hotaks444
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सवी ने प्यार से सुनील के सर पे हाथ फेरा.
'जीजू तुम्हें परेशान होने की ज़रूरत नही - कोई नही डालेगा तुम्हें दर्द के सागर में - ज़रूरी तो नही कि हर इंसान की हर इच्छा पूरी हो जाए' बस इतना कहते ही वो उठी और रूबी के कमरे में भाग गयी. उसकी आँखों से आँसू टपक रहे थे.
रूबी ने सवी को रोते देखा तो पूछ बैठी. 'क्या हुआ माँ - किसी ने कुछ कहा क्या'
सवी : नही रे बस तेरा दर्द अब सहा नही जाता.
सवी रूबी के गले लग गयी.
सवी के जाते ही सूमी ने सुनील को अपनी गोद से उठाया और अपने होंठ उसके होंठों से चिपका दिया. कुछ देर बाद दोनो अलग हुए, तो उस वक़्त सुनील सूमी के उरोजो को मसल रहा था, शायद वो भूल गया था कि घर में सवी आ चुकी है और रूबी कभी भी हाल में आ सकती थी.
सूमी मज़े में सिसकियाँ लेती रही और कुछ देर बाद उसने खुद को सुनील से अलग किया और बोली - सो जाओ सोनल के पास वो तुम्हारा इंतेज़ार कर रही होगी मैं सवी से मिल के आती हूँ, कुछ देर लग जाएगी.
सुनील सोनल के पास चला गया और सूमी के कदम रूबी के कमरे की तरफ बढ़ गये, जहाँ दोनो माँ बेटी एक दूसरे के गले लगी अपने आँसू बहा रही थी.
सूमी जा के उन दोनो से लिपट गयी .
रूबी कुछ पलों बाद अलग हो बाहर चली गयी और दोनो बहनो को अकेले छोड़ दिया, पर आज शायद रूबी ने ये ग़लत कदम उठा लिया था वो चिंगारी जिसे वो कब से दबा के बैठी थी आज उसे हवा लगने वाली थी. रूबी के कदम सोनल की तरफ बढ़ गये, अपनी तरफ से तो वो बस ये पूछने जा रही थी कि उसे कुछ चाहिए तो नही, लेकिन जैसे ही उसके कदम सोनल के कमरे के दरवाजे तक पहुँचे तो वो भिड़ा हुआ था बंद नही था, अंदर सोनल और सुनील थे. दरवाजे की झिर्री से अंदर का दृश्य दिख रहा था.
रूबी ने दरवाजे पे नॉक करने के लिए हाथ ही बढ़ाया था की कि उसकी नज़रें दरवाजे की झिर्री पे अटक गयी , अंदर सोनल सुनील का लंड चूस रही थी. सुनील के मोटे लंड को सोनल के गले तक उसके मुँह में समाते देख रूबी के बदन में काम ज्वाला भड़क उठी और वो कल्पना करने लगी कि सोनल की जगह वो सुनील का लंड चूस रही है.
साँसों की रफ़्तार बढ़ने लगी जिस्म का रोया रोया चीत्कार करने लगा, दिल और दिमाग़ दोनो सुन्न पड़ गये, आँखों में लाल डोरे तैरने लगे और दोनो हाथों की मुठियाँ भिन्च गयी.
'अहह' सुनील के गले से गुर्राहट निकली जब वो सोनल के मुँह में झड़ने लगा और रूबी को झटका लगा वो अपने ख़यालों की दुनिया से वापस आई और हाँफती हुई सी अपने कमरे की तरफ भागी जहाँ उसे एक और झटका लगा ...
अंदर कमरे में दोनो बहने एक दूसरे से चिपकी हुई थी और दोनो के होंठ आपस में जुड़े हुए थे. रूबी के बस में नही था की वो बाहर खड़ी अपनी माँ और मासी को एक दूसरे से चिपके ज़्यादा देर तक देख पाती वो कमरे में घुसी और सीधा अंदर बने अटॅच बाथ में घुस शवर के नीचे खड़ी हो गयी अपने जिस्म के ताप को ठंडा करने के लिए.
