hotaks444
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मैंने हाथ को ऊपर सरका कर बोबो पर पंहुचा दिया और उसको सहलाने लगा हलके से दबाने लगा मंजू थोडा सा मेरी तरफ पीछे को हो गयी
मैं- मेरी जिंदगी में तू है , पिस्ता है ,नीनू है तुम तीनो मेरे लिए बहुत महत्त्व रखती हो पर एक ना क दिन सबक साथ छुट ही जाना है
वो- पर दोस्ती तो सदा रहती ना
मैं- अब मैं क्या जणू, सासरे जाने के बाद क्या पता मुलाक़ात हो ना हो
वो- वो सब छोड़ ये बता पिस्ता को पेल दिया तूने
मैं- मैंने तो तुझे भी पेल दिया है
वो- मतलब ले ली है
मैं- तू हर टाइम उसकी बात क्यों करती है
वो- ऐसे ही , मैं सोचती हु की तू उस जैसी चालू लड़की के चक्कर में आया कैसे
मैं-वो मेरी दोस्त है यार ऐसे मत बोल
वो- ठीक है
मंजू की गांड बिलकुल मेरे लंड से सटी हुई थी तो मेरा लंड खड़ा हो गया मैं उसके बोबो को मसलने के लिए उसकी कुर्ती को ऊपर कर दिया और ब्रा को खोल दिया
मंजू- करके ही मानेगा क्या
मैं- इरादा तो है
मंजू- ठीक है फिर
उसने अपनी सलवार को कच्छी समेत उतार दिया और अपना मुह मेरी तरफ कर लिया मैं उसकी कमर को सहलाते हुए उसे किस करने लगा मंजू ने मेरे लंड को पकड़ लिया और उसको भीचने लगी किस करते करते ही मैंने उसकी चड्डी में हाथ दे दिया और उसकी बिना बालो की चूत से खेलने लगा , जब जब मेरी उंगलिया उसके दाने को छूती मंजू अपनी टांगो को टाइट कर लेती कुछ देर बाद उसकी कच्छी साइड में पड़ी थी
मंजू अब मेरे लंड को अपनी चूत के दरवाजे पर रगड़ रही थी और फिर बिना देर किये मैंने उसको अपने निचे लिया और उसकी टांगो को खोल दिया अँधेरी रात में छत पर आज मंजू को जी भरके चोदने वाला था मैं , एक तकिया उसके कुलहो के नीचे लगाया और अपने लंड को टिका दिया उसकी मुनिया पर पहले ही घस्से में आधा लंड चूत में उतार दिया मैंने और फिर उस पर छाता चला गया दो जवान जिस्म एक हुए तो फिर बिस्तर पर हलचल मचने लगी बिना किसी जल्दबाजी के धीरे धीरे घस्से लगाते हुए मैं उसके जिस्म का मजा ले रहा था
मंजू ने अपने चूतडो को ऊपर कर दिया था और आहे भरते हुए मेरे लंड को चूत में ले रही थी , होंठो में होठ, बाहो में बाहे मंजू और मैं शारीरिक सुख को पाने की कोशिश कर रहे थे ,धीरे धीरे मेरे धक्को की रफ़्तार बढ़ने लगी और उसकी कामुकता , बिस्तर की चादर पर पड़ी सिलवटे हमारी कहानी को ब्यान कर रही थी मंजू अब खुल के गांड को ऊपर उठा उठा कर चुद रही थी , मैं उसको अपनी बाहों में समेटे हुए अपने साथ मंजिल की तरफ ले कर चल रहा था , चुदाई का एक दौर अब थमने को था करीब बीस मिनट बाद मैंने उसकी चूत को अपने पानी से सींच दिया और उस पर ही ढह गया , उस रात एक बार और ली मैंने उसकी...........
