desiaks
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“मैं जानती हैं राज...अभी वो डिस्टर्ब है। तुम आज रात भर उसे अकेला छोड़ दो, कल सब ठीक हो जाएगा।"- डॉली ने मुझे समझाते हुए कहा।
"डॉली, पता नहीं क्या होगा? शीतल अगर मेरी जिंदगी से चली गई, तो बहुत मुश्किल होगा मेरे लिए रहना; जान हैं वो मेरी यार।"
"राज, तुम बेवजह परेशान हो रहे हो...कोई नहीं जा रहा है तुम्हें छोड़कर; शीतल तुम्हारी है और रहेगी।"
“थॅंक्स डॉली; तुम्हारी बातों से तसल्ली हो रही है।"
“अच्छा ये लो कॉफी पियो।"- डॉली ने कॉफी का गिलास मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहा।
कॉफी का सिप गले से उतर नहीं रहा था। डॉली समझाती जा रही थी और मेरी समझ में उसकी एक बात नहीं आ रही थी। शीतल के लहजे से साफ था कि वो मुझसे अब कभी बात नहीं करेंगी। यह डर मुझे हिलाकर रख दे रहा था। इस डर की वजह से मैं शीतल के बिना जिंदगी की कल्पना भी नहीं कर पा रहा था। बातें करते-करते मैं और डॉली, मेरे घर के नीचे तक आ गए थे। डॉली ने एक बार फिर मुझे उसी लहजे में समझाया और अपने घर के लिए निकल गई। कमरे में पहुंचकर सबसे पहले मैंने मेल चेक किया।
शीतल का रिप्लाई था- “राज, मैं नहीं चाहती हूँ कि मेरी बजह से तुम्हारा परिवार बिखर जाए। मैं चाहती हूँ कि तुम्हारी जिंदगी खूबसूरत बने... और ये सब तब हो सकता है, जब मैं तुम्हारी जिंदगी से चली जाऊँ। तुम्हारे घर वाले तुमसे मेरी शादी के लिए कभी राजी नहीं होंगे और अगर परिवार से अलग होकर तुम मुझसे शादी करोगे, तो जिंदगी खूबसूरत नहीं रहेगी। कोई क्या कहेगा मुझको, कि मैंने एक माँ को एक बेटे से अलग कर दिया। इस कलंक को अपने सिर पर लेकर नहीं जी पाऊँगी मैं। अच्छा यही है कि तुम शीतल को भूल जाओ और अपने पापा की मर्जी से शादी कर लो। राज, एक रिक्वेस्ट है; अब मुझे कोई मेल मत कीजिएगा, में रिप्लाई नहीं करूंगी; कभी कांटेक्ट करने की कोशिश मत करना, बरना मैं खुद को रोक नहीं पाऊँगी। तुमसे दूर रहने के लिए बड़ी मेहनत करनी पड़ेगी मुझे, पर मैं कोशिश करेंगी। इस बात का दुःख हमेशा रहेगा कि राज और शीतल एक नहीं हो पाए।
गुड बाय..टेक केयर।"
शीतल के जबाब को पढ़कर मेरे पैरों से जान ही निकल गई थी। मैं खड़ा नहीं हो पा रहा था। मेल पढ़ते ही मैं बेड पर बैठ गया और जोर-जोर से रोने लगा। कमरे की खिड़कियों को चीरकर मेरी आवाज बाहर तक जा रही थी, लेकिन मैं बेपरवाह होकर रो रहा था... शायद इस दर्द की दवा यही थी। आज न तो कोई मुझे चुप कराने वाला था और न कोई मेरे सिर को अपने कंधे पर रखने वाला। पहले जब भी कभी मैं उदास होता था, तो शीतल किसी बच्चे की तरह मेरा सिर अपनी गोद में रख लेती थीं। शीतल की कमी खल रही थी। मैं अकेला हो चुका था। मैं असहाय महसूस कर रहा था। शीतल को खोने का डर मुझ पर हावी था। मैं बेचारा था; रोने के अलावा कर भी क्या सकता था? खूब रोया और जब रो रोकर आँखें खुश्क हो गई, तो लैपटॉप पर शीतल को जवाब लिखना शुरू किया।
