकन पहनी हुई थी। नानू भी उसी तरह तैयार थे। उनके सर पर शादी की पगड़ियां थीं। तीनों पुरुष कितने मोहक,और काम-आकर्षक लग रहे थे। 
मम्मी जैसे ही दाखिल हुईं तीनो खड़े हो गए। मम्मी ने अपनी कोल्हापुरी सोने से सजी जूतियां दरवाज़े पे उतार दीं अपने के साथ दोनों भाईयों और पिता की जूतियों के साथ। 
मम्मी शर्म से लाल लज्जा से भरी तीनों पुरुषों के सामने खड़ीं हो गयीं। 
उन्होंने पहले अपने पिता के फिर बड़े भैया के और फिर छोटे भैया के पैर छुए। तीनो ने उन्हें बारी बारी से आशीर्वाद दिया -सम्पनता, विपुलता और गर्भ धारण के आशीर्वाद। 
फिर तीनो पुरुष बैठ गए थाली के इर्द गिर्द। मम्मी ने कस्तूरी का दिया जला दिया। मम्मी ने पहले अपने पापा के माथे पर पहले हल्दी, फिर चन्दन का टिका लगाया। और फिर अपने दोनों भाइयों के माथे पर टिका लगाया। 
फिर मम्मी खड़ीं हो गयीं और नानू ने उनके घूँघट को हटा कर उनकी साड़ी का पल्लू उनके कन्धों पर गिरा दिया। 
"आप तीनों ने मुझे कुंवारी से स्त्री बनाया था पच्चीस साल पहले। आज भी आपकी बेटी और बहन उस दिने से आप तीनो की अर्धांगिनी भी है। इस बहन और बेटी की मांग भर कर उसे एक बार फिर से अपनी अर्धांगिनी होने का सौभाग्य दे दीजिये ,"मम्मी ने भावुक शब्दों से अपने पिता/भाइयों/पतियों से कहा। 
नानू ने अपनी बेटी की मांग में सिंदूर भर दिया और कहा ,"सुन्नी बेटा ,हमसे भाग्यशाली कोई भी पिता नहीं है जिसे तुझ जैसी बेटी और अर्धांगिनी मिली हो। सदा सुहाग शाली रहो मेरी बेटी। "
फिर बड़े मामू ने छोटे मामू ने अपनी बहन की मांग सिंदूर से भर कर पूजा का समापन किया। और फिर तीनों ने पहनाये साधारण पर पवित्र मंगलसूत्र मम्मी को। 
 
