hotaks444
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मिनी ने मना कर दिया था, पर सूमी नही मानी और उसे साथ ला रही थी, इसीलिए सुनील को 5 कमरों की ज़रूरत पड़ गयी.
सवी और रूबी दोनो हैरान थे 5 कमरों के बंग्लॉ में शिफ्ट होने का सुन कर.
तभी रूबी खिलखिला पड़ी ....'ओह हो सूमी और सोनल दी आ रही हैं'
सवी : ये क्या बात हुई, हनिमून हमारा और वो बीच में कूद पड़ी.
रूबी ने कोई जवाब नही दिया और अपने कमरे की तरफ बढ़ गयी पॅकिंग करने.
सवी आग बाबूला हो गयी क्यूंकी रूबी उसका साथ नही दे रही थी. पर खुद पे काबू रख भूंभूनाते हुए अपनी पॅकिंग करने लगी.
सुनील ने दोनो को अलग से फोन किया रास्ते से और नाश्ता करने का बोल दिया क्यूंकी उसे आते आते दोपहर हो जाएगी.
रूबी ने अपना नाश्ता अपने कमरे में मँगवाया और सवी ने अपने कमरे में.
एक अनदेखी दीवार खिच गयी थी दोनो के बीच.
अपने कमरे में पॅकिंग करते करते रूबी की आँखों से आँसू टपक रहे थे.
बार बार एक ही ख़याल दिमाग़ में आता ' क्या रिश्ते बदलने से प्यार ख़तम हो जाता है?'
फिर दिमाग़ में सूमी की छवि घूमती और ये सवाल नकारा हो जाता.
अगर ऐसा होता तो सूमी क्यूँ मेरे लिए और सवी के लिए सुनील को मनाती.
ज़रूर कुछ और बात है. क्या सौतेन बनने के बाद बरसों से चलता आया वो माँ बेटी का रिश्ता ख़तम हो गया. लेकिन सूमी और सोनल तो और भी करीब आ गयी, फिर मेरे साथ ऐसा क्यूँ. क्यूँ ऐसा होता है एक ख़ुसी मिलती है तो दूसरी छिन जाती है.
क्यूँ मैं जिंदगी के उस दोराहे पे आ कर खड़ी हो गयी जहाँ मुझे अब माँ और सौतेन में से एक को चुनना है, सौतेन भी ऐसी जिसकी शकल देखने को जी ना चाहे.
वो प्यार वो ममता जो सूमी के दामन से छलकती रहती है, उसका अभाव सवी में क्यूँ है.
क्यूँ कर रही है वो ऐसा ? आख़िर क्यूँ ? इसका जवाब रूबी को नही मिल रहा था.
फिर उसने अपना सर झटक दिया, दिमाग़ में सागर का चेहरा घूम गया. जो उसका असली पिता था. हां पिता की बीवी ही तो माँ होती है. तो मेरी माँ तो मेरे साथ है, सूमी ही तो मेरी माँ है.
जब रिश्ते बदलते हैं तो बहुत कुछ बदल जाता है, इस बात की पहचान रूबी को हो गयी थी. अपनी परवरिश से ले कर आज तक की सभी घटनाएँ उसके दिमाग़ में दौड़ गयी और वो अपनी आगे आनेवाली जिंदगी कैसे ज़ीनी है उसका फ़ैसला कर चुकी थी.
अगर सुनील अपने ग़लत असली पिता के खिलाफ जंग लड़ सकता है तो वो क्यूँ नही लड़ सकती अपनी उस माँ के खिलाफ जो 24 घंटों में इतना बदल गयी, जैसे कोई बेगाना होता है.
रूबी के लिए अब सिर्फ़ सुनील मैने रखता था, जिसकी इज़्ज़त वो करेगा उसी की इज़्ज़त वो भी करेगी, जिसपे वो अपना प्यार लुटाएगा, उसके लिए वो अपनी जान तक दाँव पे लगा देगी.
रूबी सही मैने में सोनल का दूसरा रूप बनती जा रही थी, और शायद वक़्त का यही तक़ाज़ा था और जिंदगी को आगे सही ढंग से जीने का यही एक रास्ता था.
अपने वजूद को ख़तम कर डालना, और दूसरे में खो जाना.
