Porn Kahani हलवाई की दो बीवियाँ और नौकर - Page 2 - SexBaba
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Porn Kahani हलवाई की दो बीवियाँ और नौकर

वहाँ आकर चन्डीमल ने सोनू को वहाँ पड़े दो पुराने पलंग और कुछ कुर्सियां बाहर निकालने को कहा।
चन्डीमल- अगर ये सामान बाहर निकाल लोगे, तो इधर काफी जगह हो जाएगी।
यह कह कर चन्डीमल नहाने के लिए चला गया और सोनू वहाँ पड़ा सामान बाहर निकालने लगा, जैसा कि चन्डीमल ने उससे बताया था।
सोनू को वक्त का पता ही नहीं चला।
अब दस बज चुके थे, चन्डीमल अपनी दुकान पर जा चुका था।
उधर सब लोग नाश्ता कर चुके थे और बेला सोनू के लिए नाश्ता लेकर अभी पीछे जाने ही वाली थी कि रजनी ने उससे आवाज़ देकर रोक लिया।
रजनी- अरे ओ बेला.. ज़रा इधर आ.. कहाँ जा रही है?
बेला (रजनी की तरफ जाते हुए)- वो मैं सोनू को नाश्ता देने जा रही थी।
रजनी- अच्छा ठीक है.. जा नास्ता देकर आ, मैं तुम्हारा अपने कमरे में इंतजार कर रही हूँ… एक ज़रूरी काम है तेरे से।
बेला- जी दीदी.. मैं अभी आती हूँ।
बेला नाश्ता लेकर पीछे चली गई, रजनी अपने कमरे में आ गई।
उसके होंठों पर अजीब सी मुस्कान थी, पता नहीं.. उसके दिमाग़ में आज क्या चल रहा था।
थोड़ी देर बाद बेला रजनी के कमरे में आई।
बेला- जी दीदी.. बताईए क्या काम है?
रजनी- आ बैठ तो सही..
रजनी बिस्तर पर बैठी थी, बेला उसके सामने जाकर नीचे चटाई पर बैठ गई।
रजनी- तुम्हें मेरा एक काम करना है।
बेला- आप हुक्म करें दीदी।
रजनी- मैं चाहती हूँ कि आज जब तुम दीपा के बालों में तेल लगाओ..तो उस समय उसकी मालिश भी कर देना।
बेला- बस इतना सा काम… कर दूँगी दीदी।
रजनी- अरी मैं उस ‘मालिश’ की बात कर रही हूँ, जो मैं तुमसे करवाती हूँ।
रजनी की बात सुन कर बेला थोड़ा झिझक गई और बोली।
बेला- पर दीदी उसकी ‘वो’ मालिश करने की क्या जरूरत है अभी?
रजनी- तू भी ना कभी-कभी बच्चों जैसी बात करती है, देख अब दीपा जवान होने लगी है। उसके बदन में भी आग भड़कने लगी होगी। अगर ऐसे मैं उसकी अच्छे से मालिश हो जाए, तो उसका तन भी ठंडा हो जाएगा और इससे बच्चे बुरे कामों की तरफ भी नहीं जाते.. समझीं!
बेला- अच्छा दीदी… ये तो बहुत अच्छा सुझाव दिया है आपने.. सच में आपका कोई जवाब नहीं.. पर क्या वो मान जाएगी?
रजनी- अरे तुम्हें नहीं पता.. तुम्हारे हाथों में तो जादू है। एक बार किसी के बदन को छू लेती हो, तो वो वहीं हथियार डाल देता है।
अच्छा जा.. अब वक्त खराब ना कर.. अभी मुझे उस नई आई महारानी को नहलाने के लिए पीछे भी ले जाना है।
बेला- ठीक है दीदी.. मैं दीपा के कमरे में जाती हूँ।
बेला के जाने के बाद रजनी सीमा के कमरे में गई।
सीमा वहाँ पर अपने लिए कपड़े निकाल रही थी।
उस समय वो ब्लाउज और पेटीकोट पहने खड़ी थी, उसके बाल खुले हुए थे, जो उसकी पतली नागिन से कमर पर बल खा रहे थे।
रजनी को देख कर सीमा उसकी तरफ़ मुड़ी- आईए दीदी.. मैंने कपड़े निकाल लिए हैं।
रजनी- तो चलो, फिर चल कर नहा लेते हैं।
सीमा- चलिए।
 