सुबह करीब दस बजे मैं और मंजू हॉस्पिटल पहुच गए , काका को अभी तक होश नहीं आया था पर हालत ठीक थी ये भी अच्छी बात थी शाम तक मैं हॉस्पिटल में रहा फिर वापिस गाँव आ गया पिताजी के साथ, इधर चुनाव अब जोर पकड़ने लगा था चाचा तो बिमला का दीवाना था ही इसलिए वो तो पूरा जोर लगाये हुए था, सारे तरीके लगाये जा रहे थे , कुछ वादों से, कुछ बातो से तो कुछ दारु बाँट कर गाँव में मेरे परिवार का मेल मिलाप भी ठीक था तो पलड़ा झुका सा लग रहा था बिमला के पक्ष में
और बस यही बात मुझे खटक रही थी ,रतिया काका का एक्सीडेंट गलत टाइम पर हो गया था दूकान अब बंद थी और वो अपना अड्डा था, उधर से भी सप्लाई होती थी और वो वोट भी खीच रहे थे मैं लाख कोशिश के बाद भी मैं खुद को चुनाव से दूर रख नहीं पा रहा था , जबकि पिताजी के पूरी कोशिश थी की मैं इन पचड़ो से दूर रहू , उस शाम चाचा दारू बांटने गया हुआ था तो दूसरी पार्टी वालो के साथ कुछ बोल चाल हो गयी , मुझे पता चला तो दिमाग खराब हो गया
अब चाचा जैसा भी था कोई दूसरा तो कैसे कुछ बोल सकता था मेरा दिमाग सरक गया , रात को मैं अपने दोस्तों के साथ मंदिर की सीढियों पर बैठा था तो दूसरी पार्टी का वो ही लड़का जिसने चाचा के साथ बदतमीजी की थी वो भी आ निकला , मेरा तो वैसे ही दिमाग ख़राब था ऊपर से वो भी अकड़ में था वो लड़का जिसे गाँव में लादेन कहते थे
लादेन- ओह देखो रे, अभी से इनको हार का डर लगने लगा कैसे भगवान् के पांवो में पड़े है
मैं- तू अपना काम कर ,निकल यहाँ से
लादेन- हां निकलना तो है ही जैसे तेरा चाचा निकला था दुम दबा के बोलती ही बंद हो गयी थी उसकी
मैं- देख, वोट वोट की जगह है , तू हद में रह माहौल बिगाड़ने की कोशिस मत कर
लादेन- मैं तो जो मर्ज़ी करूँगा , ये कहने के साथ उसने मुझे गाली दी और मेरा कोल्लोर पकड़ लिया
बस , एक तो मेरा दिमाग ख़राब था ही ऊपर से उसने जो गाली दी वो मुझे चुभ गयी मैंने एक लात उसके घुटनों के बीच मारी और भाई की सारी हेकड़ी बाहर आ गयी, उबकाई लेता हुआ जो गिरा वो जमीं पर मैंने उसकी हॉकी उठाई और जो चार पांच पंटर थे उनको पेलना शुरू किया तो मेरे दोस्त भी शुरू हो गए दे दबा दब सालो की रेल बनायीं कुछ भाग गए कुछ अधमरे हो गए लादेन को मैंने उठाया और बोला- हां , तो क्या कह रहा था तू अब बोल
तो वो भाई भाई करने लगा पर मेरा दिमाग आउट हो गया था मैंने अपने दोस्त से रस्सी मंगवाई और साले को मंदिर के सामने वाले पेड़ से बाँध दिया , और बोला बेटा जा जिनके दम पर तू उछल रहा था ना बुला ले उनको माँ चुदाय वोट, अब बात जरा दूसरी टाइप से होगी , मैंने हॉकी जो घुमा कर लादेन के घुटने पर दी तो उसकी चीख वातावरण में गूंजती चली गयी , अब झगडा हुआ तो गाँव में बात फ़ैल गयी मिनटों में तो दोनों पक्षों के लोग आ गये बीच बचाव करने लगे
