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जग्गू जगलर को छोड़ दे सतीश मेहरा..और सुन! उसे हाथ मत लगा देना। वो मेरा आदमी है। अगर उसे हल्की -सी खरोंच भी आ गई तो...!"
"जग्गू को छोड़ा नहीं जा कसता।" सतीश विद्रोही स्वर में गुर्राकर बोला।
"मेरे किसी काम के लिए ये तेरा दूसरा इंकार है...इंस्पेक्टर। लगता है तुझे अपनी नौकरी प्यारी नहीं।"
"कानून की मुहाफिज पुलिस का पहला फर्ज है कानून की रक्षा करना। अगर माशरे का पुलिस के ऊपर से एतबार उठ गया तो फिर खूनी क्रान्ति यकीनी है। इसलिए जब तक अपनी कुर्सी पर कायम और दायम हूं तब तक किसी भी किस्म की धमकी से डरे बिना मैं कानून के हित में काम करता रहूंगा...इसके लिए नौकरी तो क्या अगर जान भी चली जाए तो उससे भी पीछे नहीं हटूंगा।"
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"बहुत जोश है तुझमें...हूं न...बहुत जोश है.. और जोश इसलिए है क्योंकि मामला तेरी बहन का है। अपनी बहन की खातिर तू यकीनन अपनी जिन्दगी को दांव पर लगा सकता है। और शायद तुझे अपनी जिन्दगी दांव पर लगानी ही पड़ जाए। सबरकर सतीश मेहरा...मैं आ रहा हूं...मैं आ रहा हूं वह।"
इंस्पेक्टर सतीश मेहरा के चेहरे का चेहरे का रंग बदल गया। दहशत की काली परछाई उसकी आंखेंमें साफ उतरी नजर आ रही थी।
राज उसके चेहरे के उतार-चढ़ाव देख रहा था। बहुत धीरे-से उसने रिसीवर क्रैडिल पर रखा फिर वह जग्गू जगलर की ओर मुड़ता हुआ ऊंचे स्वर में बोला-"सखाराम...इसे हवालात में डाल दो।"
तुरन्त दो सिपाही आगे आए। उन्होंने जग्गू जगलर को हवालात में डालकर ताला डाल दिया।
सतीश किसी गहरे सोच में डूबा हुआ था।
राज ने आगे बढ़कर उसके करीब पहुंचते हुए पूछा-"कोई परेशानी हो तो मुझे बता सकते हो...निस्संकोच।"
तब सतीश मेहरा ने पहली बार उसकी ओर गौर से देखा।
"तुम कौन हो?"
"भैया...इन्होंने ही मुझे लाल बत्ती वाले मोड़ पर उस शैतान से बचाया था।" डॉली बीच में दखल देती हुई बोली
"ओह...आई सी। मैंने आपकी तरफ ध्यान ही नहीं दिया। सॉरी क्षमा चाहता हूं। आपने मेरी बहन को बचाया इसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। बदले में मैं आपकी कोई मदद कर सकू तो अपने आपको धन्य समझंगा।"
"नहीं-नहीं, बदले जैसी कोई बात नहीं है। किसी लड़की को मुश्किल से बचाना तो मेरा फर्ज बनता है। डॉली की मदद करने वाला उस घड़ी कोई नहीं था और मुझे मदद करनी थी इसलिए मेरा बीच में आना जरूरी हो गया था, लेकिन अभी मुझे कुछ ऐसी स्थिति बनती नजर आ रही है कि तुम इस जग्गूजगलर के आ जाने से किसी भारी उलझन में पड़गए हो।"
सतीश मेहरा ने इस बार उसे कुछ अधिक ही गौर से देखा। राज उसकी समझ से परे की चीज बनता जा रहा था...एक पहेली की तरह। उसे लगा कि वह अजनबी उसकी परेशानी को उसके चेहरे से पढ़ चुका था।
"हिचकिचाने की जरूरत नहीं है। तुम मुझे अपने सगेवाला मान सकते हो। मैं किसी भी प्रकार की मदद करने में सक्षम हूं। मुझ पर किसी भी प्रकार से भरोसा कर सकते हो।"