रजनी सीमा को लेकर पीछे बने गुसलखाने की तरफ आ गई।
बेला ने पहले से ही पानी गरम करके रख दिया था।
जैसे ही वो दोनों पीछे पहुँची, रजनी की आँखें उस कमरे की ओर लग गईं।
अन्दर सोनू खाना खा कर लेट गया था, सुबह से सामान बाहर निकाल कर काफ़ी थक चुका था।
जब रजनी और सीमा के चलने से उनके पैरों की पायल की आवाज़ हुई, तो सोनू उठ कर बैठ गया और दरवाजे पर आ कर बाहर देखने लगा।
बाहर दो जवान और हसीन औरतें खड़ी थीं।
रजनी ने देखा कि सोनू दरवाजे की आड़ से उनकी तरफ देख रहा है, पर उसने यह जाहिर नहीं होने दिया कि उसने सोनू को देख लिया है।
‘जाओ अन्दर जाकर नहा लो.. मैं यहीं बैठती हूँ।’ रजनी से सीमा से कहा।
सीमा गुसलखाने में चली गई।
उसका दिमाग़ कभी दीपा की तरफ जाता कि बेला ने अब तक अपना काम शुरू कर दिया होगा और कभी सोनू की तरफ, जो पीछे खड़ा दरवाजे के ओट से उसे देख रहा था।
अचानक से रजनी के दिमाग़ में पता नहीं क्या आया.. उसने भी साड़ी नहीं पहनी हुई थी, वो भी ब्लाउज और पेटीकोट में थी, पर उसने सर्दी से बचने के लिए एक शाल ओढ़ रखी थी। कुछ सोचने के बाद उसके होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई।
रजनी अपने मन में सोचने लगी कि वहाँ बेला तो ज़रूर आज दीपा के बदन में आग लगा देगी और वही आग आगे चल कर मेरी बेइज्जती का बदला लेगी, पर इधर तो आग मुझे ही लगानी पड़ेगी।
आग अगर दोनों तरफ बराबर लगाई जाए तो धमाका तो होगा ही।
ये सोच कर रजनी खड़ी हुई और अपना शाल उतार कर वहाँ लगी रस्सी पर टांग दिया और फिर अपनी बाँहों को सर के ऊपर ले जाकर एक अंगड़ाई कुछ इस तरह से ली कि उसकी 38 साइज़ की मस्त चूचियां उभर कर और बाहर आ जाएँ।
अपने सामने यह हसीन नज़ारा देख कर सोनू जो कल से परेशान था.. उसका और बुरा हाल हो गया।
उसके पजामे में हलचल होने लगी।
फिर रजनी ने चोर नज़रों से उस कमरे की तरफ़ देखा.. सोनू अभी भी वहीं खड़ा था और बड़ी ही हसरत भरी नज़रों से रजनी की तरफ देख रहा था।
फिर रजनी ने उसकी तरफ पीठ की और कुछ देर बाद उसने अपने पेटीकोट को ऊपर उठाना चालू कर दिया, सोनू के दिल के धड़कनें पूरी रफ़्तार से चलने लगी थीं।
उसके लण्ड में सनसनाहट होने लगी, रजनी ने अपना पेटीकोट अपनी कमर तक पूरा चढ़ा लिया।
उफ़फ्फ़… सोनू की आँखों के सामने क्या नज़ारा था..
रात को वो बेला की गाण्ड को ठीक से नहीं देख पाया था, पर अभी सूरज के रोशनी में जब उसने रजनी की गाण्ड को देखा, तो मानो जैसे उसकी साँसें अटक गई हों, एकदम गोल-गोल और मोटे चूतड़ उसके आँखों के सामने थे।
गाण्ड की दरार जो सोनू बिल्कुल अच्छे से देख पा रहा था।
उसका मन तो कर रहा था कि अभी जाकर अपना लण्ड उसकी गाण्ड की दरार में जाकर रगड़ना चालू कर दे!
पर अभी ये सब बहुत दूर की कौड़ी थी।
फिलहाल तो सोनू वहीं खड़ा होकर अपने लण्ड को पजामे के ऊपर से मसल रहा था।
रजनी जानती थी कि पीछे खड़ा सोनू उसके चूतड़ों को देख रहा है और वो चाहती भी यही थी।
वो नीचे पैरों के बल बैठ गई और उसने मूतना चालू कर दिया.. सर्दी की सुनहरी धूप में उसकी मूत की धार भी सोनू को किसी सुनहरे रंग के झरने की तरह लग रही थी।
सोनू का जो हाल था, वो तो सोनू ही बता सकता है।
पेशाब करने के बाद रजनी खड़ी हुई और पास पड़े एक कपड़े से अपनी चूत को साफ़ करने लगी।
उसने भी अपना पेटीकोट को नीचे करने के कोई जल्दबाज़ी नहीं की।
हालांकि रजनी के दिल में अभी तक सोनू के लिए कोई बात नहीं थी, वो ये सब इसलिए कर रही थी कि जोश में आकर दीपा और सोनू कुछ ऐसा कर दें कि चन्डीमल की इज्जत के धज्जियाँ उड़ जाएँ।
अपनी चूत को साफ़ करने के बाद उसने अपना पेटीकोट नीचे कर लिया, सोनू के लिए जो लाइव शो चल रहा था, वो खत्म हो चुका था।
 
