Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला - Page 4 - SexBaba
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Rishton Mai Chudai खानदानी चुदाई का सिलसिला

खानदानी चुदाई का सिलसिला--11

गतान्क से आगे..............

दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा इस कहानी ग्यारहवाँ पार्ट लेकर हाजिर हूँ
बाबूजी ने उसे पलट के अपने उपर ले लिया और उसके इर्द गिर्द अपनी बाहें डाल दी. '' तू चिंता ना कर और उदास भी मत हो..अब से तेरी खुशियों के दिन शुरू ..बस एक बात का ध्यान रखना कि तू अपने पति को उतना खुश ज़रूर रखना कि कभी वो बाहर मूह ना मारे और ना ही तुझे रोके टोके..बाकी मैं संभाल लूँगा. कल तुझे कुच्छ बातें समझाउँगा और फिर तू मेरे अनुसार चलना और देखना कि तेरी चुदास चूत को मैं कैसे धन्य करता हूँ...'' बाबूजी ने कम्मो को गालों पे चूमा और फिर अपने सीने से लगा लिया.

कम्मो को मोटी मोटी चूचिया बाबूजी का सीने में धँस गई और दोनो बदन जैसे एक दूसरे में समा गए.

कम्मो इटहलाती मतकाती अपने घर को चल पड़ी. उसकी बगल में 2 कीमती सूट थे. उसकी चाल में एक नई रवानगी थी, एक नया उत्साह. उसकी ज़िंदगी अचानक से खूबसूरत दिखने लगी थी. बाबूजी ने जाते जाते उसकी माँग को चूमा था और उसने उनके पैर च्छुए थे. उसे अपने पति से कभी इतना सुख नही मिला था जितना की बाबूजी के लंड से ... क्या हो गया है मुझे...आअज तो मन कर रहा है हवा में उड़ जाउ..ऊओ बबुऊउ...मेरे प्रियतमम...कल तक कैसे इंतेज़ार करूँगी.....????

बाबूजी बिस्तर पे नंगे लेटे हुए कम्मो के ख़यालों में गुम थे. बहुओं की चुदाई में उन्हे मज़ा आता था पर कम्मो ने उनके दिल के किसी कोने में घर कर लिया था. बाबूजी को एक शाम में लगने लगा था कि बिना कम्मो की चूत पाए उन्हे कभी संतुष्टि नही होगी. उनके लंड को कम्मो की चूत से प्यार हो गया था. कम्मो की याद में बाबूजी कब सो गए उन्हे पता ही नही चला.

उधर पिक्निक पे सभी मस्ती में थे. 10 बजे रिज़ॉर्ट पहुँचने के बाद सब अपनी अपनी पत्निओ के साथ सैर पे चल दिए. सखी की मा रिज़ॉर्ट को देखने निकल पड़ी. उसे बहुत खुशी थी कि पिच्छले 5 महीनो से उसके कहे अनुसार सब मर्दों ने अपनी अपनी पत्निओ से संबंध नही बनाए. दरअसल सखी की मा अकेले रहते रहते बोर हो गई थी. उसका बड़ा बेटा और बहू काफ़ी समय से विदेश में बस गए थे. बेटा एक दुकान चलाता था और कमाई लिमिटेड थी. बहू भी काम करती थी. एक बार मुश्किल से सखी की मा वहाँ गई थी और माहौल नापसंद आने पे वापिस आ गई.


तब से बेटा कभी कभी पैसे भेज देता है और 2 - 3 साल में एक बार चक्कर मार जाता है. सखी की शादी पे बेटा, बहू और उनके 2 छ्होटे बच्चे आए थे. बच्चों को दादी से बहुत लगाव हो गया था. बच्चों की ज़िद्द पे उन्हे दादी के पास छोड़ के बेटा और बहू कुच्छ दिन घूमने चले गए. उन दिनो में बेटे को एक दोस्त से पार्ट्नरशिप बिज़्नेस की ऑफर भी मिली. सखी का भाई भी बच्चों की पढ़ाई की वजह से वापिस आना चाहता था और उसने अपने दोस्त की ऑफर पे विचार करना शुरू कर दिया. काम शुरू करने के प्लान बनाए और डिसिशन हुआ कि 1 साल में वो परिवार समेत वापिस आ जाएगा और काम शुरू करेगा. ये बात जब सखी की मा को पता चली तो वो बहुत खुश हुई. और जब सखी के घर से बुलावा आया तो वो और भी खुश हो गई. सखी के जाने के बाद घर सूना हो गया था. 6 महीने अकेले कैसे काटे ये तो वो ही जानती थी. हां सेक्स का आनंद बहुत मिला. कंचन के पति से खूब मज़े मिले. अब और 1 - 2 महीने तक बेटा वापिस आने वाला था सो उसकी खुशी अलग थी.


इन्ही सब बातों को सोचते हुए सखी की मा रिज़ॉर्ट में घूम रही थी कि उसे 35 - 40 की एक औरत नज़र आई और वो कुच्छ लोगों पे चिल्ला रही थी. वो लोग सिर झुकाए बात सुन रहे थे. बीच बीच में वो औरत उन्हे मा बहेन की गालियाँ भी निकाल रही थी. उसकी गालियाँ सुन के सखी की मा थोड़ी अचंभित रह गई. रिज़ॉर्ट में मेहमानो के होते हुए कोई ऐसे गालियाँ कैसे दे सकता है और वो भी एक औरत. सखी की मा वहीं खड़ी सब सुनती रही. बातों से वो औरत रिज़ॉर्ट की मॅनेजर या मालकिन लग रही थी. कुच्छ देर बाद वो सब लोग चले गए और वो औरत गुस्से में रिज़ॉर्ट के रिसेप्षन की तरफ जाने लगी. अचानक उसकी नज़र सखी की मा पे गई और वो रुक गई.


'' जी आप यहाँ पे गेस्ट हैं या किसी से मिलने आई हैं ?'' उसने पुछा.


''जी मैं यहाँ रुकी हुई हूँ. मेरी बेटी और उसका परिवार भी है यहाँ.'' सखी की मा ने कहा.


''ऊवू मांफ कीजिएगा मुझे पता नही था और मैने ध्यान भी नही दिया..नही तो ये सब जो आपने सुना ऐसा नही होता..''


''कोई बात नही ..आप यहाँ की मॅनेजर लगती हैं शायद..''


''जी मैं मॅनेजर नही मालकिन हूँ. दरअसल ये रिज़ॉर्ट मेरे पति और उनके पार्ट्नर का था. 5 महीने पहले दोनो की कार दुर्घटना में मौत हो गई. और ये सब काम का बोझ मुझपे आ गया. औरत हूँ ना तो ये सब नौकर बेवकूफ़ समझते हैं और मेरी मजबूरी का फ़ायदा उठाना चाहते हैं. तभी इन्पे चिल्लाना पड़ता है.''


'' ऑश तो आप भी मेरी तरह अकेली हैं. मैं भी विधवा हूँ.. मैं समझ सकती हूँ आपकी दिक्कत को '' सखी की मा ने कहा.


'' जी शुक्रिया..आप का नाम नही बताया आपने..?'' उस औरत ने पुछा.


'' जी मेरा नाम सरला है ..और आपका..?'' सखी की मा ने पुछा.


'' जी मैं किरण. आप कहीं जा रही थी ..मेरी वजह से रुक गई ..सॉरी ?'' किरण ने कहा.


'' जी बस मैं तो ऐसे ही रिज़ॉर्ट घूम रही थी. बच्चे अलग घूमने निकले हैं तो मैने सोचा कि मैं भी सैर कर लूँ.'' सरला (सखी की मा) ने जवाब दिया.


'' अर्रे तो ठीक है आइए मैं आपको रिज़ॉर्ट घुमा देती हूँ..इसमे मेरा काम भी हो जाएगा...मुझे तो वैसे भी दिन में 2 बार राउंड लेने पड़ते हैं.'' किरण ने कहा.
 
किरण और सरला साथ साथ रिज़ॉर्ट घूमने चली गई. रिज़ॉर्ट का इलाक़ा करीब 10 एकर ज़मीन में था. 30 हट्स बनी हुई थी जिनमे कुच्छ सिंगल कुच्छ डबल रूम वाली थी. एक जगह रेस्टोरेंट और पब बना हुआ था. पब में एक डिस्को भी था. किरण ने सरला को बताया कि रिज़ॉर्ट के साथ करीब 50 एकर ज़मीन भी उसके पति की थी. उस ज़मीन पे जंगल और छ्होटी सी एक पहाड़ी थी. उस एरिया को अभी तक उन्होने डेवेलप नही किया था. सरला ये सब देख के बहुत इंप्रेस हुई. बातें करते करते दोनो पब में चली गई और किरण ने वहाँ बियर का ऑर्डर दिया. सरला को दूसरा झटका लगा. उसने 2 बार छुप के कंचन और उसके पति के साथ शराब पी थी. पर किरण का बिंदास अंदाज़ देख के वो सर्प्राइज़्ड थी. सरला ने अपने लिए नींबू पानी मँगवाया.