उसके अंदर घुसते ही दोनो बहने एक दूसरे से अलग हो गयी थी.
आज जिंदगी में पहली बार दोनो बहने इतना करीब हुई थी और इसकी पहल भी सुमन ने ही करी थी.
सुमन : छोटी तू आराम कर, रूबी मेरे सागर की निशानी है और मेरा वादा है तुझ से उसे जिंदगी में भरपूर प्यार मिलेगा, थोड़ा वक़्त लगेगा पर ये होगा ज़रूर.
सवी : चलो मैं भी चलती हूँ, रात का खाना तयार कर लेते हैं, बहुत देर हो चुकी है.
सूमी .. ना तू बैठ मैं कर लूँगी, आज ही तो सफ़र से आई है आराम कर ले.
सवी ...अरे कर लिया आराम...वहीं किचन में बातें भी कर लेंगे.
सूमी ...मानेगी नही तू, अच्छा चल.
और दोनो बहने किचन की तरफ बढ़ गयी.
बाथरूम में शवर के नीचे खड़ी रूबी की नज़रों के सामने बार बार सुनील का मोटा लंबा लंड आ रहा था, और उसके दिल के आरमान जिन्हे बड़ी मुश्किल से उसने दबा के रखा था उन्हें हवा लग गयी और उसकी आँखों से आँसू बहने लगे अपनी नाकामयाबी पर.
वाह री जिंदगी और कितना रुलाएगी तू.
सूमी और सवी दोनो किचन में काम करते हुए बातें कर रही थी.
सवी : दी ये सुनहरे ख्वाब मत दिखाओ, टूटने पे बहुत तकलीफ़ होती है.
सूमी ने कुछ पल उसकी तरफ देखा.
सूमी : तू नही जानती मैं खुद से कितना लड़ी हूँ, ये फ़ैसला लेना मेरे लिए आसान नही था. एक औरत अपने पति को इतनी आसानी से नही किसी के साथ बाँट सकती, पहले भी इस दर्द से गुजर चुकी हूँ जब सोनल को अपनी सौतेन बनाया था. वो मेरे सागर के दिल का टुकड़ा थी मेरे जिस्म का हिस्सा है, नही देख पाई उसे दर्द से तड़प्ते हुए. फिर उसी दर्द का सामना किया जब भी रूबी की वीरान नज़रों की तरफ देखा वो भी तो मेरे सागर की ही देन है, कैसे उसे दर्द में तड़प्ता देख सकती हूँ. लेकिन सुनील को मनाने में वक़्त लगेगा और ये काम सिर्फ़ सोनल ही कर सकती है, उस वक़्त सुनील एक वचन में बँधा हुआ था इसलिए मान गया. लेकिन अब हालत दूसरे हैं. इतना आसान नही होगा उसे मनाना और मैं उसे भी तो तड़प्ता हुआ नही देख सकती.
नही सह सकती कि वो फिर से दर्द के सागर में गोते लगाए अपनी मर्यादा की दीवारों से फिर थे उलझे. कुछ समझ नही आता. तू सोच भी नही सकती वो कितने दर्द से गुजरा था जब उसने मुझ से शादी की थी और फिर एक बार उसे मैने उसी दर्द से तड़प्ते देखा था जब मैने उसे सोनल को अपनाने के लिए मनाया था. कैसे होगा ये सब कैसे क्या होगा कुछ समझ नही आता, लेकिन जब तक बच्चे दुनिया में नही आ जाते तब तक बस इंतजार करना पड़ेगा. अब तू आ गयी है तो रूबी का दिल भी लग जाएगा, एक लड़की के लिए उसकी अपनी का का साथ बहुत बड़ी चीज़ होता है.
