Porn Story गुरुजी के आश्रम में रश्मि के जलवे - Page 8 - SexBaba
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Porn Story गुरुजी के आश्रम में रश्मि के जलवे

गोपाल टेलर – नहीं मैडम, ज़्यादा खुला नहीं दिखेगा. आपके कंधे खुले रहेंगे लेकिन आपकी छाती ढकी रहेगी.

मैं समझ गयी की बहस करने का कोई फायदा नहीं और मुझे कंधे पर सिर्फ ½ इंच चौड़े स्ट्रैप के लिए राज़ी होना पड़ा. मुझे याद नहीं है की कभी मैंने ऐसी कोई ड्रेस पहनी हो जिससे मेरे कंधे पूरे नंगे दिखते हों, ना कभी कॉलेज में पढ़ते समय ना कभी शादी के बाद. हाँ हनीमून में जरूर राजेश ने एक नाइटी लाकर दी थी जिसमें कंधे पर पतली डोरी जैसे स्ट्रैप थे. मैंने 3-4 दिन हनीमून के दौरान ही वो नाइटी पहनी थी और उसके बाद कभी नहीं पहनी क्यूंकी मुझे लगता था की वो बहुत बदन दिखाऊ है. एक तो उसमें मेरी ब्रा के स्ट्रैप दिख जाते थे और वो सिर्फ मेरे घुटनों तक लंबी थी. मेरी जैसी शर्मीली औरत के लिए वो कुछ ज़्यादा ही मॉडर्न ड्रेस थी. मुझे मालूम था की उस नाइटी में मेरा गदराया हुआ बदन देखकर मेरे पति को बड़ा मज़ा आता है और वो उत्तेजित हो जाते हैं लेकिन मेरे शर्मीलेपन की वजह से मैंने उस नाइटी को फिर कभी नहीं पहना.

मैं यही सब सोच रही थी की तभी मुझे ध्यान आया की टेलर मेरे पीछे खड़ा है. मुझे पता नहीं चल पा रहा था की वो क्या कर रहा है क्यूंकी वो मेरे ब्लाउज को भी नहीं छू रहा था. कुछ पल ऐसे ही गुजर गये , अब मुझे असहज महसूस होने लगा की गोपालजी आख़िर मेरे पीछे कर क्या रहा है ? मैंने दीपू की तरफ देखा और जैसे ही हमारी नजरें मिली , तुरंत उसने अपनी आँखें घुमा लीं. मुझे शक़ था की वो मेरे ब्लाउज में चूचियों को घूर रहा था जो की पल्लू हटने से लुभावनी लग रही थीं.

मैं दुविधा में थी की पीछे मुड़कर टेलर को देखूँ या नहीं. मैं पल्लू हटाए खड़ी थी और उसको मेरी गोरी पीठ दिख रही होगी. अचानक मेरी पीठ में गोपालजी की अँगुलियाँ महसूस हुई , वो मेरे ब्लाउज के कपड़े को खींच रहा था. अचानक उसकी अंगुलियों के छूने से मेरे बदन में कंपकपी सी दौड़ गयी.

गोपाल टेलर – क्या हुआ मैडम ?

“नहीं कुछ नहीं.”

मैं शरमा गयी क्यूंकी गोपालजी ने मेरी कंपकपी को महसूस कर लिया था.

गोपाल टेलर – मैडम, ये ब्लाउज तो आपको सही से फिट आ रहा है.

“हाँ …”

गोपाल टेलर – लेकिन मैडम, चोली के लिए तो टाइट फिटिंग होगी.

“लेकिन क्यूँ ?”

अपनेआप मेरे मुँह से ये सवाल निकल गया पर जवाब सुनकर मेरा चेहरा लाल हो गया.

गोपाल टेलर – मैडम अगर आपका साइज 30 या 32 होता तो मैं ऐसा नहीं करता. लेकिन आपकी बड़ी चूचियाँ हैं इसलिए चोली को टाइट करना पड़ेगा ताकि अंदर के लिए सपोर्ट रहे. मैडम, जानती हो समस्या क्या है ? जब कोई औरत ब्रा पहनती है और इधर उधर घूमते हुए कोई काम करती है तो चूचियों के वजन से ब्रा नीचे को खिसकने लगती है. इसलिए चोली टाइट होनी चाहिए ताकि ब्रा के लिए भी सपोर्ट रहे.

एक मर्द के मुँह से औरतों की ऐसी निजी बातें सुनकर मेरी साँसें तेज हो गयीं. मुझसे कुछ जवाब नहीं दिया गया. मुझे चुप देखकर गोपालजी और विस्तार से बताने लगा और फिर मुझे टाइट चोली के लिए राज़ी होना पड़ा. 

गोपाल टेलर – मैडम, अगर मैं चोली की नाप नहीं बदलूँ और जो ब्लाउज आपने अभी पहना है इसी नाप की चोली सिल दूँ तो जल्दी ही ब्रा के कप आपकी चूचियों से फिसलने लगेंगे क्यूंकी उनको साइड्स से सपोर्ट नहीं मिलेगा. अगर आपको चुपचाप एक जगह बैठना होता तो मैं कुछ नहीं कहता. लेकिन आपको महायज्ञ में भाग लेना है. इसलिए अगर चोली ढीली हुई तो ऐसा भी हो सकता है की चोली के अंदर ब्रा खिसकने से आपके निप्पल ब्रा से बाहर आ जाएँ.

मैडम, अगर आप पतली होती या आपकी चूचियों का साइज छोटा होता तो ज़्यादा फरक नहीं पड़ता. लेकिन आपका साइज 34 है और आप पहली बार स्ट्रैपलेस ब्रा पहनोगी. इसलिए टेलर होने के नाते मेरा ये फर्ज बनता है की मैं आपको सही राय दूं ताकि बाद में आपको शर्मिंदगी का सामना ना करना पड़े.

“ठी…क है गोपालजी, मैं आपकी बात समझ गयी. धन्यवाद.”

मैंने हकलाते हुए हामी भर दी.

गोपाल टेलर – मैडम मैं एक बार पीठ पर नाप लेता हूँ.

गोपालजी ने मेरे ब्लाउज के अंदर अपनी दो अँगुलियाँ डाली और शायद ये चेक करने लगा की ये कितना टाइट किया जा सकता है. उसकी अंगुलियों के मेरी पीठ पर रगड़ने से मुझे गुदगुदी सी हो रही थी. तभी उसने मेरे ब्लाउज को अपनी अंगुलियों से बाहर को खींचा और मुझे यकीन था की वो मेरे ब्लाउज के अंदर झाँक रहा होगा और उसे मेरी ब्रा के स्ट्रैप्स और हुक दिख रहे होंगे. गोपालजी अपनी अँगुलियाँ मेरी पीठ में डालकर पता नहीं क्या कर रहा था और अब मैं असहज होने लगी थी. मैंने अपनी टाँगों को थोड़ा सा हिलाया. फिर मैंने खुद को झिड़का की मैं तो ऐसे असहज हो रही हूँ जैसे की पहली बार किसी टेलर को नाप दे रही हूँ.

गोपालजी ने दीपू से कुछ नोट करने को कहा. फिर गोपालजी पीछे से मेरे सामने आने लगा और मैंने ख्याल किया की वो अपने श्रोणि भाग पर खुजला रहा था. मुझे मन ही मन हँसी आई और मैं शरमा गयी पर मुझे मज़ा भी आया की मेरे बदन के घुमाव एक 60 बरस के बुड्ढे को भी उत्तेजित कर सकते हैं. मेरे सामने आकर वो थोड़ा झुका और उसका चेहरा मेरी सुडौल चूचियों के एकदम सामने आ गया. उसने बाएं हाथ से ब्लाउज के निचले हिस्से को पकड़ा और दाएं हाथ की दो अँगुलियाँ मेरे पेट से ब्लाउज के अंदर घुसाने लगा. उसकी अंगुलियों के स्पर्श से मेरे बदन में सिहरन हुई और एक पल के लिए मेरी आँखें बंद हो गयीं. 

गोपाल टेलर – मैडम, एक बार लंबी सांस लो और पेट को पतला करो.

मैंने एक लंबी सांस ली और पेट पतला कर लिया . अब गोपालजी के लिए अँगुलियाँ अंदर घुसाना आसान हो गया. पहले ब्लाउज के टाइट होने से उसकी अँगुलियाँ ज़्यादा अंदर नहीं घुस पा रही थीं. मुझे महसूस हुआ की अब उसकी अँगुलियाँ मेरी ब्रा के निचले हिस्से को छू रही हैं. मुझसे रहा नहीं गया और मैंने सांस छोड़ दी.

गोपाल टेलर – ओहो मैडम. थोड़ी देर तक और थामनी थी ना. एक बार और लो.

मेरा दिल ज़ोर से धड़क रहा था क्यूंकी गोपालजी की अँगुलियाँ मेरे पेट से ऊपर को घुसी हुई थीं और मेरे ब्रा कप्स को छू रही थीं. मैंने फिर से एक गहरी सांस लेकर पेट को पतला कर लिया. गोपालजी फिर से अपनी अंगुलियों को मेरे ब्लाउज के अंदर घुमाने लगा और धीरे से मेरी चूचियों को नीचे से ऊपर को धक्का देने लगा. कुछ देर तक ऐसा ही चलता रहा और जब उसने मेरी ब्रा कप में अपनी अंगुली चुभोकर मेरी चूचियों की कोमलता का एहसास किया तो….

“आउच….”

मैंने सांस छोड़ दी और अपनेआप ही मेरे हाथ ने उसका ब्लाउज के अंदर घुसा हाथ पकड़ लिया. गोपालजी ने आश्चर्य के भाव से मुझे देखा. मैंने जल्दी से अपने को कंट्रोल किया क्यूंकी मुझे समझ आ गया था की नाप लेने के दौरान मुझे इतना तो एलाऊ करना ही पड़ेगा. मैंने धीरे से फुसफुसाते हुए उसे ‘सॉरी’ बोला और कायरता से अपनी आँखें झुका लीं. गोपालजी शायद मेरी हालत समझ गया और अपनी अँगुलियाँ ब्लाउज से बाहर निकाल लीं.

गोपाल टेलर – दीपू, मैडम की चोली की नाप लिखो.

दीपू – जी.

गोपालजी ने अपनी गर्दन से टेप निकाला और झुककर मेरे पेट की नाप लेने लगा. मेरे ब्लाउज के आधार पर उसने नाप ली. नाप लेते समय फिर से उसने मेरी चूचियों के निचले हिस्से को छुआ जिससे मैं असहज हो गयी.

गोपाल टेलर – 24”

दीपू ने उसे नोट किया. गोपालजी ने टेप हटा लिया और सीधा हो गया.

गोपाल टेलर – मैडम अपनी बायीं बाँह थोड़ी सी ऊपर उठाओ.

मैंने अपनी बायीं बाँह ऊपर उठा दी और गोपालजी ने उसे अपनी नाप के हिसाब से सही किया. पता नहीं क्यूँ पर उसके मेरे बदन को छूने से मेरे मन में कुछ अजीब हो रहा था. मैंने अपने मन को उसकी बड़ी उमर का हवाला देते हुए समझाने की कोशिश की पर मुझे अपनी रगों में तेज़ी से खून दौड़ता हुआ महसूस हुआ. गोपालजी ने मेरे कंधे पर टेप रखा और मेरी कांख पर नापा. मुझे ये देखकर आश्चर्य हुआ क्यूंकी मेरा लोकल टेलर इसे दूसरी तरह से नापता था. मतलब की वो मेरी कांख से टेप ले जाकर कंधे पर नापता था पर गोपालजी कंधे से टेप ले जाकर कांख में नाप रहा था. वो अपनी अंगुलियों से मेरे ब्लाउज में पसीने से भीगी हुई कांख को छू रहा था और मुझे असहज महसूस हो रहा था.

अब मैंने देखा की टेप की नाप नोट करने के लिए गोपालजी मेरी कांख के पास अपना चेहरा ले गया. मुझे अजीब लग रहा था क्यूंकी इतने नजदीक़ से तो कोई मेरी कांख की गंध सूंघ सकता था. 

हे भगवान ! ये आदमी क्या कर रहा है ? मैं मन ही मन बुदबुदाई. मैं ये देखकर जड़वत हो गयी की वो बुड्ढा मेरी पसीने से भीगी हुई कांख की गंध सूंघ रहा था.

नहीं , नहीं मुझे कोई ग़लतफहमी नहीं हो रही. गोपालजी जिस तरह से अपनी नाक सिकोड़ रहा था उससे साफ जाहिर था की वो मेरी कांख के पसीने की गंध को अपने नथुनों में भर रहा है. मेरी जिंदगी में कभी किसी मर्द ने ऐसे नाक लगाकर मेरी कांख को नहीं सूँघा था. उफ कितनी शरम की बात थी.

गोपाल टेलर – ठीक है मैडम अब आप अपनी बाँह नीचे कर लो. दीपू 10.5 “.

भगवान का शुक्र है , इसका सूंघना तो बंद हुआ. अब गोपालजी ने मेरे बाएं कंधे में ब्रा स्ट्रैप के ऊपर टेप को अपने हाथ से दबाया और दूसरे सिरे को मेरी बायीं चूची के ऊपर से होते हुए नीचे को लटका दिया. मेरे ब्लाउज के गले में यू शेप का बड़ा कट था और उन दोनों मर्दों को मेरी चूचियों के बीच की घाटी के फ्री दर्शन हो रहे थे. 

गोपाल टेलर – दीपू चोली की लंबाई कितनी होती है ?

दीपू - जी 14 - 16 “.

गोपाल टेलर – लेकिन बेटा तुम्हें हमेशा ग्राहक की आवश्यकता को ध्यान में रखना चाहिए.

दीपू – वो कैसे ? 

गोपाल टेलर – उदाहरण के लिए , कोई औरत छोटी चोली चाहती है तो तुम्हें 12 – 13” की लंबाई रखनी पड़ेगी. ध्यान रखो, औरत की छाती में 1 इंच से भी बहुत अंतर पड़ जाता है. अगर कोई मॉडर्न औरत है और वो मिनी चोली चाहती है तो चोली की लंबाई 10 – 12” रखनी पड़ेगी.

दीपू – जी मैं ध्यान रखूँगा.

मैं भी दीपू की तरह गोपालजी की बात ध्यान से सुन रही थी. मिनी चोली ? ये क्या होता है ?

गोपाल टेलर – दीपू बेटा, एक टेलर के रूप में तुम्हारा काम सिर्फ ग्राहक को संतुष्ट करना नहीं है.

दीपू – तो और क्या करना चाहिए ?

गोपाल टेलर – अगर जरूरत पड़े तो तुम्हें ग्राहक को ड्रेस के बारे में सावधान भी करना चाहिए. उदाहरण के लिए, अगर कोई औरत मिनी चोली चाहती है और उसके साथ नॉर्मल ब्रा पहनती है तो ये ब्रा फिसलकर उसकी छोटी चोली के नीचे से दिखने लगेगी. इसलिए ये तुम्हारा फर्ज बनता है की तुम उस मैडम को बताओ की मिनी चोली के साथ टाइट फिटिंग वाली ब्रा ही पहने ताकि चोली के नीचे से ना दिखे.

दीपू – जी मैं समझ गया. आपसे तो बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है.

गोपालजी गर्व से मुस्कुराया.

और तब तक मैं ऐसे ही अपनी बायीं चूची के ऊपर टेप लटकाये खड़ी थी. अब गोपालजी ने टेप को मेरी बायीं चूची की जड़ तक खींचा. वहाँ से मेरे ब्लाउज का निचला हिस्सा दो इंच और नीचे था.

गोपाल टेलर – 13 “

दीपू – जी 13”.

मैं अच्छी तरह समझ रही थी की मेरी बड़ी चूचियों को देखते हुए 13” की चोली तो मेरे लिए बहुत छोटी होगी . लेकिन गोपालजी से कहने में मुझे हिचक हो रही थी क्यूंकी मुझे उसकी बेशर्म ‘डाइरेक्ट’ भाषा से असहज महसूस होता था. फिर मैंने सोचा की साड़ी तो मुझे पहनने को मिलेगी नहीं और मेरे ऊपरी बदन में सिर्फ चोली ही है , 13” की छोटी चोली में तो मेरी छाती से पेट तक सब नंगा दिखेगा , अब अगर मैं बहस करके 1 इंच बढ़वा भी लेती हूँ तो उससे मेरा कितना बदन ढक जाएगा. इसलिए मैंने चुप रहना ही ठीक समझा.
 
मैं अच्छी तरह समझ रही थी की मेरी बड़ी चूचियों को देखते हुए 13” की चोली तो मेरे लिए बहुत छोटी होगी . लेकिन गोपालजी से कहने में मुझे हिचक हो रही थी क्यूंकी मुझे उसकी बेशर्म ‘डाइरेक्ट’ भाषा से असहज महसूस होता था. फिर मैंने सोचा की साड़ी तो मुझे पहनने को मिलेगी नहीं और मेरे ऊपरी बदन में सिर्फ चोली ही है , 13” की चोली में तो मेरी छाती से पेट तक सब नंगा दिखेगा , अब अगर मैं बहस करके 1 इंच बढ़वा भी लेती हूँ तो उससे मेरा कितना बदन ढक जाएगा. इसलिए मैंने चुप रहना ही ठीक समझा. 

गोपाल टेलर – दीपू , अब मैडम के गले और पीठ के कट की नाप लिखो. 

दीपू – जी अच्छा.

गोपाल टेलर – मैडम, आपके ब्लाउज में यू शेप का कट है लेकिन चोली में स्क्वायर कट होगा.

“मतलब ?”

गोपाल टेलर – मैडम, ग्राहक की पसंद के अनुसार अक्सर हम तीन तरह के गले बनाते हैं, यू कट, स्क्वायर कट, बोट कट. लेकिन महायज्ञ के निर्देशानुसार आपकी चोली में स्क्वायर कट होगा यानी गोल गले की बजाय चौकोर गला होगा.

मैंने कभी स्क्वायर कट ब्लाउज नहीं पहना था इसलिए मैं इसके बारे में जानने के लिए चिंतित हो रही थी. शायद गोपालजी ने मेरे चेहरे के भावों को पढ़ लिया.

गोपाल टेलर – मैडम, फिकर मत करो. ज़्यादा फरक नहीं होगा बस गला थोड़ा अलग दिखेगा.

मैं टेलर के जवाब से संतुष्ट नहीं हुई और उलझन भरी निगाहों से उसे देखा.

गोपाल टेलर – मैडम अगर आप अनुमति दें तो मैं आपको अंतर समझा सकता हूँ. असल में आपको असहज महसूस हो सकता है क्यूंकी इसका संबंध आपकी …….

उसने अपनी बात अधूरी छोड़ दी पर अपनी आँखों से मेरी चूचियों की तरफ इशारा किया. मैं क्या कहती ? इसका संबंध मेरी चूचियों से है इसलिए मत बताओ ? 

“ठीक है गोपालजी. आपसे बात करके मुझे भी कई बातें पता चल रही हैं.”

गोपाल टेलर – मैडम, मुख्य अंतर ये है की चौकोर गले से आपकी चूचियाँ थोड़ी ज़्यादा दिखेंगी. मैं दिखाता हूँ की कैसे दिखेंगी.

गोपालजी मेरे पास आकर खड़ा हो गया और अपना दायां हाथ मेरे कंधे पर रख दिया.

गोपाल टेलर – मैडम अभी आपका यू शेप का गला है (उसने मेरे कंधे से ब्लाउज के कट में अंगुली चलानी शुरू की). इस यू कट में आपकी चूचियों का ज़्यादातर ऊपरी हिस्सा ढका रहता है लेकिन उनके बीच का हिस्सा यानी की क्लीवेज दिखती है.

मेरे ब्लाउज के कट में गोपालजी के अंगुली चलाकर दिखाने से मेरा दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा. दीपू मेरी बिना पल्लू की चूचियों को घूर रहा था और अपनी आँखों से मेरी जवानी के रस की एक एक बूँद पी रहा था. गोपालजी की अँगुलियाँ मेरे ब्लाउज के कट में घुसने से मेरी चूत में खुजली होने लगी.

गोपाल टेलर – मैडम अब देखो की चौकोर गले में क्या होता है(वो अपना हाथ फिर से मेरे कंधे पर ले गया). अब कट गोल ना जाकर सीधी लाइन में नीचे जाएगा (वो मेरे कंधे से अपनी अँगुलियाँ सीधी लाइन में नीचे को ब्लाउज के अंदर लाया और मेरी दायीं चूची के बीच में ले जाकर रोक दी). अब यहाँ से सीधी लाइन में बायीं तरफ को (वो मेरी दायीं चूची के ऐरोला को छूते हुए बायीं चूची की तरफ अंगुली ले गया).