''किरण एक बात पुच्छू बुरा तो नही मनोगी ..?''


''जी पुछिये.''


''तुम्हारी उमर कितनी है..?''


''जी मेरी उमर 38 की है '' किरण ने जवाब दिया.


''मुझे लगता है तुम्हे दोबारा शादी कर लेनी चाहिए ..अपने लिए और अपने बच्चों के लिए अगर हैं तो'' सरला बोली.


''जी शायद आप ठीक कह रही हैं..अपने लिए कर लेनी चाहिए..बच्चे तो हैं नही और ना ही होंगे..''


''क्यों होंगे क्यो नही कोई दिक्कत है क्या ?'' सरला ने पुच्छा.


'' जी हां .. दरअसल मुझे मेडिकल प्राब्लम है..मेरे हार्ट को लेके. जब बच्चा करने की सोची तो डॉक्टर ने सलाह दी की मत करो. जान का ख़तरा हो सकता है. तब मैने सोचा की कर लेती हूँ देखा जाएगा जो होगा. पर मेरे पति नही माने. उन्होने ज़िद्द करके मेरी नसबंदी करवा दी, मुझे बुरा तो बहुत लगा पर अपने पति के लए मान गई. वो मुझे बहुत प्यार करते थे..हमारी लोवे मॅरेज थी'' किरण बियर का घूँट लेते हुए थोड़ी उदास हो गई.


''ऑश..पर तुम अडॉप्ट कर सकती थी..पैसा वागरह तो सब है तुम्हारे पास..'' सरला ने कहा.


''जी क़ानूनी तौर पे मेरे जेठ की लड़की को मैने अपनी वारिस बनाया है...वो अभी कॉलेज में है ...मुझे मा कहती तो नही पर प्यार बहुत करती है.. बाकी ये सब है जो आप देख रही हैं. इसमे इतना बिज़ी रहती हूँ कि पुछो मत ..और उपर से ये हरामी साले ..मुझे चूतिया बनाने की कोशिश में लगे रहते हैं..'' किरण थोड़े गुस्से में आ गई.


''अर्रे किरण ये मर्द जात है ही ऐसी अगर कोई प्यार भी करता है तो मतलब से..खैर दुनियादारी है सो निभानी पड़ेगी... वैसे मेरी एक सलाह है तुम किसी को अपने साथ यहाँ पार्ट्नर या मदद के लिए रख लो..आख़िर एक से दो भले..काम आसान हो जाएगा.''


'जी सोचती तो हूँ कि अपनी भतीजी को कॉलेज के बाद बुला लूँगी पर अभी 3 साल हैं उसके. तब तक पता नही कैसे ना कैसे मॅनेज करूँगी. अच्छे लोग मिलते भी कहाँ हैं. और वैसे भी ये जगह काफ़ी दूर है शहेर से. कोई यहाँ रुकना पसंद नही करता..'' किरण बोली.


''भाई मुझे तो ये जगह पसंद आई...शांति है..अच्छी हवा पानी सब है और जो आएगा वो काम में बिज़ी रहेगा..'' सरला ने कहा.


'' सरला जी बुरा ना माने तो एक बात कहूँ...क्या आप यहाँ आना चाहेंगी..मेरी मदद के लिए..मैं आपको सॅलरी दूँगी और रहने की जगह. किचन हम लोग शेर कर लेंगे. आप भी अकेली हैं और काफ़ी सुलझी और संभ्रांत औरत हैं. मुझे सहारा हो जाएगा..'' किरण ने अचानक से प्रस्ताव रखा.


उसकी बात सुन के सरला चौंक गई. पर फिर अपने को संभालते हुए बोली. उसने सखी और उसके परिवार के बारे में बताया. अपने बेटे के फ्यूचर प्लॅन्स के बारे में. ये सब के बीच वो किरण की ऑफर कैसे ले सकती थी. पर उसने प्रॉमिस किया की वो किसी अच्छे आदमी या औरत को तलाश करेगी और किरण के पास भेजेगी.


ये सब बातें करते हुए लंच का समय हो गया था और किरण उसे रेस्टोरेंट में ले आई. सरला के लिए उसने सॉफ्ट ड्रिंक मँगवाया. सरला टेबल पे बैठी किरण को देख रही थी. किरण एक अमीर घर की औरत थी ये उसके कपड़ों से पता चलता था. बदन पे कसा हुआ सूट. घथीला शरीर. गोरा रंग. तीखे नैन नक्श. बस बदन पे कहीं कहीं एक्सट्रा वेट था. पर ओवरॉल वो अच्छी दिखती थी. उसकी कद काठी सरला से मिलती जुलती थी. फरक सिर्फ़ इतना था कि सरला की उमर की वजह से उसकी बॉडी का कसाव थोड़े कम हो गया था. दोनो को अगर साथ खड़ा करे तो बड़ी और छ्होटी बहेन लगेंगी. उसको देखते हुए सरला को उसपे तरस आ गया. इतनी छ्होटी एज में विधवा होना. पर फिर वो अपने बारे में सोचने लगी कि वो भी काफ़ी जल्दी अकेली हो गई थी. सोचते सोचते सरला को अपने पति की याद आने लगी और फिर पति के साथ गुज़ारी रंग रलियाँ. ये सोचते हुए उसके मन में चुदाई की इच्छा जागृत हो गई. पर उसके लिए उसे वेट करना था. बाबूजी का लंड मिलने में अभी वक़्त था. जब से वो आई थी बाबूजी ने उसे चोदा नही था. अभी तक घर में उसे बाबूजी के साथ अकेले रहने का मौका नही मिला था.
 
इतने में सखी और बाकी सब भी रेस्टोरेंट में आ गए. सरला ने किरण से सबकी इंट्रोडक्षन करवाई. सरला ने बड़े अच्छे से सबको खाने के लए आमंत्रित किया. कुच्छ देर बाद कुच्छ और गेस्ट भी आ गए. रिज़ॉर्ट में उस दिन करीब 8 फॅमिलीस और 2 - 3 नए शादीशुदा जोड़े थे. किरण काम में बिज़ी हो गई और सरला अपने परिवार के साथ. 3 बजे के करीब खाना ख़तम करके सब सुस्ताने चले गए. रिज़ॉर्ट में उन्होने 2 डबल रूम के कॉटेज बुक करवाए थे. सरला के कहे अनुसार एक कॉटेज में सब मर्द थे और एक में सब औरतें. तीनो भाई बिना चूत के 4 महीने गुज़ार चुके थे. रिज़ॉर्ट में बाकी गेस्ट्स को देख के उनमे सेक्स की इच्छा जागृत हो रही थी.


दोपहर को करीब 2 घंटा सोने के बाद सब चाइ के लिए लॉन में आ गए. गप्पें मारते हुए चाइ पीते हुए समय कैसे निकल गया पता ही नही चला. करीब 7 बजे सब नहाने चले गए. तैयार होके सब 8 बजे पब में पहुँच गए. 3नो भाईओं ने अपने लिए ड्रिंक्स ऑर्डर किए. सरला और 3नो बहुओं ने सॉफ्ट ड्रिंक्स लिए. कुच्छ देर में सबने खाना ऑर्डर किया और ड्रिंक्स लेते हुए खाना भी फिनिश हो गया. इस समय तक पब में सब फॅमिलीस आ चुकी थी और एक अच्छा माहौल बना हुआ था. इतने में किरण वहाँ आई और सबसे मिली. उसने एक हल्के रंग की साड़ी पहनी हुई थी जो कि कमर से नीचे बँधी हुई थी. उसकी नाभि सॉफ सॉफ दिख रही थी. ब्लाउस भी स्लीवलेशस था. उसने सरला और उसके परिवार से कुच्छ देर बात की और फिर अपनी ड्रिंक लेके पब का काम देखने लगी. डीजे को कह के उसने एक तदकता फड़कता गाना लगवाया और वहाँ बैठे लोगों को एक एक करके डॅन्स के लिए बुलाने लगी. थोरी ही देर में तकरीबन सभी लोग स्टेज पे पहुँच गए. सरला, सखी और संजय टेबल पे बैठे थे. सखी को दिन में ज़ियादा सैर की वजह से पीठ में दर्द था. इसलिए वो नही जाना चाहती थी. उसके चक्कर में संजय भी नही जा पा रहा था. संजय का 5वाँ पेग चल रहा था जब किरण उन लोगों के पास आई.