एरपोर्ट पे जब सुनील ने सबको रिसीव किया तो सूमी और सोनल उससे लिपट गयी. मिनी ने एक बच्चे को संभाला हुआ था पर उसके चेहरे को देख ही पता चल रहा था कि खून के आँसू रोई थी वो और सूमी का चेहरा तो ऐसे उतरा हुआ था जैसे सारा खून ही निचोड़ लिया गया हो.
सुनील : काश मैं तुम सबको छोड़ के नही आता !
सूमी : तुम क्यूँ परेशान होते हो, होनी को कॉन टाल सकता है.
सुनील : चलो बातें बाद में करेंगे, पहले होटेल चल के आराम करो, थक गये होगे सब.
मिनी की नज़रें झुकी हुई थी, जैसे सुनेल के किए की खुद को ज़िम्मेदार समझ रही हो.
सुनील : मिनी , वक़्त सब सही कर देगा, यूँ उदास मत हो.
मिनी कोई जवाब नही देती.
सुनील सब को प्राइवेट स्टीमर के पास ले जाता है जिसमें दो बर्त भी थी लेटने के लिए.
दोपहर करीब 3 बजे सब होटेल पहुँच जाते हैं.
जहाँ रूबी सब को देख खुश हुई वहीं सवी पे तो जैसे आसमान टूट पड़ा.
सवी की बनावटी हँसी किसी से छुपी नही.
इस दौरान सूमी और सुनील की आँखों आँखों में ही बात हो गयी.
सुनील ने सबको आराम करने कमरे में भेज दिया और खुद रूबी को ले कर बाहर निकल गया.
सवी पूछ ही बैठी, मैं भी चलूं.
सुनील : नही मुझे रूबी से कुछ काम है.
सवी ने फिर एक बनावटी मुस्कान चेहरे पे डाली और अपने कमरे में चली गयी.
रूबी : माँ बहुत थक गयी होगी, सफ़र से, मैं ज़रा उनके पास हो कर आती हूँ.
सुनील : नही सोने दो उन्हें और चलो मेरे साथ.
सुनील रूबी को एक बहुत ही बढ़िया रेस्टोरेंट में ले गया जो बिल्कुल बीच पे बना हुआ था.
चारों तरफ समुद्र से गिरा एक छोटे आइलॅंड पे बना ये होटेल हनिमूनर्स के लिए काफ़ी विख्यात था, और देखा जाए तो हर जगह कोई ना कोई जोड़ा दिख जाता था. बस एक ही सूट था इस होटेल में जिसमें 4 बेड रूम थे और किस्मत अच्छी थी तो सुनील को मिल गया था.
सुनील रूबी के साथ रेस्टोरेंट में पहुँच गया था और दोनो बीच के पास की टेबल पे जा कर बैठ गये थे.
सुनील सोच ही रहा था कि बात कैसे और क्या शुरू करे कि रूबी ही बोल बैठी. बोलने से पहले रूबी ने सुनील के हाथों को अपने हाथों में थाम लिया था. हाथों पे लगी मेंहदी और सुहाग चूड़ियाँ सॉफ बता रही थी, कि दोनो हनिमून पे आए हैं और काफ़ी जोड़े दोनो के देख रक्श खा रहे थे.
'सविता के बारे में ज़्यादा मत सोचो, ठीक हो जाएगी, पता नही क्यूँ ऐसा बिहेव कर रही है'
सुनील ध्यान से उसे देखने लगा आज काफ़ी समय के बाद सवी का पूरा नाम उभर के आया था और रूबी ने सीधा नाम का इस्तेमाल किया था, ना कि माँ या फिर दीदी जैसे उसने बुलाना शुरू कर दिया था.
'कितना समझती हो तुम सवी को, कितना जानती हो उसे' सुनील ने सवाल दाग दिया.
'औरत को कभी कोई समझ सका है क्या ?' रूबी ने उल्टा सवाल कर दिया.
'हां, सब के लिए तो नही कह सकता पर कुछ को बखूबी जानता हूँ और समझता भी हूँ, जैसे वो मुझे समझ लेती हैं मैं उन्हें समझ लेता हूँ'
'समझ तो आप वैसे सविता को भी गये होंगे, खैर ये बताइए मुझे क्या करना है, मुझे कितना समझे आप'
'तुम वो मोती हो, जो सीप से बाहर निकल सागर की थपेड़ों में इधर से उधर लुढ़कती फिर रही थी, फिर एक दिन तुम मेरी झोली में आ गिरी और मेरे गले के हार में बस गयी'
इन चन्द अल्फाज़ों में रूबी की पूरी दास्तान बसी हुई थी, जिसे बिना कुरेदे सुनील ने सब कह डाला था और अब उसका क्या स्थान है वो भी बता दिया था.