पर जो औरत बिमला की टक्कर में खड़ी थी उसका देवर जो की मेरी ही उम्र का था ज्यादा उचल रहा था तो मैंने दो चार उसके धर दिए बात और बिगड़ गयी , अब हम साला नए नए जवान हुए थे खून गरम था जोश था जवानी का एक बार जो शुरू हुए तो रुक ना पाए , ऊपर से बात बिगड़ी तो दोनों तरफ से लट्ठ तन गए , पुलिस आ गयी गाँव का माहौल खिंच गया , गाँव के कुछ मौज़िज़ लोगो ने बात को संभाला मैंने भरी पंचायत में में ऐलान कर दिया की अगर किसी ने भी मेरे परिवार को कुछ कहा तो ठीक नहीं रहेगा बात समझ में आये या नहीं
लड़ाई झगडे में आधी रात घुल गयी थी , जब हम घर आये तो मेरा दिमाग गुस्से से भनभना रहा था ऊपर से पिताजी ने मुझे जम कर बाते सुनाई , पर हां अब इतना तय हो गया था की ये चुनाव अब एक तूफ़ान लेकर आया था , सुबह मैं थोड़ी देर से उठा घर पर कोई नहीं था , मैं बाहर चबूतरे पर बैठा दातुन कर रहा था की पिस्ता आई
पिस्ता मेरे घर जरुर कोई बात तो थी ही, उसने मुझे इशारा किया और आगे को बढ़ गयी मैं भी पीछे हो लिया थोडा आगे जाकर बस उजाड़ सा था तो वहा पर हमने बाते शुरू की
पिस्ता- मैंने सुना कल रात तूने मार पिटाई करी
मैं- हो गयी ऐसे ही दिमाग ख़राब , हुआ पड़ा था तो कुछ ज्यादा ही हो पाया
पिस्ता- देख, मेरी एक बात को अच्छे से समझ ले वोट तो दो दिन के है, खींचा तान होगी पर आराम से हो जाये तो ठीक होगा, हर ज़ख्म भर जाता है पर वोटो की रंजिश नहीं भूली जाती है ,
मैं- मेरी जिंदगी में तू है , पिस्ता है ,नीनू है तुम तीनो मेरे लिए बहुत महत्त्व रखती हो पर एक ना क दिन सबक साथ छुट ही जाना है
वो- पर दोस्ती तो सदा रहती ना
मैं- अब मैं क्या जणू, सासरे जाने के बाद क्या पता मुलाक़ात हो ना हो
वो- वो सब छोड़ ये बता पिस्ता को पेल दिया तूने
मैं- मैंने तो तुझे भी पेल दिया है
वो- मतलब ले ली है
मैं- तू हर टाइम उसकी बात क्यों करती है
वो- ऐसे ही , मैं सोचती हु की तू उस जैसी चालू लड़की के चक्कर में आया कैसे
मैं-वो मेरी दोस्त है यार ऐसे मत बोल
वो- ठीक है
मंजू की गांड बिलकुल मेरे लंड से सटी हुई थी तो मेरा लंड खड़ा हो गया मैं उसके बोबो को मसलने के लिए उसकी कुर्ती को ऊपर कर दिया और ब्रा को खोल दिया
मंजू- करके ही मानेगा क्या
मैं- इरादा तो है
मंजू- ठीक है फिर
उसने अपनी सलवार को कच्छी समेत उतार दिया और अपना मुह मेरी तरफ कर लिया मैं उसकी कमर को सहलाते हुए उसे किस करने लगा मंजू ने मेरे लंड को पकड़ लिया और उसको भीचने लगी किस करते करते ही मैंने उसकी चड्डी में हाथ दे दिया और उसकी बिना बालो की चूत से खेलने लगा , जब जब मेरी उंगलिया उसके दाने को छूती मंजू अपनी टांगो को टाइट कर लेती कुछ देर बाद उसकी कच्छी साइड में पड़ी थी
