hotaks444
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काली साडी में क्या गजब लग रही थी वो हल्का सा मेकअप किया हुआ था टाइट कसे ब्लाउज में उसके उभार जैसे की उस कैद को तोड़कर बाहर खुली हवा में साँस लेने को पूरी तरह से आतुर थे उसके बदन से उडती वो खुसबू जैसे मेरे रोम रोम में बस गयी थी वो थोडा सा मेरे आगे थी तो मेरी नजर उसकी बड़ी से गांड पर पड़ी उफ्फ्फ अवंतिका बीते समय में तुम और भी खूबसूरत हो गयी थी
वो- ऐसे क्या देख रहे हो
मैं- आज से पहले तुम्हे इस नजर से देखा भी तो नहीं
वो- देव,
मै- कोई नहीं है
वो- तभी तो तुम्हे बुलाया है बस तुम हो मैं हु और ये रात है देखो देव ये तुम्हारी मांगी रात है
मैंने उसका हाथ पकड लिया और बोला- अवंतिका
उसने अपनी नजरे झुका ली कसम से नजरो से ही मार डालने का इरादा था उसका तो धीरे से वो मेरे आगोश में आ गयी उसकी छातिया मेरे सीने से जा टकराई मेरे हाथ उसकी कोमल पीठ पर रेंगने लगी ना वो कुछ बोल रही थी ना मैं बस साँसे ही उलझी पड़ी थी साँसों से धड़कने बढ़ सी गयी थी कुछ पसीना सा बह चला था गर्दन के पीछे से जैसे जैसे वो मेरी बाहों में कसती जा रही थी एक रुमानियत सी छाने लगी थी
उसकी गर्म सांसो को अपने चेहरे पर महसूस कर रहा था मैं,फिर वो आहिस्ता से अलग हुई थी की मैंने फिर से उसको खींच लिया अपनी और इस बार मेरे हाथ उसके नितंबो से जा टकराये थे, उसके रुई से गद्देदार कूल्हों को मेरे कठोर हाथो ने कस कर दबाया तो अवंतिका के गले से एक आह निकली उसकी नशीली आँखे जैसे ही मेरी नजरो से मिली मैंने अपने प्यासे होंठ उसके सुर्ख होंठो से जोड़ दिए उफ्फ इस उम्र में भी इतने मीठे होंठ ऐसा लगा की जैसे चाशनी में डूबे हुए हो, इतने मुलायम की मक्खन भी शर्मा जाये ,उसके होंठ जरा सा खुले और मेरी जीभ् को अंदर जाने का रास्ता मिल गया मैं साडी के ऊपर से ही उसके मदमस्त कर देने वाले नितंबो को मसल रहा था अवंतिका की आँखे बंद थी
हमारी जीभ एक दूसरे से टक्कर ले रही थी आपस में रगड़ खा रही थी इसी बीच उसकी साडी का पल्लू आगे से सरक गया काले ब्लाउज़ में कैद वो खरबूजे से मोटे उभार मेरी आँखों के सामने थे मैंने हलके हलके उनको दबाना शुरू किया बस सहला भर ही देने जैसा, किसी गर्म चॉकलेट की तरह अवंतिका पिघल रही थी आहिस्ता आहिस्ता से मैंने उसके जुड़े में लगी पिन को खोला उसके रेशमी लंबे बाल कमर तक फैल गए अब मैंने उसकी साडी का एक छोर पकड़ा और वो गोल गोल घूमने लगी साडी उतरने लगी और कुछ पलों बाद वो बस पेटीकोट और ब्लाउज़ में मेरी आँखों के सामने थी
उफ्फ्फ खूबसुरती की हद अगर थी तो बस अवंतिका वो ख्वाब जो कभी मैंने देखा था आज उस ख्वाब को हकीकत होना था ,एक बार फिर से हमारे होंठ आपस में टकराने लगे थे उसके रूप का नशा होंठो से होते हुए मेरे दिल में उतरने लगा था मैंने उसके पेटीकोट के नाड़े में उंगलिया फंसाई और उसको खोल दिया संगमरमर सी जांघो को चूमते हुए पेटीकोट फिसल कर नीचे जा गिरा उसके गोरे बदन पर वो जालीदार काली कच्छी उफ्फ्फ आग ही लगा दी थी उसने मैंने बिना देर किये अपने कपडे उतारने शुरू किया उसने अपना ब्लाउज़ खुद उतार दिया