सवी सूमी को सुनती रही उसके मुँह से कोई बोल नही निकला.
'जीजू तुम्हें परेशान होने की ज़रूरत नही - कोई नही डालेगा तुम्हें दर्द के सागर में - ज़रूरी तो नही कि हर इंसान की हर इच्छा पूरी हो जाए' बस इतना कहते ही वो उठी और रूबी के कमरे में भाग गयी. उसकी आँखों से आँसू टपक रहे थे.
रूबी ने सवी को रोते देखा तो पूछ बैठी. 'क्या हुआ माँ - किसी ने कुछ कहा क्या'
सवी : नही रे बस तेरा दर्द अब सहा नही जाता.
सवी रूबी के गले लग गयी.
सवी के जाते ही सूमी ने सुनील को अपनी गोद से उठाया और अपने होंठ उसके होंठों से चिपका दिया. कुछ देर बाद दोनो अलग हुए, तो उस वक़्त सुनील सूमी के उरोजो को मसल रहा था, शायद वो भूल गया था कि घर में सवी आ चुकी है और रूबी कभी भी हाल में आ सकती थी.
सूमी मज़े में सिसकियाँ लेती रही और कुछ देर बाद उसने खुद को सुनील से अलग किया और बोली - सो जाओ सोनल के पास वो तुम्हारा इंतेज़ार कर रही होगी मैं सवी से मिल के आती हूँ, कुछ देर लग जाएगी.
सुनील सोनल के पास चला गया और सूमी के कदम रूबी के कमरे की तरफ बढ़ गये, जहाँ दोनो माँ बेटी एक दूसरे के गले लगी अपने आँसू बहा रही थी.
सूमी जा के उन दोनो से लिपट गयी .
रूबी कुछ पलों बाद अलग हो बाहर चली गयी और दोनो बहनो को अकेले छोड़ दिया, पर आज शायद रूबी ने ये ग़लत कदम उठा लिया था वो चिंगारी जिसे वो कब से दबा के बैठी थी आज उसे हवा लगने वाली थी. रूबी के कदम सोनल की तरफ बढ़ गये, अपनी तरफ से तो वो बस ये पूछने जा रही थी कि उसे कुछ चाहिए तो नही, लेकिन जैसे ही उसके कदम सोनल के कमरे के दरवाजे तक पहुँचे तो वो भिड़ा हुआ था बंद नही था, अंदर सोनल और सुनील थे. दरवाजे की झिर्री से अंदर का दृश्य दिख रहा था.
रूबी ने दरवाजे पे नॉक करने के लिए हाथ ही बढ़ाया था की कि उसकी नज़रें दरवाजे की झिर्री पे अटक गयी , अंदर सोनल सुनील का लंड चूस रही थी. सुनील के मोटे लंड को सोनल के गले तक उसके मुँह में समाते देख रूबी के बदन में काम ज्वाला भड़क उठी और वो कल्पना करने लगी कि सोनल की जगह वो सुनील का लंड चूस रही है.
साँसों की रफ़्तार बढ़ने लगी जिस्म का रोया रोया चीत्कार करने लगा, दिल और दिमाग़ दोनो सुन्न पड़ गये, आँखों में लाल डोरे तैरने लगे और दोनो हाथों की मुठियाँ भिन्च गयी.
'अहह' सुनील के गले से गुर्राहट निकली जब वो सोनल के मुँह में झड़ने लगा और रूबी को झटका लगा वो अपने ख़यालों की दुनिया से वापस आई और हाँफती हुई सी अपने कमरे की तरफ भागी जहाँ उसे एक और झटका लगा ...
अंदर कमरे में दोनो बहने एक दूसरे से चिपकी हुई थी और दोनो के होंठ आपस में जुड़े हुए थे. रूबी के बस में नही था की वो बाहर खड़ी अपनी माँ और मासी को एक दूसरे से चिपके ज़्यादा देर तक देख पाती वो कमरे में घुसी और सीधा अंदर बने अटॅच बाथ में घुस शवर के नीचे खड़ी हो गयी अपने जिस्म के ताप को ठंडा करने के लिए.