इस से पहले के रूबी की आँखें छलकती, सुनील बोल पड़ा.
'अब सेंटी हो कर मूड ना खराब करना- ये बताओ क्या पियोगी, खओगि'
'जो आपका दिल करे'
'एक बात याद रखना, शादी का मतलब गुलामी नही होता, पहनो जग भाता यानी वो कपड़े पहनो जो दुनिया को अच्छे लगते हैं जिनमें तुम सुंदर दिखती हो, जिनमें तुम्हारा एक अस्तित्व झलकता है, पर खाओ वही जो मन भाता यानी जो तुम्हारा दिल करे वो खाओ, ना कि दुनिया को देख के वो खाओ जो दुनिया खाती है'
' ये बात उसपे लागू होती है जिसका अपना कोई वजूद हो, रूबी तो सुनील में बस गयी, वो अब बस सुनील की परछाई है, जो सुनील को पसंद, वही रूबी को पसंद'
सुनील सीधा मुद्दे पे आ गया ' क्या सवी से दूर रह पाओगी'
'शादी के बाद क्या माँ दहेज में साथ आती है क्या, आप जानो और सविता जाने, मैं बस आप को जानती हूँ और आपके परिवार को, जो भी उसमें होगा, वो मेरे सर आँखों पे'
रूबी ने सॉफ लफ़्ज़ों में कह दिया वो बस सुनील को जानती है, जो उसके साथ है वो उसकी इज़्ज़त करेगी, जो नही, उससे रूबी का कोई लेना देना नही.
'ह्म्म'
सुनील सर हिला के रह गया फिर उसने खाने का ऑर्डर कर दिया और साथ में वोड्का मंगवाली खाने से पहले ही. वोड्का के दो जाम दोनो ने पिए फिर खाना खाया और बीच पे टहलने लगे, टहलते टहलते दोनो काफ़ी दूर एकांत में पहुँच गये. रूबी इतना चल कुछ थक भी गयी थी, यूँ लग रहा था जैसे वो आइलॅंड के दूसरे छोर पे पहुँच गये हों, जहाँ एक छोटा सा जंगल भी था.
सवी और रूबी दोनो हैरान थे 5 कमरों के बंग्लॉ में शिफ्ट होने का सुन कर.
तभी रूबी खिलखिला पड़ी ....'ओह हो सूमी और सोनल दी आ रही हैं'
सवी : ये क्या बात हुई, हनिमून हमारा और वो बीच में कूद पड़ी.
रूबी ने कोई जवाब नही दिया और अपने कमरे की तरफ बढ़ गयी पॅकिंग करने.
सवी आग बाबूला हो गयी क्यूंकी रूबी उसका साथ नही दे रही थी. पर खुद पे काबू रख भूंभूनाते हुए अपनी पॅकिंग करने लगी.
सुनील ने दोनो को अलग से फोन किया रास्ते से और नाश्ता करने का बोल दिया क्यूंकी उसे आते आते दोपहर हो जाएगी.
रूबी ने अपना नाश्ता अपने कमरे में मँगवाया और सवी ने अपने कमरे में.
एक अनदेखी दीवार खिच गयी थी दोनो के बीच.
अपने कमरे में पॅकिंग करते करते रूबी की आँखों से आँसू टपक रहे थे.
बार बार एक ही ख़याल दिमाग़ में आता ' क्या रिश्ते बदलने से प्यार ख़तम हो जाता है?'
फिर दिमाग़ में सूमी की छवि घूमती और ये सवाल नकारा हो जाता.
अगर ऐसा होता तो सूमी क्यूँ मेरे लिए और सवी के लिए सुनील को मनाती.
ज़रूर कुछ और बात है. क्या सौतेन बनने के बाद बरसों से चलता आया वो माँ बेटी का रिश्ता ख़तम हो गया. लेकिन सूमी और सोनल तो और भी करीब आ गयी, फिर मेरे साथ ऐसा क्यूँ. क्यूँ ऐसा होता है एक ख़ुसी मिलती है तो दूसरी छिन जाती है.
क्यूँ मैं जिंदगी के उस दोराहे पे आ कर खड़ी हो गयी जहाँ मुझे अब माँ और सौतेन में से एक को चुनना है, सौतेन भी ऐसी जिसकी शकल देखने को जी ना चाहे.