इधर सोनू के लण्ड से कल से किस्मत कहर ढा रही थी।
उधर दूसरी तरफ दीपा के बदन में कल की आग आज कुछ ठंडी सी हो गई थी।
दीपा का आज तक किसी से कोई चक्कर नहीं चला था.. होता भी कैसे.. वो घर से बहुत कम ही बाहर निकलती थी।
वैसे भी चन्डीमल ये सब करने की आज्ञा भी नहीं देता था।
अगर वो बाहर जाती तो भी कोई ना कोई साथ में ज़रूर होता।
उधर दीपा बिस्तर के किनारे बैठी हुई है, उसकी पीठ किनारे की तरफ है और बेला उसके बालों में तेल लगा रही थी।
बेला ने देखा कि दीपा बहुत गुमसुम सी है।
बेला (दीपा के बालों में तेल लगाते हुए)- क्या बात है.. आज हमारी राजकुमारी बहुत गुमसुम क्यों है?
दीपा (जैसे अभी-अभी नींद से जागी हो)- नहीं.. वो वो.. कल बहुत थक गई थी ना.. इसलिए पूरा बदन दु:ख रहा है काकी।
बेला- ओह.. अच्छा ये बात है, अगर पहले बता देती तो मैं कब का राजकुमारी के बदन का दर्द दूर कर देती.. चलो आज आपकी मालिश कर देती हूँ।
दीपा- मालिश..!
बेला- हाँ.. बड़ी दीदी तो मुझसे हफ्ते में एक-दो बार तो ज़रूर करा लेती हैं, आप भी एक बार करवा के देखो, अगर बार-बार ना कहो तो कहना।
दीपा- ठीक है काकी… तो फिर आज आप मेरी भी मालिश कर दो।
बेला- ठीक है कर देती हूँ, राजकुमारी जी।
यह कह कर बेला ने मुस्कुराते हुए कमरा के एक कोने में पढ़ी चटाई को उठा कर नीचे बिछा दिया और उस पर एक तकिया लगा दिया।
बेला- आप यहाँ लेट जाएँ।
दीपा बिस्तर से उठी और नीचे चटाई पर बैठ गई।
बेला ने कमरा का दरवाजा बन्द किया और दीपा के पीछे नीचे बैठ गई। बेला के हाथ पहले ही तेल से सने हुए थे। बेला ने दीपा के खुले हुए बालों को एक तरफ किया और उसके कंधों को धीरे-धीरे दबाते हुए सहलाने लगी।
बेला की ऊँगलियाँ दीपा के कंधों से नीचे दीपा के खुले हुए गले तक जा रही थीं।
बेला के मुलायम हाथों ने अपना जादू दिखाया, दीपा की आँखें इतनी मस्त मालिश से बंद होने लगीं।
दीपा के कंधों को थोड़ी देर दबाने के बाद बेला ने अपने हाथों को उसके कंधों से सरका कर और नीचे कर दिया।
अब उसके हाथ दीपा के आगे की तरफ के खुले हिस्से की मालिश कर रहे थे।
बेला अपने घुटनों के बल बैठी थी, दीपा ने अपना सर बेला के छाती पर टिका दिया, जिससे बेला के 38 नाप की चूचियां भी दब गईं और उसके मुँह से ‘आहह’ निकल गई।
दीपा बेला की ‘आहह’ सुन कर बोली- क्या हुआ काकी?
बेला- कुछ नहीं।
जैसे-जैसे बेला के हाथ दीपा के गले की मालिश करते हुए, उसकी चूचियों की तरफ बढ़ रहे थी, दीपा की साँसें तेज होती जा रही थीं।
उसका बदन बेला के हाथों के नीचे गरम होने लगा था।
बेला दीपा उसके पीछे से खिसक कर उसकी बगल में आकर बैठ गई और दीपा को उसके कंधों से पकड़ कर धीरे-धीरे नीचे चटाई पर लेटा दिया और खुद उसकी बगल में घुटनों के बल बैठ गई।
दीपा बहुत आराम महसूस कर रही थी, जिसके चलते हुए उसने अपनी आँखें बंद कर रखी थीं।
बेला ने धीरे से अपने दोनों हाथों से दीपा की कमीज़ को पकड़ कर थोड़ा सा ऊपर उठा दिया।
 