मंजू अब मेरे लंड को अपनी चूत के दरवाजे पर रगड़ रही थी और फिर बिना देर किये मैंने उसको अपने निचे लिया और उसकी टांगो को खोल दिया अँधेरी रात में छत पर आज मंजू को जी भरके चोदने वाला था मैं , एक तकिया उसके कुलहो के नीचे लगाया और अपने लंड को टिका दिया उसकी मुनिया पर पहले ही घस्से में आधा लंड चूत में उतार दिया मैंने और फिर उस पर छाता चला गया दो जवान जिस्म एक हुए तो फिर बिस्तर पर हलचल मचने लगी बिना किसी जल्दबाजी के धीरे धीरे घस्से लगाते हुए मैं उसके जिस्म का मजा ले रहा था
मंजू ने अपने चूतडो को ऊपर कर दिया था और आहे भरते हुए मेरे लंड को चूत में ले रही थी , होंठो में होठ, बाहो में बाहे मंजू और मैं शारीरिक सुख को पाने की कोशिश कर रहे थे ,धीरे धीरे मेरे धक्को की रफ़्तार बढ़ने लगी और उसकी कामुकता , बिस्तर की चादर पर पड़ी सिलवटे हमारी कहानी को ब्यान कर रही थी मंजू अब खुल के गांड को ऊपर उठा उठा कर चुद रही थी , मैं उसको अपनी बाहों में समेटे हुए अपने साथ मंजिल की तरफ ले कर चल रहा था , चुदाई का एक दौर अब थमने को था करीब बीस मिनट बाद मैंने उसकी चूत को अपने पानी से सींच दिया और उस पर ही ढह गया , उस रात एक बार और ली मैंने उसकी...........
सुबह करीब दस बजे मैं और मंजू हॉस्पिटल पहुच गए , काका को अभी तक होश नहीं आया था पर हालत ठीक थी ये भी अच्छी बात थी शाम तक मैं हॉस्पिटल में रहा फिर वापिस गाँव आ गया पिताजी के साथ, इधर चुनाव अब जोर पकड़ने लगा था चाचा तो बिमला का दीवाना था ही इसलिए वो तो पूरा जोर लगाये हुए था, सारे तरीके लगाये जा रहे थे , कुछ वादों से, कुछ बातो से तो कुछ दारु बाँट कर गाँव में मेरे परिवार का मेल मिलाप भी ठीक था तो पलड़ा झुका सा लग रहा था बिमला के पक्ष में
और बस यही बात मुझे खटक रही थी ,रतिया काका का एक्सीडेंट गलत टाइम पर हो गया था दूकान अब बंद थी और वो अपना अड्डा था, उधर से भी सप्लाई होती थी और वो वोट भी खीच रहे थे मैं लाख कोशिश के बाद भी मैं खुद को चुनाव से दूर रख नहीं पा रहा था , जबकि पिताजी के पूरी कोशिश थी की मैं इन पचड़ो से दूर रहू , उस शाम चाचा दारू बांटने गया हुआ था तो दूसरी पार्टी वालो के साथ कुछ बोल चाल हो गयी , मुझे पता चला तो दिमाग खराब हो गया
अब चाचा जैसा भी था कोई दूसरा तो कैसे कुछ बोल सकता था मेरा दिमाग सरक गया , रात को मैं अपने दोस्तों के साथ मंदिर की सीढियों पर बैठा था तो दूसरी पार्टी का वो ही लड़का जिसने चाचा के साथ बदतमीजी की थी वो भी आ निकला , मेरा तो वैसे ही दिमाग ख़राब था ऊपर से वो भी अकड़ में था वो लड़का जिसे गाँव में लादेन कहते थे
लादेन- ओह देखो रे, अभी से इनको हार का डर लगने लगा कैसे भगवान् के पांवो में पड़े है
