Raj sharma stories चूतो का मेला - Page 21 - SexBaba
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Raj sharma stories चूतो का मेला

pid=\ said:
कमाल की स्टोरी है , जबरदस्त चरित्र आर्क और  हालात के उतार चढ़ाव 
शुक्रिया मेरे भाई शेयर करने वास्ते 
sexstories said:
किस्मत से मैं तुम्हारे मामा से टकरा गयी थी अपने इसी जिस्म का इस्तेमाल किया मैंने उसको पैसो का लालच दिया वो भी तुमसे परेशान था क्योंकि तुमने अपनी हवस में उसकी बीवी को भी लपेट लिया था मैंने उसे एक झूठी रकम का लालच दिया पर ऐन वक़्त पर उसकी अंतरात्मा जाग गयी फिर मैंने जानकारी इकठ्ठा की पहले हमले में तुम बच गए थे तो मैं एक योजना बनवाई तुम्हरी मामी को ब्लैकमेल करके उसके हाथो से ही तुमको मरवाया 


तुम गायब हो गए मैं बस अपने आखिरी दुश्मन को मारना चाहती थी पर देखो देव आठ साल लग गए हर टाइम उस कुत्ते के साथ सिक्यूरिटी होती मैंने बहुत प्रयास किये पर उसके आगे मेरी औकात भी छोटी पड़ जाती थी इस बीच तुम्हारा भाई आ गया बड़ा परेशान था वो पर वो भी तुम्हारी तरह जुगाडी था पर उसमे तुम्हारी तरफ हर किसी पे विश्वास करने वाली दिक्कत नहीं थी तुमहरा बाप डायरी लिखता था जिसमे उसने एक तरह से अपनी जिनदगी ही उतार ली थी कंवर को सब समझ आ गया था तो क्या करती उसको भी रस्ते से हटाया वो भी तुम्हारी तरह अपने परिवार को बहुत चाहता था उसे उस डायरी को पढ़ कर तुम्हारे पिता और मेरेसंबंध के बारे में सब पता चल गया थोड़ी मुस्किल हुई पर उस पर भी काबू पा ही लिया मैंने 


दुनिया को कभी पता नहीं चला की कहाँ गायब हो गया सब जानते है की वो परदेस वापिस चला गया 


मैं- - ताई, उसकी लाश को ढूंढ लिया था मैंने ,आह 


दर्द बहुत हो रहा था ऐसा लगता था की जैसे किसी ने काफी सारा बोझ रख दिया था मैंने अपनी शर्ट की कतरनों से खून रोकने की नाकाम कोशिश की थोड़ी ही दूरी पर मंजू पड़ी थी जिन्दा थी या मर गयी कुछ पता नहीं मेरी आँखे बस बंद हो जाना चाहती थी 


मैंने एक नजर उस औरत पर देखा जिसे अपने जिंदगी का एक अहम् हिस्सा माना था जो मेरी कुछ लगती थी गीता ताई जिस पर टूट के मुझे भरोसा था 


मैं- ताई, भरोसा तोड़ दिया तूने तो ..........

वो- बस यही तेरे मुह से सुनना चाहती थी मैं , मैं चाहती थी की तू इस दर्द से गुजरे तू समझे की कैसा लगता है कब कोई अपना भरोसा तोड़ता है जिस्म का घाव भर जाता है देव पर ये जो ज़ख्म आत्मा पे लगे है इनका क्या अब तू जानेगा की औरत बस खिलौना नहीं है की जब जी आया खेला और ठुकरा दिया

गीता – औरत जब किसी को अपना दिल देती है तो बस जिस्म की प्यास ही सबकुछ नहीं होती मैंने टूट के भरोसा किया था तेरे बाप पर पर वो भी बस निकला तो एक फरेबी , और वो रतिया हर दिन तड़पती थी मैं जब भी उसको देखती थी आठ साल इंतजार किया और फिर मुझ को वो मौका मिला उस दिन वो खेत में अकेला था शराब के नशे में चूर मुझे और क्या चाहिए था तडपा तडपा कर मारा मैंने उसको उस दिन मेरी रूह को सुकून मिला