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१७७ 
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"अब आप तीनों इस सुहागन के सुहाग को पूर्ण करने के लिए इसका शरीर सुहागरात के लिए स्वीकार कीजिये ," मम्मी बोलीं और नानू ने उनकी नथ उतार दी। हमेशा की वर्षगाँठ की तरह यह क्रिया सुहागरात शुरू होने का द्योतक थी। 
एक भाई ने मम्मी की साड़ी उतारी तो दुसरे भाई ने उनका ब्लाउज़ खोल कर उतार दिया। उनके विशाल उन्नत को उनकी ब्रा मुश्किल से संभाल पा रही थी। नानू ने अपनी बेटी के दोनों भारी गुदाज़ उरोजों को मुक्त कर दिया ब्रा के बंधन से। 
नानू ने नाड़ा खोल दिया मम्मी के पेटीकोट का और सिल्क का पेटीकोट सरसरा कर उनके तूफानी झांगों के ऊपर सरक कर फर्श पर गीत पड़ा। मम्मी की सिल्क की लाल सुहागवली कच्छी में से उनके घुंगराली झांटें उत्सुकता से दोनों ओर बाहर झाँकने लगीं।
मम्मी ने बारी बारी से नानू के और अपने भाइयों के वस्त्र उतार दिए। 
सबसे पहला हक़ तो पिता का ही होता है अपनी बेटी के ऊपर। मम्मी ने अपने पापा का हाथ पकड़ा और बिस्तर की तरफ चल पड़ीं ,"पापा सुशी भाभी ने दस दिनों से मेरी चूत और गांड में वि-टाइट और सो-टाइट लगा कर वायदा लिया है की हमारी सुहागरात की चादर पर यदि मेरे कौमार्यभंग होने वाले जितना खून न दिखे तो वो बहुत नाराज़ होंगीं अपने बाबूजी, पति और जेठ जी से। "मम्मी की इस बात से तीनों का दानवीय लंड मानों एक दो इंच और लम्बा मोटा हो गया।
नानू ने मम्मी को चित्त लिटा कर उनके पहली रात की तरह उनके चूमते हुए उनकी घुंगराली झांटों ढकी चूत के सुहाने द्वार पे अपनी जीभ लगा कर उसके कसेपन का अहसास किया। मम्मी की सिसकारियां निकलीं बंद ही नहीं हुईं। आखिर कितनी भाग्यशाली वधुओं को तीन वृहत लण्डधारी पतियों से साथ सुहगरात मनाने का सौभाग्य प्राप्त होता है।
नानू ने अपनी बेटी की भारी जांघें फैला कर चौड़ा दीं। उनके दोनों भाइयों ने अपनी इंद्र की परियों से भी सुंदर बहन की एक एक जांघ अपने हांथों में संभाल ली। दोनों बही अपनी बहन का दुसरे कौमार्यभंग का जहर क्षण देखना कहते थे। 
नानू ने अपना बड़े सेब जैसा सुपाड़ा मम्मी की कसी चूत के द्वार में फंसा कर अपने दोनों बेटों की ओर इशारा किया। मम्मी के दोनों भाइयों ने अपने खाली हाथों से मम्मी के कंधे दबा कर उनके निस्सहाय कर दिया आगे आने वाले दर्द के सामने। नानू ने बेदरद निर्मम धक्का मारा और तीन इन्चें ठूंस दीं अपने चार इंच मोटे लंड की अपनी बेटी की 'कुंवारी ' चूत में। मम्मी की चीख में मर्मभेदी दर्द भरा था। नानू ने उतनी निर्ममता से अपनी बेटी के चुचकों को खींचते हुए डोर्स धक्का मारा और एक तिहाई मोटा लंड उन्स्की चूत में ठूंस दिया। दो और धक्के और नानू के लंड दो और तिहाई भाग मम्मी की चूत फाड़ते हुए जड़ तक फंस गए। 
मम्मी बिलबिलाते हुए चीखीं। उनके आंसू बहने लगे। जो भी दवाई बुआ ने लगायी थी वास्तव में जादू जैसी थी। मम्मी मर्मभेदी दर्द से न केवल रो रहीं थीं पर नानू से रुकने की गुहार भी कर रहीं थीं। पर यह तो उनकी सुहागरात थी। और उनके पहले नंबर के 'पति 'कहाँ रुकने वाले थे उनके आंसू बहाने से। शीघ्र ही नानू ने अपना लंड बाहर खींचा और उनके लंड के साथ मम्मी की से भरभरा के लाल गाड़ा खून बहने लगा जैसे उनकी पहले कौमार्यभंग की रात हुआ था पच्चीस साल पहले। 
नानू ने मम्मी की चूचियां मसलते जो छोड़ना शुरू किया उस निर्मम वासनामयी अगम्यगमनी प्रेम को देख मैं सिहर उठी। नानू ने आधे घंटे तक मम्मी की चूत को बिना रुके मारा। दस मिनटों के बाद मम्मी दर्दभरी हिचकियाँ बंद हो गयीं और ' नववधू ' की सिसकारियों से सुहागरात का कमरा गूँज उठा। नानू ने मम्मी को दस बारह बार झाड़ कर उनके दुसरे पति के लिए उनकी चूत निकाल लिया। बड़े मामू ने अपनी सिसकती 'सुहागन पत्नी 'की चूत के रस को उनके पेटीकोट से सूखा दिया और फिर नानू जैसे भीषण धक्के से अपना लंड ठूंस दिया चार धक्कों में, आखिर बेटे किसके थे बड़े मामू। मम्मी की चूत गाड़ा खून रिसने लगा। बड़े मामू ने भी आधे घंटे तक मम्मी की 'कुंवारी ' चूत का मर्दन कर उन्हें अनेकों बार झाड़ दिया। फिर बारी थी छोटे भैया की। वो सवा सेर नहीं तो पूरे सेर से कम भी नहीं थे। उन्होंने भी अपने बड़े भाई की देखा देखी अपनी बहन की चूत सूखा कर अपने लंड से उन्हें तिबारा 'कुंवारेपन ' दर्द से भर दिया। 
उसके बाद मम्मी के तीनो ‘पतियों ‘ने उन्हें बारी बारी हर मुद्रा में चोदा। क्योकि तीनो रुक रुक कर चोद रहे थे । मम्मी की चुदाई कई घंटों तक चली। मम्मी न जाने कितनी बार झड़ चुकीं थीं। मम्मी अब थकने लगीं थीं। और उनके 'पतियों 'ने अपनी नव-वधु की थकान को देख कर इस बार दनादन चोदते हुए अपने वीर्य की गरम बारिश अपनी पत्नी के गर्भ के ऊपर न्यैछावर कर दी। 
मम्मी हफ्ते हुए बिस्तर पे ढलक कर गिर गयीं। ऐसी सुहागरात का सुख तो किसी सौभाग्यशाली नव-वधु के भाग्य में ही लिखा होता है। 
"बेटी अब तो इस सुहगरात की खास शैम्पेन बनाने का समय है ," नानू ने मम्मी को याद दिलाया। मम्मी जैसे ही उठने लगीं तो दर्द से कराह कर बिस्तर पे गिर गयीं। 
नानू अपनी बेटी को सहारा देकर चांदी के विशाल कटोरे के ऊपर ले आये। मम्मी ने अपने होंठों को दांतों से भींच कर अपनी 'कुंवारी ' चूत में से उबलते दर्द को सहने का निरर्थक प्रयास किया। जैसे ही उनके सुनहरी शर्बत ी धार निकली तो एक तेज़ दर्द की लहर ने मम्मी को बेचैन कर दिया। 