जल्दी ही मैं भी बस कच्छे में ही था अपने आप में इठलाती वो बस ब्रा-पेंटी में मुझ पर अपने हुस्न की बिजलिया गिरा रही थी उसकी नजर मेरे कच्छे में बने उभार पर पड़ी तो वो बोली- ऊपर बेडरूम में चलते है
मैंने उसे अपनी गोद में उठाया और सीढिया चढ़ने लगा अवंतिका ने अपनी गोरी बाहे मेरे गले में डाल दी ऊपर आये उने मुझे बताया किस तरफ और फिर हम उसके बेडरूम में थे , जैसे ही अन्दर गए उफ़ क्या जबरदस्त नजारा था कमरे में चारो तरफ मोमबत्तियो की रौशनी फैली थी पुरे कमरे में गुलाब की पंखुड़िया फैली हुई थी अवंतिका मेरी गोद से उतरी पर मैंने फिर से उसको अपने से चिपका लिया मेरा लंड उसकी गांड की दरार में घुसने को बेताब था मैं ब्रा के ऊपर से ही उसकी चूचियो से खेलने लगा वो अपने कुलहो को धीरे धीरे हिलाने लगी
धीरे से मैंने उसकी ब्रा को खोल दिया और उसकी पीठ को चूमने लगा जगह जगह से काटने लगा अवंतिका के अन्दर आग भड़कने लगी उसने मेरे कच्छे में हाथ डाल दिया और मेरे औज़ार को सहलाने लगी , मचलने लगी मेरी बाहों में उसने खुद ही अपने अंतिम वस्त्र को भी त्याग दिया मेरा लंड उसने अपनी जांघो के बीच दबा दिया और बस अपने बोबो को दबवाती रही जब तक की उसकी गोरी छातिया लाल ना होगई उसके काले निप्पल बाहर को निकल आये
“ओह!देव, बस भी करो ना ”
“अभी तो शुरू भी नहीं हुआ और तुम बस बस करने लगी हो ”
मैंने अवंतिका को बिस्तर पर पटक दिया और उसकी नाभि पर जीभ फेरने लगा उसको गुदगुदी सी होने लगी थी धीरे धीरे मैं उसकी जांघो के अंदरूनी हिस्से को चाटते हुए उसकी योनी की तरफ बढ़ रहा था उफ्फ्फ बिना बालो की किसी ब्रेड की तरह फूली हुई हलकी गुलाबी रंगत लिए हुए कसम से जी किया की झट से इसके अंदर घुस जाऊ
वो भी जान गयी थी की मैं क्या चाहता हु उसने अपने पैरो को फैला लिया और अपने कुल्हे थोडा सा ऊपर को उठाये अवंतिका की गुलाबी योनी मुझे चूमने का निमंत्रण दे रही थी तो भला मैं कैसे पीछे रहने वाला था मैंने अपनी गीली, लिजलिजी जीभ से उसके भाग्नासे को छुआ और अवंतिका के बदन में जैसे बिजलिया ही गिरने लगी थी
“आः ओफफ्फ्फ्फ़ हम्म्म्म ”
मुझे किसी बाद को कोई जल्दी नहीं थी बस वो थी मैं था और हमारी ये मांगी हुई रात थी उसकी चूत का पानी थोडा खारा सा था पर जल्दी ही मुह को लग गया बड़ी ही हसरत से मैं अपनी जीभ को उसकी योनी द्वार पर घुमा रहा था अवंतिका लम्बी लम्बी साँसे ले रही थी कभी बिस्तर की चादर को मुट्ठी में कस्ती तो कभी अपने कुलहो को ऊपर उठाती उसकी बेकरारी बढती पल पल और जब मैंने उसकी भाग्नासे को अपने दांतों में दबा कर चुसना शुरू किया तो अवंतिका बिलकुल होश में नहीं रही उसका बदन ढीला पड़ने लगा आँखे बंद होने लगी मस्ती के सागर में डूबने लगी वो ,