वो प्यार वो ममता जो सूमी के दामन से छलकती रहती है, उसका अभाव सवी में क्यूँ है.
क्यूँ कर रही है वो ऐसा ? आख़िर क्यूँ ? इसका जवाब रूबी को नही मिल रहा था.
फिर उसने अपना सर झटक दिया, दिमाग़ में सागर का चेहरा घूम गया. जो उसका असली पिता था. हां पिता की बीवी ही तो माँ होती है. तो मेरी माँ तो मेरे साथ है, सूमी ही तो मेरी माँ है.
जब रिश्ते बदलते हैं तो बहुत कुछ बदल जाता है, इस बात की पहचान रूबी को हो गयी थी. अपनी परवरिश से ले कर आज तक की सभी घटनाएँ उसके दिमाग़ में दौड़ गयी और वो अपनी आगे आनेवाली जिंदगी कैसे ज़ीनी है उसका फ़ैसला कर चुकी थी.
अगर सुनील अपने ग़लत असली पिता के खिलाफ जंग लड़ सकता है तो वो क्यूँ नही लड़ सकती अपनी उस माँ के खिलाफ जो 24 घंटों में इतना बदल गयी, जैसे कोई बेगाना होता है.
रूबी के लिए अब सिर्फ़ सुनील मैने रखता था, जिसकी इज़्ज़त वो करेगा उसी की इज़्ज़त वो भी करेगी, जिसपे वो अपना प्यार लुटाएगा, उसके लिए वो अपनी जान तक दाँव पे लगा देगी.
रूबी सही मैने में सोनल का दूसरा रूप बनती जा रही थी, और शायद वक़्त का यही तक़ाज़ा था और जिंदगी को आगे सही ढंग से जीने का यही एक रास्ता था.
अपने वजूद को ख़तम कर डालना, और दूसरे में खो जाना.
एरपोर्ट पे जब सुनील ने सबको रिसीव किया तो सूमी और सोनल उससे लिपट गयी. मिनी ने एक बच्चे को संभाला हुआ था पर उसके चेहरे को देख ही पता चल रहा था कि खून के आँसू रोई थी वो और सूमी का चेहरा तो ऐसे उतरा हुआ था जैसे सारा खून ही निचोड़ लिया गया हो.
सुनील : काश मैं तुम सबको छोड़ के नही आता !
सूमी : तुम क्यूँ परेशान होते हो, होनी को कॉन टाल सकता है.
सुनील : चलो बातें बाद में करेंगे, पहले होटेल चल के आराम करो, थक गये होगे सब.
मिनी की नज़रें झुकी हुई थी, जैसे सुनेल के किए की खुद को ज़िम्मेदार समझ रही हो.
सुनील : मिनी , वक़्त सब सही कर देगा, यूँ उदास मत हो.
मिनी कोई जवाब नही देती.
सुनील सब को प्राइवेट स्टीमर के पास ले जाता है जिसमें दो बर्त भी थी लेटने के लिए.
दोपहर करीब 3 बजे सब होटेल पहुँच जाते हैं.
जहाँ रूबी सब को देख खुश हुई वहीं सवी पे तो जैसे आसमान टूट पड़ा.
सवी की बनावटी हँसी किसी से छुपी नही.
इस दौरान सूमी और सुनील की आँखों आँखों में ही बात हो गयी.
सुनील ने सबको आराम करने कमरे में भेज दिया और खुद रूबी को ले कर बाहर निकल गया.
सवी पूछ ही बैठी, मैं भी चलूं.
सुनील : नही मुझे रूबी से कुछ काम है.
सवी ने फिर एक बनावटी मुस्कान चेहरे पे डाली और अपने कमरे में चली गयी.
रूबी : माँ बहुत थक गयी होगी, सफ़र से, मैं ज़रा उनके पास हो कर आती हूँ.
सुनील : नही सोने दो उन्हें और चलो मेरे साथ.
सुनील रूबी को एक बहुत ही बढ़िया रेस्टोरेंट में ले गया जो बिल्कुल बीच पे बना हुआ था.
चारों तरफ समुद्र से गिरा एक छोटे आइलॅंड पे बना ये होटेल हनिमूनर्स के लिए काफ़ी विख्यात था, और देखा जाए तो हर जगह कोई ना कोई जोड़ा दिख जाता था. बस एक ही सूट था इस होटेल में जिसमें 4 बेड रूम थे और किस्मत अच्छी थी तो सुनील को मिल गया था.
