Sex Hindi Kahani वो शाम कुछ अजीब थी - Page 34 - SexBaba
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Sex Hindi Kahani वो शाम कुछ अजीब थी

मिनी ने मना कर दिया था, पर सूमी नही मानी और उसे साथ ला रही थी, इसीलिए सुनील को 5 कमरों की ज़रूरत पड़ गयी.

सवी और रूबी दोनो हैरान थे 5 कमरों के बंग्लॉ में शिफ्ट होने का सुन कर.

तभी रूबी खिलखिला पड़ी ....'ओह हो सूमी और सोनल दी आ रही हैं'

सवी : ये क्या बात हुई, हनिमून हमारा और वो बीच में कूद पड़ी.

रूबी ने कोई जवाब नही दिया और अपने कमरे की तरफ बढ़ गयी पॅकिंग करने.

सवी आग बाबूला हो गयी क्यूंकी रूबी उसका साथ नही दे रही थी. पर खुद पे काबू रख भूंभूनाते हुए अपनी पॅकिंग करने लगी.

सुनील ने दोनो को अलग से फोन किया रास्ते से और नाश्ता करने का बोल दिया क्यूंकी उसे आते आते दोपहर हो जाएगी.

रूबी ने अपना नाश्ता अपने कमरे में मँगवाया और सवी ने अपने कमरे में.

एक अनदेखी दीवार खिच गयी थी दोनो के बीच.

अपने कमरे में पॅकिंग करते करते रूबी की आँखों से आँसू टपक रहे थे.

बार बार एक ही ख़याल दिमाग़ में आता ' क्या रिश्ते बदलने से प्यार ख़तम हो जाता है?'

फिर दिमाग़ में सूमी की छवि घूमती और ये सवाल नकारा हो जाता.

अगर ऐसा होता तो सूमी क्यूँ मेरे लिए और सवी के लिए सुनील को मनाती.

ज़रूर कुछ और बात है. क्या सौतेन बनने के बाद बरसों से चलता आया वो माँ बेटी का रिश्ता ख़तम हो गया. लेकिन सूमी और सोनल तो और भी करीब आ गयी, फिर मेरे साथ ऐसा क्यूँ. क्यूँ ऐसा होता है एक ख़ुसी मिलती है तो दूसरी छिन जाती है.

क्यूँ मैं जिंदगी के उस दोराहे पे आ कर खड़ी हो गयी जहाँ मुझे अब माँ और सौतेन में से एक को चुनना है, सौतेन भी ऐसी जिसकी शकल देखने को जी ना चाहे.

वो प्यार वो ममता जो सूमी के दामन से छलकती रहती है, उसका अभाव सवी में क्यूँ है.

क्यूँ कर रही है वो ऐसा ? आख़िर क्यूँ ? इसका जवाब रूबी को नही मिल रहा था.

फिर उसने अपना सर झटक दिया, दिमाग़ में सागर का चेहरा घूम गया. जो उसका असली पिता था. हां पिता की बीवी ही तो माँ होती है. तो मेरी माँ तो मेरे साथ है, सूमी ही तो मेरी माँ है.

जब रिश्ते बदलते हैं तो बहुत कुछ बदल जाता है, इस बात की पहचान रूबी को हो गयी थी. अपनी परवरिश से ले कर आज तक की सभी घटनाएँ उसके दिमाग़ में दौड़ गयी और वो अपनी आगे आनेवाली जिंदगी कैसे ज़ीनी है उसका फ़ैसला कर चुकी थी.

अगर सुनील अपने ग़लत असली पिता के खिलाफ जंग लड़ सकता है तो वो क्यूँ नही लड़ सकती अपनी उस माँ के खिलाफ जो 24 घंटों में इतना बदल गयी, जैसे कोई बेगाना होता है.

रूबी के लिए अब सिर्फ़ सुनील मैने रखता था, जिसकी इज़्ज़त वो करेगा उसी की इज़्ज़त वो भी करेगी, जिसपे वो अपना प्यार लुटाएगा, उसके लिए वो अपनी जान तक दाँव पे लगा देगी.

रूबी सही मैने में सोनल का दूसरा रूप बनती जा रही थी, और शायद वक़्त का यही तक़ाज़ा था और जिंदगी को आगे सही ढंग से जीने का यही एक रास्ता था.

अपने वजूद को ख़तम कर डालना, और दूसरे में खो जाना.

एरपोर्ट पे जब सुनील ने सबको रिसीव किया तो सूमी और सोनल उससे लिपट गयी. मिनी ने एक बच्चे को संभाला हुआ था पर उसके चेहरे को देख ही पता चल रहा था कि खून के आँसू रोई थी वो और सूमी का चेहरा तो ऐसे उतरा हुआ था जैसे सारा खून ही निचोड़ लिया गया हो.

सुनील : काश मैं तुम सबको छोड़ के नही आता !

सूमी : तुम क्यूँ परेशान होते हो, होनी को कॉन टाल सकता है.

सुनील : चलो बातें बाद में करेंगे, पहले होटेल चल के आराम करो, थक गये होगे सब.

मिनी की नज़रें झुकी हुई थी, जैसे सुनेल के किए की खुद को ज़िम्मेदार समझ रही हो.

सुनील : मिनी , वक़्त सब सही कर देगा, यूँ उदास मत हो.

मिनी कोई जवाब नही देती.

सुनील सब को प्राइवेट स्टीमर के पास ले जाता है जिसमें दो बर्त भी थी लेटने के लिए.

दोपहर करीब 3 बजे सब होटेल पहुँच जाते हैं.

जहाँ रूबी सब को देख खुश हुई वहीं सवी पे तो जैसे आसमान टूट पड़ा.

सवी की बनावटी हँसी किसी से छुपी नही.

इस दौरान सूमी और सुनील की आँखों आँखों में ही बात हो गयी.

सुनील ने सबको आराम करने कमरे में भेज दिया और खुद रूबी को ले कर बाहर निकल गया.

सवी पूछ ही बैठी, मैं भी चलूं. 

सुनील : नही मुझे रूबी से कुछ काम है.

सवी ने फिर एक बनावटी मुस्कान चेहरे पे डाली और अपने कमरे में चली गयी.

रूबी : माँ बहुत थक गयी होगी, सफ़र से, मैं ज़रा उनके पास हो कर आती हूँ.

सुनील : नही सोने दो उन्हें और चलो मेरे साथ.

सुनील रूबी को एक बहुत ही बढ़िया रेस्टोरेंट में ले गया जो बिल्कुल बीच पे बना हुआ था.