गोपालजी के मेरी चूचियों को अंगुलियों से छूने से मेरे होंठ खुल गये. मैं खुले होठों से ‘प्लीईआसए….’ बुदबुदाई. मेरा बायां हाथ अपनेआप ही साड़ी के ऊपर से मेरी चूत पर चला गया. मेरा रिएक्शन देखकर गोपालजी एक पल रुका फिर सीधी लाइन खींचने के बहाने अपने अंगूठे और अंगुलियों से मेरे निपल्स को छू दिया. मेरे बदन में ऊपर से नीचे तक एक सिहरन सी दौड़ गयी और मेरी टाँगें थोड़ी अलग हो गयीं.

गोपाल टेलर – मैडम फिर ये सीधी लाइन में ऊपर जाएगा (उसकी अँगुलियाँ मेरी बायीं चूची को दबाकर उसकी कोमलता का एहसास कर रही थीं ). अब आपको समझ आ गया होगा की स्क्वायर कट में आपकी चूचियों का ऊपरी हिस्सा खुला रहेगा. लेकिन मैडम मैं इसमें कोई फेर बदल नहीं कर सकता क्यूंकी महायज्ञ के लिए ऐसी ही चोली बनानी है.

फिर गोपालजी ने मेरे ब्लाउज के अंदर से हाथ बाहर निकाल लिया और मैंने उत्तेजना में एक पल के लिए अपनी आँखें बंद कर लीं. मुझे इस बात का ध्यान नहीं था की वो क्या कह रहा है बल्कि मेरा ध्यान उसके छूने से अपने बदन में उठती आनंद की लहरों की तरफ था.


गोपाल टेलर – मैडम, मुझे गुरुजी के निर्देशों का पालन करना होगा.

“ठीक है” , मैंने सर हिला दिया.

अब गोपालजी टेप से मेरी चोली के चौकोर गले की नाप लेने लगा और दीपू से नोट करने को कहा. फिर मेरी पीठ पर भी चोली के कट की नाप ली. मुझे साफ महसूस हो रहा था की गोपालजी टेलर की तरह नाप लेते हुए मेरी जवानी के मज़े भी ले रहा है. जब वो मेरी पीठ पर गर्दन के नीचे नाप ले रहा था तो उसने मेरी पीठ को अपनी हथेली से छुआ और मेरी ब्रा के हुक पर भी अपना हाथ दबाया. मैं जानती थी की मुझे इस आदमी की हरकतों को बढ़ावा नहीं देना चाहिए लेकिन मेरी भावनाएं मेरे मन पर हावी हो जा रही थीं.

गोपाल टेलर – मैडम, अपने हाथ ऊपर खड़े कर लीजिए. आपकी छाती की नाप लेनी है.

मैंने अपने दोनों हाथ ऊपर कर लिए. मैंने देखा की मेरे ब्लाउज में कांखों पर पसीने से गीले निशान बने हुए हैं. दीपू वहीं पर देख रहा था पर मैं कुछ कर नहीं सकती थी इसलिए उसे नजरअंदाज कर दिया. गोपालजी ने मेरी पीठ से घुमाकर मेरी छाती में टेप लगाया.

गोपाल टेलर – दीपू , यहाँ आओ.

दीपू मेरे पास आकर खड़ा हो गया. अब मैं दो मर्दों के सामने अपनी बाँहें ऊपर उठाए खड़ी थी और मेरा पल्लू फर्श पे गिरा हुआ था और ब्लाउज में मेरी चूचियाँ बेशर्मी से आगे को तनी हुई थीं.

गोपाल टेलर – दीपू बेटा, जब तुम छाती का नाप लेते हो तो इसे चूचियों के सबसे बड़े उभार पर नापना चाहिए. इसके लिए जिस मैडम की नाप तुम ले रहे हो उससे हाथ ऊपर करने को कहना चाहिए. असल में इससे दो फायदे होते हैं. तुम बता सकते हो की वो क्या हैं ?

दीपू – जी मुझे तो एक ही फायदा समझ आ रहा है.

गोपाल टेलर – वो क्या है ?

दीपू – इस पोज में जब मैं साइड से मैडम को देख रहा हूँ तो उसकी चूचियों का उभार अच्छे से दिख रहा है और सही से नाप ली जा सकती है.

गोपाल टेलर – हाँ ये सही है की इस पोज में छाती की नाप ठीक से ली जा सकती है. दूसरा फायदा ये है की जब मैडम ऐसे खड़ी है तो चूचियाँ बाहर को तन गयी हैं और तुम खिंची हुई फिटिंग देख सकते हो जो की बहुत जरूरी है. मेरे शुरुवाती दिनों में एक मैडम के लिए मैंने ब्लाउज सिला था , उसे टाइट ब्लाउज चाहिए था और मैंने टाइट ब्लाउज सिल दिया. अगले दिन वो कांख में फटा हुआ ब्लाउज लेकर वापस आई. इसलिए तुम्हें ध्यान रखना चाहिए की ब्लाउज के कपड़े को खिंची हुई फिटिंग के हिसाब से बनाओ. और उसे चेक करने का तरीका है ये पोज जिसमें अभी मैडम खड़ी हुई है.

दीपू – जी बिल्कुल सही है.

मैं सोच रही थी इन दोनों की टेलरिंग क्लास कब खत्म होगी.

गोपाल टेलर – अच्छा अब ब्लाउज कप्स को देखो और बताओ क्या कमी है ?

दीपू अपना चेहरा मेरे ब्लाउज के नजदीक़ ले आया और उसे मेरी चूचियों के इतने नजदीक़ देखकर मेरे निपल्स तन गये.

दीपू – जी , कपड़ा थोड़ा ढीला है जिसे ठीक किया जा सकता है.

गोपाल टेलर – हाँ, मैंने भी चेक किया था, कप्स के आधार को थोड़ा टाइट किया जा सकता है. मैडम की चोली बिना बाहों की है इसमें कांख को एडजस्ट करके चोली को टाइट किया जा सकता है ताकि स्ट्रैपलेस ब्रा के लिए सपोर्ट रहे.

दीपू ने सर हिला दिया.

गोपाल टेलर – दीपू एक और महत्वपूर्ण बात है. मैडम उम्मीद है की आप खीझ नहीं रही होंगी.
गोपालजी ने मुस्कुराते हुए मुझसे कहा. 

बहुत अच्छे ! तुम दोनों खुलेआम मेरी चूचियों के ऊपर कमेंट कर रहे हो और मुझे खीझ भी ना हो.

“ना ना गोपालजी ऐसी कोई बात नहीं. लेकिन आप जरा जल्दी करें तो ठीक रहेगा क्यूंकी ऐसे ऊपर को किए हुए मेरी बाँहें दर्द करने लगेंगी.”

गोपाल टेलर – मैडम सिर्फ़ इसकी नाप के लिए आपको हाथ ऊपर करने हैं बस फिर नहीं. मैं जल्दी ही खत्म करता हूँ.

अब गोपालजी दीपू की तरफ मुड़ा.

गोपाल टेलर – हाँ तो मैं बता रहा था की जब तुम छाती की नाप लेते हो तो कम से कम दो नाप और लो, एक कप से थोड़ा ऊपर और एक नीचे.

दीपू – जी ऐसा क्यूँ ?

गोपाल टेलर – देखो दीपू, औरतों की छाती अलग अलग आकार और प्रकार की होती है. हर औरत की चूचियाँ मैडम की जैसी बड़ी और कसी हुई नहीं होती हैं , है की नहीं ? हा…हा..हा…..

वो बुड्ढा जानबूझकर मेरी तरफ मुड़ते हुए हँसने लगा. मुझे इतनी कुढ़न हुई की क्या बताऊँ.

गोपाल टेलर – हम रोज इतनी औरतों की नाप लेते हैं, लेकिन कितनी ऐसी होती हैं जिनकी शादी के बाद भी ऐसी ऊपर को उठी हुई होती हैं ? इसलिए ध्यान रखो की कम से कम दो नाप और लो, ख़ासकर जिन औरतों की ढली हुई चूचियाँ हों , तुम ब्लाउज को देखकर आसानी से ये बात पता लगा सकते हो. 

दीपू – जी सही है.

मैं अपनी चूचियों के बारे में खुलेआम ऐसे कमेंट्स सुनकर हैरान थी. ऐसा नहीं था की मैं अपने लिए मर्दों के कमेंट्स पहली बार सुन रही थी. कॉलेज को आते जाते वक़्त आवारा लड़के कमेंट्स करते रहते थे जिन्हें मैं नजरअंदाज कर देती थी. मेरी मटकती हुई गांड और बड़ी चूचियों के बारे में उनके भद्दे कमेंट्स मुझे अभी भी याद हैं. शादी के बाद मेरे पति भी मेरे बदन और मेरी चूचियों के ऊपर कमेंट्स करते रहते थे, ख़ासकर संभोग के समय या फिर जब मैं ड्रेसिंग टेबल के आगे अपने बाल बनाया करती थी. वैसे तो वो भी अश्लील कमेंट्स होते थे पर मैं उनका मज़ा लेती थी क्यूंकी उनसे मेरे पति मेरी तारीफ किया करते थे. लेकिन जो आज हो रहा था वो बिल्कुल अलग था. लड़के को सिखाने के बहाने वो बुड्ढा टेलर खुलेआम मेरे सामने ही मेरे बारे में ऐसी अश्लील बातें कर रहा था. ना तो मैं इन बातों का मज़ा ले सकती थी ना ही नजरअंदाज कर सकती थी. मेरे लिए बड़ी अजीब स्थिति थी.

गोपाल टेलर – चलो बातें बहुत हुई अब काम करते हैं.

ऐसा कहते हुए गोपालजी ने मेरे पीछे हाथ ले जाकर मेरी छाती पर टेप लगाया. ऐसा करते हुए एक पल के लिए उसकी छाती मेरी चूचियों पर दब गयी. ऐसा होने से मेरे बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ गयी. असल में अनजाने में उसकी छाती ने ब्लाउज और ब्रा के अंदर ठीक मेरे निप्पल्स को दबाया था. तुरंत ब्रा के अंदर निप्पल कड़क हो गये और मेरी पैंटी में कुछ बूँद रस निकल गया.

मैंने अपना ध्यान बदलकर दूसरी तरफ लगाने की कोशिश की और सोचा की कैसे इस बुड्ढे ने मेरी तरफ देखकर गंदी स्माइल दी थी जब उसने कहा था ‘हर औरत की चूचियाँ मैडम की जैसी बड़ी और कसी हुई नहीं होती हैं , है की नहीं ? हा…हा..हा…..’ . मैंने उस टेलर के बारे में नकारात्मक सोचना चाहा. लेकिन ऐसा ना हो सका. गोपालजी मेरी छाती नापने लगा और मैं अपने ऊपर काबू खोने लगी क्यूंकी मेरा बदन मेरे दिमाग़ की नहीं सुन रहा था.
 
मैंने अपना ध्यान बदलकर दूसरी तरफ लगाने की कोशिश की और सोचा की कैसे इस बुड्ढे ने मेरी तरफ देखकर गंदी स्माइल दी थी जब उसने कहा था ‘हर औरत की चूचियाँ मैडम की जैसी बड़ी और कसी हुई नहीं होती हैं , है की नहीं ? हा…हा..हा…..’ . 
मैंने उस टेलर के बारे में नकारात्मक सोचना चाहा. लेकिन ऐसा ना हो सका. गोपालजी मेरी छाती नापने लगा और मैं अपने ऊपर काबू खोने लगी क्यूंकी मेरा बदन मेरे दिमाग़ की नहीं सुन रहा था.

गोपालजी – मैडम, आप सीधी खड़ी रहो और अपना बदन हिलाना मत. मैं नाप ले रहा हूँ.

मैंने सर हिला दिया और टेलर ने अब मेरे ब्लाउज में टेप लगाया. टेप सीधा करने के बहाने गोपालजी ने ब्लाउज के बाहर से मेरी चूचियों को छुआ और मेरी सुडौल चूचियों की गोलाई और कोमलता का एहसास किया. मैं सब समझ रही थी पर इससे मुझे भी एक सेक्सी फीलिंग आ रही थी.

गोपालजी – मैडम, मैं अब टेप को टाइट करूँगा , अगर बहुत टाइट लगे तो बता देना.

“ठीक….क है…”

मैंने हकलाते हुए बोल दिया क्यूंकी गोपालजी के हाथ अभी भी मेरी रसीली चूचियों को छू रहे थे और एक मर्द का हाथ लगने से मेरे निपल्स खड़े होने लगे थे. मैं गहरी साँसें लेने लगी थी और मेरी मज़े लेने की इच्छा मेरे दिमाग़ को सुन्न करती जा रही थी. मन से मैं अपने को समझा रही थी की मुझे ऐसे व्यवहार नहीं करना चाहिए क्यूंकी अगर गोपालजी को मेरी मनोदशा का पता चल गया तो मेरे लिए बहुत शर्मिंदगी वाली बात होगी.

अब गोपालजी ने टेप को टाइट करना शुरू किया और टेप के दोनों सिरे मेरी बायीं चूची पर लगा दिए. उसकी अँगुलियाँ मेरे निप्पल को छू रही थीं और टेप को उसने मेरे ऐरोला पर दबाया हुआ था.

“आआहह…” मैंने मन ही मन सिसकारी ली.

अब नाप लेने के लिए उसने टेप को अंगूठे से मेरे निप्पल पर दबा दिया.

गोपालजी – मैडम, ये ठीक है ? ज़्यादा टाइट तो नहीं है ?

“आह…. ठीक है…”

जैसे तैसे मैंने बोल दिया . अब मुझे अपनी पैंटी में गीलापन महसूस हो रहा था.

गोपालजी – 33.6”.

दीपू – जी.

गोपालजी – मैडम अब अपने हाथ मेरे कंधों पर रख लीजिए.

मैं अभी तक बाँहें ऊपर उठाए खड़ी थी और ये सुनकर मुझे राहत हुई. मैंने उसके कंधों पर हाथ रख लिए. अब उसने टेप के दोनों सिरे मेरी बायीं चूची पर दाएं हाथ से पकड़ लिए और अपना बायां हाथ मेरी पीठ पर ले गया ये देखने के लिए की टेप सीधा है या नहीं. वो मेरी दायीं चूची को छूते हुए अपना हाथ पीछे ले गया और पीछे टेप चेक करने के बाद फिर से दायीं चूची से अपना हाथ टकराते हुए वापस आगे लाया.

मैंने अपने हाथ उसके कंधों में रखे हुए थे इसलिए मेरी तनी हुई चूचियों साइड्स से भी खुली हुई थीं. अब इसी तरह उसने मेरी दायीं चूची पर नापा और मेरी जवानी को इंच दर इंच महसूस किया.

“आअहह…”

किसी तरह मैंने अपनी सिसकी को रोका. मेरा दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा था और खड़े खड़े मेरी टाँगें अलग होने लगीं. फिर से गोपालजी ने नाप लेने के बहाने मेरी दायीं चूची के निप्पल को अंगूठे से दबाया. मुझे साफ महसूस हो रहा था की गोपालजी की साँसें भी तेज हो गयी हैं और उसके हाथ भी हल्के हल्के कंपकपा रहे थे. बुड्ढा यही नहीं रुका और टेप पकड़ने के बहाने उसने मेरे पूरी तरह तन चुके निप्पल को दो अंगुलियों के बीच पकड़ लिया.

अब ये मेरे लिए असहनीय था और मैंने अपने ऊपर नियंत्रण खो दिया. मैंने गोपालजी के कंधों को कस के पकड़ लिया और उत्तेजना से नाखून गड़ा दिए. मैं जानती थी की ये मेरी बड़ी ग़लती थी. मैंने उसको जतला दिया था की उसकी हरकतों से मैं उत्तेजित हो रही हूँ और इससे मेरी मुसीबत और भी बढ़ने वाली थी. सच कहूँ तो मैं अपनी काम भावनाओं पर काबू ना पा सकी. मैं जानती थी की जब तक मैंने अपनी भावनाओं को नियंत्रण में रखा है तब तक चीज़ें एक हद से आगे नहीं बढ़ेंगी. लेकिन जब एक बार मैंने अपनी कमज़ोरी उजागर कर दी तो फिर मुसीबत आ जाएगी.

अचानक मुझे याद आया की एक बार मेरी एक सहेली ने इसके लिए मुझे चेताया भी था. उसका नाम सुनीता था और मेरी शादी के बाद हमारी कॉलोनी में उससे मेरा परिचय हुआ था. तब उसकी शादी को 5 साल हो गये थे और उसके दो बच्चे थे. मेरी उससे अच्छी दोस्ती हो गयी थी. वो ही मुझे लोकल टेलर के पास ले गयी थी जिससे अब मैं अपने कपड़े सिलवाती हूँ. हम दोनों खुल के बातें किया करती थीं, यहाँ तक की अपनी सेक्स लाइफ और पति के बारे में अंतरंग बातें भी हम शेयर करते थे. एक दिन मैं दोपहर को उसके घर गयी तो उसके पति काम पर गये हुए थे और बच्चे स्कूल गये हुए थे. हम गप्पें मारने लगे और मैंने भीड़ भरी बसों में अपने साथ हुए वाक़ये उसे सुनाए की किस तरह मर्दों ने मेरे नितंबों और चूचियों को दबाया था और कभी कभी तो वो लोग हद भी पार कर जाते थे पर शर्मीली होने से मैं विरोध नहीं कर पाती थी और सच कहूँ तो हल्की फुल्की छेड़छाड़ के मैंने भी मज़े लिए थे.

तब सुनीता ने भी एक टेलर के साथ अपना किस्सा सुनाया. मेरी तरह वो भी नाप देते समय टेलर के छूने से उत्तेजित हो जाया करती थी. एक दिन टेलर उसकी नाप ले रहा था और उसके छूने से वो उत्तेजित हो गयी. उसने मुझे ये भी बताया की रात में उसके पति ने चुदाई करके उसे संतुष्ट किया था पर टेलर के बार बार चूचियों पर हाथ फेरने से वो उत्तेजित हो गयी. शुक्र था की जल्दी ही उसने अपनी भावनाओं पर काबू पा लिया और चूचियों को दबाने और सहलाने पर ही बात खत्म हो गयी. लेकिन उसने मुझसे कहा की ऐसी सिचुयेशन से बाहर निकलना बहुत मुश्किल हो जाता है.

“…रश्मि, तुम विश्वास नहीं करोगी, ऐसी सिचुयेशन से बाहर निकलना बहुत मुश्किल है. तब तक टेलर को पता चल चुका था की उसके छूने से मैं कमज़ोर पड़ रही हूँ और मैं उसका आसान शिकार हूँ. मैं भी उत्तेजना में बह गयी और ये भूल गयी की मैं किसी और की पत्नी हूँ और दो बच्चों की माँ हूँ. मैंने बेशर्मी से उसे ब्लाउज के ऊपर से मेरी चूचियों को दबाने दिया. उसको कोई रोक टोक नहीं थी और वो मेरी हालत का फायदा उठाते गया. कैसे बताऊँ, उफ …कितना बेशरमपना दिखाया उस दिन मैंने….उस टेलर ने पीछे से मेरे पेटीकोट के अंदर भी हाथ डाल दिया. तभी मुझे लगा की मैं ग़लत कर रही हूँ और मैं ही जानती हूँ कैसे मैंने अपनी काम भावनाओं पर काबू पाया और उसे रोक दिया. मैं बहाना बनाकर किसी तरह उसके चंगुल से छूटी. वरना उस दिन वहीं फर्श पर वो मुझे चोद देता. ज़रा सोचो. थोड़े मज़े के लिए एक छोटी सी लापरवाही से मैं जिंदगी भर अपने को माफ़ नहीं कर पाती. रश्मि , मैं तुम्हें अनुभव से बता रही हूँ, अगर कभी जिंदगी में राजेश के अलावा किसी दूसरे मर्द के साथ तुम बहकने लगो तो ध्यान रखना, अपनी भावनाएं उस पर जाहिर ना होने देना. अगर तुमने ऐसा किया तो ये सिर्फ मुसीबत को आमंत्रण देने जैसा होगा….”

गोपालजी - दीपू, 33.2 टाइट. मैडम बहुत टाइट तो नहीं हो रहा ?

गोपालजी की आवाज़ सुनकर मैं जैसे होश में आई. 