मैंने लिखा
"शीतल, एक छोटी-सी चीज ने सब-कुछ खत्म कर दिया। मुझे पछतावा है कि तुम्हें मम्मी-पापा से मिलवाया ही क्यों? नहीं मिलवाता, तो तुम यूँ अलग तो न होतीं। आज पहली बार बिना तुम्हारे अकेले घर आया हूँ। कैब ले ली थी आने के लिए। जानती हो, कैब में अकेले बैठना कितना मुश्किल हो रहा था। तुम जब भी कार में मेरे साथ बैठी होती थीं न, तोहर अधूरी चीज़ पूरी लगती थी। तुम बिन हर सफर अधूरा है मेरा।
क्या सोच रही हो? चली आओ न! अधूरापन पूरा करना है तुम्हें मेरा। अगर तुम सच में तय कर चुकी हो, तो मैं तुम्हें सच में नहीं रोचूंगा। अगर तुम चाहती हो, तो मैं कभी तुम्हारे सामने भी नहीं आऊँगा और कभी तुमसे बात भी नहीं करूंगा। लेकिन इसका मतलब ये मत समझना कि राज,शीतल को कभी भूल पाएगा। हकीकत में भले ही तुम मेरी नहीं हो पाई, पर मन में हमेशा तुम मेरी रहोगी। हमेशा की तरह मैं खुद से पहले तुम्हारे बारे में सोचूंगा और अपने हर कदम पर तुम्हें अपने साथ महसूस करूंगा। जाओ, जी लो अपनी जिंदगी मेरे आँसू अब तुम्हें नहीं रोकेंगे।
तुम जब नाराज हो जाती थीं, तो कहती थीं कि ये हमारी लास्ट मीटिंग है... ये हमारी आखिरी कॉल है। यही कहती थीं हर बार झगड़ा होने के बाद। लेकिन हम मिलते थे और फिर से बात करते थे। आज भी शायद तुम यही कह रही हो। लेकिन जानती हो, तुम लाख कहो कि ये आखिरी बार है, पर एक हकीकत ये है कि मेरे और तुम्हारे बीच कभी कुछ 'लास्ट' नहीं होगा..तुम हमेशा मेरे खयालों में रहोगी और मुझसे बात करोगी।
और हाँ, आखिरी बार तुमसे कुछ माँगना चाहता हूँ... यूँ कहूँ कि एक दिन माँगना चाहता हूँ: ज्योति की शादी का दिन। ज्योति की शादी में आखिरी बार मैं चंडीगढ़ के दिनों को दोबारा जीना चाहता हूँ तुम्हारे साथ। पूरा दिन और रात में तुम्हारे ही साथ रहूँगा। उसकी शादी की एक-एक रस्म में तुम्हारे साथ देखना चाहता ह...उसकी जयमाला,उसक फेरे और उसकी विदा के समय मैं ज्योति के रूप में तुम्हें और उसके होने वाले पति के रूप में खुद को ही महसूस करना चाहता हूँ। मैं तुम्हारे साथ एक प्लेट में खाना खाना चाहता हूँ एक रसगुल्ले को साथ शेयर करके खाना चाहता हूँ। तुम्हें अपने हाथ से गोलगप्पे और पावभाजी खिलाना चाहता है। वो रात मेरे जीवन की सबसे खूबसूरत रात होगी, जब सुनहरी रोशनी और चाँद की चाँदनी में हम दोनों बैठकर बातें कर रहे होंगे। ___ मैं जानता हूँ, न जाने कितनी बार हम दोनों के आँसू भी निकलेंगे; लेकिन उस दिन माथ में आँसू बहाने का मजा ही कुछ और होगा। उधर, ज्योति की विदाई होगी और इधर मैं तुम्हारी जिंदगी से हमेशा-हमेशा के लिए बिदा ले लूंगा... कुछ खूबसूरत यादों के साथ, उमर भर के लिए। तुम्हें अपना न बना पाने और तुम्हें खोने का मलाल जिंदगी भर रहेगा मुझे। हाँ, कभी अगर मेरी याद आए, तो फोन जरूर करना, मुझे अच्छा लगेगा; चाहे बीस साल बाद ही क्यों नहीं।"
