hotaks444
New member
- Joined
- Nov 15, 2016
- Messages
- 54,521
बात एक रात की-- 56
गतान्क से आगे...........
शालिनी अपने कमरे में फोन पर बात कर रही थी. वो बहुत परेशान लग रही थी. फोन रख कर उसने बेल बजाई.
"जी मेडम"
"इनस्पेक्टर चौहान को बुलाओ जल्दी." शालिनी ने कहा.
"जी मेडम"
चौहान भागा भागा आता है.
"यस मेडम. आपने बुलाया."
"हमारे यहाँ से जो एंपी हैं उनकी बेटी निसा को अगवा कर लिया है साइको ने और डिमॅंड की है कि पद्मिनी को उसे सोन्प दिया जाए वरना वो मार डालेगा निसा को."
"उफ्फ नाक में दम कर रखा है इस साइको ने." चौहान ने कहा.
"हम अपना काम ठीक से नही करेंगे तो यही होगा. कल जंगल में एक घंटे में पहुँची पोलीस. निक्कममे हो तुम सब लोग."
"सॉरी मेडम पर सब को इक्कथा करने में वक्त भी तो लगता है."
"मैं कुछ नही सुन-ना चाहती. जाओ ये पता करो कि फोन कहाँ से किया उस साइको ने एंपी के घर. कुछ करो वरना हम सबकी नौकरी ख़तरे में है."
"आप फिकर ना करें मेडम, मैं पूरी कोशिस करूँगा. मुझे इज़ाज़त दीजिए." चौहान ने कहा.
"ठीक है जाओ और कुछ रिज़ल्ट्स लाओ." शालिनी ने कहा.
चौहान के जाने के बाद शालिनी सर पकड़ कर बैठ गयी. "मेरे यही होना था ये सब."
..............................
...................................
"निसा...मेरी प्यारी निसा...उठ जाओ कब से इंतजार कर रहा हूँ तुम्हारा. उठो ना." साइको निसा के पास बैठा बोल रहा था.
निसा को बहुत गहरा सदमा लगा था और वो अभी भी बेहोश ही थी. साइको बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रहा था कि वो उठ जाए.
साइको ने निसा की नंगी टाँगो पर हाथ रखा और बोला, "उठो निसा और मुझे तुम्हारी आँखो में ख़ौफ़ दिखाओ. बहुत हसीन ख़ौफ़ है तुम्हारा. जब मैने लाइट जलाई थी तो बहुत सुंदर ख़ौफ़ था तुम्हारे चेहरे पे. ऐसा सुंदर ख़ौफ़ बहुत कम देखा है मैने. उठो और मुझे दीदार करने दो तुम्हारे ख़ौफ़ का."
जैसी कि ये खौफनाक बाते सुन ली निसा ने और उसकी आँख खुल गयी. लेकिन साइको को पास खड़े देख उसकी टांगे थर थर काँपने लगी. बहुत ज़्यादा डरी हुई थी वो.
"उठ गयी मेरी प्यारी निसा...गुड. अब मज़ा आएगा."
"मुझे छोड़ दो प्लीज़. मैने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है." निसा रो पड़ी.
"मेरा कोई कुछ बिगाड़ भी नही सकता. अगर इस हिसाब से चलूँगा तो किस को कातूंगा मैं. बात को समझने की कोशिस करो."
निसा ने गौर किया कि वो उस जगह नही है जहाँ उसकी आँख खुली थी. वहाँ तो कमरे में कोई बेड नही था. लेकिन अब वो बेड पर पड़ी थी और साइको उसके पास खड़ा था. कमरा उस पहले वाले कमरे से कुछ मिलता जुलता ही था.
"क्या देख रही है चारो तरफ. चल एक गेम खेलते हैं. ये चाकू देख कितना तीखा है. अब मेरा लंड भी देख वो भी तीखा है." साइको अपनी ज़िप खोलने लगा.
साइको ने अपनी ज़िप खोल कर अपने लिंग को बाहर खींच लिया. लिंग पूरी तरह तना हुआ था.
"देख इस लंड को. अब तुझे हाथ रख कर ये बताना है कि तू अपनी चूत में ये चाकू लेगी या फिर ये लंड लेगी. हाथ रख कर बोलना भी है. चाकू पर हाथ रखोगी तो चाकू बोलना, लंड पे हाथ रखोगी तो लंड बोलना"
"तुम ऐसा क्यों कर रहे हो मेरे साथ. प्लीज़ मुझे जाने दो." निसा फूट फूट कर रोने लगी."