“…ठीक है…”

असल में कुछ भी ठीक नहीं था क्यूंकी अब टेप मेरी चूचियों में कसने लगा था. अब गोपालजी ने मेरी दायीं चूची के निप्पल पर टेप को और टाइट कर दिया.

गोपालजी – ये ठीक है मैडम ? या टाइट हो गया ?

“उहह….टाइट हो गया…”

मैं भर्रायी हुई आवाज़ में बोली. गोपालजी की अंगुलियों का दबाव मेरे निपल्स पर बढ़ रहा था और मुझसे बोला भी नहीं जा रहा था. मैंने जैसे तैसे अपने को काबू में किया और उसके कंधों को पकड़े हुए खड़ी रही.

गोपालजी – ठीक है मैडम, 33.2 रखता हूँ. दीपू नोट करो.

दीपू – जी.

गोपालजी – मैडम, अब एक आख़िरी बार चेक कर लेता हूँ फिर फाइनल करता हूँ.

एक शादीशुदा औरत की चूचियों को छूने से गोपालजी भी एक्साइटेड लग रहा था. उसका उत्साह ये देखकर ज़रूर बढ़ा होगा की उसकी हरकतों से उत्तेजित होकर मैंने उसके कंधों पर अपने नाख़ून गड़ा दिए थे. और मेरा लाल चेहरा भी मेरी उत्तेजित अवस्था को दिखा रहा था.

वैसे तो वो नाप ले रहा था और दीपू को नाप नोट करा रहा था पर मुझे साफ अंदाज आ रहा था की वो मेरे ब्लाउज के बाहर से मेरी चूचियों को पकड़ रहा है. एक मर्द के हाथों की मेरी चूचियों पर पकड़ से मैं कांप रही थी. 

मैं मन ही मन हंस भी रही थी की ये बुड्ढा इतना चालाक है और इस उमर में भी इतना ठरकी है. मैं उसकी बेटी की उमर की थी लेकिन फिर भी वो मेरे प्रेमी की तरह मेरी जवानी का रस पी रहा था. वो टेप के दोनों सिरों को ठीक मेरी दायीं या बायीं चूची में दबाकर नाप रहा था. वो हर तरह से मुझसे मज़े ले रहा था , कभी अपनी अंगुलियों से मेरी चूची को दबाता , कभी निप्पल को अंगूठे से दबाता , कभी मेरी पूरी चूची पर अँगुलियाँ फिराकर उनकी कोमलता का एहसास करता और कभी नीचे से चूचियों को ऊपर को धक्का देता.

मैंने तिरछी नज़रों से दीपू को देखा पर शुक्र था की वो इस बात से अंजान था की ये बुड्ढा मेरे साथ क्या कर रहा है. अब पहली बार मैंने अपनी तरफ से कुछ किया, मैंने टेलर के हाथों में अपनी चूचियों से धक्का दिया. मुझे यकीन है की उसे इस बात का ज़रूर पता चला होगा क्यूंकी जब हमारी नज़रें मिली तो उसने आँख मार दी. उसकी कामुक हरकतें मुझे उत्तेजित कर तडपा रही थी और अब मेरा मन हो रहा था की कोई मर्द मुझे अपने आलिंगन में कस ले और ज़ोर ज़ोर से मेरी चूचियों को मसल दे. मेरी साँसें भारी हो गयी थीं , मेरे होंठ खुल गये थे , मेरी टाँगें काँपने लगी थीं और मेरी चूत से रस निकलता जा रहा था. उत्तेजना बढ़ने से अंजाने में मैं अपने नितंबों को भी हिलाने लगी थी लेकिन जब मुझे इसका एहसास हुआ तो मुझे बहुत शर्मिंदगी हुई.

गोपालजी – मैडम, ठीक है फिर, मैं आपकी चोली को इतनी ही टाइट रखता हूँ.

ऐसा कहते हुए उसने मेरे लाल चेहरे को देखा. मैं कोई जवाब देने की हालत में नहीं थी. इस चतुर बुड्ढे ने बड़ी चतुराई से मेरे बदन की आग को भड़का दिया था. मुझे डर था की मेरी गीली पैंटी से कहीं मेरे पेटीकोट में भी गीला धब्बा ना लग गया हो क्यूंकी मुझे आशंका थी की अभी तो घाघरे की भी नाप लेनी है और ये बुड्ढा ज़रूर मेरी साड़ी उतरवा कर पेटीकोट में ही नाप लेगा.

गोपालजी – बस अब चोली की लास्ट नाप लेता हूँ , कंधे से छाती तक.

अब मैं गोपालजी की अंगुलियों का स्पर्श बर्दाश्त करने की हालत में नहीं थी. मैं उत्तेजना से कांप रही थी और शारीरिक और मानसिक रूप से बहुत कमज़ोर पड़ चुकी थी. अब गोपालजी मुझे छुएगा तो ना जाने मैं क्या कर बैठूँगी. 

गोपालजी – दीपू , कॉपी यहाँ लाओ.

दीपू कॉपी लेकर मेरे पास आया. गोपालजी उसकी लिखी हुई नाप देख रहा था तभी दीपू ने कुछ ऐसा कहा की कमरे का माहौल ही बदल गया.

दीपू – मैडम, आप कांप क्यूँ रही हो ? ठीक तो हो ?

मेरे कुछ कहने से पहले ही टेलर बोल पड़ा.

गोपालजी – हाँ, मैडम, मुझे भी लगा की आप कांप रही हो. मैं देखता हूँ.

उसने मेरे माथे पर हाथ लगाया.

दीपू – मैडम, आपको तो बहुत पसीना भी आ रहा है.

मैं कुछ नहीं बोल पाई.

गोपालजी – मैडम, आपका माथा तो ठंडा लग रहा है. आपको क्या हो रहा है ? मैडम , मैं आपको सहारा दूं क्या ?

उसने मेरे जवाब का इंतज़ार किए बिना मेरी बाँह पकड़ ली.

“मैं ठीक…….आउच….”

मैं कहना चाह रही थी की मैं ठीक हूँ पर मेरी बाँह में टेलर ने चिकोटी काट दी.

गोपालजी – क्या हुआ मैडम ? दीपू, मैडम के लिए एक ग्लास पानी लाओ.

“लेकिन….”

दीपू कमरे के कोने में पानी लाने गया तो गोपालजी ने कस के मेरी बाँह पकड़ ली और मेरे कान के पास अपना मुँह लाया.

गोपालजी – अगर आपको और चाहिए तो जैसा मैं कहूँ वैसा बहाना बनाओ.

उसकी फुसफुसाहट पर मैंने गोपालजी को जिज्ञासु निगाहों से देखा. लेकिन उसकी बात पर सोचने का समय नहीं था क्यूंकी दीपू पानी ले आया था. दीपू को सच में यह लग रहा था की मेरी हालत ठीक नहीं है.

गोपालजी – बताओ मैडम, कैसा लग रहा है ? आपको चक्कर आ रहा है क्या ?

गोपालजी ने मेरी बाँह ऐसे पकड़ी हुई थी की मेरी अँगुलियाँ उसकी लुंगी से ढकी हुई जांघों को छू रही थीं. दीपू ने मुझे पानी का ग्लास दिया और जब मैं पानी पी रही थी तो गोपालजी ने लुंगी के अंदर खड़े लंड से मेरा हाथ छुआ दिया.

मैंने पानी गटका और एक पल के लिए अपनी आँखें बंद कर ली और फिर झूठ बोल दिया.

“ओह्ह …मेरा सर….घूम रहा है….”

मैंने ऐसा दिखाया की मुझे ठीक नहीं लग रहा है. दीपू को मेरी बात पर विश्वास हो गया था.

दीपू – मैडम को ठीक से पकड़ लीजिए. कुर्सी लाऊँ मैडम ?

गोपालजी इसी अवसर का इंतज़ार कर रहा था और अब उसे मालूम था की मैं बहाना बना रही हूँ और दीपू को भी भरोसा हो गया है , अब उसके लिए कोई रुकावट नहीं थी. गोपालजी ने अब मेरी दोनों बाँहें पकड़ लीं.

गोपालजी – मैडम, फिकर मत करो , कुछ देर में ठीक हो जाएगा. बस अपने बदन को ढीला छोड़ दो.

मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं और अपने सर को थोड़ा हिलाया ताकि लगे की चक्कर आ रहा है.

दीपू – मैडम , ये आपको चक्कर अक्सर आते हैं क्या ? कोई दवाई लेती हो ?

गोपालजी ने मुझे इन सवालों का जवाब देने से बचा लिया.

गोपालजी – दीपू, लगता है ये बेहोश होने वाली है. क्या करें ? 

ऐसा कहते हुए उसने फिर से मेरी बाँह में चिकोटी काटी ताकि मैं बेहोश होने का नाटक करूँ.

मेरे पास इसके सिवा कोई चारा नहीं था और मैंने बेहोश होने का नाटक करते हुए अपना सर गोपालजी के बदन की तरफ झुकाया.

दीपू – अरे … अरे …. कस के पकड़ लीजिए. मैं भी पकड़ता हूँ.

ऐसा कहते हुए दीपू ने पीछे से मेरी कमर पकड़ ली. गोपालजी ने मुझे गिरने से बचाने के बहाने अपने आलिंगन में ले लिया और एक मर्द के टाइट आलिंगन की मेरी काम इच्छा पूरी हुई. मेरी आँखें बंद थीं और मेरा दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था. गोपालजी के टाइट आलिंगन से मेरी चूचियाँ उसकी छाती में दबी हुई थीं और उसकी बाँहें मेरी कमर में थी. सच बताऊँ तो गोपालजी से ज़्यादा मैं खुद ही अपनी सुडौल चूचियों को उसकी छाती में दबा रही थी.

“आआआहह…..”

मैंने उत्तेजना में धीरे से सिसकी ली.

दीपू – मैडम को बेड में ले चलिए.
 
दीपू – मैडम को बेड में ले चलिए.

गोपालजी अपने बदन में मेरी कोमल चूचियों का दबाव महसूस कर रहा था इसलिए वो मुझे अपने आलिंगन से छोड़ने के लिए अनिच्छुक था.

गोपालजी – रूको अभी. कुछ पल देखता हूँ, क्या पता मैडम ऐसे ही होश में आ जाए. तब तक तुम बेड से कपड़े हटाओ और चादर ठीक से बिछा दो.

दीपू – जी अच्छा.

अभी तक दीपू ने मेरी पीठ को सहारा दिया हुआ था वैसे इसकी कोई ज़रूरत नहीं थी क्यूंकी गोपालजी मुझे ऑक्टोपस के जैसे जकड़े हुए था. 60 बरस की उमर में भी उस टेलर ने बड़ी मजबूती से मुझे पकड़ रखा था. अब दीपू बेड ठीक करने गया तो मुझे लगा की एक बार आँखें खोलकर देखने में कोई ख़तरा नहीं है. मैंने देखा की दीपू मेरे बेड से कपड़ों को हटा रहा है , लेकिन मैं एक पल के लिए ही उसे देख पाई क्यूंकी अब गोपालजी मुझे अपने आलिंगन में ऐसे दबा रहा था जैसे की अपनी पत्नी को आलिंगन कर रहा हो. उसका मुँह मेरी गर्दन और कंधों पर था और दीपू का ध्यान दूसरी तरफ होने का फायदा उठाते हुए उसने अपने दाएं हाथ से मेरी चूचियों को दबाना शुरू कर दिया. बड़ी मुश्किल से मैंने अपनी सिसकारियाँ रोकी और चुपचाप चूची दबवाने का मज़ा लिया.

दीपू – जी हो गया. मैडम को होश आ गया ?

उसकी आवाज़ सुनते ही मैंने अपनी आँखें बंद कर ली और गोपालजी के कंधों में सर रख दिया. गोपालजी ने भी तुरंत मेरी चूचियों से हाथ हटा लिए. मेरी साड़ी का पल्लू अभी भी फर्श में गिरा हुआ था.

गोपालजी – नहीं आया. चलो मैडम को बेड में ले जाते हैं.

मैंने देखा तो नहीं पर दीपू मेरे नज़दीक आ गया. मैं सोचने लगी ये दोनों मुझे बेड में कैसे ले जाएँगे ? गोपालजी की उमर और उसके शरीर को देखते हुए वो मुझ जैसी गदराये बदन वाली जवान औरत को गोद में तो नहीं उठा सकता था. जो भी हो , लेकिन इस नाटकबाजी में मुझे बहुत रोमांच आ रहा था और मैं बेशरम बनकर सोच रही थी की ऐसे थोड़ा मज़ा लेने में हर्ज़ ही क्या है.

दीपू – हम मैडम को कैसे ले जाएँगे ?

गोपालजी – ऐसा करो पहले तो मैडम की साड़ी उतार दो ये फर्श में मेरे पैरों में लिपट जा रही है.

उउऊऊह ……मैं मन ही मन बुदबुदाई. 

दीपू ने तुरंत मेरी कमर से साड़ी उतार दी. वैसे भी जल्दी ही उसकी शादी होने वाली थी तो उसे अपनी पत्नी की साड़ी उतारना तो आना ही चाहिए. जब दीपू मेरी साड़ी उतार रहा था तो मुझे बड़ा अजीब लग रहा था क्यूंकी आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ था की मेरी आँखें बंद करके किसी ने मेरी साड़ी उतारी हो. शादी के शुरू के दिनों में जब मेरे पति बेड में मेरी पैंटी उतारते थे तब मैं शरम से आँखें बंद कर लेती थी. लेकिन धीरे धीरे आदत हो गयी और बाद में मुझे इतनी शरम नहीं महसूस होती थी. लेकिन ऐसा तो कभी नहीं हुआ था.

गोपालजी ने भी दीपू की तेज़ी पर गौर किया और गंदा कमेंट कर डाला.

गोपालजी – दीपू बेटा, आराम से खोलो. इतनी तेज़ी क्यों दिखा रहे हो ?

दीपू ने कोई जवाब नहीं दिया. शायद वो इसलिए जल्दबाज़ी दिखा रहा था क्यूंकी मुझे बेहोश देखकर जल्दी से बेड में लिटाना चाह रहा था.

गोपालजी – अरे … इतनी तेज़ी से साड़ी क्यूँ उतार रहे हो. ये तुम्हारी घरवाली थोड़े ही है जो तुम्हें पेटीकोट भी उठाने को मिलेगा …हा हा हा….

दीपू – हा हा हा…..

गोपालजी – मैडम की साड़ी कुर्सी में रख दो.

अब मैं गोपालजी की बाँहों में सिर्फ़ ब्लाउज और पेटीकोट में खड़ी थी और फिर गोपालजी ने पेटीकोट के ऊपर से मेरे सुडौल नितंबों पर हाथ रख दिए और उनकी गोलाई का एहसास करने लगा , मैं समझ गयी की अभी दीपू मेरी साड़ी कुर्सी में रख रहा होगा. हमेशा की तरह मेरी पैंटी मेरे नितंबों की दरार में सिकुड चुकी थी और गोपालजी को पेटीकोट के बाहर से मेरे मांसल नितंबों का पूरा मज़ा मिल रहा होगा. मुझे भी एक मर्द के हाथों से अपने नितंबों को सहलाने का मज़ा मिल रहा था.

मैंने फिर से एक पल के लिए आँखें खोली और देखा की दीपू वापस आ रहा है , गोपालजी ने तुरंत अपने हाथ मेरी कमर में रख लिए. मेरी पैंटी पूरी गीली हो चुकी थी और अब मैं बहुत कामोत्तेजित हो चुकी थी.

दीपू – अब ले चलें.

गोपालजी – हाँ. तुम इसकी टाँगें पकड़ो और मैं कंधे पकड़ता हूँ.

दीपू ने मेरी टाँगें पकड़ लीं और गोपालजी ने कंधे पकड़े और मुझे फर्श से उठा लिया. ऐसे पकड़े हुए वो मुझे बेड में ले जाने लगे. दीपू ने मेरी नंगी टाँगें पकड़ रखी थीं तो मेरा पेटीकोट थोड़ा ऊपर उठ गया और उसका निचला हिस्सा हवा में लटक गया. वो तो अच्छा था की बेड पास में ही था वरना ऐसे पेटीकोट लटकने से तो नीचे से अंदर का सब दिख जाता. फिर उन्होंने मुझे बेड में लिटा दिया और मेरे सर के नीचे तकिया लगा दिया.

गोपालजी – दीपू, अब क्या करें ? कुछ समझ नहीं आ रहा . गुरुजी को बुलाऊँ क्या ?

दीपू – जी , मैंने अपने गांव में बहुत बार मामी को बेहोश होते देखा है. मेरे ख्याल से अगर मैडम के चेहरे पर पानी छिड़का जाए तो इसे होश आ सकता है.

गोपालजी – तो फिर पानी ले आओ. तुम्हारी मामी को बेहोशी के दौरे पड़ते हैं क्या ?

दीपू – जी हाँ. बेहोश होकर गिरने से उसे कई बार चोट भी लग चुकी है. लेकिन वो तो बेहोश होकर गिर जाती है पर मैडम तो खड़ी रही , कुछ अलग बीमारी मालूम होती है. 

मैं आँखें बंद किए हुए उनकी बातें सुन रही थी और अपने चेहरे पर पानी पड़ने का इंतज़ार कर रही थी. दीपू पानी ले आया और उन दोनों में से पता नहीं कौन मेरे चेहरे पर पानी छिड़क रहा था, पर मैंने पूरी कोशिश करी की ठंडा पानी पड़ने पर भी ना हिलूं.

दीपू – मैडम पर तो कोई असर नहीं पड़ रहा.

गोपालजी – हाँ. तुम्हारी मामी जब बेहोश होती है तो उसके घरवाले क्या करते हैं ?

दीपू – सांस ठीक से ले रही है या नहीं ? एक बार चेक कर लीजिए.

गोपालजी ने मेरी नाक के आगे हाथ लगाया.

गोपालजी – बहुत हल्की चल रही है.

ये सुनकर मैंने भी सांस रोक ली ताकि अगर दीपू भी चेक करना चाहे तो उसे भी यही लगे. इस नाटक में मुझे बड़ा मज़ा आ रहा था.

दीपू – ऐसा है, तब तो एक काम करना होगा जो की मैंने मामी के साथ देखा है.

गोपालजी – क्या करना होगा ?

दीपू – जब मेरी मामी की हल्की सांस आती थी तो उसकी छाती ज़ोर से दबाकर पंप करते थे और तलवों की मालिश करते थे. 

गोपालजी – हाँ ये अच्छा सुझाव है. चलो ऐसा ही करते हैं. तुम मैडम के तलवों की मालिश करो.

एक पल के लिए मेरे दिल ने धड़कना बंद कर दिया. ये अच्छा सुझाव नहीं बहुत बढ़िया सुझाव है. मुझे तो कामोत्तेजना से बड़ी बेताबी हो रखी थी की कोई मर्द मेरी कसी हुई चूचियों को अच्छे से दबाए. अब इस बेहोशी के बहाने गोपालजी मेरी छाती को पंप करेगा. इस ख्याल से ही मेरे निप्पल ब्रा के अंदर कड़क हो गये.

गोपालजी ने बिल्कुल वक़्त बर्बाद नहीं किया और ब्लाउज के बाहर से मेरी चूचियाँ पकड़ लीं और दबाने लगा. जल्दी ही उत्तेजना में भरकर वो बुड्ढा टेलर मेरी जवान चूचियों को दोनों हथेलियों में दबोचकर मसलने लगा. मेरी साँसें उखड़ने लगीं और स्वाभाविक उत्तेजना से मेरी टाँगें अलग हो गयीं और मेरे नितंब भी कसमसाने लगे.

एक मर्द मेरी जवानी को आटे की तरह गूथ रहा था और मैं ज़्यादा हिल डुल भी नहीं सकती थी सिर्फ़ अपने होंठ काट रही थी. सच कहूँ तो मेरे नाटक करने से और गोपालजी की चतुर चालों से मेरे दिल को एक अजीब रोमांच और बदन को संतुष्टि और आनंद का एहसास हो रहा था.

दीपू – जी मुझे लगता है की मैडम के बदन में हरकत होने लगी है. मुझे इसकी टाँगें हिलती हुई महसूस हो रही हैं.

ये सुनकर मैंने जैसे तैसे अपनी कामोत्तेजना पर काबू पाया और एक पत्थर की तरह से पड़ी रही. गोपालजी को भी समझ आया और उसने मेरी चूचियों पर पकड़ ढीली कर दी.

गोपालजी – ठीक है तो फिर एक बार और सांस चेक कर लेता हूँ.