दीपा ने इस पर कोई आपत्ति जाहिर नहीं की।
कमीज़ को उठाने के बाद उसने अपने दोनों हाथों से दीपा के कमर को दबाना चालू क्या।
फिर थोड़ा सा तेल दीपा के पेट पर डाल कर अपने हाथ को गोल-गोल घुमाते हुए दीपा के पेट की मालिश करने लगी।
दीपा को अजीब सा मजा आ रहा था, उसके पेट में गुदगुदी सी होने लगी, जिसके कारण दीपा थोड़ा हिलने लगी।
बेला- क्या हुआ राजकुमारी जी..ठीक से लेटिए ना.. हिल क्यों रही है?
दीपा अपनी आँखें बंद किए हुए बोली- काकी, वो गुदगुदी हो रही है।
बेला- क्या गुदगुदी.. आप तो ऐसे मचल रही हो, जैसे कि कोई लड़का आपके पतली कमर पर हाथ फेर रहा हो।
जैसे ही बेला ने यह बात कही, दीपा के मन में एक बार फिर से कल वाली बात ताज़ा हो गई।
उसका दिल जोरों से धड़कनें लगा, कल जब सोनू उसके कमर और चूतड़ों को मसल रहा था.. तो उसकी चूत पनिया गई थी।
लेकिन बेला और सोनू के छूने में ज़मीन-आसमान का फर्क था।
‘काकी मर्द के छूने से क्या होता है?’ दीपा ने जिज्ञासापूर्वक पूछा।
वो अभी भी अपनी आँखें बंद किए हुए थी।
बेला- अरे बेटी, अब क्या बताऊँ कि जब एक मर्द किसी औरत के बदन को छूता है तो क्या होता है। बस ये समझ लो कि दुनिया का हर सुख उस सुख के सामने फीका लगता है। जब कोई मर्द प्यार से छूता है।
दीपा- ऐसा क्यों होता है काकी?
दीपा की जिज्ञासा बढ़ती जा रही थी।
बेला दीपा के पेट की मालिश करते हुए उसकी चूचियों की तरफ बढ़ती जा रही थी।
बेला- वो तो पता नहीं जब तुम्हें कोई मर्द छुएगा, तो पता चल जाएगा कि कितना मजा आता है, जब एक मर्द औरत के बदन को छूता है।
बेला दीपा की कमीज़ उसकी चूचियों के नीचे तक ऊपर कर चुकी थी, अब उसकी ऊँगलियाँ बीच-बीच में दीपा की चूचियों से टकरा जातीं तो दीपा के बदन में मस्ती की लहर दौड़ जाती और अब तो उसके मुँह से मस्ती भरी ‘आहह..’ निकल गई, जिसे सुन कर बेला के होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई।
बेला ने दीपा की चूचियों के पास मालिश करते हुए कहा- तुम जानती हो एक मर्द को औरत के किस अंग को सहलाने में सबसे अच्छा लगता है? अगर औरत को वो अंग जितना सुंदर और बड़ा होगा, वो मर्द को उतना ही आकर्षित करता है।
दीपा ने तेज चलती साँसों के साथ पूछा- क्या काकी बताओ ना?
बेला ने अपने दोनों हथेलियों से दीपा की चूचियों को मसलते हुए कहा- ये… एक औरत की चूचियाँ देख कर कोई भी उसका गुलाम हो सकता है।
दीपा ने मस्ती में सिसकते हुए कहा- ओह्ह.. काकी… यह आप क्या कर रही हैं?
बेला- मैं तुम्हें बता रही हूँ कि जब एक आदमी किसी औरत की चूचियों को मसलता है, तो औरत को बहुत मजा आता है। तुम्हें अच्छा नहीं लग रहा क्या?
दीपा ने अपनी आँखें बंद किए हुए मदहोशी के सागर में गोते खाते हुए कहा- अच्छा लग रहा है… काकी.. पर पर्ररर उन्हह.. अहह.. काकी।
बेला ने अपनी उँगलियों से दीपा की चूचियों के चूचकों को मसल दिया।
दीपा के बदन में मस्ती की लहर दौड़ गई।
उसने अपने दोनों हाथों से बेला के हाथों को कस कर पकड़ लिया, पर उसने बेला के हाथों को अपनी चूचियों पर से हटाने की कोशिश नहीं की, बेला के होंठों की मुस्कान बढ़ती जा रही थी।
अब बेला ने एक और दांव खेला, जिसे झेलने के लिए दीपा बिल्कुल तैयार नहीं थी।
दीपा के 32 साइज़ की तनी हुई चूचियां उसके कमीज़ से बाहर थीं और उन पर हल्के गुलाबी रंग के चूचुकों को देख कर तो किसी का भी ईमान डोल जाता।
बेला ने दीपा की चूचियों पर से अपने हाथ हटा कर दीपा के हाथों को पकड़ा और उसके सर के पास नीचे चटाई के साथ सटा दिया, जिससे दीपा गोरी-गोरी चूचियाँ और बाहर की तरफ निकल गईं।
 