"आर्टिस्ट हूँ मैं आर्टिस्ट. कत्ल करना भी एक आर्ट है. बहुत आर्टिस्टिक तरीके से मारता हूँ मैं लोगो को. मरने वालो को फकर होना चाहिए की वो मेरी आर्ट का हिस्सा हैं. देखा ना तुमने कितने हसीन तरीके से मारा था मैने उस आदमी को. क्या पोज़ बना था कसम से. उसका लंड तेरी चूत में था. तू उसके नीचे थी. मैने पीछे से आकर उसकी गर्दन काट दी. लंड तो घुसा दिया था उसने तेरी चूत में पर एक भी धक्का नही लगा पाया बेचारा. रेप करना ग़लत बात है. यही सिखाया मैने उस आर्टिस्टिक कतल में. सबको सीख मिलेगी इस से. अब तुम बताओ कि क्या लेना चाहोगी तुम चूत में, लंड या चाकू. जल्दी बताओ वरना मैं खुद डिसाइड कर लूँगा. और मेरा डिसिशन तुम्हे अच्छा नही लगेगा."
निसा करती भी तो क्या करती. उसने रोते हुए साइको के लिंग पर हाथ रख दिया.
"बोलेगा कौन, तेरा बाप बोलेगा क्या?"
"लंड" निसा रोते हुए बोली.
"तेरे जैसी बेशरम लड़की नही देखी मैने आज तक. पहले तो अपनी कुँवारी चूत में उस आदमी का ले लिया अब मेरा लेना चाहती है. तू तो एक ही दिन में रंडी बन गयी. तेरी चूत में चाकू ही जाएगा समझ ले. तेरे जैसी बेशरम लड़की की चूत में लंड नही डालूँगा मैं. तेरी चूत में जब चाकू जाएगा तो कुछ अलग ही आर्ट बनेगी हे...हे...हे. लेकिन अभी इंतजार करना होगा. तेरे बदले में पद्मिनी को माँगा है मैने. इस साली पद्मिनी ने देख लिया था मुझे. लेकिन तब से मैं होशियार हूँ. नकाब पहन के रखता हूँ मैं अब. मेरे जैसे आर्टिस्ट गुमनाम ही रहे तो ज़्यादा अच्छा है. क्यों सही कह रहा हूँ ना मैं."
"जब ये पद्मिनी तुम्हे मिल जाएगी तो तुम मुझे छोड़ दोगे ना." निसा ने शूबक्ते हुए पूछा.
"मेरी ओरिजिनल गेम मैं किसी से डिसकस नही करता. उस आदमी को ये पता था कि वो रेप करेगा तो बच जाएगा. लेकिन मेरी गेम ये थी के जैसे ही वो तेरी चूत में लंड डालेगा मैं उसकी गर्दन काट दूँगा. बहुत बारीकी का काम है ये आर्ट. हर किसी के बस्कि नही है. एक बार बस पद्मिनी मिल जाए. तुम्हारे साथ क्या होगा सिर्फ़ मैं ही जानता हूँ....हे...हे...हे." साइको बहुत ही भयानक तरीके से हँसने लगा.
"अगर तुम्हारा मन है तो कर लो प्लीज़ पर मुझे मत मारो. मैं मरना नही चाहती." निसा ने कहा. उसके चेहरे पर डर सॉफ दिखाई दे रहा था.
"यही तो वो ख़ौफ़ है जो कि खुब्शुरत है. मज़ा आ गया यार. अति सुंदर."
.....................................................................
शालिनी बहुत परेशान हालत में थी. उसे बार-बार फोन आ रहे थे उपर से. उसकी तो जान पर बन आई थी. बहुत ज़्यादा पोलिटिकल प्रेशर था शालिनी पर. सीनियर ऑफीसर भी खूब डाँट रहे थे. उस पर यही दबाव बनाया जा रहा था कि पद्मिनी को चुपचाप उसे सोन्प दिया जाए और एंपी की बेटी को बचा लिया जाए. वविप की बेटी की जिंदगी ज़्यादा कीमती थी एक आम सहरी के मुक़ाबले.
शालिनी ने राज शर्मा को फोन लगाया.
"जी मेडम बोलिए."
"कैसा चल रहा है वहाँ राज शर्मा."
