hotaks444
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मुझे एक तलब सी लगने लगी की काश मेरे पंख होते तो झट से उड़ कर उसके पास पहूँच जाऊ , वो कुछ बोले उस से पहले ही भर लू उसको अपने आगोश में किसी बादल की तरह टूट कर बरस जाऊ उस पर, सीने में दर्द सा होने लगा था रात के ढाई बज रहे थे सब लोग दुबके थे बिस्तर में, खोये थे अपने अपने सपनो में और एक हम परेशान बिना किसी बात के ये दिलो के मसले भी बड़े अजीब होते है समझ कुछ नहीं आता बस एक दर्द से जूझना पड़ता है कुछ मिलता नहीं इसमें पर फिर भी करना पड़ता है
सुबह होने को आई मुझे करार नहीं आया चार बजे चाची उठी उन्होंने मुझे देखा और बोली- नींद नहीं आई
मैं- पता नहीं कुछ परेशानी सी है
वो- होता है बेटा होता है
मैं- क्या होता है
वो- खुद ही समझ जाओगे
मैं- पहेलियाँ न बुझाओ आप
वो- थोड़ी देर में नीचे आ जाना चाय पीने
मैं- ठीक है
नीचे गया तो मम्मी भी जाग चुकी थी वो बोली- आज तो जल्दी जाग गया
मैं- जी
वो- रोज ही जल्दी जगा कर स्वास्थ्य पर ध्यान दिया कर
मैं मन ही मन सोच रहा था की घर वाले भी अजीब है , घर की क्या अहमियत क्या होती है ये बहुत बाद में जाकर पता चला चाय की चुस्किया लेते हुए मैं अपनी और नीनू की ही तस्वीर को देख रहा था उसकी वो प्यारी सी मुस्कान मुझे बहुत अच्छी लगती थी ,ये बड़ा ही अजीब सा रिश्ता था उसका और मेरा की लिखने का जो सोचु तो शब्द कम पड़ जाये पर बतया ना जाये की वो मेरी क्या लगती थी , दिन निकल आया था नाश्ता पानी करके मैं जो मोहल्ले की दूकान पर आया तो पता चला की लड़के लोग आज नहर में नहाने जा रहे थे , अपना भी मन था पर आज पिताजी की भी छुट्टी थी तो रिस्क नहीं ले सकता था पर मेरा बागी मन नहीं माना तो मैं भी हो लिया उनके साथ
वो नादान उम्र, वो अल्हडपन न कोई चिंता ना फ़िक्र, रगड़ रगड़ कर मजा लिया नहर में नहाने का, समय का कुछ भान नहीं रहा जब घर आये तो दिल घबरा रहा था बाल मेरे बिखरे से थे चेहरे पर खुश्की थी पिताजी आँगन में ही बैठे थे पुछा उन्होंने- कहा गए थे
मैं- जी यही था
वो- यहाँ तो हम थे
मैं- खेलने गया था
वो- शकल से तो कुछ और लग रहा है ,नहर में नहा के आये हो ना कितनी बार मना किया है मानते क्यों नहीं तुम
मैं- जी नहाने नहीं गया था
वो – झूट मत बोलो
मैंने फिर से मन किया और कान पे एक रेह्प्ता आ टिका, आँखों के आगे सितारे नाच गए , रंगाई शुरू हो गए तीन चार थप्पड़ टिकते गए एक के बाद एक पिताजी को गुस्सा इस बात का था की झूठ क्यों बोलता हूँ मैं , किसे ने नहीं छुटाया , मार पड़ती रही जब देखो मारते ही रहते थे घरवाले समझ क्या रखा मुझे पर चुप रहना ही बेहतर समझा कुछ बोलता तो और मार पड़ती गाल लाल हो गया था मैं अपने कमरे में आके बैठ गया , मन कर रहा था की भाग जाऊ यहाँ से कही दूर पर अपना यही फ़साना था यही दास्ताँ थी रोज़ का था तो कुछ कर नहीं सकती थे