और तभी मैंने उसकी मस्ती में खलल डाल दिया मैं नहीं चाहता था की वो इस तरह से झड़े , मैं उसके ऊपर से हट गया और तभी वो मेरे ऊपर चढ़ गयी और पागलो की तरह मुझे चूमने लगी हमारी सांसे सांसो में घुलने लगी थी उसका थूक मेरे पुरे चेहरे पर फैला हुआ था और फिर वो मेरी टांगो की तरफ आई मेरे सुपाडे की खाल को निचे सरकाया और बड़े प्यार से उस से खेलने लगी उसकी आँखों में गुलाबी डोरे तैर रहे थे और मैं जानता था की आज की रत वो कोई कसर नहीं छोड़ेगी उसके इरादों को भांप लिया था मैंने
उसने अपने सर को मेरे लंड पर झुकाया और हौले हौले से उसकी पप्पिया लेने लगी कुछ देर वो बस ऐसे ही करती रही फिर उसने गप्प से मेरे सुपाडे को अपने मुह में ले लिया और उसको किसी कुल्फी की तरह चूसने लगी मेरे होंठो से बहुत देर से दबी आह बाहर निकली वो बस सुपाडे को ही चूस रही थी जब जब उसकी जीभ रगड खाती मेरे बदन में एक झनझनाहट होती एक आग बढती पर उसे क्या परवाह थी उसे तो बस खेलना था अपने मनपसंद खिलोने से अपनी उंगलियों से वो मेरी गोलियों से खेलते हुए मुझे मुखमैथुन का सुख प्रदान कर रही थी
जब उसका मुह थकने लगा तो उसने लंड को बाहर निकाला और फिर मेरी गोली को मुह में ले लिया उसकी गर्म सांसो ने जैसे जादू सा कर दिया था मेरा लंड झटके पे झटके खाने लगा वो इतना ऐंठ रहा था की मुझे दर्द होने लगा आग इतनी लग चुकी थी की दिल बेक़रार था उस आग में पिघल जाने को हां मैं देव इस आग में अपने जिस्म को अपने वजूद को झुलसा देना चाहता था अवंतिका रुपी इस आग में क़यामत तक जल जाना चाहता था मैं और शायद वो भी मुझमे समा कर पूरा हो जाना चाहती थी
जैसे ही वो लेटी उसने अपने पैरो को फैला कर मुझे जन्नत के रस्ते की और बढ़ने का निमन्त्रण दिया जिसे मैं अस्वीकार करने की अवस्था में बिलकुल नहीं था जैसे ही मेरे लंड ने उसके अंग को छुआ अवंतिका ने एक आह ली और अगले ही पल चूत की मुलायम फांको को फैलाते हुए मेरा लंड उस चूत में जा रहा था जिसकी हसरत थी मुझे कभी पर मुराद आज पूरी हुई थी थोडा थोडा दवाब देते हुए मैं उसकी गर्म चूत म अपने लंड को डालता जा रहा था अवंतिका ने मुझे अपनी बाहों में भरना शुरू किया और फिर मेरा लंड जहा तक जा सकता था पहुच गया
“चीर ही दिया दर्द कर दिया अन्दर तक अड़ गया है “
“तभी तो तुमको वो सुख मिलेगा अवंतिका ”
मैंने अपने लंड को बाहर की तरफ खींचा और फिर झटके से वापिस डाला ऐसे मैंने कई बार किया
“तडपाना कोई तुमसे सीखे अब मैं जानी क्यों औरते तुम्हारी दीवानी थी ”
“मेरा साथ दो, तुम पर भी रंग ना चढ़ जाए तो कहना ”
“मुझ पर तो बहुत पहले रंग लगा था आज तक नहीं उतरा देव मैं तो बहुत पहले तुम्हरी हो गयी थी बस आज पूरी हो जाउंगी इस मिलन के बाद मुझ प्यासी जमीन पर अम्बर बन कर बरस जाओ देव , आज मुझ पर यु बरसो की मैं महकती रहू दमकती रहू पल पल मुझे अगर कुछ याद रहे तो बस तुम और ये रात ”