"सब ठीक है मेडम. मैं ऑफीस के बाहर बैठा हूँ. मेरी नज़र है ऑफीस पर."
"ऑफीस पर नज़र रख कर क्या करोगे बेवकूफ़. पद्मिनी के पास रहो. उस पर नज़र होनी चाहिए तुम्हारी. बात बहुत सीरीयस होती जा रही है."
"क्या बात है मेडम आप इतनी परेशान क्यों लग रही है."
"परेशानी की बात ही है." शालिनी राज शर्मा को सारी बात बताती है.
"ओह गॉड. इस साइको की तो हिम्मत बढ़ती ही जा रही है."
"जब पोलीस कुछ कर ही नही पाती उसका तो यही होगा. तुम बहुत सतर्क रहो."
"मेडम क्या हम पद्मिनी जी को उस बेरहम साइको को सोन्प देंगे."
शालिनी कुछ नही बोली. उसके पास कोई जवाब ही नही था.
"अगर ऐसा हुआ मेडम तो मैं तो ये नौकरी छोड़ दूँगा अभी. नही चाहिए ऐसी नौकरी मुझे." राज शर्मा भावुक हो गया.
"पागलो जैसी बाते मत करो. ये वक्त है ऐसी बाते करने का. अभी कुछ डिसाइड नही किया मैने. और एक बात सुन लो. इस्तीफ़ा दे दूँगी मैं भी अगर उस साइको के आगे झुकना पड़ा तो. तुम सतर्क रहो वहाँ. ये साइको बहुत ख़तरनाक खेल, खेल रहा है"
"मैं सतर्क हूँ मेडम आप चिंता ना करो."
जैसे ही राज शर्मा ने फोन रखा उसे ऑफीस के गेट से पद्मिनी आती दिखाई दी. राज शर्मा की आँखे ही चिपक गयी उस पर. एक तक देखे जा रहा था उसको. देखते देखते उसकी आँखे छलक गयी, "मैं आपको कुछ नही होने दूँगा पद्मिनी जी. कुछ नही होने दूँगा."
पद्मिनी अपनी कार से कुछ लेने आई थी. कुछ ज़रूरी काग़ज़ पड़े थे कार में. वो काग़ज़ ले कर जब वापिस ऑफीस की तरफ मूडी तो उसने राज शर्मा को अपनी तरफ घूरते देखा. बस फिर क्या था शोले उतर आए आँखो में. तुरंत आई आग बाबूला हो कर राज शर्मा के पास. राज शर्मा की तो हालत पतली हो गयी उसे अपनी ओर आते देख.
"समझते क्या हो तुम खुद को. क्यों घूर रहे थे मुझे. तुम्हे यहाँ मेरी शूरक्षा के लिया रखा गया है. मुझे घूर्ने के लिए नही. तुम्हारी शिकायत कर दूँगी मैं तुम्हारी मेडम से."
राज शर्मा कुछ बोल ही नही पाया. वो वैसे भी भावुक हो रहा था उस वक्त पद्मिनी के लिए. पद्मिनी की फटकार ऐसी लग रही थी जैसे की कोई फूल बरसा रहा हो उस पर. बस देखता रहा वो पद्मिनी को.
"बहुत बेशरम हो तुम तो. अभी भी देखे जा रहे हो मुझे." पद्मिनी ने गुस्से में कहा.
राज शर्मा को होश आया, "ओह सॉरी पद्मिनी जी. आप मुझे ग़लत समझ रही हैं."
"ग़लत नही मैं तुम्हे बिल्कुल सही समझ रही हूँ. इस तरह टकटकी लगा कर मुझे घूर्ने का मतलब क्या है."
"ए एस पी साहिबा ने कहा था कि आप पर नज़र रखूं. सॉरी आपको बुरा लगा तो."
"आगे से ऐसा किया तो खैर नही तुम्हारी." पद्मिनी ने कहा और चली गयी.
"वो डाँट रहे थे हमको हम समझ नही पाए
हमें लगा वो हमको प्यार दे रहे हैं." खुद-ब-खुद राज शर्मा के होंठो पर ये बोल आ गये.
राज शर्मा पद्मिनी को जाते हुए देख रहा था. उसकी हिरनी जैसी चाल राज शर्मा के दिल पर सितम ढा रही थी.