सुनील रूबी के साथ रेस्टोरेंट में पहुँच गया था और दोनो बीच के पास की टेबल पे जा कर बैठ गये थे.
सुनील सोच ही रहा था कि बात कैसे और क्या शुरू करे कि रूबी ही बोल बैठी. बोलने से पहले रूबी ने सुनील के हाथों को अपने हाथों में थाम लिया था. हाथों पे लगी मेंहदी और सुहाग चूड़ियाँ सॉफ बता रही थी, कि दोनो हनिमून पे आए हैं और काफ़ी जोड़े दोनो के देख रक्श खा रहे थे.
'सविता के बारे में ज़्यादा मत सोचो, ठीक हो जाएगी, पता नही क्यूँ ऐसा बिहेव कर रही है'
सुनील ध्यान से उसे देखने लगा आज काफ़ी समय के बाद सवी का पूरा नाम उभर के आया था और रूबी ने सीधा नाम का इस्तेमाल किया था, ना कि माँ या फिर दीदी जैसे उसने बुलाना शुरू कर दिया था.
'कितना समझती हो तुम सवी को, कितना जानती हो उसे' सुनील ने सवाल दाग दिया.
'औरत को कभी कोई समझ सका है क्या ?' रूबी ने उल्टा सवाल कर दिया.
'हां, सब के लिए तो नही कह सकता पर कुछ को बखूबी जानता हूँ और समझता भी हूँ, जैसे वो मुझे समझ लेती हैं मैं उन्हें समझ लेता हूँ'
'समझ तो आप वैसे सविता को भी गये होंगे, खैर ये बताइए मुझे क्या करना है, मुझे कितना समझे आप'
'तुम वो मोती हो, जो सीप से बाहर निकल सागर की थपेड़ों में इधर से उधर लुढ़कती फिर रही थी, फिर एक दिन तुम मेरी झोली में आ गिरी और मेरे गले के हार में बस गयी'
इन चन्द अल्फाज़ों में रूबी की पूरी दास्तान बसी हुई थी, जिसे बिना कुरेदे सुनील ने सब कह डाला था और अब उसका क्या स्थान है वो भी बता दिया था.
इस से पहले के रूबी की आँखें छलकती, सुनील बोल पड़ा.
'अब सेंटी हो कर मूड ना खराब करना- ये बताओ क्या पियोगी, खओगि'
'जो आपका दिल करे'
'एक बात याद रखना, शादी का मतलब गुलामी नही होता, पहनो जग भाता यानी वो कपड़े पहनो जो दुनिया को अच्छे लगते हैं जिनमें तुम सुंदर दिखती हो, जिनमें तुम्हारा एक अस्तित्व झलकता है, पर खाओ वही जो मन भाता यानी जो तुम्हारा दिल करे वो खाओ, ना कि दुनिया को देख के वो खाओ जो दुनिया खाती है'
' ये बात उसपे लागू होती है जिसका अपना कोई वजूद हो, रूबी तो सुनील में बस गयी, वो अब बस सुनील की परछाई है, जो सुनील को पसंद, वही रूबी को पसंद'
सुनील सीधा मुद्दे पे आ गया ' क्या सवी से दूर रह पाओगी'
'शादी के बाद क्या माँ दहेज में साथ आती है क्या, आप जानो और सविता जाने, मैं बस आप को जानती हूँ और आपके परिवार को, जो भी उसमें होगा, वो मेरे सर आँखों पे'
रूबी ने सॉफ लफ़्ज़ों में कह दिया वो बस सुनील को जानती है, जो उसके साथ है वो उसकी इज़्ज़त करेगी, जो नही, उससे रूबी का कोई लेना देना नही.
'ह्म्म'
सुनील सर हिला के रह गया फिर उसने खाने का ऑर्डर कर दिया और साथ में वोड्का मंगवाली खाने से पहले ही. वोड्का के दो जाम दोनो ने पिए फिर खाना खाया और बीच पे टहलने लगे, टहलते टहलते दोनो काफ़ी दूर एकांत में पहुँच गये. रूबी इतना चल कुछ थक भी गयी थी, यूँ लग रहा था जैसे वो आइलॅंड के दूसरे छोर पे पहुँच गये हों, जहाँ एक छोटा सा जंगल भी था.