hotaks444
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मैं—क्यों
वो- महिना चल रहा हा मेरा
मैं- हद है यार तू भी
वो- मेरे बस का है क्या , इसे छोड़ और बता क्या बात है
मैं- पिस्ता कुछ पैसे का जुगाड़ कर देगी क्या
वो- तुझे पैसे की जरुरत , ये तो वो बात हो गयी की साहूकार खुद कर्जा लेने लगे
मैं- यार टांग मत खीच
वो- अच्छा बता कितने चाहिए
मैं- दस हज़ार
पिस्ता- तू चूत ही ले ले मेरी
मैं- मैं मुझे पता था तू भी ऐसे ही बोलेगी
वो- रोंदू लाल, टेंशन मत ले मैं जुगाड़ कर दूंगी
मैं- जल्दी ही लौटा दूंगा
वो- ना दे तो भी कोई दिक्कत नहीं कल मिलना तेरा काम हो जायेगा
मैं- यार तेरा अहसान रहेगा मुझ पर
वो- अहसान कैसा , कभी मुझे मदद की जरुरत होगी तो तू नहीं करेगा क्या मेरी
मैं- तेरे लिए जान दे दूंगा मैं तू मांग तो सही
पिस्ता- जान छोड़ ये बता क्या चल रहा है आज कल
मैं- बस ऐसे ही कट रही है
वो- कुछ टेंशन में है क्या
मैं- ना, यार टेंशन तो नहीं है बस घर का ही छोटा मोटा लफड़ा है
वो- घर की परेशानी तो उम्र भर रहती है
मैं- और बता
वो- और कुछ नहीं है यार, तुझसे मिलने का मन था तो आ गयी, महिना ना आया होता तो मस्ती कर लेते
मैं- तू पास है वो ही बहुत है
हम लोग बात कर रहे थे की कुत्ते भौंकने लगे तो मैंने उठ के देखा, पगडण्डी पे पिताजी चलते हुए आ रहे थे मेरे तो होश ही उड़ गए
मैं- पिस्ता बापू आ रहा है भाग तू
उसको पीछे की तरफ से रवाना किया और बिस्तर को सही किया और सोने की एक्टिंग करने लगा
थोड़ी देर बाद ही पिताजी पहूँच गए और पुछा- सो गया क्या
तो मैंने अलसाते हुए कहा – पिताजी आप इस समय यहाँ पर
वो- हां, घर पर मन नहीं लग रहा था तो सोचा थोड़ी देर तेरे साथ समय बिता लू
मैं- कुछ परेशान से लग रहे है आप पिछले दो चार दिनों से
वो- काम का बोझ है बताया था न उस दिन
मैं- पिताजी, काम नहीं घर की वजह से परेशान है ना आप
पिताजी- सच कहू , तो घर की परेशानी तो है ही
मैं- सब सही हो जाना है आहिस्ता आहिस्ता से
पिताजी- मुझे नहीं लगता की अब कुछ सही हो पायेगा , धागे में जो एक बार गाँठ पड़ जाये तो वो कभी पहले जैसा नहीं रहता है पर जिंदगी है , एक दौर है इसका ये भी कही ना कही तो गुजर ही जायेगा
मैं- पिताजी, आपने चाचा को कुछ कहा क्यों नहीं
पिताजी- मैंने तो तुझे भी कुछ नहीं कहा
मेरा तो जैसे जी ही निकल गया था धक् से दिल फड़क गया, इसका मतलब पिताजी को मेरे और बिमला के अवैध संबंधो का पता चल गया था , मैंने सर निचा कर लिया और ख़ामोशी से खड़ा हो गया , चुपचाप से
पिताजी- देखो बेटे, सर झुकाने की जरुरत है नहीं अगर तुम्हे ये अहसास है की तुमसे कुछ गलत हुआ है , आँखों में शर्म होनी चाहिए, मैं चाहता तो तुम्हे सजा भी दे सकता था पर उस से होता क्या , तुम सोचते की अगली बार भी मार खा लूँगा , और वैसे भी इस घर में सब अपनी मर्ज़ी का करते ही है तो क्या फर्क पड़ना है
मैं- खामोश रहा