"काश कह पाता आपको अपने दिल की बात. पर जो बात मुमकिन नही उसे कहने से भी क्या फ़ायडा. भगवान आपको सही सलामत रखे पद्मिनी जी. मेरी उमर भी लग जाए आपको. आप सब से यूनीक हो, अलग हो. आपकी बराबरी कोई नही कर सकता. गॉड ब्लेस्स यू."
4 दिन का वक्त दिया था साइको ने पद्मिनी को सौंपने के लिए. पोलीस महकमे में अफ़रा तफ़री मची हुई थी. बहुत कोशिस की गयी साइको को ट्रेस करने की लेकिन कुछ हाँसिल नही हुआ. शालिनी सबसे ज़्यादा प्रेशर में थी. प्रेशर की बात ही थी. उसे हाइर अतॉरिटीस से तरह तरह की बाते सुन-नी पड़ रही थी.
राज शर्मा पद्मिनी को लेकर बहुत चिंतित था. सारा दिन वो पूरी सतर्कता से ऑफीस के बाहर बैठा रहा. शाम के वक्त वो पद्मिनी के साथ उसके घर आ गया. 24 घंटे साथ जो रहना था उसे पद्मिनी के.
"पद्मिनी जी आप किसी बात की चिंता मत करना. मैं हूँ ना यहाँ हर वक्त."
"तुम हो तभी तो चिंता है..." पद्मिनी धीरे से बड़बड़ाई.
"कुछ कहा आपने?"
"कुछ नही...." पद्मिनी कह कर घर में घुस्स गयी. राज शर्मा अपनी जीप में बाहर बैठ गया. चारो कॉन्स्टेबल्स को उसने सतर्क रहने के लिए बोल दिया.
.............................................................
रात के 10 बज रहे थे और एक ट्रेन देहरादून की तरफ बढ़ रही थी. सुबह 7 बजे तक ही पहुँच पाएगी ट्रेन देहरादून.
एक हसीन सी लड़की कोई 21 साल की अपनी सीट पर बैठ कर नॉवेल पढ़ रही थी. नॉवेल का नाम था 'दा टाइम मशीन'. अकेली थी वो एसी-2 के उस बर्त में. खोई थी नॉवेल में पूरी तरह. अचानक ट्रेन रुकी और मामला बिगड़ गया. ढेर सारा सामान लेकर आ गया एक लड़का. कोई 25-26 साल का था दिखने में.
"उफ्फ इतना सारा समान कहा अड्जस्ट होगा. एक बेग मैं छोड़ सकता था. ट्रेन चल पड़ी और वो लड़का समान अड्जस्ट करने में लग गया. बहुत तूफान मचा रखा था उसने बर्त में.
"एक्सक्यूस मी. यहाँ कोई और भी है. यू आर डिसटरबिंग मी."
"आप पे तो सबसे पहले नज़र गयी थी. सॉरी समान ज़्यादा था. हो गया अड्जस्ट अब. प्लीज़ कंटिन्यू वित युवर नॉवेल. बाइ दा वे आइ आम रोहित. रोहित पांडे. देहरादून जा रहा हूँ. क्या आप भी वही जा रही हैं."
"जी हां. अब डिस्टर्ब मत करना. आइ आम रीडिंग."
"ऑफ कोर्स" रोहित हंस दिया. "ह्म्म टाइम मशीन पढ़ रही हैं आप. गुड. एच.जी वेल्स का ये नॉवेल पीछले साल पढ़ा था मैने. बहुत इंट्रेस्टिंग है."
लड़की ने रोहित की बातो का कोई जवाब नही दिया और नॉवेल पढ़ने में व्यस्त हो गयी. "स्टुपिड" उसने मन ही मन कहा.
"शूकर है भाई मोबाइल है. मैं भी छोटी सी भूल पढ़ता हूँ बैठ कर. आप भी पढ़िए हम भी पढ़ते हैं. रोहित बोल कर लड़की के सामने वाली सीट पर बैठ गया.
लड़की ने उत्शुकता से उसकी और देखा और बोली, "आप छोटी सी भूल पढ़ रहे हैं. किस बारे में है ये?"
"जी हां. ये एक लड़की की कहानी है जो की छोटी सी भूल करके फँस जाती है. सिंपल सी स्टोरी है कोई ऐसी वैसी बात नही है इसमे. कॉलेज की एक लड़की एग्ज़ॅम मे ग़लती करके पछताती है. नकल करते पकड़ी जाती है." रोहित झूठी कहानियाँ सुना देता है. अब कैसे बताए कि वो एरॉटिक स्टोरी पढ़ रहा है.