चारों तरफ समुद्र से गिरा एक छोटे आइलॅंड पे बना ये होटेल हनिमूनर्स के लिए काफ़ी विख्यात था, और देखा जाए तो हर जगह कोई ना कोई जोड़ा दिख जाता था. बस एक ही सूट था इस होटेल में जिसमें 4 बेड रूम थे और किस्मत अच्छी थी तो सुनील को मिल गया था. 

सुनील रूबी के साथ रेस्टोरेंट में पहुँच गया था और दोनो बीच के पास की टेबल पे जा कर बैठ गये थे.

सुनील सोच ही रहा था कि बात कैसे और क्या शुरू करे कि रूबी ही बोल बैठी. बोलने से पहले रूबी ने सुनील के हाथों को अपने हाथों में थाम लिया था. हाथों पे लगी मेंहदी और सुहाग चूड़ियाँ सॉफ बता रही थी, कि दोनो हनिमून पे आए हैं और काफ़ी जोड़े दोनो के देख रक्श खा रहे थे.

'सविता के बारे में ज़्यादा मत सोचो, ठीक हो जाएगी, पता नही क्यूँ ऐसा बिहेव कर रही है'

सुनील ध्यान से उसे देखने लगा आज काफ़ी समय के बाद सवी का पूरा नाम उभर के आया था और रूबी ने सीधा नाम का इस्तेमाल किया था, ना कि माँ या फिर दीदी जैसे उसने बुलाना शुरू कर दिया था.

'कितना समझती हो तुम सवी को, कितना जानती हो उसे' सुनील ने सवाल दाग दिया.

'औरत को कभी कोई समझ सका है क्या ?' रूबी ने उल्टा सवाल कर दिया.

'हां, सब के लिए तो नही कह सकता पर कुछ को बखूबी जानता हूँ और समझता भी हूँ, जैसे वो मुझे समझ लेती हैं मैं उन्हें समझ लेता हूँ'

'समझ तो आप वैसे सविता को भी गये होंगे, खैर ये बताइए मुझे क्या करना है, मुझे कितना समझे आप'

'तुम वो मोती हो, जो सीप से बाहर निकल सागर की थपेड़ों में इधर से उधर लुढ़कती फिर रही थी, फिर एक दिन तुम मेरी झोली में आ गिरी और मेरे गले के हार में बस गयी'

इन चन्द अल्फाज़ों में रूबी की पूरी दास्तान बसी हुई थी, जिसे बिना कुरेदे सुनील ने सब कह डाला था और अब उसका क्या स्थान है वो भी बता दिया था.

इस से पहले के रूबी की आँखें छलकती, सुनील बोल पड़ा.

'अब सेंटी हो कर मूड ना खराब करना- ये बताओ क्या पियोगी, खओगि'

'जो आपका दिल करे'

'एक बात याद रखना, शादी का मतलब गुलामी नही होता, पहनो जग भाता यानी वो कपड़े पहनो जो दुनिया को अच्छे लगते हैं जिनमें तुम सुंदर दिखती हो, जिनमें तुम्हारा एक अस्तित्व झलकता है, पर खाओ वही जो मन भाता यानी जो तुम्हारा दिल करे वो खाओ, ना कि दुनिया को देख के वो खाओ जो दुनिया खाती है'

' ये बात उसपे लागू होती है जिसका अपना कोई वजूद हो, रूबी तो सुनील में बस गयी, वो अब बस सुनील की परछाई है, जो सुनील को पसंद, वही रूबी को पसंद'

सुनील सीधा मुद्दे पे आ गया ' क्या सवी से दूर रह पाओगी'

'शादी के बाद क्या माँ दहेज में साथ आती है क्या, आप जानो और सविता जाने, मैं बस आप को जानती हूँ और आपके परिवार को, जो भी उसमें होगा, वो मेरे सर आँखों पे'

रूबी ने सॉफ लफ़्ज़ों में कह दिया वो बस सुनील को जानती है, जो उसके साथ है वो उसकी इज़्ज़त करेगी, जो नही, उससे रूबी का कोई लेना देना नही.

'ह्म्म'

सुनील सर हिला के रह गया फिर उसने खाने का ऑर्डर कर दिया और साथ में वोड्का मंगवाली खाने से पहले ही. वोड्का के दो जाम दोनो ने पिए फिर खाना खाया और बीच पे टहलने लगे, टहलते टहलते दोनो काफ़ी दूर एकांत में पहुँच गये. रूबी इतना चल कुछ थक भी गयी थी, यूँ लग रहा था जैसे वो आइलॅंड के दूसरे छोर पे पहुँच गये हों, जहाँ एक छोटा सा जंगल भी था.

 
एक पेड़ की छाँव तले दोनो बैठ गये और रूबी ने अपना सर सुनील के कंधे पे रख दिया. दोनो ही कुछ सोच रहे थे पर शायद अभी दोनो में वो दिली नज़दीकी नही आई थी कि साँसों की लय से ही दूसरे के दिल का हाल जान लेते. सुनील को एक बात का तो इतमीनान हो गया था कि सवी के बारे में वो जो भी फ़ैसला लेगा, रूबी कुछ ना नकुर नही करेगी. लेकिन फिर भी वो बहुत ही गहराई से सोचना चाहता था, और शायद उसके फ़ैसले को सही दिशा या तो सूमी दिखा सकती थी या फिर सोनल, जब से सोनल माँ बनी थी, उसके सोचने का तरीका बदल गया था, वो बिल्कुल सूमी की तरहा सोचने लगी थी.

ना जाने क्यूँ आज सुनील को इस बात का पछतावा हो रहा था कि उसने सूमी की बात को मान कर सवी से शादी क्यूँ की, लेकिन ये भी तो होनी का खेल था इसे होना था सो हो गया, सबसे बड़ी चिंता तो सुनील को आगे की थी, बहुत उथल पुथल हो चुकी थी जिंदगी में और आगे वो बस शांति चाहता था, वो और उसका परिवार कहीं दूर जा के बस खुश रहे.

सुनील के कंधे पे सर रखे रूबी सोचते सोचते सो गयी. सुनील जब सोचों से वापस आया तो उसने रूबी की तरफ देखा उसके चेहरे की मासूमियत देख वो सोचने पे मजबूर हो गया, क्या ये वाकई में सवी की बेटी है. नही सागर के भी तो गुण थे उसमें जो झलक रहे थे. एक गहरी साँस ली सुनील ने और ऐसे ही बैठा रहा ताकि रूबी की नींद में खलल ना आए.

