hotaks444
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खानदानी चुदाई का सिलसिला--11
गतान्क से आगे..............
दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा इस कहानी ग्यारहवाँ पार्ट लेकर हाजिर हूँ
बाबूजी ने उसे पलट के अपने उपर ले लिया और उसके इर्द गिर्द अपनी बाहें डाल दी. '' तू चिंता ना कर और उदास भी मत हो..अब से तेरी खुशियों के दिन शुरू ..बस एक बात का ध्यान रखना कि तू अपने पति को उतना खुश ज़रूर रखना कि कभी वो बाहर मूह ना मारे और ना ही तुझे रोके टोके..बाकी मैं संभाल लूँगा. कल तुझे कुच्छ बातें समझाउँगा और फिर तू मेरे अनुसार चलना और देखना कि तेरी चुदास चूत को मैं कैसे धन्य करता हूँ...'' बाबूजी ने कम्मो को गालों पे चूमा और फिर अपने सीने से लगा लिया.
कम्मो को मोटी मोटी चूचिया बाबूजी का सीने में धँस गई और दोनो बदन जैसे एक दूसरे में समा गए.
कम्मो इटहलाती मतकाती अपने घर को चल पड़ी. उसकी बगल में 2 कीमती सूट थे. उसकी चाल में एक नई रवानगी थी, एक नया उत्साह. उसकी ज़िंदगी अचानक से खूबसूरत दिखने लगी थी. बाबूजी ने जाते जाते उसकी माँग को चूमा था और उसने उनके पैर च्छुए थे. उसे अपने पति से कभी इतना सुख नही मिला था जितना की बाबूजी के लंड से ... क्या हो गया है मुझे...आअज तो मन कर रहा है हवा में उड़ जाउ..ऊओ बबुऊउ...मेरे प्रियतमम...कल तक कैसे इंतेज़ार करूँगी.....????
बाबूजी बिस्तर पे नंगे लेटे हुए कम्मो के ख़यालों में गुम थे. बहुओं की चुदाई में उन्हे मज़ा आता था पर कम्मो ने उनके दिल के किसी कोने में घर कर लिया था. बाबूजी को एक शाम में लगने लगा था कि बिना कम्मो की चूत पाए उन्हे कभी संतुष्टि नही होगी. उनके लंड को कम्मो की चूत से प्यार हो गया था. कम्मो की याद में बाबूजी कब सो गए उन्हे पता ही नही चला.
उधर पिक्निक पे सभी मस्ती में थे. 10 बजे रिज़ॉर्ट पहुँचने के बाद सब अपनी अपनी पत्निओ के साथ सैर पे चल दिए. सखी की मा रिज़ॉर्ट को देखने निकल पड़ी. उसे बहुत खुशी थी कि पिच्छले 5 महीनो से उसके कहे अनुसार सब मर्दों ने अपनी अपनी पत्निओ से संबंध नही बनाए. दरअसल सखी की मा अकेले रहते रहते बोर हो गई थी. उसका बड़ा बेटा और बहू काफ़ी समय से विदेश में बस गए थे. बेटा एक दुकान चलाता था और कमाई लिमिटेड थी. बहू भी काम करती थी. एक बार मुश्किल से सखी की मा वहाँ गई थी और माहौल नापसंद आने पे वापिस आ गई.