फिर से गोपालजी ने मेरी नाक के आगे हाथ लगाया. जाहिर था की अब मैं गहरी साँसें लेने लगी थी पर गोपालजी ने फिर से वही कहा.

गोपालजी – ना दीपू बेटा. सांस अभी भी वैसी ही है. इसके तलवे ठंडे हो रखे हैं क्या ?

दीपू – जी, लग तो रहे हैं.

गोपालजी – तो फिर अब क्या करना है ?

दीपू – जी , मैंने देखा था की अगर ऐसे होश नहीं आता तो गांव में मामी के मुँह में मुँह लगाकर सांस देते थे. आपसे हो पाएगा ऐसा ?

मुँह में मुँह लगाकर सांस देगा. हे भगवान. मेरा टेलर मेरे साथ ऐसा करेगा ? मेरे साथ तो ये होठों का होठों से चुंबन ही होगा. मैं इसे अपना चुंबन लेने दूँ या नहीं ? एक गांव का टेलर मेरा चुंबन लेगा. और वो भी 60 बरस की उमर का. ऐसे बुड्ढे का चुंबन कैसा महसूस होगा ?

ये सभी सवाल मेरे मन में आए. लेकिन इनका जवाब भी मेरे मन ने ही दिया.

क्यूँ नहीं ले सकता ? इसमें हर्ज़ ही क्या है ? इसने मुझे इतना मज़ा दिया है तो इसको अपने होठों का रस भी पीने देती हूँ. ये सिर्फ़ एक टेलर ही है पर पहले ही मुझे मेरे पति की तरह आलिंगन कर चुका है और वैसे भी सिर्फ़ एक चुंबन से मेरा क्या नुकसान होने वाला है ? जब नाटक कर ही रही हूँ तो क्यूँ ना इसका पूरा मज़ा लूँ.

इस तरह मैंने अपने को उस बुड्ढे टेलर के चुंबन के लिए तैयार कर लिया. 

गोपालजी – हाँ क्यूँ नहीं ? मैं कोशिश तो कर ही सकता हूँ और अगर ऐसा करने से मैडम को होश आ जाता है तो बहुत बढ़िया. वैसे तुमने देखा तो होगा कि ऐसा करते कैसे हैं ?

मैंने महसूस किया की गोपालजी मेरे चेहरे के करीब आ गया.

दीपू – आप मैडम का मुँह खोलो और उसके मुँह से हवा खींचकर अपने मुँह से हवा भर दो. 

गोपालजी – ठीक है. मैं कोशिश करता हूँ.

दीपू – लेकिन मुँह से सांस देते समय छाती को भी पंप करते रहना. मामी को भी ऐसा ही करते थे.

गोपालजी – अच्छा, ठीक है.
 
दीपू – लेकिन मुँह से सांस देते समय छाती को भी पंप करते रहना. मामी को भी ऐसा ही करते थे.

गोपालजी – अच्छा, ठीक है.

अब तो जैसे उस 60 बरस के आदमी के मन की मुराद पूरी हो गयी. कुछ ही पलों में उसके ठंडे होठों ने मेरे होठों को छुआ. वो उत्तेजना से कांप रहा था और उसके दिल की धड़कनें तेज हो गयी थीं. गोपालजी ने अपने हाथ से मेरे मुँह को खोला और मुँह में हवा देने के बहाने मेरे निचले होंठ को अपने होठों के बीच दबाकर महसूस किया. फिर उसने मेरा चुंबन लेना शुरू किया और उसकी गरम जीभ मैंने अपने मुँह के अंदर घूमती हुई महसूस की. उसकी लार मेरी लार से मिल गयी और मैंने भी चुंबन में उसका साथ दिया. कुछ पलों बाद गोपालजी ने मेरी चूचियाँ पकड़ लीं और उन्हें निचोड़ने लगा. जिस तरह से वो उन्हें मसल रहा था उससे मुझे लगा की इस बार तो मेरे ब्लाउज के हुक टूट ही जाएँगे. मेरे होठों को चूमने के साथ साथ वो मेरी बड़ी चूचियों को मनमर्ज़ी से दबोच रहा था और उनके बीच तने हुए कड़क निपल्स को अपने अंगूठे से महसूस कर रहा था.

अब चीजें हद से पार और मेरे नियंत्रण से बाहर जा चुकी थीं. मेरा पूरा बदन जल रहा था और मेरी साँसें उखड़ गयी थीं. मुझे यकीन था की दीपू को मेरी टाँगें स्थिर रखने में मुश्किल हो रही होगी क्यूंकी उत्तेजना से वो अपनेआप अलग हो जा रही थीं. क्या उसे अंदाज हो गया होगा की मैं नाटक कर रही हूँ ? नहीं ऐसा नहीं था, क्यूंकी उसने ज़रूर कुछ कहा होता. मैंने अपने बदन को कम से कम हिलाने डुलाने की कोशिश की लेकिन मेरे चेहरे पर गोपालजी की भारी साँसों, उसके दातों का मेरे नरम होठों को काटना और मेरे मुँह में घूमती उसकी जीभ मुझे बहुत कामोत्तेजित कर दे रहे थे. मैं तकिया पे सर रखे बिस्तर पर सिर्फ़ ब्लाउज और पेटीकोट में आँखें बंद किए लेटी थी और मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मेरे पति के साथ मेरी कामक्रीड़ा चल रही है.

दीपू – जी , मैडम में कोई फ़र्क पड़ा ?

गोपालजी – हाँ …दीपू. ये हल्का हल्का रेस्पॉन्स दे रही है.

दीपू – मुझे भी इसकी टाँगें हिलती हुई महसूस हो रही हैं.

गोपालजी – लेकिन ये अभी पूरी तरह से होश में नहीं आई है.

गोपालजी जब बोल रहा था तो उसके होंठ मेरे होठों को छू रहे थे और इससे मुझे ऐसी सेक्सी फीलिंग आ रही थी की मैं बयान नहीं कर सकती. अब गोपालजी ने मेरे चेहरे से अपना चेहरा हटा लिया और मेरी चूचियों से अपने हाथ भी हटा लिए. गोपालजी ने ब्रा और ब्लाउज के बाहर से मेरी चूचियों को इतना मसला था की वो अब दर्द करने लगी थीं.

दीपू – जी , एक और उपाय है जो गांव में मैंने देखा है , कोई भी दुर्गंध वाली चीज़ सुंघाते थे.

दुर्गंध वाली चीज़ , क्या होगी मैं सोचने लगी लेकिन मैं अनुमान लगा ही नहीं सकती थी की उस चालाक बुड्ढे के मन में क्या है.

गोपालजी – आहा….ये तो बहुत बढ़िया उपाय है. ये मेरे दिमाग़ में पहले क्यूँ नहीं आया ?

अब मुझे ऐसा लगा की दीपू जो की मेरे पैरों के पास बैठा था अब खड़ा हो गया है.

दीपू – जी, मेरी मामी जब हल्का सा होश में आने लगती थी तो उसको कुछ सुंघाते थे.

गोपालजी – क्या सुंघाते थे ?

दीपू – कोई भी चीज़ जिससे तेज दुर्गंध आए. अक्सर चप्पल सुंघाते थे.

गोपालजी – अपनी चप्पल दो.

छी.. छी.. छी …..अब मुझे इसकी चप्पल सूंघनी होंगी. एक बार तो मेरा मन किया की नाटकबाजी छोड़कर उठ जाऊँ ताकि इसकी चप्पल ना सूंघनी पड़े लेकिन गोपालजी ने उठने का कोई इशारा नहीं किया था इसलिए मैं वैसे ही लेटी रही.

गोपालजी – चलो , ये भी करके देखते हैं.

वो दीपू की चप्पल को मेरी नाक के पास लाया. शुक्र था की उसने मेरी नाक से छुआया नहीं. मैंने बदबू सहन कर ली और आँखें नहीं खोली.

दीपू – जी, कुछ ऐसी चीज़ चाहिए जिससे दुर्गंध आए.

गोपालजी – मेरे पास एक उपाय है, पर वो शालीन नहीं लगेगा.

दीपू – क्या उपाय ?

गोपालजी – रहने दो.

दीपू – जी, अभी शालीनता की फिकर करने का समय नहीं है. मैडम को कैसे भी जल्दी से होश में लाना है.

गोपालजी – रूको फिर.

फिर मुझे कोई आवाज़ नहीं आई और मुझे उत्सुकता होने लगी की हो क्या रहा है. लेकिन आँखें बंद होने से मुझे कुछ पता नहीं लग पा रहा था. गोपालजी मुझे क्या सुंघाने वाला है ?

अचानक मुझे दीपू के हंसने की आवाज़ सुनाई दी.

दीपू – हा..हा..हा……ये सही सोचा आपने.

गोपालजी – मैं चार दिन से इस बनियान (बंडी) को पहने हूँ, इसलिए इसमें ……

वाक….जैसे ही गोपालजी अपनी बनियान को मेरी नाक के पास लाया उसकी बदबू से मेरा सांस लेना मुश्किल हो गया. उससे पसीने की तेज बदबू आ रही थी पर मैंने आँखें नहीं खोली. लेकिन मैंने मन बना लिया की अब बहुत हो गया और अब जो भी चीज़ ये दोनों मुझे सुंघाएँगे मैं नाटक बंद कर होश में आ जाऊँगी.

दीपू – नहीं….इससे भी कुछ नहीं हुआ.

गोपालजी – एक बार देखो तो दरवाज़े पे कुण्डी लगी है ?

दीपू – जी क्यूँ ?

गोपालजी – जो कह रहा हूँ वो करो.

दीपू की तरह मेरे मन में भी ये सवाल आया की गोपालजी ऐसा क्यूँ कह रहा है लेकिन मैंने ये सोचा की अगर दरवाज़ा बंद है तो ये तो मेरे लिए अच्छा है वरना अगर कोई आ जाए तो सिर्फ़ ब्लाउज और पेटीकोट में दो मर्दों के सामने ऐसे आँखें बंद किए हुए लेटी देखकर मेरे बारे में क्या सोचेगा . ये तो मेरे लिए बदनामी वाली बात होगी.

दीपू – जी दरवाज़े पे कुण्डी लगी है.

गोपालजी – ठीक है फिर. अब आखिरी उपाय है. लेकिन मुझे पूरा यकीन है की इसको सूँघकर मैडम होश में आ जाएगी.

वो हल्के से हंसा लेकिन मेरी आँखें बंद होने से मैं अंदाज़ा नहीं लगा पाई की क्यूँ हंसा. फिर मुझे दीपू के भी हँसने की आवाज़ आई. अब मुझे बड़ी उत्सुकता होने लगी की ये ठरकी बुड्ढा करने क्या वाला है ?

दीपू – हाँ, ये तो मैडम को होश में ला देगा.

मुझे कुछ अजीब गंध सी आई पर क्या था पता नहीं चला लेकिन गंध कुछ पहचानी सी भी लग रही थी.

गोपालजी – दीपू बेटा, हर शादीशुदा औरत इसकी गंध पहचानती है.

दीपू – वो कैसे ?

गोपालजी – बेटा, जब तुम्हारी शादी हो जाएगी तुम्हें पता चल जाएगा. एक बार अपनी घरवाली को चुसाओगे तो याद रखेगी.

हे भगवान. ये दोनों क्या बातें कर रहे हैं. अब मेरी नाक में कुछ सख़्त चीज़ महसूस हुई और हो ना हो ये गोपालजी का लंड था. गोपालजी के लंड की गंध अपनी नाक में महसूस करके पहले तो मैंने गिल्टी फील किया लेकिन उस समय तक मेरा बदन पूरी तरह उत्तेजित हो रखा था इसलिए जल्दी ही उस गिल्टी फीलिंग को भूलकर मैं उसके लंड की गंध को सूंघने लगी.

मैं अब अपनी आँखें खोल सकती थी लेकिन एक मर्द के लंड को अपने इतने नज़दीक पाकर मंत्रमुग्ध हो गयी. उसके सुपाड़े से निकलते प्री-कम का गीलापन मेरी नाक में महसूस हो रहा था.

उम्म्म्मम…..उसके लंड की गंध और उसकी छुअन से मैं और भी ज़्यादा कामोत्तेजित हो गयी. ये बात सही है की मुझे अपनी पति का लंड चूसना पसंद नहीं था पर अभी गोपालजी ने मुझे कामोत्तेजित करके इतना तड़पा दिया था की कैसा भी लंड मेरे लिए स्वागतयोग्य था. गोपालजी शायद मेरी मनोदशा समझ गया और अपने तने हुए लंड को मेरी नाक और गालों में दबाने लगा. मैं भी अपना चेहरा हिला रही थी पर अभी भी आँखें बंद ही थी.

दीपू – अरे……आपने बिल्कुल सही कहा था. मैडम रेस्पॉन्स दे रही है.

शायद गोपालजी भी अपने ऊपर नियंत्रण खो रहा था और उसकी उमर को देखते हुए इतना ज़्यादा फोरप्ले करने के बाद उसके लिए अपना पानी रोकना मुश्किल हो गया होगा. गोपालजी ने अपनी अंगुलियों से मेरे होंठ खोल दिए और अपना खड़ा लंड मेरे मुँह में घुसा दिया. मुझे एहसास था की ये तो ज़्यादा ही हो गया और मैं बेशर्मी की सभी हदें आज पार कर चुकी हूँ लेकिन एक मर्द के लंड को चूसने का अवसर मैं गवाना नहीं चाहती थी और वैसे भी इस पूरे घटनाक्रम के दौरान मैंने अपनी आँखें बंद ही रखी थी तो सच ये था की मुझे ज़्यादा शरम भी महसूस नहीं हो रही थी.

गोपालजी – आह….आह……आअहह…..चूस … चूस…..और चूस साली.

गोपालजी मेरे मुँह में अपना लंड वैसे ही अंदर बाहर कर रहा था जैसा मेरे पति चुदाई करते समय मेरी चूत में करते थे. मैंने उसका पूरा लंड अपने मुँह में ले लिया और पूरे जोश से चूस रही थी. उसका लंड मेरे पति से पतला और छोटा था. लेकिन मुझे ओर्गास्म दिलाने के लिए काफ़ी था. मुझे एहसास हुआ की उत्तेजना से मैं अपनी बड़ी गांड हवा में ऐसे उठा रही हूँ जैसे की चुद रही हूँ. लेकिन सच कहूँ तो उस समय मुझे शालीनता की बिल्कुल भी परवाह नहीं थी और मेरा पूरा ध्यान मज़े लेने पर था. मैं सिसकियाँ ले रही थी और मेरी पैंटी चूतरस से पूरी गीली हो चुकी थी. और ऐसा लग रहा था की मेरी चिकनी जांघों में भी रस बहने लगा था. मुझे ओर्गास्म आ गया और मैं काम संतुष्ट हो गयी. दीपू के सामने कुछ देर तक मेरा मुख चोदन चलता रहा और फिर गोपालजी ने मेरा मुँह अपने वीर्य से भर दिया. असल में मैं इसके लिए तैयार नहीं थी और वीर्य को मुँह से बाहर उगल दिया पर इसके बावजूद उसका थोड़ा सा गरम वीर्य मुझे निगलना भी पड़ा.

अब मैं और ज़्यादा बर्दाश्त नहीं कर पायी और अब मुझे विरोध करना ही था. मैंने अपनी जीभ से गोपालजी के लंड को मुँह से बाहर धकेला और आँखें खोल दी. जैसे ही मैंने आँखें खोली तो मुझे वास्तविकता का एहसास हुआ. मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था की क्या करूँ , कैसे रियेक्ट करूँ. गोपालजी मेरे मुँह के पास अपना लंड हाथ में लिए खड़ा था और उसकी लुँगी फर्श में पड़ी थी. मैं तुरंत बेड में बैठ गयी.

दीपू – ओह मैडम, आपको होश आ गया. बहुत बढ़िया.

मैं उन दोनों मर्दों के सामने हक्की बक्की बैठी थी. मैंने अपने ब्लाउज को देखा उसमें मेरी गोल चूचियाँ आधी बाहर निकली हुई थीं . मैंने अपनी ब्रा और ब्लाउज को एडजस्ट करके अपनी जवानी को छुपाने की कोशिश की और वो दोनों मर्द बेशर्मी से मुझे ऐसा करते देखते रहे. मेरे चेहरे में टेलर का वीर्य लगा हुआ था.

दीपू – मैडम , जब आप अचानक बेहोश हो गयी तो हम डर ही गये थे. बड़ी मुश्किल से आपको होश में लाए हैं.

“हम्म्म….…”

गोपालजी – दीपू बेटा, मैडम को मुँह पोछने के लिए कोई कपड़ा दो. मैं भी अपने को बाथरूम जाकर साफ करता हूँ.

मुझे भी तुरंत बाथरूम जाकर अपने को धोना था, मेरे चेहरे को, मेरी चूत को और मेरी गीली पैंटी को भी बदलना था.

“गोपालजी, पहले मैं जाऊँ ?”

गोपालजी – मैडम , आपको तो समय लगेगा. मैं बस पेशाब करूँगा और एक मिनट में आ जाऊँगा.

मैं अनिच्छा से राज़ी हो गयी पर मुझे भी ज़ोर की पेशाब लगी थी.

दीपू – मैं भी पेशाब करूँगा.

गोपालजी – हम साथ चले जाते हैं. मैडम , आप एक मिनट रुकिए.

वो दोनों बाथरूम चले गये और दरवाज़ा बंद करने की ज़हमत भी नहीं उठाई. उनके पेशाब करने की आवाज़ मुझे सुनाई दे रही थी. मुझे एहसास हुआ की हालात मेरे काबू से बाहर जा चुके हैं और अब शालीन दिखने का कोई मतलब नहीं. थोड़ी देर में वो दोनों बाथरूम से वापस आ गये.

गोपालजी – मैडम, अब आप जाओ.

जब तक वो दोनों बाथरूम में थे तब तक मैंने अपने चेहरे और मुँह से वीर्य को पोंछ दिया था और नॉर्मल दिखने की कोशिश की. लेकिन अभी भी मेरे दिल की धड़कनें तेज हो रखी थी. जैसे ही मैंने बेड से उठने की कोशिश की…..

दीपू – मैडम, मैडम, ये क्या कर रही हो ?

“क्यूँ ? क्या हुआ ?”
 
जब तक वो दोनों बाथरूम में थे तब तक मैंने अपने चेहरे और मुँह से वीर्य को पोंछ दिया था और नॉर्मल दिखने की कोशिश की. लेकिन अभी भी मेरे दिल की धड़कनें तेज हो रखी थी. जैसे ही मैंने बेड से उठने की कोशिश की…..

दीपू – मैडम, मैडम, ये क्या कर रही हो ?

“क्यूँ ? क्या हुआ ?”
उसके ऐसे बोलने से मुझे आश्चर्य हुआ और मैंने उसकी तरफ देखा.

दीपू – मैडम, अभी तो आपको होश आया है. 15 – 20 मिनट तो आप बेहोश थीं.

मुझे ध्यान ही नहीं रहा की मैं बेहोश होने का नाटक कर रही थी और अब मैं तुरंत सीधे खड़े होकर चलना फिरना नहीं कर सकती थी.

दीपू – मेरी मामी ने भी एक बार होश में आते ही चलना फिरना शुरू कर दिया लेकिन कुछ ही देर में गिर पड़ी और उसे चोट लग गयी. मैडम, आप को भी ध्यान रखना होगा.

गोपालजी – मैडम, दीपू सही कह रहा है.

मैंने गुस्से से गोपालजी को देखा, क्यूंकी वो तो जानता था की मैं नाटक कर रही हूँ. लेकिन दीपू के सामने मैं कुछ कह नहीं सकती थी.

दीपू – मैडम, मैं आपको सहारा देता हूँ और आप चलने की कोशिश कीजिए.

मुझे उसकी बात पर राज़ी होना पड़ा और उसने मेरी बाँह और कमर पकड़ ली. मुझे भी थोड़ा कमज़ोरी का नाटक करना पड़ा ताकि उसे असली लगे. मैं सिर्फ पेटीकोट और ब्लाउज में थी. वो मेरी कमर को पकड़कर सहारा दिए हुए था लेकिन मुझे अंदाज आ रहा था की वो सिर्फ सहारा ही नहीं दे रहा बल्कि मेरे बदन को महसूस भी कर रहा है. मुझे गीली पैंटी और मेरे पेटीकोट के अंदर जांघों पर चूतरस के लगे होने से बहुत असहज महसूस हो रहा था इसलिए मैं छोटे छोटे कदमों से बाथरूम की तरफ जा रही थी.