हल्के गुलाबी रंग के चूचक जो एकदम तने हुए थे, किसी तीर की नोक की तरह तीखे हो चुके थे।
दीपा अब भी अपनी आँखें बंद किए हुए थी.. उसके होंठ थोड़ा सा खुले हुए थे, मानो जैसे उससे साँस लेने में तकलीफ हो रही हो।
बेला ने मौका देखते हुए, उन पर झुक गई और उसके बाएं चूचुक को मुँह में भर लिया।
‘ओह काकी.. अहह सीईई..उंह ईईए आअ क्य ओह्ह..’
दीपा तो पहले से हथियार डाल चुकी थी, उसके दिमाग़ में एक बार फिर सोनू की छवि बन चुकी थी।
मानो जैसे बेला नहीं सोनू ही उसकी चूचियों को चूस रहा हो।
दीपा अपने हाथों से तकिए को कस कर पकड़े हुए थी।
उसका पूरा बदन मस्ती में ‘थरथर’ काँप रहा था, बेला ने उसके चूचुक को चूसते हुए दूसरी चूची को हाथ में लेकर धीरे-धीरे मसलते हुए सहलाना शुरू कर दिया।
दीपा आँखें बंद किए हुए मस्ती से भरी सिसकारियाँ भर रही थी।
फिर बेला ने एकाएक दीपा की चूची को जितना हो सकता था मुँह में भर लिया, दीपा एकदम सिसक उठी।
उसने तकिए को छोड़ कर बेला को कंधों के ऊपर से उसकी पीठ को कस लिया।
दीपा- ओह काकी… मुझे ये क्या हो रहा है… ओह काकी.. बहुत अच्छा लग रहा है.. उंह सीई काकीईई…
बेला ने देखा कि दीपा अब पूरी तरह गरम हो चुकी है तो उसने अपना एक हाथ नीचे ले जाकर दीपा के सलवार के नाड़े को पकड़ा और धीरे-धीरे खींचते हुए खोल दिया।
जैसे ही दीपा की सलवार उसकी कमर पर ढीली हुई, दीपा के दिल के धड़कनें बढ़ गईं।
उसने अपनी मदहोशी के नशे से भरी आँखों को खोल कर बेला की तरफ देखा, जो उसकी चूची चूसते हुए, अपना हाथ उसकी सलवार के अन्दर डाल रही थी।
दीपा अब पूरी तरह गरम हो चुकी थी, वो अब कुछ भी करने की हालत में नहीं थी। जैसे ही बेला के हाथ की उँगलियों ने दीपा की कुँवारी चूत की फांकों को छुआ, दीपा के मुँह से मस्ती भरी ‘आहह’ निकल गई।
उसने अपने होंठों को अपने दाँतों में दबा लिया और बेला की पीठ पर तेज़ी से हाथ फेरने लगी।
मानो जैसे उसने सोनू को ही अपने आगोश में ले रखा हो।
बेला ने अपनी उँगलियों से दीपा की चूत की फांकों को धीरे से सहलाया।
दीपा का पूरा बदन झनझना उठा, उसका पूरा बदन अकड़ कर झटके खाने लगा और दीपा बिन पानी की मछली के तरह तड़पते हुए अपनी कमर को हिलाते हुए अपने चूतड़ों को ऊपर उछालने लगी।
दीपा को तो जैसे होश नहीं था।
दीपा की चूत ने अगले ही पल पानी छोड़ना शुरू कर दिया, अनुभवी बेला अपनी उँगलियों पर दीपा की चूत से निकाल रहे पानी को महसूस करते ही समझ गई कि लौंडिया झड़ गई है।
उसने अपना हाथ उसकी सलवार से बाहर निकाला और अपनी साड़ी के पल्लू से पोंछ लिया।
दीपा अपनी साँसों के दुरस्त होने का इंतजार कर रही थी, जवान दीपा की चूत ने आज पहली बार अपना कामरस बहाया था।
उसके होंठों पर संतुष्टि से भरी मुस्कान फ़ैल गई।
जब दीपा थोड़ी देर बाद सामान्य हुई, तो उसने अपनी सलवार के नाड़े को बंद किया और खड़ी होकर नहाने के लिए चली गई।
 
जैसे ही दीपा नहाने के लिए घर के पिछवाड़े में गई तो सीमा और रजनी नहा कर वापिस आ रही थीं।
दीपा सर झुकाए हुए, उनके पास से गुजर गई।
रजनी ने आगे निकल कर बेला से पूछा- अरे मरी कहाँ जा रही है.. उसकी मालिश अच्छे से की या नहीं?
बेला मुस्कुराते हुए रजनी की तरफ देखने लगी।
‘बहुत गरम छोरी है.. दीपा… जैसे ही उसकी चूत को छुआ, उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया.. वो किसी मछली के तरह तड़फ रही थी।’
बेला की बात सुन कर रजनी के होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई।
रजनी जो चाहती थी, उस मंज़िल के तरफ वो एक कदम आगे बढ़ चुकी थी।
उधर घर के पीछे जब दीपा गुसलखाने की तरफ पहुँची, तो उसने देखा कि सोनू उस सामान को एक कोने में इकठ्ठा कर रहा था.. जिसे उसने बाहर निकाला था।
जैसे ही दीपा गुसलखाने के पास पहुँची, दोनों ने एक-दूसरे की तरफ देखा, पर दीपा ने अपने सर को झुका लिया।
कुछ देर पहले जब वो बेला को अपनी बाँहों में भींचे हुए थी, तब उसके दिमाग़ में सोनू की ही छवि बनी हुई थी।
जिसके चलते दीपा सोनू से आँखें नहीं मिला पा रही थी, पर सोनू तो कल से उससे देखने के लिए बेकरार था।
जैसे ही सोनू सामान को रख कर दीपा की तरफ जाने लगा, तो उसने देखा कि बेला उसकी तरफ आ रही थी।
बेला को देख कर वो रुक गया।
दीपा भी गुसलखाने में घुस गई, पता नहीं क्यों…
पर सोनू बेला की तरफ देखने से कतरा रहा था।
वो सीधा कमरे के अन्दर चला गया और वहाँ पढ़े एक पुराने पलंग पर बैठ गया।
बेला उसके पीछे कमरे में आ गई।
बेला ने सोनू की तरफ मुस्करा कर देखते हुए कहा- नाश्ता कर लिया?
सोनू (सर झुकाए हुए)- जी कर लिया।
बेला ने सोनू की तरफ देखा, सुबह से सफाई कर रहे सोनू के बदन पर धूल जमी हुई थी।
‘मैं नदी पर नहाने जा रही हूँ… तुम भी चलो, नहा लो, बहुत धूल से भर गए हो तुम… यहाँ पर सब नौकर नदी पर ही नहाने जाते हैं।’
सोनू ने अपनी हालत देखी.. सुबह से सामान को बाहर निकालते हुए.. उसके कपड़े धूल से सन चुके थे।
वो बिना कुछ बोले खड़ा हुआ और अपने बैग में से कपड़े निकालने लगा।
यह देख कर बेला के होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई!
 