''अर्रे सरला जी आप सब यहाँ क्या कर रहे हो..चलिए स्टेज पे थोड़ा डॅन्स कर लीजिए.'' किरण ने कहा.


'' अर्रे नही किरण ..मेरी बेटी की पीठ में दर्द है तो इसलिए ..ये नही कर पाएगी और मैं इसके साथ ही रहूं तो अच्छा है.''


''अच्छा तो आप अपने दामाद को तो भेजिए.. आप तो चलिए दामाद जी..''किरण को खुद भी थोड़ा सुरूर था और उसने संजय को छेड़ते हुए कहा.


''जी मैं आपका दामाद नही हूँ..'' संजय एंजाय ना कर पाने की वजह से थोड़े गुस्से में था.


''अर्रे ये मेरी सहेली हैं और आप इनके दामाद हैं तो उस नाते आप मेरे भी दामाद हुए...गुस्सा क्यों करते हैं..मैं मज़ाक कर रही थी..आप चलिए एंजाय कीजिए ये बैठी हैं सखी के साथ''


''हां संजय तुम जाओ मैं बैठी हूँ..तुम्हे तो डॅन्स का शौक है..जाओ ना..'' सखी ने कहा.

''तुम्हे पता है मैं अकेले डॅन्स नही करता..मुझे पार्ट्नर चाहिए..'' संजय ने उसे घूरते हुए कहा.


''तो चलो आप मेरे साथ डॅन्स करो...मैने भी बहुत दिन से डॅन्स नही किया है..चलिए..अर्रे सखी को क्या देख रहे हैं...मैं इसकी मा की सहेली हूँ..इसकी मा जैसी ..चलिए उठिए ..ये मेरा ऑर्डर है..'' किरण ने खिलखिलाते हुए संजय का हाथ पकड़ा और उसे डॅन्स फ्लोर पे ले गई.

क्रमशः....................................................
 
खानदानी चुदाई का सिलसिला--12 

गतान्क से आगे..............

दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा इस कहानी बारहवां पार्ट लेकर हाजिर हूँ

कुच्छ ही देर में संजय मूड में आ गया. अपने कॉलेज का डॅन्स चॅंपियन अपनी मूव्स दिखाने लगा. देखते ही देखते स्टेज के आस पास लोगों ने घेरा बना लिया और संजय और किरण की जोड़ी को जगह दे दी. उस समय चान्स पे डॅन्स करले गाना चल रहा था और संजय ने किरण को अनुष्का सहर्मा की तरह नचाना शुरू कर दिया. उसकी हर मूव गाने की बीट से मिल रही थी. किरण उसकी बाहों में झूल रही थी और हँसे जा रही थी. सब लोग तालियाँ बजा बजा के उसे उत्साहित कर रहे थे. इसी तरह से एक और गाने पे दोनो ने एक साथ डॅन्स किया. किरण भी अच्छी डॅन्सर थी और हर तरीके से उसने संजय का साथ दिया. डॅन्स करते हुए संजय काफ़ी अलग अलग जगह किरण को छ्छू रहा था. किरण को उसके टच से काफ़ी सुखद एहसास हो रहा था. उसके मन में भी पुरुष के स्पर्श की इच्छा जागृत हो रही थी. उसकी पीठ, कमर और बाजुओं पे जब संजय का हाथ लगता तो उसका रोम रोम खिल उठता. इतने में डीजे ने एक स्लो रोमॅंटिक सॉंग लगा दिया और सब लोग अपने अपने पार्ट्नर के साथ क्लोज़ डॅन्स करने लगे.


किरण संजय के कंधों के लेवेल तक आ रही थी. उपर देखते हुए उसने संजय की आँखों में झाँका. आँखों आँखों में बहुत सी बातें दोनो एक दूसरे से कह गए. करीब 20 सेकेंड तक दोनो एक दूसरे को देखते रहे और इसी दौरान उनके जिस्म भी काफ़ी करीब आ गए. संजय का लंड उसकी पॅंट में हलचल करने लगा था. उस एहसास ने उसको जगाया और उसने सखी की तरफ देखा. सखी टेबल पे सिर रखे सोई हुई थी और सरला उसके सिर पे हाथ फेर रही थी. सरला की नज़रें किरण और संजय पे थी. अपनी सास को देखते हुए संजय सकपका गया. उसने किरण से एक्सक्यूस लिया और टेबल की तरफ गया. किरण थोड़ी मायूस हुई पर फिर अपने को संभालते हुए वापिस काम में लग गई.


संजय टेबल पे पहुँचा तो सखी ने उससे कहा कि वो रूम में जाना चाहती है. सरला, सखी और संजय रूम की तरफ चल दिए. सरला संजय को गौर से देख रही थी. उसको यकीन हो गया था कि किरण संजय पे लट्तू हो गई है. संजय भी आख़िर एक मर्द था और 4 महीने से अपनी पत्नी से वंचित था. आने वाले 8 - 9 महीने उसे स्त्री सुख से वंचित रहना था. इससे पहले कि बात किसी ग़लत दिशा में चली जाए सरला ने एक डिसिशन लिया. संजय और सखी को कमरे में छोड़ के सरला वापिस पब चली गई. किरण को ढूँढ के उसने किरण से कुच्छ बात कही. उसकी बात सुन के किरण दंग रह गई. करीब 15 मिनिट तक दोनो में बाते और बहस होती रही और उसके बाद सरला वहाँ से चली गई. सरला ने रूम में पहुँच के संजय को वापिस पब जाके सरला का पर्स लाने को कहा जो वहाँ छ्छूट गया था. संजय उत्साहित मन से वापिस चल दिया और सरला उसकी चाल में आई रवानगी देख के मुस्कुरा दी.

जब तक संजय पब में पहुँचा तब तक उसके दोनो बड़े भाई और भाभियाँ वहाँ से जाने के लए निकल रहे थे. मिन्नी और राखी भी थक चुकी थी. राजू और सुजीत ने संजय से पुछा कि वो कहाँ जा रहा है. संजय ने पर्स वाली बात बताई. ये कह के वो लोग रूम्स की तरफ चल दिए और संजय पब की तरफ. पब में अब भीड़ थोड़ी कम थी पर लोग अभी भी नाच रहे थे. यंग कपल्स और कुछ मिड्ल एज कपल्स स्टेज पे ''छमॅक छल्लो'' पे डॅन्स कर रहे थे. संजय को बहुत ज़ोर से पेशाब लगा था तो वो पहले टाय्लेट गया. कहते हैं जब कुच्छ होना होता है तो किस्मत भी इशारे करती है. जेंट्स टाय्लेट के गेट के पास एक कोने में एक जवान जोड़ा मस्ती में लगा हुआ था. लड़की का एक मम्मा शर्ट के बाहर लटका हुआ था और उसका ब्फ या हज़्बेंड उसको भींच भींच के चूस रहा था. लड़की पूरे नशे में थी और उसको संजय के वहाँ होने से कोई फरक नही पड़ा. संजय उसको कुच्छ सेकेंड देखता रहा और फटाफट टाय्लेट में गया. पेशाब करते करते उसका लंड पूरा खड़ा हो गया. 11 इंच के लंड को संभालना भी दिक्कत वाला काम था. खैर जैसे तैसे संजय ने उसे सुलाया और वापिस निकलने लगा. बाहर निकलते ही संजय का नज़ारा देख के होश उड़ गए. लड़की का मम्मा तो बाहर था ही साथ में उसकी पॅंटी पैरों में गिरी पड़ी थी और लड़का उसकी चूत की रगदाई कर रहा था. लड़की के चेहरे पे सेक्स की गर्मी थी और बहुत मस्त भाव थे. लड़के ने उसे दीवार के साथ चिपकाया हुआ था और उसकी एक टाँग अपने हाथ में पकड़ी हुई थी, दूसरे हाथ से उसकी स्कर्ट में फिंगरिंग कर रहा था. इस बार लड़की ने संजय को देखा और अपने मूह में उंगली डाल के उसे चूसा.