वहाँ सोनल और सूमी तो घुप सो गयी थकान के मारे. मिनी की आँखों से नींद तो कब की उड़ चुकी थी, उसने बच्चों को संभाल लिया और उन्हें भी सुला दिया. एरपोर्ट पे सुनील को देख एक टीस सी उठी उसके सीने में......सुनील और सुनेल .....जुड़वा पर कितने अलग, परवरिश क्या क्या नही कर डालती, वो सुनील और सुनेल की तुलना करने लगी और उस पल को कोसने लगी जब सुनेल उसकी जिंदगी में आया. वक़्त का पहिया पीछे की तरफ सरकते हुए उसे अपनी यादों की गुफ़ाओं में ले जाने लगा तो उसने अपना सर झटक डाला, और उठ के कमरे से बाहर आ गयी.

सवी अपने कमरे में किसी से फोन पे बात कर रही थी, उसकी आवाज़ थोड़ी तेज थी, वो काफ़ी गुस्से में थी.

मिनी ने बस इतना सुना ' तुमसे कोई काम ढंग से नही होता, क्या जल्दी थी सूमी को इतनी जल्दी.......' आगे बोलते बोलते वो रुक गयी और कुछ देर बाद चिल्ला पड़ी ' शट अप' और फोन वहीं बिस्तर पे दे मारा.

मिनी के कान खड़े हो गये सवी का किसी को फोन पे झाड़ना और सूमी का नाम बीच में आना, उसे कुछ घपला सा लगने लगा, कहीं सवी उसे अपने कमरे के पास देख ना ले, वो तुरंत बाहर चली गयी और रेलिंग पे खड़ी दूर तक फैले समुद्र को देख सोचने लगी, अपनी बिखरती, और सिमटती फिर बिखरती जिंदगी के बारे में. ना जाने अब किस दिशा में जिंदगी उसे ले के जाएगी.

'कमीना कुत्ता, आख़िर समर का ही खून है ना - हरामज़ादा चूत के पीछे पड़ गया, बोला था उसे एमोशन में ला कर लंडन ले जाओ, सुनील से दूर कर दो, नही उसे भी हक़ चाहिए, वो भी बराबर का, जैसा बाप वैसा बेटा'

सवी अपने कमरे में तड़पति हुई शेरनी की तरहा बुदबुदा रही थी, ये भी होश ना था कि उसकी आवाज़ कमरे से बाहर जा रही है, और बाहर खड़ी सूमी को अपने कानो पे भरोसा ही नही हो रहा था, जो वो सुन रही है वो सच है या कोई डरावना सपना, इसी बहन के लिए उसने सुनील को मोह्पाश में बाँध अपनाने के लिए तयार किया और यही बहन..... सूमी के तनबदन में आग लग गयी ... और ज़ोर से लात मार के दरवाजा खोला --- जिसकी भड़क की आवाज़ से ना सिर्फ़ मिनी भागती हुई अंदर आई , सोनल भी उठ के आँखें मलते हुए हॉल में आ गयी ....

दरवाजे पे घायल शेरनी की तरहा सूमी को देख सवी की रूह तक काँप गयी....

'दी आप्प्प!!!!!' घबराती हुई सवी बोली...

'मत बोल मुझे दी अपनी गंदी ज़ुबान से' सूमी चिंगाड़ती हुई आगे बढ़ी और अलमारी से सवी का समान निकाल के बाहर फेंकने लगी....

'दी मेरी बात समझो, मेरा कोई ग़लत इरादा .....'

'नही ग़लती मेरी थी जो सुनील को मजबूर किया तुझे अपनाने के लिए, अब तेरी शराफ़त इसी में है सुनील के आने से पहले दफ़ा हो जा, उसे अगर तेरी हरकत का पता चला तो पता नही क्या कर डालेगा जा अपने सुनेल के पास , कुतिया कभी इंसान नही बन सकती कुतिया ही रहेगी ...थू है तुझ पे, समेट अपना समान फटाफट, डाइवोर्स पेपर्स पहुँच जाएँगे तेरे पास आलिमनी के साथ, जहाँ मर्ज़ी जा कर अपनी खुजली मिटा और हमारी जिंदगी से दूर चली जा बस नही तो तेरे लिए अच्छा नही होगा.'

सूमी का ये रूप देख तो सोनल और मिनी तक कांप गयी थे, बार बार दोनो की नज़रें दरवाजे पे थी कि अभी सुनील अंदर घुसा और फिर.....आगे का तो सोच भी नही पा रही थी दोनो.

सूमी इतनी ज़ोर से गरज रही थी के बंग्लॉ की लक्कड़ की दीवारें तक हिलने लगी थी.

तभी समुद्र में जैसे ज़लज़ला सा आ जाता है, ना जाने कहाँ से आदमख़ोर शार्क उस इलाक़े में आ जाती है और इनके बंग्लॉ के नीचे उथल पुथल मचा देती है जिससे बंग्लॉ के पिल्लर्स पानी में उखड़ जाते हैं और बंग्लॉ भरभराता हुआ पानी में गिरने लगता है, सब इधर उधर लूड़क जाते हैं.

'न्न् ..नननननननणन्नाआआआआआआआहहिईीईईईईईईईईईईईईईईईईईई' सूमी ज़ोर से चीखती है और उसकी आँख खुल जाती है साथ लेटी सोनल भी घबरा के उठती है और सूमी को देखती है जो पसीने से लथ पथ थी.

'क्या हुआ ! अरे, इतना पसीना, ये चीख...कोई बुरा सपना देख लिया क्या' सोनल सूमी के माथे को पोछती हुई पूछती है.

ये सपना एक पैगाम था सूमी के लिए आनेवाले ख़तरे को पहचानने के लिए.

सूमी की चीख सुन मिनी अपने ख़यालों से वापस आती है और इनकी कमरे की तरफ दौड़ती है, सवी तक भी सूमी की चीख पहुँच गयी थी, वो भी भागती हुई इनके कमरे में आती है और जैसे ही सवी अंदर घुसती है सूमी उसे घूरती हुई बिस्तर से खड़ी हो जाती है.

सूमी सवी को ऐसे घूर रही थी जैसे उसका X-रे कर रही हो. इससे पहले के सूमी सवी को कुछ कहती सुनील वहाँ पहुँच गया और महॉल देखते ही उसे खटका हुआ कि कहीं सूमी को सवी के बारे में कुछ पता तो नही चल गया.

उसने महॉल को हल्का करने की कोशिश करी ' बीवियों बहुत थक गया हूँ यार कुछ पिलाओ विलाओ'

सूमी का ध्यान एक दम सुनील पे गया ' अरे कब आए, आओ बैठो मैं ड्रिंक बनाती हूँ' 

मिनी चुप चाप बाहर चली गयी. सोनल ने रूबी को अपने पास खींच लिया और उसकी नज़रों में झाँकने लगी, रूबी बेचारी शरमा के लाल पड़ गयी और नज़रें झुका ली.