देर रात तक शीतल के मेल का इंतजार करता रहा। सुबह जैसे ही आँख खुली, तो सबसे पहले लैपटॉप उठाया और मेल खोला। शीतल का रिप्लाई था
"ज्योति की शादी में चलने का कोई वादा तो नहीं कर सकती है, पर कोशिश करूंगी... और प्लीज मुझे गलत मत समझना; मैं जो कर रही हूँ, बो तुम्हारी ही भलाई के लिए है। गुड बॉय..टेक केयर।"
शीतल का जवाब पढ़कर मैं बेड पर ही लेटा रहा। एक बार फिर शीतल के साथ बिताए पल किसी फिल्म की तरह आँखों के सामने आ गए। आँसू भी अब कहाँ थमने वाले थे? खुद को सँभालने की कोशिश की और घड़ी की तरफ नजर घुमाई। सुबह के साढ़े आठ बजे थे। ऑफिस जाना था, वो भी अकेले।
आज न शीतल से बात होगी और न मुलाकात... इतना सोचकर ही मैं भीतर तक सिहर गया। कैसे बीतेगा दिन बिना शीतल को देखे और मिले? कैसे रहूँगा मैं ऑफिस में उनसे बात किए बिना? ये सारे सवालमखुद से ही पूछ रहा था।
जवाब में आया कि ऑफिस नही जाना बेहतर है।
ऑफिस में तो न शीतल से मिल पाऊँगा और न रोपाऊँगा; घर पर रहूँगा, तो उन्हें जी भरकर याद कर पाऊँगा। भुवन भैय्या के यहाँ से कॉफी मँगा ली थी... साथ में खाने के लिए बरेड बटर भी।
"डॉली, पता नहीं क्या होगा? शीतल अगर मेरी जिंदगी से चली गई, तो बहुत मुश्किल होगा मेरे लिए रहना; जान हैं वो मेरी यार।"
"राज, तुम बेवजह परेशान हो रहे हो...कोई नहीं जा रहा है तुम्हें छोड़कर; शीतल तुम्हारी है और रहेगी।"
“थॅंक्स डॉली; तुम्हारी बातों से तसल्ली हो रही है।"
“अच्छा ये लो कॉफी पियो।"- डॉली ने कॉफी का गिलास मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहा।
कॉफी का सिप गले से उतर नहीं रहा था। डॉली समझाती जा रही थी और मेरी समझ में उसकी एक बात नहीं आ रही थी। शीतल के लहजे से साफ था कि वो मुझसे अब कभी बात नहीं करेंगी। यह डर मुझे हिलाकर रख दे रहा था। इस डर की वजह से मैं शीतल के बिना जिंदगी की कल्पना भी नहीं कर पा रहा था। बातें करते-करते मैं और डॉली, मेरे घर के नीचे तक आ गए थे। डॉली ने एक बार फिर मुझे उसी लहजे में समझाया और अपने घर के लिए निकल गई। कमरे में पहुंचकर सबसे पहले मैंने मेल चेक किया।