फिर सोनू बेला के साथ चन्डीमल के घर से बाहर आ गया और दोनों बेला के घर की तरफ जाने लगे।
जब दोनों घर पहुँचे तो बेला ने अपनी बेटी बिंदया से कहा- बिंदया सुन.. मैं नहाने जा रही हूँ, तू सेठ जी के घर जा और वहाँ की साफ़-सफाई कर दे। मैं आकर दोपहर का खाना बना दूँगी।
बिंदया- अच्छा माँ जाती हूँ.. पर जल्दी आ जाना, मुझे घर की सफाई भी करनी है।
यह कह कर बिंदया सेठ के घर चली गई।
बेला ने अपने कपड़े लिए और दोनों नदी की तरफ चल पड़े।
सोनू आज पहली बाद इस गाँव के गलियों को उजाले में देख रहा था।
गाँव से बाहर आकर दोनों एक सुनसान रास्ते पर चलते हुए नदी की तरफ जाने लगे..
रास्ते में कोई भी नज़र नहीं आ रहा था.. जिसके चलते सोनू थोड़ा असहज महसूस कर रहा था।
‘गाँव के सभी लोग नदी पर नहाने जाते हैं?’ सोनू ने झिझकते हुए बेला से पूछा।
बेला ने पीछे मुड़ कर सोनू की तरफ देखते हुए कहा- नहीं सर्दियों में नदी पर कम ही आते हैं.. गर्मियों में सभी आते हैं।
इससे आगे सोनू ने कुछ नहीं बोला और वो बेला के पीछे बिना कुछ बोले चजया रहा।
थोड़ी देर बाद दोनों नदी के किनारे पहुँच गए।
नदी के दोनों तरफ काफ़ी पेड़ थे और बहुत झाड़ियाँ थीं।
नदी के किनारे पहुँच कर बेला ने अपने कपड़े को नीचे साफ़ घास पर रखा और अपनी साड़ी उतारने लगी।
सोनू उसके पीछे खड़ा मुँह फाड़े उसे देख रहा था।
घर पर तो उसकी माँ ने भी कभी उसके सामने साड़ी नहीं उतारी थी।
यह सब सोनू के लिए अलग था, एक जवान और मदमस्त औरत उसके सामने खड़ी अपने जिस्म से साड़ी को अलग कर रही थी।
बेला ने साड़ी को उतार कर कपड़ों के पास रख दिया और सोनू की तरफ मुड़ी।
‘अरे ये क्या.. अभी तक कपड़े पहने खड़े हो, नहाना नहीं है क्या.. जल्दी करो, घर जाकर मुझे दोपहर का खाना भी बनाना है।’
बेला सोनू की हालत को समझ रही थी।
वो अपनी मुस्कान को होंठों पर आने से नहीं रोक पाई।
फिर बेला पलट कर नदी में उतर गई।
‘हाय राम मर गई…’
सोनू बेला की आवाज़ सुन कर घबरा गया।
‘क्या हुआ काकी?’
सोनू घबराए हुए स्वर में बोला।
बेला (मुस्कुराते हुए)- कुछ नहीं पानी बहुत ठंडा है.. अब जल्दी कर ना, घर वापिस जाकर खाना भी तैयार करना है।
बेला की बात सुन कर अपने कपड़े उतारने लगा।
बेला की नज़रें सोनू के गोरे बदन पर अटकी हुई थीं, पर सोनू का उस तरफ ध्यान नहीं था।
सोनू ने अपनी कमर पर एक सफ़ेद रंग की धोती बाँध ली और अपना पजामा खोल कर नदी में उतर गया।
बेला नदी में डुबकी लगा रही थी, उसका ब्लाउज और पेटीकोट भीग कर उसके बदन से चिपक गया।
बेला ने नहाते हुए अपनी पीठ सोनू की तरफ कर ली।
पानी.. बेला की जाँघों तक था। जैसे ही बेला पानी में खड़ी हुई, तो सामने का नजारा देख कर काँप रहे सोनू के बदन में मानो जैसे आग लग गई हो।
बेला का पीले रंग का पेटीकोट उसके चूतड़ों पर चिपका हुआ था, पतले से पेटीकोट में से बेला के चूतड़ों का पूरा भूगोल दिखाई दे रहा था।
यहाँ तक कि उसकी गाण्ड की दरार भी सोनू के आँखों से छुपी नहीं थी।
इतने ठंडे पानी में भी जैसे उसके धोती के अन्दर आग लग गई हो, उसका लण्ड धोती के अन्दर हलचल करने लगा।
जब सोनू ने अपने लण्ड की तरफ देखा, तो उसकी धोती का भी वही हाल था। उसके लण्ड पर उसके गीली धोती चिपकी हुई थी और उसका लण्ड साफ़ नज़र आ रहा था।
उसने फिर बेला की तरफ देखा, वो चाह कर भी बेला के चूतड़ों पर से नज़र नहीं हटा पा रहा था।
फिर बेला ने अपनी चूचियों को ब्लाउज के ऊपर से रगड़ना शुरू कर दिया।
वो जानती थी कि सोनू उसकी तरफ ही देख रहा है,
पर इस बात से बेला को कोई फर्क नहीं पड़ रहा था, वो जानती थी कि उसके चूतड़ों की पूरी गोलाईयां सोनू को दिखाई दे रही होंगी और वो चाहती भी यही थी।
इधर सोनू का लण्ड एक बार फिर से अपनी औकात पर आ चुका था।
अपने बदन को मलते हुए बेला अचानक सोनू के तरफ पलटी..
उसका ब्लाउज भी गीला होकर उसकी चूचियों से चिपका हुआ था।
 