उसके अंदर घुसते ही दोनो बहने एक दूसरे से अलग हो गयी थी.
आज जिंदगी में पहली बार दोनो बहने इतना करीब हुई थी और इसकी पहल भी सुमन ने ही करी थी.
सुमन : छोटी तू आराम कर, रूबी मेरे सागर की निशानी है और मेरा वादा है तुझ से उसे जिंदगी में भरपूर प्यार मिलेगा, थोड़ा वक़्त लगेगा पर ये होगा ज़रूर.
सवी : चलो मैं भी चलती हूँ, रात का खाना तयार कर लेते हैं, बहुत देर हो चुकी है.
सूमी .. ना तू बैठ मैं कर लूँगी, आज ही तो सफ़र से आई है आराम कर ले.
सवी ...अरे कर लिया आराम...वहीं किचन में बातें भी कर लेंगे.
सूमी ...मानेगी नही तू, अच्छा चल.
और दोनो बहने किचन की तरफ बढ़ गयी.
बाथरूम में शवर के नीचे खड़ी रूबी की नज़रों के सामने बार बार सुनील का मोटा लंबा लंड आ रहा था, और उसके दिल के आरमान जिन्हे बड़ी मुश्किल से उसने दबा के रखा था उन्हें हवा लग गयी और उसकी आँखों से आँसू बहने लगे अपनी नाकामयाबी पर.
वाह री जिंदगी और कितना रुलाएगी तू.
सूमी और सवी दोनो किचन में काम करते हुए बातें कर रही थी.
सवी : दी ये सुनहरे ख्वाब मत दिखाओ, टूटने पे बहुत तकलीफ़ होती है.
सूमी ने कुछ पल उसकी तरफ देखा.
सूमी : तू नही जानती मैं खुद से कितना लड़ी हूँ, ये फ़ैसला लेना मेरे लिए आसान नही था. एक औरत अपने पति को इतनी आसानी से नही किसी के साथ बाँट सकती, पहले भी इस दर्द से गुजर चुकी हूँ जब सोनल को अपनी सौतेन बनाया था. वो मेरे सागर के दिल का टुकड़ा थी मेरे जिस्म का हिस्सा है, नही देख पाई उसे दर्द से तड़प्ते हुए. फिर उसी दर्द का सामना किया जब भी रूबी की वीरान नज़रों की तरफ देखा वो भी तो मेरे सागर की ही देन है, कैसे उसे दर्द में तड़प्ता देख सकती हूँ. लेकिन सुनील को मनाने में वक़्त लगेगा और ये काम सिर्फ़ सोनल ही कर सकती है, उस वक़्त सुनील एक वचन में बँधा हुआ था इसलिए मान गया. लेकिन अब हालत दूसरे हैं. इतना आसान नही होगा उसे मनाना और मैं उसे भी तो तड़प्ता हुआ नही देख सकती.
नही सह सकती कि वो फिर से दर्द के सागर में गोते लगाए अपनी मर्यादा की दीवारों से फिर थे उलझे. कुछ समझ नही आता. तू सोच भी नही सकती वो कितने दर्द से गुजरा था जब उसने मुझ से शादी की थी और फिर एक बार उसे मैने उसी दर्द से तड़प्ते देखा था जब मैने उसे सोनल को अपनाने के लिए मनाया था. कैसे होगा ये सब कैसे क्या होगा कुछ समझ नही आता, लेकिन जब तक बच्चे दुनिया में नही आ जाते तब तक बस इंतजार करना पड़ेगा. अब तू आ गयी है तो रूबी का दिल भी लग जाएगा, एक लड़की के लिए उसकी अपनी का का साथ बहुत बड़ी चीज़ होता है.
सवी सूमी को सुनती रही उसके मुँह से कोई बोल नही निकला.