“रूको. मुझे अपनी पैंटी बदलनी है ….अर्ररर…..मेरा मतलब……. मुझे टॉवेल ले जाना है.”

मुझे मालूम था की कपड़ों की अलमारी में एक नया टॉवेल है इसलिए मैंने सोचा की उसके अंदर एक नयी पैंटी डाल कर बाथरूम ले जाऊँगी ताकि दीपू के सामने हाथ में पैंटी लेकर ना जाना पड़े. दीपू मेरी बाँह और कमर पकड़े हुआ था और अब मुझे लगा की उसने मुझे और कसके पकड़ लिया है. मैंने सोचा की इस जवान लड़के का कोई दोष नहीं क्यूंकी गोपालजी की वजह से इसने अभी अपनी आँखों के सामने इतना कामुक दृश्य देखा है तो कुछ असर तो पड़ेगा ही.

जब मैं अलमारी से टॉवेल और पैंटी निकालने के लिए झुकी तो दीपू ने मेरी बाँह छोड़ दी पर उस हाथ को भी मेरी कमर पर रख दिया. अब वो दोनो हाथों से मेरी कमर पकड़े हुए था. मैं इस लड़के को ऐसे मनमर्ज़ी से मुझे छूने देना नहीं चाहती थी. लेकिन सिचुयेशन ऐसी थी की मैं सहारे के लिए मना नहीं कर सकती थी और अब गोपालजी के बाद मेरे बदन को छूने की बारी इस जवान लड़के की थी. मैंने जल्दी से कपड़े निकाले और बाथरूम को चल दी ताकि जितना जल्दी हो सके इस लड़के से मेरा पीछा छूटे.

“दीपू, अब मुझे ठीक लग रहा है. तुम रहने दो.”

दीपू – ना मैडम. मुझे याद है मेरी मामी गिर पड़ी थी और उसके माथे से खून निकलने लगा था. उस दिन वो भी ज़िद कर रही थी की मैं ठीक हूँ , खुद कर सकती हूँ, नतीजा क्या हुआ ? चोट लग गयी ना.

अब इस बेवकूफ़ को कौन समझाए की मैं इसकी मामी की तरह बीमार नहीं हूँ जिसे अक्सर चक्कर आते रहते हैं. लेकिन मुझे उसकी बात माननी पड़ी क्यूंकी मेरे लिए उसका डर वास्तविक था जैसा की उसने अपनी मामी को गिरते हुए देखा था, वो डर रहा था की कहीं मैडम भी ना गिर जाए.

“ठीक है. तुम क्या चाहते हो ?”

दीपू – मैडम, खुद से रिस्क मत लीजिए. मैं आपको फर्श में बैठा दूँगा और दरवाज़ा बंद कर दूँगा. जब आपका हो जाएगा तो मुझे आवाज़ दे देना और ……

उसकी बात से शरम से मेरी आँखें झुक गयीं पर मेरे पास और कोई चारा नहीं था. मैंने हाँ में सर हिला दिया. दीपू ने मेरी बाँह पकड़कर मुझे टॉयलेट के फर्श में बिठा दिया. एक मर्द के सामने उस पोज़ में बैठना बड़ा अजीब लग रहा था और ऊपर से देखने वाले के लिए मेरी रसीली चूचियों के बीच की घाटी का नज़ारा कुछ ज़्यादा ही खुला था. मैंने ऐसे बैठे हुए पोज़ से नजरें ऊपर उठाकर दीपू को देखा, उसकी नजरें मेरे ब्लाउज में ही थी. स्वाभाविक था, कौन मर्द ऐसे मौके को छोड़ता है , एक बैठी हुई औरत की चूचियाँ और क्लीवेज ज़्यादा ही गहराई तक दिखती हैं.

“शुक्रिया. अब तुम दरवाज़ा बंद कर दो.”

दीपू – मैडम, खुद से उठने की कोशिश मत करना. मुझे बुला लेना.

मैं एक मर्द के सामने टॉयलेट में उस पोज़ में बैठी हुई बहुत बेचारी लग रही हूँगी और मेरे बदन में साड़ी भी नहीं थी.

“ठीक है, अब जाओ.”

मेरा धैर्य खत्म होने लगा था और पेशाब भी आने वाली थी. दीपू टॉयलेट से बाहर चला गया और दरवाज़ा बंद कर दिया. मैंने पीछे मुड़कर देखा की उसने दरवाज़ा ठीक से बंद किया है या नहीं. 

हे भगवान. दरवाज़ा आधा खुला था. लेकिन मैंने तो दरवाज़ा बंद करने की आवाज़ सुनी थी.

दीपू – मैडम, दरवाज़े में कुछ दिक्कत है. ये बिना कुण्डी चढ़ाये बंद नहीं हो रहा. क्या करूँ ? ऐसे ही रहने दूँ ?

“क्या ?? ऐसे कैसे होगा ?”

दीपू – मैडम, घबराओ नहीं. जब तक आप बुलाओगी नहीं मैं अंदर नहीं आऊँगा.

वो आधा दरवाज़ा खोलकर मुझसे पेशाब करने को कह रहा था.

“ना ना. मैं दरवाज़ा बंद करती हूँ.”

दीपू दरवाज़ा खोलकर फिर से टॉयलेट के अंदर आ गया.

दीपू – मैडम , ज़्यादा जोश में आकर खुद से उठने की कोशिश मत करो.

उसने मेरे कंधे दबा दिए ताकि मैं बैठी रहूं. मैंने उसकी तरफ ऊपर देखा तो उसकी नजरें मेरे ब्लाउज पर थीं और मुझे एहसास हुआ की उस एंगल से मेरी ब्रा का कप भी दिख रहा था. ऐसा लगा की वो अपनी आँखों से ही मुझसे छेड़छाड़ कर रहा है.

दीपू – ठीक है मैडम, एक काम करता हूँ. मैं दरवाज़ा बंद करके हाथ से पकड़े रहता हूँ , जब आपका हो जाएगा तो मुझे बुला लेना.

“हम्म्म …ठीक है, लेकिन….”

दीपू – मैडम, आप दरवाज़े पर नज़र रखना, बस ?

मैं बेचारगी से मुस्कुरा दी और दीपू फिर से टॉयलेट से बाहर चला गया. इस बार दरवाज़ा बंद करके उसने दरवाज़े का हैंडल पकड़ लिया. 

दीपू – मैडम, आप करो. मैंने दरवाज़े का हैंडल पकड़ लिया है और ये अब नहीं खुलेगा.

“ठीक है…”

ये मेरी जिंदगी की सबसे अजीब सिचुयेशन्स में से एक थी. मेरे टॉयलेट के दरवाज़े पे एक मर्द दरवाज़ा पकड़े खड़ा था और मुझे अपने कपड़े ऊपर उठाकर पेशाब करनी थी. मैं जल्दी से उठ खड़ी हुई और चुपचाप दरवाज़े के पास जाकर देख आई की दरवाज़ा ठीक से बंद भी है या नहीं. दरवाज़ा ठीक से बंद पाकर मैंने सुरक्षित महसूस किया. मैं फिर से टॉयलेट में गयी और पेटीकोट ऊपर उठाकर पैंटी उतारने लगी. पैंटी पूरी गीली हो रखी थी और मेरी गोल चिकनी जांघों पे चिपक जा रही थी. जैसे तैसे मैंने पैंटी उतारी और तुरंत पेशाब करने के लिए बैठ गयी. सुर्र्र्र्र्ररर…की आवाज़ शुरू हो गयी और मुझे बहुत राहत हुई. अंतिम बूँद टपकने के बाद मैं उठ खड़ी हुई. मैं कमर तक पेटीकोट ऊपर उठाकर पकड़े हुए थी इसलिए मेरे नितंब और चूत नंगे थे.

“आआहह…”

एक पल के लिए मैंने आँखें बंद कर ली. बहुत राहत महसूस हो रही थी. तभी मुझे ध्यान आया की दरवाज़े पे तो दीपू खड़ा है और मैं जल्दी से नयी पैंटी पहनने लगी. मैं चुपचाप पैंटी पहन रही थी ताकि दीपू को शक़ ना हो. बल्कि मैंने तो टॉयलेट में पानी भी नहीं डाला ताकि कहीं मैं उठ खड़ी हुई हूँ सोचकर दीपू अंदर ना आ जाए.

दीपू – हो गया मैडम ?

मैं जल्दी से बैठ गयी जैसे की पेशाब कर रही हूँ और उसे हाँ में जवाब दे दिया. दीपू ने दरवाज़ा खोला और अंदर आ गया.

दीपू – ठीक है मैडम. मैं आपको सहारा देता हूँ और आप उठने की कोशिश करो.

मैं कमज़ोरी का बहाना करते हुए उठ खड़ी हुई. मुझे खड़ा करते हुए दीपू ने चतुराई से मेरी चूचियों को साइड्स से छू लिया. मैं उसे रोक तो नहीं सकती थी पर उससे ज़्यादा कुछ करने का उसे मौका नहीं दिया. मैंने अपना चेहरा और हाथ धोए और दीपू अभी भी मेरी कमर पकड़े हुए खड़ा था. वैसे तो मैं सावधान थी पर जब मैं मुँह धो रही थी तो उसकी अँगुलियाँ मेरी कमर में फिसलती हुई महसूस हुई. मैंने जल्दी से मुँह धोया और बाथरूम से बाहर आ गयी. मैं सोच रही थी की इतनी देर तक गोपालजी क्या कर रहा होगा.

दीपू – मैडम, ये बीमारी तो बहुत खराब है ख़ासकर औरतों के लिए.

मैं छोटे छोटे कदमों से बाथरूम से बाहर आ रही थी ताकि दीपू को वास्तविक लगे.

“ऐसा क्यूँ कह रहे हो ?

दीपू – मैडम, आज आप खुशकिस्मत थी की हमारे सामने बेहोश हुई. ज़रा सोचो अगर अंजान आदमियों के सामने बेहोश होती तो ? आप कभी लोगों के सामने भी बेहोश हुई हो ?

मैं खुशकिस्मत थी ? वाह जी वाह. मेरे टेलर ने मेरे मुँह में अपना लंड दिया और मेरी चूचियों को इतना मसला की अभी भी दर्द कर रही हैं. और ये लड़का कहता है की मैं खुशकिस्मत हूँ ? मैं मन ही मन मुस्कुरायी और एक गहरी सांस ली. 

“मैं ऐसे बेहोश नहीं होती. आज ही हुई हूँ.”

गोपालजी – मैडम, देर हो रही है. अभी आपकी और भी नाप लेनी हैं.

दीपू – जी मेरे ख्याल से मैडम को थोड़ा आराम की ज़रूरत है. उसके बाद हम फिर शुरू करेंगे.

फिर शुरू करेंगे ? इस बेवकूफ़ का मतलब क्या है ? लेकिन मुझे दीपू का आराम का सुझाव पसंद आया क्यूंकी वास्तव में मुझे इसकी ज़रूरत थी.

गोपालजी – ठीक है फिर. आप बेड में आराम करो. तब तक मैं आपकी चोली का कपड़ा काटता हूँ.

“शुक्रिया गोपालजी.”

दीपू अभी भी मुझे सहारा दिए हुए था और उसने मुझे बेड में बिठा दिया. मैं एक बेशरम औरत की तरह इन दोनों मर्दों के सामने सिर्फ ब्लाउज और पेटीकोट में घूम रही थी . सच कहूँ तो मुझे इसकी आदत पड़ने लगी थी.

दीपू – मैडम , आप की किस्मत अच्छी है जो आपको ये बीमारी नहीं है. जिन औरतों को ये बीमारी होती है उन्हें बहुत भुगतना पड़ता है.

“दीपू सिर्फ औरतें ही नहीं, जिस किसी को भी बेहोशी के दौरे पड़ते हैं , उन्हें भुगतना ही पड़ता है.”

दीपू – सही बात है मैडम. लेकिन मेरी मामी को देखने के बाद मुझे विश्वास है की औरतों को ज़्यादा भुगतना पड़ता है.

“क्यों ? तुम्हारी मामी को ऐसा क्या हुआ ?”

दीपू अपनी मामी का किस्सा सुनाने लगा की किस तरह उसके पड़ोसी ने एक दिन उसकी बेहोशी का फायदा उठा लिया.
……………………………

गोपालजी – बहुत बातें हो गयी. मैडम अब काम शुरू करें ?

“जी गोपालजी. मैं तैयार हूँ.”
 
गोपालजी – बातें बहुत हो गयीं , मैडम अब काम शुरू करें ?

“जी गोपालजी. मैं तैयार हूँ.”

तब तक गोपालजी ने चोली का कपड़ा काट दिया था और अब टेप लिए तैयार था. दीपू भी नाप लिखने के लिए कॉपी पेन्सिल लेकर खड़ा हो गया. मैं बेड से उठी और पहले की तरह लाइट के पास जाकर खड़ी हो गयी.

गोपालजी – ठीक है मैडम, अब महायज्ञ के लिए स्कर्ट की नाप लेता हूँ.

गोपालजी की बात सुनकर एक पल के लिए मेरी धड़कनें रुक गयीं क्यूंकी मुझे मालूम था की अब ये टेलर मेरी जांघों और टाँगों पर हाथ फिराएगा. लेकिन उसकी उमर को देखते हुए मुझे उससे ज़्यादा डर नहीं लग रहा था.

गोपालजी – मैडम, गुरुजी के निर्देशानुसार आपकी स्कर्ट चुन्नटदार होगी. मुझे उम्मीद है की आपको चुन्नटदार स्कर्ट और प्लेन स्कर्ट के बीच अंतर मालूम होगा.

“हाँ मुझे मालूम है. प्लेन स्कर्ट की बजाय इसमें चुन्नट होंगे फोल्ड जैसे.”

गोपालजी – हाँ ऐसा ही. मुझे स्कर्ट के कपड़े में चुन्नट सिलने होंगे. मैडम ये बहुत मेहनत का काम है.

वो मुस्कुराया और मैं भी मुस्कुरा दी.

गोपालजी – लेकिन मैडम, हो सकता है की आपको असहज महसूस हो ….मेरा मतलब……

टेलर को हकलाते हुए देखकर मुझे थोड़ी हैरानी हुई और मुझे समझ नहीं आया की वो क्या कहना चाह रहा है ? मुझे असहज क्यूँ महसूस होगा ? मैंने उलझन भरी निगाहों से उसे देखा.

गोपालजी – मैडम बात ये है की स्कर्ट पूरी लंबाई की नहीं होगी. ये थोड़ी छोटी होगी.

मैंने गले में थूक गटका. मैं सोचने लगी…..छोटी ? कितनी छोटी ? घुटनों तक ?

“गोपालजी कितनी छोटी ?”

गोपालजी – मैडम , ये मिनी स्कर्ट जैसी होगी.

“क्या ?????”

गोपालजी – मुझे मालूम था की आपको असहज महसूस होगा. इसीलिए मैं ये बात बोलने से हिचकिचा रहा था. 

“अब इस उमर में मैं मिनी स्कर्ट पहनूँगी ? हो ही नहीं सकता.”

मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था. मैं 28 बरस की गदराये बदन वाली शादीशुदा औरत अगर मिनी स्कर्ट पहनूँगी तो बहुत उत्तेजक और अश्लील लगूंगी.

गोपालजी – मैडम घबराओ नहीं. ये उतनी छोटी नहीं होगी जितनी आप सोच रही हो.

“यही तो मैं आपसे पूछ रही हूँ. कितनी छोटी ?”

गोपालजी – मैं ऐसे नहीं बता सकता. वैसे तो मिनी स्कर्ट 12 इंच की होती है पर आप समझ सकती हैं की सही नाप औरत की लंबाई और उसके बदन पर निर्भर करती है.

“हम्म्म …मैं समझ रही हूँ पर 12 इंच तो कुछ भी नहीं है.”

मैं तेज आवाज़ में बोली लगभग चिल्ला कर.

गोपालजी – मैडम, मैडम……मैं इसमें कुछ नहीं कर सकता. गुरुजी के निर्देशों की अवहेलना कोई नहीं कर सकता.

“हाँ वो मुझे भी मालूम है लेकिन….”

मैं हक्की बक्की खड़ी थी. ये बुड्ढा क्या कह रहा है ? मैं 12 इंच लंबी स्कर्ट पहनूँगी ? मेरे 36 “ के नितंबों पर इतनी छोटी स्कर्ट . मैं अचंभित थी.

गोपालजी – मैडम, इस बात पर समय बर्बाद करने के बजाय नाप ले लेते हैं. मैं आपको भरोसा दे सकता हूँ की मेरी कोशिश रहेगी की आपकी स्कर्ट की फिटिंग जितनी शालीन हो सकती है उतनी रखूं.

“मुझे मालूम है की आप कोशिश करोगे पर गोपालजी प्लीज़ समझो …..मैं एक हाउसवाइफ हूँ और मेरी जिंदगी में मैंने कभी इतनी छोटी स्कर्ट नहीं पहनी.”

गोपालजी – मैं समझ सकता हूँ मैडम. मुझ पर भरोसा रखो और मैं कोशिश करूँगा की आपको थोड़ा सहज महसूस हो.

“वो कैसे गोपालजी ?”

गोपालजी – मैडम, देखो, ये स्कर्ट सिर्फ आपके गुप्तांगों को ही ढकेगी. लेकिन अगर आप कुछ बातों का ध्यान करो तो आपको उतना असहज नहीं महसूस होगा.

“मतलब ?”

गोपालजी – मैडम, मिनी स्कर्ट में दिक्कत क्या है ? यही की इसमें पूरी टाँगें दिखती हैं. लेकिन अगर कोई औरत इसे लगातार पहने रखे तो उसको उतनी शरम नहीं महसूस होगी. है की नहीं ?

“हाँ ये तो है.”

गोपालजी – मैडम ये बात बिल्कुल सही है. देखो जैसे अभी. आप अपने घर में बिना साड़ी पहने ऐसे तो नहीं घूमती हो ना ? लेकिन अभी आप बहुत देर से ऐसे ही हो और अब आपको उतनी शरम नहीं लग रही है जितनी साड़ी उतारते समय लगी होगी, है ना ?

उसकी बात सुनकर मैंने शरम से आँखें झुका लीं और हाँ में सर हिला दिया. क्यूंकी उस टेलर ने मुझे याद दिला दिया की मैं दो मदों के सामने सिर्फ ब्लाउज और पेटीकोट में खड़ी हूँ.

गोपालजी – मैडम, ऐसा ही स्कर्ट के लिए भी है. लेकिन आपको ध्यान रखना होगा की आस पास के लोग आपकी स्कर्ट के अंदर झाँक ना पाएँ.

“हम्म्म …”

मैंने बेशरम औरत की तरह जवाब दिया.

गोपालजी – मैडम, अगर आप लोगों के सामने ध्यान से ना बैठो तो मिनी स्कर्ट के अंदर भी दिख सकता है. जैसे सीढ़ियाँ चढ़ते समय आपको अपना बदन सीधा रखना पड़ेगा ताकि आपके पीछे चलने वाले आदमी को आपके नितंबों का नज़ारा ना दिखे. लेकिन अगर आप झुक के सीढ़ियाँ चढ़ोगी तो उसे सब कुछ दिख जाएगा.

मैं टेलर के चेहरे पर नज़रें गड़ाए उसकी बात सुन रही थी पर उसके अंतिम वाक्य को सुनकर मुझे अपनी आँखें फेरनी पड़ी.

“गोपालजी , मैं आपकी बात समझ गयी.”

मैं इस बुड्ढे के ऐसे समझाने से असहज महसूस कर रही थी और अब इन बातों को खत्म करना चाहती थी. मैंने देखा की दीपू हल्के से मुस्कुरा रहा है और इससे मुझे और भी शर्मिंदगी महसूस हुई.

गोपालजी – ठीक है मैडम, काम शुरू करूँ फिर ?

“हाँ.”

गोपालजी मेरे नज़दीक आया और मेरी कमर और जांघों को देखने लगा. वैसे तो कुछ ही समय पहले मुझे ओर्गास्म आया था पर ये टेलर मेरी कमर से नीचे हाथ फिराएगा सोचकर मेरी चूत में खुजली होने लगी. मुझे भरोसा नहीं था की मैं उसके हाथों का फिराना सहन भी कर पाऊँगी या नहीं ख़ासकर की मेरी कमर, जांघों और टाँगों में.