जब कुछ मूड ठीक हुआ तो मैं घर सी बाहर निकला और मोहल्ले के तरफ चल पड़ा तो रस्ते में ही मंजू मिल गयी आँखे चार हुई उसने धीरे से एक कागज़ निकाला और गिरा कर चली गयी हमारी चाल हम पर ही बड़े चाव से मैंने उसे उठाया और जेब में रख लिया
अब लेटर था उसका हाथ में कुछ तो लिखा ही होगा खुद को किसी नवाब से कम न समझते हुए मैं घर आया भागकर और कागज को खोल कर देखा तो मेरा तो माथा ही घूम गया पूरा कागज़ कोरा था बस कोना मुड़ा हुआ था , ये कैसा मजाक था या फिर उसका कोई इशारा था मुझे कुछ समझ ना आये ये कैसी मुश्किल थी कैसा फ़साना था कुछ तो था ही वर्ना ऐसे ही कोना मोड़ कर वो कागज न देती पर ये क्या इशारा था , कभी कभी तो मैं सोचता था की ज़माने के हिसाब से मैं मंदबुद्धि तो न रह गया
हमे तो उम्मीद थी मंजू दो बात कहेगी चाहे कडवी ही सही पर उसने तो उलझा ही डाला था , रात हो गयी खूब दिमाग लगाया पर कुछ समझ आये ही ना , मोका देख कर मैंने पिस्ता को फ़ोन किया तीन बार मिलाया पर हर बार उसकी माँ ही हेल्लो हेल्लो करती रही तो वो आस भी गयी , समस्या बहुत गंभीर कोई उपाय न मिले एक और रात मेरी अब ऐसे ही कटने वाली थी , एक बार मैं छत की मुंडेर पर बैठा चाँद को ताक रहा था चांदनी एक बार फिर से मेरी बेबसी पर हंस रही थी सवाल तो बहुत थे पर जवाब कोई न मिले
पता नहीं कितनी रात बीत गयी चाची के कमरे का दरवाजा खुला , उठी होंगी पानी- पेशाब के लिए मुझे फिर से उसी हाला में देख कर वो मेरे पास आई और बोली- आज भी नींद नहीं आ रही क्या , कोई परेशानी है क्या शाम को भी कुछ उलझे उलझे से लग रहे थे
मैं- जी कुछ नहीं बस ऐसे ही थोड़ी सी बेचैनी है
वो- आज कल तुम कुछ ज्यादा ही बेचैन नहीं हो रहे हो
मैं- बस जा ही रहा हूँ सोने को
वो मेरे बालो में हाथ फिराते हुए बोली- चलो बताओ क्या परेशानी है
मैं- पहले आप वादा करोगी की किसी को बताओगी नहीं
वो- चल ठीक है वादा
मैंने वो कोरा कागज़ उनकी आँखों के सामने कर दिया
चाची ने उसको देखा कुछ देर और फिर उनको हँसी आ गयी , मुझे हुई उलझन
वो- किसने दिया है तुम्हे ये
मैं- वो नहीं बता सकता
चाची- तो ठीक है मैं भी तुम्हारी उलझन नहीं सुल्झाउंगी
मैं- चाची, मेरा विश्वास करो, मैं अभी नहीं बता सकता पर वादा करता हूँ सही समय पर कुछ छुपाऊ भी नहीं गा
वो- बेटा, सो जाओ जाकर रात बहुत आ गयी है , जवान लडको का बिना बात के रातो को यु जागना ठीक नहीं रहता
मैं- मुझे नींद नहीं आती
वो- उस कागज़ को मुझे थमाती हुई- बेटा ये तुम्हारी परीक्षा है देखो तुम पास होते हो या फ़ैल