'आए बन्नो, नज़रें झुकाना नोट अलोड' सोनल ने घुड़की दी तो रूबी उसके सीने से लिपट गयी और अपना चेहरा छुपा लिया.

सुनील बिस्तर पे लंबा पड़ गया और उसकी नज़र जब सवी पे पड़ी तो उसकी आँखों में शरारत आ गयी .

'सवी जान दो दिन की छुट्टी मिल गयी तुम्हें जो तुमने माँगी थी अब फटा फट रेडी हो जाओ, कुछ देर में बाहर निकलेंगे'

सवी का चेहरा 1000 वाट के बल्व से भी ज़्यादा खिल उठा और वो अपने कमरे में भागी तयार होने.

उसके जाते ही सुनील का चेहरा कठोर हो गया - वो सवी को बख्सने वाला नही था.

रूबी के सर को सहलाती हुई सोनल सुनील को ही देख रही थी, और उसके बदलते रंग को देख वो घबरा गयी उसे एक तुफ्फान आता हुआ दिखने लगा और वो सूमी के सपने का आना और सुनील के बदलाव को जोड़ने की कोशिश करने लगी.

दिल में उसके एक दम भयंकर टीस उठी, सुनील की रूह घायल सी थी, जो फडफडा रही थी.

सोनल : रूबी जा कमरे में आराम कर कपड़े भी चेंज कर ले

सोनल ने रूबी को भेज दिया और सुनील के पास जा कर बैठ गयी.

इतने में सूमी सुनील के लिए ड्रिंक बना लाई.

सुनील ने उठ के ड्रिंक उसके हाथ से ली और तगड़ा घूँट लगाया.

सूमी : जो भी करना सोच समझ के, क़ानून मत तोड़ना.

सोनल और सुनील दोनो ही सूमी को देखने लगे.

सुनील ने जैसे ही उसे तयार होने को बोला, सवी भूल ही गयी उन आँखों को, हां सूमी की आँखों को जिनमें आक्रोश था, जिनमें एक पछतावा था, जिनमें एक ग्लानि थी अपने प्यार को झुकाने की.

सूमी सुनील के अंदर उमड़ते हुए तूफान को पहचान चुकी थी, और उसे अपने सपने के पीछे छुपे राज का भी पता चल गया था.

इसीलिए उसने सुनील से कहा था कि क़ानून अपने हाथ में मत लेना. ये इशारा था सूमी का सुनील को - जो भी करो ऐसा करो की साँप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे. ऐसी सज़ा दो सवी को जो काला पानी से भी बत्तर हो.

सूमी अभी ये नही जानती थी कि सवी का असल मक़सद क्या था लेकिन सुनील के दिल की धड़कन उसे बहुत कुछ बता चुकी थी, सुनील की आँखों में बसा दर्द जो मुस्कान का मुखौटा ओढ़े हुए था, वो दर्द सूमी से नही छुपा था.

सोनल भी सुनील को गहराई से देख रही थी, वो कुछ कहना चाहती थी, पर सूमी और सुनील के बीच ना आना ही उसने बेहतर समझा, शायद दिल ये कह रहा था, शब्दों की ज़रूरत नही, पैगाम दिल से दिल तक पहुँच जाएगा.

और सुनील तक उसका पैगाम पहुँच भी गया था जब दोनो की नज़रें मिली तो सोनल रूह की गहराई से माफी माँग रही थी, क्यूँ उसने साथ दिया सूमी का और सुनील को मजबूर किया सवी को अपनाने के लिए.
 
भावनाएँ बहक जाती हैं, इसका सिला आज सबको मिल रहा था. रूबी कमरे में बैठी भूल गयी थी कि वो थकि हुई है और फ्रेश होने आई थी, सवी का बर्ताव जो कुछ दिनो से था, वो उसकी गहराई तक जाने की कोशिश कर रही थी और सुनील की बातों में उसे एक तूफान छुपा हुआ दिख रहा था. ये नयी जिंदगी जाने अब कॉन सी करवट लेगी. कुछ भी हो जाए चाहे बेटी माँ से कितनी भी नाराज़ क्यूँ ना हो जाए वो ये नही भूल पाती कि वो बेटी है, ये अहसास रूबी को कचोट रहा था, कितनी आसानी से सुनील को कह दिया - माँ दहेज में नही आती --- क्या मैं भी तो सवी की तरहा....नही नही मैं ऐसा कुछ नही कर रही, मैं सुनील को और दीदी को और सूमी माँ को कोई तकलीफ़ नही दे रही.

पर माँ ऐसा क्यूँ कर रही है, सौतन बनते ही क्या भूल गयी कि माँ बेटी का रिश्ता कभी ख़तम नही होता चाहे कितनी और परतें उन पे पड़ जाएँ.

देखो सोनल और सूमी को कैसे दो जिस्म एक जान हो कर जी रही हैं, कितनी खुश हैं, तो सवी और मैं ऐसा क्यूँ नही कर पाए, मेरी तरफ से तो कोई कमी ना थी, पर फिर क्यूँ? 

इसका जवाब रूबी को नही मिल रहा था. मिलता भी कैसे क्यूँ शुरुआत तो तब हुई थी जब रूबी पैदा भी नही हुई थी.

जलन की शुरुआत, और इसकी बुनियाद तब पड़ी थी, जब सागर और सूमी की सगाई हुई थी.

सागर मेरा क्यूँ नही हो सकता, ये सवाल सवी के अंदर बस गया था, उसी समय जब पहली बार उसने सागर को देखा था. वो सागर और विजय की तुलना कर रही थी, जहाँ विजय उसे बीच में छोड़ गया था, वहीं सागर का व्यक्तित्व एक दम विजय से मेल खा रहा था, और सवी सागर में विजय को देखने लगी थी, उसे सागर में विजय का दूसरा रूप दिख रहा था, जिसपे सिर्फ़ और सिर्फ़ उसका हक़ था. पर छोटी होने की वजह से कुछ बोल ना पाई थी.

जलन इंसान को कितना अँधा कर देती है.

सवी के अंदर बसी इस जलन को सुनील पहचान गया था, जिसे बड़ी खूबी से सवी ने छुपा के रखा हुआ था, ये जलन सामने ना आए उसके लिए जाने कितने नाटक किए.

लेकिन कहते हैं सच चाहे कितने भी अंधेरो में छुपा हो, वो छुपा नही रहता, वो सामने आ ही जाता है. सवी का ये सच भी सुनील के सामने आ चुका था. सवी को नही पता था कि आज क्या होगा, सुनील उसके साथ क्या करेगा.