लेकिन आखिर सालों का नियमभंग थोड़े ही होने देतीं मेरी मम्मी। खास तौर पे पच्चीसवीं वर्षगाँठ की सुहगरात का। उनका सुनहरा अमृत छलछल करता चंडी के कटोरे को भरने लगा। मम्मी की धार बंद हुई तो उन्होंने सुबकते हुए अपनी दर्दीली चूत के भगोष्ठों को फैला कर आखिरी बूँद भी बाहर टपका दी। इस अमृत से भरे चांदी के कटोरे में मिलायी गयी पच्चीस साल पुरानी शैम्पेन, ठीक उसी दिन बनायीं गयी शैम्पेन। अब बारी थी मम्मी के 'पतियों 'की। दुसरे चांदी के कटोरे में उनके तीनो पतियों का सुनहरी शर्बत इकठ्ठा करके उसमे भी शैम्पेन मिलायी गयी। मम्मी ने भरा अपने गिलास अपने पतियों के अमृत से मिली शैम्पेन ने अपनी नव वधु के अमृत से रमणीय शैम्पेन को लालचीपन से पिया।जब चारों ने अपनी ख़ास शैम्पेन खत्म कर ली तो ना केवल मम्मी थोड़ी सी नशे में थीं पर उनके आगे आने वाले दर्द के लिया थोड़ा नशा शायद अच्छा था। 

फिर शुरू हुआ मम्मी की गाड़ के दूसरे कुंवारेपन का हरण। नानू ने उतनी बेदर्दी से ही मम्मी की गांड का दूसरा उद्घाटन किया जैसा पच्चीस साल पहले किया था। उसके बाद दोनों भाइयों ने भी। हर बार मम्मी के तीनो पतियों ने मम्मी की गांड से ताज़ा खून की धाराएं बह कर उनकी सुहगरात को पूरा परवान चढ़ा रहीं थीं। मम्मी की गांड आखिरकार उनके तीनो पतियों के वीर्य से भर गयी। 

हर वर्ष की तरह दोनों मामाओं ने मम्मी को उल्टा लटका दिया और नानू ने नयी शैम्पेन की बोतल के गर्दन को मम्मी की दर्दीली गांड में ठूंस कर शैम्पेन से उनकी गांड भर दी। मम्मी ने जितनी देर तक हो सकता था उतनी देर तक शैम्पेन को अपनी गांड में रोका फिर उनसे नहीं रहा गया। 

इस बार नए चांदनी के कटोरे में भर गयी मम्मी की गांड सी निकली शैम्पेन की नदी और मम्मी की मथी हुई गांड का मथा हुआ मक्खन। मम्मी के तीनो पतियों ने दिल खोल कर इस अमृत का गिलास भर भर के जलपान किया। मम्मी के कई बार कहने के बाद ही नानू ने उन्हें एक-दो घूँट दिए अपने गिलास से।

उसके बाद सब कुछ खुला खेल था। मम्मी की सुहगरात सुबह तक चली। उनकी दोहरी चुदाई हुई बारी बारी से। आखिर कार मम्मी आनंद के अतिरेक से बेहोश हो गयीं। उनके तीनों पतियों ने अपने लंड के वीर्य की बारिश से उनका सुंदर चेहरा नहला कर उनकी नासिका, दोनों आँखें भर दीं। सुबह जागने पर मम्मी को बहुत जलन होगी। 

फिर चारों सो गए सुहागरात मना कर। मैं अपनी मम्मी की सुहागरात के सफल समापन से ख़ुशी के आंसू बहतो अपने कमरे में जाकर बिस्तर पे ढलक कर गहरी नींद की बाँहों में समा गयी।
 
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