ये दिल भी अजीब होता है देव बेसह्क मुझे तुझसे नफरत थी पर जो तूने मेरे लिए किया कही मेरे दिल के किसी कोने में तेरे लिए जज्बात भी थे आज भी मैं टूट रही हु अन्दर ही अन्दर घायल है मेरा मन जो वार मैंने तुझ पर किये है वो मुझे लहुलुहान कर गए है पर मैं क्या करू तू तेरे पिता का ही अंश है तेरी रगों में भी उसी का खून दौड़ रहा है इस गंदे खून का बह जाना ही ठीक है देव बह जाना ही ठीक है देव , तूने भी तो औरत को बस एक भोग की चीज़ ही समझा था देव 


मैंने उठने की कोशिश की तभी ताई न वो बाल्टी मेरे डर पर दे मारी मैं चीख कर गिरा निचे 


“ना देव ना, ”क्या करोगे उठ कर मैं चाहती हु तुम महसूस करो इस दर्द को जैसे मैंने महसूस किया बस फर्क इतना है की मैं इस दर्द के साथ जियी हु तुम कुछ देर में शांत हो जाओगे फ़ना हो जाओगे 


ताई का ध्यान मंजू पर गया और मैंने चुपके से अपना फ़ोन पिस्ता को मिलाया तभी ताई मेरी तरफ मुड़ी मैंने फ़ोन छुपा लिया मैं बस इतना चाहता था की वो सुन ले यहाँ जो भी हो रहा था क्योंकि वो ही उम्मीद थी मैंने ताई को बातो में उलझाना चाहां 


मैं- ताई तुझे क्या पता था की इस वक़्त मैं यहाँ कुवे पर हु 


वो- बहुत भोला है तू, मेरे घर के आगे से ही तो आये थे तुम किस्मत से मैं जाग रही थी बस मौका मिल गया और मैं आ गयी दबे पाँव और तुम्हारी किस्मत ख़राब थी देव जो इस समय तुम यहाँ हो पल पल मर रहे हो हो तुम पल पल 
मैं- बहुत गलत किया तुमने ताई 


मेरी बात बस अधूरी रह गयी उसका चाकू मेरी पसली को चीर गया था मैं भी जान गया था की अब मैं बचूंगा नहीं पर ऐसे नहीं मर सकता था देव ऐसे नहीं मरना चाहता था मेरी नजर मंजू के पास गयी ताई उस तक पहुच चुकी थी ताई का चाकू मंजू की गर्दन पर था वो चाकू को बेहोश मंजू पर ऐसे घुमा रही थी जैसे की कोई कसी किसी बकरे पर घुमाता है 


“नहीं ताई ” नहीं तू मेरी जान ले ले मंजू को जाने दे इसका कोई लेना देना नहीं है इस से जाने दे मैं तेरे पाँव पड़ता हु मंजू को कुछ मत करना जाने दे उसको 


वो- तेरी तरह इसकी रगों में भी गन्दाखून दौड़ रहा है ये भी एक गंदगी है आज इसको भी तू लेजा ऊपर अपने साथ वहा दोनों हवस का खेल खेलना 


एक पल के लिए ताई की और मेरी आँखे मिली और अगले ही पल उसने मंजू का गला रेत दिया मैंने चीखा पर उस चीख में भी इतना दम नहीं था वो बेचारी तो चीख भी नहीं सकी थी उस से पहले ही उसकी आधी गर्दन कट गयी थी मंजू मैंने पुकारा पर इस पुकार को सुनने वाला कोई नहीं था कोई नहीं 


ताई हौले हौले मेरी तरफ बढ़ी फिर बोली- तू ये सोच रहा होगा की एक गरीब गीता ताई ने ये सब कैसे कर दिया मैं जानती हु बस यही तेरा अंतिम सवाल है तो सुन 


एक गरीब मजलूम औरत की हसियत कैसे हुई , तेरा बाप वो पता नहीं किस मिटटी का बना था जिसे अपना समझ लेता उसका हो जाया करता था बिलकुल तेरी ही तरह , तेरे ताऊ को उसने एक बड़ी रकम और कुछ सोने के गहने दिए थे अब ये बात मुझसे कैसे छिपि रहती उस इंसान ने मुझे रतिया से बचाने की जरा भी कोशिश नहीं की अरे मेरा तो उस से प्रेम का नाता था पर उसने ये पैसे और गहने देकर एक तमाचा मारा था मेरे प्रेम को मैंने उसी के दिए धन से तुम्हारे खिलाफ साजिश की 