क्रमशः.........................
गतान्क से आगे...........
शालिनी अपने कमरे में फोन पर बात कर रही थी. वो बहुत परेशान लग रही थी. फोन रख कर उसने बेल बजाई.
"जी मेडम"
"इनस्पेक्टर चौहान को बुलाओ जल्दी." शालिनी ने कहा.
"जी मेडम"
चौहान भागा भागा आता है.
"यस मेडम. आपने बुलाया."
"हमारे यहाँ से जो एंपी हैं उनकी बेटी निसा को अगवा कर लिया है साइको ने और डिमॅंड की है कि पद्मिनी को उसे सोन्प दिया जाए वरना वो मार डालेगा निसा को."
"उफ्फ नाक में दम कर रखा है इस साइको ने." चौहान ने कहा.
"हम अपना काम ठीक से नही करेंगे तो यही होगा. कल जंगल में एक घंटे में पहुँची पोलीस. निक्कममे हो तुम सब लोग."
"सॉरी मेडम पर सब को इक्कथा करने में वक्त भी तो लगता है."
"मैं कुछ नही सुन-ना चाहती. जाओ ये पता करो कि फोन कहाँ से किया उस साइको ने एंपी के घर. कुछ करो वरना हम सबकी नौकरी ख़तरे में है."
"आप फिकर ना करें मेडम, मैं पूरी कोशिस करूँगा. मुझे इज़ाज़त दीजिए." चौहान ने कहा.
"ठीक है जाओ और कुछ रिज़ल्ट्स लाओ." शालिनी ने कहा.
चौहान के जाने के बाद शालिनी सर पकड़ कर बैठ गयी. "मेरे यही होना था ये सब."
..............................
...................................
"निसा...मेरी प्यारी निसा...उठ जाओ कब से इंतजार कर रहा हूँ तुम्हारा. उठो ना." साइको निसा के पास बैठा बोल रहा था.
निसा को बहुत गहरा सदमा लगा था और वो अभी भी बेहोश ही थी. साइको बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रहा था कि वो उठ जाए.
साइको ने निसा की नंगी टाँगो पर हाथ रखा और बोला, "उठो निसा और मुझे तुम्हारी आँखो में ख़ौफ़ दिखाओ. बहुत हसीन ख़ौफ़ है तुम्हारा. जब मैने लाइट जलाई थी तो बहुत सुंदर ख़ौफ़ था तुम्हारे चेहरे पे. ऐसा सुंदर ख़ौफ़ बहुत कम देखा है मैने. उठो और मुझे दीदार करने दो तुम्हारे ख़ौफ़ का."
जैसी कि ये खौफनाक बाते सुन ली निसा ने और उसकी आँख खुल गयी. लेकिन साइको को पास खड़े देख उसकी टांगे थर थर काँपने लगी. बहुत ज़्यादा डरी हुई थी वो.
"उठ गयी मेरी प्यारी निसा...गुड. अब मज़ा आएगा."
"मुझे छोड़ दो प्लीज़. मैने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है." निसा रो पड़ी.
"मेरा कोई कुछ बिगाड़ भी नही सकता. अगर इस हिसाब से चलूँगा तो किस को कातूंगा मैं. बात को समझने की कोशिस करो."
निसा ने गौर किया कि वो उस जगह नही है जहाँ उसकी आँख खुली थी. वहाँ तो कमरे में कोई बेड नही था. लेकिन अब वो बेड पर पड़ी थी और साइको उसके पास खड़ा था. कमरा उस पहले वाले कमरे से कुछ मिलता जुलता ही था.
"क्या देख रही है चारो तरफ. चल एक गेम खेलते हैं. ये चाकू देख कितना तीखा है. अब मेरा लंड भी देख वो भी तीखा है." साइको अपनी ज़िप खोलने लगा.
साइको ने अपनी ज़िप खोल कर अपने लिंग को बाहर खींच लिया. लिंग पूरी तरह तना हुआ था.
"देख इस लंड को. अब तुझे हाथ रख कर ये बताना है कि तू अपनी चूत में ये चाकू लेगी या फिर ये लंड लेगी. हाथ रख कर बोलना भी है. चाकू पर हाथ रखोगी तो चाकू बोलना, लंड पे हाथ रखोगी तो लंड बोलना"
"तुम ऐसा क्यों कर रहे हो मेरे साथ. प्लीज़ मुझे जाने दो." निसा फूट फूट कर रोने लगी."
