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- Dec 5, 2013
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"तो सुन...तू लोखनवाला रोड वरली सी फेस पहुंच...होटल हिल टॉप...."
"बरोबर।"
"मैं उधर ही पहुंचता हूं।" राज ने सम्पर्क विच्छेद किया और फिर वह उल्टे पांव वापस लौट चला।
एक बार फिर उसकी एस्टीम सड़कों को रौंदती हुई तेजी से आगे बढ़ रही थी। चैम्बूर से वरली तक का लम्बा रास्ता पार करना था उसे। उसने किसी तरह जितनी जल्दी हो सकता था वो रास्ता तय किया और लोखनवाला रोड होटल हिल टॉप जा पहुंचा।
जय वहां पहले से मौजूद था।
राज को मेकअप में होने के बावजूद उसने उसे पहचान लिया। उसकी वजह ये थी कि वह राज के उस मेकअप से पूर्व परिचित था।
"इधर से आएला बाप...।" राज उसके पीछे-पीछे चल पड़ा।
होटल के तीसरे माले के एक कमरे में वह राज को लेकर पहुंचा।
कमरे के अंदर वो धूर्त चेहरे वाला व्यक्ति मौजूद था जिसकी आखें कंजी थीं और भौंहें लगभग ना के बराबर थीं। चालीस-ब्यालीस के पट में पहुंचे उस व्यक्ति के सिर पर बीच वाले भाग में एक भी बाल नहीं था, हां किनारे-किनारे बालों की थोड़ी सी खेती जरूर थी। उसने हल्के पीले रंग का कुर्ता-पायजामा पहना हुआ था और वह बड़ी तेजी से पान चबा रहा था।
"ये पाल है बाप...वहीच...काम का आदमी...अपुन का बिडूं।" जय उसका परिचय देता हुआ बोला।
परिचय के साथ ही पाल ने बटुए से एक पान और निकालकर मुंह में डाला और उंगलियां सिर के बालों से पोंछ लीं। उसका हर काम विशेष स्टाइल में हो रहा था।"
"मेरा एक बहुत जरूरी काम है...करोगे?" राज ने उसे सिगरेट ऑफर करते हुए सपाट स्वर में पूछा।
"करेगा...जय सेठ के वास्ते कुछ भी करेंगा...जान हाजिर है पाल की।" पाल सिगरेट पैके ट से निकालता हुआ व्यापारिक अंदाज में बोला।
"पुलिस के खबरी हो?"
पाल ने मुट्ठी बांधकर उंगलियों के बीच दबी सिगरेट का पुराने ढूंग से कश लगाते हुए अपलक दृष्टि से राज को घूरा। मानो उसे राज के उस सवाल पर सख्त एतराज था।
"जवाब दो!" इस बार राज का स्वर कठोर हो उठा।
"जय सेठ बोला होगा न।"
"मतलब अपने मुंह से नहीं बकोगे?"
"समझदार आदमी को आम खाने से मतलब होना चाहिए न।"
"यानी बताने में एतराज है?"
"अनगिनत सवाल ऐसे हो सकते हैं जिन पर मुझे एतराज हो सकता है। आप अपने काम की बात करो न। अगर मैं आपके काम के खिलाफ बात करूंगा तो आप बेशक मुझे सजा दे सकते हैं।"
"ठीक है...सुनो...काम पुलिस के खिलाफ है।"
"होने दो।"
"तुम पुलिस के खबरी हो...पुलिस के खिलाफ किस तरह याओगे?"
"जय सेठ के आगे पुलिस का कोई खेल नहीं।"
"बाप...।" जय राज के कान के पास आकर कदरन धीमे स्वर में बोला-"फिकर नेई...ये पाल अपुन का आदमी होएला है...सब फिट कर दगा...बिन्दास बोलने का। बिन्दास पूछने का। क्या!"
राज ने गौर से उसकी ओर ताका फिर पाल की ओर मुड़ गया।
पाल सहज भाव से पान चबाने का काम कर रहा था। उसकी निगाहें बराबर राज के चेहरे पर टिकी हुएई थीं।
"इंस्पेक्टर सतीश मेहरा से वाकिफ हो?" कुछ देर उसे निरंतर घूरते रहने के बाद राज ने उससे पूछा।
"हूं...इंस्पेक्टर मेहरा से क्या अक्खी मुम्बई की पुलिस से वाकिफ हूं।"
"तो फिर मुझे उस कांड के बारे में बताओ जो इंस्पेक्टर सतीश मेहरा के साथ घटित हुआ?"
पाल के चेहरे का रंग हल्का-सा फीका पड़ गया। वो नजर जो अभी तक निर्भीक भाव से तनी हुई थी, इस तरह नीचे झुक गई मानो उसे उसके किसी बहुत बड़े जुर्म के बारे में बता दिया गया हो।
.
.