मैंने धीरे धीरे लंड को आगे पीछे करना शुर किया अवंतिका भी मेरी ताल से ताल मिलाने लगी थी कभी मुझे अपनी बाहों में कस्ती तो कभी अपनी टांगो को मेरी कमर पे लपेटती कभी खुद निचे से धक्के लगाती हम दोनों हर गुजरते लम्हे के साथ पागल हुए जा रहे थे अवन्तिका के नाख़ून मेरी पीठ को रगड रहे थे जल्दी ही मैं उस पर पूरी तरह से छा गया था ठप्प थोप्प इ आवाज ही थी जो उस कमरे में गूँज रही थी
उसकी चूत की बढती चिकनाई में सना मेरा लंड हर झटके के साथ अवंतिका को सुख की और आगे ले जा रहा था उसके गालो पर मेरे दांतों के निशान अपनी छाप छोड़ गए थे , एक मस्ती फैली थी उस कमरे में हम दोनों इस तरह से समाये हुए थे की साँस भी जैसे उलझ गयी थी मरे धक्को की रफ़्तार तेज होती जा रही थी उसकी चूत के छल्ले ने मेरे लंड को कस लिया था बुरी तरह से अवंतिका की टाँगे अब M शेप में थी वो कभी अपने हाथ मेरे सीने पर रखती तो कभी अपने बोबो को संभालती जो की बुरी तरह से हिल रहे थे अवंतिका की चूत से रिश्ता पानी मेरे अन्डकोशो तक को गीला कर चूका था
अवंतिका और मैं दोनों काफी देर से लगे हुए थे जिस्म तो हरकत कर रहा था वो अपनी आँखे बंद किये मुझसे चिपकी पड़ी थी उसके झटके कहते बदन से मैं समझ गया था की बस गिरने वाली है तो मैंने पूरा जोर लाते हुए धक्के लगाने शुरू किये अवंतिका बस जोर जोर से बडबडा रही थी उसने मेरे होंठ अपने होंठो में दबा लिया और अपने बदन को मेरे हवाले कर दिया अवंतिका की चूत में गर्मी बहुत बढ़ गयी थी वो झड़ने लगी थी और उसकी चूत की गर्मी ने मेरे को भी पिघला दिया मैंने अपना पानी उसकी गर्म चूत में उड़ेल दिया और उसके ऊपर ही ढह गया
वो- ऐसे क्या देख रहे हो
मैं- आज से पहले तुम्हे इस नजर से देखा भी तो नहीं
वो- देव,
मै- कोई नहीं है
वो- तभी तो तुम्हे बुलाया है बस तुम हो मैं हु और ये रात है देखो देव ये तुम्हारी मांगी रात है
मैंने उसका हाथ पकड लिया और बोला- अवंतिका
उसने अपनी नजरे झुका ली कसम से नजरो से ही मार डालने का इरादा था उसका तो धीरे से वो मेरे आगोश में आ गयी उसकी छातिया मेरे सीने से जा टकराई मेरे हाथ उसकी कोमल पीठ पर रेंगने लगी ना वो कुछ बोल रही थी ना मैं बस साँसे ही उलझी पड़ी थी साँसों से धड़कने बढ़ सी गयी थी कुछ पसीना सा बह चला था गर्दन के पीछे से जैसे जैसे वो मेरी बाहों में कसती जा रही थी एक रुमानियत सी छाने लगी थी
उसकी गर्म सांसो को अपने चेहरे पर महसूस कर रहा था मैं,फिर वो आहिस्ता से अलग हुई थी की मैंने फिर से उसको खींच लिया अपनी और इस बार मेरे हाथ उसके नितंबो से जा टकराये थे, उसके रुई से गद्देदार कूल्हों को मेरे कठोर हाथो ने कस कर दबाया तो अवंतिका के गले से एक आह निकली उसकी नशीली आँखे जैसे ही मेरी नजरो से मिली मैंने अपने प्यासे होंठ उसके सुर्ख होंठो से जोड़ दिए उफ्फ इस उम्र में भी इतने मीठे होंठ ऐसा लगा की जैसे चाशनी में डूबे हुए हो, इतने मुलायम की मक्खन भी शर्मा जाये ,उसके होंठ जरा सा खुले और मेरी जीभ् को अंदर जाने का रास्ता मिल गया मैं साडी के ऊपर से ही उसके मदमस्त कर देने वाले नितंबो को मसल रहा था अवंतिका की आँखे बंद थी