"आर्टिस्ट हूँ मैं आर्टिस्ट. कत्ल करना भी एक आर्ट है. बहुत आर्टिस्टिक तरीके से मारता हूँ मैं लोगो को. मरने वालो को फकर होना चाहिए की वो मेरी आर्ट का हिस्सा हैं. देखा ना तुमने कितने हसीन तरीके से मारा था मैने उस आदमी को. क्या पोज़ बना था कसम से. उसका लंड तेरी चूत में था. तू उसके नीचे थी. मैने पीछे से आकर उसकी गर्दन काट दी. लंड तो घुसा दिया था उसने तेरी चूत में पर एक भी धक्का नही लगा पाया बेचारा. रेप करना ग़लत बात है. यही सिखाया मैने उस आर्टिस्टिक कतल में. सबको सीख मिलेगी इस से. अब तुम बताओ कि क्या लेना चाहोगी तुम चूत में, लंड या चाकू. जल्दी बताओ वरना मैं खुद डिसाइड कर लूँगा. और मेरा डिसिशन तुम्हे अच्छा नही लगेगा."
निसा करती भी तो क्या करती. उसने रोते हुए साइको के लिंग पर हाथ रख दिया.
"बोलेगा कौन, तेरा बाप बोलेगा क्या?"
"लंड" निसा रोते हुए बोली.
"तेरे जैसी बेशरम लड़की नही देखी मैने आज तक. पहले तो अपनी कुँवारी चूत में उस आदमी का ले लिया अब मेरा लेना चाहती है. तू तो एक ही दिन में रंडी बन गयी. तेरी चूत में चाकू ही जाएगा समझ ले. तेरे जैसी बेशरम लड़की की चूत में लंड नही डालूँगा मैं. तेरी चूत में जब चाकू जाएगा तो कुछ अलग ही आर्ट बनेगी हे...हे...हे. लेकिन अभी इंतजार करना होगा. तेरे बदले में पद्मिनी को माँगा है मैने. इस साली पद्मिनी ने देख लिया था मुझे. लेकिन तब से मैं होशियार हूँ. नकाब पहन के रखता हूँ मैं अब. मेरे जैसे आर्टिस्ट गुमनाम ही रहे तो ज़्यादा अच्छा है. क्यों सही कह रहा हूँ ना मैं."
"जब ये पद्मिनी तुम्हे मिल जाएगी तो तुम मुझे छोड़ दोगे ना." निसा ने शूबक्ते हुए पूछा.
"मेरी ओरिजिनल गेम मैं किसी से डिसकस नही करता. उस आदमी को ये पता था कि वो रेप करेगा तो बच जाएगा. लेकिन मेरी गेम ये थी के जैसे ही वो तेरी चूत में लंड डालेगा मैं उसकी गर्दन काट दूँगा. बहुत बारीकी का काम है ये आर्ट. हर किसी के बस्कि नही है. एक बार बस पद्मिनी मिल जाए. तुम्हारे साथ क्या होगा सिर्फ़ मैं ही जानता हूँ....हे...हे...हे." साइको बहुत ही भयानक तरीके से हँसने लगा.
"अगर तुम्हारा मन है तो कर लो प्लीज़ पर मुझे मत मारो. मैं मरना नही चाहती." निसा ने कहा. उसके चेहरे पर डर सॉफ दिखाई दे रहा था.
"यही तो वो ख़ौफ़ है जो कि खुब्शुरत है. मज़ा आ गया यार. अति सुंदर."
.....................................................................
शालिनी बहुत परेशान हालत में थी. उसे बार-बार फोन आ रहे थे उपर से. उसकी तो जान पर बन आई थी. बहुत ज़्यादा पोलिटिकल प्रेशर था शालिनी पर. सीनियर ऑफीसर भी खूब डाँट रहे थे. उस पर यही दबाव बनाया जा रहा था कि पद्मिनी को चुपचाप उसे सोन्प दिया जाए और एंपी की बेटी को बचा लिया जाए. वविप की बेटी की जिंदगी ज़्यादा कीमती थी एक आम सहरी के मुक़ाबले.
शालिनी ने राज शर्मा को फोन लगाया.
"जी मेडम बोलिए."
"कैसा चल रहा है वहाँ राज शर्मा."
"सब ठीक है मेडम. मैं ऑफीस के बाहर बैठा हूँ. मेरी नज़र है ऑफीस पर."