अब वो मेरे सामने झुका और टेप के एक सिरे को मेरी कमर में पेटीकोट के थोड़ा ऊपर लगाया और मेरी मांसल और चिकनी जांघों पर अँगुलियाँ फिराते हुए अपना दूसरा हाथ नीचे ले गया और 12 “ नापा.

गोपालजी – मैडम, स्कर्ट इतनी लंबी होगी.

गोपालजी की अँगुलियाँ मेरी ऊपरी जांघों पर थीं.

“बस इतनी …?”

मेरे मुँह से अपनेआप ये शब्द निकल गये क्यूंकी इतनी छोटी लंबाई देखकर मैं शॉक्ड रह गयी.

“लेकिन गोपालजी ये तो…..मैं ऐसी ड्रेस कैसे पहन सकती हूँ ?”

गोपालजी – लेकिन मैडम, मैंने आपको बताया था की ये मिनी स्कर्ट है. आप इससे ये अपेक्षा नहीं रख सकती हो की ये आपकी पूरी जांघों को ढक देगी , है ना ?

“हाँ वो तो ठीक है पर इतनी छोटी ? ये तो मेरी आधी जांघों को भी नहीं ढक रही. इससे बढ़िया तो कुछ भी नहीं पहनूं.”

गोपालजी – लेकिन मैडम, मैं कर ही क्या सकता हूँ. जैसा बताया है मुझे तो वैसा ही करना होगा.

दीपू – मेरे ख्याल से मैडम की चिंता जायज है. अगर इसकी स्कर्ट जांघों में इतनी ऊपर है जहाँ पर आपकी अंगुली है तो सोचो अगर मैडम बैठेगी तो क्या होगा ?

गोपालजी – दीपू तुम अच्छी तरह जानते हो की मैं स्कर्ट की लंबाई नहीं बदल सकता.

मैंने बहुत असहाय महसूस किया और असहायता से दीपू की तरफ देखा.

दीपू – एक तरीका है मैडम.

उसकी बात सुनकर जैसे मुझमें जान आ गयी.

“कौन सा तरीका ? जल्दी बताओ ?”

दीपू मेरे पास आया. गोपालजी मेरे आगे बैठकर मेरी जांघों और कमर पर हाथ रखे हुए था. दीपू ने सीधे मेरी नाभि को छू दिया जहाँ पर मेरा पेटीकोट बँधा हुआ था.

दीपू – मैडम, आप हमेशा यहीं पर पेटीकोट बाँधती हो ?

“हाँ, अक्सर…मेरा मतलब हमेशा नहीं पर ज़्यादातर. पर क्यूँ ?”

दीपू – मैडम, गोपालजी ने यहाँ से नापा है. पर अगर आप कमर से नीचे स्कर्ट पहनोगी तो मेरे ख्याल से आपकी जांघें थोड़ी ज़्यादा ढक जाएँगी.

गोपालजी – हाँ मैडम, अगर आप राज़ी हो तो ऐसा हो सकता है.

वास्तव में और कोई चारा नहीं था , अगर मुझे थोड़ी इज़्ज़त बचानी है तो इस लड़के की बात माननी ही पड़ेगी. मैंने सोचा अगर मैं अपनी नाभि से कुछ इंच नीचे स्कर्ट पहनूं तो इससे मेरी गोरी मांसल जांघों का कुछ हिस्सा ढक जाएगा , वरना तो मर्दों के सामने अपनी गोरी सुडौल जांघों के नंगी रहने से मुझे बड़ा अनकंफर्टेबल फील होगा.

गोपालजी – मैडम, मेरे ख्याल से आपको अभी एक ट्रायल कर लेना चाहिए ताकि आपको पक्का हो जाए की कहाँ पर स्कर्ट बाँधनी है और ये आपको कितना ढकेगी.

दीपू – हाँ , ट्रायल से मैडम को अंदाज़ा हो जाएगा और चुन्नट में किसी एडजस्टमेंट की ज़रूरत होगी तो मैडम बता सकती है.

गोपालजी – हाँ सही है. मैडम चुन्नट भी एडजस्ट किए जा सकते हैं ताकि आपकी स्कर्ट ज़्यादा फड़फड़ ना करे.

इस बार मैं टेलर और उसके सहायक से वास्तव में इंप्रेस हुई क्यूंकी ऐसा लग रहा था की ये दोनो इस एंबरेसिंग सिचुयेशन में मेरी मदद करना चाहते हैं.

“हाँ ट्राइ कर सकती हूँ.”

गोपालजी – दीपू मेरे बैग में देखो. मैं ट्रायल के लिए एक चोली और स्कर्ट लाया हूँ.”

दीपू गोपालजी के बैग में देखने लगा.

गोपालजी – मैडम , मैंने आपसे चोली के ट्रायल के लिए नहीं कहा क्यूंकी इसका साइज़ 30” है जो की आपको फिट नहीं आएगी. असल में ये महायज्ञ परिधान मैंने गुरुजी को दिखाने के लिए दो साल पहले सिला था. 

“अच्छा …”

दीपू बैग से स्कर्ट निकालकर ले आया. ये वास्तव में मिनी स्कर्ट थी ख़ासकर की मेरी भारी जांघों और बड़े गोल नितंबों के लिए.

गोपालजी ने दीपू से स्कर्ट ले ली और उसमें कुछ देखने लगा. मुझे समझ नहीं आया की टेलर क्या चेक कर रहा है ?

गोपालजी – हम्म्म …ठीक है. मैडम आप ट्राइ कर सकती हो.

“कमर ठीक है ?”

ये एक बेवकूफी भरा सवाल था क्यूंकी कोई भी देख सकता था की स्कर्ट की कमर में इलास्टिक बैंड है.

गोपालजी – ये फ्री साइज़ है मैडम. कोई भी औरत इसे पहन सकती है. इसमें इलास्टिक बैंड है.

“हाँ हाँ. मैंने देख लिया.”

ऐसा कहते हुए मैंने टेलर से स्कर्ट ले ली और मेरा गला अभी से सूखने लगा था. ये इतना छोटा कपड़ा था की मेरी जांघों की तो बात ही नहीं मुझे तो आशंका थी की इससे मेरी बड़ी गांड भी ढकेगी या नहीं. 

मेरे हाथों में मिनी स्कर्ट देखकर दीपू और गोपालजी की आँखों में चमक आ गयी. क्यूंकी मैं अपना पेटीकोट उतारकर इसे पहनूँगी तो ये मर्दों के लिए देखने लायक नज़ारा होगा. मैं बाथरूम की और जाने लगी तभी……

गोपालजी – मैडम, अगर आपको बुरा ना लगे तो यहीं पर पहन लो. बाथरूम जाने की ज़रूरत नहीं.

“क्या मतलब ?”


गोपालजी – मैडम, बुरा मत मानिए. अगर आप ध्यान से देखो तो स्कर्ट की कमर में में एक हुक है जिसे आप खोल सकती हो. इससे स्कर्ट टॉवेल की तरह खुल जाएगी. फिर आप इसको कमर में लपेट लेना और फिर पेटीकोट खोल देना.

मैंने स्कर्ट को देखा. वो सही था लेकिन मुझे लगा की पेटीकोट के ऊपर स्कर्ट को लपेटकर फिर पेटीकोट को उतारने में दिक्कत भी हो सकती है, ख़ासकर की जब दो मर्द सामने खड़े मुझे घूर रहे होंगे.

“गोपालजी , मेरे लिए बाथरूम में चेंज करना ही कंफर्टेबल रहेगा.”

गोपालजी – ठीक है मैडम, जैसी आपकी मर्ज़ी.

मैं बाथरूम की तरफ जाने लगी लेकिन मुझे महसूस हुआ की चलते समय दो जोड़ी आँखें मेरी मटकती हुई गांड पर टिकी हुई हैं.

दीपू – मैडम, ध्यान रखना. आपको थोड़ी देर पहले ही होश आया है.

“हाँ. शुक्रिया.”

मैंने बाथरूम का दरवाज़ा बंद किया और उस आदमकद शीशे के आगे खड़ी हो गयी.
 
मैंने बाथरूम का दरवाज़ा बंद किया और उस आदमकद शीशे के आगे खड़ी हो गयी. मेरा दिल तेज तेज धड़क रहा था. मुझे एक अजीब सी भावना का एहसास हो रहा था, जिसमें शरम से ज़्यादा मेरे बदन के एक्सपोज होने का रोमांच था. मैंने जिंदगी में कभी इतनी छोटी स्कर्ट नहीं पहनी थी. मुझे याद था की काजल के बाथरूम में उस कमीने नौकर के सामने मैंने जो काजल की स्कर्ट पहनी थी उससे मेरे घुटनों तक ढका हुआ था पर ये वाली स्कर्ट तो कुछ भी नहीं ढकेगी. मैंने अपने पेटीकोट का नाड़ा खोला और पेटीकोट मेरे पैरों में फर्श पर गिर गया. मेरी जाँघें और टाँगें नंगी हो गयीं , मेरी साँसें तेज चलने लगीं और ब्रा के अंदर मेरे निप्पल टाइट हो गये.

मैंने केले के पेड़ के तने की तरह सुडौल और गोरी गोरी अपनी जांघों को देखा और उस छोटे से कपड़े को पहनने का रोमांच बढ़ने लगा. मैंने शीशे में अपनी पैंटी को देखा और खुशकिस्मती से उसमें कोई गीला धब्बा नहीं दिख रहा था. मैंने स्कर्ट का हुक खोला और उसको अपनी कमर पर लपेटकर फिर से हुक लगा दिया. हुक लगाने के बाद मेरी कमर पर स्कर्ट का इलास्टिक बैंड टाइट महसूस हो रहा था. मैंने शीशे में देखा की मैं कैसी लग रही हूँ और मैं शॉक्ड रह गयी.

“उउउउउउ………..”

मेरा मुँह खुला का खुला रह गया. स्कर्ट के नीचे मेरी गोरी मांसल जांघों का अधिकतर भाग नंगा दिख रहा था और मेरी नाभि से नीचे का हिस्सा भी नंगा था , इससे मैं बहुत उत्तेजक और कामुक लग रही थी.

ये स्कर्ट तो किसी मर्द के सामने पहनी ही नहीं जा सकती थी. ये इतनी छोटी थी की इसे बंद दरवाजों के भीतर सिर्फ अपने बेडरूम में ही पहना जा सकता था. वैसे तो मुझे भी यहाँ आश्रम में बंद दरवाजों के भीतर ही इसे पहनना था पर गुरुजी और अन्य मर्दों के सामने. और महायज्ञ के लिए मुझे ऐसी स्कर्ट पहननी ही थी. इसलिए मैंने अपने मन को बिल्कुल ही बेशरम बनने के लिए तैयार करने की कोशिश की और अपना फोकस सिर्फ अपने गर्भवती होने पर रखा. मैंने सोचा अगर मेरी संतान हो जाती है तो फिर मुझे भगवान से और कुछ नहीं चाहिए. मैंने अपने मन को दिलासा देने की कोशिश की मेरे पति को कभी पता नहीं चलेगा की यहाँ आश्रम में मेरे साथ क्या क्या हुआ था और एक बार मैं अपने घर वापस चली गयी तो आश्रम के इन मर्दों से मेरा कभी वास्ता नहीं पड़ेगा.

मैंने फर्श से पेटीकोट उठाया और हुक में लटका दिया और बाथरूम का दरवाज़ा खोल दिया. मेरा दिल जोर जोर से धड़क रहा था क्यूंकी मैं दो मर्दों के सामने छोटी सी स्कर्ट में जाने वाली थी. बाथरूम से कमरे में आते ही मुझे देखकर दीपू के मुँह से वाह निकल गया. मैं उन दोनों से नजरें नहीं मिला सकी और स्वाभाविक शरम से मेरी आँखें झुक गयीं. मुझे मालूम था की उन दोनों मर्दों की निगाहें मेरी चिकनी जांघों को घूर रही होंगी.

गोपालजी – मैडम, आप तो अप्सरा लग रही हो. इस स्कर्ट में बहुत ही खूबसूरत दिख रही हो.

मैंने सोचा की गोपालजी ने मेरे लिए सेक्सी की बजाय खूबसूरत शब्द का इस्तेमाल किया इसके लिए उसका शुक्रिया. मैं मन ही मन मुस्कुरायी और उस छोटी स्कर्ट को पहनकर नॉर्मल रहने की कोशिश की. मैंने ख्याल किया की मेरी केले जैसी मांसल जांघों को देखकर दीपू का जबड़ा खुला रह गया है. गोपालजी की नजरें मेरे सबसे खास अंग पर टिकी हुई थी और शुक्र था की स्कर्ट ने उसे ढक रखा था. 

“गोपालजी ये स्कर्ट कमर में बड़ी टाइट हो रही है.”

मैंने अपनी कमर की तरफ इशारा करते हुए कहा. बिना वक़्त गवाए बुड्ढा तुरंत मेरे पास आ गया और मेरी स्कर्ट के इलास्टिक बैंड में अंगुली डालकर देखने लगा की कितनी टाइट हो रखी है. गोपालजी स्कर्ट के एलास्टिक को खींचकर देखने लगा की कितनी जगह है. मुझे मालूम था की एलास्टिक को खींचकर वो मेरी सफेद पैंटी को देख रहा होगा. एक तो उस छोटी सी बदन दिखाऊ ड्रेस को पहनकर वैसे ही मैं रोमांचित हो रखी थी और अब एक मर्द का हाथ लगने से मेरा सर घूमने लगा. मेरा चेहरा लाल होने लगा और मेरे होंठ सूखने लगे.

गोपालजी – हाँ मैडम, आप सही हो. कमर में ¾ “ एक्सट्रा कपड़ा लगाकर ठीक से फिटिंग आएगी. मैं हुक को भी ½ “ खिसका दूँगा. दीपू नोट करो.

दीपू – जी नोट कर लिया.

गोपालजी – लेकिन मैडम क्या आप यहाँ पर साड़ी बाँधती हो ?

“क्यूँ ?”

गोपालजी – असल में मुझे लग रहा है की आपने स्कर्ट थोड़ी ऊपर बाँधी है.

“लेकिन मैं तो अक्सर अपनी साड़ी को नाभि पर बाँधती हूँ और स्कर्ट तो मैंने नीचे बाँधी है.

मैंने दिखाया की स्कर्ट मेरी नाभि से डेढ़ इंच नीचे है.

गोपालजी – ना मैडम, आपको थोड़ी और नीचे बांधनी पड़ेगी. मैं एडजस्ट करूँ ?

मुझे अच्छी तरह मालूम था की एडजस्ट करने के लिए इसे मेरी स्कर्ट का हुक खोलना होगा और फिर स्कर्ट नीचे होगी. मैंने गले में थूक गटका.

“ठी….ठीक है……”

गोपालजी ने तुरंत मेरी स्कर्ट का हुक खोल दिया और अब मेरी इज़्ज़त उसके हाथों में थी. वो टेलर मेरे बदन पर झुका हुआ था और एक दो बार मेरी चूचियाँ उसके बदन से छू गयीं. उसने धीरे धीरे स्कर्ट को नीचे करना शुरू किया और अब मुझे लगा की मेरी पैंटी दिखने लगी है.

“गोपालजी प्लीज. इतना नीचे मत करिए.”

गोपालजी – मैडम, प्लीज आप मेरे काम में दखल मत दीजिए.

स्कर्ट को एडजस्ट करते हुए गोपालजी की अँगुलियाँ मेरी पैंटी के इलास्टिक बैंड को छू रही थीं और एक बार तो मुझे ऐसा लगा की उसने एक अंगुली मेरी पैंटी के एलास्टिक के अंदर घुसा दी है.

“आउच……आआहह…”

मेरी सांस रुक गयी और मेरे मुँह से अपनेआप निकल गया. 

गोपालजी ने सर उठाकर ऊपर को देखा और उसका सर ब्लाउज से ढकी हुई मेरी बायीं चूची से टकरा गया. अब मैं आँखें बंद करके जोर से धड़कते हुए दिल से खड़ी थी क्यूंकी मुझे मालूम था की मेरी स्कर्ट का हुक अभी भी खुला है. मेरी आँखें बंद देखकर गोपालजी स्कर्ट को एडजस्ट करने के बहाने दोनों हाथों से मेरी कमर को पैंटी के पास छूते रहा और बीच बीच में अपने सर को मेरी बायीं चूची पर दबाते रहा. उसके ऐसा करने से ऐसी इरोटिक फीलिंग आ रही थी की क्या बताऊँ. 

शुक्र था की आख़िरकार उसने स्कर्ट का हुक लगा ही दिया.

गोपालजी – मैडम अब ठीक लग रहा है. देख लीजिए.
मैंने आँखें खोली और अपनी उत्तेजना को दबाने के लिए एक गहरी सांस ली और फिर नीचे देखा.

“ईईईईई…..”

कुछ इस तरह की आवाज मेरे मुँह से निकली, गोपालजी ने स्कर्ट इतनी नीचे कर दी थी की मेरी नाभि और उसके आस पास का पूरा हिस्सा नंगा था और स्कर्ट का एलास्टिक ठीक मेरी पैंटी के एलास्टिक के ऊपर आ गया था.

गोपालजी – मैडम, देखो, मैंने बहुत सी औरतों के लिए ड्रेस सिली हैं और मैं आपको बता सकता हूँ की ज़्यादातर औरतें अपने पेट से ज़्यादा जांघों को ढकना पसंद करती हैं. इसलिए….

“गोपालजी ये बात तो सही है पर ….”

गोपालजी – गुस्ताख़ी माफ़ मैडम, लेकिन आपकी जाँघें बहुत गोरी और आकर्षक हैं. इसलिए मुझे लगता है की लोगों के सामने इन्हें जितना ढकोगी उतना ही आपके लिए अच्छा रहेगा.

बातों के दौरान मैं ये अंदाज़ा लगाने की कोशिश कर रही थी की मेरे नितंबों को स्कर्ट कितना ढक रही है. मुझे लगा की जहाँ से कमर का घुमाव शुरू होता है वो हिस्सा दिख रहा होगा क्यूंकी स्कर्ट उससे नीचे बँधी थी. इतनी नीचे स्कर्ट पहनकर मैं बहुत कामुक लग रही हूंगी और जब मैंने दीपू की ओर देखा तो उसकी हवसभरी आँखें यही बता रही थी.

“ठीक है फिर. मैं यहीं पर बाधूंगी.

गोपालजी – मैडम, मैं एक बार चुन्नट भी देख लूँ फिर आपकी स्कर्ट फाइनल करता हूँ.

मैंने सर हिला दिया और वो बुड्ढा फिर से मेरी नंगी टाँगों के आगे बैठ गया. उसका चेहरा ठीक मेरी चूत के सामने था.

गोपालजी – मैडम चुन्नट बाहर से तो ठीक हैं. एक बार जल्दी से अंदर से भी देख लेता हूँ.

मुझे रियेक्ट करने का वक़्त दिए बिना उस टेलर ने चुन्नट चेक करने के बहाने से तुरंत अपने दोनों हाथ मेरी स्कर्ट के अंदर डाल दिए. क्यूंकी स्कर्ट टाइट थी इसलिए उसकी हथेलियों का पिछला हिस्सा मेरी नंगी जांघों को छूने लगा. स्वाभाविक था की मैं इसके लिए तैयार नहीं थी और थोड़ा पीछे हट गयी. मेरी स्कर्ट के अंदर पैंटी के पास एक मर्द का हाथ देखकर अपनेआप ही मेरी टाँगें चिपक गयीं. फिर उसके हाथ मैंने स्कर्ट के अंदर ऊपर को बढ़ते महसूस किए अब तो मुझे बोलना ही था.

“अरे… गोपालजी ये क्या कर रहे हो ?”

मैंने अपने होंठ दबा लिए क्यूंकी गोपालजी के हाथ मेरी स्कर्ट के अंदर एक लय में चुन्नट के साथ ऊपर नीचे जा रहे थे. वो एक एक करके हर चुन्नट को चेक कर रहा था. अब मैं उसकी ये हरकत और बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी. मेरे बदन में सिहरन सी दौड़ने लगी थी. मैंने स्कर्ट के बाहर से उसका एक हाथ पकड़ लिया. वो दृश्य बहुत कामुक लग रहा था, मैं एक मर्द के सामने खड़ी थी और उसने मेरे पैरों में बैठ के मेरी स्कर्ट के अंदर अपने हाथ घुसा रखे थे और अब मैंने उसका एक हाथ स्कर्ट के बाहर से पकड़ा हुआ था.

गोपालजी – क्या…क्या हुआ मैडम ?