हमारी जीभ एक दूसरे से टक्कर ले रही थी आपस में रगड़ खा रही थी इसी बीच उसकी साडी का पल्लू आगे से सरक गया काले ब्लाउज़ में कैद वो खरबूजे से मोटे उभार मेरी आँखों के सामने थे मैंने हलके हलके उनको दबाना शुरू किया बस सहला भर ही देने जैसा, किसी गर्म चॉकलेट की तरह अवंतिका पिघल रही थी आहिस्ता आहिस्ता से मैंने उसके जुड़े में लगी पिन को खोला उसके रेशमी लंबे बाल कमर तक फैल गए अब मैंने उसकी साडी का एक छोर पकड़ा और वो गोल गोल घूमने लगी साडी उतरने लगी और कुछ पलों बाद वो बस पेटीकोट और ब्लाउज़ में मेरी आँखों के सामने थी
उफ्फ्फ खूबसुरती की हद अगर थी तो बस अवंतिका वो ख्वाब जो कभी मैंने देखा था आज उस ख्वाब को हकीकत होना था ,एक बार फिर से हमारे होंठ आपस में टकराने लगे थे उसके रूप का नशा होंठो से होते हुए मेरे दिल में उतरने लगा था मैंने उसके पेटीकोट के नाड़े में उंगलिया फंसाई और उसको खोल दिया संगमरमर सी जांघो को चूमते हुए पेटीकोट फिसल कर नीचे जा गिरा उसके गोरे बदन पर वो जालीदार काली कच्छी उफ्फ्फ आग ही लगा दी थी उसने मैंने बिना देर किये अपने कपडे उतारने शुरू किया उसने अपना ब्लाउज़ खुद उतार दिया
जल्दी ही मैं भी बस कच्छे में ही था अपने आप में इठलाती वो बस ब्रा-पेंटी में मुझ पर अपने हुस्न की बिजलिया गिरा रही थी उसकी नजर मेरे कच्छे में बने उभार पर पड़ी तो वो बोली- ऊपर बेडरूम में चलते है
मैंने उसे अपनी गोद में उठाया और सीढिया चढ़ने लगा अवंतिका ने अपनी गोरी बाहे मेरे गले में डाल दी ऊपर आये उने मुझे बताया किस तरफ और फिर हम उसके बेडरूम में थे , जैसे ही अन्दर गए उफ़ क्या जबरदस्त नजारा था कमरे में चारो तरफ मोमबत्तियो की रौशनी फैली थी पुरे कमरे में गुलाब की पंखुड़िया फैली हुई थी अवंतिका मेरी गोद से उतरी पर मैंने फिर से उसको अपने से चिपका लिया मेरा लंड उसकी गांड की दरार में घुसने को बेताब था मैं ब्रा के ऊपर से ही उसकी चूचियो से खेलने लगा वो अपने कुलहो को धीरे धीरे हिलाने लगी
धीरे से मैंने उसकी ब्रा को खोल दिया और उसकी पीठ को चूमने लगा जगह जगह से काटने लगा अवंतिका के अन्दर आग भड़कने लगी उसने मेरे कच्छे में हाथ डाल दिया और मेरे औज़ार को सहलाने लगी , मचलने लगी मेरी बाहों में उसने खुद ही अपने अंतिम वस्त्र को भी त्याग दिया मेरा लंड उसने अपनी जांघो के बीच दबा दिया और बस अपने बोबो को दबवाती रही जब तक की उसकी गोरी छातिया लाल ना होगई उसके काले निप्पल बाहर को निकल आये
“ओह!देव, बस भी करो ना ”
“अभी तो शुरू भी नहीं हुआ और तुम बस बस करने लगी हो ”