काले रंग के चूचक उसके ब्लाउज में ऊपर से साफ़ दिखाई दे रहे थे।
सोनू का मुँह खुला का खुला रह गया।
उससे तो इतना भी होश नहीं था कि उसकी गीली धोती, उसके 8 इंच के लण्ड के ऊपर चिपकी हुई है, जिसे देख कर बेला का कलेजा मुँह में आ गया था।
बेला हैरत भरी नज़रों से सोनू के विशाल और मोटे लण्ड को देख रही थी।
जब सोनू को इस बात का अहसास हुआ तो वो नदी के किनारे बनी सीढ़ियों पर बैठ गया और अपनी जाँघों को आपस में सटा कर अपने खड़े लण्ड को छुपाने के कोशिश करने लगा।
सोनू के मूसल लण्ड की एक झलक देखने के बाद, बेला की चूत की फाँकें फुदकने लगीं।
उसने अपने होंठों पर कामुक मुस्कान लाकर सोनू से कहा- बड़ा तगड़ा हथियार है तुम्हारा।
सोनू को इस बात का बिल्कुल अंदाज़ा नहीं था कि बेला इस कदर खुल कर उसके लण्ड के बारे में कह देगी, वो एकदम से झेंप गया।
वो हड़बड़ाते हुए बोला- क्या.. क्या.. काकी..
बेला को सोनू की हालत पर हँसी आ रही थी, पर उसने अपनी हँसी दबा ली- तुम्हारा लण्ड और क्या..!
एक बार फिर सोनू बेला की बात सुन कर बुरी तरह चौंक गया।
उसने अपने सर को झुका लिया।
बेला उसकी तरफ देखते हुए.. अपनी चूचियों को ब्लाउज के ऊपर से रगड़ते हुए नहाने लगी, पर सोनू की हिम्मत नहीं हुई कि वो दुबारा बेला की तरफ देख सके।
सोनू का लण्ड देख कर तो बेला की चूत में तो जैसे आग दहकने लगी थी, पर गाँव की नदी पर कभी कोई भी आ सकता था।
इसलिए वहाँ और कुछ करना बेला ने ठीक नहीं समझा।
दोनों नहाने के बाद घर वापिस आ गए।
घर आने पर बेला रसोई में चली गई और सोनू को रजनी ने कुछ छोटे-मोटे काम करने के लिए दे दिए।
सोनू रजनी के बताए हुए समान को लाने के लिए शहर चला गया।
 
दोपहर हो चुकी थी…….रजनी किचन मे गयी…..वहाँ बेला खाना तैयार कर चुकी थी….और एक तरफ नीचे बैठे हुए खोई हुई थी…..उसके दिमाग़ मैं अभी भी सोनू का विशाल मुन्सल सा लंड घूम रहा था….वो मंद-2 मुसकरा रही थी……..

“इसको क्या हो गया…अकेले बैठी मुस्करा रही है. लगता ज़रूर कोई बात है” रजनी ने बेला के तरफ देखते हुए मन ही मन कहा” और फिर जाकर बेला को कंधे से पकड़ कर हिलाया………

रजनी: कहाँ खोई हुई है ?

बेला: (जैसे नींद से जागी हो) जी जी दीदी वो वो कुछ नही……….

बेला खड़ी हुई, और रजनी की तरफ पीठ करके, बने हुए खाने को देखने लगी…..जैसे कोई चोर चोरी करके अपना मूह छुपाता है…….

.”बेला क्या बात है” रजनी ने कड़क आवाज़ मे कहा……

बेला: कुछ भी तो नही दीदी……………

रजनी: तुम जानती हो ना…तुम मुझसे कुछ भी छुपा नही सकती….सच सच बता क्या बात है….मैने तुम्हारा कभी बुरा चाहा है क्या…….उल्टा हर बार मेने तुम्हारी मदद ही की है…..