कहने को सूमी ने सुनील को समझा दिया था, पर उसके गुस्से को वो अच्छी तरहा जानती थी, इसलिए उसका दिल घबरा रहा था, ये तूफान जो दबा हुआ था, वो उठने वाला था, और उठ के जाने वो क्या रूप लेगा, दिल पहले ही सुनेल की हरकत से दुखी था, उसपे सवी ने शोले डाल दिए थे.

आज सूमी सुनील की बाँहों का सकून चाहती थी, पर वक़्त ने ये नसीब नही होने दिया.

सुनील उठ के खड़ा हो गया और सूमी को अपनी बाँहों में कस उसके होंठों को चूसने लगा.

अहह एक मरहम सूमी की घायल रूह पे लग गया और उसे सच में एक नयी ताक़त मिल गयी, जिंदगी के उतार चढ़ाव को फिर से एक नये ढंग से लड़ने की. क्यूंकी अब लड़ाई किसी बाहरवाले से नही घर के अपने बंदे से थी.

सूमी के होंठों को कुछ देर चूसने के बाद उसने सोनल को अपनी बाँहों में खींच लिया और उसके चेहरे को चुंबनों से भरके के बाद बोला.

'घबराना मत, मैं जल्दी वापस आ जाउन्गा, शायद आधी रात तक.' इतना कह सुनील कमरे से बाहर निकल गया और रूबी के कमरे में चला गया, जो इस वक़्त शून्य में घूरती हुई खुद से सवाल कर रही थी और खुद ही उनका जवाब देने की कोशिश कर रही थी.

सुनील उसके पास जा कर बैठ गया, 'क्या सोच रही हो?'

रूबी एक दम ख्यालों से बाहर आई और सुनील को देखने लगी - इस वक़्त उसकी आँखों में एक प्रार्थना थी - प्लीज़ सब ठीक कर दो ना - समझा दो ना सवी को.

उसकी आँखों में बसे दर्द को पढ़ सुनील के दिल में टीस उठ गयी, पर वो मजबूर था. रूबी की ये ख्वाइश वो पूरी नही कर सकता था.

रूबी के माथे को चूमते हुए बोला ' परेशान मत हो जान, जो होगा अच्छे के लिए होगा, फ्रेश हो जाओ और रेस्ट कर लो, मुझे देर हो जाएगी, तुम लोग खाना खा लेना'

इतना कह वो सवी के कमरे की तरफ बढ़ गया.

आज सुनील खुद को धरम संकट में महसूस कर रहा था, रास्ते भर जब से वो सवी के साथ होटेल से बाहर निकला यही सोचता रहा. आज उसकी एक बीवी के खिलाफ उसकी दूसरी बीवी है. दोनो बीवियाँ आपस में बहने हैं.

एक का दिल सागर की गहराई से भी बड़ा तो दूसरी का दिल - दिल के नाम पे कलंक, जलन और वो भी सगाई बहन से, अगर किसी ने कोई कमी रखी होती तो इस जलन को समझा जा सकता था, अभी तो शादी भी नही हुई थी और बड़ी की सगाई के समय ही जलन के भाव उत्पन्न हो गये. 

सुनील का गुस्सा जो सातवें आसमान पे था वो कुछ कम पड़ गया था. कहते हैं कि परवरिश अच्छी हो तो इंसान कोई भी फ़ैसला लेने से पहले दस बार सोचता है, यही सुनील भी कर रहा था. उसकी सोच कुछ बदल सी रही थी, जलन तो आदमी भी एक दूसरे से करने लगते हैं और फिर लड़की वो तो ख़ान होती है जलन की, ये तो एक भाव होता है हर लड़की में किसी का दब जाता है किसी का पनपने लगता है और इसके पीछे हालात होते हैं.

ना विजय सवी को मझदार में छोड़ता ना सवी सागर की तुलना विजय से करती ना उसके अंदर जलन की भावनाएँ उत्पन्न होती. खेल तो होनी ने खेला था, तो उसकी सज़ा सिर्फ़ सवी को क्यूँ मिले.

सुनील ने सवी को एक मौका देना उचित समझा और ऐसा काम देने का सोचा कि खुद ब खुद सवी के दिमाग़ से वो जलन की भावनाएँ जड़ समेत ख़तम हो जाए.

और ये काम आसान नही था, बहुत ही मुश्किल था. और काम था - सुनेल को रास्ते पे लाना, उसे उसकी माँ के पास एक सच्चे बेटे के रूप में भेजना जिसके अंदर की सभी कलुषित भावनाएँ नष्ट हो चुकी हों.

जहाँ एक तरफ समर की आत्मा सुनेल को भृष्ट कर गयी थी, उसके रहते ये काम को अंजाम देना एवेरस्ट की चढ़ाई से भी कठिन था.

अभी सुनील सोच ही रहा था कि इनका गन्तव्य आ गया. सुनील ने आज रात के लिए एक और होटेल बुक किया था जहाँ वो सवी को लाया था अकेले बात करने.

एक तरफ सवी खुश थी कि सुनील उसे सबसे दूर ले आया अकेले में वहीं दूसरी तरफ दिल में छिपा चोर कुछ डर सा रहा था, क्यूंकी ये सुनील की आदत नही थी कि वो सूमी और सोनल को अकेले छोड़ दे और खुद बाहर चला आए जबकि वो दोनो आ चुकी थी और खुद सुनील ने दोनो को बुलाया था.
 
धड़कते दिल से वो सुनील के साथ चली और सुनील उसे एक 5* होटेल में ले गया जहाँ उसने चेक्किन किया, एक रात के लिए सुनील ने हनिमून सूट बुक करवा लिया था, सवी तो सूट की चकाचोंध में खो गयी थी और सुनील अपने लिए ड्रिंक बनाता हुआ सोच रहा था कि कैसे बात शुरू करे.

सवी खिड़की पे खड़ी हो बाहर शाम के नज़ारे लेने लगी, बीच से दूर शहर की चहल पहल आज अच्छी लग रही थी, क्यूंकी आज वो सुनील के साथ अकेले थी, कोई नही था जो उसका ध्यान बाँट ले.

सुनील ने दो पेग गटगट डकारे और सवी के पास जा उसके साथ चिपक के खड़ा हो गया उसकी गर्दन पे अपने गरम तपते हुए होंठ रगड़ते हुए बोला ' क्या सोच रही हो?'