“मेरा मतलब….प्लीज अब बस करो…”

गोपालजी – लेकिन मैडम, मैं तो ऐसे ही अंदर के चुन्नट चेक करता हूँ वरना मुझे आपकी स्कर्ट ऊपर को उठाकर पलटकर अंदर से चुन्नट चेक करनी पड़ेगी जो की और भी ज़्यादा…….

“ना ना, पहले आप अपने हाथ बाहर निकालो…प्लीज…...”

गोपालजी बड़ा आश्चर्यचकित लग रहा था पर उसने धीरे से अपने हाथ स्कर्ट से बाहर निकाल लिए.

“गोपालजी माफ कीजिएगा, लेकिन मुझे अजीब सा ….. मेरा मतलब गुदगुदी सी हो रही थी…”

गोपालजी – ओह …..मैंने सोचा…..चलो ठीक है. मैडम , आप पहली बार स्कर्ट की नाप दे रही हो इसलिए ऐसा हो गया होगा.

वो हल्के से हंसा , उसके साथ दीपू भी हंस दिया और शरमाते हुए मैं भी मुस्कुरा दी.
दीपू – मेरे ख्याल से एक काम हो सकता है. जब मैडम साड़ी पहन लेगी तब हम स्कर्ट के अंदर के चुन्नट चेक कर सकते हैं.

गोपालजी – दीपू , मेरे नाप लेने के तरीके में हर चीज का कुछ ना कुछ मतलब होता है. अगर ऐसा हो सकता जैसा की तुम सुझाव दे रहे हो तो मैंने मैडम को ऐसे शर्मिंदा नहीं किया होता. है की नहीं ?

दीपू – जी , माफी चाहता हूँ.

गोपालजी – दीपू, अगर अंदर से चुन्नट बराबर नहीं होंगी तो ये मैडम की जांघों को छूएंगी और उसे अनकंफर्टेबल फील होगा. इसलिए मैं इन्हें तभी चेक कर रहा हूँ जब मैडम ने इसे पहना है.

अब मुझे भी बात साफ हो गयी. टेलर का इरादा तो नेक था पर उसकी इस हरकत से मुझे बर्दाश्त करना मुश्किल हो रहा था.

गोपालजी – कोई बात नहीं , मैडम को असहज महसूस हो रहा है इसलिए इसे मैं बाद में ठीक करूँगा.

वो थोड़ा रुका. मैं एक बेशरम औरत की तरह उस छोटी सी स्कर्ट और ब्लाउज में उनके सामने खड़ी थी.

गोपालजी – अब मैडम, अगर आप चाहो तो मैं कुछ और चीज़ें चेक कर लूँ सिर्फ आपकी इज़्ज़त बचाने के लिए. लेकिन सिर्फ तभी जब आप चाहोगी….

“गोपालजी , लगता है की आप मुझसे नाराज हो गये हो. लेकिन मैं तो सिर्फ…”

गोपालजी – ना ना मैडम, ऐसी कोई बात नहीं . मुझे खुशी है की आपने साफ साफ बता दिया की आपको असहज महसूस हो रहा है. लेकिन मैं ये कहना चाहता हूँ की इसका मेरे नाप लेने से कोई मतलब नहीं . देखो मैडम, आप पहली बार मिनी स्कर्ट पहन रही हो, इसलिए आपको ध्यान रखना चाहिए की आप अपनी पैंटी..…मेरा मतलब आपकी पैंटी लोगों को दिख ना जाए इसका ध्यान रखना होगा.

ये बात तो मेरे दिमाग़ में भी थी पर मुझे कैसे पता चलेगा की लोगों को मेरी पैंटी दिख रही है या नहीं . 

“हम्म्म ….. हाँ ये तो है . पर इसे चेक कैसे करुँगी ?”

गोपालजी – मैडम, आपको कुछ भी नहीं करना है. मैं हूँ ना आपको गाइड करने के लिए.
 
गोपालजी – मैडम, आपको कुछ भी नहीं करना है. मैं हूँ ना आपको गाइड करने के लिए.

उसके आश्वासन से मुझे राहत हुई और मैं उस अनुभवी टेलर के निर्देशों का इंतज़ार करने लगी.

गोपालजी – मैडम, अब आपकी स्कर्ट सही जगह पर बँधी है और मैं आपके बैठने के पोज चेक करूँगा. अगर कुछ एडजस्ट करना होगा तो बताऊँगा , ठीक है ?

गोपालजी – ठीक है गोपालजी.

गोपालजी – मैडम, आपको समझ आ रहा होगा की मिनी स्कर्ट पहनने में सबसे बड़ी समस्या इसके अंदर दिखने की है और इसके लिए आपको बहुत सावधानी बरतनी पड़ेगी. अगर आप मेरे बताए निर्देशों का पालन करोगी तो ज़्यादा एक्सपोजर नहीं होगा.

जिस तरह से वो टेलर मेरी मदद करने की कोशिश कर रहा था उससे मुझे अच्छा लगा और मैंने उसकी बात पर सर हिला दिया.

गोपालजी – दीपू, क्या तुम बता सकते हो की वो कौन से पोज हैं जिसमें मैडम को अलर्ट रहना चाहिए.

दीपू – जी, 6 ख़ास पोज हैं, खड़े होना, बैठना, झुकना, पैरों पर बैठना, लेटना और चढ़ना.

गोपालजी – बहुत अच्छे. देखो मैडम, इसने मेरे साथ रहकर काफ़ी कुछ सीख लिया है.

वो दोनों मुस्कुराने लगे और मैं उनके सामने एक सेक्सी मॉडल की तरह खड़ी रही. वैसे मैंने मन ही मन गोपालजी के सिखाने के तरीके की तारीफ़ की.

गोपालजी – ठीक है फिर. मैडम, एक एक करके हर पोज देख लेते हैं ताकि आपको क्लियर आइडिया हो जाए की क्या करना है और क्या नहीं करना है.

“जैसा आप कहो गोपालजी.”

मुझे अच्छा लग रहा था की गोपालजी मुझे अच्छे से गाइड कर रहा था. मैंने सोचा की कई तरह के पोज में बैठाकर गोपालजी मुझे गाइड करेगा की क्या करना है और क्या नहीं. पर मुझे क्या पता था की गाइड करने के दौरान मेरे साथ क्या होने वाला है.

गोपालजी – मैडम, जब आप ये स्कर्ट पहनकर महायज्ञ में बैठोगी तो वहीं पर बांधना जहाँ पर अभी मैंने बांधी है, पैंटी के एलास्टिक से एक अंगुली ऊपर. और स्कर्ट के कपड़े को आगे और पीछे से ऐसे खींच लेना.

गोपालजी ने ऐसे दिखाया जैसे वो स्कर्ट पहने है और अपने आगे पीछे से कपड़े को नीचे खींच रहा है.

गोपालजी – सबसे पहला पोज खड़े होना है और ये सबसे सेफ पोज है.

वो मुस्कुराया. दीपू भी मुस्कुरा रहा था और मैं बेवकूफ़ के जैसे उस टेलर के निर्देशों का इंतज़ार कर रही थी.

गोपालजी – दीपू, क्या मैडम ठीक से खड़ी है ?

दीपू – जी नहीं.

मुझे आश्चर्य हुआ क्यूंकी मैं तो हमेशा जैसे खड़ी होती हूँ वैसे ही खड़ी थी चाहे साड़ी पहनी हो चाहे सलवार कमीज.

“क्यूँ ? क्या समस्या है ?”

गोपालजी – दीपू, क्या तुम….

दीपू – जी जरूर.

दीपू मेरे पास आया और मेरी नंगी टाँगों के सामने पैरों पर बैठ गया. उसका मुँह मेरी चूत के पास था, उसे अपने इतने नजदीक बैठा देखकर जैसे ही मैं पीछे हटने को हुई……

दीपू – मैडम, आप हिलना मत. मैं आपको बताऊँगा की ग़लत क्या है.

दीपू ने मेरी नंगी टाँगों को घुटनों से थोड़ा ऊपर पकड़ लिया और मुझे इशारा किया की मैं अपनी टाँगों को और चिपका लूँ. एक मर्द के मेरी नंगी टाँगों को पकड़ने से मेरे बदन में सिहरन दौड़ गयी फिर मैंने अपने को कंट्रोल किया और टाँगों को थोड़ा और चिपका लिया.

“अब ठीक है ?”

दीपू – ना मैडम. अभी भी आपकी जांघों के बीच गैप दिख रहा है जो की नहीं होना चाहिए.

ऐसा कहते हुए उसने अपनी अंगुली को मेरी जांघों में उस गैप पर फिराया. उसके बाद उसने दोनों हाथों से मेरी जांघों के पीछे के भाग को पकड़ लिया और उस गैप को भरने के बहाने उन पर हाथ फिराने लगा और उन्हें दबाने लगा. उसकी इस हरकत से मेरी चिकनी जांघों में सनसनाहट होने लगी जो टाँगों से होती हुई चूत तक पहुँच गयी. मैं शरमा गयी और अपने सूखे हुए होठों को जीभ से गीला करके नॉर्मल बिहेव करने की कोशिश करने लगी.

“ओह्ह......ओके दीपू, मैं समझ गयी.”

गोपालजी – ठीक है मैडम. जब भी आप स्कर्ट पहनकर खड़ी होगी तो अपनी जांघें चिपकाकर खड़ी होना. जब आप साड़ी, सलवार कमीज या नाइटी पहनती हो तो आपकी टाँगें ढकी रहती हैं इसलिए अगर आप टाँगें अलग करके भी खड़ी रहती हो तो अजीब नहीं लगता. पर ये वेस्टर्न ड्रेस है इसलिए ये अंतर ध्यान में रखना.

“हम्म्म, सही है.”

दीपू – मैडम, आपकी टाँगें बहुत मांसल और खूबसूरत हैं. सच बताऊँ मैडम, केले के पेड़ की तरह दिखती हैं.

गोपालजी – हाँ मैडम. ये तो आप भी मानोगी.

मुझे उस लड़के से अपनी टाँगों पर ऐसे डाइरेक्ट कमेंट की उम्मीद नहीं थी और मुझे कुछ समझ नहीं आया की कैसे रियेक्ट करूँ. मुझे तुरंत अपनी शादी के शुरुवाती दिनों की एक घटना याद आ गयी जब मेरे पति राजेश ने मेरी चूचियों को सेब जैसी कहा था. उस रात को राजेश बहुत देर से मेरी नंगी चूचियों को मसल रहे थे. मेरी कामोत्तेजना से और उनके मसलने से चूचियों लाल हो गयीं. फिर राजेश बोले, “अब तुम्हारी चूचियाँ सेब जैसी दिख रही हैं गोल और लाल.”

अब दीपू मेरे आगे बैठी हुई पोजीशन से खड़ा हो गया. मैंने ख्याल किया उसकी आँखें ऐसी हो रखी थीं की जैसे मेरे पूरे बदन को चाट रही हों. मेरी चूचियाँ थोड़ा तेज़ी से ऊपर नीचे होने लगीं और ब्लाउज के अंदर ब्रा कप में टाइट होने लगीं. मैंने ऐसे दिखाया जैसे की मेरे कंधे में खुजली लगी हो और इस बहाने ब्लाउज को थोड़ा एडजस्ट कर लिया.

गोपालजी – मैडम इसके बाद आता है बैठने का पोज. इसमें दो खास पोज हैं , एक कुर्सी पर बैठना और दूसरा फर्श पर बैठना. दीपू वो कुर्सी यहाँ लाओ.

दीपू ने कुर्सी लाकर मेरे आगे रख दी.

गोपालजी – मैडम, औरत होने के नाते आपको मालूम होगा की स्कर्ट पहनकर बैठने के दो तरीके होते हैं.

मैंने उसे उलझन भरी निगाहों से देखा क्यूंकी मुझे समझ नहीं आया की वो क्या कहना चाह रहा है.

गोपालजी – एक तरीका ये है की दोनों हाथों से स्कर्ट को नीचे को खींचो और बैठ जाओ. दूसरा तरीका ये है की थोड़ा सा स्कर्ट को ऊपर करो और जांघों पर गोल फैलाकर पैंटी पर बैठ जाओ.

मैं इस अनुभवी टेलर की जानकारी से हैरान थी.

गोपालजी – लेकिन मैडम, मिनीस्कर्ट में दूसरा तरीका काम नहीं करेगा क्यूंकी अगर आप अपनी स्कर्ट ऊपर करोगी तो आपकी …….

दीपू – बड़ी गांड दिख जाएगी मैडम.

दीपू ने टेलर का अधूरा वाक्य पूरा कर दिया. मैं ख्याल कर रही थी की इस लड़के का दुस्साहस बढ़ते जा रहा है. लेकिन इसके लिए मैं ही ज़िम्मेदार थी क्यूंकी उन दोनों मर्दों के सामने सिर्फ़ ब्लाउज और एक छोटी सी स्कर्ट में खड़ी थी.

गोपालजी – हाँ मैडम, इसलिए सिर्फ़ पहला तरीका ही है.

मुझे कुछ जवाब देने का मन नहीं हुआ.

गोपालजी – दीपू , मैडम की मदद करो……

दीपू की मदद क्यूँ चाहिए , मैं खुद बैठ सकती हूँ, मैंने सोचा.

“मैं खुद बैठ जाऊँगी, गोपालजी.”

गोपालजी – मुझे मालूम है मैडम. लेकिन आपको सही तरीका आना चाहिए वरना दुबारा से सही पोज बनाना पड़ेगा. इसलिए मैं दीपू से कह रहा था….

मुझे लगा की टेलर सही कह रहा है और सही पोज के लिए मुझे दीपू की मदद लेनी होगी.

“हाँ ये सही है पर…..ठीक है दीपू.”

मैंने अनिच्छा से दीपू को मदद के लिए कहा.

दीपू – ठीक है मैडम. आप कुर्सी में बैठो. लेकिन धीरे से बैठना ताकि मैं आपको दिखा सकूँ की स्कर्ट को कब और कैसे पकड़ना है.

दीपू ने बड़े आराम से कह दिया लेकिन मुझे मालूम था की असल में मेरे लिए ये आसान नहीं होगा. मैं अब कुर्सी के आगे खड़ी थी और दीपू कुर्सी के पीछे. इस पोज में मेरी स्कर्ट से ढकी हुई बड़ी गांड उसके सामने थी और मैं ऐसे उसके सामने खड़ी होकर असहज महसूस कर रही थी. गोपालजी ठीक मेरे सामने खड़ा था.

दीपू – मैडम, आपको अपनी स्कर्ट को जांघों के पास ऐसे पकड़ना है.

उसने मेरी स्कर्ट दोनों हाथों से पकड़ ली और उसके हाथ मेरी ऊपरी जांघों को छू रहे थे. वैसे तो वो स्कर्ट के कोने पकड़े हुए था पर उसकी अँगुलियाँ मेरी नंगी मांसल जांघों को महसूस कर रही थीं.

दीपू – अब धीरे से बैठो, मैडम.

जैसे ही मैंने कुर्सी में बैठने को अपनी कमर झुकाई तो मेरे भारी नितंबों पर स्कर्ट उठ गयी और स्कर्ट के साथ साथ दीपू की अँगुलियाँ भी ऊपर की ओर बढ़ने लगीं. जब मैं कुर्सी पर बैठी तो शरम से मेरा मुँह सुर्ख लाल हो गया क्यूंकी कुछ भी छिपाने को नहीं था, मेरी टाँगों और जांघों का एक एक इंच नंगा था. मुझे अंदाज आ रहा था की स्कर्ट मेरी आधी गांड तक ऊपर उठ चुकी है. अपने को इतना एक्सपोज मैंने कभी नहीं फील किया. मुझे लग रहा था की दीपू की अँगुलियाँ मेरे नितंबों को छू रही हैं. उसका चेहरा मेरे कंधों के पास था और मेरी गर्दन पर उसकी भारी साँसों को मैं महसूस कर रही थी. फिर उसने अपनी अँगुलियाँ हटा ली.

दीपू – मैडम, इतनी तेज नहीं. मैंने आपसे कहा था की धीरे से बैठना. मैं आपको ठीक से दिखा नहीं सका …….

गोपालजी – एक मिनट दीपू. मैडम, क्या आप हमेशा ऐसे ही बैठती हो ?

मैंने अपनी नंगी टाँगों को देखा. मेरी गोरी गोरी मांसल जाँघें बहुत उत्तेजक लग रही थीं. मैंने इतना शर्मिंदा महसूस किया की मैं टेलर से आँखें भी नहीं मिला पाई.

गोपालजी – मैडम, अगर आप ऐसे बैठोगी तो जल्दी ही आपके सामने लोगों की भीड़ लग जाएगी.

अब मैंने नजरें उठाकर उसे देखा. वो कहना क्या चाहता है ? हाँ, मेरी नंगी जाँघें बहुत अश्लील लग रही हैं, पर गोपालजी का इशारा किस तरफ है ?

“लेकिन क्यूँ, गोपालजी ?”

गोपालजी – मैडम, अगर आप ऐसे टाँगें अलग करके बैठोगी तो सामने वाले हर आदमी को, यहाँ तक की जो खड़े भी होंगे, उनको भी आपकी पैंटी दिख जाएगी.

“ऊप्स……”

मैंने जल्दी से अपनी टाँगें चिपका लीं. मुझे बड़ी शर्मिंदगी हुई की मैंने टेलर को अपनी पैंटी दिखा दी. मैं बेआबरू होकर फर्श को देखने लगी.

गोपालजी – मैडम, प्लीज बुरा मत फील कीजिए क्यूंकी यहाँ कोई नहीं है पर आपको ध्यान रखना होगा. वैसे मज़ेदार बात ये है की मैंने ख्याल किया है की बैठते समय टाँगें फैलाने की आदत शादीशुदा औरतों में ज़्यादा होती है. मैडम आप भी उन में से ही हो.

दीपू – पर ऐसा क्यूँ ? कोई खास वजह ?

गोपालजी – मैडम से पूछो, वो तुम्हें बेहतर बता सकती है.

गोपालजी और दीपू दोनों मेरी तरफ देखने लगे और मैं इस बेहूदा सवाल का जवाब देना नहीं चाहती थी.

“वजह….मेरा मतलब…ऐसी कोई बात नहीं…..”

गोपालजी – मैडम, असल बात ये है की शादी के बाद औरतों को टाँगें फैलाने की आदत हो जाती है. वैसे घर में साड़ी पहनकर ऐसे बैठने में कोई हर्ज़ नहीं. ठीक है ना मैडम ?

अब इसका मैं क्या जवाब देती .

गोपालजी – चलो बहुत बातें हो गयी. फिर से बैठने का पोज बनाओ.

मैं कुर्सी से खड़े हो गयी और दीपू ऐसे जल्दी में था जैसे मेरी स्कर्ट को पकड़ने को उतावला हो.

दीपू – मैडम, इस बार धीरे से बैठना.

“ठीक है.”

दीपू – देखो, पहले तो स्कर्ट को साइड्स से पकड़ना और फिर जब बैठने लगो तो ऐसे अपने नितंबों पर स्कर्ट पे हाथ फेरना और फिर बैठना.

ऐसा कहते हुए उसने जो किया वो शायद कभी किसी ने भीड़ भरी बस में भी मेरे साथ नहीं किया था. पहले तो उसने मेरी स्कर्ट के कोने पकड़े हुए थे और फिर वो अपने हाथों को मेरे गोल नितंबों पर ले गया और अपनी अंगुलियों और हथेलियों से मेरी गांड की गोलाई का एहसास करते हुए पूरी गांड पर हाथ फिराकार स्कर्ट के अंतिम छोर तक ले गया.

मुझे लगा की समझाने के बाद वो मेरी स्कर्ट से हाथ हटा लेगा. लेकिन जैसे ही मैं कुर्सी पर बैठी उसने अपने हाथ नहीं हटाए और मेरे भारी नितंब उसकी हथेलियों के ऊपर आ गये. उसकी हथेलियां मेरे गोल नितंबों से दब गयी और तुरंत मुझे अंदाज आ गया की वो मेरे नितंबों को हथेलियों में पकड़ने की कोशिश कर रहा है.
“अरे ….”

स्वाभाविक रूप से मैं उछल पड़ी.

दीपू – सॉरी मैडम, आपने हाथ हटाने का वक़्त ही नहीं दिया. फिर से सॉरी मैडम.

मुझे मालूम था की उसने मेरी स्कर्ट से ढके हुए गोल नितंबों को अपनी हथेलियों में भरने की कोशिश की थी और अब बहाना बना रहा है पर मैं कोई तमाशा नहीं करना चाहती थी. मैंने उसकी माफी स्वीकार कर ली और कुर्सी में बैठ गयी. दीपू अब कुर्सी के पीछे से मेरे सामने आ गया.