तब से बेटा कभी कभी पैसे भेज देता है और 2 - 3 साल में एक बार चक्कर मार जाता है. सखी की शादी पे बेटा, बहू और उनके 2 छ्होटे बच्चे आए थे. बच्चों को दादी से बहुत लगाव हो गया था. बच्चों की ज़िद्द पे उन्हे दादी के पास छोड़ के बेटा और बहू कुच्छ दिन घूमने चले गए. उन दिनो में बेटे को एक दोस्त से पार्ट्नरशिप बिज़्नेस की ऑफर भी मिली. सखी का भाई भी बच्चों की पढ़ाई की वजह से वापिस आना चाहता था और उसने अपने दोस्त की ऑफर पे विचार करना शुरू कर दिया. काम शुरू करने के प्लान बनाए और डिसिशन हुआ कि 1 साल में वो परिवार समेत वापिस आ जाएगा और काम शुरू करेगा. ये बात जब सखी की मा को पता चली तो वो बहुत खुश हुई. और जब सखी के घर से बुलावा आया तो वो और भी खुश हो गई. सखी के जाने के बाद घर सूना हो गया था. 6 महीने अकेले कैसे काटे ये तो वो ही जानती थी. हां सेक्स का आनंद बहुत मिला. कंचन के पति से खूब मज़े मिले. अब और 1 - 2 महीने तक बेटा वापिस आने वाला था सो उसकी खुशी अलग थी.
इन्ही सब बातों को सोचते हुए सखी की मा रिज़ॉर्ट में घूम रही थी कि उसे 35 - 40 की एक औरत नज़र आई और वो कुच्छ लोगों पे चिल्ला रही थी. वो लोग सिर झुकाए बात सुन रहे थे. बीच बीच में वो औरत उन्हे मा बहेन की गालियाँ भी निकाल रही थी. उसकी गालियाँ सुन के सखी की मा थोड़ी अचंभित रह गई. रिज़ॉर्ट में मेहमानो के होते हुए कोई ऐसे गालियाँ कैसे दे सकता है और वो भी एक औरत. सखी की मा वहीं खड़ी सब सुनती रही. बातों से वो औरत रिज़ॉर्ट की मॅनेजर या मालकिन लग रही थी. कुच्छ देर बाद वो सब लोग चले गए और वो औरत गुस्से में रिज़ॉर्ट के रिसेप्षन की तरफ जाने लगी. अचानक उसकी नज़र सखी की मा पे गई और वो रुक गई.
'' जी आप यहाँ पे गेस्ट हैं या किसी से मिलने आई हैं ?'' उसने पुछा.
''जी मैं यहाँ रुकी हुई हूँ. मेरी बेटी और उसका परिवार भी है यहाँ.'' सखी की मा ने कहा.
''ऊवू मांफ कीजिएगा मुझे पता नही था और मैने ध्यान भी नही दिया..नही तो ये सब जो आपने सुना ऐसा नही होता..''
''कोई बात नही ..आप यहाँ की मॅनेजर लगती हैं शायद..''
''जी मैं मॅनेजर नही मालकिन हूँ. दरअसल ये रिज़ॉर्ट मेरे पति और उनके पार्ट्नर का था. 5 महीने पहले दोनो की कार दुर्घटना में मौत हो गई. और ये सब काम का बोझ मुझपे आ गया. औरत हूँ ना तो ये सब नौकर बेवकूफ़ समझते हैं और मेरी मजबूरी का फ़ायदा उठाना चाहते हैं. तभी इन्पे चिल्लाना पड़ता है.''
'' ऑश तो आप भी मेरी तरह अकेली हैं. मैं भी विधवा हूँ.. मैं समझ सकती हूँ आपकी दिक्कत को '' सखी की मा ने कहा.
'' जी शुक्रिया..आप का नाम नही बताया आपने..?'' उस औरत ने पुछा.
'' जी मेरा नाम सरला है ..और आपका..?'' सखी की मा ने पुछा.
'' जी मैं किरण. आप कहीं जा रही थी ..मेरी वजह से रुक गई ..सॉरी ?'' किरण ने कहा.
'' जी बस मैं तो ऐसे ही रिज़ॉर्ट घूम रही थी. बच्चे अलग घूमने निकले हैं तो मैने सोचा कि मैं भी सैर कर लूँ.'' सरला (सखी की मा) ने जवाब दिया.
'' अर्रे तो ठीक है आइए मैं आपको रिज़ॉर्ट घुमा देती हूँ..इसमे मेरा काम भी हो जाएगा...मुझे तो वैसे भी दिन में 2 बार राउंड लेने पड़ते हैं.'' किरण ने कहा.