इशारा सॉफ था पर संजय को अभी काफ़ी होश था. सब तरफ नज़र दौड़ाते हुए उसने आगे बढ़ के लड़की के मम्मे पे हमला बोल दिया. मम्मा मीडियम साइज़ का था और बड़ी आसानी से संजय के मूह में समा गया. पूरे मम्मे को मूह में रखते हुए संजय ने लड़की का हाथ पकड़ के अपने लंड पे रखवाया. पहले से आधा तना लंड अब पूरा तन गया और लड़की के मूह से एक मोन निकल आई. शायद ये लड़की कोई प्रोफेशनल थी और शायद इसी लिए उसके पार्ट्नर को भी कोई फरक नही पड़ रहा था कि उसका माल कोई और भी लूट रहा है. इतने में कन्खिओ से देखते हुए संजय की नज़र किरण पे पड़ी. वो हॉल में किसी को ढूँढ रही थी. लड़की के मम्मे को एक आख़िरी चूम्मा देके संजय किरण की तरफ बढ़ा. अचानक उसे कुच्छ सूझा और बार पे जाके उसने 2 लार्ज विस्की के ऑर्डर किए. एक कोने में खड़े होके वो किरण को देखता रहा. किरण काफ़ी परेशान और उत्तेजित लग रही थी जैसे किसी को भीड़ में ढूँढ रही हो. जिस तरीके से वो गेस्ट्स की भीड़ को देख रही थी उससे संजय को अंदाज़ा हो गया कि वो किसी नौकर या एंप्लायी को नही बल्कि किसी गेस्ट को ही ढूँढ रही है. 5 मिनिट में 2 लार्ज विस्की पीने के बाद संजय पिछे से किरण की तरफ बढ़ा. किरण बार के साथ बने स्टोररूम में जा रही थी और अपने आप से बड़बड़ाये जा रही थी. स्टोररूम खुला था और किरण उसमे एंटर होते ही एक टेबल की तरफ बड़ी. उसपे सरला का पर्स पड़ा था. संजय ने मौका देख के स्टोर रूम में एंट्री ली और दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया. उसने ध्यान रखा कि दरवाज़े को अभी कुण्डी ना लगाए.
 
''लगता है कुच्छ बहुत कीमती था जो खो गया है...काफ़ी परेशान दिख रही हैं आप...'' 1 फुट की दूरी पे किरण के पिछे खड़े खड़े संजय ने कहा. उसकी 6 फिट की हाइट से किरण काफ़ी छ्होटी दिख रही थी. अब संजय पे दारू का सुरूर भी हो गया था.

''ऊूउउइ माआ...ऊहह गाआवद्ड़...तुमने तो मुझे डरा ही दिया....ऊओ माआ..'' किरण चौंक के मूडी और उसके मूह से हल्की सी चीख निकल गई.

''ह्म्‍म्म पहले जिसे ढूँढ रही थी ..और जब वो सामने है तो डर रही हो... बात कुच्छ जमी नही..'' संजय मुस्कुराता हुआ बोला.

'' मैं क्या ढूँढ रही थी और क्या मतलब है तुम्हारा ..सामने तो तुम हो...मैं क्या तुम्हे ढूँढ रही थी ??'' किरण ने गुस्से और अचंभित होने के भाव दिखाए.

'' पिच्छले 10 मीं में जिस हिसाब से आपने सब लोगों पे नज़रे घुमाई और फिर जिस तरह से बड़बड़ाते हुए आप यहाँ पे आई ..ये सब ...क्या है...'' संजय अब थोड़ा कन्फ्यूज़्ड सा था. उससे पहले लगा था कि किरण उसपे लट्तू हुई है पर अब शायद बात कुच्छ और ही ना हो.

'' मैं तुम्हे नही ढूँढ रही थी...मैं सरला जी को ढूँढ रही थी..वो अभी थोड़ी देर पहले आई थी और उनका पर्स यहाँ रह गया था..मुझे लगा कि वो टाय्लेट गई होंगी ..पर जब वो नही आई तो मैं उन्हे देखने लगी...तुम क्या अपने को बहुत वीआइपी समझते हो जो मैं तुम्हे ढूंढूंगी.'' किरण का गुस्सा देखते ही बनता था.

अब बारी संजय के सकपकाने की थी. वो घबरा गया कि कहीं जोश में आके उसने कुच्छ ग़लत तो नही कह दिया. बात सखी तक पहुँचेगी तो क्या सोचेगी. भाभी को चोद्ना उनसे मज़े लेना घर की परंपरा का हिस्सा था, बाबूजी का आदेश था...पर पराई स्त्री पे डोरे डालना शायद ये किसी को भी मंज़ूर ना होगा.

'' जी मैं तो मज़ाक कर रहा था..आक्च्युयली मुझे सासू मा ने ही भेजा था आपसे पर्स लाने के लिए...मैं आपको ढूँढ रहा था तो आपको परेशान देखा ..सोचा आपसे थोड़ी चुहहाल कर लूँ..आफ्टर ऑल आप भी तो मेरी सास जैसी है...'' संजय ने अपनी सबसे अच्छी स्माइल देते हुए बात को संभालने की कोशिश की.

जैसा कि पहले बताया था कि संजय दारू पीने के बाद बाकी लोगों जैसा नही रहता. वो मस्ती में आ जाता है और कभी होश नही खोता. दारू उसके लिए नशे का काम ज़रूर करती है पर जैसे कि टॉनिक हो. उसके कॉलेज में लड़कियाँ उसे दारू पी के देखने को तरसती थी. उसकी हरकतें, चाल और मुस्कान इतनी नशीली होती थी कि लड़कियाँ उसपे लट्तू हो जाती थी. और अभी वो स्माइल देख के किरण की धरकने डबल हो चुकी थी. '' हाए क्या कातिल मुस्कान है...मन करता है कि इस मुस्कान से अपनी मुस्कान मिला दूं...किस कर लूँ इसे...उफफफ्फ़...मेरी चूत ..इतनी गीली कैसे हो गई...मैं गिर जाउन्गि...'' किरण के दिमाग़ में ये सब बातें चल रही थी.

पर उसे अपने पे कंट्रोल रखना था. उससे सिचुयेशन को संभालना था. जो बातें सरला ने उससे कही थी वो सच थी. उसके दामाद सा हॅंडसम वहाँ कोई नही था. अब देखना ये था कि जो बात उसने संजय के लंड के बारे में कही थी क्या वो बात सच है. पर उसमे अभी वक़्त था.

''ठीक है मैं तुम्हारी बात मान लेती हूँ दामाद जी..ये लो अपनी शैतानी का फल ..और ये लो अपनी सासू मा का पर्स ..इसे लेके जाओ और उनसे कहना कि मैं 1 घंटे में आउन्गि उनके कमरे पे कुच्छ ज़रूरी बातें करने. समझे मेरे मूह बोले नटखट दामाद जी..'' किरण ने आगे बढ़ के संजय का कान मरोड़ दिया और उसके गालों पे एक हल्की सी चपत दी. उसके इस आक्षन से संजय थोड़ा तिलमिला गया और उसके अहंकार को चोट पहुँची.

''ठीक है मेरी मूह बोली सासू जी..कह दूँगा अपनी सासू मा को आपकी बात ..चलिए अब आग्या दीजिए ..प्रणाम और शुभ रात्रि'' संजय अचानक झुका और एक हाथ से किरण के पैर च्छुए. पैर च्छुने के बहाने उसने पैरों को अच्छे से सहलाया और उठ खड़ा हुआ. उसके पैर सहलाने से किरण रोमांचित हो उठी. उसके रोम रोम में आग लग गई. संजय ने एक बार उसकी आँखों में झाँका और फिर मूड के स्टोर रूम से बाहर चला गया. किरण उसके जवान लंबे जिस्म को पिछे से देखती रही. उसकी साँसे काबू में नही थी. उसके होंठ काँप रहे थे. बदन में झूरी झूरी दौड़ रही थी. अपने को संभालने के लिए उसने टेबल का सहारा लिया और सिर झुका के अपने पे कंट्रोल करने लगी.

संजय गुस्से में अपने कॉटेज की तरफ जाने लगा. बार से उसने एक विस्की की बॉटल और ले ली थी. पहले वो अपने कॉटेज मे गया जहाँ उसके दोनो भाई सोने की तैयारी कर रहे थे. बॉटल रखते हुए उन्होने देखा तो पुछा कि ये किस लए. संजय ने कहा कि आज मस्ती का दिन है तो वो थोड़ी और पीना चाहता है. बार बंद हो रहा था सो इसलिए बॉटल ले आया. अगर वो पीना चाहे तो पी सकते हैं. 3नो भाईओं ने एक एक पेग बनाया और पीने लगे. पेग 3/4 हुए थे कि संजय को सास के पर्स की याद आई और वो देने चला गया. राजू और सुजीत सेक्सी बातें करते हुए पेग ख़तम करके सोने चले गए. जिस कमरे में कॉटेज का मेन एंट्रेन्स था उसमे संजय ने सोना था और दोनो भाईओं ने पिच्छले कमरे में. उन्होने अपने रूम का दरवाज़ा बंद किया और सोने चल दिए. जब तक संजय सखी का हाल पुच्छ के वापिस आया तब तक सुजीत और राजू सो चुके थे. संजय ने आते ही अपने कपड़े उतार दिए और सिर्फ़ अंडरवेर में लेट गया. किरण का कान खींचना, चपत लगाना और उसके पैरों का एहसास उसके दिमाग़ में घूम रहे थे. गुस्से में उसने एक पेग और बनाया. ये शाम से उसका 7थ पेग था. उसकी केपॅसिटी 1 बॉटल से उपर की थी.