बेला: वो दीदी………….(बेला बोलते -2 शरमा कर चुप हो गयी….)

रजनी: बताती है कि नही…..या लगाऊं कान के नीचे एक…..

बेला: दरअसल बात ये है दीदी कि, वो आज मैं उस लड़के सोनू के साथ नदी पर गयी थी…..वहाँ पर जब वो नहा रहा था. तब उसकी धोती गीली होकर उसकी जाँघो से चिपक गयी…..और उसका वो ओ….मुझे शरम आती है दीदी……….

रजनी बेला की बात समझ गयी कि, बेला किन ख्यालों में खोई हुई थी……बेला की बात सुन कर रजनी के होंटो पर अजीब सी मुस्कान फेल गयी ……”अच्छा तो छीनाल तेरी चूत का दाना फुदुक रहा होगा तब से. तभी तो यूँ कोने मे टाँगों को सिकोड कर बैठी है”

बेला: छि दीदी कैसे बातें करते हैं…….

रजनी: अच्छा बन तो ऐसी रही है……..जैसे मैं तुम्हें जानती नही हूँ……..अच्छा बता क्या देखा तूने…छोरे के औजार मे जान आई हैं कि नही अभी तक……..या फिर अभी बच्चा है…..
 

बेला: (शरमाते हुए) आप जान के बात कर रही हैं दीदी……….ऐसा मुन्सल सा लंड आज तक मेने अपनी जिंदगी में कभी नही देखा………कम से कम 9 इंच लंबा और 3 इंच मोटा होगा, उस छोरे का…..

रजनी: (हैरान होते हुए) चल हट ऐसा भी होसकता है क्या…..वो तो अभी बच्चा है…..अभी तो उसकी मून्छे भी नही निकली…….देखा नही क्या ?

बेला: दीदी आप कह तो सही रही हैं…….पर जब मेने उसका औजार देखा तो , मुझे भी यकीन नही हो रहा था…..पर सच तो यही है कि, उसका लंड इतना ही बड़ा है……..

बेला की बात सुन कर रजनी का दिल जोरों से धड़कने लगा…..उसके दिमाग़ मे भी सोनू के लंड की छवि से बन गयी…….”सच कह रही है बेला तू” रजनी ने अपनी सारी के ऊपेर से अपनी बुर को खुजाते हुए कहा..

बेला भी रजनी के हालत ताड़ गयी…..”हां दीदी सच उसके लंड का सुपाडा तो जैसे किसी छोटे सेब के बराबर था…एक दम गुलाबी रंग…….दिल कर रहा था…अभी जाकर मुट्ठी मे भर कर उसके लंड के सुपाडे को जी भर कर चुसू……..” बेला तिरिछि नज़रों से रजनी की तरफ देख रही थी…….

रजनी: चल हट जाने दे……….तू अपना काम कर, और सुन उस छोरे से दूर ही रहना….कुछ उल्टा सीधा मत करना……..

रजनी ने बेला की आँखों में झाँका….दोनो के होंटो पर कामुकता से भरी मुस्कान फैली हुई थी….रजनी बाहर चली गयी……


रात को बेला ने सब के लिए खाना लगा दिया……..और खुद अपना और बेटी का खाना लेकर घर चली गयी…..चांदीमल तो मानो जैसे खाना जल्दी से खा कर अपने कमरे मे जाना चाहता था….रात के करीब 10 बजे तक सब अपने अपने कमरों में घुस चुके थे……रजनी अपनी कमरे में लेटी हुई, करवटें बदल रही थी……..रजनी के कमरे की पीछे वाली खिड़की, घर के पिछवाड़े में खुलती थी. पर खिड़की पर लोहे की सलाखें लगी हुई थी…………

पर उस खिड़की की लकड़ी को नीचे की तरफ घुन लग चुका था……जिससे उसकी एक लोहे के सलाख ढीली हो गयी थी………और उसे आसानी से निकाला जा सकता था. एक सलाख को निकालने के बाद इतना गॅप तो बन ही जाता था कि, उसमे से कोई पतला शख्स आसानी से निकल सके……..

मैं इस खिड़की के बारे मे आप को इस लिए बता रहा हूँ क्योंकि इस खिड़की का इस कहानी मे बहुत बड़ा योगदान है…..अब तक आप समझ ही गये होंगे, कि मैं किस तरफ इशारा कर रहा हूँ.

रजनी के दिमाग़ मे शाम से बेला की बातें ही घूम रही थी……वो भी तो कामज्वाला में कब से जल रही थी………वो उठ कर अपने कमरे से बाहर आई………चारो तरफ सन्नाटा फेला हुआ था….रजनी धीरे-2 आगे बढ़ाते हुए घर के पीछे की तरफ बढ़ने लगी….वो खुद नही जानती थी, कि आख़िर वो इतनी रात को पीछे करने क्या जा रही है……….रजनी का दिल सोनू के रूम की तरफ बढ़ते हुए जोरों से धड़क रहा था………जब वो घर के पीछे पहुची, तो चारो तरफ घना कोहरा छाया हुआ था….सर्दी अपने सबाब पर थी………..
 
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