गतान्क से आगे..............
दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा इस कहानी ग्यारहवाँ पार्ट लेकर हाजिर हूँ
बाबूजी ने उसे पलट के अपने उपर ले लिया और उसके इर्द गिर्द अपनी बाहें डाल दी. '' तू चिंता ना कर और उदास भी मत हो..अब से तेरी खुशियों के दिन शुरू ..बस एक बात का ध्यान रखना कि तू अपने पति को उतना खुश ज़रूर रखना कि कभी वो बाहर मूह ना मारे और ना ही तुझे रोके टोके..बाकी मैं संभाल लूँगा. कल तुझे कुच्छ बातें समझाउँगा और फिर तू मेरे अनुसार चलना और देखना कि तेरी चुदास चूत को मैं कैसे धन्य करता हूँ...'' बाबूजी ने कम्मो को गालों पे चूमा और फिर अपने सीने से लगा लिया.
कम्मो को मोटी मोटी चूचिया बाबूजी का सीने में धँस गई और दोनो बदन जैसे एक दूसरे में समा गए.
कम्मो इटहलाती मतकाती अपने घर को चल पड़ी. उसकी बगल में 2 कीमती सूट थे. उसकी चाल में एक नई रवानगी थी, एक नया उत्साह. उसकी ज़िंदगी अचानक से खूबसूरत दिखने लगी थी. बाबूजी ने जाते जाते उसकी माँग को चूमा था और उसने उनके पैर च्छुए थे. उसे अपने पति से कभी इतना सुख नही मिला था जितना की बाबूजी के लंड से ... क्या हो गया है मुझे...आअज तो मन कर रहा है हवा में उड़ जाउ..ऊओ बबुऊउ...मेरे प्रियतमम...कल तक कैसे इंतेज़ार करूँगी.....????
बाबूजी बिस्तर पे नंगे लेटे हुए कम्मो के ख़यालों में गुम थे. बहुओं की चुदाई में उन्हे मज़ा आता था पर कम्मो ने उनके दिल के किसी कोने में घर कर लिया था. बाबूजी को एक शाम में लगने लगा था कि बिना कम्मो की चूत पाए उन्हे कभी संतुष्टि नही होगी. उनके लंड को कम्मो की चूत से प्यार हो गया था. कम्मो की याद में बाबूजी कब सो गए उन्हे पता ही नही चला.
उधर पिक्निक पे सभी मस्ती में थे. 10 बजे रिज़ॉर्ट पहुँचने के बाद सब अपनी अपनी पत्निओ के साथ सैर पे चल दिए. सखी की मा रिज़ॉर्ट को देखने निकल पड़ी. उसे बहुत खुशी थी कि पिच्छले 5 महीनो से उसके कहे अनुसार सब मर्दों ने अपनी अपनी पत्निओ से संबंध नही बनाए. दरअसल सखी की मा अकेले रहते रहते बोर हो गई थी. उसका बड़ा बेटा और बहू काफ़ी समय से विदेश में बस गए थे. बेटा एक दुकान चलाता था और कमाई लिमिटेड थी. बहू भी काम करती थी. एक बार मुश्किल से सखी की मा वहाँ गई थी और माहौल नापसंद आने पे वापिस आ गई.