पेग लेते लेते उसे किरण के साथ डॅन्स की याद आ गई. पेग ख़तम हुआ किरण की कमर के एहसास से. लंड अब अंडरवेर में हिचकोले खा रहा था. संजय ने घड़ी देखी तो 11 बज चुके थे. एक पेग और बनाया और फिर से किरण की कमर पे ध्यान चला गया. साड़ी में क्या लग रही थी. उसके चेहरे पे अब स्माइल थी. हाथ में पेग और दूसरे हाथ में अंडरवेर से बाहर निकाला हुआ लंड. ''लगता है आज भी मूठ मार के गुज़ारा करना होगा..पता नही चूत कब मिलेगी..ये साली सासू मा ने भी सब गड़बड़ किया हुआ है..साली खुद अपनी ज़िंदगी के मज़े ले चुकी है और हमें रोकती है.....पर है गदराई हुई ..इतनी उमर में भी ..उफ्फ क्या सोच रहा है संजय..तेरी सास है वो...सास है तो क्या हुआ...है तो खेली खिलाई घोड़ी. अगर मौका मिला तो इस्पे भी चढ़ जाउन्गा....उउम्म्म्म...सोच के ही लंड में नई जान आ जाती है....सरला....किरण....उम्म्म्ममम'' संजय के दिल पे साँप लोटे रहे थे..उसके लंड का उफान उसके दिमाग़ को कंट्रोल कर रहा था.
 
इतना सोचते हुए उसका ध्यान अचानक उस लड़की पे गया...क्या चूचा था उसका..एक दम सखी जैसा. छ्होटा पर सुडोल. क्या स्वाद था. जीभ अनायास ही होंठो पे फिरने लगी. लंड को सहलाते हुए संजय ने ड्रिंक ख़तम किया. एक और ड्रिंक बनाने के लिए उठने लगा तो लंड को उपर की तरफ सीधा करके अंडरवेर में डाल लिया. करीब 4 इंच लंड अंडरवेर के एलास्टिक के बाहर था. ''शांत रह बच्चे..अभी तुझे इतनी जल्दी चूत नसीब नही होगी..सब्र रख..'' लंड को समझाते हुए संजय ने लंड के टोपे को पूचकारा और एक ड्रिंक और बनाई. पहला सिप लेने ही लगा था कि डोर पे नॉक हुआ.

''सरला जी दरवाज़ा खोलिए..सो गई क्या..मैं हूँ किरण..'' वो आवाज़ वो चेहरा वो बदन जिसने शाम से संजय के दिमाग़ पे जादू किया हुआ था बस डोर के दूसरी तरफ थी.

बिना कुच्छ सोचे समझे हाथ में ड्रिंक लिए संजय ने तपाक से दरवाज़ा खोल दिया.

''तुम ..?? यहाँ..?? सरला जी के रूम में..?? ऊहह माइ गॉड ये क्या है....?? इस हालत्त्त्त्त्त्त्त मेन्न्न्न...ऊओह माइ....गॉड...?? '' किरण के हाथ उसके मूह पे थे. आँखें फटी हुई थी. संजय के लंड पे नज़र पड़ते ही किरण लरखरा गई और एक कदम पिछे हटी. चाँदनी में लंड और भी निखर के दिख रहा था. पर्पल कलर का सुपाड़ा चाँदनी में चमक रहा था. चॅम्डी पिछे को खींची पड़ी थी. सरला ने सच कहा था. उसका दामाद आदमी नही घोड़ा था. अंदर से किरण का रोम रोम जागृत हो गया था. उसकी चूत पे जैसे चीटीओ का हमला हो गया था. चूचे आन्यास ही कड़क हो गए. निपल तो जैसे ब्लाउस फाड़ के बाहर आना चाहते थे.

संजय ने उसकी ये हाल को देख के अपनी कातिल मुस्कुराहट दी और पेग को मूह से लगाया. किरण पिघलने लगी. कभी उसके चेहरे को देखती और कभी उसके लंड को. 8 महीने से विधवा किरण की उत्तेजना शायद सिर्फ़ सरला समझ सकती थी. इसीलिए उसने किरण को अपने कमरे का नही बल्कि अपने दामाद के कमरे का पता दिया था. एक आख़िरी बार किरण ने संजय के चेहरे को देखा और वो अपने होश खोने लगी. दिमाग़ और दिल साथ नही दे रहे थे. सब तरफ कन्फ्यूषन थी. उसकी कन्फ्यूषन संजय ने दूर की. किरण का हाथ पकड़ के रूम में खींच लिया और डोर बंद कर दिया. एसी की ठंडक में भी किरण का बदन भट्टी बना हुआ था. बिना कुच्छ बोले संजय ने पेग किरण के होंठो से लगा दिया. किरण उसकी आखों में देखते देखते पेग पी गई. पेग स्ट्रॉंग था पर शायद उससे भी स्ट्रॉंग थी उसके बदन की महक. जो कि कमरे में फैलने लगी थी.

संजय ने पेग के ख़तम होते ही एक और लाइट पेग बनाया और बिस्तर पे सिर झुकाए बैठी किरण के होंठो से लगा दिया. ये भी जल्द ही उसके गले से उतर गया. पर कुच्छ बूँदें होंठो के किनारों से होती हुई गर्दन और फिर संजय के होंठो पे चली गई. किरण अब होश खो चुकी थी. बदन की आग अब भड़क चुकी थी और उस आग को शांत करने का सिर्फ़ एक तरीका था. संजय का होज़पाइप जब तक उसके बदन के अंदर फुहार नही छोड़ेगा तब तक उसकी आग भुजने वाली नही थी. कपड़े उतरने लगे और देखते ही देखते किरण विधवा से नंगी विधवा हो गई थी. 8 महीने का सब्र का बाँध टूट गया और सैलाब आ गया.

संजय बिस्तर पे लेटा हुआ था और किरण उसके बदन से अपने बदन को रगड़ रही थी. 38सी की मोटी मोटी चूचियाँ और उनपे कड़े भूरे निपल संजय के बदन को रगड़ रहे थे. पर रगड़ पूरी नही हो पा रही थी. बीच में एक दीवार थी ..संजय का अंडरवेर. अपने चूचो को संजय के मूह से रगर्ते हुए उसकी छाती पे पहुँची और वहाँ से शुरू हुआ अंडरवेर तक पहुँचने का सफ़र. संजय के बदन के बाल टूट टूट के किरण के बदन से चिपक रहे थे. जहाँ जहाँ भी उसके होंठ चलते वहाँ थूक के निशान छोड़ जाते. अंडरवेर के एलास्टिक को दाँतों में फँसा के किरण एक जंगली बिल्ली की तरह गुर्राई. इशारा सॉफ था...गांद उठा के अंडरवेर उतरवा लो नही तो फाड़ दूँगी. संजय ने मुस्कुराते हुए एक आह भारी और गांद उठा दी. देखते ही देखते अंडरवेर पैरों में था. और लंड उसका ...तो मत पुछिये. उसपे तो जैसे भूखी शेरनी का अटॅक हुआ था. लंड का सूपड़ा दाँतों के बीच लाल होने लगा. जीभ रह रह के लंड के सुराख को कुरेद रही थी...होंठ लंड की साइड पे उपर से नीचे तक चल रहे थे. 5 - 6 इंच से ज़ियादा मूह में दाखिल नही हो रहा था पर शेरनी की भूख थी कि बढ़ती जा रही थी. लंड के बेस को पकड़ के सिर को उपर उठाती और फिर वापिस नीचे ले जाती. हर स्ट्रोक के साथ लंड थोड़ा और अंदर जाता.