शीतल का रिप्लाई था- “राज, मैं नहीं चाहती हूँ कि मेरी बजह से तुम्हारा परिवार बिखर जाए। मैं चाहती हूँ कि तुम्हारी जिंदगी खूबसूरत बने... और ये सब तब हो सकता है, जब मैं तुम्हारी जिंदगी से चली जाऊँ। तुम्हारे घर वाले तुमसे मेरी शादी के लिए कभी राजी नहीं होंगे और अगर परिवार से अलग होकर तुम मुझसे शादी करोगे, तो जिंदगी खूबसूरत नहीं रहेगी। कोई क्या कहेगा मुझको, कि मैंने एक माँ को एक बेटे से अलग कर दिया। इस कलंक को अपने सिर पर लेकर नहीं जी पाऊँगी मैं। अच्छा यही है कि तुम शीतल को भूल जाओ और अपने पापा की मर्जी से शादी कर लो। राज, एक रिक्वेस्ट है; अब मुझे कोई मेल मत कीजिएगा, में रिप्लाई नहीं करूंगी; कभी कांटेक्ट करने की कोशिश मत करना, बरना मैं खुद को रोक नहीं पाऊँगी। तुमसे दूर रहने के लिए बड़ी मेहनत करनी पड़ेगी मुझे, पर मैं कोशिश करेंगी। इस बात का दुःख हमेशा रहेगा कि राज और शीतल एक नहीं हो पाए।
गुड बाय..टेक केयर।"
शीतल के जबाब को पढ़कर मेरे पैरों से जान ही निकल गई थी। मैं खड़ा नहीं हो पा रहा था। मेल पढ़ते ही मैं बेड पर बैठ गया और जोर-जोर से रोने लगा। कमरे की खिड़कियों को चीरकर मेरी आवाज बाहर तक जा रही थी, लेकिन मैं बेपरवाह होकर रो रहा था... शायद इस दर्द की दवा यही थी। आज न तो कोई मुझे चुप कराने वाला था और न कोई मेरे सिर को अपने कंधे पर रखने वाला। पहले जब भी कभी मैं उदास होता था, तो शीतल किसी बच्चे की तरह मेरा सिर अपनी गोद में रख लेती थीं। शीतल की कमी खल रही थी। मैं अकेला हो चुका था। मैं असहाय महसूस कर रहा था। शीतल को खोने का डर मुझ पर हावी था। मैं बेचारा था; रोने के अलावा कर भी क्या सकता था? खूब रोया और जब रो रोकर आँखें खुश्क हो गई, तो लैपटॉप पर शीतल को जवाब लिखना शुरू किया।
मैंने लिखा
"शीतल, एक छोटी-सी चीज ने सब-कुछ खत्म कर दिया। मुझे पछतावा है कि तुम्हें मम्मी-पापा से मिलवाया ही क्यों? नहीं मिलवाता, तो तुम यूँ अलग तो न होतीं। आज पहली बार बिना तुम्हारे अकेले घर आया हूँ। कैब ले ली थी आने के लिए। जानती हो, कैब में अकेले बैठना कितना मुश्किल हो रहा था। तुम जब भी कार में मेरे साथ बैठी होती थीं न, तोहर अधूरी चीज़ पूरी लगती थी। तुम बिन हर सफर अधूरा है मेरा।
क्या सोच रही हो? चली आओ न! अधूरापन पूरा करना है तुम्हें मेरा। अगर तुम सच में तय कर चुकी हो, तो मैं तुम्हें सच में नहीं रोचूंगा। अगर तुम चाहती हो, तो मैं कभी तुम्हारे सामने भी नहीं आऊँगा और कभी तुमसे बात भी नहीं करूंगा। लेकिन इसका मतलब ये मत समझना कि राज,शीतल को कभी भूल पाएगा। हकीकत में भले ही तुम मेरी नहीं हो पाई, पर मन में हमेशा तुम मेरी रहोगी। हमेशा की तरह मैं खुद से पहले तुम्हारे बारे में सोचूंगा और अपने हर कदम पर तुम्हें अपने साथ महसूस करूंगा। जाओ, जी लो अपनी जिंदगी मेरे आँसू अब तुम्हें नहीं रोकेंगे।