"इतनी मदद की-उसका बहुत-बहुत शुक्रिया। फिलहाल मुझे किसी प्रकार की मदद नहीं चाहिए।"
"तो फिर ठीक है...मै चलता हूं।"
सतीश ने गर्मजोशी के साथ उससे हाथ मिलाया। फिर राज वहां से बाहर निकल गया।
सतीश ने डॉली की चोटों की ओर ध्यान देते हुए एक सिपाही को डॉली के साथ निकट के क्लीनिक में भेज दिया। डॉली उस समय वहां से जाना नहीं चाहती थी किन्तु अन्तत: उसे जाना ही पड़ा।
सतीश की मन स्थिति ठीक नहीं थी। अंदर ही अंदर वह विचलित था। जैसे-जैसे वक्त गुजरता जा रहा था। वैसे-वैसे उसके अंदर की घबराहट बढ़ती जा रही थी।"
"इंस्पेक्टट...।" हवालात के अंदर से जग्गू जगलर कर्कश स्वर में गुर्राकर बोला-"अपुन से पंगा लेकर तूने अच्छा नेई किया। तेरे कू भुगतना पड़ेगा। अबी तू जग्गू जगलर को जानताइच नेई...क्या। अपुन भोत डेंजर अरदमी है...भोत डेंजर
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इंस्पेक्टर सतीश ने कहर भरी नजरों से उसे घूरा। बोला कुछ नहीं।
"देखता क्या है...अपुन तेरे कू छोड़ेगा नेई...कतई नेई छोड़ेगा।।"
अभी सतीश उससे कुछ कहना ही चाहता था कि अचानक ही कारों के इंजनों के शोर से पुलिस स्टेशन गूंजउठा। धड़धड़ाते हुए कितने ही बंदूकधारी नेता अंदर दाखिल होते चले गए। और...।
"जग्गू को छोड़ा नहीं जा कसता।" सतीश विद्रोही स्वर में गुर्राकर बोला।
"मेरे किसी काम के लिए ये तेरा दूसरा इंकार है...इंस्पेक्टर। लगता है तुझे अपनी नौकरी प्यारी नहीं।"
"कानून की मुहाफिज पुलिस का पहला फर्ज है कानून की रक्षा करना। अगर माशरे का पुलिस के ऊपर से एतबार उठ गया तो फिर खूनी क्रान्ति यकीनी है। इसलिए जब तक अपनी कुर्सी पर कायम और दायम हूं तब तक किसी भी किस्म की धमकी से डरे बिना मैं कानून के हित में काम करता रहूंगा...इसके लिए नौकरी तो क्या अगर जान भी चली जाए तो उससे भी पीछे नहीं हटूंगा।"
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"बहुत जोश है तुझमें...हूं न...बहुत जोश है.. और जोश इसलिए है क्योंकि मामला तेरी बहन का है। अपनी बहन की खातिर तू यकीनन अपनी जिन्दगी को दांव पर लगा सकता है। और शायद तुझे अपनी जिन्दगी दांव पर लगानी ही पड़ जाए। सबरकर सतीश मेहरा...मैं आ रहा हूं...मैं आ रहा हूं वह।"
इंस्पेक्टर सतीश मेहरा के चेहरे का चेहरे का रंग बदल गया। दहशत की काली परछाई उसकी आंखेंमें साफ उतरी नजर आ रही थी।
राज उसके चेहरे के उतार-चढ़ाव देख रहा था। बहुत धीरे-से उसने रिसीवर क्रैडिल पर रखा फिर वह जग्गू जगलर की ओर मुड़ता हुआ ऊंचे स्वर में बोला-"सखाराम...इसे हवालात में डाल दो।"
तुरन्त दो सिपाही आगे आए। उन्होंने जग्गू जगलर को हवालात में डालकर ताला डाल दिया।
सतीश किसी गहरे सोच में डूबा हुआ था।
राज ने आगे बढ़कर उसके करीब पहुंचते हुए पूछा-"कोई परेशानी हो तो मुझे बता सकते हो...निस्संकोच।"
तब सतीश मेहरा ने पहली बार उसकी ओर गौर से देखा।
"तुम कौन हो?"