पिताजी- तुम सब घरवाले कभी मेरे मन की बात नहीं समझ पाओगे, ज़िन्दगी लगा दी मकान को घर बनाने में बहुत संघर्ष किया तब इस मुकाम तक पहूँच पाए है , पर देखो आज भी खाली हाथ ही खड़ा कर दिया तक़दीर ने , कुछ दिन पहले सोचता था की सब कुछ है समाज में इज्जत है, घर में रसूख है एक बेटा है जो आगे चल कर इस परम्परा को आगे निभाएगा, एक बेटे जैसा भाई है जो कभी उल्टा जवाब नहीं देता पर सब किसी ख्वाब की तरह टूट कर बिखर गया
मुझे ऐसे लग रहा था की जैसे किसी ने नंगा खड़ा कर दिया वो बीच चौराहे पर , नजरी झुकी थी पिताजी ने मुझे अपने पास बिठाया और बोले- देखो बेटा, गलती जो तुम सब से हुई है वो सरासर माफ़ी के काबिल है नहीं और ना ही कोई घरवाला तुम्हे माफ़ कर पायेगा पर तुम चाहो तो एक कोशिश कर सकते हो , अपने व्यवहार से फिर से घर वालो का दिल जीतने की,
मेरी आँखों से कुछ आंसू बह चले, इस लिए नहीं की पिताजी मुझे मेरी गलती के लिए सुना रहे थे बल्कि इसलिए की वो कितना अच्छे से समझते थे मुझे, इस घर को , घर वालो को
मुझे रोता देख पिताजी बोले- इसमें रोने की क्या जरुरत है , अपने आप को काबिल बनाओ की फिर कभी तुम्हारी नजरे नीची न हो सके , तुम्हारा बाप तो शर्मिंदा होकर भी जी लेगा पर कभी तुम ऐसे काम ना करना की आगे औलाद के आगे सर झुकाना पड़े,
चलो रात बहुत हो गयी है सो ते है मुझे भी सुबह ऑफिस जाना है
उस रात पिताजी ने एक बहुत बड़ी नसीहत दे दी थी , वो रात तो कट गयी थी पर दिल में उनकी कही हर बात घर कर गयी थी , जो एक सीख थी आने वाले समय के लिए
वो- महिना चल रहा हा मेरा
मैं- हद है यार तू भी
वो- मेरे बस का है क्या , इसे छोड़ और बता क्या बात है
मैं- पिस्ता कुछ पैसे का जुगाड़ कर देगी क्या
वो- तुझे पैसे की जरुरत , ये तो वो बात हो गयी की साहूकार खुद कर्जा लेने लगे
मैं- यार टांग मत खीच
वो- अच्छा बता कितने चाहिए
मैं- दस हज़ार
पिस्ता- तू चूत ही ले ले मेरी
मैं- मैं मुझे पता था तू भी ऐसे ही बोलेगी
वो- रोंदू लाल, टेंशन मत ले मैं जुगाड़ कर दूंगी
मैं- जल्दी ही लौटा दूंगा
वो- ना दे तो भी कोई दिक्कत नहीं कल मिलना तेरा काम हो जायेगा
मैं- यार तेरा अहसान रहेगा मुझ पर
वो- अहसान कैसा , कभी मुझे मदद की जरुरत होगी तो तू नहीं करेगा क्या मेरी
मैं- तेरे लिए जान दे दूंगा मैं तू मांग तो सही
पिस्ता- जान छोड़ ये बता क्या चल रहा है आज कल
मैं- बस ऐसे ही कट रही है
वो- कुछ टेंशन में है क्या
मैं- ना, यार टेंशन तो नहीं है बस घर का ही छोटा मोटा लफड़ा है
वो- घर की परेशानी तो उम्र भर रहती है
मैं- और बता
वो- और कुछ नहीं है यार, तुझसे मिलने का मन था तो आ गयी, महिना ना आया होता तो मस्ती कर लेते
मैं- तू पास है वो ही बहुत है
हम लोग बात कर रहे थे की कुत्ते भौंकने लगे तो मैंने उठ के देखा, पगडण्डी पे पिताजी चलते हुए आ रहे थे मेरे तो होश ही उड़ गए
मैं- पिस्ता बापू आ रहा है भाग तू
उसको पीछे की तरफ से रवाना किया और बिस्तर को सही किया और सोने की एक्टिंग करने लगा