पर हर स्ट्रोक को लगाने के लिए जो मेहनत किरण कर रही थी वो सॉफ दिख रहा था. 7 इंच के बाद लंड गले की बॅकसाइड को कुरेदने लगा था. थूक की जैसे बाढ़ आ गई थी. लंड और टट्टों का कोई भी हिस्सा उस बाढ़ से बच नही पा रहा था. बिस्तर गीला हो चुका था. गले तक लंड लेने पर कुच्छ सेकेंड के लए मूह बंद रहता और फिर साँस लेने के लए खुलता. नातुने भी उसी हिसाब से खुल और बंद हो रहे थे, आँखों से आँसू बहे जा रहे थे पर प्यास भुज नही रही थी. संजय ये नज़ारा देख के खुद भी मदहोश हुआ पड़ा था. एक नई सनसनी उसके बदन में घर कर गई थी. इतना उतावला पन उसने आज तक नही देखा था. राखी भाभी जो कि लंड चूसने में निपुण थी उन्होने ने भी कभी इतना एफर्ट नही दिखाया था. वो करीब 10 इंच तक आसानी से ले लेती थी पर शायद इसलिए कि उन्होने बहुत प्रॅक्टीस की थी. पर ये बात कुच्छ और थी. ये भूख और ये चुम्मे आज तक संजय ने एक्सपीरियेन्स नही किए थे.
 
''ऊओह मेरी मूह बोली सासू मा...मैं झरने वाला हूओन ज़ाआआन्णन्न्...मेरा होने वाला है...रुक्क्क ..जा...नही तो मूह भर दूँगा....ऊओह ...प्ल्लसस....रुक्ककक...''' संजय कराह रहा था.

पर मूह बोली सास नही रुकी और संजय भी नही. मौसम से पहले ही होली आ गई और पिचकारी से सफेद रंग निकलने लगा. पर यहाँ बदन का कोई बाहरी हिस्सा गीला नही हुआ. गीला हुआ तो मूह बोली सास का गला...उसकी तृप्ति हो गई..ऐसा रंग जो अब ज़िंदगी भर नही छूटने वाला था. किरण गटक गटक के पीने लगी. आक्सिडेंट से 2 महीने पहले पति का पीया था. आज उस बात को करीब 10 महीने हो गए. अमृत पिए बिना गति नही और आज उसे अमृत मिल गया.......

पर बात यहाँ नही रुकी ...अमृत के धारे बहते हुए संजय का बदन ऐंठने लगा. उसका मूह खुल गया और जीभ बाहर निकल आई. अमृत ख़तम हो गया पर मूह वैसे ही खुला था. इस मूह को अमृत की ज़रूरत थी और वो उसको मिला किरण के होंठो से. बदन से बदन मिल गया और होंठ एक दूसरे से. जीभें आपस में बातें करने लगी. वीर्य का स्वाद मूह में जाते ही संजय को होश आ गया. बाहें फैला के उसने किरण के बदन को जाकड़ लिया. लंड अभी भी तना हुआ था. बुर के छेद पे दस्तक दे रहा था. बुर लिसलिसाई हुई आग बरसा रही थी. होज़ पाइप डालो मेरे में...ऐसी आवाज़ दे रही थी. होज़ पाइप ने जगह ले ली और धीरे धीरे 4 इंच अंदर चला गया. चूत का कसाव अब उसे रोक रहा था. पर शेरनी को लंड चाहिए था.....आज उसे कोई नही रोक सकता था. संजय के कंधों पे किरण नाम की शेरनी के पंजे थे और फिर वो हुआ जिसकी उम्मीद संजय ने कभी नही की थी. आज से पहले ऐसा सिर्फ़ मिन्नी भाभी के साथ हुआ था. शेरनी ने अपने चूतर उपर किए और लंड खिसक के बाहर आया. जब सुपादे का सिर्फ़ 1 इंच का हिस्सा अंदर बचा तो शेरनी ने अपने बदन को ज़ोर से नीचे दबाया.

एक ही झटके में बचा हुआ 10 इंच सब हदें तोड़ता हुआ जड़ तक समा गया और शेरनी की एक तेज़ दहाड़ सुनाई पड़ी.

''ओउुुउउइईईईईईईईईईई माआआआआआआआआ........................मरररर...गेयीयियैआइयैआइयैआइयीयीयियी...''
क्रमशः................................................
 
खानदानी चुदाई का सिलसिला--13

गतान्क से आगे.............. 

दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा इस कहानी का तेरहवाँ पार्ट लेकर हाजिर हूँ

किरण दर्द से कांम्प रही थी...उसका बदन बहुत ज़ोर से हिल रहा था. कमर पे हाथ डाले संजय उसे सपोर्ट दे रहा था .. दर्द का एहसास उसकी चूत से होते हुए संजय के लंड पे और उसके दिल में पहुँच रहा था. किरण के चेहरे पे सिर्फ़ दर्द था..और कुच्छ भी नही. संजय समझ गया कि जोश तो उसने दिखा दिया पर कही इसी चक्कर में वो होश ना खो दे. बेहोश किरण को चोद्ने में वो मज़ा कहाँ आएगा जो होश में रहते हुए..संजय ने कमर को कस के पकड़ लिया और उसे हिलने नही दिया. फिर धीरे धीरे उसे अपनी तरफ झुकाया और उसके मोटे मोटे चूचे चूसने शुरू कर दिए. निपल दर्द की वजह से बैठ चुके थे. करीब 20 सेकेंड चूसने के बाद उनमे वापिस ब्लड फ्लो शुरू हुआ और निपल कड़े होने लगे. किरण के बदन से अब दर्द की सेन्सेशन कम हो रही थी. चूचियाँ और खास तौर से मोटी चूचियाँ हर मर्द की कमज़ोरी हैं. संजय बाबू भी ऐसे ही थे. गोरी गोरी चूचियो का आकर्षण उन्हे पागल बना रहा था. अब हाथ कमर से हट के चूचिओ पे आ गए थे.

''उउम्म्म्म स्लुउउर्ररुउप्प्प्प..उउंम्म...मम्मूऊुआहह,.....म्‍म्मह..म्‍म्मह..सुक्कककक...उउंम स्लूऊर्रप्प्प...'' ये सब आवाज़ें कमरे में गूँज रही थी. आवाज़ों का असर किरण पे सॉफ था. हाथ अब संजय के सिर के पिछे से अपनी चूची पे धकेल रहे थे.

''हाआँ दामाद जी पिओ अपनी सासू मा का दूध और बड़े बड़े हो जाओ..ये जो डंडा अपनी सास में पेला हुआ है इसमे और ताक़त लाओ..ताकि हर रोज जम के अपनी सास की बच्चे दानी भर सको...अहाआाआअन्णन्न्...तुम जैसा दामाद पाके तो मैं धन्य हो गई....ऊऊऊऊ...उूुउऊहह हान्णन्न्......फुक्ककक मे उ बस्टर्ड.......एसस्स्स्सस्स...........मदर्चोद.........गांद मचका...हरामी और चूस मुझे...उईईईईईईईईईईइमाआआअ................सरला तेरे को इस घोड़े से ना चुद्वाया तो मेरा नाममम..............ऊहह......माआआअ..........फत्त्त्त्तिईईईईईई........ऊऊहह...एस......चूद नाअ.............एस..एसस्स चूस चूस चूस चूस एस्स अब ये वाला चूस ...गांद भी हिला...एसस्स्स्स्सस्स..हान्ंणणन् ...ऊऊहह मेरे सैयांन्णणन्.....मेरे दामाद....ऊऊहह एक क्या अगर 100 बेटियाँ होती मेरी तो सब तुझे दे देती.....बस ऐसे ही चोद्ता रह मुझे...........ऊओ माआआआ.......मैं आई तेरे लॅंड पे............'' 2 मिनिट की चुदाई और मम्मे चुसाइ मे किरण झरने लगी. 10 महीने की आग बाहर आने लगी ...लावा उबाल गया..चूत एक बार फिर बंजर ज़मीन से हरियाला खेत हो गई...सांड़ ने जो हाल जोता था उसमे ....तो खिलती कैसे नही..पर सांड़ अभी झाड़ा नही था. काम अधूरा था. झरती हुई चूत ने अपने आप ही सब काम कर दिया....चूत सिकुद्ती और खुलती फिर सिकुड़ाती और फिर खुलती....अपनी मूह बोली सास के मूह से गालियाँ सुन के संजय हरामी से रहा नही गया और 5 मीं में ही दूसरा ऑर्गॅज़म उसके बदन में दौड़ गया. साँसे तेज़ हो गई और उखाड़ने लगी. लंग्ज़ को जैसे ऑक्सिजन की कमी हो गई. इलाज सासू मा ने कर दिया अपने होंठ उसके होंठो से चिपका के. दोनो बदन एक दूसरे में समा गये और अगर कोई मूवी बनता तो बिस्तर पे बनता हुआ तालाब उसकी नज़रों से नही बचता.

टाँगों की बीच की जगह पे बना ...एक लिसलिसा तालाब जो कि बिस्तर पे फैलता जा रहा था....