मैं- तू अपना काम कर ,निकल यहाँ से
लादेन- हां निकलना तो है ही जैसे तेरा चाचा निकला था दुम दबा के बोलती ही बंद हो गयी थी उसकी
मैं- देख, वोट वोट की जगह है , तू हद में रह माहौल बिगाड़ने की कोशिस मत कर
लादेन- मैं तो जो मर्ज़ी करूँगा , ये कहने के साथ उसने मुझे गाली दी और मेरा कोल्लोर पकड़ लिया
बस , एक तो मेरा दिमाग ख़राब था ही ऊपर से उसने जो गाली दी वो मुझे चुभ गयी मैंने एक लात उसके घुटनों के बीच मारी और भाई की सारी हेकड़ी बाहर आ गयी, उबकाई लेता हुआ जो गिरा वो जमीं पर मैंने उसकी हॉकी उठाई और जो चार पांच पंटर थे उनको पेलना शुरू किया तो मेरे दोस्त भी शुरू हो गए दे दबा दब सालो की रेल बनायीं कुछ भाग गए कुछ अधमरे हो गए लादेन को मैंने उठाया और बोला- हां , तो क्या कह रहा था तू अब बोल
तो वो भाई भाई करने लगा पर मेरा दिमाग आउट हो गया था मैंने अपने दोस्त से रस्सी मंगवाई और साले को मंदिर के सामने वाले पेड़ से बाँध दिया , और बोला बेटा जा जिनके दम पर तू उछल रहा था ना बुला ले उनको माँ चुदाय वोट, अब बात जरा दूसरी टाइप से होगी , मैंने हॉकी जो घुमा कर लादेन के घुटने पर दी तो उसकी चीख वातावरण में गूंजती चली गयी , अब झगडा हुआ तो गाँव में बात फ़ैल गयी मिनटों में तो दोनों पक्षों के लोग आ गये बीच बचाव करने लगे
पर जो औरत बिमला की टक्कर में खड़ी थी उसका देवर जो की मेरी ही उम्र का था ज्यादा उचल रहा था तो मैंने दो चार उसके धर दिए बात और बिगड़ गयी , अब हम साला नए नए जवान हुए थे खून गरम था जोश था जवानी का एक बार जो शुरू हुए तो रुक ना पाए , ऊपर से बात बिगड़ी तो दोनों तरफ से लट्ठ तन गए , पुलिस आ गयी गाँव का माहौल खिंच गया , गाँव के कुछ मौज़िज़ लोगो ने बात को संभाला मैंने भरी पंचायत में में ऐलान कर दिया की अगर किसी ने भी मेरे परिवार को कुछ कहा तो ठीक नहीं रहेगा बात समझ में आये या नहीं
लड़ाई झगडे में आधी रात घुल गयी थी , जब हम घर आये तो मेरा दिमाग गुस्से से भनभना रहा था ऊपर से पिताजी ने मुझे जम कर बाते सुनाई , पर हां अब इतना तय हो गया था की ये चुनाव अब एक तूफ़ान लेकर आया था , सुबह मैं थोड़ी देर से उठा घर पर कोई नहीं था , मैं बाहर चबूतरे पर बैठा दातुन कर रहा था की पिस्ता आई
पिस्ता मेरे घर जरुर कोई बात तो थी ही, उसने मुझे इशारा किया और आगे को बढ़ गयी मैं भी पीछे हो लिया थोडा आगे जाकर बस उजाड़ सा था तो वहा पर हमने बाते शुरू की
पिस्ता- मैंने सुना कल रात तूने मार पिटाई करी
मैं- हो गयी ऐसे ही दिमाग ख़राब , हुआ पड़ा था तो कुछ ज्यादा ही हो पाया
पिस्ता- देख, मेरी एक बात को अच्छे से समझ ले वोट तो दो दिन के है, खींचा तान होगी पर आराम से हो जाये तो ठीक होगा, हर ज़ख्म भर जाता है पर वोटो की रंजिश नहीं भूली जाती है ,