गोपालजी – वाह. मैडम, इस बार आपने बिल्कुल सही तरीके से किया. और जैसा की मैंने कहा ध्यान रखना की टाँगें हमेशा चिपकी हों.

“ठीक है गोपालजी.”

गोपालजी – बैठने का दूसरा पोज फर्श पर बैठना है. इसमें पैंटी को ढके रखने के लिए ऐसे बैठना.

ऐसा कहते हुए टेलर अपने घुटनों पर बैठ गया और अपने नितंबों को एड़ियों पर टिका दिया.

गोपालजी – मेरे ख्याल से महायज्ञ में ज़्यादातर ऐसे ही बैठना होगा. एक बार करके देखो मैडम.

मैंने गोपालजी के पोज की नकल की और आगे झुककर अपने घुटने फर्श पर रख दिए और गांड एड़ियों पर टिका दी. इस पोज में मुझे कंफर्टेबल फील हुआ क्यूंकी स्कर्ट ऊपर नहीं उठी और ज़्यादा एक्सपोज भी नहीं हुआ.

गोपालजी – बहुत बढ़िया मैडम. अब उठ जाओ.

जैसे ही मैंने उठने की कोशिश की तो मुझे समझ आया की दीपू को मेरी स्कर्ट में दिख जाएगा जो की मेरी साइड में खड़ा था. मैंने फर्श से ऊपर उठते हुए ख्याल रखा लेकिन मेरी स्कर्ट इतनी छोटी थी की मेरी चिकनी जांघों पर ऊपर उठ गयी और मुझे यकीन है की दीपू को स्कर्ट के अंदर मेरी पैंटी दिख गयी होगी.

जिंदगी में कभी मैंने किसी मर्द के साने ऐसे अश्लील तरीके से एक्सपोज नहीं किया था. मेरे पति के सामने भी नहीं. मुझे बहुत बुरा लग रहा था और शरम से मैं पूरी लाल हो गयी थी. सिर्फ़ एक अच्छी बात हुई थी की गोपालजी ने किसी भी पोज को ज़्यादा लंबा नहीं खींचा और मुझे ज़्यादा देर तक शर्मिंदा नहीं होना पड़ा.

गोपालजी – अगला पोज है झुकना. मैडम, ये इम्पोर्टेन्ट पोज है इसका ख्याल रखना.

“क्यूँ ?”

मैंने सोचा इज़्ज़त ढकने के लिए तो (अगर कुछ बची हुई है तो) सभी पोज इम्पोर्टेन्ट हैं. इसमें ऐसा क्या ख़ास है.
 
गोपालजी – अगला पोज है झुकना. मैडम, ये इम्पोर्टेन्ट पोज है इसका ख्याल रखना.

“क्यूँ ?”

मैंने सोचा इज़्ज़त ढकने के लिए तो (अगर कुछ बची हुई है तो) सभी पोज इम्पोर्टेन्ट हैं. इसमें ऐसा क्या ख़ास है.

गोपालजी – क्यूंकी इसमें आपको पता होना चाहिए की कैसे और कितना झुकना है.

मैं अनिश्चय से उसकी तरफ देख रही थी और वो अनुभवी आदमी समझ गया.

गोपालजी – मैडम देखो. एक उदाहरण देता हूँ.

उसने टेप को फर्श में गिरा दिया.

गोपालजी – मैडम अगर मैं बोलूँ की इस टेप को उठा दो तो आप इसे उठाने के लिए झुकोगी. लेकिन अभी आपने मिनी स्कर्ट पहनी है इसलिए आपको झुकने के तरीके में बदलाव करना होगा. कल्पना करो की आपने साड़ी पहनी है तो आप ऐसे उठाओगी ….

ऐसा कहते हुए वो आगे झुका और हाथ आगे बढ़ाकर टेप को पकड़ा और फिर नजरें ऊपर करके मुझे देखा.

“हाँ, मैं ऐसे ही करूँगी.”

गोपालजी – मैडम यही तो बात है. अगर आप ऐसे करोगी तो ज़रा सोचो अगर कोई आपके पीछे बैठा होगा या खड़ा होगा तो उसको आपकी मिनी स्कर्ट में क्या नजारा दिखेगा.

मैं समझ गयी की वो कहना क्या चाहता है.

गोपालजी – मैडम, कोई भी औरत जानबूझकर ऐसा नहीं करेगी. आपको अपनी टाँगें चिपकाकर घुटने मोड़ने हैं और फिर ऐसे टेप उठाना है.

गोपालजी ने करके दिखाया.

“हाँ सही है.”

मैंने भी गोपालजी की तरह पोज़ बनाकर फर्श से टेप उठाकर दिखाया. सच कहूँ तो मैं अपने मन में उस टेलर को धन्यवाद दे रही थी क्यूंकी इस बारे में मैंने इतनी बारीकी से नहीं सोचा था.

गोपालजी – ठीक है मैडम. लेकिन आपको ये भी मालूम होना चाहिए की बिना कुछ दिखाए आप अपनी कमर को कितना झुका सकती हो. क्यूंकी यज्ञ के दौरान हो सकता है की आपको ऐसे झुकना पड़े.

मैंने सोचा ये तो बुड्ढा सही कह रहा है. अब वो टेलर से ज़्यादा एक गाइड की भूमिका में था. 

गोपालजी – दीपू, मैं यहाँ पर बैठता हूँ और तुम्हें गाइड करूँगा की क्या करना है. ठीक है ?

दीपू – जी ठीक है.

ऐसा कहते हुए गोपालजी कुर्सी में बैठ गया.

गोपालजी – मैडम, आप मुझसे थोड़ी दूर दीवार की तरफ मुँह करके खड़ी हो जाओ …..4-5 फीट . वहाँ पर.

उसने उस जगह के लिए इशारा किया और मैं टेलर से करीब 4-5 फीट की दूरी पर दीवार के करीब जाकर खड़ी हो गयी. दीपू भी मेरे पीछे आ गया और गोपालजी की तरफ मेरी पीठ थी.

गोपालजी – मैडम, अपनी टाँगें फैला लो. दोनों पैरों के बीच एक फीट से कुछ ज़्यादा गैप होना चाहिए.

मैंने टाँगें थोड़ी फैला लीं. दीपू नीचे झुका और उसने मेरी ऐड़ियों को पकड़कर थोड़ी और फैला दिया. मैं सोच रही थी की अब मेरे साथ और क्या क्या होनेवाला है. ऐसे टाँगें अलग करने से मेरे निप्पल्स में एक अजीब सी फीलिंग आ रही थी. मैं अपना दायां हाथ ब्लाउज पर ले गयी और मेरी चूचियों को ब्रा में एडजस्ट कर लिया. गोपालजी की तरफ मेरी पीठ थी और दीपू नीचे झुका हुआ था इसलिए वो दोनों ये देख नहीं पाए.

दीपू – जी अब ठीक है ? 

गोपालजी – हाँ बिल्कुल सही. मैडम, अब धीरे से कमर को आगे को झुकाओ.

“कैसे ?”

गोपालजी – मैडम, अपनी टाँगें सीधी रखो और आगे को झुको. मैं आपको बताऊँगा की कहाँ पर रुकना है. इससे आपको क्लियर आइडिया हो जाएगा की लोगों के सामने कितना झुकना है.

अब मुझे बात करने के लिए उस टेलर की तरफ मुड़ना पड़ा.

“लेकिन गोपालजी अगर मैं ऐसे झुकी तो ये बहुत भद्दा लगेगा.”

मैं बहुत कामुक लग रही हूँगी क्यूंकी मैंने देखा गोपालजी की आँखें मेरे जवान बदन पर टिकी हुई हैं. मैं उसकी तरफ गांड करके टाँगें फैला के खड़ी हुई थी और बातें करने के लिए मैंने सिर्फ अपना चेहरा पीछे को मोड़ा हुआ था. 

गोपालजी – क्या भद्दा मैडम ? यहाँ आपको कौन देख रहा है ?

“नहीं , लेकिन…”

गोपालजी ऐसे बात कर रहा था जैसे दीपू और वो खुद उस कमरें में हैं ही नहीं. लेकिन मैं उन दो मर्दों को नज़र अंदाज़ कैसे कर देती.

गोपालजी – मैडम, ये तो आपकी मदद के लिए हम कर रहे हैं वरना तो आप लोगों के सामने अपनी पैंटी दिखाती रहोगी.

मैं उस टेलर से बहस नहीं कर सकती थी. क्यूंकी सच तो ये था की वो स्कर्ट बहुत छोटी थी और मुझे मालूम नहीं था की उस छोटी स्कर्ट में मेरे बड़े नितंब चलते समय या झुकते समय कैसे दिख रहे हैं.

“ठीक है, जैसा आप कहो.”

मैं अनिच्छा से राज़ी हो गयी और अपना मुँह दीवार की तरफ कर लिया. दीपू मेरे पास खड़ा हो गया.

गोपालजी – तो फिर जैसा मैं कह रहा हूँ वैसा करो. धीरे से अपने बदन को आगे को झुकाओ. दीपू मैडम की टाँगें पकड़े रहना ताकि वो टाँगों को ना मोड़े.

दीपू ने तुरंत पीछे से मेरी टाँगें पकड़ ली और मुड़ने से रोकने के लिए घुटनों पर पकड़ने के बजाय उसने मेरी नंगी जांघों को पकड़ लिया. मुझे अंदाज़ा हो रहा था की वो मेरी मांसल जांघों पर हाथ फिराने का मज़ा ले रहा है.

मैंने अपने बदन को आगे को झुकाना शुरू किया. खुशकिस्मती थी की मेरे आगे कोई नहीं था क्यूंकी ऐसे आगे को झुकने से मेरे ब्लाउज में गैप बनने लगा और मेरी बड़ी चूचियों का ऊपरी भाग दिखने लगा था. 

गोपालजी – मैडम, धीरे से बदन को झुकाओ. जब तक की मैं रुकने को ना बोलूँ. ठीक है ?

“ठीक है…”

मैं धीरे से आगे को झुकती रही और मुझे अंदाज़ा हो रहा था की स्कर्ट मेरी जांघों पर ऊपर उठ रही है. अब मेरा सर नीचे को झुक गया था तो मुझे पीछे बैठा दीपू दिखने लगा और जब मैंने देखा की वो बदमाश क्या कर रहा है तो मैं जड़वत हो गयी. 

वो मेरे पीछे मेरे पैरों के पास बैठा हुआ था और उसका चेहरा मेरी जांघों के करीब था. मैं झुकी हुई पोजीशन में थी और वो बदमाश इसका फायदा उठाकर मेरी स्कर्ट के अंदर झाँकने की कोशिश कर रहा था. वो अंदर झाँकने को इतना उतावला हो रखा था की सर ऊपर करके सीधे स्कर्ट में देख रहा था. उसकी आँखें मेरी पैंटी से कुछ ही दूर थी और वो बिना किसी रोक टोक के मेरी पूरी गांड का नज़ारा देख सकता था.

जैसे ही उसकी नजरें मुझसे मिली, जल्दी से उसने अपना मुँह नीचे को कर लिया और मेरी जांघों पर उसकी पकड़ टाइट हो गयी. मेरा मन हुआ की इस बदमाश छोकरे को एक कस के थप्पड़ लगा दूँ पर मैंने अपने को काबू में रखा. मुझे समझ आ रहा था की इस पोज़ में मैं बहुत ही कामुक लग रही हूँगी. मैंने पीछे गोपालजी को देखा और वो अपने हाथ से अपने पैंट को वहाँ पर खुजा रहा था और उसकी नजरें मेरे पीछे को उभरे हुए नितंबों पर टिकी हुई थी.

गोपालजी – मैडम, बस रुक जाओ. इस एंगल से मुझे आपकी पैंटी दिखने लगी है.

अब मेरा दिमाग़ घूमने लगा था. अभी अभी मैंने टेलर के साथी को अपनी स्कर्ट के अंदर झाँकते हुए रंगे हाथों पकड़ा था और अब टेलर कह रहा था की उसे मेरी पैंटी दिख रही है.

गोपालजी – मैडम, इस पोज़ में आपकी गांड ऐसे लग रही है जैसे स्कर्ट के अंदर दो कद्दू रखे हों.

मैं उसके कमेंट पर ज़्यादा ध्यान ना दे सकी क्यूंकी दीपू के हाथ मेरी नंगी जांघों पर ऊपर को बढ़ने लगे थे और एक मर्द के मेरी नंगी जांघों को छूने से मुझपे नशा सा चढ़ रहा था. वो मेरी जांघों के एक एक इंच को महसूस कर रहा था और अब उसके हाथ मेरी स्कर्ट के पास पहुँच गये थे.

गोपालजी – मैडम, इसी पोज़ में रहो. दीपू मैडम की मदद करो ताकि मैडम और ज़्यादा ना झुके.

मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था. दीपू ने मुझे उस पोज़ में रोकने के बहाने अपने हाथ स्कर्ट के अंदर डाल दिए और उसकी अँगुलियाँ मेरे नितंबों के निचले भाग की छूने लगी.

गोपालजी कुर्सी से उठकर मेरे पास आने लगा. मैंने एक नज़र अपनी छाती पर डाली और ये देखकर शॉक्ड रह गयी की मेरी गोल चूचियों का ज़्यादातर हिस्सा ब्लाउज से बाहर लटक रहा है.

गोपालजी – ठीक है मैडम. अब आप सीधी हो जाओ. मैंने पोजीशन नोट कर ली है.

मैं उस समय तक उत्तेजना से काँपने लगी थी क्यूंकी दीपू की अँगुलियाँ मेरी स्कर्ट के अंदर मनमर्ज़ी से घूम रही थी और एक दो बार तो उसने पैंटी के ऊपर से मेरे भारी नितंबों को मसल भी दिया था. मेरी साँसें उखड़ने लगी थी तभी गोपालजी ने मुझे सीधे होने को कहा.

दीपू को अब अपनी हरकतें रोकनी पड़ी. उसने एक आख़िरी बार अपनी दोनों हथेलियों को मेरी स्कर्ट के अंदर फैलाया और मेरी गांड की पूरी गोलाई का अंदाज़ा किया. मैं सीधी खड़ी तो हो गयी पर मुझे असहज महसूस हो रहा था क्यूंकी दीपू ने मेरी काम भावनाओं को भड़का दिया था. मैंने अपने दाएं हाथ से अपनी गांड के ऊपर स्कर्ट को सीधा किया और ब्लाउज के अंदर चूचियों को एडजस्ट कर लिया.

अब जो अनुभव मुझे अभी हुआ था उससे मेरे मन में एक डर था की यज्ञ के दौरान पीछे से मेरी स्कर्ट के अंदर लोगों को दिख सकता है.

गोपालजी – मैडम, अगला पोज़ है ऐड़ियों पर बैठना (स्क्वाटिंग). लेकिन इस स्कर्ट में आप ऐसे नहीं बैठ सकती हो. है ना ?

गोपालजी शरारत से मुस्कुरा रहा था. मैंने सिर्फ सर हिला दिया.

दीपू – मैडम, अगर आपको ऐसे बैठना ही पड़े तो बेहतर है की आप अपनी स्कर्ट खोल दो और फिर अपनी ऐड़ियों पर बैठ जाओ.

उसकी इस बेहूदी बात पर वो दोनों ठहाका लगाकर हंसने लगे. मैं गूंगी गुड़िया की तरह खड़ी रही और बेशर्मी से व्यवहार करती रही जैसे की उस कमरे में फँस गयी हूँ.

गोपालजी – मैडम, सीढ़ियों पर चढ़ते समय भी ध्यान रखना होगा. क्यूंकी इस स्कर्ट को पहनकर अगर आप सीढ़ियां चढ़ोगी तो पीछे आ रहे आदमी को फ्री शो दिखेगा……

“हाँ गोपालजी मुझे मालूम है. आशा करती हूँ की ऐसी सिचुयेशन नहीं आएगी.”

दीपू – हाँ मैडम. पता है क्यों ?

मैंने उलझन भरी निगाहों से दीपू को देखा.

दीपू – क्यूंकी आश्रम में सीढ़ियां हैं ही नहीं……हा हा हा……

इस बार हम सभी हंस पड़े. मेरी साँसें भी अब नॉर्मल होने लगी थी.

गोपालजी – मैडम, आख़िरी पोज़ है लेटना. अब आपको बहुत कुछ मालूम हो गया है, मैं चाहता हूँ की आप अपनेआप बेड में लेटो.

“ठीक है..”

गोपालजी – मैडम, हम इस तरफ खड़े हो जाते हैं.

वो दोनों उस तरफ खड़े हो गये जहाँ पर लेटने के बाद मेरी टाँगें आती. मैं बेड में बैठ गयी और तुरंत मुझे अंदाज़ा हुआ की ठंडी चादर मेरी नंगी गांड के उस हिस्से को छू रही है जो की पैंटी के बाहर है, वो स्कर्ट इतनी छोटी थी. मैंने अपनी टाँगें सीधी रखी और चिपका ली और उन्हें उठाकर बेड में रख दिया. गोपालजी और दीपू की नजरें मेरी कमर पर थी और मैं जितना हो सके अपनी इज़्ज़त को बचाने की कोशिश कर रही थी. लेकिन मुझे समझ आ गया की पैंटी को ढकना असंभव है. मेरी स्कर्ट चिकनी जांघों पर ऊपर उठने लगी और मैंने जल्दी से उसे नीचे को खींचा. लेकिन जैसे ही मैं बेड में लेटी तो मुझे थोड़ी सी अपनी टाँगें मोडनी पड़ी और उन दोनों मर्दों को मेरी स्कर्ट के अंदर पैंटी का मस्त नज़ारा दिख गया होगा.

कितनी शरम की बात थी. 

मैं एक हाउसवाइफ हूँ……….मैं कर क्या रही हूँ. बार बार अपनी पैंटी इन टेलर्स को दिखा रही हूँ. मेरे पति को ज़रूर हार्ट अटैक आ जाएगा अगर वो ये देख लेगा की मैं बिस्तर पे इतनी छोटी स्कर्ट पहन कर लेटी हुई हूँ और दो मर्द मेरी पैंटी में झाँकने की कोशिश कर रहे हैं.

गोपालजी – बहुत बढ़िया मैडम. अब तो महायज्ञ में इस ड्रेस को पहनकर जाने के लिए आप पूरी तरह से तैयार हो.

मैं बेड से उठी और सोच रही थी की जल्दी से इस स्कर्ट को उतारकर अपनी साड़ी पहन लूँ क्यूंकी मैंने सोचा टेलर की नाप जोख और ये एक्सट्रा गाइडिंग सेशन खत्म हो गया है.

लेकिन मैं कुछ भूल गयी थी……. जो की बहुत महत्वपूर्ण चीज थी.

गोपालजी – मैडम , अब आपकी नाप का ज़्यादातर काम पूरा हो गया है. बस थोड़ा सा काम बचा है फिर हम चले जाएँगे.

“अब क्या बचा है ?”

खट खट ………

दरवाजे पर खट खट हुई और हमारी बात अधूरी रह गयी क्यूंकी मैं जल्दी से अपनी स्कर्ट के ऊपर साड़ी लपेटकर अपने नंगे बदन को ढकने की कोशिश करने लगी.

गोपालजी – मैडम, फिकर मत करो. मैं देखता हूँ.

वो दरवाजे पर गया और थोड़ा सा दरवाजा खोलकर बाहर झाँका. मैंने परिमल की आवाज़ सुनी की मैडम के लिए फोन आया है.

गोपालजी – ठीक है, मैं अभी मैडम को भेजता हूँ.

परिमल ‘ठीक है’ कहकर चला गया और मैं अपनी साड़ी और पेटीकोट लेकर बाथरूम चली गयी. मैं सोच रही थी की किसका फोन आया होगा और कहाँ से ? मेरे घर से ? कहीं राजेश के मामाजी का तो नहीं जो मुझसे मिलने आश्रम आए थे ?. यही सोचते हुए मैंने स्कर्ट उतार दी और पेटीकोट बांधकर साड़ी पहन ली.

मैं अपने कमरे से बाहर आकर अपना पल्लू ठीक करते हुए फोन रिसीव करने आश्रम के ऑफिस की तरफ जाने लगी. ऑफिस गेस्ट रूम के पास था. और मैं जैसे ही अंदर गयी , फोन के पास परिमल खड़ा था. उस बौने आदमी और उसके मजाकिया चेहरे को देखते ही मेरे होठों पे मुस्कुराहट आ जाती थी.
 
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