संजय किरण को अपने उपर लेटा लेता है. किरण उसकी छाती के बालों से खेलते हुए उसके सिकुड़ते हुए लंड को चूत में महसूस करती है. अपनी गांद पे चलते हुए संजय के हाथ उसको एक बार फिर उत्तेजित कर रहे हैं. पर पहले वो थोड़ा सुस्ताना चाहती है. संजय पे लेटे लेती उसकी आँख लग जाती है. करीब 10 मीं इसी अवस्था में लेटे हुए संजय को पेशाब आता है. वापिस आने पे संजय देखता है कि किरण टांगे खोले बाहें फैलाए बिस्तर पे सोई पड़ी है. किरण की चूत पे ट्रिम्म्ड झाँटें और उसके बड़े बड़े चूचे देख के संजय का लंड एक बार फिर तनने लगता है. अपने लंड को सहलाते हुए वो किरण के मूह पे रगड़ने लगता है. किरण थोड़ा हिलती है. संजय अपना डंडा पकड़ के उसके होंठो पे थपथपाने लगता है. किरण की आँखें मस्ती में धीरे धीरे खुलती है और फिर जीभ हल्के हल्के बाहर आ जाती है. लंड में से आती खुश्बू से किरण एक बार फिर बहकने लगती है और अपने चूचे दबाते हुए सिसकियाँ लेती है.

इतने में संजय के मन में एक ख़याल आता है. वो किरण के नज़दीक बैठ के उसका सिर गोद में ले लेता है. किरण हल्के हल्के सुपादे को चाट रही है. संजय उसकी चूचिओ से खेलने लगता है. किरण की गांद हिलने लगती है और टांगे खुलने और बंद होने लगती हैं.

'' दामाद जी एक बार फिर से चोदो नाअ....गर्मी बढ़ रही है..प्लीज़ एक बार और डालो...'' किरण लंड को अपनी जीभ से पूजते हुए कहती है.

'' सासू मा आपके मूह से निकालने का मन नही कर रहा...यहाँ से निकलेगा तो वहाँ घुसेगा...प्लीज़ आराम से इसे चूस्ति रहो...मैं 25 - 30 मीं झाड़ जाउन्गा तो उसके बाद चूत चाटूंगा और फिर चोदुन्गा...'' संजय बोला.

'' नहिी दामाद जी तब तक तो मैं मर जाउन्गी...मुझे गरम मूसल चाहिए अभी के अभी...प्लीज़ दे दो...बाद में चूस लूँगी...'' किरण मिन्नत करते हुए कहती है.

''ओह्ह्ह तो एक बात कहता हूँ जिससे दोनो की इच्छा पूरी हो जाएगी...एक दामाद को चूस लो और एक दामाद से अपनी मरवा लो और एक दामाद तुम्हारे चूचे चूस लेगा...बोलो क्या कहती हो..??'' संजय ने निपल पे ज़ोर से चिकोटी काटी.

'' हाई ये कैसे होगा मेरे लल्लाअ.....एक साथ तीन तीन जगह कैसे करोगे...उम्म्म्म..तेरा सूपड़ा छोड़ने का मन ही नही कर रहा...उम्म...स्लूउर्र्रप्प..'' संजय की बात से किरण और भड़क रही थी.

''अर्रे होगा मेरी छिनाल मूह बोली सास...मेरे दो भाई हैं ना...आख़िर वो भी तो तेरे दामाद जैसे हैं..बोल उन्हे बुलाता हूँ...तेरे को एक साथ इतने तगड़े 3 लंड नही मिलेंगे...सच कहता हूँ सासू मा सुबह तक नई नवेली सुहागन लगोगी..'' संजय ने लंड को किरण की जीभ पे थपथपाते हुए कहा.

''आआअरग्ग्घ हरामी मुझे क्या रंडी समझा है जो उनसे भी चुदवाऊ...तेरे लंड पे क्या चढ़ गई तूने तो मुझे छिनाल समझ लिया..जा नही चाहिए तेरा भी...मैं चलती हूँ...उउंम्म...पुच पुकच...आआररररह उंगली ही कर दे...'' किरण प्रोटेस्ट कर रही थी पर लंड से मूह नही हट रहा था. अब उसकी चूत में खुजली बहुत बढ़ गई थी.
 
संजय ने चुपके से अपने मोबाइल से राजू को कॉल किया और जब कॉल कनेक्ट हो गई तो उसने फोन चालू रख के किरण से बात जारी रखी. बिस्तर पे फोन तकिये के पास पड़ा था और राजू को सब सॉफ सॉफ सुनाई दे रहा था. नींद में पहले उसे सिर्फ़ लंड चूसे जाने की आवाज़ें आई पर फिर अचानक उसे संजय की आवाज़ सुनाई दी.

''किरण मेरी रानी...मेरे दोनो भाई लंड के मामले में बहुत तगड़े हैं..राजू भैया का 10 इंच का है और सुजीत भैया का काला मोटा नाग है 9 इंच का. घर में सबसे मोटा लंड है उनका..ये इतना मोटा..'' संजय ने किरण की कलाई पकड़ के दिखाई.

''उन लोगों से चुद्वा ले ..तेरी चूत धन्य हो जाएगी..और फिर जब भी मौका मिलेगा हम तीनो या कोई ना कोई बीच बीच में आके तेरी प्यास भुजा दिया करेंगे...मान जा सासू मा ...आज मौका है सब हदें तोड़ने का..आगे की ज़िंदग सवारने का..तेरी चूत खिली खिली रहेगी हमेशा...सच कहता हूँ तेरी जैसी मादक सास के तो हम तीनो भाई दीवाने हो जाएँगे...उउफफफ्फ़ गोटियाँ आराम से चूस..'' संजय अपने टट्टों पे प्रेशर पाके मचल उठा.

'' बुला ना फिर उन्हे...वेट क्या कर रहा है..जब तेरी हो गई तो उनकी होने में क्या हर्ज है...डलवा दे मेरे में उनके बीज भी..हाए मैं मर जाउ तीन भाईओं का रस मेरे अंदर होगा...सोच के ही पानी छूटने वाला है...उम्म्म्म ..चल उनके रूम में चलते है..'' किरण एक हाथ से लंड पकड़े हुए बेड पे कुतिया बन गई थी और अपने होंठो से संजय की गर्दन चूम रही थी.

''संजय की मूह बोली सासू जी..हमारे कमरे में करो या यहाँ बात तो एक ही है..हाअए क्या कसी हुई चूत है तुम्हारी...उम्म्म्म और क्या स्वाद...म्मूऊुआ...लंड डाल दूं ..बोलो इसमे..'' राजू अपना 10 इंच का रोड हाथ में सहलाते हुए किरण की चूत का रस अपने दूसरे हाथ की उंगलिओ से चाटते हुए बोला.

''ऊहह मययी गवववद्द्ड़...तुम कब आए....ऊओह मयययी...ये क्या है...एक और गधा....ऊहह इससे चोदोगे तो मर जाउन्गि....साले कमीने संजय..तूने इन्हे कब बुलाया...'' किरण आश्चर्या चकित थी और संजय का लंड छोड़ के राजू पे टूट पड़ी. कुतिया बने बने ही वो थोड़ी मूड गई और राजू का लंड मूह में भर लिया. थोड़ा चूसने के बाद उसे गौर से देखने लगी और फिर संजय का देखने लगी. जैसे कि दोनो का कंपॅरिज़न कर रही हो.

इतने में ठीक उसके पिछे उसके चूतर सहलाते हुए सुजीत ने उसकी बुर को अपने लंड से सहलाना शुरू कर दिया. इससे पहले कि सुजीत का काला नाग देख के वो डर जाए, सुजीत उसकी चूत में जगह लेना चाहता था. गांद को कस्स के पकड़ते हुए उसने धक्का मारा और अपने लंड को 2 इंच अंदर ठूँसा. किरण करहा उठी और उसने संजय और राजू के लंड कस के पकड़ लिए. अगर संजय ने उसकी चूत खोली नही होती तो वो सुजीत के लंड से पक्का मर जाती. उसके बावजूद उसे काफ़ी दर्द हुआ.

''आबे हरामी..ये क्या डाल दिया...साले लंड है या लट्ठ...ऊहह माआ. फॅट गई रे.....साले तीनो कुत्ते एक से बाद के एक हो....उउउइमाआ.... आराम से डाल्ल्ल.....'' कुतिया बने बने किरण पिछे देखने लगी. उसे कुच्छ दिख नही रहा था ..बस महसूस हो रहा था. धीरे धीरे धक्के मारते हुए सुजीत का मोटा लोडा उसकी चूत में घुस गया. अब सुजीत ने उसकी गांद सहलानी शुरू कर दी. किरण को थोड़ा आराम मिला. चूत की दीवारें धीरे धीरे फैलने लगी. सुजीत के लंड ने अपना घर बना लिया था. हल्का हल्का रिसाव भी होने लगा. थोड़ा संभलते हुए किरण ने राजू का लंड चूसना शुरू किया. संजय के लंड को वो मुठिया रही थी.