'कुछ भी तो नही बस ये टिमटिमाती हुई लाइट्स देख रही हूँ, अच्छी लग रही है ना'

'हां ये लाइट्स भी एक दूसरे से कितना जलती होंगी देखने वाले की नज़र एक पे नही टिकती सबको बराबर देखता है'

सवी की साँस उपर नीचे हो गयी एक डर सा समा गया उसके अंदर, कहते हैं कि चोर की दाढ़ी में काला तिनका होता है, कुछ ऐसा ही हाल हुआ सवी का 'जलन' शब्द सुन कर.

'ह्म्म तुम कब खुद को बदलोगी ?' सुनील उसकी साँसों की बढ़ती हुई रफ़्तार को महसूस कर उसके कंधे पे अपनी जीब फेरते हुए उसकी साड़ी के पल्लू के क्लिप को खोल बैठा और पल्लू लहराता हुआ ज़मीन पे गिर पड़ा.

'म म म मतलब?'

'वो तुम जानती हो....अब इतनी मासूम भी ना बनो'

'मैं...मैं...मैं....' सवी आगे बोल ना पाई उसका रोना निकल गया.

'मैं ..मैं क्या? हम...जो तुमने रूबी के साथ किया पिछले दो दिन, क्या वो ठीक था ? ...वो तुम्हारी बेटी है..कैसे भूल गयी तुम ??? और अब तक जो करती आ रही हो ..क्या वो सब ठीक है .../ ' सुनील के हाथ सवी के उरोज़ पे आ गये और उसे मसल्ने लगे.

सवी के मुँह से कोई बोल नही निकल पा रहा था .

'प प पता नही कैसे मुझ से .....'

'झूठ मत बोलो सवी कम से कम अपने आप से, मुझसे तो कभी कुछ नही छुपा पाओगि, लेकिन अपनी आत्मा के आईने में झाँक के देखो - तुम कहाँ हो और सूमी कहाँ है - तुमने खुद को ज़्यादा ज़रूरी समझा और सूमी के लिए सोनल और मैं ज़रूरी हैं और अब तो तुम और रूबी भी शामिल हो गयी हो जिनको वो खुद से आगे रखती है ......सोचो क्या कर रही हो तुम और इस सबका अंजाम क्या होगा ?'

सवी को काटो तो खून ना निकले..जैसे सारा खून पल भर में सुख गया हो....सुनील ने उसे उसकी असली शकल दिखा दी थी, जिसे खुद के आईने में देखना उसके लिए दुश्वार हो गया था.

'म म ...'

'बहुत नाटक कर चुकी हो तुम सवी.....हद से ज़्यादा ....लेकिन काठ की हंडी बार बार नही चढ़ती ...'

और सुनील ने झट से सवी को घुमाया और उसकी आँखों में झाँकने लगा.


सुनील की पैनी दृष्टि से सवी की रूह तक कांप गयी.

सुनील बार बार सवी को उसका आईना दिखा रहा था और जब सुनील ने सवी को पलट उसकी आँखों में झाँका तो उनमें उसे कोई पछतावा नज़र नही आया, सुनील को अपना प्रयास विफल होता हुआ नज़र आया, बात सूमी और सोनल की होती तो सुनील सवी की परवाह ना करता, पर बात रूबी की भी थी, जो उसकी जिंदगी में शामिल हो चुकी थी, कहने को रूबी ने आसानी से कह दिया था कि माँ दहेज में नही आती, पर उसके अंदर छुपे दर्द को सुनील समझ चुका था और उसने फिर एक प्रयास किया.

सवी की आँखों में झाँकते हुए सुनील बोला ' क्या तुम खुद को सच्चे मन से बदलना चाहोगी, या मैं ये समझू, कि जो खेल तुमने खेला था उसका भंडा फुट गया और अब हम दोनो के अलग रास्ते हैं.

सवी छिटक के सुनील से दूर हुई और फटी आँखों से उसे देखने लगी.

सुनील ज़ोर ज़ोर से हँसने लगा मानो जैसे पागल ही हो गया हो, फिर कुछ देर बाद रुका और गुस्से से सवी को बोला, 'अगर तुम मेरी जिंदगी का हिस्सा बनना चाहती हो, तो जाओ और सुनेल के दिमाग़ में जो जहर तुमने भरा है उसे निकालो, सूमी को उसका वो बेटा वापस करो जो अपनी माँ को ढूंढता हुआ आया था, जिसके दिल में कोई मैल नही था.'

सवी : मैं मैने ....

सुनील : कोई और नौटंकी नही तुमने कब क्या किया क्यूँ किया सब पता चल गया है मुझे बस ये आखरी मौका तुम्हें दे रहा हूँ, वो भी इस लिए कि रूबी का दिल ना दुखे वरना कसम से तुम्हारी शकल भी देखने को दिल नही करता.

सवी धम्म से वहीं सोफे पे बैठ गयी.

सुनील ने अपनी जेब से एक टिकेट निकाली सवी की जो मुंबई के लिए थी.

सुनील - ये रही तुम्हारी टिकेट मुंबई की और ये रहे 4000$ तुम्हारे खर्चे के लिए. ख़तम हो जाएँ तो मेसेज कर देना और भेज दूँगा. याद रखना - सुनेल उसी तरहा बिल्कुल सफेद काग़ज़ की तरहा वापस चाहिए और इस काम के लिए तुम्हें 3 महीने दे रहा हूँ. ना ना ऐसे मत देखो मेरी तरफ मैं जानता हूँ इतना टाइम तुम्हें लगेगा ही उसे सही रास्ते पे लाने के लिए. तुम्हारी फ्लाइट 2 घंटे बाद है, नीचे कार इंतजार कर रही है तुम्हें एरपोर्ट ले जाने के लिए. उम्मीद तो नही है फिर भी दिल में एक ख्वाइश है कि तुम सुधर जाओ - रूबी को उसकी सवी मिल जाए और सूमी को उसका बेटा. अब देखना ये है तुम इस इम्तिहान में पास होती हो या फैल.

इतना कह सुनील कमरे से निकल गया नीचे लॉबी में पहुँचा और पियर की तरफ कार दौड़ा दी.
 
बोझिल कदमों से सवी नीचे उतरी और कार में बैठ एरपोर्ट की तरफ निकल पड़ी , मन में हज़ारो सवाल थे पर जवाब कोई नही था. सवी अपने इस इम्तिहान में कामयाब होगी? या सवी अपने जीने की रह बदल डालेगी? क्या करेगी सवी इसका जवाब मैं रीडर्स के उपर छोड़ता हूँ और अब चलते हैं वापस सुनील के पास जो दुखी दिल से पियर पहुँच गया था और स्टीमर ले कर वापस अपने होटेल जा रहा था अपनी सूमी,सोनल और रूबी के पास.