तब से बेटा कभी कभी पैसे भेज देता है और 2 - 3 साल में एक बार चक्कर मार जाता है. सखी की शादी पे बेटा, बहू और उनके 2 छ्होटे बच्चे आए थे. बच्चों को दादी से बहुत लगाव हो गया था. बच्चों की ज़िद्द पे उन्हे दादी के पास छोड़ के बेटा और बहू कुच्छ दिन घूमने चले गए. उन दिनो में बेटे को एक दोस्त से पार्ट्नरशिप बिज़्नेस की ऑफर भी मिली. सखी का भाई भी बच्चों की पढ़ाई की वजह से वापिस आना चाहता था और उसने अपने दोस्त की ऑफर पे विचार करना शुरू कर दिया. काम शुरू करने के प्लान बनाए और डिसिशन हुआ कि 1 साल में वो परिवार समेत वापिस आ जाएगा और काम शुरू करेगा. ये बात जब सखी की मा को पता चली तो वो बहुत खुश हुई. और जब सखी के घर से बुलावा आया तो वो और भी खुश हो गई. सखी के जाने के बाद घर सूना हो गया था. 6 महीने अकेले कैसे काटे ये तो वो ही जानती थी. हां सेक्स का आनंद बहुत मिला. कंचन के पति से खूब मज़े मिले. अब और 1 - 2 महीने तक बेटा वापिस आने वाला था सो उसकी खुशी अलग थी.
इन्ही सब बातों को सोचते हुए सखी की मा रिज़ॉर्ट में घूम रही थी कि उसे 35 - 40 की एक औरत नज़र आई और वो कुच्छ लोगों पे चिल्ला रही थी. वो लोग सिर झुकाए बात सुन रहे थे. बीच बीच में वो औरत उन्हे मा बहेन की गालियाँ भी निकाल रही थी. उसकी गालियाँ सुन के सखी की मा थोड़ी अचंभित रह गई. रिज़ॉर्ट में मेहमानो के होते हुए कोई ऐसे गालियाँ कैसे दे सकता है और वो भी एक औरत. सखी की मा वहीं खड़ी सब सुनती रही. बातों से वो औरत रिज़ॉर्ट की मॅनेजर या मालकिन लग रही थी. कुच्छ देर बाद वो सब लोग चले गए और वो औरत गुस्से में रिज़ॉर्ट के रिसेप्षन की तरफ जाने लगी. अचानक उसकी नज़र सखी की मा पे गई और वो रुक गई.
'' जी आप यहाँ पे गेस्ट हैं या किसी से मिलने आई हैं ?'' उसने पुछा.
''जी मैं यहाँ रुकी हुई हूँ. मेरी बेटी और उसका परिवार भी है यहाँ.'' सखी की मा ने कहा.
''ऊवू मांफ कीजिएगा मुझे पता नही था और मैने ध्यान भी नही दिया..नही तो ये सब जो आपने सुना ऐसा नही होता..''
''कोई बात नही ..आप यहाँ की मॅनेजर लगती हैं शायद..''
''जी मैं मॅनेजर नही मालकिन हूँ. दरअसल ये रिज़ॉर्ट मेरे पति और उनके पार्ट्नर का था. 5 महीने पहले दोनो की कार दुर्घटना में मौत हो गई. और ये सब काम का बोझ मुझपे आ गया. औरत हूँ ना तो ये सब नौकर बेवकूफ़ समझते हैं और मेरी मजबूरी का फ़ायदा उठाना चाहते हैं. तभी इन्पे चिल्लाना पड़ता है.''
'' ऑश तो आप भी मेरी तरह अकेली हैं. मैं भी विधवा हूँ.. मैं समझ सकती हूँ आपकी दिक्कत को '' सखी की मा ने कहा.
'' जी शुक्रिया..आप का नाम नही बताया आपने..?'' उस औरत ने पुछा.
'' जी मेरा नाम सरला है ..और आपका..?'' सखी की मा ने पुछा.
'' जी मैं किरण. आप कहीं जा रही थी ..मेरी वजह से रुक गई ..सॉरी ?'' किरण ने कहा.
'' जी बस मैं तो ऐसे ही रिज़ॉर्ट घूम रही थी. बच्चे अलग घूमने निकले हैं तो मैने सोचा कि मैं भी सैर कर लूँ.'' सरला (सखी की मा) ने जवाब दिया.
'' अर्रे तो ठीक है आइए मैं आपको रिज़ॉर्ट घुमा देती हूँ..इसमे मेरा काम भी हो जाएगा...मुझे तो वैसे भी दिन में 2 बार राउंड लेने पड़ते हैं.'' किरण ने कहा.