संजय भी अपने भाई के साथ खड़ा हो गया और किरण के मूह पे लंड सहलाने लगा. किरण अब बारी बारी दोनो लंड चूस रही थी. इतने में संजय को ना जाने क्या सूझा और उसने किरण के बाल पकड़ के सिर को थोड़े उठाया. बाल ज़ोर से खींचने से किरण का मूह ज़ियादा खुल गया और संजय के इशारे पे राजू और संजय ने एक साथ अपने सुपादे उसके मूह में ठूंस दिए. किरण का मूह पूरा स्ट्रेच हो गया और उसकी जीभ लपलपाने लगी. मूह ज़ियादा खुलने से उसकी लार भी टपक रही थी. ये मौका देख के सुजीत ने अपना लंड धीरे धीरे बाहर लिया और फिर एक और लंबा शॉट लगाया. उसके धक्के से राजू और संजय के लंड किरण के मूह में थोड़े और घुस गए. किरण की आँखें बाहर आने को रही थी. उसको साँस लेना मुश्किल हो रहा था. उसने राजू और संजय को धक्का दिया और मूह से लंड बाहर होते ही ज़ोर ज़ोर से हाँफने लगी. संजय ने उसके बाल छोड़ दिए और उसका सिर बिस्तर पे लग गया. दोनो कोहनियाँ भी बिस्तर पे थी और इस अवस्था में उसके चूतर और उभर गए.
 
''देखा भैया...जो आज तक नही कर पाए वो आज हो गया...मैं ना कहता था कि कभी ना कभी कोई तो ऐसी मिलेगी जो एक साथ हमारे लंड मूह में लेगी..चलिए आज इस रांड़ के बहाने मैं शर्त जीत गया...अब आप शर्त मत भूलना..'' संजय ने राजू से कहा और दोनो ने हाइ फाइव दिए.

किरण की उठी हुई गांद ने सुजीत पे अपना जादू कर दिया और उसने किरण की गांद पे थप्पड़ मारते हुए अपनी रफ़्तार बहा दी. किरण एक डॉल की तरह बेड पे आधी पड़ी हुई अपनी चूत मरवाने लगी. उसके बाद बड़े मम्मे झूलने लगे और बिस्तर से रगड़ खाने लगे. उसकी सिसकारियाँ बढ़ने लगी. चूत जो कि गरम भट्टी बनी हुई थी अब जवालामुखी बन गई. आग के साथ साथ पानी बहने लगा. ठप ठप की आवाज़ अब फ्ह्च फ्ह्च की आवाज़ में बदल गई.

सुजीत जो कि इतने दिन से चूत से वंचित था बहुत एग्ज़ाइटेड हुआ पड़ा था. 40 - 50 धक्के मारने के बाद उससे रुका नही गया.

''उहह ..उूुउउर्र्र्रघह...क्याअ चूत है राजू भैया....उूउउर्रर्ग्घह क्या मस्ती है इसमे...ऊओ...उउउन्न्नघह थॅंक्स संजय...ऊऊहह भयियैयेयाया...मैं तो झरने वाला हूँ...इसके मम्मे दबोचो भैयाअ इसको मेरे लंड पे झर्वाओ...'' सुजीत लगतार धक्के मारे जा रहा था और गांद पे थप्पड़ भी मार रहा था. किरण की गांद के दोनो पट्ट लाल हो चुके थे. उसके मूह से सिर्फ़ मोन्स आ रही थी.

राजू ने उसको वापिस बालों से पकड़ा और अपना लंड उसके मूह में ठूंस दिया. संजय बिस्तर पे लेट गया और उसके झूलते हुए मम्मे के नीचे अपना सिर रख दिया. सिर उचका उचक के उसके झूलते हुए चूचों को चाटने और चूमने लगा. किरण से एक साथ तीन तीन जवान मर्दों का हमला सहन नही हुआ और वो झरने लगी. सुजीत ने उसकी चूत में अपना वीर्य उदेलना शुरू किया और आगे झुक के उसपे सारा भार डाल दिया और उसके चूचे पिछे से पकड़ लिए. एक निपल वो रगड़ रहा था और दूसरा संजय के मूह में था. राजू उसके मूह में लंड अंदर बाहर कर रहा था. किरण काँपते हुए झरती रही और सुजीत उसके मम्मे दबोचे हुए हल्के हल्के धक्के मारता रहा. दोनो पसीने से भीगे हुए थे. 2 मीं के बाद फुच्छ की आवाज़ के साथ सुजीत ने अपना लंड बाहर निकाला और खींच के किरण को बिस्तर पे पीठ के बल लिटा दिया. किरण बहुत थक्क चुकी थी. पर सुजीत के मन में कुच्छ और था.

''देख मेरी रानी अभी अभी तू किस लंड से चुदी है...देख और इसे अपने होंठो से धन्यवाद दे..'' सुजीत ने अपने 3 / 4 तना हुआ लंड उसके मूह पे रख दिया. सुजीत का साइज़ देख के किरण चिहुनकक उठी...उससे यकीन नही हुआ कि इतना मोटा लंड भी किसी का हो सकता है. और उसे ये भी यकीन नही हुआ कि अभी अभी उसकी चूत ने ये लंड खाया. लंड को दोनो हाथों से पकड़ते हुए वो उसे चाटने लगी. थोरी देर में ही सारा का सारा जूस और वीर्य का मिश्रण उसके पेट में पहुँच गया और लंड एक बार फिर से थूक से चमकने लगा.

''अबे साले तुम तीनो वाकई में गधे हो...मैं तो मर जाउन्गी सुबह तक ..क्या किस्मत है तुम्हारी बिविओ की....उम्म्म्म....'' किरण अपनी टांगे फैलाए बिस्तर पे आधी लेटी हुई थी और उसकी चूत से रिस रिस के बहता हुआ मिश्रण बिस्तर गीला कर रहा था. तीनो भाई घुटनो के बल उसके सामने खड़े थे और बारी बारी से वो तीनो के लंड का मुआयना कर रही थी. कभी उनकी गोटिओं से खेलती तो कभी उसके लंड सहलाती. तीनो भाई अब एक बार फिर तैयार थे. पर किरण की हिम्मत नही थी अभी.

''भैया वाकई में ज़ियादा किया तो इसकी हालता बिगड़ जाएगी..अब जब मैं और सुजीत भैया इसकी ले चुके है तो आप भी इसकी एक बार ले लो. सुजीत भैया आप इसका मूह चोद लेना. अब तो ये हमारी हो चुकी है तो आगे पिछे कभी भी आके इसकी बजा लेंगे..आज के लए इतना काफ़ी रहेगा..'' संजय ने दोनो भाईओं को सलाह दी.

''ठीक है संजय जैसा तू कहे और वैसे भी ये तेरी सास है..और तूने इसकी हमें दिलवा के जो एहसान किया है ाओह हम भी कभी रीपे करेंगे. चल सुजीत तू इसके मूह में लंड दे मैं ज़रा इसकी चूत पेल लूँ...वैसे भी सुजीत के बाद तो इसे मेरा लेने में कोई दिक्कत नही होगी..'' राजू बोला.

''अबे तुम तीनो आदमी हो या जानवर... मुझे क्या बाप का माल समझा है जो कुत्ति की तरह ले रहे हो मेरी...रूको थोड़ी देर...मुझे अभी थोड़ा आराम करने दो...अभी नही छूना मुझे..टांगे दुख रही है...सालाअ पता नही क्या खा के पैदा किया था तुम थर्किओ को...'' किरण गुस्से में गाली देते हुए बोली और उठ के पेशाब करने चली गई.

टाय्लेट में बैठे हुए उसका शरीर ढीला पड़ गया. अंदर ही अंदर वो बहुत खुश हुई. आज किस्मत ने उसका अच्छा साथ दिया. एक साथ 3 - 3 जवान घोड़े उसको मिल गए. उसकी चूत में बहुत कसमसाहट हो रही थी. नीचे हाथ फेरा तो पाया कि चूत के होंठ खुल चुके थे और थोड़े सूज भी गए थे. किरण को अपना हनिमून याद आ गया और वो एक बार फिर रोमांचित हो उठी. मूह पे छींटे मारते हुए उसने अपने आपको फुल लेंग्थ मिरर में देखा और अपनी फिगर को चेक किया. मम्मो पे संजय के लव बाइट्स देख के वो खिल उठी.
क्रमशः...............................................................................
 
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