बस बहुत हुआ देव बहुत हुआ सवाल जवाब में रात निकल जानी है अब तेरे जाने का वक़्त हुआ ताई ने पास में पड़ी बाल्टी ली उअर मेरे सर पर मारन लगी धाड़ धड मरिया आँखों के आगे अँधेरा छा गया खून आंसुओ में मिलने लगा सर पट गया पर उसके हाथ नहीं रुके मेरे होश खोने लगे आँखे बंद होने लगी जो रवानी मेरी धडकनों में थी वो मंद पड़ने लगी 


ताई- तुझे मारके मेरा बदला तो पूरा हो जायेगा पर जी मैं भी नहीं पाऊँगी दिल के किसी कोने में पता नहीं कब तूने कब्ज़ा कर लिया था मैंने बहुत कोशिश की पर देख मैंने हर गयी अपनी नफरत के आगे मैं हार गयी तेरे बिना मैं भी किस काम की और किस काम की ये जिनदगी 


अपनी आधी बेहोश आँखों से मैंने देखा की की ताई ने कोई पुडिया सी निगल ली थी और जल्दी ही वो छात्पटाने लगी मुह से झाग निकलने लगा और फिर वो मेरे पास ही गिर गयी जिस्म अकड़ गया कुछ देर तडपी फिर वो शांत पड़ गयी इधर मेरी सांसो की डोर भी बस टूट ही रही थी की मेर कानो में एक आवाज सी आई देव 

.......देव 


मैंने अपनी आँखे खोलने की कोशिश की पर सिवाय अँधेरे के मुझे कुछ नहीं दिखा बोने की कोशिस की पर कोई लफ्ज़ ना निकला सांस तेज तेज चल रही थी मुह से खून निकल रहा था और फिर ऐसे लगा की किसी में मुझे अपनी गोद में लिया हो ऐसे लग रहा था की बस सब शांत होने वाला है सब जैसे रुक सा गया हो अपनी पूरी ताकत लगा कर मैंने आँखे खोली कुछ घुन्ध्ला से साये मुझे अपनी तरफ दिखे और फिर मेरे कानो में एक धीमी सी आवाज आई – पापा , पापा 


ये बस एक आवाज नहीं थी मेरे खून की पुकार थी जो तदप उठा था मेरे लिए ऐसा ही कुछ मैंने पहले भी देखा था जब हॉस्पिटल में मैं और मेरे पिताजी थी कुछ आंसू मेरी आँखों से निकल जिन्हें कोई भी नहीं देख पाया अपनी टूटती सांसो से मैंने धीमे से अपने बेटे को पुकारा और तभी किसी ने मुझे अपनी बाहों में भींच लिया 
“आर्यन मेरे बेटे ”बस होंठो ने इतना ही फुसफुसाया और फिर डोर टूट गयी दिलवाला जी गया था अपनी जिंदगी धड़कन बंद हो गयी रह गयी तो बस कुछ यादे जिनके सहारे बाकि लोगो को अब जीना था शायद यही अंत था या फिर एक नयी शुरू आत थी एक नए आने वाले कल की





समाप्त

जिस तारतम्यता से कहानी लिखी गयी है उसकी जितनी सराहना की जाए कम है, लेखक अंत तक पाठक को बांधे रखने में कामयाब रहे हैं वास्तव में तक ऐसी कहानी नही पढ़ी जो पूरा उपन्यास है। किंतु अंत कहानी की गति से मेल नही खा रहा, शुरू में इंदु की कहानी अधूरी रह गयी पर अंत तक तो नीनू की कहानी भी शुरू नही हो पाई जो इस कहानी की शुरुआत से एक पूर्णता की मंज़िल होती। लेखक शायद कहानी से स्वयं बोर हो गए जो अंत में रचनात्मकता के अभाव में समाप्त करने की जल्दबाज़ी हावी हो गयी। बेहतर होगा यदि पाठकों की माँग पर अंत में परिवर्तन किया जाए। कहानी के मुख्य पात्र का यूँ सबकुछ झेलते झेलते अधूरेपन के साथ विदा हो जाना कम से कम कहानी में तो नही होना चाहिए।
 
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