चाची पानी पीकर गयी सो हम रह गए चुतिया की तरह , खैर, सुबह हुई दो रातो की नींद से आँखे होवे बोझिल पर मन बावरा कहा माने किसी को उलझा था उस डोर से जो मंजू ने जोड़ दी थी बिना बात के साली दो शब्द ही लिख देती पर जैसा की चाची ने कहा था , कुछ तो था ही उस कोरे कागज़ में ही पिताजी और चाचा अपने अपने काम पर चले गए थे मम्मी गयी थी मंदिर, मैं चाची के पास रसोई में गया
वो- हां भई, बताओ कैसे दर्शन दिए रसोई में
मैंने फिर से वो कागज़ उनको दे दिया
वो- बेटा, मैंने कहा न जब तक तुम न बताओगे की किसने दिया मैं तुम्हारी मदद नहीं करुगी
अजीब उलझन में उलझा दिया रे मंजू तूने , अब कौन मेरी परेशानी दूर करे मैंने फ्रिज से पानी की बोतल निकाली और बैठक में आके बैठ गया और गहरी सोच में डूब गया , चाची भी थोड़ी देर बाद आ गयी और मेरी और देख कर मुस्कुराने लगी, ले लो मेरी बेबसी का मजा
चाची- वैसे कब तक देना है जवाब तुमको
मैं- किस चीज़ का
वो- मुझे बना रहे हो
मैं- चाची, मेरी टांग मत खीचो मैं बहुत परेशां हूँ
वो- बेटा, तुम्हारी हरकतों से एक दिन कुनबे को परेशानी होने वाली है हमे लगता तो था की तुम जवान हो गए हो पर इतने हो गए हो ये सोचा नहीं था
मैं कुछ नहीं बोला और उठने लगा तो उन्होंने मुझे बिठा दिया और बोली-पढाई कैसी चल रही है इस बार पास तो हो जाओगे ना
मैं- जी बिलकुल हो जाऊंगा कोई दिकत नहीं है
वो- बेटा तुम्हारी हरकतों से कभी कभी शक होता है वैसे कहो तो तुम्हारी मम्मी को बता दू वो दे देंगी तुम्हे जवाब
मैं- कल ही तो पिताजी ने ने खाल उतारी थी , आपको ठीक नहीं लग रहा तो कर दो शिकायत और मार खा लूँगा मेरा कौन सा कुछ घिस जाना है वैसे भी आजतक मार ही तो खाई है मैंने
चाची- सब तुम्हारी भलाई के लिए ही है
मैं- हां जी सब समझता हूँ मैं
वो- समझते हो तो जवाब दो पत्र का
मैं- पहले सवाल तो पता चल जाये
सुबह होने को आई मुझे करार नहीं आया चार बजे चाची उठी उन्होंने मुझे देखा और बोली- नींद नहीं आई
मैं- पता नहीं कुछ परेशानी सी है
वो- होता है बेटा होता है
मैं- क्या होता है
वो- खुद ही समझ जाओगे
मैं- पहेलियाँ न बुझाओ आप
वो- थोड़ी देर में नीचे आ जाना चाय पीने
मैं- ठीक है
नीचे गया तो मम्मी भी जाग चुकी थी वो बोली- आज तो जल्दी जाग गया
मैं- जी
वो- रोज ही जल्दी जगा कर स्वास्थ्य पर ध्यान दिया कर
मैं मन ही मन सोच रहा था की घर वाले भी अजीब है , घर की क्या अहमियत क्या होती है ये बहुत बाद में जाकर पता चला चाय की चुस्किया लेते हुए मैं अपनी और नीनू की ही तस्वीर को देख रहा था उसकी वो प्यारी सी मुस्कान मुझे बहुत अच्छी लगती थी ,ये बड़ा ही अजीब सा रिश्ता था उसका और मेरा की लिखने का जो सोचु तो शब्द कम पड़ जाये पर बतया ना जाये की वो मेरी क्या लगती थी , दिन निकल आया था नाश्ता पानी करके मैं जो मोहल्ले की दूकान पर आया तो पता चला की लड़के लोग आज नहर में नहाने जा रहे थे , अपना भी मन था पर आज पिताजी की भी छुट्टी थी तो रिस्क नहीं ले सकता था पर मेरा बागी मन नहीं माना तो मैं भी हो लिया उनके साथ