थोड़ी देर बाद ही पिताजी पहूँच गए और पुछा- सो गया क्या
तो मैंने अलसाते हुए कहा – पिताजी आप इस समय यहाँ पर
वो- हां, घर पर मन नहीं लग रहा था तो सोचा थोड़ी देर तेरे साथ समय बिता लू
मैं- कुछ परेशान से लग रहे है आप पिछले दो चार दिनों से
वो- काम का बोझ है बताया था न उस दिन
मैं- पिताजी, काम नहीं घर की वजह से परेशान है ना आप
पिताजी- सच कहू , तो घर की परेशानी तो है ही
मैं- सब सही हो जाना है आहिस्ता आहिस्ता से
पिताजी- मुझे नहीं लगता की अब कुछ सही हो पायेगा , धागे में जो एक बार गाँठ पड़ जाये तो वो कभी पहले जैसा नहीं रहता है पर जिंदगी है , एक दौर है इसका ये भी कही ना कही तो गुजर ही जायेगा
मैं- पिताजी, आपने चाचा को कुछ कहा क्यों नहीं
पिताजी- मैंने तो तुझे भी कुछ नहीं कहा
मेरा तो जैसे जी ही निकल गया था धक् से दिल फड़क गया, इसका मतलब पिताजी को मेरे और बिमला के अवैध संबंधो का पता चल गया था , मैंने सर निचा कर लिया और ख़ामोशी से खड़ा हो गया , चुपचाप से
पिताजी- देखो बेटे, सर झुकाने की जरुरत है नहीं अगर तुम्हे ये अहसास है की तुमसे कुछ गलत हुआ है , आँखों में शर्म होनी चाहिए, मैं चाहता तो तुम्हे सजा भी दे सकता था पर उस से होता क्या , तुम सोचते की अगली बार भी मार खा लूँगा , और वैसे भी इस घर में सब अपनी मर्ज़ी का करते ही है तो क्या फर्क पड़ना है
मैं- खामोश रहा
पिताजी- तुम सब घरवाले कभी मेरे मन की बात नहीं समझ पाओगे, ज़िन्दगी लगा दी मकान को घर बनाने में बहुत संघर्ष किया तब इस मुकाम तक पहूँच पाए है , पर देखो आज भी खाली हाथ ही खड़ा कर दिया तक़दीर ने , कुछ दिन पहले सोचता था की सब कुछ है समाज में इज्जत है, घर में रसूख है एक बेटा है जो आगे चल कर इस परम्परा को आगे निभाएगा, एक बेटे जैसा भाई है जो कभी उल्टा जवाब नहीं देता पर सब किसी ख्वाब की तरह टूट कर बिखर गया
मुझे ऐसे लग रहा था की जैसे किसी ने नंगा खड़ा कर दिया वो बीच चौराहे पर , नजरी झुकी थी पिताजी ने मुझे अपने पास बिठाया और बोले- देखो बेटा, गलती जो तुम सब से हुई है वो सरासर माफ़ी के काबिल है नहीं और ना ही कोई घरवाला तुम्हे माफ़ कर पायेगा पर तुम चाहो तो एक कोशिश कर सकते हो , अपने व्यवहार से फिर से घर वालो का दिल जीतने की,
मेरी आँखों से कुछ आंसू बह चले, इस लिए नहीं की पिताजी मुझे मेरी गलती के लिए सुना रहे थे बल्कि इसलिए की वो कितना अच्छे से समझते थे मुझे, इस घर को , घर वालो को
मुझे रोता देख पिताजी बोले- इसमें रोने की क्या जरुरत है , अपने आप को काबिल बनाओ की फिर कभी तुम्हारी नजरे नीची न हो सके , तुम्हारा बाप तो शर्मिंदा होकर भी जी लेगा पर कभी तुम ऐसे काम ना करना की आगे औलाद के आगे सर झुकाना पड़े,
चलो रात बहुत हो गयी है सो ते है मुझे भी सुबह ऑफिस जाना है
उस रात पिताजी ने एक बहुत बड़ी नसीहत दे दी थी , वो रात तो कट गयी थी पर दिल में उनकी कही हर बात घर कर गयी थी , जो एक सीख थी आने वाले समय के लिए