"ऑफीस पर नज़र रख कर क्या करोगे बेवकूफ़. पद्मिनी के पास रहो. उस पर नज़र होनी चाहिए तुम्हारी. बात बहुत सीरीयस होती जा रही है."
"क्या बात है मेडम आप इतनी परेशान क्यों लग रही है."
"परेशानी की बात ही है." शालिनी राज शर्मा को सारी बात बताती है.
"ओह गॉड. इस साइको की तो हिम्मत बढ़ती ही जा रही है."
"जब पोलीस कुछ कर ही नही पाती उसका तो यही होगा. तुम बहुत सतर्क रहो."
"मेडम क्या हम पद्मिनी जी को उस बेरहम साइको को सोन्प देंगे."
शालिनी कुछ नही बोली. उसके पास कोई जवाब ही नही था.
"अगर ऐसा हुआ मेडम तो मैं तो ये नौकरी छोड़ दूँगा अभी. नही चाहिए ऐसी नौकरी मुझे." राज शर्मा भावुक हो गया.
"पागलो जैसी बाते मत करो. ये वक्त है ऐसी बाते करने का. अभी कुछ डिसाइड नही किया मैने. और एक बात सुन लो. इस्तीफ़ा दे दूँगी मैं भी अगर उस साइको के आगे झुकना पड़ा तो. तुम सतर्क रहो वहाँ. ये साइको बहुत ख़तरनाक खेल, खेल रहा है"
"मैं सतर्क हूँ मेडम आप चिंता ना करो."
जैसे ही राज शर्मा ने फोन रखा उसे ऑफीस के गेट से पद्मिनी आती दिखाई दी. राज शर्मा की आँखे ही चिपक गयी उस पर. एक तक देखे जा रहा था उसको. देखते देखते उसकी आँखे छलक गयी, "मैं आपको कुछ नही होने दूँगा पद्मिनी जी. कुछ नही होने दूँगा."
पद्मिनी अपनी कार से कुछ लेने आई थी. कुछ ज़रूरी काग़ज़ पड़े थे कार में. वो काग़ज़ ले कर जब वापिस ऑफीस की तरफ मूडी तो उसने राज शर्मा को अपनी तरफ घूरते देखा. बस फिर क्या था शोले उतर आए आँखो में. तुरंत आई आग बाबूला हो कर राज शर्मा के पास. राज शर्मा की तो हालत पतली हो गयी उसे अपनी ओर आते देख.
"समझते क्या हो तुम खुद को. क्यों घूर रहे थे मुझे. तुम्हे यहाँ मेरी शूरक्षा के लिया रखा गया है. मुझे घूर्ने के लिए नही. तुम्हारी शिकायत कर दूँगी मैं तुम्हारी मेडम से."
राज शर्मा कुछ बोल ही नही पाया. वो वैसे भी भावुक हो रहा था उस वक्त पद्मिनी के लिए. पद्मिनी की फटकार ऐसी लग रही थी जैसे की कोई फूल बरसा रहा हो उस पर. बस देखता रहा वो पद्मिनी को.
"बहुत बेशरम हो तुम तो. अभी भी देखे जा रहे हो मुझे." पद्मिनी ने गुस्से में कहा.
राज शर्मा को होश आया, "ओह सॉरी पद्मिनी जी. आप मुझे ग़लत समझ रही हैं."
"ग़लत नही मैं तुम्हे बिल्कुल सही समझ रही हूँ. इस तरह टकटकी लगा कर मुझे घूर्ने का मतलब क्या है."
"ए एस पी साहिबा ने कहा था कि आप पर नज़र रखूं. सॉरी आपको बुरा लगा तो."
"आगे से ऐसा किया तो खैर नही तुम्हारी." पद्मिनी ने कहा और चली गयी.
"वो डाँट रहे थे हमको हम समझ नही पाए
हमें लगा वो हमको प्यार दे रहे हैं." खुद-ब-खुद राज शर्मा के होंठो पर ये बोल आ गये.
राज शर्मा पद्मिनी को जाते हुए देख रहा था. उसकी हिरनी जैसी चाल राज शर्मा के दिल पर सितम ढा रही थी.
"काश कह पाता आपको अपने दिल की बात. पर जो बात मुमकिन नही उसे कहने से भी क्या फ़ायडा. भगवान आपको सही सलामत रखे पद्मिनी जी. मेरी उमर भी लग जाए आपको. आप सब से यूनीक हो, अलग हो. आपकी बराबरी कोई नही कर सकता. गॉड ब्लेस्स यू."