वो नादान उम्र, वो अल्हडपन न कोई चिंता ना फ़िक्र, रगड़ रगड़ कर मजा लिया नहर में नहाने का, समय का कुछ भान नहीं रहा जब घर आये तो दिल घबरा रहा था बाल मेरे बिखरे से थे चेहरे पर खुश्की थी पिताजी आँगन में ही बैठे थे पुछा उन्होंने- कहा गए थे
मैं- जी यही था
वो- यहाँ तो हम थे
मैं- खेलने गया था
वो- शकल से तो कुछ और लग रहा है ,नहर में नहा के आये हो ना कितनी बार मना किया है मानते क्यों नहीं तुम
मैं- जी नहाने नहीं गया था
वो – झूट मत बोलो
मैंने फिर से मन किया और कान पे एक रेह्प्ता आ टिका, आँखों के आगे सितारे नाच गए , रंगाई शुरू हो गए तीन चार थप्पड़ टिकते गए एक के बाद एक पिताजी को गुस्सा इस बात का था की झूठ क्यों बोलता हूँ मैं , किसे ने नहीं छुटाया , मार पड़ती रही जब देखो मारते ही रहते थे घरवाले समझ क्या रखा मुझे पर चुप रहना ही बेहतर समझा कुछ बोलता तो और मार पड़ती गाल लाल हो गया था मैं अपने कमरे में आके बैठ गया , मन कर रहा था की भाग जाऊ यहाँ से कही दूर पर अपना यही फ़साना था यही दास्ताँ थी रोज़ का था तो कुछ कर नहीं सकती थे
जब कुछ मूड ठीक हुआ तो मैं घर सी बाहर निकला और मोहल्ले के तरफ चल पड़ा तो रस्ते में ही मंजू मिल गयी आँखे चार हुई उसने धीरे से एक कागज़ निकाला और गिरा कर चली गयी हमारी चाल हम पर ही बड़े चाव से मैंने उसे उठाया और जेब में रख लिया
अब लेटर था उसका हाथ में कुछ तो लिखा ही होगा खुद को किसी नवाब से कम न समझते हुए मैं घर आया भागकर और कागज को खोल कर देखा तो मेरा तो माथा ही घूम गया पूरा कागज़ कोरा था बस कोना मुड़ा हुआ था , ये कैसा मजाक था या फिर उसका कोई इशारा था मुझे कुछ समझ ना आये ये कैसी मुश्किल थी कैसा फ़साना था कुछ तो था ही वर्ना ऐसे ही कोना मोड़ कर वो कागज न देती पर ये क्या इशारा था , कभी कभी तो मैं सोचता था की ज़माने के हिसाब से मैं मंदबुद्धि तो न रह गया
हमे तो उम्मीद थी मंजू दो बात कहेगी चाहे कडवी ही सही पर उसने तो उलझा ही डाला था , रात हो गयी खूब दिमाग लगाया पर कुछ समझ आये ही ना , मोका देख कर मैंने पिस्ता को फ़ोन किया तीन बार मिलाया पर हर बार उसकी माँ ही हेल्लो हेल्लो करती रही तो वो आस भी गयी , समस्या बहुत गंभीर कोई उपाय न मिले एक और रात मेरी अब ऐसे ही कटने वाली थी , एक बार मैं छत की मुंडेर पर बैठा चाँद को ताक रहा था चांदनी एक बार फिर से मेरी बेबसी पर हंस रही थी सवाल तो बहुत थे पर जवाब कोई न मिले
पता नहीं कितनी रात बीत गयी चाची के कमरे का दरवाजा खुला , उठी होंगी पानी- पेशाब के लिए मुझे फिर से उसी हाला में देख कर वो मेरे पास आई और बोली- आज भी नींद नहीं आ रही क्या , कोई परेशानी है क्या शाम को भी कुछ उलझे उलझे से लग रहे थे