मैंने अवंतिका को बिस्तर पर पटक दिया और उसकी नाभि पर जीभ फेरने लगा उसको गुदगुदी सी होने लगी थी धीरे धीरे मैं उसकी जांघो के अंदरूनी हिस्से को चाटते हुए उसकी योनी की तरफ बढ़ रहा था उफ्फ्फ बिना बालो की किसी ब्रेड की तरह फूली हुई हलकी गुलाबी रंगत लिए हुए कसम से जी किया की झट से इसके अंदर घुस जाऊ
वो भी जान गयी थी की मैं क्या चाहता हु उसने अपने पैरो को फैला लिया और अपने कुल्हे थोडा सा ऊपर को उठाये अवंतिका की गुलाबी योनी मुझे चूमने का निमंत्रण दे रही थी तो भला मैं कैसे पीछे रहने वाला था मैंने अपनी गीली, लिजलिजी जीभ से उसके भाग्नासे को छुआ और अवंतिका के बदन में जैसे बिजलिया ही गिरने लगी थी
“आः ओफफ्फ्फ्फ़ हम्म्म्म ”
मुझे किसी बाद को कोई जल्दी नहीं थी बस वो थी मैं था और हमारी ये मांगी हुई रात थी उसकी चूत का पानी थोडा खारा सा था पर जल्दी ही मुह को लग गया बड़ी ही हसरत से मैं अपनी जीभ को उसकी योनी द्वार पर घुमा रहा था अवंतिका लम्बी लम्बी साँसे ले रही थी कभी बिस्तर की चादर को मुट्ठी में कस्ती तो कभी अपने कुलहो को ऊपर उठाती उसकी बेकरारी बढती पल पल और जब मैंने उसकी भाग्नासे को अपने दांतों में दबा कर चुसना शुरू किया तो अवंतिका बिलकुल होश में नहीं रही उसका बदन ढीला पड़ने लगा आँखे बंद होने लगी मस्ती के सागर में डूबने लगी वो ,
और तभी मैंने उसकी मस्ती में खलल डाल दिया मैं नहीं चाहता था की वो इस तरह से झड़े , मैं उसके ऊपर से हट गया और तभी वो मेरे ऊपर चढ़ गयी और पागलो की तरह मुझे चूमने लगी हमारी सांसे सांसो में घुलने लगी थी उसका थूक मेरे पुरे चेहरे पर फैला हुआ था और फिर वो मेरी टांगो की तरफ आई मेरे सुपाडे की खाल को निचे सरकाया और बड़े प्यार से उस से खेलने लगी उसकी आँखों में गुलाबी डोरे तैर रहे थे और मैं जानता था की आज की रत वो कोई कसर नहीं छोड़ेगी उसके इरादों को भांप लिया था मैंने
उसने अपने सर को मेरे लंड पर झुकाया और हौले हौले से उसकी पप्पिया लेने लगी कुछ देर वो बस ऐसे ही करती रही फिर उसने गप्प से मेरे सुपाडे को अपने मुह में ले लिया और उसको किसी कुल्फी की तरह चूसने लगी मेरे होंठो से बहुत देर से दबी आह बाहर निकली वो बस सुपाडे को ही चूस रही थी जब जब उसकी जीभ रगड खाती मेरे बदन में एक झनझनाहट होती एक आग बढती पर उसे क्या परवाह थी उसे तो बस खेलना था अपने मनपसंद खिलोने से अपनी उंगलियों से वो मेरी गोलियों से खेलते हुए मुझे मुखमैथुन का सुख प्रदान कर रही थी
जब उसका मुह थकने लगा तो उसने लंड को बाहर निकाला और फिर मेरी गोली को मुह में ले लिया उसकी गर्म सांसो ने जैसे जादू सा कर दिया था मेरा लंड झटके पे झटके खाने लगा वो इतना ऐंठ रहा था की मुझे दर्द होने लगा आग इतनी लग चुकी थी की दिल बेक़रार था उस आग में पिघल जाने को हां मैं देव इस आग में अपने जिस्म को अपने वजूद को झुलसा देना चाहता था अवंतिका रुपी इस आग में क़यामत तक जल जाना चाहता था मैं और शायद वो भी मुझमे समा कर पूरा हो जाना चाहती थी