4 दिन का वक्त दिया था साइको ने पद्मिनी को सौंपने के लिए. पोलीस महकमे में अफ़रा तफ़री मची हुई थी. बहुत कोशिस की गयी साइको को ट्रेस करने की लेकिन कुछ हाँसिल नही हुआ. शालिनी सबसे ज़्यादा प्रेशर में थी. प्रेशर की बात ही थी. उसे हाइर अतॉरिटीस से तरह तरह की बाते सुन-नी पड़ रही थी.
राज शर्मा पद्मिनी को लेकर बहुत चिंतित था. सारा दिन वो पूरी सतर्कता से ऑफीस के बाहर बैठा रहा. शाम के वक्त वो पद्मिनी के साथ उसके घर आ गया. 24 घंटे साथ जो रहना था उसे पद्मिनी के.
"पद्मिनी जी आप किसी बात की चिंता मत करना. मैं हूँ ना यहाँ हर वक्त."
"तुम हो तभी तो चिंता है..." पद्मिनी धीरे से बड़बड़ाई.
"कुछ कहा आपने?"
"कुछ नही...." पद्मिनी कह कर घर में घुस्स गयी. राज शर्मा अपनी जीप में बाहर बैठ गया. चारो कॉन्स्टेबल्स को उसने सतर्क रहने के लिए बोल दिया.
.............................................................
रात के 10 बज रहे थे और एक ट्रेन देहरादून की तरफ बढ़ रही थी. सुबह 7 बजे तक ही पहुँच पाएगी ट्रेन देहरादून.
एक हसीन सी लड़की कोई 21 साल की अपनी सीट पर बैठ कर नॉवेल पढ़ रही थी. नॉवेल का नाम था 'दा टाइम मशीन'. अकेली थी वो एसी-2 के उस बर्त में. खोई थी नॉवेल में पूरी तरह. अचानक ट्रेन रुकी और मामला बिगड़ गया. ढेर सारा सामान लेकर आ गया एक लड़का. कोई 25-26 साल का था दिखने में.
"उफ्फ इतना सारा समान कहा अड्जस्ट होगा. एक बेग मैं छोड़ सकता था. ट्रेन चल पड़ी और वो लड़का समान अड्जस्ट करने में लग गया. बहुत तूफान मचा रखा था उसने बर्त में.
"एक्सक्यूस मी. यहाँ कोई और भी है. यू आर डिसटरबिंग मी."
"आप पे तो सबसे पहले नज़र गयी थी. सॉरी समान ज़्यादा था. हो गया अड्जस्ट अब. प्लीज़ कंटिन्यू वित युवर नॉवेल. बाइ दा वे आइ आम रोहित. रोहित पांडे. देहरादून जा रहा हूँ. क्या आप भी वही जा रही हैं."
"जी हां. अब डिस्टर्ब मत करना. आइ आम रीडिंग."
"ऑफ कोर्स" रोहित हंस दिया. "ह्म्म टाइम मशीन पढ़ रही हैं आप. गुड. एच.जी वेल्स का ये नॉवेल पीछले साल पढ़ा था मैने. बहुत इंट्रेस्टिंग है."
लड़की ने रोहित की बातो का कोई जवाब नही दिया और नॉवेल पढ़ने में व्यस्त हो गयी. "स्टुपिड" उसने मन ही मन कहा.
"शूकर है भाई मोबाइल है. मैं भी छोटी सी भूल पढ़ता हूँ बैठ कर. आप भी पढ़िए हम भी पढ़ते हैं. रोहित बोल कर लड़की के सामने वाली सीट पर बैठ गया.
लड़की ने उत्शुकता से उसकी और देखा और बोली, "आप छोटी सी भूल पढ़ रहे हैं. किस बारे में है ये?"
"जी हां. ये एक लड़की की कहानी है जो की छोटी सी भूल करके फँस जाती है. सिंपल सी स्टोरी है कोई ऐसी वैसी बात नही है इसमे. कॉलेज की एक लड़की एग्ज़ॅम मे ग़लती करके पछताती है. नकल करते पकड़ी जाती है." रोहित झूठी कहानियाँ सुना देता है. अब कैसे बताए कि वो एरॉटिक स्टोरी पढ़ रहा है.
क्रमशः.........................