सुनील जब वापस होटेल पहुँचा तो रात का 1 बज चुका था उसने अपनी चाबी से सूट खोला और चुप चाप हॉल में बैठ गया फ्रिड्ज से व्हिस्की की बॉटल निकाल कर, अपने लिए पेग बनाया और जो कर के आया था उसके बारे में सोचने लगा - क्या उसने ठीक किया या ग़लत?

दिल और दिमाग़ दोनो परेशान थे उसके दिल बिल्कुल नही लग रहा था उठ के बाहर चला गया और दूर तक फैले समुद्र को देखने लगा जिसे किसी की परवाह ना थी वो खुद में मस्त था. बहुत सी ज़िंदगियाँ उसके साथ जुड़ी थी, पर वो खुद का मालिक था उसे परवाह ना थी उन ज़िंदगियों की, यही फरक होता है एक इंसान में और कुदरत के एक बसेरे में.

आज की बिछड़े ना जाने कल मिलेंगे या नही ? एक ठंडी साँस छोड़ उसने एक घूँट में ग्लास खाली किया और दूसरा पेग बनाने हॉल में चला गया.

हॉल में पहुँचा तो उसकी तीनो बीवियाँ वहीं माजूद थी और धड़कते दिल से हॉल के दरवाजे की तरफ देख रही थी, उन पर नज़र पड़ते ही सुनील ने चेहरे पे मुस्कान का लबादा ओढ़ लिया और उनके पास जा कर बैठ गया.

आज की रात शायद कोई नही सोनेवाला था. 4 लोग और जाग रहे थे विजय/आरती/राजेश और कविता. जिंदगी यूँ करवट बदलेगी किसी ने ना सोचा था. एक सवाल सबके जहन में था, लेकिन उस सवाल का जवाब किसी के पास नही था, वो जवाब तो होनी अपने अंदर समेट के बैठी थी.

अपने आप से लड़ती, खुद सवाल करती और खुद जवाब देती, कभी खुद को सही बोलती और कभी खुद को ग़लत, एक गुरूर सा था उसे खुद पे, वो गुरूर आज नैस्तोनाबूद हो गया था, आज सवी खुद को नितांत अकेला महसूस कर रही थी. उसने सब कुछ पा के सब कुछ खो दिया था. ये खोने का अहसास उसे पल पल जलता जा रहा था, जिंदगी आगे कॉन सी करवट लेनी वाली है ये वो खुद नही जानती थी. 

उसका आतम विश्वास डगमगा चुका था, अंदर एक खोखलापन महसूस हो रहा था ना जाने क्या सोच उसने विजय को मेसेज कर डाला, अपनी फ्लाइट की डीटेल दी और एरपोर्ट पे मिलने को कहा.

यहाँ सबको मालूम था कि सवी ने सुनील से शादी कर ली है और यूँ अचानक उसका मेसेज जब आया तो विजय चोंक गया.उसने आरती को वो मेसेज दिखाया और आरती को कुछ अनहोनी हुई महसूस हुई, दोनो बेडरूम से हाल में आ गये. हाल की लाइट की रोशनी जब राजेश के कमरे में खिड़कियों से अंदर दाखिल हुई तो राजेश और कविता जो इस वक़्त सोने की तैयारी कर रहे थे चोंक गये और उठ के हाल में आ गये. विजय ने बात नही छुपाई और उनको बता दी. हर शक्स अपनी ही सोच में गुम हो गया.

तभी राजेश ने एक सवाल किया : पापा ये लोग मालदीव से कहाँ जाएँगे.

विजय खामोश रहा.

राजेश : पापा प्लीज़ बताओ ना मैं चाहता हूँ कविता सबके साथ कुछ वक़्त बिता ले, फिर पता नही कब मिलना नसीब होगा.

विजय : अगर ऐसी बात है तो तुम लोग भी मालदीव चले जाओ घूमने.

कविता : पापा हम लोग उन्हें नयी जगह पे सेट्ल होने में मदद करना चाहते हैं.

आरती : जाने दो ना इन्हें, जितना ये दोनो पूरे परिवार के हितेशी हैं और कोई नही, बात इनके सीने में ही दफ़न रहेगी.

विजय कुछ पल सोचता है : ठीक है सुनील और रूबी को हनिमून पे ज़्यादा परेशान नही करना चाहिए अब तो सुमन जी और सोनल भी वहाँ पहुँच चुके हैं. तुम लोग भी वहाँ जाते तो उन्दोनो को तो वक़्त भी ना मिलता कुछ पल अकेले रहने का. मैं तुम दोनो का इंतेज़ाम करवा दूँगा उन्हें रिसीव करने का. अब ज़रा इस मुसीबत को देख लें जो आ रही है, जाओ तुम दोनो और सो जाओ.

राजेश : पापा आप आराम करो मैं एरपोर्ट चला जाता हूँ.

विजय : ना बेटा, ये काम मुझे ही करना होगा, मैं और आरती चले जाएँगे तुम लोग जाओ सो जाओ फिर कल काफ़ी बिज़ी होगा तुम्हारा.

विजय ने जिस टोन में कहा था राजेश और कविता कुछ ना बोल पाए, दोनो चुप चाप सोने चले गये.

विजय और आरती आपस में बात कर वक़्त काटने लगे क्यूंकी सो तो सकते नही थे फ्लाइट का टाइम ही ऐसा था.

वक़्त होने पे दोनो एरपोर्ट के लिए निकल गये अपने चाबी अपने साथ ले गये और राजेश व कविता को तंग नही किया.

यहाँ जब सुनील अपनी बीवियों के पास जा कर बैठा तो सोनल बोली - चलिए आप दोनो अब जा कर सो जाइए, बहुत रात हो चुकी है, चलो दीदी हम भी सोते हैं सुबह बात करेंगे.

सोनल सूमी को लगभग खींचते हुए साथ ले गयी ताकि सुनील और रूबी अकेले रह सकें, इस वक़्त शायद रूबी को सुनील की सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी.

सुनील ने अपनी बाँहें फैला दी और रूबी लपकती हुई उन बाँहों में समा गयी.

सुनील रूबी को उठा के बेडरूम में ले गया और धीरे से बिस्तर पे लिटा दिया. मूड सुनील का बहुत ऑफ था और रूबी के अंदर एक डर समाया हुआ था, हालाँकि पीछे सोनल और सूमी ने उसे काफ़ी समझाया था, पर रूबी के दिल में ये बात बैठ गयी थी कि कहीं सुनील उसके बारे में कोई ग़लत धारणा ना बना ले आख़िर सवी का भी तो खून था उसमें.