जैसे ही वो लेटी उसने अपने पैरो को फैला कर मुझे जन्नत के रस्ते की और बढ़ने का निमन्त्रण दिया जिसे मैं अस्वीकार करने की अवस्था में बिलकुल नहीं था जैसे ही मेरे लंड ने उसके अंग को छुआ अवंतिका ने एक आह ली और अगले ही पल चूत की मुलायम फांको को फैलाते हुए मेरा लंड उस चूत में जा रहा था जिसकी हसरत थी मुझे कभी पर मुराद आज पूरी हुई थी थोडा थोडा दवाब देते हुए मैं उसकी गर्म चूत म अपने लंड को डालता जा रहा था अवंतिका ने मुझे अपनी बाहों में भरना शुरू किया और फिर मेरा लंड जहा तक जा सकता था पहुच गया
“चीर ही दिया दर्द कर दिया अन्दर तक अड़ गया है “
“तभी तो तुमको वो सुख मिलेगा अवंतिका ”
मैंने अपने लंड को बाहर की तरफ खींचा और फिर झटके से वापिस डाला ऐसे मैंने कई बार किया
“तडपाना कोई तुमसे सीखे अब मैं जानी क्यों औरते तुम्हारी दीवानी थी ”
“मेरा साथ दो, तुम पर भी रंग ना चढ़ जाए तो कहना ”
“मुझ पर तो बहुत पहले रंग लगा था आज तक नहीं उतरा देव मैं तो बहुत पहले तुम्हरी हो गयी थी बस आज पूरी हो जाउंगी इस मिलन के बाद मुझ प्यासी जमीन पर अम्बर बन कर बरस जाओ देव , आज मुझ पर यु बरसो की मैं महकती रहू दमकती रहू पल पल मुझे अगर कुछ याद रहे तो बस तुम और ये रात ”
मैंने धीरे धीरे लंड को आगे पीछे करना शुर किया अवंतिका भी मेरी ताल से ताल मिलाने लगी थी कभी मुझे अपनी बाहों में कस्ती तो कभी अपनी टांगो को मेरी कमर पे लपेटती कभी खुद निचे से धक्के लगाती हम दोनों हर गुजरते लम्हे के साथ पागल हुए जा रहे थे अवन्तिका के नाख़ून मेरी पीठ को रगड रहे थे जल्दी ही मैं उस पर पूरी तरह से छा गया था ठप्प थोप्प इ आवाज ही थी जो उस कमरे में गूँज रही थी
उसकी चूत की बढती चिकनाई में सना मेरा लंड हर झटके के साथ अवंतिका को सुख की और आगे ले जा रहा था उसके गालो पर मेरे दांतों के निशान अपनी छाप छोड़ गए थे , एक मस्ती फैली थी उस कमरे में हम दोनों इस तरह से समाये हुए थे की साँस भी जैसे उलझ गयी थी मरे धक्को की रफ़्तार तेज होती जा रही थी उसकी चूत के छल्ले ने मेरे लंड को कस लिया था बुरी तरह से अवंतिका की टाँगे अब M शेप में थी वो कभी अपने हाथ मेरे सीने पर रखती तो कभी अपने बोबो को संभालती जो की बुरी तरह से हिल रहे थे अवंतिका की चूत से रिश्ता पानी मेरे अन्डकोशो तक को गीला कर चूका था
अवंतिका और मैं दोनों काफी देर से लगे हुए थे जिस्म तो हरकत कर रहा था वो अपनी आँखे बंद किये मुझसे चिपकी पड़ी थी उसके झटके कहते बदन से मैं समझ गया था की बस गिरने वाली है तो मैंने पूरा जोर लाते हुए धक्के लगाने शुरू किये अवंतिका बस जोर जोर से बडबडा रही थी उसने मेरे होंठ अपने होंठो में दबा लिया और अपने बदन को मेरे हवाले कर दिया अवंतिका की चूत में गर्मी बहुत बढ़ गयी थी वो झड़ने लगी थी और उसकी चूत की गर्मी ने मेरे को भी पिघला दिया मैंने अपना पानी उसकी गर्म चूत में उड़ेल दिया और उसके ऊपर ही ढह गया