तुम जब नाराज हो जाती थीं, तो कहती थीं कि ये हमारी लास्ट मीटिंग है... ये हमारी आखिरी कॉल है। यही कहती थीं हर बार झगड़ा होने के बाद। लेकिन हम मिलते थे और फिर से बात करते थे। आज भी शायद तुम यही कह रही हो। लेकिन जानती हो, तुम लाख कहो कि ये आखिरी बार है, पर एक हकीकत ये है कि मेरे और तुम्हारे बीच कभी कुछ 'लास्ट' नहीं होगा..तुम हमेशा मेरे खयालों में रहोगी और मुझसे बात करोगी।
और हाँ, आखिरी बार तुमसे कुछ माँगना चाहता हूँ... यूँ कहूँ कि एक दिन माँगना चाहता हूँ: ज्योति की शादी का दिन। ज्योति की शादी में आखिरी बार मैं चंडीगढ़ के दिनों को दोबारा जीना चाहता हूँ तुम्हारे साथ। पूरा दिन और रात में तुम्हारे ही साथ रहूँगा। उसकी शादी की एक-एक रस्म में तुम्हारे साथ देखना चाहता ह...उसकी जयमाला,उसक फेरे और उसकी विदा के समय मैं ज्योति के रूप में तुम्हें और उसके होने वाले पति के रूप में खुद को ही महसूस करना चाहता हूँ। मैं तुम्हारे साथ एक प्लेट में खाना खाना चाहता हूँ एक रसगुल्ले को साथ शेयर करके खाना चाहता हूँ। तुम्हें अपने हाथ से गोलगप्पे और पावभाजी खिलाना चाहता है। वो रात मेरे जीवन की सबसे खूबसूरत रात होगी, जब सुनहरी रोशनी और चाँद की चाँदनी में हम दोनों बैठकर बातें कर रहे होंगे। ___ मैं जानता हूँ, न जाने कितनी बार हम दोनों के आँसू भी निकलेंगे; लेकिन उस दिन माथ में आँसू बहाने का मजा ही कुछ और होगा। उधर, ज्योति की विदाई होगी और इधर मैं तुम्हारी जिंदगी से हमेशा-हमेशा के लिए बिदा ले लूंगा... कुछ खूबसूरत यादों के साथ, उमर भर के लिए। तुम्हें अपना न बना पाने और तुम्हें खोने का मलाल जिंदगी भर रहेगा मुझे। हाँ, कभी अगर मेरी याद आए, तो फोन जरूर करना, मुझे अच्छा लगेगा; चाहे बीस साल बाद ही क्यों नहीं।"
देर रात तक शीतल के मेल का इंतजार करता रहा। सुबह जैसे ही आँख खुली, तो सबसे पहले लैपटॉप उठाया और मेल खोला। शीतल का रिप्लाई था
"ज्योति की शादी में चलने का कोई वादा तो नहीं कर सकती है, पर कोशिश करूंगी... और प्लीज मुझे गलत मत समझना; मैं जो कर रही हूँ, बो तुम्हारी ही भलाई के लिए है। गुड बॉय..टेक केयर।"
शीतल का जवाब पढ़कर मैं बेड पर ही लेटा रहा। एक बार फिर शीतल के साथ बिताए पल किसी फिल्म की तरह आँखों के सामने आ गए। आँसू भी अब कहाँ थमने वाले थे? खुद को सँभालने की कोशिश की और घड़ी की तरफ नजर घुमाई। सुबह के साढ़े आठ बजे थे। ऑफिस जाना था, वो भी अकेले।
आज न शीतल से बात होगी और न मुलाकात... इतना सोचकर ही मैं भीतर तक सिहर गया। कैसे बीतेगा दिन बिना शीतल को देखे और मिले? कैसे रहूँगा मैं ऑफिस में उनसे बात किए बिना? ये सारे सवालमखुद से ही पूछ रहा था।
जवाब में आया कि ऑफिस नही जाना बेहतर है।
ऑफिस में तो न शीतल से मिल पाऊँगा और न रोपाऊँगा; घर पर रहूँगा, तो उन्हें जी भरकर याद कर पाऊँगा। भुवन भैय्या के यहाँ से कॉफी मँगा ली थी... साथ में खाने के लिए बरेड बटर भी।