अपने दिमाग़ को हल्का करने के लिए सुनील बाथरूम में घुस गया और बिना कपड़े उतारे शवर के नीचे खड़ा हो गया, उसने दरवाजा बंद नही किया था और रूबी को सब दिख रहा था, सुनील की ये दशा देख एक टीस उठी रूबी के दिल में, वो फट से बिस्तर से उठी और अलीमारी में से सुनील का नाइट सूट निकाल लाई, और बाथरूम के किनारे खड़ी हो गयी, सुनील के इंतजार में.

शवर के नीचे खड़े हुए सुनील की नज़र रूबी पे पड़ गयी थी जो सहमी सी फर्श के कालीन को अपने पैर के अंगूठे से खरोचती हुई हाथ में नाइट सूट पकड़े उसका इंतजार कर रही थी, रूबी के चेहरे की मासूमियत देख सुनील के दिल से सवी के लिए पनपी नफ़रत एक तरफ हो ली और रूबी के लिए उसके दिल में प्यार की कॉम्पलें और भी गहरी हो गयी , वो आगे बढ़ा, दरवाजे तक पहुँचा, रूबी के हाथ से नाइट सूट खींच बिस्तर पे फेंका और उसे बाथरूम में खींच लिया.

'आआआआययययययययीीईईईईईईईई म्म्म्मकमममाआआआआअ' घबरा के रूबी चीख पड़ी कुछ पल तो उसे कुछ समझ ही ना आया कि ये हुआ क्या, लेकिन जब शवर से निकलती ठंडी पानी की बूँदें जिस्म पे पड़ी तो और भी झटका लगा ' आआआवउुुऊउककचह'

वो बाहर निकालने को भागी पर सुनील ने उसे अपनी बाँहों में क़ैद कर लिया.


'अरे कहाँ चली मेरी बुलबुल'

'आह छोड़ो प्लीज़ रात बहुत हो गयी है आप थक गये होगे, चलो जल्दी बाहर निकलो, और सो जाओ'

'थकान ही तो दूर कर रहा हूँ'

इतना कह सुनील ने अपने होंठ रूबी के होंठों से चिपका दिया और धीरे धीरे उनकी मिठास चूसने लगा.

हर बीत ते पल के साथ रूबी की साँसे तेज होती चली गयी, जिस्म में प्यार का नशा घुलने लगा, टाँगों ने तो जैसे जिस्म के भार को उठाने से मना कर दिया, आँखों में गुलाबी डोरे सर उठाने लगे, और खुद को गिरने से बचाने के लिए रूबी की पकड़ सुनील की बाँहों पे सख़्त होती सरक्ति हुई उसकी पीठ तक पहुँच गयी और रूबी ने खुद को सुनील के साथ चिपका लिया.

ये समा वो समा था, जो दीन दुनिया को भुला देता है, इस वक़्त बस दो बदन और दो रूहें एक दूसरे को महसूस कर रहे थे, साँसे आपस में घुलती हुई वातावरण को और महका रही थी, पानी की गिरती बूँदें जैसे कह रही थी, हमे भी होंठों के दरमियाँ आने दो, लज़्ज़त में इज़ाफ़ा हो जाएगा.

रूबी की अंतरात्मा तक खिल उठी, एक बोझ था उसके जेहन में कि पता नही सवी की पोल खुलने के बाद उसका क्या हश्र होगा, पर अब सब कुछ ख़तम था, वो डर चूर चूर हो गया था और बचा था तो सिर्फ़ प्यार जो वो दिलोजान से सुनील से करती थी.

सुनील के हाथ रूबी के वस्त्रों से उलझ गये और एक एक वस्त्र वहीं बाथरूम के फर्श पे गिरने लगा. लज़ाई सकूचाई रूबी धीमी धीमी आँहें छोड़ती मस्ती के उस आलम में पहुँच गयी जहाँ दुनिया के सारे एहसास ख़तम हो जाते हैं, जहाँ दिमाग़ और दिल का कोई वजूद नही रहता, जहाँ सिर्फ़ एक आत्मीय सुख की अनुभूति का एहसास रह जाता है.

सुनील रूबी को उठा बिस्तर पे ले गया और दोनो एक दूसरे में खो गये.

अगले दिन, सबने मिलके नाश्ता किया आपस में हँसी मज़ाक चलता रहा. तभी सुनील को एक मेसेज आया विजय का, इनका सारा इंतेज़ाम आगे जिंदगी काटने का बोरा बोरा में हो गया था, दुनिया का एक ऐसा आइलॅंड जो हनिमूनर्स के लिए नायाब स्वर्ग जैसा था.

सुनील ने वो मेसेज सूमी को दिखाया और दो दिन बाद उड़ने का प्लान पक्का हो गया.

जब ये लोग वहाँ पहुँचे तो राजेश और कविता वहाँ मौजूद थे, दोनो ने इनके नये घर को बाखूबी सजाया हुआ था और हर सहूलियत का ध्यान रखा था.

राजेश और कविता इनके साथ एक हफ़्ता रहे, सबने मिलके खूब मस्ती बाजी करी, फिर राजेश और कविता वापस चले गये और सुनील अपने परिवार के साथ के नये स्थान पे नयी जिंदगी को संभालने में जुट गया.

वक़्त गुजरा तीन महीने पूरे हो गये और सवी सुनेल को वही पुराना सुनेल बनाने में नाकामयाब रही, इस बात का उसपे इतना असर पड़ा कि वो अपना मानसिक संतुलन खो बैठी.

उसके लिए ये जिंदगी की सबसे बड़ी हार थी जिसे वो बर्दाश्त नही कर पाई, सूमी से वो सुनील को ना छीन पाई, उसपे अपना हक़ ना बना पाई, ये उसकी बर्दाश्त के बाहर था.

विजय ने सवी को वहीं हॉस्पिटल में अड्मिट करा दिया और सुनेल अपनी जिद्द में सुनील और बाकी की खोज में निकल पड़ा, उसने काफ़ी कोशिश करी कि विजय से कुछ पता चल जाए पर विजय और उसका परिवार कुछ ना बोला.

बोरा बोरा में एक शाम सोनल बीच पे बैठी दूर तक उछलती कूदती लहरों को देख रही थी, और अपने ख़यालों में गुम थी कि रूबी उसके पास आई और वहीं बैठ गयी,'क्या देख रही हो दीदी'

सोनल चोन्कती है और उसके मुँह से बस यही निकलता है 'वो शाम भी अजीब थी, ये शाम भी अजीब है.'


दा एंड.
 
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