मैं- जी कुछ नहीं बस ऐसे ही थोड़ी सी बेचैनी है
वो- आज कल तुम कुछ ज्यादा ही बेचैन नहीं हो रहे हो
मैं- बस जा ही रहा हूँ सोने को
वो मेरे बालो में हाथ फिराते हुए बोली- चलो बताओ क्या परेशानी है
मैं- पहले आप वादा करोगी की किसी को बताओगी नहीं
वो- चल ठीक है वादा
मैंने वो कोरा कागज़ उनकी आँखों के सामने कर दिया
चाची ने उसको देखा कुछ देर और फिर उनको हँसी आ गयी , मुझे हुई उलझन
वो- किसने दिया है तुम्हे ये
मैं- वो नहीं बता सकता
चाची- तो ठीक है मैं भी तुम्हारी उलझन नहीं सुल्झाउंगी
मैं- चाची, मेरा विश्वास करो, मैं अभी नहीं बता सकता पर वादा करता हूँ सही समय पर कुछ छुपाऊ भी नहीं गा
वो- बेटा, सो जाओ जाकर रात बहुत आ गयी है , जवान लडको का बिना बात के रातो को यु जागना ठीक नहीं रहता
मैं- मुझे नींद नहीं आती
वो- उस कागज़ को मुझे थमाती हुई- बेटा ये तुम्हारी परीक्षा है देखो तुम पास होते हो या फ़ैल
चाची पानी पीकर गयी सो हम रह गए चुतिया की तरह , खैर, सुबह हुई दो रातो की नींद से आँखे होवे बोझिल पर मन बावरा कहा माने किसी को उलझा था उस डोर से जो मंजू ने जोड़ दी थी बिना बात के साली दो शब्द ही लिख देती पर जैसा की चाची ने कहा था , कुछ तो था ही उस कोरे कागज़ में ही पिताजी और चाचा अपने अपने काम पर चले गए थे मम्मी गयी थी मंदिर, मैं चाची के पास रसोई में गया
वो- हां भई, बताओ कैसे दर्शन दिए रसोई में
मैंने फिर से वो कागज़ उनको दे दिया
वो- बेटा, मैंने कहा न जब तक तुम न बताओगे की किसने दिया मैं तुम्हारी मदद नहीं करुगी
अजीब उलझन में उलझा दिया रे मंजू तूने , अब कौन मेरी परेशानी दूर करे मैंने फ्रिज से पानी की बोतल निकाली और बैठक में आके बैठ गया और गहरी सोच में डूब गया , चाची भी थोड़ी देर बाद आ गयी और मेरी और देख कर मुस्कुराने लगी, ले लो मेरी बेबसी का मजा
चाची- वैसे कब तक देना है जवाब तुमको
मैं- किस चीज़ का
वो- मुझे बना रहे हो
मैं- चाची, मेरी टांग मत खीचो मैं बहुत परेशां हूँ
वो- बेटा, तुम्हारी हरकतों से एक दिन कुनबे को परेशानी होने वाली है हमे लगता तो था की तुम जवान हो गए हो पर इतने हो गए हो ये सोचा नहीं था
मैं कुछ नहीं बोला और उठने लगा तो उन्होंने मुझे बिठा दिया और बोली-पढाई कैसी चल रही है इस बार पास तो हो जाओगे ना
मैं- जी बिलकुल हो जाऊंगा कोई दिकत नहीं है
वो- बेटा तुम्हारी हरकतों से कभी कभी शक होता है वैसे कहो तो तुम्हारी मम्मी को बता दू वो दे देंगी तुम्हे जवाब
मैं- कल ही तो पिताजी ने ने खाल उतारी थी , आपको ठीक नहीं लग रहा तो कर दो शिकायत और मार खा लूँगा मेरा कौन सा कुछ घिस जाना है वैसे भी आजतक मार ही तो खाई है मैंने
चाची- सब तुम्हारी भलाई के लिए ही है
मैं- हां जी सब समझता हूँ मैं
वो- समझते हो तो जवाब दो पत्र का
मैं- पहले सवाल तो पता चल जाये