"भैया...इन्होंने ही मुझे लाल बत्ती वाले मोड़ पर उस शैतान से बचाया था।" डॉली बीच में दखल देती हुई बोली
"ओह...आई सी। मैंने आपकी तरफ ध्यान ही नहीं दिया। सॉरी क्षमा चाहता हूं। आपने मेरी बहन को बचाया इसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। बदले में मैं आपकी कोई मदद कर सकू तो अपने आपको धन्य समझंगा।"
"नहीं-नहीं, बदले जैसी कोई बात नहीं है। किसी लड़की को मुश्किल से बचाना तो मेरा फर्ज बनता है। डॉली की मदद करने वाला उस घड़ी कोई नहीं था और मुझे मदद करनी थी इसलिए मेरा बीच में आना जरूरी हो गया था, लेकिन अभी मुझे कुछ ऐसी स्थिति बनती नजर आ रही है कि तुम इस जग्गूजगलर के आ जाने से किसी भारी उलझन में पड़गए हो।"
सतीश मेहरा ने इस बार उसे कुछ अधिक ही गौर से देखा। राज उसकी समझ से परे की चीज बनता जा रहा था...एक पहेली की तरह। उसे लगा कि वह अजनबी उसकी परेशानी को उसके चेहरे से पढ़ चुका था।
"हिचकिचाने की जरूरत नहीं है। तुम मुझे अपने सगेवाला मान सकते हो। मैं किसी भी प्रकार की मदद करने में सक्षम हूं। मुझ पर किसी भी प्रकार से भरोसा कर सकते हो।"
"इतनी मदद की-उसका बहुत-बहुत शुक्रिया। फिलहाल मुझे किसी प्रकार की मदद नहीं चाहिए।"
"तो फिर ठीक है...मै चलता हूं।"
सतीश ने गर्मजोशी के साथ उससे हाथ मिलाया। फिर राज वहां से बाहर निकल गया।
सतीश ने डॉली की चोटों की ओर ध्यान देते हुए एक सिपाही को डॉली के साथ निकट के क्लीनिक में भेज दिया। डॉली उस समय वहां से जाना नहीं चाहती थी किन्तु अन्तत: उसे जाना ही पड़ा।
सतीश की मन स्थिति ठीक नहीं थी। अंदर ही अंदर वह विचलित था। जैसे-जैसे वक्त गुजरता जा रहा था। वैसे-वैसे उसके अंदर की घबराहट बढ़ती जा रही थी।"
"इंस्पेक्टट...।" हवालात के अंदर से जग्गू जगलर कर्कश स्वर में गुर्राकर बोला-"अपुन से पंगा लेकर तूने अच्छा नेई किया। तेरे कू भुगतना पड़ेगा। अबी तू जग्गू जगलर को जानताइच नेई...क्या। अपुन भोत डेंजर अरदमी है...भोत डेंजर
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इंस्पेक्टर सतीश ने कहर भरी नजरों से उसे घूरा। बोला कुछ नहीं।
"देखता क्या है...अपुन तेरे कू छोड़ेगा नेई...कतई नेई छोड़ेगा।।"
अभी सतीश उससे कुछ कहना ही चाहता था कि अचानक ही कारों के इंजनों के शोर से पुलिस स्टेशन गूंजउठा। धड़धड़ाते हुए कितने ही बंदूकधारी नेता अंदर दाखिल होते चले गए। और...।