"पाल...।" थोड़ा वक्त गुजर जाने पर राज ने उसे टोकते हुए कहा-"मुझे तुम्हारी खामोशी नहीं तुम्हारा जवाब चाहिए।"
"इसके अलवा कोई भी सवाल पूछ लो...इस सवाल के लिए मुझे बख्श दो।"
"क्या उल्टा सीधा बोलेला है बिडूं...काम की बात नको बोलेगा का तो अपुन का इनसल्ट हो जाएगा।" जय पाल के सामने आता हुआ बोला।
"लेकिन जय सेठ...ये बड़े लफड़े वाला मामला है।"
"मंत्री धरम सावन्त का मामला है इसलिए मुंह खोलने से डर रहे हो...है न?" राज ने बीच में पड़े रहस्य के पर्दे को हटाते हुए कहा।
"बरोबर।"
"मैं उधर ही पहुंचता हूं।" राज ने सम्पर्क विच्छेद किया और फिर वह उल्टे पांव वापस लौट चला।
एक बार फिर उसकी एस्टीम सड़कों को रौंदती हुई तेजी से आगे बढ़ रही थी। चैम्बूर से वरली तक का लम्बा रास्ता पार करना था उसे। उसने किसी तरह जितनी जल्दी हो सकता था वो रास्ता तय किया और लोखनवाला रोड होटल हिल टॉप जा पहुंचा।
जय वहां पहले से मौजूद था।
राज को मेकअप में होने के बावजूद उसने उसे पहचान लिया। उसकी वजह ये थी कि वह राज के उस मेकअप से पूर्व परिचित था।
"इधर से आएला बाप...।" राज उसके पीछे-पीछे चल पड़ा।
होटल के तीसरे माले के एक कमरे में वह राज को लेकर पहुंचा।
कमरे के अंदर वो धूर्त चेहरे वाला व्यक्ति मौजूद था जिसकी आखें कंजी थीं और भौंहें लगभग ना के बराबर थीं। चालीस-ब्यालीस के पट में पहुंचे उस व्यक्ति के सिर पर बीच वाले भाग में एक भी बाल नहीं था, हां किनारे-किनारे बालों की थोड़ी सी खेती जरूर थी। उसने हल्के पीले रंग का कुर्ता-पायजामा पहना हुआ था और वह बड़ी तेजी से पान चबा रहा था।
"ये पाल है बाप...वहीच...काम का आदमी...अपुन का बिडूं।" जय उसका परिचय देता हुआ बोला।
परिचय के साथ ही पाल ने बटुए से एक पान और निकालकर मुंह में डाला और उंगलियां सिर के बालों से पोंछ लीं। उसका हर काम विशेष स्टाइल में हो रहा था।"
"मेरा एक बहुत जरूरी काम है...करोगे?" राज ने उसे सिगरेट ऑफर करते हुए सपाट स्वर में पूछा।
"करेगा...जय सेठ के वास्ते कुछ भी करेंगा...जान हाजिर है पाल की।" पाल सिगरेट पैके ट से निकालता हुआ व्यापारिक अंदाज में बोला।
"पुलिस के खबरी हो?"
पाल ने मुट्ठी बांधकर उंगलियों के बीच दबी सिगरेट का पुराने ढूंग से कश लगाते हुए अपलक दृष्टि से राज को घूरा। मानो उसे राज के उस सवाल पर सख्त एतराज था।
"जवाब दो!" इस बार राज का स्वर कठोर हो उठा।
"जय सेठ बोला होगा न।"
"मतलब अपने मुंह से नहीं बकोगे?"
"समझदार आदमी को आम खाने से मतलब होना चाहिए न।"
"यानी बताने में एतराज है?"
"अनगिनत सवाल ऐसे हो सकते हैं जिन पर मुझे एतराज हो सकता है। आप अपने काम की बात करो न। अगर मैं आपके काम के खिलाफ बात करूंगा तो आप बेशक मुझे सजा दे सकते हैं।"
"ठीक है...सुनो...काम पुलिस के खिलाफ है।"
"होने दो।"
"तुम पुलिस के खबरी हो...पुलिस के खिलाफ किस तरह याओगे?"
"जय सेठ के आगे पुलिस का कोई खेल नहीं।"
"बाप...।" जय राज के कान के पास आकर कदरन धीमे स्वर में बोला-"फिकर नेई...ये पाल अपुन का आदमी होएला है...सब फिट कर दगा...बिन्दास बोलने का। बिन्दास पूछने का। क्या!"
राज ने गौर से उसकी ओर ताका फिर पाल की ओर मुड़ गया।
पाल सहज भाव से पान चबाने का काम कर रहा था। उसकी निगाहें बराबर राज के चेहरे पर टिकी हुएई थीं।
"इंस्पेक्टर सतीश मेहरा से वाकिफ हो?" कुछ देर उसे निरंतर घूरते रहने के बाद राज ने उससे पूछा।
"हूं...इंस्पेक्टर मेहरा से क्या अक्खी मुम्बई की पुलिस से वाकिफ हूं।"
"तो फिर मुझे उस कांड के बारे में बताओ जो इंस्पेक्टर सतीश मेहरा के साथ घटित हुआ?"
पाल के चेहरे का रंग हल्का-सा फीका पड़ गया। वो नजर जो अभी तक निर्भीक भाव से तनी हुई थी, इस तरह नीचे झुक गई मानो उसे उसके किसी बहुत बड़े जुर्म के बारे में बता दिया गया हो।
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"पाल...।" थोड़ा वक्त गुजर जाने पर राज ने उसे टोकते हुए कहा-"मुझे तुम्हारी खामोशी नहीं तुम्हारा जवाब चाहिए।"
"इसके अलवा कोई भी सवाल पूछ लो...इस सवाल के लिए मुझे बख्श दो।"
"क्या उल्टा सीधा बोलेला है बिडूं...काम की बात नको बोलेगा का तो अपुन का इनसल्ट हो जाएगा।" जय पाल के सामने आता हुआ बोला।
"लेकिन जय सेठ...ये बड़े लफड़े वाला मामला है।"
"मंत्री धरम सावन्त का मामला है इसलिए मुंह खोलने से डर रहे हो...है न?" राज ने बीच में पड़े रहस्य के पर्दे को हटाते हुए कहा।